Wednesday, October 14, 2015

ज, ज़

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जंक: ($फा.स्त्री.)-छोटी अ़ौरत।
ज़ंक ($फा.पु.)-सूक्ष्म वस्तु।
जंग ($फा.स्त्री.)-समर, रण, युद्घ, संग्राम, संयुग, लड़ाई, हर्ब; झड़प, झगड़ा, कलह; उपद्रव, $फसाद; वैर, शत्रुता, दुश्मनी; प्रतिद्वंद्विता, प्रतिरोध।
ज़ंग ($फा.पु.)-ठण्ड और तरी से धातुओं में लगनेवाला मैल, कसाव, मोरचा, मंडूर; मैल, गंदगी; पाप, अपराध, गुनाह; घंटा, घडिय़ाल।
जंंगआज़्मा ($फा.वि.)-युद्घ-कुशल, लड़ाई का अनुभवी; युद्घरत, लड़ाई या समर में मश$गूल।
जंगआज़्माई ($फा.स्त्री.)-युद्घ अथवा समर का अनुभव; युद्घ में व्यस्तता; युद्घ, समर, लड़ाई; युद्घक्रिया।
जंगआज़्मूद: ($फा.वि.)-युद्घ के मैदान जीते हुए अर्थात् अनुभवी योद्घा, युद्घ-कुशल।
जंगआज़्मूदगी ($फा.स्त्री.)-युद्घ-कौशल, लड़ाई का अनुभव।
ज़ंगआलूद: ($फा.वि.)-ज़ंग लगा हुआ, मोरचा खाया हुआ।
ज़ंगआलूदगी ($फा.स्त्री.)-ज़ंग लगकर ख़्ाराब हो जाना, मोरचा लग जाना।
जंगआवर ($फा.वि.)-वीर, बहादुर, युद्घ की आग भड़कानेवाला।
ज़ंगख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-दे.-'ज़ंगआलूद:Ó।
ज़ंगख़्ाुर्दगी ($फा.$स्त्री.)-दे.-'ज़ंगआलूदगीÓ।
जंगख़्वाह ($फा.वि.)-युद्घ अथवा लड़ाई चाहनेवाला, जो चाहता हो कि युद्घ हो जाए, समर-पसंद, युद्घ-कामी, युद्घ-प्रेमी।
जंगगाह ($फा.स्त्री.)-समर-क्षेत्र, युद्घ-क्षेत्र, लड़ाई का मैदान, रंगभूमि, रणस्थल, समरांगण, संग्राम-स्थल।
जंगजू ($फा.वि.)-स्वभाव से ही लड़ाई-झगड़ा पसंद करनेवाला, लड़ाका; युद्घप्रेमी; सैनिक, सिपाही, योद्घा।
जंगजूई ($फा.स्त्री.)-सैनिकता, सिपाहीपन; लड़ाकापन, जुझारूपन; युद्घ, लड़ाई, रण, समर, संग्राम।
जंग ना आज़्मूद: ($फा.वि.)-जिसे रण अथवा युद्घ का अनुभव न हो, अनाड़ी योद्घा।
जंगपसंद ($फा.वि.)-युद्घप्रिय, रण या समर-प्रिय, जिसे युद्घ और रक्तपात अच्छा लगता हो, संग्राम-प्रेमी।
जंगपसंदी ($फा.स्त्री.)-युद्घ की विभीषिका से ख़्ाुश होना, युद्घ और रक्तपात को पसंद करना, संग्रम-प्रेम।
जंगबाज़ ($फा.वि.)-जो हर समय युद्घ और लड़ाई की-ही बात सोचता हो, जो हर समस्या के निदान के लिए युद्घ को रामबाण समझता हो।
जंगबाज़ी ($फा.स्त्री.)-हर समय युद्घ की ही बात सोचना, हर समस्या को लड़ाई द्वारा ही हल करने की कोशिश करना।
जंगल ($फा.पु.)-वन, कानन, विपिन, सहरा, रेगिस्तान; चटियल मैदान, बियाबान।
जंगली ($फा.वि.)-जंगल का निवासी; असभ्य, अशिष्ट, वहशी, ख़्ाँूख़्ाार; जंगल में मिलनेवाली वस्तु।
जंगली यकपा ($फा.पु.)-एक जानवर जो मनुष्य की आकृति का होता है, केवल एक पाँव रखता है और बोल नहीं पाता है; घामड़ व्यक्ति, हवन्न$क।
जंगार ($फा.पु.)-केकड़ा।
ज़ंगार ($फा.पु.)-ज़ंग, मोरचा, मंडूर, ज़ंग से बनी हुई एक औषध।
ज़ंगारी ($फा.वि.)-जिसमें ज़ंग अथवा ज़ंगार पड़ा हो; ज़ंगार डालकर बनाई हुई औषधि; ज़ंगार के रंग का।
जंगाह ($फा.स्त्री.)-'जंगगाहÓ का लघु., दे.-'जंगगाहÓ।
जंगी ($फा.वि.)-युद्घ अथवा समर से सम्बन्ध रखनेवाला, लड़ाई में काम आनेवाला।
ज़ंगी ($फा.वि.)-हबश देश का निवासी, हब्शी, अफ्ऱकी, बहुत-ही काले रंग का व्यक्ति।
जंगीदन ($फा.क्रि.)-लडऩा।
ज़ंगी नज़ाद ($फा.वि.)-हब्शी नस्ल का, हब्शी।
ज़ंगुल: ($फा.पु.)-झाँझ, बड़े मजीरे; घुँघरू।
ज़ंगूल: ($फा.पु.)-दे.-'ज़ंगुल:Ó।
जंगे आज़ादी ($फा.स्त्री.)-स्वतंत्रता की लड़ाई, पराधीनता से मुक्त होने के लिए की जानेवाली लड़ाई।
जंगे जऱगरी ($फा.स्त्री.)-कूटयुद्घ, वह लड़ाई जो केवल दूसरों को दिखाने के लिए झूठमूठ को लड़ी जाए, न$कली लड़ाई।
जंगे बर्री (अ़.$फा.स्त्री.)-मैदानी जंग, स्थलयुद्घ, भूमि पर किया जानेवाला समर, ख़्ाुश्की की लड़ाई।
जंगे बह्रïी (अ़.$फा.स्त्री.)-नौसैनिक-युद्घ, समुद्र में जहाज़ों से लड़ी जानेवाली लड़ाई, जलयुद्घ।
जंगे साख़्त: ($फा.स्त्री.)-दे.-'जंगेजऱगरीÓ।
जंगे हवाई (अ़.$फा.स्त्री.)-वायु-सैनिकों द्वारा हवा अथवा आकाश में लड़ा जानेवाला युद्घ, वायु-युद्घ, हवाई-युद्घ।
जंगोजदल (अ़.$फा.स्त्री.)-लडाई-झगड़ा, मारकाट, ख़्ाूँरेजी, रक्तपात।
जंगोजिदाल (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जंगोजदलÓ।
ज़ंचक ($फा.स्त्री.)-वेश्या, रण्डी, व्यभिचारिणी, कुलटा, $फाहिशा।
जंज़ (अ़.पु.)-हबश देश, अफ्ऱीका
ज़ंजबार (अ़.पु.)-पूर्वी अफ़्रीक़ा का एक तटीय टापू, जहाँ से लौंग आती है।
ज़ंजबील (अ़.स्त्री.)-सोंठ, शुठि, सूखा हुआ अदरक।
ज़ंजर: ($फा.पु.)-एक प्रकार का कीड़ा, झींगुर।
ज़ंजलब (अ़.पु.)-गडुआ, लोटा।
जंज़ी (अ़.वि.)-हबश देश का रहनेवाला, अफ्ऱीकन।
जंज़ीर: ($फा.पु.)-तरंग, मौज, लहर; एक प्रकार की सिलाई।
ज़ंजीर ($फा.स्त्री.)-शंृखला, साँकर; क्रम, तर्तीब।
ज़ंजीरकशीद: ($फा.वि.)-दे.-'ज़ंजीर गुसिस्त:Ó।
ज़ंजीरख़्ाान: ($फा.पु.)-कारागार, जेलख़्ााना, बन्दीगृह।
ज़ंजीरगर ($फा.वि.)-जंज़ीर बनानेवाला, शंृखला-निर्माता।
ज़ंजीरगुसिस्त: ($फा.वि.)-जिसके पाँव की बेड़ी टूट गई हों, स्वच्छन्द, स्वतंत्र, आज़ाद, बन्धनमुक्त।
ज़ंजीरदार ($फा.वि.)-सम्बन्ध रखनेवाला, अनुयायी, मुत्तबेÓ।
ज़ंजीर$फर्सा ($फा.वि.)-जंज़ीर को रगडऩेवाला।
ज़ंजीर: बंदी ($फा.स्त्री.)-एक वस्तु का दूसरी वस्तु से अनिवार्य सम्बन्ध; शंृखलाबद्घता।
ज़ंजीरबान ($फा.वि.)-बन्दीगृह अथवा कारागार का प्रभारी, अध्यक्ष, जेलर।
ज़ंजीरमू ($फा.वि.)-घुँघराले बालोंवाला (वाली)।
ज़ंजीरसर ($फा.वि.)-दे.-'जंज़ीरमूÓ।
ज़ंजीरसाज़ ($फा.वि.)-दे.-'जंज़ीरगरÓ।
ज़ंजीरसोज़ ($फा.वि.)-जंज़ीर को जला देनेवाला, जंज़ीर को ख़्ात्म कर देनेवाला, बन्धनों को तोड़ देनेवाला, बंधन-भंजक।
ज़ंजीरी ($फा.वि.)-बन्दी, $कैदी; पागल, दीवाना।
जंज़ीरे अ़द्ल ($फा.स्त्री.)-वह जंज़ीर जो मु$गल सम्राट् जहाँगीर ने अपने महल के द्वार पर इसलिए लगवाई थी कि न्याय माँगनेवाले उसे बजाकर अपनी याचना सम्राट् तक पहुँचा सके।
ज़ंजीरे आहन ($फा.स्त्री.)-लौहपाश, लौहअर्गला, लोहे की शृंखला, लोहे की जंज़ीर।
जंज़ीरे जुनूँ (अ़.$फा.स्त्री.)-वह शृंखला या जंज़ीर जो पागल व्यक्ति को पहनाई जाती है।
जंज़ीरे दर ($फा.स्त्री.)-द्वार की कुण्डी, सिटकनी।
जंज़ीरे दाद ($फा.स्त्री.)-वह जंज़ीर जो नौशेरवाँ ने अपनी सत्ता के समय राजद्वार पर घंटी बाँधकर लटकाई थी।
जंज़ील ($फा.स्त्री.)-मूठ, हत्था।
जं़द: ($फा.वि.)-महान्, बड़ा, अज़़ीम।
जं़द:पील ($फा.पु.)-बहुत बड़ा हाथी, गजराज।
जं़द:रोद ($फा.पु.)-बहुत बड़ी नदी, महानद।
जं़द ($फा.वि.)-अज़़ीम, महान्, बड़ा; च$कमा$क, अग्नि-पत्थर, च$कम$क पत्थर।
जं़द (अ़.पु.)-कलाई, पहुँचा।
जं़द ($फा.पु.)-जऱदुश्त का वह ग्रंथ, जो पार्सियों का मूल धार्मिक-ग्रंथ है।
जं़दख़्वाँ ($फा.वि.)-दे.-'जं़दबा$फÓ।
जं़दगी ($फा.स्त्री.)-पुरानापन।
जं़दपील ($फा.वि.)-दे.-'जं़द:पीलÓ।
जं़दबा$फ ($फा.वि.)-गानेवाला पक्षी, बुलबुल; पंडुक, पेडुकी, $कुमरी अथवा $फाख़्ता आदि।
जंदर ($फा.स्त्री.)-कोताह, अल्प।
जंदर्म: (अ़.पु.)-पुलिस, सिपाही, सैनिक।
जंदल (अ़.पु.)-शिला, बड़ा पत्थर।
जं़दला$फ ($फा.वि.)-दे.-'जं़दबा$फÓ।
जं़दिक़: (अ़.पु.)-मिथ्याचार, नास्तिकता, बेदीनी।
जं़दोउस्ता ($फा.पु.)-'जं़दÓ का मूलग्रंथ और उसका महाकाव्य 'उस्ताÓ, यह पारसियों का धार्मिक-ग्रंथ है।
जं़दोपाजं़द ($फा.पु.)-'जं़दÓ का मूल और उसका महाभाष्य 'पाज़ंदÓ, यह पारसियों का धार्मिक-ग्रंथ है।
जंब (अ़.पु.)-पाश्र्व, पहलू; वक्ष:स्थल, सीना; पसली।
जं़ब (अ़.पु.)-अपराध, पाप, पातक, दोष, गुनाह।
जं़बक़ (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ फूल, चम्पा।
जं़बर ($फा.पु.)-बोझ उठाने की सीढ़ी के आकार की एक चीज़, मंझी।
जं़बाज़: ($फा.पु.)-ऐयाश, रण्डीबाज़, व्यभिचारी।
जं़बील (अ़.स्त्री.)-थैला, झोला; पिटारा, टोकरा।
जं़बीलसाज़ (अ़.पु.)-टोकरी बनानेवाला; थैला या झोला बनानेवाला।
जं़बूर: ($फा.पु.)-छोटी तोप; बाण की नोक या फल; भिड़, बर्र।
जं़बूर ($फा.पु.)-छोटी तोप; बाण की नोक या फल; भिड़, बर्र; शहद की मक्खी, मधुमक्खी; एक औज़ार जो सामान को पकडऩे के काम आता है।
जं़बूरक (तु.पु.)-छोटी और हलकी तोप जो ऊँट आदि पर लादी जा सके, शुतुरनाल।
जं़बूरख़्ाान: ($फा.पु.)-भिड़ों का छत्ता, मधुमक्खियों का छत्ता।
जं़बूरची (तु.पु.)-तोपची, तोप चलानेवाला।
जं़बूरी ($फा.पु.)-जालीदार कपड़ा; 'जं़बूरÓ से सम्बन्ध रखनेवाला।
जं़बूरे अ़सल (अ़.$फा.पु.)-मधुमक्खी, शहद की मक्खी।


ज़ई$फ: (अ़.स्त्री.)-वृद्घा स्त्री; निर्बला स्त्री।
ज़ई$फ (अ़.वि.)-बूढ़ा, वृद्घ, वयोगत, वयोवृद्घ; कमज़ोर, शक्तिहीन, निर्बल।
ज़ई$फ आवाज़ (अ़.$फा.वि.)-क्षीणवाणी, जिसकी आवाज़ बहुत कमज़ोर हो, मंद-स्वर, जो बहुत धीमे से बोले।
ज़ई$फी (अ़.स्त्री.)-बुढ़ापा, वृद्घावस्था; निर्बलता, कमज़ोरी।
ज़ई$फुद्दिमाग़ (अ़.वि.)-बूढ़ों-जैसे दिमा$गवाला, जिसे बात याद न रहती हो, जिसका मस्तिष्क कमज़ोर हो।
ज़ई$फुन्नजऱ (अ़.वि.)-मंददृष्टि, जिसकी नेत्र-शक्ति कमज़ोर हो, जिसकी बीनाई क्षीण पड़ गई हो।
ज़ई$फुलअ़क़्ल (अ़.वि.)-मंदमति, जिसकी बुद्घि कमज़ोर हो, जिसमें समझ-बूझ की कमी हो।
ज़ई$फुलईमान (अ़.वि.)-मंदनिष्ठ, जिसका विश्वास धर्म पर दृढ़ न हो, क्षीण-आस्था।
ज़ई$फुलउम्र (अ़.वि.)-वयोवृद्घ, बड़ी आयुवाला, बूढ़ा।
ज़ई$फुलएति$काद (अ़.वि.)-जिसकी श्रद्घा किसी पर कम हो; जो साधु-संतों पर विश्वास कम रखता हो।
ज़ई$फुलक़ल्ब (अ़.वि.)-जिसका दिल कमज़ोर हो, जो किसी अनहोनी की आशंका से तुरन्त व्याकुल या बेचैन हो जाए ।
ज़ई$फुल$कुवा (अ़.वि.)-जिसके हाथ-पाँव कमज़ोर हो गए हों, जो शक्तिहीन हो गया हो, अशक्त, दुर्बल।
ज़ई$फुलबसर (अ़.वि.)-दे.-'ज़ई$फुलन्नजऱÓ।
ज़ई$फुलबुन्यान (अ़.वि.)-जिसका आधार कमज़ोर हो, जिसकी नींव कमज़ोर हो, दुर्बल आधारवाला।
ज़ई$फुलमेद: (अ़.वि.)-जिसकी पाचन-शक्ति कमज़ोर हो, अग्निमंद।
ज़ई$फुलहज़्म (अ़.वि.)-दे.-'ज़ई$फुलमेद:Ó।
ज़ईम (अ़.पु.)-अगुआ, नेता, लीडर, रहनुमा।
ज़ईमुलमिल्लत (अ़.पु.)-देश का नेता, राष्ट्र का नेता, पूरी $कौम का नेता।
जईर (अ़.पु.)-बौना और कठोर स्वभाव का व्यक्ति।
ज़कं़द ($फा.स्त्री.)-उछाल, छलाँग, फलाँग।
ज़क ($फा.स्त्री.)-अपमान, तिरस्कार, जि़ल्लत; लज्जा, शर्म; पराजय, हार, शिकस्त; अनिष्ट, हानि, नुक़्सान।
जक (अ़.स्त्री.)-झक।
ज़$कन (अ़.स्त्री.)-ठोडी, ठुड्डी, चिबुक।
ज़कर (अ़.पु.)-नर, पुरुष प्राणी; शिश्न, लिंग, मेह्न।
ज़करीया (अ़.पु.)-एक पै$गम्बर जो आरे से चीरे गए थे।
ज़का (अ़.स्त्री.)-बढ़त, विकास, बढऩा; फलना-फूलना, अधिक होना; सुख-चैन से रहना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़का (अ़.स्त्री.)-समझ, अ़क़्ल, बुद्घि, विवेक, मति, तमीज़। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़कात (अ़.स्त्री.)-इस्लाम-धर्म के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत का दान, जो वे लोग देते हैं जो मालदार हों और उन लोगों को दिया जाता है जो अपाहिज या असहाय अथवा साधनहीन हों।
ज़काब (अ़.स्त्री.)-लिखने की स्याही, मसि, मसिजल, रोशनाई।
ज़कावत (अ़.स्त्री.)-मनीषा, बुद्घिमत्ता, अ़क़्लमंदी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़कावत (अ़.स्त्री.)-तीव्रता, तेज़ी, तीक्ष्णता; वृद्घि, विकास। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़कावते हिस (अ़.स्त्री.)-संवेदन-शक्ति का बढ़ जाना, $कुव्वते एहसास का अधिक हो जाना।
ज़की (अ़.वि.)-अ़क़्लमंद, मेधावी, बुद्घिमान्। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़की (अ़.वि.)-शुद्घ, पवित्र, पाक; नि:स्पृह, अनिच्छुक, उदासीन, बेनियाज़, विरागी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़कीउलहिस (अ़.वि.)-जिसकी संवेदन-शक्ति बढ़ जाए, अतिसंवेदनशील।
ज़कीक (अ़.स्त्री.)-मंदगति, धीमी चाल।
ज़कीय: (अ़.स्त्री.)-अ़क़्लमंद अ़ौरत, बुद्घिमति, प्रतिभावती, प्रतिभाशालिनी, तेज़ तबा अ़ौरत।
ज़$कूम ($फा.पु.)-थूहड़ का पेड़।
ज़$कूमाब ($फा.पु.)-थूहड़ के पेड़ को कूटकर निचोड़ा हुआ पानी, (ज़$कूम+आब)।
जकौ (अ़.पु.)-एक सुन्दर पक्षी, सुख्ऱ्ााब।
ज़क़्$कूम (अ़.पु.)-थूहड़ का पेड़।
जक्फऱ (अ़.वि.)-सहनशील, सहिष्णु, सहन करनेवाला, धैर्य रखनेवाला, सब्र करनेवाला।
जक्फऱी (अ़.पु.)-सब्र, धैर्य, धीरज।
ज़क्र: (अ़.पु.)-मर्दानी।
ज़क्स (अ़.पु.)-ईश्वर की शरण, ख़्ाुदा की पनाह।
ज़ख़्ा (अ़.स्त्री.)-याचना, प्रार्थना।
ज़ख़्ााइर (अ़.पु.)-'ज़ख़्ाीर:Ó का बहु., ज़ख़्ाीरे, ख़्ाज़ाने, निधियाँ।
ज़ख़्ााम (अ़.वि.)-वह प्रत्येक वस्तु जो बड़े डील-डौल की हो, विशालकाय।
ज़ख़्ाामत (अ़.स्त्री.)-मोटाई, दल; स्थूलता, मोटापा।
ज़ख़्ाारि$फ (अ़.पु.)-'ज़ख्ऱ$फ: (ज़ख़्ा्र$फ:)Ó का बहु., झूठी और बनावटी बातें।
ज़ख़्ाीम (अ़.वि.)-मोटा, दलदार; स्थूल, $फर्बेह।
ज़ख़्ाीर: (अ़.पु.)-संचित किया हुआ, जमा किया हुआ।
ज़ख़्ाीर:अंदोज़ (अ़.$फा.वि.)-भण्डारी, संचयक, अनाज आदि का संचय करनेवाला।
ज़ख़्ाीर:अंदोज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-जमाख़्ाोरी, भण्डारण, अनाज अथवा अन्य बिकनेवाली वस्तुओं का इस आशय से संचय करना कि जब भाव बढेंग़े तब बेचेंगे, मुना$फाख़्ाोरी के लिए भण्डारण।
ज़ख़्ाीरएअ़मल (अ़.पु.)-परलोक के लिए अच्छे-बुरे कर्मों का संचय।
ज़ख़्ाीरएआख़्िारत (अ़.पु.)-परलोक में काम आनेवाले कर्म अर्थात् जप-तप आदि का संचय, परलोक सुधारने के लिए पुण्यकर्म।
ज़ख़्ख़्ाार (अ़.वि.)-असीम, अपार, जिसका कोई ओर-छोर न हो; हिलोरें लेती हुई अथवा मौजें मारती हुई (नदी)।
ज़ख़्ख़्ाार ($फा.वि.)-शोर करनेवाला, घोर नाद करनेवाला, निनादित, गर्जनशील।
ज़ख़्म: ($फा.पु.)-प्रत्येक वह वस्तु जिससे कोई बाजा बजाए, बाजा बजाने का उपकरण, मिज़्राब, वाद्ययष्टि।
ज़ख़्म:जऩ ($फा.वि.)-मिज्ऱाब से साज़ बजानेवाला।
ज़ख़्म:जऩी ($फा.स्त्री.)-मिज्ऱाब से साज़ बजाना।
ज़ख़्म ($फा.पु.)-घाव, आघात, क्षति, चोट; जरर, हानि, अनिष्ट।
ज़ख़्मकोस ($फा.पु.)-बड़ा नगाड़ा, धौंसा।
ज़ख़्मख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-जिसे घाव लगा हो, जिसे ज़ख़्म लगा हो, ज़ख़्म खाया हुआ, क्षत, आहत, घायल, ज़ख़्मी।
ज़ख़्मख़्ाुर्दगी ($फा.स्त्री.)-घायल होना, ज़ख़्म खाना, चोट खाना।
ज़ख़्मदीद: ($फा.वि.)-दे.-'ज़ख़्मख़्ाुर्द:Ó।
ज़ख़्मदोज़ी ($फा.पु.)-घाव सीना, ज़ख़्म में टाँके लगाना।
ज़ख़्मनाख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-जिसने चोट न खाई हो, जिसने ज़ख़्म न पाया हो, जो आहत न हुआ हो, अनाहत, जो घायल न हुआ हो, क्षति-रहित।
ज़ख़्मनादीद: ($फा.वि.)-दे.-'ज़ख़्मख़्ाुर्द:Ó।
ज़ख़्मरसीद: ($फा.वि.)-घायल, आहत, क्षत, चोट खाया हुआ; नुक़्सान उठाया हुआ।
ज़ख़्मरसीदगी ($फा.स्त्री.)-चोट खाना, घायल होना, ज़ख़्मी होना; नुक़्सान उठाना, हानि उठाना।
ज़ख़्मी ($फा.वि.)-क्षत, आहत, घायल, मज्रूह; अ़ाशि$क, नायक, प्रेमी।
ज़ख़्मी जिगर ($फा.वि.)-दे.-'ज़ख़्मीदिलÓ।
ज़ख़्मीदिल ($फा.वि.)-जिसका दिल प्रेम से घायल हो, क्षतहृदय, मर्माहत, भग्नहृदय।
ज़ख़्मेकारी ($फा.पु.)-बड़ा ज़ख़्म, गहरा घाव, भरपूर घाव।
ज़ख़्मेकुह्न: ($फा.पु.)-पुराना ज़ख़्म, पुराना घाव।
ज़ख़्मेख़्ांदाँ ($फा.पु.)-खुला हुआ घाव, रक्त टपकता हुआ घाव, ऐसा घाव जिस पर टाँके न लगे हों, रिसता हुआ घाव।
ज़ख़्मेजिगर ($फा.पु.)-जिगर का घाव, प्रेम का घाव या ज़ख़्म, प्रेम-पीड़ा।
ज़ख़्मेताज़: ($फा.पु.)-नई चोट, नया-नया घाव।
ज़ख़्मेतेज़ ($फा.पु.)-गहरी चोट, गहरा घाव, गंभीर घाव।
ज़ख़्मेदामनदार ($फा.पु.)-फैला हुआ घाव, चौड़ा घाव।
ज़ख़्मेदिल ($फा.पु.)-हृदय का घाव, प्रेम का घाव, प्रेम-पीड़ा।
ज़ख़्मेपिन्हाँ ($फा.पु.)-अन्दुरूनी चोट, भीतरी घाव, हृदय का घाव, दिल का ज़ख़्म, प्रेम का घाव।
ज़ख्ऱ (ज़ख़्ा्र) (अ़.पु.)-पानी चढऩा।
ज़ख्ऱ$फ: (ज़ख़्ा्र$फ:) (अ़.पु.)-मिथ्या कथन, झूठी और बनावटी बात।
जग़ं़द ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज़कं़दÓ।
ज$ग ($फा.स्त्री.)-वह लकड़ी जिससे दही मथकर मक्खन निकालते हैं, रई, मथनी, मथानी।
ज़$गज़$ग ($फा.स्त्री.)-दाँत बजने की आवाज़।
ज़$गत: (अ़.पु.)-अटकाव, रुकाव।
ज़$गन ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ पक्षी, चील, चिल्ल।
जग़ऩक ($फा.स्त्री.)-हिक्का, हिचकी।
ज़$गबूस (अ़.$फा.पु.)-वृद्घ आदमी, बूढ़ा व्यक्ति।
ज़$गाक (अ़.स्त्री.)-अंगूर की शाखा।
ज़$गाद (अ़.स्त्री.)-कुलटा, व्यभिचारिणी, वेश्या, रण्डी।
ज़$गाल (अ़.$फा.पु.)-मुँह पर मलने का चूर्ण, मुखचूर्ण, बुकनी, पाउडर।
ज़$गीत (अ़.वि.)-मूर्ख, बुद्घिहीन।
ज़$गीन: (अ़.स्त्री.)-द्वेष, शत्रुता, दुश्मनी।
ज़$गीर (अ़.पु.)-अलसी।
ज़ग़्त (अ़.क्रि.)-निचोडऩा, भींचना।
जग़्ब (अ़.पु.)-उपद्रवी, शरारती।
ज़ग़्ब (अ़.पु.)-रोंगटा।
ज़ग़्ब (अ़.क्रि.)-डराना, भयभीत करना।
ज़ग़्व (अ़.पु.)-शीघ्र, जल्दी।
ज़च: ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज़च्चाÓ।
ज़च्च: ($फा.स्त्री.)-वह स्त्री जिसने शिशु को जन्म दिया हो, वह अ़ौरत जिसने बच्चा जना हो, प्रसूता, सूतिका, प्रजाता, जातापत्या।
ज़च्च:ख़्ाान: ($फा.पु.)-प्रसवगृह, सूतिकागृह, सूतिकागार, ज़च्चा के रहने का कमरा आदि।
ज़च्च:गरी ($फा.स्त्री.)-दायागरी, बच्चा पैदा कराने का काम, कौमारभृत्य, धात्री-कर्म।
जज़ (अ़.$फा.क्रि.)-काटना, तोडऩा।
जज़ाÓ (अ़.स्त्री.)-बेसब्री, अधीरता, आतुरता, व्याकुलता।
जज़ा (अ़.स्त्री.)-बदला, प्रतिकार; अच्छे काम का बदला, प्रत्युपकार।
जज़ाइर (अ़.पु.)-'जज़ीर:Ó का बहु., बहुत-से जज़ीरे, द्वीप-समूह।
जज़ाइल (अ़.पु.)-'जज़ीलÓ का बहुवचन।
जज़ाकअल्लाह (अ़.वा.)-ईश्वर तुझे इस उपकार का बदला दे।
जज़ाज (अ़.स्त्री.)-न्याय-याचना, नालिश, $फर्याद।
जज़ामीर (अ़.वि.)-सम्पूर्ण, सब, पूर्ण।
जज़ालत (अ़.स्त्री.)-उत्तमता, श्रेष्ठता, ख़्ाूबी; सुन्दरता, सौन्दर्य, हुस्न; दृढ़ता, मज़बूती।
ज़जिर (अ़.वि.)-कृपण, कंजूस, तंगदिल; दु:खी।
जज़ीअ़ (अ़.वि.)-साथ सोनेवाला, सहवास या संभोग करने वाला।
जज़ीर: (अ़.पु.)-द्वीप, टापू, वह ज़मीन जो समुद्र के बीच में हो।
जज़ीर:नुमा (अ़.$फा.पु.)-ज़मीन का वह हिस्सा जो तीन ओर से पानी से घिरा हो, प्रायद्वीप।
जज़ीर (अ़.वि.)-रोकनेवाला, मना करनेवाला।
जज़ील (अ़.वि.)-सुन्दर, हसीन; उत्तम, श्रेष्ठ, उम्दा; दृढ़, मज़बूत, पक्का।
जज़्अ़: (अ़.पु.)-जवान गाय-बैल।
ज़ज्जाल (अ़.वि.)-कबूतर उडानेवाला, कबूतरबाज़।
जज़्ब: (अ़.पु.)-भावना, मनोवृत्ति।
जज़्ब (अ़.वि.)-आत्मसात्, एक में समाया हुआ, (पु.)-आकर्षण, कशिश; ब्रह्मïलीनता, नेस्ती।
जज़्बए इश्$क (अ़.पु.)-प्रेमाकर्षण, मुहब्बत की कशिश, प्यार का खिंचाव या लगाव।
जज़्बएकामिल (अ़.पु.)-सम्पूर्ण आकर्षण, पूर्णाकर्षण, पूरी कशिश, पूरा खिंचाव, पूरा लगाव; प्रेमाकर्षण, चरम-प्रेम, इश्$क की कशिश, मुहब्बत का खिंचाव।
जज़्बएदिल (अ़.$फा.पु.)-हृदयाकर्षण, दिल की कशिश, मन का खिंचाव।
जज़्बात (अ़.पु.)-भावनाएँ, जज़्बे, मनोवृत्तियाँ; ख़्ायालात, इच्छाएँ, विचार; 'हर चीज़ में बिगड़े हुए अनुपात का डर है, $फौलाद की औलाद में जज़्बात का डर हैÓ-डॉ. शेरजंग गर्ग
जज़्बाती (अ़.वि.)-भावनाओं के वेग में बह जानेवाला, भावुक, संवेदनशील।
जज़्बातीयत (अ़.स्त्री.)-भावनाओं का वेग, भावुकता, भाव-प्रवाह।
जज़्बी (अ़.वि.)-जज़्ब से सम्बन्ध रखनेवाला।
जज़्बेदिल (अ़.$फा.पु.)-हृदय का खिंचाव, दिल की कशिश, प्रेमाकर्षण, प्रेमावेश।
जज़्बोकशिश (अ़.$फा.स्त्री.)-जज़्ब: और कशिश; भावना और आवेग; प्रेम का आकर्षण।
जज़्म: (अ़.पु.)-छोटे $कद का आदमी, नाटा, बौना।
जज़्म (अ़.पु.)-दृढ़, मज़बूत, पक्का; अक्षर पर हलन्त का चिह्नï-'्Ó।
जज्ऱ: (अ़.पु.)-आग का पतंगा, स्फुलिंग, चिंगारी।
जज्ऱ (अ़.पु.)-वह संख्या जो किसी संख्या में उतनी ही बार भाग देने से प्राप्त हो, जैसे-'16Ó का जज्ऱ '4Ó।
जज्ऱ (अ़.पु.)-घटाव, उतार, पानी का उतार, भाटा।
जज़्र (अ़.स्त्री.)-फटकार, झिड़की, डाँट-डपट, भत्र्सना।
जज़्रोतौबीख़्ा (अ़.स्त्री.)-फटकार, डाँट-फटकार, डाँट-डपट।
जज़्रोमद (अ़.पु.)-ज्वारभाटा, समुद्र के पानी का उतार-चढ़ाव।
ज़ज्ल (अ़.क्रि.)-कबूतर उड़ाना, कबूतरबाज़ी करना।
जज़्ल (अ़.वि.)-सूखा ईंधन; दानी, दानशील; कठोर वचन; बुद्घिमान्।
जज़्व: (अ़.पु.)-अंगार, शोला।
ज़त्मर (अ़.पु.)-मोती, मुक्ता।
ज़द: ($फा.वि.)-मारा हुआ, आहत, हल्, (प्रत्य.)-मारा हुआ, जैसे-'$गमज़द:Ó-$गम का मारा हुआ।
ज़द ($फा.स्त्री.)-चोट, मार; वह वस्तु जिसपर निशाना लगाया जाए, लक्ष्य, निशाना, सामना; हानि, नुक़्सान।
जद (अ़.पु.)-पिता का पिता अर्थात् दादा, पितामह; माता का पिता अर्थात् नाना, मातामह; सौभाग्य; सम्पन्नता।
ज़दगी ($फा.पु.)-चोट, आघात।
ज़दन ($फा.क्रि.)-मारना, चोट पहुँचाना; पीना; करना; कहना; जलाना।
ज़दनी ($फा.वि.)-मारने योग्य।
जदर (अ़.पु.)-छाला पडऩे का निशान।
जदल (अ़.स्त्री.)-समर, जंग, युद्घ, लड़ाई; कलह, झगड़ा, वाक्कलह; वाद-विवाद, हुज्जत, बहस, तर्क-वितर्क।
जदस (अ़.पु.)-समाधि, $कब्र, मज़ार।
जदाविल (अ़.पु.)-'जद्वलÓ का बहु., सारणी-समूह।
जदी (अ़.पु.)-बकरी का बच्चा, अजाशावक; मकर-राशि, बुजऱ्ेजदी।
जदीद (अ़.वि.)-नवीन, नूतन, नया; आधुनिक, हाल का; प्रतीच्य, म$ग्रिबी, पश्चिमी, पछौंही, पाश्चात्य।
जदीदान (अ़.पु.)-दिन-रात, अहर्निश।
जदीर (अ़.वि.)-योग्य, अनुकूल।
ज़दूनियत ($फा.क्रि.)-ख़्ारीदना, क्रय करना, मोल लेना।
ज़दोकोब ($फा.स्त्री.)-मार-पीट, लात-घूँसा।
जद्इ (अ़.स्त्री.)-दे.-'जदीÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
जद्द: (अ़.स्त्री.)-पिता की माँ अर्थात् दादी, पितामही; माँ की माँ अर्थात् नानी, मातामही।
जद्देअम्जद (अ़.पु.)-पिता का पिता, दादा, पितामह।
जद्देअ़ाला (अ़.पु.)-जिससे ख़्ाानदान या वंश का नाम चला हो, मूल-पुरुष, आदि-पुरुष, वंश-प्रवर्तक।
जद्दे$फासिद (अ़.पु.)-माँ का पिता, नाना, मातामह।
जद्ब (अ़.पु.)-अकाल, दुर्भिक्ष।
जद्वल (अ़.स्त्री.)-नहर, छोटी नदी; पुस्तक के चारों ओर का हाशिया; सारिणी; ख़्ाानोंदार विवरण-सूची।
जद्वलकश (अ़.पु.)-पुस्तक के पृष्ठों पर लकीरें खींचने का यंत्र, पटरी, पैमाना, स्केल।
जद्वलबंदी (अ़.अव्य.)-क्रमगत, सिलसिलेवार।
जद्वली (अ़.वि.)-लकीरदार, खिंची हुई लकीरें।
जद्वार ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ औषधि, निरविसी।
जऩ: ($फा.पु.)-डंक।
जऩ (अ़.स्त्री.)-स्त्री, जनि, नारी, योषित्, अ़ौरत; भार्या, जाया, पत्नी, जोरू, बीवी; (प्रत्य.)-मारनेवाला, जैसे-'ते$गजऩÓ-तलवार मारनेवाला। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जऩ (अ़.पु.)-विचार, ख़्ायाल; गुमान, धारणा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
जऩख़्ा-दाँ ($फा.स्त्री.)-चिबुक, ठुड्डी।
जऩचक ($फा.स्त्री.)-कुलटा, वेश्या, व्यभिचारिणी, $फाहिशा,  रण्डी, पुंश्चली।
जऩ जऩ ($फा.क्रि.)-फर-$फर, तेज़ी से, शीघ्रतापूर्वक।
जऩपरस्त ($फा.वि.)-अ़ौरत का $गुलाम, स्त्री-पूजक, स्त्री की पूजा करनेवाला अर्थात् उसकी ख़्ाुशी में ही अपनी ख़्ाुशी देखनेवाला; पत्नी की बात को न काटनेवाला, उसकी हर इच्छा पूरी करनेवाला, पत्नी-भक्त।
जऩब (अ़.पु.)-पूँछ, पुच्छ, दुम; 'राहूÓ नामक एक सितारा।
जऩबमुज़्द ($फा.पु.)-भँड़ुआ, स्त्री की कमाई खानेवाला, भार्याट, दैयूस।
जऩमुरीद (अ़.$फा.वि.)-पत्नी-सेवी, पत्नी-भक्त, पत्नीव्रती, अपनी भार्या अर्थात् पत्नी को ही सब-कुछ समझनेवाला।
जऩबुल$फरस (अ़.पु.)-एक सितारा, राहू।
जऩश (अ़.पु.)-मार, चोट, आघात।
जऩाँ ($फा.स्त्री.)-'जऩÓ का बहु., (वि.)-मारता हुआ, (प्रत्य.)-मारता हुआ, लगाता हुआ, जैसे-ख़्ांद:जऩाँÓ-$कह$कहा मारता हुआ।
जनाइज़ (अ़.$फा.पु.)-'जनाज़:Ó का बहु. दे.-'जनाज़:Ó।
जऩाक ($फा.स्त्री.)-मोटी स्त्री।
जना$ग ($फा.स्त्री.)-दे.-'जऩाकÓ।
जनाज़: (अ़.पु.)-अर्थी, क$फन में लपेटा हुआ शव, कपड़े में लिपटी हुई लाश, दे.-'जिनाज़:Ó।
जनाज़:बरदार (अ़.$फा.वि.)-लाश या शव को उठानेवाला, शववाही, अर्थी या जनाज़ा उठानेवाला।
जनाज़:बरदोश (अ़.$फा.वि.)-कंधे पर अर्थी या जनाज़ा उठाए हुए।
जनाज़एरवाँ (अ़.$फा.पु.)-अश्व, घोड़ा; घोड़े का सवार, अश्वारोही।
जऩादि$क: (अ़.पु.)-'जि़ंदी$क़Ó का बहु., नास्तिक और अधर्मी लोग।
जऩान: ($फा.पु.)-नरदारा, स्त्रियों-जैसे स्वभाववाला पुरुष; नामर्द, नपुंसक; क्लीव, हिजड़ा; स्त्रियों का; स्त्रियों के योग्य।
जऩानख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-स्त्रियों का निवास, महिलाओं का वासस्थान, जहाँ अ़ौरतें रहती हों, अन्त:पुर।
जऩानेबाज़ारी ($फा.स्त्री.)-वेश्याएँ, रण्डियाँ, बाज़ारू अ़ौरतें, सतीत्व बेचनेवाली, कोठेवालियाँ।
जनाब (अ़.स्त्री.)-श्रीमान्, महोदय, महाशय; पाश्र्व, पहलू; दरगाह, आश्रम; ड्योढ़ी, चौखट, आस्तान:; सम्मुख, सामने।
जनाबत (अ़.स्त्री.)-मैथुन, सहवास या संभोग करने के बाद स्नान की आवश्यकता, अशुचि, अपवित्रता; दूरी, अलाहिदगी, पृथकता।
जऩाबीर (अ़.पु.)-'जं़बूरÓ का बहु., भिड़ें।
जऩाबील (अ़.पु.)-'जं़बीलÓ का बहु., थैले।
जनाबे अक़्दस (अ़.वि.)-दे.-'जनाबे अ़ालीÓ।
जनाबे अ़ाली (अ़.वि.)-महोदय, श्रीमान्, श्रीमन्, मान्यवर।
जनाबे मुकर्रम (अ़.वि.)-दे.-'जनाबे अ़ालीÓ।
जनाबे मोहतरम (अ़.वि.)-दे.-'जनाबे अ़ालीÓ।
जनाबे वाला (अ़.वि.)-दे.-'जनाबे अ़ालीÓ।
जऩाशोई ($फा.स्त्री.)-दाम्पत्य, स्त्री-पुरुष का, मियाँ-बीवी का।
जनाह (अ़.पु.)-पंख, पर, पक्ष; भुजा, बाहु, बाज़्ाू; सेनाग्र, हिरावुल।
ज़निंद: (अ़.$फा.वि.)-मारनेवाला।
जऩी (अ़.$फा.वि.)-दुर्बल, कमज़ोर, पतला-दुबला।
जऩीक (अ़.$फा.वि.)-कमज़ोर शरीरवाला, दुर्बल देहवाला।
जऩी$क (अ़.$फा.वि.)-मज़बूत, शक्तिशाली।
जऩीन (अ़.$फा.वि.)-कंजूस।
जनीन (अ़.पु.)-पेट के भीतर का बच्चा, गर्भस्थ भ्रूण।
जनीने मुर्द: (अ़.$फा.पु.)-वह बच्चा जो पेट में मर गया हो।
जनीबत ($फा.पु.)-कोतल घोड़ा, वह विशेष शाही घोड़ा जो राजाओं-बादशाहों की सवारी का हो।
जऩीम (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जो किसी वंश का प्रसिद्घ हो मगर उस वंश का न हो, छद्मवंशी, छद्मवंशज; वह व्यक्ति जो दुष्टता और कृपणता के लिए कुख्यात हो।
जनीह (अ़.$फा.स्त्री.)-गिन्नी, एक स्वर्ण मुद्रा, अंग्रेज़ी शासन की अश$र्फी।
जऩून (अ़.वि.)-बदगुमान।
जनूब (अ़.पु.)-दक्षिण, दक्खन, दकन।
जनूबी (अ़.वि.)-दक्षिण का, दक्षिणीय, दकनी, दक्खिन का।
जऩे $गालिब (अ़.स्त्री.)-विश्वास, भरोसा, एतिमाद।
जऩे $फासिद (अ़.स्त्री.)-आशंका, कुधारणा।
जऩे बारदार (अ़.स्त्री.)-गर्भवती स्त्री।
जऩे मद्ख़्ाूल: (अ़.स्त्री.)-रखैल, बिन विवाह घर में रखी हुई अ़ौरत।
जऩे मनकूह: (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री जिसके साथ विवाह हुआ हो।
जऩो$फर्ज़न्द (अ़.पु.)-बीवी-बच्चे।
जन्नत (अ़.स्त्री.)-स्वर्ग, नाक, देवलोक, सुरलोक, बिहिश्त; उद्यान, आराम, बा$ग, वाटिका, उपवन।
जन्नत आरामगाह (अ़.$फा.वि.)-स्वर्गीय, जो स्वर्ग में आराम कर रहा हो, दिवंगत, मर्हूम।
जन्नत आशयानी (अ़.वि.)-दे.-'जन्नतनशींÓ।
जन्नतनशीं (अ़.$फा.वि.)-स्वर्गवासी, जो स्वर्ग में रह रहा हो अर्थात् मर गया हो।
जन्नतमकाँ (अ़.$फा.वि.)-जिसका घर स्वर्ग हो अर्थात् जो मर गया हो, स्वर्गवासी, स्वर्गीय; स्वर्ग-वेश्म।
जन्नती (अ़.वि.)-जिसको मरने के बाद स्वर्ग प्राप्त हुआ हो, स्वर्गीय; स्वर्ग के योग्य व्यक्ति, सदाचारी, पुण्यात्मा।
जन्नतुल $िफर्दौस (अ़.स्त्री.)-सबसे ऊँचा स्वर्ग; ऐसा बा$ग या उद्यान जिसमें वे सब चीजें़ हों जो अन्य उपवनों में हों।
जन्नतुलबलाद (अ़.स्त्री.)-बंगाल का वह क्षेत्र जहाँ पेड़ बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं।
जन्नतुलमावा (अ़.स्त्री.)-सबसे ऊपर का स्वर्ग।
जन्नते अ़दन (अ़.स्त्री.)-स्वर्ग का वह बा$ग जहाँ हज्ऱत आदम ने निवास किया था।
जन्नते नजऱ (अ़.स्त्री.)-ऐसी सुन्दर और अद्भुत चीज़ जो दृष्टि के लिए स्वर्ग के समान हो अर्थात् जो दृष्टि को स्वर्ग का-सा आनन्द दे, स्वर्ग-तुल्य, स्वर्गोपम।
जन्नते निगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जन्नते नजऱÓ।
ज़न्नारे $कद्ह (अ़.$फा.पु.)-वे बुलबुले जो शराब के प्याले में उठते हैं।
ज़न्नारे सा$गर (अ़.पु.)-दे.-'ज़न्नारे $कद्हÓ।
ज़न्नी (अ़.वि.)-कल्पित, ख़्ायाली, काल्पनिक; भ्रम में डालनेवाली, भ्रमात्मक, मौहूम।
ज़न्नेबद (अ़.$फा.पु.)-कुधारणा, बुरा गुमान, किसी की ओर से बुरी सोच।
ज़न्ने बातिल (अ़.पु.)-$गलत धारणा, बुरा विचार, बिलकुल मिथ्या विचार, $गलत गुमान।
ज$फ ($फा.वि.)-खिन्न, मलिन; उदास, दु:खी।
ज़$फ ($फा.वि.)-गीला, तर, भीगा हुआ, आद्र्र।
ज़$फज़$फ ($फा.पु.)-हवा का झोंका, हवा का झक्कड़।
ज़$फज़ा$फ ($फा.पु.)-दे.-'ज़$फज़$फÓ।
ज़$फ$फ ($फा.पु.)-तंगी; कठोरता; संतान की अधिकता।
ज़$फर: ($फा.पु.)-'नाख़्ाुन:Ó नामक आँख का रोग।
ज़$फर (अ़.स्त्री.)-जीत, जय, विजय; सफलता, कामयाबी।
ज़$फर$करीं (अ़.वि.)-जिसके भाग्य में जीत हो, विजयशील; जीतनेवाला, विजेता, विजयी, $फातेह।
ज़$फर तकिय: ($फा.पु.)-$फ$कीरों या साधु-संन्यासियों की सहारा लेने की लकड़ी।
ज़$फरनसीब (अ़.वि.)-जिसकी $िकस्मत में जीत हो, जिसके भाग्य में विजय हो, विजयशील।
ज़$फरनिशाँ (अ़.$फा.वि.)-जीतनेवाला, विजेता, $फतहमंद।
ज़$फरपैकर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ज़$फरयाबÓ।
ज़$फरमौज (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ज़$फरयाबÓ।
ज़$फरयाब (अ़.$फा.वि.)-जो जीत गया हो, जित्वर, जिसे विजय प्राप्त हुई हो, विजयी, विजेता।
ज़$फरयाबी (अ़.$फा.स्त्री.)-जीत, विजय-प्राप्ति।
ज$फा ($फा.स्त्री.)-अनीति, अन्याय, अत्याचार, ज़्ाुल्म, सितम।
ज$फाएचख्ऱ्ा ($फा.स्त्री.)-आकाश का अत्याचार अर्थात् दैवीय प्रकोप, दैवीकोप, दिनो की गर्दिश, भाग्य चक्र की विपरीतता, दुर्भाग्य।
ज$फाकश ($फा.वि.)-शरीर पर कष्ट उठानेवाला, कठिन परिश्रम करनेवाला, पराक्रमी, मेहनती, कर्मठ।
ज$फाकार ($फा.वि.)-अनीति अथवा अन्याय करनेवाला, अत्याचार करनेवाला, अत्याचारी, ज़ालिम, बर्बर।
जफ़ाकेश ($फा.वि.)-जिसके स्वभाव में अनीति और अन्याय हो, बहुत ज़ालिम, बहुत बड़ा अत्याचारी।
ज$फाख़्ाू ($फा.वि.)-दे.-'ज$फाकशÓ।
ज$फागुस्तर ($फा.वि.)-दे.-'ज$फाकेशÓ।
ज$फागुस्तरी ($फा.स्त्री.)-अनीति, अन्याय, अत्याचार, ज़ुल्म, यातनाएँ, ज$फाशिअ़ारी।
ज$फाजू ($फा.वि.)-नई-नई ज$फाएँ और नए-नए अत्याचार तलाश करनेवाला।
ज$फाजूई ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज$फाशिअ़ारीÓ।
ज$फातलब ($फा.वि.)-परिश्रमी, कर्मठ।
ज$फापरस्त ($फा.वि.)-महा अन्यायी, बहुत बड़ा अत्याचारी, जो अनीति को पूजता हो अर्थात् अन्याय करना ही जिसका धर्म बन गया हो; जो प्रेमिका के अत्याचारों की पूजा करता हो, अ़ाशि$क, प्रेमी।
ज$फापर्वर ($फा.वि.)-अनीति और अत्याचारों को प्रोत्साहन देनेवाला, घोर अन्यायी, बहुत बड़ा अत्याचारी।
ज$फापेश: ($फा.वि.)-जिसका काम केवल ज़ुल्म और अत्याचार करना हो, बहुत बड़ा अनीतिकार, अन्यायी।
ज$फापेशगी ($फा.स्त्री.)-अनीति का आचरण, अत्याचार का व्यवहार।
ज$फा$फ ($फा.वि.)-सूखा होना, ख़्ाुश्क होना।
ज$फाशिअ़ार ($फा.वि.)-दे.-'ज$फाकेशÓ।
ज$फाशिअ़ारी ($फा.स्त्री.)-अत्याचार, अनीति, यातनाएँ।
ज़$फीत (अ़.$फा.वि.)-बुद्घिहीन, बेव$कू$फ, मूर्ख, अहमक़।
ज़$फीदन (अ़.$फा.वि.)-तर होना, गीला होना।
ज़$फीर: (अ़.$फा.पु.)-गुँथे हुए बाल।
ज$फीर (अ़.$फा.पु.)-तूणीर, तरकश।
ज़$फीर (अ़.$फा.पु.)-सख़्ती, कठोरता; बला, कोप; गधे की आवाज़।
ज़$फील (उ.स्त्री.)-सीटी बजाना, सीटी देना; वह आवाज़ जो कबूतरबाज़ कबूतर उड़ाते समय दो उँगलियाँ मुँह में डालकर निकालते हैं।
जफ़्त: ($फा.वि.)-झुका हुआ; अंगूर की टट्टी।
जफ़़्त ($फा.वि.)-मोटा, मज़बूत, दृढ़, कठोर।
जफ़़्देÓ (अ़.पु.)-मेंढक, दर्दुर, भेक, दे.-'जिफ़़्देÓ, दोनों शुद्घ हैं।
जफ्ऩ: (अ़.पु.)-बड़ा प्याला।
जफ्ऩ (अ़.पु.)-आँख का पपोटा।
जफ्ऱ (अ़.पु.)-भेड़ या बकरी का बच्चा; एक विद्या जिससे परोक्ष-ज्ञान अर्थात् भविष्य में होनेवाली घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
जफ्ऱदाँ (अ़.$फा.वि.)-वह व्यक्ति जो जफ्ऱ की विद्या जानता हो, परोक्षवादी, भविष्यवक्ता।
जफ़्व: ($फा.स्त्री.)-अधिकता, बाहुल्य।
ज़ब [ब्ब] (अ़.स्त्री.)-गोह, गोधिका।
ज़बद (अ़.पु.)-झाग, फेन।
ज़बर ($फा.पु.)-उर्दू भाषा में 'ऊÓ की मात्रा का चिह्नï 'ÓÓ, (वि.)-ऊपर, उपरि; शक्तिशाली, ता$कतवर; बोझिल, भारी।
ज़बरजद ($फा.पु.)-एक रत्न, पीतमणि, पुखराज।
ज़बरदस्त ($फा.वि.)-प्रचण्ड, अति तीव्र, बहुत तेज़; शक्तिशाली, ता$कतवर।
ज़बरदस्ती ($फा.स्त्री.)-हठात्, बलात्, बलपूर्वक, जब्रन; अन्याय, अत्याचार, ज़ुल्म।
जबरूत (अ़.पु.)-सम्मान, प्रतिष्ठा, श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी।
जबल (अ़.पु.)-पहाड़, पर्वत, अचल।
जबलुत्तारि$क (अ़.पु.)-जिब्राल्टर।
ज़बाँ ($फा.स्त्री.)-'ज़बानÓ का लघु., जीभ, जिह्वïा, रसना, रसेन्द्रिय; किसी क्षेत्र या देश की बोली, भाषा; $कौल, $करार, संविदा; वचन, कथन।
ज़बाँआवर ($फा.वि.)-भाषा-मर्मज्ञ, भाषा का बहुत अच्छा ज्ञाता, भाषापटु; कवि, शाइर।
ज़बाँआवरी ($फा.स्त्री.)-भाषा का अच्छा ज्ञान; कविता, शाइरी।
ज़बाँगीर ($फा.वि.)-गुप्तचर, जासूस।
ज़बाँज़द ($फा.वि.)-जो सबकी ज़बानों पर हो, जो सबके होंठों पर हो, जनता में प्रसिद्घ बात, लोकप्रसिद्घ। 'ज़बाँज़दे ख़्ाासेअ़ामÓ=जो बहुत अधिक प्रसिद्घ हो, सर्व-साधारण द्वारा बोला जानेवाला।
ज़बाँदराज़ ($फा.वि.)-जिसकी जीभ बहुत लम्बी हो, गुस्ताख़्ा, बदज़बान, मुक्तकंठ, दुर्मुख, बड़बोला।
ज़बाँदराज़ी ($फा.स्त्री.)-बदज़बानी, गुस्ताख़्ाी, दुर्मुखता, दुर्वचन।
ज़बाँदाँ ($फा.वि.)-किसी भाषा का मर्मज्ञ, भाषाविज्ञ, भाषाविद्, किसी भाषा का विद्वान्।
ज़बाँ$फरोश ($फा.वि.)-मुखर, वाचाल, बक्की, बड़बोला, गपोड़ी।
ज़बाँबंदी ($फा.स्त्री.)-बोलने की मनाही; सरकार की ओर से जनता में भाषण देने पर रोक।
जबान: (अ़.पु.)-वन, जंगल, कानन।
ज़बान: ($फा.पु.)-अग्निशिखा, लौ, लपट।
जबान (अ़.वि.)-भीरू, डरपोक; क्लीब, नपुंसक।
ज़बान ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज़बाँÓ।
जबानत (अ़.स्त्री.)-भीरुता, डरपोकपन; नामर्दी, नपुंसकता, क्लीवता।
ज़बानी (अ़.वि.)-मौखिक, मुँह से कहा हुआ; कंठ, मुखाग्र, बरज़बाँ; मुँह से, ज़बान से।
ज़बाने $कलम (अ़.$फा.स्त्री.)-$कलम की नोक, पेन या होल्डर की निब; मनुष्य की $कलमरूपी जिह्वïा।
ज़बाने ख़्ााम: ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज़बाने $कलमÓ।
ज़बाने गौहरबार (अ़.$फा.स्त्री.)-मधुर वाणी बोलनेवाली जिह्वïा, मोतियों की वर्षा करनेवाली जीभ या ज़बान।
ज़बाने शीरीं ($फा.स्त्री.)-मीठी ज़बान, जिस ज़बान से मधुर एवं मीठी-मीठी बातें निकलें, मिठबोली।
ज़बाने हाल (अ़.$फा.स्त्री.)-आदमी की दशारूपी जिह्वïा, दशा-बांधक बात, दशा-सूचक लक्षण; दशा, हालत, स्थिति।
ज़बाब: ($फा.पु.)-बड़ा चूल्हा।
जबिल ($फा.वि.)-अन्यायी, अत्याचारी, बुरे स्वभाव का।
जबीं ($फा.स्त्री.)-ललाट, माथा, भाल, पेशानी।
जबीं गिरिफ़्त: ($फा.वि.)-बुरे स्वभाव का आदमी।
जबीं $फर्सा ($फा.वि.)-माथा रगडऩेवाला, ज़मीन पर माथा टेककर सलाम करनेवाला; बहुत ही दीनता प्रकट करने वाला।
जबींसा ($फा.वि.)-दे.-'जबीं$फर्साÓ।
जबींसाई ($फा.स्त्री.)-माथा रगडऩा, बहुत ही झुककर सलाम करना; दीनता और नम्रता का प्रदर्शन।
ज़बी (अ़.पु.)-हिरन, हरण, मृग, आहू।
जबीन ($फा.स्त्री.)-दे.-'जबीनÓ।
ज़बीब (अ़.पु.)-सूखा हुआ अंगूर, शुष्क द्राक्षा, मुनक़्$का।
जबीय: (अ़.स्त्री.)-हिरनी, हरिणी, मृगी।
जबीर: (अ़.स्त्री.)-टूटी हड्डी पर बाँधने की लकड़ी।
ज़बीह: (अ़.पु.)-ज़बह किया हुआ पशु; वध, ज़बह।
ज़बीह (अ़.वि.)-वधित, वध किया हुआ, ज़बह किया हुआ।
ज़बीहुल्लाह (अ़.पु.)-हज्ऱत इस्माईल की उपाधि, जिन्हें उनके पूज्य पिताजी ने ईश्वर की आज्ञा से वध करना चाहा था।
ज़बीहे $फुरात (अ़.पु.)-हज्ऱत इमाम हुसैन की उपाधि, जो $फुरात नदी के किनारे कर्बला में तीन दिन के प्यासे शहीद किये गये थे।
ज़बूँ ($फा.वि.)-निकृष्ट, दूषित, ख़्ाराब।
ज़बूँहाल (अ़.$फा.वि.)-दुर्दशाग्रस्त, फटेहाल, बुरी हालत में।
ज़बूँहाली (अ़.$फा.स्त्री.)-दुर्दशा, बदहाली।
ज़बूद ($फा.पु.)-नरक, जहन्नुम; जंगली पोदीना।
ज़बून ($फा.वि.)-दे.-'ज़बूँÓ।
ज़बूनी ($फा.स्त्री.)-तिरस्कार, जि़ल्लत, उपेक्षा; निकृष्टता, ख़्ाराबी; तकली$फ, कष्ट, दु:ख, क्लेश।
ज़बूनीकश ($फा.वि.)-उपेक्षा बर्दाश्त करनेवाला, तिरस्कार सहनेवाला; कष्ट और दु:ख उठानेवाला।
जबूब (अ़.पु.)-बीहड़।
ज़बूर (अ़.स्त्री.)-वह आस्मानी किताब जो हज्ऱत दाऊद पर उतरी थी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़बूर (अ़.पु.)-शेर, सिंह, व्याघ्र। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़ब्अ़ (अ़.स्त्री.)-बाज़ू, ब$गल।
ज़ब्अ़ान (अ़.पु.)-नर बिज्जू; चौपाये का बाज़ू फुलाकर चलना।
ज़ब्त (अ़.पु.)-किसी चीज़ को उसके मालिक के पास न रहने देकर सरकारी अधिकार में लेना, सरकारी $कब्ज़ा करना; सहन, सहनशीलता, बरदाश्त; क्रम, तर्तीब; प्रबन्ध, व्यवस्था, इन्तिज़ाम; ज़ब्तशुदा, जो चीज़ ज़ब्त की गई हो।
ज़ब्ती (अ़.स्त्री.)-किसी चीज़ पर बलात् या ज़बरदस्ती $कब्ज़ा; सरकारी आदेश से किसी चीज़ पर $कब्ज़ा।
ज़ब्ते अश्क (अ़.$फा.पु.)-आँसू रोकना।
ज़ब्ते आह (अ़.$फा.पु.)-आह का स्वर रोकना, मुँह से 'आहÓ न निकलने देना अर्थात् अपनी पीड़ा का एहसास किसी को न होने देना।
ज़ब्ते $गम (अ़.$फा.पु.)-कष्ट और दु:ख प्रकट न होने देना; प्रेम की व्यथा का इज़्हार न करना।
ज़ब्ते गिर्य: (अ़.$फा.पु.)-आँसू न निकलने देना, अपने रुदन पर $काबू रखना।
ज़ब्ते नाल: (अ़.$फा.पु.)-मुँह से चीख-पुकार की ध्वनि न निकलने देना, रोना-धोना न करना।
ज़ब्ते $फुग़ाँ (अ़.$फा.पु.)-दे.-'ज़ब्ते नाल:Ó।
ज़ब्न (अ़.क्रि.)-धकेलना, धक्का मारना।
ज़ब्ब: (अ़.पु.)-पत्तर।
ज़ब्ब (अ़.पु.)-जंगली गाय-बैल। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़ब्ब (अ़.क्रि.)-दूर करना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जब्बान (अ़.वि.)-पनीर बेचनेवाला।
जब्बार (अ़.वि.)-अनीति करनेवाला, अत्याचार करनेवाला, यातनाएँ देनेवाला, ज़बरदस्ती करनेवाला।
जब्बारी (अ़.स्त्री.)-शान, गर्व, घमण्ड।
जब्र (अ़.पु.)-अनीति, अन्याय, अत्याचार, ज़ुल्म; किसी बात के लिए मजबूर करना, हठ; यह सिद्घान्त कि मनुष्य बहुत बेबस है तथा जो कुछ भी करता है केवल ईश्वर ही करता है।
जब्रन (अ़.वि.)-हठात्, बलात्, ज़बरदस्ती। 'जब्रन ओ $कह्रïनÓ=विवशतापूर्वक, मज़बूरी से; अत्याचार एवं यातना।
जब्री (अ़.वि.)-ज़बरदस्ती का; यह सिद्घान्त कि मनुष्य बिलकुल विवश है, कर्ता सि$र्फ ईश्वर है; परवशता की मान्यता, ईश्वराधीनता की मान्यता।
जब्रीय: (अ़.वि.)-ज़बरदस्ती का, जब्री; ईश्वराधीनता की मान्यता, यह सिद्घान्त कि मनुष्य बिलकुल विवश है, कर्ता सि$र्फ ईश्वर है।
जब्रे मशीयत (अ़.पु.)-दैव की ज़बरदस्ती, भाग्य का हठ, प्रकृति का बलात्।
जब्रे $कद्र (अ़.पु.)-यह सिद्घान्त कि ईश्वर सब-कुछ करता है और मनुष्य कुछ नहीं कर सकता।
जब्रोतअ़द्दी (अ़.स्त्री.)-अत्याचार और अन्याय, अनीति और ज़ुल्म।
जब्रोमु$काबल: (अ़.पु.)-बीजगणित, अलज़ब्रा।
ज़ब्ल (अ़.पु.)-घोड़े और गधे की लीद। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़ब्ल (अ़.पु.)-कुम्हलाना, मुरझाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जब्ह: (अ़.स्त्री.)-ललाट, भाल, माथा, पेशानी; मघा, दसवाँ नक्षत्र।
जब्ह:$फर्सा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जबीं $फर्साÓ।
जब्ह:सा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जबींसाÓ।
ज़ब्ह (अ़.पु.)-हत्या, हिंसा, $कत्ल; वध, ज़बीह।
जम ($फा.पु.)-'जमशेदÓ का लघु., दे.-'जमशेदÓ।
जम (अ़.पु.)-भीड़, जमाव।
ज़म (अ़.पु.)-आलोचना, निन्दा, बुराई, हजो; फूहड़पन, अश्लीलता, $फुहश होना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़म (अ़.पु.)-शीत, सर्दी, ठण्ड। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़म (अ़.पु.)-मिलना, मिल जाना, संयुक्त हो जाना, संबद्घ हो जाना; उर्दू भाषा में 'पेशÓ अर्थात् 'उÓ की मात्रा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़मज़म (अ़.पु.)-मक्के का एक कुआँ, जिसका पानी बहुत ही पवित्र समझा जाता है; उस कुएँ का पानी, आबे ज़मज़म। इसके दोनों 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बने हैं।
ज़मज़म (अ़.पु.)-शेर, सिंह, व्याघ्र। इसके दोनों 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बने हैं।
ज़मज़म:गोयाँ (अ़.पु.)-गायक, गवैया, गानेवाला।
ज़मज़म:पर्दाज़ी (अ़.क्रि.)-गीत गाना।
जमजाह ($फा.वि.)-जमशेद-जैसी शानो-शौ$कत रखनेवाला, महाप्रतापी।
जमत (अ़.पु.)-एक प्रकार का घटिया लाल मोती।
जमद (अ़.पु.)-बर्फ़।
जमन ($फा.स्त्री.)-यमुना नदी।
ज़मन (अ़.पु.)-विश्व, जगत्, संसार; ज़माना, काल, वक़्त, समय; मुसीबत, आपत्ति, विपत्ति, कठिनाई। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़मन (अ़.क्रि.)-घायल होना, पीडि़त होना, ग्रस्त होना।
ज़मम (अ़.वि.)-दृढ़, मज़बूत, शक्तिशाली।
जमल (अ़.पु.)-ऊँट, उष्ट्र, नर ऊँट।
जमशेद ($फा.पु.)-ईरान का एक प्राचीन शासक, जिसके पास एक ऐसा प्याला था जिससे उसे सारे संसार का हाल मालूम पड़ जाता था।
ज़माँ (अ़.पु.)-ज़माना, काल, समय; विश्व, संसार, जगत्, दुनिया।
ज़माअ़ (अ़.स्त्री.)-प्यास, तृष्णा।
जमाअ़त (अ़.स्त्री.)-कक्षा, क्लास; वर्ग, तब्$का, श्रेणी; पंक्ति, $कतार।
ज़माइम (अ़.वि.)-'ज़मीमÓ का बहु., दे.-'ज़मीमÓ।
ज़माइर (अ़.पु.)-'ज़मीरÓ का बहु., दे.-'ज़मीरÓ।
ज़माजि़म्क (अ़.पु.)-सिंह, शेर, व्याघ्र; फाड़ खानेवाला जंगली जानवर।
जमाद (अ़.स्त्री.)-जड़ पदार्थ, चेतन-रहित पदार्थ, वह चीज़ जिसमें विकास आदि न हो, जैसे-पत्थर आदि।
जमादात (अ़.स्त्री.)-बेजान और जड़ चीज़ें।
जमादी (अ़.वि.)-जड़-सम्बन्धी।
जमादुल ऊला (अ़.पु.)-अऱबी साल का तीसरा महीना।
जमादुल उख़्ारा (अ़.पु.)-अऱबी साल का चौथा महीना।
ज़मान: (अ़.पु.)-युग, $कर्न; काल, समय, वक़्त; दशा, हालत, स्थिति; अर्सा, मुद्दत; विलंब, देर, अतिकाल।
ज़मान:शनास (अ़.$फा.वि.)-वक़्त को पहचाननेवाला, समय के अनुकूल काम करनेवाला।
ज़मान:साज़ (अ़.$फा.वि.)-अवसरवादी, मौ$कापरस्त, इबनुल वक़्त; मक्कार, धूर्त, छली।
ज़मान:साज़ी (अ़.स्त्री.)-मक्कारी, धूर्तता, स्वार्थपन; चापलूसी, चाटुकारिता; अवसरवादिता।
ज़मान (अ़.पु.)-दे.-'ज़मान:Ó। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़मान (अ़.वि.)-ज़मानत करनेवाला, ज़मानतदार। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़मानए इद्दत (अ़.वि.)-इस्लाम-धर्म की धार्मिक पुस्तक शरीअ़त के अनुसार वह समय, जिसमें स्त्री विधवा होने अथवा तला$क लेने के बाद दूसरा विवाह नहीं कर सकती।
ज़मानए $कदीम (अ़.पु.)-पुराना ज़माना, प्राचीनकाल।
ज़मानए जदीद (अ़.पु.)-वर्तमानकाल, आधुनिककाल, मौज़ूदा ज़माना।
ज़मानए जाहिलीयत (अ़.पु.)-मूर्खता-काल, बेव$कू$फी का ज़माना (इस्लामी परिभाषा के अनुसार इस्लाम-धर्म से पूर्व का समय)।
ज़मानए दराज़ (अ़.$फा.पु.)-दीर्घकाल, लम्बा समय।
ज़मानए मा$कब्ले तारीख़्ा (अ़.पु.)-वह समय जब इतिहास नहीं लिखा जाता था, इतिहास-पूर्वकाल, पूर्वेतिहासिक काल।
ज़मानए मा$कब्ले तारीख़्ा (अ़.पु.)-वह समय जब इतिहास नहीं लिखा जाता था, इतिहास-पूर्वकाल, प्रागैतिहासिक काल।
ज़मानए माज़ी (अ़.पु.)-बीता हुआ ज़माना, गुजऱा हुआ समय; भूतकाल, अतीतकाल।
ज़मानए मुसीबत (अ़.पु.)-संकटकाल, विपत्तिकाल, आ$फतों का ज़माना, व्यसनकाल।
ज़मानए मुस्तक़्िबल (अ़.पु.)-भविष्यकाल, वह समय जो आनेवाला है।
ज़मानए सल$फ (अ़.पु.)-पुरातनकाल, प्राचीनकाल, बहुत पुराना ज़माना।
ज़मानए हाल (अ़.पु.)-वर्तमान, जो समय अब चल रहा है।
ज़मानत (अ़.स्त्री.)-प्रतिभूति, ज़ामिनी, न्यायालय आदि में किसी व्यक्ति की जि़म्मेवारी लेना।
ज़मानतदार (अ़.$फा.पु.)-प्रतिभू, ज़ामिन।
ज़मानतनाम: (अ़.$फा.पु.)-प्रतिभूति-पत्र, ज़मानत की तहरीर, जि़म्मेदारी लेने का लेख्यपत्र।
ज़मानती (अ़.पु.)-ज़मानतदार; (वि.)-ज़मानत का, ज़मानत से सम्बन्धित।
ज़मानते हिफ्ज़़े अम्न (अ़.अव्य.)-शान्ति बनाए रखने की ज़मानत।
ज़मानियाँ (अ़.पु.)-ज़माने के लोग।
ज़मानी (अ़.वि.)-ज़माने के, ज़माने से सम्बन्धित।
जमाम (अ़.पु.)-थक जाने के पश्चात् घोड़े का आराम करना।
जमाल (अ़.पु.)-सुन्दरता, सौन्दर्य, रूप, हुस्न; छवि, शोभा, छटा; तल्अ़त, मुखाभा, मुखकांति। 'देखकर धरती पै सूरज का जमाल, चाँद की सारी स$फेदी झड़ गई, आज तो इक लहर 'माँझीÓ तैश में, मुँह पे साहिल के तमाचा जड़ गईÓ-माँझी
जमालिस्तान (अ़.$फा.पु.)-वह स्थान जो सुन्दरता की खान हो, जहाँ सुन्दरियाँ ही सुन्दरियाँ हों, सौन्दर्य-स्थल।
जमाली (अ़.वि.)-रूप-सौन्दर्य से सम्बन्ध रखनेवाला; 'जलालीÓ का विपरीत, वह जाप (साधना) जिसके जप में प्राणभय न हो।
जमालीयात (अ़.पु.)-रूप-सौन्दर्य सम्बन्धी बातें।
जमाहीर (अ़.पु.)-'जुमहूरÓ का बहु., बड़े-बड़े लोग।
ज़मिन (अ़.वि.)-मुसीबत का मारा, दुर्दशाग्रस्त।
ज़मिस्ताँ ($फा..पु.)-शीतकाल, जाड़े की ऋतु, जाड़े का मौसम, शरद् ऋतु।
ज़मिस्तानी ($फा.वि.)-शरद्ऋतुवाला, जाड़ेवाला, शारदीय।
ज़मीं ($फा.पु.)-'ज़मीनÓ का लघु., पृथ्वी, धरा, अवनि, कुरए ज़मीन; भूमि, भूखण्ड, ज़मीन का टुकड़ा; देश, मुल्क; पेशबंदी, पुरश्चरण; $गज़ल में रदी$फ, $का$िफय: और बह्रï।
ज़मींकं़द ($फा.पु.)-एक प्रकार की तरकारी।
ज़मीं $कीन: ($फा.पु.)-वह व्यक्ति जिसके दिल में द्वेष रहे।
ज़मींगीर ($फा.वि.)-वह, जो अपने स्थान से न हट सके, अडिग, अटल।
ज़मींदार ($फा.पु.)-भू-स्वामी, भूपति, ज़मीन का मालिक।
ज़मींदारी ($फा.स्त्री.)-सरकार की ओर से गाँव के ठेके की पद्घति।
ज़मींदोज़ ($फा.वि.)-भूमि में समाना, भूमिगत।
ज़मींदोज़ $कल्अ़: ($फा.पु.)-भूमि के नीचे बना हुआ $िकला, भूमिगत दुर्ग।
ज़मींबोस ($फा..पु.)-वह जो किसी की सेवा में उपस्थित होकर आदर और सम्मान प्रकट करने के लिए भूमि को चूमे।
ज़मींबोसी ($फा.स्त्री.)-किसी की सेवा में उपस्थित होकर सम्मान-प्रदर्शन के लिए ज़मीन को चूमना।
ज़मींरेज़ी ($फा.स्त्री.)-पर्वत आदि के टुकड़ों का कटकर गिरना।
जमीअ़ (अ़.वि.)-सब, कुल, समग्र, समस्त; सम्पूर्ण, समूचा, पूरा।
ज़मीअ़ ($फा.वि.)-वीर, बहादुर; उचित सलाह, परामर्श।
जमीअऩ (अ़.वि.)-सबके सब, सम्पूर्णतया।
जमीदन (अ़.क्रि.)-चबाना।
ज़मीन ($फा.स्त्री.)-दे.-'ज़मींÓ।
ज़मीनी ($फा.वि.)-ज़मीन का, ज़मीन से सम्बन्धित, ख़्ााकी।
ज़मीने उफ़्ताद: ($फा.स्त्री.)-वह ज़मीन जिसपर खेती न की गई हो।
ज़मीने ख़्ाालस: ($फा.स्त्री.)-वह ज़मीन जो राजा की निजी सम्पत्ति हो।
ज़मीने गैऱ मज़्रूअ़: ($फा.स्त्री.)-बंजर भूमि, वह ज़मीन जिसपर खेती न हुई हो।
ज़मीने मज़्रूअ़: ($फा.स्त्री.)-वह ज़मीन जिसपर खेती हो चुकी हो।
ज़मीने मर्हून: ($फा.स्त्री.)-गिरवी रखी हुई ज़मीन।
ज़मीने मुर्द: ($फा.स्त्री.)-ऊसर ज़मीन, बंजर भूमि।
ज़मीने रज़्म ($फा.स्त्री.)-रणभूमि, युद्घस्थल, युद्घक्षेत्र, लड़ाई का मैदान।
ज़मीने सु$फैद ($फा.स्त्री.)-वह ज़मीन जिसपर मकान आदि न बने हों।
ज़मीनो ज़माँ ($फा.स्त्री.)-धरती और आकाश, पृथ्वी और आस्मान, भू और गगन।
ज़मीम: ($फा.वि.)-'ज़मीमÓ का स्त्रीलिंग, निकृष्टा, बुरी अ़ौरत; बदचलन, कुलटा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़मीम: (अ़.पु.)-किसी विशेष और आवश्यक समाचार के लिए अख़्ाबार का ततिम्म:; समाचारपत्र का पूरक अंश; किसी पुस्तक का विशेष भाग, परिशिष्ट। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़मीम (अ़.वि.)-बुरा, ख़्ाराब, निकृष्ट। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़मीम (अ़.वि.)-मिला हुआ, मिश्रित, विलय। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़मीर (अ़.पु.)-अंत:करण, अंतरात्मा; सर्वनाम; मन, दिल, जी।
ज़मीरआगाह (अ़.$फा.वि.)-मन की बात जाननेवाला, अंतर्यामी।
ज़मीर$फरोश (अ़.$फा.वि.)-आत्मविक्रेता, अवसरवादी, $गद्दार, नमकहराम।
ज़मीर$फरोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-आत्मविक्रय, अवसरवादिता, नमकहरामी, $गद्दारी।
ज़मीरान (अ़.स्त्री.)-मर्व: (मक्के की एक पहाड़ी) जो एक फुलवारी है।
ज़मीरे $गाइब (अ़.स्त्री.)-प्रथम पुरुष का सर्वनाम, 'वहÓ।
ज़मीरे मुख़्ाातब (अ़.स्त्री.)-मध्यम पुरुष का सर्वनाम, 'तुमÓ।
ज़मीरे मुतकल्लिम (अ़.स्त्री.)-उत्तम पुरुष का सर्वनाम, 'मैंÓ।
ज़मीरे हाजिऱ (अ़.स्त्री.)-दे.-'ज़मीरे मुख़्ाातबÓ।
जमील: (अ़.स्त्री.)-रूपवती, हसीना।
जमील (अ़.वि.)-रूपवान्, सुन्दर, हसीन।
ज़मील (अ़.पु.)-मित्र, दोस्त, साथी, सहयोगी।
ज़मूदन (अ़.क्रि.)-फूल-पत्ती बनाना, बेल-बूटे बनाना।
जमूम (अ़.पु.)-अधिक पानीवाला कुआँ।
ज़मूर (अ़.वि.)-दुर्बल, कमज़ोर।
जम्अ़ (अ़.स्त्री.)-आय, आमद, प्राप्ति; संचित, उपार्जित; निशाना।
जम्अ़अंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-लक्ष्यभेदी, निशानची, बहुत अच्छा निशाना लगानेवाला।
जम्अ़अंदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-निशानेबाज़ी।
जम्अ़दार (अ़.$फा.पु.)-सिपाहियों का नायक।
जम्अ़बंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-ज़मीदारी की सारी आमदनी।
जम्ईयत (अ़.स्त्री.)-जमाअ़त (जमात), समुदाय, समूह, दल; सभा, गोष्ठी, परिषद्, इदार:; संतोष, इत्मीनान, तसल्ली।
जम्ईयतुलउलमा (अ़.स्त्री.)-विद्वानों की गोष्ठि, विद्वानों की परिषद्, विद्वत्सभा।
जम्ईयते ख़्ाातिर (अ़.स्त्री.)-आत्मसंतोष, इत्मीनाने $कल्ब, मन की तसल्ली।
जम्एकुल (अ़.वि.)-सम्पूर्ण, सब कुछ, पूरा, तमाम।
जम्ए मुरक्कब (अ़.पु.)-सम्पूर्ण मूल्य।
जम्ए संगीन (अ़.पु.)-कठोर लगान, सख़्त मालगुज़ारी।
ज़म्ज ($फा.क्रि.)-भरना; घर में घुस जाना।
ज़म्ज़म: ($फा.पु.)-चहचहाट, चहकार, चिडिय़ों की चहक, कलरव; गीत, गान, नग़्म:।
ज़म्ज़म:ख़्वाँ ($फा.वि.)-चहचहानेवाला पक्षी; गानेवाला, गायक, गवैया।
ज़म्ज़म:परदाज़ ($फा.वि.)-दे.-'ज़म्ज़म:ख़्वाँÓ।
ज़म्ज़म:पैरा ($फा.वि.)-दे.-'ज़म्ज़म:ख़्वाँÓ।
ज़म्ज़म:संज ($फा.वि.)-गानेवाला; चहचहानेवाला; मधुर स्वर में बातचीत करनेवाला।
ज़म्ज़म:संजी ($फा.स्त्री.)-गाना; चहचहाना; मधुर स्वर में बातचीत करना।
ज़म्ज़म (अ़.पु.)-मक्के का एक पवित्र कुआँ; उस कुएँ का पानी।
ज़म्ज़मी (अ़.स्त्री.)-ज़म्ज़म रखने की कुप्पी।
ज़म्द (अ़.पु.)-लेप लगाना, मरहम लगाना, दवा चुपडऩा।
ज़म्म: (अ़.पु.)-उर्दू भाषा में 'पेशÓ का चिह्नï, 'उÓ की मात्रा।
जम्माज़: (अ़.स्त्री.)-तेज़ चलनेवाली ऊँटनी, साँडनी।
जम्माश (अ़.वि.)-चपल, चंचल, शोख़्ा, शरीर; साहसी, हिम्मती; शूर, वीर।
जम्मीज़ (अ़.पु.)-गूलर।
जम्मे $ग$फीर (अ़.पु.)-बहुत बड़ा जमाव, अत्यधिक भीड़, जमावड़ा।
जम्र: (अ़.पु.)-अग्निकण, स्फुलिंग, चिंगारी; कंकरी, ठीकरी; एक प्रकार की फुंसियाँ जिनमें बहुत जलन होती है।
ज़म्र (अ़.पु.)-छरहरे और दुबले शरीर का आदमी; पतली कमर का व्यक्ति। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़म्र (अ़.क्रि.)-बाँसुरी बजाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़म्हरीर ($फा.पु.)-ठिठुराती सर्दी, बहुत-ही सख़्त जाड़ा, कड़ाके की सर्दी; वायुमण्डल का वह भाग जो बहुत ही ठण्डा है।
जम्हूरी रियासत ($फा.पु.)-लोकतांत्रिक राज्य, गणराज्य, जनतंत्र राज्य, प्रजातंत्र राज्य।
जम्हूरी हुकूमत ($फा.पु.)-दे.-'जम्हूरी रियासतÓ।
जय्यद (अ़.वि.)-शुद्घ, ख़्ारा, बिना मिलावट का; मज़बूत, ज़बरदस्त, भारी।
जय़्यात (अ़.पु.)-अच्छे स्वभाववाला, सज्जन पुरुष।
जय्यान: (अ़.पु.)-$कब्रिस्तान, जहाँ बहुत-सी $कब्रें बनी हों, समाधि-स्थल।
जर ($फा.पु.)-गड्ढा, न$कब।
जऱ ($फा.पु.)-धन, सम्पत्ति, दौलत; स्वर्ण, सुवर्ण, हेम, हाटक, कंचन, सोना; अत्यन्त बूढ़ा या बूढ़ी।
जर [र्र] (अ़.पु.)-आकर्षण, खिंचाव, खींचना; 'ज़ेरÓ की हरकत अर्थात् 'इÓ की मात्रा।
जऱ [र्र] (अ़.पु.)-पीड़ा, कष्ट, दु:ख, तकली$फ; दुर्दशा, बदहाली; निर्धनता, $गरीबी, दरिद्रता, कंगाली; निर्बलता, दुबलापन, कमज़ोरी।
जऱअंदूद: ($फा.वि.)-सोना चढ़ा हुआ, सोने से मढ़ा हुआ।
जऱअफ़्शाँ ($फा.वि.)-दे.-'जऱफ़्शाँÓ।
जऱअफ़्सानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'जऱफ़्सानीÓ।
जऱअ़ (अ़.पु.)-लोभ, लालच; जंगली गाय का बच्चा।
जऱक ($फा.पु.)-सोने के वर$कों का चूरा।
जऱकश ($फा.वि.)-सोने-चाँदी के तारों से कलाबत्तू बनानेवाला; सोने-चाँदी के तारों से बना हुआ कपड़ा।
जऱकशी ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी के तारों का काम, कलाबत्तू का काम।
जऱकार ($फा.वि.)-सुनहरे या सुनहले कामवाली चीज़।
जऱकोब ($फा.वि.)-सोने-चाँदी के वर$क बनानेवाला; वह चीज़ जिस पर सोने-चाँदी के पत्र चढ़े हों।
जऱकोबी ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी के वर$क बनाना।
जऱख़्ारीद ($फा.वि.)-अपने दामों से मोल लिया हुआ; मूल्य चुकाकर लिया हुआ दास या सेवक।
जऱख़्ोज़ ($फा.वि.)-अच्छी उपजाऊ भूमि, उर्वरा।
जऱख़्ोज़ी ($फा.स्त्री.)-भूमि या ज़मीन का उपजाऊ होना।
जऱगर ($फा.पु.)-सुनार, सोने-चाँदी के ज़ेवर बनानेवाला, स्वर्णकार।
जऱगरी ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी के ज़ेवर बनाना; स्वर्ण-कर्म; सोने-चाँदी का काम बनाना, सुनारगीरी।
जऱ$गूनी (अ़.स्त्री.)-एक यूनानी दवा।
जऱतार ($फा.वि.)-सोने के तारों से बना या गुँथा हुआ।
जऱतुश्त ($फा.पु.)-दे.-'जऱदुश्तÓ।
जऱदार ($फा.वि.)-धनी, धनवान्, मालदार, धनाढ्य।
जऱदारी ($फा.स्त्री.)-धनाढ्यता, सम्पन्नता, मालदारी।
जऱदुश्त ($फा.पु.)-'मिनूचेह्रïÓ का वंशज एक ईरानी महात्मा, जो यूनान के हकीम '$फीसा$गोरसÓ का शिष्य था। इसने सम्राट् गुश्ताश्प के समय में एक धर्म चलाया, जिसका मुख्य उद्देश्य अग्निपूजा था, इसका धर्मग्रन्थ 'जें़दÓ है।
जऱदोज़ ($फा.वि.)-जऱदोज़ी का काम करनेवाला, कारचोब, सल्मा-सितारा और कलाबत्तू का (से) सामान बनाने- वाला।
जऱदोज़ी ($फा.स्त्री.)-कारचोबी, सल्मा-सितारे और जऱी का काम।
जऱदोस्त ($फा.वि.)-धन का मित्र, बहुत-ही लोभी और कंजूस, कृपण, सूम।
जऱदोस्ती ($फा.स्त्री.)-धन का बहुत अधिक प्रेम, धन का लोभ; कृपणता, कंजूसी।
जऱनिगार ($फा.वि.)-सोने के काम से सजा हुआ, सोने-चाँदी के बेलबूटे बना हुआ, स्वर्णखचित, स्वर्णमंडित।
जऱनिगारी ($फा.स्त्री.)-सोने के बेल-बूटे बनाना।
जऱपरस्त ($फा.वि.)-धन की पूजा करनेवाला, धन-पिशाच; बहुत बड़ा कंजूस, अत्यन्त लोभी।
जऱपरस्ती ($फा.स्त्री.)-धन की पूजा; हद से बढ़ा हुआ लोभ।
जऱपाश ($फा.वि.)-सोना बरसानेवाला, धन की वर्षा करने वाला, दानशील, $फैयाज़।
जऱपाशी ($फा.स्त्री.)-धन-वर्षा करना, सोना बरसाना, बहुत अधिक दानशीलता, $फैयाज़ी।
जऱ$िफशाँ ($फा.वि.)-दे.-'जऱफ़्शाँÓ।
जऱ$िफशानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'जऱफ़्शानीÓ।
जऱफ़्शाँ ($फा.वि.)-सोना बरसानेवाला अर्थात् बहुत अधिक दानशील।
जऱफ़्शानी ($फा.स्त्री.)-सोना बरसाना, अत्यन्त दानशीलता।
जरब (अ़.स्त्री.)-खुजली, ख़्ाारिश, खर्जू, कंडू।
जऱब (अ़.पु.)-श्वेत मधु, सफ़ेद शहद। इसका 'ज़Ó उर्दू के ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जऱब (अ़.पु.)-पेट का एक रोग, जिसमें कभी दस्त होने लगते हैं और कभी बंद हो जाते हैं। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जऱबफ़्त ($फा.पु.)-स्वर्ण-वस्त्र, सोने-चाँदी के तारों से बना हुआ कपड़ा।
जऱबान (अ़.पु.)-दिल की धड़कन; दर्द अथवा पीड़ा की लपक।
जऱबा$फ ($फा.वि.)-सोने-चाँदी के तारों से कपड़ा बनाने वाला, जऱबफ़्त बनानेवाला।
जऱबा$फी ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी के तारों से कपड़ा बुनना, जऱबफ़्त बुनना।
जऱबी (अ़.वि.)-मधुमय, शहदवाली वस्तु।
जरम (अ़.पु.)-चिकित्सा, उपचार, इलाज; उपाय, तद्बीर।
जरयान (अ़.पु.)-बहाव, प्रवाह, स्राव; प्रमेह, धातुस्राव रोग।
जरयाने ख़्ाून (अ़.$फा.पु.)-शरीर से रक्त का स्राव, जिस्म से ख़्ाून का बहना, रक्तस्राव।
जरयाने तम्स (अ़.पु.)-रज का स्राव, मासिक-धर्म का अधिक मात्रा में आना।
जरयाने दम (अ़.पु.)-रक्त का स्राव, शरीर से ख़्ाून का निकलना।
जरयाने मनी (अ़.पु.)-वीर्य-स्राव, वीर्य का पतला होकर मूत्र के साथ निकलना; एक रोग, प्रमेह।
जऱर (अ़.पु.)-टोटा, घाटा, हानि, नुक़्सान; चोट, आघात; अनिष्ट, ख़्ाराबी।
जऱररसाँ (अ़.$फा.वि.)-हानिकारक, नुक़्सानदेह।
जऱररसानी (अ़.$फा.स्त्री.)-हानिकारिता, नुक़्सानदिही।
जऱररसी (अ़.$फा.स्त्री.)-हानि पहुँचाना, नुक़्सान पहुँचाना; चोट या आघात पहुँचाना।
जऱररसीद: (अ़.$फा.वि.)-जिसको हानि पहुँची हो, हानि पहुँचा हुआ, हानि-पीडि़त, हानिग्रस्त; चोट खाया हुआ।
जऱरे ख़्ा$फी$फ (अ़.$फा.पु.)-थोड़ी हानि, कम नुक़्सान।
जऱरेज़ ($फा.वि.)-धन-वर्षा करनेवाला, सोना बरसानेवाला, अति दानी, महादानी।
जऱरे जिस्मानी ($फा.पु.)-शारीरिक कष्ट, जिस्मानी पीड़ा, बदन की पीड़ा।
जऱरेज़ी ($फा.स्त्री.)-धन-वर्षा करना, सोना बरसाना, बहुत दान करना।
जऱरे शदीद ($फा.पु.)-बहुत अधिक नुक़्सान, बड़ा घाटा, महान् क्षति, भारी टोटा।
जऱरे सरीह ($फा.पु.)-धमकी, मारपीट।
जऱस ($फा.पु.)-दाँत खट्टे होना।
जरस ($फा.पु.)-घण्टा, घडिय़ाल; वह घण्टा जो यात्रियों के दल के साथ रहता है।
जऱा (अ़.पु.)-लोभ, लालच; जंगली गाय का बच्चा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जऱा (तु.वि.)-थोड़ा, किंचित्, अल्प, तनिक। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जऱा (अ़.पु.)-रोना-धोना, विलाप करना, क्रन्दन करना; नम्रता, विनम्रता। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जऱाअ़त (अ़.स्त्री.)-दे.-'जिऱाअ़तÓ, वही शुद्घ उच्चारण है। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जऱाअ़त (अ़.स्त्री.)-विलाप, रोना, क्रन्दन करना; विनती करना, घिघियाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जराइद (अ़.पु.)-'जरीद:Ó का बहु., समाचारपत्र, अख़्ाबार।
जऱाइ$फ (अ़.पु.)-मनोरंजन की बातें, 'जऱी$फ:Ó का बहु., जऱा$फतें।
जराइम (अ़.पु.)-अपराध-समूह, कई तरह के जुर्म, अनेक प्रकार के अपराध, बहुत-से अपराध, 'जरीम:Ó का बहु.।
जराइमपेश: (अ़.$फा.वि.)-जिसे अपराध करने की अ़ादत हो; जो स्वभाव से ही अपराधी हो, जो प्रकृति से ही जुर्म का अ़ादी या अभ्यस्त हो, पेशेवर अपराधी।
जराइमपेशगी (अ़.$फा.स्त्री.)-अपराध करने की प्रकृति या स्वभाव, अपराधी स्वभाव।
जऱाइर (अ़.पु.)-छोटे-छोटे च्यूँटे, या चींटे, 'जर्ऱ:Ó का बहु.।
जऱाएÓ (अ़.पु.)-जऱीए, साधन, उपाय, 'जऱीअ़:Ó का बहु.।
जराद (अ़.पु.)-फतिंगा, टिड्डी, टीड़ी, जो खेत की $फसल को खा जाती है।
जऱादत (अ़.पु.)-प्रवृत्ति होना, प्रवृत्ति डालना, किसी चीज़़ की अ़ादत डालना।
जऱा$फ (अ़.पु.)-एक जंगली पशु, जो ऊँट की तरह लम्बा होता है और उसके शरीर पर तेंदुए-जैसी धारियाँ होती हैं, दे.-'जिऱा$फÓ, दोनों शुद्घ हैं।
जऱा$फत (अ़.स्त्री.)-हँसी, ठठोल,मस्ख़्ारापन, विदूषकपन, मज़ा$क; मनोरंजन; व्यंग, तंज़; मिज़ाहनिगारी, हास्यरस।
जऱा$फतअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-मनोरंजन करनेवाला, जऱा$फत पैदा करनेवाला, हास्य पैदा करनेवाला, व्यंग करनेवाला, हँसी-ठिठोली करनेवाला।
जऱा$फतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जिसमें हँसी-दिल्लगी की बातें मिली हों, परिहासपूर्ण।
जऱा$फतनिगार (अ़.$फा.वि.)-हास्य-लेखक।
जऱा$फतनिगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-हास्य-लेख लिखना, मिज़ाहनिगारी।
जऱा$फतपसंद (अ़.$फा.वि.)-हास्यप्रिय, परिहासप्रिय, जिसे मनोरंजन प्रिय हो।
जऱा$फतपसंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-मनोरंजन की बातों का अच्छा लगना।
जऱाब ($फा.पु.)-स्वर्ण-जल, सोने का पानी, पानी की शक्ल में सोना, हल किया हुआ सोना; पीले रंग की मदिरा या शराब।
जऱारत (अ़.स्त्री.)-घाटा पहुँचाना, हानि पहुँचाना, नुक़्सान करना; अंधा होना।
जऱारीह (अ़.पु.)-एक प्रकार के कीड़े, जो दवा में काम आते हैं, (यह शब्द एकवचन के रूप में प्रयुक्त होता है), 'ज़ुर्रूहÓ का बहु.।
जऱावंद ($फा.स्त्री.)-एक दवा, जो गोल और लम्बे दोनों आकार की होती है, गोल को 'मुदव्वरÓ और लम्बे को 'तवीलÓ कहते हैं।
जरासीम (अ़.पु.)-कीटाणु, छोटे-छोटे कीड़े, 'जुर्सूम:Ó का बहु.।
जरासीमकुश (अ़.$फा.वि.)-कीटनाशक, कीड़े मारनेवाली दवा।
जराहत (अ़.स्त्री.)-घाव, ज़ख़्म; चीर$फाड़, शल्यक्रिया (इस शब्द का शुद्घ उच्चारण 'जिराहतÓ है, परन्तु उर्दू में दोनों तरह से इस्तेमाल होता है)।
जराहतख़्ाुर्द: (अ़.$फा.वि.)-क्षत, आहत, घायल, ज़ख़्मी।
जराहतनसीब (अ़.$वि.)-जिसके भाग्य में आहत होना ही लिखा हो, हतभाग्य, जिसे हर जगह ज़ख़्म खाने को मिलें।
ज़रिब ($फा.स्त्री.)-पहाड़ी टेकरी।
ज़रिस ($फा.वि.)-भूख की अधिकता से क्रोधित व्यक्ति; झल्ला, चिड़चिड़े स्वभाववाला।
जऱीं ($फा.वि.)-स्वर्णमय, सोने का बना हुआ; सोने का, स्वर्णिम, स्वर्ण-निर्मित; सोने से सम्बन्ध रखनेवाला।
जरी (अ़.वि.)-उत्साही, साहसी, जवाँमर्द; बहादुर, वीर, शूर।
जऱी ($फा.स्त्री.)-सोने-चाँदी के तार, जिन पर सुनहरा मुलम्मा चढ़ा हो; गोटा-किनारी का कपड़ा; दे.-'जऱींÓ।
जऱीअ़: (अ़.पु.)-साधन, वसीला; माध्यम, वासिता; द्वारा, मारि$फत; उपाय, तद्बीर। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जऱीअ़ (अ़.वि.)-एक प्रकार की कठोर और विषैली दवा; काँटेदार घास। इसेा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जऱीअ़त (अ़.स्त्री.)-बड़े स्तनवाली स्त्री।
जऱीक (अ़.वि.)-कंगाल, मुहताज; दरिद्र, निर्धन; अंधा, जिसे दिखाई न देता हो।
जरीद: (अ़.पु.)-अकेला, एकाकी; समाचारपत्र, अख़्ाबार।
जरीद:निगार (अ़.$फा.वि.)-पत्रकार, अख़्ाबारनवीस।
जरीद:निगारी (अ़.$फा.स्त्री.)-पत्रकारिता, अख़्ाबारनवीसी।
जरीद (अ़.पु.)-पत्रवाहक, डाकिया, $कासिद; गुप्तचर, जासूस।
जरीदिल (अ़.$फा.वि.)-निर्भय, भयमुक्त, जिसे डर न हो, साहसी, जवाँमर्द।
जऱीन: ($फा.स्त्री.)-सुनहरी।
जऱी$फ (अ़.वि.)-विनादप्रिय, ख़्ाुश मिज़ाज; हँसोड़, मस्ख़्ारा; प्रतिभाशाली, ज़हीन।
जऱी$फतब्अ़ (अ़.वि.)-हँसोड़, दिल्लगीबाज़, मनोविनादी।
जऱी$फमिज़ाज (अ़.वि.)-विनोदप्रिय, जिसके स्वभाव में हँसी-मज़ा$क और मनोविनोद बहुत हो।
जऱी$फान: (अ़.$फा.वि.)-मनोविनोद से भरपूर, हास्यपूर्ण।
जऱी$फुत्तब्अ़ (अ़.वि.)-दे.-'जऱी$फतब्अ़Ó।
जऱी$फुलमिज़ाज (अ़.वि.)-दे.-'जऱी$फमिज़ाजÓ।
जऱीब: (अ़.स्त्री.)-प्रकृति, स्वभाव, अ़ादत; तलवार की तीक्ष्णता; (वि.)-तलवार से आहत या घायल।
जरीब ($फा.स्त्री.)-हाथ में पकडऩे की छड़ी; खेत नापने की जंज़ीर।
जरीबकश ($फा.वि.)-जरीब से खेत नापनेवाला।
जरीबकशी ($फा.स्त्री.)-जरीब द्वारा खेतों की पैमाइश।
जऱीबत (अ़.स्त्री.)-प्रकृति, अ़ादत, स्वभाव।
जऱीबा$फ ($फा.वि.)-सोने-चाँदी के तार अथवा सुनहरी लैस बनानेवाला, गोटा बनानेवाला।
जरीम: (अ़.पु.)-दोष, अपराध, $कुसूर; पाप, पातक, गुनाह।
जरीम (अ़.वि.)-बडे डील-डौल का, विशालकाय; जड़ से काटा हुआ, उन्मूलित।
जऱीम (अ़.वि.)-जला हुआ, दग्ध।
जरीर: (अ़.पु.)-पाप, पातक, गुनाह, अपराध।
जऱीर (अ़.वि.)-अशक्त, निर्बल, दुबला; अंध, अंधा, नेत्रहीन, नाबीना।
जरीश (अ़.पु.)-दलिया, जो पकाया जाता है।
जरीस (अ़.वि.)-जिसे तेज़ भूख लगी हो, बहुत भूखा, क्षुधातुर।
जऱीह (अ़.स्त्री.)-$कब्र, समाधि।
जरीह (अ़.वि.)-आहत, घायल, ज़ख़्मी।
ज़रूर (अ़.वि.)-निश्चितरूप से; अवश्य, य$कीनी तौर पर; नि:संदेह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़रूर (अ़.पु.)-दवा की बुकनी, जो घाव या आँख आदि पर छिड़की जाए। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़रूरत (अ़.स्त्री.)-चाह, आवश्यकता; आकांक्षा, इच्छा, ख़्वाहिश; सबब, कारण, प्रयोजन।
ज़रूरतन (अ़.वि.)-आवश्यकता से, कारणवश।
ज़रूरतमंद (अ़.$फा.वि.)-आवश्यकता रखनेवाला, चाहत रखनेवाला, इच्छुक, ख़्वाहिशमंद; मोहताज, दरिद्र; भिक्षुक, भिखारी।
ज़रूरी (अ़.वि.)-अनिवार्य, आवश्यक, लाजि़मी, य$कीनी।

ज़रूरीयात (अ़.स्त्री.)-'ज़रूरीÓ का बहु., अनिवार्यताएँ, आवश्यकताएँ, ज़रूरतें।
ज़रूह (अ़.वि.)-लात मारनेवाला।
जऱे अमानत (अ़.स्त्री.)-वह धन-राशि, जो किसी के पास धरोहर के रूप में रखी जाए।
जऱे अस्ल (अ़.$फा.पु.)-मूलधन, वास्तविक राशि, अस्ल रुपया।
जऱे $कल्ब (अ़.$फा.पु.)-खोटा सिक्का; खोटा सोना या चाँदी।
जऱे ख़्ाालिस (अ़.$फा.पु.)-शुद्घ धन, खरा सिक्का या रुपया; खरा सोना या चाँदी।
जऱे ख़्ाुश्क (अ़.$फा.पु.)-दे.-'जऱे ख़्ाालिसÓ।
जऱे गुल ($फा.पु.)-फूल का ज़ीरा, पुष्परज, पराग।
जऱे जअ़$फरी ($फा.पु.)-शुद्घ सोना, खरा सोना।
जऱे जामिनी ($फा.पु.)-ज़मानत का पैसा।
जऱे तिला ($फा.पु.)-शुद्घ सोना, ख़्ाालिस सोना, खरा सोना।
जऱे तौ$फीर ($फा.पु.)-अतिरिक्त धनराशि।
जऱे नक़्द (अ़.$फा.पु.)-न$कद रुपया, कैश।
जऱे नाति$क (अ़.$फा.पु.)-बोलनेवाला अर्थात् प्रत्यक्ष धन; नौकर-चाकर, दास आदि; पशुधन।
जऱे नाब ($फा.पु.)-दे.-'जऱे तिलाÓ।
जऱे नीलामी ($फा.पु.)-वह धनराशि जो कोई वस्तु नीलाम करने से प्राप्त हो।
जऱे पाकअय़ार ($फा.पु.)-शुद्घ सोना, खरा सोना।
जऱे पेशगी ($फा.पु.)-अग्रिम धन, किसी काम के लिए पहले दिया हुआ रुपया-पैसा।
जऱे $फाजि़ल (अ़.$फा.पु.)-अतिरिक्त धन, $फालतू रुपया, हिसाब (लेने या देने) से अधिक रुपया।
जऱे बा$की ($फा.पु.)-बकाया धन, उधार धनराशि।
जऱे बैअ़ान: (अ़.$फा.पु.)-अग्रिम धन, पेशगी रुपया, किसी काम या सौदे के लिए पहले दिया गया रुपया।
जऱे मस्कूक (अ़.$फा.पु.)-मुद्रा, रुपया या अश्र$फी।
जऱे महलूल (अ़.$फा.पु.)-तरल धन, पानी के रूप में पिघला हुआ सोना; काम-धन्धे में लगनेवाला धन।
जऱे मुअ़ावज़: (अ़.$फा.पु.)-किसी भी चीज़ के बदले दिया जानेवाला रुपया, किसी नुक़्सान की भरपाई के लिए दिया जानेवाला धन।
जऱे मुतालब: (अ़.$फा.पु.)-गुरु दक्षिणा, गुरुऋण की अदायगी; डिग्री आदि का वाजिब अर्थात् उचित रुपया।
जऱे मुना$फअ़: (अ़.$फा.पु.)-व्यापार या कारोबार में लाभ का रुपया, लाभांश-धन।
जऱे मुबादल: (अ़.$फा.पु.)-वह मुद्रा जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रयुक्त होती है (यूरो, डॉलर, पौंड आदि), आदान-प्रदान के लिए प्रयुक्त मुद्रा।
जऱे रेह्न (अ़.$फा.पु.)-वह धन, जिसके लिए कोई वस्तु गिरवी रखी जाए।
जऱे लगान (अ़.$फा.पु.)-सरकारी लगान या भूमि-कर की धनराशि।
जऱे वासलात (अ़.$फा.पु.)-वह धनराशि, जो गिरवी रखी हुई वस्तु से प्राप्त हो।
जऱे स$फेद ($फा.पु.)-स$फेद धन, जमा-खर्च में दिखाया गया धन; चाँदी, रजत।
जऱे समन ($फा.पु.)-वह धनराशि जो मूल्य के रूप में प्राप्त हो।
जऱे सामित (अ़.$फा.पु.)-न बोलनेवाला धन; रपया-पैसा या जाइदाद; गुप्त धन, अघोषित सम्पत्ति।
जऱे सारा ($फा.पु.)-शुद्घ सोना, खरा सोना, विशुद्घ स्वर्ण।
जऱे सुख्ऱ्ा ($फा.पु.)-सोना, स्वर्ण।
जऱोगौहर ($फा.पु.)-सोना और मोती।
जऱोजवाहिर (अ़.$फा.पु.)-सोना और रत्न।
ज़र्अ़ (अ़.पु.)-शक्ति, बल, ता$कत; हाथ से नापना। इसका 'ज़Ó उर्दू के ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़र्अ़ (अ़.स्त्री.)-उगना, जमना; कृषि, खेती। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़र्अ़ (अ़.पु.)-पशुधन, गाय-बकरी आदि धन। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़$र्क (अ़.वि.)-छल, मक्र; असत्य, झूठ; मन में कुछ होना, मुँह पर कुछ होना।
ज़$र्क (अ़.स्त्री.)-पक्षी की बीट।
ज़$र्कबर्क (अ़.वि.)-भड़कदार, भड़कीला, तड़क-भड़क वाला, चमकीला।
ज़$र्का (अ़.स्त्री.)-नीली आँखोंवाली स्त्री।
जर्ग: (तु.पु.)-दल, समूह, जमाअ़त, भीड़, जमाव; गोत्र, वंश, ख़्ाानदान। दे.-'जिर्ग:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
जर्ग़द ($फा.पु.)-गांश्त का एक पकवान, कुल्मा।
ज़$र्गब ($फा.पु.)-कीमुख़्त, एक प्रकार का चमड़ा।
ज़$र्गम: (अ़.क्रि.)-युद्घ में वीरता दिखाना, रणक्षेत्र में बहादुरी का प्रदर्शन करना।
ज़$र्गूनी (अ़.स्त्री.)-एक दवा, जो यूनानी पद्घति में प्रचलित है।
जजऱ् (अ़.पु.)-काँटा, शूल।
जर्जर: (अ़.पु.)-गट-गट।
ज़र्त (अ़.क्रि.)-पादना, अपानवायु त्यागना।
ज़र्द: ($फा.पु.)-एक प्रकार के मीठे चावल; ख़्ाुशबूदार पत्ती का तम्बाकू।
जर्द: ($फा.पु.)-रंग, वर्ण। दे.-'चर्द:Ó, इस अर्थ में 'जर्द:Ó अशुद्घ उच्चारण है।
ज़र्द ($फा.पु.)-पीत, पीला, पीले रंगवाला; पीला रंग।
ज़र्द (अ़.पु.)-निवाला निगलना; गला घोंटना; कवच बनाना।
ज़र्दआब ($फा.पु.)-दे.-'ज़र्दाबÓ, वही उच्चारण अधिक सही है।
ज़र्दआलू ($फा.पु.)-दे.-'ज़र्दालूÓ, वही उच्चारण अधिक शुद्घ है।
ज़र्दक ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ कन्द, गाजर, पीत कन्द।
ज़र्बगोश ($फा.पु.)-असमंजस या दुविधा में पड़ा हुआ; ठगिया, छलिया, धूर्त, मक्कार; द्वय-भाषी, मुवा$िफ$क, मुआ$िफ$क।
ज़र्दचश्म (अ़.पु.)-बाज़ और उसकी जाति-प्रजाति के शिकारी पक्षी।
ज़र्दचोब ($फा.स्त्री.)-हल्दी, हरिद्रा।
ज़र्दरू ($फा.वि.)-जिसके शरीर में रक्त न हो, एकदम पीला पड़ा हुआ, ला$गर, दुबला; लज्जित, शर्मिन्दा।
ज़र्दरूई ($फा.स्त्री.)-शरीर में ख़्ाून अथवा रक्त का न होना, रक्तअल्पता; शर्म, लाज, लज्जा।
ज़र्दाब ($फा.पु.)-फोड़े से बहनेवाला कच-लोहू।
ज़र्दालू ($फा.पु.)-ताज़ी ख़्ाूबानी।
ज़र्दी ($फा.स्त्री.)-पीतिमा, पीलापन; अण्डे की ज़र्दी।
जर्ऩब ($फा.स्त्री.)-एक दवा, तालीसपत्र।
जर्ऩी ($फा.स्त्री.)-सूक्ष्मदर्शिता, गूढ़ विचार।
जर्ऩीख़्ा ($फा.स्त्री.)-एक औषधि, हरताल, हड़ताल।
ज़$र्फ (अ़.पु.)-पात्र, भाजन, बर्तन; पात्रता, योग्यता, सलाहीयत; गहनता, गंभीरता, तहम्मुल; सहनशीलता, बुर्दबारी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
ज़$र्फ (अ़.पु.)-आँसू बहाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जर्फ़़ (अ़.वि.)-गहन, गहरा, अगाध। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'बड़े ज़ेÓ से बना है।
ज़$र्फा (अ़.वि.)-गहरा, गहरा होना।
जर्फ़े़ आ$फताब (अ़.$फा.पु.)-शराब का प्याला, मदिरा-चसक।
जफ़ऱ्े आब (अ़.$फा.पु.)-जलपात्र, पानी रखने का बर्तन।
जर्फ़े़ ज़माँ (अ़.पु.)-समय-सूचक संज्ञा, वह संज्ञा जिससे समय का बोध हो, समयवाचक शब्द, जैसे-प्रात: और दोपहर।
जफ़ऱ्े मकाँ (अ़.पु.)-स्थान-सूचक संज्ञा, वह संज्ञा जिससे स्थान का बोध हो, स्थानवाचक शब्द, जैसे-घर, मन्दिर या धर्मशाला।
ज़$र्फे मय (अ़.$फा.पु.)-सुरापात्र, मदिरा या शराब रखने का बर्तन।
ज़$र्फे शीर (अ़.$फा.पु.)-क्षीरपात्र, दूध रखने का बर्तन।
ज़र्ब: (अ़.पु.)-चोट, आघात, ज़र्ब; पाँसा, $कुर्थ:।
ज़र्ब (अ़.स्त्री.)-चोट, आघात, (पु.)-गुणा, दो संख्याओं का गुणा; जऱब।
ज़र्बख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-टकसाल, टंकसाल, जहाँ मुद्रा या रुपए की ढलाई होती है।
ज़र्बत (अ़.स्त्री.)-चोट, आघात, ज़र्ब।
जर्बा (अ़.पु.)-नभ, आकाश, आसमान।
ज़र्बात (अ़.स्त्री.)-'ज़र्बतÓ का बहु., चोटें, मारें।
ज़र्बीय: (अ़.पु.)-कर, टैक्स, महसूल।
ज़र्बुलमसल (अ़.पु.)-कहावत, लोकोक्ति, मसल।
ज़र्बे ख़्ा$फी$फ (अ़.स्त्री.)-मामूली या हलकी चोट, जिसमें हड्डी आदि न टूटे।
ज़र्बे दस्त (अ़.$फा.स्त्री.)-हस्ताघात, हाथ से किया गया आघात, हाथ की चोट, थप्पड़, झापड़, मुक्का, घूँसा।
ज़र्बे पा (अ़.$फा.स्त्री.)-पाँव से किया गया आघात, पदाघात, ठोकर, लात।
ज़र्बे $फत्ह (अ़.स्त्री.)-विजय-दुंदुभी, लड़ाई जीतने की ख़्ाुशी में बजनेवाला बाजा।
ज़र्बे मुफ्ऱद (अ़.पु.)-साधारण गुणा, किसी पूरी संख्या का पूरी संख्या से गुणा।
ज़र्बे मुरक्कब (अ़.पु.)-रुपया, आना और पाई अथवा मन, सेर और छटाँक आदि का गुणा।
ज़र्बे मोह्लिक (अ़.पु.)-अन्त कर देनेवाली चोट।
ज़र्बे लाजि़ब (अ़.स्त्री.)-ठीक होने पर भी निशान या चिह्नï छोड़ जानेवाली चोट, वह चोट जिसका निशान अच्छे होने पर भी बा$की रहे।
ज़र्बे शदीद (अ़.स्त्री.)-गहरी या गम्भीर चोट जिसमें या तो हड्डी आदि टूट जाए या फिर कोई ऐसा ही घाव आए जिससे प्राणभय हो, प्राणघातक चोट।
ज़र्बे शम्शीर (अ़.$फा.स्त्री.)-तलवार का घाव।
जर्र: (अ़.स्त्री.)-गगरी, मटकी।
जर्ऱ: (अ़.पु.)-कण, अणु, रेणु, बहुत ही बारीक रेज़ा; अति तुच्छ, बहुत ही ह$कीर, बहुत ही छोटा; छोटा चींटा। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'जाल़Ó अक्षर से बना है।
जर्ऱ: (अ़.स्त्री.)-सौत, सौतन, सौकन, वह स्त्री जो एक स्त्री की उपस्थिति में ब्याहकर लाई जाए। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जर्ऱ:नवाज़ (अ़.$फा.वि.)-छोटों पर दया करनेवाला, कृपालु, दयावान्, दीनदयालु, दीनबन्धु।
जर्ऱ:पर्वर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जर्ऱ:नवाज़Ó।
जर्ऱ:बीं (अ़.$फा.पु.)-वह यंत्र जिससे सूक्ष्म कणों का अध्ययन किया जाता है, सूक्ष्मदर्शी।
जर्ऱए नाचीज़ (अ़.$फा.पु.)-बहुत-ही छोटा और सूक्ष्म कण अर्थात् अत्यन्त तुच्छ व्यक्ति (वक्ता अपनी नम्रता प्रदर्शित करने के लिए अपने लिए भी इस शब्द का प्रयोग करता है)।
जर्ऱए बेमिक़्दार (अ़.$फा.पु.)-दे.-'जर्ऱए नाचीज़Ó।
जर्ऱतान (अ़.स्त्री.)-परस्पर सौतन, वे दो स्त्रियाँ जो एक पुरुष के साथ ब्याही गई हों, 'जर्ऱ:Ó का द्विवचन, दो सौतें।
जर्ऱाअ़ (अ़.स्त्री.)-विपत्ति, आपत्ति, कष्ट, दु:ख; हानि, नुक़्सान, टोटा, घाटा।
जर्ऱा$क (अ़.वि.)-मुँह में राम-राम ब$गल में छुरी रखनेवाला, जिसके मन में कुछ हो और मुँह पर कुछ, द्विजिह्वï, मुना$िफ$क।
जर्ऱा$कख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-धूर्तावास, वह स्थान जहाँ सब ऐसे लोग एकत्र हों जिनके दिलों में कुछ होता है और मुँह पर कुछ।
जर्ऱात: (अ़.स्त्री.)-पादनेवाला, पदोड़ा।
जर्ऱाद (अ़.वि.)-कवच बनानेवाला, जि़रिहबक्तर बनाने वाला।
जर्ऱा$फ (अ़.वि.)-बहुत अधिक हँसोड़, बड़ा दिल्लगीबाज़; अत्यन्त प्रतिभाशाली, बहुत ज़हीन।
जर्ऱादख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-शस्त्रागार, हथियार-घर।
जर्ऱाब (अ़.वि.)-सिक्के पर ठप्पा लगानेवाला, मुद्रा छापने वाला, टकसाल में टंकन करनेवाला।
जर्रार: (अ़.पु.)-एक अत्यन्त विषैला बिच्छू जो अपनी पूँछ ज़मीन पी घसीटता हुआ चलता है; बहुत बड़ी सेना।
जर्रार (अ़.वि.)-बहुत बड़ी भीड़ जो लोगों की अधिकता के कारण धीरे-धीरे चलती हो; बहुत बड़ी सेना; अपनी ओर खींचनेवाला।
जर्राह (अ़.पु.)-शल्य-चिकित्सक, चीड़-फाड़ करके ज़ख़्मों का इलाज करनेवाला।
जर्राही (अ़.स्त्री.)-जर्राह का काम, घावों तथा फोड़े और फुंसियों की चिकित्सा, चीर-फाड़, शल्य-क्रिया।
जर्ऱीं ($फा.वि.)-सोने का; सोने से मढ़ा हुआ; सोना चढ़ा हुआ; सोने का पानी चढ़ा हुआ, सुनहला।
जऱीं $कदह ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार की नर्गिस।
जर्ऱीं कास: ($फा.पु.)-सुनहरी प्याला अर्थात् सूर्य, सूरज, रवि, दिवाकर।
जर्ऱीं कुलाह ($फा.पु.)-जिसके सिर पर सुनहरी टोपी हो अर्थात् सूर्य, सूरज।
जर्ऱीं बाल ($फा.पु.)-सुनहरी बालोंवाला अर्थात् सूर्य, सूरज।
जऱीं शाख ($फा.पु.)-$कलम, लेखनी।
जर्रे स$कील (अ़.पु.)-भारी बोझ खींचने और उठाने की विद्या।
ज़र्स (अ़.क्रि.)-दाँत से पकडऩा।
जर्सूम: (अ़.पु.)-जीवाणु।
जर्सूमियात (अ़.स्त्री.)-जीव-विज्ञान, जीवाणु-विज्ञान।
जर्सूमियात दाँ (अ़.पु.)-जीव-विज्ञान विशेषज्ञ।
जर्सूमियाती (अ़.वि.)-जीव-विज्ञान से सम्बन्धित।
जर्ह (अ़.स्त्री.)-आघात, चोट; किसी बात की सत्यता जाँचने के लिए किए जानेवाले प्रश्न।
जर्हो$कद्ह (अ़.स्त्री.)-तर्क-वितर्क, वाद-विवाद, बहस, हुज्जत।
जल (अ़.स्त्री.)-एक मधुर वाणी।
जल [ल्ल] (अ़.वि.)-बुज़ुर्ग।
जल$क (अ़.स्त्री.)-हाथ से इन्द्रिय-संचालन द्वारा वीर्यपात, हस्त-मैथुन, हथलस।
ज़ल$क (अ़.स्त्री.)-फिसलन, फिसलना; साफ और चौरस मैदान या ज़मीन; हस्त-मैथुन, हथलस।
जल$कज़द: (अ़.$फा.वि.)-हाथ से इन्द्रिय संचालन करके वीर्यपात करनेवाला, हस्तमैथुनिक, जिसे हथलस का दुव्र्यसन हो।
जल$की (अ़.वि.)-हस्तमैथुनिक, हाथ से वीर्यपात करने वाला, हथलस करनेवाला, जल$क लगानेवाला।
ज़ल$कुलअम्अ़ा (अ़.स्त्री.)-आँतों की फिसलन, एक रोग जिसमें आँतें मवाद रोक नहीं पातीं तथा दस्त आते रहते हैं।
जलद (अ़.स्त्री.)-भूसा भरी हुई जानवरों के बच्चों की खाल।
ज़लम: (अ़.पु.)-'ज़ालिमÓ का बहु., निर्दय और अत्याचारी लोग।
जलम (अ़.पु.)-तराज़ू का पलड़ा, पल्ला।
ज़लम (अ़.स्त्री.)-अँधेरी।
ज़लमानी (अ़.वि.)-तमिस्र, अंधकारमय, तमपूर्ण, तारीक।
ज़लल (अ़.पु.)-फिसलन, फिसलना; फिसलने का स्थान; दोष, त्रुटि, $गलती; ह्रïास, कमी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़लल (अ़.पु.)-दोष, ख़्ाराबी; ऐब, नुक़्स। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जला (अ़.वि.)-किसी को देश निकाला देना; स्वयं देश-त्याग करके परदेश जाना।
जलाजिल (अ़.पु.)-'जुल्जुलÓ का बहु., वह घुँघरू जो किसी कपड़े पर टाँककर पशु आदि के गले में डालते हैं; वे मजीरे जो ड$फ की परिधि में होते हैं; बड़े मजीरे, झाँझ।
ज़लाजि़ल (अ़.पु.)-'ज़ल्ज़ल:Ó का बहु., ज़ल्ज़ले, भूकम्प।
ज़ला$कत (अ़.स्त्री.)-बात को अच्छे ढंग से और ज़ोदार शब्दों में कहना, वाक्पटुता, तेज़ बयानी।
जलादत (अ़.स्त्री.)-चुस्ती, फुर्ती, स्फूर्ति; शूरता, वीरता, बहादुरी।
ज़लाम (अ़.पु.)-संध्या के बाद की अँधेरी, शुरू रात का हलका अँधेरा, शाम का झुरमुटा।
ज़लाल (अ़.पु.)-बादल की छाया; छायावाला स्थान, साय:दार जगह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
ज़लाल (अ़.पु.)-मार्ग से भटकाव, रस्ते से भटक जाना, गुमराही, मार्ग-भ्रंश; पाप, गुनाह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जलाल (अ़.पु.)-महिमा, तेज़, प्रताप, दीप्ति, इक़्बाल, माहात्म्य, अ़ज़्मत; किसी महात्मा या ऋषि-मुनि का रोÓब, हैबत, धाक, प्रतिष्ठा।
जलालत (अ़.स्त्री.)-श्रेष्ठता, महत्ता, प्रतिष्ठा, बुज़ुर्गी।
जलालत मअ़ाब (अ़.वि.)-श्रेष्ठतायुक्त, अतिश्रेष्ठ, महत्तायुक्त।
जलालते शान (अ़.स्त्री.)-व्यक्तित्व की महत्ता।
जलाली (अ़.वि.)-जलालवाला, प्रतापवान्; 'जमालीÓ का विपरीतार्थक; वह मंत्र, जाप, तप या वज़ी$फा जिसमें जान जाने का भय हो।
जलावत (अ़.स्त्री.)-उज्ज्वलता, प्रकाश, रौशनी; स्वच्छता, स$फाई, धवलता।
जलावतन (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जो अपना देश त्यागकर परदेश में रह रहा हो, निर्वासित, देश-बहिष्कृत, पुरुषार्थी,  शरणार्थी।
जलावतनी (अ़.स्त्री.)-प्रवास, परदेशवास, स्वदेश-त्याग, अपना घर-बार छोड़कर दूसरे देश में रहना, अज्ञातवास।
जलिब (अ़.पु.)-कोलाहल, शोर।
जली (अ़.वि.)-व्यक्त, प्रकट, ज़ाहिर; मोटे अक्षरों में लिखा हुआ लेख।
ज़लीअ़ (अ़.पु.)-जाति, $कौम, जनता, जन-साधारण।
ज़ली$क (अ़.पु.)-तेज़ धार की तलवार।
जली $कलम (अ़.पु.)-मोटा $कलम, मोटी नोक या चौड़े ख़्ातवाला $कलम, मोटे $कलम की लिखावट।
जलीद (अ़.स्त्री.)-ब$र्फ, ओला, पाला।
जलीदी (अ़.स्त्री.)-आँख का मैल।
ज़ली$फ (अ़.वि.)-दिशाहीन; कठिन या दुष्कर कार्य।
ज़लीम (अ़.वि.)-ज़ुल्म-रसीद:, जिस पर अत्याचार हुआ हो, नृशंसित, अत्याचार-पीडि़त।
जलील: (अ़.स्त्री.)-जलील की स्त्री।
जलील (अ़.वि.)-प्रतिष्ठित, महान्, अज़़ीम; मान्य, पूज्य, मोहतरम।
ज़लील (अ़.वि.)-नीच, कमीना, अधम, पामर, भ्रष्ट, कदर्थित; तिरस्कृत, अनाहत, बेइज़्ज़त, अपमानित। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़लील (अ़.क्रि.)-लड़खड़ाना, डगमगाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
ज़लील (अ़.वि.)-भटका हुआ, पथभ्रष्ट, गुमराह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जलीलुल$कद्र (अ़.वि.)-महामना, महत्प्रतिष्ठ, लब्धप्रतिष्ठ, बड़े मरतबेवाला।
जलीस (अ़.पु.)-पास बैठनेवाला, पाश्र्ववर्ती, हमनशीं, सखा, सहवर्ती, सहवासी।
ज़लू ($फा़.स्त्री.)-जोंक, जलौका, रक्तपा।
ज़लूक ($फा़.स्त्री.)-दे.-'ज़लूÓ।
ज़लूम (अ़.वि.)-अत्यन्त अत्याचारी, बहुत बड़ा ज़ालिम, महानिर्दयी।
ज़लूल (अ़.वि.)-पथभ्रष्ट, गुमराह, राह से भटका हुआ। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
ज़लूल (अ़.वि.)-वशीभूत, अधीन; कोमल, नर्म। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़ल्ज़ल: (अ़.पु.)-भूकम्प, भूडोल, भूचाल, भूप्रकम्प, ज़मीं-जुंबिश।
ज़ल्ज़ल:अफ्ग़न (अ़.$फा.वि.)-जो भूकम्प ला दे, जो ज़ल्ज़ल: डाल दे, जो पृथ्वी को हिला दे, ज़मीन में जुंबिश पैदा कर देनेवाला।
जल्द ($फा.वि.)-शीघ्र, त्वरित, सत्वर, तुरन्त, $फौरन।
जल्द अज़ जल्द ($फा.वि.)-जल्द से जल्द, शीघ्रातिशीघ्र, जितनी जल्दी हो सके।
जल्दतर ($फा.वि.)-यथाशीघ्र, $फौरन, तुरन्त ही, बहुत जल्द, अतिशीघ्र।
जल्दबाज़ ($फा.वि.)-काम को जल्दी चाहनेवाला, उतावला, आतुर, अति चपल।
जल्दबाज़ी ($फा.स्त्री.)-तुरन्त काम हो जाने की चाह; तुरन्त करने की उत्कंठा; शीघ्रता।
जल्दमिज़ाज ($फा.वि.)-किसी बात पर तुरन्त भड़क उठने वाला, शीघ्र ही तैश में आ जानेवाला।
जल्द रौ ($फा.वि.)-द्रुतगामी, तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगामी।
जल्दी ($फा.स्त्री.)-तुरन्त, शीघ्र।
जल्$फ ($फा.क्रि.)-काटना, उखाडऩा।
जल्ब (अ़.स्त्री.)-लेना, ग्रहण करना; हासिल करना; कमाना, उपार्जन।
जल्बेजऱ (अ़.क्रि.)-रुपया प्राप्त करना, धन घसीटना।
जल्मद ($फा.पु.)-कठोर पत्थर।
जल्बे मन्$फअ़त (अ़.स्त्री.)-लाभोपार्जन, लाभ कमाना, न$फा कमाना।
ज़ल्ल: (अ़.पु.)-वह भोजन जो किसी के लिए रख दिया जाए; बचा हुआ खाना, जूठन, उच्छिष्ट; वह भोजन जो दासों और दासियों को दिया जाता है।
ज़ल्ल: ($फा.पु.)-झींगुर।
जल्ल:जलालुहू (अ़.अव्य.)-ईश्वर के नाम के साथ प्रयुक्त होनेवाला शब्द, अर्थात् उसका जलाल (प्रताप) अति महान् है, महाप्रतापी, महातेजस्वी, अलौकिक प्रभाववान्।
ज़ल्ल:रुबा (अ़.$फा.वि.)-जूठन खानेवाला, आश्रित, किसी बड़े व्यक्ति के सहारे रहनेवाला।
ज़ल्लत (अ़.$फा.स्त्री.)-फिसलन, फिसलना; दोष, त्रुटि, भूल, लग्ज़ि़श।
जल्ला (अ़.पु.)-जादूगरी।
जल्लाद (अ़.पु.)-वह व्यक्ति जो अपराधियों को कोड़े मारता है; वह व्यक्ति जो अपराधियों की गर्दन मारता है; वह व्यक्ति जो फाँसी पर चढ़ाता है; अत्यन्त निर्दय और अत्याचारी।
जल्लाद सि$फत (अ़.वि.)-निर्दयी, कठोर हृदयवाला।
जल्लादी (अ़.स्त्री.)-जल्लाद का काम या पेशा; घोर अत्याचार।
जल्लाब (अ़.वि.)-ले जानेवाला, एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जानेवाला; पशुओं को बेचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जानेवाला।
जल्व: (अ़.पु.)-बनाव-सिंगार करके स्वयं को दिखाना; स्वयं को दूसरे के सामने पेश करना; दर्शन, दीदार; प्रदर्शन, नुमाइश।
जल्व:आरा (अ़.$फा.वि.)-बनाव-सिंगार और ठाठ-बाट से किसी स्थान पर उपस्थित, (किसी श्रेष्ठ और महान् व्यक्ति की उपस्थिति के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है)।
जल्व:आराई (अ़.$फा.स्त्री.)-बनाव-सिंगार के साथ किसी की उपस्थिति; किसी महान् अथवा श्रेष्ठ व्यक्ति की उपस्थिति।
जल्व:कुनाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जल्व:आराÓ।
जल्व:गर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जल्व:आराÓ।
जल्व:गरी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जल्व:आराईÓ।
जल्व:गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-जल्व: या हाव-भाव दिखाने का स्थान, प्रेमिका का घर।
जल्व:$फर्मा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जल्व:आराÓ।
जल्व:$फर्माई (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जल्व:आराईÓ।
जल्व (अ़.$फा.पु.)-तलवार मिलना।
जल्वत (अ़.स्त्री.)-आत्म-प्रदर्शन, स्वयं का सबके सामने प्रदर्शन करना, अपने को सबको दिखाना, 'ख़्ाल्वतÓ का विपरीतार्थक शब्द, भीड़, जमाव।
जल्स: (अ़.पु.)-सभा, मजलिस; नाच-गाने की मह$िफल; बैठक।
जल्स:गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-सभास्थल, जहाँ जल्सा हो रहा हो, जल्से की जगह।
जल्सए ख़्ाास (अ़.$फा.पु.)-वह सभा जिसमें बिना आज्ञा प्रवेश संभव न हो।
जल्सए ताÓजिय़त (अ़.पु.)-शोकसभा, किसी की मृत्यु पर शोक प्रकट करने की बैठक।
जव (अ़.पु.)-ज़मीन और आस्मान के बीच की जगह, ख़्ाला, अंतरिक्ष, क्षितिज।
जवाँ ($फा.पु.)-'जवानÓ का लघु और यौगिक रूप; जवान, युवा, युवक, तरुण; वयस्क, बालि$ग।
जवाँतालेÓ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जवाँबख़्तÓ।
जवाँदौलत (अ़.$फा.वि.)-जिसका धन जवानी पर हो अर्थात् बहुत ही मालदार, समृद्घ, धनाढ्य।
जवाँबख़्त ($फा.वि.)-जिसका भाग्य पूरी जवानी पर हो, अति भाग्यशाली, बहुत अच्छी $िकस्मतवाला, ख़्ाुशनसीब, सौभाग्यशाली।
जवाँमर्ग ($फा.वि.)-जवान मौत, जो युवावस्था में मर जाए।
जवाँमर्गी ($फा.स्त्री.)-जवानी की मृत्यु, युवावस्था की मौत।
जवाँमर्द ($फा.वि.)-वीर, शूर, बहादुर; साहसी, हिम्मतवाला; दानी, वदान्य, सख़्ाी।
जवाँमर्दी ($फा.स्त्री.)-शूरता, बहादुरी, साहस; साहस, हिम्मत; दानशीलता, सख़्ाावत।
जवाँमीर ($फा.वि.)-दे.-'जवाँमर्गÓ।
जवाँसाल ($फा.वि.)-नवयुवक, नई उम्र का लड़का, नवल, नव यौवन, नौजवान, उठती जवानी का।
जवाँ सालेह ($फा.वि.)-अच्छे आचरणवाला तथा संयमी पुरुष।
जवाँहिम्मत (अ़.$फा.वि.)-अत्यन्त साहसी, बड़े हौसले वाला, पूर्णोत्साही, महोत्साह।
जवा (अ़.पु.)-दिल की जलन, प्रेम, इश्$क, मुहब्बत।
जवाइज़ (अ़.$फा.पु.)-'जाइज़Ó का बहु, दे.-'जाइज़Ó।
ज़वाइद (अ़.पु.)-'ज़ाइद:Ó का बहु., $फालतू चीजें़; बतोडिय़ाँ।
ज़वा$क (अ़.पु.)-रुचि; मज़ा$क; चखना, स्वाद लेना।
जवाज़ (अ़.पु.)-जाइज़ होना, औचित्यपूर्ण; धर्म के अनुसार जाइज़ होना; पारपत्र, पासपोर्ट।
जवाद (अ़.वि.)-मुक्तहस्त, वदान्य, दानशील, सख़्ाी, $फैयाज़।
जवान ($फा.पु.)-युवा, नौजवान, तरुण; वयस्क, व्यवहार प्राप्त, बालि$ग; रूपवान्, सजीला।
जवानान: ($फा.वि.)-जवानों की तरह।
जवानाने चमन ($फा.पु.)-उद्यान के नवोदित पौधे, बा$ग के नए पौधे।
जवानामर्ग ($फा.वि.)-दे.-'जवाँमर्गÓ।
जवानामर्गी ($फा.स्त्री.)-दे.-'जवाँमर्गीÓ।
जवानी ($फा.स्त्री.)-नौजवानी, युवावस्था, तरुणिमा, तारुण्य।
जवाब (अ़.पु.)-उत्तर, किसी सवाल का उत्तर, किसी प्रश्न का समाधान; अस्वीकृति, इन्कार; जोड़, मद्दे मु$काबिल, टक्कर का, मु$काबले का।
जवाबतलब (अ़.वि.)-वह पत्र आदि जिसका उत्तर जाना आवश्यक हो, समाधानपरक उत्तर माँगना।
जवाबतलबी (अ़.स्त्री.)-किसी $गलती, त्रुटि या अपराध पर पूछताछ, उत्तर माँगना।
जवाबदावा (अ़.पु.)-नालिश के दावे का उत्तर, जिसमें यह दिखाया जाता है कि वाद अमुक कारणों से झूठा है।
जवाबदेह (अ़.$फा.वि.)-किसी विषय पर जवाब देनेवाला, उत्तरदाता; उत्तरदायी, जि़म्मेदार।
जवाबदेही (अ़.$फा.स्त्री.)-उत्तरदायित्व, जि़म्मेदारी।
जवाबन (अ़.पु.)-उत्तर में, जवाब में, फलस्वरूप।
जवाबनाम: (अ़.पु.)-वह कपड़ा, जिस पर मुसलमान कलिम: (धर्ममंत्र) लिखकर मुर्दे के कफऩ में रखते हैं।
ज़वाबित (अ़.पु.)-'ज़ाबित:Ó का बहु., नियमावली, $कायदे।
जवाबी (अ़.वि.)-जवाब में, उत्तर में, बदले में, जैसे-'जवाबी हमलाÓ; जवाब के लिए दूसरी परत, जैसे-'जवाबी तार अथवा ख़्ातÓ।
जवाबी हम्ल: (अ़.पु.)-प्रतिवार, पलटवार, दुश्मन पर पलटकर हमला करना।
जवाबुलजवाब (अ़.पु.)-किसी प्रश्न के उत्तर में दिया हुआ जवाब, प्रत्युत्तर।
जवाबे $कत्ई (अ़.पु.)-दो-टूक जवाब, ऐसा उत्तर जिसके बाद कुछ कहने अथवा सुनने की आवश्यकता न हो, सा$फ जवाब।
जवाबे तल्ख़्ा (अ़.पु.)-उत्तर में कड़वी और कठोर बातें कहना।
जवाबे बा सवाब (अ़.$फा.पु.)-ठीक-ठीक और उचित उत्तर।
जवाबे शा$फी (अ़.पु.)-सम्पूर्ण उत्तर, ऐसा उत्तर जिससे प्रश्नकर्ता सन्तुष्ट हो जाए।
जवाबे सा$फ (अ़.पु.)-स्पष्ट उत्तर, सा$फ जवाब।
जवामीस (अ़.पु.)-'जामूसÓ का बहु., भैसें।
जवामेÓ (अ़.पु.)-'जामिअ़:Ó का बहु., समग्र, समस्त, कुल, सब।
ज़वाया (अ़.पु.)-'ज़ाविय:Ó का बहु., ज़ाविए, कोण, कोने।
जवारिश ($फा.स्त्री.)-यूनानी अवलेह के प्रकार की एक स्वादिष्ठ औषध जो पेट की बीमारियों में दी जाती है और अनेक प्रकार की होती है।
जवारेह (अ़.पु.)-'जारिह:Ó का बहु., हाथ-पाँव और दूसरे अवयव; शिकारी जानवरों का $गोल (झुण्ड, समूह)।
ज़वाल: (अ़.पु.)-आटे का पेड़ा, लोई।
ज़वाल (अ़.पु.)-अवनति, 'उन्नतिÓ का विपरीत; गिराव, पतन; ह्रïास, कमी।
ज़वालआबाद (अ़.$फा.वि.)-दुनिया, संसार, जगत्।
ज़वालआमाद: (अ़.$फा.वि.)-पतनोन्मुख, जो पतन के कगार पर बैठा हो, जो पतन की ओर जाने को तैयार हो; जो नाशवान् हो, नश्वर।
ज़वालपिज़ीर (अ़.$फा.वि.)-जो अवनति के मुँह में जा रहा हो, जिसका पतन हो रहा हो, अवनतिशील, पतनशील, पतनोन्मुख।
ज़वाले माह (अ़.पु.)-पूर्णमासी के बाद चाँद का घटना; अन्धकार, अँधेरा, कृष्णपक्ष।
जवासीस (अ़.पु.)-'जासूसÓ का बहु., अनेक गुप्तचर, गुप्तचरों का समूह।
जवाहिर (अ़.पु.)-'जौहरÓ का बहु., रत्नसमूह।
ज़वाहिर (अ़.पु.)-'ज़ाहिरÓ का बहु., उज्ज्वल वस्तुएँ; ऊँचे स्थान; कलियाँ, शगूफ़े। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़वाहिर (अ़.पु.)-'ज़ाहिरÓ का बहु., व्यक्त और प्रकट वस्तुएँ; ऊपरी और ज़ाहिरी स्थितियाँ। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
जवाहिरख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-जहाँ जवाहिरात हों, जहाँ रत्न-समूह हों, रत्नागार।
जवाहिरनिगार (अ़.$फा.वि.)-रत्न जड़ा हुआ, रत्न-जटित।
जवाहिर र$कम (अ़.वि.)-ऐसी सुन्दर लिखावट लिखनेवाला जैसे रत्न जड़े हों।
जवाहिरात (अ़.पु.)-'जवाहिरÓ का बहु., अनेक रत्न-समूह, बहुत से रत्न।
ज़विलअर्हाम (अ़.पु.)-साहिबे रहम, कृपावान्, दयालुजन।
ज़विल$कुर्बी (अ़.पु.)-स्वजन, नातेदार, रिश्तेदार।
ज़विल$फराइज़ (अ़.पु.)-कत्र्तव्यवान्, कर्मनिष्ठ, साहिबे $फरायज़ ('$फर्ज़Ó का बहु.)।
ज़विल$फुरूज़ (अ़.पु.)-दे.-'ज़विल$फरायज़Ó।
जवीं (अ़.वि.)-जौ का, जौ से बना हुआ।
जवीअ़ (अ़.वि.)-तुच्छ, कोताह, अल्प।
जव्व (अ़.पु.)-ज़मीन और आस्मान के बीच की जगह, अंतरिक्ष, ख़्ाला, पृथ्वी और आकाश के बीच का वायुमण्डल, क्षितिज।
ज़व्वार (अ़.वि.)-वह जो धर्म-स्थल की यात्रा पर जाए, तीर्थयात्री, जिय़ारत करनेवाला।
जव्वाल: (अ़.पु.)-बहुत अधिक चक्कर खानेवाली वस्तु, फिरकनी, भौंरा।
जश (अ़.$फा.क्रि.)-कूटना, तोडऩा।
जशब (अ़.स्त्री.)-रूखी-सूखी रोटी।
जशीब (अ़.पु.)-बेस्वाद खाद्य, अस्वादिष्ठ वस्तु।
जशीश (अ़.पु.)-दलिया।
जश्न ($फा.पु.)-उत्सव, समारोह, पर्व, कोई बहुत बड़ी ख़्ाुशी जिसे सारा देश या किसी सम्प्रदाय या दल के सारे आदमी मिलकर मनाएँ।
जश्ने अज़़ीम (अ़.$फा.पु.)-महापर्व, महोत्सव, बहुत बड़ा समारोह।
जश्ने अ़रूस (अ़.$फा.पु.)-विवाहोत्सव, विवाह की ख़्ाुशी।
जश्ने आज़ादी ($फा.पु.)-किसी देश की स्वाधीनता का महोत्सव, किसी राष्ट्र के पराधीनता से मुक्त होने का उत्सव।
जश्ने ईद (अ़.$फा.पु.)-ईदोत्सव, ईद की ख़्ाुशी।
जश्ने चराग़ाँ ($फा.पु.)-दीपोत्सव, दीपावली, दिवाली का उत्सव; किसी ख़्ाुशी में दीप जलाना, दीपोत्सव मनाना।
जश्ने जुमहूरियत (अ़.$फा.पु.)-गणतंत्र महोत्सव।
जश्ने ताजपोशी ($फा.पु.)-राज्याभिषेकोत्सव, किसी राजा आदि को राजगद्दी प्राप्ति का उत्सव।
जश्ने नौरोज़ ($फा.पु.)-नव वर्षोत्सव, नया साल आने की ख़्ाुशी।
जश्ने $फत्ह (अ़.$फा.पु.)-विजयोत्सव, जीत अथवा विजय प्राप्ति की ख़्ाुशी, जयोल्लास।
जश्ने बुज़ुर्ग (अ़.$फा.पु.)-नवरोज़ का दिन, ईरानी पंचांग के अनुसार वर्ष का पहला दिन; पारसियों का एक त्योहार।
जश्ने मीलाद (अ़.$फा.पु.)-दे.-'जश्ने विलादतÓ।
जश्ने विलादत (अ़.$फा.पु.)-जन्मोत्सव, किसी के पैदा होने की ख़्ाुशी।
जश्ने सदह (अ़.$फा.पु.)-बह्मïन (ईरानी ग्यारहवाँ महीना जो हिन्दी में 'फागुनÓ कहलाता है) की दसवीं तारीख़्ा का उत्सव।
जश्ने सालगिरिह ($फा.पु.)-किसी महान् व्यक्ति या घटना की वर्षगाँठ की ख़्ाुशी, जयंती।
जश्ने सीमीं ($फा.पु.)-पचास वर्षों की आयु पूरी होने पर मनाया जानेवाला उत्सव, रजतोत्सव (अब इसे 'स्वर्ण-जयंतीÓ कहने लगे हैं)।
जश्ने सुल्ह (अ़.$फा.पु.)-संधि-उत्सव, दो राष्ट्रों में संधि होने का जश्न।
जस (अ़.पु.)-चूना, गच। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
जस (अ़.पु.)-जड़ से उखाडऩा। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
जसद (अ़.पु.)-देह, शरीर, जिस्म, बदन।
जसदी (अ़.वि.)-शरीर से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु; शरीर का, शारीरिक।
जसदे ख़्ााकी (अ़.$फा.पु.)-मिट्टी से बना हुआ शरीर, तुच्छ और नश्वर देह।
जसामत (अ़.स्त्री.)-लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई, गहराई या ऊँचाई; हुजूम, समूह, दल; मोटापा, स्थूलता, पीनता।
जसारत (अ़.स्त्री.)-बहादुरी, दिलेरी, शूरता, वीरता; उद्दण्डता, धृष्टता, दु:साहस, बेबाकी।
जसीम (अ़.वि.)-मोटा-ताज़ा, पीन, स्थूल।
जसूर (अ़.वि.)-शूर, वीर, बहादुर।
जस्क (अ़.पु.)-दर्द, पीड़ा; रंज, दु:ख; बला, कोप।
जस्त: ($फा.वि.)-कूदा हुआ।
जस्त: जस्त: ($फा.वि.)-कहीं-कहीं (विशेषत: पुस्तक पढऩे के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है)।
जस्त:रग ($फा.पु.)-सजग, सावधान, सतर्क; ख़्ाबरदार, होशियार।
जस्त ($फा.स्त्री.)-उछाल, कुदान, उत्फाल।
जस्तन ($फा.क्रि.)-उछलना, कूदना, छलाँग लगाना।
जस्तोख़्ोज़ ($फा.स्त्री.)-दौड़-धूप, कोशिश, प्रयत्न।
जस्र (अ़.पु.)-पुल, सेतु।
जस्व (अ़.पु.)-चट्टान।
जस्साम (अ़.वि.)-खोजी, अन्वेषक।
जस्सास (अ़.वि.)-चूना बेचनेवाला।
ज़ह ($फा.पु.)-वीर्य, नुत्$फ:; भ्रूण, जनीन; शिशु, बच्चा।
ज़ह$क ($फा.स्त्री.)-जंगल की हमवार या समतल ज़मीन।
जहद ($फा.क्रि.)-जान-बूझकर इन्कार करना।
ज़हदान ($फा.पु.)-बच्चादानी, गर्भाशय, जरायु, रहिम।
जहन्न्नम ($फा.पु.)-नरक, दोज़ख़्ा; बहुत ही दु:ख और कष्ट की जगह, दु:खदायी-स्थल।
जहन्नमज़ार ($फा.पु.)-ऐसा स्थान जहाँ चारों ओर नरक-जैसा भीषण और भयानक वातावरण हो।
जहन्नमी (अ़.$फा.वि.)-नारकीय, नारकी, नरकवासी; ऐसा कर्म करनेवाला जिसके फलस्वरूप उसे नरक में जाना पड़े।
ज़ह$फ (अ़.क्रि.)-रेंगना, घुटनों के बल चलना।
ज़हब (अ़.पु.)-स्वर्ण, कनक, सोना, कुन्दन।
ज़हर (अ़.पु.)-पीठ का दर्द; पीठ, पुश्त। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।  'विषÓ अथवा 'गरलÓ के अर्थ में यह उच्चारण $गलत है। उसके लिए देखें-'ज़ह्रïÓ, जिसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बनता है।
जहल: (अ़.पु.)-'जाहिलÓ का बहु., मूर्खगण, घामड़ लोग।
जहाँ ($फा.पु.)-'जहानÓ का लघु., दुनिया, संसार, विश्व, जगत्।
जहाँआरा ($फा.वि.)-संसार को शोभायमान करनेवाला, विश्व को सुशोभित करनेवाला।
जहाँआराई ($फा.स्त्री.)-संसार की शोभा, विश्व-छटा।
जहाँआफ्ऱीं ($फा.वि.)-सृष्टिकर्ता, संसार की उत्पत्ति करने वाला।
जहाँगर्द ($फा.वि.)-विश्वभ्रमी, दुनिया-भर में घूमनेवाला, संसार में फिरनेवाला, विश्व-पर्यटक।
जहाँगीर ($फा.वि.)-संसार को अपने वश में करनेवाला, विश्वविजयी।
जहाँगीरी ($फा.पु.)-संसार को अपने वश में करना; हकूमत, सत्ता, शासन; हाथों में पहनने का एक जड़ाऊ ज़ेवर।
जहाँ-जहाँ ($फा.अव्य.)-जगह-जगह; प्रचुर, बहुत अधिक; जिस-जिस स्थान पर।
जहाँ-तहाँ ($फा.अव्य.)-कहीं-कहीं; इधर-उधर; हर जगह, प्रत्येक स्थान पर; जगह-जगह।
जहाँदार ($फा.वि.)-राजा, नरेश, पृथ्वीपाल, सम्राट्, शासक, बादशाह।
जहाँदारी ($फा.स्त्री.)-शासन-कार्य, हकूमत, संसार की रखवाली।
जहाँदीद: ($फा.वि.)-दुनिया देखे हुए, बहुदर्शी, बृहदनुभवी, बड़ा अनुभवी और तज्रिबाकार।
जहाँपनाह ($फा.वि.)-विश्वपाल, संसार को अपनी शरण में लेनेवाला (राजाओं और बादशाहों के लिए सम्बोधन का शब्द)।
जहाँबान ($फा.पु.)-संसार का रक्षक, राजा, स्वामी।
जहाँबानी ($फा.स्त्री.)-शासन-कर्म, राज्य, हुकूमत, संसार की रक्षा।
जहाज़ (अ़.पु.)-समुद्र में इंजन से चलनेवाली बहुत बड़ी नाव, पोत, वहिल, जलयान।
जहाँजऱाँ (अ़.$फा.वि.)-पोतचालक, जहाज़ चलानेवाला।
जहाजऱानी (अ़.$फा.स्त्री.)-जहाज़ चलाने का काम या पेशा।
जहाज़ी (अ़.वि.)-जहाज़ से सम्बन्ध रखनेवाला; जहाज़ का; एक प्रकार की सुपारी।
जहाज़े आबी (अ़.$फा.पु.)-पानी में (पर) चलनेवाला जहाज़, जलयान, जलपोत।
जहाज़े कह्रïी (अ़.पु.)-समुद्र अर्थात् पानी में चलनेवाला जहाज़, जलयान, जलपोत।
जहाज़े हवाई (अ़.पु.)-हवा में उडऩेवाला जहाज़, वायुयान, विमान।
जहाद (अ़.पु.)-बिना घास का जंगल।
ज़हादत (अ़.स्त्री.)-इन्द्रिय-निग्रह, संयम, परहेजग़ारी, मनोनिग्रह, मुनिवृत्ति।
जहान ($फा.पु.)-जगत्, संसार, विश्व, दुनिया; लोक, अ़ालम।
जहानत (अ़.स्त्री.)-बुद्घि की कुशाग्रता, ज़ेह्न की तेज़ी, प्रतिभा; विवेक, दक्षता, समझ-बूझ; नई बात निकालने की शक्ति।
जहाने $फानी ($फा.अ़.पु.)-नष्ट हो जानेवाला संसार, नश्वर संसार, इहलोक, मृत्युलोक, दुनिया, जगत्।
जहाने बा$की ($फा.अ़.पु.)-नष्ट न होनेवाला संसार, शाश्वत संसार, नित्यलोक, परलोक, अमर दुनिया।
ज़हाब (अ़.पु.)-गमन करना, जाना, गुजऱना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़हाब (अ़.पु.)-सोता, स्रोत। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जहाम (अ़.पु.)-खाली बादल, ऐसे बादल जिनमें पानी न हो।
ज़हार: (अ़.पु.)-रज़ाई का ऊपरी कपड़ा।
जहालत (अ़.स्त्री.)-मूढ़ता, मूर्खता, बेवकू$फी; अज्ञानता, जड़ता, नादानी; निरक्षरता, अनपढ़ता, बेइल्मी; उद्दण्डता, अक्खड़पन; असभ्यता, बदतहज़ीबी।
जहिश (अ़.स्त्री.)-तबीअ़त, स्वभाव, प्रकृति।
ज़ही (अ़.वि.)-तुल्य, समान, बराबर।
ज़हीन (अ़.वि.)-जिसमें ज़हानत हो, प्रतिभावान्, कुशल, दक्ष।
जहीदन (अ़.क्रि.)-उछलना, कूदना।
ज़हीब (अ़.वि.)-स्वर्णिम, सुनहरा, सोने का।
ज़हीम (अ़.वि.)-टेढ़ी गर्दनवाला।
जहीम (अ़.स्त्री.)-नरक का छठा तल; बहुत तेज़ आग।
जहीर (अ़.वि.)-ज़ोर से बोलनेवाला, वह आदमी जिसका स्वर ऊँचा हो।
ज़हीर (अ़.वि.)-जिसकी पीठ में दर्द हो (यह शब्द एक-वचन भी है और बहुवचन भी); सहायता करनेवाला, सहायक, पृष्ठपोषक, मददगार। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
ज़हीर (अ़.वि.)-उज्ज्वल, रौशन; मुकुलित, प्रफुल्ल, खिला हुआ; कलियों से लदा हुआ पेड़। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना हुआ है।
ज़हीर (अ़.स्त्री.)-अतिसार, पेचिश, आँव, मरोड़। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
ज़हीरे काजि़ब (अ़.स्त्री.)-झूठी पेचिश।
ज़हीरे सादि$क (अ़.स्त्री.)-सच्ची पेचिश।
ज़हूक (अ़.वि.)-बहुत हँसनेवाला, हैसौड़ा; चौड़ा और खुला हुआ मार्ग, राजमार्ग, हाई-वे।
जहूद ($फा.पु.)-यहूदी; इजऱाइल देश का निवासी; शमी-जाति का व्यक्ति।
जहूदी ($फा.पु.)-यहूदी, हज्ऱत मूसा के अनुयायी।
जहूल (अ़.वि.)-निपट मूर्ख, एकदम बेव$कू$फ, बहुत बड़ा जाहिल।
ज़हूल ($फा.पु.)-वह कुआँ जिसमें थोड़ा पानी हो।
ज़हे नसीब ($फा.वा.)-अहोभाग्य।
ज़होज़ाद ($फा.पु.)-बीवी-बच्चे, स्त्री एवं सन्तान।
ज़ह्क़ ($फा.वि.)-शीघ्रगामी, द्रुतगामी, तेज़ चलनेवाला।
ज़ह्ज़ह: ($फा.क्रि.)-बुकऱ्ा उठाना, न$काब उलटना।
ज़ह्जाह ($फा.वि.)-सरदार, नायक, स्वामी।
जह्द (अ़.पु.)-प्रयत्न, प्रयास, कोशिश; शक्ति, ज़ोर; कष्ट, दु:ख, तक़्ली$फ।
ज़ह्द ($फा.क्रि.)-$गुस्सा करना, क्रोध करना।
जह्दुलब$का (अ़.पु.)-जीवन का असामंजस्य, जीवन का वैमनस्य।
जह्दे जहीद (अ़.पु.)-भरसक प्रयत्न, पूरी कोशिश।
ज़ह्$फ (अ़.क्रि.)-हल्का होना।
ज़ह्मत (अ़.स्त्री.)-तक़्ली$फ, कष्ट।
जह्मरश (अ़.स्त्री.)-कुरूप बुढिय़ा, बुरी सूरतवाली बूढ़ी अ़ौरत।
ज़ह्य: (अ़.स्त्री.)-$कुर्बानी की बकरी।
ज़ह्या (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री जिसे मासिक-धर्म न आता हो।
ज़ह्रï: ($फा.पु.)-पित्ता, पित्ताशय, वह थैली जिसमें पित्त (सफ्ऱा) रहता है; पित्त, सफ्ऱा; जीवट, साहस, हिम्मत; वीरता, बहादुरी।
ज़ह्रï:शिगा$फ ($फा.वि.)-पित्ता पानी कर देनेवाला; साहस या हिम्मत तुड़वा देनेवाला; भयानक, भयंकार, ज़ोरदार।
ज़ह्रï ($फा.पु.)-विष, गरल, हलाहल। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जह्रï (अ़.पु.)-ज़ोर की आवाज़, ऐसी आवाज़ जो पासवाला सुन सके, सुनाई देनेवाला स्वर, फुस्फुसाहट।
ज़ह्रïआगीं ($फा.वि.)-विषाक्त, विषैला, ज़हरीला।
ज़ह्रïआमेज़ ($फा.वि.)-ज़ह्र मिला हुआ, विष मिला हुआ, विष-मिश्रित, विषदुष्ट।
ज़ह्रïआलूद: [द] ($फा.वि.)-दे.-'ज़ह्रïआमेज़Ó।
ज़ह्रïख़्ांद ($फा.पु.)-झेंप-भरी की हँसी, खिसियानी हँसी।
ज़ह्रïख़्ाुरानी ($फा.स्त्री.)-विष खिलाना, किसी को मारने के लिए खाने आदि में मिलाकर विष देना।
ज़ह्रïख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-जिसने ज़ह्र अथवा विष खाया हो; जिसे विष दिया गया हो, विषपायी।
ज़ह्रïख़्ाूरी ($फा.स्त्री.)-विष खा लेना, ज़ह्र खाकर आत्महत्या करना, विषपान।
ज़ह्रïगिया ($फा.स्त्री.)-बछनाग नामक एक विषैली घास।
ज़ह्रïताब ($फा.वि.)-विषबुझा, ज़ह्र में बुझा हुआ; तीर-तलवार आदि जो विष में बुझे हों।
ज़ह्रïदार ($फा.वि.)-विषाक्त, विषैला, विष मिला हुआ; जिसके दाँत या डंक में ज़ह्र हो, विषैला कीड़ा।
ज़ह्रïदारू ($फा.स्त्री.)-विष अथवा ज़ह्र नाशक दवा, विष का असर दूर करनेवाली औषध, तिर्या$क, विषहर।
ज़ह्रïदुम ($फा.वि.)-जिसकी दुम अर्थात् पूँछ में विष हो, जैसे-बिच्छू, लूनविष, लूमविष, विषपुच्छ।
ज़ह्रïनवा ($फा.वि.)-कटुभाषी, बहुत-ही कड़वी बातें करने वाला।
ज़ह्रïनाक ($फा.वि.)-दे.-'ज़ह्रïआलूदÓ।
ज़ह्रïनोश ($फा.वि.)-विषपायी, ज़ह्र पीनेवाला; बहुत-ही तेज़ शराब पीनेवाला; किसी की कड़वी बातों को सहन करनेवाला।
ज़ह्रïनोशी ($फा.स्त्री.)-विष पीना; कड़वी बात को बरदाश्त करना।
ज़ह्रïबा ($फा.वि.)-(शत्रु को मारने के लिए) विष मिला हुआ खाना, विषाक्त भोजन।
ज़ह्रïबाद ($फा.पु.)-एक रोग जिसमें सारे शरीर में विष फैल जाता है।
ज़ह्रïमोहर: ($फा.पु.)-एक $कीमती पत्थर जो दवा में काम आता है; एक मनका जिससे विष उतारा जाता है।
ज़ह्रïा (अ़.वि.)-गौराँगना, गोरे रंग की स्त्री, गौरवर्णा; हज्ऱते $फातिमा की उपाधि, 'उज़ोह्रïाÓ भी शुद्घ है।
ज़ह्रïाब: ($फा.पु.)-दे.-'ज़ह्रïाबÓ।
ज़ह्रïाब ($फा.पु.)-(ज़हऱ+आब)-विषाक्त जल, विष मिला हुआ पानी, ज़ह्र का पानी, ज़हरीला पानी।
ज़ह्रïाबए $गम (अ़.$फा.पु.)-दे.-'ज़ह्रïाबे$गमÓ।
ज़ह्रïाबे $गम (ज़ह्रïाबए $गम) (अ़.$फा.पु.)-कष्ट रूपी विष का पानी।
ज़ह्रïे $कातिल (अ़.$फा.पु.)-ऐसा विष जो प्राणघातक हो, बहुत-ही तीव्र और प्रचण्ड विष।
ज़ह्रïे मार ($फा.पु.)-साँप के काटे का विष; साँप की थैली से निकाला हुआ विष, सर्पविष।
ज़ह्रïे हलाहिल ($फा.पु.)-दे.-'ज़ह्रïे $कातिलÓ।
जह्ल (अ़.पु.)-मूर्खता, बेव$कू$फी; अज्ञान, नासमझी; असभ्यता, उजड्डपन।
ज़ह्ल (अ़.पु.)-दुश्मनी, शत्रुता, द्वेष।
जह्ली (अ़.वि.)-आलसी, काहिल।
जह्ले बसीत (अ़.पु.)-किसी बात को सिरे से न जानना, निपट अपरिचित होना।
जह्ले मुत्ल$क (अ़.पु.)-दे.-'जह्ले बसीतÓ।
जह्ले मुरक्कब (अ़.पु.)-किसी बात को बिलकुल $गलत जानना और उस पर विश्वास रखना, जैसे-राँगे को चाँदी समझना और बताने पर भी न मानना।
ज़ह्व: (अ़.पु.)-पानी की हौज।
ज़ह्व (अ़.वि.)-एक प्रहर दिन।
जह्श (अ़.पु.)-अत्याचार, अनीति; क्रोध, $गुस्सा; घोड़े या गधे का बच्चा।
ज़ह्हाक: (अ़.वि.स्त्री.प्र.)-बहुत हँसनेवाली स्त्री।
ज़ह्हाक (अ़.पु.)-बहुत हँसनेवाला; ईरान का एक बहुत-ही अत्याचारी बादशाह जिसे $िफरीदूँ ने गिरफ़्तार किया था।
       

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