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लंग ($फा.पु.)-पंगु, पंगुल, लँगड़ा; लँगड़ापन, पंगुता; मेहन, शिश्न, लिंग।लंगर ($फा.पु.)-अपाहिजों और कंगालों को दिया जानेवाला भोजन, जो प्रतिदिन दिया जाए, सदाव्रत; समुद्र में जहाज़ को ठहरानेवाला भारी बोझ।
लंगरअंदाख़्त: ($फा.वि.)-ठहरा हुआ, एक स्थान पर रुका हुआ।
लंगरअंदाज़ ($फा.वि.)-समुद्र में ठहरा हुआ जहाज़।
लंगरअंदाज़ी ($फा.स्त्री.)-लंगर द्वारा समुद्र में जहाज़ का पड़ाव।
लंगरख़्ाान: ($फा.पु.)-वह स्थान जहाँ $गरीबों को प्रतिदिन खाना बाँटा जाता है, अन्नसत्र।
लंगरगाह ($फा.स्त्रीु.)-वह स्थान, जहाँ जहाज़ लंगर से ठहराए जाते हैं (समुद्र में)।
लंगरपज़ीर ($फा.वि.)-दे.-'लेगरअंदाज़Ó।
लंगरी ($फा.पु.)-लंगर से सम्बन्धित; एक प्रकार का बड़ा प्याला; बड़ी थाली, परात, तश्त।
लंगिंद: ($फा.वि.)-लँगड़ाकर चलनेवाला।
लंगीद: ($फा.वि.)-लँगड़ाकर चला हुआ।
लंगेपा ($फा.पु.)-पाँव का लँगड़ापन, लँगड़ाहट।
लंज ($फा.पु.)-इठलाकर चलना, चटक-मटक दिखाते हुए चलना।
लंदर: (तु.पु.)-लंदन, इंग्लैंड की राजधानी।
लंबक (अ़.$फा.पु.)-बहराम गोर का भिश्ती, जो बड़ा ही अथिति-पूजक और दानवीर था।
लअ़ल [ल्ल] (अ़.अव्य.)-शायद, स्यात्, कदाचित्।
लअ़स (अ़.पु.)-होंठों की लालिमा।
लअ़ाली (अ़.पु.)-'लूलूÓ का बहु., मुक्तावली, बहुत-से मोती।
लअ्अ़ाब (अ़.वि.)-बाज़ीगर, मदारी, कौतुकी, मायावी।
लइब (अ़.पु.)-खेल, क्रीड़ा, खेल-कूद।
लई$क (अ़.पु.)-योग्य, $काबिल; शिष्ट, तमीज़दार।
लईन (अ़.वि.)-जिस पर लाÓनत भेजी गई हो, जिसे धिक्कारा गया हो, धिक्कृत।
लईम (अ़.वि.)-वह कंजूस व्यक्ति, जो न स्वयं खा सके और न किसी दूसरे को खिला सके।
लईमुत्तब्अ़ (अ़.वि.)-नीच स्वभाववाला, जिसकी प्रकृति बहुत-ही तुच्छ हो; अपने तुच्छ स्वभाव के कारण जो न स्वयं खा सके और न किसी दूसरे को खिला सके।
लउम्रक (अ़.अव्य.)-शपथ लेने का एक तरी$का, तुम्हारे प्राणों की शपथ अर्थात् तुम्हारी सौगन्ध।
लऊ$क (अ़.पु.)-ऐसी दवा जो चाटकर खाई जाए, चटनी, अवलेह।
लक [क्क] (अ़.पु.)-कूटना, चूरा करना; मारना, पीटना।
लक ($फा.पु.)-मूर्ख, बेवु$कू$फ; लाक्षा, लाख, एक प्रसिद्घ गोंद।
ल$क [क़्क़] (अ़.पु.)-बिना बालोंवाला, सफाचट, गंजा।
ल$कत (अ़.वि.)-भूमि पर पड़ी हुई वस्तु, उठाई हुई; बीनी हुई, चुनी हुई।
लकद ($फा.स्त्री.)-लात, दुलत्ती।
लकद (अ़.पु.)-मैल जमना, किसी स्थान का मैला होना।
लकदकोब ($फा.वि.)-लात मारनेवाला, दुलत्ती मारनेवाला, लतयाव करनेवाला।
लकदकोबी ($फा.स्त्री.)-लात मारना, लतयाव करना, दुलत्ती झाडऩा।
लकदजऩ ($फा.वि.)-दे.-'लकदकोबÓ।
लकदजऩी ($फा.स्त्री.)-दे.-'लकदकोबीÓ।
लकन (अ़.पु.)-हकलाकर बात करना, हकलापन।
ल$क$फ (अ़.पु.)-दीवार का गिरना; हौज़ की दीवारों का गिर जाना, जिससे उसका मुँह चौड़ा हो जाए।
ल$कब (अ़.पु.)-उपाधि, ख़्िाताब; ऐसा नाम जिससे उस व्यक्ति के गुणों का पता चले।
ल$कम (अ़.पु.)-मार्ग का मध्य, रास्ते का बीच, मिड्वे।
ल$कस (अ़.पु.)-मन की व्याकुलता और घबराहट; नाश, तबाही।
ल$कह (अ़.पु.)-गर्भ होना, गर्भवती होना।
ल$का (अ़.पु.)-संभोग, मैथुन, सहवास।
ल$िकन (अ़.वि.)-किसी बात की तह तक शीघ्र ही पहुँच जानेवाला, प्रतिभावान्, प्रखरब़द्घि, तीव्रमेधा।
लकिन (अ़.वि.)-हकलाकर बोलनेवाला।
ल$िकस (अ़.वि.)-परस्पर वैमनस्य स्थापित करनेवाला, मन-मुटाव पैदा करनेवाला, आपस में फूट डालनेवाला।
ल$कीत: (अ़.वि.)-वह बालक जो रास्ते में ज़मीन पर पड़ा हुआ मिले और जिसे पाला जाए, अनाथ बालक।
ल$कीत (अ़.पु.)-दे.-'ल$कीत:Ó।
ल$कोद$क ($फा.वि.)-चटयल मैदान, ऐसा जंगल जिसमें दूर तक न छाया हो न पानी (मूल शब्द 'ल$गोद$गÓ है)।
लक़्अ़ (अ़.पु.)-निमेष, आँख झपकाना, पलक मारना।
लक्अ़ (अ़.पु.)-शरीर पर मैल जमना; साँप का डसना; पशु-शावक का दूध पीते समय थनों को सिर का हूरा अथवा हूला देना।
लक़्$कोद$क (अ़.पु.)-दे.-'ल$कोद$कÓ।
लक्ज़ (अ़.पु.)-छाती पर लात मारना।
लक़्त (अ़.पु.)-गिरी हुई वस्तु को भूमि से उठाना; बीनना, चुनना।
लक्ऩ (अ़.पु.)-ताडऩा, परखना, समझना।
लक्म (अ़.पु.)-घूँसा मारना, मुक्केबाज़ी करना।
लक़्म (अ़.पु.)-मार्ग बन्द कर देना, रास्ते का मुँह बन्द कर देना।
लक़्ल$क: (अ़.पु.)-लक़्ल$क पक्षी की ज़ोरदार आवाज़।
लक़्ल$क (अ़.पु.)-एक जलीय पद्वाी जो साँप और मछली खाता है; सारस पक्षी; ज़बान, जिह्वïा।
लक्लक ($फा.पु.)-दे.-'लक़्ल$कÓ।
लक़्ला$क (अ़.पु.)-लक़्ल$क पक्षी, लक़्ल$क पक्षी का स्वर।
लक़्व: (अ़.पु.)-एक रोग, जिसमें मुँह एक ओर को फिर जाता है अथवा शरीर का कोई अंग सुन्न या बेकार हो जाता है, पक्षाघात, भंजनक, वरुणग्रह, अधरंग, लकवा।
लक़्व:ज़द: (अ़.$फा.वि.)-जिसे पक्षाघात हो गया हो, अधरंगी, जिसे लकवा मार गया हो, वरुणग्रही।
लख़्ान (अ़.पु.)-मैला होना, गन्दा होना।
लख़्च: ($फा.पु.)-स्फुलिंग, चिनगारी; अंगार, अंगारा; ज्वाला, शोÓला।
लख्ज़: ($फा.पु.)-दे.-'लख़्च:Ó।
लख़्त: ($फा.पु.)-दे.-'लख़्तÓ।
लख़्त ($फा.पु.)-खण्ड, टुकड़ा; अल्प, न्यून, थोड़ा; लोहे का गुर्ज़ या गदा।
लख़्ते ($फावि.)-थोड़ा-सा, जऱा-सा।
लख़्ते जिगर ($फा.पु.)-जिगर का टुकड़ा ($इस शब्द का प्रयोग 'पुत्रÓ के अर्थ में किया जाता है)।
लख़्ते दर ($फा.पु.)-द्वारपट, दरवाज़े के किवाड़।
लख़्ते दिल ($फा.पु.)-दे.-'लख़्ते जिगरÓ।
लख़्लख़्ा: (अ़.पु.)-सूँघने का एक सुगन्धित मिश्रण।
लख़्श: ($फा.पु.)-दे.-'लख़्च:Ó।
लख़्शाँ ($फा.वि.)-रपटता हुआ, फिसलता हुआ; वह वस्तु जिस पर पाँव फिसले।
लख़्िशंद: ($फा.वि.)-रपटनेवाला, फिसलनेवाला।
लख़्शीद: (अ़.$फा.वि.)- रपटा हुआ, फिसला हुआ।
ल$गत (अ़.पु.)-कोलाहल, शोर; आवाज़, पुकार।
लगन ($फा.स्त्री.)-हाथ धोने का पात्र-विशेष; पीतल का दीवट, चौमुखा; अँगीठी।
लगाम ($फा.स्त्री.)-कविका, दंतालिका।
ल$गून: ($फा.पु.)-मुखचूर्ण, मुख पर लगाने का पाउडर, गुलगून:।
ल$गोद$ग ($फा.पु.)-दे.-'ल$कोद$कÓ, शुद्घ शब्द यही है मगर प्रचलित नहीं है।
लग्ज़़ (अ़.पु.)-पहेलिका, पहेली; प्रतियोगिता।
लग्ज़़ाँ ($फा.वि.)-फिसलता हुआ, रपटता हुआ।
लग्ज़ि़ंद: (अ़.$फा.वि.)-फिसलनेवाला, रपटनेवाला।
लग्ज़ि़श ($फा.स्त्री.)-फिसलन, रपटन; त्रुटि, भूल, $गलती; अपराध, दोष, $कुसूर।
लग्ज़ि़शे पा ($फा.स्त्री.)-पदकम्प, पाँव फिसलना, डगमगा जाना, विचलित हो जाना।
लग्ज़ि़शे बेजा ($फा.स्त्री.)-अनुचित भूल या $गलती।
लग्ज़़ीद: ($फा.वि.)-फिसला हुआ, रपटा हुआ।
लग्ज़़ीदन ($फा.पु.)-फिसलना, गिरना।
लग़्म (अ़.पु.)-किसी को ऐसी बात बताना जिसका उसे विश्वास न हो।
लग़्व (अ़.वि.)-अनर्थ, $फुज़ूल; असत्य, झूठ।
लग़्वकार (अ.$फा़.वि.)-अनर्थकारी, व्यर्थ के काम करने-वाला, ऐसे काम करनेवाला जिसका कोई परिणाम न हो।
लग़्वकारी (अ़.$फा.स्त्री.)-व्यर्थ के कार्य करना, अर्थहीन काम करना।
लग़्वगो (अ़.$फा.वि.)-मिथ्यावादी, अनर्गलवादी, बकवासी, अनृतभाषी, झूठा।
लग़्वगोई (अ़.$फा.स्त्री.)-मुखरता, वाचालता, बकवास; झूठ बोलना, मिथ्या कथन।
लग़्वबयाँ (अ़.वि.)-दे.-'लग़्वगोÓ।
लग़्वबयानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'लग़्वगोईÓ।
लग़्िवयत (अ़.स्त्री.)-अनर्थता, $फुज़ूलपन; असत्यता, झूठपन; शरारत, गुण्डापन, शुहदापन।
लग़्िवयतपसंद (अ़.$फा.वि.)-जिसे व्यर्थ की बातें पसंद हों।
लग़्िवयात (अ़.स्त्री.)-'लग़्िवयतÓ का बहु., अनर्गल बातें, झूठी बातें, शरारत की बातें।
लच ($फा.स्त्री.)-गाल, कपोल; मुख।
लचक (तु.पु.)-कामदार ओढऩी या रूमाल।
लचन ($फा.स्त्री.)-बदकार औरत, बदचलन स्त्री।
लजन (अ़.पु.)-बहुत-से लोगों का पानी भरने के लिए कुएँ पर इकट्ठा होना; किसी काम के लिए बहुत-से लोगों का जुटना।
लजऩ ($फा.स्त्री.)-कीचड़।
लजफ़ (अ़.पु.)-कुएँ के पास का वह गड्ढ़ा जिसमें पशु पानी पीते हैं।
लज़म (अ़.पु.)-किसी वस्तु के लिए किसी चीज़ का बहुत आवश्यक होना; किसी वस्तु का किसी व्यक्ति को आश्चर्य में डालना।
लज़ा (अ़.स्त्री.)-नरक, दोज़ख़्ा; भड़कनेवाली अग्नि, अग्नि-ज्वाला।
लज़ाइज़ (अ़.पु.)-'लज़्ज़तÓ का बहु., लज़्ज़तें, मज़े, स्वाद।
लज़ाइज़े दुन्यावी (अ़.पु.)-संसार के स्वाद, सांसारिक सुख।
लज़ाइज़े नफ़्सानी (अ़.पु.)-शारीरिक सुख, ऐन्द्रिय-स्वाद, भोग-विलास।
लज़ाइज़े रूहानी (अ़.पु.)-आत्मा को सुख देनेवाले स्वाद, जप-तप आदि से प्राप्त सुख, मानसिक सुख।
लजाज (अ़.पु.)-समर, युद्घ, लड़ाई, जंग।
लजाजत (अ़.स्त्री.)-युद्घ करना, लडऩा; बढ़ा-चढ़ाकर बात करना; गिड़गिड़ाना, हाहा खाना, ख़्ाुशामद या चापलूसी के लिए दाँत निकालना; नम्रता, विनीति, अ़ाजिज़ी।
लजाजतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-गिड़गिड़ाहट और ख़्ाुशामद के साथ।
लजिज़ (अ़.वि.)-चिपकनेवाली वस्तु।
लजि़ब (अ़.वि.)-चिपकनेवाला।
लज़ीज़ (अ़.वि.)-सुस्वाद, स्वादिष्ठ, मज़ेदार।
लजूज (अ़.वि.)-युद्घ करनेवाला, लडऩेवाला।
लज़्अ़ (अ़.पु.)-जलन, चिनमिनी, चिनग, सूजन, सोजि़श।
लज्ज: (अ़.पु.)-शब्द, ध्वनि, आवाज़; कोलाहल, शोरोगुल।
लज्ज़ (अ़.पु.)-चिपकना; फिसलना।
लज़्ज़त (अ़.स्त्री.)-स्वाद, मज़ा; आनन्द, लुत्फ़; मनोविनोद, तफ्ऱीह।
लज़्ज़तआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जिसमें स्वाद हो, स्वादयुक्त, स्वादिष्ठ।
लज़्ज़तआश्ना (अ़.$फा.वि.)-जो किसी पदार्थ के स्वाद से परिचित हो, रसज्ञ; अनुभवी, मज़ा चखा हुआ।
लज़्ज़तचश (अ़.$फा.वि.)-स्वाद चखनेवाला; मज़ा लेनेवाला, आनन्द लेनेवाला।
लज़्ज़तचशी (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वाद चखना; आनन्द लेना, मज़ा लेना।
लज़्ज़तपसंद (अ़.$फा.वि.)-जिसे स्वादिष्ठ भोजन पसंद हो, चटोरा, जिह्वïा लोलुप।
लज़्ज़तपसंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-चटोरापन, स्वादिष्ठ भोजन प्रिय लगना।
लज़्ज़ते तक्ऱीर (अ़.स्त्री.)-बातचीत की मधुरता, वात्र्ता-माधुर्य।
लज़्ज़ाअ़ (अ़.वि.)-जलन उत्पन्न करनेवाला, सूजन पैदा करनेवाला।
लज़्ज़ात (अ़.वि.)-'लज़्ज़तÓ का बहु., लज़्ज़तें, मज़े।
लज़्ज़ाब (अ़.वि.)-अत्यधिक चिपकनेवाला।
लज्लाज (अ़.वि.)-जो अटक-अटककर बात करे, हकला।
लज़्लाज़ (अ़.वि.)-पथ-प्रदर्शन में निपुण, राह दिखाने में कुशल।
लतंबान ($फा.वि.)-लोभी, लालची; पेटू, बहुभक्षी।
लतंबार ($फा.वि.)-दे.-'लतंबानÓ।
लत [त्त] (अ़.पु.)-चिपकना; किसी का ह$क न देना; कोई काम लगातार करना।
लत ($फा.पु.)-लात, पाँव; उदर, पेट; टुकड़ा, खण्ड; अलसी के तार का कपड़ा।
लतअंबान ($फा.वि.)-दे.-'लतंबानÓ।
लतअंबार ($फा.वि.)-दे.-'लतंबारÓ।
लतत (अ़.पु.)-दाँत गिरना; दाँतों का इतना घिस जाना कि जड़ें रह जाएँ।
लतफ़ (अ़.पु.)-नेकी करना, भलाई करना, उपकार करना; दान, बख़्िशश; पुरस्कार, उपहार, तोह$फा।
लतमात (अ़.पु.)-'लत्म:Ó का बहु., तमाचे, थप्पड़, चाँटे।
लतह (अ़.स्त्री.)-भूख, क्षुधा, बुभुक्षा।
लताइफ़ (अ़.पु.)-'लती$फ:Ó का बहु., लतीफ़े, चुट$कले, हँसी की बातें।
लताइ$फुलहियल (अ़.पु.)-ऐसे बहाने जो बहाने न जान पडें़, ऐसे बहाने जिन पर सहज विश्वास हो जाए।
लताइफ़े गै़बी (अ़.पु.)-दिव्य-प्रकाश, जो शुद्घात्माओं के हृदय-पटल पर पड़ते हैं।
लताइ$फो जऱाइफ़ (अ़.पु.)-हँसानेवाली और दिल बहलाने-वाली बातें।
लता$फत (अ़.स्त्री.)-मृदुलता, नज़ाकत; कोमलता, नर्मी; सूक्ष्मता, बारीकी; शुद्घता, पाकीजग़ी; नवीनता, नूतनता, ताजग़ी; भाव की गंभीरता।
लताफ़ते $कल्ब (अ़.स्त्री.)-मन की कोमलता और मधुरता, हृदय की नजृाकत और नर्मी।
लताफ़ते मिज़ाज (अ़.स्त्री.)-स्वभाव की पवित्रता और कोमलता, प्रकृति की शुद्घता और मधुरता।
लतीफ़: (अ़.पु.)-चुटकुला, हास्यक; अद्भुत और अनोखी बात।
लतीफ़:गो (अ़.$फा.वि.)-चुटकुले सुनानेवाला, चुटकुले सुनाकर हँसानेवाला।
लतीफ़:गोई (अ़.$फा.स्त्री.)-चुटकुले सुनाना, चुटकुले सुना-कर हँसाना।
लतीफ़:संज (अ़.$फा.वि.)-दे.-'लतीफ़:गोÓ।
लतीफ़:संजी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'लतीफ़:गोईÓ।
लतीफ़ (अ़.वि.)-मृदुल, नाज़ुक; कोमल, नर्म; सूक्ष्म, बारीक; शुद्घ, पवित्र, पाक-सा$फ; नवीन, नूतन, ताज़ा; अत्यन्त हलका-फुलका।
लतीफ़तब्अ़ (अ़.वि.)-दे.-'लतीफ़ मिज़ाजÓ।
लतीफ़मिज़ाज (अ़.वि.)-कोमल और मृदुल स्वभाववाला, जिसके मिज़ाज में स$फाई और शुद्घता का ख़्ायाल बहुत हो।
लती$फुत्तब्अ़ (अ़.वि.)-दे.-'लतीफ़तब्अ़Ó।
लती$फुलमिज़ाज (अ़.वि.)-दे.-'लतीफ़ मिज़ाजÓ।
लती$फुस्सौत (अ़.वि.)-जिसका स्वर मधुर कोमल और मृदुल हो।
लतीम (अ़.वि.)-थप्पड़ खाया हुआ, जिसे चाँटा मारा गया हो, जिसे तमाचा लगा हो।
लतूख़्ा (अ़.पु.)-मालिश की दवा, मलनेवाली औषधि।
लत्अ़ (अ़.पु.)-चाटना, लेहन; पीठ पर ठोकर मारना।
लत्ख़्ा (अ़.पु.)-लिप्त होना; बुराई में डालना; दोष लगाना।
लत्म: (अ़.पु.)-तमाचा, थप्पड़, चाँटा, तलप्रहार।
लत्म (अ़.पु.)-तमाचा लगाना, थप्पड़ मारना, चाँटा लगाना। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
लत्म (अ़.पु.)-छाती पर मारना। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
लत्स (अ़.पु.)-पाँव से ख़्ाूब मलना।
लत्ह (अ़.पु.)-पीठ थपथपाना; किसी वस्तु को ज़मीन पर पटकना।
लद [द्द] (अ़.पु.)-युद्घ करना, लडऩा; शत्रुता करना, दुश्मनी करना।
लदद (अ़.पु.)-अत्यधिक शत्रुता होना, बहुत अधिक दुश्मनी होना।
लदम (अ़.पु.)-'लादिमÓ का बहु., स्वजन, रिश्तेदार; पैवंद लगानेवाले; वे व्यक्ति जिनसे स्त्रियाँ पर्दा नहीं करतीं।
लदीग़ (अ़.वि.)-जिसे साँप ने काटा हो, सर्प-दंशित।
लदीद (अ़.पु.)-घाटी का किनारा; मुँह और होंठों पर बुरकनेवाली औषधि।
लदीम (अ़.पु.)-पैवन्द या थेगली लगा हुआ वस्त्र।
लदुन (अ़.पु.)-हलका भाला; प्रत्येक वह वस्तु जो कोमल हो; समीप, पास, निकट।
लदुन्नी (अ़.वि.)-बिना प्रयास और साधन के मिली हुई वस्तु, ईश्वरदत्त, ईशप्रदत्त।
लदूद (अ़.वि.)-झगड़ालू, बखेडिय़ा, लडऩेवाला, $फसादी; मुँह पर छिड़कने की दवा, लदीद।
लद्ग़: (अ़.पु.)-डंक, दंश; डसना, डंक मारना।
लद्ग़ (अ़.पु.)-दे.-'लद्ग़:Ó।
लद्म (अ़.पु.)-भारी वस्तु के गिरने का शब्द, धमाका; कपड़े या जूते में पैवंद लगाना; स्त्री का किसी के शोक में छाती पीटना।
लनतरानी (अ़.वा.)-'तू मुझे नहीं देख सकताÓ, यह उस आकाशवाणी के शब्द हैं जब हज्ऱत मूसा ने ईश्वर का प्रकाश देखने की प्रार्थना की थी मगर अब डींग और शेखी के अर्थ में बोला जाता है।
ल$फंग ($फा.वि.)-अधम, नीच, ल$फंगा।
ल$फ [फ़्$फ] (अ़.पु.)-लपेटना, तह करना।
ल$फी$फ (अ़.पु.)-लिपटी हुई वस्तु; मित्र, दोस्त; अऱबी भाषा का वह शब्द जिसमें दो हर्फे़ इल्ल्त (स्वर) हों।
लफ़्च: ($फा.पु.)-बेहड्डी का मांस, बिना हड्डीवाला गोश्त।
लफ़्च ($फा.पु.)-बिना हड्डी का मांस; मोटा होंठ; ओष्ठ, होंठ, अधर।
लफ़्चन ($फा.पु.)-वह व्यक्ति जिसके होंठ बड़े-बड़े और मोटे हों।
लफ्ज़़ (अ़.पु.)-शब्द, बोल; बात, वचन।
लफ्ज़ऩ (अ़.$फा.पु.)-शब्द द्वारा, शब्दों से।
लफ्ज़ऩ लफ्ज़ऩ (अ़.वि.)-अक्षरश:, एक-एक शब्द करके; सारा, सब।
लफ्ज़़$फरोश (अ़.$फा.वि.)-मुखचपल, बातूनी, वाचाल, बहुत बात करनेवाला।
लफ्ज़़ ब लफ्ज़़ (अ़.वि.)-दे.-'लफ्ज़ऩ लफ्ज़ऩÓ।
लफ़्ज़़ी (अ़.वि.)-शब्द का; शब्द-सम्बन्धी।
लफ्ज़़े इस्तिलाही (अ़.$फा.पु.)-पारिभाषिक शब्द, टर्म।
लफ्ज़़े बामाÓनी (अ़.$फा.पु.)-सार्थक शब्द, वह शब्द जिसका कोई अर्थ या मतलब हो, व्यक्त।
लफ्ज़़े बेमाÓनी (अ़.$फा.पु.)-वह शब्द जो निरर्थक हो, अव्यक्त।
लफ्ज़़े मुफ्ऱद (अ़.पु.)-वह शब्द, जो किसी शब्द से बना न हो और न ही उससे कोई शब्द बने।
लफ्ज़़े मुरक्कब (अ़.पु.)-वह शब्द, जो दो या अधिक शब्दों से मिलकर बना हो, यौगिक-शब्द।
लफ़्त (अ़.पु.)-घुमाना और फिराना।
लफ़्तर: ($फा.वि.)-अधम, नीच, कमीना।
लफ्फ़़ाज़ (अ़.वि.)-मुखचपलख् बहुभाषी, बहुत बोलनेवाला, बातूनी, मुखर।
लफ्फ़़ाज़ी (अ़.स्त्री.)-वाचालता, मुखरता, लस्सानी।
लफ्फ़़ोनश्र (अ़.पु.)-एक शब्दालंकार, जिसमें पहले कुछ वस्तुएँ उपमेय के रूप में कही जाती हैं, फिर उन वस्तुओं के लिए उनके उपमान लाते हैं, जैसे-पहले 'मुखÓ, 'दाँतÓ और 'आँखÓ लाएँ तथा फिर 'चाँदÓ, 'मोतीÓ और 'कमलÓ।
लफ्फ़़ोनश्रे गैऱ मुरत्तब (अ़.पु.)-यदि लफ्फ़़ोनश्र शब्दालंकार में उपमेय और उपमान क्रम से न आएँ तो वह 'गैऱ मुरत्तबÓ अर्थात् क्रम-विरुद्घ माना जाता है, जैसे-'मुखÓ, 'दाँतÓ और 'आँखÓ के साथ 'मोतीÓ, 'चाँदÓ और 'कमलÓ।
लफ्फ़़ोनश्रे मुरत्तब (अ़.पु.)-यदि लफ्फ़़ोनश्र शब्दालंकार में उपमेय और उपमान क्रम से आएँ तो वह 'मुरत्तबÓ अर्थात् क्रमबद्घ है, जैसे-'मुखÓ, 'दाँतÓ और 'आँखÓ के साथ 'चाँदÓ, 'मोतीÓ और 'कमलÓ।
लफ़्ह (अ़.पु.)-आग, लपट या गर्मी से जलना; तलवार मारना।
लब ($फा.पु.)-ओष्ठ, होंठ, अधर; तट, कूल, किनारा।
लबकुशा ($फा.वि.)-बात करनेवाला, बात करता हुआ, बतियाता हुआ।
लबकुशाई ($फा.स्त्री.)-बात करने के लिए होंठ खोलना।
लबख़्ाा ($फा.वि.)-चिड़चिड़ा, झल्ला।
लबख़्ाुश्क ($फा.वि.)-जिसके होंठ प्यास के कारण सूख गए हों, बहुत प्यासा।
लबगजिं़द: ($फा.वि.)-पछतानेवाला; कुपित होनेवाला।
लबगज़ीद: ($फा.वि.)-जो पछताया हो; जो कुपित हो।
लबगीर ($फा.पु.)-तम्बाख़्ाू पीने का पाइप।
लबचरा ($फा.पु.)-वह मेवा और चने आदि जो मित्र लोग परस्पर बातें करते समय उठा-उठाकर खाते जाते हैं।
लबचश ($फा.पु.)-स्वाद चखना; वह चाश्नी जो स्वाद के लिए चखी जाए।
लबज़द: ($फा.वि.)-मौन, चुप, ख़्ाामोश; बोलनेवाला, बातें करनेवाला।
लबतश्न: ($फा.वि.)-दे.-'लबख़्ाुश्कÓ।
लबन (अ़.पु.)-दुग्ध, दूध, क्षीर।
लबनीय: (अ़.पु.)-खीर, शीर बिरंज।
लबबंद ($फा.वि.)-मौन, चुप, ख़्ाामोश; बहुत अधिक मिठासवाली वस्तु।
लब ब लब ($फा.वि.)-होंठों पर होंठ रखे हुए; एक-दूसरे के होंठ चूमते हुए, चुंबित।
लबबस्त: ($फा.वि.)-मौन, चुप, ख़्ाामोश।
लबरेज़ ($फा.वि.)-लबालब, मुँहामुँह, ऊपर तक भरा हुआ, परिपूर्ण।
लबरेज़े मय ($फा.वि.)-मदिरा से भरा हुआ, शराब से लबालब, मद्य से परिपूर्ण।
लबाच: ($फा.पु.)-कुर्ते आदि के ऊपर पहनने का वस्त्र-विशेष, अ़बा (लम्बा चो$गा)।
लबाद: ($फा.पु.)-सर्दियों में पहनने का रूईदार लम्बा चो$गा, $फ$र्गुल।
लबाद:पोश ($फा.वि.)-लबादा पहने हुए; लबादा पहननेवाला।
लबाद ($फा.पु.)-बरसाती, बरसात में पहनने का कोट, रेनकोट।
लबान (अ़.पु.)-वक्ष:स्थल, सीना, छाती; कुंदर, गोंद, लुबान।
लबाबत (अ़.स्त्री.)-निपुण होना, दक्ष होना; चतुर होना, बुद्घिमान् होना।
लबालब ($फा.वि.)-मुँहामुँह, लबरेज़, ऊपर तक भरा हुआ।
लबाश: ($फा.पु.)-दे.-'लबेश:Ó।
लबिन (अ़.स्त्री.)-कच्ची ईंट।
लबी$क (अ़.वि.)-बुद्घिमान्, अ़क़्लमंद; प्रतिभावान्, ज़हीन; वाचाल, लस्सान।
लबीद (अ़.स्त्री.)-छोटी गोन जिसमें अनाज आदि भरकर टट्टू पर लादते हैं।
लबीन (अ़.वि.)-दूध पिलाकर पाला हुआ, पोषित, पालित, पर्वर्दा।
लबीब (अ़.वि.)-बुद्घिमान्, मेधावी, अ़क़्लमंद; दक्ष, कुशल, होशियार।
लबून (अ़.वि.)-दुधारू, दूध देनेवाला।
लबूस (अ़.पु.)-कवच, जि़रिह; वस्त्र, लिबास।
लबे ख़्ाुश्क ($फा.पु.)-सूखे हुए होंठ, प्यासे होंठ।
लबे गोया ($फा.पु.)-बोलते हुए होंठ, बात करनेवाले होंठ।
लबे गोर ($फा.पु.)-$कब्र का किनारा, $कब्र के पास, समाधि के निकट।
लबे जू ($फा.पु.)-नदी-तट, नदी का किनारा, सरिता-कूल।
लबे तर ($फा.पु.)-गीले होंठ, पानी पिए हुए होंठ।
लबे नाँ ($फा.पु.)-रोटी का किनारा अर्थात् रोटी की कोर।
लबे नोशीं ($फा.पु.)-रसीले होंठ, वह होंठ, जिनसे रस टपकता हो।
लबे $फर्याद ($फा.पु.)-अत्याचार पर दुहाई देनेवाले होंठ, न्याय की गुहार लगानेवाले होंठ।
लबे $$फर्श ($फा.पु.)-सभा अथवा गोष्ठी में बिछे हुए $फर्श का किनारा।
लबे लाÓलीं (अ़.$फा.पु.)-दे.-'लबे नोशींÓ।
लबेश: ($फा.पु.)-रस्सी का एक $फन्दा, जो लकड़ी में लगा होता है, शरीर घोड़ों के ऊपरवाले होंठ में डालकर उसे घुमाते हैं, जिससे घोड़ा घबराकर शरारत करना भूल जाता है।
लबे शीरीं ($फा.पु.)-रसीले होंठ, वह होंठ जिनसे रस यानी अधरामृत टपकता हो।
लबे दंदाँ ($फा.पु.)-विद्वत्ता, योग्यता, $काबिलीयत।
लबोलह्ज: (अ़.$फा.पु.)-बात करने का ढंग, वात्र्तालाप की शैली, टोन।
लब्क़ (अ़.वि.)-दे.-'लबी$कÓ।
लब्क (अ़.पु.)-घोलना; मिलाना, मिश्रण।
लब्न (अ़.पु.)-दूध पिलाना; छड़ी से मारना।
लब्बान (अ़.वि.)-ईंटें पाथनेवाला।
लब्बैक (अ़.वा.)-'मैं उपस्थित हूँÓ (मालिक के पुकारने पर दास अथवा सेवक की ओर से दिया जानेवाला उत्तर)।
लब्स (अ़.पु.)-वस्त्र धारण करना, कपड़े पहनना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
लब्स (अ़.पु.)-देर करना, विलंब करना; देर, ढील, विलंब। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
लमअ़ात (अ़.पु.)-'लम्अ़:Ó का बहु., रौशनियाँ, प्रकाशपुंज।
लमहात (अ़.पु.)-'लम्ह:Ó का बहु., अनेक क्षण, बहुत-से पल।
लमा$क (अ़.वि.)-थोड़ी वस्तु।
लमाज़ (अ़.वि.)-थोड़ी-सी वस्तु।
लम्अ़: (अ़.पु.)-आलोक, ज्योति, प्रकाश, चमक, रौशनी।
लम्अ़ (अ़.पु.)-चमकना, प्रकाशित होना।
लम्अ़ान (अ़.पु.)-चमकना, रौशन होना; चमक, प्रकाश, नूर, आभा।
लम्क़ (अ़.पु.)-शुद्घ करना, सा$फ करना; आँखें मलना।
लम्ज़ (अ़.पु.)-दोष करना, ऐब करना; आँख का संकेत करना; जलाना; मारना।
लम्तुर ($फा.वि.)-हृष्ट-पुष्ट, मोटा-ताज़ा।
लम्मा (अ़.पु.)-जब, चूँकि; परन्तु, मगर।
लम्माज़ (अ़.वि.)-ऐब करनेवाला, अपराधक, अपराधी, दोषी; आँख से संकेत करनेवाला।
लम्पज़ल (अ़.वि.)-अनश्वर, अविनाशी, लाज़वाल।
लम्स (अ़.पु.)-स्पर्श, छूना; संभोग, मैथुन, सहवास।
लम्ह: (अ़.पु.)-क्षण, पल, बहुत थोड़ा समय। 'वक़्त कितना ख़्ाराब गुजऱा है, लम्ह: लम्ह: अज़ाब गुजऱा हैÓ-सुरेन्द्र शजर
लम्ह: ब लम्ह: (अ़.$फा.वि.)-क्षण प्रति क्षण, थोड़ी-थोड़ी देर बाद।
लयान (अ़.पु.)-सुख, चैन, आराम; समृद्घि, वैभव।
लयाली (अ़.स्त्री.)-'लैलÓ का बहु., रात्रियाँ, रातें।
लयूस (अ़.वि.)-तिरस्कृत, अपमानित, बेइज़्ज़त।
लय्यान (अ़.पु.)-लपेटना।
लय्यिन (अ़.वि.)-नर्म, कोमल, मुलायम।
लर (तु.अव्य.)-एक विभक्ति, जो एकवचनवाली संज्ञा के अन्त में आकर उसे बहुवचन बना देती है।
लर्ज़: ($फा.पु.)-कँपकँपी, थरथराहट, थरथरी, कम्प; कँपकँपी के साथ ज्वर, जूड़ी, कम्पज्वर; हलचल, हौल, घबराहट; शरीर के रोंगटों का खड़ा होना, रोमांच।
लर्ज़:अंगेज़ ($फा.वि.)-दे.-'लर्ज़:ख़्ोज़Ó।
लर्ज़:ख़्ोज़ ($फा.वि.)-शरीर के रोंगटे खड़े कर देनेवाला, अर्थात् बहुत भीषण और भयानक।
लर्ज़:बरंदाम ($फा.वि.)-जिसका शरीर भय के कारण काँप रहा हो।
लर्ज़:बरंदामकुन ($फा.वि.)-शरीर में कँपकँपी उत्पन्न कर देनेवाला।
लजऱ्ां ($फा.वि.)-काँपता हुआ, थरथराता हुआ; भय के कारण काँपता हुआ।
लर्जिं़द: ($फा.वि.)-काँपनेवाला, थरथरानेवाला।
लर्जि़श ($फा.स्त्री.)-कँपकँपी, थरथराहट।
लजऱ्ीद: ($फा.वि.)-काँपा हुआ, काँपता हुआ, थर्राया हुआ।
लजऱ्ीदनी ($फा.वि.)-काँपने योग्य, थर्राने योग्य।
लवाइज़ (अ़.पु.)-'लाइज़:Ó का बहु., जलनें, टपकनें।
लवाएह (अ़.पु.)-'लाइह:Ó का बहु., रौशनियाँ, प्रकाशपुंज।
लवा$क (अ़.वि.)-थोड़ी वस्तु, किंचिन्मात्र।
लवाक़ेह (अ़.स्त्री.)-'लाक़ेहÓ का बहु., गर्भवती मादाएँ; 'मुल्क़ेहÓ का बहु., नर।
लवाजि़म: (अ़.पु.)-दे.-'लवाजि़मÓ, यह शब्द अशुद्घ है मगर उर्दू में न सिर्फ़ प्रचलित ही है, अपितु उर्दूवाले इसका बहुवचन 'लवाजि़मातÓ भी बना लेते हैं, जो बिलकुल $गलत है।
लवाजि़म (अ़.पु.)-'लाजि़मÓ का बहु., किसी कार्य अथवा उद्योग से सम्बन्धित वस्तुएँ।
लवातत (अ़.स्त्री.)-गुद-मैथुन, बाल-मैथुन, इग़्लाम, दे.-'लिवाततÓ, दोनों शुद्घ हैं।
लवामेÓ (अ़.पु.)-'लामिअ़:Ó का बहु., चमकदार वस्तुएँ।
लवालौ ($फा.वि.)-ओछा, तुच्छ।
लवाश (तु.स्त्री.)-गेहूँ की पतली रोटी, फुलका, चपाती।
लवास (अ़.पु.)-चखने योग्य, आस्वाद्य, इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
लवास (अ़.पु.)-पलेथन, ख़्ाुश्की। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
लवाहि$क (अ़.पु.)-'लाहि$क:Ó का बहु., किसी मूल पदार्थ के साथ अथवा अन्त में लगाई जानेवाली वस्तुएँ।
लवाहि$कीन (अ़.पु.)-'लवाहि$कÓ का बहु., (सिद्घान्तरूप से यह अशुद्घ है, क्योंकि 'लवाहि$कÓ तो ख़्ाुद 'लाहि$क:Ó का बहु. है, ऐसे में किसी बहुवचन का बहुवचन होना उचित नहीं हैं मगर उर्दू में कम पढ़े-लिखे लोग इसका प्रयोग करते हैं)।
लवाहिज़ (अ़.पु.)-'लाहिज़Ó का बहु., आँखों के किनारे; कनखियों से देखनेवाले।
लवाहिब (अ़.पु.)-'लाहिबÓ का बहु., भड़की हुई आग।
लवीश: ($फा.पु.)-दे.-'लवेश:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
लवूस (अ़.वि.)-चखा हुआ।
लवेद ($फा.पु.)-खुले मुख का बड़ा पतीला, देगचा, देग।
लव्वाम: (अ़.पु.)-बुरी बातों पर डाँट-फटकार करनेवाला; एक मानसिक शक्ति जो बुरे कर्मों अथवा पापों पर मनुष्य की निन्दा करती और उनसे रोकती है।
लव्वाम (अ़.वि.)-निन्दा करनेवाला, भत्र्सना करनेवाला, मलामत करनेवाला।
लश् ($फा.स्त्री.)-कीचड़, चहला।
लश्कर ($फा.पु.)-सेना, वाहिनी, वरूथिनी, अनीक, चमू, बल, $फौज; भीड़, बहुत-से व्यक्तियों का समूह।
लश्करआरा ($फा.वि.)-सेना की सज्जा करनेवाला; सेना लेकर मु$काबले पर आनेवाला।
लश्करआराई ($फा.स्त्री.)-सेना को लडऩे के लिए सजाना; सेना लेकर मु$काबला करना।
लश्करकशी ($फा.स्त्री.)-आक्रमण, चढ़ाई, धावा, सैन्य-यात्रा।
लश्करगाह ($फा.स्त्री.)-सेनावास, छॉवनी।
लश्करी ($फा.वि.)-सैनिक, असिजीवी, सिपाही।
लस [स्स] (अ़.पु.)-घोड़े का घास खाना।
लसक़ (अ़.पु.)-गीला होना; गीलापन, आद्र्रता। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
लसक़ (अ़.पु.)-चिपकना। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
लसद (अ़.पु.)-दूध चूसना, बच्चे का दूध पीना; शहद चाटना।
लसन (अ़.पु.)-भाषानैपुण्य, भाषाज्ञान, ज़बानआवरी; नर्मी, कोमलता, $फसाहत।
लसस (अ़.पु.)-मुँह में दाँतों का पास-पास होना; वृक्ष की डालियों का घना होना।
लसि$क: (अ़.पु.)-एक प्रकार का ज्वर।
लसिन (अ़.वि.)-भाषा-विज्ञान में निपुण, भाषाविद्; बहुत शुद्घ और सरल भाषा बोलनेवाला।
लस्अ़: (अ़.पु.)-दंशन, डसना, काटना।
लस्अ़ (अ़.पु.)-दे.-'लस्अ़:Ó।
लस्उल हैय: (अ़.पु.)-साँप का काटना या डसना, सर्प-दंशन।
लस्ग़ (अ़.पु.)-'रÓ को 'लÓ तथा 'कÓ को 'तÓ बोलना अर्थात् तुतलाना।
लस्ग़ा (अ़.स्त्री.)-तोतली स्त्री।
लस्द (अ़.पु.)-दे.-'लसदÓ।
लस्म (अ़.पु.)-चूमना, चुम्बन; मुँह में मुसीका (रस्सी की बनी जाली, जो बैलों के मुँह पर बाँधी जाती है)।
लस्स: (अ़.पु.)-मसूढ़ा, दन्तपाली, दे.-'लिस्स:Ó और 'लुस्स:Ó, तीनों शुद्घ हैं।
लस्साअ़ (अ़.वि.)-काटनेवाला, डंक मारनेवाला, डसने-वाला, विषैला कीड़ा।
लस्सान (अ़.वि.)-मुखचपल, वाचाल, मुखर, बातूनी, लफ़्$फाज़।
लस्सानियत (अ़.क्रि.)-बहुत बातें करना।
लस्सानी (अ़.स्त्री.)-मुखचपलता, मुखरता, वाचालता, लफ़्$फाज़ी।
लहक़: (अ़.पु.)-'लाहि$कÓ का बहु., पीछे से पहुँचनेवाले; अन्त में मिलाए जानेवाले।
लहक़ (अ़.वि.)-जो अपने पहलेवाले से मिलेे; जो किसी के अन्त में जोड़ा जाए।
लहज (अ़.पु.)-लोभी या लालची होना; मुग्ध होना, मोहित होना, आसक्त होना; बरग़लाना, भड़काना, बहकाना।
लहद (अ़.स्त्री.)-पासवाली $कब्र; $कब्र, गोर, समाधि।
लहन (अ़.पु.)-प्रतिभा, कुशलता, दक्षता, ज़हानत; चातुर्य, होशियारी।
लहफ़ (अ़.पु.)-पश्चात्ताप करना, पछताना, अफ़्सोस करना; दु:खित होना, रंजीदा होना।
लहब (अ़.पु.)-अग्निशिखा, आग की लपट, अग्निज्वाला, शोÓला।
लहा$क (अ़.पु.)-पहुँचना, जाना; ताडऩा, समझना।
लहाज़ (अ़.पु.)-आँख का कोना।
लहाजि़म (अ़.पु.)-'लहज़म:Ó का बहु., जबड़े की हड्डियाँ; कनपटी की हड्डियाँ।
लहात (अ़.पु.)-गले का कौआ, कण्ठकाग।
लहास (अ़.पु.)-विपत्ति, कष्ट, आपदा, आपत्ति, मुसीबत; दैवी आपत्ति या प्रकोप, बला।
लहिम (अ़.वि.)-मांसाहारी, मांसभक्षक, गोश्तख़्ाोर।
लहीद (अ़.वि.)-थका हुआ ऊँट।
लही$फ (अ़.वि.)-नि:सहाय, दीन, बेचारा; पश्चात्ताप करने-वाला, पछतानेवाला, अफ़्सोस करनेवाला।
लहीब (अ़.पु.)-आग की लपट, अग्निज्वाला, शोÓला।
लहीम (अ़.वि.)-जिसके शरीर में मांस बहुत हो, मांसल, पीन।
लहीम (अ़.स्त्री.)-विपत्ति, आपत्ति, मुसीबत; दरिद्रता, $गरीबी, कंगाली। इसकी 'हीÓ उर्दू के 'हम्जाÓ अक्षर से बनी है।
लहीमुलजुस्स: (अ़.वि.)-स्थूलकाय, हृष्ट-पुष्ट, मोटा-
ताज़ा।
लहीमोशहीम (अ़.वि.)-जिसके शरीर में मांस और चर्बी दोनों अधिक हों।
लहीस (अ़.वि.)-तंग, संकीर्ण।
लहूम (अ़.पु.)-बहुत बड़ी सेना।
लह्ज: (अ़.पु.)-बात करने का ढंग, वात्र्तालाप-शैली, टोन; पढऩे का ढंग; स्वर, आवाज़ (गाने की)। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है।
लह्ज़: (अ़.पु.)-पल, क्षण, लम्हा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
लह्ज़: ब लह्ज़: (अ़.वि.)-क्षण-प्रतिक्षण, क्षण-क्षण, जऱा-जऱा-सी देर के बाद, हर लम्हा।
लह्ज़ (अ़.पु.)-एक बार मिली हुई वस्तु की फिर-फिर इच्छा; कुत्ते का बर्तन चाटना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
लह्ज़ (अ़.पु.)-छाती पर घूँसा मारना; मिलाना; बछड़े का दूध पीते समय थनों को सिर का हूरा देना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
लह्जए तल्ख़्ा (अ़.पु.)-स्वर की कठोरता; कटुता से कही हुई बात।
लह्ज़म: (अ़.पु.)-कनपटी की हड्डी, जबड़े की हड्डी।
लह्न (अ़.पु.)-स्वर, आवाज़, गानेवाला स्वर, धुन।
लह्ने दाऊदी (अ़.पु.)-हज्ऱत दाऊद पै$गम्बर-जैसी आवाज़, जो बहुत ही मधुर और मुग्धकर थी।
लह्म: (अ़.पु.)-मांसपिण्ड, लोथड़ा; छोटा बच्चा, शिशु; मांस की बोटी।
लह्म (अ़.पु.)-मांस, आमिष, गोश्त।
लह्मी (अ़.वि.)-मांस-सम्बन्धी; मांस का; एक प्रकार का जलंधर।
लह्व (अ़.पु.)-लकड़ी का बकला या बक्कल छुड़ाना; एक वस्तु से दूसरी वस्तु अलग करना। इसका 'ह्Ó उर्दू के 'हेÓ अक्षर से बना है।
लह्व (अ़.पु.)-खेल-कूद, मन-बहलाव, क्रीड़ा; वह बात जो धार्मिक कामों से रोके। इसका 'ह्Ó उर्दू के 'हम्जाÓ अक्षर से बना है।
लह्वुल हदीस (अ़.पु.)-$िकस्सा-कहानी, नाच-रंग।
लह्बो लइब (अ़.पु.)-खेल-कूद।
लह्हाम (अ़.वि.)-गोश्त बेचनेवाला, मांस विक्रेता, $कसाई।
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