कौ, $कौ
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कौंच: ($फा.पु.)-भड़भूंजे का कड़छा, जिससे वह भाड़ से गर्म बालू निकालता है।
कौंच ($हि.स्त्री.)-एक प्रकार की बेल, जिसमें सेम की-सी फलियाँ लगती हैं, उनकी तरकारी बनाकर खाई जाती है; इस बेल की फली।
कौंची ($हि.स्त्री.)-बाँस की पतली टहनी।
$कौंसल (अ़.पु.)-दूत, राजदूत, स$फीर।
$कौंसलख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-राजदूत के रहने का स्थान, दूतावास, सि$फारतख़्ााना, स$फीर के रहने का स्थान।
कौकब: (अ़.पु.)-धूमधाम, चहल-पहल; भीड़, जनसमूह, अम्बोह, लोगों का जमाव; ठाट-बाट, शानो-शौकत; लोहे का एक गेंदनुमा चमकदार लट्टू, जो एक टेढ़ी नोक की लम्बी लकडी में लटकाकर राजा अथवा बादशाह की सवारी के आगे-आगे चलाया जाता था।
कौकब (अ़.पु.)-बड़ा चमकता हुआ सितारा, तेज़ प्रकाश का बड़ा तारा, तारा, उडु।
कौड़ी (हिं.स्त्री.)-घोंघे की तरह का एक समुद्री कीड़ा जो एक अस्थिकोश के भीतर रहता है; धन, द्रव्य, रुपया, पैसा; वह कर जो सम्राट् अपने अधीन राजाओं से लेता है; आँख का ढेला; गिलटी जो कांख या जांघ में होती है; छोटी हड्डी जो छाती के नीचे बीच में होती है; कटार की नोक। 'कौड़ी काÓ-कम मूल्य का; प्रतिष्ठाहीन। 'कौड़ी का कर डालनाÓ-ख़्ाराब कर देना; इज़्ज़त ख़्ाराब करना। 'कौड़ी का बल न पडऩाÓ-तनिक भी हिसाब न छूटना।
कौदन (अ.वि.)-मूढ़, कुन्द-ज़ेह्न, बहुत-ही बेव$कू$फ, मूर्ख, घामड़; कम समझ, नासमझ; मट्ठर, लद्दू घोड़ा जो बहुत धीरे चलता है, कम चलनेवाला टट्टू, मरियल टट्टू।
कौन (अ़.पु.)-जहान, जगत्, संसार, दुनिया; उत्पत्ति, सृष्टि, तख़्ली$क; प्रकृति; सत्य, ह$की$कत, तथ्य, अस्तित्व।
कौन (हिं.सर्व.)-एक प्रश्नवाचक सर्वनाम जिसके द्वारा अभिप्रेत वस्तु या व्यक्ति के बारे में पूछा जाता है। विभक्ति लगने पर 'कौनÓ का रूप 'किसÓ हो जाता है, कैसा, किस प्रकार का। 'कौन किसका होता हैÓ-कोई दूसरे की सहायता नहीं करता। 'कौन होनाÓ-क्या अधिकार या मतलब रखना; क्या सम्बन्ध होना।
कौनोमकान (अ़.पु.)-जहान, जगत्, संसार, दुनिया।
कौनैन (अ़.पु.)-दोनों लोक, दोनों संसार, यह लोक और ऊपरी लोक अर्थात् परलोक, लोक-परलोक।
$कौम: (अ़.पु.)-नमाज़ में खड़े होने की अवस्था।
$कौम (अ़.पु.)-राष्ट्र, राज्य, सत्ता, सल्तनत; बिरादरी; वर्ण; जाति, वंश; ब्राह्मïण, वैश्य, क्षत्रिय या शैख़्ा, सैयिद आदि जातियाँ।
$कौमदार (उ.वि.)-अच्छी नस्ल का।
$कौमियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कौमीयतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कौमी (अ़.वि.)-राष्ट्रीय, नैशनल, मुल्की; राष्ट्र का, देश का; राष्ट्र अथवा देश से सम्बन्ध रखनेवाला; जाति अथवा बिरादरी का, जातीय; वर्ण-सम्बन्धी।
$कौमीयत (अ़.स्त्री.)-राष्ट्रीयता, नैशनलिटी; बिरादरी, वर्ण।
कौर: (अ़.पु.)-निर्जन और वीरान स्थल।
$कौर (अ़.पु.)-पंजों के बल इस प्रकार चलना कि कोई पाँवों की आहट न सुन सके, उचक-उचककर चलना, दबे पाँव चलना।
कौर (अ़.पु.)-समृद्घि, दौलतमंदी; सुख, आराम; वृद्घि, बढ़ती।
कौर (हिं.पु.)-उतना भोजन जितना एक बार मुँह में डाला जाए, ग्रास, गस्सा, निवाला।
$कौल (अ़.पु.)-वचन, कथन, कहावत, बात; प्रतिज्ञा, वादा, इक्ऱार, स्वीकृति, हामी; प्रवचन, म$कूल:। मुहा.- '$कौल का पूराÓ-बात का पक्का, सच्चा। '$कौल ओ $फेÓलÓ-वचन और कर्म, रंग-ढंग। '$कौल ओ $करार करनाÓ-आपस में प्रतिज्ञा करना, परस्पर वचनबद्घ होना।
$कौलन (अ़.वि.)-मौखिक रूप से, ज़बानी, ज़बान से, बातों से, $कौल से, '$फेÓलनÓ का विपरीत।
कौले सालेह (अ़.पु.)-नेक परामर्श, सही राय, सच्ची राय, ठीक बात, सच्ची बात।
$कौलो$करार (अ़.पु.)-पारस्परिक प्रतिज्ञा और वचन, आपस में वचनबद्घ होना, परस्पर प्रतिज्ञा करना।
$कौलो$कसम (अ़.पु.)-आपस में शपथ लेना और प्रतिज्ञा करना, अह्दोपैमा।
$कौलो $फेÓल (अ़.पु.)-कथनी और करनी, कहना और करना, कथन और कर्म।
कौवा (हिं.पु.)-एक काला पक्षी जो अपने कर्कश स्वर और चालाकी के लिये प्रसिद्घ है, काक, वायस; काइयां, बहुत धूर्त व्यक्ति; छाजन की वह लकड़ी जो बँडेरी के सहारे लगाई जाती है, कौहा; गले के अन्दर का मांस का टुकड़ा, घांटी, लंगर; एक प्रकार की मछली। 'कौवा गुहारÓ-बहुत अधिक बकबक।
$कौस (अ.स्त्री.)-धनुष, धनु, धन्वा, कमान; धनुराशि, बुर्जे $कौस।
$कौस एकज़ह (अ़.स्त्री.)-इन्द्रधनुष।
कौसज (अ़.पु.)-ऐसा व्यक्ति, जिसकी दाढ़ी-मूँछ बहुत समय बाद निकलें। दे.-'कोस:Ó।
$कौसनुमा (अ़.$फा.वि.)-धनुषाकार, कमान की तरह का, कमानाकृति।
कौसर (अ़.पु.)-स्वर्ग का एक बड़ा कुण्ड या हौज़; बहुत बड़ा दाता। लोको.-'कौसर की धाई ज़बानÓ-बहुत पाक-सा$फ और मँजी हुई ज़बान।
$कौसुन्नहार (अ़.स्त्री.)-सूर्य की पूर्व से पश्चिम तक की यात्रा, जो बारह घण्टे में समाप्त होती है और पूरा धनुष बनाती है।
$कौसुस्समा (अ़.स्त्री.)-आकाशमण्डल जो धनुष की तरह दिखाई देता है।
$कौसे $कुज़ह (अ़.स्त्री.)-धनुक, धनुष, इन्द्रधनुष।
$कौसे शैतान (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कौसे $कुज़हÓ।
$कौसैन (अ़.स्त्री.)-दो धनुष, दो कमानें; कोष्ठक, ब्रैकेट।
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