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संग ($फा.पु.)-पत्थर, प्रस्तर, पाषाण।संगअंदाज़ ($फा.पु.)-पत्थर फेंकनेवाला, पत्थर मारनेवाला; $िकले के वे सूराख़्ा, जिनसे बन्दू$क चलाई जाती है; गो$फन, जिससे ढेला फेंकते हैं।
संगख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-पत्थर से घायल, जिसे पत्थर से चोट आई हो।
संगच: ($फा.पु.)-ओला, घनोपल।
संगज़द: ($फा.वि.)-जिसे पत्थर से मारा गया हो, जिसे संगसार किया गया हो।
संगजऩ ($फा.वि.)-वह तराज़ू, जिसमें पासंग हो, जो कम या अधिक तोले।
संगजऱ ($फा.पु.)-कसौटी, कसवटी, निकष।
संगजराहत ($फा.पु.)-एक सफ़ेद पत्थर, जो घाव भरने के काम आता है; सिंघा, सेलखरी, मरहम बनाने में प्रयुक्त होती है।
संगज़ाँ ($फा.वि.)-जिसके प्राण मुश्किल से निकलें, सख़्तजाँ; निर्दय, बेरह्म।
संगज़ार ($फा.पु.)-पथरीला स्थान, जहाँ पत्थर ही पत्थर हों।
संगजानी ($फा.स्त्री.)-प्राण कठिनता से निकलना; निर्दयता, संगदिली।
संगतर: ($फा.पु.)-संतरा, मीठी नारंगी।
संगतराश ($फा.वि.)-पत्थर को तराशनेवाला, पत्थर का काम करनेवाला, पत्थर पर चित्रकारी करनेवाला, पाषाण-भेदक।
संगतराशी ($फा.स्त्री.)-पत्थर का काम करना।
संगदस्त ($फा.वि.)-जो काम करने में बहुत सुस्त हो, दे.-'संगीदस्तÓ।
संगदस्ती ($फा.स्त्री.)-कामचोरी, आलस्य, दे.-'संगीदस्तीÓ।
संगदान: ($फा.पु.)-दे.-'संगदानÓ।
संगदान ($फा.पु.)-चिडिय़ा का पोटा।
संगदिल ($फा.वि.)-पत्थर-दिल, पाषाणहृदय, बेरहम, सख़्तदिल, क्रूर, निर्दय, वज्रहृदय।
संगदिली ($फा.स्त्री.)-दिल की कठोरता, हृदय की पाषाणता, निर्दता, क्रूरता, बेरहमी, मन का पत्थरपन।
संगपा ($फा.पा.)-झाँवाँ, पाँव सा$फ करने का एक प्रकार का पत्थर, दे.-'संगेपाÓ।
संगपुश्त (अ़.पु.)-कच्छप, कूर्म, कछुआ।
संग बक$फ ($फा.वि.)-हाथ में पत्थर लिये हुए, मारने के लिए पत्थर उठाये हुए, पत्थर मारने को तत्पर।
संग बदामन ($फा.वि.)-दामन में पत्थर भरे हुए।
संगबस्त: ($फा.वि.)-दृढ़, सुदृढ़, बहुत मज़बूत।
संगबस्त ($फा.वि.)-दृढ़, सुदृढ़, बहुत मज़बूत; वह मेवा जो अभी पका न हो, गद्दा हो।
संगरू ($फा.वि.)-जिसको लाज न आती हो, निर्लज्ज, बेहया, बेशर्म।
संगरेज़: ($फा.पु.)-कंकर, कंकड़ी, पत्थर का छोटा-सा टुकड़ा।
संगलाख़्ा: ($फा.पु.)-दे.-'संगलाख़्ाÓ।
संगलाख़्ा ($फा.पु.)-वह पथरीली ज़मीन, जहाँ पत्थर बहुत हों; वह भूमि जहाँ से खोदकर पत्थर निकाले जाएँ।
संगसाज़ ($फा.वि.)-लीथो प्रेस में पत्थर पर अशुद्घियाँ ठीक करनेवाला।
संगसाज़ी ($फा.स्त्री.)-लीथो प्रेस में पत्थर पर $गलतियाँ शुद्घ करना।
संगसार ($फा.वि.)-जिसे पत्थर मार-मारकर मार डाला गया हो; पथराव; पथराव करके किसी व्यक्ति को मार डालना; एक सज़ा, जो बड़े और घृणित अपराधियों को दी जाती थी, इस सज़ा के अन्तर्गत अपराधी को कमर तक ज़मीन में गाड़कर उस पर इतने पत्थर बरसाते थे कि वह मर जाए।
संगसारी ($फा.स्त्री.)-पथराव; पथराव करके किसी व्यक्ति को मार डालना।
संगिस्तान ($फा.पु.)-पथरीली जगह; पहाड़ी जगह।
संगीं ($फा.वि.)-'संगीनÓ का लघु., जो यौगिक शब्दों में व्यवहृत है, अर्थ के लिए दे.-'संगीनÓ।
संगींजिगर ($फा.वि.)-पत्थर-दिल, पाषाणहृदय, कठोरमन, क्रूर, निर्दय।
संगींजिगरी ($फा.स्त्री.)-अत्यधिक निर्दयता, इंतिहाई बेरहमी, बहुत-ही क्रूरता।
संगींदस्त ($फा.वि.)-कामचोर, जो काम करने में बहुत सुस्त हो, आलसी, काहिल, दीर्घसूत्री।
संगींदस्ती ($फा.स्त्री.)-कामचोरी, आलस्य, काहिली।
संगींदिल ($फा.वि.)-पत्थर-दिल, पाषाणहृदय, प्रस्तरमन, बहुत ही कठोर हृदय का, अत्यन्त क्रूर, बहुत-ही बेरहम।
संगींदिली ($फा.स्त्री.)-मन का अत्यन्त कठोर होना, हृदय की कठोरता, क्रूरता।
संगी ($फा.वि.)-पत्थर का बना; पत्थर से सम्बन्धित; पत्थर का।
संगीन ($फा.वि.)-सख़्त, कड़ा, कठोर; गाढ़ा, ग$फ (कपड़ा); कड़ा, दुष्कर, जैसे-'संगीन जुर्मÓ; (उ.स्त्री.)-एक लम्बी और पतली बर्छी, जो बन्दू$क के सिरे पर लगाई जाती है।
संगीनी ($फा.स्त्री.)-पत्थर का बना हुआ होना।
संगे अस्वद (अ़.$फा.पु.)-काला पत्थर, कृष्ण प्रस्तर; वह पत्थर, जो काÓबे में लगा है और जिसे देखने के लिए हर वर्ष मुसलमान मक्का जाते हैं, जिसे हज कहते हैं।
संगे आस्ताँ ($फा.पु.)-देहलीज़ का पत्थर, वह पत्थर जिसमें चौखट बाज़ू जड़ी जाती है (ईरान में देहलीज़ में लकड़ी नहीं होती)।
संगे आस्तान: ($फा.पु.)-दे.-'संगे आस्ताँÓ।
संगे आहनरुबा ($फा.पु.)-चुम्बक, चुम्मक पत्थर।
संगे $कनाअ़त (अ़.$फा.पु.)-वह पत्थर, जो भूख की जलन कम करने के लिए पेट पर बाँधते हैं (यह अऱब में प्रचलित है)।
संंगे कलाँ ($फा.पु.)-कोई बहुमूल्य रत्न, $कीमती जौहर।
संगे ख़्ाारा ($फा.पु.)-एक प्रकार का खुरदुरा और लाली लिये हुए पत्थर, जो अत्यन्त कड़ा होता है।
संगे गुर्द: ($फा.पु.)-गुर्दे में पड़ जानेवाली पथरी, किडनी-स्टोन, बृक्क अश्मरी।
संगे जराहत (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार का सफ़ेद और कोमल पत्थर, जो घाव भरने के काम आता है, सिंघा।
संगे ज़ाल: ($फा.पु.)-ओला, हिमोपल, वर्षिला।
संगे तराज़ू ($फा.पु.)-तौलने के बाट।
संगे तिफ़्लाँ (अ़.$फा.पु.)-वह पत्थर, जो लड़के दीवानों यानी पागलों को मारते हैं।
संगे तुर्बत (अ़.$फा.पु.)-वह पत्थर, जो $कब्र के सिरहाने लगाते हैं और जिसमें मृत व्यक्ति का नाम और तारीख आदि लिखते हैं।
संगे नसू ($फा.पु.)-श्वेत प्रस्तर, सफ़ेद पत्थर, संगे मरमर।
संगे पा ($फा.पु.)-झाँवाँ, जिससे पाँव का मैल छुड़ाते हैं।
संगे $फलाख़्ान ($फा.पु.)-वह पत्थर, जो गोफन में रखकर फेंकते हैं।
संगे $फसाँ ($फा.पु.)-वह पत्ािर, जिस पर छुरी, चा$कू आदि की धार तेज़ करते हैं, सान।
संगे बसरी (अ़.$फा.पु.)-एक पत्थर, जो आँखों की दवा में काम आता है, खपरिया।
संगे बाराँ ($फा.पु.)-ओला, हिमोपल, वर्षिला।
संगे बालिश ($फा.पु.)-वह पत्थर, जो सिर के नीचे तकिए की जगह रखा जाता है (प्राय: साधु और दरवेश लोग रखते हैं)।
संगे बालीं ($फा.पु.)-दे.-'संगे बालिशÓ।
संगे बुन्याद ($फा.पु.)-वह पत्थर, जो किसी इमारत की नींव में रखा जाता है, तल-प्रस्तर, आधार-शिला; नींव, बुनियाद।
संगे बेनून ($फा.पु.)-कुत्ता, कुक्कुर; पाजी और दुष्ट व्यक्ति (उर्दू के शब्द 'संगÓ में से 'नूनÓ अर्थात् 'न्Ó निकल जाए तो 'सगÓ रह जाता है, जिसका अर्थ 'कुत्ताÓ होता है)।
संगे मक़्तल (अ़.$फा.पु.)-वधशिला, वह पत्थर जिस पर वध किया जाता है।
संगे मजाअ़त (अ़.$फा.पु.)-भूख में पेट पर बाँधा जानेवाला पत्थर (अऱब देश में ऐसा रिवाज है)।
संगे मक्ऩातीस (अ़.$फा.पु.)-चुंबक, चुम्बक पत्थर, आख, पाषाण।
संगे मज़ार (अ़.$फा.पु.)-दे.-'संगे तुर्बतÓ।
संगे मर्मर ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ पत्थर, सफ़ेद पत्थर, श्वेत प्रस्तर।
संगे मसान: (अ़.$फा.पु.)-वह पथरी, जो मूत्राशय में पड़ जाती है।
संगे महक [क्क] (अ़.$फा.पु.)-कसौटी का पत्थर, कसौटी, कर्षवटी
कषपट्टिïका, निकष।
संगे माही ($फा.पु.)-दे.-'संगे सरे माहीÓ।
संगे मील (अ़.$फा.पु.)-वह पत्थर, जो रास्ते में दूरी जानने के लिए एक-एक मील पर लगा देते हैं। 'हम संगे-मील बनकर खड़े हैं उसी जगह, जिस रास्ते पर उनके इशारे मिले हमेंÓ-माँझी
संगे मूसा (अ़.$फा.पु.)-काला पत्थर, कृष्ण प्रस्तर; एक प्रकार का विशेष काला पत्थर, जो काÓबे में लगा है और जिसे देखने के लिए हर साल मुसलमान मक्का जाते हैं, जिसे हज कहते हैं, संगे अस्वद।
संगे यमन ($फा.पु.)-पद्मराग, लाÓल, लाल रंग का एक फूल-विशेष।
संगे यश्ब (अ़.$फा.पु.)-हरे रंग का एक पत्थर, जो दवा में काम आता है।
संगे यश्म (अ़.$फा.पु.)-दे.-'संगे यश्बÓ।
संगे राह ($फा.पु.)-वह पत्थर, जो रास्ते में पड़ा हो और राहगीरों के मार्ग चलने में अवरोध उत्पन्न करे; वह व्यक्ति, जो किसी काम में रुकावट या बाधा उत्पन्न करे।
संगे रुख़्ााम ($फा.पु.)-दे.-'संगे मरमरÓ।
संगे शजरी (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार का मूँगा, विद्रुम।
संगे शिहाब (अ़.$फा.पु.)-वह पत्थर, जो सिहाबे सा$िकब अर्थात् उल्कापिण्ड के गिरने से बन जाता है, उल्का-पाषाण।
संगे संदलसा ($फा.पु.)-वह सिल, जिस पर चन्दन घिसते या रगड़ते हैं।
संगे समा$क (अ़.$फा.पु.)-एक पत्थर, जो सारे पत्थरों से अधिक सख़्त होता है और बिलकुल भी घिसता नहीं है, उसके खरल बनते हैं, जो बहुत $कीमती होते हैंऔर वे मोती आदि अन्य जवाहरात पीसने के काम आते हैं।
संगे सराच: ($फा.पु.)-दे.-'संगे आस्ताँÓ।
संगे सरेमाही ($फा.पु.)-एक प्रकार का पत्थर, जो मछली के सिर से निकलता है और दवा में काम आता है।
संगे सिलाय: (अ़.$फा.पु.)-दवा आदि घिसने का पत्थर।
संगे सुख्ऱ्ा ($फा.पु.)-लाल पत्थर, जिससे इमारतें बनती हैं और मकानों में लगाया जाता है।
संगे सुर्म: ($फा.पु.)-वह पत्थर, जिसका सुर्मा या अंजन बनाते हैं।
संगे सुलैमानी (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार का नग या नगीना, जो प्राय: दुरंगा या धारीदार होता है और जिसकी तस्बीह (माला या सुमरनी) $फक़ीर और दरवेश लोग गले में डालते हैं।
संज: ($फा.पु.)-तौलने का बाट।
संज ($फा.प्रत्य.)-तौलनेवाला, जैसे-'सुख़्ानसंजÓ=बात को तौलनेवाला, (पु.)-झाँझ, मजीरा, काँसे की बनी हुई दो कटोरियाँ जो बजाई जाती हैं।
संजाब ($फा.स्त्री)-एक जानवर, जो घूँस के बराबर होता है, उसकी खाल का पोस्तीन बनता है, जो बहुत अच्छा होता है।
संजिद: ($फा.वि.)-तौलनेवाला, वज़्न करनेवाला।
संजीद: (अ़.$फा.वि.)-तौला हुआ, वज़्न किया हुआ; संतुलित; गंभीर, मतीन; शान्त, पुरअम्न; सहिष्णु; हर बात को ध्यानपूर्वक सुनने और उस पर विचार-मनन करनेवाला।
संजीद:गुफ़्तार ($फा.वि.)-जिसकी बातचीत में गंभीरता हो, शान्तवादी।
संजीद:गुफ़्तारी ($फा.स्त्री.)-बातचीत की गंभीरता।
संजीद:तब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-जिसका स्वभाव गंभीर हो, शान्तचित्त।
संजीद:तब्ई (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वभाव की गंभीरता।
संजीद:मिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-जिसके मिज़ाज अर्थात् स्वभाव में शान्ति और गंभीरता हो।
संजीद:मिज़ाजी (अ़.$फा.स्त्री.)-मिज़ाज की शान्ति और गंभीरता।
संजीद:रफ़्तार (अ़.$फा.वि.)-व्यवहार और आचरण से गंभीर।
संजीद:रफ़्तारी (अ़.$फा.स्त्री.)-व्यवहार और आचरण की गंभीरता, संजीदगी।
संजीदगी ($फा.स्त्री.)-गंभीरता, मतानत; चित्त की शान्ति; सहिष्णुता, तहम्मुल, धैर्य, सब्र।
संजु$क (तु.पु.)-झण्डा, पताका, ध्वजा, केतु; कमरबंद, कटिबंध।
संदरूस ($फा.पु.)-राजन नामक एक प्रसिद्घ गोंद, दे.-'सुंदरूसÓ, दोनों शुद्घ हैं।
संदल (अ़.पु.)-एक सुप्रसिद्घ सुगंधित लकड़ी, चन्दन।
संदलसा ($फा.वि.)-वह सिल या पत्थर, जिस पर चन्दन घिसा जाता है।
संदलीं ($फा.वि.)-संदल का; संदल की लकड़ी का; कुर्सी।
संदास ($फा.पु.)-शौचालय, पाख़्ााना, संडास।
संदू$क (अ़.पु.)-लकड़ी या टीन की बनी बड़ी पेटी, जिसमें कपड़े आदि रखे जाते हैं।
संदू$कच: (अ़.पु.)-छोटी संदू$क या पेटी।
संदू$कनुमा (अ़.$फा.पु.)-संदू$क की तरह का, संदू$क की शक्ल का।
संदू$कसाज़ (अ़.$फा.वि.)-संदू$क बनानेवाला।
संदू$की (अ़.वि.)-संदू$क-जैसा, संदू$क की आकृति का; संदू$कनुमा $कब्र जिसमें बग़ली ($कब्र का वह गड्ढ़ा, जो ज़मीन काटकर एक पहलू में बनाते हैं) नहीं होती।
संदूक़े मुर्द: (अ़.$फा.पु.)-ताबूत, शव रखने के लिए लड़की का बनाया जानेवाला संदू$कनुमा पात्र।
सअ़त (अ़.स्त्री.)-फैलाव, विस्तार, $फराख़्ाी, गुंजाइश।
सअ़ादत (अ़.स्त्री.)-तेज, प्रताप, इक़्बाल; कल्याण, भलाई; बरकत, मुबारकी, शुभकारिता।
सअ़ादतआसार (अ़.वि.)-जिस पर यह भरोसा हो कि आगे चलकर मांगलिक होगा, जिसके लक्षण ऐसे हों कि भविष्य में वह शुभान्वित होगा।
सअ़ादतकेश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदÓ।
सअ़ादतपज़ोह (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदÓ।
सअ़ादतपनाह (अ़.$फा.वि.)-तेजस्वी, प्रतापी, इक़्बालमंद।
सअ़ादतमंद (अ़.$फा.वि.)-ख़्ाुश$िकस्मत, भाग्यशाली, नसीबेवर; प्रतापी, तेजोमय, इक़्बालमंद; आज्ञाकारी, $फर्मांबर्दार।
सअ़ादतमंदी (अ़.$फा.वि.)-सौभाग्य, अच्छा नसीब; सअ़ादतमंद होना।
सअ़ादतवर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदÓ।
सअ़ादतवरी (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदीÓ।
सअ़ादतशिअ़ार (अ़.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदÓ।
सअ़ादतसंज (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सअ़ादतमंदÓ।
सअ़ालिब (अ़.पु.)-'साÓलबÓ का बहु., लोमडिय़ाँÓ।
सअ़ालील (अ़.पु.)-'सुलूलÓ का बहु., मस्से, भिटनियाँ।
सई (अ़.पु.)-उद्यम, प्रयत्न, पराक्रम, प्रयास, कोशिश। 'तस्कीने दिले महजूँ न हुई वह सईए करम $फरमा भी गए, इस सईए करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गएÓ।
सईद (अ़.पु.)-मिट्टी, मृत्तिका; भूमि, पृथ्वी, ज़मीन। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सईद (अ़.वि.)-प्रतापी, तेजस्वी, इक़्बालमंद; भाग्यशाली, ख़्ाुशनसीब, अच्छी $िकस्मतवाला; शुभ, मंगलमय, कल्याणकारी, मुबारक। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सईर (अ़.पु.)-आग की लपट, अग्निज्वाला; नरक का एक तल।
सईस (अ़.पु.)-घोड़े की देख-रेख करनेवाला (यह अऱबी के शब्द 'साइसÓ का अपभ्रंश अर्थात् बिगड़ा हुआ रूप है)।
सऊद (अ़.पु.)-उच्चता, ऊँचाई, बुलंदी; यातना, पीड़ा, कष्ट, अज़ाब; ऊपर चढऩेवाला, उन्नति करनेवाला।
सऊबत (अ़.स्त्री.)-दे.-'सुऊबतÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, हिन्दी में 'सोहबतÓ प्रचलित।
सऊल (अ़.वि.)-बहुत पूछनेवाला, बहुत प्रश्न करनेवाला।
स$कत (अ़.पु.)-लिखने में हुई भूल; हिसाब-किताब की भूल; गिरी-पड़ी चीज़; अपशब्द, गाली; निन्दा, बदगोई, पीठ-पीछे की गई बुराई।
स$कतगो (अ़.$फा.वि.)-अपशब्द कहनेवाला, गाली देनेवाला, गाली-गलौज करनेवाला; निन्दा करनेवाला, बदगोई करनेवाला, पीठ-पीछे बुराई करनेवाला।
स$कतचीं (अ़.$फा.वि.)-गिरी-पड़ी चीजें़ बीननेवाला, रेज़े और टुकड़े चुननेवाला।
स$कत$फरोश (अ़.$फा.वि.)-गिरी-पड़ी चीजें़, जैसे-गिरे-पड़े फल आदि बेचनेवाला; बेहूदा बातें बकनेवाला, अनर्गलवादी।
स$कती (अ़.वि.)-गिरी-पड़ी चीजें़ बेचनेवाला, कबाड़ी।
सकन: (अ़.पु.)-'साकिनÓ का बहु., रहनेवाले, निवासी।
स$कन्$कूर (अ़.पु.)-साँड़-जैसा मगर उससे छोटा एक जानवर, जिसका मांस बहुत-ही कामवद्र्घक माना जाता है।
स$कम (अ़.पु.)-व्याधि, रोग, बीमारी; त्रुटि, दोष, दे.-'सुक़्मÓ, दोनों शुद्घ हैं।
स$कर (अ़.पु.)-नरक, दोज़ख़्ा।
सकरात (अ़.स्त्री.)-बेसुधी, बेहोशी, निश्चेष्टता; प्राण निकलते समय का कष्ट, चंद्रा।
सकरान (अ़.वि.)-मतवाला, उन्मत्त, शराब के नशे में चूर।
स$कलैन (अ़.पु.)-दो वर्ग, अर्थात् मनुष्यों का और जिन्नों (भूत-पिशाचों) का।
स$का$फत (अ़.स्त्री.)-समझदार होना, अ़क़्लमंद होना; हल्का होना; तेज़ सिर्का।
सक़ाम (अ़.पु.)-व्याधि, रोग, बीमारी।
सकारा (अ़.पु.)-'सकरानÓ का बहु., मस्त और मतवाले लोग, दे.-'सुकाराÓ, दोनों शुद्घ हैं।
स$कालत (अ़.स्त्री.)-बोझ, गुरुत्व, भारीपन।
स$काहत (अ़.स्त्री.)-विश्वस्तता, मोÓतबरी; श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी।
स$िकरलात (तु.पु.)-ऊनी बानात, सिक़्लात।
सकीन: (अ़.स्त्री.)-'सकीनतÓ, हज्ऱत इमाम हुसैन की सुपुत्री, जो अत्यन्त बहादुर थीं और जिन्होंने हज्ऱत इमाम की शहादत के बाद यज़ीद (अमीर मुआविया का लड़का, जो अत्यन्त शराबी, अत्याचारी और बदचलन था तथा जिसने हज्ऱत इमाम हुसैन को शहीद कराया था, क्योंकि हुसैन साहिब उनके कृत्यों-कार्यों के विरोधी थे) के विरुद्घ धुआँधार प्रचार किया था।
सकीनत (अ़.स्त्री.)-सुख, चैन, आराम; मंदता, धीरज, आहिस्तगी।
स$कीफ़: (अ़.पु.)-अत्य बात, झूठी बात, बकवाद; ऐब, आरोप, इत्तिहाम; सलाह, परामर्श, राय।
स$कीम (अ़.वि.)-रुग्न, रोगी, बीमार; दुर्दशाग्रस्त, बदहाल।
स$कीमुलहाल (अ़.वि.)-दयनीय स्थितिवाला, जिसकी आर्थिक हालत बहुत ख़्ाराब हो, दरिद्र, निर्धन, दुर्दशाग्रस्त, बेहाल।
स$कील (अ़.वि.)-गुरु, भारी, बोझल।
सक़्$का (अ़.पु.)-पानी पिलानेवाला; पानी भरनेवाला, बिहिश्ती, भिश्ती।
सक़्$काई (अ़.स्त्री.)-पानी पिलाने का काम; पानी भरने का काम, भिश्तीगीरी।
सक्काक (अ़.वि.)-लोहार, लुहार, लौहकार; सिक्के पर ठप्पा लगानेवाला।
सक्त: (अ़.पु.)-एक रोग, जिसमें व्यक्ति बिलकुल मरे हुए प्राणी की तरह हो जाता है, मूर्छा रोग; शेÓर में किसी शब्द या अक्षर का कम होना, छन्दोभंग, यति-भंग।
सक़्त (अ़.पु.)-पशु का मरना।
सक़्मूनिया (अ़.स्त्री.)-एक दवा, जो रेचक अर्थात् दस्तावर होती है, दे.-'सुक़्मूनियाÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सक्ऱात (अ़.पु.)-सुकऱात, यूनान का एक प्रसिद्घ वैज्ञानिक, जो हज्ऱत ईसा से पाँच सौ साल पहले था।
सख़्ात (अ़.पु.)-कोप, क्रोध, रोष, $गुस्सा, दे.-'सुख़्तÓ, वह भी शुद्घ है।
सख़्ाा (अ़.स्त्री.)-दानशीलता, वदान्यता, सख़्ाावत।
सख़्ाा$फत (अ़.स्त्री.)-हलकापन, ओछापन; तुच्छता, अधमता, कमीनगी; बेअ़क़्ली, निर्बुद्घिता।
सख़्ाी (अ़.वि.)-दानी, दानशील, दाता, वदान्य, मुक्तहस्त, $फैयाज़।
सख़्ाीन (अ़.वि.)-गाढ़ा, ग$फ; दृढ़, मज़बूत; पुष्ट; कठोर, सख़्त।
सख़्ाी$फ (अ़.वि.)-छिछोरा, अनुदार, लघुचेता, तंगजर्फ़़, छोटी सोचवाला; हलका, सबुक; झिरझिरा बुना हुआ कपड़ा।
सख़्ाुन ($फा.पु.)-दे.-'सुख़्ानÓ, दोनों शुद्घ हैं मगर उर्दू में 'सुख़्ानÓ ही अधिक व्यवहृत है।
सख़्त ($फा.वि.)-कठोर, कड़ा; अत्यधिक, बहुत ज़्यादा; तीव्र, प्रचण्ड, तेज़; दु:शील, बेमुरव्वत; क्रूर, निर्दय, बेरहम; दुष्कर, मुश्किल, कठिन; बहुत बड़ा।
सख़्तकमान ($फा.वि.)-पहलवान, योद्घा; तीरअंदाज़, धनुर्धर; शक्तिशाली, बलशाली, शहज़ोर।
सख़्तकोश ($फा.वि.)-अत्यधिक पराक्रमी, बहुत जुझारू।
सख़्तगीर ($फा.वि.)-भूल-चूक होने पर बहुत सख़्त $कदम उठानेवाला, रिअ़ायत न करनेवाला, किसी भूल-चूक को मा$फ न करनेवाला, पूरी सज़ा देनेवाला।
सख़्तगीरी ($फा.स्त्री.)-$गलती, भूल या अपराध को क्षमा न करना, रिअ़ायत न देना।
सख़्तचादीद: ($फा.वि.)-अधम, नीच, तुच्छ, ओछा, पामर, पोच।
सख़्तजाँ ($फा.वि.)-जिसके प्राण कठिनता से निकलें; निर्लज्जता का जीवन व्यतीत करनेवाला; बहुत बड़ा पराक्रमी, सख़्त मेहनती, अत्यन्त जुझारू।
सख़्तजानी ($फा.स्त्री.)-निर्लज्जता का जीवन; कठोर पराक्रम।
सख़्तज़ेह ($फा.वि.)-दे.-'सख़्तकमानÓ।
सख़्तदिल ($फा.वि.)-जिसके मन में दया-भाव न हो, निर्दय, संगदिल, पत्थर-दिल।
सख़्तदिली ($फा.वि.)-बेरहमी, क्रूरता, निर्दयता।
सख़्तबाज़ू ($फा.वि.)-बहुत परिश्रमी, बहुत मशक़्क़त करनेवाला, बहुत पराक्रमी, अत्यन्त जुझारू।
सख़्तमीर ($फा.वि.)-सख़्तजान, मुश्किल से मरनेवाला, जिसके प्राण बहुत कठिनता से निकलें।
सख़्तसा ($फा.पु.)-पहलवानों का घिस्सा।
सख़्ितए याम (अ़.$फा.स्त्री.)-गर्दिश, दिनों का कष्ट, भाग्य की निष्ठुरता।
सख़्ितए नज़्अ़ (अ़.$फा.स्त्री.)-प्राण निकलते समय या मरते समय का कष्ट, यम-यातना, चन्द्रा।
सख़्ती ($फा.स्त्री.)-कठोरता, कड़ापन; दु:शीलता, बेहयाई; कठिनता, मुश्किल; निर्दयता, बेरहमी; तीव्रता, तेज़ी, शिद्दत।
सख़्तीकश ($फा.वि.)-कष्ट और मुसीबतों से दो-चार होनेवाला, कठिनाइयाँ झेलनेवाला, विपत्तियों में जीवन व्यतीत करनेवाला।
सग ($फा.पु.)-कुत्ता, कुक्कुर, कूकुर, श्वान, शुनि, शुनक।
सगख़्ास्लत (अ़.$फा.वि.)-श्वान-प्रकृति, कुत्ते-जैसा स्वभाव रखनेवाला।
सगगज़ीद: ($फा.वि.)-जिसे कुत्ते ने काटा हो।
सगगज़ीदगी ($फा.स्त्री.)-कुत्ते का काटना।
सगजाँ ($फा.वि.)-लालची, लोभी; क्रूर, निर्दय, बेरहम।
सगजानी ($फा.स्त्री.)-लोभ, लालच; क्रूरता, निर्दयता, बेरहमी।
सगबान ($फा.वि.)-कुत्ते पालनेवाला; कुत्तों की सेवा करनेवाला नौकर।
सगबानी ($फा.स्त्री.)-कुत्ते पालना; श्वान-सेवाकर्म, कुत्तों की नौकरी।
सगसार ($फा.वि.)-कुत्ते-जैसा अपवित्र और निकृष्ट व्यक्ति।
सग़ीर: (अ़.वि.)-कम उम्र की, छोटी, (पु.)-छोटा पाप, लघु पातक।
सग़ीर (अ़.वि.)-ह्रïस्व, छोटा, लघु, दे.-'बह्रïे सग़ीरÓ।
सग़ीरसिन (अ़.वि.)-अल्पवयस्क, छोटी उम्रवाला, अल्पायु।
सग़ीरसिनी (अ़.स्त्री.)-छोटी उम्र, बाल्यावसा, अल्पवय।
सग़ीरो कबीर (अ़.पु.)-छोटा और बड़ा; छोटे-बड़े सब आदमी, सब लोग, अ़वाम।
सगे ख़्ाामोशगीर ($फा.पु.)-वह कुत्ता, जो बिना भूँके और गुर्राये काट ले।
सगे ताज़ी (अ़.$फा.पु.)-शिकारी कुत्ता, जो अऱबी नस्ल से हो।
सगे दीवान: ($फा.पु.)-पागल कुत्ता, बावला कुत्ता।
सगे दुंबाल:गीर ($फा.पु.)-पीछे से पाँव पकड़ लेनेवाला कुत्ता, भूँककर पीछे दौडऩेवाला कुत्ता।
सगे बाज़ारी ($फा.पु.)-गलियों में आवारा घूमनेवाला कुत्ता, वह कुत्ता जो किसी मालिक ने पाल न रखा हो बल्कि गलियों में मारा-मारा फिरता हो।
सजाÓ (अ़.पु.)-प्रास, अनुप्रास, अन्त्यानुप्रास, तुक, तुकान्त; किसी लेख या इबारत के दो वाक्यों का एक-जैसा होना। इसके तीन प्रकार हैं-अगर उनका वजऩ बराबर हैऔर सानुप्रास हैं तो यह सजाÓ 'मुतवाज़ीÓ (एक-दूसरे के बराबर चलनेवाला) कहा जाता है, जैसे-'गुलÓ और 'मुलÓ या 'बहारÓ और 'मज़ारÓ; अगर वह सानुप्रास है, मगर वजऩ बराबर नहीं है तो 'मुतर्र$फÓ होता है, जैसे 'मालÓ और 'मनालÓ या 'हारÓ और 'बहारÓ; अगर वजऩ में बराबर हैं मगर सानुप्रास नहीं हैं तो वह मजाÓ 'मुतवाजिनÓ कहलाता है, जैसे-'हालÓ और 'बातÓ या नजऱÓ और 'सब$कÓ; कोई वाक्य या पद इस प्रकार कहना कि उसमें किसी का नाम बड़ी सुन्दरता के साथ आ जाए।
सज़ा ($फा.स्त्री.)-बुराई का बदला, प्रत्यपकार; बुरे काम करने पर राज्य की ओर से दिया जानेवाला दंड; तावान, अर्थदंड; योग्य, पात्र, लाय$क।
सज़ाए आÓमाल (अ़.$फा.स्त्री.)-कर्मों का दंड, कर्मफल।
सज़ाए $कत्ल (अ़.$फा.स्त्री.)-मृत्युदंड, प्राणदंड, $फासी की सज़ा, ऐसी सज़ा जिसमें अपराधी जीवित न बचे।
सज़ाए कै़द (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसी सज़ा जिसमें अपराधी आज़ादी से कहीं घूम-फिर न सके, बल्कि एक सीमित दायरे में कै़द रहे, कारावास की सज़ा, जेल की सज़ा।
सज़ाए मह्ज़ (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसी सज़ा जिसमें किसी अपराधी को श्रम न करना पड़े, सादी सज़ा, जिसमें जेल में रहते हुए कोई काम न करना पड़े।
सज़ाए मौत (अ़.$फा.स्त्री.)-प्राणदंड, फाँसी, ऐसी सज़ा जिसमें अपराधी जीवित न बचे।
सज़ाए संगीं ($फा.स्त्री.)-दे.-'सज़ाए सख़्तÓ।
सज़ाए साद: ($फा.स्त्री.)-दे.-'सज़ाए मह्ज़Ó।
सजाÓगो (अ़.$फा.स्त्री.)-जो सजाÓ कहता हो, जो सजाÓ कहकर उसमें नाम आदि निकालता हो।
सजाया (अ़.पु.)-'सजीय:Ó का बहु., स्वभाव, अ़ादतें, प्रकृतियाँ।
सज़ायाफ़्त: ($फा.वि.)-जिसने पहले किसी अपराध में सज़ा पाई हो, प्राप्तदंड।
सज़ायाफ़्तगी ($फा.स्त्री.)-सज़ा पाये हुए होना।
सज़ायाब ($फा.स्त्री.)-जिसे सज़ा हो गई हो, दण्डित।
सज़ायाबी ($फा.स्त्री.)-सज़ा होना, सज़ा पाना, दंड पाना, दंडित होना।
सज़ावार ($फा.वि.)-सज़ा के योग्य, दंड के पात्र, दंडित होने लाय$क।
सज़ावुल (तु.वि.)-उगाहनेवाला, वुसूल करनेवाला।
सज़ीद: ($फा.वि.)-योग्य, पात्र, लाय$क, मुस्तह$क।
सजीय: (अ़.पु.)-स्वभाव, अ़ादत, प्रकृति, ख़्ास्लत।
सजीयात (अ़.पु.)-'सजीय:Ó का बहु., अ़ादतें, स्वभाव, ख़्ास्लत।
सज्अ़ (अ़.पु.)-दे.-'सजाÓ, शुद्घ उच्चारण यही है, मगर 'सजाÓ ही बोलते हैं।
सज्अ़ गो (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सजाÓगोÓ।
सज्जाद: (अ़.पु.)-किसी बड़े दरवेश, $फ$कीर या महात्मा की गद्दी; जानमाज़, मुसल्ला (नमाज़ पढऩे की दरी या चटाई)।
सज्जाद:नशीं (अ़.वि.)-गद्दी नशीन, जो किसी बड़े $फ$कीर या महात्मा के बाद उसकी गद्दी ग्रहण करे।
सज्जाद:नशीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-किसी बड़े $फ$कीर या महात्मा के निधन पर उसकी गद्दी पर बैठने का कर्म।
सज्जाद (अ़.वि.)-बहुत अधिक सज्दे करनेवाला, बहुत बड़ा आराधक।
सज्जादगी (अ़.$फा.स्त्री.)-गद्दीनशीना, सज्जाद:नशीनी।
सज्द: ($फा.पु.)-नत्मस्तक होना, माथा टेकना, सिर झुकाना; ज़मीन पर सिर रखकर ईश्वर को प्रणाम करना; नमाज़ पढ़ते समय सज्दे में जाना, दे.-'सिज्द:Ó, वह भी शुद्घ है, परन्तु अधिक शुद्घ 'सज्द:Ó है।
सज्द:गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-सज्द: करने का स्थान; शीअ़ों के सज्द: करने की टिकिया।
सज्द:गुज़ार (अ़.वि.)-सज्द: करनेवाला, नमाज़ पढऩेवाला।
सज्द:गुज़ारी (अ़.$फा.स्त्री.)-सज्द: करना, नमाज़ पढऩा।
सज्द:रेज़ ($फा.वि.)-दे.-'सज्द:गुज़ारÓ।
सज्द:रेज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सज्द:$गज़ारीÓ।
सज्दए रियायी (अ़.$फा.पु.)-झूठा सज्द:, दिखावे की नमाज़।
सज्दए शुक्र (अ़.पु.)-कृतज्ञता का सज्द:, कोई काम सम्पन्न होने पर ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने का सज्द:।
सतर ($फा.पु.)-'अस्तरÓ का लघु., खच्चर, अश्वतर।
सतरवन ($फा.स्त्री.)-बाँझ स्त्री, निष्प्ुला, वन्ध्या।
सत्तार (अ़.वि.)-पर्दे से ढाँकनेवाला; ऐब या दोष छिपानेवाला; ईश्वर का एक नाम।
सत्र (अ़.पु.)-छिपा; छिपाव। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
सत्र (अ़.स्त्री.)-कॉपी या किताब की लकीर; रेखा, पंक्ति, लकीर। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
सत्रबंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-रेखाएँ खींचना या बनाना, लकीरें करना।
सत्रे अ़ौरत (अ़.पु.)-शरीर का वह भाग, जिसका छिपाना आवश्यक है।
सत्वत (अ़.स्त्री.)-धाक, आतंक, दबदबा; प्रताप, तेज, जलाल।
सत्ह: (अ़.पु.)-प्रत्येक वस्तु का ऊपरी भाग, तल, सतह।
सत्ह (अ़.पु.)-हर चीज़ का ऊपरी भाग, तल, जैसे-'सत्हे आबÓ-जलतल।
सत्ही (अ़.वि.)-ऊपरी; जिस पर विचार अथवा ग़ौर न किया गया हो; जो ऊपरी मन से हो; जो निश्चयपूर्वक न हो।
सत्हे आब (अ़.$फा.स्त्री.)-पानी की सतह, जलतल; समुद्रतल।
सत्हे ज़मीं (अ़.$फा.स्त्री.)-ज़मीन की सतह, धरातल।
सत्हे माइल (अ़.स्त्री.)-झुकी हुई सतह, असमतल, सत्हे नाहमवार, वक्रतल।
सत्हे मुतवाजिऩ (अ़.स्त्री.)-समानान्तर तल या सतह, सर्फे़स।
सत्हे मुस्तवी (अ़.स्त्री.)-समतल, सत्हे हमवार, सत्हे बराबर।
सद ($फा.वि.)-एक सौ, शत।
सद [द्द] (अ़.पु.)-रोक, आड़; रुकावट, बाधा।
सदआफ्ऱीं ($फा.वि.)-सौ-सौ धन्यवाद, बहुत-बहुत सराहना।
सदक़: (अ़.पु.)-दान, ख़्ौरात; ख़्ौरात या दान करने के लिए सिर से कोई चीज़ उतारना, न्यौछावर।
सद$कात (अ़.पु.)-सदक़:Ó का बहु., सदक़े की चीजें़।
सदचाक ($फा.वि.)-जीर्ण-शीर्ण, जो बहुत जगह से फटा हा, जो टुकड़े-टुकड़े हो।
सदपार: ($फा.वि.)-दे.-'सदचाकÓ।
सदफ़ (अ़.स्त्री.)-सीप, सीपी, शुक्ति।
सदफ़े पेचाक (अ़.$फा.पु.)-घोंघा।
सदफ़े मर्वारीद (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सदफ़े सादिक़Ó, मुक्ता-शुक्ति, जिस सीपी से मोती निकलता है।
सदफ़े सादिक़ (अ़.स्त्री.)-सच्ची सीपी, वह सीपी जिसमें मोती होता है।
सदबर्ग ($फा.पु.)-शतदल, सौ पत्तियोंवाला, शतपत्र; गेंदे का फूल, गोंदा।
सदबार ($फा.स्त्री.)-सौ बार, सौ दफ़ा, शतधा।
सदमर्हबा (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सदआफ्ऱींÓ।
सदयक ($फा.वि.)-सौ पर एक, एक प्रतिशत, एक $फी सैकड़ा।
सदर (अ़.पु.)-आँखों का धुन्ध।
सदरह्मत (अ़.$फा.वि.)-ईश्वर की बहुत-बहुत कृपाएँ, शाबाश, धन्य-धन्य।
सदशुक्र (अ़.$फा.वि.)-बहुत-बहुत शुक्रिया, ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद (यह प्राय: ईश्वर के लिए प्रयोग किया जाता है)।
सदशुक्रिय: (अ़.$फा.वि.)-बहुत-बहुत धन्यवाद (यह प्राय: मनुष्यों के लिए आता है)।
सदसाल: ($फा.वि.)-शतवर्षीय, सौ बरस का; सौ बरसवाला।
सदा (अ़.स्त्री.)-आवाज़, ध्वनि, नाद; $फ$कीर की आवाज़।
सदाए अ़र्श (अ़.स्त्री.)-अ़र्श की आवाज़ अर्थात् ईश्वर की आवाज़, आकाशवाणी।
सदाए गुंबद (गुम्बद) (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सदाए बाजग़श्तÓ, प्रतिध्वनि।
सदाए गै़ब (अ़.स्त्री.)-आकाशवाणी, गै़बी आवाज़।
सदाए बर नख़्ाास्त ($फा.वा.)-कोई आवाज़ नहीं उठी, (शब्दार्थ)-मौन, ख़्ाामोशी, सन्नाटा।
सदाए बाज़ गश्त (अ़.$फा.स्त्री.)-प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द, प्रतिवाद, अनुस्वन, अनुनाद, प्रतिश्रुति।
सदाए बेहंगाम (अ़.$फा.स्त्री.)-असमय की आवाज़ जो अच्छी न लगे, बेवक़्त की आवाज़ जो मन को न भाये; कुसमय उठनेवाला स्वर, जिसकी कोई सार्थकता न हो और मूड़ खराब कर दे।
सदाए ह$क (अ़.स्त्री.)-सच्ची बात, इंसा$फ और न्याय की बात, जँची-तुली बात।
सदा$कत (अ़.स्त्री.)-सच्चाई, सत्यता; यथार्थता, वा$िकईयत, वास्तविकता।
सदा$कतकेश (अ़.$फा.वि.)-सत्यनिष्ठ, सत्यपाल, सच्चाई को हाथ से न जाने देनेवाला, सच्चाई से मुँह न चुरानेवाला।
सदा$कतपरस्त (अ़.$फा.वि.)-सच्चाई का भक्त, सत्यता पर दृढ़।
सदा$कतपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-सच्चाई का पालन, सच्चाई पर दृढ़ता।
सदा$कतपज़ोह (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सदा$कतकेशÓ।
सदा$कतपसन्द (अ़.$फा.वि.)-सच्चाई को पसन्द करनेवाला।
सदा$कतपसन्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-सच्चाई को पसन्द करना।
सदा$कतमअ़ाब (अ़.वि.)-बहुत-ही सच्चा और धर्मनिष्ठ व्यक्ति।
सदा$कतमदार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सदा$कतपरस्तÓ।
सदा$कतशिअ़ार (अ़.वि.)-दे.-'सदा$कतपसन्दÓ।
सदारत (अ़.स्त्री.)-अध्यक्षता, सभापतित्व।
सदारती (अ़.वि.)-सभापति से सम्बन्धित; सभापति का; सदारत का, अध्यक्षता का।
सदारते अंजुमन (अ़.$फा.स्त्री.)-किसी समिति या संस्था आदि का सभापतित्व।
सदारते जल्स: (अ़.स्त्री.)-किसी सभा की अध्यक्षता।
सदारस (अ़.$फा.वि.)-वह स्थान, जहाँ तक आवाज़ पहुँचे।
सदिर (अ़.वि.)-चकित, निस्तब्ध, हतप्रभ, जिसकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गई हों।
सदी ($फा.वि.)-सौ वर्ष का समय, शताब्दी, शती। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सदी (अ़.स्त्री.)-स्तन, पयोधर, छाती, चूची, शुद्घ उच्चारण 'सद्इÓ है मगर 'सदीÓ बोलते हैं। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
सदी$क (अ़.वि.)-मित्र, दोस्त, सुहृद्, सखा।
सदीद (अ़.वि.)-सरल, सीधा; यथार्थ, ठीक; दृढ़, मज़बूत; स्थायी, पाएदार। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सदीद (अ़.पु.)-घाव से निकलनेवाला मवाद, पीप, ज़र्दाब। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सद्इ (अ़.स्त्री.)-स्तन, पयोधर, छाती, चूची (पुरुष और स्त्री दोनों की)। शुद्घ उच्चारण यही है, दे.-'सिद्इÓ।
सद्द: (अ़.पु.)-ईरानियों का एक महोत्सव, जो 'बहमनÓ मास की दशमी को होता है।
सद्दे बाब (अ़.पु.)-रोक, निषेध, निवारण।
सद्दे रम$क (अ़.वि.)-किंचिन्मात्र, बिलकुल जऱा-सा, बहुत तनिक, अत्यल्प।
सद्दे राह (अ़.$फा.स्त्री.)-मार्ग का अवरोध, रास्ते की रोक, गली या रास्ते के बीच का पत्थर जो रास्ता रोक देता है; काम में रुकावट डालनेवाला, बाधक।
सद्दे सिकंदर (अ़.स्त्री.)-कहते हैं कि सम्राट् सिकंदर में एक बहुत बड़ी और मज़बूत दीवार बनवाई थी, परन्तु अब यह बात ग़लत सिद्घ हो चुकी है। कुछ लोग उस बहुत बड़ी पत्थर की मूर्ति को बताते हैं जो जिब्राल्टर की दो पहाडिय़ों के बीच समुद्र में खड़ी है। उसका आकार इतना बड़ा है कि उसके नीचे से जहाज़ निकल जाते हैं। कुछ लोग चीन की दीवार की तरफ़ इशारा करते हुए उसे 'सद्दे सिकंदरÓ साबित करने का प्रयास भी करते रहते हैं। कुछ लोग इसे यूराल पहाड़ और अल्ताई पहाड़ के बीच में बताते हैं जो उसने इस्कीमो और मंगोलियन $कौमों से ख़्वारिज़्मवालों को बचाने के लिए बनवाई थी, परन्तु उसका कोई चिह्नï या अवशेष नहीं मिलता। कुछ भी हो, $फार्सी और उर्दू साहित्य में तो अब भी यह एक अजेय और अटूट दीवार है और रहेगी।
सद्म: (अ़.स्त्री.)-आघात, चोट; दु:ख, तकली$फ; शोक, अ$फसोस; पश्चात्ताप, पछतावा; मृतशोक, मरनेवाले का रंज; पीड़ा, दर्द; यातना, अज़़ाब।
सद्मए जाँकाह (अ़.$फा.पु.)-जानलेवा दु:ख या शोक, प्राणों को घुला देनेवाली पीड़ा।
सद्मए $िफरा$क (अ़.पु.)-वियोग-सन्ताप, विरह-क्लेश, नायिका से बिछुडऩे की पीड़ा।
सद्मए मौत (अ़.पु.)-किसी के निधन का शोक।
सद्मए हिज्र (अ़.पु.)-दे.-'सद्मए $िफरा$कÓ।
सद्मात (अ़.पु.)-'सद्म:Ó का बहु., सदमे, पीड़ाएँ, शोक।
सद्र (अ़.पु.)-अध्यक्ष, सभापति, मीरे मज्लिस; केन्द्रीय स्थान, सदर मुकाम, मुख्यलय; मुख्य, ख़्ाास, विशेष; वक्ष:स्थल, छाती, सीना; महा, बड़ा, जैसे-'सद्र बाज़ारÓ-बड़ा और मुख्य बाज़ार।
सद्रदफ़्तर (अ़.पु.)-मुख्यालय, वह बड़ा कार्यालय जिसके अधीन कई और कार्यालय हों।
सद्रनशीं (अ़.वि.)-अध्यक्ष, सभापति, मीरे मज्लिस; प्रतिष्ठित, अग्रगण्य, सरामद।
सद्रबाज़ार (अ़.$फा.पु.)-छावनी का बाज़ार, उर्दू बाज़ार; बड़ा बाज़ार, ख़्ाास बाज़ार।
सद्रम$काम (अ़.पु.)-किसी उच्च अधिकारी का हेड क्वार्टर, मुख्यालय; शासन-केन्द्र, राजधानी।
सद्रमुदर्रिस (अ़.पु.)-सब अध्यापकों का नायक, मुख्याध्यापक, हेड मास्टर।
सद्रमुहासिब (अ़.पु.)-सबसे बड़ा एकाउंटेंट, महालेखपाल, गणनाध्यक्ष।
सद्री (अ़.वि.)-सीने का, छाती का; सीने में छिपा हुआ, (स्त्री.)-सीने पर पहनने की बंडी, निचोलक, बुनियान, छाती पर पहनने की कंचुकी, ब्रा।
सद्रुस्सुदूर (अ़.पु.)-मुख्य न्यायाधीश, ची$फ जस्टिस, सबसे बड़ा जज; शाही हरमसरा का संरक्षक, अंत:पुरिक।
सद्रे अमीन (अ़.पु.)-द्वितीय श्रेणी का जज या न्यायाधीश, सबार्डिनेट जज।
सद्रे आÓज़म (अ़.पु.)-महामंत्री, वज़ीरे आÓज़म, प्रधानमंत्री।
सद्रे आÓला (अ़.पु.)-प्रथम श्रेणी का जज या न्यायाधीश, सेशन-जज, दौरा-जज, सत्र-न्यायाधीश।
सदे्रजामिअ़: (अ़.पु.)-विश्व-विद्यालय का कुलपति, यूनिवर्सिटी का चांसलर।
सद्रे दीवान (अ़.$फा.पु.)-मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, वज़ीरे ख़्ाास, वज़ीरे आÓज़म; शाही ख़्ाज़ाने का बड़ा अ$फसर, महाकोषाध्यक्ष।
सद्रे बज़्म (अ़.$फा.पु.)-दे.-'सद्रे मज्लिसÓ।
सद्रे मज्लिस (अ़.पु.)-सभापति, सभाध्यक्ष, मीरे मह$िफल।
सद्रे मह$िफल (अ़.पु.)-दे.-'सद्रे मज्लिसÓ।
सद्रे मुशाअऱ: (अ़.पु.)-कवि-सम्मेलन का सभापति, मीरे मुशाअऱ:, मुशायरे का अध्यक्ष।
सन: (अ़.पु.)-वत्सर, सम्वत्, साल, वर्ष, सन।
सन (अ़.पु.)-वत्सर, सम्वत्, साल, वर्ष, बरस।
सनद (अ़.स्त्री.)-उपाधि, डिग्री; प्रमाण, सुबूत; प्रमाणपत्र, सर्टी$िफकेट; आश्रय, सहारा; विश्वास, एतिबार; नमूना, मिसाल, निदर्शन, आदर्श; उदाहरण, मिसाल।
सनदन (अ़.वि.)-उदाहरणार्थ, मिसाल के तौर पर; प्रमाणार्थ, सुबूत के रूप में।
सनदयाफ़्त: (अ़.$फा.वि.)-उपाधिप्राप्त, जिसने डिग्री या सनद प्राप्त कर ली हो।
सनदात (अ़.स्त्री.)-'सनदÓ का बहु., सनदें, डिग्रियाँ।
सनदी (अ़.वि.)-प्रमाणित, मुसल्लम।
सनदे $फज़ीलत (अ़.स्त्री.)-किसी विषय में पारंगत होने की उपाधि, मास्टर-डिग्री।
सनदे $फराग़त (अ़.स्त्री.)-दे.-'सनदे $फज़ीलतÓ।
सनदे मुअ़ा$फी (अ़.स्त्री.)-किसी को मुअ़ा$फी ज़मीन दिये जाने का प्रमाणपत्र।
सनदे विरासत (अ़.स्त्री.)-किसी के स्थान पर उपस्थित होने या उत्तराधिकारी होने का प्रमाणपत्र।
सनदे हिक्मत (अ़.स्त्री.)-उपचारक या चिकित्सक होने की उपाधि।
सनम (अ़.पु.)-मूर्ति, प्रतिमा, बुत; प्रिया, प्रेमिका, प्रेयसी, माÓशू$क:।
सनमकद: (अ़.$फा.पु.)-मूर्तिगृह, मंदिर, बुतख़्ााना।
सनमख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-दे.-'सनमकद:Ó।
सनमपरस्त (अ़.$फा.वि.)-मूर्तिपूजक, बुतों को पूजनेवाला, साकारोपासक।
सनमपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-साकारोपासना, मूर्तिपूजा, बुतपरस्ती।
सनवात (अ़.पु.)-'सनÓ का बहु., वर्षें, साल, बरस।
सनवी (अ़.वि.)-सनवाला, वर्ष का; वार्षिक, सालाना।
सना ($फा.स्त्री.)-एक रेचक या दस्तावर पत्ती, सनाय, स्वर्णपत्री। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीन अक्षर से बना है।
सना (अ़.स्त्री.)-प्रार्थना, स्तुति, वन्दना, हम्द; प्रशंसा, श्लाघा, तारी$फ; इस्लामी परिभाषा में हज्ऱत मुहम्मद साहब की गुणगाथा।
सनाए (अ़.पु.)-'सन्अ़तÓ का बहु., सन्अ़तें, कारीगरियाँ; अलंकार आदि, अदबी सन्अ़तें, साहित्यिक कारीगरियाँ या शिल्पें।
सनाए मक्की (अ़.$फा.स्त्री.)-अऱब के मक्का से आनेवाली 'सनायÓ की पत्ती (यह सना अति उत्तम मानी जाती है)।
सनाए माÓनवी (अ़.पु.)-अर्थालंकार, वह अलंकार जिनसे अर्थ की विशेषता प्रकट की जाए और अर्थ का चमत्कार दिखाया जाए।
सनाए लफ्ज़़ी (अ़.पु.)-शब्दालंकार, वह अलंकार जिनके द्वारा शब्दों में साहित्यिक चमत्कार पैदा किया जाए, जिन अलंकारों का सम्बन्ध केवल शब्दों से हो।
सनादीद (अ़.पु.)-'सिंदीदÓ का बहु., प्रतिष्ठित और महान् व्यक्ति।
सनाया (अ़.पु.)-'सनीय:Ó का बहु., अगले चार दाँत (दो ऊपर के और दो नीचे के)।
सनी (अ़.वि.)-दे.-'सनीय:Ó।
सनीन (अ़.पु.)-'सनÓ का बहु., अनेक बरस, कई साल, सम्वत्-समूह।
सनीय: (अ़.पु.)-आगे का एक दाँत, अगला एक दाँत (ऊपर का हो या नीचे का)।
सनून (अ़.पु.)-दन्त-मंजन, दाँतों को सा$फ करने का मंजन।
सने इस्वी (अ़.पु.)-वह संवत्सर, जो हज्ऱत ईसा के ज़माने से चलता है, ईस्वी-सन।
सने वफ़ात (अ़.पु.)-मृत्युवर्ष, मरने का साल, जिस साल किसी व्यक्ति का निधन हुआ हो।
सने विलादत (अ़.पु.)-जन्म-वर्ष, पैदा होने का साल, जिस वर्ष कोई पैदा हुआ हो।
सने हिज्री (अ़.पु.)-वह संवत्सर, जो हज्ऱत मुहम्मद साहब के मक्का छोड़कर मदीना जाने के दिन से चलता है, इस्लामी साल।
सनोबर ($फा.पु.)-चीड़ का पेड़, जो लम्बा और सुन्दर होता है।
सनाबरक़द ($फा.वि.)-जिसका शरीर सनोबर के पेड़ की तरह लम्बा और सुन्दर हो।
सनोबरक़ामत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सनोबरक़दÓ।
सन्अ़त (अ़.स्त्री.)-इस शब्द का शुद्घ उच्चारण 'सुन्अ़तÓ है, परन्तु उर्दू में 'सन्अ़तÓ ही प्रचलित है, इसलिए इसे ही शुद्घ मान लिया गया है; कला, $फन; शिल्प, कारीगरी; अलंकार।
सन्अ़तगर (अ़.$फा.वि.)-शिल्पी, शिल्पकार, कारीगर; उद्योगजीवी, पेशेवर।
सन्अ़तगरी (अ़.$फा.स्त्री.)-शिल्पकारी, शिल्पकला, , शिल्पसिद्घि, कारीगरी; उद्योगकर्म, पेशा।
सन्अ़तगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-शिल्पशाला; उद्योगशाला।
सन्अ़ती (अ़.वि.)-सन्अ़त से सम्बन्धित; शिल्प का, शैल्पिक; उद्योग का, औद्योगिक।
सन्अ़ते कर्द (किर्द) गार (अ़.$फा.स्त्री.)-ईश्वर की कारीगरी, प्राकृतिक सौन्दर्य।
सन्अ़ते तज़ाद (अ़.स्त्री.)-वह शब्दालंकार, जिसमें दो या अनेक परस्पर विरोधी चीजें़ लाई जाएँ।
सन्अ़ते पर्वर्दगार (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सन्अ़ते कर्दगारÓ।
सन्अ़ते मक़्लूब (अ़.$फा.स्त्री.)-वह शब्दालंकार, जिसमें किसी शब्द के अक्षर उलटकर कोई दूसरा शब्द बनाकर चमत्कार उत्पन्न पैदा किया जाए।
सन्अ़ते शेÓरी (अ़.स्त्री.)-अलंकार, काव्यगत।
सन्नाअ़ (अ़.वि.)-शिल्पी, शिल्पकार, कारीगर; कलाकार, $फनकार।
सन्नाई (अ़.स्त्री.)-शिल्पकर्म, कारीगरी; कलाकर्म, $फनकारी; हाथ का बारीक काम।
सन्नाए $कुद्रत (अ़.पु.)-प्रकृति, निसर्ग, नेचर।
सपंद ($फा.पु.)-एक प्रकार का काला दाना, जो भूत-प्रेत को भगाने अथवा नजऱ-गुजऱ को उतारने के लिए जलाया जाता है, दे.-'सिपंदÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सपंदाँ ($फा.वि.)-दे.-'सपंदÓ।
सपेद: ($फा.पु.)-दे.-'सफ़ेद:Ó।
सपेद ($फा.वि.)-दे.-'सफ़ेदÓ।
सपेदए सुब्ह (अ़.$फा.पु.)-प्रात:काल की सफ़ेदी, सफ़ेदए सहर, भोर का उजाला।
सपेदी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सफ़ेदीÓ।
स$फ [फ़्$फ] (अ़.स्त्री.)-पंक्ति, अवली, $कतार; रेखा, लकीर; लम्बी चटाई; नमाज़ या $कवाइद (अन्य रीति-रिवाजों) में मनुष्यों की लम्बी लाइन।
स$फआरा (अ़.$फा.वि.)-युद्घ में सम्मुख आया हुआ दल।
स$फआराई (अ़.$फा.स्त्री.)-युद्घ के लिए दो दलों का आमने-सामने होना।
स$फकशी (अ़.$फा.स्त्री.)-सैन्ययात्रा, चढ़ाई, धावा।
स$फदर (अ़.$फा.वि.)-युद्घ-व्यूह को खण्डित कर देनेवाला, युद्घ में बँधी पंक्तियों को तोड़ देनेवाला, महारथी, रणशूर; हज्ऱत अ़ली की एक उपाधि।
स$फन (अ़.पु.)-मछली या मगरमच्छ का खुरदरा चमड़ा, जो तलवार की मूँठ पर लगाते हैं ताकि पकड़ मज़बूत रहे; वसूला।
सफबंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-पंक्तिबद्घ होना, $कतारें बाँधना, लाइन लगाना।
स$फ ब स$फ (अ़.$फा.वि.)-पंक्तिबद्घ, $कतारें बाँधे हुए, अनेक पंक्तियों में बँटकर खड़े हुए।
स$फबस्त: (अ़.$फा.वि.)-पंक्तिबद्घ, $कतार बाँधे हुए।
स$फर (अ़.पु.)-यात्रा, मुसा$फरत; प्रस्थान, कूच; पर्यटन, सियाहत; गमन, जाना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
स$फर (अ़.पु.)-इस्लामी दूसरा महीना। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
स$फरख़्ार्च (अ़.$फा.पु.)-मार्ग-व्यय, यात्रा में आने-जाने का ख़्ार्च।
स$फरजल (अ़.पु.)-बिही, एक प्रसिद्घ मेवा।
स$फरनाम: (अ़.$फा.पु.)-वह पुस्तक, जिसमें कोई व्यक्ति अपने देश-विदेश पर्यटन करने का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त लिखे, भ्रमण-कथा, यात्रा-संस्मरण।
स$फरी (अ़.पु.)-स$फर का; स$फर से सम्बन्धित।
स$फरे आख़्िारत (अ़.पु.)-महाप्रस्थान, अन्तिम-यात्रा, परलोक-यात्रा, परलोक-गमन, मरना, मरण।
स$फरे बह्रïी (अ़.पु.)-जल-यात्रा, समुद्र के रास्ते पर्यटन, जहाज़ का स$फर।
स$फरे हवाई (अ़.पु.)-हवाई-यात्रा, वायुयान द्वारा स$फर।
स$फवी (अ़.वि.)-शाह 'स$फीÓ से सम्बन्धित, जो बड़े महात्मा थे और जिनकी संतान ईरान की शासक हुई।
स$फवीय: (अ़.वि.)-शाह स$फी की सन्तानवाले।
स$फशिकन (अ़.$फा.वि.)-युद्घ में पंक्तिबद्घ सेना को चीर डालनेवाला, महारथी।
स$फशिकनी (अ़.$फा.स्त्री.)-सेना की पंक्तियों में दराद डाल देना।
स$फह (अ़.स्त्री.)-मूर्खता, निर्बुद्घित्व, बेअ़क़्ली।
स$फा (अ़.स्त्री.)-स्वच्छता, विशुद्घता, स$फाई; चमक-दमक, आबोताब; अऱब में मक्का की एक पहाड़ी, (वि.)-सा$फतौर से, स्पष्ट रूप से।
स$फाइन (अ़.पु.)-'स$फीन:Ó का बहु., नौकाएँ, नावें, किश्तियाँ।
स$फाई (अ़.स्त्री.)-स्वच्छता, शुभ्रता, उजलापन; विशुद्घता, निर्मलता, ख़्ाालिसपन; पवित्रता, पाकीजग़ी; निर्दोषता, बेऐबी; मु$कदमे में दोष के सुबूत के बाद निर्दोष का सुबूत ($फौजदारी में)।
स$फाए $कल्ब (अ़.स्त्री.)-मन की शुद्घता, हृदय की शुद्घि, चित्त की पवित्रता, अंत:शुद्घि, मन:संस्कार।
स$फाए बातिन (अ़.स्त्री.)-दे.-'स$फाए $कल्बÓ।
स$फाकेश (अ़.$फा.वि.)-शुद्घात्मा, पाकबातिन; सदाचारी, अच्छे आचरणवाला, नेकअत्वार।
स$फामश्रब (अ़.वि.)-दे.-'स$फाकेशÓ।
स$फारा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'स$फआराÓ।
स$फाराई (अ़.$फा.वि.)-दे.-'स$फआराईÓ।
स$फाहत (अ़.स्त्री.)-अधमता, नीचता, पामरता, कमीनापन।
सफि़ल: (अ़.पु)-'सिफ़्ल:Ó का बहु., सिफ़्ले, नीच लोग, कमीने।
स$फी (अ़.वि.)-स्वच्छ, धवल, सा$फ; स्वच्छात्मा, पाकीज़:मिज़ाज; मित्र, सखा, दोस्त; हज्रत का ल$कब।
स$फीउल्लाह (अ़.पु)-ईश्वर का मित्र; हज्ऱत आदम।
स$फीन: (अ़.पु)-नौका, नाव, किश्ती; परवाना, आदेशपत्र; कविता की किताब।
स$फीय: (अ़.स्त्री.)-शुद्घ अंत:करणवाली; हज्ऱत मुहम्मद साहब की एक पत्नी का नाम।
स$फीर (अ़.स्त्री.)-सीटी, जो मुँह की आवाज़ से बजाई जाए; पक्षियों की बोली। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
स$फीर (अ़.पु)-पत्रवाहक, चिट्ठी ले जानेवाला; संदेशवाहक, पैग़ाम पहुँचानेवाला; दूत, राजदूत। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
स$फीह (अ़.वि.)-अधम, नीच, कमीना; निर्बुद्घि, मूर्ख, नादान।
स$फू$फ (अ़.पु)-पिसी हुई चीज़, चूर्ण।
सफ़े जंग (अ़.$फा.स्त्री.)-सेना-पंक्ति, $फौज की कतार।
सफ़ेद: ($फा.पु)-फूँका हुआ जरत, जि़न्क आक्साइड; सफ़ेदी, श्वेतता।
सफ़ेद ($फा.वि.)-श्वेत, शुभ्र, उजला।
सफ़ेदए सहर (अ़.$फा.पु.)-प्रात:काल का हलका प्रकाश।
सफ़ेदचश्म ($फा.वि.)-निर्लज्ज, बेहया।
सफ़ेदपोश ($फा.वि.)-सफ़ेद कपड़े पहननेवाला, श्वेताम्बर; भलामानस, सज्जन; वह व्यक्ति, जो कम आमदनी पर भी शिष्टता से जीवन-निर्वाह करे।
सफ़ेदबख़्त ($फा.वि.)-भाग्यवान्, ख़्ाुशनसीब, अच्छी $िकस्मतवाला।
सफ़ेदी ($फा.वि.)-श्वेतता; शुभ्रता, उजलापन।
सफ़ेदोसियाह ($फा.पु.)-काला और सफ़ेद, श्वेत-कृष्ण, सितासित।
सफ़ेनिअ़ाल (अ़.स्त्री.)-सभा में वह स्थान, जहाँ जूते रखे जाते हैं; जूते रखने का स्थान; सबसे नीचा स्थान।
सफ़े मातम (अ़.$फा.स्त्री.)-वह $फर्श, जिस पर मृत्यु-शोक प्रकट करने के लिए लोग एकत्र हों।
सफ़े लश्कर (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सफ़े जंगÓ।
सफ़्क (अ़.पु.)-रक्तपात, हिंसा, ख़्ाूँरेज़ी।
सफ़्के दिमा (अ़.पु.)-रक्तपात, ख़्ाून बहाना, हिंसा करना।
सफ़्$फाक (अ़.वि.)-रक्तपाती, ख़्ाून बहानेवाला; निष्ठुर, बेरहम; ज़ालिम, क्रूर, अत्याचारी।
सफ़्$फाकी (अ़.स्त्री.)-रक्तपात, ख़्ाूँरेज़ी; निष्ठुरता, संगदिली, हृदय की कठोरता; ज़ुल्म, अत्याचार।
सफ्ऱ: (अ़.पु.)-दस्तरख़्वान, वह चीज़ जिस पर खाना रखकर खाते हैं (इसका मूल उच्चारण 'सुफ्ऱ:Ó है, दे.-'सुफ्ऱाÓ)।
सफ्ऱ:चीं (अ़.$फा.वि.)-दस्तरख़्वान का बचा हुआ खानेवाला।
सफ्ऱची (अ़.$फा.पु.)-ख़्ाानसामा, खाना खिलानेवाला, बैरा।
सफ्ऱा (अ़.पु.)-एक धातु, पित्त; कटुता, कड़वाहट; पीले रंग की चीज़; धनुष।
सफ्ऱावी (अ़.वि.)-सफ्ऱा का, पित्त का; पित्त से सम्बन्धित; पित्त के दोष से उत्पन्न।
सफ्ऱाशिकन (अ़.$फा.वि.)-पित्तनाशक, पित्त को ख़्ात्म करनेवाली दवा।
सफ़्ला (अ़.वि.)-निम्नतम, बहुत नीचा; बहुत अधम, लो$फर।
सफ़्वत (अ़.स्त्री.)-श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; निर्मलता, स$फाई; संक्षिप्त, ख़्ाुलासा; निर्मल, सा$फ। यह शब्द 'सिफ़्वतÓ और 'सुफ़्वतÓ के रूप में भी व्यवहृत है।
सफ़्ह: (अ़.पु.)-पृष्ठ, पन्ना, पेज; तल, सतह।
सफ़्हए आस्माँ (अ़.$फा.पु.)-आकाश-पटल, तख़्ता रूपी आकाश।
सफ़्हए कागज़़ (अ़.पु.)-कागज़़ का पन्ना, पत्र का एक ओर।
सफ़्हए $िकर्तास (अ़.पु.)-दे.-'सफ़्हए कागज़़Ó।
सफ़्हए ज़मीं (अ़.$फा.पु.)-पृथ्वी का चौरस तल, धरातल।
सफ़्हए हस्ती (अ़.$फा.पु.)-जीवन-पटल, पत्ररूपी संसार, पटलरूपी जीवन।
सब [ब्ब] (अ़.स्त्री.)-अपशब्द, गाली-गलौज।
सब$क (अ़.पु.)-पाठ, जितना एक दिन में गुरु से पढ़ा जाए; शिक्षा, सीख; नसीहत, इब्रत; अनुभव, तज्रिबा। 'मेरा ही नाम था ज़बाँ पर यूँ चढ़ा हुआ, जैसे मैं इक सब$क रहा सबका पढ़ा हुआÓ-माँझी
सब$कआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-सब$क सिखानेवाला, पढ़ानेवाला; नसीहत करनेवाला, उपदेश देनेवाला।
सब$कत (अ़.स्त्री.)-बढ़ जाना, आगे निकल जाना; अव्वल आना, सबसे अधिक अंक या नम्बर पाना।
सबद ($फा.स्त्री.)-टोकरी, डलिया।
सबदे गुल ($फा.स्त्री.)-फूलों की टोकरी, माली की पुष्पों से भरी डलिया।
सबब (अ़.पु.)-कारण, हेतु, वजह; मूल कारण; वह दो अक्षरी शब्द जिनमें एक हल् हो या दोनों अज्। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सबब (अ़.पु.)-नीची भूमि, निशेबी ज़मीन; अ़ाशि$क होना, आसक्त होना, किसी के मोह में फँसना। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सबल (अ़.पु.)-परबाल, वह बाल जो आँखों में पैदा हो जाते हैं और बहुत कष्ट देते हैं तथा उनसे आँखें ख़्ाराब हो जाती हैं।
सबलत (अ़.स्त्री.)-मूँछ।
सबा (अ़.पु.)-यमन का एक शहर, जो हज्ऱत सुलैमान को दहेज में मिला था; अब्दुल्ला का बाप (यह वही अब्दुल्ला है, जो 'इब्ने सबाÓ के नाम से मशहूर है और जिसने एक नया धर्म बनाकर लोगों को ठगा था)। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सबा (अ़.स्त्री.)-पुर्वाई, पुर्वा हवा, प्रात्काल के समय चलनेवाली ठण्डी-मृदुल और मधुर हवा, समीर, मंद समीर। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है। 'सबाए गुल मैं कई बार कह चुका तुझसे, मुझे न छेड़ के मैं गर्दिशों का मारा हूँÓ-माँझी
सबा$क (अ़.पु.)-दे.-'सिबा$कÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
सबाख़्िाराम (अ़.$फा.वि.)-सबा की तरह इठलाकर धीरे-धीरे चलनेवाला (वाली), मृदुगामिनी।
सबात (अ़.पु.)-दृढ़ता, स्थिरता, मज़बूती; चिरस्थायित्व, पाएदारी।
सबाते अ़क़्ल (अ़.पु.)-बुद्घि की स्थिरता और पुख़्तगी, बुद्घि का दोष-रहित होना।
सबाते राय (अ़.पु.)-राय और विचार की सुदृढ़ता, ख़्ायाल की पुख़्तगी, सलाह का ठीक होना।
सबाते होशोहवास (अ़.$फा.पु.)-होश और संज्ञा का ठीक होना, होश में होना।
सबारफ़्तार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सबाख़्िारामÓ।
सबाह (अ़.स्त्री.)-प्रभात, तड़का, भोर, प्रात:काल; गोरा, सुन्दर, रूपवान्।
सबाहत (अ़.स्त्री.)-गोरापन, रंग की सफ़ेदी, सुन्दरता; रूप, हुस्न, सौन्दर्य। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सबाहत (अ़.स्त्री.)-पानी में तैरना, तैराकी, पैराकी, दे.-'सिबाहतÓ, दोनों शुद्घ हैं। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सबाहे ईद (अ़.स्त्री.)-ईद के दिन का सवेरा; ख़्ाुशी और आनन्द का उदय।
सबिर (अ़.पु.)-एलुआ (इस अर्थ में 'सब्रÓ और 'सिब्रÓ भी हैं)।
सबी (अ़.पु.)-दूध पीता बालक, शिशु, दुधमुँहा।
सबीय: (अ़.स्त्री.)-दूध पीती बच्ची, दुधमुँही।
सबील (अ़.स्त्री.)-पथ, मार्ग, रास्ता; यत्न, उपाय, तदबीर; पद्घति, शैली, तर्ज़; पानी पिलाने का स्थान, प्याऊ; मुहर्रम में शर्बत पिलाने का स्थान।
सबीह (अ़.वि.)-गौरवर्ण, गोरा-चिट्टा, जिसका रंग ख़्ाूब सा$फ हो; सुन्दर, हसीन।
सबुई (अ़.वि.)-दे.-'सबुईयतÓ।
सबुईयत (अ़.स्त्री.)-दरिन्दगी, भेडिय़ापन; क्रूरता, निर्दयता, बेरहमी।
सबुक ($फा.वि.)-अगुरु, हलका; अधम, नीच, लो$फर; चुस्त, $फुर्तीला; शीघ्रता, जल्दी, 'सुबुकÓ भी प्रचलित।
सबुकइनाँ ($फा.वि.)-तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगति, शीघ्रगामी, तेजऱफ़्तार।
सबुकख़्िाराम ($फा.वि.)-शीघ्रगति, तेज़ चलनेवाला।
सबुकख़्ोज़ ($फा.वि.)-सवेरे बहुत तड़के उठनेवाला।
सबुकगाम ($फा.वि.)-तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगति, शीघ्रगामी; मृदुलगामी, हलकी चाल से चलनेवाला।
सबुकगामी ($फा.स्त्री.)-तेज़ चलना; हलकी चाल से चलना।
सबुकजौलाँ ($फा.वि.)-शीघ्रगामी, तेजग़ति, तेजऱौ।
सबुकतिगीं (तु.पु.)-सुलतान महमूद के बाप का नाम, दे.-'सुबुकतिगींÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सबुकदस्त ($फा.वि.)-जिसका हाथ किसी काम पर सधा हो; जो तेज़ी से काम करे, चालाक।
सबुकदस्ती ($फा.स्त्री.)-किसी काम पर हाथ का सधा होना; तेज़ी से काम करना।
सबुकदोश ($फा.वि.)-भारमुक्त, जि़म्मेदारी से अलग; अवकाशप्राप्त, जो पेंशन पाता हो।
सबुकदोशी ($फा.स्त्री.)-जि़म्मेदारी से मुक्तता या अ़लाहदगी; निवृत्ति, पेंशन।
सबुकपरवाज़ ($फा.वि.)-तेज़ उडऩेवाला; ऊँचा उडऩेवाला।
सबुकपरवाज़ी ($फा.स्त्री.)-तेज़ उडऩा; ऊँचा उडऩा।
सबुकपा ($फा.वि.)-शीघ्रगति, तेज़$कदम।
सबुकपाई ($फा.स्त्री.)-तेज़ चलना, शीघ्रगमन, तेज़$कदमी।
सबुकबार ($फा.वि.)-भारमुक्त, जिसके सिर से बोझ उतर गया हो, निवृत्त।
सबुकबाल ($फा.वि.)-तेज़ उडऩेवाला, ऊँचा उडऩेवाला।
सबुकमग्ज़ ($फा.वि.)-अल्पबुद्घि, मंदबुद्घि, कमअ़क़्ल; तिरस्कृत, बेइज़्ज़त, अपमानित।
सबुकमग्ज़ी ($फा.स्त्री.)-बेअ़क़्ली, बुद्घि की मंदता; तिरस्कार, निन्दा, बेइज़्ज़ती, अपमान।
सबुकरफ़्तार ($फा.वि.)-शीघ्रगति, आशुगामी, तेजऱौ।
सबुकरफ़्तारी ($फा.स्त्री.)-तेज़ चलना, शीघ्र गमन।
सबुकरवी ($फा.स्त्री.)-तेज़ चलना, तेज़ रफ़्तारी।
सबुकरूह (अ़.$फा.वि.)-हँसमुख, जऱी$फ; निवृत्त, बेतअ़ल्लु$क; प्रत्येक कार्य में निपुण, होशियार; जो किसी से वैर-द्वेष आदि न रखे।
सबुकरूही (अ़.$फा.स्त्री.)-हँसमुख होना; निवृत्ति, बेतअ़ल्लु$की; $फुर्ती, तेज़ी; किसी से कोई द्वेष आदि न रखना।
सबुकरौ ($फा.वि.)-दे.-'सबुकरफ़्तारÓ।
सबुकसंग ($फा.वि.)-अधम, नीच, कमीना।
सबुकसर ($फा.वि.)-अधम, नीच, कमीना, ओछा, लो$फर; जो अपना धैर्य और गंभीरता छोड़कर अपनी जगह से नीचे उतर आए।
सबुकसरी ($फा.स्त्री.)-नीचता, ओछापन; अपनी मर्यादा का त्याग, अपने दरजे से नीचे उतरना।
सबुकसार ($फा.वि.)-जो सांसारिक बन्धनों से निवृत्त हो।
सबुकसैर ($फा.वि.)-दे.-'सबुकरफ़्तारÓ।
सबुकसैरी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सबुकरफ़्तारीÓ।
सबुकहिम्मत (अ़.$फा.वि.)-हतोत्साह, मंदोत्साह, अल्पसाहस, कमहौसला।
सबुकहिम्मती (अ़.$फा.स्त्री.)-उत्साह और साहस की कमी, कमहिम्मती।
सबुकी ($फा.स्त्री.)-नीचता, कमीनगी, ओछापन; हलकापन; लाज, लज्जा।
सबू ($फा.पु.)-घड़ा, घट, कुंभ; मद्यघट, शराब की मटकी। 'सुबूÓ भी प्रचलित है।
सबूए मै ($फा.पु.)-शराब की मटकी, मद्यघट।
सबूकश ($फा.वि.)-जो पूरा मटका शराब पी जाए, पक्का शराबी।
सबूकशी ($फा.स्त्री.)-मद्यपान, शराबनोशी, मदिरा पीना, सुरा-भोग।
सबूच: ($फा.पु.)-छोटा घड़ा, मटकी।
सबूदान ($फा.पु.)-घड़ा या मटका रखने की तिपाई आदि।
सबूर (अ़.वि.)-सब्र करनेवाला, धीरज रखनेवाला, धैर्यवान्।
सबूरी (अ़.स्त्री.)-सब्र, धीरज, धैर्य।
सबूस ($फा.स्त्री.)-तुष, भूसी।
सबूसाज़ ($फा.वि.)-सबू या मटका बनानेवाला, कुंभकार, कुम्हार।
सबूसे अस्पग़ोल ($फा.स्त्री.)-ईसबग़ोल की भूसी, जो दवा में काम आती है।
सबूह (अ़.वि.)-सवेरे-तड़के पी जानेवाली शराब।
सबूही (अ़.स्त्री.)-सवेरे-तड़के शराब पीना। दे.-'सबूहÓ।
सबूहीकश (अ़.$फा.वि.)-सवेरे-तड़के की शराब पीनेवाला।
सब्अ़: (अ़.वि.)-सात, सप्त, एक संख्या।
सब्अ़ (अ़.वि.)-सात की संख्या, सप्त।
सब्ग़ (अ़.पु.)-रँगना, रंग करना, रंजन।
सब्ज़: ($फा.पु.)-हरी घास, हरियाली; सब्ज़ रंग का घोड़ा।
सब्ज़:आग़ाज़ ($फा.वि.)-अंकुरित-यौवन, जिसकी मूँछ-दाढ़ी के बाल निकलने शुरू हो गए हों।
सब्ज़:ख़्ात ($फा.वि.)-जिसकी मूँछ-दाढ़ी के बाल नए-नए निकले हों।
सब्ज़:ख़्ोज़ ($फा.वि.)-हरा-भरा, हरियाली से परिपूर्ण।
सब्ज़:ज़ार ($फा.पु.)-जहाँ हरियाली ही हरियाली हो, घास का मैदान।
सब्ज़:रंग ($फा.वि.)-हरे रंग का; मलीह, नमकीन, साँवला, सलोना।
सब्ज़:रुख़्ा ($फा.वि.)-दे.-'सब्ज़:ख़्ातÓ।
सब्ज़:रू ($फा.वि.)-दे.-'सब्ज़:ख़्ातÓ।
सब्जए ख़्ाुदरो ($फा.पु.)-अपने आप जमनेवाली घास।
सब्ज़ए नौख़्ोज़ ($फा.पु.)-नई उगी हुई घास; नई निकली हुई दाढ़ा, मुँछ-दाढ़ी के नए बाल।
सब्ज़क ($फा.पु.)-नीलकंठ, चाष।
सब्ज़$कदम (अ़.$फा.वि.)-जिसके पाँव पड़ते ही अशुभ की आशंका हो, अशुभचरण, जिसका आना अनिष्टकर हो, मनहूस-$कदम।
सब्ज़$कदमी (अ़.$फा.स्त्री.)-आगमन अशुभ होना, पदार्पण से अनिष्ट की आशंका होना।
सब्ज़कार ($फा.वि.)-जो प्रत्येक कार्य को सफलतापूर्वक करे, जिसके हाथ से कार्य अच्छी प्रकार सम्पन्न हो।
सब्ज़पा ($फा.वि.)-दे.-'सब्ज़$कदमÓ।
सब्ज़पाई ($फा.स्त्री.)-दे.-'सब्ज़$कदमीÓ।
सब्ज़पोश ($फा.वि.)-हरे रंग के कपड़े पहननेवाला, हरिताम्बर।
सब्ज़पोशी ($फा.स्त्री.)-हरे कपड़े पहनना।
सब्ज़$फाम ($फा.वि.)-हरे रंगवाला, हरितांग।
सब्ज़$फामी ($फा.स्त्री.)-हरा रंग होना, शरीर का रंग हरा होना।
सब्ज़बख़्त ($फा.वि.)-भाग्यवान्, ख़्ाुशनसीब, ख़्ाुश$िकस्मत; तेजस्वी, प्रतापी, इ$कबालमंद।
सब्ज़बख़्ती ($फा.स्त्री.)-तेज, प्रताप, इ$कबाल; $िकस्मत की अच्छाई, भाग्यवानी, नसीब का अच्छा होना।
सब्जऱंग ($फा.वि.)-हरे रंग का; सलोना, साँवला, मलीह।
सब्जऱंगी ($फा.स्त्री.)-हरा रंग होना; सलोनापन, साँवलापन।
सब्ज़ाने चमन ($फा.पु.)-बाग़ के पेड़, उपवन के वृक्ष।
सब्ज़ी ($फा.स्त्री.)-हरियालापन, हरापन; घास, सब्ज़:; शाक, भाजी, तरकारी; भंग, भाँग, विजयाबूटी।
सब्ज़ीख़्ाोर ($फा.वि.)-सागपात खानेवाला, शाकाहारी।
सब्ज़ीन: ($फा.पु.)-साँवले रंग का महबूब या माÓशू$क।
सब्ज़ी$फरोश ($फा.वि.)-साग-तरकारी बेचनेवाला, कुँजड़ा।
सब्त (अ़.स्त्री.)-खुले हुए बाल, वे बाल जिनका जूड़ा न बँधा हो, छुटे हुए बाल। इसका 'सÓ उर्दू के सीनÓ तथा 'तÓ 'तोयÓ अक्षर से बना है।
सब्त (अ़.वि.)-अंकित करना, लिखना, अंकन; अंकित, लिखित, लिखा हुआ। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ तथा 'तÓ 'तेÓ अक्षर से बना है।
सब्त (अ़.पु.)-शनिवार, शंब:, सनीचर। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ तथा 'तÓ 'तेÓ अक्षर से बना है।
सब्बाक (अ़.वि.)-सोने-चाँदी का काम करनेवाला, स्वर्णकार, सुनार।
सब्बाग़ (अ़.वि.)-रँगनेवाला, रंजक, रंगरेज़।
सब्बाग़ी (अ़.स्त्री.)-रँगने का काम।
सब्बाग़े ज़मीं (अ़.$फा.पु.)-सूरज, रवि, दिवाकर, दिनकर (क्योंकि पृथ्वी के ताम प्राणीवर्ग, वनस्पतिवर्ग और धातुवर्ग को सूरज से ही रंग मिलता है)।
सब्बाब: (अ़.स्त्री.)-तर्जनी, अँगूठे के पास की उँगली।
सब्बाह (अ़.वि.)-तैरनेवाला, पैरनेवाला, तैराक, पैराक।
सब्बूह (अ़.पु.)-यशोगान करनेवाला, स्तुति करनेवाला, प्रशंसा करनेवाला।
सब्बो शत्म (अ़.पु.)-अपशब्द, गाली-गलौज।
सब्र (अ़.पु.)-धैर्य, धीरज, संतोष, सबूरी; एलुआ, इस अर्थ में 'सिब्रÓ और 'सबिरÓ भी हैं।
सब्रआज़्मा (अ़.$फा.वि.)-वह काम जो धैर्य की परीक्षा ले अर्थात् देर में हो।
सब्रतलब (अ़.वि.)-जिसमें सब्र और धैर्य की आवश्यकता हो।
सबे्र ऐयूब (अ़.पु.)-हज्ऱत ऐयूब-जैसा सब्र और धैर्य।
सब्रो शुक्र (अ़.पु.)-प्रत्येक कार्य में धैर्य रखना और ईश्वर को धन्यवाद देना।
समंद ($फा.पु.)-अश्व, घोड़ा।
समंदर ($फा.पु.)-'सामंदरÓ का लघु., अग्निकीट, आग का कीड़ा, एक कीड़ा जिसकी उत्पत्ति अग्नि से मानी जाती है।
समंदल ($फा.पु.)-दे.-'समंदरÓ।
सम [म्म] (अ़.पु.)-ज़ह्र विष, गरल; सुई का नाका।
समक (अ़.स्त्री.)-मछली, मीन, मत्स्य; वह मछली जिसकी पीठ पर पृथ्वी स्थिर है (इस्लामी मान्यता)।
समकीयाँ (अ़.$फा.पु.)-संसारवाले, दुनियावाले, मत्र्यवाले, मृत्युलोकवाले।
समद (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, पूज्य, बुज़ुर्ग; अनीह, नि:स्पृह, बेनियाज़; नित्य, अनश्वर, दाइम; वह व्यक्ति जो भूखा-प्यासा न हो; ईश्वर।
समदीयत (अ़.स्त्री.)-श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; नि:स्पृहता, बेनियाज़ी; हर प्रकार की इच्छाओं से रहित होना।
समन (अ़.पु.)-$कीमत, मूल्य, दाम, भाव। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
समन (अ़.स्त्री.)-चमेली का फूल। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
समनअंदाम (अ़.$फा.वि.)-चमेली के फूल-जैसे शुभ्र और सुगंधित अथवा मृदुल शरीरवाला (वाली)।
समनइज़ार (अ़.$फा.वि.)-जिसके गाल चमेली के फूल की तरह मृदुल, कोमल और शुभ्र हों।
समनख़्ाद (अ़.$फा.वि.)-दे.-'समनइज़ारÓ।
समनज़ार (अ़.$फा.पु.)-जहाँ चमेली ही चमेली के फूल हों, चमेली का वन या उपवन, चमेली का बाग़।
समनबार (अ़.$फा.वि.)-फूल बरसानेवाला (वाली)।
समनबू (अ़.$फा.वि.)-चमेली के फूल-जैसी सुगंधवाला।
समनरू (अ़.$फा.वि.)-चमेली के फूल-जैसा धवल और उज्ज्वल मुख रखनेवाला (वाली)।
समनसा$क (अ़.$फा.वि.)-चमेली-जैसी सफ़ेद पिण्डलियोंवाली सुन्दरी।
समनसीमा (अ़.$फा.वि.)-चमेली-जैसे शुभ्र और चमकदार माथेवाला (वाली)।
समम (अ़.पु.)-बहरापन, वधिरता।
समर: (अ़.पु.)-फल, मेवा; प्रतिकार, बदला; परिणाम, नतीजा।
समर (अ़.पु.)-कथन, बात; कथा, कहानी, $िकस्सा। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
समर (अ़.पु.)-फल, मेवा; प्रतिकार, बदला; परिणाम, नतीजा। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है, दे.-'समर:Ó।
समरात (अ़.पु.)-'समर:Ó का बहु., फल-मेवे; परिणाम, नतीजे।
समाँ (अ़.पु.)-मंजऱ, दृश्य, नज़्ज़ारा (नज़ारा)।
समा (अ़.पु.)-गगन, अम्बर, आकाश, आस्मान।
समाअ़ (अ़.पु.)-सुनना, श्रवण करना, गाना-बजाना; वज्द करना, झूमना, मस्ती में आना।
समाअ़त (अ़.स्त्री.)-श्रवण करना, सुनना; श्रवण-शक्ति, सुनने की $कुव्वत।
समाई (अ़.स्त्री.)-सुना हुआ, सुनी हुई बात।
समा$क (अ़.पु.)-एक बहुत-ही कड़ा पत्थर, जिससे बननेवाले खरल बहुत $कीमती होते हैं।
समाजत (अ़.स्त्री.)-निकृष्टता, ख़्ाराबी; विनति, विनय; ख़्ाुशामद, गिड़गिड़ाहट।
समानिय: (अ़.वि.)-अष्ट, आठ।
समानीन (अ़.वि.)-अस्सी।
समावात (अ़.पु.)-'समाÓ का बहु., आकाश-समूह, बहुत-से आस्मान।
समावार ($फा.पु.)-चाय पकाने या पानी गर्म करने का टंकीनुमा बर्तन, जिसमें टोंटी हो।
समावी (अ़.वि.)-आकाशीय, आस्मानी, गै़बी, दैवी।
समाह (अ़.पु.)-दे.-'समाहतÓ।
समाहत (अ़.स्त्री.)-दानशीलता, फैय़ाज़ी।
समी (अ़.वि.)-नामराशि, सहनाम, एक नामवाले; तुल्य, समान, बराबर, मिस्ल।
समीअ़ (अ़.वि.)-सुननेवाला; ईश्वर का एक नाम।
समीज़ (अ़.स्त्री.)-मैदे की सफ़ेद रोटी।
समीद ($फा.स्त्री.)-दे.-'समीज़Ó।
समीन (अ़.वि.)-मोटा, चर्बीला। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
समीन (अ़.वि.)-मूल्यवान्, $कीमती। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
समीम (अ़.वि.)-विशुद्घ, निर्मल, ख़्ाालिस; हृदय का भीतरी भाग; बधिर, बहरा।
समीमे $कल्ब (अ़.वि.)-हृदय का भीतरी भाग, तहेदिल; निष्केवलता, ख़्ाुलूस।
समीर (अ़.वि.)-फलदार, फलवाला, वह पेड़ जिसमें फल लगे हों।
समूद (अ़.पु.)-हज्ऱत नूह की चौथी पुश्त अर्थात् पीढ़ी में एक व्यक्ति का नाम था। उसके वंशज 'बनी समूदÓ कहलाते थे और 'हज्ऱत सालेहÓ के अनुयायी थे। इन्होंने हज्ऱत सालेह के साथ गुस्ताख़्ाी की थी, जिससे सब तबाह हो ए थे।
समूम (अ़.स्त्री.)-कड़ी लपट, ज़हरीली हवा।
समूर (अ़.वि.)-एक जानवर जिसकी खाल से बढिय़ा पोस्तीन (शीत-निरोधक वस्त्र या आवरण) बनती है।
समूरी (अ़.स्त्री.)-समूर की खाल का बना हुआ।
सम्अ़ (अ़.स्त्री.)-श्रवण, सुनना; श्रवण-शक्ति, सुनने की शक्ति।
सम्अ़ख़्ाराश (अ़.$फा.वि.)-कान खानेवाला (वाली), बक-बक करके कानों को कष्ट देनेवाला।
सम्अ़ख़्ाराशी (अ़.$फा.स्त्री.)-कान खाना अर्थात् बक-बक से कानों को कष्ट देना।
सम्ग़ (अ़.पु.)-गोंद, निर्यास।
सम्ग़े अऱबी (अ़.पु.)-बबूल का गोंद।
समत (अ़.पु.)-मोती, मुक्ता, दे.-'सिम्तÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सम्त (अ़.पु.)-मौन, ख़्ाामोशी, चुप्पी; शान्ति, सुकून, आराम। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सम्त (अ़.स्त्री.)-तर$फ, ओर, दिशा; सरल मार्ग, सीधा रास्ता; सदाचार, नेकचलनी; रूप, शक्ल, आकृति; इरादा, संकल्प, निश्चय; मानस-कर्म। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सम्तुर्रास (अ़.पु.)-आकाश का वह बिन्दु, जो मनुष्य के चन्द्रमा के ठीक सामने पड़े, शीर्ष-बिन्दु, आकाश-बिन्दु।
सम्ते जुनूब (अ़.स्त्री.)-दक्षिण की दिशा, दक्षिण, दक्खिन।
सम्ते मग्रि़ब (अ़.स्त्री.)-पश्चिम की दिशा, पश्चिम, पच्छिम, प्रत्यक्।
सम्ते मश्रि$क (अ़.स्त्री.)-पूर्व की दिशा, पूर्व, प्राक्।
सम्ते मुख़्ाालि$फ (अ़.स्त्री.)-वामपक्ष, विरोधी दल।
सम्ते शिमाल (अ़.स्त्री.)-उत्तर की दिशा, उत्तर, उदक्।
सम्न (अ़.स्त्री.)-घी, घृत, रौगऩ।
सम्मी (अ़.वि.)-गरलयुक्त, विषाक्त, जिसमें ज़ह्र अथवा विष हो, ज़ह्रआलूद।
सम्मीयत (अ़.स्त्री.)-गरलता, विषत्व, ज़ह्रपन; गरल, विष, ज़ह्र, विष का असर।
सम्मे $कातिल (अ़.पु.)-बहुत-ही सख्त्त विष, जिसके खा लेने से आदमी किसी भी प्रकार न बचे।
सम्साम (अ़.स्त्री.)-तेज़ तलवार, काटदार तलवार।
सय्याद (अ़.वि.)-शिकारी, आखेटक, लुब्धक, व्याध, चिड़ीमार, पक्षियों को पकडऩेवाला, शाकुनिक।
सय्यादी (अ़.वि.)-शिकार का पेशा; निर्दयता, संगदिली, मन की कठोरता।
सय्यादे अजल (अ़.पु.)-मौत का शिकारी, मृत्युरूपी व्याध।
सय्या$फ (अ़.वि.)-तलवार चलानेवाला; जल्लाद, वधिक।
सय्याल (अ़.वि.)-तरल, बहनेवाला पदार्थ।
सय्यार: (अ़.पु.)-तारा, उडु; ग्रह, सितारा; सैर करनेवाला, भ्रमणकारी।
सय्यार (अ़.वि.)-घूमनेवाला, सैर करनेवाला, भ्रमण करनेवाला; वह तारा, जो घूता है, स्थिर नहीं रहता, ग्रह।
सय्यास (अ़.वि.)-राजनीति में निपुण, रानीतिज्ञ, सियासतदाँ।
सय्याह (अ़.पु.)-भ्रमण करनेवाला, पर्यटक, सियाहत करनेवाला, देश-विदेश घूमनेवाला।
सय्याही (अ़.स्त्री.)-देशाटन, पर्यटन, देश-विदेश घूमना, सियाहत करना।
सरंगुश्त ($फा.स्त्री.)-उँगली का पोरा; उँगली का सिरा।
सरंजाम ($फा.पु.)-परिणाम, नतीजा; अन्त, अख़्ाीर; पूर्ति, तकमील; प्रबन्ध, बन्दोबस्त; उपकरण, सामग्री, सामान।
सर: ($फा.वि.)-निर्मल, निष्केवल, विशुद्घ, बेमेल, ख़्ाालिस; खरा रुपया या सिक्का।
सर ($फा.पु.)-शिर, सिर, मूँड़; श्रेष्ठ, उत्तम; ध्यान, ख़्ायाल; सिरा, अगला भाग; (उप.)-श्रेष्ठता, उच्चता, सिरा आदि के अर्थ में आता है।
सरअंगुश्त ($फा.स्त्री.)-दे.-'सरंगुश्तÓ, वही उच्चारण अधिक शुद्घ है।
सरअंजाम ($फा.पु.)-दे.-'सरंजामÓ, उच्चारण वही अधिक शुद्घ है।
सरअफ्ग़ंद: ($फा.वि.)-दे.-'सरफ्ग़ंद:Ó, उच्चारण वही अधिक शुद्घ है।
सरआमद ($फा.वि.)-दे.-'सरामदÓ, उच्चारण वही अधिक शुद्घ है।
सर$कतार (अ़.$फा.वि.)-मुखिया, अगुआ, अग्रेसर, लीडर, नेता, सरदार।
सरकर्न: ($फा.वि.)-अग्रेसर, अगुआ, सरदार, सरगऩा, मुखिया।
सरकर्दगी ($फा.स्त्री.)-अगे्रसरी, अगुआपन, नेतृत्व।
सर$कल्यान ($फा.स्त्री.)-चिलम, तम्बाकू पीने की चिलम।
सरकश ($फा.वि.)-मुँहफट, बदलगाम; स्वेच्छाचारी, ख़्ाुदराय; उद्दंड, उजड्ड; अशिष्ट, नामुहज़्ज़ब; अवज्ञाकारी, ना$फर्मान; विद्रोही, बाग़ी।
सरकशी ($फा.स्त्री.)-मुँहफट या बदलगाम होना, निरंकुश होना; अवज्ञा, हुक्मउदूली; विद्रोह, बग़ावत; उद्दंडता, उजड्डपन; बदलगामी।
सरकार ($फा.स्त्री.)-राज्य, हुकूमत; शासक, हाकिम; राष्ट्र, देश, मम्लु$कत; बड़े लोगों के लिए सम्बोधन का शब्द; कचहरी, न्यायालय; दरबार, राजसभा।
सरकारी ($फा.वि.)-राजकीय, हुकूमती, सरकार का।
सरकोचकी ($फा.स्त्री.)-ओछापन, नीचता, अधमता, पामरता, कमीनगी।
सरकोब ($फा.वि.)-सर कुचलनेवाला, दमन करनेवाला; दमदम:, वह कृत्रिम कोट, जो युद्घ के समय थैलों में मिट्टी भरकर बनाते हैं, धुस, मोरचा।
सरकोबी ($फा.स्त्री.)-सर कुचलना, दमन करना।
सरख़्ात ($फा.पु.)-वेतन या तनख़्वाह आदि के हिसाब का कागज़़; दस्तख़्ाती तह्रीर; स्टाम्प, तमस्सुक।
सरख़्ाुश ($फा.वि.)-हलके नशे में मस्त।
सरख़्ाुशी ($फा.स्त्री.)-हलका नशा।
सरख़्ौल ($फा.वि.)-अपने दल का नायक, मुखिया, सरदार।
सरगऩ: ($फा.वि.)-मुखिया, सरदार।
सरगर्दां ($फा.वि.)-दे.-'सरगश्त:Ó।
सरगर्म ($फा.वि.)-तत्पर, कटिबद्घ, मुस्तइद; तन्मय, तल्लीन, मह्व।
सरगर्मी ($फा.स्त्री.)-तन्मयता, संलग्नता, तत्परता, मुस्तइदी।
सरगर्मेकार ($फा.वि.)-किसी काम में पूरी तन्मयता से लगा हुआ।
सरगश्त: ($फा.वि.)-हैरान, उद्विग्न, परेशान; रास्ते से भटका हुआ, राह भूला हुआ।
सरगश्तगी ($फा.स्त्री.)-उद्विग्नता, हैरानी; राह भूल जाना, भटकते फिरना।
सरगर्दानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सरगश्तगीÓ।
सरगिराँ ($फा.वि.)-रुष्ट, अप्रसन्न, नाख़्ाुश, ख़्ा$फा।
सरगिरानी ($फा.स्त्री.)-रोष, अप्रसन्नता, नाराजगी, ख़्ा$फगी।
सरगुज़श्त ($फा.स्त्री.)-हाल, वृत्तान्त; घटना, वा$िकअ़: (वा$िकया)।
सरगुम ($फा.वि.)-जिसका आदि और अन्त न हो, जिसकी इब्तिदा और इन्तिहा न हो।
सरगुरोह ($फा.वि.)-नायक, मुखिया, अपने दल का अगुआ या सरदार।
सरगोशी ($फा.स्त्री.)-कान से मुँह मिलाकर चुपके-चुपके बातें करना, कानाफूँसी।
सरचंग ($फा.पु.)-थप्पड़, चाँटा, तल-प्रहार।
सरचश्म: ($फा.पु.)-स्रोत, सोत, सोता; उद्गम।
सरचस्पाँ ($फा.पु.)-बोतल या डिब्बे आदि पर चिपकाने का लेबिल।
सरजंग ($फा.पु.)-सेनापति, सिपहसालार।
सरज़द: ($फा.वि.)-बेसुध, निश्चेष्ट, संज्ञाहीन, बेख़्ाबर।
सरज़द ($फा.वि.)-घटित, वाक़ेÓ।
सरजऩ ($फा.वि.)-उद्दंड, सरकश, अवज्ञाकारी, ना$फर्मान।
सरज़निश ($फा.स्त्री.)-लताड़, डाँट-फटकार, भत्सर््ना, तंबीह।
सरजऩी ($फा.स्त्री.)-उद्दंडता, अवज्ञा, ना$फर्मानी, अवहेलना।
सरज़मीं ($फा.स्त्री.)-देश, मुल्क, राष्ट्र; पृथ्वी, ज़मीन।
सरजूक़: ($फा.पु.)-दे.-'सरगुरोहÓ।
सरज़ोर ($फा.वि.)-अवहेलना करनेवाला, अवज्ञाकारी, ना$फर्मान; विद्रोही, बाग़ी।
सरज़ोरी ($फा.स्त्री.)-अवहेलना, अवज्ञा, ना$फर्मानी; विद्रोह, बग़वत।
सरजोश ($फा.वि.)-प्रत्येक वह चीज़, जो देग से पहले जोश में उतारी जाए, सार, सत, जौहर।
सरतराश ($फा.वि.)-नाई, नापित, सर मूँडनेवाला, क्षौरकर्मकार।
सरतराशी ($फा.स्त्री.)-नाई का काम, नापितकर्म, नाईपन।
सरताज ($फा.वि.)-शिरोमणि, सबसे अच्छा; पति, शौहर; स्वामी, मालिक; नायक, सरदार।
सरतान (अ़.पु.)-दे.-'सर्तानÓ।
सरतापा ($फा.वि.)-सिर से पाँव तक, आपाद-मस्तक; आद्योपांत, शुरू से आख़्िार तक।
सरताब$कदम (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सरतापाÓ।
सरताबी ($फा.स्त्री.)-अवहेलना, अवज्ञा, हुक्मउदूली, ना$फर्मानी; उद्दण्डता, सरकशी।
सरतासर ($फा.वि.)-आदि से अन्त तक, शुरू से अख़्ाीर तक।
सरतेज़: ($फा.पु.)-संगीन, लम्बी-पतली छुरी।
सरतेज़ ($फा.वि.)-लड़ाकू, जंगजू; नोकदार।
सरदफ़्तर ($फा.वि.)-कार्यालय का मुख्य लिपिक, हेडक्लर्क, दफ़्तर का इंचार्ज।
सर दर गिरीबाँ ($फा.वि.)-सोच में पड़ा हुआ।
सरदर्द ($फा.पु.)-सिर का दर्द, सिर की पीड़ा; झंझट, जंजाल, बखेड़ा; श्रम, मेहनत।
सरदर्दी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सरदर्दÓ।
सरदस्त ($फा.वि.)-ओछा, बे$कद्र; कलन्दरों के हाथ में रखनेवाली लकड़ी।
सरदार ($फा.पु.)-नायक, अध्यक्ष; स्वामी, मालिक।
सरदारी ($फा.स्त्री.)-अध्यक्षता; स्वामित्व।
सरनविश्त ($फा.स्त्री.)-भाग्य-लेख, $िकस्मत का लिखा हुआ्र; वृत्तान्त, हाल।
सरनाम: ($फा.पु.)-चिट्ठी या पत्र का सिरनामा, ख़्ात का अल्$काबो आदाब।
सरनाम ($फा.पु.)-यशस्वी, प्रसिद्घ, मशहूर, नामवर।
सरनिगूँ ($फा.वि.)-नत्मस्तक, सिर झुकाए हुए्र; औंधा, अधोमुख्र; लज्जित, शर्मिन्दा।
सरनिहाद: ($फा.वि.)-नत्मस्तक, सिर टेके हुए, सिर झुकाए हुए।
सरपंज: ($फा.वि.)-प्रहस्त, हाथ का पंजा, अलंबुष; शक्तिशाली, ता$कतवर; क्रूर, अत्याचारी, ज़ालिम।
सरपंजगी ($फा.वि.)-शक्ति, ता$कत, ज़ोर; ज़ुल्म, अनीति, अत्याचार।
सरपरस्त ($फा.वि.)-जो किसी की देख-रेख और पालन-पोषण करे, संरक्षक; गार्जियन, अभिभावक; पक्षपाती, हिमायती।
सरपरस्ती ($फा.स्त्री.)-देख-रेख, पालन-पोषण; गार्जियनशिप, अभिभावकता; पक्षपात, तरफ़दारी।
सरपेच ($फा.पु.)-पगड़ी में बाँधने का एक आभूषण।
सरपोश ($फा.पु.)-ढक्कन।
सरपोशीद: ($फा.स्त्री.)-कुँवारी लड़की, कुमारी, अविवाहिता।
सर$फराज़ ($फा.वि.)-दे.-'सरफ्ऱाज़Ó।
सर$फराज़ी ($फा.स्त्री.)-दे.-'सरफ्ऱाज़ीÓ।
सर$फरोश ($फा.वि.)-प्राणों की बाज़ी लगा देनेवाला, जाँनिसार।
सर$फरोशी ($फा.स्त्री.)-प्राणों की बाज़ी लगाना, जाँनिसारी।
सर$िफगंद: ($फा.वि.)-दे.-'सरफ्ग़ंद:Ó।
सरफ्ग़ंद: ($फा.वि.)-नत्मस्तक, सिर झुकाए हुए।
सरबंद ($फा.पु.)-जिसका मुँह बन्द हो, सर बमुह्र।
सरबक$फ ($फा.वि.)-हाथ पर सिर रखे हुए अर्थात् मरने पर उद्यत।
सरबख़्श ($फा.पु.)-किसी वस्तु के कई भागों में से सबसे बड़ा भाग।
सर ब गिरीबाँ ($फा.वि.)-दे.-'सर दर गिरीबाँÓ।
सर बज़ानू ($फा.वि.)-घुटनों में सिर डाले हुए, उदास, चिन्तित।
सर बमुह्र ($फा.वि.)-मुँह पर मुह्र किया हुआ अर्थात् मुँह बन्द किया हुआ।
सरबर ($फा.वि.)-दे.-'सरबलंदÓ।
सरबरआवर्द: ($फा.वि.)-दे.-'सरबरावर्द:Ó।
सरबरहन: ($फा.वि.)-नंगे सिर, सिर खोले हुए, जिसके सिर पर पर्दा आदि न हो।
सरबरावर्द: ($फा.वि.)-प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति, बड़ा आदमी।
सरबराह ($फा.वि.)-व्यवस्थापक, प्रबन्धक, मुंतजि़म।
सरबराहकार ($फा.पु.)-काम करनेवाला, कारकुन, कारिन्दा, एजेंट, अभिकर्ता।
सरबराही ($फा.स्त्री.)-व्यवस्था, प्रबन्ध, इंतिज़ाम।
सरबलंद ($फा.वि.)-प्रतिष्ठित, सम्मानित, इज़्ज़तदार, मुअ़ज़्जज़़।
सरबलंदी ($फा.स्त्री.)-मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़तदारी; उत्थान, तरक़्क़ी।
सरबसर ($फा.वि.)-नितान्त, बिलकुल।
सरबसह्रा (अ़.$फा.वि.)-जंगल में मारा-मारा फिरनेवाला।
सरबस्त: ($फा.वि.)-मुँहबन्द, सर बमुह्र; गुप्त, पोशीदा।
सरबस्त ($फा.पु.)-पहेली, प्रहेलिका।
सरबहा ($फा.पु.)-ख़्ॉँूबहा, ख़्ाून की $कीमत।
सरबाज़ ($फा.वि.)-सैनिक, सिपाही; योद्घा, बहादुर।
सरबाज़ारी ($फा.वि.)-अधम, नीच, लो$फर, शोहद:।
सरबाज़ी ($फा.स्त्री.)-शूरता, वीरता, बहादुरी।
सरबार ($फा.पु.)-सिर का बोझ।
सरबारी ($फा.स्त्री.)-वह छोटा बोझ, जो बड़े बोझ के ऊपर सिर पर रखते हैं।
सरबाला ($फा.वि.)-ऊँचे सिर का, सरदार, मुखिया।
सरबुरीद: ($फा.वि.)-सिरकटा, जिसका सिर काट लिया गया हो।
सरमद ($फा.वि.)-सदैव रहनेवाला, नित्य, अनश्वर, लाज़वाल।
सरमदी ($फा.वि.)-नित्यता, लाज़वाली, हमेशगी।
सरमश्$क (अ़.$फा.पु.)-तख़्ता, मश्$क करने की तख़्ती; सुलेखक का लिखा हुआ लेख, जिसे देखकर अच्छे लेखन का अभ्यास किया जाता है।
सरमस्त ($फा.वि.)-उन्मत्त, मदोन्मत्त, बेसुध।
सरमस्ती ($फा.स्त्री.)-उन्माद, बदमस्ती।
सरमाय: ($फा.पु.)-पूँजी, धन, दौलत।
सरमाय:दार ($फा.वि.)-पूँजीपति, कैपिटलिस्ट; धनवान्, मालदार।
सरमाय:दारान: ($फा.वि.)-पूँजीपतियों-जैसा, धन-कुबेरों-जैसा।
सरमाय:दारी ($फा.स्त्री.)-पूँजीवाद, धन लगाकर गऱीबों की मेहनत से नाजाइज़ लाभ अर्जित करना।
सरयान ($फा.पु.)-एक चीज़ का दूसरी चीज़ में प्रवेश।
सररिश्त: ($फा.पु.)-विभाग, महकमा; योग्यता, $काबिलीयत; इच्छा, ख़्वाहिश; अधिकार, इख़्ितयार; सूत्र, डोरा।
सरलश्कर ($फा.वि.)-सेनापति, सेनाध्यक्ष, सिपहसालार।
सरलौह (अ़.$फा.स्त्री.)-वह चित्रादि, जो पुस्तक के मुखपृष्ठ पर बनाए जाते हैं।
सरवर ($फा.वि.)-नायक, प्रधान, सरदार, सर्वश्रेष्ठ।
सरवर$क (अ़.$फा.पु.)-मुखपृष्ठ, पुस्तक का आवरण, किताब का ऊपर का वह पन्ना जिसमें किताब का नाम आदि होता है।
सरवरी ($फा.स्त्री.)-नायकत्व, अध्यक्षता, सरदारी।
सरवरे कौनैन (अ़.$फा.पु.)-दोनों लोक के सरदार; हज्ऱत मुहम्मद साहब की उपाधि।
सरशार ($फा.वि.)-छलकता हुआ; ऊपर तक भरा हुआ, परिपूर्ण, लबरेज़; उन्मत्त, मस्त।
सरशीर ($फा.स्त्री.)-दूध की मलाई, दुग्धाग्र, क्षीरसार, बालाई।
सरशेब ($फा.वि.)-औंधा, अधोमुख।
सरशो ($फा.वि.)-सिर धोने की मिट्टी; जिस चीज़ से सिर धोया जाए।
सरसबद ($फा.वि.)-फूलों की टोकरी में सबसे सुन्दर और सबसे उत्तम फूल, (ला.)-सुन्दर नवयौवनाओं में सबसे सुन्दर नवयौवना।
सरसब्ज़ ($फा.वि.)-हरा-भरा, शाद्वल; समृद्घ, मालदार; सफल, कामयाब; उन्नतिशील, तरक़्क़ीयाफ़्त:; आबाद, 'वीरानÓ का विपरीत; उपजाऊ, जऱख़्ोज़।
सरसब्ज़ी ($फा.स्त्री.)-हरा-भरापन; उपजाऊपन; उन्नति; आबादी; सफलता; समृद्घि।
सरसरी ($फा.वि.)-बेदिली और बेतवज्जुही का काम; जल्दी का काम; उचटती हुई नजऱ डालने का काम।
सरसोजऩ ($फा.पु.)-सुई का नाका, सूची-अग्र।
सरहंग ($फा.पु.)-सैनिक, सिपाही, कोतवाल; सेनानायक, $फौज का सरदार; अवज्ञाकारी, उद्दंड, सरकश।
सरहंगज़ाद: ($फा.पु.)-सिपाही का बेटा, सैनिक-पुत्र।
सरहद ($फा.स्त्री.)-सीमा, हद; सीमान्त, आख़्िारी हद; किसी देश की वह सीमा, जो सिी अन्य देश से मिली हो।
सरहदी ($फा.स्त्री.)-सरहद का; सीमा या सरहद के पास का; सीमान्त का निवासी।
सरहम्माम (अ़.$फा.पु.)-हम्माम का गर्म कमरा, जिसमें नहाया जाता है।
सरहल्क़: ($फा.वि.)-मुखिया, सरदार, अध्यक्ष।
सरहिसाब (अ़.$फा.वि.)-सचेत, होशियार, सावधान; सूचित, आगाह; परिचित, वा$िक$फ।
सरा ($फा.स्त्री.)-भवन, मकान, घर, गृह; पथिकाश्रम, मुसा$िफरख़्ााना; स्थान, जगह; (प्र.)-गानेवाला, जैसे-'नग़्म:सराÓ-गीत गानेवाला। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सरा (अ़.पु.)-ज़मीन के नीचे का तल, पाताल; गीली मिट्टी। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
सराइंद: ($फा.वि.)-गायन करनेवाला, गायक, गानेवाला।
सरईद: ($फा.वि.)-गाया हुआ, गीत।
सराए $फानी (अ़.$फा.स्त्री.)-नश्वर स्थान अर्थात् संसार, दुनिया, मृत्युलोक, मत्र्यलोक, पृथ्वीलोक।
सराग़ोश ($फा.पु.)-सिर के बाल सँवारने और बाँधने की जाली, गेसूपोश।
सराच: ($फा.पु.)-छोटा घर; बड़ा खैमा; एक बाना।
सरा पर्द: ($फा.पु.)-पर्देवाला मकान, हरमसरा; बड़ा खैमा।
सरापा ($फा.पु.)-सिर से पाँव तक, आपादमस्तक; नितान्त, बिलकुल; नायिका के नख-शिख का पद्यात्मक वर्णन।
सरापाख़्ाुलूस (अ़.$फा.वि.)-अत्यन्त निश्छल व्यक्ति, बहुत अधिक मुख़्िलस व्यक्ति।
सरापानियाज़ ($फा.वि.)-अत्यधिक विनम्र और विनीत; बहुत बड़ा भक्त।
सरापारहमत (अ़.$फा.वि.)-सिर से पाँव तक कृपा और दया ही दया, दया और कृपा की साकार मूर्ति।
सरा$फत (अ़.स्त्री.)-निष्कूटता, सिक्के या सोने-चाँदी आदि का खरा होना, कैवल्य।
सरा$फील ($फा.पु.)-'इस्रा$फीलÓ का लघु., वह $फरिश्ता अथवा देवदूत, जो $िकयामत यानी महाप्रलय के दिन तुरही बजाएगा, जिससे सारा ब्रह्मïाण्ड नष्ट हो जाएगा।
सराब ($फा.पु.)-वह रेत, जो गर्मियों में दूर तक पानी की तरह चमकता हुआ दिखाई पड़ता है और प्यासे उसे पानी समझकर उसकी ओर दौड़ते हैं, मृगतृष्णा।
सरा बुस्ताँ ($फा.पु.)-पाईंबा$ग, वह छोटा उपवन अथवा वाटिका जो महल या कोठी के साथ हो, गृहोद्यान, गृहवाटिका।
सरामत (अ़.स्त्री.)-वीरता, शूरता, बहादुरी; श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; फुर्ती, तेज़ी; विच्छेद, काटना।
सरामद ($फा.वि.)-सबसे उत्तम, सर्वश्रेष्ठ; नायक, अध्यक्ष, पति, सरदार।
सरायत ($फा.स्त्री.)-एक चीज़ का दूसरी में प्रवेश, सरयान; प्रभाव, असर।
सरारू ($फा.स्त्री.)-एक बड़ी नस, जिसकी $फस्द ली जाती है, सरोरू, $की$फाल।
सरासर ($फा.वि.)-नितान्त, बिलकुल; एक सिरे से।
सरासीम: ($फा.वि.)-बे$करार, उद्विग्न, आतुर, व्याकुल, परेशान, बदहवास।
सरासीमगी ($फा.स्त्री.)-आकुलता, व्याकुलता, उद्विग्नता, परेशानी, बदहवासी।
सराहत (अ़.स्त्री.)-स्पष्टीकरण, वज़ाहत; सविस्तार विवरण, त$फसील।
सराहतन (अ़.वि.)-सविस्तार, विस्तारपूर्वक, सराहत के साथ।
सरिक़: (अ़.पु.)-चोरी, चौर्य, स्तेय, तस्करता, दुज़्दी।
सरिक़त (अ़.स्त्री.)-दे.-'सरिक़:Ó।
सरिश्त: ($फा.पु.)-'सररिश्त:Ó का अपभ्रंश अर्थात् बिगड़ा हुआ रूप, विभाग, महकमा, डिपार्टमेंट।
सरिश्त:दार ($फा.वि.)-एक कर्मचारी।
सरिश्त:दारी ($फा.स्त्री.)-सरिश्त:दार का पद; उक्त पद का काम।
सरी ($फा.वि.)-मुखियापन, सरदारी, अध्यक्षता।
सरीअ़ (अ़.वि.)-शीघ्र, तेज़, तीव्र।
सरीउज़्ज़वाल (अ़.वि.)-क्षणभंगुर, जो शीघ्र ही नष्ट हो जाए, जो अधिक देर न रहे।
सरीउत्तासीर (अ़.वि.)-जो अपना प्रभाव शीघ्र ही दिखाए, शीघ्रकारी, आशु प्रभावकारी, त्वरित-गुणदायी।
सरीउल अ़मल (अ़.वि.)-वह दवा, जो अपना असर शीघ्र करे।
सरीउल इंज़ाल (अ़.वि.)-शीघ्रपतन, जो पुरुष मैथुन के समय अधिक न ठहर सके।
सरीउल इंदिमाल (अ़.वि.)-वह घाव, जो शीघ्र भर जाए।
सरीउल इज़ाल: (अ़.वि.)-जिसकी भरपाई जल्द हो जाए, जिसकी हानि-पूर्ति शीघ्र हो जाए।
सरीउल इन्हिज़ाम (अ़.वि.)-लघुपाक, जो जल्दी हज़्म हो जाए।
सरीउल इल्तिहाब (अ़.वि.)-जो शीघ्र ही जले लगे, जऱा-सी गर्मी से आग पकड़ ले, ज्वलनशील, विस्फोटक।
सरीउल एहसास (अ़.वि.)-जो किसी बात का जल्द असर ले, शीघ्र प्रभावित होनेवाला।
सरीउल $कबूल (अ़.वि.)-जो किसी बात या गुण-दोष से शीघ्र प्रभावित होकर उसे ग्रहण कर ले।
सरीउल गज़़ब (अ़.वि.)-शीघ्रकोपी, जिसे जल्दी ही क्रोध आ जाता हो।
सरीउल $फह्म (अ़.वि.)-जो हर बात तुरंत ही समझ जाता हो, शीघ्रबुद्घि, प्रतिभाशाली।
सरीउल हज़्म (अ़.वि.)-दे.-'सरीउल इन्हिज़ामÓ।
सरीउल हरकत (अ़.वि.)-शीघ्रगामी, तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगति।
सरीउस्सैर (अ़.वि.)-तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगामी।
सरीच: ($फा.पु.)-ममोला पक्षी।
सरीद (अ़.पु.)-शोरबे में चूर की हुई रोटी।
सरीय: (अ़.पु.)-पै$गम्बर साहब के समय की वे लड़ाइयाँ, जिनमें स्वयं पै$गम्बर साहब सम्मिलित नहीं थे। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सरीय: (अ़.पु.)-काम छोड़ बैठना, हड़ताल। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सरीर (अ़.पु.)-सिंहासन, तख़्त। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
सरीर (अ़.स्त्री.)-लिखते समय $कलम की चिरचिराहट, चलते समय मनुष्य के पैर की चाप। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सरीरआरा (अ़.$फा.वि.)-सिंहासनारूढ़, तख़्तनशीं; शासक, हुक्मराँ।
सरीरत (अ़.स्त्री.)-भेद, रहस्य, मर्म, राज़।
सरीरे $कलम (अ़.स्त्री.)-$कलम की चिरचिराहट, जो लिखते समय होती है।
सरीह (अ़.वि.)-सा$फ, स्पष्ट, वाज़ेह, खुल्लम-खुल्ला।
सरीहन (अ़.वि.)-खुल्लम-खुल्ला, स्पष्ट रूप से, सा$फ-सा$फ।
सरीही (अ़.वि.)-दे.-'सरीहनÓ।
सरूँ ($फा.पु.)-सींग, शृंग, विषाण।
सरूँगाह ($फा.स्त्री.)-सींग निकलने का स्थान, कनपटी।
सरे ज़ुल्$फ ($फा.पु.)-अलक, ज़ुल्$फ; हावभाव, नाज़ोअदा।
सरे तन्हा ($फा.पु.)-अकेला, एकांकी।
सरे दस्त ($फा.वि.)-तत्काल, इस समय, फिलहाल, सम्प्रति।
सरे नौ ($फा.वि.)-नए सिरे से, फिर से, पुन:।
सरे पा ($फा.स्त्री.)-ठोकर, (पु.)-पाँव का सिरा, पंजा।
सरे पिस्ताँ ($फा.पु.)-स्तन की घुंडी, भिटनी, स्तनवृन्त, नर्मठ।
सरे पै ($फा.स्त्री.)-ठोकर, (पु.)-पाँव का अगला भाग, पंजा, 'सरे पाÓ।
सरे बज़्म ($फा.पु.)-भरी सभा में, सबके सामने।
सरे बाज़ार ($फा.पु.)-बीच बाज़ार में; सबके सामने, खुल्लमखुल्ला।
सरे बाम ($फा.पु.)-अटारी पर, छत पर, कोठे पर।
सरे बालीं ($फा.पु.)-सिरहाने।
सरेमू ($फा.पु.)-बाल की नोक के बराबर, बिलकुल जऱा-सा, किंचिन्मात्र।
सरे रहगुजऱ ($फा.पु.)-दे.-'सरे राहÓ।
सरे राह ($फा.पु.)-मार्ग में, रास्ते में, रास्ते में चलते हुए।
सरेश ($फा.स्त्री.)-दे.-'सिरेशÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
सरे शाम ($फा.पु.)-सूरज डूबते समस, संध्यामुख।
सरे शोरीद: ($फा.पु.)-वह सिर, जिसमें प्रेम का पागलपन भरा हो; पागल व्यक्ति का मस्तिष्क।
सरोकार ($फा.पु.)-प्रयोजन, वास्ता; सम्बन्ध, तअ़ल्लु$क।
सरोद ($फा.पु.)-दे.-'सुरोदÓ या 'सुरूदÓ, वही शुद्घ उच्चारण हैं।
सरोपा ($फा.पु.)-सिर-पैर, प्राय: 'बेÓ अर्थात् बिना के साथ बोला जाता है।
सरोबंद ($फा.पु.)-समय, काल, वक़्त, ज़माना।
सरोबर्ग ($फा.पु.)-ध्यान, ख़्ायाल।
सरोबुन ($फा.पु.)-सरोपा, सिर-पैर, आदि-अंत, शुरू और अख़्ाीर।
सरोरू ($फा.स्त्री.)-एक रग या नाड़ी, दे.-'सरारूÓ।
सरोश ($फा.पु.)-दे.-'सुरोशÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
सरोसामान ($फा.पु.)-उपकरण, सामग्री, सामाने; जीवन-यापन का आवश्यक सामान।
सर्अ़ (अ़.स्त्री.)-अपस्मार, मिर्गी रोग।
सर्तान (अ़.पु.)-केकड़ा, कर्क, कर्कट, घिंघचा, कर्कराशि, बुर्जे सर्तान।
सर्द ($फा.वि.)-शीतल, ठण्डा; मन्द, धीमा; नि:श्री, बेरौन$क; नपुंसक, हिजड़ा।
सर्दख़्ाुश्क ($फा.वि.)-वह दवा या खाद्य-पदार्थ, जो शीतलता और ख़्ाुश्की लाए।
सर्दतर ($फा.वि.)-अत्यधिक सर्द; वह दवा, जो सर्द के साथ तर भी हो।
सर्दबाज़ारी ($फा.स्त्री.)-बाज़ार भाव का मन्दा होना; ना$कद्री, पूछ-ताछ न होना; श्रीहीनता, बेरौन$की।
सर्दमिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-शान्त-प्रकृति, जिसका स्वभाव शीतल हो।
सर्दमेह्रï ($फा.वि.)-नि:शील, बेमुरव्वत; कठोर, बेरहम; जो बेदिली अर्थात् बेमन मिले।
सर्दमेह्रïी ($फा.स्त्री.)-दु:शीलता, बेमुरव्वत; कठोरता, बेरहमी; बेदिली, कमतवज्जुही।
सर्दसेर ($फा.वि.)-वह स्थान, जहाँ की आबो-हवा सर्द हो।
सर्दाब: ($फा.पु.)-तलघर, तहख़्ााना, तलगृह, बेसमेंट।
सर्दी ($फा.स्त्री.)-शीतलता, ठण्डक; ठण्ड का मौसम, हेमन्त ऋतु; ज़ुकाम, प्रतिश्याय।
सर्दोगर्म ($फा.वि.)-ठण्डा और गरम; दुनिया का अच्छा और बुरा।
सर्दोगर्म चशीद: ($फा.वि.)-गरम और ठण्डा चखा हुआ अर्थात् अनुभवी।
सफऱ्: ($फा.पु.)-व्यय, ख़्ार्च; प्राप्ति, लाभ, न$फा; बारहवाँ नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी; कृपणता, कंजूसी; अधिकता, जिय़ादती; न्याय, इंसा$फ।
सर्फ़ (अ़.पु.)-व्यय, ख़्ार्च; उपभोग, इस्तेÓमाल; व्याकरण की एक शाखा, पदव्याख्या।
सफऱ्ी (अ़.वि.)-जो व्याकरण में 'सर्फ़Ó अर्थात् पदव्याख्या का ज्ञाता हो।
सफऱ्ोनह्व (अ़.स्त्री.)-व्याकरण, $कवाइद, पदव्याख्या और वाक्य-विश्लेषण।
सर्ब (अ़.पु.)-चर्बी की बारीक चादर या परत जो उदर आदि पर चढ़ी रहती है।
सर्म$क (अ़.पु.)-बथुआ, एक साग।
सर्मा ($फा.पु.)-शीतकाल, सर्दी का मौसम।
सर्माई ($फा.वि.)-शीतऋतु का; सर्दी में पहनने के कपड़े।
सर्माए गुल ($फा.पु.)-गुलाबी जाड़ा, चिल्ले का जाड़ा।
सर्माज़द: ($फा.वि.)-जिसे पाला मार गया हो।
सर्मासोख़्त: ($फा.वि.)-वह पेड़, जिसे पाला मार गया हो, जो पाले की चपेट में आकर जल गया हो।
सर्राफ़: (अ़.पु.)-सर्राफ़ों का बाज़ार, जहाँ सोना-चाँदी बेचनेवालों की मण्डी हो।
सर्राफ़ (अ़.वि.)-सोना-चाँदी बेचनेवाला।
सर्राफ़ी (अ़.स्त्री.)-सोना-चाँदी बेचने का काम।
सर्वंदाम ($फा.वि.)-सर्व-जैसे सीधे और सुन्दर शरीरवाला (वाली)।
सर्व (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ पेड़, सरो, जो सीधा और सुन्दर होता है।
सर्वअंदाम ($फा.वि.)-दे.-'सर्वंदामÓ।
सर्व$कद ($फा.वि.)-दे.-'सर्वंदामÓ।
सर्व$कामत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सर्वंदामÓ।
सर्वत (अ़.स्त्री.)-समृद्घि, मालदारी, धनाढ्यता; ऐश्वर्य, ऐश, $फराग़त।
सर्वबाला ($फा.वि.)-दे.-'सर्वंदामÓ।
सर्वे आज़ाद ($फा.पु.)-वह सर्व, जिसमें शाखें और फल न हों।
सर्वे ख़्िारामाँ ($फा.पु.)-चलने-फिरनेवाला सर्व अर्थात् प्रेयसी, प्रेमिका, माÓशू$क।
सर्वे चमन ($फा.पु.)-बाग़ का सर्व का पेड़।
सर्वे चिराग़ाँ ($फा.पु.)-सर्व के पेड़ के आकार का काँच का झाड़, जिसमें मोमबत्तियाँ जलती हैं।
सर्वे नाज़ ($फा.पु.)-वह सर्व का पेड़, जिसकी शाखाएँ झुककर आपस में मिल गयी हों।
सर्वे बाला ($फा.पु.)-लम्बा सर्व।
सर्वे सिही ($फा.पु.)-बिलकुल सीधा सर्व।
सर्श$फ ($फा.स्त्री.)-सरसों, एक प्रसिद्घ दाना, जिसका तेल कड़वे तेल के नाम से खाने के काम आता है।
सर्सर ($फा.स्त्री.)-झक्कड़, गर्म हवा के झोंके, झंझा, तेज़ हवा के झोंके।
सर्साम (अ़.पु.)-दिमाग़ के वरम की एक बीमारी, सन्निपात।
सर्सामी (अ़.वि.)-सर्साम अर्थात् सन्निपात का रोगी।
सलफ़: (अ़.पु.)-'सलफ़Ó का बहु., पुराने लोग, पूर्वज।
सलवात (अ़.स्त्री.)-'सलातÓ का बहु., नमाजें़; रसूल पर दुरूद।
सलाÓ (अ़.पु.)-बालों का एक रोग, गंज।
सला (अ़.स्त्री.)-आवाज़ देना, बुलाना, पुकारना।
सलाए अ़ाम (अ़.स्त्री.)-सबका बुलावा, सबकी दाÓवत, सार्वजनिक निमंत्रण।
सलाक ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी की सलाख़्ा या छड़।
सलाख़्ा (तु.स्त्री.)-सलाई, शलाका; लोहे की छड़; लकीर।
सलात (अ़.स्त्री.)-नमाज़; दुरूद।
सलातीन (अ़.पु.)-'सुल्तानÓ का बहु., बादशाह लोग, शासकगण।
सलाबत (अ़.स्त्री.)-कठोरता, सख़्ती।
सलाम (अ़.पु.)-अभिवादन, प्रणाम, तस्लीम; शान्ति, सलामती; शोक प्रकट करने की एक $िकस्म; घृणा और बेज़ारी के लिए भी इस शब्द का प्रयोग करते हैं।
सलामत (अ़.स्त्री.)-सुरक्षित, मह$फूज़; जीवित, जि़न्दा; पूर्ण, पूरा; स्वस्थ, तनदुरुस्त।
सलामत बाशेद (अ़.$फा.वा.)-जीवित रहो, जि़न्दा रहो।
सलामतरवी (अ़.$फा.स्त्री.)-सबसे मिल-जुलकर रहना; ख़र्च आदि में कि$फायत बरतना।
सलामती (अ़.स्त्री.)-शान्ति, अमन, रक्षा; स्वास्थ्य, तनदुरुस्ती।
सलामी (अ़.वि.)-किसी बड़े आदमी के आगमन पर उसके स्वागत में तोपों को दा$गना।
सलामुन अ़लैकुम (अ़.वा.)-तुम पर सलामती हो (मुसलमानों का सलाम या अभिवादन, जो वे एक-दूसरे से कहते हैं)।
सलामो अ़लैकुम (अ़.वा.)-दे.-'सलामुन अ़लैकुमÓ।
सलामो पयाम (अ़.$फा.पु.)-किसी का सलाम के साथ कोई संदेश आना; किसी को सलाम के साथ कोई संदेश भेजना; लड़के या लड़कीवालों की ओर से विवाह या सगाई की बातचीत चलना।
सलासत (अ़.स्त्री.)-सरलता, रवानी, सलीसपन; नम्रता, नर्मी; हलके-फुलके और सुन्दर शब्दों का व्यवहार, जिसमें कोई ऐसा क्लिष्ट शब्द न हो, जिससे ज़बान को तोडऩा-मरोडऩा पड़े।
सलासते ज़बान (अ़.$फा.स्त्री.)-भाषा की मृदुलता, शब्दों का माधुर्य; गद्य या पद्य में कोमल, मृदुल और सरल उच्चारणवाले शब्दों का प्रयोग, $फसाहत।
सलासते बयान (अ़.स्त्री.)-बातचीत की मधुरता।
सलासिल (अ़.स्त्री.)-'सिल्सिल:Ó का बहु., जंज़ीरें, बेडिय़ाँ।
सलाह (अ़.स्त्री.)-राय, परामर्श, मश्वुर:, तजवीज़; अच्छाई, भलाई; उद्देश्य, अभिप्राय:, मंशा, मंसूब।
सलाहअंदेश (अ़.$फा.वि.)-शुभचिन्तक, हितैषी, नेकअंदेश, ख़्ौरख़्वाह।
सलाहकार (अ़.$फा.वि.)-राय देनेवाला, परामर्शदाता, मश्वुर: देनेवाला; सदुपदेशक, नासेह; सदाचारी, नेकअ़मल।
सलाहि$फ (अ़.पु.)-'सुलह$फातÓ का बहु., कछुवे।
सलाहीयत (अ़.स्त्री.)-योग्यता, पात्रता, अह्लीयत; विद्वता, इल्मीयत; भलाई, अच्छाई, ख़्ाूबी; सदाचार, संयम, इन्द्रिय-निग्रह, पारसाई; गंभीरता, मतानत; यात्रियों अथवा पर्यटकों के नाम पुलिस रजिस्टर में चढऩा।
सलाहे कार (अ़.$फा.स्त्री.)-कार्य-क्षमता, काम की योग्यता।
सलाहे नेक (अ़.$फा.स्त्री.)-सत् परामर्श, अच्छी सलाह, नेक राय।
सलाहे बद (अ़.$फा.स्त्री.)-दुस्सम्मति, बुरी सलाह, $गलत राय।
सलाहे वक़्त (अ़.स्त्री.)-समय के अनुसार सलाह, समय की माँग।
सलिसुल बौल (अ़.पु.)-बहुमूत्र, एक प्रकार का मूत्ररोग, जिसमें बार-बार पेशाब आता है।
सली$क: (अ़.पु.)-तमीज़, शिष्टता्र शुऊर; क्रम, तर्तीब; योग्यता, हुनरमंदी; सुघड़ापा, सुघडय़ा; हर चीज़ को यथोचित स्थान और अवसर पर रखने की तमीज़; सभ्यता, तहज़ीब।
सली$क:मंद (अ़.$फा.वि.)-शिष्ट, बाशुऊर; सुघड़, हुनरमंद; सभ्य, मुहज़्ज़ब।
सली$क:मंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-शिष्टता, तमीज़दारी; सुघड़पन; सभ्यता, तहज़ीब।
सली$क:शिअ़ार (अ़.वि.)-दे.-'सली$क:मंदÓ।
सली$क:शिअ़ारी (अ़.स्त्री.)-दे.-'सली$क:मंदीÓ।
सलीक (अ़.वि.)-पिरोई हुई चीज़, गुंथिल; नत्थी, संलग्न।
सलीब (अ़.स्त्री.)-सूली, दार; हज्ऱत ईसा को सूली देने की टिकठी, जो चौपारे अर्थात् 'क्रॉसÓ के आकार की थी; वह चौपारे का चिह्नï, जो ईसाइयों का धार्मिक चिह्नï है, क्रॉस।
सलीबी (अ़.वि.)-सलीब का; सलीब की शक्ल का; ईसाई धर्म-सम्बन्धी।
सलीम (अ़.वि.)-गम्भीर, शान्त, मतीन; सहनशील; शान्तिप्रिय, जिसे शोरो-शर या लड़ाई-दंगा पसन्द न हो; स्वस्थ, चंगा, तनदुरुस्त।
सलीमुत्तब्अ़ (अ़.वि.)-जिसका स्वभाव अत्यन्त शान्तिप्रिय हो, सौम्य।
सलीमुलमिज़ाज (अ़.वि.)-दे.-'सलीमुत्तब्अ़Ó।
सलीस (अ़.वि.)-कोमल, नर्म, मृदुल; सरल, सुगम, आसान; सुबोध, अ़ाम$फह्म, बालबोध; सभ्य, शिष्ट, तमीज़दार; वह गद्य या पद्य, जो बहुत ही सरल और कोमल हो।
सल्अ़: (अ़.पु.)-बड़ा मस्सा, बतौड़ी, मांसार्बुद।
सल्ख़्ा (अ़.पु.)-खाल खींचना, खाल उतारना; कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि।
सल्ज (अ़.पु.)-हिम, बर्फ़।
सल्जम (अ़.पु.)-दे.-'शल्जमÓ, एक प्रसिद्घ तरकारी।
सल्जू$क (तु.पु.)-एक व्यक्ति, जिससे 'सज्लू$कीÓ वंश चला है, इसी की चौथी पीढ़ी में तुग्रुल बेग सल्जू$क नामक शासक हुआ।
सल्जू$की (तु.पु.)-सल्जू$क का वंशज।
सल्तनत (अ़.स्त्री.)-शासन, सत्ता, हुकूमत; राज्य, राष्ट्र, मुल्क, देश।
सल्तनते जुम्हूरी (अ़.स्त्री.)-लोकतंत्र, जनता का राज, गणतंत्र, जनतंत्र।
सल्तनते शख़्सी (अ़.$फा.स्त्री.)-व्यक्तिगत राज्य, किसी राजा या बादशाह का शासन, साम्राज्य।
सल्ब (अ़.पु.)-निवारण, द$फीअ़:; विनाश, ख़्ाातिमा; छीन लेना, जज़्ब कर लेना।
सल्बे मरज़ (अ़.पु.)-किसी के रोग को आत्म-शक्ति द्वारा नष्ट कर देना।
सल्म (अ़.स्त्री.)-बच्चों के लिखने की तख़्ती, पट्टी, पाटी, पट्टिका, दे.-'सिल्मÓ, दोनों शुद्घ हैं।
सल्मान (अ़.पु.)-पै$गम्बर साहब के एक सिहाबी, सल्मान $फारिसी; ईरान का एक शाइर, सल्मान सावजी।
सल्लाख़्ा (अ़.पु.)-खाल उतारनेवाला (पुराने ज़माने में सज़ा यह भी थी कि जि़न्दा आदमी की खाल उतार दी जाती थी और इस तरह अपराधी बड़े कष्ट से मारा जाता था, यह काम 'सल्लाख़्ाीÓ कहलाता था तथा इसे करनेवाला को 'सल्लाख़्ाÓ कहा जाता है); जल्लाद, फाँसी देनेवाला।
सल्लाख़्ाी (अ़.स्त्री.)-खाल उतारना, (पुराने ज़माने में सज़ा यह भी थी कि जि़न्दा आदमी की खाल उतार दी जाती थी और इस तरह अपराधी बड़े कष्ट से मारा जाता था, यह काम 'सल्लाख़्ाीÓ कहलाता था)।
सल्वा (अ़.स्त्री.)-बटेर, एक पक्षी, वात्र्तक, वाना।
सल्सबील (अ़.स्त्री.)-स्वर्ग का एक झरना या चश्र्मा; नर्म और मुलायम चीजऱ्; मदिरा, शराब।
सल्साल (अ़.स्त्री.)-कच्ची और सूखी मिट्टी, जिससे हज्ऱत आदम की सृष्टि हुई।
सवा (अ़.वि.)-समता, बराबरी; समान, बराबर।
सवाइ$क (अ़.पु.)-'साइ$क:Ó का बहु., बादल से ज़मीन पर गिरनेवाली बिजलियाँ।
सवाकिन (अ़.पु.)-'साकिन:Ó का बहु., निवासी लोग, रहनेवाले।
सवा$िकब (अ़.पु.)-'सा$िकबÓ का बहु., रौशनीदार चीजें़।
सवाते (अ़.पु.)-'सातिअ़:Ó का बहु., ऊँचे स्थान।
सवाद (अ़.पु.)-कालिमा, सियाही; काली बिन्दी, जो हृदय पर होती है; आस-पास की भूमि, हवाली; प्रतभा, ज़हानत।
सवादे आÓज़म (अ़.पु.)-बड़ा नगर, बड़ी बस्ती।
सवादे कुफ्ऱ (अ़.पु.)-नास्तिकों की बस्ती; नास्तिकता का वातावरण।
सवानिहे उम्र (अ़.पु.)-दे.-'सवानिहे हयातÓ।
सवानिहे हयात (अ़.पु.)-जीवनी, जीवन-चरित, किसी के जीवन का सविस्तार लेख।
सवानेह (अ़.पु.)-'सानिह:Ó का बहु., घटनाएँ, वा$िकअ़ात; दुर्घटनाएँ, हादिसात।
सवानेहनवीस (अ़.$फा.वि.)-समाचार-लेखक, वा$िकअ़:निगार; इतिहास लिखनेवाला, इतिहासकार; जीवनी लिखनेवाला, जीवनी-लेखक।
सवानेहनवीसी (अ़.$फा.स्त्री.)-समाचार लिखना इतिहास लिखना; जीवनी लिखना।
सवानेहनिगार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सवानेहनवीसÓ।
सवानेहनिगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सवानेहनवीसीÓ।
सवाब (अ़.वि.)-ठीक, दुरुस्त, यथार्थ; श्रेष्ठ, उत्तम, उम्दा; वास्तविकता, ह$की$कत। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
सवाब (अ़.पु.)-वह फल, जो किसी सत्कर्म के करने पर परलोक में मिले, पुण्य। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
सवाबअंदेश (अ़.$फा.वि.)-ठीक-ठीक सोचनेवाला, अच्छी राय या परामर्श देनेवाला; शुभ-चिन्तक, ख़्ौरख़्वाह।
सवाबदीद (अ़.$फा.स्त्री.)-परामर्श, राय, सलाह, मश्वुरा; अच्छी राय, अच्छी तजवीज़।
सवाबि$क (अ़.पु.)-'साबि$क:Ó का बहु., पूर्व वाले, पहलेवाले, गुजऱे हुए।
सवाबित (अ़.पु.)-'साबितÓ का बहु., वे तारे जो गतिशील न हों, ठहरे हुए तारे, उडुगण।
सवाबितो सैयार (अ़.पु.)-गतिशील और अचल सब प्रकार के तारे।
सवामेÓ (अ़.पु.)-'सामिअ़:Ó का बहु., सुनने की शक्तियाँ, श्रवण-शक्तियाँ; सुननेवाले लोग।
सवार ($फा.वि.)-जो किसी सवारी पर बैठा हुआ हो, आरूढ़; अश्वारोही, घुड़सवार।
सवारिक़ (अ़.पु.)-'सारिक़Ó का बहु., चोर लोग।
सवारिम (अ़.पु.)-'सारिम:Ó का बहु., धारदार तलवारें।
सवाल (अ़.पु.)-शुद्घ उच्चारण 'सुआलÓ है परन्तु उर्दू में 'सवालÓ ही बोलते हैं; प्रश्न पूछना; प्रार्थना, इल्तिजा; इच्छा, आकांक्षा, आरज़ू; भीख की प्रार्थना; प्रार्थनापत्र, अज़ऱ्ी, दरख़्वास्त।
सवालख़्वानी (अ़.$फा.स्त्री.)-अ़दालत में अ़ाम अ़र्जिय़ाँ लेने की पुकार।
सवालनाम: (अ़.$फा.पु.)-प्रश्नावली-पत्र, वह पर्चा जिसमें किसी सभा आदि में पूछने के लिए सवाल लिखे हों।
सवालात (अ़.पु.)-'सवालÓ का बहु., बहुत-से सवाल, प्रश्नावली।
सवालि$फ (अ़.पु.)-'सालि$फ:Ó का बहु., गुजऱे हुए लोग, पूर्वज।
सवाली (अ़.वि.)-प्रश्न करनेवाला, सवाल करनेवाला; याचक, माँगनेवाला; भिक्षुक, भिखमंगा।
सवाले वस्ल (अ़.पु.)-मिलन की इच्छा प्रकट करना, नायक की ओर से नायिका से मिलने की इच्छा का इज़हार।
सवालोजवाब (अ़.पु.)-प्रश्न और उसका उत्तर, प्रश्नोत्तर; वाद-विवाद, कथनोपकथन, बहस।
सवाहिल (अ़.पु.)-'साहिलÓ का बहु., बंदरगाहें, समुद्रतट।
सहर: (अ़.पु.)-'साहिरÓ का बहु., जादूगर लोग, मायावी लोग।
सहर (अ़.स्त्री.)-प्रात:काल, प्रात:, प्रभात, भोर, तड़का; सहरी, सहरगही। इसका 'हÓ उर्दू के 'हेÓ अक्षर से बना है।
सहर (अ़.स्त्री.)-जागरण, जागनाजाग्रति, बेदारी। इसका 'हÓ उर्दू के 'हम्जाÓ अक्षर से बना है।
सहरख़्ांद (अ.$फा़.वि.)-ऐसी मुस्कुराहट, जिसमें दाँत खुल जाएँ; इतना उज्ज्वल जो प्रभात की सफ़ेदी पर हँसे।
सहरख़्ोज़ (अ.$फा़.वि.)-बहुत तड़के उठने का अभ्यस्त, भोर में ही निद्रा का त्याग करनेवाला।
सहरख़्ोज़ी (अ.$फा़.स्त्री.)-तड़के उठने का अभ्यास, भोर में ही निद्रा का त्याग करना।
सहरगह (अ.$फा़.स्त्री.)-'सहरगाहÓ का लघु., दे.-'सहरगाहÓ।
सहरगही (अ.$फा़.स्त्री.)-'सहरगाहीÓ का लघु., दे.-'सहरगाहीÓ; रोज़ों अर्थात् उपवास के दिनों में पिछली रात का खाना।
सहरगाह (अ.$फा़.स्त्री.)-बहुत तड़के, गजरदम, प्रात:काल, गोविसर्ग, उषाकाल।
सहरगाहाँ (अ.$फा़.स्त्री.)-दे.-'सहरगाहÓ।
सहरगाही (अ.$फा़.स्त्री.)-सवेरे-तड़के की, प्रात:काल का; प्रात:काल-सम्बन्धी।
सहरदम (अ.$फा़.पु.)-सवेरे-सवेरे, बहुत तड़के, गजरदम।
सहरी (अ़.वि.)-प्रात:काल का; रमज़ान के दिनों में कुछ रात रहे को खाना, जिसे खाकर रोज़ा रखा जाता है, सहरगाही।
सहरोशाम (अ.$फा़.पु.)-सवेरे और संध्या के समय, सुबह और शाम।
सहाइ$फ (अ़.पु.)-'सही$फ:Ó का बहु., पुस्तकें, किताबें, ग्रंथ; आस्मान से उतरी हुई पुस्तकें, धर्मगंथ।
सहाब: (अ़.पु.)-दोस्ती करना, मित्रता करना; मित्रगण।
सहाबत (अ़.पु.)-मित्रता करना; सहायता करना।
सहारा (अ़.पु.)-'सह्रïाÓ का बहु., जंगल, बड़े-बड़े जंगल।
सहारी (अ़.पु.)-'सह्रïाÓ का बहु., बहुत-से जंगल, वन-समूह।
सहाह (अ़.वि.)-स्वस्थ, तनदुरुस्त; निर्दोष, बेऐब; (स्त्री.)-स्वास्थ्य, तनदुरुस्ती; पवित्रता, शुद्घता, निर्मलता।
सही ($फा.वि.)-सरल, सीधा, जो लम्बाई में सीधा हो; सर्व का पेड़ (यह शब्द अकेला 'सीधेÓ के अर्थ में प्रयोग नहीं किया जाता, इसका प्रयोग दूसरे शब्द के साथ मिलाकर होता है, जैसे-'सही$कदÓ या 'सर्वेसहीÓ)।
सही$क: (अ़.पु.)-पिसी हुई चीज़, चूर्ण, सु$फू$फ।
सही$कद ($फा.वि.)-सीधे और लम्बे आकार का।
सही$कामत (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सही$कदÓ।
सही बाला ($फा.वि.)-दे.-'सही$कदÓ।
सही$फ: (अ़.पु.)-पुस्तक, किताब; धर्मग्रंथ, धार्मिक पुस्तक, मज़हबी किताब।
सही$फए आस्मानी (अ़.$फा.पु.)-आस्मान से उतरी या अवतरित हुई पुस्तक, जो किसी अवतार या पै$गम्बर पर अवतरित हुई हो।
सहीम (अ़.वि.)-भागीदार, हिस्सेदार।
सहीह (अ़.वि.)-ठीक, यथार्थ; सच, सत्य; निर्दोष, बेऐब; स्वस्थ, चंगा; पूर्ण, पूरा; साबित, समूचा; (पु.)-अऱबी भाषा के वे अक्षर जो 'अलि$फÓ, 'वावÓ और 'येÓ के अतिरिक्त हैं।
सहीहुज़्ज़ेहन (अ़.वि.)-जिसका ज़ेहन ठीक हो; जिसकी बुद्घि ठीक हो; जिसके विचार ठीक हों।
सहीहुद्दिमाग़ (अ़.वि.)-जिसका मस्तिष्क ठीक हो, जिसकी अ़क़्ल ठीक काम करती हो, जो पागल न हो।
नोट- बीच के कुछ अक्षर देखने हैं सहीहुनसब से ----त्$फ: तक
सहीहुर्राय (अ़.वि.)-जिसकी राय या सलाह ठीक हो, जिसका परामर्श उचित हो, बुद्घिमान्।
सहीहुलअ़क़्ल (अ़.वि.)-शुद्घबुद्घि, जिसमें बुद्घिदोष न हो।
सहीहुल$फह्म (अ़.वि.)-जो बात को जल्द समझता हो।
सहीहुलमिज़ाज (अ़.वि.)-स्वस्थ, नीरोग, तनदुरुस्त; शुद्घात्मा, नेकतब्अ़।
सहीहुश्शुऊर (अ़.वि.)-जिसकी विवेचन-शक्ति शुद्घ हो।
सहीहोसालिम (अ़.वि.)-सुरक्षित, मह$फूज़; स्वस्थ, तनदुरुस्त; जीवित, जि़न्दा।
सहूर (अ़.स्त्री.)-सहरी, सहरगाही, रोज़े के दिनों में सवेरे का वह खाना जिसके बाद रोज़ा होता है।
सह्क़ (अ़.पु.)-पीसना, रगडऩा; स्त्रियों का परस्पर चपटी लड़ाना।
सह्ज (अ़.स्त्री.)-मरोड़, आँव, आँतों की मिलन।
सह्न (अ़.पु.)-आँगन, अँगनाई; एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
सह्नक ($फा.स्त्री.)-छोटा तबा$क; रिकाबी, तश्तरी; हज्ऱत $फातिमा की नियाज़ का खाना।
सह्नची ($फा.स्त्री.)-दालान के अगल-बग़ल की कोठरियाँ।
सह्ने चमन (अ़.$फा.पु.)-बाग़ के भीतर का हरा-भरा क्षेत्र या मैदान।
सह्ने बाग़ (अ़.$फा.पु.)-दे.-'सह्ने चमनÓ।
सह्ने बुस्ताँ (अ़.$फा.पु.)-दे.-'सह्ने चमनÓ।
सह्ने मकाँ (अ़.पु.)-घर का आँगन, अजिर।
सह्ने लामकाँ (अ़.पु.)-अंतरिक्ष, आस्मान, ख़्ाला, शून्य।
सह्ब (अ़.पु.)-'साहिबÓ का बहु., मित्रगण, दोस्त।
सह्बा (अ़.स्त्री.)-लाल रंग की शराब, मदिरा, मद्य, सुरा।
सह्बाई (अ़.$फा.वि.)-शराब पीनेवाला, मद्यप, सुराशा, शराबी।
सह्बान (अ़.पु.)-अऱब का एक बहुत बड़ा शाइर।
सह्म (अ़.पु.)-कमान से छूटा हुआ तीर; भाग, अंश, हिस्सा।
सह्म ($फा.पु.)-भय, त्रास, डर, ख़्ाौ$फ।
सहमगीं ($फा.वि.)-भयभीत, त्रस्त, डरा हुआ, ख़्ाौ$फज़दा।
सह्मनाक ($फा.वि.)-भयंकर, भयानक, डरावना; भयभीत, ख़्ाौ$फज़दा।
सह्मुलगै़ब (अ़.पु.)-जन्मपत्री में भाग्य के शुभ ग्रहों का योग।
सह्मुलमौत (अ़.पु.)-मौत का तीर, बाण-रूपी मृत्यु, मृत्यु-रूपी बाण।
सह्रïा (अ़.पु.)-कानन, अरण्य, वन, जंगल; चटियल मैदान, बियाबान।
सह्रïाई (अ़.$फा.वि.)-जंगली, जंगल का; जंगल-सम्बन्धी; असभ्य, उजड्ड, हूश।
सह्रïाए आÓज़म (अ़.पु.)-अफ्ऱीका का रेतीला मैदान, जो दुनिया में सबसे बड़ा जंगल है।
सह्रïाए $िकयामत (अ़.पु.)-$िकयामत अर्थात् महाप्रलय का जंगल, जिसमें सारे मुर्दे इकट्ठे होंगे।
सह्रïाए मह्शर (अ़.पु.)-दे.-'सह्रïाए $िकयामतÓ।
सह्रïाए लक़्क़ोदक़ (अ़.पु.)-चटियल मैदान, जिसमें न वृक्ष हों, न पानी।
सह्रïागर्द (अ़.$फा.वि.)-जंगलों में मारा-मारा फिरनेवाला, वनचर, काननचारी।
सह्रïागर्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-जंगलों में मारा-मारा फिरना।
सह्रïानवर्द (अ़.$फा.वि.)-जंगलों में छानबीन करनेवाला, जंगलों के ज़ख़्ाीरे खोजनेवाला, दे.-'सह्रïागर्दÓ।
सह्रïानवर्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-जंगलों में छानबीन करना, जंगलों में मारा-मारा फिरना।
सह्रïानशीं (अ़.$फा.वि.)-जंगल में रहनेवाला, जंगल का निवासी।
सह्रïानशीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-जंगल में रहन-सहन करना, वन-निवास।
सह्रïानियोश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सह्रïागर्दÓ।
सह्लंगार (अ़.$फा.वि.)-सुगमता ढूँढऩेवाला, आलसी, काहिल, सुस्त।
सह्लंगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-सुगमता ढूँढऩा, आलस, काहिली।
सह्ल (अ़.वि.)-सहज, सुगम, आसान।
सह्लअंगार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'सह्लंगारÓ।
सह्लअंगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'सह्लंगारीÓ।
सह्लुलअ़मल (अ़.वि.)-वह काम जो सुगमतापूर्वक हो जाए, सुसाध्य, सुखसाध्य।
सह्लुलवुसूल (अ़.वि.)-जो सहज ही वुसूल हो जाए।
सह्लुलहुसूल (अ़.वि.)-जो सुगमतापूर्वक प्राप्त हो जाए।
सह्ले मुम्तना (अ़.वि.)-ऐसा शेÓर, जो बहुत सरल प्रतीत हो परन्तु वैसा कहना असंभव हो।
सह्व (अ़.पु.)-सचेष्टता, होशियारी। इसका इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से तथा 'ह्Ó 'हेÓ अक्षर से बना है।
सह्व (अ़.पु.)-विस्मरण, प्रमाद, भूल; त्रुटि, भ्रान्ति, ग़लती। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ तथा 'ह्Ó 'हम्जाÓ अक्षर से बना है।
सह्वन (अ़.वि.)-विस्मृतिवश, भूल में; अज्ञानतावश, अज्ञानत:, अनजाने में।
सह्वे $कलम (अ़.पु.)-लेखनी-भ्रम, $कलम से कुछ का कुछ लिख जाना।
सह्वे किताबत (अ़.पु.)-लिखने की त्रुटि, भूल में कुछ का कुछ लिख जाना।
सह्वे सज्द: (अ़.पु.)-नमाज़ में यह याद न रहना कि एक सज्दा किया है या दो।
सह्हास (अ़.वि.)-तीरंदाज़, धनुर्धारी।
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