Thursday, October 15, 2015

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वआब (अ़.पु.)-शर्मसार होना, शर्मिन्दा होना, लज्जित होना।
वइल्ला (अ़.अव्य.)-नहीं तो, अन्यथा, वर्ना।
वईद (अ़.स्त्री.)-दण्ड की धमकी, सज़ा का वादा।
व$काएÓ (अ़.पु.)-'व$कीअ़:Ó का बहु., घटनाएँ; समाचार, ख़्ाबरें।
व$काएÓ नवीस (अ़.$फा.वि.)-इतिहासकार, वृत्तलेखक, मुअर्रिख़्ा; समाचार लेखक, संवाददाता, संवादकार।
व$काएÓ नवीसी (अ़.$फा.स्त्री.)-इतिहास लिखना, वृत्त-लेखन; संवाद देना, समाचार देना।
व$काएÓ निगार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$काएÓ नवीसÓ।
व$काएÓ निगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'व$काएÓ नवीसीÓ।
व$कार (अ़.पु.)-भारी भरकमपन, गुरुत्व; इज़्ज़त, सम्मान, प्रतिष्ठा; गंभीरता, मतानत; मान-मर्यादा, एहतिराम।
वकालत (अ़.स्त्री.)-वकील या अभिवक्ता का काम, अभिभाषण, अभिवचन।
वकालतन (अ़.$फा.वि.)-अभिवक्ता द्वारा, वकील के माध्यम से।
वकालतनाम: (अ़.$फा.पु.)-वकील अर्थात् अभिवक्ता बनाने का प्रपत्र, अभिभाषण-पत्र।
वकालतपेश: (अ़.$फा.वि.)-अभिवक्ता, जो वकालत करता हो, अभिभाषण-व्यवसायी।
व$काह (अ़.वि.)-निर्लज्ज, बेशर्म; उद्दण्ड, उजड्ड; धृष्ट, ढीठ।
व$काहत (अ़.स्त्री.)-निर्लज्जता, बेहयाई; धृष्टता, गुस्ताख़्ाी।
व$िकस अ़ला हाजा (अ़.वा.)-इसी पर अनुमान करो।
वकीअ़ (अ़.वि.)-दृढ़, मज़बूत।
व$कीअ़ (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, प्रतिष्ठित, इज़्ज़दार; उच्च, ऊँचा, बुलन्द।
व$कीअ़त (अ़.स्त्री.)-भत्र्सना, निन्दा, कुत्सा, बदगोई; युद्घ, लड़ाई।
व$कीद (अ़.पु.)-पतला ईंधन, जिससे आग सुलगाई जाती है।
वकी$फ (अ़.पु.)-पानी टपकाना।
वकीर: (अ़.स्त्री.)-वह भोज, जो गृह-प्रवेश पर दिया जाए।
वकीर (अ़.पु.)-बोझिल, भारी।
वकील (अ़.वि.)-वकालत करनेवाला, अभिभाषक, कोर्ट या कचहरी में वाद प्रस्तुत करनेवाला, अभिवक्ता।
वकीले मुत्ल$क (अ़.पु.)-ऐसा वकील, जिसे मुवक्किल की ओर से पूरे अधिकार प्राप्त हों, वादी से अधिकार-प्राप्त अभिवक्ता।
वकीले सरकार (अ़.$फा.पु.)-सरकारी वकील, सरकारी मु$कदमों में पैरवी करनेवाला अभिवक्ता।
व$कीह (अ़.वि.)-बेशर्म, निर्लज्ज, बेहया; धृष्ट, ढीठ।
व$कूद (अ़.पु.)-ईंधन, जलावन, जलाने की लकड़ी आदि।
व$कूर (अ़.वि.)-सम्मानित, प्रतिष्ठित।
वकूल (अ़.वि.)-वह लाचार या विवश व्यक्ति, जो अपना काम दूसरों पर छोड़ दे।
वक़ेह (अ़.वि.)-दे.-'व$कीहÓ।
वक़्अ़ (अ़.पु.)-मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त, (स्त्री.)-ऊँचा स्थान, ऊँची जगह।
वक़्अ़त (अ़.स्त्री.)-मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; आदर, सत्कार, एहतिराम; महत्त्व; उच्चता, बुलन्दी।
वक्ज़़ (अ़.पु.)-घूँसा मारना, मुक्केबाज़ी करना।
वक़्क़ाद (अ़.वि.)-बहुत तेज़ जलनेवाला, शोÓले फेंकने-वाला; दीप्त, ज्वलंत, रौशन।
वक़्त (अ़.पु.)-समय; अवसर, मौ$का; मौसम, $फस्ल, ऋतु; अवकाश, मोहलत, $फुर्सत; उम्र, जि़न्दगी; ज़माना, अ़र्सा; बार, द$फा; दशा, हालत; मुद्दत, मियाद; मौत, मृत्यु; बुरा समय, मुसीबत, मसीबत, दिक़्क़त, आ$फत, विपत्ति। 'वक़्त के हाथों में देकर आईना, मैं सँवरता ही रहा हर दौर मेंÓ-माँझी
वक़्तगुज़ारी (अ़.$फा.स्त्री.)-कालयापन, समय काटना, बुरी-भली अवस्था में जीवन यापन करना।
वक़्तन $फ वक़्तन (अ़.वि.)-अपने-अपने अवसर पर, यदा-कदा, कभी-कभी, समय-समय पर, बीच-बीच में।
वक़्त ब वक़्त (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वक़्तन $फ वक़्तन।
वक़्त बे वक़्त (अ़.$फा.वि.)-सुख-द़:ख में, अच्छे और बुरे समय पर, आवश्यकता के समय।
वक़्ती (अ़.वि.)-समय-सम्बन्धी, सामयिक; क्षण-स्थायी, थोड़ी देर का; कुछ समय के लिए, अस्थायी, अ़ारिज़ी; (प्रत्य.)-समय का, जैसे-'पंजवक़्ती नमाज़Ó-पाँच समय की नमाज़।
वक़्ते अजल (अ़.पु.)-मृत्यु-समय, मरने का समय।
वक़्ते आख़्िार (अ़.पु.)-अंतिम समय, मृत्यु-काल।
वक्ते इअ़ानत (अ़.पु.)-सहायता का अवसर, मदद का समय।
वक्ते इम्दाद (अ़.पु.)-दे.-'वक़्ते इअ़ानतÓ।
वक़्ते एहसान (अ़.पु.)-उपकार का समय या अवसर।
वक़्ते ख़्वाब (अ़.$फा.पु.)-सोने का समय।
वक़्ते ज़ुरूरत (अ़.पु.)-आवश्यकता के समय; आवश्यकता का अवसर; सहायता का अवसर।
वक़्ते नाज़ुक (अ़.$फा.पु.)-आपत्तिकाल, मुसीबत का समय, बुरा समय; सावधान रहने और सँभलने का समय।
वक़्ते $फरा$गत (अ़.पु.)-छुट्टी का समय; समृद्घि का समय; कार्यनिवृत्ति का समय।
वक़्ते $फुर्सत (अ़.पु.)-दे.-'वक़्ते $फरा$गतÓ।
वक़्ते बद (अ़.$फा.पु.)-बुरा समय, मुसीबत का समय, आपत्तिकाल; गुण्डागर्दी का समय।
वक़्ते मदद (अ़.पु.)-सहायता का अवसर, वक़्ते इम्दाद।
वक़्ते मर्दानगी (अ़.$फा.पु.)-साहस दिखाने का अवसर; युद्घ में कूद पडऩे का अवसर।
वक़्ते मुला$कात (अ़.पु.)-मिलन का समय; मिलने या भेंट करने का अवसर।
वक़्ते मुसीबत (अ़.पु.)-विपत्ति का समय, आपत्तिकाल।
वक़्ते रवानगी (अ़.$फा.पु.)-प्रस्थान के समय, चलते समय, रवाना होते समय।
वक़्ते रुख़्सत (अ़.पु.)-विदा होते समय, जाते समय, चलते वक़्त।
वक़्ते वापसीं (अ़.$फा.पु.)-इस दुनिया से वापस जाने के समय अर्थात् मरते समय, अंतिम समय।
वक़्ते शिकायत (अ़.पु.)-शिकायत का अवसर; शिकायत करते समय।
वक़्ते हिम्मत (अ़.पु.)-दे.-'वक़्ते मर्दानगीÓ।
वक्फ़़: (अ़.पु.)-दो कामों के बीच में ठहराव का समय, विराम; इन्टरवल टाइम, कालान्तर; देर, विलम्ब; ठहराव, सुकून।
वक्फ़़ (अ़.पु.)-ईश्वरार्पण, देवोत्तर उत्सर्ग, भगवान् के नाम पर दान की हुई वस्तु या सम्पत्ति आदि; किसी व्यक्ति-विशेष के लिए रखी या अलग की हुई वस्तु।
वक्फ़ (अ़.पु.)-बरसात में छत आदि का टपकना; किसी चीज़ से पानी टपकना।
वक्फ़़ अ़लल औलाद (अ़.पु.)-वह सम्पत्ति जो अपनी औलाद के लिए वक्फ़़ अर्थात् संकल्पित हो।
वक्फ़़ अ़लल्लाह (अ़.पु.)-वह वस्तु, जो धार्मिक कार्यों के लिए वक्फ़़ अर्थात् संकल्पित हो।
वक्फ़ऩाम: (अ़.$फा.पु.)-संकल्प का प्रपत्र, उत्सर्गपत्र, वक्फ़़ की दस्तावेज़, दानपत्र।
वक्र (अ़.पु.)-नीड़, घोंसला, आशियाना।
वगर ($फा.अव्य.)-अगर, यदि (अब उर्दू में व्यवहृत नहीं है)।
वगरन: ($फा.अव्य.)-अन्यथा, वर्ना (वरना), नहीं तो।
वग़सत ($फा.अव्य.)-ज़ाहिर, प्रत्यक्ष।
वग़ा (अ़.स्त्री.)-समर, युद्घ, लड़ाई, जंग।
वगैऱ: (अ़.अव्य.)-आदि, इत्यादि, प्रभृति, प्रमुख।
वग़्द (अ़.वि.)-अधम, नीच, कमीना; कुपात्र, अयोग्य, ना$काबिल।
वज (अ़.स्त्री.)-वचा, वच, एक लकड़ी जो दवा में प्रयुक्त होती है।
वजउलक़ल्ब (अ़.पु.)-हृदय की पीड़ा, दिल का दर्द, हृत्पीड़ा, मन की व्यथा या वेदना।
वजउलमफ़ासिल (अ़.पु.)-संधिवात, अंगमर्ष, जोड़ों का दर्द, गठिया।
वजउलमेÓद: (अ़.पु.)-उदर-पीड़ा, पेट का दर्द।
वजउलवरिक (अ़.पु.)-श्रोण-पीड़ा, चूतड़ का दर्द।
वजग़़: (अ़.पु.)-कृकलास, गिरगिट; गृहगोधिका, छिपकली, मेंढक, मंडूक।
वजग़़ (अ़.पु.)-दे.-'वजग़़:Ó।
वजब (अ़.पु.)-बारह अंगुल की नाप, वितस्ति, बालिश्त, बित्ती।
वजर (अ़.पु.)-डर, भय, त्रास, ख़्ाौ$फ।
वजाÓ (अ़.पु.)-व्यथा, वेदना, पीड़ा, दर्द।
वजा (अ़.पु.)-भय, डर, त्रास, ख़्ाौ$फ।
वज़ाअ़त (अ़.स्त्री.)-शुद्घता, पवित्रता, पाकीजग़ी; सुन्दरता, ख़्ाूबसूरती; निर्दोष, बेऐबी; अधमता, नीचता, कमीनगी, लो$फरपन, आवारगी।
वज़ाइ$फ (अ़.पु.)-'वज़ी$फ:Ó का बहु., छात्रवृत्तियाँ; मंत्र-जाप आदि।
वज़ाहत (अ़.स्त्री.)-विस्तार, फैलाव; स्पष्टता, विवरण, तफ़्सील; स्पष्टीकरण, भाष्य। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
वजाहत (अ़.स्त्री.)-मुखकांति, मुखश्री, मुख-छटा, चेहरे की आबोताबमान-सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त, मान्यता।
वज़ाहततलब (अ़.वि.)-जिस बात का स्पष्टीकरण आवश्यक हो।
वजाहतपरस्त (अ़.वि.)-जो बड़े लोगों की तर$फ आकृष्ट रहता हो।
वजिं़द: ($फा.वि.)-चलनेवाली हवा, बहनेवाली वायु।
वजिर (अ़.वि.)-त्रस्त, भयभीत, डरनेवाला।
वजिल (अ़.वि.)-जो किसी भ्रम के कारण डरे, डरनेवाला।
वजि़श ($फा.वि.)-हवा की सरसराहट, हवा चलने की हालत।
वजीअ़ (अ़.वि.)-कष्टग्रस्त, पीडि़त, दर्दनाक।
वज़ीअ़ (अ़.वि.)-नीच, कमीना, अधम।
वज़ीअ़ोशरी$फ (अ़.पु.)-कमीने और भलेमानस लोग, अर्थात् अच्छे-बुरे लोग।
वजीज़ (अ़.वि.)-ह्रïस्व, छोटा; संक्षिप्त, मुख़्तसर।
वज़ीद: ($फा.वि.)-चली हुई हवा, बही हुई वायु, चली हुई पवन।
वज़ीदनी ($फा.वि.)-चलने योग्य हवा, चलने के $काबिल वायु, चलने की स्थिति में हवा।
वज़ीफ़: (अ़.पु.)-छात्रवृत्ति, स्कॉलरशिप; वृत्ति, परवरिश अलाउंस; निवृत्ति-वेतन, पेंशन; किसी मंत्र आदि अथवा $कुरान के वाक्यादि का जप।
वज़ीफ़:ख़्वाँ (अ़.फा.वि.)-मंत्र आदि पढऩेवाला; ईश्वर का गुणगान करनेवाला, यशोगान करनेवाला।
वज़ीफ़:ख़्वानी (अ़.फा.स्त्री.)-मंत्र आदि का उच्चारण, ईश्वर का गुधगान, यशोगान।
वज़ीफ़:ख़्वार (अ़.फा.वि.)-वृत्तिभोक्ता, पेंशन पानेवाला।
वज़ीफ़:ख़्वाह ($अ़.फा.वि.)-वज़ी$फा चाहनेवाला।
वज़ीफ़:गो (अ़.फा.वि.)-वज़ी$फा पढऩेवाला, ईश्वर का गुणगान करनेवाला, यशोगान करनेवाला।
वज़ी$फ:गोई (अ़.फा.स्त्री.)-वज़ीफ़ा पढऩा; ईश्वर का गुणगान करना, यशोगान करना।
वज़ीफ़:दार (अ़.फा.वि.)-वज़ीफ़ा पानेवाला।
वज़ीफ़:याब (अ़.फा.वि.)-वज़ी$फा पाया हुआ, जिसने वज़ी$फा पा लिया हो, जिसने छात्रवृत्ति अथवा स्कॉलरशिप ले ली हो।
वज़ी$फए ज़ौजियत (अ़.पु.)-स्त्री-प्रसंग, सहवास, मैथुन।
वज़ीफ़ए ताÓलीम (अ़.पु.)-छात्रवृत्ति, स्कॉलरशिप।
वज़ीफ़ए माहान: (अ़.$फा.पु.)-मासिक वृत्ति, हर महीने मिलनेवाला वज़ी$फा।
वज़ीम: (अ़.पु.)-पुरस्कार, उपहार, भेंट।
वज़ीर (अ़.पु.)-अमात्य, मंत्री, सचिव।
वज़ीरे अ़द्ल (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे इंसा$फÓ।
वज़ीरे आÓज़म (अ़.पु.)-प्रधानमंत्री, महामंत्री, महामात्य।
वज़ीरे आबकारी (अ़.$फा.पु.)-आबकारी मंत्री, मदिरा-मंत्री, मद्यमंत्री।
वज़ीरे आबपाशी (अ़.$फा.पु.)-सिंचाईमंत्री।
वज़ीरे आबादकारी (अ़.$फा.पु.)-पुनर्वासमंत्री।
वज़ीरे आÓला (अ़.पु.)-मुख्यमंत्री।
वज़ीरे इंसा$फ (अ़.पु.)-न्यायमंत्री।
वज़ीरे इत्तिलाअ़ात (अ़.पु.)-सूचनामंत्री।
वज़ीरे उमूरे ख़्ाारिज: (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे ख़्ाारिज:Ó।
वज़ीरे उमूरे दाख़्िाल: (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे दाख़्िाल:Ó।
वज़ीरे उमूरे मज़हबी (अ़.पु.)-धर्ममंत्री।
वज़ीरे $कानून (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे इंसा$फÓ।
वज़ीरे ख़्ाारिज: (अ़.पु.)-विदेशमंत्री, परराष्ट्र-मंत्री।
वज़ीरे गिज़़ा (अ़.पु.)-खाद्यमंत्री।
वज़ीरे जंग (अ़.$फा.पु.)-युद्घमंत्री।
वज़ीरे जिऱाअ़त (अ़.पु.)-कृषिमंत्री।
वज़ीरे तरक़्क़ीयात (अ़.पु.)-विकासमंत्री।
वज़ीरे ताÓमीरात (अ़.पु.)-निर्माणमंत्री।
वज़ीरे ताÓलीम (अ़.पु.)-शिक्षामंत्री।
वज़ीरे तिजारत (अ़.पु.)-व्यापारमंत्री।
वज़ीरे दाख़्िाल: (अ़.पु.)-गृहमंत्री।
वज़ीरे दिफ़ाय (अ़.पु.)-रक्षामंत्री।
वज़ीरे नौआबादियात (अ़.$फा.पु.)-उपनिवेशमंत्री।
वज़ीरे $फौज (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे जंगÓ।
वज़ीरे बल्दीयात (अ़.पु.)-स्थानीय स्वशासनमंत्री।
वज़ीरे बहालीयात (अ़.पु.)-पुनर्वासमंत्री।
वज़ीरे म$फादे अ़ाम्म: (अ़.पु.)-जनकल्याणमंत्री, लोकहित-मंत्री, लाक कल्याणमंत्री।
वज़ीरे माल (अ़.पु.)-मालमंत्री, अर्थमंत्री।
वज़ीरे मुवासलात (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे रस्लो-रसाइलÓ।
वज़ीरे सन्अ़तो हिर्फ़त (अ़.पु.)-उद्योगमंत्री।
वज़ीरे सेहत (अ़.पु.)-स्वास्थ्यमंत्री।
वज़ीरे हर्ब (अ़.पु.)-दे.-'वज़ीरे जंगÓ।
वज़ीरे हुकूमत (अ़.पु.)-राज्यमंत्री।
वजीह: (अ़.वि.)-श्रीमुख, जिसका चेहरा रोबदार हो।
वजीह (अ़.वि.)-दृढ़, मज़बूत।
वज़ुद: ($फा.पु.)-बालिश्त।
वज़ू (अ़.पु.)-नमाज़ के लिए वुज़ू करने का पानी (यह शब्द 'वुज़ू करनेÓ के अर्थ में अशुद्घ है)।
वजूर (अ़.पु.)-गले के भीतर टपकानेवाली पतली दवा।
वज़ूलीद: ($फा.पु.)-त$काज़ा किया हुआ।
वज़्अ़ (अ़.स्त्री.)-ढंग, शैली, पद्यति; करना; बनाना; रखना; जनना, जन्म देना, पैदा करना; दशा, हालत, स्थिति; वेशभूषा; हिसाब में से किसी र$कम की कमी या कटौती; सदैव एक प्रकार से रहना और जिससे जैसा व्यवहार हो, उसे अन्त तक वैसे ही निबाहना।
वज़्अ़दार (अ़.$फा.वि.)-जो अपने नियम का पाबन्द हो, सदा एक-सा रहे और जिससे जो व्यवहार हो, उसे अन्त तक निभाए, अनुशासित, नेमी।
वज़्अ़दारी (अ़.$फा.स्त्री.)-सर्दव अपने नियम पर $कायम रहना और जिससे मिलना या जैसा काम करना हो, उसे उसी तरह निबाहना।
वज़्ई (अ़.वि.)-बनाया हुआ, गढ़ा हुआ।
वज़्उलहम्ल (अ़.पु.)-दे.-'वज़्ए हम्लÓ, बच्चा जनना या पैदा करना।
वज़्ए आज़ादान: (अ़.$फा.स्त्री.)-आज़ाद लोगों की-सी वेशभूषा या व्यवहार।
वज़्ए अ़ामियान: (अ़.$फा.स्त्री.)-साधारण लोगों-जैसी चाल-ढाल या वेशभूषा।
वज़्ए दरवेशान: (अ़.$फा.स्त्री.)-साधुओं-जैसी वेशभूषा या आचरण।
वज़्ए शरी$फान: (अ़.$फा.स्त्री.)-सज्जन लोगों-जैसा आचरण और उन्हीं-जैसी वेशभूषा।
वज़्ए साद: (अ़.$फा.स्त्री.)-साधारण वेशभूषा, जिसमें कोई बनावट न हो; साधारण चाल-चलन।
वज़्ए हम्ल (अ़.पु.)-बच्चा जनना, प्रसव, प्रसूति।
वज़्अ़ो $कत्अ़ (अ़.स्त्री.)-वेशभूषा, आकार-प्रकार, सज-धज।
वज़्ज़ाअ़ (अ़.वि.)-बनानेवाला, गढऩेवाला।
वज़्ज़ान (अ़.वि.)-बहुत अधिक तोलनेवाला।
वज़्ज़ाह (अ़.वि.)-सफ़ेद कोढ़ का रोगी; गोरा-चिट्टा, गौरवर्ण।
वज्द (अ़.पु.)-भाव-विभोरता के कारण अपनी सुध-बुध खोना, आनन्द की अधिकता से आत्मविस्मृति; काव्य या संगीत की रसानुभूति से होनेवाली आत्मविस्मृति; आनन्दातिरेक से झूमनेवाला।
वज्दअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वज्दआफ्ऱींÓ।
वज्दआफ्ऱीं (अ़.$फा.वि.)-आनन्दातिरेक से मुग्ध कर देने-वाला, विभोर कर देनेवाला।
वज्दकुनाँ (अ़.$फा.वि.)-आनन्द बाहुल्य से भाव-विभोर होता हुआ, झूमता हुआ।
वज्दे सिमाअ़ (अ़.पु.)-गाना सुनकर होनेवाली मस्ती या विभोरता।
वज्दोहाल (अ़.पु.)-गाने में आनन्दातिरेक से मस्त हो जाना और झूमना।
वज्न: (अ़.पु.)-गाल, कपोल, रुख़्सार।
वज़्न: (अ़.पु.)-नापने का पैमाना, बारूद नापने का पैमाना।
वज़्न (अ़.पु.)-बोझ, भार; तोलने का बाँट; महत्त्व, अहम्मीयतछन्द, वृत्त, बह्रï; तक़्तीअ़, काव्य पद के अक्षरों को गणों की मात्राओं से मिलाकर बराबर करना।
वज़्नकश (अ़.$फा.वि.)-तोलनेवाला, तौला।
वज़्नकशी (अ़.$फा.स्त्री.)-तोलना; तोलने का काम; तोलने का पेशा।
वज़्नी (अ़.वि.)-भारी, बोझिल।
वज़्ने शेÓर (अ़.पु.)-शेÓर का छनद या बह्रï अथवा वृत्त; शेÓर की तक़्तीअ़।
वज्ह (अ़.स्त्री.)-कारण, हेतु, सबब, (पु.)-मुख, मुखाकृति, मुखमण्डल, चेहरा।
वज्हे अ़दावत (अ़.स्त्री.)-शत्रुता का कारण।
वज्हे अह्सन (अ़.पु.)-सुन्दर मुख, अच्छी सूरत, (स्त्री.)-अच्छा या उचित कारण, माÓ$कूल सबब।
वज्हे $कवी (अ़.स्त्री.)-बड़ी वजह, उचित कारण, माÓ$कूल सबब।
वज्हे का$फी (अ़.स्त्री.)-उचित कारण, बड़ा कारण।
वज्हे ख़्ाुसूमत (अ़.स्त्री.)-द्वेष का कारण, रंजिश का सबब।
वज्हे ख़्ाुसूसी (अ़.स्त्री.)-मुख्य कारण, ख़्ाास सबब।
वज्हे तस्मिय: (अ़.स्त्री.)-निरुक्ति, नाम होने का कारण, अमुक वस्तु का यह नाम क्यों पड़ा, इसका कारण।
वज्हे तह्रïीक (अ़.स्त्री.)-चर्चा वलाने या बात उठाने का कारण; प्रस्ताव रखने का कारण।
वज्हे मअ़ाश (अ़.स्त्री.)-जीवन-निर्वाह का साधन, जीविका।
वज्हे मईशत (अ़.स्त्री.)-दे.-'वज्हे मअ़ाशÓ।
वज्हे माÓ$कूल (अ़.स्त्री.)-उचित कारण, ठीक सबब।
वज्हे मुख़्ााल$फत (अ़.स्त्री.)-विरोध का कारण।
वज्हे मुख़्ासमत (अ़.स्त्री.)-शत्रुता का कारण, द्वेष का कारण।
वज्हे मुवज्जह (अ़.स्त्री.)-युक्तियुक्त कारण, उचित कारण, माÓ$कूल सबब।
वज्हे रंजिश (अ़.स्त्री.)-मनमुटाव और नाराजग़ी का कारण।
वज्हे राहत (अ़.स्त्री.)-सुख का साधन, प्रसन्नता का कारण।
वज्हे वहशत (अ़.स्त्री.)-घृणा करने का कारण, भागने या अलग रहने का कारण।
वज्हे शक (अ़.स्त्री.)-शंका करने का कारण, सन्देह का सबब।
वज्हे शिकायत (अ़.स्त्री.)-उपालम्भ का कारण, शिकवा करने का सबब, उलाहना देने का कारण।
वज्हे हलाल (अ़.स्त्री.)-विहित और उचित साधन (जीविका का)।
वज्हे हसन (अ़.स्त्री.)-उचित कारण, उत्तम ारण, माÓ$कूल सबब, (पु.)-सुन्दर मुख, अच्छी सूरत।
वज्हे हसीन (अ़.स्त्री.)-सुन्दर मुख, प्यारा चेहरा।
वतद (अ़.पु.)-खूँटा, मेख; तीन अक्षरोंवाला शब्द।
वतदे म$क्रून (अ़.पु.)-तीन अक्षरोंवाला वह शब्द, जिसका अंतिम अक्षर 'हल्Ó हो, जैसे-'चमन्Ó।
वतदे मज्मूअ़ (अ़.पु.)-दे.-'वतदे म$क्रूनÓ।
वतदे मफ्ऱू$क (अ़.पु.)-तीन अक्षरोंवाला वह शब्द, जिसके बीच का अक्षर 'हल्Ó हो, जैसे-इश्क़Ó।
वतन (अ़.पु.)-जन्मभूमि, स्वदेश।
वतनकुश (अ़.$फा.वि.)-देशद्रोही, वतन के साथ ग़द्दारी करनेवाला, स्वदेश के साथ नमकहरामी करनेवाला।
वतनकुशी (अ़.$फा.स्त्री.)-देशद्रोह, वतन से $गद्दारी।
वतनदोस्त (अ़.$फा.वि.)-देशप्रेमी, अपने वतन से प्यार करनेवाला, स्वदेशप्रेमी।
वतनदोस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-देशप्रेम, स्वदेशप्रेम, अपने वतन की मुहब्बत।
वतनपरस्त (अ़.$फा.वि.)-देशभक्त, वतन को सर्वोत्तम जाननेवाला।
वतनपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-देशभक्ति, वतन का अत्यधिक प्रेम।
वतन$फरोश (अ़.$फा.वि.)-देशविक्रेता, देशद्रोही, वतन का $गद्दार।
वतन$फरोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-देशद्रोह, स्वदेश से $गद्दारी, वतन को दूसरों के हाथ बेच देना।
वतनी (अ़.वि.)-देश का, वतन का; वतन-सम्बन्धी; वतन-वाला।
वजनीयत (अ़.स्त्री.)-देशभक्ति, स्वदेशप्रेम, वतनपरस्ती।
वतने आबई (अ़.पु.)-बाप-दादा का देश, पुराना वतन।
वतने $कदीम (अ़.पु.)-पुराना वतन, पुरखों का देश, पूर्वजों का देश।
वतने जदीद (अ़.पु.)-नव देश, नया वतन, जहाँ हाल में रहना आरम्भ किया हो।
वतने मालू$फ (अ़.पु.)-वह देश या वतन, जिससे प्रेम हो।
वतर (अ़.पु.)-प्रत्यंचा, धनुष की डोरी; बाजे का तार।
वती (अ़.स्त्री.)-अंगसंग, सहवास, संभोग, मैथुन; मसलना, रौंदना, कुचलना।
वतीर: (अ़.पु.)-शैली, ढंग, पद्यति, तरी$का; आचरण, तजऱ्े-अ़मल, व्यवहार।
वत्बाअ़ (अ़.स्त्री.)-बड़ी छातीवाली अ़ौरत या स्त्री।
वत्श (अ़.वि.)-तबाही, विनाश, बरबादी; ध्वस्त, तबाह, ख़्ाराब।
वत्ह (अ़.वि.)-लोभी, कृपण, कंजूस; निकृष्ट, ख़्ाराब।
वदाÓ (अ़.पु.)-शंख, कंबु, संख।
वदाअ़ (अ़.स्त्री.)-विदा, गमन, जाना, रुख़्सत।
वदाएÓ (अ़.पु.)-'वदीअ़तÓ का बहु., थातियाँ, अमानतें।
वदाए जाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-प्राणों का गमन या कूच करना, मरण, मरना, मृत्यु।
वदाए रूह (अ़.स्त्री.)-आत्मा का गमन, मरन, मरना, मृत्यु।
वदाद (अ़.पु.)-अभिलाषा, वाह, इच्छा, तलब; मनोकामना, आकांक्षा, मुराद।
वदीअ़ (अ़.वि.)-विदा करनेवाला, रुख़्सत करनेवाला।
वदीअ़त (अ़.स्त्री.)-अमानत, धरोहर, थाती, न्यास, निक्षेप, आधान, प्राधि, आधि।
वदीद (अ़.वि.)-मित्र, सखा, दोस्त।
वदूद (अ़.वि.)-मित्र, सखा, दोस्त।
व$फा (अ़.स्त्री.)-निबाहना; निबाह करना; निर्वाह करना; स्वामी या मित्र के साथ तन-मन-धन से निबाहना और बुरे समय में उनका साथ देना; मुरव्वत, स्नेह, प्रेम; हित-चिन्तन, ख़्ौरख़्वाही; प्रतिज्ञा-पालन; भक्ति, व$फादारी।
व$फाअंदेश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$फादारÓ।
व$फाअंदेशी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'व$फादारीÓ।
व$फाआमोज़ (अ़.$फा.वि.)-व$फा सिखानेवाला।
व$फाआश्ना (अ़.$फा.वि.)-व$फा से परिचित अर्थात् व$फादार।
व$फाए अ़ह्द (अ़.स्त्री.)-प्रतिज्ञा का पालन, वादा या वचन पूरा करना।
व$फाए इश्$क (अ़.स्त्री.)-प्रेम करके उसे निबाहना, किसी अवस्था में भी प्रेम न छोडऩा।
व$फाए $कसम (अ़.स्त्री.)-खायी हुई $कसम या उठाई हुई सौगन्ध का परिपालन करना, कही हुई बात निबाहना, शपथ- पालन।
व$फाए $कौल (अ़.स्त्री.)-कही हुई बात निबाहना, प्रतिज्ञा का पालन।
व$फाए वाÓद: (अ़.स्त्री.)-दे.-'व$फाए अ़ह्दÓ।
व$फाओज$फा (अ़.स्त्री.)-व$फादारी और अत्याचार, प्रेमिका की ओर से ज़ुल्म तथा प्रेमी की ओर से व$फा अर्थात् प्रेम-निर्वाह, विषम प्रेम-पालन।
व$फाकेश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$फादारÓ।
व$फाकेशी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'व$फादारीÓ।
व$फाकोश (अ़.$फा.वि.)-प्रेम-निर्वाह की कोशिश करने-वाला, व$फादार रहने की कोशिश करनेवाला, अर्थात् प्रेमी, अ़ाशि$क।
व$फाकोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-प्रेम-निर्वाह की कोशिश करना।
व$फाख़्ामीर (अ़.वि.)-जिसके स्वभाव में व$फा अर्थात् प्रेम-निर्वाह का माद्दा हो, जो आदतन व$फादार हो, प्रेमी, अ़ाशि$क।
व$फाख़्ााम (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा में कच्चा हो, जो समय पडऩे पर धोखा दे सके।
व$फागुस्तर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$फादारÓ।
व$फात (अ़.स्त्री.)-मृत्यु, मरण, मौत।
व$फातयाफ़्त: (अ़.$फा.वि.)-मृत, मरा हुआ।
व$फादार (अ़.$फा.वि.)-जो स्वामी या मित्र का तन-मन-धन से भक्त हो।
व$फादारी (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वामी या मित्र का तन-मन-धन से साथ देना।
व$फादोस्त (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा को अपना सर्वस्व समझता हो, अर्थात् प्रेमी, अ़ाशि$क।
व$फादोस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा को ही अपना सर्वस्व जानना या समझना।
व$फादुश्मन (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा का वैरी हो, अर्थात् जिसे व$फा से चिढ़ हो, बेव$फा, कृतघ्न; माÓशू$क, प्रेयसी, प्रेमिका।
व$फादुश्मनी (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा से चिढ़, व$फा से वैर।
व$फानाआश्ना (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा से अपरिचित हो, जो निबाहना न जानता हो, अर्थात् माÓशू$क, प्रेमिका, प्रेयसी।
व$फानाकर्द: (अ़.$फा.वि.)-जिसने कभी व$फा न की हो अर्थात् माÓशू$क, प्रेयसी।
व$फानाशनास (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$फानाआश्नाÓ।
व$फापरस्त (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा की $कद्र करता हो; जो बहुत-ही व$फादार हो, अर्थात् अ़ाशि$क, प्रेमी।
व$फापरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा की $कद्र करनो; बहुत-ही व$फादार होना।
व$फापुख़्त: (अ़.$फा.वि.)-जो व$फा करने में बहुत-ही दृढ़ हो, जिसकी तर$फ से कभी बेव$फाई न हो, अर्थात् अ़ाशि$क, प्रेमी।
व$फापुख़्तगी (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा करने में दृढ़ता, प्रेम निबाहने में दृढ़ और मज़बूत होना।
व$फापेश: (अ़.$फा.वि.)-जिसका काम ही व$फा करना हो, अर्थात् प्रेमी, अ़ाशि$क।
व$फापेशगी (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा करने का काम, प्रेम निबाहने का काम।
व$फाबेगान: (अ़.$फा.वि.)-दे.-'व$फानाआश्नाÓ।
व$फाबेगानगी (अ़.$फा.स्त्री.)-व$फा करने से अनजान, प्रेम करना न जानना।
व$फामज़्हब (अ़.$वि.)-जिसका धर्म व$फा करना हो अर्थात् अ़ाशि$क, पे्रमी।
व$फामश्रब (अ़.$वि.)-जिसका धर्म-विश्वास व$फा पर हो।
व$फाशनास (अ़.$फा.$वि.)-व$फा को पहचाननेवाला, अर्थात् प्रेमी, अ़ाशि$क।
व$फाशनासी (अ़.$$फा.स्त्री.)-व$फा को पहचानना अथवा जानना।
व$फाशिअ़ार (अ़.$वि.)-दे.-'व$फापेश:Ó।
व$फाशिअ़ारी (अ़.स्त्री.)-दे.-'व$फापेशगीÓ।
व$फाशिकन (अ़.$फा.$वि.)-जो व$फा की प्रतिज्ञा करके तोड़ दे, बेव$फा।
व$फी (अ़.$वि.)-सब, समस्त, सम्पूर्ण, समग्र।
वफ़्क़ (अ़.पु.)-अनुकूल, मुआ$िफ$क।
वफ़्द (अ़.पु.)-प्रतिनिधिमण्डल, डेपुटेशन।
वबर (अ़.पु.)-बाल, ऊन।
वबा (अ़.स्त्री.)-वह रोग, जो मरी के रूप में फैला हो, महामारी, संस्पर्श।
वबाई (अ़.वि.)-महामारी-सम्बन्धी, महामारी के रूप में फैला हुआ, महामारी फैलानेवाला।
वबाए अ़ाम (अ़.स्त्री.)-महामारी, सब में फैला हुआ रोग।
वबाल (अ़.पु.)-विपदा, आपत्ति, मुसीबत; तकली$फ, दु:ख, कष्ट; जंजाल, झंझट; वह मुसीबत जो अटल हो, वह विपत्ति जो दुर्निवार्य हो।
वबाले गर्दन (अ़.$फा.पु.)-गर्दन के लिए बोझ, गर्दन पर रखा हुआ बोझ, अर्थात् पाप।
वबाले जाँ (अ़.$फा.पु.)-जान का जंजाल, प्राणों के लिए मुसीबत।
वबाले दोश (अ़.$फा.पु.)-दे.-'वबाले गर्दनÓ।
वब्र (अ़.पु.)-बिल्ली के बराबर एक जन्तु, जो शेर के आगे चलता है।
वया ($फा.अव्य.)-अथवा, या (यह शब्द अब उर्दू में प्रयुक्त नहीं होता)।
वर ($फा.प्रत्य.)-वाला, जैसे-'ता$कतवरÓ=शक्तिवाला, (अव्य.)-यदि, अगर, और, (पु.)-वक्ष:स्थल, सीना, (स्त्री.)-ताप, गर्मी।
वर$क: (अ़.पु.)-पत्र, दल, पत्ता; टिकिट, प्रयोगपत्र।
वर$क (अ़.पु.)-पृष्ठ, पन्ना, पेज; दल, पत्र, पत्ता।
वर$कगर्दानी (अ़.$फा.स्त्री.)-पुस्तक के वर$क अर्थात् पन्ने उलटना-पलटना, पुस्तक पढऩा नहींकेवल उसे इधर-उधर से पन्ने उलटकर देखना।
वर$कदा$ग (अ़.$फा.वि.)-पुस्तक के पन्ने पर लिखा जानेवाला अंक (संख्या)।
वर$कसाज़ (अ़.$फा.वि.)-चाँदी-सोने के वर$क बनानेवाला।
वर$कसाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-चाँदी-सोने के वर$क बनाने का काम।
वर$की (अ़.$वि.)-वर$क-जैसा बारी$क।
वर$कुलख़्ायाल (अ़.पु.)-भाँग, भंग, विजया।
वर$कुलहशीश (अ़.पु.)-भाँग के पत्ते, विजयाबूटी के पत्ते।
वरक़े काइनात (अ़.पु.)-विश्वपटल, वर$करूपी विश्व।
वरक़े ख़्ााम (अ़.$फा.पु.)-कच्चा-चिट्ठा, अंदरूनी हालात; कच्ची बही।
वरक़े गुल (अ़.$फा.पु.)-फूल की पँखुड़ी।
वरम (अ़.पु.)-शोथ, सूजन।
वरमे जिगर (अ़.$फा.पु.)-यकृत-शोथ, जिगर की सूजन।वरल (अ़.पु.)-गोह, गोधिका।
वरस: (अ़.$फा.पु.)-'वारिसÓ का बहु., उत्तराधिकारी लोग, वारिस लोग।
वरा (अ़.वि.)-परे, पीछे, आगे, दूर; अतिरिक्त, अलावा; (पु.)-संसार, जगत्, विश्व।
वराए नजऱ (अ़.पु.)-दृष्टि से परे।
वराज़ (अ़.पु.)-सुअर, शूकर, वराह, कोल।
वरासत (अ़.स्त्री.)-विरासत, दायाधिकार, उत्तराधिकार।
वरासतन (अ़.वि.)-विरासत के रूप में, उत्तराधिकार के रूप में, विरासत में।
वरासतनाम: (अ़.$फा.पु.)-उत्तराधिकारपत्र, उत्तराधिकार का $कानूनी दस्तावेज़, विरासत के कागज़़ात।
वरिक (अ़.पु.)-श्रोणि, नितम्ब, कटिप्रदेश, चूतड़।
वरीद (अ़.स्त्री.)-शरीर की वे रगें अथवा नसें जिनमें रक्त दौड़ता है, रक्तवाहिनी, धमनी।
वरेÓ (अ़.वि.)-संयमी, निग्रही, यतात्मा, यतव्रत, परहेजग़ार।
वर्अ़ (अ़.स्त्री.)-इन्द्रिय-निग्रह, संयम, परहेजग़ारी।
व$र्का (अ़.स्त्री.)-$फाख़्ता, पंडुक।
वर्काक (अ़.पु.)-बहेलिया, चिड़ीमार, लुब्धक; एक मृतभोजी चिडिय़ा।
वर्ग़लानिंद: ($फा.वि.)-फुसलानेवाला, बहकालेवाला; बुरी सीख या कुमंत्रणा देनेवाला, राह से भटकानेवाला, $गलत राह चलानेवाला।
वर्ग़लानीद: ($फा.वि.)-बहकाया हुआ, फुसलाया हुआ; जिसे बुरी सीख या कुमंत्रणा दी गई हो।
वजिऱ्द: ($फा.वि.)-स्वीकार करनेवाला, $कबूल करनेवाला; अभ्यास करनेवाला, मश्क़ करनेवाला।
वर्जि़श ($फा.स्त्री.)-अभ्यास, मश्क़; व्यायाम, कस्रत; ग्रहण, अधिकार, इख़्ितयार।
वर्जि़शख़्ाान: ($फा.पु.)-दे.-'वर्जि़शगाहÓ।
वर्जि़शगाह ($फा.स्त्री.)-व्यायामशाला, कस्रत करने का स्थान, अखाड़ा।
वर्जि़शी ($फा.वि.)-जो व्यायाम का अभ्यस्त हो, कस्रत करने का अ़ादी; कस्रत करके बनाया हुआ शरीर।
वर्जि़शे जिस्मानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दैहिक परिश्रम, शारीरिक श्रम, व्यायाम, कस्रत।
वर्जि़द: ($फा.वि.)-ग्रहण किया हुआ, स्वीकार किया हुआ, $कबूल किया हुआ; मश्$क किया हुआ, अभ्यास किया हुआ, अभ्यस्त।
वजऱ्ीदनी ($फा.वि.)-स्वीकार्य, स्वीकार करने अथवा लेने योग्य, ग्रहणीय, $काबिले $कुबूल; अभ्यास के योग्य, $काबिले मश्$क, अभ्यसनीय।
वर्त: (अ़.पु.)-भँवर, जलावर्त; ख़्ातरनाक स्थल, जान-जोखिम का स्थान, प्राणघातक स्थल।
वर्तए हलाकत (अ़.पु.)-ऐसा भँवर जिसमें पडऩे से मरे बिना छुटकारा न हो सके, प्राणघातक भँवर।
वर्तीज (अ़.पु.)-बटेर, वार्तक।
वर्द (अ़.पु.)-गुलाब, गुलाब का फूल।
वर्दी (अ़.वि.)-गुलाब के फूल-जैसा; गुलाब-सम्बन्धी।
वर्दूक ($फा.पु.)-छप्पर, फूँस और बाँस की बनी हुई प्रसिद्घ छाजन।
वर्दे मुरब्बा (अ़.पु.)-गुलक़ंद, शकर और गुलाब के फूलों का मिश्रण।
वर्न: ($फा.अव्य.)-वरना, अन्यथा, नहीं तो, वगरना।
वर्रा$क (अ़.पु.)-पुस्तकालयों में कीड़ों से बचाने के लिए पुस्तकों के पन्ने उलटने-पलटनेवाला व्यक्ति।
वर्राद (अ़.वि.)-माली, बा$गवान; गुलाब के फूलों का अऱ$क या गुल$कंद बनानेवाला।
वर्स: (अ़.पु.)-उत्तराधिकार, रिक्थ, दाय, मीरास; पैतृक सम्पत्ति; वंश-परम्परा से चली आनेवाली छूट आदि, पुश्तैनी चली आनेवाली मा$फी आदि।
वलंदेज़ (अ़.पु.)-हालैंड, यूरोप का एक राष्ट्र।
वलअ़ (अ़.पु.)-दे.-'वलाÓ, वही श्ुद्घ उच्चारण है, लोभ, लालच; आसक्ति।
वलद (अ़.पु.)-पुत्र, तनय, सुत, बेटा, लड़का।
वलदीयत (अ़.स्त्री.)-लड़केवाला होना; बाप का नाम आदि।
वलदुजि़्जऩा (अ़.पु.)-हरामी लड़का, जारज, वर्णसंकर, सैकर, दो$गला।
वलदुलजारिय (अ़.पु.)-दासी-पुत्र, लौंडी-बच्चा।
वलदुलहराम (अ़.पु.)-दे.-'वलदुजि़्जऩाÓ।
वलह (अ़.स्त्री.)-मोह, इश्$क, आसक्ति।
वलाÓ (अ़.पु.)-लोभ, लालच; आसक्ति, $िफरेफ़्तगी।
वली (अ़.पु.)-महात्मा, ऋषि, पहुँचा हुआ पीर-$फ$कीर; उत्तराधिकारी, वारिस; सहायक, मददगार; मित्र, दोस्त।
वलीअ़ह्द (अ़.पु.)-राजा के बाद सिंहासन पर बैठनेवाला, बादशाह के बाद होनेवाला जानशीन, राजकुमार, युवराज।
वलीज: (अ़.वि.)-लंगोटिया यार, घनिष्ठ मित्र, गहरा दोस्त।
वलीद (अ़.पु.)-छोकरा, ख़्िादमतगार लड़का।
वली नेÓमत (अ़.पु.)-स्वामी, मालिक; देखभाल करनेवाला, अभिभावक, सरपरस्त।
वलीम: (अ़.पु.)-विवाह-भोज, निकाह के बाद दूल्हा की ओर से दिया जानेवाला खाना।
वलीय: (अ़.स्त्री.)-उत्तराधिकारिणी, वारिसा; महात्मा स्त्री, ख़्ाुदा रसीदा; घोड़े का पालान।
वलीयुल्लाह (अ़.पु.)-ईश्वर का मित्र अर्थात् पहुँचा हुआ साधु, महात्मा, महर्षि।
वलूद (अ़.स्त्री.)-बहुप्रसवा, बहुत अधिक संतान उत्पन्न करनेवाली स्त्री।
वले ($फा.अव्य.)-'वलेकिनÓ का लघु., दे.-'वलेकिनÓ।
वलेक ($फा.अव्य.)-'वलेकिनÓ का लघु., दे.-'वलेकिनÓ।
वेकिन ($फा.अव्य.)-लेकिन, किन्तु, परन्तु, मगर।
वल्लाह (अ़.वा.)-ईश्वर की शपथ, ख़्ाुदा की $कसम।
वल्वल: (अ़.पु.)-उत्साह, उमंग; आवेग, जोश; बेख़्ाुदी, आत्मविस्मृति।
वल्वल:अंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-जोश पैदा करनेवाला, उमंग बढ़ानेवाला, उत्साहवद्र्घक।
वल्वल:ख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वल्वल:अंगेज़Ó।
वश ($फा.प्रत्य.)-समान, तुल्य।
वश$क (अ़.पु.)-अच्छी ऊन देनेवाला एक तुर्की जानवर।
वशज़ (अ़.पु.)-पच्चर लगाना।
वशम (अ़.वि.)-निशान, नक़्शा।
वशल (अ़.पु.)-थोड़ा पानी।
वशिक (अ़.पु.)-तेज़ रफ़्तार (पै$गम्बर को कहते हैं)।
वशी (अ़.पु.)-रंगीन कपड़ा।
वशीअ़ (अ़.स्त्री.)-खेत की बाढ़।
वश्कलीद (अ़.पु.)-जल्दबाज़ी करना।
वश्त (अ़.पु.)-अच्छा, ख़्ाुश।
वश्तन (अ़.पु.)-नाचना।
वश्मी (अ़.पु.)-सुख्ऱ्ा रंग, लाल रंग।
वसन (अ़.पु.)-मूर्ति, प्रतिमा, बुत।
वसनी (अ़.वि.)-मूर्तिपूजक, बुतपरस्त।
वसाइ$क (अ़.पु.)-'वसी$क:Ó का बहु., बसीक़े।
वसाइत (अ़.पु.)-'वासित:Ó का बहु., वासिते।
वसाइद (अ़.पु.)-'विसाद:Ó का बहु., मस्नदें, तकिए।
वसाइल (अ़.पु.)-'वसील:Ó का बहु., साधन, ज़रिए।
वसातत (अ़.स्त्री.)-साधन, माध्यम, जऱीअ़:, बिचौलिया।
वसामत (अ़.स्त्री.)-ख़्ाूबी, विशेषता।
वसायत (अ़.स्त्री.)-संरक्षकता, अभिभावकता, गार्जियन-शिप।
वसाया (अ़.पु.)-'वसीयतÓ का बहु., वसीयतें।
वसालत (अ़.स्त्री.)-माध्यम, वसील:, जऱीअ़:।
वसाविस (अ़.पु.)-'वस्वस:Ó का बहु., पैशाचिक विचार, बुरे विचार, दुर्विचार।
वासिख़्ा (अ़.वि.)-मलिन, गन्दा, मैला; मैला-कुचैला, मलयुक्त।
वसी (अ़.वि.)-उत्तराधिकारी, रिक्थाधिकारी, जिसके लिए वसीयत की गई हो।
वसीअ़ (अ़.वि.)-चौड़ा-चकला, विस्तृत, फैला हुआ।
वसीउत्तज्रिब: (अ़.वि.)-बृहदनुभव, जिसका अनुभव बहुत अधिक हो, अर्थात् जो बहुत अनुभवी हो, जिसकका तज्रिबा बहुत बढ़ा हुआ हो।
वसीउत्ताÓलीम (अ़.वि.)-बहुशिक्षित, जिसकी शिक्षा बहुत अधिक हो, जो बहुत पढ़ा-लिखा हो।
वसीउन्नजऱ (अ़.वि.)-दूरदर्शी, जिसकी दृष्टि दूर तक देख सकती हो, अग्रशोची, अनुभव सम्पन्न, बुद्घिमान्, कुशाग्र बुद्घि।
वसीउन्नजऱी (अ़.स्त्री.)-दूरदर्शिता, बुद्घिमत्ता।
वसीउलअख़्ला$क (अ़.वि.)-बृहच्छील, जिसकी शिष्टता और शीलता बहुत बढ़ी हुई हो, अति शीलवान्।
वसीउल$कल्ब (अ़.वि.)-उदाराशय, जिसके हृदय में बहुत गुंजाइश हो, बहुत-ही उदार, विशाल हृदय, उत्तान हृदय, बड़े दिल का।
वसीउलमश्रब (अ़.वि.)-जो प्रत्येक धर्म पर आस्था रखे और किसी का दिल न दुखाए।
वसी$क: (अ़.पु.)-व्यवस्थापत्र, लेखपत्र, दस्तावेज़; शपथपत्र, प्रतिज्ञापत्र, अह्दनामा; वह पेंशन, जो किसी जायदाद आदि की ज़ब्ती के बाद मिले, सम्पत्ति की क्षतिपूर्ति, मुअ़ावज़ा।
वसी$क:दार (अ़.$फा.वि.)-वसी$का अर्थात् पेंशन पानेवाला, क्षतिपूर्ति पानेवाला, मुअ़ावज़ा पानेवाला।
वसी$क:नवीस (अ़.$फा.पु.)-दस्तावेज़ लिखनेवाला; ज़मीन-जायदाद की बिक्री के दस्तावेज़ लिखनेवाला।
वसीत (अ़.वि.)-जो उच्च वंश का न हो परन्तु पद में उच्च श्रेणी का हो।
वसीद (अ़.पु.)-चौखट।
वसी$फ (अ़.पु.)-ख़्िादमतगार, $गुलाम, लौंडी।
वसीम (अ़.वि.)-सुन्दर, शोभित, ख़्ाूबसूरत; अंकित, चिह्निïत, निशान किया हुआ, दा$गा हुआ।
वसीयत (अ़.स्त्री.)-मरणपूर्व अनुदेश, मरनेवाले का अंतिम कथन, मरते समय अपनी जायदाद और सम्पत्ति के प्रबन्ध अथवा व्यय के लिए अंतिम आदेश, प्ररिक्थ।
वसीयतनाम: (अ़.$फा.पु.)-वसीयत के वैधानिक प्रपत्र अर्थात् वसीयत $कानूनी दस्तावेज़, इच्छापत्र, रिक्थपत्र, दायपत्र, मृत्युलेख।
वसीर: (अ़.स्त्री.)-थुलथुली स्त्री, मोटी औरत।
वसील: (अ़.पु.)-साधन, उपकरण, जऱीया; बिचौलिया, माध्यम।
वसीलए ज़$फर (अ़.पु.)-सफलता का साधन, उन्नति का जऱीया या उपाय।
वसीलए नजात (अ़.पु.)-मुक्ति का साधन, मोक्ष का जऱीया; छुटकारे का उपाय, बचने का तरी$का।
वस्$क (अ़.पु.)-विश्वास, भरोसा, एतिमाद, य$कीन।
वस्ख़्ा (अ़.पु.)-गन्दगी, मलिनता, मैल-कुचैल।
वस्त (अ़.वि.)-बीच, मध्य, दरमियान।
वस्ता (अ़.स्त्री.)-प्रशंसा, तारी$फ।
वस्ती (अ़.वि.)-बीच का, माध्यमिक, दरमियानी। इसकी 'तीÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बनी है।
वस्ती (अ़.पु.)-अनुवाद, व्याख्या। इसकी 'तीÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बनी है।
वस्ते माह (अ़.$फा.पु.)-महीने का बीच।
वस्नी ($फा.स्त्री.)-सौत, सौतन, वह दो स्त्रियाँ जिनका पति एक हो, परस्पर 'वस्नीÓ अर्थात् सौतन होती हैं।
वस्$फ (अ़.पु.)-गुण, सि$फत; प्रशंसा, तारी$फ; अच्छाई, उम्दगी।
वस्फ़े इज़ा$फी (अ़.पु.)-वह गुण, जो स्वाभाविक न हो, बीच में पैदा हो गया हो।
वस्म: ($फा.पु.)-नील की पत्ती, जिसका पहले ख़्िाज़ाब बनता था।
वस्मत (अ़.पु.)-ऐब, दोष।
वस्मी (अ़.वि.)-बहार का पहला महीना।
वस्ल (अ़.पु.)-जोड़, मिलान; प्रेमी और प्रेमिका का संयोग, मिलन।
वस्लच: (अ़.$फा.पु.)-छोटी वस्ली।
वस्ली (अ़.स्त्री.)-मोटे और चिकने कागज़़ के घुटे हुए तख़्ते, जिन पर लिखने का अभ्यास किया जाता है।
वस्लोहिज्र (अ़.पु.)-मिलन और वियोग, नायक और नायिका का आपस में मिलना और बिछुडऩा।
वस्वस: (अ़.पु.)-बुरी आशंका, अनिष्ट की शंका, बुरी शंका, बुरा ख़्ायाल या विचार; धर्म-विरुद्घ वह विचार जो शैतान उत्पन्न करता है; भ्रम, वह्म।
वस्वास (अ़.पु.)-दे.-'वस्वस:Ó।
वस्वासी (अ़.वि.)-भ्रमी, वह्मी।
वह$क (अ़.पु.)-कमंद, जिससे ऊपर चढ़ते हैं; पाश, रस्सी, फन्दा।
वहल (अ़.स्त्री.)-पंक, कीचड़, कर्दम, जंबाल, जलकल्क, खल्लाब।
वही (अ़.स्त्री.)-दे.-'वहÓ, परन्तु बोलचाल में 'वहीÓ ही बोलते हैं।
वह्इ (अ़.स्त्री.)-भगवान् की ओर से अवतार के लिए आया हुआ संदेश, ईश्वर की ओर से आया हुआ पै$गम्बर के लिए आदेश, वही।
वह्ए मुंज़ल (अ़.स्त्री.)-भगवान् की ओर से भेजा हुआ संदेश, ईश्वर प्रेषित आदेश, ख़्ाुदा की ओर से आया हुआ हुक्म।
वह्द: (अ़.स्त्री.)-वह नीची ज़मीन, जहाँ पानी भरे।
वह्दत (अ़.स्त्री.)-अद्वैतभाव, ईश्वर को एक मानना, वह्दानियत; एकत्त्व, एकता, इत्तिहाद।
वह्दतपरस्त (अ़.$फा.वि.)-अद्वैतवादी, ईश्वर को एक माननेवाला।
वह्दतपरस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-अद्वैतवाद, ईश्वर को एक मानना।
वह्दतुलवुजूद (अ़.स्त्री.)-ब्रह्मïवाद, यह सिद्घान्त कि संसार में केवल एक ईश्वर के सिवा और कुछ नहीं है।
वह्दते इरादी (अ़.स्त्री.)-स्वेच्छा से सबका मिलकर एक होना, अपनी मजऱ्ी से सबका मिलकर एक होना।
वह्दते $कह्रïी (अ़.स्त्री.)-बलात् अथवा ज़बरदस्ती सबको एक करना, जो मन और विचारों की एकता न हो।
वह्दते नौई (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की वस्तुओं की एकता।
वह्दते लिसानी (अ़.स्त्री.)-भाषा के दृष्टिकोण से एकता, सब की भाषा का एक होना।
वह्दते सहीह (अ़.स्त्री.)-वास्तविक एकता, सच्ची एकता।
वह्दानियत (अ़.स्त्री.)-अद्वैतवाद, ईश्वर के एक होने का सिद्घान्त; एकत्व, एकता, अकेलापन।
वह्दानी (अ़.वि.)-एकवाला, एक से सम्बन्ध रखनेवाला।
वह्न (अ़.पु.)-ढीलापन, शिथिलता; सुस्ती, आलस्य, अकर्मण्यता।
वह्ब (अ़.स्त्री.)-भेंट, देन, पुरस्कार, बख़्िशश, दान; भगवान् की देन, ईश्वर की भेंट।
वह्बी (अ़.वि.)-भगवान् का दिया हुआ, ईश्वरदत्त।
वह्म (अ़.पु.)-भ्रम, भ्रान्ति, वाहिम:; भय, डर; आशंका, शंका, संदेह, शक।
वह्मअसास (अ़.वि.)-भ्रममूलक, जिसकी नींव संदेह पर रखी हो, जिसका आधार भ्रम पर हो।
वह्मनाक (अ़.$फा.वि.)-वह्म से भरा हुआ, संदेहपूण, भ्रमपूर्ण, भ्रान्तिसंकुल।
वह्मी (अ़.वि.)-शक्की, भ्रमी, संशयात्मक।
वह्ल: (अ़.पु.)-भय, त्रास, डर, शंका, आशंका; बारी, द$फा।
वह्ल (अ़.पु.)-ध्यान बँटना, ध्यान का दूसरी ओर चला जाना।
वह्श (अ़.पु.)-'वह्शीÓ का बहु., जंगली जानवर, जो आदमी से भड़कते हों।
वह्शत (अ़.स्त्री.)-इंसानों अर्थात् आदमियों से भड़कना, बिदक; भय, डर, त्रास; सबसे अलग रहना; पागलपन, मिरा$क, ख़्ाब्त।
वह्शतअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-ख़्ाब्त पैदा करनेवाला; मन में वह्शत पैदा करनेवाला; भयजनक; भीषण, डरावना, भयानक।
वह्शतअफ्ज़़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शतअसर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शतआसार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शतकद: (अ़.$फा.पु.)-वह स्थान, जहाँ डर लगता हो, वह स्थान जहाँ से भागने को जी चाहे, जो सुनसान और उजाड़ हो।
वह्शतख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शतगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'वह्शतकद:Ó
वह्शतज़द: (अ़.$फा.वि.)-डरा हुआ, भयभीत, त्रस्त; आतुर, उद्विग्न; जो वह्शत में हो।
वह्शतज़दगी (अ़.$फा.स्त्री.)-भयभीत होना; वह्शत में होना, उद्विग्नता, ख़्ाब्त।
वह्शतज़ा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शततराज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शतअंगेज़Ó।
वह्शतनसीब (अ़.वि.)-जिसके भाग्य में वह्शत ही वह्शत हो, ख़्ाब्त का मारा हुआ।
वह्शतनाक (अ़.$फा.वि.)-भयानक, भीषण, डरावना; सुनसान, निर्जन और डरावना स्थान।
वह्शतसरा (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'वह्शतकद:Ó।
वह्शियान: (अ़.$फा.वि)-पागलों-जैसा, वह्शियों-जैसा; निर्दयों-जैसा, बेरहमों-जैसा।
वह्शी (अ़.वि.)-जंगली पशु, जो मनुष्य को देखकर बिदके और भागे; वह व्यक्ति जो मनुष्यों के समागम अर्थात् संगत से बचे और अकेला रहना पसन्द करे; पागल, मिरा$की, ख़्ाब्ती।
वह्शीतब्अ़ (अ़.वि.)-दे.-'वह्शीमिज़ाजÓ।
वह्शीमनिश (अ़.$फा.वि.)-दे.-'वह्शीमिज़ाजÓ।
वह्शीमिज़ाज (अ़.वि.)-जो जंगली जानवरों की तरह आदमियों को देखकर बिदके या भागे।
वह्शीसि$फत (अ़.वि.)-जंगली जानवरों-जैसा, वह्शियों की तरह।
वह्शोतैर (अ़.पु.)-जंगली जानवर और जंगली चिडियाँ।
वह्हाज (अ़.वि.)-प्रकाशमान्, चमकीला, ज्योतिर्मय।

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