ई
ईं ($फा.अव्य.)-यह, यह व्यक्ति, यह वस्तु। 'ईं जानिबÓ- हम। (सं.स्त्री.)-लक्ष्मी।ईंचुनी ($फा.अव्य.)-इस प्रकार, ऐसे।
ईंनाँ ($फा.पु.)-'ईंÓ का बहु., ये, ये लोग, सब।
ईअ़ाज़ (अ़.पु.)-इशारा करना, संकेत करना; हुक्म देना, आदेश देना।
ईअ़ाद (अ़.पु.)-वचन देना, वायदा करना।
ई$काअ़ (अ़.पु.)-युद्घ में घसीटना; घटित करना, कोई घटना उपस्थित करना, वा$के करना।
ई$काज़ (अ़.पु.)-सोते हुए को उठाना, जगाना, निद्रा त्याग कराना, नींद से उठाना।
ई$काद (अ़.पु.)-दीआ जलाना, दीप प्रज्वलित करना, चिरा$ग जलाना।
ई$कान (अ़.पु.)-किसी बात पर दृढ़ विश्वास; निश्चय, य$कीन।
ई$का$फ (अ़.पु.)-रोकना, ठहराना; पदच्युत करना, मुअ़त्तल करना, पद या कार्य से हटाना।
ई$कार (अ़.पु.)-भारी करना, बोझ लादना।
ईकाल (अ़.पु.)-भोजन कराना, खाना खिलाना; निन्दा करना, आलोचना करना, बुराई करना।
ई$कास (अ़.पु.)-समूल नष्ट करना; जड़ से उखाडऩा।
ईख़्ााश (अ़.पु.)-दूषित होना, प्रदूषित होना, ख़्ाराब होना।
ई$गार (अ़.पु.)-औंटाना, गरम करना, उबालना, खौलाना।
ईज़द ($फा.पु.)-ईश्वर, परमात्मा। दे.-'ईजि़दÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
ईज़दी ($फा.वि.)-ईश्वर का, ईश्वरीय, ईश्वर से सम्बन्धित। दे.-'ईज़ीदीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
ईज़ा (अ़.स्त्री.)-दु:ख देना, तकली$फ देना, कष्ट देना; पीड़ा, कष्ट, यातना, तकली$फ।
ईजाज़ (अ़.पु.)-छोटा करना, संक्षिप्त करना, संक्षेपण; किसी बड़े लेख को काट-छाँटकर छोटा करना; संक्षेप, इख़्ितसार।
ईजाद (अ़.स्त्री.)-कोई नयी चीज़ बनाना, नयी बात पैदा करना; आविष्कार, खोज, इख़्ितराअ़।
ईज़ाद (अ़.पु.)-अधिकता, जि़यादती। यह शब्द इस अर्थ में अशुद्घ है।
ईजाद ए बंद: (ईजादेबन्द:) (अ़.पु.)-कपोल-कल्पित, मनगढ़न्त।
ईज़ादेही (अ़.$फा.स्त्री.)-दु:ख पहुँचाना, कष्ट देना, पीडि़त करना, तकली$फ देना।
ईज़ान (अ़.पु.)-सतर्क करना, चेतावनी देना, आगाह करना, सावधान करना, ख़्ाबरदार करना, सूचना देना। (सं.पु.)-यज्ञ करनेवाला।
ईजाब (अ़.पु.)-ज़रूरी करना, अनिवार्य करना, वाजिब करना; प्रस्ताव; प्रार्थना; स्वीकृति, मंज़ूर करना, $कबूल करना।
ईजाबो$कबूल (अ़.पु.)-प्रस्ताव और स्वीकृति; अ़ौरत-मर्द का विवाह करने का प्रस्ताव और मंज़ूरी; शादी के समय दूल्हा-दुल्हन का एक-दूसरे को स्वीकारना, निकाह के समय वर-वधु का एक-दूसरे को अंगीकार करना; किसी चीज़ को बेचने का प्रस्ताव (ईजाब) और ख़्ारीदने की रज़ामंदी ($कबूल)।
ईजार (अ़.पु.)-किराए पर उठाना, भाड़े पर देना।
ईज़ार (अ़.$फा.पु.)-कष्ट, दु:ख।
ईज़ाररसाँ (अ़.$फा.वि.)-दु:ख देनेवाला, कष्ट पहुँचानेवाला, दु:खदायी।
ईज़ाररसानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दु:ख देना, तकली$फ पहुँचाना, कष्ट देना, पीडि़त करना।
ईजाल (अ़.पु.)-भय दिखलाना, डराना, भयभीत करना, त्रासना।
ईजास (अ़.पु.)-आतंकित होना, भयभीत होना, मन में डरना।
ईज़ाह (अ़.पु.)-रौशन करना, प्रकाशित करना; स्पष्ट करना, खुलकर बताना, वाज़ेह करना।
ईजि़द ($फा.पु.)-ईश्वर, भगवान्, ख़्ाुदा।
ईजि़दी ($फा.वि.)-ईश्वरीय, ईश्वर का, ईश्वर से सम्बन्धित।
ईता (अ़.पु.)-पाँव के नीचे रौंदना; शाइरी में $का$िफए यानी तुक का एक दोष, जिसमें दो शब्दों को जो सानुप्रास न हों कोई शब्द या अक्षर बढ़ाकर $का$िफया बनाना, जैसे- 'उठÓ और 'गिरÓ से 'उठाÓ और 'गिराÓ बनाना।
ईताअ़ (अ़.पु.)-पेड़ पर फल का पकना।
ईताए ख़्ा$फी (अ़.पु.)-ईता अर्थात् $क$िफए यानी तुक की वह $िकस्म, जिसमें उसका दोष हलका हो, जैसाकि ऊपर के उदाहरण में दिए गए 'उठाÓ और 'गिराÓ के $का$िफए।
ईताए जली (अ़.पु.)-ईता अर्थात् $क$िफए यानी तुक की वह $िकस्म, जिसमें उसका दोष भारी हो, जैसे- 'ख़्ाुशतरÓ और 'बेहतरÓ के $का$िफए जिनमें 'ख़्ाुशÓ और 'बेहÓ जो सानुप्रास नहीं हैं, उनमें 'तरÓ बढ़ाया गया है।
ईतान (अ़.पु.)-आना, आगमन, आमद। इसका 'ताÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
ईतान (अ़.पु.)-प्रवास, किसी दूसरी जगह को अपना वतन बनाना। इसका 'ताÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
ईतिनाफ़ (अ़.पु.)-पुन:प्रयास, नए सिरे से कोई काम करना, किसी काम को पुनस्र्थापित करना।
ईतिमान (अ़.पु.)-न्यासधारी बनाना, अमानतदार बनाना।
ईतिमार (अ़.पु.)-आपस में सलाह-मशविरा करना, परस्पर परामर्श करना; आज्ञा पालन करना; काम बनाना।
ईतिला$क (अ़.पु.)-प्रकाशित होना, रौशन होना, प्रकाशमान् होना, चमकना।
ईतिला$फ (अ़.पु.)-इकट्ठा होना, एकत्र होना, एक जगह होना; मेल-जोल होना; मित्रता, दोस्ती।
ईद (अ़.स्त्री.)-ख़्ाुशी, आनन्द, हर्ष; मुसलमानों का हर्ष और ख़्ाुशी का एक त्योहार। यह शब्द 'ऊदÓ से बना है, जिसका मतलब है-Óप्रतिवर्ष आनेवालाÓ; प्रसन्नता तथा आनन्द का दिन; कामना पूर्ण होना। 'ईद का चाँद हो जानाÓ-बहुत कम दिखाई देना। 'ईद करनाÓ-ख़्ाुशी करना। 'ईद मनानाÓ-जश्न करना। 'ईद होनाÓ-बड़ी ख़्ाुशी होना, मनोकामना पूरी होना।
ईद उल अज़्हा (अ़.स्त्री.)-मुसलमानों का 'बकऱीदÓ नामक त्योहार; वह ईद, जो हज की ख़्ाुशी में मनायी जाती है और जिसमें $कुर्बानी होती है। इसे 'ईद ए $कुर्बांÓ भी कहते हैं, यह प्राय: मार्च महीने की दस तारीख़्ा को होती है।
ईद उल $िफत्र (अ़.स्त्री.)-मुसलमानों का 'मीठी ईदÓ नामक त्योहार; वह ईद जो रोज़े पूरे होने की ख़्ाुशी में मनायी जाती है और जिसमें सिवैयाँ पकती हैं। यह शव्वाल (इस्लामी दसवाँ महीना) की पहली तारीख़्ा को होती है।
ईदगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-वह विशिष्ट स्थान जहाँ ईद के दिन सब मुसलमान एकत्र होकर नमाज़ पढ़ते हैं।
ईदर ($फा.अव्य.)-इधर; अब; यहाँ।
ईदी (अ़.स्त्री.)-ईद से सम्बन्धित; पढ़ानेवाले मुल्ला को ईद का इन्अ़ाम; ईद का ख़्ार्च, जो बच्चों को दिया जाता है।
ईद ए अज़्हा (अ़.स्त्री.)-दे.-'ईद उल अज़्हाÓ।
ईद ए $कुर्बां (अ़.स्त्री.)-वह ईद, जो हज की ख़्ाुशी में मनाई जाती है और जिसमें $कुर्बानी होती है, ब$करीद, ईदे अज़्हा।
ईद ए रमज़ाँ (अ़.स्त्री.)-दे.-'ईद उल $िफत्रÓ।
ईदैन (अ़.स्त्री.)-दोनों ईदें, मीठी ईद और ब$करीद।
ईन (अ़.स्त्री.)-'ऐनाÓ का बहु., काली आँखोंवाली अ़ौरतें।
ईनक (अ़.अव्य.)-यह, समीपवर्ती, निकटवर्ती।
ईनत ($फा.अव्य.)-वाह-वाह, साधु-साधु; ओह; बहुत ख़्ाूब; बहुत अजीब।
ईनाँ ($फा.अव्य.)-दे.-'ईंनाँÓ।
ईनास (अ़.पु.)-जानना; सुनना; देखना; अभ्यस्त होना; टेब हो जाना, अ़ादत पड़ जाना।
ई$फा (अ़.पु.)-पूरा करना, पालन करना; $कसम निभाना, वादा निभाना, प्रतिज्ञा पालन, वचन पूरा करना।
ई$फाअ़ (अ़.पु.)-ऊँचा होना, उठना; लड़के का बालि$ग होना।
ई$फाए अ़ह्द (अ़.पु.)-$कसम पूरी करना, वचन पूरा करना, प्रतिज्ञा का पालन करना।
ई$फाए $कौल (अ़.पु.)-बात का धनी होना, बात पूरी करना, $कसम का पालन करना, वचन या वादा निभाना, प्रतिज्ञा का पालन करना।
ई$फाग़ (अ़.पु.)-दे.-'ऐफ़ाग़Ó।
ई$फाल (अ़.पु.)-बीमारी से छुटकारा पाना, स्वस्थ्य होना, रोगमुक्त होना; जल्दी जाना, शीघ्र गमन।
ईबा (अ़.पु.)-इशारा, संकेत।
ईबास (अ़.पु.)-नमी या तरी दूर करना, सुखाना, ख़्ाुश्क करना।
ईमाँ (अ़.पु.)-'ईमानÓ का लघु., दे.-'ईमानÓ।
ईमाँ $फरोश (अ़.$फा.वि.)-ईमान बेचनेवाला, पथभ्रष्ट होने-वाला, बेईमानी करनेवाला। 'विश्वास किस पे आज वतन ये करे भला, नेता हमारे देश के ईमाँ$फरोश हैंÓ- माँझी
ईमाँ $फरोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-बेईमानी करना, ईमान बेचना, किसी लालच में आकर निष्ठा बदलना, पथभ्रष्ट होना।
ईमा (अ़.पु.)-इंगित, इशारा, संकेत।
ईमान (अ़.पु.)-धर्म में दृढ़ आस्था; धर्म, मज़हब; निष्ठा, विश्वास, य$कीन, आस्था, अ़$कीदा, पंथ, पथ; न्याय, इंसाफ़; नीयत।
ईमानदार (अ़.$फा.वि.)-धर्मनिष्ठ, जो धर्म में पूरी आस्था रखता हो, धर्म का पक्का, धर्मभीरू; जो लेन-देन में सच्चा हो, व्यवहारनिष्ठ; जो बेईमान न हो, विश्वसनीय, विश्वास-पात्र, व्यवहार का सच्चा; न्यायशील, इंसा$फपसंद।
ईमानदारान: (अ़.$फा.वि.)-ईमानदारी का, ईमानदारों-जैसा।
ईमानदारी (अ.$फा.स्त्री.)-सच्चाई, नीयत का सच्चा होना, धर्मनिष्ठता; व्यवहारनिष्ठता।
ईमान $फरोश (अ़.$फा.वि.)-जो अपनी निष्ठा बदल ले या पथभ्रष्ट हो जाए, जो अपना ईमान बेच दे, बेईमान, $गद्दार।
ईमान $फरोशी (अ़.$फा.स्त्री.)-बेईमानी, $गद्दारी; ईमान बेच देना, बेईमानी करना, $गद्दारी करना, निष्ठा बदलना, पथभ्रष्ट होना।
ईमान बिल$गैब (अ़.पु.)-अंधविश्वास; अनदेखे ईश्वर पर निष्ठा; बिना देखे किसी बात पर विश्वास।
ईमाने कामिल (ईमान ए कामिल)(अ़.पु.)- पूर्ण धर्मनिष्ठा, धर्म में दृढ़ आस्था, पक्का ईमान, दृढ़ पंथ-विश्वास।
ईयल (अ़.पु.)-हिरन की एक प्रजाति, बारहसिंहा।
ईयास (अ़.पु.)-निराश करना, नाउम्मीद करना।
ईर (अ़.पु.)-बटोहियों का समूह, पथिक-दल, यात्री-दल, $का$िफला; प्रत्येक वह जानवर, जिस पर अनाज लादा जाए, लद्दू जानवर।
ईराँ ($फा.पु.)-'ईरानÓ का लघु., दे.-'ईरानÓ।
ईरा (अ़.पु.)-अग्नि प्रज्वलित करना, आग जलाना; चिमटे से आग निकालना।
ईरा$क (अ़.पु.)-नयी कोंपल निकलना, वृक्ष में नए पत्ते फूटना।
ईराद (अ़.पु.)-लागू करना, प्रचलित करना, वारिद करना; आपत्ति उपस्थित करना, एÓतिराज़ करना।
ईरान ($फा.पु.)-एशिया का एक प्रसिद्घ देश, $फार्स, $फारस, परशिया।
ईरानी ($फा.वि.)-ईरान से सम्बन्धित, ईरान का निवासी।
ईरास (अ़.पु.)- पेड़ के पत्ते पीले होना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
ईरास (अ़.पु.)-अपना उत्तराधिकारी बनाना; दाय या रिक्थ देना; किसी को शेष वस्तु देना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
ईर्मान (अ़.पु.)-बिन बुलाए किसी के यहाँ दावत में जाने-वाला, जो बे-बुलाए किसी दूसरे निमंत्रित व्यक्ति के साथ दावत में जाए, तु$फैली; शर्म, लज्जा; अ$फसोस, पश्चात्ताप, पछतावा।
ईर्सा (अ़.स्त्री.)-इन्द्रधनुष, धनक; सौसन की जड़, जो दवा में प्रयुक्त होती है।
ईल (तु.पु.)-साल, वर्ष; अनुकूल, मुआ$िफ$क; मित्र, दोस्त; वशीभूत, ताबेÓदार।
ईल (उ.पु.)-भगवान्, ईश्वर, ख़्ाुदा, परमात्मा।
ईला (अ़.पु.)-दान देना, बख़्शना; शपथ उठाना, $कसम खाना, प्रतिज्ञा करना; पास होना, निकट होना।
ईला$कात (तु.पु.)-तुर्क लोगों के रहने के घर-मकान और उनकी खेतों की ज़मीनें आदि।
ईलाज (अ़.पु.)-एक चीज़ को दूसरी चीज़ में घुसेडऩा, प्रविष्ट करना।
ईलाद (अ़.पु.)-बच्चा पैदा करना, जनना।
ईला$फ (अ़.पु.)-अप्रसन्न होना, रुष्ट होना, रूठना, बेज़ार होना; अभ्यस्त होना, अ़ादी होना।
ईलाम (अ़.पु.)-तकलीफ़ देना, कष्ट देना, दु:खित करना, पीडि़त करना।
ईलिया (तु.पु.)-बहुत सच्चा।
ईवा (अ़.पु.)-आबाद करना, बसाना; स्थान देना, जगह देना।
ईवान ($फा.पु.)-भवन, प्रासाद, महल; परिषद्, कौंसिल।
ईवान ए ज़ेरी (ईवाने ज़ेरी)($फा.पु.)- निम्न सदन, लोअर हाउस।
ईवान ए बाला (ईवाने बाला)($फा.पु.)-उच्च सदन, अपर हाउस।
ईवान ए शाही (ईवाने शाही)($फा.पु.)-राजमहल, शाही भवन, राजभवन, राजद्वार।
ईश: (अ़.पु.)-सुख और चैन का जीवन, ख़्ाुशहाल जीवन।
ईश (अ़.पु.)-गुप्तचर, जासूस।
ईशाअ़ (अ़.पु.)-नयी कलियाँ फूटना, कोंपल फूटना, पेड़ में नए पत्ते निकलना।
ईस (अ़.पु.)-ऐसे स$फेद ऊँट, जिनकी स$फेदी में लालिमा हो। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
ईस (अ़.पु.)-पेड़ों का झुण्ड; भीड़, झुण्ड, जमाव, अंबोह। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
ईसवी (अ़.पु.)-हज्ऱत ईसा से सम्बन्धित वस्तु, वह सम्वत् जो हज्ऱत ईसा की मृत्यु से शुरू हुआ था, 'ईसवी सन्Ó।
ईसा (अ़.पु.)-अपने बाद की स्थिति के लिए अपनी सम्पत्ति या जायदाद का वारिस नियुक्त करना, उत्तराधिकारी बनाना; वसीयत करना; उपदेश देना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
ईसा (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ महात्मा हज्ऱत ईसा, ईसा मसीह, ईसाई धर्म के प्रवर्तक या संस्थापक, जीसस क्राइस्ट। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
ईसाई (अ़.वि.)-हज्ऱत ईसा के धर्म का अनुयायी, ख्रि़ष्टीय, क्रिश्चियन।
ईसाद (अ़.पु.)-ढाँपना, ढाँकना, छिपाना, पर्दा डालना; दरवाजा बन्द करना।
ईसान$फस (अ़.वि.)-पहुँचा हुआ महात्मा, जिसकी फँूक से मृतक प्राणी जीवित हो जाएँ, मुर्दों को जीवन प्रदान करने-वाला, जीवनदाता।
ईसान$फसी (अ़.स्त्री.)-मृतक प्राणियों को जीवित करना, मुर्दे जिलाना, जीवनदान।
ईसार (अ़.पु.)-दूसरे के हित के लिए अपना हित त्याग देना, स्वार्थ-त्याग; त्याग-तपस्या; बड़प्पन, बुज़ुर्गी; ग्रहण करना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
ईसार (अ़.पु.)-धनाढ्य होना, धनवान् होना, मालदार होना। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
ईसारपेश: (अ़.$फा.वि.)-जो दूसरों के लिए अपना हित त्याग देता हो, परमत्यागी।
ईसाल ए सवाब (ईसाले सवाब)(अ़.पु.)-मुर्दों की रूह यानी आत्मा को $कुरान पढऩे या खाना खिलाने का सवाब (पुण्य) पहुँचाना।
ईहाम (अ़.पु.)-एक अर्थालंकार, जिसमें ऐसा शब्द लाते हैं जिसके दो अर्थ होते हैं तथा पासवाला अर्थ छोड़कर दूसरा अर्थ लगाते हैं; भ्रान्ति, भ्रम, वहम।
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