म
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मं$कूल (अ़.पु.)-न$कल किया हुआ, अनुकरण किया हुआ।मंख़्ाूर (अ़.पु.)-नाक का नथुना।
मंजऱ (अ़.पु.)-दृश्य, नज़ारा; मुखाकृति, चेहरा; कौतुक-स्थल, तमाशागाह; क्रीडास्थल, सैरगाह; हद्दे नजऱ, दृष्टि की सीमा, दृष्टि-सीमा का अंत।
मंजऱे अ़ाम (अ़.पु.)-सार्वजनिक-स्थल, खुली जगह, जहाँ सब लोग आ-जा सकें।
मंजि़ल (अ़.स्त्री.)-पड़ाव, लक्ष्य-स्थल, पहुँचने का स्थान, गंतव्य, मुसा$िफर के उतरने की जगह; मकान का खन या खंड, माला; नक्षत्र, चाँद का घर; लम्बी यात्रा।
मंजि़लगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-गंतव्य-स्थल, जहाँ जाकर ठहरना हो।
मंजि़लत (अ़.स्त्री.)-पद, आसन, ओहदा, पदवी, दरजा; आदर, सत्कार, इज़्ज़त।
मंजि़ले अव्वल (अ़.स्त्री.)-श्मशान, $कब्र, मनुष्य मरने पर जहाँ सर्वप्रथम जाता है।
मंजि़ले $कमर (अ़.स्त्री.)-नक्षत्र, चाँद के रास्ते में पडऩेवाले 27 स्थानों में से एक। दे.-'मनाजि़ले $कमरÓ।
मंजि़ले मक़्सूद (अ़.स्त्री.)-लक्ष्य-स्थल, वह स्थान जहाँ पहुँचना है; आशय, उद्देश्य।
मंजि़ले हस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-जीवन-यात्रा, आयु, उम्र।
मंज़्ाूअ़ (अ़.$वि.)-निष्कासित, किसी चीज़ से अलग किया हुआ, निकाला हुआ।
मंज़्ाूम (अ़.$वि.)-पद्यात्मक, छन्द के रूप में परिवर्तित किया हुआ, छन्दोबद्घ, काव्य की शैली में ढाला हुआ, नज़्म की सूरत में लाया हुआ।
मंज़्ाूमात (अ़.स्त्री.)-नज़्मों का संग्रह, ऐसा संग्रह जिसमें $गज़लें न हों केवल नज़्में ही हों।
मंज़्ाूर (अ़.$वि.)-स्वीकृत, तस्लीम; माना हुआ, मान लिया गया; जो देखा जाए; दृष्टिगत, दृष्टिगोचर; पसंदीद:, रुचिकर, मन को भानेवाला। मुहा.-'मंज़्ाूर करनाÓ-मान लेना, स्वीकार करना; स्वीकृति देना।
मंज़्ाूरी (अ़.स्त्री.)-अनुमति, स्वीकृति।
मंज़्ाूरे नजऱ (अ़.वि.)-जिस पर किसी की कृपा-दृष्टि हो, कृपापात्र; प्रिय, प्यारा।
मंतिक़ (अ़.स्त्री.)-तर्कशास्त्र।
मंद ($फा.प्रत्य.)-वाला, जैसे-'ज़्ाुरूरतमंदÓ-जिसे ज़्ाुरूरत हो।
मंदल ($फा.पु.)-घेरा, मण्डल, इहाता।
मंदूब: (अ़.स्त्री.)-प्रतिनिधि महिला, डेलीगेट स्त्री।
मंदूब (अ़.पु.)-प्रतिनिधि, डेलीगेट।
मंदूबीन (अ़.पु.)-'मंदूबÓ का बहु., बहुत-से प्रतिनिधि, प्रतिनिधि-मण्डल।
मंबाÓ (अ़.पु.)-स्रोत, चश्मा; उद्गम-स्थल, निकास का स्थान।
मंबित (अ़.पु.)-उगने या जमने का स्थान, जहाँ कोई पौधा उगे या उपजे।
मंशा (अ़.पु.)-इच्छा, ख़्वाहिश; आशय, उद्देश्य, मक़्सद; हेतु, कारण, सबब; अर्थ, मतलब; दिली मक़्सद, मनोकामना।
मंशाए इलाही (अ़.पु.)-भगवान् की इच्छा, ईश्वरेच्छा।
मंशाए दिली (अ़.पु.)-हृदय की आरज़्ाू, मनोकामना, मन की इच्छा।
मंशाए मशीअत (अ़.पु.)-दे.-'मंशाए इलाहीÓ।
मंशूर (अ़.पु.)-राजाज्ञा, शाही $फर्मान; बिखरा हुआ, अस्त-व्यस्त, तितर-बितर।
मंसक (अ़.पु.)-उपासना-गृह, वह स्थान जहाँ ईश-वंदना की जाए; वह स्थान जहाँ $कुर्बानी की जाए।
मंसब (अ़.पु.)-पद, ओहदा; कर्तव्य, $फर्ज़; अधिकार, ह$क।
मंसबदार (अ़.$फा.वि.)-ओहदेदार, पदाधिकारी; पीढ़ी दर पीढ़ी वज़ी$फा पानेवाला।
मंसबी (अ़.$वि.)-मंसबवाला, पद-सम्बन्धी, जैसे-'कारे मंसबीÓ-अपना पद-सम्बन्धी काम।
मंसर (अ़.पु.)-सहायता-स्थल, इमदाद की जगह।
मंसूख़्ा (अ़.$वि.)-निरस्त, रद्द, ख़्ाारिज।
मंसूख़्ाी (अ़.$वि.)-निरस्त होना, निरसन, रद्द होना, मंसूख़्ा होना, ख़्ाारिज होना।
मंसूब: (अ़.पु.)-इच्छा, चाहत, ख़्वाहिश; संकल्प, इरादा; योजना, स्कीम; षड्यंत्र, साजि़श।
मंसूब:बंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-षड्यंत्र रचना, साजि़श करना; इरादा करना, मंसूबा गाँठना; स्कीम बनाना, योजना बनाना।
मंसूब (अ़.$वि.)-सम्बन्धित, जिसका किसी की ओर लगाव हो गया हो अथवा सम्बन्ध हो गया हो; जिसकी कहीं मँगनी की गई हो। इसका 'सूÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
मंसूब (अ़.$वि.)-वह अक्षर जिस पर 'ज़बरÓ ('उÓ अथवा 'ऊÓ की मात्रा) हो। इसका 'सूÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मंसूबइलैह (अ़.$वि.)-जिससे लगाव हुआ हो, जिसकी ओर निस्बत की गई हो, जिसकी मँगनी की गई हो।
मंसूर (अ़.वि.)-गद्यात्मक लेख, नस्र का कलाम; अनविधा मोती; तितर-बितर, बिखरा हुआ। इसका 'सूÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
मंसूर (अ़.वि.)-विजेता, विजयी, $फातेह; एक वली जिन्होंने 'अनलह$कÓ (अहं ब्रह्मïास्मि अर्थात् मैं ईश्वर हूँ) कहा था और इस अपराध में उनकी गरदन काटी गई थी। इसका 'सूÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मंसूरोमुजफ़़्$फर (अ़.$वि.)-प्रशंसनीय विजयी, जो बहुत शान से जीता हो।
मंसूस (अ़.$वि.)-जिसकी जाँच-पड़ताल हो चुकी हो; वह बात जो $कुरान की स्पष्ट आयतों से प्रमाणित हो।
मअ़$कूल (अ़.वि.)-दे.-'माÓ$कूलÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, मुनासिब, बजा, ठीक, उचित।
मअज़ून (अ़.स्त्री.)-दे.-'माÓजूनÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, अवलेह, वटनी, चाटने की एक प्रकार की मीठी औषध।
मअ़ज़ूर (अ़.वि.)-दे.-'माÓज़ूरÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, लाचार, मजबूर, विवश; अपाहिज; क्षमा योग्य।
मअ़ज़ूरी (अ़.स्त्री.)-दे.-'माÓज़ूरीÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, विवशता, लाचारी, मजबूरी।
मअ़दन (अ़.पु.)-धातुओं (सोना, चाँदी, लौह, ताँबा आदि) की खान। दे.-'माÓदिनÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मअ़दनियात (अ़.स्त्री.)-खनिज-द्रव्य, खान से निकलनेवाले पदार्थ। दे.-'माÓदिनीयातÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मअ़दनी (अ़.वि.)-खनिज, खान से निकला हुआ। दे.-'माÓदिनीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मअ़दलत (अ़.स्त्री.)-दे.-'माÓदिलतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, न्याय, इंसा$फ।
मअ़दूद (अ़.वि.)-दे.-'माÓदूदÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, गिने हुए; गिने-गिनाए; कुछ, कतिपय, थोड़े।
मअ़दूम (अ़.वि.)-नष्ट, मिटाया हुआ। दे.-'माÓदूमÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मअऩ (अ़.वि.)-अचानक, अकस्मात्, सहसा; तत्क्षण, तुरन्त, $फौरन।
मअ़बद (अ़.पु.)-दे.-'माÓबदÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, उपासना-स्थल, मंदिर, देवालय।
मअ़बूद (अ़.पु.)-दे.-'माÓबूदÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, उपास्य देव, ईश्वर, परमात्मा; जिसकी पूजा की जाए।
मअऱका (अ़.पु.)-दे.-'माÓरिक:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है, युद्घ का मैदान, युद्घ-स्थल; लड़ाई, युद्घ।
मअऱ$फत (अ़.स्त्री.)-दे.-'माÓरि$फतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, परिचय, जान-पहचान; द्वारा, हस्ते, ज़रिये से, माध्यम से; अध्यात्म-विद्या, ईश्वर-ज्ञान।
मअ़मूर (अ़.वि.)-दे.-'माÓमूरÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, भरा हुआ, परिपूर्ण; आबाद।
मअ़रूज़: (अ़.पु.)-दे.-'माÓरूज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है, अज़ऱ्ी, प्रार्थना-पत्र, निवेदन-पत्र।
मअ़रू$फ (अ़.वि.)-दे.-'माÓरू$फÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, ख्यात, प्रसिद्घ, मशहूर; वह क्रिया जिसका कर्ता ज्ञात हो; प्रत्यक्ष; प्रकट।
मअ़लूल (अ़.वि.)-युक्ति अथवा तर्क द्वारा सिद्घ किया हुआ
मअ़रूज़ (अ़.वि.)-दे.-'माÓरूज़Ó, वही उच्चारण शुद्घ है, प्रार्थना, विनय; अर्ज़़ किया हुआ, निवेदन।
मअ़रू$फ (अ़.वि.)-दे.-'माÓरू$फÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, ख्यात, प्रसिद्घ, मशहूर; वह क्रिया जिसका कर्ता ज्ञात हो; प्रत्यक्ष; प्रकट।
मअ़लूल (अ़.वि.)-युक्ति अथवा तर्क द्वारा सिद्घ किया हुआ; वह चीज़ जिसका कोई कारण हो, कारण-सहित; (पु.)-कार्य, परिणाम, निष्कर्ष। दे.-'माÓलूलÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मअ़शू$क (अ़.पु.)-दे.-'माÓशू$कÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, प्यारा, प्रियतम।
मअ़सीत (अ़.स्त्री.)-दे.-'माÓसियतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, पाप, गुनाह, अपराध।
मअ़सूम (अ़.वि.)-दे.-'माÓसूमÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, निर्दोष, बेगुनाह; भोला; अबोध, छोटा बच्चा।
मअ़ाइब (अ़.पु.)-'मईबÓ का बहु., दोष-समूह।
मअ़ाख़्िाज़ (अ़.पु.)-वे पुस्तकें जिनसे सामग्री लेकर कोई अन्य पुस्तक लिखी गई हो।
मअ़ाज़ (अ़.वि.)-त्राण-स्थल, रक्षास्थल, पनाह की जगह।
मअ़ाज़ल्लाह (अ़.वा.)-भगवान् रक्षा करे, ईश्वर बचाए, ख़्ाुदा की पनाह।
मअ़ाजीन (अ़.स्त्री.)-'माÓजूनÓ का बहु., माÓजूनें, अवलेह-समूह, चटनियाँ।
मअ़ाद (अ़.पु.)-वापस जाने की जगह, संसार से लौटकर जाने का स्थान, यमलोक।
मअ़ादिन (अ़.पु.)-'माÓदिनÓ का बहु., खानें, खान-समूह।
मअ़ानी (अ़.पु.)-'माÓनाÓ का बहु., अर्थसमूह, अर्थ, अभिप्राय:; आशय, उद्देश्य।
मअ़ाब (अ़.प्रत्य.)-युक्त, जैसे-'$फज़ीलत मअ़ाबÓ-विद्वता से परिपूर्ण, विद्वता से युक्त।
मअ़ाबिद (अ़.पु.)-'माÓबदÓ का बहु., पूजा-अर्चना के स्थान, उपासना के स्थल, मंदिरें, मस्जिदें, गिर्जे, गुरुद्वारे।
मअ़ाबिर (अ़.पु.)-'माÓबर का बहु., नदियों के घाट या पुल।
मअ़ारिक (अ़.पु.)-'माÓरिक:Ó का बहु., युद्घक्षेत्र, लड़ाई के मैदान, समराँगण; लड़ाइयाँ, युद्घ, समर।
मअ़ारिज (अ़.पु.)-'मेÓराजÓ का बहु., सीढिय़ाँ, सोपान।
मअ़ारि$फ (अ़.पु.)-'माÓर$फÓ का बहु., पहचानने के स्थान; परिचय, पहचान; 'माÓरि$फÓ का बहु., परिचित लोग, दोस्त लोग, मित्रगण; विद्वज्जन लोग, विद्वान लोग।
मअ़ाल (अ़.पु.)-निष्कर्ष, नतीजा, परिणाम; अन्त, ख़्ाातिमा; बदला, प्रतिकार।
मअ़ालअंदेश (अ़.$फा.वि.)-परिणाम या अंत सोचकर काम करनेवाला, परिणामदर्शी।
मअ़ालअंदेशी (अ़.$फा.स्त्री.)-परिणाम सोचकर काम करना, परिणामदर्शिता।
मअ़ालनाअंदेश (अ़.$फा.वि.)-जो परिणाम का विचार किए बिना ही काम शुरू कर दे, अपरिणामदर्शिता।
मअ़ालनाअंदेशी (अ़.$फा.स्त्री.)-परिणाम या नतीजा सोचे बिना ही काम कर डालना, अपरिणामदर्शिता।
मअ़ालबीं (अ़.$फा.वि.)-'मअ़ालबीनÓ का लघु., दे.-'मअ़ालअंदेशÓ।
मअ़ालबीन (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मअ़ालबींÓ।
मअ़ालबीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मअ़ालअंदेशीÓ।
मअ़ाली (अ़.पु.)-'माÓलीÓ का बहु., ऊँचाइयाँ, बुलंदियाँ।
मअ़ाले कार (अ़.$फा.पु.)-कार्य-परिणाम, काम का नतीजा।
मअ़ाले बद (अ़.$फा.पु.)-दुष्परिणाम, कुफल, बुरा नतीजा।
मअ़ाश (अ़.स्त्री.)-रोज़ी-रोटी, जीविका, आजीविका, धन उपार्जन का साधन; ज़मीन या जागीर जो किसी काम के इन्अ़ाम या पुरस्कार के रूप में मिली हो।
मअ़ाशदार (अ़.$फा.पु.)-वह आदमी जिसे कोई ज़मीन या जागीर मअ़ाश अथवा पुरस्कार के रूप में मिली हो।
मअ़ाशी (अ़.वि.)-अर्थ-सम्बन्धी, आर्थिक; रोज़ी-रोटी अथवा जीविका-सम्बन्धी।
मअ़ाशीयात (अ़.स्त्री.)-अर्थ-शास्त्र।
मअ़ाशरत (अ़.स्त्री.)-रहन-सहन, सामाजिक जीवन।
मअ़ासिर (अ़.पु.)-'माÓसुर:Ó का बहु., अच्छी निशानियाँ, अच्छे स्मृति-चिह्नï; अच्छे काम, सुकृतियाँ; एक ही समय का, समसामयिक, सहयोगी।
मअ़ासी (अ़.पु.)-अपराध-समूह, पाप-समूह, गुनाह।
मईब (अ़.पु.)-अवगुण, दोष, ऐब, दूषण।
मईयत (अ़.स्त्री.)-साथी, हमराही, सहयात्री।
मईशत (अ़.स्त्री.)-जीवन, जि़न्दगी; दाल-रोटी, जीविका, मअ़ाश; जीवन की आवश्यकताएँ, वह चीज़ जो जीवन का सहारा हो।
मऊनत (अ़.स्त्री.)-मदद, सहायता, सहयोग।
मऊल (अ़.वि.)-जिस पर विश्वास या भरोसा किया गया हो, विश्वस्त, भरोसेमंद।
मए अंगूर ($फा.स्त्री.)-अंगूर से बनाई हुई मदिरा, द्राक्षासव।
मए अंग्बीं ($फा.स्त्री.)-शहद से बनाई हुई मदिरा, माधवी।
मए आतशीं ($फा.स्त्री.)-आग-जैसी तेज़ और लाल मदिरा, अग्निवर्णा।
मए ऐश (अ़.$फा.स्त्री.)-भोग-विलास-रूपी मदिरा।
मए हुस्न (अ़.$फा.स्त्री.)-रूप-मद, सौन्दर्य-सुरा, सुन्दरता और जवानी की मदिरा।
मए कौसर (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वर्ग की मदिरा।
मए गुलगूँ ($फा.स्त्री.)-गुलाब के फूल-जैसी सुगन्धित और गुलाबी मदिरा।
मए गुल$फाम ($फा.स्त्री.)-दे.-'मए गुलगूँÓ।
मए गुलरंग ($फा.स्त्री.)-दे.-'मए गुलगूँÓ।
मए तहूर (अ़.$फा.स्त्री.)-पवित्र मदिरा, वह मदिरा जो स्वर्ग में मिलेगी।
मए तुंद (फ़ा.स्त्री.)-तेज़ नशेवाली मदिरा।
मए दुआतश: ($फा.स्त्री.)-दो बार की खिंची हुई शराब, बहुत तेज़ शराब।
मए दोशान: ($फा.स्त्री.)-रात की बची हुई बासी शराब।
मए नाब ($फा.स्त्री.)-निर्मल और ख़्ाालिस मदिरा।
मए नौ ($फा.स्त्री.)-नई शराब, हाल की खिंची हुई शराब।
मए पिंदार ($फा.स्त्री.)-घमण्ड की शराब, अहंकार-रूपी मदिरा।
मए मु$गान: ($फा.स्त्री.)-अग्नि-पूजकों की शराब, आतश-परस्तों की मदिरा।
मए रंगीं ($फा.स्त्री.)-रंगीन मदिरा।
मए वस्ल (अ़.$फा.स्त्री.)-मिलन की मदिरा; नायक-नायिका का सहवास, संभोग, मैथुन।
मए शबीन: ($फा.स्त्री.)-रात की बची हुई शराब।
मए शीराज़ ($फा.स्त्री.)-वह मदिरा जो शीराज़ की बोतलों में हो; हा$िफज़ शीराज़ी का काव्य।
मए शौ$क (अ़.$फा.स्त्री.)-प्रेम-मदिरा, नेह की शराब।
मए हराम (अ़.$फा.स्त्री.)-वह मदिरा जिसका पीना धर्म में निषिद्घ है।
मए हलाल (अ़.$फा.स्त्री.)-वह मदिरा जिसका पीने की धर्म इजाज़त देता है, वह मद्य जिसका पान धर्म में विहित है, स्वर्ग की मदिरा।
मक ($फा.पु.)-घूँट, कश, चुस्की।
म$कर [र्र] (अ़.पु.)-पड़ाव, ठिकाना, अड्डा, ठहरने का स्थान।
म$कर्रुलख़्िाला$फत (अ़.पु.)-राजधानी, शासन-केन्द्र।
म$कर्रुलहुकूमत (अ़.पु.)-राजधानी, शासन-केन्द्र।
म$कर्रुस्सल्तनत (अ़.पु.)-राजधानी, शासन-केन्द्र।
म$कर्रे ख़्िाला$फत (अ़.पु.)-राजधानी, शासन-केन्द्र।
म$कल (अ़.स्त्री.)-घूरना; आलोचना करना, नुक्त:चीनी करना; पीठ-पीछे बुराई करना, निन्दा करना।
म$कस [स्स] (अ़.पु.)-जिस जगह काटा गया हो, काटने का स्थान, दंशित-स्थल।
मकाइद (अ़.पु.)-'मकीद:Ó का बहु., छल और $फरेब, पाखंड, ऐयारियाँ।
मक़ाइद (अ़.पु.)-'मक़्अ़दÓ का बहु., बैठने के स्थान।
मकातिब (अ़.पु.)-प्रारम्भिक पाठशालाएँ, 'मक्तबÓ का बहु.।
मकातिबे इब्तिदाई (अ़.पु.)-प्रारम्भिक पाठशालाएँ, जिनमें शुरूअ़ात की शिक्षा दी जाए।
मकातीब (अ़.पु.)-'मक्तूबÓ का बहु., चिट्ठियाँ, पत्र-समूह, ख़्ाुतूत।
म$कादीर (अ़.स्त्री.)-'मिक़्दारÓ का बहु., अंदाज़े, अनुमान, वज़्न; संख्याएँ।
म$कादीरे मज्हूल: (अ़.स्त्री.)-गणित में वे संख्याएँ जो ज्ञात न हों।
म$कादीरे माÓलूम: (अ़.स्त्री.)-गणित में वे संख्याएँ जो ज्ञात हों।
मकान (अ़.पु.)-घर, आवास, गृह, भवन, सदन, निकेतन, गेह, वेश्म; स्थान, जगह, ठिकाना।
मकानदार (अ़.$फा.वि.)-गृह-स्वामी, घर का मालिक।
मकानात (अ़.पु.)-'मकानÓ का बहु., अनेक घर, बहुत-से मकान।
मकाने मस्कून: (अ़.पु.)-आवास, रहने का मकान, जिस घर में कोई रहता हो।
म$काबिर (अ़.पु.)-'मक़्बर:Ó का बहु., समाधियाँ, मक़्बरे, $कब्रें।
म$काम (अ़.पु.)-मंजि़ल, पड़ाव; ठहरने का स्थान; स्थान, जगह; घर, मकान, आवास; अवसर, मौ$का; इज़्ज़त, प्रतिष्ठा। शुद्घ उच्चारण यही है मगर 'मु$कामÓ भी प्रचलित है।
म$कामी (अ़.वि.)-स्थानीय, लोकल।
मकारिम (अ़.पु.)-'मक्रुमतÓ का बहु., अनुकम्पाएँ, कृपाएँ, इनायतें।
म$काल: (अ़.पु.)-किसी विषय-विशेष पर गवेषणापूर्ण लेख, निबंध, लेख; रेखागणित का कोई साध्य।
म$काल:नवीस (अ़.$फा.वि.)-निबंध लिखनेवाला, निबंधकार।
म$काल:निगार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'म$काल:नवीसÓ।
म$काल:निगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-निबंध लिखना, प्रबंध रचना।
म$काल (अ़.पु.)-बातचीत, वार्तालाप, गुफ़्तगू।
म$कालात (अ़.पु.)-'म$काल:Ó का बहु., बातचीतें, वार्तालाप, गुफ़्तगू; म$काले, निबंध।
म$कालीद (अ़.पु.)-'मिक़्लीदÓ का बहु., कुजियाँ, चाबियाँ।
म$कासिद (अ़.पु.)-'मक़्िसदÓ का बहु., आशय, उद्देश्य-समूह, मंशाएँ।
मकासिब (अ़.पु.)-'कस्बÓ का बहु., जीविकाएँ, उद्योग, पेशे।
मकीद: ($फा.पु.)-चूसा हुआ।
मकीदत ($फा.पु.)-बुरा चाहना, बदअंदेशी।
मकीदन ($फा.क्रि.)-चूसना।
मकीदनी ($फा.वि.)-चूसने योग्य।
मकीं (अ़.वि.)-'मकीनÓ का लघु, दे.-'मकीनÓ।
मकीन (अ़.वि.)-मकान में रहनेवाला, आवासी, निवासी।
म$कूल: (अ़.पु.)-कथन, बात, $कौल; कही हुई बात।
म$कूलात (अ़.पु.)-'म$कूल:Ó का बहु., बातें, $कौल।
मक़्अ़द (अ़.स्त्री.)-गुदा, मलद्वार।
मक्क: (अ़.पु.)-हज्ऱत मुहम्मद साहब का जन्म-स्थान, अऱब की राजधानी (मुसलमान लोग वहीं हज के लिए एकत्र होते हैं, काÓब: इसी में है)।
मक्कार: (अ़.स्त्री.)-धूर्ता, मायाविनी, वंचिका, हरी$फ़:, बहुत-ही चालाक स्त्री।
मक्कार (अ़.वि.)-वंचक, धूर्त, छलिया, बहुत-ही चालाक व्यक्ति।
मक्कारी (अ़.स्त्री.)-धूर्तता, चालाकी।
मक्ज़ूम (अ़.पु.)-क्रोध पी जानेवाला।
मक्तब (अ़.पु.)-पाठशाला, विद्यालय, बच्चों का स्कूल, मदरसा।
मक्तबख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-इस शब्द में 'ख़्ाान:Ó अधिक और अनुचित है, क्योंकि 'मक्तबÓ का अर्थ ख़्ाुद ही पढ़ाई की जगह है, परन्तु फिर भी कुछ लोग 'मक्तबÓ के साथ अनुचित रूप से 'ख़्ाान:Ó लगा देते हैं, जबकि न लगाना अधिक उचित है।
मक्तबगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मक्तबख़्ाान:Ó, इसमें भी 'गाहÓ स्थान के अर्थ में है और वह अनुचित व अशुद्घ है।
मक्तबे इश्$क (अ़.पु.)-प्रेम-पाठशाला।
मक़्तल (अ़.पु.)-वध-स्थल, वध-भूमि, वधशाला, $कत्ल करने की जगह।
मक़्तूअ़ (अ़.वि.)-कटा हुआ, विच्छिन्न, जो अलग हो गया हो।
मक़्तूउन्नस्ल (अ़.वि.)-जिसका वंश समाप्त हो गया हो, जिसकी संतान में कोई न रहा हो, नष्टवंश।
मक़्तूउलयद (अ़.वि.)-जिसका हाथ कट गया हो, विकल पाणिक, विच्छिन्न हस्त।
मक्तूब (अ़.पु.)-लिखित, लिखा हुआ; पत्र, चिट्ठी।
मक़्तूबइलैह (अ़.वि.)-जिसको पत्र लिखा जाए।
मक्तूम (अ़.वि.)-गुप्त, छिपा हुआ, गुह्य।
मक़्तूल (अ़.वि.)-जिसका वध कर दिया गया हो, जिसे $कत्ल कर दिया गया हो, हत, निहत, वधित।
मक़्तूलीन (अ़.पु.)-'मक़्तूलÓ का बहु., वधित जन, मारे गए लोग।
मक़्तूलो मज्रूह (अ़.पु.)-हताहत, जो मारे गए और जो घायल हुए, जो $कत्ल हुए और जो ज़ख़्मी हुए।
मक़्िदरत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मक़्दूरÓ।
मक़्दूनिय: (अ़.पु.)-'बल$कानÓ का एक प्रदेश जो पहले तुर्कों के पास था, सिकंदर यहीं राज करता था।
मक़्दूर (अ़.पु.)-बस, $काबू; शक्ति, बल, ज़ोर; सामथ्र्य, मक़्िदरत; साहस, हिम्मत; समाई, गुंजाइश; धन, दौलत।
मक्ऩाÓ (अ़.पु.)-वह महीन कपड़ा जो निकाह के समय दूल्हा को पहनाते हैं। इसका शुद्घ उच्चारण 'मिक्ऩाÓ है मगर उर्दू में 'मक्ऩाÓ भी प्रचलित है।
मक्ऩातीस (अ़.पु.)-वह पत्थर जो लोहे को अपनी ओर खींचता है, चुम्बक, अयस्कांत, आकर्ष, वज्रलोहक। दे.-'मिक्ऩातीसÓ, दोनों शुद्घ हैं।
मक्ऩूद (अ़.$फा.पु.)-मीठी चीज़, शक्कर मिली चीज़।
मक्नून (अ़.वि.)-छिपाया हुआ; दिया हुआ; भेद, रहस्य; मन की बात, मंशा।
मक्नूने ख़्ाातिर (अ़.वि.)-दिल का भेद, मन में छिपाई हुई बात।
मक्$फू (अ़.पु.)-पलटा हुआ, औंधा।
मक्$फू$फ (अ़.वि.)-कपड़ा लपेटा हुआ; उर्दू छन्द में सप्त अक्षरीयगण (मुस्त$फइलुन्, म$फाईलुन्, $फाइलातुन् में से अंतिम अक्षर कम करके मुस्त$फइलु, म$फाईलु, $फाइलातु बनाना)।
मक्$फूल (अ़.वि.)-गिरवी रखा हुआ, रेहन रखा हुआ, गिरौ, बंधक।
मक़्बर: (अ़.पु.)-वह $कब्र या समाधि जिस पर इमारत या गुम्बद हो।
मक़्बूज़: (अ़.वि.)-जो वस्तु अधिकार में हो, जिस पर अपना $कब्ज़ा हो, मिल्कियत, नियंत्रित, अधिकृत।
मक़्बूल (अ़.वि.)-सर्वप्रिय, हरदिल अज़़ीज़; रुचिकर, पसंदीद:; स्वीकृत, मंजूर।
मक़्बूलियत (अ़.स्त्री.)-सर्वप्रियता, हरदिल अज़़ीज़ी; रुचि, पसंदीदगी।
मक़्बुलुद्दुअ़ा (अ़.वि.)-जिसकी दुअ़ा तुरन्त $कबूल होती हो, वाक्-सिद्घ।
मक़्बूले बारगाह (अ़.$फा.वि.)-ईश्वर का बहुत-ही प्यारा-दुलारा; किसी बड़े आदमी के यहाँ बहुत सम्मानित व्यक्ति।
मक्र (अ़.पु.)-ठगी, वंचना, धोखा, छल; धूर्तता, चालाकी; मिष, बहाना।
मक्रुमत (अ़.स्त्री.)-अनुकम्पा, कृपा, दया; सम्मान, प्रतिष्ठा, व$कार।
मक्रुमतनाम: (अ़.$फा.पु.)-कृपापत्र।
मक़्रू$क (तु.वि.)-कु$र्क किया हुआ, जो माल कु$र्क कर लिया गया हो, ज़ब्त सामान।
मक़्रूज़ (अ़.वि.)-जिसने ऋण लिया हो, ऋणी, $कजऱ्दार।
मक़्रून (अ़.वि.)-निकट, समीप, पास, नज़दीक; पास किया हुआ, मिलाया हुआ।
मक्रूब (अ़.वि.)-शोक-संतप्त, दु:खित, $गमगीन।
मक्रूह (अ़.वि.)-घृणास्पद, जिसे देखकर घिन आए, घृणित; भद्दा, बदनुमा; इस्लाम धर्म में वह चीज़ जिसका खाना अच्छा न हो लेकिन वह हराम या वर्जित न हो।
मक्रूहात (अ़.पु.)-'मक्रूहÓ का बहु., घृणित वस्तुएँ; व्यर्थ के काम।
मक्रूहाते दुन्यवी (अ़.पु.)-संसार के झंझट, दुनिया के झगड़े, जीवन की आपाधापी।
मक्रूहे तह्रïीमी (अ़.पु.)-इस्लाम के अनुसार ऐसा घृणित खाद्य-पदार्थ जो हराम के लगभग पहुँच गया हो।
मक़्लूब (अ़.वि.)-उलटा हुआ, औंधा।
मक़्लूबुलइज़ा$फत (अ़.पु.)-ऐसा समासगत शब्द जिसकी इज़ा$फत (सम्बन्ध) उलट गई होजैसे-'ख़्ाानएख़्ाुदाÓ का 'ख़्ाुदाख़्ाानÓ।
मक़्लूबे कुल (अ़.पु.)-वह शब्द जो क्रम से बिलकुल उलट गया हो, जैसे-'$कमरÓ से 'रम$कÓ।
मक़्लूबे बाÓज़ (अ़.पु.)-वह शब्द जिसमें अक्षर अपने क्रम से न उलटें, जैसे-'$कमरÓ से 'र$कमÓ।
मक़्लूबे मुस्तवी (अ़.पु.)-वह शब्द-समूह या इबारत जो क्रम से बिलकुल उलट गई हो।
मक़्शू$फ (अ़.वि.)-व्यक्त, प्रकट, जाहिर; जो प्रत्यक्ष किया गया हो, जो खोला गया हो।
मक़्सद (अ़.पु.)-उद्देश्य, आशय, मंशा; इच्छा, ख़्वाहिश, चाहत; शुद्घ उच्चारण 'मक़्िसदÓ है मगर उर्दू में 'मक़्सदÓ ही प्रचलित है।
मक़्िसद (अ़.पु.)-दे.-'मक़्सदÓ, शुद्घ यही है मगर उर्दू में 'मक़्सदÓ ही प्रचलित है।
मक़्सूद (अ़.वि.)-मंशा, आशय, उद्देश्य; इच्छा, ख़्वाहिश, चाहत।
मक़्सूदविज़्ज़ात (अ़.वि.)-वह वस्तु जिसकी वास्तव में इच्छा अथवा चाहत हो।
मक़्सूदमिन्ह: (अ़.वि.)-जिससे मतलब हो।
मक्सूब: (अ़.वि.)-पैदा की हुई, कमाई हुई सम्पत्ति अथवा जाइदाद।
मक्सूब (अ़.वि.)-कमाया हुआ, पैदा किया हुआ।
मक़्सूम (अ़.वि.)-बाँटा हुआ, विभाजित; भाग, हिस्सा; भाग्य, $िकस्मत; विभक्त होनेवाली संख्या, वह संख्या जो बाँटी जाए, भाज्य।
मक़्सूम अ़लैह (अ़.पु.)-वह संख्या जिससे किसी संख्या में भाग दें, भाजक, हारक।
मक़्सूमअ़लैहे आÓज़म (अ़.पु.)-वह बड़ी से बड़ी संख्या जो कई संख्याओं को पूरा का पूरा बाँट दे, जैसे-6, जो 12, 18, 24, 30, 36, 42 और 48 को पूरा-पूरा बाँट देती है।
मक्सूर (अ़.वि.)-कम किया गया, छोटा किया गया, जो कम या छोटा किया गया हो; ह्रस्व, छोटा, कम। इसका 'सूÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मक्सूर (अ़.वि.)-भग्न, शिकस्त; जिस अक्षर पर 'ज़ेरÓ अर्थात् 'इÓ की मात्रा लगाई गई हो। इसका 'सूÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
मक़्हूर (अ़.वि.)-जिस पर कोप या $गुस्सा हो, जो कोप या क्रोध का पात्र हो; जिस पर ईश्वरीय-प्रकोप हो, दैवकोप से ग्रस्त।
मख़्ार ($फा.प्रत्य.)-तुच्छ, नाचीज़, मोल न लिया जानेवाला, जैसे-'हेचमख़्ारÓजिसे कोई दो पैसे में भी मोल न ले।
मख़्ााजिऩ (अ़.पु.)-'मख्ज़ऩÓ का बहु., ख़्ाज़ाने, ढेर, राशि, भण्डार।
मख़्ाादीम (अ़.पु.)-'मख़्दूमÓ का बहु., स्वामीगण, मालिक लोग, प्रतिष्ठित-जन।
मख़्ाा$फ (अ़.पु.)-जहाँ किसी बात का डर अथवा भय हो, भय का स्थान, ख़्ातरे की जगह।
मख़्ाा$फत (अ़.स्त्री.)-भय, डर, त्रास; चिन्ता, $िफक्र, शंका, आशंका।
मख़्ाारिज (अ़.पु.)-'मख्रज़Ó का बहु., निकलने के स्थान; शब्दोच्चारण के स्थान, ध्वनि-उच्चारण के स्थान।
मख़्ाावि$फ (अ़.पु.)-'मख़्ाव$फÓ का बहु., डर अथवा भय की जगह, ऐसा स्थान जहाँ कोई ख़्ाौ$फ या ख़्ातरा हो, शंका या आशंका का स्थल।
मख़्ाीज़ (अ़.पु.)-दही बिलोकर मक्खन निकालने के बाद बचा हुआ तत्त्व, छाछ, मट्ठा।
मख्ज़ऩ (अ़.पु.)-गोदाम, भण्डारगृह, कोष्ठागार; खानि, खान, कान; कोषागार, ख़्ाज़ाना; शस्त्रागार, आयुद्य-भण्डार, मैगज़ीन।
मख़्ज़ून (अ़.वि.)-कोषागार अथवा ख़्ाज़ाने में रखा हुआ; रक्षित; गुप्त, छिपा हुआ, गड़ा हुआ।
मख़्ज़ूल (अ़.वि.)-बेइज़्ज़त, अपमानित, तिरस्कृत, ज़लील, ख़्वार।
मख़्तूत: (अ़.पु.)-ऐसे पत्र जो प्राचीनकाल में हाथों से लिखे गए थे, प्राचीन हस्तलिखित पत्र आदि।
मख़्तूतात (अ़.पु.)-'मख़्तूत:Ó का बहु., प्राचीन हस्तलिखित पत्र-समूह।
मख़्तून (अ़.वि.)-जिनकी सुन्नत हो चुकी हो, जिनके ख़्ात्ने (मुसलमानी, मुसलमानों में लिंग के अगले भाग का बढ़ा हुआ चमड़ा काटने की रस्म) हो गए हों।
मख़्तूब: (अ़.स्त्री.)-जिस लड़की की सगाई हो गई हो, जो किसी की मंगेतर बन चुकी हो।
मख़्तूम (अ़.वि.)-मुद्रांकित, मोहर लगा हुआ, सील किया हुआ; बन्द किया हुआ।
मख़्तूर (अ़.वि.)-वह विचार जो मन में उत्पन्न हो; जान जोख़्िाम में डाला हुआ।
मख़्तूरात (अ़.वि.)-'मख़्तूरÓ का बहु., हृदय में पैदा होने-वाले ख़्ायाल, मन में उत्पन्न होनेवाली विचार-धाराएँ।
मख़्दूम: (अ़.स्त्री.)-स्वामिनी, मालिकिन; श्रीमती, महोदया, देवी (सम्बोधन में)।
मख़्दूम (अ़.वि.)-मालिक, स्वामी, आ$का; प्रतिष्ठित व्यक्ति, मान्य, पूज्य।
मख़्दूमी (अ़.वि.)-(सम्बोधन में)-हे मेरे आ$का, हे मालिक, हे स्वामी, (शब्दार्थ)-मेरे स्वामी, मेरे आ$का।
मख़्दूश (अ़.वि.)-भयानक, डरावना; भयसंकुल, पुरख़्ातर; जिसके मन में शंकाएँ हों; धूर्त, छलिया, धोखेबाज़।
मख्ऩूक़ (अ़.वि.)-जिसका गला घोंटा गया हो, जो गला घोंटकर मारा गया हो, गला मरोड़ा हुआ।
मख्फ़़ी (अ़.वि.)-गुप्त, छिपा हुआ।
मख़्बूत (अ़.वि.)-जिसका दिमाग़ ख़्ाराब हो, ख़्ाब्ती, जिसको मस्तिष्क-विकार का रोग हो।
मख़्बूतुलहवास (अ़.वि.)-जिसके होशो-हवास जाते रहे हों, विकृत-मस्तिष्क, पागल।
मख़्मल ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार का मुलाइम रुएँदार कपड़ा।
मख़्मली ($फा.वि.)-मख़्मल का बना हुआ, मख़्मल मढ़ा हुआ, मख़्मल-जैसा।
मख़्मसात (अ़.पु.)-झंझट, जंजाल, बखेड़े।
मख़्मूर (अ़.वि.)-उन्मत्त, मदोन्मत्त, नशे में चूर।
मख़्ा्रज (अ़.पु.)-निकलने की जगह, उद्गम; नदी आदि के निकलने की जगह; स्वर के उच्चारण का स्थान, कंठ आदि।
मख़्ा्रूत (अ़.वि.)-ख़्ाराद किया हुआ, छीला हुआ; वह पदार्थ जो गाजर की भाँति एक ओर से मोटा हो और दूसरी ओर से पतला, शुंडाकार।
मख़्ा्रूती (अ़.वि.)-शंक्वाकार, शुँडाकार, मूली-गाजर की तरह एक ओर से मोटा तथा एक ओर से पतला।
मख़्लूअ़ (अ़.वि.)-निकाला हुआ; बाहर लाया हुआ।
मख़्लू$क (अ़.स्त्री.)-सृष्टि, जगत्, संसार, दुनिया; दुनिया-वाले, प्राणी-वर्ग; जनित, उत्पन्न।
मख़्लू$कात (अ़.स्त्री.)-सृष्टि की सभी चीज़ें, वे सब चीज़े जो इस संसार में हैं।
मख़्लूत (अ़.वि.)-मिला हुआ, मिश्रित, गड्ड-मड्ड।
मख़्लूतुन्नस्ल (अ़.वि.)-रक्त-मिश्रित ख़्ाानदान, जिसके वंश में गड़बड़ हो, जिसमें दूसरा रक्त भी सम्मिलित हो।
मख़्लेसी ($फा.स्त्री.)-रिहाई, छुटकारा, बंधनमुक्त। (विशेष-इस अर्थ में 'मुख़्िलसीÓ अशुद्घ है)।
मख़्सूर (अ़.पु.)-नु$कसान पहुँचाया हुआ, हानि पाया हुआ।
मख़्सूस (अ़.वि.)-विशेष, प्रमुख, प्रधान, ख़्ाास।
मख़्सूसन (अ़.अव्य.)-विशेषरूप से, ख़्ाास तौर पर, मुख्यत:, प्रधानत:।
म$ग ($फा.वि.)-घातक, गंभीर, गहरा; छोटी नदी।
मगर ($फा.अव्य.)-किन्तु, लेकिन, परन्तु।
मगस ($फा.स्त्री.)-मक्खी, मक्षिका।
मगसगीर ($फा.वि.)-मक्खी पकडऩेवाला, (स्त्री.)-मकड़ी, लूता।
मगसराँ ($फा.वि.)-मोरछल, चँवर; मक्खियाँ उड़ानेवाला।
मगसरानी ($फा.स्त्री.)-मक्खियाँ उड़ाना, मोरछल झलना, चँवर डुलाना।
मगसी ($फा.वि.)-मक्खी के रंग का, मटमैला।
म$गा ($फा.पु.)-मृत्यु-सूचना, मौत की ख़्ाबर।
म$गाक ($फा.पु.)-गड्ढ़ा, गतँ, खड्ड़ा।
म$गाजी (अ़.पु.)-वह पुस्तक जिसमें $गाजिय़ों (मज़हबी लड़ाई लडऩेवालों) के कारनामों का उल्लेख हो; 'मग्ज़़ाÓ का बहु.।
म$गार: (अ़.पु.)-गुफा, कन्दरा, पहाड़ की खोह; छीना-झपटी का स्थान, लूटमार का स्थान, जहाँ लोगों का सामान छीन अथवा लूट लिया जाता हो, जहाँ लुटने की आशंका हो।
म$गार ($फा.पु.)-गुफा, कन्दरा, पहाड़ की कोह।
म$गारिब (अ़.पु.)-पश्चिम के क्षेत्र, पश्चिमांचल, सूर्य के डूबने की जगहें, 'मग्रि़बÓ का बहु.।
मग्ज़़ ($फा.पु.)-मस्तक, मस्तिष्क, भेजृा, दिमा$ग; गिरी, गूदा; सार तत्त्व; अ़क़्ल, बुद्घि, विवेक; नतीजा, निष्कर्ष।
मग़्ज़ूब (अ़.वि.)-कोप का भागी, जिस पर कोप या क्रोध हो, क्रोध अथवा $गुस्से का पात्र।
मग्ज़़े उस्तुख़्वाँ ($फा.पु.)-मज्जा, हड्डी का गूदा।
मग्ज़़ सर ($फा.पु.)-भेज़ा, मस्तिष्क।
मग्ज़़े सुख़्ान ($फा.पु.)-बात का खुलासा, बात की तह, बात का सार; सारांश, लब्बेलुबाब, कुल निष्कर्ष।
म$ग्फिऱत (अ़.स्त्री.)-छुटकारा, मुक्ति, मोक्ष, नजात।
मग़्$फूर (अ़.वि.)-जिसको इस संसार से छुटकारा मिल गया हो, जिसको मुक्ति मिल गई हो, जो मोक्ष को प्राप्त हो गया हो।
मग़्बूत (अ़.वि.)-ईष्र्या का पात्र, जिस पर दूसरे लोग ईष्र्या करें।
मग़्बून (अ़.वि.)-जिसका $गबन किया गया हो।
मग़्मूज़ (अ़.वि.)-आरोपी, जिस पर आरोप लगाया गया हो; ख़्ाराब, बुरा, निकृष्ट, दूषित, विकृत।
मग़्मूम (अ़.वि.)-$गम का मारा हुआ, पीडि़त, दु:खित, क्लेशित, रंजीदा।
मग्रि़ब (अ़.पु.)-पश्चिमांचल, अस्तांचल, सूरज डूबने की जगह; पश्चिम; पाश्चात्य जगत्।
मग्रि़बज़द: (अ़.$फा.वि.)-जिसे पाश्चात्य रहन-सहन पसन्द हो, जो रहन-सहन में यूरोपीय देशों का अनुकरण करने में गर्व महसूस करता हो।
मग्रि़बज़दगी (अ़.$फा.स्त्री.)-पाश्चात्य रहन-सहन पसन्द करना, रहन-सहन और वेष-भूषा में यूरोपीय देशों का अनुसरण।
मग्रि़बपरस्त (अ़.$फा.वि.)-पश्चिम-पूजक, जो हर बात में यूरोप को ही मान्यता देता हो।
मग्रि़बपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-पश्चिम-पूजा, पाश्चात्य-पूजा, हर बात में यूरोप को ही अच्छा और अनुकरणीय समझना।
मग्रि़बी (अ़.वि.)-पाश्चात्य, पश्चिम का, पच्छिम का; यूरोप का।
मग्रि़बीयत (अ़.स्त्री.)-पाश्चात्य-प्रभाव, यूरोप का असर, नवीन सभ्यता का प्रभाव।
म$ग्रूर (अ़.वि.)-घमण्डी, अहंकारी।
मग़्लत: (अ़.पु.)-वह स्थान जहाँ कोई व्यक्ति भ्रम में पड़ जाए, भ्रामक-स्थल, भूलभुलैया।
मग़्लू$क (अ़.वि.)-बन्दद्वार, वह दरवाज़ा जिसके किवाड़ बन्द हों।
मग़्लूब (अ़.वि.)-हारा हुआ, पराजित, परास्त; अधीन, गुलाम, परतंत्र, $कैद, ज़ेर, दुबैल।
मग़्लूबुल$गज़ब (अ़.वि.)-क्रोधाविष्ट, वह व्यक्ति जो $गुस्से में आपे से बाहर हो जाए।
मग़्लूबुश्शहवत (अ़.वि.)-कामांध, कामासक्त, वह व्यक्ति जो काम-शक्ति के वश में हो।
मग़्लूल (अ़.वि.)-ज़ंजीर में जकड़ा हुआ, जिसके गले में सज़ा के तौर पर लोहे का कड़ा या छल्ला डाल दिया गया हो।
मग़्शूश (अ़.वि.)-मिलावटी वस्तु, वह चीज़ जिसमें कुछ अशुद्घ चीज़ मिली हो।
मग़्स (अ़.स्त्री.)-ऐंठन के साथ होनेवाले पतले दस्त, पेचिश, मरोड़।
मग़्सूल (अ़.वि.)-स्नान कराया हुआ, नहलाया हुआ; वह दवा जो किसी अऱ$क आदि में खरल करके महीन की गई हो, जैसे-'लावर्द मग़्सूलÓ, स्नात, मार्जित।
मज़: ($फा.पु.)-आनन्द, लुत्$फ; स्वाद, ज़ाइ$का; सैर, तमाशा; दण्ड, सज़ा।
मज़:दार ($फा.वि.)-स्वादिष्ठ, लज़ीज़; उल्लासपूर्ण, आनन्द -दायक, पुरलुत्$फ; मनोरेजक, दिलचस्प।
मज़न्न: (अ़.पु.)-दे.-'मजि़न्न:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
मज़म्मत (अ़.स्त्री.)-अपयश, आलोचना, बुराई, रुस्वाई, निंदा, बदनामी; तिरस्कार, बेइज़्ज़ती।
मजर्ऱत (अ़.स्त्री.)-घाटा, टोटा, नुक़्सान, हानि।
मजर्ऱतदिही (अ़.$फा.स्त्री.)-घाटा पहुँचाना, हानि पहुँचाना, नुक़्सान देना।
मजर्ऱतदेह (अ़.$फा.वि.)-हानिकारक, घाटा करानेवाला, टोटा करानेवाला, नुक़्सान देनेवाला।
मजर्ऱतरसाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मजर्ऱतदेहÓ।
मजर्ऱतरसानी (अ़.$फा.स्त्री.)-टोटा या घाटा कराना, दे.-'मजर्ऱतदिहीÓ।
मजर्ऱतरसी (अ़.$फा.स्त्री.)-घाटा होना, हानि पहुँचना।
मजल्ल: (अ़.पु.)-पत्रिका, रिसाला; अख़बार, समाचारपत्र।
मज़ल्लत (अ़.स्त्री.)-चूकने का मौ$का; पाँव फिसलने की जगह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
मज़ल्लत (अ़.स्त्री.)-अपयश, आलोचना, निन्दा, बदनामी, रुस्वाई; तिरस्कार, जि़ल्लत, बेइज़्ज़ती।
मजस [स्स] (अ़.स्त्री.)-शरीर का वह हिस्सा जहाँ नब्ज़ की चाल देखने के लिए उँगलियाँ रखी जाती हैं, नब्ज़ पर हाथ रखने की जगह। दे.-'मिजसÓ, दोनों शुद्घ हैं।
मज़ा (अ़.क्रि.)-बीता हुआ, जो गुजऱ गया हो; बीता, गुजऱा, गत।
मज़ाक़ (अ़.पु.)-मनोविनोद, तफ्ऱीह; दिल्लगी, परिहास; सुरुचि; सहृदयता; ज़ौ$क, रसिकता।
मज़ाकऩ (अ़.अव्य.)-मज़ाक़ के तौर पर, परिहास के रूप में, दिल्लगी में।
मज़ाक़पसंद (अ़.$फा.वि.)-परिहासप्रिय, जिसके स्वभाव में विनोदप्रियता बहुत हो, दिल्लगीबाज़, प्रमोदशील, विनोदी।
मज़ा$िकय: (अ़.वि.)-परिहासपूर्ण, विनोदी स्वभाववाला, पुरमज़ा$क, दिल्लगीबाज़, रसिक प्रकृतिवाला।
मज़ाक़े अदब (अ़.पु.)-साहित्य-रसिकता।
मज़ाक़े शेÓर (अ़.पु.)-काव्य-रसिकता।
मज़ाक़े सुख़्ान (अ़.$फा.पु.)-दे.-'मज़ाक़े शे'रÓ।
मजाज़ (अ़.पु.)-भ्रम, धोखा; लक्षण; जो वास्तविक न हो; ईश्वर के अतिरिक्त सारा संसार।
मजाजऩ (अ़.अव्य.)-लाक्षणिक अर्थ में।
मजाज़ी (अ़.वि.)-जो ह$की$की न हो, भौतिक।
मजाज़ीब (अ़.पु.)-'मज्ज़ूबÓका बहु., मज्ज़ूब लोग, वे लोग जो ब्रह्मïज्ञान से परिचित हों, ब्रह्मïज्ञानी लोग।
मजानीन (अ़.पु.)-'मज्नूनÓ का बहु., पागल लोग।
मज़ा मा मज़ा (अ़.वा.)-जो हो चुका सो हो चुका।
मज़ामीन (अ़.पु.)-'मज़्मूनÓ का बहु., लेख-समूह।
मज़ामीर (अ़.पु.)-बाँसुरियाँ, बंसियाँ, वंशियाँ; बजानेवाले सब बाजे। 'मिज़्मारÓ का बहु.।
मज़ार ($फा.पु.)-किसी पीर-$फ$कीर की $कब्र या समाधि; दर्शन का स्थान।
मज़ार [र्र] (अ़.पु.)-घाटे, हानियाँ, टोटे, नुक़्सानात।
मज़ारात (अ़.पु.)-'मज़ारÓ का बहु., बुज़ुर्गों अथवा पीर-$फ$कीरों के मज़ार या समाधियाँ।
मजारी (अ़.पु.)-निकलने के स्थान; चालू रास्ते; 'मज्राÓ का बहु.।
मजाल (अ़.स्त्री.)-ता$कत, बल, शक्ति; हैसियत, सामथ्र्य; साहस, हिम्मत, दम।
मज़ालिम (अ़.पु.)-अन्याय, अत्याचार, ज़ुल्म, जिय़ादतियाँ। 'मज़्लम:Ó का बहु.।
मजालिस (अ़.स्त्री.)-सभाएँ, गोष्ठियाँ; मुहर्रम की मज्लिसें। 'मज्लिसÓ का बहु.।
मजाले दमज़दन (अ़.$फा.स्त्री.)-दम मारने का साहस, उ$फ करने की शक्ति।
मजाले सुख़्ान (अ़.$फा.स्त्री.)-वार्तालाप का साहस, बात करने की शक्ति।
मज़ाहिब (अ़.पु.)-'मज़्हबÓ का बहु., धर्म-समूह, धार्मिक आस्थाएँ।
मज़ाहिर (अ़.पु.)-प्रकट होने के स्थान, 'मज़्हरÓ का बहु.।
मजि़न्न: (अ़.पु.)-संदेहपात्र, जिस पर शक किया जा सके, शंका का स्थान।
मजि़ल्लत (अ़.स्त्री.)-फिसलन, फिसलने की क्रिया या भाव। इसका 'जि़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
मजि़ल्लत (अ़.स्त्री.)-भूल-भुलैया, रस्ता भटकने का स्थान, वह स्थान जहाँ रास्ता गुम हो गया हो।
मज़ी (अ़.स्त्री.)-एक लेस जो कामवेग के समय निकलता है।
मजीद (अ़.वि.)-पूज्य, मान्य, प्रतिष्ठित।
मज़ीद (अ़.वि.)-अधिक, जिय़ादा; और भी; अतिरिक्त, $फालतू।
मज़ीदअ़लैह (अ़.वि.)-जोड़ा हुआ, बढ़ाया हुआ; जिस पर कुछ बढ़ाया हो।
मज़ीदबराँ (अ़.$फा.वि.)-इसके अतिरिक्त, इसके अलावा।
मजीदी (अ़.स्त्री.)-अऱब का एक सिक्का।
मजूस (अ़.पु.)-अग्निपूजक लोग, आतशपरस्त लोग, पार्सी लोग; चाँद और सूरज को पूजनेवाले।
मज़्ऊम (अ़.वि.)-सोचा हुआ, विचारा हुआ।
मज़्कूर: (अ़.वि.)-कही हुई, कही हुई बात।
मज़्कूर (अ़.वि.)-कहा हुआ; चर्चा, जि़क्र।
मज़्कूरएबाला (अ़.$फा.वि.)-उपर्युक्त, पूर्वोक्त, जिसका जि़क्र पहले किया जा चुका हो।
मज़्कूरए सद्र (अ़.वि.)-उपर्युक्त, पूर्वोक्त, जिसकी चर्चा ऊपर या पहले हो चुकी हो।
मज़्कूरी (अ़.पु.)-चपरासी, पियादा, अदालती सम्मन आदि की ताÓमील करनेवाला चपरासी।
मज़्ग़ (अ़.पु.)-चबाना, चर्वण करना।
मज्ज़ूब (अ़.वि.)-ब्रह्मïज्ञानी, वह $फ$कीर जो देखनेवालों की दृष्टि में बावला या पागल हो परन्तु ब्रह्मïलीन हो, सिद्घजन।
मज्ज़ूबसि$फत (अ़.वि.)-जिसमें ब्रह्मïज्ञानियों-जैसी बातें हों, जिसमें सिद्घ-पुरुषों-जैसी बात हो।
मज्ज़ूबान: (अ़.$फा.अव्य.)-ब्रह्मïज्ञानियों-जैसा, सिद्घ-पुरुषों की तरह, $फ$कीरों-जैसा (काम आदि)।
मज्ज़ूबियत (अ़.स्त्री.)-तन्मयता, तल्लीनता, सिद्घता का भाव।
मज्ज़ूम (अ़.वि.)-जिसे कोढ़ हो, कुष्ठी, कोढ़ी।
मज्ज़ूम (अ़.वि.)-निश्चित, य$कीनी; विच्छिन्न, काटा हुआ; हलन्त, वह अक्षर जिस पर 'जज़्मÓ हो, हल्।
मज्ज़ूर (अ़.वि.)-घात, गुणनफल, वह संख्या जो दो संख्याओं के गुणन से प्राप्त हो, हासिले ज़र्ब।
मज़्जूर (अ़.वि.)-जिसे डाँटा गया हो, जिसे झिड़कियाँ दी गई हों, जिसे डपट लगाई गई हो।
मज्द (अ़.पु.)-श्रेष्ठता, पवित्रता, पुनीतता, बुज़ुर्गी।
मज्दूद (अ़.पु.)-श्रेष्ठजन, पुनीतात्मा, बुज़ुर्ग।
मज़्दूर (अ़.$फा.पु.)-जो जीविका कमाने के लिए श्रम या मेहनत करे, मज़दूरी करनेवाला, श्रमिक।
मज़्दूरी ($फा.स्त्री.)-हाथ-पाँव की मेहनत से जीविका पैदा करना, श्रम, मेहनत।
मज्नूँ (अ़.वि.)-विक्षिप्त, पागल, वातुल।
मज़्नून (अ़.वि.)-जिसकी तर$फ किसी बात का संदेह या शक हो।
मज़्बल: (अ़.पु.)-कचराघर, डलाव, वह स्थान जहाँ कूड़ा-करकट और मैला-कचरा आदि डाला जाए।
मज़्बल:ख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-गंदगी डालने का स्थान (इसमें 'ख़्ाान:Ó अधिक है, क्योंकि 'मज़्बल:Ó में स्थान का अर्थ मौजूद है)।
मज़्बह (अ़.पु.)-वधभूमि, वध-स्थल, $कत्लगाह, वह स्थान जहाँ वध या जब्ह किया जाए।
मज़्बूत (अ़.वि.)-दृढ़, पक्का; निश्चित, य$कीनी; ता$कतवर, शक्तिशाली; स्थायी, देरपा; तगड़ा, अधिक ज़ोरवाला।
मज़्बूती (अ़.स्त्री.)-दृढ़ता, पक्कापन; निश्चय, य$कीन; शक्ति, ज़ोर; तगड़ापन; स्थायित्व।
मज्बूर (अ़.वि.)-लाचार, विवश; बाध्य, पाबंद; नि:सहाय, निराश्रय; कंगाल, दरिन्द्र।
मज़्बूर (अ़.वि.)-कहा हुआ, उक्त; लिखा हुआ, उल्लखित; प्रोक्त; कथित।
मज्बूरन (अ़.अव्य.)-बाध्य होकर, लाचार होकर, विवश होकर, विवशतापूर्वक, लाचारी से; अन्तत:, आख़्िारकार।
मज्बूरी (अ़.वि.)-बाध्यता, विवशता, लाचारी; नि:सहायता, बेकसी।
मज्बूल (अ़.वि.)-स्वाभाविक, प्राकृतिक, $िफत्री; प्रकृति द्वारा उत्पन्न किया हुआ।
मज़्बूह (अ़.वि.)-जिसका वध कर दिया गया हो, वधित, जब्ह किया हुआ, $कत्ल किया हुआ।
मज्मउलउलमा (अ़.पु.)-विद्वानों की गोष्ठी, सत्संग।
मज्मउलजज़ाइर (अ़.पु.)-द्वीपसमूह, समुद्र का वह स्थान जहाँ पास-पास बहुत-से द्वीप हों।
मज्मए अ़ाम (अ़.पु.)-जनसाधारण का समूह, साधारण लोगों का जमाव, अ़ाम लोगों की भीड़।
मज्मए ख़्िालाफ़े $कानून (अ़.पु.)-अवैध जमावड़ा, ऐसे लोगों का जमाव या भीड़, जिनसे नियम-भंग होने की आशंका हो।
मज़्मज़: (अ़.पु.)-कुल्ला करना, आचमन; दचाओं के पानी से आचमन करना।
मज्माÓ (अ़.पु.)-जमावड़ा, जमाव, भीड़; सभा, गोष्ठी।
मज्मूअ़: (अ़.पु.)-अनेक वस्तुओं का समूह, समाहार, समष्टि; लेखों या कविताओं का संकलन, संग्रह।
मज्मूअ़ (अ़.वि.)-एकत्र, इकट्ठा; कुल, समस्त, सारा का सारा।
मज्मूई (अ़.वि.)-सबकी, सामूहिक, कुल मिलाकर।
मज़्मून (अ़.पु.)-विषय, सब्जेक्ट; निबंध, म$काल:; लेख; मुअ़ामला, दशा।
मज़्मूननवीस (अ़.$फा.वि.)-लेखक; निबंधकार।
मज़्मूननवीसी (अ़.$फा.स्त्री.)-लेख या निबंध लिखने का काम।
मज़्मूननिगार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मज़्मूननवीसÓ।
मज़्मूननिगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मज़्मूननवीसीÓ।
मज़्मूम (अ़.वि.)-वह अक्षर जिस पर 'पेशÓ अर्थात् 'उÓ की मात्रा हो। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
मज़्मूम (अ़.वि.)-अश्लील, फूहड़, $फुह्श; दूषित, ख़्ाराब; निन्दित, निन्दनीय, $कबीह।
मज्रऱए आख़्िारत (अ़.पु.)-परलोक की खेती अर्थात् पाप और पुण्य।
मज्रा (अ़.पु.)-उद्गम-स्थल, जारी होने की जगह, बहने का स्थान।
मज्ऱाÓ (अ़.पु.)-कृषि-भूमि, खेत, खेती; छोटा गाँव।
मज़्रूअ़: (अ़.स्त्री.)-जोती-बोयी हुई भूमि, जोता-बोया हुआ खेत।
मज़्रूअ़ (अ़.वि.)-जोता-बोया हुआ।
मज़्रूब (अ़.वि.)-जिसकी पिटाई की गई हो, जो पिटा हो; जिसे दुश्मनी में मारा गया हो; जिस संख्या को गुणा किया गया हो।
मज़्रूब$फीहि (अ़.पु.)-गुध्य, वह संख्या जिसमें गुणा किया गया हो, जैसे-दस को दो से गुणा किया गया हो तो उसमें दस 'मज़्रूब$फीहिÓ है।
मज़्रूबमिन्हु (अ़.पु.)-गुणक, जिस संख्या से गुणा किया जाए, जैसे दस का दो से गुणा किया गया हो तो इसमें दो 'मज़्रूबमिन्हुÓ है।
मज़्रू$फ (अ़.पु.)-पात्र में रखी हुई चस्तु, वह वस्तु जो बरतन में हो।
मज़्रूर (अ़.वि.)-वह अक्षर जिस पर 'ज़ेरÓ अर्थात् 'इÓ की मात्रा हो।
मज्रूह (अ़.वि.)-घायत, ज़ख़्मी, क्षत, आहत; न्यायशास्त्र के अनुसार वह बयान जो बहस या जिरह में बिगड़ गया हो।
मज्रूहीन (अ़.पु.)-'मज्रूहÓ का बहु., बहुत-से घायल।
मजि़्लम: (अ़.पु.)-न्याय-याचना; अत्याचार और अनीति का अपराध या पाप।
मजि़्लम (अ़.पु.)-अँधेरी जगह, चह स्थान जहाँ अँधियारा हो, अंधकारमय-स्थल।
मज्लिस (अ़.स्त्री.)-गोष्ठि, मह$िफल; सभा, अंजुमन; संघ, एसोसीएशन; समिति, कमेटी; करबला के शहीदों की शोक-सभा।
मज्लिसी (अ़.वि.)-गोष्ठिबाज़, मह$िफल का शौ$कीन अथवा अभिलाषी, जो मज्लिस अथवा सभा में सम्मिलित हो।
मज्लिसे अदब (अ़.स्त्री.)-साहित्यिक गोष्ठी, संगोष्ठि।
मज्लिसे अ़ामिल: (अ़.स्त्री.)-कार्यकारिणी समिति, विषय निर्वाचनी कमेटी।
मज्लिसे उदबा (अ़.स्त्री.)-काव्य-गोष्ठी, साहित्यिकगोष्ठी।
मज्लिसे उ़मूमी (अ़.स्त्री.)-सार्वजनिक सभा, अ़ाम लोगों की सभा।
मज्लिसे $कानूनसाज़ (अ़.$फा.स्त्री.)-विधानसभा, $कानून बनानेवाली सभा।
मज्लिसे तह$की$कात (अ़.स्त्री.)-जाँच-समिति, परिपृच्छा समिति।
मज्लिसे ताÓमीरात (अ़.स्त्री.)-लोक-निर्माण समिति।
मज्लिसे मातम (अ़.$फा.स्त्री.)-शोक-सभा।
मज्लिसे मुंतजि़म: (अ़.स्त्री.)-व्यवस्थापिका, प्रबंधसमिति।
मज्लिसे मै (अ़.$फा.स्त्री.)-मदिरा-गोष्ठी, पानगोष्ठी, शराब की मह$िफल।
मज्लिसे रक़्सो सरोद (अ़.$फा.स्त्री.)-नृत्य-संगीत सभा, नाच-रंग की मह$िफल।
मज्लिसे वाÓज़ (अ़.स्त्री.)-उपदेश-सभा, धर्मोपदेश-सभा, धार्मिक समागम।
मज्लिसे शुअऱा (अ़.स्त्री.)-कवि-गोष्ठी।
मज्लिसे शूरा (अ़.स्त्री.)-मंत्रणालय।
मज्लिसे शेÓर (अ़.स्त्री.)-काव्य-गोष्ठी, कवि-गोष्ठी।
मज्लिसे सुख़्ान (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मज्लिसे शेÓरÓ।
मज़्लूम (अ़.वि.)-जिस पर ज़ुल्म या अत्याचार हुआ हो।
मज़्लूमियत (अ़.स्त्री.)-मज़्लूम या पीडि़त होने का भाव।
मज़्लूमी (अ़.वि.)-दे.-'मज़्लूमियतÓ।
मज़्हक: (अ़.पु.)-हँसी-ठट्टा, हास-परिहास; निन्दा, हज़ो, रुस्वाई, बदनामी।
मज़्हक:अंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-हास्यस्पद, जो परिहास का विषय हो, जिस पर हँसी आए।
मज़्हक:आमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जिसमें हँसी-ठठोल शामिल हो, परिहासपूर्ण।
मज़्हक:ख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मज़्हक:अंगेज़Ó।
मज़्हब (अ़.पु.)-धर्म, दीन, मत, अ़$कीद:, श्रद्घा।
मज़्हबी (अ़.वि.)-धार्मिक, दीनी, धर्म-सम्बन्धी।
मज़्हबीयत (अ़.स्त्री.)-धार्मिकता, धर्म में निष्ठा
मज़्हर (अ़.पु.)-प्रकट होने का स्थान, जहाँ या जिसमें कोई चीज़ प्रकट हो।
मज़्हरुल अज़ाइब (अ़.पु.)-वह स्थान जहाँ कुछ चमत्कार हो, अनोखी, अद्भुत और विचित्र बातें प्रकट होने का स्थान।
मज्हूल (अ़.वि.)-अज्ञात, जो ज्ञात न हो, जिसके बारे में कोई जानकारी न हो; सुस्त, आलसी, काहिल।
मज्हूलुन्नसब (अ़.वि.)-जिसके वंश अथवा ख़्ाानदान के बारे में कुछ अता-पता न हो, अज्ञात-कुल।
मज्हूलुलइस्म (अ़.वि.)-जिसके नाम का पता न हो, अज्ञात-नाम।
मज्हूलुलहाल (अ़.वि.)-जिसके स्वभाव और हाल-दशा की जानकारी न हो कि वह कैसा और किस प्रकार का व्यक्ति है, अज्ञात-शील।
मत: ($फा.पु.)-छेद करने का बढ़ई का बरमा।
मतब (अ़.पु.)-चिकित्सालय, अस्पताल, वह स्थान जहाँ चिकित्सक रोगियों के रोग का निदान करता है, स्वास्थ्य जाँच-कक्ष।
मतर (अ़.पु.)-बरखा, बारिश, वर्षा, बरसात, मेघजल।
मताअ़ (अ़.उभ.)-पूँजी, सरमाया; सामान, माल-अस्बाब।
मताइन (अ़.पु.)-'ताÓन:Ó का बहु., ताÓने, शिकायतें, उलाहने।
मताइब (अ़.पु.)-'तअ़बÓ का बहु., कष्टसमूह, दु:खसमूह, रंजो$गम; थकान।
मताए आख़्िारत (अ़.उभ.)-परलोक के लिए पूँजी, पुण्य, सद्कर्म, अच्छे काम।
मताए दिल (अ़.$फा.उभ.)-हृदयरूपी पूँजी, दिलरूपी सरमाया।
मताए दो (दु) जहाँ (अ़.$फा.उभ.)-इहलोक और परलोक अर्थात् दुनिया और देवलोक दोनों लोगों की पूँजी, पुण्यकर्म, यश, नेकियाँ।
मतानत (अ़.स्त्री.)-धीरता, गंभीरता, संजीदगी।
मता$फ (अ़.पु.)-वह स्थान जहाँ परिक्रमा की जाए, परिक्रमा करने का स्थान, परिक्रमा-स्थल।
मताब (अ़.पु.)-गूँज, प्रतिध्वनि।
मताबेÓ (अ़.पु.)-'मत्बाÓ का बहु., छापाख़्ााना-समूह, अनेक मुद्रणालय।
मतार (अ़.पु.)-उडऩे की जगह, जहाँ उड़ा जाए, जहाँ से उड़ा जाए।
मतालिब (अ़.पु.)-'मत्लबÓ का बहु., अनेक अर्थ, अर्थ-समूह।
मतीन (अ़.वि.)-जिसमें मतानत अथवा गंभीरता हो, गंभीर, धीर, संजीदा, शान्तचित्त।
मतीर (अ़.वि.)-बरसनेवाला (मेघ, बादल)।
मत्ऊन (अ़.वि.)-बदनाम, कुख्यात; रुस्वा, कुत्सित, निन्दित, गर्हित।
मत्ऊने ख़्ालाइ$क (अ़.वि.)-जो सबमें बदनाम हो, लोक-निन्दित।
मत्ऊब (अ़.वि.)-परेशान किया हुआ, सताया हुआ।
मत्ऊम (अ़.वि.)-जो चीज़ खाई जाए, खाने की वस्तु, खाद्य -सामग्री।
मत्ऊमात (अ़.पु.)-'मत्ऊमÓ का बहु., खाने की चीजें, खाद्य
-सामग्रियाँ, खाद्य-पदार्थ।
मत्न (अ़.पु.)-पुस्तक का मूल लेख जिसकी टीका की जाए; बीच, मध्य; शाल या रजाई आदि का वह भाग जो हाशिए के बीच में होता है।
मत्बख़्ा (अ़.पु.)-रसोईघर, वह स्थान जहाँ खाना तैयार किया जाए, पाकशाला, महानस, बावरचीख़्ााना।
मत्बख़्ाी (अ़.वि.)-बावरची, रसोइया, सूपकार।
मत्बाÓ (अ़.पु.)-मुद्रणशाला, मुद्रणालय, यंत्रालय, वह स्थान जहाँ पुस्तकें आदि छापी जाती हैं।
मत्बूअ़: (अ़.वि.)-मुद्रित, छपी हुई।
मत्बूअ़ (अ़.वि.)-अनुकरणीय, जिसका अनुकरण किया जाए, अनुसरणीय। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
मत्बूअ़ (अ़.पु.)-किसी प्रेस या कार्यालय की ओर से छापी हुई पुस्तकें। इसका 'त्Ó उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
मत्बूअ़ात (अ़.वि.)-मुद्रित, छपा हुआ; रुचिकर, पसंदीद:, मनभावन, मनोवांछित।
मत्बूख़्ा (अ़.वि.)-आग पर पकी हुई चीज़; जोश दी हुई दवा, जोशांदा, क्वाथ, काढ़ा।
मत्मह (अ़.पु.)-ऊँचा स्थान जिस पर दृष्टि पड़े, दृष्टि पडऩे की जगह।
मत्महे नजऱ (अ़.पु.)-दृष्टि पडऩे की ऊँची जगह; आशय, उद्देश्य, मक़्सद।
मत्रद (अ़.वि.)-बहिष्कृत, निकाला हुआ, भगाया हुआ।
मत्रूक (अ़.वि.)-छोड़ा हुआ, परित्यक्त।
मत्लब (अ़.वि.)-प्रयोजन, वास्ता; आशय, उद्देश्य, मंशा, मक़्सद; इच्छा, ख़्वाहिश; स्वार्थ, $गरज़। 'मत्लब ही कोई ख़्ाास है वर्ना मिरे लिए, इतनी भी क्यों उदास है दुनिया मिरे लिएÓ-माँझी
मत्लबआश्ना (अ़.$फा.वि.)-मत्लबी, स्वार्थी, ख़्ाुद$गरज़।
मत्लबदोस्त (अ़.$फा.वि.)-स्वार्थी, स्वार्थपरायण, अपनी $गरज़ पूरी करनेवाला।
मत्लबपरस्त (अ़.$फा.वि.)-स्वार्थसाधक, अपना मत्लब निकालनेवाला, स्वार्थी।
मत्लबपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वार्थपरायणता, अपनी $गरज़ पूरी करना, अपना मत्लब निकालना।
मत्लबबरारी (अ़.$फा.स्त्री.)-मत्लब निकालना, स्वार्थ सिद्घ करना, $गरज़ पूरी करना।
मत्लबी (अ़.वि.)-मत्लबपरस्त, अपना काम निकालनेवाला, स्वार्थपरायण, अपनी $गरज़ पूरन्ी करनेवाला, स्वार्थी।
मत्लाÓ (अ़.पु.)-$गज़ल का पहला शेÓर जिसमें दोनों मिस्रे सानुप्रास होते हैं, जैसे-'हालात अगर ठीक न हों तो ख़्ाुद को सँभालें, बेकार ही कुछ लोग तमाशा न बना लेंÓ-माँझी
मत्लूब: (अ़.वि.)-पे्रमिका; वाँछित वस्तु।
मत्लूब (अ़.वि.)-मनोवाँछित, जिसकी चाहत हो, जिसकी इच्छा की जाए; प्रेमपात्र, माÓशू$क, प्रेमिका।
मत्वी (अ़.वि.)-लिपटा हुआ।
मत्हूल (अ़.वि.)-जिसे तिल्ली का रोग हो, जिसकी तिल्ली बढ़ गई हो।
मद [द्द] (अ़.पु.)-उर्दू में 'अलि$फÓ के ऊपर बनाई जाने-वाली लकीर जिससे वह लम्बा करके पढ़ा जाए; समुद्र के पानी का चढ़ाव, ज्वार, (स्त्री.)-वह लम्बी लकीर जो बही में खींचकर उसके नीचे विभिन्न रक़्में लिखते हैं, जैसे-'ख़्ार्चÓ की मद, पेटा।
मदद (अ़.स्त्री.)-सहयोग, सहायता, इम्दाद; आश्रय, सहारा; पक्षपात, हिमायत; राज-मज़दूरों का काम।
मददख़्वाह (अ़.$फा.वि.)-मदद चाहनेवाला, सहायता माँगनेवाला।
मददगार (अ़.$फा.वि.)-मदद करनेवाला, सहायता करन ेवाला, सहायक; पक्षपाती, तर$फदार; पृष्ठपोषक, हिमायती; सहारा देनेवाला, आश्रयदाता।
मददख़्ार्च (अ़.$फा.वि.)-वह धन-राशि जो सहायता के रूप में ख़्ार्च करने को दी जाए।
मददे मअ़ाश (अ़.स्त्री.)-जीवन-यापन अथवा गुज़ारे के लिए सहायता; वज़ी$फा; वह जागीर जो गुज़ारे के लिए दी जाए।
मदनी (अ़.वि.)-मदीने का निवासी; नागरिक, नगर या शहर में रहनेवाला, शहरी।
मदनीउत्तब्अ़ (अ़.वि.)-वह जो अनेक लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने का अभ्यस्त हो।
मदाएह (अ़.पु.)-'मदीह:Óका बहु., प्रशंसाएँ, तारी$फें।
मदाख़्िाल (अ़.पु.)-प्राप्तियाँ, आमदनियाँ; लगान; 'मद्ख़्ालÓ का बहु.।
मदार (अ़.पु.)-धुरी, कीली; निर्भरता।
मदारअ़लैह (अ़.पु.)-जिस पर कोई चीज़ निर्भर हो, आधार वस्तु, आधेय।
मदारिज (अ़.पु.)-'मद्रज:Ó का बहु., पद, दर्जे, रुत्बे।
मदारिस (अ़.पु.)-पाठशालाएँ, 'मद्रस:Ó का बहु.।
मदारुलमहाम (अ़.पु.)-प्रधानमंत्री, वज़ीरे आÓज़म।
मदारे कार (अ़.$फा.पु.)-कार्यभार, कार्य की निर्भरता।
मदारे ज़ीस्त (अ़.$फा.पु.)-जीवन की निर्भरता, जि़न्दगी का इन्हिसार।
मदाल (अ़.पु.)-तम्$गा, पदक, प्रतीक-चिह्नï।
मदीद (अ़.वि.)-दीर्घ, लम्बा; दे.-'बह्रïे मदीदÓ।
मदीन: (अ़.वि.)-नगर, शहर; अऱब का एक प्रसिद्घ नगर, मदीना।
मदीह (अ़.वि.)-प्रशंसा, तारी$फ, स्तुति, हम्दोसना।
मद्ऊ़ (अ़.वि.)-आमंत्रित, निमंत्रित, बुलाया हुआ; दाÓवत या किसी सभा-गोष्ठि में आमंत्रित।
मद्$कू$क: (अ़.वि.)-वह स्त्री जिसे तपेदि$क की बीमारी हो, तपेदि$क की रोगिणी।
मद्$कू$क (अ़.वि.)-वह आदमी जिसे तपेदि$क की बीमारी हो, तपेदि$क का रोगी।
मद्ख़्ान: (अ़.स्त्री.)-चिमनी, धुआँ निकलने का स्थान।
मद्ख़्ाल (अ़.वि.)-दाख़्िाल होने या प्रवेश करने का स्थान, प्रवेशद्वार; आय, आमदनी।
मद्ख़्ाूल: (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री जो घर में डाल ली गई हो, बिना शादी के घर में पत्नी की तरह रखी हुई स्त्री, रख़्ौल, उपपत्नी।
मद्ख़्ाूल (अ़.वि.)-प्रविष्ट किया हुआ, दाख़्िाल किया हुआ, भीतर किया हुआ।
मद्दजि़ल्लुहू (अ़.वा.)-उनकी परछाईं लम्बी हो अर्थात् उनकी आयु लम्बी हो, वे दीर्घायु हों।
मद्दाह (अ़.वि.)-प्रशंसा करनेवाला, प्रशंसक, श्लाघी, जो किसी की ताÓरी$फ करे; गुणगान करनेवाला, हम्दोसना करने-वाला, स्तुतिकर्ता।
मद्दाही (अ़.स्त्री.)-श्लाघा, प्रशंसा, ताÓरी$फ; स्तुति, वन्दना, गुणगान, हम्दोसना।
मद्दाहे रसूल (अ़.वि.)-रसूल (अवतार या ईश-दूत) की प्रशंसा और स्तुति करनेवाला; नाÓत लिखनेवाला, नाÓत गो शाइर।
मद्देअमानत (अ़.स्त्री.)-धरोहर की मद का, धरोहर के तौर पर।
मद्देनजऱ (अ़.वि.)-जो नजऱ अथवा दृष्टि के सामने हो, दृष्टिगत; मनोवाँछित, दिली मक़्सूद; चित्त पर चढ़ा हुआ, मन में बसा हुआ।
मद्दे फ़ाजि़ल (अ़.स्त्री.)-$फालतू मद, व्यर्थ, निष्प्रयोजन।
मद्दे मु$काबिल (अ़.पु.)-प्रतिद्वंद्वी, र$कीब; बराबर का जोड़, बराबर की टक्कर, बराबर की चोट; विपक्ष, हरी$फ; शत्रु, दुश्मन।
मद्दे सुर्म: (अ़.$फा.स्त्री.)-सुरमे या काजल की लकीर जो कनपटी की ओर खींच दी जाती है।
मद्देजज्ऱ (अ़.पु.)-समुद्र के पानी का चढ़ाव-उतार, ज्वार-भाटा।
मद्फऩ (अ़.पु.)-मुर्दे को दफ्ऩाने की जगह, समाधि, $कब्र। (वि.)-ज़मीन में गाड़ा हुआ, दफ्ऩ किया हुआ (आदमी या धन आदि); गुप्त, गुह्य, पोशीदा।
मद्$फूअ़ (अ़.वि.)-दफ़्अ़ किया हुआ, निवारित, जो हटाया गया हो; भगाया हुआ, हटाया हुआ।
मद्बू$ग (अ़.वि.)-कमाया हुआ चमड़ा।
मद्यून (अ़.वि.)-$कजऱ्दार, ऋणी, अधमर्ण।
मद्रिस: (अ़.पु.)-पढऩे-पढ़ाने का स्थान, पाठशाला, जहाँ शिक्षा का आदान-प्रदान हो, विद्यालय।
मद्रुस (अ़.वि.)-पागल; पुरानी वस्तु।
मद्लूल (अ़.वि.)-जिसके लिए तर्क दिया गया हो, तर्कित।
मद्ह (अ़.स्त्री.)-$श्लाघा, प्रशंसा, तारी$फ; स्तुति, वन्दना, गुणगान, हम्दोसना।
मद्हख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-तारी$फ करनेवाला, प्रशंसक, मद्दाह।
मद्हख़्वानी (अ़.$फा.स्त्री.)-ताÓरी$फ करना, प्रशंसा करना।
मद्हगो (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मद्हख़्वाँÓ।
मद्हगोई (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मद्हख़्वानीÓ।
मद्हसंज (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मद्हख़्वाँÓ।
मद्हसरा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मद्हख़्वाँÓ।
मद्हसराई (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मद्हख़्वानीÓ।
मद्हून (अ़.वि.)-तेल लगाया हुआ, गीला।
मद्हूश (अ़.वि.)-दे.-'मद्होशÓ, उर्दू में वही प्रचलित है।
मद्हे बेजा (अ़.$फा.स्त्री.)-$गलत ताÓरी$फ, झूठी प्रशंसा।
मद्हे वा$िकई (अ़.स्त्री.)-सच्ची ताÓरी$फ, सच्ची प्रशंसा।
मद्होश ($फा.वि.)-उन्मत्त, नशे में चूर, अंटा$ग$फील; बेसुध, निश्चेष्ट, ग़ा$िफल, संज्ञाहीन।
मद्होशी ($फा.स्त्री.)-संज्ञाहीनता, निश्चेष्टता, बेसुधपन, होश का न रहना; मतवालापन, उन्मत्तता।
मन ($फा.पु.)-दो रतल का एक प्रमाण; सेर; चालीस सेर का प्रमाण; (सर्व.)-मैं, अहम्।
मन [न्न] (अ़.पु.)-कौन; एक प्रकार का मीठा पदार्थ जो पौधों पर जम जाता है और खाया जाता है, शीर ख़्िाश्त।
मनस्स: (अ़.पु.)-प्रकट होने का स्थान, जलव:गाह; वह मंच अथवा स्टेज जहाँ शादी के पश्चात् वर-वधू को बिठाकर सबको दिखाते हैं।
मनस्सए शुहूद (अ़.पु.)-वह स्थान जहाँ ईश्वर की महिमा प्रकट हो।
मनाइर (अ़.पु.)-'मनार:Ó का बहु., मीनारें, ऊँचे खम्भे।
मना$िकब (अ़.पु.)-धार्मिक महात्माओं के यशोगान, स्तुतियाँ, 'मन्क़बतÓ का बहु.।
मनाजिऱ (अ़.पु.)-'मंजऱÓ का बहु., अनेक दृश्य, दृश्य-समूह।
मनाजि़ल (अ़.स्त्री.)-'मंजि़लÓ का बहु., पड़ाव, मंजि़लें, मरहले, लक्ष्य-स्थल।
मनाजि़ले $कमर (अ़.स्त्री.)-नक्षत्र, जिनकी संख्या 27 मानी गई है। 1.-अश्विनी (शुतैन-नत्ह), 2.-भरणी (बुतैन),
3.-कृत्तिका (सुरैया), 4.-रोहिणी (दबरान), 5.-मृगशिरा (ह$कअ़:), 6.-आद्र्रा (हनअ़:), 7.-पुनर्वसु (जिऱाअ़),
8.-पुष्य (नस्र:), 9.-श्लेषा (त$र्फ:), 10.-मघा (जब्ह:), 11.-पूर्वा फाल्गुनी (ज़ुब्र:), 12.-उत्तरा फाल्गुनी (स$र्फ:), 13.-हस्त (अ़व्वा), 14.-चित्रा (सिमाक), 15.-स्वाती (अ$फर:), 16.-विशाखा (ज़ुबाना), 17.-अनुराधा (इक़्लील), 18.-ज्येष्ठा ($कल्ब), 19.-मूल (शौल:), 20.-पूर्वाषाढ़ा (नअ़ाइम), 21.-उत्तराषाढ़ा (बल्द:), 22.-श्रवण (साÓदेज़ाबेह), 23.-घनिष्ठा (बुलाÓ), 24.-शतभिषा (आव्बिय:), 25.-पूर्वा भाद्रपद (सऊद), 26.-उत्तरा भाद्रपद (मु$कद्दम), 27.-रेवती (मुअख़्ख़्ार); कुछ लोग इन नक्षत्रों की संख्या 28 मानते हैं और उसका नाम 'अभिजितÓ (बैतुलहूत) बताते हैं।
मनात (अ़.पु.)-अऱब की एक प्रतिष्ठित मूर्ति, जो इस्लाम धर्म से पहले वहाँ पूजी जाती थी।
मनादील (अ़.पु.)-'मिंदीलÓ का बहु., सिर पर बाँधने के रूमाल; कमर से बाँधने के पटके।
मना$िफज़ (अ़.पु.)-'मन्फज़़ का बहु., छेद, सूराख़्ा, छिद्र-समूह।
मना$फेÓ (अ़.पु.)-'मन्$फअ़तÓ का बहु., लाभ, प्राप्तियाँ, न$फेÓ, $फाइदे।
मनाब (अ़.पु.)-खड़े होने का स्थान; किसी दूसरे के स्थान पर खड़ा होना, स्थानापन्नता।
मनाबिर (अ़.पु.)-'मिंबरÓ का बहु., बहुत-से मिंबर, मिंबर -समूह (मस्जिद में वह ऊँचा स्थान जहाँ खड़ा होकर इमाम $कुरान की आयतें पढ़ता है)।
मनाम (अ़.पु.)-शयनकक्ष, सोने का स्थान, शयनागार; सोना, स्वाप।
मनार: (अ़.पु.)-मीनार, बहुत ऊँचा खम्भा; दीपस्तंभ, रौशनी का मीनार।
मनार (अ़.पु.)-दे.-'मनार:Ó।
मनाल (अ़.पु.)-धन, सम्पत्ति, र$कम, जायदाद।
मनास (अ़.पु.)-भागने का स्थान।
मनासिक (अ़.पु.)-'मंसकÓ का बहु., हाजियों की इबादत की जगहें; वे कृतियाँ और संस्कार जो हज करनेवालों को मक्का में करने पड़ते हैं।
मनासिब (अ़.पु.)-पदवियाँ, दर्जे, 'मंसबÓ का बहु.।
मनाहिज (अ़.पु.)-रास्ते, मार्ग, खुले हुए और सीधे रास्ते, 'मिन्हजÓ और 'मिन्हाजÓ का बहु.।
मनाही (अ़.पु.)-वह काम जिसे करने से धर्म में रोका गया हो, वर्जित-कार्य, 'मन्हीÓ का बहु.।
मनिश ($फा.स्त्री.)-प्रकृति, स्वभाव, तबीअ़त।
मनी (अ़.स्त्री.)-वीर्य, शुक्र, धातु।
मनी ($फा.वि.)-अपनापन, ममत्व, मेरापन; अभिमान, ख़्ाुदी, अहंकार।
मनीअ़ (अ़.वि.)-हटानेवाला, रोकनेवाला; पक्का, मज़बूत, दृढ़।
मनीयत (अ़.स्त्री.)-मृत्यु, मरण, मौत।
मनूब (अ़.वि.)-जिसका प्रतिनिधित्व किया जाए।
मनूबअऩ्हु (अ़.वि.)-प्रतिनिधि, नाइब।
मन्अ़ (अ़.पु.)-रोकना, मना करना; निषेध, मनाही, रोक; अविहित, नाज़ाइज; निषिद्घ, मना किया हुआ।
मन्ऊत (अ़.पु.)-प्रशंसित, प्रशंसा किया हुआ।
मन्ए मै (अ़.$फा.पु.)-मद्य-निषेध, शराब की मनाही।
मन्क़बत (अ़.स्त्री.)-महात्माओं का गुणगान, धर्मात्माओं का यशेगान; घर के मान्यजनों की गुणगाथा।
मन्क़ल (अ़.स्त्री.)-अँगीठी, अंगारदानी, बरोसी, गौरसी।
मन्$िकज़त (अ़.स्त्री.)-परस्पर विरोध; फूट, खण्डत्व, टूट, तोड़।
मन्$िकसत (अ़.स्त्री.)-नुक़्सान, घटाव, छीजन; न्यूनता, कमी; दोष, ऐब; निन्दा बुराई; बेइज़्ज़ती, तिरस्कार, अपमान।
मन्$कूत: (अ़.वि.)-उर्दू का वह अक्षर जिस पर नुक़्त: हो, जैसे-'बेÓ, 'तेÓ, 'जीमÓ और 'ज़ेÓ आदि।
मन्$कूत (अ़.वि.)-दे.-'मन्$कूत:Ó।
मन्कूब (अ़.वि.)-दरिद्र, कंगाल, असहाय, दुर्दशाग्रस्त।
मन्$कूल: (अ़.वि.)-एक स्ािान से दूसरे स्थान पर ले जाई हुई वस्तु; नक़्ल की हुई, प्रतिलिपित।
मन्$कूल (अ़.वि.)-एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर पहुँचाया हुआ; नक़्ल किया हुआ, प्रतिलिपित; एक से सुनकर दूसरे से कहा हुआ; न्याय की वह शाखा जिसमें केवल उन्हीं प्रमाणों पर तर्क हो जो शास्त्र आदि में लिखित हैं।
मन्$कूले अ़न्हु (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जिससे सुनी हुई बात कही गई हो; वह वास्तविक लिखावट जिसकी प्रतिलिपि की गई हो।
मन्$कूलात (अ़.पु.)-वे पुस्तकें जिनमें प्रतिलिपित प्रतियों का वर्णन हो।
मन्$कूश (अ़.वि.)-चित्रित, रेखांकित, नक़्शोनिगार बना हुआ; अंकित, गहरा लिखा हुआ, खुदा हुआ अथवा खोदा हुआ।
मन्$कूशे ख़्ाातिर (अ़.वि.)-दिल में बसाया हुआ, हृदयंगम, आत्मीय।
मन्$कूस (अ़.वि.)-जिसमें कमाई की गई हो, ह्वïसित।
मन्कूह: (अ़.स्त्री.)-विवाहिता, शादीशुदा औरत, ब्याही हुई स्त्री।
मन्कूह (अ़.पु.)-विवाहित, शादीशुदा मर्द, ब्याहा हुआ पुरुष।
मन्ख़्िार (अ़.पु.)-नथना, नथुना, नासा-विवर। दे.-मिन्ख़्िारÓ, दोनों शुद्घ हैं।
मन्नाअ़ (अ़.वि.)-मना करनेवाला, रोकनेवाला, प्रतिरोधक, निषेधक।
मन्नान (अ़.वि.)-अत्यन्त परोपकारी, बहुत अधिक उपकार करनेवाला; ईश्वर का एक नाम।
मन्नोसल्वा (अ़.पु.)-मन अर्थात् एक प्रकार का रेचक गोंद (एक प्रकार का मीठा पदार्थ जो पौधों पर जम जाता है और खाया जाता है) और सल्वा अर्थात् बटेर नामक पक्षी, ये दोनों चीज़ें हज्ऱत मूसा को ईश्वर की ओर से बराबर मिलती रहीं, जब उनकी सेना के सिपाही भूखे थे।
मन्$फअ़त (अ़.स्त्री.)-प्राप्ति, लाभ, $फायदा; परिणाम, फल, नतीजा, अंजाम।
मन्$फज़ (अ़.पु.)-छेद, छिद्र, विवर, सूराख़्ा; राह, मार्ग, पथ, रास्ता।
मन्$फी (अ़.वि.)-वह क्रिया जिसमें नकारात्मक दृष्टिकोण हो, वह क्रिया जिसमें काम का न होना पाया जाए; ऋण, घटाना; रद्द किया हुआ; मिटाया हुआ; नष्ट किया हुआ; बंद या ख़्ात्म किया हुआ।
मन्$फूश (अ़.वि.)-धुनकी हुई रुई या कोई अन्य वस्तु।
मन्वी (अ़.पु.)-संकल्प, उद्देश्य।
मन्सी (अ़.पु.)-भुलाया हुआ।
मन्ही (अ़.वि.)-अविहित, वर्जित, रोका हुआ, निषिद्घ, जिस कार्य को करने की मनाही की गई हो।
मन्हीयात (अ़.स्त्री.)-वे वस्तुएँ जिनका खान-पान धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वर्जित हो; वे कर्म जिनका करना धर्म में वर्जित हो।
मन्हूब (अ़.वि.)-लूटा हुआ।
मन्हूज (अ़.वि.)-लोभी, लालची।
मन्हूत (अ़.वि.)-गढ़ा हुआ।
मन्हू$फ (अ़.वि.)-दुबला, पतला, कमज़ोर।
मन्हूस (अ़.वि.)-अशुभ, अनिष्ट, अकल्याणकारी; अभागा, बद$िकस्मत, दुर्भाग्यवान्।
मन्हूससूरत (अ़.वि.)-जिसकी सूरत अशुभ और अनिष्टकर हो, जिसका दर्शन करने अथवा मुँह देख लेने पर मुसीबतों और परेशानियों से दो-चार होना पड़े, अदर्शनीय।
म$फर [र्र] (अ़.पु.)-भागने का स्थान, वह स्थान जहाँ भाग कर छिपा जा सके; रक्षा, बचाव; उपाय, तद्बीर।
म$फाख़्िार (अ़.पु.)-'मफ़्ख़्ार:Ó का बहु., बुज़ुर्गियाँ, बड़ाइयाँ, बड़प्पन, बड़े होने के भाव।
म$फाज़ (अ़.पु.)-लक्ष्य, मंजि़ल, पहुँचने का स्थान, गंतव्य, मु$काम, पड़ाव।
म$फातीह (अ़.स्त्री.)-'मिफ़्ताहÓ का बहु., कुंजियाँ, चाबियाँ।
म$फाद (अ़.पु.)-प्रप्ति, न$फा, लाभ, $फायदा।
म$फादात (अ़.पु.)-'म$फादÓ का बहु., प्राप्तियाँ, $फायदे, लाभ।
म$फादे अ़ाम्म: (अ़.पु.)-जनकल्याण, सार्वजनिक हित का काम, लोकहित, सबकी भलाई का काम, सर्वार्थ।
म$फादे $कौमी (अ़.पु.)-देशहित, राष्ट्र की भलाई; जातिहित, जाति की भलाई।
म$फादे ख़्ालाइ$क (अ़.पु.)-दे.-'म$फादे अ़ाम्म:Ó।
म$फादे ज़ाती (अ़.पु.)-व्यक्तिगत लाभ, अपनी भलाई, निज-हित, स्वार्थ, आत्महित।
म$फादे मिल्ली (अ़.पु.)-राष्ट्रहित, देश की भलाई।
म$फादे मुल्की (अ़.पु.)-राष्ट्र की भलाई, देशहित, मुल्क की भलाई।
म$फादे वतन (अ़.पु.)-दे.-'म$फादे मुल्कीÓ।
म$फासिद (अ़.पु.)-'मफ़्िसद:Ó का बहु., शरारतें, उत्पात; दंगे, उपद्रव; बुराइयाँ, दोष, ऐब।
म$फासिल (अ़.पु.)-'मफ़्िसलÓ, का बहु., शरीर के जोड़, गाँठें।
मफ़्ऊल (अ़.वि.)-कर्म, जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े, दूसरा कारक; वह व्यक्ति जिसे गुदादान का व्यसन हो; उर्दू छन्द का एक वज़्न जो हिन्दी छन्द 'तगणÓ के वज़्न के बराबर होता है अर्थात् दो गुरु और एक लघु।
ुमफ़्ऊल$फीह (अ़.पु.)-सातवाँ कारक, अधिकरण।
मफ़्ऊलबेह (अ़.पु.)-तीसरा कारक, करण।
मफ़्ऊल मालम युसम्म:$फाइलुहू (अ़.पु.)-वह कर्म जिसका कर्ता अज्ञात हो।
मफ़्ऊल माÓहू (अ़.पु.)-जिसके साथ कोई काम हो।
मफ़्ऊल मिन्हु (अ़.पु.)-पाँचवाँ कारक, अपादान।
मफ़्ऊललहू (अ़.पु.)-चौथा कारक, सम्प्रदान।
मफ़्ऊले मुत्ल$क (अ़.पु.)-सामान्य कर्म, मफ़्ऊल।
मफ़्ऊले सानी (अ़.पु.)-किसी क्रिया का दूसरा कर्म, द्वितीय कर्म।
मफ़्$कूद (अ़.वि.)-जो हस्तगत न हो, अप्राप्य, नायाब; अज्ञात, नामाÓलूम; गुम, खोया हुआ; $गायब, लुप्त, अन्तद्र्घान।
मफ़्$कूदुल ख़्ाबर (अ़.वि.)-जिसकी ख़्ाबर अथवा सूचना न मिले, जो लापता अथवा $गायब हो गया हो।
मफ़्तूँ (अ़.वि.)-मुग्ध, मोहित, $िफरेफ़्त:; जो विपत्तियों या मुसीबतों में डाल दिया गया हो।
मफ़्तून (अ़.वि.)-दे.-'मफ़्तूँÓ, उर्दू में वही प्रचलित है।
मफ़्तूह (अ़.वि.)-जो खोला गया हो; जिस विजित किया गया हो; जिस अक्षर पर 'ज़बरÓ 'ऊÓ की मात्रा हो।
मफ्ऱू$क (अ़.वि.)-वह संख्या जो किसी बड़ी संख्या में से घटाई गई हो, वियोज्य; पृथक् किया गया, अलग किया गया।
मफ्रू$कमिन्हु (अ़.वि.)-वह बड़ी संख्या जिसमें से छोटी संख्या घटाई गई हो, वियोजक।
मफ्रूज़: (अ़.पु.)-भ्रम, वह्म; काल्पनिक बात, $फर्ज़ की हुई बात।
मफ्रूज़ (अ़.वि.)-काल्पनिक, $फजऱ्ी; ईश्वर की ओर से $फर्ज़ की गई बात जिसका करना अनिवार्य हो।
मफ्रूज़ात (अ़.पु.)-'मफ्रूज़:Ó का बहु., कल्पनाएँ, तीर के तुक्के।
मफ्ऱूर (अ़.वि.)-जो पलायन कर गया हो, पलायित, भागा हुआ; कोई अपराध करके भागा हुआ।
मफ्ऱूश (अ़.वि.)-जो बिछाया गया हो, बिछा हुआ; $फर्श, बिछौना।
मफ़्लूक (अ़.वि.)-असहाय, दुर्दशाग्रस्त, मुफ़्िलस, दरिद्र, निर्धन।
मफ़्लूकुलहाल (अ़.वि.)-कंगाल, निर्धन, दुर्दशाग्रस्त ( इस शाब्दिक योग को विद्वान् लोग अशुद्घ मानते हैं, फिर भी यह प्रचलन में है)।
मफ़्लूज (अ़.वि.)-जिसको लकवा मार गया हो, पक्षाघाती, अद्र्घांगी, जिस पर $फालिज गिरा हो, लकवाग्रस्त।
मफ़्लूजुद्दिमा$ग (अ़.वि.)-जिसका मस्तिष्क लकवाग्रस्त हो गया हो, जिसके दिमा$ग पर $फालिज गिरा हो, जो कुछ सोच-समझ न सकता हो।
मफ़्सद: (अ़.पु.)-शरारत, उत्पात; उपद्रव, दंगा, $फसाद।
मफ़्सद:परदाज़ (अ़.$फा.वि.)-झगड़ा-टंटा खड़ा करानेवाला, उपद्रव खड़ा करानेवाला, दंगा-$फसाद करानेवाला; लगाई-बुझाई करके आपस में लड़ानेवाला।
मफ़्सद:परदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-झगड़ा-टंटा खड़ा कराना, दंगा-$फसाद कराना, लगाई-बुझाई करके आपस में लड़ाना।
मफ़्सद:पर्वर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मफ़्सद:परदाज़Ó।
मफ़्सद:पर्वरी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मफ़्सद:परदाज़ीÓ।
मफ़्िसल (अ़.पु.)-अंगसंधि, शरीर के अंग का जोड़।
मफ़्हूम (अ़.पु.)-भाव, उद्देश्य, मंशा, असली मतलब, अर्थ, आशय, तात्पर्य।
मबाद ($फा.वा.)-दे.-'मबादाÓ।
मबादा ($फा.वा.)-ऐसा न हो।
मबादियात (अ़.पु.)-'मबादीÓ का बहु., शुरूअ़ाती बातें, शुरू की वे बातें जो किसी विद्या को पढऩे से पहले सीखी जाती हैं और जिनके बिना वह विद्या नहीं आती, प्रारम्भिक बातें, आधार-सार।
मबादी (अ़.पु.)-'मब्दाÓ का बहु., किसी विद्या से सम्बन्धित उसकी प्रारम्भिक बातें, जिनके जाने बिना वह विद्या नहीं आ सकती।
मबाल (अ़.पु.)-मूत्रेंद्रिय, मूत्र त्याग करने का अंग, पेशाब का म$काम।
मबीअ़: (अ़.स्त्री.)-ख़्ारीदी हुई वस्तु; बिकी हुई वस्तु।
मबीअ़ (अ़.वि.)-बेचा हुआ, बिका हुआ, विक्रीत; मोल लिया हुआ, ख़्ारीदा हुआ, क्रीत।
मब्ऊस (अ़.वि.)-अवतरित, जिसने अवतार लिया हो, जो ईश्वर की ओर से भेजा गया हो।
मब्$गूज़ (अ़.वि.)-जिससे द्वेष हो, शत्रु, वैरी।
मब्ज़ूल (अ़.वि.)-दिया गया, बख़्शा गया; आकृष्ट, प्रवृत्त।
मब्तख़्ा: (अ़.पु.)-ख़्ारबूज़े की बाड़ी।
मब्तून (अ़.वि.)-बड़े पेटवाला।
मब्दा (अ़.पु.)-प्रारम्भ-स्थल, प्रारम्भ करने का स्थान; प्रकट होने की जगह।
मब्नी (अ़.वि.)-जिसकी आधार-शिला अथवा नींव रखी गई हो; निर्भर, मुनहसिर, निर्धारित; वह शब्द जिसका आख़्िारी अक्षर किसी कारक में भी न बदले, अव्यय।
मब्रक (अ़.पु.)-ऊँट के रहने का स्थान।
मब्रज़ (अ़.पु.)-मलद्वार, गुदा।
मब्रूद (अ़.वि.)-ठण्डा किया हुआ।
मब्रूर (अ़.वि.)-जिस पर ईश्वर की कृपा हो, जिसे भगवान् की ओर से सम्मानित किया गया हो; अपराध-मुक्त, पाप-मुक्त, मोक्ष-प्राप्त।
मब्रूस (अ़.वि.)-जिसे सफ़ेद कोढ़हो, सिध्म, श्वित्री।
मब्ल$ग (अ़.पु.)-हद, सीमा; अंत, अख़्ाीर; संख्या, ताÓदाद।
मब्ल$गे इल्म (अ़.पु.)-किसी विद्या की सीमा, इल्म की हद; विद्वता, इल्मीयत।
मब्सिम (अ़.पु.)-आगे के दाँत।
मब्सूत (अ़.वि.)-विस्तृत, व्याख्यायित, विस्तारपूर्वक कहा हुआ।
मब्सूस: (अ़.वि.)-परेशान।
मब्हस (अ़.पु.)-बहस की जगह, विवाद-स्थल।
मब्हूत (अ़.वि.)-चकित, स्तब्ध, हैरान।
ममर [र्र] (अ़.पु.)-आने-जाने की जगह या गंतव्य तक पहुँचने का स्थान, गुजऱने का स्थान; मार्ग, रास्ता; कारण, सबब, उद्देश्य।
ममात (अ़.स्त्री.)-मृत्यु, मरण, निधन, मौत।
ममालिक (अ़.पु.)-'मम्लुकतÓ का बहु., अनेक राष्ट्र, बहुत से देश।
ममालिके इस्लामिय: (अ़.पु.)-वे राष्ट्र जिनमें मुसलमान शासक हैं।
ममालिके $गैर (अ़.पु.)-अन्य राष्ट्र, दूसरे देश।
ममालिके मफ़्तूह: (अ़.पु.)-वे देश जो युद्घ में जीते गए हों।
ममालिके मुतहद: (अ़.पु.)-वे देश जो मिलकर एक हो गए हों, संयुक्त देश।
ममालिके मुफ़्व्वज़: (अ़.पु.)-वे राष्ट्र जो उसके शासक की ओर से किसी को प्रबंध के लिए दे दिए गए हों।
ममालिके मह्रूस: (अ़.पु.)-वे राष्ट्र जो किसी अन्य देशाय शासक के अधीन हों।
ममालिके हरी$फ: (अ़.पु.)-वे राष्ट्र जो दूसरे राष्ट्र के विरोधी दल में हों।
ममालिके हली$फ: (अ़.पु.)-वे राष्ट्र जो एक-दूसरे के मित्र एवं सहायक हों।
ममालीक (अ़.पु.)-'मम्लूकÓ का बहु., दास लोग, $गुलाम लोग।
मम्जज़ (अ़.वि.)-मिला हुआ, मिश्रित।
मम्दूद: (अ़.वि.)-वह 'अलि$फÓ जिस पर 'मदÓ (अलि$फ के ऊपर बनाई जानेवाली एक लकीर) हो और खींचकर पढ़ा जाए।
मम्दूद (अ़.वि.)-खींचा गया, बढ़ाया गया, लम्बा किया गया।
मम्दूह: (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री जिसकी प्रशंसा की गई हो, प्रशंसिता।
मम्दूह (अ़.वि.)-जिसकी प्रशंसा की गई हो, प्रशंसित।
मम्नूअ़ (अ़.वि.)-जिस काम को करने से रोका गया हो, निषिद्घ, वर्जित, मनाÓ, धर्म में वर्जित वस्तु या काम।
मम्नूअ़ अ़न्हु (अ़.वि.)-जिस काम अथवा बात से रोका गया हो।
मम्नूअ़ात (अ़.पु.)-वे वस्तुएँ जिनका खान-पान धर्म के अनुसार वर्जित हो।
मम्नून (अ़.वि.)-आभारी, कृतज्ञ, अनुगृहीत, शुक्रगुज़ार, मश्कूर।
मम्नूनीयत (अ़.स्त्री.)-आभार, कृतज्ञता, शुक्रगुज़ारी।
मम्लकत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मम्लुकतÓ, यह उच्चारण भी शुद्घ है मगर 'मम्लुकतÓ अधिक शुद्घ है।
मम्लिकत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मम्लुकतÓ, यह उच्चारण भी शुद्घ है मगर 'मम्लुकतÓ अधिक शुद्घ है।
मम्लुकत (अ़.स्त्री.)-राष्ट्र, राज्य, सल्तनत, दे.-'मम्लकतÓ और 'मम्लिकतÓ, ये दोनों भी शुद्घ हैं पर 'मम्लुकतÓ अधिक शुद्घ है।
मम्लू (अ़.वि.)-पूर्ण, परिपूर्ण, भरा हुआ, लबरेज़।
मम्लूक: (अ़.वि.)-वह वस्तु जो अधिकार में हो, वह वस्तु जो मिल्कियत में हो।
मम्लूक (अ़.वि.)-दास, $गुलाम।
मम्लूह (अ़.वि.)-नमकीन, नमक मिलाया हुआ, लवणमय।
मयामिन (अ़.पु.)-'मैमनतÓ का बहु., कल्याण, समृद्घियाँ, बरकतें, सअ़ादतें; 'मैमन:Ó का बहु., शरीर की सीधी ओर के अंग।
मरंजाँमरंज ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो ख़्ाुद भी दु:खित न हो और दूसरों को भी दु:खी न करे।
मरंजोमरंजाँ ($फा.वि.)-दे.-'मरंजाँमरंजÓ।
मरज (अ़.पु.)-काम का बिगाड़; नाश, तबाही।
मरज़ (अ़.पु.)-रोग, आमय, व्याधि, बीमारी; लत, व्यसन, बुरी अ़ादत।
मरज़्ाुलमौत (अ़.पु.)-वह बीमारी जो मृत्यु का कारण बने।
मरज़े मुतअ़द्दी (अ़.पु.)-छूत का रोग, उड़कर लगनेवाली बीमारी, संक्रामक रोग।
मरज़े मोह्लिक (अ़.पु.)-घातक रोग, वह बीमारी जो प्राण लेकर ही पीछा छोड़े।
मरम्मत (अ़.स्त्री.)-सुधार, जीर्णोद्घार, टूटी-फूटी चीज़ की दुरुस्ती, जैसे-मकान या कम्प्यूटर की मरम्मत।
मरम्मततलब (अ़.वि.)-जिसमें मरम्मत की आवश्यकता हो।
मराकिज़ (अ़.पु.)-'मर्कज़Ó का बहु., बहुत-से मर्कज़, अनेक केन्द्र।
मराकिब (अ़.पु.)-'मर्कबÓ का बहु., सवारियाँ; घोड़े।
मरा$िकश (अ़.पु.)-अफ्ऱीका का एक प्रसिद्घ प्रदेश, मराको।
मराग़: (अ़.पु.)-जानवर का लोट-पोट करना।
मराजे (अ़.पु.)-'मर्जाÓ का बहु., फिरने का स्थान, श्रेणियाँ; सर्वनाम जिनकी ओर फिरें।
मरातिब (अ़.पु.)-'मर्तब:Ó का बहु., मर्तबे, दर्जे, पदवियाँ।
मराबित (अ़.पु.)-'मिर्बतÓ का बहु., बंधन, रस्सियाँ, डोरें; 'मर्बतÓ का बहु., चौपाए बाँधने के बाड़े।
मराम (अ़.पु.)-अभिलाशा, आशा, मनोकामना, ख़्वाहिश,
इच्छा, चाहत।
मरार: (अ़.पु.)-पित्ता, पित्ताशयें; पित्ते का पानी।
मरारत (अ़.स्त्री.)-कटुता, कड़वाहट।
मरासिम (अ़.पु.)-'रस्मÓ का बहु., मेलजोल, प्रेम-व्यवहार।
मराहिम (अ़.पु.)-'मर्हमÓ का बहु., बहुत-से मर्हम, अनेक ऐसे लेप जो घाव अथवा ज़ख़्मों पर लगाने के लिए हों।
मराहिम (अ़.पु.)-'मर्हमतÓ का बहु., कृपाएँ, अनुकंपाएँ।
मराहिमे ख़्ाुस्रवान: (अ़.$फा.पु.)-शासकीय कृपाएँ, राजकीय मेह्रबानियाँ।
मराहिल (अ़.पु.)-'मर्हल:Ó का बहु., मंजि़लें, पड़ाव।
मरीज़: (अ़.स्त्री.)-बीमार स्त्री, रोगिणी, व्याधिता।
मरीज़ (अ़.पु.)-बीमार, रोगी, व्याधित, रुग्ण। 'लाइनें थीं जहाँ मरीज़ों की, था वहाँ अस्पताल का$गज़ परÓ-हरेराम समीप
मरीद (अ़.वि.)-अहंकारी, अभिमानी, घमण्डी; अवज्ञाकारी, उद्दण्ड, सरकश।
मर्ई (अ़.वि.)-जिसका लिहाज़ या ध्यान रखा जाए।
मर्ऊब (अ़.वि.)-रोब में आया हुआ, दबा हुआ, डरा हुआ, आतंकित।
मर्कज़ (अ़.पु.)-केन्द्र, परिधि के बीच का बिन्दु; राजधानी; मुख्यालय।
मर्कज़ी (अ़.वि.)-मर्कज़ का, केन्द्रीय; मर्कज़ या केन्द्र से सम्बन्धित।
मर्कज़े सिक़्ल (अ़.पु.)-गुरुत्व-केन्द्र।
मर्क़द (अ़.पु.)-समाधि-भवन, $कब्र।
मर्कब (अ़.पु.)-वाहन, सवारी; अश्व, घोड़ा।
मर्कूज़ (अ़.वि.)-केन्द्रित, एक बिन्दु पर लाया हुआ; दृढ़ किया हुआ, जमाया हुआ।
मर्कूज़े ख़्ाातिर (अ़.वि.)-हृदयंगम, दिल में बैठा हुआ, मन में बसा हुआ।
मर्कूब (अ़.वि.)-जिस पर सवारी की जाए।
म$र्कूम: (अ़.वि.)-लिखित, लिखा हुआ।
म$र्कूम (अ़.वि.)-लिखित, लिखा हुआ।
म$र्कूमए ज़ैल (अ़.वि.)-निम्नलिखित, जो नीचे लिखा हो, जिसका जि़क्र बाद में हो।
म$र्कूमए बाला (अ़.$फा.वि.)-उपर्युक्त, ऊपर लिखा हुआ, जिसकी चर्चा ऊपर हो चुकी हो।
मर्ग ($फा.स्त्री.)-मरण, मौत, मृत्यु।
म$र्ग ($फा.पु.)-दूब, घास, दूर्वा।
म$र्गज़ार ($फा.पु.)-वह मैदान जहाँ दूब बहुत हो, सब्ज़:ज़ार; चरागाह, गोचर।
म$र्गपेच ($फा.पु.)-पगड़ी बाँधने का एक विशेष ढंग, जो इस बात का द्योतक है कि पगड़ी बाँधनेवाला निज प्राण न्यौछावर करने पर आमादा है।
मर्गामर्गी ($फा.स्त्री.)-महामारी, वबा।
म$र्गूब (अ़.वि.)-मनभावन, जो मन को भाए, जो दिल को पसन्द हो, मनोनीत, रुचिकर, मनोवांछित, पसन्दीद:।
म$र्गूबे तब्अ़ (अ़.वि.)-जो मन को भाए, जो मन को अच्छा लगे, मनभावन, मनोवांछित, मनोनीत।
म$र्गूल: (अ़.पु.)-टेढ़ा-मेढ़ा, पेचदार; धुँएँ का छल्ला; बल खाए हुए, घूँघरवाले बाल; आवाज़ की गिटकिरी।
मर्गे जवानान: ($फा.स्त्री.)-जवान मौत, जवानी की मृत्यु।
मर्गे तब्ई (अ़.$फा.स्त्री.)-प्राकृतिक मृत्यु, वह मृत्यु जो ठीक समय पर आए, ऐसी मौत जो आयु पूरी होने पर आए।
मर्गे नागहाँ ($फा.स्त्री.)-वह मृत्यु जो अचानक आ जाए।
मर्गे नौ ($फा.स्त्री.)-नई घटना, नया हादिसा।
मर्गे मुअ़ल्ल$क (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मर्गे नागहाँÓ।
मर्गे मु$फाजात (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मर्गे नागहाँÓ।
मर्गे मुब्रम (अ़.$फा.स्त्री.)-वह मृत्यु जो अटल हो, जो प्राण लेकर ही टले।
मर्जज़ोश ($फा.स्त्री.)-एक वनौषधि।
मर्ज़ ($फा.पु.)-कृषि-भूमि, ऐसी भूमि जिस पर कृषि अथवा खेती हो सके; सरहद, सीमा, सीमांत; कियारी; उपवन, बा$ग, उद्यान; चूहा, मूषक।
मर्जअ़ (अ़.पु.)-त्राण-स्थल, बचाव की जगह, रक्षा-स्थल, पनाहगाह, शरण-स्थली; जिसकी ओर कोई सर्वनाम फिरे, ऐसी संज्ञा।
मर्ज़बान ($फा.वि.)-किसान, काश्तकार, कृषक, कृषिकार।
मर्ज़बानी ($फा.स्त्री.)-खेती, काश्तकारी, कृषि-कर्म।
मर्ज़बूम ($फा.स्त्री.)-जन्मभूमि, पैदा होने का स्थान, वतन, देश, मातृभूमि।
मर्जां (अ़.पु.)-दे.-'मर्जानÓ।
मजऱ्ा (अ़.पु.)-'मरीज़Ó का बहु., बीमार लोग, रोगीजन।
मर्जान (अ़.पु.)-प्रवाल, मूँगा, विद्रूम।
मजऱ्ी (अ़.स्त्री.)-इच्छा, ख़्वाहिश; स्वीकृति, रज़ामंदी; हुक्म, आदेश; आज्ञा, इज़ाज़त।
मर्जूअ़: (अ़.पु.)-आकर्षण, किसी कार्य-विशेष के लिए किसी व्यक्ति की ओर लोगों का झुकाव, रुजूअ़।
मर्जूअ़ (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जिसकी ओर लोग झुकें अर्थात् रुजूअ़ हों; रुजूअ़ किया हुआ, लौटाया हुआ।
मर्जूम (अ़.वि.)-जिसे संगसार किया जाए, जिसे पत्थरों से मारा जाए; जिसका बहिष्कार किया जाए।
मर्जूह (अ़.वि.)-पराजित, हारा हुआ, मग़्लूब।
मर्तब: (अ़.पु.)-मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; पद, दर्जा; वर्ग, तब$का; श्रेणी, जमाअ़त; बार, द$फा।
मर्तब:दाँ (अ़.$फा.वि.)-मान अथवा प्रतिष्ठा पहचाननेवाला।
मर्तब:दानी (अ़.$फा.स्त्री.)-मान या प्रतिष्ठा पहचानना।
मर्तब:शनास (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मर्तब:दाँÓ।
मर्तब:शनासी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'मर्तब:दानीÓ।
मर्तबत (अ़.स्त्री.)-मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; पद, दर्जा, उह्दा (ओहदा)।
मर्तूब (अ़.वि.)-गीला, भीगा, आद्र्र, तर, जैसे-'मर्तूब आबो-हवाÓ; वह औषधि जिसमें बादी की तासीर अथवा गुण हो; बादी-$गण रखनेवाली चीज़।
मर्द: ($फा.वि.)-साहसी, उत्साही, हिम्मती; वीर, बहादुर।
मर्द ($फा.पु.)-पुरुष, नर; मनुष्य, आदमी; पति, शौहर; वीर, शूर, बहादुर; हिम्मतवर, साहसी।
मर्दअफ्ग़न ($फा.वि.)-बलवान्, ता$कतवर, शक्तिशाली, ज़ोरावर; वह व्यक्ति जो पहलवानों को भी पछाड़ दे; दे.-'मर्दफ्ग़नÓ, वह उच्चारण अधिक शुद्घ है।
मर्दआज़्मा ($फा.वि.)-दे.-'मर्दफ्ग़नÓ, दे.-'मर्दाज़्माÓ, वह उच्चारण अधिक शुद्घ है।
मर्दक ($फा.वि.)-अधम, नीच, तुच्छ, ज़लील आदमी।
मर्दफ्ग़न ($फा.वि.)-बहादुर, बलवान्, ता$कतवर; योद्घाओं को भी पछाड़ देनेवाला, महायोद्घा, महारथी।
मर्दबच: ($फा.वि.)-आदमी का बच्चा यानी आदमी, मनुष्य; शूर, बहादुर, वीर।
मर्दबच्च: ($फा.वि.)-दे.-'मर्दबच:Ó, अच्छे-बुरे व्यक्ति की परख रखनेवाला।
मर्दशनास ($फा.वि.)-इंसान की पहचान रखनेवाला, मनुष्य को पहचाननेवाला।
मर्दाज़्मा ($फा.वि.)-दे.-'मर्दफ्ग़नÓ।
मर्दान: ($फा.वि.)-मर्दों की तरह, मर्दों-जैसा, जैसे-'मर्दाना लिबासÓ-मर्दों-जैसे कपड़े।
मर्दान:वार ($फा.वि.)-मर्दों की तरह, बहादुराना, साहसपूर्ण।
मर्दानगी ($फा.स्त्री.)-पुरुषत्व, मर्दानापन; शूरता, बहादुरी; साहस, हिम्मत।
मर्दाने ख़्ाुदा ($फा.पु.)-महात्मा लोग, सिद्घ-पुरुष, संतजन।
मर्दी ($फा.वि.)-इंसानियत, मानवता; काम-शक्ति, $कुव्वते-बाह; शूरता, वीरता, बहादुरी।
मर्दुम ($फा.पु.)-मनुष्य, आदमी; सभ्य, मुहज़्ज़ब; आँख की पुतली, कनीनिका।
मर्दुमआज़ार ($फा.वि.)-लोगों को सतानेवाला, अत्याचारी, ज़ालिम।
मर्दुम आज़ारी ($फा.स्त्री.)-लोगों को सताना, ज़ुल्म करना, अत्याचार करना।
मर्दुमआमेज़ ($फा.वि.)-लोगों में घुल-मिलकर रहनेवाला, मिलनसार।
मर्दुमक ($फा.स्त्री.)-आँख की पुतली, कनीनिका, कनीनी।
मर्दुमकुश ($फा.वि.)-मनुष्य को मार डालनेवाला, नर-हिंसक।
मर्दुमकुशी ($फा.स्त्री.)-मनुष्य को मार डालना, नरहिंसा।
मर्दुमकेदीद: ($फा.स्त्री.)-आँख की पुतली, कनीनिका।
मर्दुमख़्ोज़ ($फा.वि.)-वह स्थान जहाँ से प्रतिभाशाली, प्रतिष्ठित और विद्वज्जन उत्पन्न होते हों।
मर्दुमख़्ाोर ($फा.वि.)-नरभक्षी, मनुष्य को खा जानेवाला, नराशी, पुरुषाशी।
मर्दुमख़्ाोरी ($फा.स्त्री.)-नरभक्षण, मनुष्य को खा जाना।
मर्दुमख़्वार ($फा.वि.)-दे.-'मर्दुमख़्ाोरÓ।
मर्दुमगिया ($फा.स्त्री.)-एक जड़ जो आदमी के आकार की होती है, लख्मिनी, यब्रूह।
मर्दुमजऩ ($फा.वि.)-वधिक, जल्लाद।
मर्दुमज़ाद ($फा.पु.)-मनुजात, आदमी, मनुष्य, मानुष।
मर्दुमदर ($फा.वि.)-मनुष्य को फाड़ खानेवाला, विदारक, श्वापद, व्याघ्र।
मर्दुमदारी ($फा.स्त्री.)-सुशीलता, सद्व्यवहार, मिलनसारी, ख़्ाुशअख़्ला$की।
मर्दुमबेज़ार ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो मनुष्यों के साथ उठने-बैठने से घबराता हो।
मर्दुमशनास ($फा.वि.)-आदमी को पहचाननेवाला, अच्छे-बुरे आदमी की परख रखनेवाला; अच्छे आदमी की $कद्र करने-वाला।
मर्दुमशनासी ($फा.स्त्री.)-आदमी की पहचान, अच्छे-बुरे आदमी की परख; अच्छे आदमी की $कद्र।
मर्दुमशुमारी ($फा.स्त्री.)-जनगणना, किसी देश के लोगों अर्थात् निवासियों की गणना जो किसी नियत समय पर
हुआ करती है।
मर्दुमी ($फा.स्त्री.)-मानवता, इंसानियत; पुरुषत्व, कामशक्ति, पुंस्त्व; वीरता, बहादुरी; सुशीलता, सहृदयता, ख़्ाुशअख़्ला$की, मिलनसारी।
मर्दुमे आबी ($फा.पु.)-समुद्र में रहनेवाला मनुष्य, जल-मनुष्य, जल-मानव।
मर्दुमे दीद: ($फा.पु.)-आँख की पुतली, कनीनिका।
मर्दूद (अ़.वि.)-अपमानित, तिरस्कृत, बेइज़्ज़त; बहिष्कृत, बाहर निकाला हुआ; अस्वीकृत।
मर्दूदुश्शहादत (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जिसकी गवाही मानी न जा सके।
मर्दूदे बारगाह ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो किसी बड़े स्थान से निकाल दिया गया हो।
मर्दे आख़्िारबीं ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो परिणाम देखकर कोई काम करे।
मर्दे आदमी ($फा.वि.)-भला-मानुष, सज्जन पुरुष, शरी$फ आदमी।
मर्दे कार ($फा.पु.)-काम का आदमी, अनुभवी, तज्रिब:कार; बहादुर, शूर, साहसी।
मर्दे ख़्ाुदा ($फा.पु.)-ईश्वर-भक्त, ईश्वर-निष्ठ, ईश्वरभीरु, सदात्मा, पुनीतरात्मा, ख़्ाुदा-रसीद:।
मर्दे माÓ$कूल (अ़.$फा.पु.)-सभ्य, शिष्ट और सज्जन व्यक्ति।
मर्दे मैदाँ ($फा.पु.)-महारथी, युद्घभूमि में अपना कौशल दिखानेवाला, रणक्षेत्र में दुश्मनों को परास्त करनेवाला।
मर्दे ह$कआगाह ($फा.पु.)-ईश्वर अथवा सत्य को पहचानने -वाला आदमी।
म$र्फू (अ़.पु.)-र$फू किया हुआ।
म$र्फूअ़ (अ़.वि.)-उठाया हुआ; ऊँचा किया हुआ; वह अक्षर जिस पर 'पेशÓ अर्थात् 'उÓ की मात्रा हो।
म$र्फूउलक़लम (अ़.वि.)-जिस पर से $कलम उठा लिया गया हो, जिसके सम्बन्ध में कुछ लिखा न जा सके अर्थात् पागल, बावला, विक्षिप्त।
मर्बूत (अ़.वि.)-क्रमबद्घ, सिलसिलेवार, लगातार, मुसल्सल; प्रसंगयुक्त।
मर्मर ($फा.पु.)-एक विशेष प्रकार का स$फेद पत्थर।
मर्मरी ($फा.वि.)-मर्मर का बना हुआ; मर्मर-जैसा; दूधिया।
मर्मूज़ (अ़.वि.)-जिसकी ओर इशारा किया गया हो; राज़ और इशारे में कही हुई बात।
मर्मूज़ात (अ़.पु.)-इशारों में कही हुई बातें; इशारों में लिखे हुए पत्र या नुस्ख़्ो आदि।
मर्यम (अ़.स्त्री.)-हज्ऱत ईसा की माताजी।
मर्यमपंज: (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार की घास, जो प्रसव-वेदना से पीडि़त स्त्री को दवा के रूप में दी जाती है।
मर्व: (अ़.पु.)-अऱब की राजधानी मक्का की एक पहाड़ी।
मर्व ($फा.पु.)-ख़्ाुरासान के इलाके का एक प्रसिद्घ नगर; एक प्रकार की सुगंधित घास।
मर्वारीद ($फा.पु.)-मोती, मुक्ता।
मर्वारीदेना सुफ़्त: ($फा.पु.)-अनबिधा मोती।
मर्वी (अ़.वि.)-रिवायत किया गया, दूसरे से सुनकर कहा गया।
मर्स (अ़.पु.)-चूसना।
मर्सिय: (अ़.पु.)-मृतक प्रशंसागान, शोकगान।
मर्सिय:ख़्वाँ (अ़.पु.)-मर्सिय: पढऩेवाला, शोकगाथा गायक।
मर्सिय:ख़्वानी (अ़.स्त्री.)-मर्सिय: पढऩा, शोकगाथा-गायन।
मर्सिय:गोई (अ़.स्त्री.)-मर्सिया कहना, शोक-काव्य कहना।
मर्सूअ़ (अ़.वि.)-रत्न-जडि़त, हीरे जड़ा हुआ।
मर्सूद (अ़.वि.)-जाँचा हुआ, परखा हुआ।
मर्सूब (अ़.वि.)-तली में बैठा हुआ, तलछट, गाद।
मर्सूम (अ़.वि.)-$कानून बनाया हुआ, विधान किया हुआ; दैनिक दिहाड़ी या महीने का वेतन; चिह्निïत किया हुआ।
मर्सूस (अ़.वि.)-नींव में सीसा पिलाया हुआ, अच्छी तरह मज़बूत किया हुआ।
मर्हब (अ़.पु.)-खुला हुआ स्थान।
मर्हबा (अ़.स्त्री.)-बहुत ख़्ाूब, शाबाश, धन्य, साधुवाद।
मर्हम ($फा.पु.)-घाव या ज़ख़्म पर लगाने का लेप, स्नेह-लेप।
मर्हमत (अ़.स्त्री.)-मेहरबानी, कृपा, अनुकम्पा, अनुग्रह, दया; बख़्िशश, अनुदान।
मर्हमे का$फूर ($फा.पु.)-कपूर का बनाया हुआ मर्हम, जो घाव में ठण्डक पहुँचाता है।
मर्हमे जंग़ार ($फा.पु.)-जंग़ार अर्थात् जंग (मंडूर) से बना हुआ मर्हम, जो घाव को काट देता है।
मर्हल: (अ़.पु.)-पहुँवने का स्थान, गंतव्य, उतरने का स्थान, मंजि़ल; लम्बी यात्रा; बड़ा काम, कठिन काम।
मर्हून (अ़.वि.)-वह वस्तु जो गिरवी रखी हो।
मर्हूने मिन्नत (अ़.वि.)-आभारी, कृतज्ञ, मम्नून, शुक्रगुज़ार।
मर्हूम: (अ़.स्त्री.)-दिवंगता, स्वर्गगामिनी, वह स्त्री जो मर गई हो, स्वर्गीया।
मर्हूम (अ़.पु.)-दिवंगत, स्वर्गीय, वह आदमी जो मर गया हो, जन्नतनशीं।
मलंग ($फा.पु.)-आज़ाद $फ$कीर; निश्चिन्त व्यक्ति, बे$िफक्रा।
मलक: (अ़.पु.)-अभ्यास, हस्तकौशल, महारत; प्रकृति, सृष्टि, $िफत्रत; शौ$क, रुचि।
मलक (अ़.पु.)-देवता, $िफरिश्ता।
मलकजमाल (अ़.वि.)-देवताओं-जैसी आभा रखनेवाला।
मलकनिहाद (अ़.$फा.वि.)-देवात्मा, देवताओं-जैसे स्वभाव वाला।
मलकसि$फात (अ़.$फा.वि.)-दैवीगुण-सम्पन्न, देवताओं या $िफरिश्तों-जैसी विशेषताओंवाला।
मलकसिरिश्त (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मलकनिहादÓ।
मलकसीरत (अ़.वि.)-दे.-'मलकनिहादÓ।
मलकसूरत (अ़.$फा.वि.)-देवता-स्वरूप, जिसकी मुखाकृति $िफरिश्तों-जैसी हो।
मलकात (अ़.पु.)-'मलक:Ó का बहु., प्रकृतियाँ, प्रकृति के गुण।
मलकाते $फाजि़ल: (अ़.पु.)-सत्त्व-गुण।
मलकाते रदीय: (अ़.पु.)-रजोगुण।
मलकाते मज़मूम (अ़.पु.)-तमोगुण।
मलकी (अ़.वि.)-देवताओं का, $िफरिश्तों का; देवताओं से सम्बन्धित।
मलकीसि$फात (अ़.वि.)-देवताओं के गुण रखनेवाला।
मलकुलमौत (अ़.पु.)-मौत का $िफरिश्ता, यमराज, धर्मराज।
मलकूत (अ़.पु.)-सत्ता, राज्य, शासन, हुक्मरानी; देवलोक, $िफरिश्तों का म$काम; $िफरिश्ते, देवता-समूह।
मलकूती (अ़.वि.)-देवताओंवाला, $िफरिश्तोंवाला।
मलकूतीसि$फात (अ़.वि.)-देवताओं अथवा $िफरिश्तों के गुणवाला, देवताओं-जैसा।
मलख़्ा ($फा.स्त्री.)-शलभ, पतंगा, फतिंगा, टिड्डी, टीडी।
मला (अ़.पु.)-सत्संगति, भले, सज्जन और श्रेष्ठ पुरुषों की मंडली।
मलाइक: (अ़.पु.)-'मलकÓ का बहु., देवतागण, $िफरिश्ते।
मलाइक (अ़.पु.)-दे.-'मलाइक:Ó।
मलाइक $िफरेब (अ़.$वि.)-देवताओं को मुग्ध करनेवाला, $िफरिश्तों को लुभानेवाला, (प्राय: सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कहते हैं)।
मलाइन: (अ़.पु.)-'मल्ऊनÓ का बहु., बुरे-कर्म करनेवाला, दुष्ट और पापाचारी व्यक्ति।
मलाइन (अ़.पु.)-'मल्अऩतÓ का बहु., वे वस्तुएँ जो धर्म-विधान के अनुसार निन्दित और तिरस्कृत हों।
मलाइब (अ़.पु.)-'लइबÓ का बहु., खेल-कूद।
मलाईन (अ़.पु.)-दे.-'मलाइन:Ó।
मलाए आÓला (अ़.पु.)-देवलोक में रहनेवाले, देवता और $िफरिश्ते।
मलाज़ (अ़.पु.)-शरण-स्थली, रक्षा का स्थान, पनाहगाह।
मलाबिस (अ़.पु.)-'मिल्बसÓ का बहु., शरीर पर धारण करने के वस्त्र, पहनने के कपड़े।
मलाम (अ़.पु.)-दे.-'मलामतÓ।
मलामत (अ़.स्त्री.)-आलोचना, बुराई, भत्र्सना, निन्दा; डाँट -डपट, झिड़की, फटकार।
मलामती (अ़.वि.)-जिसे डाँटा-फटकारा गया हो, जिसकी मलामत की गई हो।
मलाल (अ़.पु.)-पश्चात्ताप, अफ़्सोस; दु:ख, रंज; तक्ली$फ, कष्ट; रंजिश, वैमनस्य। 'मुझे ख़्ाुशी है कि सब लोग हाथ सेंक चले, मुझे मलाल नहीं आशियाँ के जलने काÓ-माँझी
मलालत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मलालÓ।
मलासत (अ़.स्त्री.)-नम्रता, नर्मी, विनय; समता, बराबरी; स्वच्छता, स$फाई।
मलाहत (अ़.स्त्री.)-लावण्य, नमकीनी; सौन्दर्य, हुस्न।
मलाहिद: (अ़.पु.)-'मुल्हिदÓ का बहु., ईश्वर में आस्था न रखनेवाले, नास्तिक लोग, बेदीन लोग, विधर्मी लोग।
मलाही (अ़.पु.)-'लह्वÓ का बहु., खेल-कूद, अच्छे कामों से रोकनेवाली चीज़ें।
मलिक: (अ़.स्त्री.)-राज्ञी, रानी, महारानी, राजा या बादशाह की पत्नी।
मलिक (अ़.पु.)-नृप, नृपाल, नरेश, सम्राट्, शासक, राजा, बादशाह।
मलिकज़ाद: (अ़.$फा.पु.)-नृप-सुत, राजा का पुत्र, बादशाह का बेटा।
मलिकुत्तुज़्जार (अ़.पु.)-वणिग्राज, व्यापारियों का मुखिया, सबसे बड़ा व्यापारी।
मलिकुश्शुअऱा (अ़.पु.)-कवि-सम्राट्, मु$गलकालीन एक उपाधि जो दरबार के सर्वश्रेष्ठ कवि को प्रदान की जाती थी।
मलीक (अ़.पु.)-स्वामी, पति, शौहर, मालिक।
मलीद: (उ.पु.)-दे.-'मालीद:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है मगर उर्दू में 'मलीद:Ó ही प्रचलित है, चूरमा।
मलीह (अ़.वि.)-जिसमें लवण यानी नमक हो, नमकीन; साँवला, सलौना।
मलूम (अ़.वि.)-जिसको डाँटा-फटकारा गया हो, निन्दित, गर्हित, भत्र्सित, जिसकी मलामत की गई हो, जिसकी निन्दा या भत्र्सना की गई हो।
मलूल (अ़.वि.)-मलिन, दु:खित, रंजीदा; अफ़्सुर्द:, उदास, खिन्न।
मल्अ़ब (अ़.पु.)-क्रीडास्थल, खेल का स्थान या मैदान।
मल्ऊन (अ़.वि.)-जिसे फटकारा गया हो, जिस पर लाÓनत की गई हो, धिक्कृत, दुष्टात्मा, बुरे लोग, पापाचारी, ख़्ाबीस; तिरस्कृत, अपमानित।
मल्गोबा (तु.पु.)-बहुत-सी तर अथवा आद्र्र चीज़ों का जमावड़ा, अनेक गीली वस्तुओं का समाहार।
मल्जा (अ़.पु.)-त्राण-स्थल, शरण-स्थली, रक्षा-स्थान, जान बचाने या सुरक्षित रहने की जगह।
मल्जाओमावा (अ़.पु.)-आसरा-स्थल, जहाँ सब-कुछ हो, जिस जगह का बहुत सहारा हो, जहाँ से हर प्रकार की सहायता आदि मिले।
मल्ज़ूम (अ़.वि.)-जिस पर कोई शर्त लगा दी गई हो, जिस पर कोई चीज़ अनिवार्य या लाजि़म कर दी गई हो; जो वस्तु अलग न हो सके, सम्बद्घ।
मल्$फूज़: (अ़.वि.)-उच्चरित, बोला हुआ, कहा हुआ।
मल्$फूज़ (अ़.वि.)-प्रतिष्ठितजनों और महात्माओं के प्रवचन; उच्चरित, बोला हुआ, कहा हुआ।
मल्$फूज़ात (अ़.पु.)-'मल्$फूज़Ó का बहु., महात्माओं आदि के प्रवचन; वह पुस्तक जिसमें ऐसे प्रवचनों का संग्रह हो।
मल्$फूज़ी (अ़.वि.)-मल्$फूज़-सम्बन्धी, प्रवचन-सम्बन्धी।
मल्$फू$फ (अ़.वि.)-लपेटा हुआ; कपड़ा या का$गज़ चढ़ाया हुआ; लि$फा$फे में बन्द किया हुआ; लि$फा$फे में बन्द चिट्ठी।
मल्बूस (अ़.पु.)-पहनने के कपड़े, वस्त्र, वसन, लिबास।
मल्बूसात (अ़.पु.)-'मल्बूसÓ का बहु., पहनने के कपड़े।
मल्मस (अ़.पु.)-त्वचा, जिल्द, शरीर की चमड़ी का वह ऊपरी तल जो छुआ जाता है।
मल्लाह (अ़.पु.)-नाव-चालक, नौचालक, नाविक, माँझी, खेवनहार, कश्तीवान; कर्णधार; नमक बनानेवाला।
मल्हम: (अ़.पु.)-बहुत बड़ा दंगा, बहुत बड़ा उपद्रव, बहुत बड़ी हलचल; बहुत बड़ा युद्घ, बहुत बड़ी लड़ाई; रणभूमि, युद्घ का मैदान।
मल्हूज़ (अ़.वि.)-जिसका आदर-मान रखा जाए, जिसका लिहाज़ रखा जाए, ध्यान में रखा हुआ।
मल्हूज़े ख़्ाातिर (अ़.पु.)-जो बात ध्यान में हो, जिस बात का ख़्ायाल हो।
मवद्दत (अ़.स्त्री.)-दोस्ती, मैत्री, मित्रता।
मवाइज़ (अ़.पु.)-'मौइज़तÓ का बहु., धर्म-सम्बन्धी उपदेश और नसीहतें।
मवाइद (अ़.पु.)-'मौइदÓ का बहु., वाÓदे के समय; वाÓदे की जगहें।
मवाईद (अ़.पु.)-'मीअ़ादÓ का बहु., परस्पर किए जानेवाले वाÓदे, आपस के $कौल-$करार।
मवा$िक$फ (अ़.पु.)-'मौ$िक$फÓ का बहु., खड़े होने के स्थान, जगह।
मवाकिब (अ़.पु.)-'मौकिबÓ का बहु., सवारों की $फौज, सवारों के झुण्ड।
मवा$कीत (अ़.स्त्री.)-'मी$कातÓ का बहु., वाÓदे स्थान; काम के समय।
मवाक़ेÓ (अ़.पु.)-'मौ$क:Ó का बहु., मौक़े, अवसर।
मवाजिब (अ़.पु.)-'मौजिबÓ का बहु., वेतन, तनख़्वाहें।
मवाज़ीन (अ़.स्त्री.)-'मीज़ानÓ का बहु., तराजुएँ, तुलाएँ।
मवाज़ेÓ (अ़.पु.)-'मौज़ाÓ का बहु., ग्रामसमूह, अनेक गाँव।
मवात (अ़.वि.)-निष्प्राण, बेजान, (स्त्री.)-ऊसर भूमि, ऐसी भूमि जिसमें कुछ उपज न सके।
मवातिन (अ़.पु.)-'मौतिनÓ का बहु., मातृभूमियाँ, वतन, देश, जन्म-भूमियाँ।
मवाद (अ़.पु.)-पीप और ख़्ाून जो घाव या फोड़े से निकले; सबूत, प्रमाण; सूमग्री, मसाला।
मवादे $फासिद (अ़.पु.)-सड़ा हुआ मवाद अथवा ख़्ाून और पीप; शरीर के अन्दर की दूषित धातुएँ।
मवानेÓ (अ़.पु.)-'मानेÓ का बहु., रुकावटें, विघ्न, बाधाएँ।
मवाली (अ़.पु.)-'मौलाÓ का बहु., यार-दोस्त, संगी-साथी; गुण्डा, बदमाश।
मवालीद (अ़.पु.)-'मौलूदÓ का बहु., बच्चे, लड़के।
मवालीदे सलास: (अ़.पु.)-सृष्टि के तीनों वर्ग--प्राणी, वनस्पति और जड़-पदार्थ।
मवाशी (अ़.पु.)-'माशिय:Ó का बहु., पशु, चौपाए, मवेशी।
मवासी$क (अ़.पु.)-'मीसा$कÓ का बहु., आपस के वचन-वादे, आपस के $कौल-$करार।
मवाहिब (अ़.पु.)-'मौहिबÓ का बहु., अनुकम्पाएँ, कृपाएँ, दयाएँ; मेहरबानियाँ, बख़्िशशें।
मवीज़ (अ़.पु.)-शुष्कद्राक्ष, मुनक़्क़ा, सूखा हुआ अंगूर।
मवीज़े मुनक़्क़ा (अ़.पु.)-वह मवीज़ जिसके बीज निकाल डाले गए हों (मुनक़्क़ा का अर्थ है-पेट सा$फ किया हुआ, चूँकि मुनक़्क़े के बीज निकाल देने से उसका पेट सा$फ हो जाता है, इस कारण उसे मुनक़्क़ा कहते हैं, मगर अब मुनक़्क़ा उसका नाम ही पड़ गया है)।
मव्वाज (अ़.वि.)-हिलौरें लेता हुआ, मौजें मारता हुआ, ज़ोर की लहरें लेता हुआ।
मशक़्क़त (अ़.स्त्री.)-श्रम, मेहनत, मज़दूरी; परिश्रम, दौड़-धूप; तपस्या, रियाज़त; कष्ट, दु:ख, तक्ली$फ।
मशाइख़्ा (अ़.पु.)-'शैख़्ाÓ का बहु., पीर लोग, सू$फी लोग।
मशाम (अ़.पु.)-'मशम्मÓ का बहु., परन्तु एकवचन के रूप में प्रचलित है; मस्तिष्क, दिमा$ग; वह स्थान जहाँ सूँघने की शक्ति रहती है।
मशामे जाँ (अ़.$फा.पु.)-आत्मा का मस्तिष्क अर्थात् आत्मा।
मशारि$क (अ़.पु.)-'मश्रि$कÓ का बहु., सूर्योदय के स्थान।
मशारिब (अ़.पु.)-'मश्रबÓ का बहु., पानी पीे के स्थान।
मशाहिद (अ़.पु.)-'मश्हदÓ का बहु., $कब्रिस्तान।
मशाहीर (अ़.पु.)-'मश्हूरÓ का बहु., महान् व्यक्ति, नामवर लोग, प्रसिद्घ लोग।
मशाहीरे अ़ालम (अ़.पु.)-विश्व-प्रसिद्घ, संसार के महान् व्यक्ति।
मशाहीरे वक़्त (अ़.पु.)-अपने समय के सुप्रसिद्घ लोग।
मशी (अ़.पु.)-चलना; टहलना।
मशीख़्ात (अ़.स्त्री.)-बड़प्पन, बुज़ुर्गी; डींग, शेखी।
मशीख़्ातपनाह (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मशीख़्ातमआबÓ।
मशीख़्ातमआब (अ़.वि.)-शेखी बघारनेवाला, शेखीख़्ाोर, डींग हाँकनेवाला।
मशीब (अ़.पु.)-बाल स$फेद होना।
मशीम: (अ़.पु.)-वह झिल्ली जो जन्म के समय शिशु पर लिपटी रहती हैे; आँख का छठा पर्दा।
मशीयत (अ़.स्त्री.)-ईश्वरेच्छा, भगवान् की मजऱ्ी; $कुद्रत, दैवशक्ति।
मशूब (अ़.पु.)-मिला हुआ, मिश्रित।
मशूम (अ़.वि.)-दे.-'मश्ऊमÓ का बहु., दोनों शुद्घ हैं, अशुभ, अनिष्ट, मन्हूस।
मशूर: (अ़.पु.)-परामर्श, सलाह, दे.-'मश्वुर:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
मश्अ़ल: (अ़.पु.)-दे.-'मश्अ़लÓ।
मश्अ़ल (अ़.स्त्री.)-एक लम्बी लकड़ी में कपड़ा लपेटकर और उसे तेल में तर करके जलाते हैं, यही 'मश्अ़लÓ है, मशाल।
मश्अ़लवी (अ़.$फा.पु.)-मश्अ़ल लेकर आगे चलनेवाला, मश्अ़ल दिखानेवाला, मशालची।
मश्ऊफ़ (अ़.वि.)-मुग्ध, मोहित, आशक्त।
मश्ऊम (अ़.वि.)-दे.-'मशूमÓ, दोनों शुद्घ हें, अनिष्ट, अशुभ, मन्हूस।
मश्क़ (अ़.स्त्री.)-अभ्यास, किसी काम को बार-बार करना; टेव, अ़ादत; हस्त-कौशल, महारत।
मश्क ($फा.स्त्री.)-परवाल, पानी भरने की चमड़े की बनी हुई थैली।
मश्कीज़: (अ़.पु.)-छोटी मश्क।
मश्कूक (अ़.वि.)-संदिग्ध, जिसमें शक हो; जिसे शक हो, शंकित।
मश्कूर (अ़.वि.)-जिसका शुक्रिया अदा किया जाए, प्रशंसित।
मश्के आब ($फा.स्त्री.)-पानी से भरी हुई मश्क।
मश्के सुख़्ान (अ़.$फा.स्त्री.)-काव्य-रचना का अभ्यास।
मश्कोय ($फा.पु.)-मूर्तिगृह, बुतख़्ाान:; अंत:पुर, हरमसरा।
मश्ग़ल: (अ़.पु.)-रोजग़ार, व्यवसाय, उद्यम, व्यापार, शुग़्ल; कार्य, काम।
मश्$गूल (अ़.वि.)-व्यस्त, लीन, तल्लीन, संलग्न, प्रवृत्त।
मश्$गूलियत (अ़.स्त्री.)-व्यस्तता, तल्लीनता, संलग्नता।
मश्ना (अ़.पु.)-दुश्मनी रखना, शत्रुता रखना।
मश्बर (अ़.पु.)-गिरह, गाँठ।
मश्मूम (अ़.वि.)-सूँघा हुआ।
मश्मूल (अ़.वि.)-सम्मिलित, शामिल किया हुआ।
मश्रब (अ़.पु.)-पानी पीने का स्थान; आस्था, मत, विश्वास।
मश्रि$क (अ़.पु.)-पूर्व, पूरब, उदयाचल, सूर्य निकलने का स्थान।
मश्रिक़ी (अ़.वि.)-पूर्वीय, पूरब का; भारतीय, देशी; जो यूरोपीय न हो बल्कि एशियाई हो।
मश्रिक़ीयात (अ़.स्त्री.)-एशियाई-संस्कृति और सभ्यता से सम्बन्धित विज्ञान।
मश्रिकैऩ (अ़.पु.)-दोनों पूर्व अर्थात् पूरब और पच्छिम।
मश्रूअ़ (अ़.वि.)-शास्त्र के अनुसार किया हुआ; इस्लामी धर्मशास्त्र के अनुसार किया हुआ।
मश्रूत (अ़.वि.)-जो किसी शर्त पर निर्धारित हो।
मश्रूब (अ़.वि.)-पीनेवाली चीज़, पानीय, पेय; पिया हुआ।
मश्रूबात (अ़.पु.)-पीनेवाली चीजें़, पेय।
मश्रूह (अ़.वि.)-विवरण और विस्तार के साथ कहा हुआ।
मश्रूहन (अ़.अव्य.)-विस्तारपूर्वक, पूरी तफ़्सील से।
मश्वर: (अ़.पु.)-दे.-'मश्वुर:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है मगर उर्दू में 'मश्वर:Ó ही प्रचलित है, परामर्श, मंत्रणा, सलाह।
मश्वी (अ़.वि.)-भुना हुआ, भ्रष्ट, बियीं।
मश्वुर: (अ़.पु.)-परामर्श, मंत्रणा, सलाह। शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'मश्वर:Ó प्रचलित है।
मश्वुरत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मश्वुर:Ó।
मश्वुरतख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-परामर्श-कक्ष, मंत्रणागार।
मश्शा (अ़.पु.)-बहुत चलनेवाला।
मश्शाई (अ़.वि.)-'मश्शाईनÓ में का एक व्यक्ति।
मश्शाईन (अ़.पु.)-वैज्ञानिक विद्वानों का वह सम्प्रदाय, जो एक-दूसरे के पास जाकर पठन-पाठन करते थे (यह 'इशा$कीनÓ का विपरीतार्थक शब्द है, जिसका अर्थ है-आत्मशक्ति द्वारा पठन-पाठन करना)।
मश्शाक़ (अ़.वि.)-किसी कार्य-विशेष का बहुत अच्छा जानकार, विशेषज्ञ, दक्ष, कुशल।
मश्शाक़ी (अ़.स्त्री.)-दक्षता, कुशलता, प्रवीणता।
मश्शात: (अ़.स्त्री.)-प्रसाधिका, औरतों का बनाव-सिंगार करनेवाली औरत।
मश्शातगी (अ़.स्त्री.)-प्रसाधन, स्त्रियों का बनाव-सिंगार कराने का काम।
मश्हद (अ़.पु.)-उपस्थित होने का स्थान; शहीद होने का स्थान, शहादतगाह; शहीदों का $कब्रिस्तान; ईरान का एक नगर जिसे 'तूसÓ भी कहते हैं।
मश्हूद (अ़.वि.)-जो उपस्थित किया गया हो; जिस पर गवाही दी गई हो; ध्येय, मक़्सूद, लक्ष्य।
मश्हून (अ़.वि.)-जो भरा हुआ हो, परिपूर्ण।
मश्हूर (अ़.वि.)-प्रसिद्घ, विख्यात।
मश्हूरोमाÓरूफ़ (अ़.वि.)-बहुत अधिक प्रसिद्घ, जिसे प्राय: सभी जानते हों, सुप्रसिद्घ, बहुख्यात।
मस [स्स] (अ़.पु.)-स्पर्श, छूना; रुचि, रग्ग़त। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
मस [स्स] (अ़.पु.)-चूसना, चूसन। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मसर्रत (अ़.स्त्री.)-हर्ष, आनन्द, ख़्ाुशी।
मसर्रतअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-हर्षवद्र्घक, आनन्द बढ़ानेवाला।
मसर्रतअफ्ज़़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मसर्रतअंगेज़Ó।
मसर्रतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-हर्षपूर्ण, आनन्दमय, ख़्ाुशी से भरा हुआ।
मसर्रते $कल्बी (अ़.स्त्री.)-हार्दिक आनन्द, दिली ख़्ाुशी।
मसर्रते बेहद (अ़.$फा.स्त्री.)-अत्यधिक हर्ष, बहुत जिय़ादा ख़्ाुशी।
मसर्रते रूहानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'मसर्रते $कल्बीÓ।
मसल (अ़.स्त्री.)-लोकोक्ति, कहावत; समान, तुल्य, मिस्ल।
मसलन (अ़.अव्य.)-उदाहरणार्थ, मिसाल के तौर पर, जैसे, मानो।
मसल्तुमसलन (अ़.क्रि.)-मैं एक उदाहरण देता हूँ, उदाहरण के रूप में, मिसाल के तौर पर, मसलन, जैसे कि, माना कि।
मसाइब (अ़.पु.)-'मुसीबतÓ का बहु., मुसीबतें, विपत्तियाँ, आ$फतें, कठिनाइयाँ, दुश्वारियाँ।
मसाइल (अ़.पु.)-'मस्अ़ल:Ó का बहु., मस्अ़ले, समस्या-समूह, समस्याएँ।
मसाई (अ़.स्त्री.)-'मस्अ़ातÓ का बहु., प्रयत्न, कोशिशें।
मसा$क (अ़.पु.)-हाँकने का स्थान, जहाँ हाँका गया हो।
मसाकिन (अ़.पु.)-'मस्कनÓ का बहु., अनेक मकान, बहुत-से घर, बहुत-सी जगहें।
मसाकीन (अ़.पु.)-'मिस्कीनÓ का बहु., कंगाल लोग, $गरीब लोग, मँगता लोग।
मसाक़ेअ़ (अ़.पु.)-सुवक्ता, सुभाषी।
मसा$ग (अ़.पु.)-किसी वस्तु की रवानगी का स्थान।
मसाजिद (अ़.स्त्री.)-'मस्जिदÓ का बहु., मस्जिदें।
मसाद (अ़.पु.)-आखेट-स्थल, शिकारगाह।
मसादिर (अ़.पु.)-'मस्दरÓ का बहु., अनेक मस्दर, भाषा-व्याकरण की धातुएँ, जिनसे क्रिया, कर्ता और धातु-कर्म आदि बनते हैं।
मसान: (अ़.पु.)-मूत्राशय, मूत्रकोष, पेशाब की थैली।
मसा$फ (अ़.पु.)-रण, समर, युद्घ, जंग, लड़ाई।
मसा$फत (अ़.स्त्री.)-दो स्थानों के बीच की दूरी, $फासिला, अन्तर; दूरी, रास्ते की दूरी; यात्रा, स$फर। 'मैंने मंजि़ल के लिए कितनी मसा$फत की है, आके देखे तो सही पाँव के छाले कोईÓ-माँझी
मसा$फते बद्रीद: (अ़.स्त्री.)-लम्बा स$फर, लम्बी यात्रा, दूर की यात्रा।
मसाम (अ़.पु.)-शरीर की चमड़ी के वे छिद्र जिनसे पसीना आदि बाहर निकलता है, श्वेद-छिद्र, रोमछिद्र, लोम-विवर, लोमकूप, रोमकूप, रोमगर्त।
मसामात (अ़.पु.)-'मसामÓ का बहु., शरीर की चमड़ी के रोमकूप या श्वेद-छिद्र।
मसारि$फ (अ़.पु.)-'मस्रि$फÓ का बहु., व्यय, ख़्ार्चे।
मसारिफ़े ख़्ाानगी (अ़.$फा.पु.)-निजी ख़्ार्च, व्यक्तिगत ख़्ार्च, घर का ख़्ार्च।
मसारिफ़े ख़्ाुरोनाश (अ़.$फा.पु.)-खान-पान का व्यय, खाने-पीने का ख़्ार्च।
मसारिफ़े बारबरदारी (अ़.$फा.पु.)-माल-भाड़ा, गाड़ी का किराया, सामान को एक स्थान से दूसरे पर पहुँचाने का किराया।
मसारिफ़े बेजा (अ़.$फा.पु.)-बेकार का ख़्ार्च, अनुचित व्यय, $गलत ख़्ार्च।
मसारिफ़े स$फर (अ़.$फा.पु.)-यात्रा-व्यय, कहीं आने-जाने का ख़्ार्च, मार्ग-व्यय, स$फर का ख़्ार्च।
मसालत (अ़.पु.)-पूछना, प्रश्न करनो; दे.-'मस्अ़लतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
मसालिक (अ़.पु.)-'मस्लकÓ का बहु., रास्ते, मार्ग।
मसालिह: (अ़.पु.)-ठीक करनेवाली वस्तु, मसाला।
मसालेह (अ़.पु.)-'मस्लहतÓ का बहु., दूरअंदेशियाँ, दूर की सोच, परिणामदर्शिता।
मसावीक (अ़.पु.)-'मिस्वाकÓ का बहु., दाँत सा$फ करने की मिस्वाकें, दातुनें, दन्तधावन।
मसास (अ़.पु.)-सहवास अथवा मैथुन के समय स्त्री के अंगों का मर्दन, दे.-'मिसासÓ, शुद्घ वही है मगर उर्दू में 'मसासÓ ही प्रचलित है।
मसीर (अ़.पु.)-जाना, गमन करना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
मसीर (अ़.पु.)-वापस आना, लौटना, प्रत्यागमन; लौटने अथवा वापस आने का स्थान। इसका 'सÓ उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मसील (अ़.वि.)-बराबर, समान, तुल्य, सदृश, मिस्ल, किसी के जैसा।
मसीह (अ़.पु.)-हज्ऱत ईसा, ईसाई-धर्म के प्रवर्तक।
मसीहनफ़स (अ़.पु.)-वह व्यक्ति जिसकी फँूक में हज्ऱत ईसा की फूँक-जैसा असर अथवा गुण हो, जो मुर्दों को जीवित कर देती थी।
मसीहा (अ़.पु.)-दे.-'मसीहÓ।
मसीहाई (अ़.वि.)-ईसा के काम करना अर्थात् मुर्दों को जीवित करना।
मसीहादम (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मसीहनफ़सÓ।
मसीहानफ़स (अ़.वि.)-दे.-'मसीहनफ़सÓ।
मसीहासिफ़त (अ़.वि.)-हज्ऱत ईसा-जैसे गुण रखनेवाला, मसीह-जैसी विशेषता रखनेवाला, मुर्दे को जीवित करने-वाला।
मसीहावश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मसीहासि$फतÓ, मसीह की भाँति।
मसीही (अ़.वि.)-हज्ऱत मसीह को माननेवाला, ईसाई।
मसून (अ़.वि.)-सुरक्षित, मह$फूज़।
मसूबत (अ़.पु.)-नेकी का बदला, प्रत्योपकार।
मसूस (अ़.पु.)-वह भुना हुआ पक्षी जिसे भूनकर सिर्के में डाला गया हो।
मस्अ़ल: (अ़.पु.)-समस्या, पेचीदा मुअ़ामला, जटिल समस्या; विषय, मौज़ूअ़; धर्मशास्त्र-सम्बन्धी आदेश।
मस्अ़लत (अ़.स्त्री.)-पूछना, प्रश्न करना।
मस्ऊद (अ़.वि.)-कल्याणकारी, इष्ट, शुभ, नेक।
मस्ऊन (अ़.वि.)-दे.-'मसूनÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
मस्ऊब (अ़.वि.)-पुण्य किया हुआ, सबाब किया हुआ।
मस्ऊल (अ़.वि.)-जो पूछा जाए, जिससे जवाब लिया जाए, जवाबदेह, जि़म्मेदार, उत्तरदायी।
मस्क: ($फा.पु.)-मक्खन, नवनीत, क्षीरसार।
मस्क़त (अ़.पु.)-अऱब की एक ख़्ाुद मुख़्तार छोटी-सी रियासत; उस रियासत की राजधानी।
मस्कन (अ़.पु.)-रहने की जगह, घर, गृह, मकान।
मस्कनत (अ़.स्त्री.)-नरमी, नम्रता, विनय, विनीत; कंगाली, निर्धनता, दरिद्रता।
मस्कि़त (अ़.पु.)-गिरने का स्थान।
मस्कि़तुर्रास (अ़.पु.)-सिर गिरने का स्थान, चूँकि जन्म लेते समय सिर ज़मीन पर पहले आता है, इसलिए पैदा होने के स्थान को कहते हैं, जन्मभूमि।
मस्कूक (अ़.वि.)-ठप्पा लगाया हुआ, टकसाल में गढ़ा हुआ, टकसाल में बनाया हुआ।
मस्कून: (अ़.वि.)-जिसमें रिहाइश हो, आबाद।
मस्कून (अ़.वि.)-आबाद, वसित।
मस्$कूल (अ़.वि.)-उज्ज्वल, चमकदार; सै$कल किया हुआ, चमकाया हुआ, माँजा हुआ; प्रकाशमान्, रौशन।
मस्ख़्ा (अ़.वि.)-बिगडऩा, विकार उत्पन्न होना, अच्छी से बुरी सूरत हो जाना; विकृति, बिगड़े हुए रूपवाला।
मस्ख़्ार: (अ़.पु.)-हँसी-ठट्ठे करनेवाला आदमी, हँसोड़; नक़्लें करनेवाला, नक़्$काल, विदूषक।
मस्ख़्ारगी (अ़.$फा.स्त्री.)-हँसी-ठट्ठा, मस्ख़्ारापन।
मस्ख़्ाशुद: (अ़.$फा.वि.)-रूप-भ्रष्ट, विकृत, रूपांतरित, जो बिगड़कर कुछ का कुछ हो गया हो।
मस्जिद (अ़.स्त्री.)-नमाज़ पढऩे की जगह, मसीत।
मस्जिदे जामेÓ (अ़.स्त्री.)-वह मस्जिद जिसमें शुक्रवार की बड़ी नमाज़ होती है, बड़ी मस्जिद।
मस्जूद (अ़.वि.)-जिसको सज्दा किया जाए, जिसके लिए पूजा में सिर झुकाया जाए, ईश्वर, परमात्मा।
मस्जूदे मलाइक (अ़.वि.)-'हज्ऱते आदमÓ अर्थात् मूल पुरुष, मनु, जिनको $िफरिश्तों ने सज्दा किया था।
मस्त ($फा.वि.)-मदोन्मत्त, उन्मत्त, नशे में चूर, मतवाला; बहुत अधिक प्रसन्न; बेपर्वा, निस्पृह।
मस्तगी ($फा.स्त्री.)-एक वृक्ष की गोंद (इसका अऱबी उच्चारण 'मुस्तकाÓ है)।
मस्तब: (अ़.पु.)-मयख़्ााना, मधुशाला, मदिरालय, शराब-ख़्ााना, दे.-'मिस्तब:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
मस्तान: ($फा.वि.)-मस्तों की तरह, मस्त-जैसा; मस्त, मत्त।
मस्ती ($फा.स्त्री.)-उन्माद, नशा, काम-वेग, जोशे-शहवत; निश्चेष्टता, बेख़्ाबरी; बेख़्ाुदी, ईश्वर-प्रेम का आधिक्य।
मस्तूर: (अ़.वि.)-छिपी हुई वस्तु।
मस्तूर (अ़.वि.)-छिपा हुआ, गुप्त, पोशीदा। इसका 'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
मस्तूर (अ़.वि.)-लिखित, लिखा हुआ। इसका 'तÓ उर्दू के 'तोय अक्षर से बना है।
मस्तूरात (अ़.स्त्री.)-'मस्तूर:Ó का बहु., महिलाएँ, स्त्रियाँ।
मस्तूरी (अ़.वि.)-छिपाव, दुराव, पोशीदगी।
मस्तूल ($फा.पु.)-जहाज़ का वह लम्बा खम्भा जिसमें बादबान (मरुत्पट, झण्डा) बौधा जाता है।
मस्ते अलस्त (अ़.$फा.वि.)-जो स्वभाव से ही मस्त हो, जो हर समय मस्त रहता हो; वह मस्त जो ब्रह्मïलीन हो।
मस्ते मै ($फा.वि.)-मदोन्मत्त, मदिरामत्त, शराब के नशे में चूर।
मस्ते राह (अ़.$फा.वि.)-शराब के नशे में मस्त, मदोन्मत्त।
मस्ते शबाब (अ़.$फा.वि.)-जवानी के नशे में चूर।
मस्ते शराब (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मस्ते मैÓ।
मस्दर (अ़.पु.)-उत्पत्ति-स्थल, उद्गम; वह शब्द जिससे क्रियाएँ और कर्ता तथा धातु-कर्म आदि बनते हैं।
मस्दरे $गैरवज़्ई (अ़.पु.)-वह धातु, जो किसी दूसरी भाषा के शब्द से बनाया जाए, जैसे-'आज़मानाÓ।
मस्दरे मुतअ़द्दी (अ़.पु.)-वह धातु जिसकी क्रियाएँ सकर्मक हों।
मस्दरे लाजि़म (अ़.पु.)-वह धातु जिसकी क्रियाएँ अकर्मक हों।
मस्दरे वज़्ई (अ़.पु.)-वह धातुरूप, जो उसी भाषा का हो।
मस्दूद (अ़.वि.)-अवरुद्घ, निरुद्घ, बन्द किया हुआ, रोका हुआ।
मस्नद (अ़.पु.)-तकिया लगाकर बैठने का स्थान; वह स्थान जिस पर प्रतिष्ठितजन बैठते हैं; बड़ा तकिया।
मस्नदआरा (अ़.$फा.वि.)-मस्नद की शोभा बढ़ानेवाला अर्थात् मस्नद पर बैठनेवाला।
मस्नदनशीं (अ़.$फा.वि.)-मस्नद पर बैठनेवाला; गद्दीनशीन; तख़्तनशीन।
मस्नदनशीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-मस्नद पर बैठना; किसी साधु या $फ$कीर का गद्दी पर बैठना; किसी राजा का राजसिंहासन पर बैठना।
मस्नवी (अ़.स्त्री.)-उर्दू पद्य की एक $िकस्म, जिसमें कोई कहानी या उपदेश एक ही वृत्त में होता है और उसका हर शेÓर दूसरे शेÓर से रदी$फ-$का$िफए में नहीं मिलता तथा हर शेÓर के दोनों मिस्रे सानुप्रास होते हैं।
मस्नूअ़: (अ़.वि.)-बनी हुई वस्तु, कारीगर के हाथ की बनी हुई चीज़।
मस्नूअ़ (अ़.वि.)-निर्मित, बना हुआ।
मस्नूअ़ात (अ़.स्त्री.)-किसी देश या स्थान की बनी हुई वस्तुएँ, वे वस्तुएँ जो किसी देश-विशेष की कारीगरी हों।
मस्नूई (अ़.वि.)-मिथ्या, झूठा; कृत्रिम, बनावटी; जो स्वभाविक न हो, अप्राकृतिक।
मस्नून (अ़.पु.)-वह बात जो नियमानुसार हो; रौशन किया हुआ।
मस्$फू$फ (अ़.वि.)-पिसा हुआ, चूर्ण बना हुआ, चूर्णित।
मस्बू$क (अ़.वि.)-पहले गुजऱा हुआ, पहले आया हुआ।
मस्बू$कुजि़्ज़क्र (अ़.वि.)-जिसकी चर्चा पहले हो चुकी हो, पूर्वोक्त, पूर्वकथित।
मस्बूग़ (अ़.वि.)-रँगा हुआ, रंगीन, रंजित।
मस्मूअ़ (अ़.वि.)-सुना हुआ, श्रुत।
मस्मूत (अ़.पु.)-जि़बहशुद:; जिस जानवर को $कत्ल करके गर्म पानी से खाल उतार ली गई हो।
मस्मूम (अ़.वि.)-ज़हर मिला हुआ, ज़हरीला, विषाक्त।
मस्रि$फ (अ़.पु.)-व्यय करने की जगह; प्रयोजन, इस्तेमाल।
मस्रूअ़ (अ़.वि.)-जिसे मिर्गी-रोग हो, अपस्मारी।
मस्रू$क: (अ़.वि.)-चोरी का, चुराया हुआ।
मस्रू$क (अ़.वि.)-चुराया हुआ, चोरी किया हुआ।
मस्रू$फ (अ़.वि.)-व्यस्त, काम में लगा हुआ, निरत, प्रवृत्त, संलग्न, मश्$गूल; जिसे $फुर्सत न हो, अवकाशहीन।
मस्रू$िफयत (अ़.स्त्री.)-काम में व्यस्तता, संलग्नता, मश्$गूली; अवकाशहीनता।
मस्रूर (अ़.वि.)-हर्षित, आनन्दित, प्रसन्न, प्रफुल्ल; ख़्ाुश, उल्लसित।
मस्लक (अ़.पु.)-मार्ग, पथ, रास्ता; पंथ, मत, धार्मिक आस्था; शैली, पद्घति, तरी$का।
मस्लख़्ा (अ़.पु.)-कमेला, बूचड़ख़्ााना, जहाँ पशुओं का वध करके उनकी खाल उतारी जाती है।
मस्लब (अ़.पु.)-शरण-स्थल।
मस्लहत (अ़.स्त्री.)-राय, मश्वुरा, परामर्श, सलाह; भेद, राज़, रहस्य; हित, भलाई; अपने बनाव या बिगाड़ का ध्यान रखते हुए कोई काम करना।
मस्लहतअंदेश (अ़.$फा.वि.)-भला-बुरा सोचकर काम करनेवाला।
मस्लहतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जिसमें कोई भलाई हो।
मस्लहतख़्वाह (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मस्लहत पसंदÓ।
मस्लहतन (अ़.$वि.)-परामर्श से, सलाह से, कारणवश।
मस्लहतपसंद (अ़.$फा.वि.)-शान्तिप्रिय; शुभेच्छु, भलाई चाहनेवाला, शुभ या अच्छा चाहनेवाला, ख़्ौरख़्वाह; अच्छा-बुरा विचारकर काम करनेवाला।
मस्हलतबीं (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मस्लहतअंदेशÓ।
मस्लहतबीनी (अ़.$फा.स्त्री.)-अच्छा-बुरा विचारकर काम करना।
मस्लहते वक़्त (अ़.स्त्री.)-समय की माँग।
मस्लूक (अ़.वि.)-जिसके साथ भलाई की जाए, जिसके साथ उपकार किया जाए; गया हुआ।
मस्लूब (अ़.$वि.)-जिसे सूली पर चढ़ाया गया हो। इसका 'स्Ó उर्दू के 'स्वादÓ अक्षर से बना है।
मस्लूब (अ़.$वि.)-जो छीन लिया गया हो, हत, विनष्ट। इसका 'स्Ó उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
मस्लूबुलअ़क़्ल (अ़.$वि.)-जिसकी बुद्घि नष्ट हो गई हो, हतबुद्घि।
मस्लूबुलहवास (अ़.$वि.)-जो होशो-हवास खो बैठा हो।
मस्लूल (अ़.$वि.)-जिसे तपेदिक अथवा राजयक्ष्मा की बीमारी हो, जिसके फेफड़ों से रक्त आता हो, रक्तकाशी।
मस्वा (अ़.पु.)-ठिकाना, आवास; रक्षा-स्थल।
मस्साह (अ़.$वि.)-नपत करनेवाला, पैमाइश करनेवाला।
मस्ह (अ़.$पु.)-नमाज़ से पहले वज़ू करते समय सिर पर गीला हाथ फेरना।
मस्हूक़ (अ़.वि.)-पिसा हुआ, रगड़ा हुआ।
मस्हूब (अ़.वि.)-साथी, हमराही, हमस$फर, सहयात्री।
मस्हूर (अ़.वि.)-जिस पर जादू किया गया हो, मंत्रमुग्ध।
मह ($फा.पु.)-'माहÓ का लघु., चाँद, चन्द्रमा, चन्द्र। 'मह-ए-ईदÓ-ईद का चाँद।
महक [क्क] (अ़.स्त्री.)-कसौटी का पत्थर, कसौटी, निकष।
महत (अ़.पु.)-सख़्त, कठिन; गर्म दिन।
महताब ($फा.पु.)-'माहताबÓ का लघु., चन्द्रमा, चाँद, शशि; कौमुदी, चाँदनी।
महताबी ($फा.वि.)-बादला, कमख़्वाब, जऱी; वह अड्डा जिसे कोठे की सीढिय़ों के ऊपर बनाते हैं; एक प्रकार की आतिशबाज़ी जिसे छुड़ाने से चाँदनी-सी छिटक जाती है।
महफ्फ़़: (अ़.पु.)-दे.-'मुहा$फ:Ó।
महब्बत (अ़.स्त्री.)-प्रेम, स्नेह, प्यार, इश्$क; मैत्री, मित्रता, दोस्ती; ममता, मामता, माता-पिता का प्यार; कृपा, दया।
महब्बतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जिससे प्रेम टपकता हो, प्रेमपूर्ण, स्नेहपूर्ण।
महब्बतनाम: (अ़.$फा.पु.)-प्रेमपत्र, अ़ाशि$कान: ख़्ात; कृपा-पत्र, नवाजि़शनाम:।
महम [म्म], मुहिम (अ़.पु.)-चिन्ता, $िफक्र; बड़ा और महत्त्वपूर्ण काम।
महमाअम्कन (अ़.वा.)-जब तक हो सके, जहाँ तक मुम्किन हो, जहाँ तक सम्भव हो।
महल [ल्ल] (अ़.पु.)-प्रासाद, हवेली; घर, मकान; स्थान, जगह; बीवी, पत्नी; अवसर, मौ$का।
महलसरा (अ़.$फा.पु.)-रनवास, अन्त:पुर, बड़े लोगों का जऩानख़्ााना।
महल्ल: (अ़.पु.)-नगर का एक भाग जिसमें बहुत-से मकान हों, टोला, पुरा।
महल्ल:दार (अ़.$फा.पु.)-महल्ले का चौधरी या मुखिया।
महल्लात (अ़.पु.)-'महलÓ का बहु., मौ$के, अवसर; बड़़े लोगों की स्त्रियाँ, रनवास, अन्त:पुर, हरम।
महल्ले ख़्ातर (अ़.पु.)-जान-जोखिम का स्थान, ख़्ातरे की जगह।
महल्ले नजऱ (अ़.पु.)-जहाँ कोई शंका या आपत्ति उत्पन्न हो, शक या एतिराज़ का स्थान।
महवश ($फा.वि.)-चाँद-जैसी आभा और आकृतिवाला (वाली)।
महाकिम (अ़.पु.)-'मह्कम:Ó का बहु., महकमे, विभाग।
महाज़ (अ़.पु.)-मु$काबले या लड़ाई का स्थान।
महाज़े जंग (अ़.$फा.पु.)-समरभूमि, युद्घ-क्षेत्र, रण-स्थल, मैदाने-जंग, रंग-भूमि।
महा$िफल (अ़.पु.)-'मह$िफलÓ का बहु., सभाएँ, गोष्ठियाँ।
महाब (अ़.पु.)-डर की जगह, भय का स्थान, डरावनी जगह।
महाबत (अ़.स्त्री.)-भय, त्रास, डर; आतंक, रोब, प्रभाव; श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी।
महाम [म्म], मुहाम (अ़.पु.)-'महमÓ का बहु., बड़े और महत्त्वपूर्ण काम।
महामिद (अ़.पु.)-'मह्मदतÓ का बहु., कीर्तियाँ, यश-समूह, गुण-समूह।
महार (अ़.स्त्री.)-ऊँट की नकेल, दे.-'मिहारÓ, दोनों शुद्घ हैं।
महारत (अ़.स्त्री.)-निपुणता, चतुरता, $काबिलीयत; उस्तादी, कारीगरी; अभ्यास, मश्क़; हस्त-कौशल, चाबुकदस्ती।
महारिम (अ़.पु.)-'मह्रमÓ का बहु., भेदिया लोग, राज़दार लोग।
महारीब (अ़.स्त्री.)-'मेह्राबÓ का बहु., मेह्राबें, गुम्बदें।
महाल: (अ़.पु.)-उपाय, यत्न, तद्बीर, युक्ति।
महाल [ल्ल] (अ़.पु.)-'महलÓ का बहु., महल-समूह, भवन-समूह, हवेलियाँ; जगहें, स्थान।
महाल (अ़.वि.)-भीषण, भयानक, ख़्ाौ$फनाक, डरावना।
महालिक (अ़.पु.)-'मह्लक:Ó का बहु., ख़्ातरों की जगह, जान-जोखिम के स्थान।
महाश (अ़.पु.)-घर का सामान; माल-अस्बाब, धन-दौलत।
महासिन (अ़.पु.)-'हुस्नÓ का बहु., अच्छाइयाँ; दाढ़ी, श्मश्रू।
महासिल (अ़.पु.)-भूमिकर, लगान; मालगुज़ारी, राजस्व; आय, आमदनी।
महासिले ख़्ााम (अ़.$फा.पु.)-कच्ची निकासी, गाँव की कुल आमदनी जिसमें मालगुज़ारी और न$फाÓ सब शामिल हों।
महीज़ (अ़.स्त्री.)-रजवती-स्त्री, रजस्वला, ऋतुमती, स्त्री के मासिक-धर्म होने की दशा।
महीन: ($फा.पु.)-'माहीन:Ó का लघु., वर्ष अथवा साल का बारहवाँ अंश, मास, महीना।
महीन (अ़.वि.)-पतला, बोदा, कमज़ोर; जीर्ण, झन्ना, झीना; तुच्छ, ह$कीर।
महीब (अ़.वि.)-विकराल, विकट, डरावना, ख़्ाौ$फनाक, भीषण, भयानक, जिसे देखकर डर लगे।
महीबशक्ल (अ़.वि.)-जिसकी सूरत डरावनी हो, विकट-मूर्ति, विकटानन, दै.-'महीबुशशक्लÓ।
महीबुलऐन (अ़.वि.)-डरावने नेत्रोंवाला, विकटाक्ष, भीषण-नेत्र, जिसकी आँखें डरावनी हों।
महीबुल$काम: (अ़.वि.)-डरावने डील-डौलवाला, दे.-'महिबुलजुस्स:Ó।
महीबुलजुस्स: (अ़.वि.)-डरावने डील-डौलवाला, भयानक आकृतिवाला, भीमकाय।
महीबुलवज्ह (अ़.वि.)-दे.-'महीबुशशक्लÓ।
महीबुशशक्ल (अ़.वि.)-डरावनी सूरतवाला, जिसे देखकर डर लगे, विकटानन, विकट-मूर्ति।
महीबुस्सूरत (अ़.वि.)-दे.-'महीबुशशक्लÓ।
महीबुस्सौत (अ़.वि.)-डरावनी आवाज़वाला, जिसकी आवाज़ कर्कश और भयानक हो, भैरव।
महील (अ़.वि.)-वह स्थान जहाँ डर लगे, भय का स्थान, ख़्ाौ$फ की जगह।
महे ईद (अ़.पु.)-ईद का चाँद।
मह्कम: (अ़.पु.)-विभाग, अनुभाग, सी$गा, डिपार्टमेंट; कचहरी, अदालत, न्यायालय।
मह्कम:जात (अ़.$फा.पु.)-बहुत-से मह्कमे, अनेक विभाग या अनुभाग।
मह्कमए आबकारी (अ़.$फा.पु.)-मद्य-विभाग।
मह्कमए आबपाशी (अ़.$फा.पु.)-सिंचाई-विभाग।
मह्कमए आबादकारी (अ़.$फा.पु.)-पुनर्वास-विभाग।
मह्कमए इंसा$फ (अ़.पु.)-न्याय-विभाग।
मह्कमए $कज़ा (अ़.पु.)-न्याय -विभाग।
मह्कमए $कानून (अ़.पु.)-न्याय-विभाग।
मह्कमए जिऱाअ़त (अ़.पु.)-कृषि-विभाग।
मह्कमए ताÓमीर (अ़.पु.)-निर्माण-विभाग।
मह्कमए ताÓलीम (अ़.पु.)-शिक्षा-विभाग।
मह्कमए तौसीए ताÓलीम (अ़.पु.)-शिक्षा-प्रसार-विभाग।
मह्कमदि$फाअ़ (अ़.पु.)-रक्षा-विभाग।
मह्कमए नश्रोइशाअ़त (अ़.पु.)-प्रचार-प्रसार विभाग।
मह्कमए $फौज (अ़.पु.)-सैन्य-विभाग।
मह्कमए माल (अ़.पु.)-राजस्व-विभाग, अर्थ-विभाग।
मह्कमए मेहनत (अ़.पु.)-श्रम-विभाग।
मह्कमए सन्अ़तोहिर्फ़त (अ़.पु.)-उद्योग तथा शिल्प-विभाग।
मह्कमए सेहत (अ़.पु.)-स्वास्थ्य-विभाग।
मह्कमए हिफ्ज़़ाने सेहत (अ़.पु.)-स्वास्थ्य-रक्षा-विभाग, स्वास्थ्य-विभाग।
मह्किया (अ़.पु.)-बताया हुआ, कहा हुआ, कथित।
मह्कूक (अ़.वि.)-छीला हुआ, कटा-फटा।
मह्कूम (अ़.वि.)-वशीभूत, अधीन; प्रजा; दास, $गुलाम।
मह्कूमी (अ़.स्त्री.)-दासता, $गुलामी, पराधीनता।
मह्ज़ (अ़.वि.)-सिर्फ़, केवल; निर्मल, विशुद्घ, ख़्ाालिस।
मह्जऱ (अ़.पु.)-उपस्थित होने का स्थान, हाजिऱ होने का स्थान, दे.-'मह्जऱनाम:Ó।
मह्जऱनाम: (अ़.$फा.पु.)-वह प्रार्थनापत्र जो किसी कार्य के लिए सामूहिक रूप से दिया जाए; वह प्रार्थनापत्र जिसपर गवाह के रूप में अनेक लोगों के हस्ताक्षर हों।
मह्ज़ी (अ़.स्त्री.)-राँपी, मोची का एक औज़ार।
मह्ज़ूँ (अ़.वि.)-शोकान्वित, $गमगीन; कष्टग्रस्त।
मह्ज़ूज़ (अ़.वि.)-प्रसन्न, ख़्ाुश, हर्षित, आनन्दित।
मह्ज़ून (अ़.वि.)-दे.-'मह्ज़ूँÓ।
मह्ज़ूनी (अ़.स्त्री.)-शोक, $गम, दु:ख, तक्ली$फ।
मह्ज़ू$फ (अ़.वि.)-वह अक्षर जो लुप्त हो; वह शब्द जो लुप्त हो।
मह्जूब (अ़.वि.)-लज्जित, शर्मिन्दा।
मह्ज़ूम (अ़.वि.)-पराजित, परास्त, हारा हुआ। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
मह्ज़ूम (अ़.वि.)-जो पव गया हो, जो हज़्म हो गया हो, पचित। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
मह्जूर (अ़.वि.)-वियोगी, विरही, विरहग्रस्त।
मह्जूरी (अ़.स्त्री.)-विरह, वियोग, जुदाई, $िफरा$क।
मह्ज़ूल (अ़.वि.)-दुबला-पतला, जीर्ण, क्षीण।
मह्द (अ़.पु.)-हिंडोला, पालना, गहवार:।
मह्दी (अ़.वि.)-दीक्षित, जिसे हिदायत मिली हो; धर्मनेता; शीअ़ा सम्प्रदाय के बारहवें इमाम जिनके प्रति उनका विश्वास है कि वह $कयामत के $करीब फिर आस्मान से आएँगे।
मह्दूद (अ़.वि.)-सीमित हद के अन्दर; कतिपय, चन्द, थोड़े; घिरा हुआ।
मह्दूम (अ़.वि.)-नष्ट, ध्वस्त।
मह्दे उल्या (अ़.स्त्री.)-बादशाह , राजा या नवाब की वह पत्नी जो युवराज की माँ हो।
मह्$िफज़: (अ़.पु.)-स्मरण-पुस्तिका, नोटबुक।
मह्$िफल (अ़.स्त्री.)-सभा, गोष्ठी, मज्लिस, जल्सा।
मह्$िफले रक़्स (अ़.स्त्री.)-नाच-गाने की गोष्ठी।
मह्$िफले वाÓज़ (अ़.स्त्री.)-धर्मोपदेश की सभा।
मह्$िफले शेÓर (अ़.स्त्री.)-काव्य-गोष्ठी।
मह्$फूज़ (अ़.वि.)-निरापद, सही-सलामत; आवश्यकता के लिए बचाकर रखी हुई वस्तु, सुरक्षित; कण्ठ, मुखाग्र, बरज़बाँ।
मह्$फू$फ (अ़.पु.)-घेरा डाला हुआ।
मह्बस (अ़.पु.)-जेल, कारागार, $कैदख़्ााना।
मह्बित (अ़.पु.)-जिस जगह कोई बड़ा व्यक्ति उतरता हो अथवा ठहरता हो।
मह्बिल (अ़.स्त्री.)-भग का मुँह, योनिद्वार, योनिमुख।
मह्बूब: (अ़.स्त्री.)-प्रेमिका, प्रेयसी, माÓशू$क:।
मह्बूब (अ़.पु.)-प्रेमपात्र, माÓशू$क; बहुत अधिक प्रिय।
मह्बूबी (अ़.वि.)-प्रेम, माÓशू$कपन, माÓशू$िकयत।
मह्बूस (अ़.वि.)-जेल में पड़ा हुआ, कै़द में बन्द, कारावासी, बन्दी।
मह्मिदत (अ़.स्त्री.)-यशोगान, प्रशंसा, कीर्ति-वर्णन, गुण-गाथा, सिताइश।
मह्मिल (अ़.पु.)-ऊँट पर बाँधने का कजावा जिसमें स्त्रियाँ बैठती हैं।
मह्मिलनशीं (अ़.$फा.वि.)-मह्मिल में बैठनेवाली अर्थात् मजनूँ की प्रेमिका, लैला।
मह्मूज़ (अ़.वि.)-विकृत, दूषित, ना$िकस; अऱबी भाषा का वह शब्द जिसके अक्षरों में एक अक्षर 'अलि$फÓ हो।
मह्मूद: (अ़.स्त्री.)-प्रशंसिता, जिसकी प्रशंसा अथवा तारी$फ की गई हो।
मह्मूद (अ़.वि.)-प्रशंसित, जिसकी प्रशंसा या तारी$फ हो; श्रेष्ठ, उत्तम, उम्दा; शुभ, इष्ट, मुबारक।
मह्मूदी (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की बारीक मलमल; मह्मूद-सम्बन्धी।
मह्मूम (अ़.वि.)-जिसे बुखार हो, ज्वरित; जिसका शरीर गर्म हो।
मह्मूम (अ़.वि.)-दु:खित, शोकान्वित, संतप्त, $गमगीन।
मह्मूल: (अ़.वि.)-लादी हुई वस्तु; कल्पना की हुई बात, कल्पित बात।
मह्मूल (अ़.वि.)-जो लादा गया हो; जिसकी कल्पना की गई हो।
मह्र ($फा.पु.)-वह र$कम जो निकाह के समय दुल्हन को दिए जाने के लिए तै होती है।
मह्रम (अ़.पु.)-भेदिया, भेद जाननेवाला, राज़दार; दोस्त, मित्र; परिचित, जान-पहचान का; वह व्यक्ति जिससे विवाह जाइज़ अथवा वैध न हो।
मह्रमे राज़ (अ़.$फा.पु.)-भेदिया, भेद जाननेवाला, राज़ या रहस्य जाननेवाला, मर्मज्ञ।
मह्रुख़्ा ($फा.वि.)-चाँद-जैसी शक्ल-सूरतवाला (वाली), चंद्रमुखी अर्थात् नायिका।
मह्रू ($फा.वि.)-दे.-'मह्रुख़्ाÓ।
मह्रू$क (अ़.वि.)-दग्ध, जला हुआ।
मह्रूम (अ़.वि.)-वंचित, जिसे न मिला हो; निराश, नाउम्मेद; अस$फल, ना-कामयाब; अभागा, बद$िकस्मत।
मह्रूमियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मह्रूमीÓ।
मह्रूमी (अ़.वि.)-बदनसीबी, दुर्भाग्य, बद$िकस्मती; न पाना, प्राप्त न होना, वंचित रहना; निराशा, नाउम्मेदी।
मह्रूर (अ़.वि.)-तप्त, तपा हुआ, गर्म; गर्म स्वभाववाला।
मह्रूरुलमिज़ाज (अ़.वि.)-जिसके स्वभाव में क्रोध अधिक हो, जिसे $गुस्सा जल्दी आता हो।
मह्रूस: (अ़.वि.)-अधीन वस्तु, वह वस्तु या देश जो किसी की निगरानी या नियंत्रण में हो।
मह्रूस (अ़.वि.)-नियंत्रित, ज़ेरे निगरानी, कंट्रोल में आया हुआ।
मह्लक: (अ़.पु.)-जान-जोखिम का स्थान, ख़्ातरे की जगह; जान-जोखिम।
मह्लूज (अ़.स्त्री.)-धुनी हुई रुई।
मह्लूल (अ़.वि.)-विलीन, घुला हुआ।
मह्व (अ़.वि.)-मिटाना, हटाना; तन्मय, तल्लीन।
मह्वियत (अ़.स्त्री.)-तन्मयता, तल्लीनता; ब्रह्मïलीनता।
मह्वीयत (अ़.स्त्री.)-दे.-'मह्वियतÓ।
मह्वीयते ह$क (अ़.स्त्री.)-ब्रह्मïलीनता, ईश्वर-भक्ति में तन, मन और धन से समर्पित।
मह्वेज़ात (अ़.वि.)-जो ईश्वर में लीन हो, ब्रह्मïलीन।
मह्वे दीदार (अ़.$फा.वि.)-जो पे्रयसी या प्रेमिका के दर्शन में तल्लीन हो।
मह्वे नज़्ज़ार: (अ़.वि.)-दे.-'मह्वे दीदारÓ।
मह्वे ह$क (अ़.वि.)-दे.-'मह्वेज़ातÓ।
मह्शर (अ़.पु.)-महाप्रलय, $िकयामत; प्रलय का दिन; प्रलय का मैदान।
मह्शरअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-$िकयामत उठानेवाला, प्रलय लानेवाला।
मह्शरख़्िाराम (अ़.$फा.वि.)-जो अपनी चाल से दुनिया में $िकयामत मचा दे, जिसकी चाल से महाप्रलय आ जाए।
मह्शरख़्िारामी (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसी चाल जिससे महाप्रलय आ जाए।
मह्शरज़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'मह्शरअंगेज़Ó।
मह्शरिस्तान (अ़.$फा.पु.)-प्रलय-क्षेत्र, $िकयामत का मैदान।
मह्शूर (अ़.वि.)-$िकयामत के दिन उठाया गया, जो महा-प्रलय के दिन जि़न्दा किया जाए।
मह्शूश (अ़.पु.)-दग्ध, जला हुआ; माँ के पेट में सूखा बच्चा।
मह्सूद (अ़.वि.)-जो लोगों की ईष्र्या का पात्र हो, ईष्र्यापात्र, जिससे लोग ईष्र्या करें।
मह्सूब (अ़.वि.)-हिसाब में जोड़ा हुआ; हिसाब में से घटाया हुआ।
मह्सूर (अ़.वि.)-घिरा हुआ, घेरे में आया हुआ, दुश्मन के घेरे में आया हुआ।
मह्सूल (अ़.पु.)-वह राशि जो माल भेजने या मँगाने पर उसकी मज़दूरी के रूप में दी जाए, किराया, माल-भाड़ा।
मह्सूली (अ़.वि.)-वह भूमि जिस पर लगान देना पड़ता हो; वह चीज़ जिस पर कर या टैक्स लगे।
मह्सूस (अ़.वि.)-इन्द्रियों द्वारा जानी जानेवाली वस्तु; ज्ञात, अनुभूत, माÓलूम; स्पष्ट, प्रकट, ज़ाहिर।
मह्सूसात (अ़.पु.)-मह्सूस की हुई चीज़, अनुभूतियाँ।
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