Wednesday, October 14, 2015

था

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थाँग (हि.सं.स्त्री.)- चोरों या डाकुओं के छिपकर रहने का गुप्त स्थान; खोज, पता, सुरा$ग; गुप्त स्प से किसी बात का लगा हुआ पता। मुहा.-'थाँग लगानाÓ- चोरी का पता लगाना।
थाँगी (हि.सं.पु.)- चोरी का माल खरीदने या छिपाकर अपने पास रखनेवाला आदमी; चोरों का सरदार; खूँटैल; जासूस, भेदिया; चोरों को पता देनेवाला, सहायक।
थाँवला (हि.सं.पु.)- वह घेरा या गड्ढा जो किसी पेड़ के चारों ओर पानी के लिए बनाया जाता है, थाला, आलबाल।
थाती (हि.सं.स्त्री.)- कठिन समय के लिए बचाकर रखी गयी पूँजी या धन; जमा पूँजी; धरोहर, अमानत।
थाना (हि.पु.)- ठहरने का स्थान, अड्डा; पुलिस विभाग का वह भवन जिसमें वहाँ के इला$के या क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सिपाही रहते हैं और जहाँ अपराधों की सूचना दी जाती है; बाँसों का समूह, बाँस की कोठी।
थानेदार (हि.पु.)- थाने का वह प्रधान अधिकारी जो किसी क्षेत्र में शान्ति बनाए रखने और अपराधों की छानबीन के लिए नियुक्त हो।
थाप (हि.सं.स्त्री.)- तबले-मृदंग आदि पर पूरे पंजे से किया जानेवाला आघात; थप्पड़; छाप, चिह्नï; गुण, प्रधानता आदि की धाक; $कसम, शपथ; पंचायत; प्रमाण, सुबूत; कदन, मान।
थापना (हि.क्रि.)- गोबर पाथना, उपले पाथना; मूर्ति स्थापित करना, जमाना; किसी गीली वस्तु को हाथ या साँचे से पीट या दबाकर निश्चित आकार देना।
थापा (हि.पु.)- दीवारों आदि पर लगाया जानेवाला थापा; खलियान में अनाज के ढेर पर मिट्टी आदि से लगाया हुआ चिह्नï; वह साँचा जिससे कोई चिह्नï अंकित किया जाए; ढेर, राशि; वह चन्दा जो गाँव में किसी देवी-देवता की पूजा के लिए इकट्ठा किया जाता है, पुजौरा; नैपालियों की एक जाति।
थापी (हि.सं.स्त्री.)- वह चपटी मुँगरी जिससे गच पीटकर जमाते हैं; कुम्हार का कच्चा घड़ा पीटने का चपटा और चौड़े सिरे का काठ का डण्डा।
थाम (हि.पु.)- खम्भा, स्तम्भ; मस्तूल; (स्त्री.)- थामने की क्रिया या ढंग, पकड़।
थाल (हि.सं.पु.)- बड़ी थाली; भोजन-विशेष।
थाली (हि.सं.स्त्री.)- भोजन करने का एक प्रसिद्घ गोल छिछला बर्तन, तस्तरी, छोटा थाल; नाच का एक प्रकार जिसमें थोड़े से घेरे के बीच नाचा जाता है। मुहा.- 'थाली बजनाÓ- किसी के घर पुत्र उत्पन्न होना। 'थाली बजानाÓ- साँप का विष उतारने का मंत्र पढ़ा जाना; किसी के घर पुत्र उत्पन्न होने पर भी थाली बजाते हैं। 'थाली का बैंगनÓ- लाभ और हानि देखकर कभी इस पक्ष में और कभी उस पक्ष में होनेवाला व्यक्ति; अस्थिर सिद्घान्त या विचारवाला व्यक्ति। 'थाली फिरनाÓ- भीड़ का अधिक हेना, इतनी भीड़ होना कि यदि थाली फेंकी जाए तो लोगों के सिरों पर ही फिरती रहे, ज़मीन पर न गिरे। Óथाली फूटी तो फूटी, झंकार तो सुनीÓ- मतलब पूरा करने के लिए नु$कसान का ख़्ायाल न करने के मौ$के पर कहा जाता है।
थाह (हि.सं.स्त्री.)- गहराई, ज्ञान, महत्त्व आदि का अन्त या सीमा; गहराई, ज्ञान, महत्त्व आदि का पता या परिचय; सीमा, हद, परिमिति; मन का भेद; आशय, अभिप्राय:।
थाहना (हि.सं.वि.)- थाह लेना; गहराई का पता लगाना; मन की बात जानना; अंदाज़ या पता लेना।

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