Tuesday, October 13, 2015

को, $को

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को ($फा.अव्य.)-कि वह। (हिं.सर्व.)-कौन? (हिं.प्रत्य.)-कर्म और सम्प्रदान की विभक्ति।
कोई (हिं.सर्व.)-ऐसा एक (मनुष्य या पदार्थ) जो अज्ञात हो; अविशेष वस्तु अथवा व्यक्ति; अनेक में से चाहे जो एक; एक भी (व्यक्ति), (क्रि.वि.)-लगभग, $करीब-$करीब। 'कोई एक या कोई साÓ-जो चाहे सो एक। 'कोई कहीं समझे कोई कहीं समझेÓ-कहीं का घाटा कहीं पूरा हुआ समझना। 'कोई दम का मेहमानÓ-मरणासन्न, थोड़ी देर में मर जाने वाला। 'कोई न कोईÓ-एक नहीं तो दूसरा।
कोक: (तु.पु.)-वह लड़का, जिसने किसी दूसरे लड़के के साथ एक ही माँ का दूध पिया हो, कोकलताश, धायभाई, दूधभाई।
कोक ($फा.स्त्री.)-बाजे का तार ठीक करना; बाजे की आवाज़ मिलना; खाँसी, कास। (सं.पु.)-चक्रवाक, चकवा पक्षी, सुख्ऱ्ााब; रति-शास्त्र का एक आचार्य; विष्णु; भेडिय़ा; मेंढक; जंगली खजूर; संगीत का छठा भेद।
कोकनार ($फा.पु.)-ख़्ाशख़्ााश का डोंडा, पोस्त, पोस्ता, पोस्ते की बोंडी जिसमें दाने हों।
कोकनी (उ.पु.)-एक रंग-विशेष का नाम। (हिं.पु.)-एक प्रकार का तीतर, (देश.वि.)-छोटा, नन्हा; कम मूल्य का; घटिया।
कोकब ($फा.पु.)-तारा, सितारा।
कोकलताश (तु.पु.)-दूध-भाई, वह लड़का जिसने किसी दाई के लड़के के साथ दूध पिया हो। एक ही दाई का दूध पीनेवाले दो बच्चे ऐ-दूसरे के 'कोकलताशÓ कहलाते हैं।
कोका (तु.पु.)-दे.-'कोक:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोकी (तु.स्त्री.)-दूध-बहन, जिसने किसी दूसरी लड़की के एक ही माँ का दूध पिया हो; दूध पिलानेवाली की बेटी।
कोख़्ा ($फा.पु.)-ऐसा झोंपड़ा, जिसमें रौशनदान न हो; एक प्रकार की घास, जिससे चटाई बनाते है; कीट, कीड़ा।
कोख (हिं.स्त्री.)-जठर, उदर, पेट; पेट के दोनों ओर का स्थान; गर्भाशय। 'कोख उजडऩाÓ-गर्भ गिर जाना। 'कोख की आंचÓ-संतान की इच्छा; संतान का प्रेम; संतान का वियोग। 'कोख खुलनाÓ-संतान होना। 'कोख मारी जानाÓ-निस्संतान रहना, बांझ बनना।
कोचक ($फा.वि.)-लघु, छोटा, ह्रïस्व।
कोचक दिल ($फा.वि.)-अनुदार, थुड़दिला; लघुचेता, तंगनजऱ; मृदुल हृदय, नर्मदिल।
कोचकदिली ($फा.स्त्री.)-दिल का छोटा होना; तंगनजऱी; दिल का नर्म होना।
कोचकी ($फा.स्त्री.)-लघुता, छोटाई, छुटाई। (देश.पु.)-लाली लिये हुए भूरा रंग।
कोज़: ($फा.पु.)-एक फूल, जो नस्री-जैसा होता है।
कोज़ (अ़.वि.)-कुबड़ा, कुब्ज; टेढ़ापन, वक्रता।
कोज़पुश्त ($फा.वि.)-कुबड़ा, कुब्ज।
कोतल (तु.पु.)-दे.-'कुतलÓ, वही शुद्घ उच्चारण है मगर उर्दूवाले 'कोतलÓ भी लिखते हैं। ख़्ाास सवारी का घोड़ा; सजा-सजाया ऐसा घोड़ा जिस पर कोई सवार न हो, जुलूसी घोड़ा; स्वयं राजा का घोड़ा; वह घोड़ा, जो ज़रूरत के वक़्त के लिए सजाकर साथ रखा जाता है।
कोतह ($फा.वि.)-'कोताहÓ का लघु., दे.-'कोताहÓ।
कोतहअंदेश ($फा.वि.)-तुच्छ विचारवाला; मूर्ख, बेवकू$फ; लघुचेता, अदूरदर्शी, नाअंदेश।
कोतहअंदेशी ($फा.स्त्री.)-मूर्खता, जहालत; अदूरदर्शिता, नाअंदेशी।
कोतहनजऱ (अ़.$फा.वि.)-लघुचेता, तुच्छ विचारवाला, अदूरदर्शी, नाअंदेश, नाअ़ा$िकबतअंदेशी।
कोतहनजऱी (अ़.$फा.स्त्री.)-अदूरदर्शिता, नाअ़ा$िकबत-अंदेशी।
कोतही ($फा.स्त्री.)-दे.-'कोताहीÓ।
कोताह ($फा.वि.)-अल्प, थोड़ा, कम; लघु, छोटा, ह्रïस्व।
कोताहअंदेश ($फा.वि.)-बिना सोचे-समझे काम करने-वाला; तुच्छ विचारवाला, अदूरदर्शी, लघुचेता; मूर्ख, बुद्घू, बेवकू$फ।
कोताहअंदेशी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कोतहअंदेशीÓ।
कोताह$कद (अ़.$फा.वि.)-नाटा, पस्ता$कद, अल्पकाय, लघुकाय छोटे डील-डौलवाला; बौना।
कोताह$कलम (अ़.$फा.वि.)-कम लिखनेवाला; जो पत्र-व्यवहार करने में बहुत आलसी हो, जो चिट्ठी-पत्री लिखने से बचता हो।
कोताह$कलमी (अ़.$फा.स्त्री.)-पत्र-व्यवहार करने में आलस, चिट्ठी-पत्री लिखने में सुस्ती।
कोताह$कामत (अ़.$फा.वि.)-अल्पकाय, छोटे डीलडौलवाला मनुष्य।
कोताह$कामती (अ़.$फा.स्त्री.)-$कद का छोटा होना, डीलडौल का छोटा होना।
कोताहगर्दन ($फा.वि.)-छोटी ग्रीवा या गर्दनवाला व्यक्ति (ऐसा व्यक्ति चालाक माना जाता है); धूर्त, धोखेबाज़।
कोताहदस्त ($फा.वि.)-जिसके हाथ छोटे हों; जिसकी पहुँच किसी विशेष स्थान तक न हो; जो किसी कार्य-विशेष को न कर सके; ना रसा।
कोताहदस्ती ($फा.स्त्री.)-हस्त-लघुता, हाथ की छोटाई; पहुँच न होना।
कोताहदामन ($फा.वि.)-कम हौसला, जिसके दामन में गुंजाइश कम हो, जिसमें उत्साह और उमंग की कमी हो।
कोताहदामनी ($फा.स्त्री.)-उत्साह और उमंग की कमी; दामन की लघुता अथवा छोटाई।
कोताहनजऱ ($फा.वि.)-अनुदार, तंगदिल; ग़ा$िफल, जो दूर तक न देख सके, अदूरदर्शी; जो दूर तक न सोच सके।
कोताहनजऱी ($फा.स्त्री.)-दूर तक न देख सकना; दूर तक न सोच सकना; तंगदिली, अनुदारता।
कोताहपाच: ($फा.वि.)-दे.-'कोताह$कामतÓ; एक जंगली चौपाया।
कोताह$फह्म (अ़.$फा.वि.)-नासमझ, बेअ़क़्ल, मंदबुद्घि, जिसकी समझ भोथरी हो, कुंद-बुद्घि।
कोताह$फह्मी (अ़.$फा.स्त्री.)-कमसमझी, बुद्घिमांद्य, बात की पूरी-पूरी समझ न होना।
कोताहबीं ($फा.वि.)-दे.-'कोताहनजऱÓ।
कोताहबीनी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कोताहनजऱीÓ।
कोताहहिम्मत (अ़.$फा.वि.)-पस्त हिम्मत, मंद साहस, अल्पोत्साह, कमहिम्मत।
कोताही ($फा.वि.)-छोटा होना, छोटाई, लघुता; न्यूनता, कमी; भूल, $ग$फलत; ख़्ाामी, त्रुटि।
कोद ($फा.पु.)-मल, पाख़्ााना, विष्ठा। (हिं.स्त्री.)-दिशा, ओर, तर$फ; कोना।
कोदक ($फा.पु.)-बालक, शिशु, बहुत छोटा बच्चा; बाल, किशोर, युवावस्था को प्राप्त करता हुआ लड़का, अंकुरित-यौवन।
कोदक मिज़ाज ($फा.वि.)-जिसके स्वभाव में लड़कपन हो।
कोदाब ($फा.पु.)-अंगूर के रस में पकाया जानेवाला एक पेय।
कोना (हिं.पु.)-एक बिन्दु पर मिलती हुई ऐसी दो रेखाओं का अन्तर जो फिर एक नहीं होती; लम्बाई-चौड़ाई मिलने का स्थान; एकान्त स्थान; नुकीला छोर या किनारा।
कोपल: ($फा.पु.)-वे बुलबुले, जो पानी अथवा किसी भी तरल पदार्थ में उत्पन्न हो जाते हैं।
कोफ़्त: ($फा.वि.)-चोट खाया हुआ; परिश्रम से थका हुआ; कूटा हुआ; (पु.)-$कीमे की गोली, पके हुए मांस का एक विशिष्टï प्रकार का व्यंजन, कबाब; वह कमाई जो भड़ुएपन से प्राप्त हो।
कोफ़्त:बेख़्त: ($फा.वि.)-कूटकर छाना हुआ, (पु.)-कुटी-छनी वस्तु।
कोफ़्त ($फा.स्त्री.)-मलाल, दु:ख, कष्ट, रंज; मनस्ताप, दिल की वेदना, मन की पीड़ा, ख़्ालिश; परिश्रम, मेहनत, प्रयास, कोशिश; थकावट; सदमा; घुटाई, कूटना। 'कोफ़्त पर कोफ़्त उठानाÓ-सदमे पर सदमा सहना।
कोफ़्तनी ($फा.वि.)-कूटने के योग्य।
कोफ़्ता ($फा.वि.)-दे.-'कोफ़्त:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोब: ($फा.प्रत्य.)-मिट्टी आदि कूटने की मोगरी, काठ की बनी मोगरी जिससे कोई चीज़ कूटते या पीटते हैं।
कोब:कार ($फा.वि.)-मोगरी से कूटनेवाला; मारपीट करने-वाला।
कोब:कारी ($फा.स्त्री.)-मारपीट, मरम्मत; मोगरी से कूटने की क्रिया, मोगरी से कुटाई।
कोब ($फा.प्रत्य.)-कूटनेवाला, पीटनेवाला, जैसे-'पाकोबÓ-पाँव पीटनेवाला; (पु.)-मारना-पीटना। पद.-'ज़दो कोबÓ-मार-पीट।
कोमल (सं.वि.)-मृदुल, मुलायम; सुकुमार, नाजुक; अपरिपक्व; सुन्दर, मनोहर; संगीत में स्वर का एक भेद।
कोबाँ ($फा.वि.)-मारता हुआ; कूटता हुआ।
कोबिद: ($फा.वि.)-कूटने योग्य।
कोबिंद: ($फा.वि.)-कूटा हुआ; मारा हुआ।
कोयला (हिं.पु.)-जली हुई लकड़ी का बुझा हुआ टुकड़ा; इसी प्रकार का खान से निकलनेवाला एक पदार्थ जिसे पत्थर का कोयला कहते हैं।
कोर: ($फा.पु.)-अंश, भाग, हिस्सा; ईरान देश का पाँचवाँ भाग।
क़ोर (तु.पु.)-अस्त्र, हथियार।
कोर ($फा.वि.)-नेत्रहीन, अन्ध, अंधा; न देखने वाला या न ध्यान रखनेवाला। पद.- 'कोर नमकÓ-कृतघ्न, नमकहराम।
कोर (हिं.स्त्री.)-किनारा, सिरा; कोना; द्वेष, वैर, वैमनस्य; दोष, ऐब, बुराई; हथियार की धार; पंक्ति, श्रेणी। 'कोर दबनाÓ-वश में होना।
कोरअ़क़्ल (अ़.$फा.वि.)-अ़क़्ल का अंधा, जिसकी समझ में कुछ न आए, नितान्त मूर्ख, हतबुद्घि, अंधबुद्घि, निरा बुद्घू।
कोर-कसर (हिं.स्त्री.)-दोष और त्रुटि, ऐब और कमी; कमीबेशी, न्यूनता या अधिकता।
$कोरख़्ाान: (तु.$फा.पु.)-हथियारगृह, शस्त्रागार।
कोरचश्म ($फा.वि.)-नाबीना, नेत्रहीन, अन्धा।
कोरचश्मी ($फा.स्त्री.)-नेत्रहीनता, अन्धापन।
$कोरची (तु.पु.)-$फौजी, सैनिक, सिपाही; लुहार, लोहकार, लोहार; शाही दरबार का प्रबन्धक; शस्त्रागार का अधिकारी।
कोरदिल ($फा.वि.)-जिसकी आत्मा में ज्ञान का प्रकाश न हो, अन्धात्मा; जिसमें धर्म न हो; कोरबातिन।
कोरदिली ($फा.स्त्री.)-आत्मा में ज्ञान के प्रकाश का अभाव; धर्म के प्रकाश का अभाव; कोरबातिनी।
कोरदीं ($फा.पु.)-कंबल, कम्मल, ऊन का मोटा कपड़ा, धुस्सा।
कोरदीद: ($फा.वि.)-कोरचश्म, अन्धा, नेत्रहीन।
कोरदीदगी ($फा.स्त्री.)-कोचश्मी, अन्धापन, नेत्रहीनता।
कोरदेह ($फा.पु.)-ऐसा गाँव जो बहुत बुरी जगह बसा हो और जहाँ ज़रूरत की कोई वस्तु न मिले।
कोरनमक ($फा.वि.)-नमकहराम, कृतघ्न।
कोरनमकी ($फा.स्त्री.)-नमकहरामी, कृतघ्नता।
कोरनिश (तु.स्त्री.)-झुककर सलाम करना। दे.-'कुर्नुशÓ, वही शुद्घ उच्चारण है मगर उर्दू में यही अशुद्घ उच्चारण प्रचलित है।
कोरबख़्त ($फा.वि.)-अभागा, हत्भाग्य, बद$िकस्मत, अन्धे भाग्यवाला, अत्यन्त दुर्भागी।
कोरबख़्ती ($फा.स्त्री.)-अत्यन्त अभागापन, बहुत-ही बद$िकस्मती।
कोरबातिन (अ़.$फा.वि.)-अन्धात्मा, जिसकी आत्मा में ज्ञान का प्रकाश न हो; जिसमें दीन-धर्म न हो।
कोरबातिनी (अ़.$फा.स्त्री.)-आत्मा में ज्ञान के प्रकाश का अभाव; दीन-धर्म के प्रकाश का अभाव।
$कोरबेगी (तु.पु.)-हथियार-घर का रक्षक, शस्त्रागार का रक्षक, अस्लिह:ख़्ााने का मुहा$िफज़।
कोरमग्ज़़ (अ़.$फा.वि.)-मन्दबुद्घि, जिसकी समझ बहुत मोटी हो, कोढ़मग्ज़़।
कोरमग्ज़़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-मोटी अ़क़्ल, कुंदबुद्घि, जड़बुद्घि, समझ या विवेक का अत्यन्त मोटा और भोथरापन।
कोरम: (तु.पु.)-कोरमा, भुना हुआ मांस जिसमें शोरबा बिलकुल नहीं होता।
कोरमा (तु.पु.)-दे.-'कोरम:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोरान: ($फा.क्रि.वि.)-कोराना, अन्धों की तरह, अन्धों का-सा, अन्धों-जैसा।
कोराना ($फा.क्रि.वि.)-दे.-'कोरान:Ó।
कोरा (हिं.वि. 'कोरीÓ स्त्री.)-जो व्यवहार में न लाया गया हो, बिलकुल नया; जिस पर कुछ लिखा या चित्रित न किया गया हो; जो रंग में नया हो; दा$ग या चिह्नïरहित, सा$फ; बिन धोया; खाली, रहित, वंचित; निष्कलंक; अपढ़, मूढ़, मूर्ख; धनहीन; केवल, सि$र्फ। (पु.)-गोद, उछंग; ताल-तालाबों के किनारे रहने वाली एक चिडिय़ा। 'कोरा जवाबÓ-स्पष्ट इंकार कर देना, सा$फ नाहीं कर देना।
कोरी (हिं.वि.स्त्री.प्र.)-'कोराÓ का स्त्रीलिंग, अछूती; नवीन, नई। (पु.)-मोटे कपड़े बुननेवाली एक जाति-विशेष, हिन्दू जुलाहा।
कोरी ($फा.स्त्री.)-आँध्य, अन्धापन, दृष्टिहीनता।
कोरे मादरज़ाद ($फा.वि.)-जन्मांध, जो माँ के पेट से ही अन्धा पैदा हुआ हो।
कोरे मुक्ऱी (अ़.$फा.वि.)-जन्मांध, जो माँ के पेट से ही अन्धा पैदा हुआ हो; बच्चों को पढ़ानेवाला अन्धा हा$िफज़।
कोरोकर ($फा.वि.)-जो न कुछ सुन सके और न कुछ देख सके, अन्धा और बहरा, अंध-बधिर।
कोल ($फा.पु.)-तड़ाग, ताल, तालाब। (सं.पु.)-सूअर, शूकर; गोद, उत्संग; बेर, बदरीफल; एक जंगली जाति।
कोलाब ($फा.पु.)-तड़ाग, ताल, तालाब।
कोश ($फा.पु.)-ईरानी हर महीने का चौदहवाँ दिन। दे.-'गोशÓ, दोनों शुद्घ हैं। (प्रत्य.)-कोशिश या प्रयास करने करनेवाला, जैसे-'मस्लहत कोशÓ-हित की कोशिश करने-वाला।
कोश (सं.पु.)-अंड, अंडा; अंडकोश; डिब्बा, गोलक; फूल की कली; आवरण, गिला$फ; वेदान्त के अनुसार पाँच सम्पुट जो मनुष्य के शरीर में होते हैं; संचित धन; ख़्ाजाना; खान से निकला हुआ विशुद्घ सोना या चाँदी; अकारादिक्रम से लिखी हुई पुस्तक जिसमें शब्दों के अर्थ दिये हों, अभिधान; रेशम का कोया।
कोशक ($फा.पु.)-ऊँची इमारत, महल, भवन, प्रसाद। दे.-'कुश्कÓ, दोनों शुद्घ हैं।
कोशाँ ($फा.वि.)-प्रयत्नशील, जो कोशिश कर रहा हो, यत्नवान्, प्रयत्नवान्, जो किसी कार्य की सिद्घि के लिए प्रयत्न कर रहा हो।
कोशिश ($फा.स्त्री.)-यत्न, प्रयत्न, प्रयास, उद्यम, जिद्दो-जहद; परिश्रम, मेहनत; उपाय, तद्बीर।
कोस: ($फा.पु.)-वह व्यक्ति, जिसके वयस्क होने के बहुत दिनों बाद दाढ़ी-मूँछ निकलें।
कोस ($फा.पु.)-बड़ा नगाड़ा, धौंसा, डंका, दुंदुभि, नक़्$कारा।
कोस (हिं.पु.)-दो मील की दूरी का नाप। 'कोसों या काले कोसोंÓ-बहुत दूर। 'कोसों दूर रहनाÓ-अलग रहना।
कोसना (हिं.क्रि.सक.)-शाप के रूप में गालियाँ देना। 'पानी पीकर कोसनाÓ-बहुत अधिक दुर्वचन कहना।
कोस्त: ($फा.वि.)-कूटा हुआ, कुचला हुआ।
कोस्त ($फा.पु.)-पश्चात्ताप, मनस्ताप, सदमा, खेद।
कोह: ($फा.पु.)-कोहान, ऊँट या बैल की पीठ का उभार, कूबड़।
कोह ($फा.पु.)-पर्वत, गिरी, पहाड़, ज़बल। मुहा.-'कोहे आ$फत गिरनाÓ-अचानक बड़ी परेशानी आना। 'कोह टूटनाÓ-आ$फत या मुसीबत का पहाड़ टूटना अर्थात् बड़ी विपत्ति आना।
कोह (हिं.पु.)-क्रोध, $गुस्सा।
कोहकन ($फा.वि.)-पर्वतभेदी, पहाड़ खोदने या काटने-वाला, (पु.)-'शीरींÓ के प्रेमी '$फर्हादÓ की उपाधि, जिसने शीरीं की आज्ञा से बे-सुतून नामक पहाड़ को काटते हुए अपने प्राण दे दिए।
कोहकनी ($फा.स्त्री.)-पर्वत-भेदन, पहाड़ काटना; कोई बहुत कठिन कार्य करना।
कोह-$का$फ ($फा.पु.)-$का$फ; वह जगह, जो बहुत दूर हो, जहाँ आदमी की पहुँच न हो सके।
कोहच: ($फा.पु.)-उभरी हुई ज़मीन, टीला।
कोहजिगर ($फा.वि.)-वज्र-साहसी, वज्र-हृदयी, पहाड़-जैसा अचल साहस रखनेवाा, बहुत बड़ा वीर, अत्यन्त साहसी।
कोहन ($फा.वि.)-दे.-'कुह्नÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोहना ($फा.वि.)-दे.-'कुह्न:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोहनूर ($फा.पु.)-दे.-'कोहे नूरÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोहपाय: ($फा.वि.)-पर्वत-जैसी महत्ता रखनेवाला, गिरी-सा गौरवमय, (पु.)-पहाड़ की तराई की भूमि।
कोहपैकर ($फा.वि.)-पर्वताकार, भीमकाय, महाकाय, पहाड़-जैसा डीलडौल रखनेवाला, बहुत-ही गिरांडील।
कोहपैमा ($फा.वि.)-पर्वतों या पहाड़ों में मारा-मारा फिरने-वाला, (पु.)-आधुनिक समय में पर्वतों की चोटियों तक पहुँचने और वहाँ की स्थिति का आँकलन करनेवाला, पर्वतारोही।
कोहपैमाई ($फा.स्त्री.)-पहाड़ों में घूमना-फिरना; पर्वत-शिखाओं पर चढ़कर वहाँ की दशा और दूसरी जानकारियाँ जुटाना, पर्वतारोहण।
कोहरा (हिं.पु.)-कुहासा, कुहरा।
कोहराम (अ़.पु.)-दे.-'कुह्रïामÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
कोहव$कार (अ़.$फा.वि.)-पहाड़-जैसा धीरज रखनेवाला, पर्वत-जैसा धैर्य रखनेवाला, महाधैर्य; पर्वत-जैसी प्रतिष्ठा रखनेवाला, महाप्रतिष्ठित।
कोहसार ($फा.पु.)-पर्वतमाला, पहाड़ों का सिलसिला, उपत्यका; वह क्षेत्र या प्रदेश जहाँ पहाड़ ही पहाड़ हों, पार्वत्य-प्रदेश।
कोहस्तान ($फा.पु.)-दे.-'कोहिस्तानÓ।
कोहस्तानी ($फा.वि.)-दे.-'कोहिस्तानीÓ।
कोहान ($फा.पु.)-ककुद, ऊँट या बैल की पीठ का कूबड़।
कोहिस्तान ($फा.पु.)-पर्वतीय प्रदेश, पहाड़ी इला$का; पहाड़ी सिलसिला, पर्वतमाला, वह स्थान जहाँ बहुत-से पहाड़ हों।
कोहिस्तानी ($फा.वि.)-पर्वतीय प्रदेश का निवासी, पर्वतीय, पहाड़ी; पर्वतीय इला$के से सम्बन्ध रखनेवाला।
कोही ($फा.वि.)-कोह से सम्बन्धित; पर्वतीय; पर्वत या पहाड़ का, पार्वत्य; पर्वत या पहाड़ से सम्बन्धित; पर्वत या पहाड़ पर रहनेवाला।
कोही (हिं.वि.)-क्रोधी, $गुस्सैल।
कोहे आतश$िफशाँ ($फा.पु.)-अग्निवर्षक गिरी, ज्वालामुखी पर्वत, आग उगलनेवाला पहाड़।
कोहे आदम (अ़.$फा.पु.)-लंका के एक पर्वत की चोटी का नाम।
कोहे $का$फ (अ़.$फा.पु.)-काकेशिया का पहाड़, जहाँ का सौन्दर्य प्रसिद्घ है।
कोहे तूर (अ़.$फा.पु.)-वह पर्वत जिस पर हज्ऱत मूसा ने ईश्वरीय प्रकाश देखा था।
कोहे नूर (अ़.$फा.पु.)-प्रकाश का पहाड़ अर्थात् बहुत ही अधिक प्रकाश; विश्व का सर्वश्रेष्ठ हीरा, जो गोलकुण्डा से प्राप्त हुआ था और मु$गल-सम्राटों के $कब्ज़े में रहा। भारत को गुलाम बनाने के बाद अंग्रेज़ उसे इंग्लैण्ड ले गए तथा अब वह ब्रिटिश सम्राट् के ताज में जड़ा है।
कोहे बेसुतूँ ($फा.पु.)-अर्मन देश का वह पहाड़, जिसे शीरीं के अ़ाशि$क $फर्हाद ने काटा था।
कोहे स$फा (अ़.$फा.पु.)-अऱब में मक्का की एक पहाड़ी, जिससे दो सौ $कदम की दूरी पर दूसरी पहाड़ी 'मर्व:Ó है और इन दोनों के बीच में हाजी दौड़ते हैं।
कोहे सीना (अ़.$फा.पु.)-शाम (सीरिया देश) का एक पहाड़।
कोहे सैना (अ़.$फा.पु.)-दे.-'कोहे सीनाÓ।
कोहन: ($फा.पु.)-दे.-'कुहन:Ó, पुरातन, पुराना, प्राचीन, जीर्ण।

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