Thursday, October 15, 2015

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वुअ़आज़ (अ़.पु.)-'वाइज़Ó का बहु., वाइज़ लोग, धार्मिक नसीहत देनेवाले लोग, धर्मोपदेशकगण।
वुऊद (अ़.पु.)-'वाद:Ó का बहु., वादे, प्रतिज्ञाएँ, शपथें, $कसमा-$कसमी।
वु$कूअ़: (उ.पु.)-घटना, दुघर्टना, वा$िकअ़ा, हादिसा।
वु$कुअ़ (अ़.पु.)-घटित होना, प्रकट होना, वाक़ेÓ होना; घटना, वा$िकअ़ा, हादिसा।
वु$कूए जुर्म (अ़.पु.)-अपराध होना, किसी अपराध का घटित होना, किसी अपराध का प्रकट होना।
वु$कूए सानिह: (अ़.पु.)-किसी घटना का घटित होना, वा$िकअ़: ज़ाहिर होना, हादिसा प्रकट होना।
वु$कूए हादिस: (अ़.पु.)-किसी दुर्घटना का घटित होना, कोई बुरी घटना होना।
वु$कूद (अ़.पु.)-आग जलना या जलाना, अग्नि प्रज्ज्वलित होना या करना।
वु$कूफ़ (अ़.पु.)-परिचय, जानकारी, ज्ञान।
वुजऱा (अ़.पु.)-'वज़ीरÓ का बहु., वज़ीर लोग, मंत्रिगण।
वुज़ू (अ़.पु.)-चेहरे की स$फाई और स्वच्छता, सा$फ चेहरे का होना; नमाज़ के लिए नियमपूर्वक हाथ-पाँव और मुँह आदि धोना।
वुजूद (अ़.पु.)-अस्तित्व, हस्ती; उपस्थिति, मौजजूदगी; देह, जिस्म, बदन। 'मेरे वुजूद के बिख़्ारे हुए निशाँ थे बहुत, मैं इक मकीं था जिसके लिए मकाँ थे बहुतÓ-माँझी
वुजूदोअ़दम (अ़.पु.)-होना और न होना, हस्ती और नेस्ती, अस्तित्व और अनस्तित्व।
वुजूब (अ़.पु.)-वाजिब होना, उचित होना, आवश्यक होना, अनिवार्य होना।
वुज़ूशिकन (अ़.वि.)-वुज़ू तोड़ देनेवाला, तप भंग कर देनेवाला (विशेषत: सौन्दर्य)।
वुजूह (अ़.पु.)-कारण-समूह।
वुज्न: (अ़.पु.)-गाल, कपोल, दे.-'विज्न:Ó और 'वज्न:Ó, तीनों शुद्घ हैं।
वु$फूद (अ़.पु.)-'वफ़्दÓ का बहु., शिष्टमंडलों का समूह, प्रतिनिधिमंडलों का समूह अथवा झुण्ड।
वु$फूर (अ़.पु.)-बाहुल्य, आधिक्य, प्राचुर्य, इफ्ऱात, अधिकता।
वु$फूरे इजि़्तराब (अ़.पु.)-बेचैनी या व्याकुलता की अधिकता, घबराहट की अधिकता।
वु$फूरे $गम (अ़.पु.)-दु:ख का बाहुल्य, शोकाधिक्य, $गम की अधिकता।
वु$फूरे शौ$क (अ़.पु.)-लालसा और अभिलाषा की अधिका, उत्कंठा।
वुरूद (अ़.पु.)-आना, आगमन; प्रवेश, दाख़्िाला।
वुरूदे मस्ऊद (अ़.पु.)-शुभागमन, किसी बड़े औ पूज्य व्यक्ति का पदार्पण।
वुरूदे मुबारक (अ़.पु.)-दे.-'वुरूदे मस्ऊदÓ।
वुलात (अ़.पु.)-'वालीÓ का बहु., स्वामीगण; शासकगण।
वुलूअ़ (अ़.पु.)-लालच, लोभ, लिप्सा; लोभ होना, लालच होना।
वुलूग़ (अ़.पु.)-चबड़-चबड़ करके कुत्ता द्वारा पानी पीना; कुत्ते का पानी मुँह में डालना।
वुलूज (अ़.पु.)-एक चीज़ का दूसरी में प्रवेश।
वुशा$क (तु.पु.)-छोकरा, ऐसा सेवक लड़का जिसकी दाढ़ी-मूँछ न निकली हों।
वुशात (अ़.पु.)-'वाशीÓ का बहु., निन्दक लोग, ऐब निकालनेवाले लोग; छिद्रान्वेशी लोग; झूठक लोग।
वुश्ता ($फा.पु.)-पार्सियों के धर्मग्रन्थ 'ज़ंदÓ का महाभाष्य, उस्ता।
वुसूल (अ़.पु.)-जाना, पहुँचना, प्राप्त होना, मिलना; प्रप्ति, उगाही, वुसूली।
वुसूलबा$की (अ़.पु.)-जो प्राप्त हुआ और जो बा$की बचा, जो धन आयाऔर जो लेनदारी बा$की बची।
वुसूलयाब (अ़.$फा.वि.)-लब्ध, प्राप्त, वुसूल।
वुसूलयाबी (अ़.$फा.स्त्री.)-प्राप्ति, वुसूली।
वुसूली (अ़.वि.)-प्राप्ति, वुसूलयाबी।
वुस्अ़ (अ़.स्त्री.)-विस्तार, लम्बाई-चौड़ाई; शक्ति, ता$कत, ज़ोर; सामथ्र्य, मक़्िदरत।
वुस्अ़त (अ़.स्त्री.)-विस्तार, लम्बाई-चौड़ाई; शक्ति, ता$कत, ज़ोर; सामथ्र्य, मक़्दूर।
वुस्अ़ततलब (अ़.वि.)-विस्तार की चाह रखनेवाला, जिसके लिए विस्तार आवश्यक हो।
वुस्अ़तपिज़ीर (अ़.$फा.वि.)-विशाल, विशाल, लम्बा-चौड़ा।
वुस्अ़ते अख़्ला$क (अ़.स्त्री.)-शिष्टता और सुशीलता के व्यवहार का आधिक्य।
वुस्अ़ते करम (अ़.स्त्री.)-दानशीलता और वदान्यता का प्राचुर्य।
वुस्अ़ते $कल्ब (अ़.स्त्री.)-हृदय का विस्तार, उदारता, मन का बड़प्पन।
वुस्अ़ते शौ$क (अ़.स्त्री.)-अभिलाषा की तीव्रता।
वुस्अ़ते सह्रïा (अ़.स्त्री.)-जंगल का विस्तार; रेगिस्तान का विस्तार।
वुस्अ़ते हौसल: (अ़.स्त्री.)-साहस का आधिक्य।
वुस्ता (अ़.वि.)-बीच की, दरमियानी; बीच की उँगली, मध्यमा।
वुस्लत (अ़.स्त्री.)-जोड़, पैवन्द; स्वजनता, रिश्तेदारी, नातेदारी; संयोग, मिलन, वस्ल।
वुहूश (अ़.पु.)-'वह्शÓ का बहु., जंगली जानवर।
वुहूशोतुयूर (अ़.पु.)-जंगली जानवर और जंगली परिन्दे।

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