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थंभन (हि.स्त्री.)- स्तम्भन, रुकावट, ठहराव; तंत्र के छह प्रयोगों में से एक; एक औषध जो शरीर से निकलनेवाली वस्तु (मल, मूत्र, वीर्य आदि) को रोके रहे।थंभित (हि.वि.)- रुका या ठहरा हुआ, अड़ा हुआ; अचल, स्थिर; भय या आश्चर्य से निश्चल, ठक।
थई (हि.सं.स्त्री.)- एक के ऊपर एक रखे हुए पान, कपड़े या रोटियाँ।
थकन (हि.स्त्री.)- थकावट।
थकना (हि.क्रि.)- परिश्रम करते-करते इतना शिथिल होना कि फिर और परिश्रम न हो सके; ऊबना; बुढ़ापे के कारण काम करने योग्य न रहना; मन्दा या धीमा होना; मोहित होर अचल या निश्चल होना।
थकान (हि.स्त्री.)- थकने का भाव, थकावट, शिथिलता।
थकाना (हि.क्रि.)- श्रान्त करना, शिथिल करना, हराना।
थकामाँदा (हि.वि.)- परिश्रम करते-करते अशक्त, श्रमित, श्रान्त; जो थककर चूर हो गया हो।
थकाव (हि.स्त्री.)- शिथिलता, थकने का भाव।
थकावट (हि.स्त्री.)-थकने का शारीरिक परिणाम या भाव; शिथिलता, थकान।
थक्का (हि.सं.पु.)- लोंदा।
थड़ा (हि.पु.)- बैठने की जगह, बैठक; दुकान की गछ्दी।
थन (हि.पु.)- गाय, भैंस, बकरी आदि चौपायों के स्तन।
थपक (हि.क्रि.)- प्यार से या आराम पहुँचाने के लिए किसी के शरीर पर धीरे-धीरे हथेली से आघात करना; धीरं-धीरे ठोंकना; पुचकारना या दिलासा देना; शान्त करना।
थपकी (हि.सं.स्त्री.)- थपकने की क्रिया या भाव; वह
आघात जो प्रेमवश किसी के शरीर पर धीरे-धीरे पहुँचाया जाए; हाथ से धीरे-धीरे ठोंकने की क्रिया; हाथ के झटके से पहुँचाया हुआ आघात; ज़मीन को पीटने की चौरस मुँगरी; धोबी का मुँगरा, डण्डा या सोटा।
थपथपी (हि.सं.स्त्री.)- दे.- 'थपकीÓ।
थपन (हि.पु.)- स्थापन, ठहरने या जमने का भाव।
थपना (हि.क्रि.)- प्रतिष्ठित करना; स्थापित करना, बैठाना, जमाना; धीरे-धीरे पीटना; प्रतिष्ठित होना; स्थापित होना; जमना, ठहरना।
थपाना (हि.क्रि.)- स्थापित करना, प्रतिष्ठित करना।
थपेड़ (हि.सं.स्त्री.)- चपेट।
थपेड़ा (हि.पु.)- थप्पड़; आघात; धक्का, टक्कर।
थप्पड़ (हि.सं.पु.)- हथेली से किया गया आघात, तमाचा, झापड़, चपेट; भारी आघात, धक्का; दाद की फुन्सियों का छत्ता या चकत्ता।
थमना (हि.क्रि.)- रुकना, ठहरना; प्रचलित या चलता न रहना, बन्द हो जाना; धीरज धरना, उतावला न होना, ठहरा रहना। 'थमा रहनाÓ- रुका रहना।
थमाना (हि.क्रि.)- हवाले करना, पकड़ाना।
थरथर (हि.स्त्री.)- डर या भय से काँपने का भाव या मुद्रा, (हि.वि.)- काँपता हुआ।
थरथराना (हि.क्रि.)- डर या भय से काँपना।
थरथरी (हि.स्त्री.)- रोग अथवा भय के कारण होनेवाली कँपकपी, जूड़ी।
थर्राना (हि.क्रि.)- डर से काँपना, भयभीत होना, दहलना; डराकर कम्पित करना, भयभीत करना, दहलाना।
थल (हि.सं.पु.)- स्थान, जगह, ठिकाना; सूखी धरती, भू-भाग; भूड़, थली, रेगिस्तान; शेर-चीता आदि जंगली पशुओं की माँद; फोड़े का लाल और सूजा हुआ घेरा।
थलकना (हि.क्रि.)- झोल होने के कारण ऊपर से नीचे हिलना; मोटेपन के कारण शरीर का मांस हिलना।
थलचर (हि.सं.पु.)- पृथ्वी पर रहनेवाले जीव।
थलज (हि.सं.पु.)- गुलाब।
थलकल (हि.सं.वि.)- ढीला, बेकसा; मोटाई या स्थूलता के कारण झूलता या हिलता हुआ।
थलपति (हि.सं.पु.)- नृप, राजा।
थलिया (हि.स्त्री.)- छोटी थाल, थाली, टाठी।
थली (हि.स्त्री.)- स्थान, जगह; जल के नीचे का तल; ठहरने अथवा बैठने की जगह, बैठक; परती भूमि; रेतीली ज़मीन।
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