जि, जि़
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जि़ंज$फ (अ़.पु.)-तट, छोर, किनारा, हद, सीमा।जि़ंजार (अ़.पु.)-दे.-'ज़ंगारÓ।
जि़ंद: ($फा.वि.)-जीवित, जीता हुओ; नवीन, ताज़ा, जैसे-'जि़ंद:ख़्ाूनÓ।
जि़ंद:दरगोर ($फा.वि.)-जिसका जीवन मुर्दों-जैसा नीरस और व्यर्थ हो, जीवन्मृत।
जि़ंद:दार ($फा.वि.)-बहुत जागनेवाला।
जि़ंद:दाराने शब (अ़.$फा.वि.)-वह व्यक्ति जो रातों को जागते हैं, चौकीदार; रात में इबादत करनेवाले, धार्मिक-कृत्य के लिए रात्रि-जागरण करनेवाले।
जि़ंद:दिल ($फा.वि.)-हर पल प्रसन्न रहने और मज़ेदार बातें करनेवाला, विनोदरसिक।
जि़ंद:दिली ($फा.स्त्री.)-प्रसन्न रहने और मनोविनोद करने का भाव।
जि़ंद:पीर ($फा.पु.)-वह बुज़ुर्ग जो आदर और सम्मान के योग्य हो।
जि़ंद:पील ($फा.पु.)-बड़ा हाथी, नर हाथी।
जि़ंद:बशक्ले मुर्द: ($फा.वि.)-ऐसा व्यक्ति जो जीवित होते हुए भी मुर्दा यानी शव के समान हो; अत्यन्त दीन-दु:खी और कष्टग्रस्त, हतजीवित।
जि़ंद:बाद ($फा.वा.)-चिरंजीव हो, जीवित रहो; साधुवाद, शाबाश।
जि़ंद:बाश ($फा.वा.)-आयुष्मान् भव (हो), दीर्घायु हो, बड़ी उम्र मिले; शाबाश, धन्यवाद।
जि़ंदए जावेद ($फा.पु.)-जो सदा जीवित रहे, जो कभी न मरे, अनश्वर।
जि़ंदगानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'जि़ंदगीÓ।
जि़ंदगी ($फा.स्त्री.)-जीवन, प्राण, हयात।
जि़ंदगीबख़्श ($फा.वि.)-जीवन देनेवाला; जीवन बढ़ानेवाला।
जि़ंदाँ ($फा.पु.)-कारागार, कारागृह, कै़दख़्ााना।
जि़ंदाँख़्ाान: ($फा.पु.)-दे.-'जि़ंदाँÓ।
जि़ंदानी ($फा.वि.)-बंदी, कै़दी, कारावासी।
जि़ंदी$क (अ़.वि.)-ईश्वर को न माननेवाला, नास्तिक, लामज़हब; अग्निपूजक, आतशपरस्त; जऱदुस्त का अनुयायी।
जिंस (अ़.स्त्री.)-वस्तु, पदार्थ, चीज़; अन्न, $गल्ला; जाति।
जिंसख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-अनाज आदि रखने का कोठा, मोदीख़्ााना।
जिंसवार (अ़.$फा.स्त्री.)-पटवारी का वह का$गज़ जिसमें बोई हुई जिंस का ब्योरा होता है।
जिंसी (अ़.वि.)-जिंस से सम्बन्ध रखनेवाला (वाली)।
जिंसीयत (अ़.स्त्री.)-लिंगता, नर या मादा होना; जातियता, $कौमियत।
जिंसे कासिद (अ़.स्त्री.)-ऐसी खोटी वस्तु जो बाज़ार में न बिके।
जिंस ेनाकार: (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जिंसे कासिदÓ।
जिंसे ना$िकस (अ़.स्त्री.)-दे.-'जिंसे कासिदÓ।
जि़क़ [क़्क़] (अ़.स्त्री.)-पानी भरने के लिए ख़्ााल या चमड़े का बना एक पात्र, परवाल, मश्क, भस्त्री।
जि़क़्क़ी (अ़.वि.)-पानी की मश्क-जैसा; जलंधर रोग का एक प्रकार जिसमें सारा शरीर सूज जाता है।
जि़क्र (अ़.पु.)-चर्चा, तजि़्कर:; एक प्रकार का तप।
जि़क्रे अर्र: (अ़.पु.)-योग में एक जप जो ज़बान और सीने से होता है।
जि़क्रे ख़्ा$फी (अ़.पु.)-ऐसा जप जो मन से किया जाए, उपांशु।
जि़क्रे ख़्ौर (अ़.पु.)-शुभ-चर्चा, अच्छा जि़क्र, किसी बड़े व्यक्ति की याद और उसकी चर्चा।
जि़क्रख़्वाँ (अ़.पु.)-जि़क्र करनेवाला; ईश्वर का गुणगान करनेवाला।
जि़क्रे गैऱ (अ़.पु.)-अन्य-चर्चा, दूसरा जि़क्र, र$कीब या प्रतिद्वंद्वी की चर्चा।
जि़क्रे जहर (अ़.पु.)-ऐसा जप जो ध्वनित हो, जो आवाज़ के साथ हो।
जि़क्रे हबीब (अ़.पु.)-प्रेमी का वर्णन, दोस्त का जि़क्र।
जि़ख़्ाार (अ़.पु.)-कठोरता; तेज़ स्वर, आवाज़, नारा।
जि़ख़्ाुदरफ़्त: (अ़.वि.)-खोया हुआ।
जिग़न (अ़.स्त्री.)-वैर, द्वेष, शत्रुता।
जिगर ($फा.वि.)-शरीर का एक विशेष अवयव, यकृत; साहस, हिम्मत।
जिगरअफ्ग़ार ($फा.वि.)-दे.-'जिगर$िफगारÓ।
जिगरकावी ($फा.स्त्री.)-कड़ा परिश्रम, सख़्त मेहनत।
जिगरख़्ाराश ($फा.वि.)-बहुत अधिक दु:ख देनेवाला, हृदय-विदारक।
जिगरख़्वार: ($फा.वि.)-जिगर को खानेवाला, दु:ख देनेवाला।
जिगरख़्वार ($फा.वि.)-दे.-'जिगरख़्वार:Ó।
जिगरख़्वारी ($फा.स्त्री.)-जिगर को खाना, दु:ख, शोक।
जिगरगोश: ($फा.पु.)-जिगर का टुकड़ा अर्थात् पुत्र, बेटा।
जिगरचाक ($फा.वि.)-जिसका कलेजा फटा हो।
जिगरताब ($फा.वि.)-जिगर को गर्म करनेवाला।
जिगरताबी ($फा.स्त्री.)-कलेजा गर्म करना।
जिगरदारी ($फा.स्त्री.)-वीरता, बहादुरी, ता$कतवरी।
जिगरदोज़ ($फा.वि.)-दे.-'जिगरख़्ाराशÓ।
जिगरपार: ($फा.पु.)-दे.-'जिगरगोश:Ó।
जिगर$िफगार ($फा.वि.)-भग्न-हृदय, जिसका हृदय टुड़े-टुकड़े हो, अत्यधिक दु:खी।
जिगरबंद ($फा.पु.)-दे.-'जिगरगोश:Ó।
जिगरसा ($फा.वि.)-जिगर को छीलनेवाला, कष्ट देनेवाला।
जिगरसोख़्त: ($फा.वि.)-दिल जला, जिसका हृदय शोक की आग में जल गया हो, भृष्ट-हृदय, दग्ध-हृदय।
जिगरसोख़्तगी ($फा.स्त्री.)-हृदय का दग्ध होना।
जिगरसोज़ ($फा.वि.)-हृदयदाही, दु:खदायी; सहानुभूति करनेवाला।
जिगरसोज़ी ($फा.स्त्री.)-हृदय जलाना, $गम उठाना; सहानुभूति करना।
जिगरी ($फा.वि.)-हार्दिक, दिली; घनिष्ठ, गहरा; जिगर के रंग का, गहरा लाल।
जिगी जिगी ($फा.स्त्री.)-आश्चर्य, प्रसन्नता अथवा शोक प्रकट करना।
जिज़बिज़ ($फा.वि.)-रुष्ट, अप्रसन्न, नाराज़।
जिज़म: ($फा.पु.)-कशा, कोड़ा।
जिज़ाज ($फा.पु.)-बदी, बुराई; एक स$फेद गोंद।
जि़जि़ह ($फा.स्त्री.)-अलगनी।
जिज़्अ़ ($फा.स्त्री.)-कड़ी।
जिज़्म ($फा.स्त्री.)-आधारशिला, नींव, बुनियाद।
जिज़्मार ($फा.पु.)-नींव, आधार।
जिज़्य: (अ़.पु.)-एक टैक्स जो हिन्दुस्तान में कुछ मुसलमान शासकों ने हिन्दुओं से लिया था और जो तीन से बारह रुपए प्रतिवर्ष लगता था, धर्म-कर।
जिद (अ़.स्त्री.)-प्रयास, पराक्रम, कोशिश।
जि़द [द्द] (अ़.स्त्री.)-अड़, हठ; विपरीत, विरुद्घ, उलटा; वैमनस्य, रंजिश।
जि़दा ($फा.प्रत्य.)-शुद्घ करनेवाला।
जि़दाइद: ($फा.वि.)-परिमार्जित करनेवाला, सा$फ करनेवाला।
जि़दाइश ($फा.स्त्री.)-परिमार्जन, स$फाई, चमक-दमक।
जि़दूद: ($फा.वि.)-परिमार्जित, सा$फ किया हुआ, माँजा हुआ, चमकाया हुआ।
जि़दूदनी ($फा.वि.)-परिमार्जनीय, माँजकर सा$फ करने के योग्य।
जिदार (अ़.स्त्री.)-भीत, भित्त, दीवार।
जिदाल (अ़.पु.)-युद्घ, लड़ाई; वाद-विवाद, बहस।
जिदालौ$िकताल (अ़.पु.)-लड़ाई और रक्तपात, ख़्ाून-ख़्ाराबी।
जिद्द: (अ़.पु.)-अऱब का एक नगर जो प्रसिद्घ बंदरगाह है; जिद्दत।
जिद्दत (अ़.स्त्री.)-अनोखापन, अद्भुतता; नवीनता, नयापन; ईज़ाद, आविष्कार।
जिद्दतआमेज़ (अ़.$फा.वि.)-वह बात जिसमें जिद्दत हो।
जिद्दततराज़ (अ़.$फा.वि.)-जिद्दत पैदा करनेवाला, नई-नई बातें निकालनेवाला, आविष्कारक।
जिद्दततराज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-नई-नई बातें निकालना, आविष्कार।
जिद्दतपसंद (अ़.$फा.वि.)-जिसे हर बात में जिद्दत अच्छी लगती हो।
जिद्दतपसंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-हर बात में जिद्दत अच्छी लगना।
जिद्दत मअ़ाब (अ़.वि.)-दे.-'जिद्दततराज़Ó।
जिद्दन (अ़.वि.)-प्रयास से, कोशिश करके।
जि़द्दन (अ़.वि.)-अड़ के कारण, हठ से, हठ के कारण।
जि़द्दी (अ़.वि.)-अड़ या हठ करनेवाला, हठी, आग्रही; जो बात ठान ले या कह दे उसी पर अड़ जानेवाला।
जि़द्दैन (अ़.पु.)-दो परस्पर विरोधी चीजें़, जैसे-आग और पानी।
जिद्दोजहद (अ़.स्त्री.)-पराक्रम और प्रयास, दौड़-धूप।
जिन [न्न] (अ़.पु.)-एक प्राणी, जिसकी उत्पत्ति अग्नि से मानी जाती है और वह दिखाई नहीं पड़ता।
जिनाँ (अ़.स्त्री.)-'जिनानÓ का लघु., दे.-'जिनानÓ।
जिऩाँ (अ़.पु.)-व्यभिचार, परायी स्त्री या पराये पुरुष के पास जाना।
जिऩाक (अ़.वि.)-जिसके चूतड़ मोटे हों।
जिऩाकार (अ़.$फा.वि.)-परायी औरत के पास जानेवाला, व्यभिचारी; पराये पुरुष से सम्बन्ध रखनेवाली, व्यभिचारिणी।
जिऩाकारी (अ़.$फा.स्त्री.)-व्यभिचार, जारकर्म, हरामकारी।
जिनाज़: (अ़.पु.)-दे.-'जनाज़:Ó, दोनों शुद्घ हैं मगर उर्दू में 'जनाज़:Ó ही प्रचलित है।
जिनान (अ़.स्त्री.)-'जन्नतÓ का बहु., , जन्नतें; बा$ग-समूह (उर्दू में एकवचन के रूप में व्यवहृत)।
जिनायत (अ़.स्त्री.)-अपराध, गुनाह, पाप, पातक।
जिनायात (अ़.स्त्री.)-'जिनायतÓ का बहु., बहुत से पाप या अपराध।
जिनास (अ़.क्रि.)-गद्य और पद्य में तुक मिलाना, तुकबन्दी करना।
जिन्न: (अ़.पु.)-'जिनÓ का बहु., जिनों का समूह; जिनों की जाति।
जि़न्नत (अ़.स्त्री.)-आरोप, लाँछन, तोहमत।
जिन्नात (अ़.पु.)-'जिनÓ का बहु., बहुत से जिन, जिनों की जाति।
जिन्नी (अ़.पु.)-जिन का, जिन-सम्बन्धी; एक जिन।
जि़न्यान (अ़.स्त्री.)-अजवाइन।
जिऩ्हार ($फा.स्त्री.)-शरण, त्राण, पनाह। (अव्य.)-कदापि, हरगिज़।
जिऩ्हारख़्वार ($फा.वि.)-प्रतिज्ञा भंग करनेवाला, वचन-भंजक, वाÓदा शिकन।
जिऩ्हारख़्वाह ($फा.वि.)-पनाह या रक्षा चाहनेवाला, त्राण चाहनेवाला, शरणार्थी।
जिऩ्हारी ($फा.वि.)-त्राण चाहनेवाला, शरणागत; प्रतिज्ञा करनेवाला।
जि़$फा$फ (अ़.पु.)-दुल्हन को दूल्हा के घर भेजना; दूल्हा का दुल्हन से पहली बार मिलना।
जिफ़़्त ($फा.स्त्री.)-चीड़ का गोंद, राल।
जिफ़़्देÓ (अ़.पु.)-मेंढक, मंडूक, दुर्दुर, भेक।
जि़बस ($फा.वि.)-अधिक, बहुत।
जि़बा (अ़.पु.)-'ज़बीÓ का बहु., मृगों या हिरनों का समूह।
जि़बाब (अ़.स्त्री.)-'ज़बÓ का बहु., गोहें।
जिबायत (अ़.स्त्री.)-धन एकत्र करना; कर या टैक्स इकट्ठा करना।
जिबाल (अ़.पु.)-'जबलÓ का बहु., पर्वतमाला, अनेक पहाड़।
जिबाले रासियात (अ़.पु.)-ऊँचे-ऊँचे और बड़े-बड़े पहाड़।
जिबाह (अ़.स्त्री.)-'जब्हÓ का बहु., माथे, ललाट।
जिबिल (अ़.स्त्री.)-आदत, स्वभाव, प्रकृति।
जिबिल्लत (अ़.स्त्री.)-प्रकृति, स्वभाव, आदत, नेचर।
जिबिल्ली (अ़.वि.)-प्राकृतिक, स्वाभाविक, नेचुरल।
जिब्त (अ़.पु.)-हर वह चीज़ ईश्वर के अतिरिक्त जिसकी पूजा हो।
जि़ब्नी (अ़.पु.)-नरक का पात्र, नारकीय व्यक्ति।
जि़ब्र: (अ़.स्त्री.)-एक पुस्तक; एक पत्र।
जि़ब्र (अ़.स्त्री.)-पुस्तक, किताब।
जि़ब्रिक़ान (अ़.पु.)-सम्पूर्ण चन्द्र, पूरा चाँद, राकेश, सकलेंदु।
जिब्रील (अ़.पु.)-एक $िफरिश्ता या देवदूत जो पै$गम्बरों और अवतारों के पास ईश्वर का आदेश पहुँचाया करता था।
जि़ब्ल (अ़.पु.)-घोड़े या गधे की लीद।
जिब्स (अ़.पु.)-चूना।
जि़ब्ह (अ़.वि.)-वधित, जिसका वध किया गया हो, जो ज़ब्ह किया गया हो।
जि़ब्हे अक्बर (अ़.पु.)-वह दुम्बा जो हज्ऱत इस्माईल के बदले ज़ब्ह हुआ।
जि़ब्हे अज़़ीम (अ़.पु.)-हज्ऱत इमाम हुसैन की शहादत।
जिमाअ़ (अ़.पु.)-संभोग, मैथुन, स्त्री-प्रसंग, मुबाशरत।
जिमाउलइस्म (अ़.पु.)-मद्यपान, शराबनोशी, मदिरापान।
जिमाद (अ़.पु.)-'जुम्दÓ का बहु., ऊँची और कठोर भूमि।
जि़माद (अ़.पु.)-प्रलेप, अंग-विशेष पर दवा का लेप।
जि़माम (अ़.पु.)-प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; स्वत्व, ह$क। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जि़माम (अ़.स्त्री.)-नकेल, विशेषत: ऊँट की नकेल। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जि़मामे हुकूमत (अ़.स्त्री.)-शासन की बा$गडोर, शासनसूत्र।
जि़मार (अ़.पु.)-खोया हुआ माल, जिसके मिलने की आशा न हो।
जिमार (अ़.स्त्री.)-'जम्र:Ó का बहु., अनेक कंकर, कंकरियाँ; हज की एक प्रथा जिसमें शैतान को कंकरियाँ मारते हैं।
जिमाल (अ़.पु.)-'जमलÓ का बहु., बहुत से ऊँट, अनेक ऊँट।
जि़म्की (अ़.पु.)-पूँछ की जड़।
जि़म्न (अ़.पु.)-अंतर्गत, अन्दर; प्रसंग, बात का सिलसिला, विषय।
जि़म्नन (अ़.वि.)-किसी प्रसंग में आई हुई चर्चा।
जि़म्नी (अ़.वि.)-किसी मुख्य विषय के अंतर्गत वाला; जो महत्त्वपूर्ण न हो, गौण।
जि़म्म: (अ़.पु.)-उत्तरदायित्व, जि़म्मेदारी; भूति, जमानत।
जि़म्म:दार (अ़.$फा.वि.)-उत्तरदायी, जवाबदेह; प्रतिभू, ज़ामिन; जि़म्मेदारी महसूस करनेवाला।
जि़म्म:दारान: (अ़.वि.)-जि़म्मेदार-जैसा; जि़म्मेदारी के साथ।
जि़म्म:दारी (अ़.$फा.स्त्री.)-उत्तरदायित्व, जवाबदेही; प्रतिभूति, ज़मानत; कार्यभार, दायित्व।
जि़म्मत (अ़.स्त्री.)-प्रतिज्ञा, इक्ऱार; प्रतिभूति, ज़मानत।
जि़म्मी (अ़.पु.)-इस्लामी राज्य में गैऱ-मुस्लिम नागरिक।
जिय़ाँ ($फा.पु.)-हानि, अनिष्ट, जऱर, टोटा, क्षति, घाटा। इसकी 'जि़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बनी है।
जिय़ाँ ($फा.वि.)-फाड़ खानेवाला, हिंसक, व्याघ्र। इसकी 'जि़Ó उर्दू के 'बड़े ज़ेÓ से बनी है।
जिय़ाँ आवर ($फा.वि.)-हानिकारक, नुक़्सानदेय।
जिय़ाँकार ($फा.वि.)-घाटा पहुँचानेवाला, टोटा देनेवाला, क्षति पहुँचानेवाला; कदाचारी, बदआÓमाल, बुरे और नीच कर्म करनेवाला।
जिय़ाँकारी ($फा.स्त्री.)-घाटा देना, क्षति करना, टोटा देना; कदाचार, बदआÓमाली, नीच व दुष्ट-कर्म।
जिय़ा (अ़.स्त्री.)-प्रकाश, ज्योति, आभा; सूर्य का प्रकाश।
जिय़ा अफ्ऱोज़ (अ़.वि.)-दे.-'जिय़ापाशÓ।
जिय़ागुस्तर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जिय़ापाशÓ।
जिय़ागुस्तरी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जिय़ापाशीÓ।
जिय़ाद: (अ़.वि.)-अधित, प्रचुर, बहुत; अतिरिक्त, $फालतू।
जिय़ाद:ख़्ाोर (अ़.$फा.वि.)-अत्यधिक खानेवाला, पेटू, बहुभक्षी, पिंडीशूर।
जिय़ाद:गो (अ़.$फा.वि.)-बहुत बातें बनानेवाला, बहुत बोलनेवाला, मुखर, वाचाल; मिथ्यावादी, गप्पी।
जिय़ाद:गोई (अ़.$फा.स्त्री.)-बहुत बातें करना; गप हाँकना।
जिय़ाद:तर (अ़.$फा.वि.)-अधिकतर, बहुधा, अक्सर।
जिय़ाद:तलबी (अ़.$फा.स्त्री.)-अपने भाग या हिस्से से अधिक माँगना, अपने हिसाब से अधिक माँगना।
जिय़ाद:सरी (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वच्छन्दता, अपनी ही मर्जी का स्वामी, ख़्ाुदराई; अभिमान, घमण्ड।
जिय़ाद:सितानी (अ़.$फा.स्त्री.)-अपने भाग या हिस्से से अधिक ले लेना।
जिय़ाद (अ़.पु.)-अधिक, बहुत; 'इब्ने जिय़ादÓ इमाम हुसैन का $कातिल।
जिय़ादत (अ़.स्त्री.)-अधिकता, बहुतायत।
जिय़ादती (अ़.स्त्री.)-अधिकता; अत्याचार, अनीति; हठधर्मी।
जिय़ापाश (अ़.$फा.वि.)-प्रकाश फैैलानेवाला।
जिय़ापाशी (अ़.$फा.स्त्री.)-प्रकाश फैलाना।
जिय़ा$फत (अ़.स्त्री.)-आतिथ्य-सत्कार, अतिथि-पूजा, मेह्मादारी; प्रतिभोज, दावत।
जिय़ा$फतख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-मेह्मानों या अतिथियों भोजनशाला।
जिय़ा$िफशाँ (अ़.वि.)-दे.-'जिय़ापाशÓ।
जिय़ा$िफशानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'जिय़ापाशीÓ।
जिय़ाबार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'जिय़ापाशÓ।
जिय़ाबारी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'जिय़ापाशीÓ।
जिय़ाबीतुस (अ़.पु.)-एक रोग जिसमें पेशाब बहुत आता है, बहुमूत्र।
जिय़ारत (अ़.स्त्री.)-दर्शन, दीदार; तीर्थयात्रा, तीर्थाटन, किसी धर्म-स्थल या बुज़ुर्ग आदि के मज़ार के दर्शनार्थ यात्रा; किसी बुज़ुर्ग का रौज़ा या मक़्बरा आदि।
जिय़ारतकद: (अ़.$फा.पु.)-दे.-'जिय़ारतगाहÓ।
जिय़ारतगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसी जगह जहाँ किसी ब़ज़ुर्ग का मज़ार (मक़्बरा) या उसके तबर्रुकात (वे चीजें़ जिनमें बरकत होने का विश्वास हो, आस्था की वस्तुएँ; वे चीजें़ जो किसी महात्मा या दरवेश से मिलें; वह प्रसाद जो किसी ब़ज़ुर्ग आदि की $फातहा का हो) हों।
जिय़ारती (अ़.$फा.पु.)-तीर्थयात्री, दर्शनार्थी।
जिय़ाह (अ़.पु.)-पानी मिला हुआ दूध।
जिऱ (अ़.पु.)-पहली पत्नी की उपस्थिति में दूसरा विवाह।
जिरह (अ़.पु.)-वह प्रश्न जो एक पक्ष दूसरे पक्ष से सच्चाई जानने हेतु करे; ज़ख़्म, घाव।
जिऱाअ़ (अ़.पु.)-एक हाथ की नाप; सातवाँ नक्षत्र, पुनर्वसु।
जिऱाअ़त (अ़.स्त्री.)-खेती, कृषि, काश्तकारी।
जि़अ़ारतपेश: (अ़.$फा.वि.)-कृषि करनेवाला, कृषक, किसान।
जिऱाअ़ती (अ़.वि.)-खेती सम्बन्धी, कृषि सम्बन्धी; खेती के मुताबिक; खेती या कृषि का।
जिऱात (अ़.पु.)-मार्ग, पथ, रास्ता।
जिऱा$फतन (अ़.पु.)-हँसी-मज़ा$क में, दिल्लगी में।
जिऱाब (अ़.पु.)-नर का मादा पर चढऩा।जिऱार (अ़.पु.)-परस्पर नुक़्सान पहुँचाना, एक-दूसरे को हानि पहुँचाना; मक्के की एक मस्जिद जिसमें मुहम्मद साहब के शत्रु बैठकर परामर्श करते थे।
जिराहत (अ़.स्त्री.)-घाव, ज़ख़्म, आघात; चीर-फाड़, शल्यक्रिया। दे.-'जराहतÓ।
जि़रिश्क ($फा.स्त्री.)-एक खट्टा फल जो चने के बराबर होता है और सुखाकर दवाई में प्रयोग किया जाता है।
जि़रिह ($फा.स्त्री.)-लोहे की ज़ंजीरों का एक विशेष पहनावा जो युद्घ में पहना जाता है, कवच, अंगरक्ष।
जि़रिहपोश ($फा.वि.)-जो जि़रिह पहने हो, कवचधारी।
जि़रिहबा$फ ($फा.वि.)-जि़रिह बनानेवाला, कवच बनानेवाला, कवचकार।
जि़रिहसाज़ ($फा.वि.)-दे.-'जि़रिहबा$फÓ।
जि़$र्गाम (अ़.पु.)-शेर, सिंह, व्याघ्र।
जिज़ऱ्ीक (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की तोप।
जिर्ऩीख़्ा (अ़.स्त्री.)-हरताल, हड़ताल, हरिताल, कांचनक। दं.-'जर्ऩीख़्ाÓ, दोनों शुद्घ हैं।
जि़$र्फीन (अ़.पु.)-शृंखला, ज़ंजीर; दरवाज़े की साँकल या ज़ंजीर। दे.-'ज़ु$र्फीनÓ, दोनों शुद्घ हैं।
जिर्म (अ़.पु.)-पिण्ड, देह (इस शब्द का प्रयोग अधिकतर आकाशीय अथवा जड़ पदार्थों के लिए होता है)।
जिर्यान (अ़.पु.)-शुक्र-प्रमेह, पेशाव के साथ मनी या धातु आदि आने का रोग, मूत्र-शुक्र। (शुद्घ उच्चारण 'जरयानÓ है मगर उर्दू में अधिकतर 'जिर्यानÓ ही प्रयोग करते हैं)।
जिर्र: (अ़.स्त्री.)-पशुओं की जुगाली।
जिऱ (अ़.स्त्री.)-बटन, घुण्डी।
जि़र्व: (अ़.पु.)-शृंग, चोटी, शिखर; ऊँचा स्थान।
जि़र्स (अ़.स्त्री.)-दाढ़, डाढ़, बड़ा दाँत, जंभ, दाडक।
जि़ल (अ़.पु.)-साया, छाया, परछाईं।
जिला (अ़.स्त्री.)-चमक, आभा, प्रभा; सै$कल, बर्तनों या हथियारों की चमक।
जि़ला (अ़.पु.)-जनपद, मण्डल, राज्य अथवा प्रान्त का एक भाग जो कलक्टर के अधीन होता है; पाश्र्वास्थि, पसली।
जिलादार (अ़.$फा.वि.)-आभायुक्त, चमकदार, जिस पर सै$कल या पॉलिश हो।
जि़लाम (अ़.स्त्री.)-'ज़ुल्मतÓ का बहु., अँधेरे।
जिलिंग (अ़.स्त्री.)-झंकार।
जि़लेबा ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ मिठाई, बड़ी जलेबी।
जिलौ (तु.पु.)-कोतल घोड़ा, जो सरदारों और राजाओं की सवारी में काम आता है; लगाम, कविका।
जिलौख़्ाान: (तु.$फा.पु.)-अस्तबल, अश्वशाला।
जिलौदार (तु.$फा.पु.)-अच्छे घोड़े का मालिक, श्रेष्ठ अश्व का मालिक।
जिलौरेज़ (अ़.$फा.वि.)-तेज़ घोड़ा दौड़ानेवाला, सरपट जानेवाला।
जि़ल्अ़ (अ़.पु.)-पसली, पाश्र्वास्थि; जनपद, मण्डल, जि़ला। (इस शब्द का उच्चारण 'जि़लाÓ भी है)।
जि़ल्अ़दार (अ़.पु.)-नगर अधीक्षक, मण्डल या जनपद का अधिकारी।
जि़ल्अ़दारी (अ़.स्त्री.)-नगर अधीक्षक का पद, मण्डलाधिकारी का पद, जि़ला अधिकारी का पद।
जि़ल$काÓद: (अ़.पु.)-इस्लामी ग्यारहवाँ महीना।
जि़ल्ज़ाल (अ़.पु.)-हिलाना, कँपाना, हिलाना-डुलाना।
जिल्द (अ़.स्त्री.)-त्वचा, त्वक्, शरीर की ऊपरी खाल; पुस्तक की एक प्रति, जैसे-'अमुक पुस्तक की चार जिल्देंÓ; पुस्तक पर चढ़ा हुआ कपड़ा आदि, जुज़बंदी; किसी बड़ी पुस्तक का एक भाग, ग्रंथ-खण्ड।
जिल्दसाज़ (अ़.$फा.पु.)-पुस्तकों की जिल्दें बाँधनेवाला।
जिल्दसाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-पुस्तकों की जिल्दें बाँधने या बनाने का काम।
जिल्दौ (तु.पु.)-पुरस्कार, इन्अ़ाम, बख़्िशश।
जिल्$फ (अ़.वि.)-पोला, खोखला, छूँछा, जो अन्दर से खाली हो; खोखला आदमी, ओछा व्यक्ति।
जि़ल्$फ (अ़.पु.)-खुर, गाय-भैंस आदि के पैर का तलुवा।
जिल्बाब (अ़.स्त्री.)-चादर, प्रच्छादन।
जि़ल्लत (अ़.स्त्री.)-तिरस्कार, अपमान, अनादर, ख़्वारी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
जि़ल्लत (अ़.स्त्री.)-पतन, चूक, त्रुटि, भूल; पाप, गुनाह; लग्ज़िश, फिसलने की क्रिया। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जि़ल्लत (अ़.स्त्री.)-भटकाव, मार्गभं्रश, गुमराही, रास्ता भूल जाना; पातक, पाप, गुनाह। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
जि़ल्लत आमेज़ (अ़.$फा.वि.)-जि़ल्लत से भरा हुआ, अपमानजनक, तिरस्कारयुक्त।
जि़ल्लील (अ़.पु.)-भटका हुआ, पथभ्रष्ट, गुमराह।
जि़ल्लुल्लाह (अ़.पु.)-ईश्वर की छाया, अच्छा शासक।
जि़ल्लुहा (अ़.स्त्री.)-उस स्त्री की छाया।
जि़ल्लुहू (अ़.स्त्री.)-उस पुरुष की छाया।
जि़ल्लुहुम (अ़.स्त्री.)-उन पुरुषों की छाया।
जि़ल्ले अ़ाति$फत (अ़.पु.)-छत्रछाया, ज़ेरेसाया।
जि़ल्ले इनायत (अ़.पु.)-दे.-'जि़ल्ले अ़ाति$फतÓ।
जि़ल्ले इलाही (अ़.पु.)-दे-'जि़ल्लुल्लाहÓ।
जि़ल्ले ज़मीं (अ़.$फा.पु.)-रात, रात्रि, निशा।
जि़ल्ले जलील (अ़.पु.)-लम्बी छाँव।
जि़ल्ले सुब्हानी (अ़.पु.)-दे.-'जि़ल्लुल्लाहÓ।
जि़ल्ले ह$क (अ़.पु.)-ईश्वर की छाया, भगवान् की कृपा।
जि़ल्ले हिमायत (अ़.पु.)-दे.-'जि़ल्ले अ़ाति$फतÓ।
जि़ल्ले हुमा (अ़.$फा.पु.)-हुमा पक्षी की छाया या परछाईं (कहा जाता है कि हुमा पक्षी की परछाईं जिस व्यक्त पर पड़ जाती है वह राजा बन जाता है)।
जिल्व: (अ़.पु.)-सही और शुद्घ उच्चारण यही है मगर उर्दू में 'जल्व:Ó प्रयुक्त किया जाता है, दे.-'जल्व:Ó।
जिल्वाज़ (अ़.पु.)-कोतवाली का सिपाही।
जिल्स (अ़.पु.)-अथिति, मेहमान, मित्र, दोस्त।
जि़ल्हिज्ज: (अ़.पु.)-इस्लामी बरहवाँ महीना।
जि़वाज (अ़.पु.)-निकाह, विवाह।
जिवार (अ़.पु.)-इस शब्द का उच्चारण 'जवारÓ अशुद्घ और $गलत है, 'जिवारÓ या 'जुवारÓ शुद्घ है; पड़ोस, प्रतिवास, हमसायगी; आसपास, चारों ओर।
जि़श्त ($फा.वि.)-बुरा, ख़्ाराब, निकृष्ट।
जि़श्तअ़ामाल (अ़.$फा.वि.)-कदाचारी, दुराचारी, बदअ़ामाल।
जि़श्तकार ($फा.वि.)-दे.-'जि़श्तअ़ामालÓ।
जि़श्तख़्ाू ($फा.वि.)-दु:स्वभाव, बुरी अ़ादतोंवाला, दुष्प्रकृति; दु:शील, कुशाल, बदअख़्ला$क।
जि़श्त ख़्ाूई ($फा.स्त्री.)-बुरी अ़ादतें, दु:शीलता।
जि़श्तरू ($फा.वि.)-कुरूप, कदाकृति, कुदर्शन, बुरी शक्लवाला।
जि़श्तरूई ($फा.स्त्री.)-कुरूपता, बदशक्ली।
जि़श्तिएकार ($फा.स्त्री.)-पाप, पातक, गुनाह, कर्मों की निकृष्टता।
जि़श्ती ($फा.वि.)-कुरूपता, बदशक्ली; निकृष्टता, ख़्ाराबी।
जिस [स्स] (अ़.पु.)-चूना, गच।
जिस्म (अ़.पु.)-देह, शरीर, काया; स्थूलता, घनत्व, लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई।
जिस्मानी (अ़.वि.)-शारीरिक, बदनी; शरीर-सम्बन्धी, जिस्मी।
जिस्मानीयत (अ़.स्त्री.)-लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई या गहराई तथा ऊँचाई, स्थूलता, घनत्व।
जिस्मी (अ़.वि.)-दैहिक, शारीरिक, जिस्मानी।
जिस्मीयत (अ़.स्त्री.)-घनत्व, स्थूलता, लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई या गहराई आदि।
जिस्मेख़्ााकी (अ़.$फा.पु.)-ख़्ााक यानी मिट्टी का बना हुआ शरीर, नश्वर देह, मानव-शरीर।
जिस्मे ताÓलीमी (अ़.पु.)-लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई या गहराई, घनत्व, स्थूलता।
जिस्मे$फानी (अ़.पु.)-नश्वर शरीर, मिट जानेवाली देह, मानवदेह।
जिस्र (अ़.पु.)-पुल, सेतु।
जि़ह ($फा.स्त्री.)-धनुष का किनारा, चिल्ला (आक); साधु, धन्य, वाह।
जि़हगीर ($फा.स्त्री.)-अंगुलित्राण, वह अंगूँठी जो तीर चलाले समय उँगली की रक्षा के लिए पहनी जाती है।
जिहत (अ़.स्त्री.)-कारण, हेतु, सबब; दिशा, ओर, तर$फ।
जिहाँ (अ़.वि.)-उछलनेवाला, कूदनेवाला।
जिहाज़ (अ़.पु.)-शादी का दहेज; मृतक का सामान, क$फन आदि; यात्रा की सामग्री, पाथेय।
जिहात (अ़.स्त्री.)-'जिहतÓ का बहु., दिशाएँ, सिम्तें; कारण-समूह, वज्हें।
जिहाद (अ़.पु.)-धर्मयुद्घ, धर्म के लिए विधर्मियों से युद्घ।
जिहादे अक्बर (अ़.पु.)-बड़ा जिहाद, इन्द्रियों का दमन।
जिहादे अस्गऱ (अ़.पु.)-छोटा जिहाद, धर्मयुद्घ।
जि़हा$फ (अ.पु.)- कमी, न्यूनता; छन्द के गणों में से मात्राओं की कमी।
जि़हाब (अ.पु.)- प्रस्थान करना, जाना, रवाना होना। दे.- 'ज़हाबÓ, दोनों शुद्घ हैं।
जि़हाम (अ.पु.)- जनसमूह, भीड़; अधिकता, बहुतायत।
जि़हार (अ.पु.)- पुरुष का स्त्री से यह कहना कि तू मेरे लिए माँ की पीठ है, ऐसा जिस स्त्री से कहा जाता है वह विवाह से विछिन्न हो जाती है। नोट- इसका 'जि़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
जि़हार (अ.पु.)- पेडू, कटिप्रदेश, उपस्थ। नोट- इसका 'जि़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
जिहिंद: ($फा.वि.)- कूदनेवाला, उछलनेवाला।
जि़हे ($फा.अव्य.)- क्या ख़्ाूब, वाह-वाह, अहो, शाबाश, बहुत अच्छा।
जिहेज़ ($फा.पु.)- दहेज, विवाह में दुल्हन को दिया जानेवाला सामान।
जि़ह्क (अ.पु.)- अट्टहास, $कह$कहा, ज़ोर की हँसी।
जि़ह्न (अ.पु.)- दक्षता, कुशलता, होशियारी; समझ-बूझ, धारणा-शक्ति; स्मरण-शक्ति, हा$िफज़; प्रतिभा, तब्बाई।
जि़ह्ननशीं (अ.$फा.वि.)- चित्त पर चढ़ी हुयी बात, जो बात दिमा$ग में बैठ गयी हो, जो बात समझ में आ गयी हो, बोधगम्य, हृदयंगम।
जि़ह्नी (अ.वि.)- मानसिक, हार्दिक, रूहानी।
जि़ह्नीयत (अ.स्त्री.)- आदत, प्रकृति, स्वभाव; अन्त:करण, अन्दरूँ; गुमान, धारणा।
जि़ह्न ए रसा (अ.$फा.पु.)- किसी बात को शीघ्र ही समझ लेनेवाला मस्तिष्क, बात को जल्दी धारण कर लेनेवाला दिमा$ग।
जि़ह्न ए सालेह (अ.पु.)- अच्छे-बुरे में पूर्ण विवेक करने वाला मस्तिष्क या दिमा$ग।
जि़ह्मत (अ.स्त्री.)- सड़े हुए मांस या मछली की दुर्गन्ध जो असह्य हो।
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