Thursday, October 15, 2015

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बंग ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ मादक बूटी, भंग, भाँग, विजया।
बंगनोश ($फा.$वि.)-भंगड़, भाँग पीनेवाला, भँगैड़ी।
बंग$फरोश ($फा.पु.)-भाँग बेचनेवाला, भंग का ठेकेदार।
बंगर: ($फा.स्त्री.)-लोरी।
बंगश ($फा.पु.)-कश्मीर के पास का स्थान, बंगश का निवासी।
बंगिश ($फा.पु.)-पठानों की एक जाति-विशेष।
बंगी ($फा.$वि.)-भंगड़, भाँग पीनेवाला, भँगैड़ी।
बंज (अ.स्त्री.)-अजवाइन ख़्ाुरासानी, एक दवा।
बंद: ($फा.पु.)-मनुष्य, आदमी; भक्त, $िफदाई; आज्ञाकारी; उपासक, इबादत करनेवाला; दास, $गुलाम; अधीन; वशीभूत, ताबेÓ। (नम्रता प्रदर्शित करने के लिए वक्ता इस शब्द का अपने लिए भी प्रयोग करता है)।
बंद:ज़ाद: ($फा.पु.)-अपना लड़का (बड़े आदमी से अपने लड़के के लिए कहते हैं)।
बंद:नवाज़ ($फा.वि.)-भक्त-वत्सल, अपने सेवकों और भक्तों पर दया करनेवाला।
बंद:नवाज़ी ($फा.स्त्री.)-भक्त-वत्सलता, अपने सेवकों और भक्तों पर कृपादृष्टि।
बंद:पर्वर ($फा.वि.)-दे.-'बंद:नवाज़Ó।
बंद:पर्वरी ($फा.स्त्री.)-दे.-'बंद:नवाज़ीÓ।
बंद ($फा.पु.)-अंग का जोड़; कारावास, कै़द; फन्दा, पाश; मेंड़, पुश्ता; पेच, दाँव; रोक, रुकावट; गाँठ, गिरीह, ग्रन्थि; बन्द किया हुआ; ढाँका हुआ; उर्दू शाइरी में 'मुसद्दसÓ (कविता की एक $िकस्म, जिसमें चार पंक्तियाँ एक तुक और दो पंक्तियाँ दूसरे तुक में होती हैं, ये छह पंक्तियाँ मिलकर एक बंद कहलाती हैं और बहुत से बंदों का समूह 'मुसद्दसÓ होता है) या 'मुख़्ाम्मसÓ (वह कविता जिसमें हर बंद में पाँच-छह मिस्रे हों) की एक कड़ी जिसमें पाँच अथवा छह मिस्रे होते हैं; 'तर्कीबबंदÓ या 'तर्जीअ़बंदÓ का एक भाग जिसमें कई शेÓर होते हैं (कविता का प्रकार जिसमें अनेक कडिय़ा होती हैं, प्रत्येक कड़ी अलग-अलग अंत्यानुप्रास में होती है और हर कड़ी की समाप्ति पर एक नया शेÓर लगाते हैं जो अलग अंत्यानुप्रास के बादवाले शब्द का होता है। इसमें और 'तर्जीअ़बंदÓ में यही अन्तर है कि उसमें टीप का शेÓर एक ही होता है जो बार-बार आता है और इसमें टीप के सब शेÓर अलग-अलग होते हैं); (प्रत्य.)-बँधा, जैसे-पाबंदÓ-जिसके पाँव बँधे हों; बाँधनेवाला, जैसे-'नालबंदÓ-नाल बाँधनेवाला।
बंदए आज़ाद ($फा.पु.)-वह सेवक जो सेवा-मुक्त कर दिया गया हो।
बंदए अ़ाजिज़ (अ.$फा.पु.)-बहुत ही विनीत और विनम्र सेवक (नम्रता प्रदर्शित करने के लिए वक्ता इस शब्द का प्रयोग अपने लिए करता है)।
बंदए इश्$क (अ.$फा.पु.)-प्रेम का बंदा, प्रेमिका अथवा प्रेयसी का भक्त।
बंदए ख़्ाुदा ($फा.पु.)-ईश्वर का बंदा, ईश्वर का उपासक; आदमी, व्यक्ति, मनुष्य, इंसान।
बंदए जऱ ($फा.पु.)-लक्ष्मी-पूजक, धन का बंदा, धन का पुजारी, धनोपासक।
बंदए दरगाह ($फा.पु.)-किसी महान् व्यक्ति का परम भक्त।
बंदए दिरम ($फा.पु.)-दे.-'बंदए जऱÓ।
बंदए नाचीज़ ($फा.पु.)-दे.-'बंदए अ़ाजिज़Ó।
बंदए बेजऱ ($फा.पु.)-ऐसा दास या $गुलाम जो ख़्ारीदा न गया हो, बिना ख़्ारीदे ही दास बन गया हो।
बंदए बेदाम ($फा.पु.)-वह व्यक्ति जो परम भक्त हो अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो बिना फन्दे और जाल के ही प्रेमपाश में बँधा हो।
बंदए मिस्कीं (अ.$फा.पु.)-दे.-'बंदए अ़ाजिज़Ó।
बंदए मुख़्िलस (अ.$फा.पु.)-ऐसा भक्त जो बहुत-ही श्रद्घा-पूर्वक सेवा करे।
बंदए शिकम ($फा.पु.)-पेट का बंदा, पेट का कुत्ता, पेटू, भोजनभट्ट; उदर-कृमि, पेट के कीड़े।
बंदए हल्$क:बगोश (अ.$फा.पु.)-कुण्डलित दास, ऐसा दास या $गुलाम जिसके कानों में कुण्डल पड़ा हो।
बंदगी ($फा.स्त्री.)-दासता, $गुलामी; प्रणाम, सलाम; उपेक्षा, इज्तिनाब; विनम्रता; आज्ञापालन; पूजा, उपासना, इबादत।
बंद बंद ($फा.पु.)-शरीर का एक-एक जोड़।
बंदर (अ.पु.)-बंदरगाह, पोर्ट, समुद्रतट, साहिल।
बंदिश ($फा.स्त्री.)-प्रतिबंध, मनाही; रोक, रुकावट; बनावट, साख़्त; बाँधने का काम; ग्रंथि, गाँठ, गिरिह; षड्यंत्र, साजि़श; पेशबंदी, पुरश्चरण।
बंदिशे अल्$फाज़ (अ.$फा.स्त्री.)-गद्य या पद्य में शब्दों का यथास्थान तथा शुद्घ और चमत्कारपूर्ण विन्यास।
बंदिशे इबारत (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बंदिशे अल्$फाज़Ó।
बंदिशे मज़्मून (अ.$फा.स्त्री.)-किसी प्रबन्ध, विषय या मज़्मून का नैसर्गिक मन को अच्छा लगनेवाला बयान।
बंदी ($फा.$वि.)-कै़दी, कारावासी।
बंदीख़्ाान: ($फा.पु.)-कारावास, कै़दख़्ाान:।
बंदू$क (अ.स्त्री.)-शतघ्नी, गोली चलाने का एक प्रसिद्घ यंत्र।
बंदू$कची (अ.$फा.पु.)-बंदू$क चलानेवाला, निशानवी, निशान:बाज़, लक्ष्यभेदी।
बंदू$कसाज़ (अ.$फा.पु.)-बंदू$कों की मरम्मत करनेवाला; बंदू$क बनानेवाला।
बंदे $कबा (अ.$फा.पु.)-कुर्ते या $कमीज़ की घुण्डी अथवा बटन; चोली की घुण्डी अथवा हुक।
बंदे $गम (अ.$फा.पु.)-दु:ख का जाल अथवा फन्दा; प्रेमपाश।
बंदे दस्त ($फा.पु.)-पहुँचा, हाथ और कलाई के बीच का जोड़।
बंदे दाम ($फा.पु.)-जाल का फंदा।
बंदे नि$काब (अ.$फा.पु.)-बु$र्के की गिरिह।
बंदोकुशाद ($फा.पु.)-खोलना और बंद करना, अर्थात् प्रबन्ध, व्यवस्था, इंतिज़ाम।
बंदोबस्त ($फा.पु.)-प्रबन्ध, व्यवस्था, इंतिज़ाम; कृषि-भूमि अथवा खेतों की हदबंदी, उनकी मालगुज़ारी का निर्णय और उनके नम्बर आदि की व्यवस्था जो नए सिरे से हो।
बंदोबस्ते अ़ारिज़ी (अ.$फा.पु.)-अस्थायी व्यवस्था; कृषि-सम्बन्धी वह व्यवस्था जो कुछ वर्षों के लिए हो, स्थायी न हो।
बंदोबस्ते इस्तिम्रारी (अ.$फा.पु.)-दे.-'बंदोबस्ते दवामीÓ।
बंदोबस्ते दवामी (अ.$फा.पु.)-स्थायी व्यवस्था; खेतों और ज़मीनों की वह व्यवस्था जो एक बार हो जाए और फिर कभी न बदले।
ब अक़्सात (अ.$फा.अव्य.)-$िकस्तों में करके, थोड़ा-थोड़ा करके, कई बार में।
ब अदब (अ.$फा.अव्य.)-आदरपूर्वक, नम्रता और सम्मान के साथ।
ब अल्$फाज़े दीगर (अ.$फा.अव्य.)-दूसरे शब्दों में, दूसरे प्रकार से, दूसरी तरह से।
ब अह्सने वुजूह (अ.$फा.अव्य.)-सुन्दर तरीके से, बहुत अच्छे प्रकार से।
ब आज़ादी ($फा.अव्य.)-आज़ादी से, खुले रूप से, स्वतंत्रता से।
ब आबोताब ($फा.अव्य.)-शानो-शौकत के साथ, चमक-दमक के साथ।
ब आराम ($फा.अव्य.)-आराम से , इत्मीनान से, सुख-चैन से; सरलता से, सुगमता से।
ब आसाइश ($फा.अव्य.)-दे.-'ब आरामÓ।
ब आसानी ($फा.अव्य.)-सुगमतापूर्वक, सरलता से, आसानी से।
ब आसूदगी ($फा.अव्य.)-आराम से, सुगमता से; सुख-चैन से, ऐशो-आराम से।
ब इख़्ितयारे ख़्ाुद ($फा.अव्य.)-स्वाधिकार से, अपने स्वयं के अधिकार से।
ब इख़्ितसार (अ.$फा.अव्य.)-संक्षेप में, संक्षिप्त रूप में।
ब इज़्ज़तो एहतिराम (अ.$फा.अव्य.)-पूरे सम्मान के साथ, पूरे आदर-सत्कार सहित, पूर्ण प्रतिष्ठा तथा सम्मान सहित।
ब इत्ति$फा$के राय (अ.$फा.अव्य.)-सर्वसम्मति से, सबकी सहमति से।
ब इत्मीनान (अ.$फा.अव्य.)-दे.-'ब आरामÓ।
ब इफ्ऱात (अ.$फा.अव्य.)-अत्यधिक, बहुत जिय़ादा, ज़रूरत और आवश्यकता से अधिक।
ब इवज़ (अ.$फा.अव्य.)-बदले में, इवज़ में, ऐवज़ में।
बईर (अ.पु.)-ऊँट, उष्ट्र।
ब उज्लत (अ.$फा.अव्य.)-तुरंत, जल्दी से, शीघ्रतापूर्वक।
ब एहतियात (अ.$फा.अव्य.)-बहुत ध्यान से, सावधानीपूर्वक, एहतियात के साथ।
ब $कद्र (अ.$फा.अव्य.)-अनुसार, मुताबिक; मात्रा में, मिक़्दार में।
ब$कद्रे ज़$र्फ (अ.$फा.अव्य.)-जितनी योग्यता हो उतनी; जितना सामथ्र्य हो उतना; जितना बर्तन हो उतना; जितनी रजाई हो उतना।
ब$कद्रे ज़रूरत (अ.$फा.अव्य.)-जितनी ज़रूरत हो उतनी, जितनी आवश्यकता हो उतनी।
ब$कद्रे वुस्अ़त (अ.$फा.अव्य.)-जितना सामथ्र्य हो उतना; जितनी समाई हो उतनी।
ब$कद्रे शौ$क (अ.$फा.अव्य.)-जितनी चाहत हो उतनी, जितनी अभिलाषा हो उतनी।
ब$कद्रे हैसियत (अ.$फा.अव्य.)-जितना धन हो उतना; जितना सामथ्र्य हो उतना; जितनी हैसियत हो उतनी; जितना ज्ञान हो उतना।
ब$कद्रे हौसल: (अ.$फा.अव्य.)-जितना साहस हो उतना।
ब$कर: (अ.स्त्री.)-एक गाय; एक बैल।
ब$कर (अ.पु.)-गाय, गौ; वृषभ, बैल।
ब$कर: ईद (अ.स्त्री.)-मुसलमानों की वह ईद जो ज़ीहिज्जा की दसवीं तारीख़्ा को होती है।
ब कराहत (अ.$फा.अव्य.)-घिन अथवा घृणा से, नफ्ऱत के साथ; विवशता से, मजबूरी से, जी न चाहने पर भी।
ब कर्रो$फर (अ.$फा.अव्य.)-चकाचौंध सहित, तड़क-भड़क के साथ।
ब $कलमे ख़्ाुद (अ.$फा.अव्य.)-अपने $कलम से, स्वयं अपने हाथ की लिखावट से।
ब$का (अ.स्त्री.)-हमेशगी, नित्यता, अमरता, अनश्वरता, दवाम; अस्तित्व, वुजूद; जीवन, जि़न्दगी; रक्षा, हि$फाज़त; सलामती।
ब$काए दवाम (अ.स्त्री.)-हमेशगी, नित्यता, अनश्वरता।
ब$काए सालिह (अ.स्त्री.)-अच्छी चीज़ का बा$की रहना।
ब$काय: (अ.पु.)-बचा हुआ, शेष, बा$की; बची हुई र$कम, शेष राशि, रोकड़; ख़्ार्च से बची हुई र$कम।
बकारत (अ.स्त्री.)-कौमार्य, कुँआरापन; योनि-पटल का भग्न न होना, अक्षतत्व, अक्षत योनि। (विशेष-यह शब्द 'बिकारतÓ या 'बुकारतÓ नहीं है)।
बकावल (तु.पु.)-राजसी रसोईघर का अध्यक्ष, शाही रसोई का प्रधान। दे.-'बुकावुलÓ, दोनों शुद्घ हैं।
बकीय: (अ.स्त्री.)-वह स्त्री जो हर समय बात-बात पर रोती-धोती रहती है, रोनी वाली स्त्री, विलाप करनेवाली स्त्री।
ब$कीय: (अ.पु.)-बचा-खुचा।
ब$कीयतुस्सै$फ (अ.पु.)-सेना का वह भाग जो युद्घ के बाद बच जाए।
ब कै़दे हयात (अ.$फा.अव्य.)-जि़ंदा, जीवित, जीवन-जाल में बँधा हुआ, जीवन-पाश में आबद्घ।
ब $कौले शख़्से (अ.$फा.अव्य.)-किसी व्यक्ति-विशेष के कहे अनुसार।
बक़्$काल (अ.पु.)-कुँजड़ा, सब्ज़ी बेचनेवाला; आटा-दाल बेचनेवाला, परचूनिया; बनिया, वणिक्।
बक्तर ($फा.पु.)-रक्षा-कवच, कवच, जि़रिह।
बक्तरगर ($फा.पु.)-कवच-निर्माता, कवच बनानेवाला।
बक्तरपोश ($फा.वि.)-कवचधारी, कवच पहने हुए।
बक्तरबंद ($फा.वि.)-कवच पहने हुए, कवचधारी; बक्तर अथवा कवचवाली गाडिय़ाँ आदि।
बक्तरसाज़ ($फा.वि.)-दे.-'बक्तरगरÓ।
बक्ऱात (अ.पु.)-एक प्रसिद्घ यूनानी वैज्ञानिक जो हज्ऱत ईसा से 460 वर्ष पूर्व पैदा हुआ था।
बख़्ाील (अ.पु.)-कंजूस, कृपण, बद्घमुष्ठि, तद्घन, व्ययकुंठ।
बख़्ाीली (अ.स्त्री.)-कंजूसी, कृपणता, व्ययकुंठता, तद्घनता।
बख़्ाुदा ($फा.अव्य.)-ईश्वर के वास्ते, ईश्वर के लिए, ख़्ाुदा के लिए; ईश्वर की सौगन्ध, ख़्ाुदा की $कसम।
ब ख़्ाुशी ($फा.अव्य.)-सहर्ष, प्रसन्नतापूर्वक, ख़्ाुशी के साथ।
ब ख़्ाूबी ($फा.अव्य.)-पूर्ण रूप से, पूर्णतया, पूर्णत:।
बख़्ाूर (अ.पु.)-धूनी; धूप-लोबान आदि सुलगाकर उसकी सुगन्ध फैलाना; दवाओं की धूनी लेना।
बख़्ाूरदान (अ.$फा.पु.)-वह पात्र जिसमें धूप आदि सुलगाई जाए, धूपदानी, ऊददानी।
ब ख़्ौर (अ.$फा.अव्य.)-सकुशल, अच्छी तरह; स्वस्थ, तन्दुरुस्त।
ब ख़्ौरोअ़ा$िफयत (अ.$फा.अव्य.)-आनन्द-सहित, आनन्द-पूर्वक, कुशलतापूर्वक।
ब ख़्ौरोख़्ाूबी (अ.$फा.अव्य.)-कुशलतापूर्वक, बहुत अच्छी तरह से, आनन्दपूर्वक।
बख़्त ($फा.पु.)-$िकस्मत, भाग्य, प्रारब्ध, नसीब, दैव, अदृश्य, अदृष्ट।
बख़्तआज़माई ($फा.स्त्री.)-भाग्य-परीक्षा, यह देखना कि अमुक काम में भाग्य साथ देता है या नहीं अर्थात् अपेक्षित कार्य होता है या नहीं।
बख़्तआवर ($फा.वि.)-दे.-'बख़्तावरÓ।
बख़्तबरगश्त: ($फा.वि.)-अभागा, हत्भाग्य, जिसका भाग्य उसके विरुद्घ हो, नसीब जिसका साथ न दे।
बख़्तयार ($फा.वि.)-सौभाग्यशाली, जिसका भाग्य उसका मित्र हो।
बख़्तवर ($फा.वि.)-भाग्यवान्, $िकस्मतवाला, सौभाग्यशाली, ख़्ाुशनसीब, प्रारब्धी।
बख़्तवरी ($फा.स्त्री.)-ख़्ाुशनसीबी, भाग्यशीलता, $िकस्मत की अच्छाई।
बख़्तावर ($फा.वि.)-भाग्यवान्, भाग्यशाली, जिसका नसीब अच्छा हो, ख़्ाुशनसीब, अच्छी $िकस्मतवाला।
बख़्ते ख़्ाुफ़्त: ($फा.वि.)-सोता हुआ नसीब, सोया हुआ भाग्य, अभागापन, बदनसीबी।
बख़्ते जवाँ ($फा.पु.)-जो भाग्य उन्नतिशील व समृद्घिवान् हो।
बख़्ते तीर: ($फा.पु.)-दुर्भाग्य, अँधेरी $िकस्मत, बदनसीबी।
बख़्ते ना $फर्जाम ($फा.पु.)-दुर्भाग्य, खोटी $िकस्मत।
बख़्ते नारसा ($फा.पु.)-अपूर्ण भाग्य, अधूरी $िकस्मत।
बख़्ते नासाजग़ार ($फा.पु.)-प्रतिकूल भाग्य, बुरा नसीब, उलटी $िकस्मत।
बख़्ते बरगश्त: ($फा.पु.)-फिरा हुआ नसीब, विरुद्घ और प्रतिकूल भाग्य।
बख़्ते बलंद ($फा.पु.)-सौभाग्य, ऊँचा नसीब।
बख़्ते बेदार ($फा.पु.)-उन्नतिशील भाग्य, जागा हुआ नसीब।
बख़्ते रसा ($फा.पु.)-अच्छा और भरपूर नसीब, सौभाग्य।
बख़्ते सब्ज़ ($फा.पु.)-अच्छा नसीब, सौभाग्य।
बख़्तोइत्ति$फा$क (अ.$फा.पु.)-भाग्य और दैवयोग।
बख्य़: ($फा.पु.)-एक प्रकार की मज़बूत सिलाई।
बख्य़:गर ($फा.वि.)-बख्य़: करनेवाला, सीनेवाला।
बख्य़:गरी ($फा.स्त्री.)-बख्य़: करना, सीना।
बख़्श ($फा.पु.)-अंश, खण्ड, जुज़; भाग, हिस्सा; (प्रत्य.)-देनेवाला, जैसे-'जाँबख़्शÓ-प्राण प्रउदान करनेवाला। बख़्शनेवाला, जैसे-'ख़्ाताबख़्शÓ-अपराध क्षमा करनेवाला।
बख़्शाइश ($फा.स्त्री.)-मोक्ष, मुक्ति, बख़्िशश।
बख़्िशंद: ($फा.वि.)-बख़्शनेवाला, देनेवाला, दाता; मोक्ष प्रदान करनेवाला।
बख़्िशश ($फा.स्त्री.)-दान, ख़्ौरात; पुरस्कार, इन्अ़ाम; मदद, अनुदान, अ़तीय:; देना, प्रदान करना।
बख़्िशशनाम: ($फा.पु.)-दानपत्र, वह का$गज़ जिसमें कुछ प्रदान करने के सम्बन्ध में लिखा-पढ़ी हो।
बख़्शी ($फा.पु.)-सैनिकों को वेतन बाँटनेवाला; $कस्बों में टैक्स उगाहनेवाला।
बख़्शीद: ($फा.वि.)-बख़्शा हुआ, दिया हुआ, प्रदान किया हुआ; मोक्ष दिया हुआ; क्षमा किया हुआ।
बख़्शूद: ($फा.वि.)-बख़्शा हुआ, दिया हुआ, प्रदान किया हुआ।
ब$गल ($फा.स्त्री.)-कुक्षि, काँख; पाश्र्व, पहलू; तट, छोर, किनारा; एक ओर, एक तर$फ; कुर्ते आदि में ब$गल के नीचे लगनेवाला कुर्ता।
ब$गलगीर ($फा.वि.)-पाश्र्ववर्ती, पाश्र्वस्थ; आलिंगत, जो गले मिला हो, जो लिपटा हो।
ब$गलगीरी ($फा.स्त्री.)-निकटता, समीपता; कुश्ती का एक दाँव।
ब$गली ($फा.वि.)-ब$गल से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु; ब$गल का; $कब्र का वह गड्ढ़ा जो ज़मीन काटकर एक पहलू में बनाते हैं; कुश्ती का एक दाँव।
ब$गावत (अ.स्त्री.)-द्रोह, सरकशी; सैनय-द्रोह, $फौजी ग़द्र; अशान्ति, बदअम्नी; अवज्ञा, हुक्मउदूली।
ब$गी (अ.वि.)-उद्दण्ड, सरकश; अवज्ञाकारी, ना$फर्मान।
ब$गीय: (अ.स्त्री.)-आज्ञा न माननेवाली स्त्री।
ब$गैर (अ.$फा.अव्य.)-बिना, बिन, बे।
ब$गौर (अ.$फा.अव्य.)-ध्यान से, $गौर से, समीक्षापूर्वक।
बग़्ततन (अ.अव्य.)-आकस्मिक, अचानक, सहसा।
बग़्दाद ($फा.पु.)-इरा$क की राजधानी, एक प्रसिद्घ और प्राचीन नगर।
बग़्दी (अ.पु.)-एक अच्छी नस्ल का ऊँट।
बग़्ब$गा (अ.पु.)-ठोढ़ी के नीचे वह बल जो मोटापे के कारण पड़ जाता है।
बग़्ब$गाना (उ.पु.)-मस्त होना (अक्सर कबूतर के मस्ती में बोलने को कहते हैं)।
बग्ऱा ($फा.पु.)-नर सुअर।
बग़्ल (अ.पु.)-खच्चर, अश्वतर।
बग़्लक ($फा.स्त्री.)-ब$गल में होनेवाला एक फोड़ा, कखौरी।
बच: ($फा.पु.)-दे.-'बच्च:Ó, दोनों शुद्घ हैं, उर्दू में 'बच्च:Ó ही प्रचलित है।
ब चश्मे अश्कबार (फ़ा.अव्य.)-आँसू बरसाती हुई आँखों के साथ, रोती हुई आँखों के साथ, सजल नेत्रों से अर्थात् रोते हुए।
ब चश्मे तर ($फा.अव्य.)-भीगी हुई आँखों के साथ, सजल नेत्रों से अर्थात् आँखों में आँसू भरे हुए।
ब चश्मे नम ($फा.अव्य.)-दे.-'ब चश्मे तरÓ।
बच्च: ($फा.पु.)-बालक, शिशु; छोकरा, लड़का; पुत्र, बेटा; अवयस्क, नाबालि$ग; नासमझ, अबोध; प्रत्येक प्राणी का शिशु।
बच्च:कश ($फा.स्त्री.)-बहुप्रसूता, वह स्त्री जो अनेक बच्चों की माँ हो।
बच्च:कुशी ($फा.स्त्री.)-बाल-हत्या, शिशु का $कत्ल।
बच्च:दान ($फा.पु.)-बच्चादानी, गर्भाशय, रहिम।
बच्च:बाज़ ($फा.वि.)-गुदा-मैथुन करनेवाला, इग़्लामी, लौंड़ेबाज़।
बच्च:बाज़ी ($फा.स्त्री.)-लौंड़ेबाज़ी, गुदमैथुन, इग़्लाम।
बच्चए आहू ($फा.पु.)-मृगशावक, हिरन का बच्चा।
बच्चए नौ ($फा.पु.)-नवजात शिशु; नया वा$िकया, नयी घटना।
बच्चए $फील (अ.$फा.पु.)-गजशावक, हस्तशावक, हाथी का बच्चा।
बच्चए मीना ($फा.पु.)-मद्य, मदिरा, शराब।
बच्चए शुतुर ($फा.पु.)-उष्ट्र-शावक, ऊँट का बच्चा।
बच्चगी ($फा.स्त्री.)-अवयस्कता, नाबालि$गी, कमसिनी, अबोधता, बालपन।
बज़: ($फा.पु.)-पाप, अपराध, गुनाह, ख़्ाता।
बज़:कार ($फा.वि.)-पापी, अपराधी, गुनाहगार, ख़्ाताकार।
बज़:कारी ($फा.पु.)-पाप या अपराध करना, गुनाह करना।
बज़अ़ ($फा.पु.)-भय, डर, ख़्ाौ$फ।
बजज़ ($फा.पु.)-मेमना, भेड़ या बकरी का बच्चा।
बजऩ ($फा.पु.)-सुहागा।
ब जब्र (अ.$फा.अव्य.)-ज़बरदस्ती, बलपूर्वक, सीना-ज़ोरी स बलात्।
बजऱ (अ.पु.)-बौना, ठिगना, गिट्टा।
बज़र्क़: ($फा.पु.)-नेता, अग्रसर, राहबर, पथ-प्रदर्शक।
बज़ह (अ.पु.)-फाडऩा, विदीर्ण करना।
बजाँ ($फा.वि.)-मन से, हृदय से, प्रसन्नतापूर्वक; (प्रत्य.)-प्राणों में लिये हुए, जैसे-'आतशबजाँÓ-आग प्राणों में लिये हुए अर्थात् तपता हुआ प्राण।
बजाँ आमद: ($फा.अव्य.)-जीवन से ऊबा हुआ, जि़न्दगी से उकताया हुआ, जान से तंग आया हुआ।
बजा ($फा.वि.)-उचित, मुनासिब; शुद्घ, दुरुस्त; सच, सत्य, ठीक।
बजाआवरी ($फा.स्त्री.)-आदेश मानना, आज्ञा-पालन; हुक्म की तअ़मील करना, हुक्म पूरा करना।
बजाए ख़्ाुद ($फा.अव्य.)-स्वयं, अपने आप, ख़्ाुद; बिना किसी की मदद के, अपनी समझ में; अपनी जगह पर।
ब जानोदिल ($फा.अव्य.)-मन और प्राण से अर्थात् पूरी लगन से, पूरी तन्मयता से, पूर्णरूपेण, पूरी तरह से।
ब ज़ाÓमे ख़्वेश (अ.$फा.अव्य.)-अपने $गलत विचार में।
ब जि़द (अ.$फा.अव्य.)-जि़दपूर्वक, हठपूर्वक, हठात्।
बजुज़ (अ.$फा.अव्य.)-के अतिरिक्त, के अलावा।
ब ज़ोर ($फा.अव्य.)-दे.-'बजब्रÓ।
बज़्ज़ाज़ (अ.पु.)-कपड़े का व्यापारी, वस्त्र-वणिक्।
बज़्ज़ाज़ख़्ाान: (अ.$फा.पु.)-वह स्थान जहाँ कपड़ों की दुकानें हों, बाज़ार में कपड़े की मंडी।
बज़्ज़ाज़ी (अ.स्त्री.)-कपड़ा बेचने का व्यवसाय, कपड़े का रोजग़ार।
बज़्म ($फा.स्त्री.)-मह$िफल, सभा, गोष्ठी। 'मेरी सूरत कहाँ ठहरती फिर, बज़्म तेरी थी आईना तेराÓ-माँझी
बज़्मआरा ($फा.वि.)-सभा की शोभा बढ़ानेवाला; सभा में विराजमान, मह$िफल में उपस्थित।
बज़्मगाह ($फा.स्त्री.)-सभा-स्थल, मह$िफल का स्थान।
बज़्मनशीं ($फा.वि.)-सभापति, सभा की अध्यक्षता करने-वाला, सद्रे मज्लिस, सद्रे मह$िफल।
बज़्मे अ़रूसी (अ.$फा.स्त्री.)-शादी-समारोह, विवाह की मह$िफल।
बज़्मे ऐश (अ.$फा.स्त्री.)-राग-रंग और ख़्ाुशी का समारोह।
बज़्मे $कदह (अ.$फा.स्त्री.)-पान-गोष्ठि, शराब की मह$िफल, वह स्थल जहाँ बैठकर शराब पी जा रही हो।
बज़्मे नशात ($फा.स्त्री.)-दे.-'बज़्मे ऐशÓ।
बज़्मे नाज़ ($फा.स्त्री.)-प्रेमिका अथवा प्रेयसी की गोष्ठि, माÓशू$क की सभा।
बज़्मे मय ($फा.स्त्री.)-पान-गोष्ठि, शराब की मह$िफल, वह स्थल जहाँ बैठकर शराब पी जा रही हो, बज़्मे $कदह।
बज़्मे मातम ($फा.स्त्री.)-शोक-सभा, मृतक के शोक में होनेवाली सभा।
बज़्मे मुशाअऱ: (अ.$फा.स्त्री.)-कवि-सम्मेलन, मुशाअऱे की मह$िफल।
बज़्मे रक़्स (अ.$फा.स्त्री.)-नाच-गाने की मह$िफल।
बज़्मे शादी ($फा.स्त्री.)-विवाह-समारोह।
बज़्मे शेÓर (अ.$फा.स्त्री.)-काव्य-गोष्ठी, मुशाअऱ:।
बज़्मे सुख़्ान ($फा.स्त्री.)-दे.-'बज़्मे शेÓरÓ।
बज़्मे सुरूर (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बज़्मे ऐशÓ, दे.-'बज़्मे मयÓ।
बज़्मोरज़्म ($फा.स्त्री.)-नाच-रंग की मह$िफल; रंगभूमि अर्थात् युद्घ-क्षेत्र।
बज्ऱ (अ.पु.)-प्रत्येक वह बीज जो चना से छोटा हो।
बज़्ल: ($फा.पु.)-विनाद, मनोरंजन, हँसी-मज़ा$क।
बज़्ल:गो ($फा.वि.)-विनोदी, परिहासक, हँसी-मज़ा$क की बातें करनेवाला।
बज़्ल:गोई ($फा.स्त्री.)-विनोद, परिहास, हँसी-मज़ा$क की बातें करना।
बज़्ल:संज ($फा.वि.)-दे.-'बज़्ल:गोÓ।
बज़्ल:संजी ($फा.स्त्री.)-दे.-'बज़्ल:गोईÓ।
बज़्ल (अ.पु.)-दानशीलता, फैय़ाज़ी।
बज़्लोजूद (अ.पु.)-दानशीलता, बख़्िशश।
बज़्लोसख़्ाा (अ.पु.)-दे.-'बज़्लोजूदÓ।
बत [त्त] काटना, तराशना, विच्छेद करना।
बत ($फा.स्त्री.)-हंस, बतख़्ा, बत्तख़।
ब तअम्मुल (अ.$फा.अव्य.)-सोच-विचारकर; आराम से, धीरे से।
ब तकल्लु$फ (अ.फा.अव्य.)-संकोच के साथ, औपचारिकता से।
बतक्ऱीब (अ.फा.अव्य.)-अवसर पर, जैसे-बतक्ऱीबे शादीÓ-विवाह के अवसर पर, मौ$के पर।
ब तद्रीज (अ.फा.अव्य.)-क्रमश:, तरतीब से; धीरे-धीरे, शनै-शनै।
बतर ($फा.वि.)-'बदतरÓ का लघु., ख़्ाराब, निकृष्ट, बुरा।
ब तराजि़ए तरफैऩ (अ.फा.अव्य.)-दोनो पक्षों की सहमति से, दोनों दलों की रज़ामंदी से।
ब तरीक़े अ़दावत (अ.फा.अव्य.)-दुश्मनी के रूप में, शत्रुता के रूप में।
ब तरीक़े दोस्ती (अ.फा.अव्य.)-मित्रता के रूप में।
ब तरीक़े मश्वुरत (अ.फा.अव्य.)-परामर्श के रूप में, सलाह के रूप में।
बतल (अ.वि.)-बहादुर, शूर, वीर।
बतले हुर्रीयत (अ.वि.)-स्वतंत्रता की लड़ाई लडऩेवाला, देश की आज़ादी के संग्राम में अपनी वीरता दिखानेवाला।
ब तवस्सुत (अ.फा.अव्य.)-माध्यम से, द्वारा, जऱीए से।
ब तवस्सुल (अ.फा.अव्य.)-दे.-'ब तवस्सुतÓ।
ब ताईद (अ.फा.अव्य.)-समर्थन से, मदद से, सहायता से।
ब ताÓजील (अ.फा.अव्य.)-जल्दी से, शीघ्रता से।
बतालत (अ.स्त्री.)-बेकार अर्थात्कार्यहीन होना, छुट्टी में होना।
बती (अ.वि.)-सुस्त, मन्द; देर करनेवाला, विलम्बकर्ता।
बतीउलअसर (अ.वि.)-जो अपना गुण अथवा तासीर देर में दिखाए; जो दवा देर में असर करे।
बतीउलहरकत (अ.वि.)-मन्दगामी, जो बहुत धीरे-धीरे चले।
ब तीबे ख़्ाातिर (अ.फा.अव्य.)-हँसी-ख़्ाुशी, प्रसन्नतापूर्वक, हर्षपूर्वक, ख़्ाुशी के साथ।
बतूल (अ.वि.)-सांसारिक मोह-माया के बन्धनों को तोड़ फेंकनेवाला (वाली); हज्ऱत $फातिमा की उपाधि।
ब तौए ख़्ाातिर (अ.फा.अव्य.)-दे.-'ब तीबे ख़्ाातिरÓ।
ब तौरे ख़्ाुद (अ.फा.अव्य.)-निजी तौर पर, अपने तरीक़े पर; अपनी राय से, अपने विचार से, अपनी तर$फ से।
ब तौरे मिज़ाह (अ.फा.अव्य.)-हँसी के तौर पर, मनोरंजन के लिए।
बत्ताल (अ.वि.)-झूठा, मिथ्यावादी; निरर्थक, निकम्मा; शूर, वीर, बहादुर।
बत्न (अ.पु.)-उदर, पेट, जठर।
बत्नन बान बत्निन (अ.अव्य.)-वंशानुगत, नस्ल दर नस्ल, पुश्त दर पुश्त, पीढ़ी दर पीढ़ी।
बत्ने मादर (अ.$फा.पु.)-माँ का पेट।
बत्श (अ.स्त्री.)-सख़्ती करना, कठोर होना, कड़ा पडऩा; आक्रमण, हमला।
बत्हा (अ.स्त्री.)-वह चौड़ी जहाँ पानी बहता हो और जहाँ पत्थर बहुत हों; मक्का; मक्का की एक घाटी।
बद ($फा.वि.)-निकम्मा, ना$िकस; अशुभ, मनहूस; कदाचारी, दुराचारी, बदचलन; निकृष्ट, ख़्ाराब; उत्पाती, शरारती, शरीर; उपद्रवी, $फसादी।
बदअंजाम ($फा.वि.)-जिसका परिणाम अशुभ हो, जो अंत में विपत्ति का कारण हो।
बदअंदेश ($फा.वि.)-बुरा सोचनेवाला, दुश्चिन्तक, बदख़्वाह।
बदअंदेशी ($फा.स्त्री.)-बुरा सोचना, बदख़्वाही।
बदअ़क़ीद: (अ.$फा.वि.)-जिसका धर्म-विश्वास ठीक न हो, अनास्थ; जिसे सबके श्रद्घापात्र व्यक्ति में श्रद्घा न हो।
बदअ़क़ीदगी (अ.$फा.स्त्री.)-धर्म-विश्वास का ठीक न होना; ऐसे व्यक्ति में श्रद्घा न होना जिस पर प्राय: सभी श्रद्घा रखते हों; बुरा विश्वास, $गलत चीज़ पर विश्वास करना।
बदअ़क़्ल (अ.$फा.वि.)-मूर्ख, बेव$कू$फ, हतबुद्घि।
बदअख़्तर ($फा.वि.)-बुरे सितारोंवाला अर्थात् जिसका भाग्य ठीक न चल रहा हो, अभागा, कुभागीन, बद$िकस्मत।
बदअख़्ला$क (अ.$फा.वि.)-जिसका व्यवहार अच्छा न हो, दुव्र्यवहार, दु:शील, बेमुव्वत।
बदअत्वार (अ.$फा.वि.)-कदाचारी, दुराचारी, दुश्चरित।
बदअफ़्अ़ाल (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदअत्वारÓ।
बदअ़मल (अ.$फा.वि.)-दुष्कर्मी, बुरे और ओछे काम करने-वाला, दुष्कृत्य-कर्ता, जिसका अ़मल अच्छा न हो।
बदअम्नी (अ.$फा.स्त्री.)-उपद्रव, दंगा; अशान्ति, गड़बड़; विद्रोह, ब$गावत।
बदअस्ल (अ.$फा.वि.)-जो ख़्ाानदानी न हो, $गैरशरी$फ, अकुलीन।
बदअ़ह्द (अ.$फा.वि.)-वचन-भंजक, वादे से मुकर जाने जानेवाला।
बदअ़ह्दी (अ.$फा.स्त्री.)-वचन-भंजन, वादे से मुकरना।
बदआईन ($फा.वि.)-जिसका कोई सिद्घान्त न हो, जिसका कोई नियम न हो, बेउसूला।
बदआईनी ($फा.स्त्री.)-सिद्घान्तहीनता, कोई नियम न होना।
बदआ$गाज़ ($फा.वि.)-जिसकी शुरूअ़ात ही अच्छी न हो, जिसका प्रारम्भ ही अनिष्टकर हो।
बदआÓमाल (अ.$फा.वि.)-दुराचारी, जिसके आचार-विचार ठीक न हों।
बदआÓमाली (अ.$फा.स्त्री.)-दुराचार।
बदआमोज़ ($फा.वि.)-जिसको बुरी शिक्षा मिली हो।
बदआमोज़ी ($फा.स्त्री.)-बुरी शिक्षा मिलना।
बदइंतिज़ामी (अ.$फा.स्त्री.)-कुव्यवस्था, कुप्रबन्ध, इंतिज़ाम की ख़्ाराबी।
बदउन्वानी (अ.$फा.स्त्री.)-नियम-विरुद्घता, बे$कायदगी।
बदउसूल (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदआईनÓ।
बदउस्लूब (अ.$फा.वि.)-दुराचारी, कुकर्मी, बदअ़मल; बेढंगा, बदनुमा, कदाकार।
बदएति$काद (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदअ़क़ीद:Ó।
बदएति$कादी (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बदअ़क़ीदगीÓ।
बदएतिमाद (अ.$फा.वि.)-अविश्वस्त, जिस पर विश्वास न किया जा सके, $गैर मातबर।
बदएतिमादी (अ.$फा.स्त्री.)-अविश्वास, बेएतिबारी।
बदऔसान (अ.वि.)-बदहवास, घबराया हुआ।
बद$कत्अ़ (अ.$फा.वि.)-कदाकार, बेढंगा, कुरूप, बदसूरत।
बद$कदम (अ.$फा.वि.)-जिसका आना अनिष्टकर हो, जिसके चरण शुभ न हों, अशुभचरण।
बदकर्दार ($फा.वि.)-दुराचारी, कदाचारी; व्यभिचारी, हरामकार।
बदकर्दारी (फ़ा.स्त्री.)-कदाचार, दुराचार, दुष्टाचार, आचरण का बुरा होना; कामुकता, लम्पटता, व्यभिचार।
बदकलाम (अ.$फा.वि.)-उलटा-सीधा बोलनेवाला, बकवास करनेवाला, बदकलामी करनेवाला; धृष्टता अथवा गुस्ताख़्ाी से बात करनेवाला; बेशर्मी और ढिठाई दिखानेवाला; गालियाँ बकनेवाला।
बदकलामी (अ.फ़ा.स्त्री.)-धृष्ता या गुस्ताख़्ाी से बात करना, बेशर्मी और ढिठाई से बात करना, उलटा-सीधा बोलना।
बदकार ($फा.वि.)-बुरे चाल-चलनवाला, बुरे आचरणवाला, दुराचारी, दुष्कर्मा।
बदकारी ($फा.स्त्री.)-बुरा चाल-चलन, बुरा आचरण, दुष्कर्म, दुराचार।
बदकिर्दार ($फा.वि.)-दुराचारी, बुरे काम करनेवाला, दुष्कर्मा, कदाचारी।
बद$िकस्मत (अ.$फा.वि.)-हतभाग्य, भाग्यहीन, बुरे भाग्य-वाला, बुरी तक़्दीरवाला, बदनसीब।
बद$िकस्मती (अ.$फा.स्त्री.)-दुर्भाग्य, नसीब का खोटापन।
बद$कुमाश ($फा.वि.)-दे.-'बदकारÓ।
बद$कुवार: ($फा.वि.)-कुरूप, बदसूरत, बुरी आकृतिवाला, बुरी सूरतवाला, कदाकृति।
बदकेश ($फा.वि.)-बुरे स्वभाववाला, दुष्प्रकृति, दुष्टात्मा। बद$कौम (अ.$फा.वि.)-अकुलीन, कमीना, नीच।
बदख़्ात ($फा.वि.)-जिसकी लिखावट अच्छी न हो, कुलेख, कदक्षर; बुरा लिखा हुआ।
बदख़्ाती ($फा.स्त्री.)-बुरा लिखना, अच्छी लिखावट का न लिखना, कुलेख।
बदख़्स्लत (अ.$फा.वि.)-बुरे स्वभाववाला, दुष्ट प्रकृतिवाला, नीच-प्रकृति।
बदख़्ास्लती (अ.$फा.स्त्री.)-स्वभाव की नीचता, प्रकृति का खोटापन।
बदख़्िासाल (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदख़्ास्लतÓ।
बदख़्ाुल्$क (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदअख़्ला$कÓ।
बदख़्ाुल्$की (अ.$फा.स्त्री.)-दु:शीलता, बेमुरव्वती; व्यवहार का अच्छा न होना, बदअख़्ला$की; बदआÓमाली, दुराचार।
बदख़्ाू ($फा.वि.)-बुरे और कडुवे स्वभाववाला, जो व्यवहार में रूखापन रखे, दु:शील।
बदख़्ाूई ($फा.स्त्री.)-स्वभाव में रूखापन और कडुवाहट।
बदख़्वाबी ($फा.स्त्री.)-ठीक तरह से नींद न आना; नींद का बार-बार उचटना; बिलकुल नींद न आना; नींद न आने का रोग, अनिद्रा।
बदख़्वाह ($फा.वि.)-बुराई चाहनेवाला, दुश्चिन्तक।
बदख़्वाही ($फा.स्त्री.)-बुराई चाहना, अशुभ चाहना, बदी चाहना, हित न चाहना।
बदख़्श ($फा.पु.)-'बदख़्शाँÓ का लघु., दे.-'बदख़्शाँÓ।
बदख़्शाँ ($फा.पु.)-अफ़्$गानिस्तान का एक प्रदेश जहाँ का लाल (पदमराग) बहुत मूल्यवान् होता है।
बदख़्शानी ($फा.वि.)-जो बदख़्शाँ का हो; जो बदख़्शाँ से सम्बन्ध रखता हो।
बदख़्शी ($फा.वि.)-दे.-'बदख़्शानीÓ।
बदगिल ($फा.वि.)-बुरी सूरतवाला, बदसूरत, कदाकार, कुरूप, जिसकी मुखाकृति अच्छी न हो।
बदगुमान ($फा.वि.)-जो किसी की ओर से बुरी धरणा रखे।
बदगुमानी ($फा.स्त्री.)-कुधारणा, किसी के सम्बन्ध में बुरा विचार।
बदगुहर ($फा.वि.)-वर्णसंकर, दोगला; अकुलीन, कुल का हेठा।
बदगो ($फा.वि.)-बदगोई करनेवाला; गालियाँ बकनेवाला; पिशुन, चु$गुल; निन्दक, झूठी बुराई करनेवाला।
बदगोई ($फा.स्त्री.)-अपशब्द, गाली-गलौज; पिशुनता, चु$गुलख़्ाोरी; निन्दा, बदनामी।
बदगोश्त ($फा.पु.)-वह अतिरिक्त मांस जो शरीर के किसी अंग में रोग के रूप में उत्पन्न हो जाता है।
बदगौहर ($फा.वि.)-वर्णसंकर, बदनस्ल, अकुलीन।
बदचश्म ($फा.वि.)-जिसकी नजऱ तुरन्त लगती हो, दुरक्ष; ईष्यालु, मत्सरी, दूसरों की ख़्ाुशी से जलनेवाला, दूसरों से डाह रखनेवाला।
बदजऩ (अ.$फा.वि.)-जो किसी के प्रति अपने मन में बुरी धारणा रखे, बदगुमान, कुधारणा रखनेवाला।
बदज़ाइक़: (अ.$फा.वि.)-जिसका स्वाद अच्छा न हो, नीरस, कुस्वाद, दु:स्वादु, नि:स्वाद।
बदज़ात (अ.$फा.वि.)-दुष्टाचारी, बुरे आचरणवाला, ख़्ाबीस; नीच, अधम, कमीना; छली, ठग, वंचक; धूर्त, $िफत्तीन।
बदज़ाती (अ.$फा.स्त्री.)-दुष्टाचार, ख़्ाबासत; नीचता, अधमता; धूर्तता, मक्कारी; छल, कपट।
बदजिलौ (तु.$फा.वि.)-वह घोड़ा जो बहुत ही मुँहज़ोर हो।
बदज़ेब ($फा.वि.)-भद्दा, श्रीहीन, बदनुमा, शोभा-रहित।
बदज़ेह्न (अ.$फा.वि.)-जिसका ज़ेह्न अच्छा न हो, बुद्घि का तेज़ न होना, मंदप्रतिभ।
बदज़ेह्नी (अ.$फा.स्त्री.)-ज़ेह्न का अच्छा न होना, बुद्घि का तेज़ न होना।
बदज़ौ$क (अ.$फा.वि.)-जो पढऩे-लिखने में मन न लगाए; जो किसी कार्य-विशेष में दिलचस्पी न ले; जो काव्य-रसिक न हो।
बदज़ौ$की (अ.$फा.स्त्री.)-पढऩे-लिखने में अपना बिलकुल मन न लगाना; किसी कार्य-विशेष में रुचि न रखना; कला-रसिक न होना।
बदतवार ($फा.वि.)-$गैरख़्ाानदानी, अकुलीन, बुरी नस्ल का।
बदतमीज़ (अ.$फा.वि.)-अशिष्ट, असभ्य; उद्दण्ड, उजड्ड; फूहड़, बदसल$का; धृष्ट, गुस्ताख़्ा, बदज़बान।
बदतमीज़ी (अ.$फा.स्त्री.)-अशिष्टता; उद्दण्डता; फूहड़पन; धृष्टता; अपशब्द, बदज़बानी।
बदतर ($फा.वि.)-अत्यन्त बुरा, बुरे-से-बुरा, बहुत ख़्ाराब, अत्यन्त निकृष्ट।
बदतरीन ($फा.वि.)-सर्वाधिक निकृष्ट, सबसे बुरा, सबसे ख़्ाराब।
बदतह्ज़ीब (अ.$फा.वि.)-असभ्य, अशिष्ट; उद्दण्ड, उजड्ड; धृष्ट, गुस्ताख़्ा; अपशब्दी, बदज़बान।
बदतह्ज़ीबी (अ.$फा.स्त्री.)-अशिष्टता; उद्दण्डता, धृष्टता।
बदतीनत (अ.$फा.वि.)-बुरे स्वभाववाला, दुष्प्रकृति, जिसके मन में खोट भरा हो, अंत:कुटिल, बदबातिन।
बदतीनती (अ.$फा.स्त्री.)-स्वभाव का ओछापन, प्रकृति की निकृष्टता, स्वभाव की अधमता, मन का खोटापन।
बददिमा$ग (अ.$फा.वि.)-घमण्डी, अभिमानी, अहंकारी; जो जऱा-सी बात पर बुरा मान जाए, नाज़ुक दिमा$ग।
बददिमा$गी (अ.$फा.स्त्री.)-धमण्ड, अहंकार, $गुरूर; जऱा-जऱा सी बात पर बिगड़ जाने की अ़ादत; नाज़ुक दिमा$गी।
बददियानत (अ.$फा.वि.)-जो अमानत में ख़्िायानत करे, बेईमान।
बददियानती (अ.$फा.स्त्री.)-अमानत में ख़्िायानत करना, बेईमानी।
बददिल ($फा.वि.)-निराश, नाउम्मीद; खिन्न, मलिनचित्त, अफ़्सुर्द:; उदास, $गमगीन।
बददिली ($फा.स्त्री.)-निराशा, नाउम्मीदी; खिन्नता, चित्त की मलिनता; उदासी।
बददुअ़ा (अ.$फा.स्त्री.)-अभिशाप, शाप, श्राप, अनिष्ट का वचन; कोसना, बुरा कहना।
बदन (अ.पु.)-देह, जिस्म, शरीर; योनि, भग, $फुर्ज।
बदनजऱ (अ.$फा.वि.)-जिसकी नजऱ जल्दी लग जाती हो; जो दूसरों को बुरी नजऱ अर्थात् पाप की दृष्टि से देखता हो।
बदनजऱी (अ.$फा.स्त्री.)-बुरी नजऱ का असर होना; पाप की दृष्टि से देखना।
बदनज़ाद ($फा.वि.)-$गैरख़्ाानदानी, अकुलीन, अज्ञात वंश का, तुच्छ वंश का।
बदनज़्मी (अ.$फा.स्त्री.)-कुप्रबन्ध, कुव्यवस्था, बदइंतिज़ामी।
बदनतीज़: (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदअंजामÓ।
बदनफ़्स (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदबातिनÓ।
बदनफ़्सी (अ.$फा.स्त्री.)-मन का खोटापन, अंत:कौटिल्य, दिल की निकृष्टता।
बदनसीब (अ.$फा.वि.)-अभागा, मंदभाग्य, बद$िकस्मत।
बदनसीबी (अ.$फा.स्त्री.)-भाग्य का खोटापन, तक़्दीर की ख़्ाराबी, बद$िकस्मती।
बदनस्ल (अ.$फा.वि.)-$गैर ख़्ाानदानी, अकुलीन, वंशहीन, तुच्छ वंशीय।
बदनाम ($फा.वि.)-कुख्यात, जो बुरे व्यक्ति के रूप में जाना जाए, जिसकी शोहरत बुरे कामों के लिए हो।
बदनामी ($फा.स्त्री.)-कुकीर्ति, कुख्याति, बदशोहरती, निन्दा, रुस्वाई, अपयश।
बदनिगाह ($फा.वि.)-दे.-'बदनजऱÓ।
बदबदनिगाही ($फा.स्त्री.)-दे.-'बदनजऱीÓ।
बदनिहाद ($फा.वि.)-दे.-'बदनज़ादÓ।
बदनी (अ.वि.)-बदन अर्थात् शरीर से सम्बन्धित; शरीर का; शरीर जनित।
बदनीयत (अ.$फा.वि.)-जिसकी नीयत ठीक न हो; बेईमान, बददियानत; लोभी, लालची।
बदनीयती (अ.$फा.स्त्री.)-नीयत का ठीक न होना; बेईमानी, बददियानती; लोभ, लालच।
बदनुमा ($फा.वि.)-भोंड़ा, कुरूप, बदशक्ल; दुर्दर्शन, दुर्दृश्य।
बदनुमाई ($फा.स्त्री.)-भोंड़ा, भद्दा; कुरूपता, बदशक्ली।
बदनुमूद ($फा.वि.)-दे.-'बदनुमाÓ।
बदपरहेज़ ($फा.वि.)-वह रोगी जो खान-पान में परहेज़ न करता हो, बदएहतियात।
बदपरहेज़ी ($फा.स्त्री.)-रोगी का खाने-पीने में परहेज़ न करना।
बद$फर्जाम ($फा.वि.)-दे.-'बदअंजामÓ।
बद$फेÓली (अ.$फा.स्त्री.)-कुकृत्य, बुरा काम, व्यभिचार, लम्पटता, कदाचार।
बदफ़्अ़ात (अ.$फा.अव्य.)-थोड़ा-थोड़ा करके, कई बार में।
बदबख़्त ($फा.वि.)-बदनसीब, अभागा, बद$िकस्मत।
बदबख़्ती ($फा.स्त्री.)-बदनसीबी, भाग्य की ख़्ाराबी, अभागापन, बद$िकस्मती, प्रारब्ध की हेठी।
बदबला ($फा.स्त्री.)-चुड़ैल, डाइन; पापी, ख़्ाबीस।
बदबातिन (अ.$फा.स्त्री.)-ओछे स्वभाववाला, बुरी प्रकृतिवाला, दुरात्मा, ख़्ाबीस।
बदबीं ($फा.वि.)-खोट या त्रुटि देखनेवाला, बुराई देखनेवाला, छिद्रान्वेशी।
बदबीनी ($फा.स्त्री.)-खोट, कमी या त्रुटि देखना, बुराई देखना, छिद्रान्वेशन
बदबू ($फा.वि.)-बुरी बास, दुर्गन्ध; जिसमें बुरी महक हो, दुर्गन्धयुक्त।
बदबूदार ($फा.वि.)-जिसमें बुरी बास हो, दुर्गन्धयुक्त।
बदमंजऱ (अ.$फा.वि.)-कुदृश्य, दुर्दर्शन, जो देखने में बुरा और भद्दा हो।
बदमआल (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदअंजामÓ।
बदमअ़ाश (अ.$फा.वि.)-बदमाश, लुच्चा, शोह्दा, गुण्डा, लो$फर; चोर, उठाईगीरा; दुष्ट; जिसकी जीविका बुरे कामों से चले।
बदमअ़ाशी (अ.$फा.स्त्री.)-बदमाशी, लुच्चापन, गुण्डापन; दुष्टता; चोरी, उठाईगीरी; बुरे कामों से जीविका चलाना।
बदमज़: ($फा.वि.)-बेमज़ा, कुस्वाद, जिसमें मज़ा न हो, खिन्न, मलिन; अफ़्सुर्द:, उदास।
बदमजग़ी ($फा.स्त्री.)-बेलुत्$फी; किसी काम में मज़ा न आना; स्वाद का न होना; उदासी, मन की अप्रसन्नता।
बदमज़न्न: (अ.$फा.वि.)-वह व्यक्ति जिस पर किसी अपराध का सन्देह हो।
बदमज़्हब (अ.$फा.वि.)-जिसने अपना धर्म त्याग दिया हो; जो विधर्मी हो गया हो; नास्तिक।
बदमज़्हबीयत (अ.$फा.स्त्री.)-अपना धर्म त्याग देना; विधर्मी हो जाना; नास्तिक हो जाना।
बदमस्त ($फा.वि.)-मदोन्मत्त, जो शराब आदि किसी मादक पदार्थ के नशे के कारण बहुत अधिक अचेत हो।
बदमस्ती ($फा.स्त्री.)-किसी मादक पदार्थ का सेवन करके नशे में मस्त होना।
बदमिज़ाज (अ.$फा.वि.)-चिड़चिड़े स्वभाव का; $गुस्सैल, जो जल्दी ताव खाए, क्रुद्घात्मा; बुरी प्रकृति का।
बदमिज़ाजी (अ.$फा.स्त्री.)-स्वभाव का चिड़चिड़ापन; क्रोधी स्वभाव, बुरा स्वभाव; प्रकृति में क्रोध मिश्रित रूखापन।
बदमिह्रï ($फा.वि.)-विश्वासघाती, धोखेबाज़, बेव$फा।
बदमुअ़ामल: (अ.$फा.वि.)-व्यवहार-कुटिल; जो लेनदेन में सा$फ न हो; जो मिलने-जुलने में अच्छा न हो।
बदमुअ़ामलगी (अ.$फा.स्त्री.)-मिलने-जुलने में व्यवहार की कमी; लेन-देन में व्यवहार की ख़्ाराबी।
बदमुह्रï ($फा.वि.)-सुअर, शूकर।
बदयक़ीन (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदएतिक़ादÓ।
बदयक़ीनी (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बदएतिक़ादीÓ।
बदयुम्न (अ.$फा.वि.)-अमंगलकारी, मनहूस, अनिष्टकर, अशुभ।
बदयुम्नी (अ.$फा.स्त्री.)-अकल्याण, अनिष्ट, अशुभ।
बदरंग ($फा.वि.)-बुरे रंग का; जिसका रंग फीका पड़ गया हो; खोटा, ख़्ाराब; ताश में रंग के विरुद्घ पत्ता।
बदरंगी ($फा.स्त्री.)-बुरे रंग का होना; रंग का फीकापन; खोटापन; ताश में रंग का पत्ता न होना।
बदर ($फा.वि.)-बाहर।
बदरग ($फा.वि.)-$अकुलीन, वर्णसंकर, दोग़ला।
बदररौ ($फा.स्त्री.)-मोरी, पानी निकलने की नाली।
बदरवी ($फा.स्त्री.)-कुमार्ग-गमन, बुरी राह पर चलना।
बदरवैय: (अ.$फा.वि.)-जिसका रवैया अच्छा न हो, ख़्ाराब व्यवहारवाला।
बदराह ($फा.वि.)-कुपथ पर चलनेवाला, कुमार्ग गामी, बुरी राह पर चलनेवाला।
बदरिकाब ($फा.वि.)-वह घोड़ा जो सवारी के समय शरारत करे।
बदरू ($फा.वि.)-कुरूप, दुर्मुख, बुरी शक्ल-सूरतवाला, बुरी मुखाकृतिवाला।
बदरोज़ ($फा.वि.)-दे.-'बदरोजग़ारÓ।
बदरोजग़ार ($फा.वि.)-जो गर्दिश का शिकार हो, जो दिनों के फेर में फँसा हो, कालचक्रग्रस्त, बद$िकस्मत, बदनसीब, हतभाग्य, दुर्दैव।
बदरौ ($फा.वि.)-कुपथगामी, जो बुरे रास्ते पर चले, बदराह, कुमार्गगामी, अव्छाई के रास्ते पर न चलनेवाला।
बदरौन$क ($फा.वि.)-जिसमें कोई रौन$क न हो, सूना, उजाड़, हतश्री, भग्नश्री।
बदरौन$की ($फा.स्त्री.)-शोभा नहोना, सूनापन, उजाड़पन।
बदर्जए $गायत (अ.$फा.पु.)-अत्यधिक, बहुत जिय़ादा, बहुत अधिक।
बदर्जए मज्बूरी (अ.$फा.पु.)-विवशता की स्थिति में, मज्बूरी की हालत में।
बदर्जहा (अ.$फा.वि.)-कई गुना, बहुत अधिक।
बदल (अ.पु.)-क्षतिपूर्ति, मुआवज़ा; बदले में दी हुई वस्तु; तुल्य, समान, मिस्ल; प्रतिकार, बदला।
बदलगाम (अ.$फा.वि.)-मुँहज़ोर घोड़ा; मुँहफट आदमी; धृष्ट व्यक्ति।
बदलह्ज़: (अ.$फा.वि.)-जिसके पढऩे का ढंग अच्छा न हो; जिसको बोलने का सली$का न हो; जिसकी आवाज़ खऱाब हो।
बदलिहाज़ (अ.$फा.वि.)-धृष्ट, गुस्ताख़्ा; जिसे किसी का लिहाज़ न हो, निर्लज्ज; दु:शील, बेमुरव्वत।
बदले इश्तिराक (अ.पु.)-समाचार-पत्र का मूल्य अथवा मासिक या वार्षिक मूल्य।
बदले मायतहल्लल (अ.पु.)-जो छीज जाए अथवा कम हो जाए उसकी पूर्ति।
बदवजाहत (अ.$फा.वि.)-जिसकी मुखाकृति प्रभावशाली न हो, जो चेहरे से रोबदार न जँचे।
बदवज़्अ़ (अ.$फा.वि.)-जिसकी वेष-भूषा अच्छी न हो; जो अशिष्ट हो, जिसका शील-स्वभाव शिष्ट न हो।
बदवतीर: ($फा.वि.)-दे.-'बदख़्ाूÓ।
बदवी (अ.वि.)-भोंदू, बुद्घू, गँवार, जंगली।
बदशक्ल (अ.$फा.वि.)-जिसकी मुखाकृति सुन्दर न हो, भोंड़े मुँहवाला, कदाकार, कुरूप, बुरी सूरत।
बदशक्ली (अ.$फा.स्त्री.)-मुखाकृति का भोंड़ापन, कुरूपता, सूरत की ख़्ाराबी, बदसूरती।
बदशिअ़ार (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदतीनतÓ।
बदशुऊर (अ.$फा.वि.)-मूर्ख, नादान; अशिष्ट, बेतमीज़।
बदशुऊरी (अ.$फा.स्त्री.)-मूर्खता, नादानी; अशिष्टता, तमीज़ का अभाव, बेतमीज़ी।
बदशुगून ($फा.वि.)-अशुभ, मनहूस।
बदशुगूनी ($फा.स्त्री.)-शगुन का ख़्ाराब होना, अनिष्ट की आशंका होना।
बदशौ$क (अ.$फा.वि.)-जिसकी पढ़ाई-लिखाई में रुचि न हो, जिसे पढऩे-लिखने में दिलचस्पी न हो।
बदशौ$की (अ.$फा.स्त्री.)-पढऩे-लिखने में रुचि का अभाव।
बदसरंजाम ($फा.वि.)-जिस कार्य की परिणति अच्छी न हुई हो, जिस काम की पूर्ति ख़्ाराब तरह से हुई हो; जिसका परिणाम सुखद न हो; जिसका अंजाम अच्छा न हो।
बदसरअंजामी (फ़ा.स्त्री.)-किसी कार्य का परिणाम सुखद न होना, किसी काम का अंजाम बुरा होना।
बदसली$क: (अ.$फा.वि.)-जिसे अच्छी तरह से काम करने का ढंग न आता हो, बदशुऊर, फूहड़, जिसमें शिष्टता न हो, अशिष्ट, बेशुऊर, बेतमीज़।
बदसली$कगी (अ.$फा.स्त्री.)-अच्छी तरह से काम करने का अभाव, बदशुऊरी, शिष्टता का अभाव।
बदसिगाल ($फा.वि.)-जो शुभ न चाहता हो, अशुभचिंतक; दुश्मन, वैरी।
बदसिगाली (फ़ा.स्त्री.)-बुराई सोचना, किसी के प्रति मन में बुरी भावना रखना, किसी का बुरा चाहना; वैर, दुश्मनी।
बदसिरिश्त ($फा.वि.)-दे.-'बदतीनतÓ।
बदसीरत (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदख़्ास्लतÓ।
बदसीरती (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बदख़्ास्लतीÓ।
बदसुलूकी (अ.$फा.स्त्री.)-दुव्र्यवहार, बुरा बर्ताव।
बदसूरत (अ.$फा.वि.)-दे.-'बदशक्लÓ।
बदसूरती (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'बदशक्लीÓ।
बदसोहबती (अ.$फा.स्त्री.)-कुसंगति, बुरे लोगों में उठना-बैठना, बुरी सोहबत।
बदस्तयारी ($फा.अव्य.)-सहयोग से सहायता से, मदद से।
बदस्तूर ($फा.वि.)-यथापूर्व, यथावत्, पहले की तरह, जैसा पहले था वैसा ही।
बदहज़्मी (अ.$फा.स्त्री.)-भोजन का आमाशय में ठीक से  न पचना, अपच, अजीर्ण, मंदाग्नि।
बदहवास (अ.$फा.वि.)-हतबुद्घि, जिसकी मति मारी गई हो, जिसकी अ़क़्ल काम न करती हो; उद्विग्न, जो बौखलाया हुआ हो, घबराया हुआ।
बदहवासी (अ.$फा.स्त्री.)-मति मारी जाना, विवेक का काम न करना; उद्विग्ता, बौखलाहट, घबराहट।
बदहाल (अ.$फा.वि.)-जिसका हाल अच्छा न हो, जो बुरी अवस्था में हो, दुर्दशाग्रस्त, बुरे हाल, कंगाल; रोग से बेहाल, रोग-पीडि़त।
बदहाली (अ.$फा.स्त्री.)-दुर्दशा, आर्थिक तंगी, कंगाली; रोग आदि से दशा की ख़्ाराबी।
बदहीयात (अ.स्त्री.)-दे.-'बदीहियातÓ, दोनों शुद्घ हैं।
बदहैअत (अ.$फा.वि.)-जिसकी मुखाकृति अच्छी न हो, कुरूप, कदाकार, बदसूरत।
बदहैसियत (अ.$फा.वि.)-सामथ्र्यहीन, जिसकी सामथ्र्य न हो; अकुलीन, $गैरख़्ाानदानी, $गैर शरी$फ; नीच, कमीना, लो$फर; निर्धन, कंगाल।
बदाँ ($फा.अव्य.)-'बदÓ का बहु., बुरे लोग।
बदाएÓ (अ.पु.)-'बदीअ़Ó का बहु., अनुपम चीजें, अनोखी चीज़ें, नयी-नयी चीज़ें।
बदाहत (अ.स्त्री.)-ऐसी स्पष्टता जिसमें प्रमाण की ज़रूरत न हो; किसी बात या चीज़ का अचानक आना।
बदाहाल (अ.$फा.अव्य.)-दे.-'बदहालÓ, बुरी अवस्था, बुरा हाल।
ब दिक़्$कत (अ.$फा.अव्य.)-कठिनतापूर्वक, मुश्किल से।
ब दिलोजाँ ($फा.अव्य.)-मन और प्राणों से, प्राण और हृदय से, तन-मन-धन से अर्थात् पूरी तरह से।
बदीं ($फा.अव्य.)-इससे।
बदीं$गरज़ (अ.$फा.अव्य.)-इस आशय से, इस उद्देश्य से, इस आशा से, इस $गरज़ से, इस मक़्सद से।
बदींलिहाज़ (अ.$फा.अव्य.)-इस विचार से, इस बात को ध्यान में रखते हुए, यह विचार करके।
बदींवज्ह (अ.$फा.अव्य.)-इस कारण से, इस कारण को ध्यान में रखते हुए।
बदींसबब (अ.$फा.अव्य.)-इस कारण से, इसलिए, इस सबब से।
बदी (फ़ा.स्त्री.)-बुराई, ख़्ाराबी; पाप, गुनाह; $कुसूर, अपराध;
दोष, ऐब; निन्दा, $गीबत; बदख़्वाही, कृतघ्नता; अहित, हानि।
बदीअ़ (अ.वि.)-नई बात, अनोखी बात; नई वस्तु,अनोखी वस्तु; अनुपम, अजीबो$गरीब, अभूतपूर्व।
बदीउज़्ज़माँ (अ.वि.)-अपने समय में सबसे अनोखा, अपने वक़्त में सबसे अनुपम; सारे विश्व में अद्वितीय, दुनिया में सबसे निराला।
बदीउल जमाल (अ.वि.)-अनुपम सौन्दर्य, जिसके रूप और सौन्दर्य का जवाब न हो।
बदीउल मिसाल (अ.वि.)-अनुपम, अद्वितीय, जिसके-जैसा दूसरा न हो, जिसका कोई उदाहरण न बन सके।
बदीउल मुल्क (अ.वि.)-अनुपम देश, सारे राष्ट्रों में जिसकी तुलना न हो।
बदीद ($फा.वि.)-दे.-'पदीदÓ, दोनों शुद्घ हैं मगर उर्दू में 'पदीदÓ है।
बदील (अ.वि.)-किसी वीज़ के बदले में मिली दूसरी चीज़।
बदीह (अ़.वि.)-बिना सोचे किसी बात का मन में आना; बिना सोचे तुरन्त कहा हुआ शेÓर आदि।
बदीहगो (अ़.$फा.वि.)-उपस्थित वक्ता, बिना सोचे-विचारे किसी विषय पर तुरन्त बोलनेवाला।
बदीहगोई (अ़.$फा.स्त्री.)-बिना तुरन्त भाषण देना; बिना विचारे तुरन्त कविता करना।
बदीही (अ़.वि.)-जिसके लिए प्रमाण की आवश्यकता न हो, सा$फ, स्पष्ट।
बदीहीयात (अ़.स्त्री.)-'बदीहीÓ का बहु., वे बातें जो स्पष्ट हैं और जिनके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता न हो।
बदू (अ़.पु.)-अऱब का ख़्ाानाबदोश व्यक्ति; जंगल और गाँव में रहनेवाला अऱब।
बदौलत (अ़.$फा.अव्य.)-कारण से, सबब से, द्वारा, तु$फैल में।
ब नजऱे इस्लाह (अ़.$फा.अव्य.)-सुधार और दुरुस्ती की दृष्टि के लिए।
ब नजऱे तअ़म्मु$क (अ़.$फा.अव्य.)-सूक्ष्मदृष्टि से, बड़े $गौर से, गहरी नजऱ से।
ब नजऱे तह$की$क (अ़.$फा.अव्य.)-गवेषणा की दृष्टि से; जाँच की दृष्टि से।
ब नजऱे तहसीन (अ़.$फा.अव्य.)-कृतज्ञता की दृष्टि से, सराहनीय रूप से।
ब नजऱे $िफरासत (अ़.$फा.अव्य.)-ताडऩेवाली दृष्टि से, जेह्न से।
ब नजऱे हि$कारत (अ़.$फा.अव्य.)-तिरस्कारपूर्वक, घृणा की दृष्टि से, घृणापूर्वक।
बनफ़्श: ($फा.पु.)-कश्मीर में होनेवाला एक पौधा जो दवा में काम आता है।
बनफ़्श:ज़ार ($फा.पु.)-वह स्थान जहाँ बनफ़्शा के ही पौधे लगे हों।
ब नाचारी ($फा.अव्य.)-विवशता की स्थिति में, मजबूरी से, विवशतापूर्वक, लाचारी की हालत में।
बनात (अ़.स्त्री.)-'बिंतÓ का बहु., लड़कियाँ; मोटा ऊनी कपड़ा।
बनातुन्नाÓश (अ़.स्त्री.)-सप्तर्षि, वे सात तारे जो ध्रुव के इर्दगिर्द घूमते हैं।
बनादिर (अ़.पु.)-'बंदरÓ का बहु., समुद्र के तट, जहाँ जहाज़ आकर ठहरते हैं, बंदरगाहें, गोदी-समूह।
बनान: (अ़.स्त्री.)-पाँव की उँगली।
ब निगाहे इताब (अ़.$फा.अव्य.)-क्रुद्घ नजऱों से, क्रोध की दृष्टि से, $गुस्से-भरी आँखों से।
ब निगाहे करम (अ़.$फा.अव्य.)-दया की दृष्टि से, मेहरबानी की नजऱ से।
ब निगाहे गर्म ($फा.अव्य.)-गरम आँखों से अर्थात् क्रोध की दृष्टि से।
ब निगाहे $गैज़ (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'ब निगाहे इताबÓ।
ब निगाहे तेज़ ($फा.अव्य.)-दे.-'ब निगाहे गर्मÓ।
ब निगाहे मेह्रï ($फा.अव्य.)-दे.-'ब निगाहे करमÓ।
ब निगाहे रह्म (अ़.$फा.अव्य.)-करुणा की दृष्टि से, तरस खाते हुए।
ब निगाहे लुत्$फ (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'ब निगाहे करमÓ।
ब निगाहे शौ$क (अ़.$फा.अव्य.)-उत्कंठा और लालसा की दृष्टि से, चाहत-भरी नजऱों से।
ब निगाहे हस्रत (अ़.$फा.अव्य.)-हस्रत-भरी दृष्टि से, ऐसी नजऱों से जिसमें निराशा के साथ दया और करुणा की माँग हो।
बनीअ़म (अ़.पु.)-वावा के लड़के, चचेरे भाई।
बनीआदम (अ़.पु.)-मानव, मनुष्य, मनुजात, आदमी।
बनीइस्राईल (अ़.पु.)-यहूदी, यहूदियों की उपाधि।
बनीजान (अ़.पु.)-जिन्नों की जाति, भूत-प्रेतों की जाति।
बनीनौअ़ (अ़.पु.)-जाति, किसी जाति के लड़के।बनीनौए इंसान (अ़.पु.)-मानव-जाति, मनुष्यों की जाति, मानव समष्टि।
बनीनौए बशर (अ़.पु.)-दे.-'बनीनौए इंसानÓ।
बनुफ़्श (अ़.वि.)-नीले रंग का, कबूदी।
बपा ($फा.वि.)-उपस्थित, $काइम।
ब पासे ख़्ाातिर (अ़.$फा.अव्य.)-मन रखने के लिए, दिल रखने के लिए।
ब $फज़्ले एज़दी (अ़.$फा.अव्य.)-ईश्वर की कृपा से, भगवान् की दया से।
ब $फरा$गत (अ़.$फा.अव्य.)-शीघ्र ही, तुरन्त, तत्क्षण, उसी समय, $फौरन।
ब$फा (उ.स्त्री.)-सिर में पड़ जानेवाली भूसी, डेंडर$फ।
ब $िफरासत (अ़.$फा.अव्य.)-ताडऩेवाले अनुभव से।
ब $फौर (अ़.$फा.अव्य.)-तत्क्षण, उसी समय, तुरन्त, $फौरन, शीघ्र ही।
बबर (अ़.पु.)-दे.-'बब्रÓ, दोनों शुद्घ हैं मगर 'बब्रÓ अधिक बोलते हैं।
ब बाँगे दुहुल ($फा.अव्य.)-खुल्लम-खुल्ला (कहना), ढोल बजाते हुए (कहना), ज़ोर-शोर से सबके सामने (कहना), उद्घोष करना।
बब्र (अ़.पु.)-एक जंगली जन्तु जो बिल्ली के बराबर होता है, जिसके पूँछ नहीं होती और जो शेर को भी मार डालता है; शेर की एक जाति (यह शब्द शेर के साथ उसके विशेषण के रूप में अधिक आता है)।
बम ($फा.पु.)-थप्पड़, चाँटा; ऊँचा स्वर।
ब मंजि़ल (अ़.$फा.अव्य.)-दशा में, हालत में।
ब मदारिज (अ़.$फा.अव्य.)-कई गुना, कई दरजे।
ब मरातिब (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'ब मदारिजÓ।
ब मिस्दा$क (अ़.$फा.अव्य.)-अनुसार, मुताबि$क।
ब मुक़्तज़ा (अ़.$फा.अव्य.)-कारण से, इस वजह से, के नाते।
ब मुश्किल (अ़.$फा.अव्य.)-असाध्यता से, कठिनतापूर्वक, कठिनाई से, मुश्किल से।
ब मूजिब (अ़.$फा.अव्य.)-अनुसार, मुताबि$क।
ब मूजिबे हुक़्म (अ़.$फा.अव्य.)-आदेशानुसार, जैसा हुक़्म हो वैसा,आज्ञानुसार।
ब यक वक़्त (अ़.$फा.अव्य.)-एक समय में, एक वक़्त में; एक साथ।
बयाज़ (अ़.स्त्री.)-कविता की वह कॉपी जो हाथ से लिखी हो; श्वेतता, स$फेदी।
बयाज़े शेÓर (अ़.स्त्री.)-कविता का हस्त-लिखित संग्रह जो साथ रह सके।
ब यादगार ($फा.अव्य.)-स्मरण में, यादगारी में।
बयान (अ़.पु.)-वार्तालाप, बातचीत; भाषण, व्याख्यान, लेक़्चर, तक्रीर; चर्चा, जि़क्ऱ; सूचना, इत्तिलाअ़; परिच्छेद, बाब (पुस्तक का); अलंकार-विद्या; मु$कदमे में वादी-प्रतिवादी या साथी का इज़्हार।
बयानात (अ़.पु.)-'बयानÓ का बहु.।
बयाबान ($फा.पु.)-दे.-'बियाबानÓ, दोनों शुद्घ हैं, परन्तु वह अधिक शुद्घ और व्यवहृत है।
बयार: ($फा.पु.)-सब्जिय़ों अथवा तरकारियों की बेल, जैसे-'घियाÓ या 'ककड़ीÓ की।
बरंगेख़्त ($फा.वि.)-क्रुद्घ, कुपित, क्रोध अथवा $गुस्से से भरा हुआ़; उकसाया हुआ।
बरंदाज़ ($फा.वि.)-उजाडऩेवाला, नष्ट करनेवाला।
बर ($फा.अव्य.)-पर, ऊपर, (उप.)-किसी शब्द के साथ आकर विशेष अर्थ देता है, जैसे-'आमदनÓ-आना, मगर 'बरÓ लगने पर जब यह शब्द 'बरआमदनÓ हो जाता है तो इसका अर्थ होता है 'निकलनाÓ या 'प्रकट होनाÓ।
बरअंगेख़्त: ($फा.अव्य.)-दे.-'बरंगेख़्तÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरअंदाज़ ($फा.वि.)-दे.-'बरंदाज़Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरअ़क्स (अ़.$फा.वि.)-प्रतिकूल, विसदृश, ख़्िाला$फ; प्रत्युत, बरख़्िाला$फ।
बरअफ्ऱोख़्त: ($फा.वि.)-दे.-'बरफ्ऱोख़्तÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरआवर्द: ($फा.वि.)-दे.-'बरावर्द:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरआशुफ़्त: ($फा.वि.)-दे.-'बराशुफ़्त:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरउफ़्ताद: ($फा.वि.)-दे.-'बरुफ़्ताद:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
बरकंद: ($फा.वि.)-उन्मूलित, जड़ से उखाड़ा हुआ, उखाड़-कर फेंका हुआ।
बरकत (अ़.स्त्री.)-बढ़ती, बढ़ोतरी, जिय़ादती; प्रचुरता, इफ्ऱात; सौभाग्य, ख़्ाुश$िकस्मती; कल्याण, बहबूद; ईश्वर की ओर से गुप्तरूप से धन आदि की बढ़ोतरी।
बर$करार (अ़.$फा.वि.)-दृढ़, अचल, $काइम; स्थिर, साबित; जीवित, जि़ंदा; पुनर्नियुक्त, बहाल।
बरकात (अ़.स्त्री.)-'बरकतÓ का बहु.।
बरख़्ाास्त: ($फा.वि.)-उचटा हुआ, उखड़ा हुआ, हटा हुआ।
बरख़्ाास्त:ख़्ाातिर (अ़.$फा.वि.)-जिससे मन उचट गया हो, उच्चाटन, बददिल।
बरख़्ाास्त:दिल ($फा.वि.)-दे.-'बरख़्ाास्त:ख़्ाातिरÓ।
बरख़्ाास्त ($फा.वि.)-पृथक्; पदच्युत, बरतरफ़; समाप्त, ख़्ात्म।
बरख़्ाास्तगी ($फा.स्त्री.)-इति, अन्त, समाप्ति, ख़्ाातिम:; नौकरी से हटना, पदच्युति, बरतर$फी।
बरख़्िाला$फ (अ़.$फा.वि.)-बरअ़क्स, प्रत्युत; प्रतिकूल, उलटा; विरुद्घ, मुख़्ाालि$फ।
बरख़्ाुदग़लत (अ़.$फा.वि.)-जो कम होते हुए भी स्वयं को बहुत अधिक समझता हो।
बरख़्ाुर्द ($फा.वि.)-सफलता, कामयाबी; ख़्ाुशनसीबी,सौभाग्य, ख़्ाुश$िकस्मती।
बरख़्ाुर्दार ($फा.वि.)-ख़्ाुशनसीब, भाग्यशाली, ख़्ाुश$िकस्मत; सफल मनोरथ; सम्पन्न, फला-फूला; बेटा, पुत्र, लड़का।
बरख़्ाुर्दारी ($फा.स्त्री.)-ख़्ाुशनसीबी, सौभाग्य, ख़्ाुश$िकस्मती; सम्पन्नता, फलना-फूलना; सफलता, कामयाबी।
बरगश्त: ($फा.वि.)-प्रतिकूल, फिरा हुआ, विमुख; उद्दण्ड, अवज्ञाकारी, सरकश।
बरगश्त:ऐयाम (अ़.$फा.वि.)-हतभाग्य, जिसके दिन प्रतिकूल हों, जिसका भाग्यचक्र विपरीत दिशा में घूम रहा हो।
बरगश्त:$िकस्मत (अ़.$फा.वि.)-जिसका भाग्य प्रतिकूल हो गया हो, अभागा, बद$िकस्मत।
बरगश्त:तालेÓ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बरगश्त:$िकस्मतÓ।
बरगश्त:दौलत (अ़.$फा.वि.)-जिसकी सम्पन्नता उससे विमुख हो गई हो, समृद्घि जिससे मुँह फेर गई हो, दुर्दशाग्रस्त।
बरगश्त:नसीब (अ़.$फा.वि.)-दे.-बरगश्त:$िकस्मतÓ।
बरगश्त:बख़्त (अ़.$फा.वि.)-दे.-बरगश्त:$िकस्मतÓ।
बरगश्त:सर ($फा.वि.)-जिसका सिर फिर गया हो, सरफिरा, पागल।
बरगुज़ीद: ($फा.वि.)-चयन किया हुआ, चुना हुआ, छाँटा हुआ; मनोनीत, पसंदीद:; पुनीतात्मा, मु$कद्दस।
बरगुज़ीदगी ($फा.स्त्री.)-चयन करना, छाँटना, चुनना; पसंद करना, मनोनीत करना; पवित्रता, पुनीतता, त$कद्दुस।
बरचीद: ($फा.वि.)-चयन किया हुआ, चुना हुआ, छाँटा हुआ।
बरज़बाँ ($फा.वि.)-कंठस्थ, मुखाग्र, जो ज़बानी याद हो, जो रटा हुआ हो।
बरजस्त: ($फा.वि.)-तड़ाक से, तुरन्त, $फौरन, तत्क्षण, उसी समय; आशु, उपस्थित।
बरजस्त:गो ($फा.वि.)-ऐसा वक्ता जो बिना सोचे तत्काल किसी विषय पर बोल सके, उपस्थित वक्ता, आशु वक्ता; आशु-कवि, जो तुरन्त कविता कर सके; हाजिऱजवाब, वचन-पटु, प्रगल्भ।
बरजस्त:गोई ($फा.स्त्री.)-तत्काल किसी विषय पर बोलना, तुरन्त कविता करना, हाजिऱ जवाबी।
बरजा ($फा.वि.)-एक स्थान पर।
ब रज़ाओ रग़्बत (अ़.$फा.अव्य.)-राज़ी-ख़्ाुशी से, प्रसन्नता और रुचिपूर्वक।
ब रज़ामंदी (अ़.$फा.अव्य.)-सहर्ष, प्रसन्नतापूर्वक, राज़ी के साथ।
बरजामांद: ($फा.वि.)-एक स्थान पर ठहरा या रुका हुआ।
बरतक़्दीर (अ़.$फा.अव्य.)-भाग्यवश, $िकस्मत से, नसीब से।
बरतब$क (अ़.$फा.अव्य.)-अनुसार, मुताबि$क; तुरन्त, $फौरन, तत्क्षण, उसी समय।
बरतर ($फा.वि.)-उत्तम, श्रेष्ठ; ऊँचा, बलंद।
बरतरफ़ ($अ़.फा.वि.)-पदच्युत, बरख़्ाास्त।
बरतरफ़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-पदच्युति, बरख़्ाास्तगी।
बरतरी ($फा.स्त्री.)-ऊँचाई, शीर्षता, बलंदी; उत्तमता, श्रेष्ठता, बड़प्पन।
बरद (अ़.पु.)-ओला, हिमापल, आकाश से गिरनेवाले ब$र्फ-कण।
बरदार ($फा.प्रत्य.)-उठानेवाला, जैसे-'नाज़ बरदारÓ-नाज़ उठानेवाला।
बरदाश्त: ($फा.वि.)-उठाया हुआ।
बरदाश्त:ख़्ाातिर ($फा.वि.)-जिसने अपना मन किसी चीज़ से उठा लिया हो; विमुखता, बेतअ़ल्लु$क, रिक्त, खिन्न, उदास।
बरदाश्त:दिल ($फा.वि.)-दे.-'बरदाश्त:ख़्ाातिरÓ।
बरदाश्त ($फा.स्त्री.)-सहनशीलता; सहन, बोझ उठाना।
बरदाश्तख़्ाान: ($फा.पु.)-सामान रखने का मकान, गोदाम।
बरदोख़्त: ($फा.वि.)-सिला हुआ, जुड़ा हुआ।
बरुए यार ($फा.वि.)-प्रिय-मुख पर, प्रिय-आनन पर।
बरदोश ($फा.अव्य.)-कंधे पर, कंधे पर उठाए हुए, जैसे-'जनाज़:बरदोशÓ-कंधे पर अरथी उठाए हुए।
बरपा ($फा.वि.)-उपस्थित, $काइम, खड़ा हुआ।
बर$फौर (अ़.$फा.वि.)-शीघ्रतर, तुरन्त, $फौरन।
बरफ्ऱोख़्त: ($फा.वि.)-$गुस्से में भरा हुआ, क्रुद्घ, क्रोधित, कुपित।
बरबस्त ($फा.वि.)-नियम, $काइदा; विधान, $कानून; शैली, तजऱ्, पद्यति।
बरबाद ($फा.वि.)-नष्ट, बेनामो-निशान; ध्वस्त, तबाह; ज़ाए; विकृत, ख़्ाराब; निर्जन, वीरान।
बरबादकुन ($फा.वि.)-बरबाद करनेवाला, नष्ट करनेवाला, ध्वस्त करनेवाला।
बरबादी ($फा.स्त्री.)-ध्वंस, तबाही; विनाश, ख़्ाातिम:; विकृत, ख़्ाराबी।
बरबिना (अ़.$फा.अव्य.)-के कारण, के नाते।
बरबिनाए अ़दावत (अ़.$फा.अव्य.)-दुश्मनी के कारण, शत्रुता के कारण, वैर के चलते।
बरबिनाए इख़्लास (अ़.$फा.अव्य.)-मित्रता के नाते, सच्चे प्रेम के कारण।
बरबिनाए ख़्ाुलूस (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'बरबिनाए इख़्लासÓ।
बरबिनाए मुला$कात (अ़.$फा.अव्य.)-मेलजोल के कारण।
बरबिनाए मुहब्बत (अ़.$फा.अव्य.)-प्रेम के कारण, प्यार के नाते।
बरमला ($फा.वि.)-खुल्लम-खुल्ला, मुँह पर, आमने-सामने।
बरमहल (अ़.$फा.वि.)-उचित समय पर, ठीक मौ$के पर, ठीक वक़्त पर; उचित, मौज़ूँ; बरजस्त, मुँहतोड़।
बररू ($फा.वि.)-मुँह पर, आमने-सामने।
बररूएकार ($फा.अव्य.)-उपयोग में आया हुआ, अ़मल में आया हुआ, कार्यान्वित।
बरवक़्त (अ़.$फा.वि.)-ठीक समय पर।
बरस (अ़.पु.)-स$फेद कोढ़चित्र-कुष्ठ।
बरसबील (अ़.$फा.अव्य.)-के प्रसंग में, के रूप में, के तौर पर।
बरसबीले जि़क्र (अ़.$फा.अव्य.)-चर्चा के प्रसंग में, चर्चा के रूप में, चर्चा चलने पर।
बरसबीले तजि़्कर: (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'बरसबीले जि़क्रÓ।
बरसबीले दवाम (अ़.$फा.अव्य.)-सदा के लिए, हमेशा के लिए, नित्य के लिए।
बरसबीले शिकायत (अ़.$फा.अव्य.)-शिकायत के रूप में, उलाहने के रूप में।
बरसरे अ़ाम (अ़.$फा.वि.)-खुल्लम-खुल्ला, सबके सामने, सारे लोगों के सामने, सार्वजनिक तौर पर।
बरसरे कार ($फा.वि.)-काम पर लगा हुआ, जिसके पास करने को काम हो, बाकार।
बरसरे कीं ($फा.वि.)-दे.-'बरसरे कीन:Ó।
बरसरे कीन: ($फा.वि.)-शत्रुता पर तत्पर, मरने-मारने पर आमादा, वैर पर उतारू।
बरसरे ख़्ाुद ($फा.वि.)-दे.-'बरसरे ख़्वेशÓ।
बरसरे ख़्वेश ($फा.वि.)-मनमौजी, स्वेच्छाचारी, स्वच्छन्द।
बरसरे जंग ($फा.वि.)-लडऩे-मरने को तैयार, लड़ाई करने के लिए आमादा।
बरसरे बाज़ार ($फा.अव्य.)-बाज़ार में अर्थात् सारी जनता के सामने।
बरसरे मत्लब (अ़.$फा.अव्य.)-अस्ली मतलब पर।
बरसरे मौ$का (अ़.$फा.अव्य.)-मौ$के पर, घटनास्थल पर।
बरसे अब्यज़ (अ़.पु.)-वह कुष्ठ जो स$फेद हो, जिसके धब्बे स$फेद हों, धवल-कुष्ठ, श्वेत-कुष्ठ।
बरसे अस्वद (अ़.पु.)-वह श्वेत-कुष्ठ जिसके धब्बे काले हों।
बरह्न: ($फा.वि.)-दिगम्बर, नग्न, नंगा, जो कपड़े न पहने हो। 'खुली छत पर तुझे जाने-तमन्ना, बरह्न: देखकर शरमा रहा हूँÓ-माँझी
बरह्न:गो ($फा.वि.)-स्पष्ट-वक्ता, सा$फ-सा$फ कहनेवाला, लगी-लिपटी न रखनेवाला।
बरह्न:गोई ($फा.स्त्री.)-सा$फ-सा$फ कहना, लगी-लिपटी न रखना, स्पष्ट कथन।
बरह्न:पा ($फा.वि.)-नंगे पाँव, नग्न-पग, जिसके पाँव में जूता-चप्पल आदि न हो।
बरह्न:पाई ($फा.स्त्री.)-नंगे पाँव होना, नंगे पाँव चलना।
बरह्न:सर ($फा.वि.)-नंगे सर, जिसके सिर पर टोपी आदि न हो, नग्न-शिर।
बरह्नगी ($फा.स्त्री.)-नग्नता, नंगापन।
बरह्म ($फा.वि.)-अप्रसन्न, नाराज़, क्रुद्घ, ख़्ा$फा; तितर-बितर, अस्त-व्यस्त। 'सारी दुनिया ही हो गई बरह्म, आईना जो दिखा दिया हमनेÓ-माँझी
बरह्मन ($फा.पु.)-विप्र, ब्राह्मïण, हिन्दुओं में सर्वोच्च जाति।
बरह्मी ($फा.स्त्री.)-नाराज़ी, क्रोध, $गुस्सा, अप्रसन्नता; तितर-बितरपना, बिखराव, अस्त-व्यस्तता।
बरह्मोदरहम ($फा.पु.)-परीशान, अस्त-व्यस्त।
बराअ़त (अ़.स्त्री.)-दे.-'बरीयतÓ।
बराअत (अ़.स्त्री.)-तला$क; दूरी।
बराए ($फा.अव्य.)-वास्ते, लिए, प्रति।
बराए ख़्ाुदा ($फा.अव्य.)-ईश्वर के लिए, भगवान् के वास्ते।
बराए चंदे ($फा.अव्य.)-थोड़ी देर के लिए।
बराए नाम ($फा.अव्य.)-नाममात्र को, कहने-भर को।
बराए बैत (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'बराए नामÓ, नाम-भर के लिए; दिखाने-भर के लिए; व्यर्थ, $फुज़ूल; शेÓर की पूर्ति के लिए; भर्ती के लिए।
बराज़ (अ़.पु.)-दे.-'बिराज़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
बरात (अ़.स्त्री.)-आदेशपत्र, हुक़्मनाम:; वह पत्र जिससे ख़्ाज़ाने से रुपया मिले, चेक।
बरादर ($फा.पु.)-भ्रातृ, भाई।
बरादरकुश ($फा.वि.)-भ्रातृ-हन्ता, भाई को मार डालनेवाला; भाई को नुक़्सान पहुँचाकर अपना भला करनेवाला।
बरादरकुशी ($फा.स्त्री.)-भ्रातृ-हत्या, भाई को मार डालना; भाई को नुक़्सान पहुँचाकर अपना भला करना।
बरादरज़ाद: ($फा.वि.)-भ्रातृ-सुत, भतीजा, भाई का लड़का।
बरादरज़ादगी ($फा.स्त्री.)-भतीजा होने का रिश्ता, भाई का लड़का होने का नाता।
बरादरान: ($फा.अव्य.)-भाइयों-जैसा।
बरादरी ($फा.स्त्री.)-भाई-बंदी; एक जाति; एक जाति का व्यक्ति।
बरादरे अख्य़ा$की (अ़.$फा.पु.)-वे भाई जिनका पिता एक हो और माँएँ अलग-अलग हों, सौतेले भाई।
बरादरे अ़ल्लातीं (अ़.$फा.पु.)-वे भाई जिनकी माँ एक हों और पिता अलग-अलग हों।
बरादरे कलाँ ($फा.पु.)-बड़ा भाई, पूर्वज।
बरादरे ख़्ाुर्द ($फा.पु.)-छोटा भाई, अनुज।
बरादरे ख़्वाँद: ($फा.पु.)-मुँह-बोला भाई, धर्म-भाई, जिसे भाई बना लें।
बरादरे तौअम (अ़.$फा.पु.)-जुड़वाँ भाई, एक साथ पैदा होनेवाले भाई (जो एक योनि से एक समय में तले-ऊपर पैदा हों), युग्म, यमल।
बरादरे निस्बती (अ़.$फा.पु.)-पत्नी का भाई, साला।
बरादरे बत्नी (अ़.$फा.पु.)-सगा भाई, सहोदर, एक पेट से पैदा।
बरादरे बुज़ुर्ग ($फा.पु.)-दे.-'बरादरे कलाँÓ।
बरादरे रिज़ाई (अ़.$फा.पु.)-वे दो व्यक्ति जिन्होंने किसी एक स्त्री का दूध पिया हो।
बरादरे सुल्बी (अ़.$फा.पु.)-दे.-'बरादरे बत्नीÓ।
बरादरे ह$की$की (अ़.$फा.पु.)-सगा भाई, सहोदर।
बराबर ($फा.वि.)-समान, तुल्य, यकसाँ; सदृश, मिस्ल; एक साथ, इकट्ठे; क्रमबद्घ, सिलसिलेवार; निरन्तर, लगातार; निकट, पास, समीप; बार-बार, बारम्बार; समतल, हमवार।
बराबर बराबर ($फा.वि.)-निकट-निकट, पास-पास, $करीब-$करीब; आधा-आधा।
बराबरी ($फा.स्त्री.)-समता, यकसानी; धृष्टता, गुस्ताख़्ाी; मु$काबला, सामना; उद्दण्डता, सरकशी।
बरामद: ($फा.पु.)-मकान के आगे बिना दरवाज़े का कोठा, दालान।
बरामद ($फा.वि.)-बाहर आया हुआ; बाहर आया हुआ माल, निर्यात।
बरामदगी ($फा.स्त्री.)-बाहर आना, बरामद होना; खोए हुए माल का किसी के पास निकलना; माल का देश से बाहर जाना।
बरामिक: (अ़.पु.)-'बर्मकÓ का बहु., बर्मक-वंश के व्यक्ति जो बहुत प्रतिष्ठित और दानशील थे।
बराया (अ़.स्त्री.)-'बरीय:Ó का बहु., मानव-जाति, मनुष्य-वर्ग।
बरावर्द: ($फा.वि.)-बाहर लाया हुआ; एक मद से निकालकर दूसरे मद में डाला हुआ।
बरावर्द ($फा.स्त्री.)-वेतन का बिल; ख़्ार्च के हिसाब का पर्चा; तख़्मीने की $फर्द।
बरावेख़्त: ($फा.वि.)-लटकाया हुआ।
बराशुफ़्त: ($फा.वि.)-क्रोधित, क्रुद्घ, कुपित, $गुस्से में भरा हुआ।
बराहिम: (अ़.पु.)-'बरह्मनÓ का बहु., ब्राह्मïण लोग।
बराहीन (अ़.स्त्री.)-'बुर्हानÓ का बहु., दलीलें।
बराहे अदब (अ़.$फा.अव्य.)-अदब के साथ, निष्ठापूर्वक, आदर और सत्कार के विचार से।
बराहे आश्ती ($फा.अव्य.)-मित्रता के विचार से, दोस्ती के लिहाज़ से।
बराहे इंसा$फ (अ़.$फा.अव्य.)-इंसा$फ और न्याय की दृष्टि से।
बराहे एहतियात (अ़.$फा.अव्य.)-सतर्कता के लिहाज़ से, सावधानी के विचार से।
बराहे करम (अ़.$फा.अव्य.)-अनुकम्पा करके, कृपा करके, कृपया।
बराहे नवाजि़श ($फा.अव्य.)-कृपा की दृष्टि से, कृपा करके।
बराहे रास्त ($फा.वि.)-सीधे तौर पर; जिससे काम हो सीधा उसी से, किसी दूसरे को बीच में डाले बिना।
बरींबिना ($फा.अव्य.)-इसलिए, इस आधार पर, इस कारण से, अत:।
बरी (अ़.वि.)-मुक्त, आज़ाद; रिहा, बन्धनमुक्त; निर्दोष, बे$कुसूर; पृथक्, अलग।
बरी उजि़्ज़म्म: (अ़.वि.)-भारमुक्त, जो किसी उत्तरदायित्व से अलग हो।
बरीद (अ़.पु.)-चिट्ठीरसा, पत्रवाहक, $कासिद; दूत, एलची; डाक।
बरीय: (अ़.स्त्री.)-जिसमें जीवन हो, प्राणी, जानदार, मख़्ालू$क।
बरीयत (अ़.स्त्री.)-दे.-'बरीय:Ó, बरी होना, मुक्त होना; निरपराध होना, बे$कुसूरी।
बरुफ़्ताद: ($फा.वि.)-नष्ट, ध्वस्त, नाबूद; दूर किया हुआ; निर्बल; पराजित।
बरुफ़्तादगी ($फा.स्त्री.)-विनाश, ध्वंस, नाबूदगी; दूर होना, अलग होना; निर्बलता, कमज़ोरी; हार, पराजय।
बरूएकार ($फा.अव्य.)-दे.-'बररूएकारÓ।
बरोमंद ($फा.वि.)-सफल, कामयाब; लाभान्वित, मुस्त$फीज; सौभाग्यशाली, ख़्ाुश$िकस्मत, ख़्ाुशनसीब।
बरोमंदी ($फा.स्त्री.)-सफल होना; लाभ उठाना; सौभाग्य।
बर्उस्साअ़: (अ़.पु.)-ऐसी दवा जो एक क्षण में रोग से मुक्त कर दे, रामबाण, एकदम अचूक दवा।
ब$र्कंदाज़ (उ.वि.)-चपरासी; सिपाही; हरकारा; बन्दू$कची; तोपची।
ब$र्कंदाज़ी (उ.स्त्री.)-चपरासी, सिपाही या हरकारे का काम; तोप या बन्दू$क चलाना।
ब$र्क (अ़.स्त्री.)-आकाशीय बिजली, तडि़त, चंचला, चपला, बिजली; विद्युत्, प्रयोग में आनेवाली, इलेक्ट्रिसिटी।
ब$र्कअंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कंदाज़Ó।
ब$र्कअंदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)- दे.-'ब$र्कंदाज़ीÓ।
ब$र्कअफ्ग़न (अ़.$फा.वि.)-बिजली गिरानेवाला, बिजली गिराकर तबाह करनेवाला (वाली), दे.-'ब$र्कफ्ग़नÓ।
ब$र्कआसा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कासाÓ, दोनों शुद्घ हैं मगर वह अधिक शुद्घ है।
ब$र्कआहंग (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्काहंगÓ, दोनों शुद्घ हैं मगर वह अधिक शुद्घ है।
ब$र्कइनाँ (अ़.$फा.वि.)-बिजली के साथ चलनेवाला (वाली) अर्थात् बहुत ही चंचल और चपल।
ब$र्कख़्िाराम (अ़.$फा.वि.)-बिजली की भाँति बहुत-ही शीघ्र गतिवाला।
ब$र्कगाम (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कख़्िारामÓ।
ब$र्कज़द: (अ़.$फा.वि.)-जिसे बिजली मार गई हो, जिसे बिजली का शाक या करंट लगा हो, जिस पर बिजली गिरे।
ब$र्कज़दगी (अ़.$फा.स्त्री.)-बिजली गिरना, बिजली का मार जाना, बिजली का शाक या करंट लगना।
ब$र्कजौलाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कख़्िारामÓ।
ब$र्कताज़ (अ़.$फा.वि.)-बिजली की तरह गिरनेवाला।
ब$र्कताब (अ़.$फा.वि.)-बिजली की तरह चमकनेवाला।
ब$र्कदम (अ़.$फा.वि.)-बहुत-ही तीक्ष्ण, बहुत-ही धारदार।
ब$र्कनिगाह (अ़.$फा.वि.)-जिसकी आँखों में बिजली की-सी चंचलता हो, जिसकी आँखें बिजलियाँ गिराती हों।
ब$र्कनुमा (अ़.$फा.वि.)-एक यंत्र जिससे बिजली का हाल जाना जाता है।
ब$र्कफ्ग़न (अ़.$फा.वि.)-बिजलियाँ गिरानेवाला (वाली)।
ब$र्करफ़्तार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कख़्िारामÓ।
ब$र्करफ़्तारी (अ़.$फा.स्त्री.)-बिजली की-सी गति, बिजली की भाँति तेज़ चलना।
ब$र्करुबा (अ़.$फा.वि.)-बिजली का कंडक्टर, बिजली उतारनेवाला।
ब$र्कवश (अ़.$फा.वि.)-बिजली की भाँति चंचल, चपल और तेज़।
ब$र्कशिताब (अ़.$फा.वि.)-बिजली की तरह तेज़ी से काम करनेवाला।
ब$र्कसामाँ (अ़.$फा.वि.)-बिजली की-सी चपलता, चंचलता और चमक रखनेवाला (वाली)।
ब$र्कासा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ब$र्कवशÓ।
ब$र्काहंग (अ़.$फा.वि.)-बिजली-जैसी कड़कवाला।
ब$िर्कय: (अ़.पु.)-तार, टेलीग्रा$फ (विशेष-पहले समाचार या संदेश आदि डाकघर से तार अथवा टेलीग्रा$फ द्वारा ही भेजे जाते थे। देश में संचार-क्राति के बढऩे के साथ-साथ समाचार अथवा संदेश आदि दूसरे माध्यमों से भेजे जाने लगे और तार-सेवा की उपयोगिता ख़्ात्म होती गई, इसलिए वर्ष 2013 में केन्द्र सरकार ने इस सेवा को बन्द कर दिया)।
ब$र्की (अ़.वि.)-बिजली का; बिजली से सम्बन्ध रखनेवाला।
ब$र्के ख़्ााति$फ (अ़.स्त्री.)-वह बिजली जो आँखों में चका- चौंध कर दे।
ब$र्के ख़्िार्मनसोज़ (अ़.$फा.स्त्री.)-वह बिजली जो खलियान को जला डाले।
ब$र्के जिहिंद: (अ़.$फा.स्त्री.)-तड़पनेवाली बिजली।
ब$र्के तपाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-तड़पनेवाली बिजली।
ब$र्के दमाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-क्रुद्घ बिजली, कुपित बिजली।
ब$र्के नजऱ (अ़.$फा.स्त्री.)-निगाह की बिजली, प्रेयसी का कटाक्षपात, बिजली गिराती हुई नजऱ।
ब$र्के नाज़ (अ़.$फा.स्त्री.)-नाज़ोअदा की बिजली अर्थात् हावभाव दिखानेवाली बिजली, बिजली की भाँति जला देने-वाले हावभाव।
ब$र्के निगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-निगाहों की बिजली।
ब$र्के बेअमाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-वह बिजली जिससे बचाव न हो सके, जो अवश्य ही गिरकर जान ले ले।
ब$र्के बेजिऩ्हार (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'ब$र्के बेअमाँÓ।
बख्ऱ्ा ($फा.पु.)-टुकड़ा, हिस्सा, अंश, भाग।
बर्ग ($फा.पु.)-पत्ता, पत्ती, दल।
बर्गरेज़ ($फा.वि.)-पत्तों को बिखेरनेवाला अर्थात् पतझड़ का मौसम।
बर्गुस्तुवाँ ($फा.पु.)-ज़ीन पर डालने का कपड़ा, पाखर।
बर्गे ख़्ाज़ाँ ($फा.पु.)-वह पत्त जो पतझड़ के कारण पीला पड़ गया हो या पेड़ से झड़ गया हो।
बर्गे ख़्ाज़ाँदीद: ($फा.पु.)-पतझड़ में गिरा हुआ पत्ता।
बर्गे ख़्ाज़ाँरसीद: ($फा.पु.)-वह पत्ता जिसको पतझड़ ने पीला कर दिया हो।
बर्गे गुल ($फा.पु.)-गलाब की पँखुड़ी।
बर्गे नौ ($फा.पु.)-नया पत्ता, किसलय।
बर्गे सब्ज़ ($फा.पु.)-हरा पत्ता।
बर्गो नवा ($फा.पु.)-खाने-पीने की सामग्री, जीवन व्यतीत करने के साधन।
बर्गोबार ($फा.पु.)-फल-फूल, फल और पत्ते।
बर्गोसाज़ ($फा.पु.)-साज़ोसामान।
बजऱ् ($फा.पु.)-कृषि, खेती, जिऱाअ़त; सुन्दरता, शोभा, छटा।
बजऱ्ख़्ा (अ़.पु.)-परस्पर विरोध रखनेवाली दो चीज़ों के बीच की तीसरी ऐसी चीज़ जो उन दोनों से सम्पर्क रखे, जैसे-बन्दर, जो इंसानों और जानवरों के बीच 'बजऱ्ख़्ाÓ है।
बजऱ्गर ($फा.पु.)-कृषक, किसान।
बजग़री ($फा.स्त्री.)-कृषि, खेती, किसानी, काश्तकारी।
बजऱ्न ($फा.पु.)-गली, वीथी, कूचा।
बर्द: (तु.पु.)-दास, $गुलाम; दासी, कनीज़; दाय:, धाय।
बर्द:$फरोश (तु.$फा.वि.)-इंसानों का क्रिय-विक्रय करनेवाला, आदमियों की ख़्ारीद-फऱोख़्त करनेवाला।
बर्द:$फरोशी (तु.$फा.स्त्री.)-इंसानों की ख़्ारीद-$फरोख़्त करना।
बर्द (अ़.पु.)-शीत, जाड़ा, ठण्ड।
बर्दे अज़ूज़ (अ़.पु.)-फागुन के आख़्िारी दिनों का जाड़ा, जब वह बूढ़ा हो जाता है।
बर्दे अत्रा$फ (अ़.पु.)-बीमार के अंतिम समय में उसके हाथ-पाँव का ठण्डा पडऩा।
बर्दे लयाली (अ़.पु.)-शीत-रात्रि की सर्दी, जाड़े की रातों की ठण्ड।
बर्ना ($फा.वि.)-युवा, जवान, तरुण।
बर्नाई ($फा.स्त्री.)-युवावस्था, जवानी, तरुणाई।
ब$र्फ ($फा.उभ.)-हिम, जमा हुआ पानी जो मशीन से बनाते हैं और पानी ठण्डा करने के काम आता है; पाला, तुषार; बहुत अधिक ठण्डा।
बर्फ़पर्वर्द: ($फा.वि.)-जो बर्फ़ में लगाकर ठण्डा किया गया हो।
बर्फ़पोश ($फा.वि.)-जो बर्फ़ से ढँका हो, हिमाच्छादित, जैसे-'बर्फ़पोश पहाड़Ó।
बर्फ़$फरोश ($फा.वि.)-ब$र्फ बेचनेवाला।
ब$र्फबारी ($फा.स्त्री.)-ब$र्फ गिरना, पाला पडऩा।
ब$र्फानी ($फा.वि.)-ब$र्फ से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु, ब$र्फ-जैसी ठण्डी, ब$र्फीली।
ब$र्फाब ($फा.पु.)-ब$र्फ से ठण्डा किया हुआ पानी।
ब$िर्फस्तान ($फा.पु.)-वह स्थान जहाँ ब$र्फ ही ब$र्फ हो, जहाँ बहुत ब$र्फ पड़ती हो।
ब$र्फी ($फा.स्त्री.)-दूध से बननेवाली एक प्रसिद्घ मिठाई।
बर्बत ($फा.पु.)-एक बाजा जो सितार की तरह होता है परन्तु उसकी तुंबी बड़ी और लम्बाई कम होती है।
बर्बतनवाज़ ($फा.पु.)-बर्बत नामक बाजा बनानेवाला।
बर्बर (अ़.पु.)-अफ्ऱीका का एक प्रदेश; इस प्रदेश के निवासी।
बर्बरीयत (अ़.स्त्री.)-ज़ुल्म, अन्याय, अत्याचार; हैवानियत, पशुता।
बर्म: ($फा.पु.)-लकड़ी में छेद करने का यंत्र, भेदीसार।
बर्मक ($फा.पु.)-एक अग्नि-पूजक, जो बलख़्ा के अग्निगृह का अग्निहोत्री था, उसकी संतान बड़े-बड़े पदों पर पहुँची और अपनी विद्वता एवं दानशीलता के कारण बहुत प्रसिद्व हुई। इस संतान के व्यक्ति बर्मक नाम के कारण 'बरामिक:Ó कहलाए।
बर्शकाल ($फा.पु.)-वर्षाकाल, बरसात।
बर्साम ($फा.पु.)-उरोग्रह, प्लूरसी, सीने का शोथ।
बर्हमन ($फा.पु.)-दे.-'बरह्मनÓ, दोनों शुद्घ हैं, विप्र, ब्राह्मïण।
बर्हमनज़ाद: ($फा.पु.)-ब्राह्मïण का लड़का, ब्राह्मïण-पुत्र।
बर्हमनबच: ($फा.पु.)-दे.-'बर्हमनज़ाद:Ó।
बर्रा$क (अ़.वि.)-शुभ्र, उज्जवल, बहुत स$फेद, धवल।
बर्राद (अ़.पु.)-चायदानी; ठण्डा करनेवाला।
बलंद ($फा.वि.)-उच्च, ऊँचा, प्रतिष्ठित, मुअ़ज़्जज़़; महान्, अज़़ीम; विस्तृत, लम्बा, दराज़; बहुत अधिक, अत्यधिक।
बलंदअख़्तर ($फा.वि.)-जिसके सितारे उन्नत हों, प्रतापी, तेजस्वी, इक़्बालमंद।
बलंदआवाज़ ($फा.वि.)-जिसकी आवाज़ ऊँची और ज़ोरदार हो; ज़ोर से बोलनेवाला; ज़ोरदार बात कहनेवाला।
बलंदआश्याँ ($फा.वि.)-जिसका घोंसला बहुत ऊँचा हो अर्थात् ऊँची अट्टालिकावाला यानी बहुत रुत्बेवाला।
बलंदआहंग ($फा.वि.)-ज़ोर से बोलनेवाला; ज़ोरदार बात कहनेवाला अर्थात् बड़ा दाÓवा करनेवाला।
बलंदइक़्बाल (अ़.$फा.वि.)-प्रतापवान्, तेजस्वी, इक़्बालमंद।
बलंदइक़्बाली (अ़.$फा.स्त्री.)-प्रताप, तेज़, इक़्बाल।
बलंद$कामत (अ़.$फा.वि.)-दीर्घकाय, लम्बा-तगड़ा।
बलंदख़्ायाल (अ़.$फा.वि.)-उच्चाशय, विशाल-हृदय, $फराख़्ा दिल।
बलंदख़्ायाली (अ़.$फा.स्त्री.)-दिल की विशालता, हृदय का बड़प्पन, $फराख़्ादिली।
बलंदतर ($फा.वि.)-बहुत ऊँचा, उच्चतर।
बलंदतरीन ($फा.वि.)-सबसे ऊँचा, उच्चतम।
बलंदनजऱ (अ़.$फा.वि.)-उच्चाशय, उच्चदर्शी, बहुत ऊँची नजऱ रखनेवाला।
बलंदनजऱी (अ़.$फा.स्त्री.)-दृष्टि का ऊँचा होना, केवल बड़ी चीज़ों और बड़े उद्देश्यों पर नजऱ रखना।
बलंदनिगाह ($फा.वि.)-दे.-'बलंदनजऱÓ।
बलंदनिगाही ($फा.स्त्री.)-दे.-'बलंदनजऱीÓ।
बलंदपरवाज़ ($फा.वि.)-ऊँचा उडऩेवाला; बलंदख़्ायाल, उच्चाशय।
बलंदपरवाज़ी ($फा.स्त्री.)-ऊँची उड़ान; आशय का उच्च होना।
बलंदपाय: ($फा.वि.)-बड़े पदवाला, बड़ी प्रतिष्ठावाला।
बलंदपायगी ($फा.स्त्री.)-पद और प्रतिष्ठा का उच्च होना।
बलंद$िफत्रत (अ़.$फा.वि.)-जिसकी प्रकृति उच्च-दर्शिनी हो।
बलंदबख़्त ($फा.वि.)-सौभाग्यशाली, भाग्यवान्।
बलंदबाँग ($फा.वि.)-ज़ोर से बोलनेवाला; ज़ोरदार दाÓवा करनेवाला।
बलंदबाला ($फा.वि.)-दे.-'बलंद$कामतÓ।
बलंदबीं (अ़.$फा.वि.)-बलंदनजऱ, उच्चदर्शी, केवल बड़े उद्देश्यों पर दृष्टि रखनेवाला।
बलंदबीनी ($फा.स्त्री.)-दूरदृष्टि, उच्चदर्शिता, बलंदनजऱी।
बलंदमर्तब: (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बलंदपाय:Ó।
बलंदसीरत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बलंद $िफत्रतÓ।
बलंदहिम्मत (अ़.$फा.वि.)-उच्चोत्साही, बड़ी हिम्मतवाला।
बलंदहौसल: (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बलंदहिम्मतÓ।
बलंदी ($फा.स्त्री.)-ऊँचाई, उत्तुंगता, उच्चता; महत्त्व, अ़ज़्मत; श्रेष्ठता, बड़ाई, बड़प्पन।
बलंदोपस्त ($फा.पु.)-उठाव-गिराव, ऊँचा-नीचा, ऊँच-नीच।
बलख़्ा ($फा.पु.)-अ$फ$गानिस्तान का एक प्राचीन नगर, जो समय के साथ-साथ एक छोटे-सेे गाँव में परिवर्तित हो गया।
ब लजाजत (अ़.$फा.अव्य.)-नम्रतापूर्वक, अ़ाजिज़ी के साथ; गिड़गिड़ाते हुए, विनती करते हुए।
ब लताइ$फुल हियल (अ़.$फा.अव्य.)-नए-नए बहानों से, अच्छे-अच्छे बहानों के साथ।
बलद (अ़.पु.)-नगर, शह्रï (शहर)।
बलद ($फा.पु.)-रास्ता दिखानेवाला, पथ-प्रदर्शक, राहनुमा; नेता, लीडर।
बलल (अ़.स्त्री.)-तरी, नमी, आद्र्रता।
बला (अ़.अव्य.)-हाँ; अवश्य, ज़रूर।
बला (अ़.स्त्री.)-मुसीबत, आपत्ति, विपत्ति; दैवी विपत्ति, आस्मानी मुसीबत, प्राकृतिक विपदा; प्रेतबाधा, भूत-प्रेत, जिन-परी, आसेब; दुष्ट, उपद्रवी, झगड़ालू, चपल, चंवल, शरीर; धूर्त, ख़्ाबीस; कुशल, चालाक; बहुत अधिक; भयानक, ख़्ाौ$फनाक।
बलाए अज़़ीम (अ़.स्त्री.)-बहुत बड़ी आपत्ति या विपत्ति।
बलाए आस्मानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दैवी विपदा, $गैबी मुसीबत, अज़़ाबे इलाही।
बलाए जाँ ($फा.स्त्री.)-जी का जंजाल, प्राणों के लिए मुसीबत का कारण, वबाले जान।
बलाए नागहानी ($फा.स्त्री.)-अचानक आनेवाली विपदा या मुसीबत, आकस्मिक आपदा।
बलाए बेदमाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसी आपदा जो टल न सके, जिसका कोई तोड़ न हो; न टल पानेवाली मुसीबत।
बलाए मुजस्सम (अ़.स्त्री.)-साकार विपत्ति, ऐसा व्यक्ति जो सर से पाँव तक मुसीबत ही मुसीबत हो (विशेष-प्रमिका के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है)।
बलाए रोजग़ार (अ़.$फा.स्त्री.)-दुनिया के लिए मुसीबत का कारण, ज़माने के लिए आ$फत, सबके लिए परेशानी का कारण।
बलाकश (अ़.$फा.वि.)-मुसीबत झेलनेवाला, विपत्तियाँ सहन करनेवाला, आ$फतों की मार झेलनेवाला।
बला$ग (अ़.पु.)-भेजना, पहुँचाना।
बला$गत (अ़.स्त्री.)-साहित्य में गद्य या पद्य की वह शैली जिसमें अलंकार आदि का प्रयोग चमत्कारपूर्वक किया जाए, साहित्य की आलंकारिक शैली।
बला$गत आईन (अ़.$फा.वि.)-बला$गत से भरा हुआ, बली$ग, अलंकारों से परिपूर्ण।
बला$गत आमेज़ (अ़.$फा.वि.)-अलंकारों से परिपूर्ण लेख।
बलागर्दां (अ़.$फा.वि.)-वह जो बलि चढ़ा दिया गया हो।
बलाज़द: (अ़.$फा.वि.)-आपदाग्रस्त, विपत्तिग्रस्त, मुसीबत का मारा।
बलादत (अ़.स्त्री.)-विवेक की कमी, बुद्घि-मंदता, प्रतिभा की कमी, कुंदज़ेह्नी।
बलादते ज़ेह्न (अ़.स्त्री.)-बुद्घि का कुंठित होना, विवेक का भोथरापन, ज़ेह्न का कुंदपन।
बलादुर (अ़.पु.)-भिलावाँ, भल्लातक।
बलानसीब (अ़.वि.)-जिसके भाग्य में मुसीबतें ही मुसीबतें हों।
बलानोश (अ़.$फा.वि.)-बहुत अधिक मदिरापान करनेवाला, पियक्कड़, बहुत अधिक शराब पीनेवाला, शराबी।
बलानोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-अत्यधिक मदिरा पीना, बहुत अधिक शराब पीना।
बलाया (अ़.स्त्री.)-'बलीय:Ó का बहु., आपदाएँ, विपत्तियाँ, मुसीबतें।
बलाहत (अ़.स्त्री.)-व्यावहारिक विषयों में ज्ञान की कमी; मूर्खता, नादानी। दे.-'बिलाहतÓ, दोनों शुद्घ हैं।
बली$ग (अ़.वि.)-जो बला$गत अर्थात् अलंकारों का ज्ञाता हो, अलंकार-शास्त्री; जो लेख अलंकारों से परिपूर्ण हो।
बलीद (अ़.वि.)-मंदप्रतिभ, कुंठित बुद्घिवाला, मंदमति।
बलीदुज़्ज़ेह्न (अ़.वि.)-मंदप्रतिभ, कुंठित बुद्घिवाला, कुंद ज़ेह्न।
बलीय: (अ़.पु.)-मुसीबत, आपत्ति, विपत्ति, विपदा।
बलीयत (अ़.स्त्री.)-मुसीबत, आपत्ति, विपत्ति, विपदा।
बलीयात (अ़.स्त्री.)-'बलीयतÓ का बहु., मुसीबतें, विपदाएँ, आपदाएँ, बलाएँ, विपत्तियाँ।
बलूत (अ़.पु.)-दे.-'बल्लूतÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
बलूर (अ़.$फा.पु.)-'बल्लूरÓ का लघु., दे.-'बल्लूरÓ।
बलेल: (अ़.पु.)-बहेड़ा, एक प्रसिद्घ फल, जो त्रिफला का अंश है।
बल्अ़मेबाऊर (अ़.पु.)-एक वाक्-सिद्घ यहूदी संत, जिसके शाप से हज्ऱत मूसा चालीस वर्षों तक वनों में भटकते फिरे, 'बाऊरÓ उनके पिता का नाम था।
बल्$कान (अ़.पु.)-यूरोप का एक प्रायद्वीप, जिसमें रोमानिया, बल्गारिया, सर्विया, मक़्दूनिया, अल्बानिया, यूनान और रोम शामिल हैं।
बल्कि (अ़.$फा.अव्य.)-वरन्, अपितु, वरंच।
बल्$गम (अ़.पु.)-एक धातु, श्लेष्मा।
बल्$गमी (अ़.वि.)-श्लेष्मा-सम्बन्धी।
बल्द: (अ़.पु.)-नगर, पुरी, शह्र; 21वाँ नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा।
बल्दिय: (अ़.स्त्री.)-नगरपालिका, म्यूनिस्पैलिटी।
बल्लूर (अ़.पु.)-एक मूल्यवान् शीशा, स्फटिकमणि।
बल्वा (अ़.पु.)-उपद्रव, दंगा, $फसाद; विद्रोह, ब$गावत।
बल्साँ (अ़.पु.)-एक पेड़, जिसके पत्तों से तेल निकलता है, जिसे 'रौ$गने बल्साँÓ कहते हैं। यह पेड़ अऱब और मिस्र आदि में पैदा होता है।
बवज्हे अह्सन (अ़.$फा.अव्य.)-बहुत अच्छी तरह से।
बवज्हे हलाल (अ़.$फा.अव्य.)-हलाल की कमाई से।
बवातिन (अ़.पु.)-'बातिनÓ का बहु., हृदय-समूह।
बवादी (अ़.पु.)-'वादीÓ का बहु., घाटियाँ।
बवारि$क (अ़.स्त्री.)-'बारिक़Ó का बहु., बिजलियाँ, तडि़त-समूह।
बवासिर (अ़.स्त्री.)-'बासूरÓ का बहु., एक रोग, अर्श।
बव्वाब (अ़.वि.)-दरबान, द्वारपाल, ड्योढ़ीबान।
बव्वाल (अ़.स्त्री.)-अत्यधिक पेशाब करनेवाला, मुतेड़ा, मुतोड़ा।
बशर: (अ़.पु.)-चमड़ी, त्वचा, त्वक्, ऊपरी चमड़ा।
बशर (अ़.पु.)-मनुष्य, मानव, आदमी।
बशरी (अ़.वि.)-इंसानी, मानुषिक, आदमी का; आदमी-सम्बन्धी।
बशरीयत (अ़.स्त्री.)-इंसानीयत, मानवता।
बशर्ते कि (अ़.$फा.अव्य.)-शर्त यह है कि, इस शर्त के साथ कि।
ब शर्हे सद्र (अ़.$फा.अव्य.)-लिखितानुसार, जैसा लिखा है उसी के अनुसार।
बशाशत (अ़.स्त्री.)-आनन्द, उल्लास, मसर्रत; प्रफुल्लता; ख़्ाुशी, प्रसन्नता।
बशासते $कल्ब (अ़.स्त्री.)-मन की प्रफुल्लता, दिल की शगुफ़्तगी।
बशाशते रूह (अ़.स्त्री.)-आत्मा की प्रसन्नता।
बशीर (अ़.वि.)-शुभ सूचना सुनानेवाला, बुशारत देनेवाला।
बशीरोनज़ीर (अ़.वि.)-शुभ सूचना देनेवाला और डरानेवाला, स्वर्ग की सूचना देनेवाला और डरानेवाला, पै$गम्बर, ईश-दूत।
बश्काल ($फा.स्त्री.)-वर्षाऋतु, बरसात।
बश्शाश (अ़.वि.)-मुदित, हर्षित, आनन्दित, ख़्ाुश।
बसंद ($फा.वि.)-प्रचुर, बहुत; पर्याप्त, का$फी।
बस ($फा.वि.)-पर्याप्त, का$फी; अधिक, बहुत; समाप्त, ख़्ात्म; केवल, सि$र्फ।
बसकि ($फा.अव्य.)-चूँकि।
बसदउम्मीद ($फा.अव्य.)-सैकड़ों आशाओं के साथ।
बसदमुश्किल (अ़.$फा.अव्य.)-सैकड़ों मुश्किलों अर्थात् कठिनाइयों के साथ।
बसबब (अ़.$फा.अव्य.)-कारण से।
बसबीले जि़क्र (अ़.$फा.अव्य.)-जि़क्र अथवा चर्चा चलने पर।
बसबीले तजि़्कर: (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'बसबीले जि़क्रÓ।
बसबीले दवाम (अ़.अव्य.)-सदा के लिए, हमेशा के लिए।
बसर (अ़.स्त्री.)-नजऱ, दृष्टि। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
बसर ($फा.स्त्री.)-गुज़ार; गुजऱ, जीवन-निर्वाह। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
बसरऔ$कात (अ़.$फा.स्त्री.)-जीवन-यापन, जि़न्दगी काटना, गुज़ारा करना।
बसराहत (अ़.$फा.अव्य.)-स्पष्टतापूर्वक।
बसरी (अ़.वि.)-दृष्टि-सम्बन्धी।
बसरे औ$कात (अ़.$फा.स्त्री.)-जीवन-यापन, जीवन-निर्वाह, जि़न्दगी गुज़ारना; जीविका चलाना, रोज़ी कमाना।
बसरो चश्म ($फा.अव्य.)-सिर-आँखों पर, सहर्ष, प्रसन्नता से, ख़्ाुशी के साथ।
बसल (अ़.पु.)-पियाज़ (प्याज़)।
बसाँ ($फा.वि.)-तुल्य, समान, मिस्ल।
बसा ($फा.वि.)-प्राय:, बहुधा, अक्सर; अधिक, बहुत।
बसाअ़ते सईद (अ़.$फा.अव्य.)-अच्छी घड़ी में, शुभ मुहूर्त में।
बसाइत (अ़.पु.)-'बसीतÓ का बहु.।
बसाऔ$कात (अ़.$फा.अव्य.)-प्राय:, बहुधा, अक्सर।
बसाइर (अ़.स्त्री.)-'बसीरतÓ का बहु.।
बसातीन ($फा.पु.)-'बुस्तानÓ का बहु., उद्यान-समूह, अनेक उपवन, बा$गात।
बसान (अ़.पु.)-समान, की तरह, मानिन्द।
बसाबूरत (अ़.पु.)-पारपत्र, पासपोर्ट।
बसारत (अ़.स्त्री.)-दृष्टि, नजऱ।
बसालत (अ़.स्त्री.)-बहादुरी, शूरता, वीरता।
बसी$गए राज़ (अ़.$फा.अव्य.)-जो बात अथवा पत्र गोपनीय हो।
बसीत (अ़.वि.)-वह पदार्थ या तत्त्व जो अमिश्रित, निष्केवल और विशुद्घ हों; लम्बा-चौड़ा, विशाल, विस्तृत, चौड़ाचकला।
बसीम (अ़.वि.)-विहँसनेवाला, मुस्कुरानेवाला।
बसीर (अ़.वि.)-देखनेवाला, द्रष्टा; दिव्यदृष्टिवाला; ईश्वर।
बसीरत (अ़.स्त्री.)-बुद्घिमत्ता, चातुर्य, दानाई, प्रतिभा; दिल की दृष्टि अथवा नजऱ।
बसुअऱ्त (अ़.$फा.वि.)-तेज़ी से, जल्दी से, शीघ्रता से; शीघ्र, तुरन्त, जल्द।
बसूरते दीगर (अ़.$फा.अव्य.)-अन्य अवस्था में, दूसरी सूरत में, अन्यथा, वरना।
बस्त: ($फा.वि.)-तह किया हुआ; बँधा हुआ; जमा हुआ; गाँठ; अचल; किताबें या का$गज़ आदि बाँधने का कपड़ा; पोट; (प्रत्य.)-बाँधे हुए, जैसे-'कमरबस्त:Ó-कमर कसे हुए; 'दस्तबस्त:Ó-हाथ बाँधे हुए।
बस्त:आवाज़ ($फा.वि.)-जिसकी आवाज़ बैठ गई हो।
बस्त:कमर ($फा.वि.)-कमर बाँधे हुए।
बस्त:दहन ($फा.वि.)-जिसका मुँह बँधा हो अर्थात् जिसका मुँह बन्द हो, मौन, ख़्ाामोश, चुप, जो बोल न सके।
बस्त:पा ($फा.वि.)-जिसके पाँव बँधे हों, पाबंद, मज़्बूर, विवश, लाचार।
बस्त:मू ($फा.वि.)-जिसके बाल बँधे हों।
बस्त:लब ($फा.वि.)-जिसके होंठ बन्द हों, जो बोल न सके, चुप, अवाक्।
बस्त ($फा.वि.)-बंदिश, बँधाई; गाँठ। इसका 'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
बस्त ($फा.वि.)-फैलाव, विस्तार, कुशादगी; विवरण, विस्तृत वर्णन, तफ़्सील। इसका 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
बस्तए ज़ंजीर ($फा.वि.)-ज़ंजीर में बँधा हुआ, नृंखलित।
बस्तए दाम ($फा.वि.)-जाल में फँसा हुआ, पाश में बँधा हुआ।
बस्तए रसन ($फा.वि.)-रस्सी में बँधा हुआ।
बस्तगी ($फा.स्त्री.)-बँधा होना; लगाव, तअ़ल्लु$क।
बस्तत (अ़.स्त्री.)-लम्बाई-चौड़ाई, फैलाव, विस्तार।
बस्तो$कब्ज़ (अ़.पु.)-पैलना और सिकुडऩा, जैसे-नाड़ी (नब्ज़) का।
बस्तोकुशाद (अ़.पु.)-बन्द होना और खुलना, खोल-बाँध, अर्थात् प्रबन्ध, इंतिज़ाम।
बस्तोबंद ($फा.पु.)-बंदोबस्त, प्रबन्ध, इंतिज़ाम।
बस्मल: (अ़.पु.)-'बिस्मिल्लाहÓ (पूरी) कहना।
बह$क (अ़.पु.)-झाई, त्वचा पर हल्के धब्बे, छाप।
बहज़ार दिक़्$कत (अ़.$फा.अव्य.)-हज़ारों कठिनाइनियों के पश्चात्, सहस्रों आपत्तियों के साथ।
बहज़ार दुश्वारी ($फा.अव्य.)-दे.-'बहज़ार दिक़्$कतÓ।
बहज़ार मुसीबत (अ़.$फा.अव्य.)-हज़ारों आपत्तियाँ और विपत्तियाँ झेलकर, हज़ारों मुसीबतों के साथ।
बहज़ार शौ$क (अ़.$फा.अव्य.)-सहस्रों अभिलाषाओं के साथ, बहुत बड़ी उत्कंठा लिए।
बहद्दे (अ़.$फा.अव्य.)-इस सीमा तक, इस हद तक, यहाँ तक, इतना।
बहद्दे कि (अ़.$फा.अव्य.)-इस सीमा तक कि, यहाँ तक कि, इतना कि, इतना तक हुआ कि।
बहम:वुजूह (अ़.$फा.अव्य.)-पूरी तरह से, सर्वांगपूर्ण, पूरे तौर पर, पूर्णतया।
बहम:सि$फत मौसू$फ (अ़.$फा.वि.)-सर्वगुणसम्पन्न, सारी विशेषताओं से परिपूर्ण, सारी ख़्ाूबियों से आरास्त:।
बहम ($फा.वि.)-'बाहमÓ का लघु., आपस में, परस्पर; एक साथ, मिलकर, साथ होकर।
बहमदीगर ($फा.वि.)-परस्पर, एक-दूसरे के साथ।
बहमरसानी ($फा.स्त्री.)-इकट्ठा करना, एकत्र करना; ढूँढ़-कर लाना, तलाशकर लाना।
बहमरसीद: ($फा.वि.)-ढूँढ़कर लाया हुआ, तलाश करके लाया हुआ, एकत्र किया हुआ।
बहरउन्वान (अ़.$फा.वि.)-हर तरह से, जैसे बने वैसे; पूरे तौर से, पूर्णतया।
बहरजा ($फा.अव्य.)-प्रत्येक स्थान पर, हर जगह; जिस जगह, जहाँ।
बहरतक़्दीर (अ़.$फा.वि.)-प्रत्येक स्थिति में, हर अवस्था में, हर प्रकार से। दे.-'बहरहालÓ।
बहरतौर (अ़.$फा.वि.)-प्रत्येक स्थिति में, हर अवस्था में, हर प्रकार से, जैसे भी बने वैसे।
बहरसूरत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बहरहालÓ, हर हाल में।
बहरहाल (अ़.$फा.वि.)-प्रत्येक स्थिति में, हर अवस्था में, हर प्रकार से, हर हाल में, जैसे भी बने वैसे।
बहा ($फा.पु.)-मूल्य, $कीमत; उत्तमता, अच्छाई, विशेषता; प्रकाश, रौशनी; शोभा, रौन$क।
बहाइम (अ़.पु.)-'बहीम:Ó का बहु., चौपाये, मवेशी, पशु।
बहाए ख़्ाूँ ($फा.पु.)-ख़्ाूँबहा, वह धन जो किसी व्यक्ति के मार डाले जाने पर हत्यारे से दिलवाया जाए।
बहादुर (तु.वि.)-वीर, शूर, सूरमा।
बहादुरान: (तु.$फा.वि.)-वीरोचित, बहादुरों-जैसा।
बहादुरी (तु.वि.)-वीरता, शूरता।
बहान: ($फा.पु.)-टालमटोल, हीला-हवाला; ऐसी बात जिसकी आड़ में कोई काम बन सके; मौ$का, अवसर; मिष, व्याज, हीला; छल, धोखा, $फरेब।
बहान:ख़्ाू ($फा.वि.)-जो बहाने बनाता हो, जिसका स्वभाव बहानेबाज़ी का हो।
बहान:गर ($फा.वि.)-दे.-'बहान:बाज़Ó।
बहान:गरी ($फा.स्त्री.)-दे.-'बहान:बाज़ीÓ।
बहान:जू ($फा.वि.)-जो ढूँढ़-ढूँढ़कर बहाने तलाश करे। बहान:जूई ($फा.स्त्री.)-रोज़ नए-नए बहाने तलाश करना।
बहान:तलब (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बहान:जूÓ।
बहान:बाज़ ($फा.वि.)-बहाने करनेवाला, मिष या हीला-हवाले करनेवाला, टालम-टोल करनेवाला।
बहान:बाज़ी ($फा.स्त्री.)-बहाने बनाना।
बहान:साज़ ($फा.वि.)-दे.-'बहान:बाज़Ó।
बहान:साज़ी ($फा.स्त्री.)-दे.-'बहान:बाज़ीÓ।
बहार ($फा.स्त्री.)-पुष्पकाल, वसन्तऋतु, फूलों का मौसम; शोभा, रौन$क; परिहास, दिल्लगी; अच्छी अवस्था; युवावस्था का आगमन, जोबन का उठान; आनन्द, लुत्$फ; कौतुक, तमाशा; मनोविनोद, तफ्ऱीह।
बहारआगीं ($फा.वि.)-पुष्पित; पुरबहार; शोभायमान; कौतुक -पूर्ण; आनन्दपूर्ण।
बहार ब दामाँ ($फा.वि.)-दामन में बहार की शोभाएँ लिये हुए, अपने साथ बहार की छटाएँ लिये हुए; यौवन-सौन्दर्य से भरपूर, सुन्दर जवानी से परिपूर्ण।
बहाराँ ($फा.पु.)-पुष्पकाल, वसंतऋतु, बहार।
बहारिस्तान ($फा.पु.)-बहारों का स्थान, जहाँ बहारें ही बहारें हों (ला.)-जहाँ नवयौवनाओं का जमघट हो।
बहारीं ($फा.वि.)-वसंतऋतु का, बहार का; बहार-सम्बन्धी।
बहारे बेख़्ाज़ाँ ($फा.स्त्री.)-ऐसी वसंतऋतु या बहार जिसमें ख़्िाज़ाँ (पतझड़) न हो।
बहाल (अ़.$फा.वि.)-नीरोग, रोगमुक्त; स्वस्थ व तन्दुरुस्त; ख़्ाुश, आनन्दित; पुनर्नियुक्त, मुअ़त्तली से मुक्त।
बहालते परीशाँ (अ़.$फा.वि.)-बुरी स्थिति में, बुरी अवस्था में, बुरे हालों में, कंगाली में, दरिद्रता में।
बहालते मौजूद: (अ़.$फा.वि.)-उपस्थित अवस्था में, इस समय, इस हालत में, इस समय के हालात देखते हुए।
बहाली (अ़.$फा.वि.)-रोग से मुक्ति, नीरोगिता; स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती; पुनर्नियुक्ति, मुअ़त्तली से मुक्ति; आनन्द, प्रसन्नता, ख़्ाुशी; मुख की छटा, चेहरे की रौन$क।
बहाले अब्तर (अ़.$फा.वि.)-कंगाली की स्थिति में, दरिद्रता की अवस्था में, फटे हालों, बुरे हाल में।
बहाले कि (अ़.$फा.अव्य.)-इस स्थिति में कि, ऐसी अवस्था में कि, इस हाल में कि।
बहाले ख़्ाराब (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बहाले अब्तरÓ।
बहाले ख़्ास्त: (अ़.$फा.वि.)-बुरी अवस्था में, फटे हाल में, दरिद्रता की दशा में।
बहाले परीशाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बहालते परीशाँÓ।
बहाले बद (अ़.$फा.वि.)-दे.-'बहाले अब्तरÓ।
बहि$फाज़त (अ़.$फा.वि.)-सावधानी से, सुरक्षा के साथ, हि$फाज़त के साथ।
बहिस्सए मुसावी (अ़.$फा.वि.)-समान हिस्सों में, बराबर-बराबर के भागों में, बराबर-बराबर।
बहीज (अ़.$वि.)-प्रसन्नचित, हर्षित, आनन्दित, शादमाँ।
बहीम: (अ़.वि.)-पशु, चौपाया, मवेशी।
बहीमान: (अ़.अव्य.)-पशुओं-जैसा, वहशियाना, हिंसक; उद्दण्डतापूर्ण, हैवानों-जैसा।
बहीमी (अ़.वि.)-हैवानी, हैवानों-जैसा, हैवानों से सम्बन्धित।
बहीर: (अ़.पु.)-उपसागर, छोटा समुद्र। इसका शुद्घ उच्चारण 'बुहैर:Ó हैमगर उर्दू में 'बहीर:Ó ही बोलते हैं।
बहीरए अख्ज़ऱ (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे अख्ज़ऱÓ।
बहीरए अब्यज़ (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे अब्यज़Ó।
बहीरए अस्वद (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे अस्वदÓ।
बहीरए $कुल्ज़ुम (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे $कुल्ज़ुमÓ।
बहुक्म (अ़.$फा.अव्य.)-आदेशानुसार, आज्ञानुसार, हुक्म से।
बहेच ($फा.अव्य.)-बेकार, व्यर्थ, निरर्थक।
बहीअ़ते मज्मूई (अ़.$फा.अव्य.)-पूरी तरह से, पूर्णरूपेण, पूरे तौर पर।
बह्जत (अ़.स्त्री.)-हर्ष, आनन्द, प्रसन्नता, ख़्ाुशी; शोभा, छटा, ज़ेबाई; हरा-भरापन, सरसब्ज़ी।
बह्ज़ाद ($फा.पु.)-दे.-'बिह्ज़ादÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
बह्त (अ़.वि.)-बिना मिलावट का, बेमेल, निर्मल, विशुद्घ, निष्केवल।
बह्बूद ($फा.स्त्री.)-दे.-'बिह्बूदÓ, शुद्घ उच्चारण वही है मगर उर्दू में यही प्रयोग होता है। उन्नति, भलाई, कल्याण।
बह्बूदी ($फा.स्त्री.)-हित, भलाई, बेहतरी, उपकार, किसी के ह$क में अच्छी बात होना।
बह्मन ($फा.पु.)-ईरानी ग्यारहवाँ महीना जो ख़्ाज़ाँ अर्थात् पतझड़ का महीना है, जो हिन्दी महीना 'फागुनÓ होता है; लाल-सफ़ेद रंग का एक कंद जो दवा में काम आता है; इस्फं़दयार (ईरान का एक बहुत-ही बहादुर बादशाह, जिसे रुस्तम ने अन्धा करके मारा था) का पुत्र।
बह्रï: ($फा.पु.)-अंश, हिस्सा, भाग।
बह्रï:मंद ($फा.वि.)-ख़्ाुशनसीब, सौभाग्यशाली, ख़्ाुश$िकस्मत।
बह्रïयाब ($फा.वि.)-जिसने अपना हिस्सा पा लिया हो, जिसे उसका अंश या भाग मिल गया होै; सौभाग्यशाली, भाग्यवान्, ख़्ाुश$िकस्मत, ख़्ाुशनसीब।
बह्रïवर ($फा.वि.)-दे.-'बह्रï:मंदÓ।
बह्रï (अ़.स्त्री.)-छन्द, कविता को अनुशासन में रखने के लिए बनाए गए विधान-विशेष, वृत्त, शेÓर का वज़्न; (पु.)-सागर, समुद्र; ओशन, महासागर।
बह्रï ($फा.अव्य.)-वास्ते, लिए, प्रति।
बह्रïए वाफिऱ (अ़.$फा.पु.)-बड़ा भाग, बड़ा हिस्सा, दूसरों से अधिक अंश।
बह्रïाम ($फा.पु.)-मंगल-राशि, मिर्रीख़्ा; एक ईरानी नरेश।
बह्रïामगोर ($फा.पु.)-ईरान के शासक यज़्दजुर्द का लड़का सन्-420 ई. में गद्दी पर बैठा। वह 'गोरख़्ारÓ के शिकार का शौ$कीन था, इस कारण 'बह्रïामगोरÓ कहलाया।
बह्रïामे चोबीं ($फा.पु.)-ईरान के चतुर्थ हुर्मुज़ का सेनापति, जिसने अपने स्वामी से गद्दारी करके उसे गद्दी से उतारा और स्वयं नरेश बन बैठा (सन्-590 में) तथा आठ महीने पश्चात् ख़्ाुस्रो परवेज़ से हारकर भाग गया।
बह्रिय: (अ़.पु.)-जलसेना, जंगी बेड़ा।
बह्रïी (अ़.वि.)-समुद्रीय, समुद्र की, समुद्र-सम्बन्धी।
बह्रुल उलूम (अ़.पु.)-विद्याओं का सागर अर्थात् बहुत बड़ा और प्रचण्ड विद्वान्, विद्यासागर।
बह्रुल काहिल [भू.] (अ़.पु.)-शान्त महासागर।
बह्रुसीन (अ़.पु.)-चीन का समुद्र।
बह्रïे अख्ज़ऱ [भू.] (अ़.पु.)-कैसपियन सागर।
बह्रïे अज्ऱ$क [भू.] (अ़.पु.)-नील नदी की पूर्वी शाखा जो नौ सौ मील लम्बी है; नभ, गगन, आकाश, आस्मान।
बह्रïे अब्यज़ [भू.] (अ़.पु.)-रूस के उत्तर में एक छोटा समुद्र, श्वेत सागर।
बह्रïे अल्मास [भू.] (अ़.पु.)-वह समुद्र जिसके द्वीपों में बहुमूल्य रत्नों की खानें हों।
बह्रïे असम [छंद] (अ़.स्त्री.)-एक वृत्त, जो उर्दू में प्रचलित नहीं है, इसकी मात्राओं का क्रम इस प्रकार है-गुरु-लघु-गुरु, गुरु-लघु-गुरु+गुरु-गुरु-गुरु+लघु-गुरु-गुरु। पूरे शेÓर में दो बार।
बह्रïेअस्वद [भू.] (अ़.पु.)-काला सागर, कृष्ण सागर, ब्लैक-सी, रूस के दक्षिण और अनातूलिया के उत्तर का समुद्र।
बह्रïे अह्मर [भू.] (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे $कुल्ज़ुमÓ।
बह्रïे आÓज़म [भू.] (अ़.पु.)-महासागर, ओशन।
बह्रïे औ$िकयानूस [भू.] (अ़.पु.)-अटलांटिक महासागर।
बह्रïे उम्मान [भू.] (अ़.पु.)-पूर्वी-दक्षिणी अऱब का समुद्र।
बह्रïे कबीर [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह छन्द उर्दू में व्यवहृत नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति ऐसी है-गुरु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-गुरु-लघु-गुरु। पूरे शेÓर में दो बार।
बह्रïे $करीब [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह छन्द उर्दू में व्यवहृत नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति ऐसी है-लघु-गुरु-गुरु-लघु+लघु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-लघु-गुरु-लघु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे $कलीब [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह छन्द उर्दू में व्यवहृत नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति ऐसी है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु+लघु-गुरु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे कामिल [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में प्रचलित छन्द। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-लघु-गुरु, लघु-$गरु। प्रत्येक शेÓर में आठ बार प्रयुक्त।
बह्रïे काहिल [भू.] (अ़.पु.)-प्रशान्त महासागर।
बह्रïे $कुल्ज़ुम [भू.] (अ़.पु.)-अऱब और अफ्रीका के बीच का समुद्र, लाल सागर।
बह्रïे ख़्ा$फी$फ [छंद] (अ़.स्त्री.)-इसकी शाखाएँ प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-लघु-गुरु-गुरु+लघु-गुरु-लघु-गुरु+लघु-लघु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे ख़्ाुदा ($फा.अव्य.)-भगवान् के वास्ते, ईश्वर के लिए।
बह्रïे चीन [भू.] (अ़.$फा.पु.)-चीनी समुद्र।
बह्रïे ज़ंग [भू.] (अ़.$फा.पु.)-वह समुद्र जो हबश (अफ्ऱीका का एक प्रसिद्घ देश) के पूर्व में है।
बह्रïे जदीद [छंद] (अ़.स्त्री.)-इस छन्द की शाखाएँ प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-लघु-गुरु-गुरु+लघु-लघु-गुरु-गुरु+लघु-गुरु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे ज़ुल्मात (अ़.पु.)-दे.-'बह्रïे औ$िकयानूसÓ।
बह्रïे तवील [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह और इसकी शाखाएँ उर्दू शाइरी में प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-गुरु, लघु-गुरु-गुरु, गुरु+लघु-लघु-गुरु, लघु-गुरु-गुरु,गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे नदामत (अ़.पु.)-लज्जा का समुद्र, वह व्यक्ति जिसमें अत्यधिक लाज-शर्म हो।
बह्रïे $फना (अ़.पु.)-मृत्यु का सागर।
बह्रïे बसीत [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द कम व्यवहृत है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-गुरु-लघु, गुरु+गुरु-लघु-गुरु, गुरु-गुरु-लघु, गुरु+गुरु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे बेकराँ (अ़.$फा.पु.)-वह समुद्र जिसका किनारा न हो।
बह्रïे बेपायाँ (अ़.$फा.पु.)-वह समुद्र जिसका किनारा न होै; वह समुद्र जो अथाह हो।
बह्रïे मग्रि़ब [भू.] (अ़.पु.)-यूरोप का समुद्र।
बह्रïे मदीद [छंद] (अ़.स्त्री.)-कम व्यवहृत है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे मव्वाज (अ़.पु.)-हिलोरें लेता हुआ सागर, मौजें मारता हुआ समुद्र।
बह्रïे मुजमिद [भू.] (अ़.पु.)-वह समुद्र जिसका पानी जमा हुआ हो।
बह्रïे मुजमिद जुनूबी [भू.] (अ़.पु.)-दक्षिणी ध्रुव के आस-पास का समुद्र, जो अधिक ठण्ड के कारण जमा हुआ है।
बह्रïे मुंजमिद शिमाली [भू.] (अ़.पु.)-उत्तरीय ध्रुव का सागर जो अधिक ठण्ड के कारण जमा हुआ है।
बह्रïे मुंसरेह [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-लघु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-लघु। प्रत्येक शेÓर में चार बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुक़्तजि़ब [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-गुरु-लघु+गुरु-लघु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में चार बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुज़ारे [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है, इसकी शाखाएँ भी हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-लघु-गुरु-लघु। प्रत्येक शेÓर में चार बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुज़ील [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है, इसकी शाखाएँ भी बहुत प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में छह बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुजास [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है, इसकी शाखाएँ भी हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-लघु-गुरुु+लघु-लघु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में चार बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुत$कारिब [छंद] (अ़.स्त्री.)-अत्यधिक प्रचलित छन्द है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में आठ बार प्रयुक्त।
बह्रïे मुर्दार [भू.] (अ़.$फा.पु.)-मृत सागर, डेड-सी।
बह्रïे मुशाकिल [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द बहुत प्रचलित है। इसकी शाखाएँ भी का$फी प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-गुरु-लघु+लघु-गुरु-गुरु-गुरु+लघु-गुरु-गुरु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में दो बार प्रयुक्त।
बह्रïे रजज़ [छंद] (अ़.स्त्री.)-अत्यधिक प्रचलित छन्द है, इसकी शाखाएँ भी बहुत प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-गुरु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में मात्राओं के इस क्रम को आठ बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे रमल [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह और इसकी शाखाएँ बहुत प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-यह छन्द और इसकी शाखाएँ बहुत प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु। मात्राओं के इस क्रम को प्रत्येक शेÓर में आठ बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे रवाँ (अ़.$फा.पु.)-नाव, नौका, किश्ती।
बह्रïे रूम [भू.] (अ़.पु.)-रूमसागर।
बह्रïे वा$िफर [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह छनद स्वयं बहुत कम प्रचलित है मगर इसकी शाखाएँ बहुत प्रचलित हैं। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-लघु, लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में मात्राओं के इस क्रम को आठ बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे स$गीर [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द प्रचलित नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-गुरु-लघु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-गुरु-लघु-गुरु। प्रत्येक शेÓर में मात्राओं के इस क्रम को दो बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे सरीअ़ [छंद] (अ़.स्त्री.)-यह छन्द बहुत प्रचलित है। इसकी मात्रिक स्थिति इस प्रकार है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-लघु। प्रत्येक शेÓर में मात्राओं के इस क्रम को दो बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे सरीम [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द प्रचलित नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-लघु-गुरु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-लघु-गुरु-गुरु। मात्राओं का यह क्रम दो बार दोहराना पड़ता है।
बह्रïे सलीम [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द भी प्रचलित नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-गुरु-लघु-गुरु+गुरु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-गुरु-गुरु-लघु। प्रत्येक शेÓर में दो बार।
बह्रïे हजज़ [छंद] (अ़.स्त्री.)-बहुत प्रचलित छन्द है। इसकी शाखाएँ भी बहुत प्रचलित हैं। उर्दू शाइरी की एक विधा 'रुबाईÓ इसी छन्द से निकली है। इसकी मात्रिक स्थिति इस प्रकार है-लघु-गुरु-गुरु-गुरु। आठ बार।
बह्रïे हमीद [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द अधिक प्रचलित नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति यह है-गुरु-गुरु-गुरु-लघु+गुरु-गुरु-लघु-गुरु+गुरु-गुरु-गुरु-लघु। दो बार।
बह्रïे हमीम [छंद] (अ़.स्त्री.)-उर्दू में यह छन्द अधिक प्रचलित नहीं है। इसकी मात्रिक स्थिति इस प्रकार है-गुरु-लघु-गुरु-गुरु+गुरु-गुरु-लघु-गुरु+गुरु-गुरु-लघु-गुरु। दो बार।
बह्रïैन [भू.] (अ़.पु.)-श्वेत सागर और कृष्ण सागर; कृष्ण सागर और रूम सागर; $फारिस की खाड़ी जहाँ से मोती निकलता है।
बह्स (अ़.स्त्री.)-वाद-विवाद, मुबाहस:; वाक्-कलह, लफ्ज़़ जंग; मु$कदमे में सुबूत और स$फाई आदि के बाद वकीलों का न्यायाधीश के सामने तर्क-वितर्क।
बह्सतलब (अ़.वि.)-जिसमें तर्क-वितर्क या वाद-विवाद की आवश्यकता हो।
बह्सोतम्हीस (अ़.स्त्री.)-वाद-विवाद, तर्क-वितर्क।
बह्सो मुबाहस: (अ़.पु.)-दे.-'बह्सोतम्हीसÓ।
बह्हास (अ़.वि.)-अत्यधिक तर्क-वितर्क करनेवाला, बहुत अधिक वाद-विवाद करनेवाला।

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