Thursday, October 15, 2015

मा

----------------------------------------------------------------------------

मा (अ़.अव्य.)-नहीं, क्या, जोकि, इसके।
माँ ($फा.स्त्री.)-मात, माता, जननी, अम्मा।
माँद: ($फा.वि.)-थका हुआ, हारा हुआ, शिथिल, क्लांत, श्रान्त; बचा हुआ, छोड़ा हुआ; (प्रत्य.)-छोड़ा हुआ, रहा हुआ, बचा हुआ।
माँदगी ($फा.स्त्री.)-आलस्य, सुस्ती, थकावट, शिथिलता, क्लांति; बीमारी, रोग, अस्वस्थता।
माँदोबूद ($फा.स्त्री.)-रहन-सहन, रहने-सहने का ढंग।
मा (अ़.पु.)-पानी, जल, नीर; सत, अऱ$क; (अव्य.)-दरमियान, बीच, दौरान, इसके, जैसे-'मासिवा अर्थात् इसके सिवा।।
माइद: (अ़.पु.)-खानों से भरा हुआ स्थान।
माइल (अ़.वि.)-मोहित, आकर्षित, प्रवृत्त; किसी ओर झुका हुआ, झुकाव रखनेवाला, ढलुवाँ; अ़ाशि$क, आसक्त; थोड़ा-सा, कुछ-कुछ; आमादा, तत्पर, उद्यत। 'माइल करनाÓ-झुकाना, ध्यान दिलाना।
माइल ब उ़रूज (अ़.$फा.वि.)-उत्थान की ओर प्रवृत्त, उन्नति की ओर आकृष्ट, धीरे-धीरे उन्नति और तरक़्$की करनेवाला।
माइल ब औज (अ़.$फा.वि.)-उत्थान की ओर प्रवृत्त, ऊपर की ओर आकर्षित, धीरे-धीरे ऊपर की ओर चढऩेवाला।
माइल ब करम (अ़.$फा.वि.)-दया की ओर प्रवृत्त, दयावीर, मेह्रïबानी करने पर आमादा या उद्यत।
माइल ब ज़र्दी (अ़.$फा.वि.)-ज़र्दी अथवा पीलेपन की ओर प्रवृत्त, कुछ-कुछ पीलापन लिये हुए।
माइल ब ज़वाल (अ़.$फा.वि.)-पतनोन्मुख, अवनति की ओर प्रवृत्त, नीचे की ओर जाता हुआ, पतन की ओर अग्रसर।
माइल ब पस्ती (अ़.$फा.वि.)-दे.-'माइल ब ज़वालÓ।
माइल ब $फना (अ़.$फा.वि.)-विनाशोन्मुख, विनाश की ओर जाता हुआ, नष्ट होने की तर$फ अग्रसर।
माइल ब स$फेदी (अ़.$फा.वि.)-मित श्वेताभ, कुछ-कुछ श्वेतता लिये हुए, हलकी सफ़ेदी लिये हुए।
माइल ब सब्ज़ी (अ़.$फा.वि.)-हरिताभ, हलका हरापन लिये हुए।
माइल ब सियाही (अ़.$फा.वि.)-मित श्यामल, हलकी श्यामलता लिये हुए, कुछ-कुछ कालापन लिये हुए।
माइल ब सुख्ऱ्ाी (अ़.$फा.वि.)-मित रक्ताभ, हलकी लालिमा लिये हुए, कुछ-कुछ रक्तवर्ण लिये हुए।
माई (अ़.वि.)-जल का, पानी का।
माईयत (अ़.स्त्री.)-तरी, गीलापन, आद्र्रता।
माउल$कअऱ् (अ़.पु.)-लौकी का पानी।
माउलजुबन (अ़.पु.)-फटे हुए दूध का पानी, जो बीमारों को दिया जाता है।
माउल्लह्म (अ़.पु.)-दवाओं में मांस डालकर खींचा हुआ एक पुष्टिदायक अऱ$क।
माउलवर्द (अ़.पु.)-गुलाब-जल, गुलाब का अऱक़।
माउलहयात (अ़.पु.)-अमृतजल, आबेहयात; रसायन अथवा कीमिया की परिभाषा में घी, शहद और सुहागे का मिश्रण, जिसके सेवन से प्रत्येक भस्म धातु फिर से जी उठती है।
माऊ$फ (अ़.वि.)-ख़्ाराब, विकृत, दूषित, बिगड़ा हुआ।
माऊफ़दिमा$ग (अ़.वि.)-विकृतमस्तिष्क, जिसके दिमा$ग में कुछ ख़्ालल हो।
माए (अ़.पु.)-प्रत्येक बहनेवाला पदार्थ, द्रव, तरल।
माए जारी (अ़.पु.)-बहता हुआ पानी, प्रवाहित जल, जैसे-नदी या झरने का पानी।
माए साकिन (अ़.पु.)-ठहरा हुआ जल, स्थिर जल, जैसे-तालाब या पोखर का पानी।
माकदिर (अ़.वि.)-जो गन्दा या मैला हो, अशुद्घ, अस्वच्छ, मैला, गँदला।
मा$कब्ल (अ़.वि.)-जो पहले हो; जो दूसरे से पहले हो; वह शब्द जो दूसरे शब्द से पहले हो।
मा$कब्लजि़्ज़क्र (अ़.वि.)-पूर्वोक्त, पूर्वकथित, जिसकी चर्चा पहले हो चुकी हो।
माकियान ($फा.स्त्री.)-कुक्कुटी, मु$र्गी; कुक्कुट, मु$र्गा।
माकिर (अ़.वि.)-छलिया, छल करनेवाला, छली।
मा$कूद (अ़.वि.)-ग्रन्थित, गाँठ लगा हुआ; विवाहित, ब्याह किया हुआ, शादीशुदा।
माÓ$कूल (अ़.वि.)-उचित, मुनासिब; उत्तम, उम्दा; सभ्य, शिष्ट; शुद्घ, ख़्ाालिस, निर्मल, विशुद्घ, बिना मिलावट का।
माकूल (अ़.वि.)-खाया हुआ, खाई हुई वस्तु; खाने की चीज़, खाद्य-पदार्थ; खुराक, $िगज़ा।
माÓ$कूलात (अ़.पु.)-न्यायशास्त्र और विज्ञान की पुस्तकें और कोर्स।
माकूलात (अ़.पु.)-खाने की चीज़ें, वह पदार्थ जो मनुष्य खाता है।
माÓ$कूली (अ़.पु.)-न्यायशास्त्र का विद्वान्, नैयायिक।
माÓ$कूलीयत (अ़.स्त्री.)-औचित्य, वाजिबीयत; उत्तमता, उम्दगी; शरा$फत, सज्जनता।
माÓकूस (अ़.वि.)-औंधा, उलटा, अधोमुख; विपरीत।
माख़्ा (अ़.पु.)-वृद्घ, बूढ़ा व्यक्ति; ओछा, तुच्छ, असभ्य।
माख़्ाज़ (अ़.पु.)-लेने का स्थान, वह पुस्तक जिसमें से किसी लेख आदि के लिए कोई सामग्री ली जाए।
माख़्ाूज़ (अ़.वि.)-लिया हुआ, गृहीत; गिरिफ़्तार, पकड़ा हुआ।
माख़्ाूर (अ़.पु.)-मधुशाला, शराबघर; द्यूतशाला, जुए का अड्डा; पक्षियों के बैठने का स्थान।
माख़्ाूलिया (अ़.पु.)-'मालीख़्ाूलियाÓ अथवा 'मालनख़्ाुलियाÓ का लघु., मस्तिष्क का एक रोग विशेष।
मा$ग ($फा.पु.)-जल-कौवा।
माच ($फा.पु.)-बोस:, चुम्बन, चुम्मी।
माचीन ($फा.पु.)-चीन के दक्षिण और भारत के पूर्व में बसा एक देश, इन्डोचाइना, हिन्दचीन।
माजरा (अ़.पु.)-हाल, वृत्तांत; घटना, वा$िकअ़ा।
माजराए दिल (अ़.$फा.पु.)-मन की पीड़ा, हृदय की व्यथा, प्रेम की कहानी।
माजिद: (अ़.स्त्री.)-साध्वी, शुद्घचरित्रा, सदाचारिणी, बुज़ुर्ग स्त्री।
माजिद (अ़.वि.)-पुनीत, अंत:शुद्घ, पवित्रात्मा, बुज़ुर्ग।
माजिऩ (अ़.पु.)-चीटिंयों के अण्डे।
माजिय़: (अ़.वि.)-गत, विगत, गुजऱा हुआ।
माÓजिऱत (अ़.स्त्री.)-उज्र, विवशता, मजबूरी।
माजिऱ (अ़.पु.)-खट्टा दही।
माज़ी (अ़.पु.)-गत, विगत, गुजऱा हुआ; भूतकाल, ज़मानए माज़ी।
माज़ी इस्तिम्रारी (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें काम का बराबर होना पाया जाए, वह भूतकाल जिसमें कार्य की निरन्तरता बनी रहे, जैसे-'वह करता थाÓ।
माज़ी एहतिमाली (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें काम के न होने की शंका पाई जाए, जैसे-'किया होगाÓ।
माज़ी $करीब (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें काम अभी ख़्ात्म होना पाया जाए, जैसे-'किया हैÓ।
माज़ी तमन्नाई (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें काम करने की इच्छा पाई जाए, जैसे-'करताÓ।
माज़ी नातमाम (अ़.पु.)-दे.-'माज़ी इस्तिम्रारीÓ।
माज़ी बईद (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें काम को समाप्त हुए देर हो चुकी हो, जैसे-'किया थाÓ।
माज़ी माÓतूफ़: (अ़.पु.)-वे दो भूतकाल जिनके बीच में 'औरÓ आए, जैसे-'खाया और गयाÓ या 'खाकर गयाÓ।
माज़ी मुत्ल$क (अ़.पु.)-सामान्य भूतकाल, जैसे-'किया, खायाÓ आदि।
माज़ी शक्की (अ़.पु.)-दे.-'माज़ी एहतिमालीÓ।
माज़ी शर्ती (अ़.पु.)-वह भूतकाल जिसमें किसी शर्त का होना पाया जाए, जैसे-'अगर वह गया थाÓ या 'अगर वह गया हैÓ अथवा 'अगर वह गया होताÓ।
माज़ू ($फा.पु.)-एक प्रकार के गोल फल, जो दवा में काम आते हैं, माज़ूफल।
माÓजून (अ़.स्त्री.)-कुटी हुई दवाओं को शहद या शक्कर के घोल में मिलाकर बनाया गया अवलेह, इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह स्वादिष्ठ भी हो, जैसी 'जवारिशÓ होती है।
माÓज़ूर (अ़.वि.)-विवश, लाचार; अपाहिज, चलने-फिरने में लाचार।
माजूर (अ़.वि.)-जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित।
माÓज़ूरुलख़्िाद्मत (अ़.वि.)-जो सेवा करने के अयोग्य हो चुका हो, जिससे सेवा न हो सके।
माÓज़ूल (अ़.वि.)-पदच्युत, जो पद से हटा दिया गया हो, अपदस्थ।
माÓज़ूली (अ़.स्त्री.)-पदच्युति, पद से हटाया जाना, अपदस्थता।
मात (अ़.पु.)-इसका शाब्दिक अर्थ तो 'मर गयाÓ है, मगर यह हार अथवा पराजय के अर्थों में इस्तेमाल होता है, शतरंज की बाज़ी की हार; हार, शिकस्त।
मात$कद्दम (अ़.वि.)-वह चीज़ जो पहले से हो चुकी हो; भूत।
मातम ($फा.पु.)-मरने का $गम, मृत्यु-शोक। 'मातम हरेक फूल के चेहरे पे लिख गया, धब्बा जो एक ख़्ाून का तितली के पर में थाÓ-माँझी
मातमअंगेज़ ($फा.वि.)-शोकजनक, $गमअंगेज़।
मातमकद: ($फा.पु.)-दे.-'मातमख़्ाान:Ó।
मातमख़्ाान: ($फा.पु.)-शोक-गृह, जहाँ किसी मरनेवाले का शोक मनाया जा रहा हो।
मातमज़द: ($फा.वि.)-शोकग्रस्त, जो किसी मरनेवाले का शोक मना रहे हों, शोक-पीडि़त।
मातमदार ($फा.वि.)-शोकग्रस्त, सोगवार, शोक मनानेवाला।
मातमदारी ($फा.स्त्री.)-शोक मनाने की अवस्था; किसी मृतक का शोक मनाना।
मातमनशीं ($फा.वि.)-जो किसी के शोक में बैठा हो और कहीं आता-जाता न हो।
मातमपुर्सी ($फा.स्त्री.)-किसी के मरने पर सहानुभूति प्रकट करने के लिए उसके घरवालों के पास जाना।
मातमसरा ($फा.स्त्री.)-दे.-'मातमख़्ाान:Ó।
मातमी ($फा.वि.)-शोक-सम्बन्धी, जैसे-'मातमी लिबासÓ-वह लिबास जो शोक-संवेदना के समय धारण करते हैं; सोगवार, मातम करनेवाला।
मातह्त (अ़.पु.)-अधीन, आज्ञाधीन, आदेश को मानने-वाला, सहायक, एसिस्टेंट; अस्वतंत्र, $गुलाम, पराधीन।
माÓतू$फ (अ़.वि.)-वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द के साथ मिलाकर बोला जाए, जैसे-'सियारामÓ में सिया।
माÓतू$फअ़लैह (अ़.वि.)-वह शब्द जो किसी शब्द के साथ मिलकर आए, जैसे-'राम और लक्ष्मणÓ में लक्ष्मण।
माÓतूब (अ़.वि.)-जिस पर क्रोध हो, कोप-भाजन, कोध-पात्र।
मातह्ती (अ़.स्त्री.)-अधीनता, पराधीनता, $गुलामी।
माद: ($फा.स्त्री.)-'नरÓ का विपरीत, स्त्री-प्राणी।
माद:रू ($फा.वि.)-वह नर-प्राणी जिसके दाढ़ी-मूँछें न हों, लड़का; वह व्यक्ति जिसकी दाढ़ी-मूँछें मूड़ी गई हों, जऩाना; हिजड़ा।
मादए अस्प ($फा.स्त्री.)-घोड़े की मादा अर्थात् घोड़ी।
मादए आहू ($फा.स्त्री.)-हिरनी, हरिणी।
मादए ख़्ार ($फा.स्त्री.)-गधा की मादा अर्थात् गधी, गर्दभी।
मादए ख़्ाूक ($फा.स्त्री.)-सुअर की मादा अर्थात् सुअरनी, शूकरी, वराही।
मादए गाय ($फा.स्त्री.)-गाय, गौ।
मादए ताऊस ($फा.स्त्री.)-मोर की मादा अर्थात् मोरनी, मयूरी, शिखावली।
मादए $फील (अ़.$फा.स्त्री.)-हाथी की मादा अर्थात् हथनी, गजपत्नी, हस्तिनी, मनाक।
मादए शुतूर ($फा.स्त्री.)-ऊँट की मादा अर्थात् ऊँटनी, उष्ट्री, उष्ट्रिका।
मादए सग ($फा.स्त्री.)-कुत्ता की मादा अर्थात् कुतिया, शुनी, कुक्कुरी।
मादरांदर ($फा.स्त्री.)-उपमाता, सौतेली माता।
मादर ($फा.स्त्री.)-माता, जननी, माँ, अम्माँ।
मादरजऩ ($फा.स्त्री.)-सास; पति की माता; पत्नी की माता।
मादरज़ाद ($फा.वि.)-जन्मजात; जन्म से, पैदाइशी, जन्म का, जैसे-'मादरज़ाद अंधाÓ, अर्थात् जन्म से अंधा; नितान्त, बिलकुल, जैसे-'मादरज़ाद नंगाÓ, अर्थात् बिलकुल नंगा।
मादर बख़्ाता ($फा.वि.)-एक गाली, 'हरामीÓ।
मादरान: ($फा.अव्य.)-माँ-जैसा, ममतापूर्वक; माँ का, माता का।
मादरी ($फा.वि.)-माँ-सम्बन्धी; माता का; पैदाइशी, जो माँ की गोद में पाया हो।
मादरे अ़ल्लाती (अ़.$फा.स्त्री.)-सौतेली माँ, उपमाता।
मादरे गेती ($फा.स्त्री.)-मातृभूमि, जन्मभूमि, प्यारी ज़मीन।
मादरे रिज़ाई ($फा.स्त्री.)-दूध पिलानेवाली, अन्न, धात्री।
मादरे वतन ($फा.स्त्री.)-मातृभूमि, प्यारा देश।
मादरे ह$की$की ($फा.स्त्री.)-वास्तविक माँ, असली माता, मातृ, जननी, जन्म देनेवाली माता।
मादाम (अ़.वि.)-सदा, सर्वदा, हमेशा, सदैव।
मदामलहयात (अ़.वि.)-आयु-पर्यन्त, जि़न्दगी-भर, सारी उम्र, आजन्म।
माÓदिन (अ़.पु.)-खनि, खान।
माÓदिनी (अ़.वि.)-खान से निकला हुआ, खनिज।
माÓदिनीयात (अ़.स्त्री.)-खान से निकली हुई चीज़ें, खनिज-पदार्थ; खनिज-विज्ञान।
माÓदिल (अ़.पु.)-दो बराबर भागों में बाँटनेवाला, समविभाजक, दे.-'मुअ़द्दिलÓ।
माÓदिलत (अ़.स्त्री.)-न्याय, इंसा$फ।
माÓदिलतगुस्तर (अ़.$फा.वि.)-न्यायशील, न्यायनिष्ठ, मुंसि$फ मिज़ाज।
माÓदिलतपर्वर ($फा.वि.)-दे.-'माÓदिलतगुस्तरÓ।
माÓदिलुन्नहार (अ़.पु.)-दे.-'मुअ़द्दिलुन्नहारÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, उर्दू में कुछ लोगों ने इसका यह $गलत उच्चारण भी लिख दिया है, वह वृत्त, जिस पर सूर्य के पहुँचने से दिन-रात बराबर होते हैं, नाड़ीवृत्त।
मादिख़्ा (अ़.पु.)-सम्मानित, प्रतिष्ठित; महापुरुष; बुज़ुर्ग।
मादिह (अ़.वि.)-प्रशंसा करनेवाला, प्रशंसक, श्लाघी, ताÓरी$फ करनेवाला; स्तुति-पाठक, हम्दोसना करनेवाला।
मादीन ($फा.स्त्री.)-मादा, स्त्री प्राणी।
माÓदूद (अ़.वि.)-कतिपय, थोड़े, चन्द, इने-गिने, कुछ।
मादूदे चंद (अ़.$फा.वि.)-बहुत कम, बहुत थोड़े, इने-गिने।
मादून (अ़.अव्य.)-अतिरिक्त, सिवाय, अलावा।
माÓदूम (अ़.वि.)-नष्ट, विनष्ट, बरबाद, ज़ाए; $गाइब, लुप्त, अन्र्तद्र्घान।
माÓदूमुलबसर (अ़.वि.)-नेत्रहीन, नष्ट-दृष्टि, अंधा, नाबीना।
माÓदूमी (अ़.वि.)-विनाश, बरबादी, तबाही।
माद्द: (अ़.पु.)-मूल तत्त्व, वह मूल पदार्थ जिससे कोई चीज़ बने; योग्यता, पात्रता, सलाहियत; बुनियाद, आधार, मूल, जड़; विवेक, तमीज़; बोध, ज्ञान, समझ; पीप, मवाद; वे तत्त्व जिनसे मिलकर सृष्टि की रचना हुई है; प्रकृति।
माद्द:परस्त (अ़.$फा.वि.)-वस्तुवादी, प्रकृतिवादी।
माद्द:परस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-वस्तुवाद, प्रकृतिवाद।
माद्दए $फासिद: (अ़.पु.)-शरीर की दूषित धातु जो बीमारी पैदा करती है; घाव अथवा फोड़े आदि की ख़्ाराब मवाद।
माद्दए मनवीय: (अ़.पु.)-वीर्य, शुक्र, रेतस्, मनी।
माद्दए रदीय: (अ़.पु.)-दे.-'माद्दए $फासिद:Ó।
माद्दी (अ़.वि.)-माद्दे से सम्बन्धित; माद्दे का; भौतिक, जो आत्मिक न हो।
माद्दयित (अ़.स्त्री.)-माद्दे का भाव।
मानंद ($फा.वि.)-यद्यपि शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'मानिंदÓ प्रयुक्त है, दे.-'मानिंदÓ।
माÓनन (अ़.वि.)-अर्थ के विचार से, मतलब की दृष्टि से।
माÓनवी (अ़.वि.)-अर्थवाला; अर्थ का; भीतरी, आन्तरिक, आभ्यान्तरिक।
माÓनवीयत (अ़.वि.)-अर्थ की गंभीरता।
माÓना (अ़.पु.)-अर्थ, मतलब; आशय, मंशा; कारण, सबब; अन्तर, भेद। (बहुवचन के रूप में भी प्रयुक्त होता है)।
माना ($फा.वि.)-समान, तुल्य, मिस्ल।
मानिंद ($फा.वि.)-तुल्य, समान, सदृश।
माÓनी ($फा.पु.)-दे.-'मानाÓ, परन्तु यह बहुवचन में व्यवहृत नहीं है।
मानी ($फा.पु.)-एक बहुत ही प्रसिद्घ चित्रकार, जो 831 ईस्वी में बाबिल (ईरान) में पैदा हुआ था। उसकी शिक्षा-दीक्षा 'मदाइनÓ में हुई, युवा होकर उसने 'नबीÓ (ईश-दूत, अवतार अथवा पै$गम्बर) होने का दावा किया, जिससे लोग उसके दुश्मन हो गए। तब वह चीन और तुर्किस्तान की ओर चला गया और वहाँ से बीस वर्ष बाद वापस लौटा। 889 ईस्वी में जब उसकी आयु 58 वर्ष थी, तब एक ईरानी नरेश 'बह्रामÓ ने उसे मार डाला। उसने एक नया धर्म भी चलाया था और अनेक पुस्तकें भी लिखी थीं।
माÓनीआफ्ऱीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-काव्य में अर्थ का चमत्कार दिखाना; कविता करना।
मानूस (अ़.वि.)-हिला-मिला, जिसकी घबराहट दूर हो गई हो; इश्$क अथवा प्रेम करनेवाला।
मानेÓ (अ़.वि.)-हस्तक्षेपक, दख़्लअंदाज़ी करनेवाला; ख़्ालल डालनेवाला, बाधा उत्पन्न करनेवाला, बाधक; रोकनेवाला, निवारक।
मानेह ($फा.पु.)-मुक्त-हस्त, दानवीर।
मा$फात (अ़.पु.)-जो जाता रहा हो; जो गुजऱ चुका हो।
मा$िफज़्ज़मीर (अ़.पु.)-मन की बात, जो कुछ दिल में हो, आशय, मंशा।
मा$िफज़्ज़ेह्न (अ़.पु.)-जो कुछ दिमा$ग में हो, जो कुछ याद हो।
मा$फीहा (अ़.पु.)-जो कुछ उसमें है, यह शब्द 'दुनियाÓ के साथ आता है, अर्थात् संसार और जो कुछ संसार के भीतर है वह सब कुछ।
मा$फौ$क (अ़.पु.)-ऊपर।
मा$फौ$कजि़्ज़क्र (अ़.पु.)-पूर्वकथित, जिसका जि़क्र पहले हो चुका हो, पूर्वोक्त।
मा$फौ$कलअ़ादत (अ़.पु.)-जो बात प्रकृति के ऊपर अर्थात् प्रकृति के विरुद्घ हो, अप्राकृतिक, असंभव।
मा$फौ$कलबशर (अ़.पु.)-वह चीज़ जो आदमी की शक्ति-सामथ्र्य से बाहर हो।
माब$का (अ़.पु.)-जो बा$की रह गया हो, बकाया, शेष।
माÓबद (अ़.पु.)-पूजा-स्थल, उपासना-गृह, इबादतगाह।
माÓबर (अ़.पु.)-घाट, तट, नदी आदि को पार करने का स्थान, किनारा।
माबाÓद (अ़.पु.)-जो पीछे आए, पीछेवाला, बाद का, पिछला।
माबाÓदत्तबीअ़ात (अ़.पु.)-वे वस्तुएँ जो प्राकृतिक वस्तुओं के अतिरिक्त हों, ब्रह्मïज्ञान आदि।
माबिहिन्निज़ाअ़ (अ़.पु.)-वह वस्तु जो झगड़े का कारण हो, जिसके विषय में वाद-विवाद हो।
माबिहिलइम्तियाज़ (अ़.पु.)-जो लक्षण या बात दो चीज़ों के अन्तर की जानकारी दे अर्थात् उनका $फर्क़ बताए, निशान, चिह्नï, भेद-लक्षण।
माबिहिलएहतियाज़ (अ़.पु.)-जिन चीज़ों की आवश्यकता हो, ज़रूरी बातें, आवश्यक चीज़ें।
माबिहिल$फर्क़ (अ़.पु.)-वह वस्तु जो भेद या अन्तर प्रकट करे।
माÓबूद (अ़.स्त्री.)-जिसकी उपासना की जाए, जिसको पूजा जाए, ईश्वर, भगवान्।
माÓबूदियत (अ़.स्त्री.)-ईश्वरत्व।
माबून (अ़.वि.)-भवेसिया, जिसे गुदादान का व्यसन हो, जिसे इ$गलाम कराने की लत हो।
माबैन (अ़.पु.)-मध्य में, बीच में दरमियान में; मध्य, बीच, दरमियान।
माबैने तह$की$कात (अ़.पु.)-जाँच के मध्य में, जाँच होते समय।
माबैने $फरीकैऩ (अ़.पु.)-दोनों पक्षों के बीच में, दोनों दलों के मध्य में।
मामक ($फा.स्त्री.)-माँ का बोध, ममता प्रकट करने का शब्द।
मामज़ा (अ़.वा.)-जो हो चुका, जो बीत गया, गुजऱा हुआ, बीता हुआ, पहलेवाला।
मामन (अ़.पु.)-शरण-स्थल, रक्षा का स्थान, बचाव की जगह, सहारे और आसरे की जगह।
मामा (अ़.स्त्री.)-घर का कामकाज करनेवाली स्त्री, दासी, परिचारिका।
मामीरान ($फा.पु.)-ममीरा नामक एक जड़ जो आँखों की दवा में काम आती है।
मामीसा (अ़.स्त्री.)-एक वनस्पति जो दवा में काम आती है, इस दवा का उसारा या सत प्रयुक्त होता है।
मामून (अ़.वि.)-सुरक्षित, मह्$फूज़।
मामूर: (अ़.पु.)-बस्ती, आबादी।
माÓमूर (अ़.वि.)-बसा हुआ, आबाद; भरा हुआ, परिपूर्ण, लबरेज़; बन्द; आदमियों से भरा हुआ, खचाखच।
मामूर (अ़.वि.)-आदेशित, जिसे आदेश दिया गया हो; जिसे कहीं तैनात किया गया हो, नियुक्ति।
माÓमूरी (अ़.स्त्री.)-आबाद होना; भरा-पूरा होना; मकान का बन्द होना।
माÓमूल: (अ़.वि.)-जो स्त्री अभिचार अथवा तंत्र-मंत्र द्वारा बेसुध की जाए; रोज़ का काम, नित्य-प्रति, रोज़ाना, प्रतिदिन।
माÓमूल (अ़.वि.)-वह काम जो प्रतिदिन किया जाए, दस्तूर, नित्य-नियम; वह व्यक्ति जिसे अभिचार द्वारा बेसुध किया जाए, जिस पर तंत्र-मंत्र का प्रभाव डाला जाए।
मामूल (अ़.वि.)-आशान्वित, आशा के अनुकूल; वह चीज़ जिसकी आशा हो।
माÓमूलात (अ़.पु.)-प्रतिदिन के कार्य, नित्य-कर्म।
माÓमूलाते रोज़मर्र: (अ़.$फा.पु.)-वह कार्य जो प्रतिदिन के बँधे हुए हों, जैसे-सवेरे उठकर शौचादि के लिए जाना, फिर स्नान आदि से निवृत्त होना, उसके बाद नाश्ता करना और समाचार-पत्र पढऩा आदि।
माÓमूली (अ़.वि.)-साधारण, सामान्य, जिस पर कोई विशेष ध्यान न दिया जाए; रस्मी, जिसका रिवाज हो; प्रतिदिन का, रोज़मर्रा का, दैनिक जीवन में उपयोग का।
माÓमूले मज्हबी (अ़.पु.)-धर्म-कर्म, धार्मिक कृति, मज्हबी काम, जो नियत समय पर हो।
माय: ($फा.पु.)-धन, दौलत; पूँजी, सरमाया; उपकरण, सामान; योग्यता, $काबिलीयत।
माय:दार ($फा.वि.)-सामायेदार, पूँजीपति, धनी, मालदार।
मायए नाज़ ($फा.पु.)-जिस पर गर्व किया जा सके।
मायतहल्लल (अ़.पु.)-जो हल हो गया हो, जो क्षीण होकर कम हो गया हो, जो नष्ट और ज़ाए हो गया हो।
मायहताज (अ़.पु.)-वह वस्तु जिसकी मनुष्य को ज़रूरत हो, जीवन-साधन की वस्तु।
मायुक्ऱा (अ़.वि.)-जो पढ़ा जा सके, ऐसा लिखा हुआ जो पढऩे में आ सके।
माÓयूब (अ़.वि.)-निकृष्ट, दूषित, ख़्ाराब, बुरा; जिसकी वजह से शर्म से सिर झुके, लज्जाजनक; दोषपूर्ण, ऐब या खोट से भरा।
मायूस (अ़.वि.)-निराश, हताश, नाउम्मेद।
मायूसकुन (अ़.$फा.वि.)-निराश करनेवाला, निराशाजनक।
मायूसान: (अ़.$फा.अव्य.)-निराशापूर्ण, मायूसी के साथ।
मायूसी (अ़.स्त्री.)-निराशा, हताशा, नाउम्मेदी।
मार ($फा.पु.)-नाग, साँप, सर्प, भुजंग।
मारअफ़्सा ($फा.पु.)-सँपेरा, बाजीगर।
मारगज़ीद: ($फा.वि.)-सर्प-दंशित, साँप का डसा हुआ।
मारगीर ($फा.पु.)-साँप पकडऩेवाला, सँपेरा।
मारगुजऱ्: ($फा.पु.)-फनवाला साँप, काला साँप, नाग।
माÓरज़ (अ़.पु.)-दे.-'माÓरिज़Ó, दोनों शुद्घ हैं।
मारपेच ($फा.वि.)-टेढ़ा, वक्र; वह चित्र जिसमें अनेक साँप परस्पर गुँथे हों।
मारमाही ($फा.स्त्री.)-बाम मछली, सर्पमीन।
मारमुहर: ($फा.पु.)-साँप की मणि, नागमणि।
मारस्तान ($फा.पु.)-अस्पताल, शि$फाख़्ााना, आरोग्यशाला।
माराब ($फा.पु.)-नया धन आना, नवधन।
माÓरिक: (अ़.पु.)-वाद-विवाद, बहस, धूम-धाम, हंगामा; उपद्रव, $फसाद; युद्घ, संग्राम, लड़ाई; मैदान, क्षेत्र।
माÓरिक:आरा (अ़.$फा.वि.)-लडऩेवाला, योद्घा।
माÓरिक:आराई (अ़.$फा.स्त्री.)-युद्घ, लड़ाई, समर, जंग।
माÓरिक:गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-समराँगण, लड़ाई का मैदान, रण-भूमि, मैदाने-जंग।
मारि$क (अ़.पु.)-गुमराह, बेदिन, पथ-भ्रष्ट।
मारिज (अ़.पु.)-बिना धुएँ की आग।
माÓरिज़ (अ़.पु.)-प्रकट होने का स्थान, ज़ाहिर होने की जगह; दौरान, दरमियान; के लिए, के वास्ते।
माÓरिज़े इल्तिवा (अ़.पु.)-स्थगित होने के लिए, अर्थात् स्थगित, दे.-'माÓरिज़Ó, दोनों शुद्घ हैं, यह 'मेंÓ के साथ बोला जाता है, जैसे-'माÓरिज़े इल्तिवा मेंÓ।
माÓरिज़े ख़्ातर (अ़.पु.)-ख़्ातरे के बीच में अर्थात् ख़्ातरे में ('मेंÓ के साथ बोला जाता है, जैसे-'माÓरिज़े ख़्ातर में)।
मारि$फ: (अ़.पु.)-व्यक्तिवाचक संज्ञा, किसी विशेष वस्तु का नाम, जैसे-मोहन, सेब, मोटर आदि।
माÓरि$फत (अ़.स्त्री.)-द्वारा, हस्ते, ज़रिये से; परिचय, जान-पहचान; अध्यात्म, तसव्वु$फ।
मारीर: ($फा.स्त्री.)-मुँहबोली माँ।
माÓरूज़: (अ़.पु.)-प्रार्थना, गुज़ारिश, आवेदन; प्रार्थनाापत्र, अज़ऱ्ी, आवेदनपत्र।
माÓरूज़ (अ़.वि.)-वह बात जो कही गई हो, कथित।
माÓरूज़ात (अ़.स्त्री.)-प्रार्थनाएँ, गुज़ारिशें, आवेदन, निवेदन।
मारूत (अ़.पु.)-जादू सिखानेवाला एक $िफरिश्ता, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह एक अन्य $िफरिश्ते 'हारूतÓ के साथ कुएँ में कै़द है।
माÓरू$फ (अ़.वि.)-प्रसिद्घ, ख्यात, मशहूर, जाना हुआ; वह क्रिया जिसका कर्ता ज्ञात हो।
मारे आस्तीं ($फा.पु.)-आस्तीन का साँप, वह दुश्मन जो दोस्त की सूरत में पास ही रहता है।
मारे दुज़बाँ ($फा.पु.)-दुमुँही साँप, दो मुँहवाला साँप; वह व्यक्ति जो इधर कुछ कहे और उधर कुछ, द्विजिह्वï, इधर की उधर लगानेवाला, चु$गलख़्ाोर, मुना$िफ$क।
मारे सियाह ($फा.पु.)-काला साँप, नाग।
माल ($फा.प्रत्य.)-धन, रक़म, दौलत; अच्छे-अच्छे व्यंजन, स्वादिष्ठ खाने; बहुमूल्य वस्तु; महत्त्व, ह$की$कत।
माल ($फा.प्रत्य.)-मला-दला हुआ, जैसे-'पामालÓ-पैरों से रौंदा या कुचला हुआ।
मालख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-माल या सामान रखने का स्थान, गोदाम; कोषागार, ख़्ाज़ाना; कलक्टरी आदि का वह सरकारी मकान जिसमें तलाशी से मिला हुआ या इसी प्रकार का कोई अन्य ज़ब्त किया हुआ सामान रखा जाता है।
मालगुज़ार (अ़.$फा.वि.)-मालगुज़ारी अदा करनेवाला, ज़मींदार।
मालगुज़ारी (अ़.$फा.स्त्री.)-कृषि-भूमि का वह राजस्व या कर जो सरकार को दिया जाता है।
मालज़ब्ती (अ़.स्त्री.)-माल की $कु$र्की और उस पर सरकारी $कब्ज़ा।
मालज़ाद: (अ़.$फा.पु.)-वेश्या-पुत्र, गणिका-सुत, रण्डी का लड़का।
मालज़ादी (अ़.$फा.स्त्री.)-वेश्या-पुत्री, व्यभिचारिणी, एक गाली।
मालज़ामिन (अ़.पु.)-वह व्यक्ति जो इस बात की ज़मानत करे कि यदि अमुक व्यक्ति भाग जाएगा या रुपया अदा न कर सकेगा तो उसके बदले मैं अदा करूँगा।
मालदार (अ़.$फा.वि.)-धनी, धनवान्, समृद्घ, दौलतमंद।
मालनख़्ाूलिया (अ़.पु.)-शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'मालीख़्ाूलियाÓ प्रयोग होता है। दे.-'मालीख़्ाूलियाÓ।
मालमुज्रिम (अ़.पु.)-माल का चोर, चोर।
मा लहू व मा अ़लैह (अ़.वा.)-विवरण, तफ़्सील; अच्छाई-बुराई।
मालामाल (अ़.$फा.वि.)-समृद्घ, सम्पन्न, जिसके पास बहुत धन-दौलत हो; भरपूर, बहुत अधिक।
माला यन्हल (अ़.वि.)-असाध्य, वह समस्या जो हल न हो सके।
मालायुता$क (अ़.वि.)-सामथ्र्य से बाहर का काम, ऐसा काम जिसको करने की शक्ति न हो, बस से बाहर का काम, वह काम जो हो न सके।
मालिक: (अ़.स्त्री.)-स्वामिनी, मालिक स्त्री।
मालिक (अ़.पु.)-स्वामी, आ$का; पति, शौहर; भगवान्, ईश्वर; उपभोक्ता, $काबिज़; अधिकारी, मुख़्तार; अ$फसर, पदाधिकारी; अध्यक्ष, सरदार; नरक का अध्यक्ष देवता।
मालिकान: (अ़.$फा.अव्य.)-मालिकों-जैसा, मिल्कियत का।
मालिकुलमुल्क (अ़.पु.)-देश का स्वामी, राजा, बादशाह, नरेश; ईश्वर।
मालिकुलहज़ीं (अ़.पु.)-बगुला, सारस।
मालिके ह$की$की (अ़.पु.)-सच्चा स्वामी अर्थात् ईश्वर।
मालिय: (अ़.पु.)-राजस्व, लगान।
मालियत (अ़.स्त्री.)-धन-दौलत; कुल $कीमत, पूरा मूल्य।
मालियात (अ़.स्त्री.)-'मालियतÓ का बहु., मालियतें, सम्पत्तियाँ।
मालियान: (अ़.$फा.अव्य.)-राजस्व, लगान, मालिया।
मालिश ($फा.स्त्री.)-मलने की क्रिया, मलाई, मर्दन; जी मिचलाना, मतली।
मालीद: ($फा.पु.)-मला हुआ, मर्दित; चूरमा, मलीदा।
माली (अ़.वि.)-माल-सम्बन्धी; माल का।
मालीख़्ाूलिया (अ़.पु.)-एक रोग-विशेष, उन्माद, मस्तिष्क-विकृति, ख़्ाब्त।
मालीद:गोश ($फा.वि.)-जिसके कान उमेठे गए हों अर्थात् जिसे सतर्क किया गया हो, चौकन्ना, चौकस, होशियार।
मालीदनी ($फा.वि.)-मर्दनीय, मलने के $काबिल।
मालू$फ (अ़.वि.)-जिससे प्रेम हो, प्यारा, अज़़ीज़, जैसे-'वतने मालू$फÓ-प्यारा देश।
माÓलूम (अ़.वि.)-ज्ञात, जाना हुआ; स्पष्ट, वाज़ेह; प्रकट, ज़ाहिर; असंभव, नामुमकिन।
माÓलूमात (अ़.उभ.)-जानकारी, इल्म, ज्ञान, अनुभव, तज्रिबा; पाण्डित्य, इल्मीयत।
माÓलूल (अ़.वि.)-वह चीज़ जिसका कोई कारण हो, कारण-सहित।
माले अम्वात (अ़.पु.)-मुर्दों का माल या सामान अर्थात् वह माल या सामान जिसका मालिक न हो, लावारिसी माल।
माले कासिद (अ़.पु.)-खोटा माल, वह माल जिसमें कम मूल्य के माल की मिलावट हो, खोटा सोना-चाँदी इत्यादि।
माले $गनीमत (अ़.पु.)-युद्घ में शत्रु के देश से लूटा हुआ माल।
माले $गैरमन्कूल: (अ़.पु.)-अचल सम्पत्ति, वह सम्पत्ति जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर न जा सके, जैसे-मकान आदि।
माले तैयिब (अ़.पु.)-ईमानदारी से अर्जित किया गया धन, हलाल की कमाई, ख़्ाून-पसीने की कमाई, पवित्र धन।
माले मक्रू$क (अ़.तु.पु.)-$कु$र्की किया हुआ माल, वह माल जो $कु$र्क हो गया हो।
माले मत्रू$क: (अ़.पु.)-मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ा गया धन अथवा सम्पत्ति, दाय, वह धन जिसका उत्तराधिकारियों में विभाजन हो सके।
माले मन्$कूल: (अ़.पु.)-चल-सम्पत्ति, वह सम्पत्ति जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाई जा सके, जैसे-रुपया, सोना -चाँदी, मवेशी आदि।
माले मह्मूल: (अ़.पु.)-वह माल जो किसी सवारी पर लदा हो, जैसे-गाड़ी पर, रेल अथवा जहाज़ पर।
माले मुफ़्त (अ़.$फा.पु.)-वह धन जो बिना परिश्रम किये मुफ़्त में मिला हो।
माले लावारिस (अ़.पु.)-वह धन या सम्पत्ति, जिसका कोई उत्तराधिकारी न हो।
माले वक्फ़़ (अ़.पु.)-वह धन या सम्पत्ति जो किसी कार्य-विशेष के लिए समर्पित हो।
माले साइर (अ़.पु.)-मालगुज़ारी के अतिरिक्त किसी दूसरी आमदनी से प्राप्त धन, जैसे-कस्टम आदि।
मालेह (अ़.वि.)-नमकीन, लवणयुक्त; सुन्दर, लावण्य।
माले हराम (अ़.पु.)-बुरी कमाई, वह धन जो अविहित उपायों से कमाया गया हो, अविनीत सम्पत्ति।
माले हलाल (अ़.पु.)-दे.-'माले तैयिबÓ।
मालोजऱ (अ़.$फा.पु.)-धन-दौलत, रुपया-पैसा।
मालोमताअ़ (अ़.$फा.पु.)-धन और दूसरा सामान।
मालोमनाल (अ़.पु.)-दे.-'मालोमताअ़Ó।
मावजब (अ़.वि.)-यथोचित, जैसा मुनासिब हो, जो उचित हो।
मावरा (अ़.वि.)-परे, दूर; अतीव, अधिक; अतिरिक्त।
मावराउन्नह्रï (अ़.पु.)-नदी के उस पार का क्षेत्र (चूँकि तूरान अर्थात् तुर्किस्तान 'जैहूनÓ नदी के उस पार था, इस लिए ईरानियों ने उसे 'मावराउन्नह्रïÓ कहा)।
मावराए अ़क़्ल (अ़.वि.)-दुर्बोध, बुद्घि की पहुँच से आगे, विवेक से परे।
मावराए तख़्ौयुल (अ़.वि.)-कल्पनातीत, कल्पना अथवा सोच की हदों से बाहर, जहाँ ख़्ायाल न पहुँच सके।
मावराए नजऱ (अ़.वि.)-दृष्टि की हद से बाहर, नजऱ की पहुँच से परे, जहाँ तक दृष्टि न पहुँच सके, अचक्षु-विषय।
मावराए $फह्म (अ़.वि.)-जो समझ में न आए, ज्ञानातीत, अज्ञेय, बोधागम्य, समझ से बाहर।
मावराए हिस (अ़.वि.)-अतीन्द्रिय, इन्द्रियों की पहुँच से आगे, इन्द्रियों से आगे।
मावा (अ़.पु.)-शरण-स्थल, पनाह की जगह, मामन, रक्षा-स्थल।
माश: ($फा.पु.)-आठ रत्ती का एक भार, आठ रत्ती की तौल, एक तोले का बारहवाँ भाग।
माश ($फा.पु.)-उड़द, उरद, माष, एक दलहन-विशेष।
माÓशर (अ़.पु.)-दोस्तों और अज़़ीज़ों की जमाअ़त, मित्रों और परिजनों की मण्डली; दल, समुदाय, जमाअ़त।
माशाअल्लाह (अ़.वा.)-ईश्वर नजऱ लगने से बचाए; वाह-वाह, साधु-साधु; (व्यंग)-वाह-वाह, ख़्ाूब-ख़्ाूब, जैसे-'माशाअल्लाह आपने अच्छा इन्सा$फ किया (जब अन्याय किया हो)।
माशित: (अ़.स्त्री.)-नाइन, प्रसाधिका, स्त्रियों या दुल्हनों की कंघी-चोटी करनेवाली।
माशिय: (अ़.पु.)-वौपाया, पशु, मवेशी।
माशी (अ़.वि.)-पैरों से चलनेवाला; चु$गुलख़्ाोर, पिशुन।
माÓशू$क: (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री या नवयौवना जिससे पे्रम हो, प्रियत्मा, प्रेमिका, प्रेयसी, प्रणयिनी, प्रेमास्पदा, प्रिया, कान्ता, वल्लभा, महबूब:।
माÓशू$क (अ़.वि.)-प्रिय, प्रियतम, प्रेमपात्र, महबूब।
माÓशू$कान: (अ़.$फा.अव्य.)-माÓशू$कों-जैसा, माÓशू$िकयत लिये हुए, नाज़ोअंदाज़ से भरा हुआ।
माÓशू$िकयत (अ़.स्त्री.)-माÓशू$कपन, नाज़ोअंदाज़, हावभाव।
माÓशू$के मजाज़ी (अ़.पु.)-वह माÓशू$क जो मानवजाति से सम्बन्ध रखता हो।
माÓशू$के ह$की$की (अ़.पु.)-वह माÓशू$क जिसका सम्बन्ध आत्मा से हो, ईश्वर।
माशूर: ($फा.स्त्री.)-सूत की पिंदिया।
मासद$क (अ़.पु.)-मायना, अर्थ, मतलब; मज़्मून, लेख; वह चीज़ जो सत्य हो।
मास$फा (अ़.वि.)-स्वच्छ और निर्मल वस्तु, वह चीज़ जो स्वच्छ और पवित्र हो।
मासब$क (अ़.वि.)-जो पहले गुजऱ चुका हो, पहलेवाला; विगत, बीता हुआ।
मासल$फ (अ़.वि.)-विगत, गुजऱा हुआ, बीता हुआ।
मासिक: (अ़.स्त्री.)-वह शक्ति जो आमाशय में भोजन को रोकती है, आमाशय की ग्राह्यशक्ति।
माÓसियत (अ़.स्त्री.)-पाप, पातक, अपराध, गुनाह; अवज्ञा, ना$फरमानी; उद्दण्डता, सरकशी।
माÓसियत शिअ़ार (अ़.वि.)-पापी, पातकी, जिसका काम ही पाप और अपराध करना हो।
मासिवल्लाह (अ़.वि.)-ईश्वर के अतिरिक्त शेष और सब कुछ, सांसारिक वस्तुएँ।
मासिवा (अ़.वि.)-'मासिवल्लाहÓ का लघुरूप।
माÓसूम (अ़.वि.)-जिसने पाप न किया हो, निष्पाप; वह व्यक्ति जो ईश्वर के यहाँ से निष्पाप आया हो।
माÓसूम सि$फत (अ़.वि.)-माÓसूमों-जैसा, भोला-भाला, निर्दोष।
माÓसूमियत (अ़.स्त्री.)-माÓसूमपन, भोलापन, सिधाई।
माÓसूमी (अ़.वि.)-दे.-'माÓसूमियतÓ।
मास्त ($फा.पु.)-जमाया हुआ दूध, दही, दधि।
मास्तबंद ($फा.पु.)-पनीर बनानेवाला।
माह ($फा.पु.)-चाँद, शशांक, चन्द्रमा, सोम, चन्द्र, शशि।
माहच: ($फा.पु.)-वह चाँद जो टोपी आदि में या झण्डे के सिरे पर लगाते हैं।
माहजबीं ($फा.वि.)-चाँद-जैसा उज्ज्वल माथा रखनेवाला (वाली), चन्द्रभाल।
माहजऱ (अ़.पु.)-जो कुछ उपस्थित है, जो मौजूद है; जो खाना घर में तैयार है, बेतकल्लु$फी का खाना, रूखा-सूखा जो है वही।
माहतल्अ़त (अ़.$फा.वि.)-जो देखने में बिलकुल चाँद जान पड़े, अत्यन्त सुन्दर (सुन्दरी), चंद्रानना।
माहताब ($फा.पु.)-चाँद, शशांक, चन्द्रमा, सोम, चन्द्र, शशि; ज्योत्स्ना, चंद्रातप, चंद्रिका, चाँदनी; गंजिफ़े का वज़ीर; एक आतिशबाज़ी, महताब।
माहताबी ($फा.स्त्री.)-एक तरह की आतिशबाज़ी, महताब; वह छोटी इमारत जो बा$ग के हौज़ पर चाँदनी की सैर के लिए बनी हो।
माहदरअ़क्ऱब (अ़.$फा.वि.)-चन्द्रमा का वृश्चिक राशि में प्रवेश, जो बहुत अशुभ माना जाता है।
माहनाम: ($फा.पु.)-वह पत्रिका जो महीने में एक बार प्रकाशित हो, मासिक-पत्रिका।
माहपार: ($फा.वि.)-चाँद का टुकड़ा, चाँद-जैसी आकृति-वाला (वाली), बहुत-ही सुन्दर।
माहपैकर ($फा.वि.)-चाँद-जैसे सुन्दर डील-डौलवाला (वाली)।
माह ब माह ($फा.वि.)-मासिक, हर महीने, मास-प्रति-मास।
माहरुख़्ा ($फा.वि.)-चाँद-जैसे सुन्दर मुँहवाला (वाली)।
माहरू ($फा.वि.)-दे.-'माहरुख़्ाÓ।
माहलिक़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'माहतल्अ़तÓ।
माहवश ($फा.वि.)-चाँद-जैसा (जैसी)।
माहवार ($फा.वि.)-प्रत्येक महीने, मासिक, हर माह।
माहवारी ($फा.वि.)-दे.-'माहवारÓ, (स्त्री.)-स्त्रियों को होनेवाला मासिक-धर्म, हैज़।
माहशमाइल (अ़.$फा.वि.)-दे.-'माहतल्अ़तÓ।
माहसल (अ़.पु.)-जो कुछ मिला हो, जो हासिल हुआ हो; निष्कर्ष, नतीज:; सारांश, खुलासा।
माहसीमा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'माहजबींÓ।
माहसूरत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'माहरुख़्ाÓ।
माहान: ($फा.अव्य.)-मासिक, हर महीने का, प्रतिमास, माहवार।
माहिए बेआब (फ़ा.स्त्री.)-जल बिन मीन, बिना पानी की मछली, अर्थात् बहुत दु:खी, बहुत व्याकुल।
माहियान: ($फा.पु.)-वेतन, तनख़्वाह, मासिक वेतन; महीने का, माहवारी, मासिक।
माहिर (अ़.वि.)-दक्ष, कुशल, होशियार; अभ्यस्त, मश्शा$क।
माहिरे कामिल (अ़.वि.)-पारंगत, किसी कला अथवा कार्य में एकदम कुशल।
माहिरे ख़्ाुसूसी (अ़.वि.)-विशेषज्ञ, किसी विशेष कला अथवा कार्य का विशेष-ज्ञाता।
माहिरे $फन (अ़.वि.)-कला अथवा कार्य का ज्ञाता, कार्य-विशेष का मर्मज्ञ, कलाकार।
माही (अ़.वि.)-मह्व करनेवाला, मिटानेवाला, नष्टकर्ता।
माही ($फा.पु.)-मीन, मत्स्य, माछी, मछली।
माहीगीर ($फा.वि.)-मछली पकडऩेवाला, मछलियों का रोजग़ार करनेवाला, मत्स्यजीवी।
माहीच: (फ़ा.स्त्री.)-सिवैयाँ।
माहीख़्ाोर (फ़ा.वि.)-मछली खानेवाला, मत्स्यभोजी।
माहीन: (फ़ा.अव्य.)-महीना, मास।
माहीपुश्त (फ़ा.वि.)-वह जो बीच में ऊँचा और इधर-उधर नीचा हो, उन्नतोदर, मुहद्दब।
माही$फरोश (फ़ा.वि.)-मछली बेचनेवाला, मत्स्य-वणिक्, मीन-व्यवसायी।
माहीमरातिब (अ़.$फा.पु.)-मछली आदि के आकार के वह निशानात जो बादशाहों की सवारी के आगे हाथियों पर चलते थे।
माहीयत (अ़.स्त्री.)-वास्तविकता, ह$की$कत; विशेषता, गुण, ख़्ाासियत; क्या है, कैसा है, किस प्रकार का है, यह सब विवरण।
माÓहूद (अ़.वि.)-वह बात जो दिल में बैठी हो।
माÓहूदान: ($फा.पु.)-जमालगोटा, एक दस्तावर औषध।
माÓहूदे ख़्ाारिजी (अ़.पु.)-वह जातिवाचक संज्ञा, जो कारण -विशेष से व्यक्तिवाचक बन जाए, जैसे-'ख़्ालीलÓ, जो जाति -वाचक है, परन्तु हज्ऱत इब्राहीम के लिए बोला जाता है।
माहूदे ज़ेह्नी (अ़.वि.)-वह संज्ञा, जो हो जातिवाचक, मगर किसी के मस्तिष्क में व्यक्तिवाचक हो, जैसे-'शत्रुÓ, जाति-वाचक है, परन्तु कोई शत्रु कहकर मन में उससे व्यक्ति-विशेष समझता है।
माहे कन्अ़ाँ (अ़.$फा.पु.)-हज्ऱत यूसु$फ।
माहे $कमरी (अ़.$फा.पु.)-चाँद का महीना, चन्द्र-मास, जिस महीने का हिसाब चाँद की घटा-बढ़ी से हो।
माहे कामिल (अ़.$फा.पु.)-पूर्णमासी का चाँद, चौदहवीं का चाँद, पूरा चाँद, पूर्णचन्द्र, राकेश।
माहे ख़्ाानगी (फ़ा.स्त्री.)-ऐसी गृहिणी, जिससे इश्$क किया और वह बाज़ारू औरत न हो।
माहे गिरिफ़्त: ($फा.पु.)-ग्रस्त (ग्रहण लगा हुआ) चाँद, चन्द्रग्रहण।
माहे चारदहुम ($फा.पु.)-चौदहवीं रात का चाँद, पूर्णमासी का चाँद, पूर्णचन्द्र।
माहे ताबाँ ($फा.पु.)-चमकता हुआ चाँद, पूरा चाँद, प्रेयसी का चन्द्रानन।
माहे दुहफ़्त: ($फा.पु.)-चौदहवीं का चाँद, पूर्णमासी का चाँद, राकेश।
माहे नख़्शब ($फा.पु.)-वह चाँद जिसे हकीम इब्ने मु$कन्ना ने बनाया था।
माहे नौ (अ़.$फा.पु.)-नया चाँद, नवचन्द्र, बालेंदु।
माहे मिस्र (अ़.$फा.पु.)-हज्ऱत यूसु$फ।
माहे मुनीर (अ़.$फा.पु.)-चमकनेवाला चाँद, पूरा चाँद।
माहे मुबारक (अ़.$फा.पु.)-रम्ज़ान शरी$फ का महीना, रोज़ों का चाँद।
माहे शम्सी (अ़.$फा.पु.)-वह महीना, जिसका हिसाब सूर्य के चक्कर से होता है, ईस्वी महीना।
माहे शिकस्त: (फ़ा.पु.)-नया चाँद, नवचन्द्र।
माहे सियाम (अ़.$फा.पु.)-दे.-'माहे मुबारकÓ।
माह् ($फा.स्त्री.)-अण्डे के भीतर का सफ़ेद भाग।

No comments:

Post a Comment