सु
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सुंदरूस ($फा.पु.)-'राजनÓ नामक एक प्रसिद्घ गोंद, दे.-'संदरूसÓ।सुंदुस (अ़.पु.)-एक प्रकार का बहुत ही महीन और बहुमूल्य रेशमी कपड़ा।
सुंदू$क (अ़.पु.)-शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'संदू$कÓ प्रचलित है, दे.-'संदू$कÓ।
सुंब: ($फा.पु.)-लोहे में छेद करने का लोहे का छोटा-सा औज़ार या उपकरण, सुम्बा; लकड़ी में सूराख़्ा करने का औज़ार, बरमा।
सुंबुक ($फा.स्त्री.)-वह छोटी नाव, जो बड़ी नाव के साथ रहती है।
सुंबुल: (अ़.पु.)-गेहूँ की बाल; कन्याराशि, बुर्जे सुंबुल:।
सुंबुल (अ़.स्त्री.)-गेहूँ या जौ की बाल; एक सुगंधित वनौषधि, बालछड़; अलक, जुल्$फ।
सुंबुलुतीब (अ़.स्त्री.)-एक सुगंधित औषधि बालछड़, जटामासी।
सुअ़ाद (अ़.स्त्री.)-अऱब की एक प्रसिद्घ सुन्दरी।
सुअ़ाल (अ़.स्त्री.)-खाँसी, कास।
सुआल (अ़.पु.)-सवाल, प्रश्न, इसका शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'सवालÓ ही प्रचलित है।
सुऊद (अ़.पु.)-ऊपर जाना, ऊपर उठना; ऊपर आना। इसका 'सुÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सुऊद (अ़.पु.)-'साÓदÓ का बहु., शुभ ग्रह, जैसे-बृहस्पति, शुक्र और चन्द्र।
सुऊबत (अ़.स्त्री.)-कठिनता, कष्ट, दुश्वारी; व्यथा, पीड़ा, तकली$फ।
सुक [क्क] (अ़.पु.)-एक सुगन्धित पदार्थ, जो अनेक सुगन्धित पदार्थों से मिलकर बनता है।
सुकारा (अ़.पु.)-'सकरानÓ का बहु., मतवाले, नशे में चूर लोग, मस्त लोग।
सु$कुब (अ़.पु.)-'सुक़्ब:Ó का बहु., छिद्र-समूह, अनेक सूराख़्ा।
सुकुर्र: (अ़.पु.)-मिट्टी का छोटा प्याला, कुल्हड़।
सु$कूत (अ़.पु.)-गिरना, अवनति, पतन।
सुकूत (अ़.पु.)-मौन, चुप्पी, ख़्ाामोशी; सन्नाटा।
सुकूते कामिल (अ़.पु.)-पूरा सन्नाटा, बिलकुल ख़्ाामोशी।
सुकूते मह्ज़ (अ़.पु.)-पूरा सन्नाटा।
सुकून (अ़.पु.)-सन्नाटा, ख़्ाामोशी; शान्ति, अम्न; रोग या बीमारी में कमी; ठहराव, $करार, विराम; आराम, चैन, इत्मीनान; संतोष, धीरज, धैर्य, सब्र; जी अर्थात् मन ठण्डा होना, मन को चैन मिलना; अक्षर का 'हल्Ó होना।
सुकूनत (अ़.स्त्री.)-निवास, $िकयाम, बसाव।
सुकूनतपिज़ीर (अ़.$फा.वि.)-निवासी, बाशिन्दा।
सुकूनती (अ़.वि.)-रहने का, रहने योग्य, जैसे-सुकूनती मकान।
सुकूने अबदी (अ़.पु.)-हमेशा के लिए सुकून और शान्ति अर्थात् मौत, मृत्यु।
सुकूने अ़ारिज़ी (अ़.पु.)-अस्थायी संतोष, थोड़े दिनों का इत्मीनान, कुछ समय का चैन और आराम।
सुकूने कामिल (अ़.पु.)-पूरी ख़्ाामोशी; पूरा संतोष; मौत की ख़्ाामोशी, मौत का सन्नाटा।
सुकूने दाइमी (अ़.पु.)-दे.-'सुकूने अबदीÓ।
सुकूने मुत्ल$क (अ़.पु.)-दे.-'सुकूने कामिलÓ।
सुकैन: (अ़.स्त्री.)-'हज्ऱत सकीन:Ó का शुभ नाम, जो हज्ऱत इमामहुसैन की सुपुत्री थीं।
सुक्कर (अ़.स्त्री.)-चीनी, शकर, शर्करा।
सुक्कान (अ़.पु.)-साकिन का बहु., रहनेवाले, निवासी।
सुक्काने समावात (अ़.पु.)-आस्मान के रहनेवाले, $फरिश्ते, देवदूत।
सुक़्त: (अ़.पु.)-किसी चीज़ का गिरा हुआ टुकड़ा; बादल का टुकड़ा।
सुक्ना (अ़.स्त्री.)-निवास, बसना; निवासी, बसनेवाला।
सुक़्ब: (अ़.पु.)-छिद्र, विवर, छेद, सूराख़्ा।
सुक़्ब (अ़.पु.)-'सुक़्ब:Ó का बहु., छिद्र-समूह, छेद, दे.-'सु$कुबÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सुक़्बए इनबीय: (अ़.पु.)-आँख का एक पर्दा, एक चक्षुपटल।
सुक़्म (अ़.पु.)-रोग, बीमारी।
सुक़्मूनिया (अ़.स्त्री.)-एक विरेचक गोंद, जो बहुत अच्छी दवा है।
सुक्र (सुक्र) (अ़.पु.)-मद, अभिमान, मादकता, नशा।
सुख़्ान ($फा.पु.)-बात, कथन, वार्ता; शब्द, ध्वनि; वार्तालाप, बातचीत; संविदा, वादा, $कौल; कविता, काव्य, शेÓर, शाइरी; प्रवचन। दे.-'सख़्ाुनÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सुख़्ानआफ्ऱीं ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानआफ्ऱीन ($फा.वि.)-दे.-'सुख़्ानआफ्ऱींÓ।
सुख़्ानआफ्ऱीनी ($फा.स्त्री.)-कविता, काव्य-रचना, शाइरी।
सुख़्ानआरा ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानआराई ($फा.स्त्री.)-कविता, काव्य-रचना, शाइरी।
सुख़्ानगुस्तर ($फा.वि.)-कवि, शाइर; काव्य-मर्मज्ञ, शेÓरशनास।
सुख़्ानगुस्तरी ($फा.स्त्री.)-कविता करना या कहना; कविता का गुण-दोष समझना।
सुख़्ानगो ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानगोई ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी।
सुख़्ानगोया ($फा.वि.)-सुख़्ानगो, कवि, शाइर।
सुख़्ानचीं ($फा.वि.)-छिद्रान्वेशी, ऐबचीं; पिशुन, चु$गुलख़्ाोर; निन्दक, लुतरा।
सुख़्ानचीनी ($फा.स्त्री.)-ऐब ढूँढऩा, दोष निकालना; पिशुनता, लुतरापन।
सुख़्ानतकिय: (अ़.$फा.पु.)-वह शब्द या वाक्य, जो किसी की ज़बान पर चढ़ जाए और बातों में उसका प्रयोग बार-बार करे, चाहे उसकी आवश्यकता हो या न हो, तकिय:कलाम।
सुख़्ानतराज़ ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानतराज़ी ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी।
सुख़्ानदाँ ($फा.वि.)-कवि, शाइर; काव्य-मर्मज्ञ, कविता के गुण-दोष जाननेवाला।
सुख़्ानदानी ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी, काव्य-रचना; कविता की परख।
सुख़्ाननवाज़ ($फा.वि.)-कवियों और शाइरों की $कद्र करनेवाला, काव्यप्रेमी।
सुख़्ाननवाज़ी ($फा.स्त्री.)-कविता की $कद्र, कवियों का आदर।
सुख़्ानपरदाज़ ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानपरदाज़ी ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी।
सुख़्ानपर्वर ($फा.वि.)-कवि, शाइर; अपनी बात की पच रखनेवाला; ग़लत या सही जो कह दिया, उसी पर अड़ा रहनेवाला, हठधर्मी, हठी।
सुख़्ानपर्वरी ($फा.स्त्री.)-कविता; बात की पच; हठधर्मिता।
सुख़्ान$फरामोश ($फा.वि.)-बात कहकर भूल जानेवाला; वचन या वादा याद न रखनेवाला।
सुख़्ान$फरामोशी ($फा.स्त्री.)-बात भूल जाना; वचन या वादा याद न रखना।
सुख़्ान$फह्म (अ़.$फा.वि.)-कविता का गुण-दोष समझनेवाला, सहृदय, काव्य-मर्मज्ञ; बात की तह तक पहुँच जानेवाला।
सुख़्ान$फह्मी (अ़.$फा.स्त्री.)-कविता का गुण-दोष समझना, काव्य-मर्मज्ञता; जल्द बात की तह तक पहुँचना।
सुख़्ानबा$फ ($फा.वि.)-बातूनी, वाचाल, मुखर।
सुख़्ानबा$फी ($फा.स्त्री.)-वाचालता, मुखरता, बातूनीपन।
सुख़्ानरस ($फा.वि.)-दे.-'सुख़्ान$फह्मÓ।
सुख़्ानरसी ($फा.स्त्री.)-'सुख़्ान$फह्मीÓ।
सुख़्ानवर ($फा.वि.)-कवि, शाइर।
सुख़्ानवरी ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी।
सुख़्ानशनास ($फा.वि.)-दे.-'सुख़्ान$फह्मÓ।
सुख़्ानशनासी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सुख़्ान$फह्मीÓ।
सुख़्ानशनौ ($फा.वि.)-बात सुननेवाला, बात समझनेवाला, बात की $कद्र करनेवाला।
सुख़्ानसंज ($फा.वि.)-दे.-'सुख़्ान$फह्मÓ, दे.-'सुख़्ानवरÓ।
सुख़्ानसंजी ($फा.स्त्री.)-काव्य-मर्मज्ञता।
सुख़्ानसरा ($फा.वि.)-कवि, शाइर; तरन्नुम से शेÓर पढऩेवाला।
सुख़्ानसराई ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी; तरन्नुम से शेÓर पढऩा।
सुख़्ानसाज़ ($फा.वि.)-कवि, शाइर; बातों का चालाक; छली, मक्कार।
सुख़्ानसाज़ी ($फा.स्त्री.)-कविता, शाइरी; बातों की चालाकी; छल, $फरेब।
सुख़्ाने गर्म ($फा.पु.)-तेज़ बात, $गुस्से की बात, $गुस्सा दिलानेवाली बात।
सुख़्ाने तल्ख़्ा ($फा.पु.)-कड़वी बात; सच्ची और खरी बात; बदज़बानी, मुख-चपलता।
सुख़्ाुन ($फा.पु.)-दे.-'सुखनÓ, शुद्घ यह भी है लेकिन 'सुख़्ानÓ बहुत अधिक शुद्घ है।
सुख़्ाूनत (अ़.स्त्री.)-गर्म होना, उष्ण होना; उष्णता, उष्णिमा, गर्मी।
सुख़्त: ($फा.वि.)-तोला हुआ, तुलित।
सुख़्त (अ़.पु.)-क्रोध, कोप, $गुस्सा, दे.-'सख़्तÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सुख़्तनी ($फा.वि.)-तोलने के योग्य, जिसे तोला जा सके।
सुख़्ा्र: ($फा.स्त्री.)-बेगार, बिना मज़दूरी का काम, विष्टि।
सुख़्ा्रत (अ़.स्त्री.)-परिहास; उपहास, हँसी उड़ाना; मनोरंजन, तफ्ऱीह।
सुख़्ा्री (अ़.वि.)-पश्चात्ताप, अ$फसोस।
सुख़्ा्रीय: (अ़.पु.)-मनोरंजन, मनोविनोद, तफ्ऱीह; ठठोल, फक्कड़पन; मस्खरापन, विदूषकता।
सुगाच: ($फा.पु.)-काबूस रोग, जिसमें स्वप्न में ऐसा जन पड़ता है कि काई भूत-प्रेत या कालादेव गला दबा रहा है।
सुग़्द ($फा.स्त्री.)-नीची ज़मीन, जहाँ बरसात का पानी इकट्ठा होता है; समर$कंद के पास एक नगर।
सुग़्दी ($फा.स्त्री.)-ईरान की सात भाषाओं में से एक।
सुग्ऱा (अ़.स्त्री.)-छोटी स्त्री; प्रत्येक छोटी चीज़, जो स्त्रीलिंग हो।
सुग्ऱा$क (तु.पु.)-बड़ा प्याला।
सुजूद (अ़.पु.)-नमन करना, प्रणाम करना, नत्मस्तक होना, सिर झुकाना; ईश्वर के आगे सिर झुकाना; नमाज़ में सज्दा करना।
सुतुर्ग ($फा.वि.)-ज्येष्ठ, बड़ा; श्रेष्ठ, अज़़ीम, विशाल, विस्तृत।
सुतुर्द: ($फा.वि.)-मुंडित, मूँड़ा हुआ।
सुतुर्लाब ($फा.पु.)-ग्रहों और तारों आदि को नापने का यंत्र।
सुतूअ़ (अ़.पु.)-ऊँचा होना, बुलंद होना।
सुतूद: ($फा.वि.)-श्लाघित, प्रशंसित, सराहा हुआ, जिसकी तारी$फ की गई हो।
सुतूद:कार ($फा.वि.)-जिसके कार्य प्रशंसनीय हों, सराहनीय काम करनेवाला।
सुतूद:सि$फात (अ़.$फा.वि.)-अच्छे गुणोंवाला, अच्छे आचार-व्यवहारवाला।
सुतूदाँ ($फा.पु.)-अग्नि-पूजकों अर्थात् पार्सियों का समाधिस्थल या $कब्रिस्तान।
सुतून ($फा.पु.)-स्थूण, खम्भा; मीनार, लाट, स्तम्भ।
सुतूने जराइद (अ़.$फा.पु.)-समाचारपत्र का कालम, स्तम्भ।
सुतूर (अ़.स्त्री.)-'सत्रÓ का बहु., सत्रें, लकीरें, पंक्तियाँ।
सुतूरे जै़ल (अ़.स्त्री.)-लेख के नीचे की पंक्तियाँ।
सुतूरे बाला (अ़.$फा.स्त्री.)-लेख के ऊपर की पंक्तियाँ।
सुतूह (अ़.स्त्री.)-'सत्हÓ का बहु., सत्हें।
सुतोर ($फा.पु.)-गो, गौ, वृष, बैल; उष्ट्र, ऊँट; अश्व, वाजि, घोड़ा।
सुतोह ($फा.वि.)-तंग आया हुआ, ऊबा हुआ, परेशान, अ़ाजिज़; दु:खित, पीडि़त, रंजीदा; नि:सम्बन्ध, बेलगाव।
सुदद (अ़.पु.)-'सुद्द:Ó का बहु., सुद्दे, गाँठें, ग्रंथियाँ, मल या मवाद की गाँठें।
सुदाअ़ (अ़.पु.)-सिरदर्द, शिर:पीड़ा।
सुदाद (अ़.पु.)-एक रोग, जिसमें नाक और सीने के रास्ते बन्द हो जाते हैं।
सुदाब ($फा.स्त्री.)-एक क्षुप, जिसकी पत्ती औषधि में काम आती है, तितली।
सुदुस (अ़.वि.)-छठा, षष्ठ।
सुदूर (अ़.पु.)-जारी होना, निकलना।
सुद्ग़: (अ़.पु.)-कनपटी।
सुद्ग़ (अ़.पु.)-कनपटी।
सुद्ग़तैन (अ़.पु.)-दोनों कनपटियाँ।
सुद्द: (अ़.पु.)-मवाद की गाँठ, जो आँतों या रगों में पड़ जाती हैं।
सुद्स (अ़.वि.)-छठा, षष्ठ।
सुनन (अ़.स्त्री.)-'सुन्नतÓ का बहु., सुन्नतें।
सुनाई (अ़.वि.)-दो अक्षरवाला शब्द; आगे के दो दाँत, ऊपर के हों या नीचे के।
सुनान (अ़.स्त्री.)-बग़ल की दुर्गन्ध; एक रोग, जिसमें बग़ल से बू आती है।
सुन्अ़ (अ़.स्त्री.)-बनाना, पैदा करना; कारीगरी, शिल्प।
सुन्ए परवर्दगार (अ़.$फा.स्त्री.)-ईश्वर की कारीगरी।
सुन्$कुर (तु.पु.)-बाज़ की $िकस्म का एक शिकारी पक्षी (गर्मी के कारण यह भारत में जीवित नहीं रह पाता)।
सुन: (अ़.पु.)-दे.-'सुन्नतÓ।
सुन्नत (अ़.स्त्री.)-शैली, पद्घति, तरी$का; नियम, $कायदा; मार्ग, रास्ता; स्वभाव, अ़ादत; प्रकृति, $िफतरत; वह काम जो पैग़म्बर साहब ने किया हो; ख़्ात्ना, मुसलमानी।
सुन्नते आबा (अ़.स्त्री.)-वंश की परिपाटी, बाप-दादा का दस्तूर, ख़्ाानदान का रिवाज।
सुन्नते पैग़म्बरी (अ़.$फा.स्त्री.)-पैग़म्बर साहब का किया हुआ अ़मल अर्थात् काम, जिसके करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
सुन्नते रसूल (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुन्नते पैग़म्बरीÓ।
सुन्नी (अ़.पु.)-सुन्नत का अनुयायी, सुन्नी मुसलमान, मुसलमानों का एक समुदाय।
सुपार ($फा.प्रत्य.)-सौंपनेवाला, जैसे-'जाँसुपारÓ-जान अर्थात् प्राण सौंपनेवाला।
सुपारिश ($फा.स्त्री.)-दे.-'सि$फारिशÓ।
सुपुर्ज़ ($फा.स्त्री.)-शरीर का एक विशेष अवयव, पलीहा, तिल्ली।
सुपुर्द: ($फा.वि.)-दिया हुआ, सौंपा हुआ, किसी के हवाले किया हुआ।
सुपुर्द ($फा.वि.)-दिया हुआ, सौंपा हुआ, किसी के हवाले किया हुआ।
सुपुर्दगी ($फा.स्त्री.)-हवाले करना, किसी को देना, सुपुर्द करना, सौंपना।
सुपुर्दार ($फा.पु.)-वह व्यक्ति, जिसके सुपुर्द किसी $कु$र्की का माल हो।
सुपुश ($फा.स्त्री.)-एक कीड़ा, जो बालों में पड़ जाता है, जूँ, स्वेदज, लोमयूक।
सु$फरा (अ़.पु.)-'स$फीरÓ का बहु., दूत लोग, राजदूत लोग।
सु$फहा (अ़.पु.)-'स$फीहÓ का बहु., नीच लोग, अधम लोग, कमीने।
सु$फारिश ($फा.स्त्री.)-शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'सि$फारिशÓ प्रचलित हैं, दे.-'सि$फारिशÓ।
सु$फाल ($फा.पु.)-मिट्टी का बर्तन; ठीकरा, दे.-'सि$फालÓ, वह भी शुद्घ है।
सु$फालीं ($फा.वि.)-मिट्टी का बना हुआ, मृण्मय।
सु$फुन (अ़.पु.)-'स$फीन:Ó का बहु., नौकाएँ, नावें, कश्तियाँ।
सु$फूल (अ़.पु.)-निचाई, निम्नता, पस्ती; नीचे उतरना, नीचे आना।
सुफ़्त: ($फा.वि.)-छेद किया हुआ; एक प्रकार का बाण; पिरोया हुआ।
सुफ़्त:गोश ($फा.वि.)-जिसके कान छिदे हों; दास, $गुलाम; आज्ञापालक, मुतीअ़, अधीन, मातहत।
सुफ़्त ($फा.पु.)-छिद्र, छेद, विवर, सूराख़्ा।
सुफ़्तज: ($फा.स्त्री.)-धनादेश, हुण्डी, चेक।
सुफ़्तनी ($फा.वि.)-छेद करने योग्य; पिरोने योग्य।
सुफ़्तीद: ($फा.वि.)-छेद किया हुआ, बिंधा हुआ, पिरोया हुआ।
सुफ़्$फ: (अ़.पु.)-पटाव का मकान, साय:दार जगह, छायावाला स्थान; छज्जा, साइबान।
सुफ्य़ान (अ़.पु.)-पाक, सा$फ, परहेजग़ार, इन्द्रियों को वश में रखनेवाला।
सुफ्ऱ: ($फा.पु.)-गुदा, मलद्वार।
सुफ्ऱ: (अ़.पु.)-वह कपड़ा, जिस पर खाना खाते हैं, दस्तरख़्वान; तोशदान, टिफिन, कैरियर, चूँकि 'सुफ्ऱ:Ó का अर्थ $फार्सी भाषा में 'मलद्वारÓ है, इसलिए अऱबी के शब्द 'सुफ्ऱ:Ó को 'सफ्ऱ:Ó पढऩे लगे हैं, दे.-'सफ्ऱ:Ó।
सुफ्ऱ:चीं ($फा.वि.)-दस्तरख़्वान का जूठा खानेवाला, अर्थात् दास, $गुलाम।
सुफ्ऱची ($फा.पु.)-ख़्ाानसामा, बैरा, खाना खिलानेवाला।
सुफ्ऱत (अ़.स्त्री.)-पीलापन, पीतिमा, ज़र्दी, पीलाहट।
सुफ़्ल (अ़.पु.)-निम्नता, निचाई, पस्ती, दे.-'सिफ़्लÓ, वह भी शुद्घ है।
सुफ़्ला (अ़.स्त्री.)-'अस्$फलÓ का बहु., बहुत नीची, निकृष्टा, बहुत गिरी हुई, अधमा।
सुफ़्ली (अ़.वि.)-नीचे का; नीचेवाला; नीचे से सम्बन्धित। दे.-'सिफ़्लीÓ।
सुबाई (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की नज़्म, जिसमें सात मिसे्र होते हैं; सात ग्रहों का समूह, सप्तग्रह; सातों आस्मान।
सुबात (अ़.पु.)-समय, काल; स्वप्न, ख़्वाब, नींद; एक रोग, जिसमें रोगी को नींद बहुत आती है।
सुबुकतिगीं (तु.पु.)-सुलतान महमूद के बाप का नाम, दे.-'सबुकतिगींÓ, वह भी शुद्घ है।
सुबू ($फा.पु.)-पानी आदि का घड़ा, घट, मटका, कुम्भ।
सुबूच: ($फा.पु.)-छोटा मटका, घडिय़ा, ठिलिया, गागर, मटकी।
सुबूत (अ़.पु.)-प्रमाण; तर्क, दलील; उदाहरण, मिसाल।
सुबूदान ($फा.पु.)-मटका या घड़ा रखने की टिकटी।
सुबूह (अ़.स्त्री.)-भोर, सवेरा, प्रात:काल, तड़का, सुबह; सवेरे की शराब पीना। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सुबूह (अ़.स्त्री.)-बहुत ही पवित्र, बहुत पाक, ईश्वर का एक नाम। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सुब्ह: (अ़.पु.)-जपमाला, सुमरनी, तस्बीह।
सुब्ह:ख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-जप करनेवला, जापक, तस्बीह पढऩेवाला, माला फेरनेवाला।
सुब्ह:ख़्वानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुब्ह: गर्दानीÓ।
सुब्ह:गर्दानी (अ़.$फा.स्त्री.)-माला फेरना, जप करना, तस्बीह पढऩा, तस्बीह फेरना।
सुब्ह:रानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुब्ह:गर्दानीÓ।
सुब्ह (अ़.स्त्री.)-भोर, प्रभात, प्रात:, तड़का।
सुब्हख़्ांद (अ़.$फा.पु.)-ऐसी मुस्कुराहट, जिसमें दाँत दिखाई दे जाएँ।
सुब्हख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-जिसे सवेरे-सवेरे उठने की अ़ादत हो।
सुब्हगाह ($फा.पु.)-भोर, सवेरे, प्रात:काल, तड़के, गजरदम, गोविसर्ग, वासर संग।
सुब्हगाही ($फा.स्त्री.)-भोर का, सवेरे का, प्रात:काल का (की); भोर, सवेरा, प्रात:काल, तड़का।
सुब्हदम (अ़.$फा.पु.)-सवेरे-सवेरे, बहुत तड़के, गजरदम।
सुब्हे अज़ल (अ़.स्त्री.)-वह समय, जब सृष्टि की रचना हुई, सृष्टि का रचनाकाल।
सुब्हे अलस्त (अ़.स्त्री.)-सृष्टि का रचनाकाल।
सुब्हे आख़्िार (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे सादि$कÓ।
सुब्हे उम्मीद (अ़.$फा.स्त्री.)-आशारूपी प्रभात।
सुब्हे काजि़ब (अ़.स्त्री.)-झूठा सवेरा, वह रौशनी जिसके बाद फिर अँधेरा हो जाता है।
सुब्हे $िकयामत (अ़.स्त्री.)-$िकयामत अर्थात् प्रलय के दिन का सवेरा, वह सवेरा जिस दिन महाप्रलय होगी और $कब्रों में सोये हुए सभी मुर्दे जीवित हो उठेंगे तथा अपने-अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए एक बड़े मैदान में एकत्र होंगे।
सुब्हे जज़ा (अ़.स्त्री.)-उस दिन का सवेरा, जिस दिन महाप्रलय में पाप-पुण्य का हिसाब-किताब होगा।
सुब्हे दुवुम (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे सादि$कÓ।
सुब्हे नुख़्ाुस्तीं (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे अज़लÓ।
सुब्हे बहार (अ़.$फा.स्त्री.)-वसन्त ऋतु की शुरूअ़ात, पुष्प-समय का प्रारम्भ।
सुब्हे मह्शर (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे $िकयामतÓ।
सुब्हे रुस्तख़्ोज़ (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे $िकयामतÓ।
सुब्हे सादि$क (अ़.स्त्री.)-सच्चा सवेरा, जो सचमुच सवेरा हो, प्र्रात:, प्रभात, सवेरा।
सुब्हे सानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे सादि$कÓ।
सुब्हे हश्र (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुब्हे $िकयामतÓ।
सुब्होमसा (अ़.स्त्री.)-अहर्निश, दिन-रात, हर समय।
सुब्होशाम (अ़.$फा.स्त्री.)-सवेरे और शाम को अर्थात् दिन-रात, अहर्निश, हर समय।
सुम ($फा.पु.)-चौपाए का खुर; घोड़े की टाप।
सुम अफ्ग़ंद: ($फा.वि.)-चलने में असमर्थ, लँगड़ा, पंगु।
सुमुन (अ़.वि.)-आठवाँ अंश।
सुमुव [व्व] (अ़.पु.)-उच्चता, उत्तुंगता, ऊँचाई, बुलंदी।
सुमूत (अ़.पु.)-चुप रहा, ख़्ाामोश रहना; मौन, चुप्पी, ख़्ाामोशी।
सुम्अ़: (अ़.पु.)-दे.-'सुम्अ़तÓ।
सुम्अ़त (अ़.स्त्री.)-अपनी अच्छी बातें दूसरों को सुनवाना ताकि लोग अच्छा समझें, रियाकारी, पाखण्ड, आडम्बर।
सुम्च: ($फा.पु.)-ज़मीन के अन्दर की गु$फा, तहख़्ााना, तलगृह।
सुम्न: ($फा.पु.)-एक मेवा, चिरौंजी।
सुम्न (अ़.वि.)-आठवाँ अंश, दे.-'सुमुनÓ।
सुम्म: (अ़.वि.)-फिर, पुन:।
सुम्मा$क (अ़.पु.)-एक खट्टा फल, जो दवा में काम आता है।
सुयू$फ (अ़.पु.)-'सै$फÓ का बहु., तलवारें।
सुरा$क: (अ़.पु.)-चोरी का माल; $कुरैश वंश (अऱब) का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति।
सुराग़ (तु.पु.)-पाँव का चिह्नï, खोज; पता, निशान, ठिकाना; अनुसंधान, जिज्ञासा, तलाश।
सुरागऱसाँ (तु.$फा.वि.)-खोज लगानेवाला, खोजी; गुप्तचर, जासूस।
सुरागऱसानी (तु.$फा.स्त्री.)-तलाश करना, खोज लगाना; गुप्तचर्या, जासूसी।
सुरागऱसी (तु.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुरागऱसानीÓ।
सुराबि$क (अ़.पु.)-बड़ा तम्बू, बड़ा ख़्ोमा; शामियाना, वितान।
सुरादि$कात (अ़.पु.)-'सुरादि$कÓ का बहु., बड़े-बड़े ख़ेमे, शामियाने।
सुराह (अ़.वि.)-सार, तत्त्व, ख़्ाुलासा; निष्कर्ष, निचोड़; अऱबी भाषा का एक शब्दकोश।
सुराही (अ़.स्त्री.)-पानी रखने का एक विशेष प्रकार का बना मिट्टी का पात्र, जल की कुम्भी।
सुराहीदार (अ़.$फा.वि.)-'सुराहीनुमाÓ।
सुराहीनुमा (अ़.$फा.वि.)-सुराही के आकार का, सुराही-जैसा।
सुरीं ($फा.स्त्री.)-'सुरीनÓ का लघु., दे.-'सुरीनÓ।
सुरीन ($फा.स्त्री.)-नितम्ब, उपस्थ, चूतड़।
सुरुब (अ़.पु.)-एक धातु, सीसा, सीसक, राँगा।
सुरूँ ($फा.स्त्री.)-दे.-'सुरूनÓ।
सुरूद ($फा.पु.)-गाना, नग़्मा; राग, गीत; एक बाजा।
सुरून ($फा.स्त्री.)-नितम्ब, उपस्थ, चूतड़, सुरीन।
सुरूर (अ़.पु.)-हलका नशा; हर्ष, ख़्ाुशी; आनन्द, लज़्ज़त।
सुरूरअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-नशा पैदा करनेवाला, मादक; हर्ष देनेवाला, हर्षवद्र्घक।
सुरूरअफ्ज़़ा (अ़.$फा.वि.)-आनन्द बढ़ानेवाला, हर्षवर्धक।
सुरूरख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुरूरअफ्ज़़ाÓ।
सुरूरपर्वर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुरूरअफ्ज़़ाÓ।
सुरूर$िफज़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुरूरअफ्ज़़ाÓ।
सुरूरे इबादत (अ़.पु.)-ईश्वर की आराधना का नशा, भजनानन्द।
सुरूरे $कल्ब (अ़.पु.)-हृदय का आनन्द, मन की ख़्ाुशी, चित्त-प्रसाद।
सुरूरे दाइमी (अ़.पु.)-स्थायी आनन्द, सदैव रहनेवाली ख़्ाुशी, हमेशा रहनेवाला नशा।
सुरैया (अ़.स्त्री.)-तीसरा नक्षत्र, कृत्तिका; कान में पहनने का झुमका; रौशनी का झाड़।
सुरैयाबाम (अ़.वि.)-जिसकी अटारी सुरैया जितनी ऊँची हो, जहाँ किसी की पहुँच न हो सके।
सुरोद ($फा.पु.)-गाना, गान; गीत।
सुरोदसंज ($फा.वि.)-गवैया, गायक, गानेवाला, गायन-कला में निपुण।
सुरोदी ($फा.वि.)-गायक, गवैया।
सुरोदे मस्ताँ ($फा.पु.)-नशे में चूर लोगों का गाना।
सुरोश ($फा.पु.)-देवदूत, $फरिश्ता, जिब्रील; प्रत्येक वह $फरिश्ता, जो अच्छी ख़्ाबर और शुभ-संदेश लाए।
सुरोशे गै़ब (अ़.$फा.पु.)-गै़बी $फरिश्ता, आकाशवाणी करनेवाला देवदूत।
सुअऱ्त (अ़.स्त्री.)-आतुरता, उतावलापन; तेज़ी, जल्दी, शीघ्रता; फुर्ती, चुस्ती।
सुअऱ्ते इंज़ाल (अ़.स्त्री.)-सहवास या सम्भोग के समय शीघ्र वीर्यपात हो जाने का रोग, शीघ्रपतन।
सुख्ऱ्ा: ($फा.वि.)-आँख में निकलनेवाली गुहाँजी।
सुख्ऱ्ा ($फा.वि.)-लाल रंग; लाल रँगा हुआ; घुँघची, एक रत्ती का वजऩ।
सुख्ऱ्ाअंदाम ($फा.वि.)-लाल रंग का, जिसका शरीर लाल हो, रक्तांग।
सुख्ऱ्ागूँ ($फा.वि.)-लाल रंग का, जिसका रंग लाल हो।
सुख्ऱ्ाच: ($फा.पु.)-ख़्ास्र: (ख़्ासरा), छोटी चेचक जो प्राय: छोटे बालकों को निकल आती है।
सुख्ऱ्ाचश्म ($फा.वि.)-जिसकी आँखें लाल हों, रक्ताक्षु।
सुख्ऱ्ापोश ($फा.वि.)-लाल कपड़े पहननेवाला, रक्ताम्बर।
सुख्ऱ्ापोशी ($फा.स्त्री.)-लाल कपड़े पहनना।
सुख्ऱ्ा$फाम ($फा.वि.)-जिसके शरीर का रंग लाल हो, रक्तांग।
सुख्ऱ्ाबाद: ($फा.पु.)-लाल दाने या दाग़, जो रक्त के प्रकोप से बच्चों के शरीर पर हो जाते हैं।
सुख्ऱ्ामू ($फा.वि.)-जिसके सिर और दाढ़ी के बाल लाल हों, रक्तकेशी।
सुख्ऱ्ारंग ($फा.वि.)-लाल रंगवाला, रक्तवर्ण।
सुख्ऱ्ारू ($फा.वि.)-सम्मानित, इज़्ज़त किया गया; स$फल, कामयाब। 'सुख्ऱ्ारू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बादÓ।
सुख्ऱ्ारूई ($फा.स्त्री.)-सम्मान, इज़्ज़त; सफलता, कामयाबी।
सुख्ऱ्ालब ($फा.वि.)-जिसके होंठ लाल हों; जो होंठ पान या लिपिस्टिक से लाल हों।
सुख्ऱ्ालबी ($फा.स्त्री.)-होंठों का लाल होना।
सुख्ऱ्ाब ($फा.पु.)-एक जलपक्षी, चकवा, जिसके लिए प्रसिद्घ है कि इनका जोड़ा रात में जुदा हो जाता है और दिन-भर साथ-साथ रहता है।
सुख्ऱ्िाए चश्म ($फा.स्त्री.)-आँख की लाली।
सुख्ऱ्िाए मै ($फा.स्त्री.)-शराब के रंग की ललाहट या लाली; शराब के नशे की लाली।
सुख्ऱ्िाए लब ($फा.स्त्री.)-होंठों की लाली।
सुख्ऱ्िाए शफ़क़ (अ़.$फा.स्त्री.)-उषा की लालिमा, सवेरे या शाम को (सूरज निकलते और डूबते समय) क्षितिज पर होनेवाली सुख्ऱ्ाी।
सुख्ऱ्ाी ($फा.वि.)-लाली, लालिमा।
सुर्ना ($फा.पु.)-'सूरनाएÓ का लघु., शहनाई जो विवाह-शादी शादी में बजाई जाती है।
सुर्नाची ($फा.वि.)-शहनाई बजानेवाला।
सु$र्फ: ($फा.पु.)-खाँसी, कास।
सु$िर्फद: ($फा.वि.)-खाँसनेवाला।
सु$र्फीद: ($फा.वि.)-जिसने खाँसा हो, खाँसा हुआ।
सुर्म: ($फा.पु.)-एक पत्थर, जो पीसकर आँखों में लगाया जाता है; आँखों पर लगाने की सूखी और बारीक पिसी हुई दवा, रसांजन। हिन्दी में 'सुरमाÓ प्रचलित।
सुर्म:आगीं ($फा.वि.)-सुर्मा लगी हुई आँख, अंजित, अंजनसार।
सुर्म:आलूद ($फा.वि.)-दे.-'सुर्म:आगींÓ।
सुर्म:आवाज़ ($फा.वि.)-जो बोल न सके।
सुर्म:ख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-जिसने सुर्म: खाया हो, जो बोल न सकता हो।
सुर्म:चश्म ($फा.वि.)-आँखों में सुर्मा लगाये हुए, अंजनसार।
सुर्म:चोब ($फा.स्त्री.)-सुर्मा लगाने की सलाई, अंजन, शलाका।
सुर्म:दरगुलू ($फा.वि.)-दे.-'सुर्म:ख़्ाुर्द:Ó।
सुर्म:दान ($फा.पु.)-सुर्मा रखने की शीशी आदि, सुर्मेदानी।
सुर्म:$फरोश ($फा.पु.)-सुर्मा बेचनेवाला, जो कई प्रकार के सुर्मे बनाकर बेचता हो।
सुर्म:सा ($फा.वि.)-सुर्मे की तरह बिलकुल बारीक पिसा हुआ; रेज़ा-रेज़ा, चूर-चूर।
सुर्म (अ़.पु.)-आँत का मुँह, जिससे मल निकलता है, मलद्वार।
सुर्मए चश्म ($फा.पु.)-आँखों में लगाने का सुर्मा।
सुर्मए दुंबाल:दार ($फा.पु.)-आँखों में लगा हुआ वह सुर्मा, जिसकी लकीर आँख से बाहर कनपटी की ओर तक बढ़ी हुई हो।
सुर्मगीं ($फा.वि.)-अंजित, अंजनसार, सुर्मा लगी हुई आँखें।
सुर्र: ($फा.स्त्री.)-नाभि, ना$फ, तुंडी, टुंडी। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सुर्र: (अ़.पु.)-थैली, रुपया-पैसा रखने की थैली; पोटली, छोटी पोटली। इसका 'सÓ उर्दू के 'सादÓ अक्षर से बना है।
सुर्र:बस्त: (अ़.$फा.वि.)-वह दवा, जो पोटली में बाँधकर औंटाई जाए।
सुलह$फात (अ़.पु.)-कछुआ, कूर्म, कच्छप।
सुलहा (अ़.पु.)-'सालेहÓ का बहु., संयमनिष्ठ और सदाचारी लोग।
सुला$क (अ़.पु.)-एक रोग, जिसमें पलकें लाल और भारी हो जाती हैं।
सुलामियात (अ़.पु.)-शरीर का वह स्थान जहाँ नाख़्ाून जमते हैं, नखस्थल।
सुलाल: (अ़.पु.)-किसी चीज़ से खींचा हुआ सार, निष्कर्ष, निचोड़; नवजात शिशु।
सुलालात (अ़.पु.)-'सुलाल:Ó का बहु., चीज़ों के निचोड़, सार-समूह; नवजात बच्चे, शिशुगण।
सुलस (अ़.वि.)-तृतीयांश, तीसरा हिस्सा, दे.-'सुल्सÓ, दोनों शुद्घ हैँ।
सुलूक (अ़.पु.)-रास्ता चलना; व्यवहार, तजऱ्ेअ़मल; $गरीबों और दुखियारों को रुपए-पैसे से सहायता; ईश्वर की खोज।
सुलूके नेक (अ़.$फा.पु.)-सद्-व्यवहार, अच्छा बरताव।
सुलूके बद (अ़.$फा.पु.)-कुव्यवहार, दुव्र्यवहार, बुरा बरताव।
सुलूज (अ़.पु.)-'सल्जÓ का बहु., 'ब$र्फ का समूहÓ; पाला पडऩा, तुषार पडऩा, ब$र्फबारी।
सुल्त (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ अनाज, जौ, यव।
सुल्तान (अ़.पु.)-शासक, नृप, राजा, बादशाह, नरेश।
सुल्तानी (अ़.स्त्री.)-शासन, राज, बादशाही।
सुल्$फ: (अ़.पु.)-नहारी, नाश्ता, सवेरे का हलका खाना, उपाहार, जलपान।
सुल्ब (अ़.पु.)-पीठ के गुरिए, अस्थि-शृखल; कड़ा, सख़्त; दे.-''सलबÓ; नुत्फ़:, वीर्य।
सुल्बी (अ़.वि.)-औरस, एक नुत्$फे से, सहोदर, ह$की$की।
सुल्बीय: (अ़.पु.)-आँख का सातवाँ पर्दा।
सुल्लम (अ़.पु.)-नि:श्रेणी, सोपान, सीढ़ी।
सुल्स (अ़.वि.)-तृतीयांश, तीसरा हिस्सा, दे.-'सुलुसÓ, वह भी शुद्घ है।
सुल्सुल (अ़.स्त्री.)-पंडुकी, $फाख़्त:; हौज़ का बचा हुआ पानी; घोड़े के माथे के बाल।
सुल्ह (अ़.स्त्री.)-मेल, मिलाप, आश्ती, मित्रता, दोस्ती, मैत्री; संधि, मुसालहत; दो व्यक्तियों में परस्पर विरोध के बाद आपस में मेल।
सुल्हकुल (अ़.वि.)-जो सबके साथ मैत्री-भाव रखे, जो किसी से झगड़ा न करे।
सुल्हख़्ाू (अ़.$फा.वि.)-जिसके स्वभाव में मेल-जोल से रहना हो।
सुल्हजू (अ़.$फा.वि.)-मेल-जोल से रहनेवाला, झगड़े-टंटे को नापसन्द करनेवाला।
सुल्हजूई (अ़.$फा.स्त्री.)-परस्पर मेल-जोल से रहना।
सुल्हदोस्त (अ़.$फा.वि.)-जो मेल-जोल पसन्द करनेवाला, शान्तिप्रिय।
सुल्हदोस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-शान्तिप्रियता, ेल-जोल से रहना पसन्द करना।
सुल्हपसन्द (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुल्हदोस्तÓ।
सुल्हपसन्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुल्हदोस्तीÓ।
सुल्हशिकन (अ़.$फा.वि.)-मेल-जोल को तोडऩेवाला; आपस में संधि को तोडऩेवाला।
सुल्हशिकनी (अ़.$फा.स्त्री.)-मेल-जोल को ख़्ात्म कर देना; परस्पर संधि के नियमों का उल्लंघन।
सुल्हसामाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुल्हदोस्तÓ।
सुल्हसामानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सुल्हदोस्तीÓ।
सुल्होजंग (अ़.$फा.स्त्री.)-युद्घ और संधि, लड़ाई और मेल-मिलाप।
सुवर (अ़.स्त्री.)-'सूरतÓ का बहु., सूरतें, शक्लें।
सुवाल (अ़.पु.)-दे.-'सवालÓ।
सुवैदा (अ़.वि.)-वह काला तिल, जो हृदय पर होता है।
सुस्त ($फा.वि.)-आलसी, काहिल; मंद, धीमा; जो फुर्तीला न हो, स्फूर्तिहीन; शिथिल, ढीला; अशक्त, कमज़ोर; जिसमें काम-शक्ति कम हो, मंदकाम; खिन्न, मलिन, अफ़्सुर्द:; मंदगति, धीरे चलनेवाला; दीर्घसूत्री, धीरे-धीरे काम करनेवाला।
सुस्तअ़ह्द (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुस्तपैमाँÓ।
सुस्तएÓति$काद (अ़.$फा.वि.)-जिसकी आस्था डग-मग हो, जिसका धर्म-विश्वास अटल न हो, जिसकी किसी विशेष महात्मा आदि में श्रद्घा न हो।
सुस्तएÓति$कादी (अ़.$फा.स्त्री.)-आस्था की कमी, धर्म-विश्वास का अभाव, अश्रद्घा।
सुस्त$कदम (अ़.$फा.वि.)-मंदगति, मंदगामी, धीरे-धीरे चलनेवाला।
सुस्त$कदमी (अ़.$फा.स्त्री.)-धीरे-धीरे चलना।
सुस्तगाम ($फा.वि.)-दे.-'सुस्त$कदमÓ।
सुस्तगामी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सुस्त$कदमीÓ।
सुस्तगो ($फा.वि.)-धीरे-धीरे बातें करनेवाला; बहुत धीरे-धीरे सोचकर शेÓर कहनेवाला।
सुस्ततब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-सुस्त, काहिल, आलसी, जिसके स्वभाव में सुस्ती या मंदता हो।
सुस्ततरीन ($फा.वि.)-सबसे अधिक धीमा; सबसे अधिक काहिल।
सुस्तदिमाग़ (अ़.$फा.वि.)-मंदबुद्घि, कमअ़क़्ल।
सुस्तपरवाज़ ($फा.वि.)-धीरे-धीरे उडऩेवाला, कम उडऩेवाला।
सुस्तपैमाँ ($फा.वि.)-मंदप्रतिज्ञ, वादे का कच्चा, वादा करके न निभानेवाला।
सुस्तबुन्याद ($फा.वि.)-जिसकी नींव या बुनियाद कमज़ोर हो।
सुस्तरफ़्तार ($फा.वि.)-दे.-'सुस्त$कदमÓ।
सुस्तरफ़्तारी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सुस्त$कदमीÓ।
सुस्तरवी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सुस्त$कदमीÓ।
सुस्तराए (अ़.$फा.वि.)-जिसकी राय या सलाह ठीक न होती हो; जिसकी बुद्घि कमज़ोर हो, मंदबुद्घि।
सुस्तरीश ($फा.वि.)-मूर्ख, मूढ़, अज्ञानी, अहम$क।
सुस्तरौ ($फा.वि.)-दे.-'सुस्त$कदमÓ।
सुस्त व$फा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सुस्तपैमाँÓ।
सुस्ती ($फा.स्त्री.)-फुर्ती का अभाव, अस्फूर्ति; आलस्य, काहिली; शिथिलता, ढीलापन; कामशक्ति की मंदता; दीर्घसूत्रिता, काम धीरे-धीरे करना।
सुहा ($फा.पु.)-एक बहुत छोटा तारा, जो सप्तर्षि-मण्डल के तीन तारों में से बीच का है।
सुहाम (अ़.पु.)-अंधकार, अँधेरा; रूप-विकार, चेहरे का ख़्ाराब हो जाना; दुबला हो जाना, क्षीण हो जाना।
सुहूबत (अ़.स्त्री.)-पीलाहट लिये हुए लाल रंग; गुलाबी रंग; कालापन लिये हुए लाल रंग; वह रंग, जो लाल बालों का होता है।
सुहूलत (अ़.स्त्री.)-सुगमता, सरलता, आसानी, हिन्दी में 'सहूलियतÓ प्रचलित।
सुहैब (अ़.पु.)-एक सिहाबी, जो रूम में आकर मुसलमान हुए थे।
सुहैल (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ तारा, जो यमन देश में दिखाई देता है, उसके प्रभाव से चमड़े में सुगन्ध पैदा होती है और कीड़े मर जाते हैं।
सुह्बत (अ़.स्त्री.)-संगत, पास बैठना; मित्रता, दोस्ती; गोष्ठि, छोटी मह$िफल; सहवास, मैथुन, सम्भोग, हमबिस्तरी। 'हिन्दी में 'सोहबतÓ प्रचलित।
सुह्बतदारी (अ़.$फा.स्त्री.)-सम्भोग, सहवास, मैथुन, हमबिस्तरी।
सुह्बते तालेह (अ़.स्त्री.)-कुसंग, बुरी संगत, दुष्टजनों की सोहबत।
सुह्बते सालेह (अ़.स्त्री.)-अच्छे लोगों की संगत, सत्संग, अच्छी सोहबत।
सुह्रï (अ़.पु.)-अनिद्रा नामक एक रोग, जिसमें नींद उड़ जाती है।
सुह्रïवर्दी ($फा.वि.)-सुह्रïवर्द (इरा$क) का निवासी।
सुह्रïाब ($फा.पु.)-रुस्तम का वह लड़का, जिसे रऊस्तम में अनजाने में मार दिया था और बाद में पहचानकर बहुत पश्चात्ताप किया।
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