लौ
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लौ ($फा.पु.)-पुश्ता, ऊँचाई; पित्त।लौअ़ (अ़.स्त्री.)-प्रेम की व्याकुलता और जलन।
लौअ़त (अ़.स्त्री.)-प्रेम की तपन, जलन और व्याकुलता, दे.-'लौअ़Ó।
लौअ़ात (अ़.स्त्री.)-'लौअ़तÓ का बहु., प्रेम की जलनें।
लौक (अ़.पु.)-चबाना, चर्बण; खाना, खान।
लौज़: (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ मेवा, बादाम; कौआ; गले का कौआ, कंठकाक।
लौज़ (अ़.पु.)-'लौज़:Ó का बहु., बहुत-से बादाम। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
लौज़ (अ़.पु.)-रक्षा के लिए शरण ढूँढऩा, बचाव के लिए पनाह ढूँढऩा; घाटी का किनारा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
लौज़ई (अ़.वि.)-बुद्घिमान्, मेधावी, दाना; प्रतिभाशाली, ज़हीन।
लौजऩान ($फा.पु.)-कंठकाक, गले का कौआ।
लौजिय़ात ($फा.पु.)-'लौज़:Ó का बहु., मगर एकवचन में व्यवहृत है।
लौज़ीन: ($फा.पु.)-बादाम का हलुवा।
लौन: (अ़.पु.)-मुखचूर्ण, मुँह पर मलने का पाउडर, $गाज़ा।
लौन (अ़.पु.)-रंग, वर्ण।
लौने ग़ामिक़ (अ़.पु.)-गहरा रंग।
लौने $फातेह (अ़.पु.)-हलका रंग।
लौने माÓतम (अ़.पु.)- खुला हुआ रंग, खुलता हुआ रंग, न बहुत गहरा न हलका।
लौम (अ़.पु.)-निन्दा, भत्र्सना, मलामत; कृपणता, कंजूसी।
लौमत (अ़.स्त्री.)-दे.-'लौमÓ।
लौमते लाइम (अ़.स्त्री.)-निन्दा करनेवाले की निन्दा।
लौलौशम ($फा.पु.)-एक फूल-विशेष।
लौस (अ़.पु.)-लगाव, सम्पर्क, तअ़ल्लु$क; लिथड़ा होना, सना होना, भरा होना।
लौसे दुन्या (अ़.पु.)-सांसारिक बंधन, मायाजाल, लिप्ति, अनुराग।
लौह (अ़.स्त्री.)-बच्चों के लिखने की तख़्ती, पट्टिका; पत्थर का वह टुकड़ा, जिस पर लिखकर $कब्र अथवा समाधि आदि पर लगाते हैं।
लौहशल्लाह (अ़.वा.)-'ला औहाशल्लाहÓ का $फार्सी रूप, आदर-प्रदर्शन या आश्चर्य-प्रगटन के समय बोलते हैं।
लौहे क़ब्र (अ़.स्त्री.)-दे.-'लौहे मज़ारÓ।
लौहे ज़बीं (अ़.स्त्री.)-दे.-'लौहे पेशानीÓ।
लौहे तिलिस्म (अ़.स्त्री.)-किसी जादू-घर में रखी हुई वह तख़्ती, जिस पर जादू तोडऩे की विधि लिखी होती है।
लौहे नाख़्वाँद: (अ़.स्त्री.)-ईश्वरदत्त विद्या, दे.-'लौहे मह्$फूज़Ó।
लौहे पेशानी (अ़.$फा.स्त्री.)-ललाट-पटल, माया; भाग्य, तक़्दीर।
लौहे मज़ार (अ़.स्त्री.)-पत्थर की वह तख़्ती, जो किसी मरनेवाले की $कब्र अथवा समाधि पर लगाते हैं और उसमें उसके नाम के साथ-साथ मरने की तारीख़्ा आदि भी लिखते हैं।
लौहे मह्$फूज़ (अ़.स्त्री.)-अ़र्श अर्थात् आस्मान पर एक स्थान, जहाँ संसार में होनेवाली सारी घटनाओं का उल्लेख है और जिसे कोई नहीं पढ़ सकता।
लौहो$कलम (अ़.पु.)-तख़्ती और उस पर लिखने की $कलम, अर्थात् वह तख़्ती जिस पर भविष्य में होनेवाली सारी घटनाएँ लिखी हैं और वह लेखनी जिसने यह सब-कुछ ईश्वर की आज्ञा से लिखा है।
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