Thursday, October 15, 2015

भू

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भूँकना (हि.क्रि.)-कुत्ते आदि का 'भूँ-भूँÓ या 'भों-भोंÓ शब्द करना; व्यर्थ बकना।
भू (सं.स्त्री.)-पृथ्वी; स्थान, जगह।
भूकंप (हि.सं.पु.)-कुछ प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी के भीतरी भाग में कुछ उथल-पुल होने से ऊपरी भाग का सहसा हिल उठना, भूचाल, भूडोल, जलजला।
भूख (हि.स्त्री.)-शरीर का वह वेग जिसमें खाने की इच्छा हो, क्षुधा; आवश्यकता, ज़रूरत; समाई, गुंजाइश; इच्छा, कामना, अभिलाषा।
भूखा (हि.वि.)-क्षुधित, जिसे भूख लगी हो; किसी बात का अभिलाषी, इच्छुक; दरिद्र, $गरीब।
भूगोल (सं.पु.)-पृथ्वी; वह शास्त्र जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी तथा उसके प्राकृतिक विभागों, जैसे-'पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, सड़क, वनÓ आदि का ज्ञान होता है; वह ग्रन्थ जिसमें प्रथ्वी के ऊपरी स्वरूप तथा प्राकृतिक विभागों आदि का विवेचन तथा वर्णन होता है।
भूचर (सं.पु.)-भूमि पर रहनेवाले प्राणी; तंत्र के अनुसार एक प्रकार की सिद्घि; शिव; दीमक।
भूड़ (हि.स्त्री.)-वह भूमि जिसमें बालू मिला होता है; कुएँ का सोत या स्रोत।
भूत (हि.पु.)-वे मूलद्रव्य जिनकी सहायता से सृष्टि की रचना हुई है; सृष्टि का कोई जड़ या चेतन, अचर अथवा चर पदार्थ या प्राणी; जीव, प्राणी; सत्य; वृत्त; कार्तिकेय; कृष्णपक्ष; योगीन्द्र; प्रेतों और पिशाचों का उपद्रव शान्त करनेवाली एक औषधि; बीता हुआ समय; मृत शरीर, शव; मृत प्राणी की आत्मा; एक प्रकार का पिशाच या देव जो रुद्र के अनुचर हैं, यह बच्चों को पीड़ा देनेवाले ग्रह कहे जाते हैं; वे कल्पित आत्माएँ जिनके विषय में यह माना जाता है कि वे नाना प्रकार के उपद्रव करते और लोगों को कष्ट पहुँचाते हैं, प्रेत, जिन, शैतान; व्याकरण में क्रिया का वह रूप जो किसी कार्य अथवा व्यापार के समाप्त हो चुकने का सूचक हो।
भूतख़्ााना (हि.उ.पु.)-बहुत मैला-कुचैला और अँधेरा घर।
भूतल (हि.सं.पु.)-पृथ्वी का ऊपरी तल या भाग, धरातल; संसार, दुनिया।
भूतिनी (हि.स्त्री.)-भूतयोनि की स्त्री, शाकिनी, डाकनी आदि।
भूतेश (सं.पु.)-परमेश्वर, शिव, महादेव।
भूनना (हि.क्रि.)-आग पर रखकर या डालकर पकाना; गरम बालू में डालकर पकाना; तलना; बहुत अधिक कष्ट देना।
भूप (हि.सं.पु.)-नृप, राजा, नरेश, बादशाह।
भूपद (हि.सं.पु.)-पेड़, वृक्ष।
भूमि (हि.सं.स्त्री.)-पृथ्वीतल के ऊपर का वह ठोस भाग जिस पर नदी-नाले, वन, पर्वत आदि हैं और जिस पर हम लोग रहते तथा कृषि-कार्य एवं उद्योग-धन्धे करते हैं, ज़मीन।
भूमिका (सं.स्त्री.)-रचना; किसी ग्रन्थ के आरम्भ का वह वक्तव्य जिससे उस ग्रन्थ की ज्ञातव्य बातों का पता चलता है, मुखबन्ध; वह आधार जिस पर कोई दूसरी वस्तु खड़ी की जाए, पृष्ठभूमि; नाटक आदि में किसी पात्र का अभिनय; वेदान्त के अनुसार चित्त की पाँच अवस्थाएँ जिनें नाम इस प्रकार हैं-क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्घ; (हि.स्त्री.)-धरा, पृथ्वी, ज़मीन।
भूरा (हि.पु.)-मिट्टी की तरह का रंग, मटमैला रंग, भूमिल रंग; गोरा, यूरोपीयन; कबूतर की एक नस्ल या जाति; चीनी, कच्ची चीनी। (वि.)-मिट्टी के रंग का, ख़्ााकी।
भूल (हि.स्त्री.)-भूलने का भाव; $गलती, चूक; ऐब, दोष, अपराध; अशुद्घि।
भूलना (हि.क्रि.सक.)-याद न रखना, विस्मृत करना; $गलती करना; खो देना; (क्रि.अक.)-याद न रहना; $गलती होना; धोखे में आना; अनुरक्त होना, लुभाना; घमण्ड में होना, इतराना; गुम होना, खो जाना।
भूल-भुलैयाँ (हि.स्त्री.)-वह घुमावदार वास्तु-रचना जिसमें आदमी इस प्रकार भूल जाता है कि जल्दी ठिकाने पर नहीं पहुँच पाता; रेखाओं आदि की बनाई हुई इस प्रकार की आकृति; चाबुक।
भूलोक (सं.पु.)-दुनिया, संसार, मृत्युलोक।
भूशय्या (सं.स्त्री.)-ज़मीन पर सोना; शयन करने की भूमि।
भूशायी (सं.हि.वि.)-पृथ्वी या ज़मीन पर सोनेवाला; ज़मीन पर गिरा हुआ; मृतक, मरा हुआ।
भूषण (सं.हि.पु.)-अलंकार, आभूषण, गहना; वह जिससे किसी वस्तु की शोभा बढ़ती है; विष्णु।
भूषित (सं.हि.वि.)-आभूषण धारण किये हुए, गहना पहने हुए, अलंकृत; सजाया या सँवारा हुआ, सज्जित।
भूसा (हि.पु.)-अनाज के पौधों के डण्ठलों का महीन चूरा, तुष, भुस।
भूसी (हि.स्त्री.)-भूसा, अनाज आदि के ऊपर का छिलका।

2 comments:

  1. आदरणीय....बेहद ही महत्वपूर्ण है आपका शब्दकोष ... मुझ जैसे लोगों की जानकारी के लिए.... जो लफ्ज़ लिखते बोलते तो हैं पर सहीह लफ्ज़ क्या उसका नहीं पता.... एक बात आपसे और पूछना चाहता हूँ ... कुछ लफ़्ज़ों के साथ इजाफ़ात प्रयोग होते है जैसे... 'गम-ए-दिल' में 'ए' वो कौन कौन से है... ऐसी जानकारी आप सांझा कर सकें तो बहुत बहुत आभार होगा आपका.... कोटिश आभार आदरणीय आपका....

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  2. wish , u could give facility to find the translation of words from hindi to urdu in devnagri script.

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