आ, अ़ा
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आँ ($फा. सर्व.)-वह, 'आँकि'-वह जो; (हिं.अव्य.)-आश्चर्य अथवा विस्मयबोधक शब्द; बालक के रोने के शब्द का अनुकरण।आँख (हिं.स्त्री.)-देखने की इन्द्रिय जिससे रंग-रूप, आकार और विस्तार का बोध होता है; लोचन, नयन, नेत्र, अक्षि, चक्षु। पद.-'उनींदी आँखÓ-नींद से भरी आँख। 'कंजी आँखÓ -बिल्ली के समान नीली तथा भूरी आँखें। 'कटीली आँखÓ-आकर्षक आँखें, मोह लेनेवाली आँखें। 'गिला$फी आँखÓ-कबुतर के समान पपोटों से ढँकी आँखें। 'चंचल आँखÓ-यौवन मद के कारण स्थिर न रहनेवाली आँखें। 'मदभरी आँखÓ-भावुक आँखें। रसभरी आँखÓ-वह आँख जिससे भाव टपकता हो। मुहा.-'आँख उठाकर न देखनाÓ-ध्यान न देना, उपेक्षा करना, तिरस्कार करना; लज्जा या संकोचवश निगाह न मिला सकना। 'आँख उठानाÓ-देखना, नजऱ सामने करना; बुरी दृष्टि से देखना, कुदृष्टि डालना, किसी को हानि पहुँचाने की चेष्टा करना।
आँच (हिं.स्त्री.)-आग, अग्नि; आग की लपट; गरमी, ताप। मुहा.-'आँच खानाÓ-गरमी पाना, ताव खाना। 'आँच न आने देनाÓ-कुछ हानि न होने देना।
आँत (हिं.स्त्री.)-अंतड़ी, प्राणियों के पेट से लेकर गुदा तक जानेवाली नली।
आँधी (हिं.स्त्री.)-धूलिपूर्ण प्रचण्ड वायु, अंधड़। (वि.)-आँधी के समान तेज़। मुहा.-'आँधी उठानाÓ-धूम मचाना, हलचल मचाना। 'आँधी के आमÓ-बहुत सस्ती चीज़। 'आँधी होनाÓ-बहुत तेज़ चलना।
आँब ($फा.पु.)-आम नामक वृक्ष या उसका फल। 'संस्कृतÓ में 'आम्रÓ प्रचलित।
आँसू (हिं.पु.)-अश्रु, अश्क, आँखों से निकलनेवाला जल। मुहा.-'आँसू गिरनाÓ-रोना। 'आँसू डबडबानाÓ-रोने की अवस्था होना। 'आँसू पीकर रह जानाÓ-अपनी पीड़ा को प्रकट न करना।
आ (हिं.क्रि.)-'आनाÓ क्रिया का एक रूप, किसी को बुलाने के लिए बोला जानेवाला शब्द। (सं.अव्य.)-यह
शब्द मर्यादा, अभिव्याप्ति और अतिक्रमण आदि में प्रयुक्त होता है। (सं.उप.)-यह प्राय: गत्यर्थक धातुओं में प्रयुक्त होकर उनमें कुछ विशेषता ला देता है। (सं.पु.)-पितामह, ब्रह्मïा।
आइंद: ($फा.वि.)-जो आने को हो, आगामी, आनेवाला; आगे, भविष्य में, भावी, (पु.)-भविष्यकाल, भविष्य। 'आइंद: कोÓ-आगे को, भविष्य के लिए।
आइंदा ($फा.वि.)-दे.-'आइंद:Ó, वही शुद्घ है।
आइए (हिं.क्रि.)-किसी को बुलाने के लिए आदर सहित कहा जानेवाला शब्द।
अ़ाइद: (अ़.पु.)-शुल्क, महसूल; लाभ, न$फा; परम्परा, रीति, रिवाज; उपकार, एहसान; अनुकम्पा, कृपा, दया; बदला, प्रतिकार।
अ़ाइद (अ़.पु.)-लागू होनेवाला, लगनेवाला; लौटनेवाला, पलटनेवाला।
आइन: ($फा.पु.)-'आईन:Ó का लघु., दे.-'आईन:Ó।
अ़ाइन (अ़.वि.)-सहयोगी, सहायक, मदद करनेवाला, मददगार।
अ़ाइल: (अ़.पु.)-वंश, कुल, ख़्ाानदान, अभिजन।
अ़ाइल (अ़.वि.)-साधु, संन्यासी, दरवेश, $फ$कीर।
आइस (अ़.वि.)-जिसे आशा न हो, निराश, नाउम्मीद, बेआस।
आईन: (अ़.पु.)-शीशा, दर्पण, मुकुर, आदर्श; शीशे के झाड़; गवाह, सा$फ बतानेवाला; हैरान; (वि.)-स्पष्ट, सा$फ, शफ्फ़़ाफ़। 'आईना-ए-दिलÓ-हृदय-रूपी दर्पण। 'आईना-ए-हस्तीÓ-अस्तित्व-रूपी दर्पण। 'क्यों सारा शह्र मिरे $कत्ल पे आमादा है, आईन: दिखाकर क्या जुर्म किया है मैंनेÓ-माँझी
आईन:ख़्ाान: (फ़ा.पु.)-वह मकान, जिसमें चारों ओर आईने लगे हों, शीशमहल।
आईन:गर (फ़ा.वि.)-दर्पणकार, आईना या शीशा बनाने- वाला।
आईन:बंदी (फ़ा.स्त्री)-किसी बड़े व्यक्ति के आगमन के समय अथवा किसी बड़े उत्सव के समय नगर की सड़कों और बाज़ारों को झाड़-$फानूस से सजाना, नगर में होनेवाली सजावट।
आईन:साज़ (फ़ा.वि.)-दे.-'आईन:गरÓ।
आईन:साज़ी (फ़ा.स्त्री.)-आईना, शीशा या दर्पण बनाने का काम।
आईन (फ़ा.पु.)-$कानून, विधान; नियम, क़ायदा, उसूल, सिद्घान्त; व्यवहार, चलन, दस्तूर, रस्म, रीति; परम्परा, अ़ादत, रिवाज; तजऱ्, तरी$का, पद्घति, प्रणाली, ढंग, रविश; सजावट, शंृगार।
आईनदाँ (फ़ा.वि.)-$कानून जाननेवाला, विधानज्ञ, विधान-विशेषज्ञ, वकील।
आईनबंदी (फ़ा.स्त्री.)-किसी के स्वागत के लिए सजावट करना; कमरे में झाड़-$फानूस आदि सजाना; $फर्श पर पत्थर आदि की जुड़ाई।
आईनसाज़ (फ़ा.वि.)-विधान अर्थात् $कानून बनानेवाला, विधायक; विधान बनानेवाली परिषद्, विधायिका।
आईनाख़्ााना (फ़ा.पु.)-दे.-'आईन:ख़्ाान:Ó।
आईनासाज़ (फ़ा.पु.)-दे.-'आईन:साज़Ó, आईना बनाने-वाला।
आईनासाज़ी (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आईन:साज़ीÓ।
आईनी (फ़ा.वि.)-$कानूनी, वैधानिक, वैध।
आईमा (अ़.पु.)-दान में मिली हुई वह भूमि, जिसका कर अथवा लगान न देना पड़े।
अ़ा$क [क़्$क] (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जिसे उसकी माता या पिता ने उद्दण्डता के कारण बहिष्कृत कर दिया हो; सरकश, विद्रोही, माता-पिता की आज्ञा न माननेवाला। मुहा.-'अ़ा$क करनाÓ-$फरज़न्दी से अलग करना, पुत्र को उत्तराधिकार से वंचित करना।
आक ($फा.प्रत्य.)-सम्बन्ध का वाक्य, जैसे-'ख़्ाुराकÓ और 'सोज़ाकÓ; (पु.)-दोष, ऐब। (हिं.पु.)-मदार, अकबन, अकौवा। मुहा.-'आक की बुढिय़ाÓ-मदार का डोडा; अत्यन्त बूढ़ी स्त्री।
अ़ा$कनाम: (अ़.पु.)-वह लेख, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति अपने किसी अयोग्य पुत्र को उत्तराधिकार से वंचित करता है, $फरज़न्दी से अलग करने के का$गज़ या प्रपत्र।
अ़ा$कनामा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ा$कनाम:Ó।
अ़ा$कबत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ा$िकबतÓ, शुद्ध शब्द वही है।
अ़ा$कबत अंदेश (अ़.पु.)-दे.-'अ़ा$िकबत अंदेशÓ।
अ़ा$कबत अंदेशी (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ा$िकबत अंदेशीÓ।
अ़ा$कर$करहा (अ.पु.)-दे.-'अ़ा$कर$कर्हाÓ।
अ़ा$कर$कर्हा (अ.पु.)-एक जंगली जड़, जो दवा में काम आती है, अकरकरा।
आ$का (तु.पु.)-स्वामी, मालिक; अध्यक्ष, सरदार; ईश्वर।
आका (तु.पु.)-बड़ा भाई, अग्रज। (सं.पु.)-कौड़ा, अलाव; भट्टी; पजावा, आंवां।
आकाश (सं.पु.)-नभ, गगन, आस्मान, अंतरिक्ष; शून्य स्थान। मुहा.-'आकाश चूमना या छूनाÓ-बहुत ऊँचा होना। 'आकाश-पाताल एक करनाÓ-कठिन परिश्रम करना; धूम मचाना; आंदोलन करना। 'आकाश पाताल के कुलाबे मिलानाÓ-भारी उद्योग करना।
आ$कासी (तु.पु.)-दीवानख़्ााने का दारो$गा।
अ़ा$िकद (अ़.वि.)-गाँठ देनेवाला, ग्रन्थि लगानेवाला; वचन देनेवाला, प्रतिज्ञा करनेवाला, $कसम खानेवाला।
अ़ाकि$फ (अ़.वि.)-एकान्तवासी, एकान्तवास करनेवाला; सबसे अलग-थलग रहनेवाला; किसी चीज़ के चारों ओर फिरनेवाला; मस्जिद में तपस्या के लिए बैठनेवाला।
अ़ा$िकब (अ़.वि.)-किसी के पीछे आनेवाला, अनुवर्ती; किसी की अनुपस्थिति में उसकी जगह काम करनेवाला, सहायक, मददगार, स्थानापन्न।
अ़ा$िकबत (अ़.स्त्री.)-मरने के बाद की अवस्था; परलोक, यमलोक, आखिऱत; अंजाम, परिणाम, नतीजा; अन्त, अख़्ाीर; समाप्ति, ख़्ाात्मा; प्रलय का दिन, $कयामत का दिन।
अ़ा$िकबत अंदेश (अ़.$फा.वि.)-प्रत्येक कार्य को उसका परिणाम सोचकर करनेवाला, दूरदर्शी, जो परिणाम का ध्यान रखे, दूरंदेश, परिणामशोची, परिणामदर्शी।
अ़ा$िकबत अंदेशी (अ़.$फा.स्त्री.)-दूर-अंदेशी, दूरदर्शिता।
अ़ा$िकबत नाअंदेश (अ.$फा.वि.)-जो कार्य के परिणाम से बेख़्ाबर (असावधान) रहकर काम करे, अपरिणामदर्शी।
अ़ा$िकबतबीं (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ा$िकबत अंदेशÓ।
अ़$िकर (अ़.वि.)-नि:संतान पुरुष; बांझ स्त्री; रेत का वह टीला, जिसपर कोई चीज़ न होती हो।
अ़ा$िकल: (अ़.स्त्री.)-बुद्धिमती स्त्री; वह शक्ति जिससे पदार्थों का ज्ञान किया जा सके।
अ़ा$िकल (अ़.वि.)-अ़क़्लमंद, अ़क़्लवाला, मेधावी, दाना, बुद्धिमान्; पहाड़ों पर भागने-फिरनेवाला हिरन।
अ़ा$िकला (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ाकिल:Ó, वही शुद्घ है।
अ़ा$िकलान: (अ़.$फा.वि.)-बुद्धिमत्तापूर्ण, बुद्धिमानी का, बुद्धिमानोचित्त, अ़क़्लमंदी-भरा।
अ़ा$िकलाना (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ा$िकलान:Ó, वही शुद्घ है।
आक़्च: (तु.पु.)-रुपया; अश्र$फी (अश$र्फी), स्वर्णमुद्रा, मोहर।
आख़्ा (फ़ा.अव्य.)-वाह-वाह, साधु-साधु। (पु.)- कोलाहल, शोर; विलाप, प्रलाप, रुदन, रोना-धोना। (सं.पु.)-खंता, ख्ंाती, रंभा।
आखि़ज़ (अ़.वि.)-लेनेवाला, ग्रहण करनेवाला, पकडऩे-वाला; उद्धृत करनेवाला, उद्घरणदाता।
आख़्िार (अ़.वि.)-अन्त, अख़्ाीर; पिछला, अंतिम, आख़्िारी; अंतत:, आख़्िारकार; परिणाम, फल; ख़्ात्म, समाप्त, तमाम। (क्रि.वि.)-अन्त में। 'ह$र्फे आख़्िारÓ-अन्तिम शब्द।
आख़्िार उल अम्र (अ़.वि.)-दे.-'आख़्िारुल अम्रÓ।
आख़्िारकार (अ़.$फा.वि.)-अन्ततोगत्वा, अन्तत:, अन्त में।
आख़्िारत (अ़.स्त्री.)-यमलोक, परलोक, उक़्बा; अन्त, अख़्ाीर; $कयामत का दिन, प्रलय, सृष्टि के अन्त का समय; मृत्यु का दिन, अन्त का दिन; परिणाम, नतीजा।
आख़्िारतबीं (अ़.$फा.वि.)-परिणाम पर नज़र रखनेवाला, अंजाम पर दृष्टि रखनेवाला, दूरदर्शी, अन्तदर्शी, परिणामदर्शी, अ़ाकि़बत अंदेश।
आख़्िारश (अ़.वि.)-दे.-'आख़्िारिशÓ, वही शुद्घ है।
आख़्िारिश (अ़.वि.)-अन्ततोगत्वा, अन्तत:, आख़्िारकार, अन्त में, आख़्िार को, आख़्िारकार।
आख़्िारी (अ़.वि.)-अन्त का, अन्तिम, पिछला, अख़्ाीरी; निश्चित, $कतई। 'आख़्िारी पोशाकÓ=क$फन।
आख़्िारुल अम्र (अ़.वि.)-अन्त को, अन्त में, आख़्िार को, अन्तत:, आख़्िारकार। 'आख़्िार उल अम्रÓ।
आख़्िारुल ज़माँ (अ़.पु.)-समय का अन्त। 'आख़्िार उल ज़माँÓ।
आख़्िारेकार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'आख़्िारुल अम्रÓ।
आख़्ाुंद (तु.पु.)-उस्ताद, गुरु, शिक्षक, शिक्षा देनेवाला, पढ़ानेवाला।
आख़्ाुर (तु.पु.)-घोड़ों को बाँधने का स्थान, अश्वशाला, मन्दुरा, तबेला; गोचर, चराहगाह।
आख़्ाुरेसंगी (तु.$फा.पु.)-ठँूठ जगह, ऐसा स्थान जहाँ घास और हरियाली न हो।
आख़्ाून (फ़ा.पु.)-अध्यापक, शिक्षक, उस्ताद।
आख़्ाोर (तु.पु.)-'आख़्ाुरÓ का अपभ्रंश या बिगड़ा हुआ रूप; घोड़ों के रहने की जगह, अश्वशाला, तबेला; चौपायों के दाना-घास आदि खाने की जगह; पानी पीने की जगह; कूड़ा-करकट, कबाड़, $िफज़ूल सामान। (वि.)-निकम्मा, बेकार, ख़्ाराब। कहा.-'आख़्ाोर की भर्तीÓ-बेकार और रद्दी चीज़ों को जमा करना; निकम्मे और बेकार मनुष्यों का जमावड़ा; रद्दी और व्यर्थ के विषयों का समावेश।
आख़्त: ($फा.वि.)-जिसके अण्डकोश निकाल डाले गए हों, जिसे बधिया कर दिया गया हो, ख़्ास्सी, वध्रि; खींचा हुआ।
आख़्त:बेगी ($फा.वि.)-बधिया करनेवाला, अण्डकोश निकालनेवाला।
आख़्ता ($फा.वि.)-दे.-'आख़्त:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आख़्शीज (अ़.पु.)-दे.-'आख़्शेगÓ।
आख़्शेग ($फा.पु.)-विरोधी वस्तु; पंच-तत्त्व (आग, पानी, हवा, मिट्टी और आकाश, जिनसे आदमी का शरीर बना है), उन्सुर।
आगंद: ($फा.वि.)-पूर्ण, परिपूर्ण, भरा हुआ।
आग (हि.स्त्री.)-अग्नि, अगन, ज्वाला; गरमी, ताप; कामाग्नि; वात्सल्य प्रेम; जलन, डाह, ईष्र्या। (वि.)-जलता हुआ, बहुत गरम; उष्ण गुण रखनेवाली। मुहा.-'आग उठानाÓ -झगड़ा फैलाना।
आग़स्त: ($फा.वि.)-तर, भीगा हुआ, सना हुआ, लथड़ा हुआ; तर करना, भिगोना।
आग़स्त: बख़्ाूँ ($फा.वि.)-रक्त से लथपथ, लहूलुहान, ख़्ाून में लथड़ा हुआ, रक्त में सना हुआ।
आग़स्ता ($फा.वि.)-दे.-'आ$गस्त:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आग़स्तए ख़्ाूँ ($फा.वि.)-दे.-'आ$गस्त: बख़्ाूँÓ।
आगही ($फा.स्त्री.)-'आगाहीÓ का लघु., परिचय, पहचान; इत्तिलाअ़, सूचना; जानकारी, रूप-ज्ञान। 'ज़ौ$के आगहीÓ- ज्ञान का आनन्द।
आग़ा (तु.पु.)-काबुली, अ$फ$गानी पठान; स्वामी, मालिक; महाशय; बड़ा भाई, अग्रज, भ्राता; मु$गलों और काबुलियों की एक उपाधि। (सं.पु.)-अग्रभाग, अगाड़ी; शरीर का अगला भाग; छाती, वक्षस्थल; मुख, मुँह; ललाट, माथा; लिंगेन्द्रिय; $कमीज़-र्कुे की काट में आगे का टुकड़ा; घर के आगे का हिस्सा; सेना का अग्रभाग; नाव का अग्रभाग; मांग; पल्ला, आँचल; भविष्य। मुहा.-'आगातागा लेनाÓ-भली-भाँति देख-भाल करना, आवभगत करना, आदर-सत्कार करना। 'आगा -पीछा करनाÓ-हिचकना, टालमटोल करना।
आग़ाज़ ($फा.पु.)-आरम्भ, आदि, शुरू; अनुष्ठान, प्रारम्भ, शुरूअ़ात, इब्तिदा। 'आ$गाज़ अंजाम जाननाÓ-परिणाम मालूम कर लेना।
आग़ाजि़ंद: ($फा.वि.)-आरम्भ करनेवाला, शुरू करनेवाला, चलानेवाला।
आग़ाज़ीद: ($फा.वि.)-आरम्भ किया हुआ, शुरू किया हुआ, प्रारब्ध।
आग़ाज़ेकार ($फा.पु.)-कार्यारंभ, कार्य का सूत्रपात, काम की शुरूअ़ात।
आग़ारीद: ($फा.वि.)-माड़ा हुआ, साना हुआ, गूँधा हुआ।
आग़ाल ($फा.पु.)-जंगल में भेड़-बकरियों का सोने का सुरक्षित स्थान।
आग़ालीद: ($फा.वि.)-भड़काया हुआ, शत्रुता और युद्ध के लिए उत्तेजित किया हुआ।
आगाह ($फा.वि.)-जिसे पहले से सूचना मिल गई हो; ज्ञात, जाना हुआ; जानकार, परिचित, वा$िक$फ; सूचित, मुत्तला; सावधान, होशियार।
आगाही ($फा.स्त्री.)-होशियारी, सावधानी; ख़्ाबर पाना, सूचना मिल जाना; ज्ञान, जानकारी; परिचय, जान-पहचान; सूचना, इत्तिलाअ़।
आगे (हिं.क्रि.वि.)-अग्रभाग में, 'पीछेÓ का विपरीत; समक्ष, सामने; जीवनकाल में, जीते-जी; इसके बाद; भविष्य में; अनंतर, बाद; पहले; अतिरिक्त, अधिक; गोद में। पद.-'आगे-आगेÓ-क्रमश:। मुहा.-'आगे आनाÓ-सामने आना, मिलना; सामना करना, भिडऩा। 'आगे करनाÓ-अगुआ बनाना, आ$फत में भौंकना। 'आगे का $कदम पीछे पडऩाÓ-कायरता दिखाना; अवनति होना।
आग़ोश ($फा.उभ.)-गोद, ब$गल, अंक, क्रोड। 'आ$गोश परवर्दाÓ-गोद का पाला हुआ।
आग़ोशकुशा ($फा.वि.)-गोद फैलाए हुए, किसी को गोद में लेने के लिए बाहें खोले हुए।
आग़ोशी ($फा.स्त्री.)-गोद में लेना, गले लगाना, आलिंगन करना।
आचा (तु.स्त्री.)-(दिल्ली में)-बूढ़ी-सम्मानित नौकरानी; (लखनऊ में)-वह बूढ़ा हिजड़ा, जो किसी को अदब-$कायदा सिखाने के लिए नौकर रखा गया हो।
आचार ($फा.पु.)-अचार, फल अथवा तरकारियों में नाना प्रकार के मिर्च-मसाले डालकर तैयार किया हुआ खाने का पदार्थ, अथाना। हिन्दी में 'अचारÓ प्रचलित। (सं.पु.)-शाील; व्यवहार, आचरण, अनुष्ठान; चरित्र, चाल-ढाल; स$फाई, शुद्घि।
आजंग़ ($फा.पु.)-बल, शिकन, झुर्री।
अ़ाज (अ़.पु.)-हस्तिदंत, हाथी के दाँत। इसका 'आÓ उर्दू के 'ऐनÓ तथा 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है।
आज़ ($फा.स्त्री.)- हिर्स, लोभ, लालच। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
आज ($हि.पु.)-वर्तमान दिन, जो दिन बीत रहा है, (क्रि.वि.)-अद्य, वर्तमान दिन; इन दिनों; इस समय। 'आज कीÓ-इस समय की, इस अवसर की।
आजकल (हि.क्रि.वि.)-इस समय, वर्तमान दिनों में।
आज़ख़्ा ($फा.पु.)-मस्सा, मोटा और उठा हुआ तिल।
आÓजज़ (अ़.वि.)- नि:सहाय, बहुत ही लाचार, अत्यन्त विवश।
आज़मंद ($फा.वि.)-लोभी, लालची, हरीस।
आÓज़म (अ़.वि.)-महान्, प्रमुख, बहुत बड़ा; वसीअ़, विशाल। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
आÓजम (अ़.वि.)-जो बोल न सके, मूक, गूँगा। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है।
आज़मा ($फा.प्रत्य.)-दे.-'आज़्माÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
आज़माइश ($फा.स्त्री.)-परीक्षा, जाँच, परख, इम्तिहान; $कोशिश, चेष्टा, प्रयास, दे.-'आज़्माइशÓ। 'सर पे चढ़ते हुए तू$फान उतर जाएँगे, आज़माइश के ये लम्हे भी गुज़र जाएँगेÓ- माँझी
आज़माना ($फा.क्रि.)-परीक्षा करना, जाँचना, परखना।
आज़मूद: ($फा.वि.)-परीक्षित, आज़माया हुआ, मुजर्रिब। कहा.-'आज़मूद: रा आज़मूदन ख़्ातास्तÓ-जिसको एक बार आज़मा चुके, उसे बार-बार आज़माना मूर्खता है।
आज़मूद:कार ($फा.वि.)-तज़ुर्बेकार, अनुभवी; होशियार, चतुर, चालाक।
आज़मूदा ($फा.वि.)-दे.-'आज़मूद:Ó, वही शुद्घ है।
आज़मूदाकार ($फा.वि.)-दे.-'आज़मूद:कारÓ, वही शुद्घ है।
आजऱ ($फा.पु.)-सौर-वर्ष के नौवें महीने का नाम; आग, अग्नि।
आज़र्द: ($फा.वि.)-पीडि़त, सताया हुआ; रुष्ट, नाराज़; दु:खित, रंजीदा; खिन्न, मलिन, अफ़्सुर्दा; विहीन, वंचित। 'आज़र्दए-इश्$कÓ-प्रेम से वंचित। 'आज़र्दए-बहारÓ-बसन्त-ऋतु से वंचित, फूलों के मौसम से वंचित। 'आज़र्दए-शादीÓ-खुशी से वंचित।
आज़र्द: पुश्त ($फा.वि.)-जिसकी पीठ में कूबड़ हो, कुबड़ा, कुब्ज।
आज़र्द ($फा.पु.)-बहुभक्षण, बहुत खाना, अधिक खाना।
आज़र्दगी ($फा.स्त्री.)-रोष, नाराज़गी; खिन्नता, उदासी; दु:ख, रंज।
आज़र्दनी ($फा.स्त्री.)-रुष्ट करने योग्य; सताने के $काबिल; दु:खित करने योग्य; परेशान करने योग्य।
आज़र्म ($फा.पु.)-अनुकम्पा, कृपा, दया; लज्जा, शर्म, हया; प्रतिष्ठा, बुज़ुर्गी; सम्मान, इज्ज़़त; शान्ति, सुलह।
आÓज़ा (अ़.पु.)-'उज़्वÓ का बहु. शरीर के अंग, हाथ, पाँव, सिर, कान, नाक आदि।
आज़ा (अ़.पु.)-दे.-'आÓज़ाÓ, वही शुद्घ है।
आÓज़ाए तनासुल (अ़.पु.)-लिंग, पुरुष की इन्द्रिय।
आÓज़ाए रईस: (अ़.पु.)-शरीर के प्रमुख अंग, जैसे-दिल, दिमाग़, जिगर।
आज़ाए तनासुल (अ़.पु.)-दे.-'आÓज़ाए तनासुलÓ।
आज़ाए रईसा (अ़.पु.)-दे.-'आÓज़ाए रईस:Ó।
आज़ाद: ($फा.वि.)-निरंकुश, स्वतंत्र, आज़ाद; स्वेच्छाचारी, स्वच्छंद।
आज़ाद:रवी ($फा.स्त्री.)-मन की मौज, स्वेच्छाचार।
आज़ाद:रौ ($फा.वि.)-स्वेच्छाचारी, मनमौजी, स्वच्छंदी।
आज़ाद ($फा.वि.)-जो बद्घ न हो, छूटा हुआ, मुक्त, बरी; स्वतंत्र, स्वाधीन, बन्धनमुक्त; मुक्त, बरी, बे$कैद; निश्चिन्त, बेपरवा; संसार के बखेड़ों से अलग, निर्लिप्त; निडर, निर्भय, बेख़्ाौ$फ; गुस्ताख़्ा, बे-अदब, बे-धड़क; $फ$कीरों का एक $िफरका, जो किसी मज़हब का पाबन्द नहीं होता; स्वतंत्र विचारोंवाला; सीधा ($कद)। 'आज़ाद-ओ- ख़्ाुदबींÓ-स्वतंत्र और गर्वी। (वा.)-'आज़ाद का अलि$फ, आज़ाद का $कश्$काÓ-आज़ाद $फ$कीरों के माथे पर की सीधी लकीर। 'आज़ाद का सोंटाÓ-वह डण्डा, जो आज़ाद $फ$कीर लिये फिरते हैं। ($वि.)-मुँहफट, अक्खड़, जो किसी से न दबे।
आज़ादगी ($फा.स्त्री.)-दे.-'आज़ादीÓ, वही शुद्घ है।
आज़ाद तब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'आज़ाद मिज़ाजÓ।
आज़ादमनिश ($फा.वि.)-दे.-'आज़ाद मिजज़Ó।
आज़ाद मिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-मनमौजी, स्वेच्छाचारी, ऐसा व्यक्ति, जो अपनी मर्जी का मालिक स्वयं हो, ऐसा व्यक्ति जिसके मन में जो आए सो करे।
आज़ादान: ($फा.वि.)-बे-रोक-टोक, स्वतंत्रतापूर्वक, आज़ादी से; उद्दण्डों-जैसा, निरंकुशों की तरह।
आज़ादाना ($फा.वि.)-दे.-'आज़ादान:Ó, वही शुद्घ है।
आज़ादी ($फा.स्त्री.)-बंधनमुक्ति, रिहाई, मुक्ति, छुटकारा; स्वतंत्रता, स्वाधीनता, ख़्ाुदमुख़्तारी; निरंकुशता; निश्चिन्तता; उद्दण्डता।
आज़ादीपसंद ($फा.वि.)-जिसे स्वच्छन्दता पसन्द हो, जो निरंकुश रहना चाहता हो; जो स्वतंत्रता चाहता हो, जिसे $गुलामी पसन्द न हो।
आज़ान (अ़.पु.)-'उज़ुनÓ या 'उज्ऩÓ का बहु., कान।
आजाम (अ़.पु.)-'अजमÓ का बहु., पेड़ों के समूह, वृक्षों के झुण्ड।
आज़ार ($फा..पु.)-दु:ख, कष्ट, खेद, रंज, चोट; रोग, व्याधि, बीमारीे; आपत्ति, विपत्ति, मुसीबत; बुरी अ़ादत, दुव्र्यसन, बुरी लत। (प्रत्य.)-दु:ख देनेवाला, सतानेवाला, जैसे-'दिल आज़ारÓ-हृदय को पीड़ा पहुँचानेवाला, दिल को दु:खानेवाला। 'आज़ार-ए-मुहब्बतÓ-प्रेम-रोग।
आज़ार तलब (अ़.$फा.वि.)-जिसे कष्टों में रहना अच्छा लगता हो, दु:खप्रिय, मुसीबत पसंद।
आज़ार देह ($फा.वि.)-कष्ट देनेवाला, दु:खदायी।
आज़ारिंद: ($फा.वि.)-सतानेवाला, परेशान करनेवाला, दु:ख देनेवाला।
आज़ारी ($फा.स्त्री.)-रोग, बीमारी; सताना, दु:ख देना, ($किसी संज्ञा के अन्त में व्यवहृत)।
आज़ारीद: ($फा.वि.)-पीडि़त, दु:खित; सताया हुआ, दु:ख पहुँचाया हुआ।
आजाल (अ़.पु.)-'अजलÓ का बहु., मृत्युएँ, मौतें।
अ़ाजिज़ (अ़.वि.)-ऊबा हुआ, परेशान, तंग, बेबस, मजबूर; निराश्रय, असहाय; निर्बल, कमज़ोर; दीन, $गरीब। मुहा.-'अ़ाजिज़ आनाÓ-तंग हो जाना, निराश हो जाना। 'अ़ाजिज़ करनाÓ-तंग करना, विवश करना, परेशान करना।
अ़ाजिज़ नवाज़ी ($फा.स्त्री.)-बेकस की सहायता, दीन-दु:खी की सहायता, दीन-हीन की मदद।
अ़ाजिज़ी ($फा.स्त्री.)-दीनता, बेबसी, विवशता; प्रार्थना, विनती। मुहा.-'अ़ाजिज़ी करनाÓ-मिन्नत करना, विनती करना।
आजिद: ($फा.स्त्री.)-सतह की असमानता, तल की नाहमवारी, ऊबड़-खाबड़पन; रेती का खुर्दरापन।
अ़ाजि़म (अ़.वि.)-विचार करनेवाला, इच्छा करनेवाला, अ़ज़्म या इरादा करनेवाला, संकल्प करनेवाला।
आजिऱ (अ़.वि.)-उज्ऱ करनेवाला, मजूरी करनेवाला, मजदूरी करनेवाला; क्षमा माँगनेवाला।
अ़ाजिल: (अ़.स्त्री.)-मृत्युलोक, संसार, दुनिया; जिसमें विलम्ब अथवा देरी न हो।
अ़ाजिल (अ़.वि.)-जल्दी करनेवाला, जल्दबाज़; जल्दी वाली वस्तु; संसार, दुनिया। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
आजिल (अ़.वि.)-जिसमें विलम्ब और देर हो; परलोक, यमलोक, उक़्बाÓ। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
आज़ीन: ($फा.पु.)-छेनी, टाँकी, पत्थर आदि छीलने का यन्त्र।
आज़ीश ($फा.स्त्री.)-आग, अग्नि।
आज़ुक: ($फा.पु.)-दे.-'आज़ूक:Ó।
आज़ुर ($फा.पु.)-$फारसी वर्ष का नवाँ महीना, ईरानियों का नवाँ महीना; स्फुलिंग, चिंगारी। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है।
आजुर ($फा.स्त्री.)-पकी हुई ईंट। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ से बना हुआ।
आज़ुर्द: ($फा.वि.)-दे.-'आज़र्द:Ó, वही शुद्ध है।
आज़ुर्दगी ($फा.स्त्री.)-अप्रसन्नता, नाराजग़ी; मानसिक क्लेश, दु:ख।
आज़ुर्द:ख़्ाातिर ($फा.वि.)-उदास, खिन्न, नाख़्ाुश, ख़्ा$फा।
आज़ुर्द:हाल ($फा.वि.)-उदास, खिन्न, नाख़्ाुश, ख़्ा$फा।
आज़ुर्दह ($फा.वि.)-दे.-'आज़ुर्द:Ó, वही शुद्ध है।
आज़ूक: ($फा.पु.)-जीविका, रोज़ी, मअ़ाश; थोड़ी-सी गिज़ा, जिससे जीवन बना रहे।
आज़ूर ($फा.वि.)-लोभी, लालची।
आज़्द: ($फा.पु.)-चिह्नï, निशान; झुर्री, बल; कोई नोकदार वस्तु चुभाना।
आज़्मा ($फा.प्रत्य.)-आज़मानेवाला, जैसे-'$िकस्मत आज़्माÓ =भाग्य की परीक्षा करनेवाला।
आज़्माइंद: ($फा.वि.)-आज़मानेवाला, परीक्षा करनेवाला।
आज़्माइश ($फा.स्त्री.)-परीक्षा, परख, जाँच। 'आज़्माइश-ए-सब्र-ओ-गुरेज़ा-पाÓ-संघर्ष से बचने की इच्छा रखनेवाले धैर्य की परीक्षा।
आज़्मूद: ($फा.वि.)-परखा हुआ, जाँचा हुआ, परीक्षित।
आज़्मूद:कार ($फा.वि.)-कार्यसिद्ध, अनुभवी, बहुदर्शी, तजुर्बेकार।
आज़्मूदनी ($फा.वि.)-परखे जाने योग्य, परीक्षा के $काबिल, परीक्षणीय।
आज़्मून ($फा.पु.)-जाँच, परीक्षा, इम्तिहान, परिक्षण।
आड़ (हिं.क्रि.)-ओट, परदा; आश्रय, रक्षा, शरण; रोक; धूनी, टेक; ईंट या पत्थर का टुकड़ा जो रोक के लिए पहिये के पीछे लगाते हैं; संगीत के अन्तर्गत अष्टताल का एक भेद; बिच्छू या भिड़ का डंक; स्त्रियों के माथे पर लगाने की टिकली या बिन्दी; माथे पर का आड़ा तिलक; एक प्रकार का करछुल; तिल की बोंड़ी जिसमें तिल भरे रहते हैं।
आड़ा (हिं.वि.)-तिरछा, टेढ़ा, (स्त्री.-'आड़ीÓ)-। मुहा.-'आड़े आनाÓ-विघ्न डालना; कठिन समय में सहायक होना। 'आड़ा-तिरछा होनाÓ-बिगडऩा। 'आड़े पडऩाÓ-बीच में पडऩा। 'आड़े हाथों लेनाÓ-व्यंग्योक्ति से लज्जित करना, खरी-खोटी सुनाना।
आत (तु.पु.)-घोड़ा, अश्व। (सं.पु.)-शरीफा; सीताफल।
आतश ($फा.स्त्री.)-आग, अग्नि, अनल, (ला.)-क्रोध, $गुस्सा। 'आतश-ए-जर्राहÓ-प्रचण्ड अग्नि, तेज़ भड़कने वाली आग। 'आतश का परकालाÓ-आग का टुकड़ा, अँगारा; तेज़, चालाक, होशियार; शरीर, चालबाज़। 'आतश-ए-$गमÓ-प्रेम-पीड़ा की अग्नि।
आतशअंगेज़ ($फा.वि.)-आग भड़कानेवाला, उत्तेजित करनेवाला, झगड़ा करानेवाला; अग्नि जलानेवाला, आग लगानेवाला।
आतश अ$फरोज़ ($फा.वि.)-आग भड़कानेवाला, उत्तेजित करनेवाला, झगड़ा करानेवाला; अग्नि जलानेवाला, आग लगानेवाला।
आतश अफ्ग़न ($फा.वि.)-आग बरसानेवाला, आग फेंकने-वाला।
आतशक ($फा.स्त्री.)-गरमी, उपदंश नामक एक बीमारी। वा.-'आतशक का झुलसाÓ-गरमी नामक रोग का मरीज, जिसे उपदंश हो रहा हो या हुआ हो। 'आतशक का माराÓ- उपदंश से पीडि़त।
आतशकद: ($फा.पु.)-दे.-'आतशख़्ाान:Ó।
आतशकदा ($फा.पु.)-दे.-'आतशकद:Ó, वही शुद्घ है।
आतश $कदम ($फा.वि.)-तेज़ चलनेवाला।
आतशकार ($फा.वि.)-आतशबाज़; रसोइया, बाबर्ची।
आतशख़्ाान: ($फा.पु.)-वह स्थान, जहाँ पूजा की आग रहती है, अग्निशाला; पारसियों की अग्निशाला, जहाँ की आग कभी बुझती नहीं है; चूल्हा, भट्टी; वह स्थान जहाँ चूल्हा या भट्टी आदि जलती हो, चिमनी।
आतशख़्ााना ($फा.पु.)-दे.-'आतशख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
आतशख़्वार ($फा.पु.)-आग खानेवाला; चकोर, कब्क, एक पक्षी जो चाँद का प्रेमी है।
आतश ख़्ाूँ ($फा.वि.)-क्रोधी, $गुस्सेवर, तीव्र स्वभाव, उग्र स्वभाव; गर्म, उष्ण।
आतशगाह ($फा.स्त्री.)-दे.-'आतशख़्ाान:Ó।
आतशगीर ($फा.वि.)-विस्फोटक, ज्वलनशील; वह वस्तु या पदार्थ, जो आग को तुरन्त पकड़ ले; वह चीज़ जिससे आग पकड़ी जाए, जैसे- चिमटा।
आतशज़द: ($फा.वि.)-जिसमें आग लग गई हो, आग लगा हुआ; आग से जला हुआ, सोख़्ता।
आतशज़दगी ($फा.स्त्री.)-आग लगना, अग्नि फैलना, अग्निकांड; आग लगाना, अग्नि फैलाना।
आतशज़न: ($फा.पु.)-आग लगानेवाला; '$कुक्ऩुसÓ नामक पक्षी, जिसके गाने से आग लग जाती है।
आतशज़नी ($फा.स्त्री.)-दे.-'आतशज़दगीÓ।
आतशज़बाँ ($फा.वि.)-उत्तेजक भाषण करनेवाला, धुआँधार भाषण देनेवाला, अपने व्याख्यान में आग बरसानेवाला, जिसकी जिह्वïा आग उगलती हो।
आतशज़बान ($फा.वि.)-दे.-'आतशज़बाँÓ।
आतश ज़ेर पा ($फा.वि.)-जिसके पाँव के नीचे आग हो, बहुत ही बेताब, आतुर।
आतश तब्अ (अ.$फा.वि.)-दे.-'आतश मिज़ाजÓ।
आतशताब ($फा.वि.)-आग-जैसी चमक रखनेवाला, आग से तपा हुआ, अग्नि-आभा वाला।
आतशदस्त ($फा.वि.)-तेज़, फुर्तीला, चालाक।
आतशदस्ती ($फा.स्त्री.)-तेज़ी, फुर्ती, चालाकी; प्रभुत्व, $गलब:।
आतशदान ($फा.पु.)-अँगीठी, चूल्हा, भट्ठी।
आतशदीद: ($फा.वि.)-आग पर जला हुआ, दग्ध, आग पर सेंका हुआ, आग पर भूना हुआ।
आतशन$फस (अ़.$फा.वि.)-दिलजला, प्रेमी, अ़ाशि$क; जिसकी साँस के साथ आग निकले।
आतशन$फसी (अ़.$फा.स्त्री.)-साँस के साथ आग निकलना, दिल का दग्ध होना, प्रेमाग्नि से हृदय का जलना।
आतशनाक ($फा.वि.)-आग से भरा हुआ, आग की तरह तमतमाता हुआ, $गुस्से से भरपूर।
आतशपरस्त ($फा.वि.)-आग की पूजा करनेवाला, अग्नि-पूजक; ईरान का पारसी, ज़रतुश्त का अनुयायी। 'तेरी आतशपरस्त यादों से, आशियाना जला लिया हमनेÓ- माँझी
आतशपरस्ती ($फा.स्त्री.)-अग्नि-पूजा, आग की परस्तिश।
आतशपा ($फा.वि.)-दे.-'आतश ज़ेर पाÓ।
आतशपार: ($फा.पु.)-स्फुलिंग, अग्निकण, चिंगारी; अग्नि-खण्ड, अंगारा।
आतश$िफशाँ ($फा.वि.)-चिंगारियाँ देनेवाला, जिसमें से शोले निकलते हों।
आतशबजाँ ($फा.वि.)-अग्निगर्भ, जिसके अन्दर आग-ही-आग भरी हो; प्रेमी, अ़ाशि$क।
आतश बयान ($फा.वि.)-प्रभावशाली वक्ता; तेज़ बयान।
आतशबाज़ ($फा.पु.)-आतशबाज़ी बनानेवाला, बारूद के खिलौने बनाने और बेचनेवाला।
आतशबाज़ी ($फा.स्त्री.)-बारूद के खिलौने बनाने का काम; अग्निक्रीड़ा; बारूद के वे खिलौने, जिनके जलाने से रंग-बिरंगे फूल निकलते हैं या धड़ाके की आवाज़
होती है।
आतशबार ($फा.वि.)-आग बरसानेवाला।
आतश मिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-क्रोधी, $गुस्सेवर, गुस्सैल, तेज़ मिज़ाज, जिसके स्वभाव में बहुत अधिक रोष हो, क्रुद्घात्मा।
आतशमिज़ाजी (अ.$फा.स्त्री.)-स्वभाव का अधिक रोष, स्वभाव की उग्रता।
आतशरंग ($फा.वि.)-आग जैसे रंगवाला, दहकता हुआ, ख़्ाूब लाल।
आतशीं ($फा.वि.)-आग का; अग्नि से बना हुआ; आग-जैसा लाल; अग्निमय; अग्नि से सम्बन्ध रखनेवाला।
आतशीं ख़्ाल्क़त ($फा.पु.)-भूत-प्रेत, जिन, चुडै़ल।
आतशींरुख़्ा ($फा.वि.)-जिसका मुख आग की तरह लालिमा लिये हो, बहुत ही सुन्दर।
आतशीं रुख़्ासार ($फा.वि.)-जिसके गाल आग की तरह लालिमा लिये हों, सुर्ख़ कपोल।
आतशीं शीशा ($फा.पु.)-वह शीशा, जिस पर सूर्य की किरणें पडऩे से अग्नि उत्पन्न होती है, सूरजमुखी शीशा।
आतशे अफ़्सुर्द: ($फा.स्त्री.)-वह आग जो ठण्डी पड़ चुकी हो, बुझी हुई आग।
आतशे इश्$क ($फा.स्त्री.)-प्रमाग्नि।
आतशे ख़्ाामोश ($फा.स्त्री.)-दबी हुई आग, बुझी हुई आग।
आतशे $गम ($फा.स्त्री.)-प्रेम-पीड़ा की अग्नि।
आतशे जर्राह ($फा.स्त्री.)-प्रचण्ड अग्नि, तेज़ भड़कनेवाली आग।
आतशे जाँसोज़ ($फा.स्त्री.)-प्रेमाग्नि, इश्$क की आग।
आतशे जिगर ($फा.स्त्री.)-मन की आग, हृदय की अग्नि, प्रेमाग्नि, प्रेम की ज्वाला।
आतशेतर ($फा.स्त्री.)-गीली आग, बहती हुई अग्नि, शराब, मदिरा, मद्य।
आतशे दरूँ ($फा.स्त्री.)-हृदय की आग, प्रेम-अग्नि, प्रेम की ज्वाला।
आतशे दिह्क़ाँ ($फा.स्त्री.)-घास-फूस जलाने के लिए खेतों में लगाई जानेवाली आग।
आतशे दोज़ख़्ा ($फा.स्त्री.)-नरक की आग।
आतशे नुम्रूद (अ़.$फा.स्त्री.)-वह अग्नि, जो हजऱत इब्राहीम को जलाने के लिए नुम्रूद बादशाह ने जलवाई थी।
आतशे पिन्हाँ ($फा.स्त्री.)-छिपी हुई आग; वैर, द्वेष।
आतशे $फारिश ($फा.स्त्री.)-वह आग, जो ज़रतुश्त के समय ईरान में जल रही थी, जिसे इस्लाम ने बुझाया था।
आतशे बेदूद ($फा.स्त्री.)-धुआँ-रहित अग्नि, सूर्य, सूरज, आफ़्ताब।
आतशे महलूल (अ़.$फा.स्त्री.)-पानी में लगी हुई अग्नि, मदिरा, शराब, मद्य।
आतशे सैयाल (अ़.$फा.स्त्री.)-पिघली और बहती हुई आग, मदिरा, शराब, मद्य।
आतशे मुर्द: ($फा.स्त्री.)-बुझी हुई आग, ठण्डी पड़ चुकी अग्नि।
अ़ाति$फ (अ़.वि.)-कृपालु, दयालु, अनुकम्पा करनेवाला, कृपा करनेवाला, मेहरबान।
अ़ाति$फत (अ़.स्त्री.)-अनुकम्पा, कृपा, दया, मेहरबानी।
अ़ातिर (अ़.वि.)-ख़्ाुशबूवाला, सुगंधित, सुगंधमय; सुगंध या ख़्ाुशबू से प्रेम करनेवाला; पवित्र, शुद्घ, उत्तम।
आतिश ($फा.स्त्री.)-यह भी शुद्ध है मगर 'आतशÓ अधिक प्रचलित है। अग्नि, आग।
आतिशअंगेज़ ($फा.वि.)-दे.-'आतशअंगेज़Ó।
आतिशकद: ($फा.पु.)-दे.-'आतशकद:Ó।
आतिशख़्ाान: ($फा.पु.)-दे.-'आतशख़्ाान:Ó।
आतिशज़दगी ($फा.स्त्री.)-दे.-'आतशज़दगीÓ।
आतिशज़न: ($फा.पु.)-दे.-'आतशज़न:Ó।
आतिशदान ($फा.पु.)-दे.-'आतशदानÓ।
आतिशपरस्त ($फा.पु.)-दे.-'आतशपरस्तÓ।
आतिशपरस्ती ($फा.पु.)-दे.-'आतशपरस्तीÓ।
आतिशबज़ाँ ($फा.वि.)-दे.-'आतशबज़ाँÓ।
आतिशबाज़ ($फा.पु.)-दे.-'आतशबाज़Ó।
आतिशबाज़ी ($फा.स्त्री.)-दे.-'आतशबाज़ीÓ।
आतिशबार ($फा.पु.)-दे.-'आतशबारÓ।
आतिशी शीशा ($फा.पु.)-वह शीशा, जिस पर सूर्य की किरणों के पडऩे से अग्नि उत्पन्न होती है, सूर्यमुखी शीशा।
आतू ($फा.स्त्री.)-'आतूनÓ का लघु., अध्यापिका, शिक्षिका।
आतून ($फा.स्त्री.)-अध्यापिका, शिक्षिका।
अ़ातूस (अ़.पु.)-छींक लानेवाली वस्तु, हुलास; वह पशु या पक्षी जिसका देखना अशुभ माना जाता है, जिसके दिखाई पडऩे पर अशकुन समझा जाता है।
अ़ाद (अ़.स्त्री.)-एक प्राचीन $कौम।
अ़ादत (अ़.स्त्री.)-अभ्यास, बान, टेब, मश्क; प्रकृति, स्वभाव, ख़्ास्लत। इसका'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
आदत (अ़.पु.)-अस्त्र, हथियार। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़ादतन (अ़.वि.)-स्वभावत:, स्वभाव से, अ़ादत से, अ़ादत या अभ्यास के कारण, अ़ादत के अनुसार।
आदम (अ़.पु.)-पहला मनुष्य, जिससे सृष्टि का क्रम आरम्भ हुआ; इस्लाम धर्म के पहले पै$गम्बर हज्ऱत आदम, जो मनुष्य-मात्र के आदि-पुरुष माने जाते हैं, मूल पुरुष; आदमी, मनुष्य, मानव, मनुज, इंसान; आदमी के गुण रखनेवाला; किसी बात का पहले-पहल निकालनेवाला।
आदम$कद (अ़.वि.)-दे.-'$कद्देआदमÓ।
आदमख़्ाोर (अ़.$फा.वि.)-आदमी को खा जानेवाला, नर-भक्षी, मानुषाशी, मानव-भक्षी।
आदमगर (अ़.$फा.वि.)-कृपालु, दयालु, रहमदिल।
आदमगरी ($फा.स्त्री.)-मनुष्यता, आदमियत, इन्सानियत।
आदमज़ाद (अ़.$फा.पु.)-वह, जो मनुष्य से उत्पन्न हुआ है; मनुष्य का पुत्र, मनुष्य, मानव, इंसान, आदमी; मानव-जाति।
आदमज़ार (अ़.$फा.वि.)-वह व्यक्ति, जो इंसानों की संगत से घबराता हो।
आदम शनास (अ़.वि.)-इंसान की परख रखनेवाला, अच्छे -बुरे आदमी की पहचान रखनेवाला।
आदमी (अ़.पु.)-आदम की संतान, मनुष्य, मानव, इंसान, मनुज; मानव जाति; सभ्य, शिष्ट, मुहज़्ज़ब। 'आदमी बननाÓ-सभ्यता सीखना, अच्छा व्यवहार सीखना।
आदमीज़ाद: (अ़.$फा.पु.)-आदमी की संतान, मनुष्य, आदमी।
आदमीज़ादा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'आदमीज़ाद:Ó, वही शुद्घ है।
आदमीयत (अ़.स्त्री.)-मनुजता, मनुष्यता, मनुष्यत्व; अ़क़्ल ओ शऊर, बुद्घि-विवेक; मानवता, इंसानियत; सभ्यता, शिष्टता, तमीज़दारी; सुशीलता, अख़्ला$क, मिलनसारी।
आदमे आबी (अ़.$फा.पु.)- पानी में रहनेवाला मनुष्य की आकृति का एक जानवर, जलमानुष।
आदमे सह्राई (अ़.पु.)-एक बड़ा बन्दर, वनमानुष; जंगली आदमी; देहाती, उजड्ड, अक्खड़।
आदमे सानी (अ़.पु.)-'हज्ऱते नूहÓ, इस्लामी मान्यता के अनुसार तू$फान के पश्चात् इन्हीं की संतान चली है।
आÓदल (अ़.वि.)-बहुत अधिक न्याय करनेवाला, न्याय-शील।
आÓदा (अ़.पु.)-'अ़दूÓ का बहुवचन, शत्रु लोग, वैरी लोग, दुश्मन लोग। (सं.पु.)-अदरक, हरी सौंठ।
आदात (अ़.पु.)-'आदतÓ का बहु., हथियार। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़ादात (अ़.स्त्री.)-'अ़ादतÓ का बहु., अ़ादतें, स्वभाव, प्रकृतियाँ। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
आÓदाद (अ़.पु.)-'अ़ददÓ का बहु., संख्याएँ, गिनतियाँ, हिंदसे, अंक।
आदाब (अ़.पु.)-'अदबÓ का बहु., शिष्टाचार, सभ्यता, तहज़ीब; आदर, सत्कार; प्रणाम, अभिवादन, सादर नमस्कार, तस्लीम, बन्दगी; सुशीलता, अख़्ला$क; धन्यवाद देने या विदा के समय अथवा व्यंग्य में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। 'आदाब अर्ज करनाÓ-बहुत नम्रतापूर्वक अभिवादन करना। 'आदाब ओ अलकाबÓ-पत्र का सिरनामा, जिसको पत्र लिखा जाए उसकी मर्यादा के अनुकूल शब्द। 'आदाब ओ तस्लीमातÓ-कोरनिश, मुजरा, अत्यन्त आदर-पूर्वक प्रणाम। 'आदाब अर्ज करनाÓ-नम्रता-पूर्वक अभिवादन करना। 'आदाब बजा लानाÓ-दीनता -पूर्वक अभिवादन करना।
आदाबे $फाजि़ल: (अ़.पु.)-अच्छे स्वभाव; शूरता, सतीत्व, न्याय और विद्या आदि चार गुण।
आदाबे शाही (अ़.पु.)-राज-दरबार के नियम, बादशाहों से मिलने और बात करने के तरी$के।
अ़ादिल (अ़.वि.)-अ़दल या न्याय करनेवाला, न्यायशील, न्यायनिष्ठ, न्यायवान्, मुंसि$फ मिज़ाज।
अ़ादी (अ़.वि.)-जिसे किसी बात की अ़ादत हो, अभ्यस्त, जिसे कुछ खाने या कुछ करने की लत पड़ गई हो, व्यसनी, अनुसेवी, ख़्ाूगर, लती। (सं.स्त्री.)-अदरक।
आदीन: ($फा.पु.)-शुक्रवार, जुमाÓ।
आद्रफ़्श ($फा.पु.)-चमड़ा सीने का एक यंत्र, सुताली, सूजा।
आधा (सं.वि., स्त्री-'आधीÓ)-दो समान भागों में से एक, अद्र्घ। मुहा.-'आधा होनाÓ-दुर्बल होना। 'आधोंआधÓ-दो समान भागों में। 'आधा तीतर आधा बटेरÓ-बेमेल, अंडबंड।
अ़ान: (अ़.पु.)-पेड़ू, उपस्थ, ज़ेरेना$फ। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
आन: ($फा.प्रत्य.)-सम्बन्ध का वाक्य; जैसे- रोज़+आन:= रोज़ान: (रोज़ाना), साल+आन:= सालान: (सालाना);
(.पु.)-एक रुपए का सोलहवाँ भाग, एक आना। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
आन (अ़.स्त्री.)-समय, वक़्त; थोड़ी देर, दम-भर, क्षण, पल, लम्हा; ढंग; अकड़, ठसक।
आन ($फा.स्त्री.)-छवि, छटा, शोभा; बात, टेक, नाक; हाव-भाव, नाज़ोअंदाज़, शान। (हि.स्त्री.)-शपथ, $कसम; रोक-टोक, मनाही; हठ, जि़द, अ़ादत; मान, प्रतिष्ठा, आबरू, पास; अभिलाषा, अभिप्राय:, मुराद। 'आनबानÓ-शान, शान-शौकत, सज-धज, ठसक, घमण्ड।
आÓन$क (अ़.वि.)-बड़ी गर्दनवाला। (सं.पु.)-नगाड़ा, भेरी, दुंदुभि; गरजता हुआ बादल।
आनक आनक ($फा.अव्य.)-वह, वह दूरवर्ती।
आनत (अ़.पु.)-नाभि के नीचे का स्थान, जहाँ बाल होते हैं। (सं.वि.)-झुका हुआ; अति नम्र।
आनन $फ आनन [$फानन] (अ़.वि.)-एकाएक; तुरन्त, तत्काल, $फौरन, तत्क्षण; $फौरन ही, ज़रा-सी देर में, बात ही बात में; पल-पल में, दम-ब-दम।
अ़ाÓनश (अ़.वि.)-छंगा, छह उँगलियोंवाला।
आना (हिं.क्रि.)-बुलाने वाले के पास पहुँचना; जाकर लौटना; काल अथवा समय का प्रारम्भ होना; फल-फूल आदि का लगना; किसी भाव का उत्पन्न होना; स्खलित होना; (हिं.पु.)-एक रुपए का सोलहवाँ अंश; किसी वस्तु का सोलहवाँ भाग।
आनाकानी (हिं.स्त्री.)-टालमटोल, सुनी-अनसुनी करने का भाव या कार्य।
आÓना$क (अ.स्त्री.)-'उनु$कÓ का बहु., गर्दनें, गले।
आनात (अ़.पु.)-'आनÓ का बहु., बहुत-से समय, काल-समूह।
अ़ानिद (अ़.वि.)-शत्रु, वैरी, दुश्मन।
अ़ानि$फ (अ़.वि.)-आज्ञाकारी, $फर्माबरदार; वशीभूत, मुतीअ़।
आनिय: (अ़.पु.)-'इनाÓ का बहु., अनेक बरतन।
आनिस: (अ़.स्त्री.)-कुमारी, दोशीज़:।
आनिस (अ़.वि.)-प्रेमी, प्रेम करनेवाला, स्नेह करनेवाला; हिल जानेवाला।
अ़ानी (अ़.वि.)-बन्दी, $कैदी; प्रवाहित रक्त, बहता हुआ ख़्ाून। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
आनी (अ़.वि.)-सामयिक, तात्कालिक, वक़्ती; क्षणिक, एक क्षण रहनेवाला, क्षण-भंगुर, थोड़ी देर का। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
आनुक ($फा.पु.)-सीसा, एक धातु।
आप (सं.सर्व.)-स्वयं, ख़्ाुद; 'तुमÓ तथा 'वेÓ के स्थान पर प्रयुक्त किया जानेवाला आदरसूचक शब्द। मुहा.-'आप-आप करनाÓ-ख़्ाुशामद या चापलूसी करना। 'आप-आप की पडऩाÓ-अपना-अपना ख़्ायाल होना। (पु.)-जल, पानी, नीर।
आपा (तु.स्त्री.)-बड़ी बहन, दीदी, जीजी; छोटी उम्र की युवती, जिसके चेहरे से यह न मालूम हो कि वह संतानवाली है; (हि.स्त्री.)-होश-हवास, सुधबुध, संज्ञा; अहंकार, ख़्ाुदी।
अ़ा$फ (अ़.वि.)-क्षमा करनेवाला, अपराध क्षमा करनेवाला।
आ$फत ($फा.स्त्री.)-विपत्ति, बला, विपदा, मुसीबत, आपत्ति; संकट, दु:ख, कष्ट, तकली$फ; शामत; अंधेर, अत्याचार, ज़ुल्म; वबाल, दिक़्$कत; मक्कार, शरीर, दुष्ट, बदज़ात; वैरी, दुश्मन; जल्दी, घबराहट। मुहा.-'आ$फत उठानाÓ-दु:ख सहना, विपत्ति भोगना; हलचल मचाना। 'आ$फत काÓ- बेहद, अत्यन्त। 'आ$फत का परकालाÓ-किसी काम को बड़ी तेज़ी से करनेवाला, कुशल; हलचल मचानेवाला; अय्यार, बड़ी तेज़ी और चालाकी से काम करनेवाला। 'आ$फत ख़्ाड़ी करनाÓ-विपदा उपस्थित करना। 'आ$फत मचानाÓ-ऊधम करना, हलचल करना, दंगा करना। 'आ$फत लानाÓ-बखेड़ा खड़ा करना, विपदा उपस्थित करना।
आ$फत-ए-जान ($फा.वि.)-जान का दुश्मन; माÓशू$क, प्रेयसी, प्रेमपात्र। दे.-'आ$फते जानÓ।
आ$फत-ए-दह्र ($फा.वि.)-बेहद चालाक, कपटी। दे.- 'आ$फते दह्रÓ।
आ$फत-ए-नागहानी ($फा.स्त्री.)-अचानक आनेवाली विपदा या मुसीबत, दैवी घटना, दैवी-प्रकोप, दैवात्यय। दे.-'आ$फते नागहानीÓ।
आ$फतख़्ोज़ ($फा.वि.)- वह स्थान, जहाँ से आ$फत उठे, वह कारण जिसकी वजह से मुसीबत या विपदा आए।
आ$फतज़द: ($फा.वि.)-मुसीबत का मारा, विपदाग्रस्त।
आ$फतज़दा ($फा.वि.)-दे.-'आ$फतज़द:Ó, वही शुद्घ है।
आ$फते जान ($फा.वि.)-दे.-आ$फत ए जानÓ, दोनों शुद्घ हैं।
आ$फते दह्र ($फा.वि.)-दे.-'आ$फत ए दह्रÓ, दोनों शुद्घ हैं।
आ$फते नागहानी ($फा.वि.)-दे.-'आ$फत ए नागहानीÓ, दोनों शुद्घ हैं।
आ$फतनसीब (अ़.$फा.वि.)-अभागा, बद$िकस्मत, बदनसीब, जिसके भाग्य में कष्ट ही कष्ट हो, जिसके जीवन में आ$फत, विपत्तियाँ और मुसीबतें ही हों।
आ$फतरसीद: ($फा.वि.)-दे.-'आ$फतज़द:Ó।
आ$फताब ($फा.पु.)-दे.-'आफ़्ताबÓ, वही शुद्ध है, सूरज।
आ$फताबा ($फा.पु.)-दे.-'अवफ़्ताब:Ó, वही शुद्घ है।
आ$फताबी (फ़ा.पु.)-दे.-'आफ़्ताबीÓ।
आ$फरीं ($फा.वि.)-दे.-'आफ्ऱींÓ, वही शुद्ध है।
आ$फरीदा ($फा.वि.)-दे.-'आफ्ऱीद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आ$फरीन ($फा.अव्य.)-दे.-'आफ्ऱीनÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
आ$फरीनश (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आफ्ऱीनिशÓ, वही शुद्घ है।
आ$फा$क (अ.वि.)-'उ$फु$कÓ का बहु., उषाएँ; क्षितिज-समूह, जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते दिखाई दें, आस्मान के वे किनारे जो ज़मीन से मिले हुए मालूम होते हों; संसार, दुनिया, जहान। 'राज़े आ$फा$कÓ-संसार का रहस्य।
आ$फाकग़ीर ($फा.वि.)-दुनिया को लेनेवाला, बादशाह।
आ$फाक़ी (अ़.वि.)-सांसारिक, दुनियावाला, दुनियावी।
आ$फा$के माइल: (अ़.पु.)-पृथ्वी का वह भाग, जो ख़्ाुश्क हो, शुष्क भू-भाग।
आ$फात ($फा.स्त्री.)-'आ$फतÓ का बहु., विपत्तियाँ, आ$फतें, मुसीबतें।
आ$िफंदी (तु.पु.)-श्रीमान्, महोदय, जनाब।
अ़ा$िफयत (अ़.स्त्री.)-आराम, सुख, चैन; शान्ति, सुकून; खै़रियत, सलामती; नैरुज्य, स्वास्थ्य। 'खैऱ अ़ा$िफयतÓ- कुशल-मंगल।
अ़ा$िफयत केश (अ़.$फा.वि.)-शान्तिप्रिय, अम्न-पसन्द।
अ़ा$िफयत कोश (अ़.$फा.वि.)-अम्न के लिए प्रयास करनेवाला, शान्ति के लिए प्रयत्न करनेवाला, शान्तिकामी।
अ़ा$िफयतगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-शान्ति का स्थान, अम्न की जगह, वह स्थान जहाँ शान्ति और सुकून हो, एकान्तवास, निर्जन-स्थल; शान्तिस्थान, विश्रामस्थल।
आ$िफल (अ़.वि.)-नीचे जानेवाला, अधोगामी; लुप्त होने-वाला, लोप होनेवाला।
आ$िफलीन (अ़.पु.)-'आ$िफलÓ का बहु., नीचे जानेवाले, अधोगामी; लोप होनेवाले, लुप्त होनेवाले।
आफ़्ताब: ($फा.पु.)-एक प्रकार का लोटा जिसमें दस्ता (हत्था या मूठ) होता है, पानी रखने का टोंटीदार लोटा, आबताबा।
आफ़्ताब ($फा.पु.)-सूरज, सूर्य, रवि, दिनकर।
आफ़्ताब आसार (अ़.$फा.वि.)-जिसमें सूर्य-जैसा तेज हो, जिसमें सूर्य-जैसा प्रताप हो, जिसमें सूर्य-जैसा जलाल हो।
आफ़्ताबगीर ($फा.पु.)-छज्जा, साइबान; छाता, छतरी, आतपत्र; धूप रोकने के लिए ताना हुआ कपड़ा आदि।
आफ़्ताबपरस्त (फ़ा.वि.)-सूर्य-पूजक, सूरज की पूजा करनेवाला; गिरगिट, कृकलास।
आफ़्ताबपरस्ती ($फा.स्त्री.)-सूर्य-पूजा, सूर्य-अर्चना, रवि-भक्ति।
आफ़्ताब सवार (फ़ा.वि.)-भोर में ही उठ जानेवाला, बहुत तड़के उठ जानेवाला, ब्रह्मï-मुहूर्त में उठनेवाला।
आफ़्ताबी (फ़ा.पु.)-एक प्रकार का लोटा, जिसके पीछे पकडऩे की दस्ती लगी रहती है; (वि.)-एक प्रकार का क्षुप, सूरजमुखी, सूरजमुखी का फूल; धूप में रखकर बनाई हुई औषधि आदि; सूरज का, धूप का; धूप खाया हुआ, धूप में बना हुआ; एक प्रकार की आतिशबाज़ी।
आफ़्ताबे लबे बाम ($फा.पु.)-डूबने के निकट सूर्य, अस्त होने की स्थिति में पहुँचा हुआ सूरज; (ला.)-मृत्यु-शैया पर लेटा हुआ व्यक्ति, वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु निकट हो, मरनासन्न।
आफ़्ताबे सरे शाम ($फा.पु.)-सन्ध्या समय का सूर्य, डूबता हुआ सूरज; (ला.)-वह व्यक्ति जिसका सम्मान उठ जाए, वह व्यक्ति जिसकी प्रतिष्ठा छिन्न हो जाए।
आफ़्ताबे हश्र (अ़.$फा.पु.)-महाप्रलय काल का सूरज, जो पृथ्वी के बहुत निकट होगा ताकि उसकी गरमी से सब-कुछ झुलस जाए।
आफ्ऱीं ($फा.अव्य.)-'आफ्ऱीनÓ का लघुरूप, (आश्चर्य-चकित होकर बोला जानेवाला शब्द या वाक्य) शाबाश, साधु-साधु, धन्यवाद; प्रशंसनीय। 'जुर्अत आफ्ऱींÓ-प्रशंसनीय साहस।
आफ्ऱीद: (फ़ा.वि.)-पैदा किया हुआ, उत्पादित।
आफ्ऱीदगार (फ़ा.वि.)-पैदा करनेवाला, उत्पत्ति करनेवाला, सृष्टा; भगवान्, ईश्वर, ख़्ाुदा।
आफ्ऱीदनी (फ़ा.वि.)-उत्पन्न करने योग्य, पैदा करने लाय$क, सृजनीय।
आफ्ऱीन ($फा.अव्य.)-शाबाश, साधु-साधु, धन्यवाद, धन्य हो; प्रशंसनीय। 'जुर्अत आफ्ऱीनÓ-प्रशंनीय साहस।
आफ्ऱीनिंद: (फ़ा.वि.)-सृष्टा, उत्पत्तिकर्ता, पैदा करनेवाला, ख़्ाालि$क।
आफ्ऱीनिश (फ़ा.स्त्री.)-सृष्टि, उत्पत्ति, पैदाइश; सृष्टि करना, बनाना, उत्पन्न करना।
आब (फ़ा.पु.)-पानी, जल, वारि, नीर, सलिल। (स्त्री.)- चमक, तड़क-भड़क, कान्ति; शोभा, रौन$क, छवि; तलवार का पानी; इज़्ज़त, प्रतिष्ठा। आब-ए-दीदÓ-आँखों का पानी, आँसू। 'आब-ए-ब$काÓ-अमृत। 'आब-ए-रौद-ए-गंगाÓ-गंगा नदी। 'आब-ए-हयातÓ-जीवन की चमक। 'आब-ओ-बादÓ-पानी और वायु, हवा और बादल। कहा.-'आब-आब कह मर गए, सिरहाने धरा रहा पानीÓ-अपने घर की बोली न बोलकर ऐसी भाषा बोलना जिसे कोई समझे नहीं।
आब अनार (फ़ा.पु.)-सुर्ख़ शराब, दे.-'आबे अनारÓ।
आब अर्गवानी (फ़ा.पु.)-सुर्ख़ शराब, दे.-'आबे अर्गवानीÓ।
आब आतशरंग (फ़ा.पु.- दे.-'आबे आतश-रंगÓ।
आब आतशीं (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे आतशींÓ।
आब ओ ताब ($फा.स्त्री.)-दे.-'आबोताबÓ।
आबकश (फ़ा.वि.)-सक्का, भिश्ती, कुएँ से पानी खींचने या निकालनेवाला।
आबकाम: (फ़ा.पु.)-खट्टे पदार्थों से बनाया हुआ पानी, अम्लजल।
आबकार (फ़ा.वि.)-मद्य-व्यवसायी, शराब बेचनेवाला, मदिरा का व्यवसाय करनेवाला, कलार, कलाल।
आबकारी (फ़ा.स्त्री.)-मदिरा का व्यवसाय, मदिरा का विभाग, मद्य-विभाग, शराब का महकमा, मदिरा अनुभाग; वह कारख़्ााना, जहाँ शराब खींची और बेची जाती है, कलारी; वह सरकारी विभाग जहाँ मादक-पदार्थों का महसूल लिया जाए और उनकी देख-भाल की जाए।
आबकोर (अ़.स्त्री.)-बहुत-ही कृपण, मक्खीचूस; वह व्यक्ति जिसके दाने-पानी में किसी का भाग न हो।
आबख़्ाान: (फ़ा.पु.)-शौच त्याग करने का स्थान, पाख़्ाान:, शौचगृह, संडास।
आबख़्ााना (फ़ा.पु.)-दे.-'आबख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
आबख़्ाुर (फ़ा.पु.)-दे.-'आबख़्ाुर्दÓ।
आबख़्ाुर्द (फ़ा.पु.)-$िकस्मत, नसीब, भाग्य, प्रारब्ध; वह तालाब, जहाँ इन्सान और जानवर दोनों ही पानी पीएँ।
आबख़्ोज़ (अ़.स्त्री.)-लहर, तरंग, मौज; वह ज़मीन, जिसे जहाँ भी खोदें, थोड़ी ही निचाई या गहराई पर पानी निकल आए।
आबख़्ाोर: (फ़ा.पु.)-पानी पीने का मिट्टी का प्याला, कुल्हड़, पुरवा।
आबख़्ाोरा (फ़ा.पु.)-दे.-'आबख़्ाोर:Ó, वही शुद्घ है।
आबख़्ाोर (फ़ा.पु.)-घाट, किनारा, कूल, तट।
आबख़्ाोरद (फ़ा.पु.)-अन्न-जल, खाने-पीने की चीज़ें।
आब गर्दिश (फ़ा.स्त्री.)-आजीविका, जीविका, रोज़ी; वह रोग या बीमारी, जो देश-विदेश में घूमने-फिरने या पानी बदलने से उत्पन्न हो।
आबगीन: (फ़ा.पु.)-बहुत-ही बारीक काँच की बड़े पेट की बोतल, जो अब से कुछ समय पहले तक शराब और गुलाब-जल रखने के काम आती थी; बोतल, शीशा; बहुत-ही नाज़ुक शीशा।
आबगीना (फ़ा.पु.)-दे.-'आबगीन:Ó, वही शुद्घ है।
आबगीर (फ़ा.पु.)-छोटा तालाब, तलैया, जोहड़, क्षुद्र जलाशय, हौज़, पानी का गड्ढ़ा।
आबजऩ (फ़ा.पु.)-औषधियों के काढ़े से भरा वह पात्र, जिसमें रोगी को बैठाया जाता है। दे.-'आबेजऩÓ।
आबजारी (फ़ा.वि.)-बहता हुआ जल। दे.-'आबेजारीÓ।
आबजू (फ़ा.स्त्री.)-झरना, चश्मा, नहर, नदी, दरिया।
आब ज़ेरेकाह (फ़ा.पु.)-वह पानी, जो घास के नीचे छुपा हुआ हो; दे.-'आबे ज़ेरेकाहÓ।
आबजोश (फ़ा.पु.)-गोश्त का पानी, यख्ऩी; मांस आदि का शोरबा, रसा; सोडा वाटर; स्वच्छ जल; सुख्ऱ्ा मुनक़्क़ा, लाल मुनक़्क़ा।
आबताब (फ़ा.स्त्री.)-चमक-दमक, तड़क-भड़क, रौन$क; आभा, कान्ति; शोभा, वैभव।
आबदंदाँ (फ़ा.पु.)-एक प्रकार का हलुवा।
आबदरजू (फ़ा.स्त्री.)-धन-दौलत, सम्पत्ति; सत्ता, हुकूमत।
आबदस्त (फ़ा.पु.)-मलत्याग के उपरान्त जल से गुदा धोना, शौच-कर्म के पश्चात् पानी लेना, इस्तिंजा करना, अशुद्घता दूर करना, मूत्र करने के बाद इन्द्रिय को पानी से धोना या मिट्टी के ढेले से सा$फ करना।
आबदस्ताँ (फ़ा.पु.)-आफ़्ताब:, हत्थेदार लोटा, मूठदार लोटा।
आबदान (फ़ा.पु.)-पानी रखने का बर्तन; तालाब, जलाशय।
आबदान: (फ़ा.पु.)-अन्न-पानी, दाना-पानी, अन्न-जल; जीविका, रोज़ी; रहने का संयोग; आबोदाना।
आबदाना (फ़ा.पु.)-दे.-'आबदान:Ó, वही शुद्घ है।
आबदार (फ़ा.वि.)-धारदार, पानीदार; चमकदार, उज्ज्वल; पानी पिलानेवाला; (पु.)-पानी रखने और पिलानेवाला नौकर।
आबदारख़्ाान: (फ़ा.पु.)-वह ठण्डा स्थान, जहाँ पिलाने के लिए पानी के घड़े आदि रखे जाते हों, प्याऊ, छबील।
आबदारख़्ााना (फ़ा.पु.)-दे.-'आबदारख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
आबदारी (फ़ा.स्त्री.)-आभा, चमक; रौन$क, शोभा, छटा; धार, तेज़ी, बाढ़; आबदार का पद या काम।
आबदीद: (फ़ा.वि.)-रुआँसा, सजल-नयन, जिसकी आँखों में आँसू भरे हों, नम आँखोंवाला, अश्रुपूर्ण नेत्रोंवाला।
आबदीदा (फ़ा.वि.)-दे.-'आबदीद:Ó, वही शुद्घ है।
आब दुज़्द (फ़ा.पु.)-एक प्रकार का तंग मुँहवाला बर्तन, जिसकी तली में छेद होते हैं; वह रास्ता, जिसके नीचे पानी हो।
आबदोज़ (फ़ा.वि.)-पानी के अन्दर का रास्ता; पानी के अन्दर चलनेवाली पनडुब्बी, जलयान आदि।
आबनाए (फ़ा.पु.)-पृथ्वी का वह तंग या सिकुड़ा भाग, जो दो समुद्रों को मिलाता हो, जलडमरूमध्य।
आबनूस (फ़ा.पु.)-एक प्रसिद्घ वृक्ष जिसकी लकड़ी काली, बहुत मज़बूत और भारी होती है। 'आब्नूसÓ भी प्रचलित।
आबनूसी (फ़ा.वि.)-आबनूस का, आबनूस से बना, आबनूस से सम्बन्धित।
आबपाश (फ़ा.पु.)-फव्वारा; पानी छिड़कनेवाला, सक्का, भिश्ती।
आबपाशी (फ़ा.स्त्री.)-भूमि और खेती की सिंचाई, सिंचन; पानी का छिड़काव करना; नहर के महकमे का नाम।
आबबाज़ (फ़ा.वि.)-तैराक, तैरनेवाला, पैराक।
आबबाज़ी (फ़ा.स्त्री.)-तैरना, पैरना, पानी में तैरना।
आबयान: (फ़ा.पु.)-जल-कर, सिंचाई का महसूल या कर।
आबयार (फ़ा.वि.)-खेतों और पेड़ों को पानी देनेवाला।
आबयारी (फ़ा.स्त्री.)-सिंचाई, सिंचन, आबपाशी; बाग़ों और खेतों को सींचना, पानी देना।
आबरवाँ (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे रवाँÓ।
आबरसीद: (फ़ा.वि.)-जो पानी से भीगकर ख़्ाराब हो गया हो।
आबरुख़्ा (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आबरूÓ।
आबरू (फ़ा.स्त्री.)-सम्मान, इज़्ज़त, प्रतिष्ठा; कीर्ति, यश, नेकनामी; मर्यादा, हैसियत; सतीत्व, इस्मत; शर्म, लाज; बात, साख, एतिबार। 'आबरू-ए-इश्$कÓ-प्रेम की प्रतिष्ठा, लगाव की इज़्ज़त।
आबरूदार (फ़ा.वि.)-सम्मानित, इज़्ज़तदार, प्रतिष्ठित, बावक़्अ़त; सती, साध्वी, इस्मत मअ़ाब; हयादार।
आबरूरेज़ी (फ़ा.स्त्री.)-इज़्ज़त उतारना, मान-हानि करना; सतीत्व-हरण, इज़्ज़तदरी।
आबल: (फ़ा.पु.)-छाला, फफोला।
आबल:रू (फ़ा.वि.)-जिसके चेहरे पर चेचक के दाग़ हों।
आबला (फ़ा.पु.)-दे.-'आबल:Ó, वही शुद्घ है।
आबलए $िफरंग (अ़.पु.)-उपदंश, गर्मी रोग, आतशक।
आबशनास (फ़ा.वि.)-माँझी, मल्लाह, केवट, नाविक, कर्णधार; यह जाननेवाला कि सागर में कहाँ कितना पानी है।
आबशार (फ़ा.पु.)-पानी की चादर अर्थात् झरना, चश्मा, निर्झर, प्रपात।
आबसाल (फ़ा.पु.)-उद्यान, उपवन, बा$ग, वाटिका।
आबसालाँ (फ़ा.पु.)-दे.-'आबसालÓ।
आबहवा (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आबोहवाÓ।
आबा (अ़.पु.)-'अबÓ का बहु., पूर्वज, बाप-दादे, पुरखे।
आबाई (अ़.वि.)-पैतृक, मौरूसी, ख़्ाानदानी।
आबाए उल्वी (अ़.पु.)-नौ आकाश; सप्तग्रह।
आबाद (फ़ा.वि.)-भरा हुआ, बसा हुआ, वसित, जिसमें आबादी हो; वह ज़मीन, जो बोई-जोती जाती हो; जहाँ चहल-पहल हो, गुलज़ार।
आबाद (अ़.पु.) 'अबदÓ का बहु., नित्यताएँ, हमेशगियाँ, अनश्वरता।
आबादकार (फ़ा.वि.)-वह, जो किसी वीरान (बंजर) क्षेत्र को गुलज़ार या आबाद करे; वह किसान, जो किसी परती या ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाए।
आबादकारी (फ़ा.स्त्री.)-किसी वीरान क्षेत्र को आबाद करना; किसी बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना।
आबादान (फ़ा.वि.)-दे.-'आबादÓ।
आबादानी (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आबादीÓ; बसा और सुख-सम्पन्न स्थान; बस्ती, आबादी; चहल-पहल, रौन$क; सभ्यता, संस्कृति; सम्पन्नता और वैभव।
आबादी (फ़ा.स्त्री.)-बसा हुआ इला$का; चहल-पहल, रौन$क; रहनेवालों की गिनती, जनसंख्या; वह ज़मीन, जो काम में आती हो।
आबान (फ़ा.पु.)-ईरानियों का एक महीना, जो अगहन में पड़ता है; $फार्सी आठवाँ महीना; प्रत्येक सौर मास का दसवाँ दिन।
आबार: ($फा.पु.)-हिसाब, हिसाब-किताब।
आबार (अ़.पु.)-जला हुआ सीसा, सीसे की भस्म।
आबा-व- इज़दाद (अ़.पु.)- पूर्वज, बाप-दादा, पुरखे; कुल, वंश।
अ़ाबिद: (अ़.स्त्री.)-साध्वी, तपस्विनी, इबादतगुज़ार स्त्री, पूजा-उपासना करनेवाली अ़ौरत।
अ़ाबिद (अ़.वि.)-साधु, संत, तपस्वी, भक्त, उपासक, आराधना करनेवाला पुरुष, इबादत करनेवाला व्यक्ति; ज़ाहिद, परहेजग़ार।
अ़ाबिदा (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ाबिद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ाबिर (अ़.वि.)-मुसा$िफर, पथिक, यात्री, राहगीर, बटोहीे; नदी या पुल आदि को पार करनेवाला।
आबिस्त: (फ़ा.स्त्री.)-गर्भवती, गुर्विणी, हामिला।
आबिस्तगी (फ़ा.स्त्री.)-गर्भवती होना।
आबिस्तनी (फ़ा.वि.) गर्भवती, अंतर्वती, पेट-से, हामिला।
आबिस्ता (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'आबिस्त:Ó, वही शुद्घ है।
आबी (फ़ा.वि.)-एक मेवा, बिही; जल का, जल-सम्बन्धी; पानी से बना हुआ; पानी में रहनेवाला; पानी से बनी एक प्रकार की मोटी रोटी, जो पलोथन के बिना पकती है; एक प्रकार की ख़्ामीरी रोटी, जिसमें दूध-घी नहीं डाला जाता।
आÓबुद (अ़.पु.)-'अब्दÓ का बहु., सेवक-गण, दास-लोग।
आबे अंगूर (फ़ा.पु.)-अंगूर का पानी, अंगूर का रस, अंगूर का अर$क, अंगूर का शीरा; अंगूर से बनी हुई शराब, अंगूरी मदिरा।
आबे अंगूरी (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे अंगूरÓ।
आबे अनार (फ़ा.पु.)-अनार का रस, अनार का अर$क, अनार के अर$क जैसी लाल मदिरा।
आबे आतशरंग (फ़ा.पु.)-आग के रंग का पानी अर्थात् मदिरा, शराब, मय, मद्य।
आबे आतशीं (फ़ा.पु.)-आग-जैसा पानी अर्थात् मय, मदिरा, शराब, मद्य।
आबे इनब (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे अंगूरीÓ, अंगूरी शराब।
आबे इशरत (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे इश्रतÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
आबे इश्रत (अ़.फ़ा.पु.)-मदिरा, शराब, मद्य।
आबे कमाँ (फ़ा.पु.)-धनुष का ज़ोर।
आबे कौसर (अ़.फ़ा.पु.)-बिहिश्त या स्वर्ग के हौज़ का पानी; स्वर्ग की कौसर नामक नहर का पानी, जो सबसे अच्छा और स्वादिष्ठ माना जाता है।
आबे ख़्ांजर (फ़ा.पु.)-ख़्ांजर की धार, छुरी की धार; तलवार की तेज़ी या काट।
आबे ख़्िाजालत (फ़ा.पु.)-वह पसीना, जो शर्मिन्दा या शर्मसार होने से आए।
आबे ख़्िाज्ऱ (अ़.फ़ा.पु.)-अमृत; अमृतजल, आबेहयात, जीवन-जल।
आबे ख़्ाुश्क (फ़ा.पु.)-बिल्लूर का पियाला (प्याला)।
आबे गिरिया (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे गिर्य:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आबे गिर्य: (फ़ा.पु.)-आँसू, अश्क।
आबे गुलगँू (फ़ा.पु.)-गुलाब के फूल-जैसे रंग की शराब, सुख्ऱ्ा शराब, लाल मदिरा, (पियक्कड़ों की बोली में)-लाल-परी।
आबे गोश्त (फ़ा.पु.)-मांस की तरी, गोश्त का पानी, रसा।
आबे गौहर (फ़ा.पु.)-मोतियाबिन्द, आँख में पानी उतरने का एक रोग; मोती की चमक।
आबे चश्म (फ़ा.पु.)-आँखों का पानी, नेत्रजल, आँसू।
आबेजऩ (फ़ा.पु.)-औषधियों के काढ़े से भरा वह पात्र, जिसमें रोगी को बैठाया जाता है।
आबे ज़मज़म (फ़ा.पु.)-अऱब की राजधानी मक्का में 'ज़मज़मÓ नामक कुएँ का पानी, यह पानी बहुत ही पवित्र माना जाता है।
आबे जा (फ़ा.पु.)-नदी का पानी, नहर का पानी।
आबे जारी (अ़.फ़ा.पु.)-प्रवाहित जल, बहता हुआ पानी।
आबे जाविदाँ (फ़ा.पु.)-अमृत, आबे हयात।
आबे ज़लाल (अ़.फ़ा.पु.)-निथरा हुआ पानी, सा$फ जल; ठण्डा पानी। 'आबे ज़ुलालÓ भी प्रचलित।
आबे ज़ेरेकाह (फ़ा.पु.)-वह पानी, जो घास के नीचे छुपा हुआ हो; छल, $फरेब; (वि.)-कपटी, मक्कार, द$गाबाज़।
आबे तरब (फ़ा.पु.)-मद्य, शराब, मदिरा।
आबे तल्ख़्ा (फ़ा.पु.)-मदिरा, शराब; तेज़ाब; खारा पानी, आँसू।
आबे दीद: (फ़ा.पु.)-आँख का पानी, नेत्रजल अर्थात् आँसू।
आबे दीदा (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे दीद:Ó, वही शुद्घ है।
आबे नु$करा (फ़ा.पु.)-दे.-'आबे नुक्ऱ:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आबे नुक्ऱ: (फ़ा.पु.)-चाँदी-जैसा पानी अर्थात् पारा।
आबे ब$का (अ़.फ़ा.पु.)-अमृत, आबे हयात; मदिरा, शराब।
आबे बस्त: (फ़ा.पु.)-शीशा, काँच; जमा हुआ पानी।
आबे बाराँ (फ़ा.पु.)-बरसात का पानी, मेंह का पानी, वर्षाजल।
आबे मर्वारीद (अ़.फ़ा.पु.)-आँखों में पानी उतरना, मोतियाबिन्द का एक रोग; मोती की चमक।
आबे मुंजमिद (अ़.फ़ा.पु.)- जमा हुआ पानी; चमकदार काँच का प्याला, बिल्लूर का प्याला।
आबे मुर्द: (फ़ा.पु.)-स्थिर जल, ठहरा हुआ पानी, जो पानी बहता न हो।
आबे बाराँ (फ़ा.पु.)-वर्षा का जल।
आबे रवाँ (फ़ा.पु.)-बहता हुआ पानी, चलता हुआ जल, जारी पानी; एक प्रकार की बारीक और बढिय़ा मलमल।
आबे रौदे गंगा (फ़ा.पु.)-गंगा नदी।
आबे शोर (फ़ा.पु.)-खारा पानी; समुद्र का पानी।
आबे सियाह (फ़ा.पु.)-काला पानी, अंडमान द्वीप-समूह।
आबे हयात (अ़.फ़ा.पु.)-सुधा, अमृत, जीवनजल।
आबे हराम (फ़ा.पु.)-अपवित्र और अपेय जल अर्थात् मद्य, मदिरा, शराब।
आबे हैवाँ (अ़.फ़ा.पु.)-दे.-'आबे हयातÓ।
आबोगिल (फ़ा.पु.)- आदमी का ढाँचा, मनुष्य का पंजर।
आबोताब (फ़ा.स्त्री.)-ठाठ-बाट, चमक-दमक, शान-शौकत, धूमधाम।
आबोदान: (फ़ा.पु.)-अन्न-जल, दाना-पानी; जीविका, रोज़ी।
आबोबाद (फ़ा.पु.)-पानी और वायु, बादल और वायु।
आबोरौ$गन (अ़.फ़ा.पु.)-चिकनी-चुपड़ी बातें, बातचीत में नमक-मिर्च।
आबोहवा (अ़.फ़ा.स्त्री.)-जलवायु, स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी स्थान का पानी और वायु।
आब्नूस (फ़ा.पु.)-एक प्रसिद्घ काली लकड़ी, जो बहुत भारी होती है।
आम: (फ़ा.स्त्री.)-सियाही-दानी, दवात, मसिपात्र, बुद्दका।
अ़ाम (अ़.वि.)-फैला हुआ, मशहूर, प्रसिद्घ; सर्वसाधारण, अ़ाम लोग; जो मुख्य न हों, गौण; सर्वव्यापक, हम:गीर; साधारण, मामूली, अ़ामजन; बाज़ारी, नीचा, कम-$कद्र, कम $कीमत का। (सं.पु.)-एक सुप्रसिद्घ पेड़ जिसके फल खाए तथा चूसे जाते हैं, आम। मुहा.-'आम के आम गुठली के दामÓ-दोहरा लाभ होना। 'आम खाने से काम या पेड़ गिनने सेÓ-अपने काम से काम, निरर्थक प्रश्नों से क्या प्रयोजन।
आमद: (फ़ा.वि.)-आगत, आया हुआ।
आमद (फ़ा.स्त्री.)-पधारना, आगमन; आने की ख़्ाबर, आने के आसार; आय, प्राप्ति, इन्कम, आमदनी; वह विचार, जो बिना सोचे ही मस्तिष्क में आया हो; जो बात अपने-आप मन में पैदा हो, बे-बनावट की बात।
आमद आमद (फ़ा.स्त्री.)-किसी के आने की चर्चा, किसी के आने की धूम; किसी के आने की ख़्ाबर।
आमदनी (फ़ा.स्त्री.)-कमाई, आय, आमद, प्राप्ति; उत्पत्ति, पैदावार; आयात, जो चीजें़ बाहर से आएँ।
अ़ाम पसंद (फ़ा.वि.)-सर्वप्रिय; वह, जो सबको पसंद हो।
आमदोख़्ार्च (फ़ा.पु.)-आय-व्यय, आमदनी और ख़्ार्चा।
आमदोरफ़्त (फ़ा.स्त्री.)-आना-जाना, आवागमन; मेल-जोल; यातायात; आयात-निर्यात।
अ़ाम$फहम (अ़.फ़ा.वि.)-दे.-'अ़ामफह्मÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
आम$फह्म (अ़.फ़ा.वि.)-सरल, सहज, आसान, सबकी समझ में आनेवाला, जन-साधारण के समझने योग्य।
आÓमा (अ़.वि.)-नेत्रहीन, अन्धा, अन्ध, नाबीना।
आÓमा$क (अ़.पु.)-'उमु$कÓ का बहु., लम्बाइयाँ, चौड़ाइयाँ, ऊँचाइयाँ या गहराइयाँ।
आमाज (फ़ा.पु.)-लक्ष्य, निशाना।
आमाजगाह (फ़ा.स्त्री.)-वह स्थान, जिसे ताककर उस पर निशाना लगाया जाए, लक्ष्य-स्थल, लक्ष्य-बिन्दु, हद$फ।
आमाद: (फ़ा.वि.)-सन्नद्घ, उद्यत, तैयार, तत्पर, मुस्तैद; सहमत, राज़ी।
आमादगी (फ़ा.स्त्री.)-आमादा या तैयार होना; उद्यत होना, तत्पर होना; तत्परता, मुस्तैदी, सन्नद्घता; अनुमति, रज़ामन्दी।
आमादा (फ़ा.वि.)-दे.-'आमाद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आÓमाम (अ़.पु.)-'अमÓ का बहु., चाचा लोग।
आÓमार (अ़.स्त्री.)-'उम्रÓ का बहु., अवस्थाएँ, आयुएँ, उम्रें।
आमाल (अ़.स्त्री.)-'अमलÓ का बहु., आशाएँ, उम्मीदें।
आÓमाल (अ़.पु.)-'अमलÓ का बहु., आचार-व्यवहार, आचरण, चरित्र; काम, कार्य-कलाप, कार्य-समूह; कृतियाँ, कर्म-समूह; जप-तप, विर्द, वज़ी$फा आदि।
आÓमालनाम: (अ़.$फा.पु.)-चरित्रपंजी, वह पत्र जिस पर मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्म लिखे जाते हैं; वह का$गज़, जिसमें सरकारी कर्मचारियों की कारगुज़ारियाँ या बद आÓमालियाँ लिखी जाती हैं।
आमालनामा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'आÓमालनाम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आमास (फ़ा.पु.)-शोथ, सूजन, वरम।
आमासज़द: (फ़ा.वि.)-शोथित, सूजा हुआ।
आमासिंद: (फ़ा.वि.)-सूजनेवाला।
आमासीद: (फ़ा.वि.)-सूजा हुआ।
आमिद (अ़.वि.)-उलटकर आनेवाला, वापस आनेवाला।
आमिन: (अ़.स्त्री.)-निडर स्त्री, निर्भय नारी; हजऱत मुहम्मद साहब की माताजी का नाम।
आमिन (अ़.वि.)-जिसे कोई डर न हो, निर्भय, निडर, बेख़्ाौ$फ; सुरक्षित, मह$फूज़।
अ़ामियान: (अ़.$फा.वि.)-अ़ाम लोगों-जैसा; बाज़ारियों-जैसा; जाहिलों-जैसा; अश्लील, अशिष्ट, नाशाइस्ता; कम क़ीमत या कम प्रतिष्ठा वाला।
अ़ामियाना (अ़.$फा.वि.)-अ़ाम लोगों-जैसा; बाज़ारियों-जैसा, दे.-'अ़ामियान:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ामिर: (अ़.पु.)-परिपूर्ण, भरा हुआ; बसानेवाला, आबाद करनेवाला।
अ़ामिर (अ़.वि.)-आबाद करनेवाला, बसानेवाला; भरा हुआ, परिपूर्ण; आबाद, बसा हुआ। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
आमिर (अ़.वि.)-अधिनायक, शासक, हाकिम, तानाशाह, डिक्टेटर; आदेश करनेवाला, हुक्म देनेवाला। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़ामिरा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ामिर:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आमिरीयत (अ़.स्त्री.)-सत्ता, शासन, हुकूमत; तानाशाही, डिक्टेटरी, अधिनायकता।
अ़ामिल: (अ़.स्त्री.)-काम करनेवाली नारी; कार्यकारिणी, विषय-निर्धारिणी समिति, मज्लिसे अ़ामिला।
अ़ामिल (अ़.वि.)-अ़मल या पालन करनेवाला; काम करने वाला; कारी$गर, दक्ष, कुशल, निपुण; शासक, हुक्मरान; पदाधिकारी, हाकिम; जो जादू-टोना या मिस्मिरेज़म आदि का अ़मल करता हो; जो भूत-प्रेत आदि उतारता हो, जो दैवी-बाधाएँ दूर करता हो, साधक, तंत्र-मंत्र करनेवाला। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
आमिल (अ़.वि.)-उम्मीद करनेवाला, उम्मीदवार, आशा करनेवाला, आशावादी; इच्छुक, चाहनेवाला, ख़्वाहिशमन्द। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़ामी (अ़.वि.)-साधारण आदमी, अ़ामजन, सामान्य व्यक्ति; बाज़ारी आदमी, लो$फर, नीच, आवारा, घटिया, जाहिल। (हिं.स्त्री.)-छोटा आम, अंबिया, बिन पका आम, (सं.स्त्री.)-जौ तथा गेहूँ की भूनी हुई बाल।
आमीन (अ़.अव्य.)-ईश्वर करे ऐसा ही हो, तथास्तु, एवमस्तु, ईश्वर प्रार्थना स्वीकार करे; $कुरान शरी$फ की समाप्ति का उत्सव।
आमुख़्त: (फ़ा.पु.)-दे.-'आमोख़्तÓ, यह भी शुद्घ है।
आमुजऱ्गार (फ़ा.वि.)-क्षमा करनेवाला, बख़्शनेवाला, मोक्ष देनेवाला, मुक्ति देनेवाला, मोक्ष प्रदायक, दयालु, रहीम; ईश्वर, भगवान्।
आमुजि़ऱ्ंद: (फ़ा.वि.)-मुक्ति देनेवाला, मोक्ष देनेवाला, बख़्शनेवाला।
आमुर्जि़श ($फा.स्त्री.)-दया, क्षमा, मुक्ति, मोक्ष, कल्याण, नजात, बख़्िशश।
आमुजऱ्ीद: (फ़ा.वि.)-मुक्ति प्राप्त, मोक्षप्राप्त, मुक्त, बख़्शा हुआ, नजात पाया हुआ।
आमुजऱ्ीदनी (फ़ा.वि.)-मुक्ति प्राप्त होने के योग्य, मोक्ष प्राप्त करने के योग्य, नजात पाने के $काबिल।
आमुल: (अ़.पु.)-एक फल, आमलक, आँवला।
आमुल (फ़ा.पु.)-'माजि़दरानÓ का एक नगर।
आमूद: (फ़ा.वि.)-पूर्ण, परिपूर्ण, भरा हुआ।
आमूदनी (फ़ा.वि.)-पूर्ण करने योग्य, परिपूर्ण करने योग्य, भरने योग्य।
आमून (फ़ा.पु.)-ईरान और तूरान (टर्की) के बीच एक नदी।
आमेख़्त: (फ़ा.वि.)-बनावटी, कृत्रिम, नकली, मिलावट किया हुआ; मिला हुआ, मिलाया हुआ, मिलावट करके बनाया हुआ।
आमेख़्तनी (फ़ा.वि.)-मिलाने योग्य; मिलने योग्य।
आमे$ग (फ़ा.प्रत्य.)-दे.-'आमेज़Ó।
आमेज़ (फ़ा.प्रत्य.)-मिलने वाला, मिलानेवाला, जैसे- 'रंगआमेज़Ó=रंग मिलानेवाला।
आमेज़गार (फ़ा.वि.)-सुशील, अच्छे व्यवहार या आचरण वाला, ख़्ाुश अख़्ला$क, ख़्ाुशमिज़ाज, प्रसन्नचित्त।
आमेजि़ंद: (फ़ा.वि.)-मिलनेवाला; मिलानेवाला, संयुक्त करनेवाला।
आमेजि़श (फ़ा.स्त्री.)-मिलाने की क्रिया, मेल, मिलाना, मिलावट, मिश्रण; मिलौनी, मिलनी; अच्छी चीज़ में बुरी चीज़ मिलाना।
आमेज़ीद: (फ़ा.वि.)-मिलानेवाला, संयुक्त करनेवाला।
आमोख़्त: (फ़ा.पु.)-पढ़े हुए पाठ को फिर से पढऩा, पुनर्पठन, उद्घरनी; (वि.)-पढ़ा हुआ, पठित; सीखा हुआ। 'आमोख़्त: करना या पढऩाÓ-पढ़े हुए को दोहराना, पढ़ा हुआ पाठ फिर से दोहराना।
आमोख़्तनी (फ़ा.वि.)-सीखने योग्य; सिखाने योग्य; पढऩे योग्य; पढ़ाने योग्य।
आमोख़्ता (फ़ा.पु.)-दे.-'आमोख़्त:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आमोजग़ार (फ़ा.वि.)-शिक्षक, सिखानेवाला, अध्यापक, उस्ताद; शिक्षार्थी, सीखनेवाला।
आमोजि़ंद: (फ़ा.स्त्री.)-सिखानेवाला; सीखनेवाला।
आमाजि़श (फ़ा.स्त्री.)-सिखाई, शिक्षण, सीख।
आमोज़ीद: (फ़ा.वि.)-सीखा हुआ; सिखाया हुआ।
आमोज़ीदनी (फ़ा.वि.)-सीखने योग्य, सिखाने योग्य।
अ़ाम्म: (अ़.वि.)-सब जनता की, अ़ाम जन की, अ़वामी, सार्वजनिक; प्रसिद्घ, मशहूर। (हिं.पु.)-नेवले की प्रजाति का एक जंतु।
अ़ाम्मतुन्नास (अ़.पु.)-जन-साधारण, सर्व-साधारण, अ़ाम जनता, अ़वाम, अ़ामजन।
अ़ाम्मतुलख़्ालाइ$क (अ़.पु.)-अ़ाम जनता, जन-साधारण, सर्व-साधारण, अ़वाम।
अ़ाम्मह (अ़.वि.)-दे.-'अ़ाम्म:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ाम्मा (अ़.वि.)-दे.-'अ़ाम्म:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आयंद: (फ़ा.वि.)-आगामी, आनेवाला; आगे चलकर, भविष्य में; भविष्य, मुस्तक़्िबल, आइंदा।
आयंदगानो रविंदगाँ (फ़ा.पु.)-आने-जाने वाले लोग।
आयत (अ़.स्त्री.)-संकेत, निशान, चिह्नï; $कुरान का कोई एक पूरा वाक्य, उस वाक्य के अन्त पर बना हुआ गोल निशान। (सं.पु.)-विशाल, दीर्घ, विस्तृत; ज्यामिति का दीर्घ चतुरस्र (चौकोर, चार कोणवाला) आकार।
आÓयत (अ़.वि.)-लम्बी गर्दनवाला, लम्बकंठी।
अ़ायद (अ.वि.)-दे.-'अ़ाइदÓ, 'अ़ायदÓ अशुद्घ है, प्रवृत्त; प्रयुक्त होनेवाला, प्रयुक्त या लागू होने योग्य।
आÓयन (अ़.वि.)-बड़ी-बड़ी आँखोंवाला, दीर्घाक्ष।
आयन्दा ($फा.वि.)-दे.-'आइंद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आया (फ़ा.अव्य.)-एक प्रश्नवाचक शब्द, क्या, किम्, जैसे-'आया आप हमारे घर आएँगेÓ-क्या आप हमारे घर आएँगे। (पुत्र्त.स्त्री.)-बच्चों की देख-रेख करनेवाली स्त्री, दाई, धाय। (हिं.क्रि.)-'आनाÓ क्रिया का भूतकालिक रूप; बुलाने पर पास पहुँचा; जाकर वापस लौटा; पेड़-पौधे पर फल या भूल लगा; शरीर पर ज्वर आदि का प्रभाव हुआ।
आयात (अ़.स्त्री.)-'आयतÓ का बहु., $कुरान शरी$फ की आयतें। (सं.वि.)-आया हुआ, (सं.पु.)-वह वस्तु या माल जो व्यापार के निमित्त कहीं बाहर से अपने देश में लाया या मँगाया जाए।
आयान (फ़ा.पु.)-आगन्तुक, आनेवाला, आगमन करने-वाला।
आÓयान (अ.पु.)-'ऐनÓ का बहु., बड़े-बड़े लोग, प्रतिष्ठित जन, सम्मानित लोग, महान् व्यक्ति।
आयानी (फ़ा.स्त्री.)-सुन्दरता, उत्तमता, अच्छाई; शिष्टता, सभ्यता, सुशीलता, शाइस्तगी।
आÓयानी (अ़.वि.)-सगा, एक माँ-बाप का, सहोदर।
आÓयुन (अ़.स्त्री.)-'ऐनÓ का बहु., आँखें।
अ़ार (अ़.पु.)-शर्म, लाज, लज्जा, $गैरत; घृणा, न$फरत, घिन; दोष, ऐब, नंग; अप्रतिष्ठा, बदनामी। मुहा.-'अ़ार आनाÓ-शर्म आना, लज्जा आना। 'अ़ार समझनाÓ-ऐब या दोष मानना। (सं.पु.)-खान से निकाला हुआ ताज़ा लोहा; पीतल; किनारा, तट; कोना; पहिये का आरा; (सं.स्त्री.)-कील, जो साँटे में लगी रहती है; मुर्गे़ के पंजे के ऊपर का काँटा; बिच्छू, भिड़ आदि का डंक; चमड़ा छेदने का सूआ या सुताली; (दे.पु.)-ईख का रस निकालने का कच्छुला, पल्ली, (हिं.स्त्री.)-हठ, अड़, जि़द।
आÓरज (अ़.वि.)-लँगड़ा, पंगु।
अ़ारज़ा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ारिज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आरज़ी (अ़.वि.)-वैसे ही, बिना आवश्यकता के; अस्थायी, अल्पकालिक। दे.-'आजऱ्ीÓ।
आरज़ू ($फा.स्त्री.)-दे.-'आजऱ्ूÓ, इच्छा, वांछा।
आरज़ूगाह ($फा.स्त्री.)-दे.-'आजऱ्ूगाहÓ।
आरज़ूमंद (फ़ा.वि.)-दे.-'आजऱ्ूमंदÓ, आरज़ू या कामना रखनेवाला।
आरज़्म (फ़ा.स्त्री.)-लड़ाई, युद्घ, समर, जंग।
आरद (फ़ा.पु.)-आटा, पिसा हुआ अनाज।
आरश (फ़ा.पु.)-ईरान का एक पहलवान, जो धनुर्विधा में अत्यन्त निपुण था।
आरा (फ़ा.प्रत्य.)-(यौगिक शब्दों के अन्त में व्यवहृत), सजानेवाला, सँवारनेवाला, शोभा बढ़ानेवाला, जैसे-'जहाँआराÓ-संसार को सजाने या सँवारनेवाला या वाली। (सं.पु.)-लकड़ी चीरने का एक औज़ार; लकड़ी की वह चौड़ी पटरी जो पहिये की गड़ारी तथा पुट्ठी के मध्य जुड़ी रहती है; चमड़ा सीने का सूआ, सुताली।
आरा (अ़.स्त्री.)-'रायÓ का बहु., रायें, मत-समूह।
आराइंद: (फ़ा.वि.)-सजानेवाला, सँवारनेवाला।
आराइश ($फा.स्त्री.)-सजावट, सुसज्जा, सजाना; बनाव, सिंगार, शंृगार।
आराइश पसंद (फ़ा.वि.)-बनाव सिंगार का शौ$कीन, सुन्दरता का रसिया।
आराई ($फा.स्त्री.)-सजाने की क्रिया, सजावट। मुहा.- 'गुल आराईÓ-फूल सजाना।
आराजि़यात (अ़.स्त्री.)-'अराज़ीÓ का बहु., ज़मीनें, खेती-बाड़ी, कृषि-भूमि।
आराज़ी (अ़.स्त्री.)-'अजऱ्Ó का बहु., ज़मीनें, भूमियाँ; वह भूमि, जिसमें खेती-बाड़ी होती हो; गैऱ आबाद ज़मीन।
आराब: (फ़ा.पु.)-छकड़ा, गाड़ी, बैलगाड़ी।
आÓराब (अ़.पु.)-अऱब के वे घुमन्तु लोग, जो जंगल में इधर-उधर घूम-फिरकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, बद्दू लोग। (यह शब्द ऐसा बहुवचन है, जिसका एकवचन नहीं है)।
आराबा (फ़ा.पु.)-दे.-'आराब:Ó, वही शुद्घ है।
आÓराबी (अ़.पु.)-अऱब की घुमक्कड़ जाति का व्यक्ति, बद्दू।
आराम (अ़.पु.)-'रीमÓ का बहु., हिरनों के बच्चे।
आराम ($फा.पु.)-थकान या हार मिटाना, दम लेना, विश्राम करना; सुख, चैन, राहत, ऐश; आनन्द, हर्ष, ख़्ाुशी; सुगमता, आसानी; नीरोगता, शि$फा, स्वास्थ्य-लाभ। 'आराम सेÓ-$फुर्सत से, धीरे-धीरे, सहज-सहज में। 'आराम करनाÓ-सोना, विश्राम करना, थकावट मिटाना। 'आराम में आनाÓ-आनन्द में होना। 'आराम से पाँव फैलानाÓ-सुख की नींद सोना। 'आराम होनाÓ-सुविधा होना;लाभ होना; निरोग होना। (सं.पु.)-बा$ग, उपवन, फुलवाड़ी।
आरामकुर्सी ($फा.स्त्री.)-सुखासंदी, वह बड़ी कुर्सी जिस पर लेट भी सकते हैं।
आरामख़्वाह (फ़ा.वि.)-सुख चाहनेवाला, काम-धन्धों से जी चुरानेवाला, कामचोर, निकम्मा।
आरामगाह ($फा.स्त्री.)-विश्रान्तिगृह, विश्रामालय, ठहरने और आराम करने का स्थान; शयनागार, सोने का स्थान, ख़्वाबगाह।
आरामजाँ (फ़ा.पु.)-दे.-'आरामे जाँÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
आरामजान (लखनवी बोली, पु.)-एक $िकस्म का छोटा पानदान।
आरामतलब (अ़.फ़ा.वि.)-जो हर बात का आराम चाहता हो; विलास-प्रिय; सुख चाहनेवाला, आराम चाहनेवाला, सुखेच्छु; आलसी, काहिल, सुस्त, निकम्मा, आरामपसंद; जो परिश्रम करना पसंद न करे।
आरामतलबी (अ़.$फा.स्त्री.)-हर तरह का आराम चाहना; सुख की चाह; आलस्य, काहिली, सुस्ती; पड़े-पड़े खाना और काम से जी चुराना; मेहनत से घबराना।
आरामदेह (फ़ा.वि.)-सुखदायी, सुख देनेवाला, आराम पहुँचानेवाला; आराम पहँुचानेवाली वस्तु या काम।
आरामपसन्द (फ़ा.वि.)-दे.-'आरामतलबÓ।
आरामरसाँ (फ़ा.वि.)-दे.-'आरामदेहÓ।
आरामिंद: (फ़ा.वि.)-आराम करनेवाला।
आरामिश ($फा.स्त्री.)-सुख, चैन, राहत।
आरामी (फ़ा.वि.)-दे.-'आरामतलबÓ।
आरामीद: (फ़ा.वि.)-सुख पाया हुआ, जिसने सुख पाया हो, आराम किया हुआ, जिसने आराम किया हो।
आरामे जाँ (फ़ा.पु.)-जान का आराम यानी प्राणों का सुख अर्थात् प्रिय, माÓशू$क, प्रेयसी, प्रेमिका; पुत्र, बेटा।
आÓराश (अ़.पु.)-'अ़र्शÓ का बहु., बहुत-से अ़र्श, अनेक आसमान, कई आकाश।
आÓरास (अ़.पु.)-'उर्सÓ या 'उरूसÓ का बहु., बहुत-से उर्स।
आरास्त: (फ़ा.वि.)-सजा हुआ, सुसज्जित (घर आदि); शृंगारित, आभूषित, आभूषण-जेवर, गहने आदि से सजी हुई (नारी)।
आरास्त:मू (फ़ा.वि.)-बाल सँवारे हुए, चोटी आदि गूँथे हुए।
आरास्तगी (फ़ा.स्त्री.)-घर आदि की सज्जा, सजावट; नारी का शृंगार; क्रम, तर्तीब।
आरास्ता (फ़ा.वि.)-दे.-'आरास्त:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ारिज़: (अ़.पु.)-बीमारी, व्याधि, रोग, मर्ज़, आमय; अ़ादत, लत, व्यसन।
अ़ारिज़ (अ़.पु.)-गाल, कपोल, रुख़्ासार; बाधक, रुकावट डालनेवाला, रोकनेवाला; होनेवाला, घटित होनेवाला, पेश आनेवाला। 'अ़ारिज़ होनाÓ-पैदा होना, प्रकट होना, ज़ाहिर होना।
अ़ारिज (अ़.वि.)-ऊपर की ओर जानेवाला।
अ़ारिज़ा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ारिज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ारिज़ी (अ़.वि.)-क्षणिक, थोड़ी देर का; अस्थायी, $गैर मुस्तकि़ल, कुछ दिन का, चन्दरोज़ा, यूँ ही।
अ़ारिज़े सीमीं (अ़.पु.)-गोरा गाल, चिट्टा कपोल।
अ़ारिन्द: (फ़ा.वि.)-लानेवाला, (पु.)-भारवाहक, मज़दूर।
अ़ारिन्दा (फ़ा.वि.)-दे.-'अ़ारिन्द:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ारि$फ: (अ़.स्त्री.)-अ़ारि$फ नारी, ब्रह्मïज्ञानी; तत्त्वदर्शी, ब्रह्मï को पहचाननेवाली।
अ़ारि$फ (अ़.वि.)-ज्ञाता, जाननेवाला, पहचाननेवाला; ह$क आगाह, ब्रह्मïज्ञानी; सू$फी; ब्रह्मï से परिचित, वा$िक$फ, साधु, वली, महात्मा; सन्तोषी, सब्र करनेवाला।
अ़ारि$फ बिल्लाह (अ़.वि.)-ब्रह्मïज्ञानी, ईश्वर को पहचाननेवाला, ख़्ाुदा रसीद:, ऋषि, मुनि, तपस्वी, वली।
अ़ारि$फा (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ारि$फ:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़ारि$फान: (अ़.$फा.वि.)-अ़ारि$फों-जैसा, सू$िफयों-जैसा, ब्रह्मïज्ञानियों-जैसा, ऋषियों-जैसा।
अ़ारि$फाना (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ारि$फान:Ó, शुद्घ वही है।
अ़ारियत (अ़.स्त्री.)-अस्थायित्व, नापाइदारी; किसी वस्तु का माँगा हुआ होना, उधार लिया हुआ; कोई वस्तु किसी से कुछ समय के लिए मँगनी माँगना, अमानती लेना, उधार माँगना; उधार, $कर्ज़।
अ़ारियतन (अ़.वि.)-कुछ दिन के लिए उधार, $कजऱ् के रूप में, थोड़ी देर के लिए माँगा हुआ, मँगनी के तौर पर, माँग- कर, अमानती।
अ़ारियतनाम: (अ़.पु.)-वह प्रपत्र, जिसमें उधार ली हुई वस्तु की वापसी के बारे में लिखा-पढ़ी हो, वह इ$करारनामा जो माँगी हुई चीज़ के वापस करने के लिए लिखा जाता है।
अ़ारियतनामा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ारियतनाम:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ारियती (अ़.वि.)-कुछ दिन के लिए माँगा हुआ, चन्द रोज़ा, अस्थायी, अल्पकालिक, अ़ारिज़ी माँगी हुई वस्तु।
अ़ारी (अ़.वि.)-तंग, जि़च, दि$क; दीन, नंगा, नग्न; वंचित, खाली, महरूम; मजबूर, लाचार, विवश, निस्सहाय; गद्य का एक प्रकार, जो सीधा-सादा होता है और जिसमें अलंकार आदि कुछ नहीं होते, रोज़मर्रा की नस्र; थका हुआ, शिथिल। मुहा.-'अ़ारी हो जानाÓ-तंग आ जाना, थक जाना। (हिं.स्त्री.)-लकड़ी चीरने का औज़ार; गाड़ी हाँकनेवाले के साँटे में लगी हुई लोहे की कील; जूता सीने का औज़ार, सूआ, सुताली।
आरे (फ़ा.स्त्री.)-हाँ, जी हाँ। (हिं.क्रि.वि.)-समीप, पास, निकट।
आरे बले (फ़ा.पु.)-'हाँ-हाँÓ कहना मगर काम न करना, टालमटोल, हीला-हवाला।
आरो$ग (फ़ा.स्त्री.)- डकार, उद्गार; धूम।
आरो$िगंद: (फ़ा.वि.)-डकार लेनेवाला।
आरो$गे तुरुश (फ़ा.स्त्री.)-खट्टी डकार, अम्लोद्गार, अम्लिका।
आरोप (सं.पु.)-स्थापित करना, लगाना, मढऩा; किसी पौधे को एक स्थान से उखाड़कर दूसरी जगह लगाना; मिथ्या ज्ञान, झूठी कल्पना; एक वस्तु में अन्य वस्तु के गुण की कल्पना; किसी के विषय में यह कहना कि उसने ऐसा किया है। मुहा.-'आरोप करनाÓ-किसी का यह कहना कि अमुक व्यक्ति ने यह दोष या अपराध किया है। 'आरोप लगानाÓ-द$फा लगाना, दोषी ठहराना।
आजऱ्ू (फ़ा.स्त्री.)-तमन्ना, कामना, अभिलाषा, इच्छा, चाह, लालसा, ख़्वाहिश; उत्कंठा, इश्तिया$क; आश्रय, सहारा; दिली मुराद, मनोकामना; आशा, उम्मीद।
आजऱ्ूए ख़्ााम (फ़ा.स्त्री.)-वह अभिलाषा या इच्छा, जो पूरी न हो सके।
आजऱ्ूए मुर्द: (फ़ा.स्त्री.)-मृतेच्छा, मरी हुई आस, वह इच्छा या अभिलाषा जो दम तोड़ चुकी हो।
आजऱ्ूए मुला$कात (अ़.फ़ा.स्त्री.)-मिलने की अभिलाषा या चाह; प्रेयसी या प्रेम-पात्र से मिलने की इच्छा।
आजऱ्ूए वस्ल (अ़.फ़ा.स्त्री.)-प्रेयसी से मिलन की प्रेमी की अभिलाषा (इच्छा)।
आजऱ्ूगाह (फ़ा.स्त्री.)-उम्मीद पूरी होने की जगह, वह स्थान जहाँ से कोई मनोकामना सिद्घ होने की आशा हो, संसार, दुनिया, जगत्।
आजऱ्ूमंद (फ़ा.वि.)-आकांक्षी, आकांक्षा या चाह रखने-वाला, अभिलाषी, इच्छुक, ख़्वाहिशमंद, तमन्ना रखनेवाला।
आजऱ्ूमंदी (फ़ा.स्त्री.)-तमन्ना, चाह, इच्छा, अभिलाषा।
आर्द (फ़ा.पु.)-चून, आटा, पिसा हुआ अन्न।
आर्वी (फ़ा.पु.)-शफ़्तालू, एक फल।
आलंग (तु.पु.)-हरियाली का मैदान, चरागाह, सब्ज़ाज़ार। (देश.पु.)-घोडिय़ों की मस्ती।
आल: (अ़.पु.)-उपकरण, यंत्र, औज़ार।
आल (अ़.स्त्री.)-संतान, औलाद, बाल-बच्चे; लड़की की संतान, नाती आदि; वंशज, कुलवाले, वंशवालेे; वंश, कुल। 'आल ओ अत्$फालÓ-बेटा-बेटी और उनके बाल-बच्चे।
आल (तु.वि.)-लाल रंग, लाल, सुख्ऱ्ा; रक्त, रक्तिम; एक प्रकार की शराब। (सं.पु.)-हरताल; आँसू, अश्रु; (स्त्री.)-एक पौधा जो रंग बनाने के काम में आता है; इस पौधे से बना हुआ रंग; तरी, गीलापन; (देश.स्त्री.)-प्याज़ का डंठल; लौकी, कद्दू; (देश.पु.)-गाँव का एक भाग।
आलएकार (अ़.$फा.पु.)-वह व्यक्ति, जो किसी कार्य-सिद्घि में माध्यम हो; वह व्यक्ति, जिससे हर काम लिया जा सके, हर$फन मौला; काम करने का यंत्र या उपकरण।
आलए कुशावजऱ्ी (अ़.$फा.पु.)-कृषि-कार्य करने के औज़ार या उपकरण, कृषि-यंत्र।
आलए तनासुल (अ़.पु.)-पुरुष की इन्द्रिय, शिश्न, लिंग।
आलए नक़्बज़नी (अ.$फा.पु.)-सेंध लगाने के लिए चोरों का एक यंत्र या उपकरण, साबर, सबरी।
आलए मोहलिक (अ़.पु.)-प्राणघातक अस्त्र, वह उपकरण या औज़ार, जिससे हत्या हो सके।
आलए हर्ब (अ़.पु.)-लड़ाई का हथियार, युद्घास्त्र।
आलऔलाद (अ.स्त्री.)-संतान, बाल-बच्च, संतति।
आलची (तु.पु.)-लेनेवाला, वसूल करनेवाला, संग्राहक।
आलत (अ़.पु.)-पुरुष की इन्द्रिय, शिश्न, लिंग, आलए तनासुल, लिंगेन्द्रिय; औज़ार, उपकरण, हथियार।
आल तम्ग़ा (तु.पु.)-किसी को पुश्त दर पुश्त के लिए कोई जागीर दे देना।
आÓलन (अ़.वि.)-बहुत सा$फ, अधिक स्पष्ट। (हिं.स्त्री.)-दीवारों पर लीपने की मिट्टी में मिला हुआ घास-भूसा; किसी साग में मिलाया जानेवाला बेसन या आटा।
आÓलम (अ़.वि.)-बहुत अधिक जाननेवाला; सबसे अधिक जाननेवाला, ÓआÓलिमÓ भी प्रचलित। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फ और ऐनÓ अक्षर से बना है।
अ़ालम (अ़.पु.)-संसार, विश्व, दुनिया, जहान, जगत्; अवस्था, दशा, हालत; ढंग, तौर-तरी$का; बहार, रौन$क, रूप; मानिन्द, समान; जनसमूह। 'अ़ालम-ए-तस्वीरÓ-विस्मृति की स्थिति, स्तब्धता और निश्चेष्टता की अवस्था। 'अ़ालम-ए-माÓनीÓ-आध्यात्मिक संसार। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐन और अलि$फÓ अक्षर से बना है।
आलम (अ़.वि.)-बहुत दु:ख देनेवाला, अत्यधिक कष्ट देनेवाला, अत्यन्त कष्टदायी। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़ालम अ$फरोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ालम अफ्ऱोज़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़ालम अफ्ऱोज़ (अ़.$फा.वि.)-संसार को रौशन करनेवाला, सृष्टि को चमक देनेवाला, सूर्य, सूरज, दिवाकर, भास्कर।
अ़ालम आरा (अ़.$फा.वि.)-संसार की शोभा बढ़ानेवाला, सृष्टि को सुसज्जित और शृंगारित करनेवाला।
अ़ालम आराई (अ़.$फा.स्त्री.)-दुनिया की शोभा, सजावट और सिंगार, विश्वशोभा।
अ़ालम आश्कार (अ़.$फा.वि.)-विश्व-विदित, सर्व-विदित, संसार-भर में ज़ाहिर, विश्वप्रसिद्घ।
अ़ालम आश्कारा (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ालम आश्कारÓ।
अ़ालम आश्ना (अ़.$फा.वि.)-सारे संसार से परिचित, सब का मित्र, सर्वमित्र; जिससे सारा संसार परिचित हो, सर्वप्रिय।
अ़ालम आश्नाई (अ़.$फा.वि.)-सारे संसार से परिचित होना, विश्वज्ञ; सारे संसार का परिचित होना।
अ़ालमगीर (अ़.$फा.वि.)-सारे विश्व में फैला हुआ, संसार-व्यापी; विश्व-विजयी, संसार को जीतनेवाला, जगत्-विजयी; (पु.)-औरंगज़ेब बादशाह की एक पदवी।
अ़ालमताब (अ़.$फा.वि.)-विश्व को प्रकाशित करनेवाला, जगत् को रौशन करनेवाला, अ़ालम अफ्ऱोज़।
अ़ालमपनाह (फ़ा.वि.)-जहाँपनाह, बादशाह।
अ़ालम $फरेब (अ़.$फा.वि.)-सारे संसार को मुग्ध करने-वाला, विश्वमोहन।
अ़ालमसोज़ (फ़ा.वि.)-दुनिया को जला देनेवाला।
अ़ालमी (अ़.वि.)-सांसारिक, दुनियावी; इस जगत् का निवासी; सम्पूर्ण विश्व का।
अ़ालमे अज्साम (अ़.पु.)-भू-लोक, मत्र्यलोक, दुनिया, संसार।
अ़ालमे अरवाह (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे अर्वाहÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़ालमे अर्वाह (अ़.पु.)-आत्माओं के रहने का लोक, परलोक, स्वर्ग।
अ़ालमे अ़लवी (अ़.पु.)-परलोक, स्वर्ग।
अ़ालमे असबाब (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे अस्बाबÓ।
अ़ालमे अस्बाब (अ़.पु.)-जहाँ प्रत्येक कार्य के लिए कोई कारण अवश्य हो, दुनिया, जगत्, संसार।
अ़ालमे आब (अ़.$फा.पु.)-वह स्थान, जहाँ पानी ही पानी हो, जलमय अथवा जलमग्न स्थान; मद्यपान की अवस्था।
अ़ालमे $कुदस (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालम $कुदुसÓ।
अ़ालमे $कुदुस (अ़.पु.)-देव-लोक, सुरलोक, स्वर्ग, जन्नत, बहिश्त।
अ़ालमे कौनो$फसाद (अ़.पु.)-वह जगत्, जहाँ चीज़ें पैदा होती और मिटती (मरती) रहें; संसार, दुनिया, पृथ्वी-लोक।
अ़ालमे ख़्ायाल (अ़.पु.)-कल्पना-जगत्, ऐसा संसार, जिसे केवल कल्पनाओं से बनाया गया हो, वह दुनिया जिसे सि$र्फ तसव्वुर ने बनाया हो, काल्पनिक जगत्, कल्पना-लोक।
अ़ालमे ख़्ााक (अ़.$फा.पु.)-संसार, दुनिया, जगत्, भू-लोक, मत्र्यलोक।
अ़ालमे ख़्वाब (अ़.$फा.पु.)-स्वप्न-लोक, वह स्थान जहाँ स्वप्न में पहुँच जाता है; स्वप्न की अवस्था, सोने की स्थिति, निद्रित अवस्था, नींद की हालत।
अ़ालमे $गैब (अ़.$फा.पु.)-अदृश्य-जगत्, परोक्ष-लोक, वह जगत् जो हमें दिखाई नहीं पड़ता, परलोक।
अ़ालमे जबरूत (अ़.पु.)-वह जगत्, जहाँ ईश्वर ही ईश्वर रहता है, ब्रह्मïलोक, अ़ालमे $कुदूस।
अ़ालमे जावेद (अ़.$फा.पु.)-नित्यलोक, जहाँ हमेशा रहना पड़े, स्वर्ग।
अ़ालमे ज़ाहिर (अ़.पु.)-वह जगत्, जो आँखों से दिखाई देता है, संसार, दुनिया, भू-लोक।
अ़ालमे तसव्वुर (अ़.पु.)-वह संसार या दुनिया, जहाँ प्रेमी अपनी प्रेमिका के ध्यान या ख़्ायालों में पहुँच जाता है, प्रेमलोक।
अ़ालमे तस्वीर (अ़.पु.)-स्तब्धता और निश्चेष्टता की अवस्था, जड़-दशा, निश्चेष्ट अवस्था, विस्मृति की स्थिति।
अ़ालमे नासूत (अ़.पु.)-इहलोक, संसार, दुनिया, मत्र्यलोक, मनुष्यलोक।
अ़ालमे $फना (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे $फानीÓ।
अ़ालमे $फानी (अ़.पु.)-वह लोक जिसे नष्ट होना है अर्थात् दुनिया, नश्वर संसार, नाशवान् जगत्।
अ़ालमे ब$का (अ़.पु.)-वह लोक, जिसका कभी नाश नहीं होता, अमरलोक, देवलोक, परलोक, स्वर्ग।
अ़ालमे बजऱ्ख़्ा (अ़.पु.)-वह लोक, जो स्वर्ग और नरक के बीच में है।
अ़ालमे बा$की (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे ब$काÓ।
अ़ालमे बाला (अ़.पु.)-स्वर्ग, बहिश्त; देवलोक, परलोक, आकाश, आस्मान, यमलोक, अ़दम, देवदूतों और $फरिश्तों का संसार।
अ़ालमे बेदारी (अ़.$फा.स्त्री.)-जाग्रत अवस्था, जागने की स्थिति।
अ़ालमे मलकूत (अ़.पु.)-देवलोक, जहाँ केवल देवता और देवदूत ($िफरिश्ते) रहते हैं।
अ़ालमे माÓना (अ़.पु.)-वह अवस्था, जिसका अनुभव न किया जा सके।
अ़ालमे माÓनी (अ़.पु.)-आध्यात्मिक संसार।
अ़ालमे मिसाल (अ़.पु.)-वह जगत्, जो परलोक के अन्तर्गत है और जिसमें दुनिया की हर वस्तु हू-ब-हू (ज्यूँ की त्यँू) मौजूद है।
अ़ालमे रोया (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे ख़्वाबÓ।
अ़ालमे लाहूत (अ़.पु.)-ब्रह्मïलोक, जहाँ ईश्वर के सिवा और कुछ नहीं होता।
अ़ालमे लौहो $कलम (अ़.पु.)-आस्मान, अ़र्श, वह स्थान अथवा लोक जहाँ ईश्वर का सिंहासन है।
अ़ालमे वुजूद (अ़.पु.)-अस्तित्व, जीवनावस्था।
अ़ालमे शुहूद (अ़.पु.)-वह जगत्, जिसमें हम सब कुछ देख सकें, मत्र्यलोक, दुनिया, संसार।
अ़ालमे सि$फली (अ़.पु.)-दे.-'अ़ालमे सिफ़्लीÓ।
अ़ालमे सिफ़्ली (अ़.पु.)-अधम-लोक, तुच्छ जगत् अर्थात् संसार, दुनिया, पृथ्वीलोक।
अ़ालमे सुग्ऱा (अ़.पु.)-इंसान का शरीर, जिसमें सूक्ष्म रूप में वह सब कुछ है, जो संसार में है।
अ़ालमे हयूलानी (अ़.पु.)-मत्र्यलोक, दुनिया, जगत्, संसार।
आÓला (अ़.वि.)-सर्वश्रेष्ठ, सबसे अच्छा, बहुत उम्दा; बहुत बढिय़ा, बुलन्द। (हिं.पु.)-गीला, भीगा, तर; हरा, ताज़ा, (हिं.पु.)-ताक, ताख़्ा, (सं.पु.)-कुम्हार का आंवा, पजावा।
आलाइश ($फा.स्त्री.)-शरीर में रहनेवाला मल और कोई दूषित पदार्थ; पेट के अन्दर का मल, मैल-कुचैल; फोड़े की पीप और लहू; पेट की अँतडिय़ाँ; पाप, गुनाह।
आलाईद: ($फा.वि.)-सना हुआ, लथड़ा हुआ।
आलात (अ़.पु.)-'आल:Ó का बहु., औज़ार, उपकरण; हथियार, अस्त्र-शस्त्र; साज़-सामान, सामग्री, लवाजि़म; दु:ख, रंज। (सं.पु.)-अंगारा, कोयला या जलती लकड़ी।
आलाते जंग (अ़.$फा.पु.)-युद्घास्त्र, लड़ाई के हथियार, आयुद्घ।
आलाते हर्ब (अ़.पु.)-दे.-'आलाते जंगÓ।
आला$फ (अ़.पु.)-'अल्$फÓ का बहु., हज़ारों।
आÓला$फ (अ़.पु.)-'अ़ल$फÓ का बहु., हरी घासें, पशुओं का हरा चारा।
आलाम (अ़.पु.)-'अलमÓ का बहु., आपत्तियाँ, मुसीबतें, कष्ट-समूह, हर प्रकार के दु:ख, $गम, रंज।
आÓलाम (अ़.पु.)-'अ़लमÓ का बहु., संज्ञाएँ, नामावली।
आÓलामे रोज़गार (अ़.$फा.पु.)-सांसारिक कष्ट, दुनिया की विपत्तियाँ या आपत्तियाँ।
आलायश ($फा.स्त्री.)-दे.-'आलाइशÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
आलि$फ (अ़.वि.)-स्नेह करनेवाला, लाड़ लड़ानेवाला।
अ़ालिम: (अ़.स्त्री.)-विदुषी, विद्वान् स्त्री।
अ़ालिम (अ़.वि.)-इल्मवाला, विद्वान्, पंडित, कोविद; ज्ञाता, जाननेवाला, $फाजि़ल। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
आलिम (अ़.वि.)-दु:खदायी, कष्ट देनेवाला। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़ालिमान: (अ़.$फा.वि.)-विद्वानों-जैसा, अ़ालिमों-जैसा।
अ़ालिमाना (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ालिमान:Ó।
अ़ालिमुलगै़ब (अ़.वि.)-अन्तर्यामी, परोक्षवेत्ता, $गैब यानी परोक्ष या अदृश्य लोक की बातें जाननेवाला।
अ़ालिमे कुल (अ़.वि.)-सर्वविद्, सर्वज्ञ, सब कुछ जानने-वाला।
अ़ालिमे $गैब (अ़.वि.)-दे.-'अ़ालिमुल $गैबÓ।
अ़ालिमे बाअ़मल (अ़.पु.)-ऐसा विद्वान्, जिसका आचार-व्यवहार विद्वानों-जैसा हो, उसने जो कुछ पढ़ा हो, उसी के अनुसार उसका आचरण भी हो।
अ़ालिमे बेअ़मल (अ़.$फा.वि.)-ऐसा विद्वान्, जिसका आचरण विद्वानों के विरुद्घ हो, जिसका आचरण पढ़े-लिखे व्यक्ति के व्यवहार के प्रतिकूल हो।
अ़ालिय: (अ़.स्त्री.)-बहुत ऊँची।
अ़ाली (अ़.वि.)-महान्, अज़ीम; बढिय़ा, श्रेष्ठ, उत्तम; उच्च, बुलन्द; विशाल, बड़ा। (सं.स्त्री.)-सखी, सहेली, (हिं.वि.)-गीली, भीगी, तर।
अ़ाली$कद्र (अ़.वि.)-महामहिम, बहुत प्रतिष्ठावाला, बहुत बड़े मर्तबेवाला, अत्यन्त सम्मानित।
अ़ाली ख़्ाानदान (अ़.$फा.वि.)-उच्च कुलवाला, बहुत ऊँचे वंशवाला, कुलीनतम।
अ़ाली गुहर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ाली ख़्ाानदानÓ।
अ़ाली जनाब (अ़.$फा.वि.)-बहुत उच्च पद पर होनेवाला, परम प्रतिष्ठित, महामान्य, अ़ालीजाह; अत्रभवान्, जनाबे अ़ाली।
अ़ाली जर्फ़़ (अ़.वि.)-बड़े दिलवाला, जो प्रत्येक की बुरी-भली बातें सुनकर सहन करे, उच्चाशय, विशाल-हृदय, उदारमना।
अ़ालीजाह (अ़.वि.)-महामान्य, बहुत प्रतिष्ठित, बहुत बड़े रुत्बेवाला; बादशाहों अथवा बड़े लोगों के लिए सम्बोधन-वाक्य।
अ़ालीतबार (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ाली ख़्ाानदानÓ।
अ़ाली दिमा$ग (अ़.वि.)-महाप्रज्ञ, बड़ी सूझ-बूझवाला, उदारधी, उच्चबुद्घि, बुद्घिमान्।
अ़ाली नजऱ (अ़.वि.)-उच्च दृष्टि, दूर तक देखनेवाला, बुलन्द नज़र, उदाराशय, $फराख़्ा-दिल।
अ़ाली नसब (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली ख़्ाानदानÓ।
अ़ाली म$काम (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली$कद्रÓ।
अ़ाली मनिश (अ़.$फा.$वि.)-दे.-'अ़ाली ज़$र्फÓ।
अ़ाली मर्तबत (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली$कद्रÓ।
अ़ाली व$कार (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली मर्तबतÓ।
अ़ालीशान (अ़.$वि.)-बड़ी शानवाला, शानदार; महान्, भव्य; महामान्य, बहुत बड़े मर्तबेवाला।
अ़ाली हजऱत (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली हज्ऱतÓ।
अ़ाली हज्ऱत (अ़.$वि.)-उच्च पद पर आसीन, परम् श्रेष्ठ (व्यक्ति के लिए)।
अ़ाली हिम्मत (अ़.$वि.)-दिलावर, बड़े हौसलेवाला, महा-साहसी, उच्चोत्साही।
अ़ाली हौसल: (अ़.$वि.)-दे.-'अ़ाली हिम्मतÓ।
आलुफ़्त: ($फा.$वि.)-स्वतंत्र स्वभाव का व्यक्ति, स्वाधीन-चेता, स्वच्छन्द, बेबाक, निरंकुश, उद्दण्ड; बाहरी व्यक्ति, गैऱ, अन्य, पराया।
आलुफ़्ता ($फा.$वि.)-दे.-'आलुफ़्त:Ó।
आलू ($फा.पु.)-आलूबुख़्ाारा।
आलूच: ($फा.$पु.)-एक मीठा मेवा; एक पेड़, जिसका फल पंजाब इत्यादि में अधिक खाया जाता है; इस पेड़ का फल, मोटिया बादाम, गर्दालू, अलूचा।
आलूचा ($फा.$पु.)-दे.-'आलूच:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आलूद: ($फा.$वि.)-लिप्त, सना हुआ, युक्त। 'ख़्वाब आलूद:Ó-स्वप्नमय, स्वप्निल।
आलूद: दामन ($फा.$वि.)-दोषी, अपराधी, जो किसी पाप या अपराध में संलग्न हो, जिसका किसी जुर्म में हाथ हो।
आलूद ($फा.$वि.)-दे.-'आलूद:Ó, 'उनका चेहरा था फिर भी गर्दआलूद, आईना जब दिखा दिया हमनेÓ-माँझी।
अलूदए इस्याँ (अ़.$फा.$वि.)-पापमय, पाप से भरा हुआ।
आलूदए माÓसियत (अ़.$फा.$वि.)-दे.-'आलूदए इस्याँÓ।
आलूदगी ($फा.स्त्री.)-किसी अपराध में संलिप्तता, पाप-लिप्तता, अपराध, किसी जुर्म में शुमूलियत; अपवित्रता, नापाकी, अशुद्घता, मलिनता, गंदगी; सांसारिक सम्बन्ध, लिप्त होना।
आलूदा ($फा.$वि.)-दे.-'आलूद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
आलूदा दामन ($फा.$वि.)-दे.-'आलूद: दामनÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
आलू बुख़्ाारा ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ मेवा, आरूक।
आले अ़बा ($फा.पु.)-हज्ऱत $फातिमा, हज्ऱत अ़ली और इमाम हसन तथा हुसैन।
आवंग ($फा.पु.)-अलगनी।
आवंद ($फा.पु.)-बरतन, ज़$र्फ।
आव ($फा.पु.)-जल, पानी, आब।
आवख़्ा ($फा.अव्य.)-आह, हाय, उ$फ्; वाह, ख़्ाूब, अज़ीब, अद्भुत।
आÓवज (अ़.वि.)-टेढ़ा, वक्र।
आÓवर (अ़.वि.)-सौतेला भाई; काना, जिसकी एक आँख ख़्ाराब हो, यकचश्म; एक आँत का नाम; कव्वा, कौआ, काक।
आवरद ($फा.स्त्री.)-दे.-'आवर्दÓ, वही उच्चारण शुद्घ है। बनावट से ऐसी बात पैदा करना जो मन में न हो।
आवारिंद: ($फा.$वि.)-लानेवाला; आक्रमण करनेवाला, हम्लाआवर (हमलावर)।
आवर्द: ($फा.$वि.)-लाया हुआ; किसी का ख़्ाास आदमी; किसी का सि$फारिशी; किसी का दलाल, एजेंट।
आवर्द ($फा.$वि.)-'आमदÓ का विपरीत या उलटा, वह विचार, जो कविता में सोच-समझकर लाया गया हो, जो मस्तिष्क में तुरन्त या यकायक न आया हो; बनावटी, कृत्रिम; जो प्राकृतिक न हो बल्कि यूँ ही किसी प्रकार आया या लाया गया हो।
आवर्दनी ($फा.$वि.)-लाने योग्य।
आवा ($फा.$स्त्री.)-'आवाज़Ó का लघुरूप, स्वर, शब्द, नाद, आवाज़, ध्वनि। (हि.पु.)-वह भट्टी, जिसमें कुम्हार मिट्टी के कच्चे बर्तनों को पकाते हैं। कहा.-'आवेे का आवा बिगडऩाÓ=जत्थे का जत्था बिगडऩा, पूरा ख़्ाानदान बिगडऩा।
आवाज़: ($फा.$पु.)-प्रसिद्घि, नामवरी, धूम, यशोध्वनि, कीर्ति की धूम, जय-जयकार; बोली-ठोली, ताना, व्यंग्य; जनश्रुति, अ$फवाह।
आवाज़ ($फा.$स्त्री.)-स्वर, शब्द, नाद, ध्वनि, बोली; सदा, पुकार, हाँक। 'आवाज़-ए-जरसÓ-घंटियों की आवाज़। 'आवाज़ उठानाÓ-विरुद्घ कहना। 'आवाज़ देनाÓ-किसी को ज़ोर से पुकारना। 'आवाज़ बैठनाÓ-क$फ के कारण स्वर का सा$फ न निकलना, गला बैठना। 'आवाज़ भारी होनाÓ-क$फ के कारण कंठ का स्वर विकृत होना।
आवाज़ा ($फा.$पु.)-दे.-'आवाज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आवाज़े ख़्ांद: ($फा.$स्त्री.)-हँसी की आवाज़।
आवाज़े गिर्य: ($फा.$स्त्री.)-रोने की आवाज़।
आवाज़े गै़ब ($फा.$स्त्री.)-अन्तरात्मा की पुकार; आकाशवाणी।
आवाज़े जरस ($फा.$स्त्री.)-घंटियों की आवाज़।
आवाज़े पा ($फा.$स्त्री.)-पदचाप, पाँव की आहट, पगध्वनि।
आवाज़े बाज़गश्त ($फा.$स्त्री.)-टकराकर लौटी हुई आवाज़, प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द, प्रतिवाद।
आवाजे बुका ($फा.$स्त्री.)-रुदन-ध्वनि, रोने की आवाज़।
आवान (अ़.पु.)-'आनÓ का बहु., बहुत-से काल।
आÓवान (अ़.पु.)-'औनÓ का बहु., मददगार, मदद करने-वाले, सहायकगण, सहयोग या सहायता करनेवाले।
आवार: ($फा.$वि.)-बेकार घूमनेवाला, निकम्मा, व्यर्थ भ्रमण करने-वाला; संचारजीवी, जिसका किसी एक स्थान पर ठिकाना न हो, बे-ठौर-ठिकाने का, उठल्लू; बदचलन, कदाचारी, दुश्चरित्र, बदमाश, लुच्चा। 'जब भी आवारा कोई अब्र गुज़र जाता है, छाँव बनकर यही ख़्ाुर्शीद बिख़्ार जाता हैÓ- माँझी
आवार:गर्द ($फा.$वि.)-बेकार में इधर-उधर मारा-मारा फिरनेवाला, व्यर्थ भ्रमण करनेवाला, एक स्थान पर टिककर न रहनेवाला, उठल्लू। 'कितनी आवार:गर्द हस्ती है, कोई घर है न कोई बस्ती हैÓ-माँझी
आवार:गर्दी ($फा.स्त्री.)-व्यर्थ में अथवा निष्प्रयोजन इधर-उधर घूमना, भटकना, अकारण हाँडऩा।
आवार:मनिश ($फा.$वि.)-आवार:गर्द, व्यर्थ घूमनेवाला; बदचलन, बदमाश, कुमार्गी।
आवार:मिज़ाज (अ.$फा.$वि.)-दुश्शील, दुष्टप्रकृति। दे.- 'आवार:मनिशÓ।
आवार: मिज़ाजी ($फा.$स्त्री.)-आवारगी, बदचलनी; व्यर्थ भ्रमण, आवारागर्दी।
आवार:वतन (अ़.$फा.$वि.)-प्रवासी, परदेशी, जो अपना घर-बार छोड़कर परदेश में मारा-मारा फिर रहा हो।
आवारगी ($फा.$स्त्री.)-आवारापन, शोहदापन; दुराचार, बदचलनी; बेकार इधर-उधर फिरना।
आवारा ($फा.पु.)-दे.-'आवार:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है; मारा-मारा फिरनेवाला; निकम्मा; बदकार, बदचलन।
आवारागर्द ($फा.$वि.)-दे.-'आवार:गर्दÓ।
आवारा मिज़ाज (अ.$फा.$वि.)-दे.-'आवार:मिज़ाजÓ।
आवारा मिज़ाजी (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'आवार:मिज़ाजीÓ।
आविन: (अ़.पु.)-'अवानÓ का बहु., समय और काल, समय-समूह, बहुत समय, काल-समूह, अतिकाल।
आवुर्द: ($फा.वि.)-लाया हुआ; किसी का सि$फारिशी, कृपापात्र।
आवुर्द ($फा.$वि.)-दे.-'आवर्दÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
आवुर्दा ($फा.वि.)-दे.-'आवुर्द:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आवेख़्त: ($फा.$वि.)-लटका हुआ; लटकाया हुआ।
आवेख़्तनी ($फा.$वि.)-लटकने योग्य, लटकाने योग्य।
आवेज़: ($फा.$पु.)-कान में पहनने का एक आभूषण, बुन्दा, बाला, लोलक, लटकन।
आवेज़ ($फा.$अव्य.)-आकर्षक, सम्मोहक, सुन्दर; लटकता हुआ, लटकन या लटकानेवाला, जैसे- 'दिलआवेज़Ó-दिल को लटकानेवाला अर्थात् सुन्दर, (शब्दों के अन्त में व्यवहृत)।
आवेज़ए गोश ($फा.पु.)-कान का लटकन, बुन्दा, लोलक।
आवेज़ाँ ($फा.$वि.)-लटका हुआ, लटकता या झूलता हुआ।
आवेज़ा ($फा.$पु.)-दे.-'आवेज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आवेजि़ंद: ($फा.$वि.)- लिपटनेवाला, लटकनेवाला; लिपटानेवाला, लटकानेवाला।
आवेजि़श ($फा.$स्त्री.)-लाग-डाँट, चढ़ा-ऊपरी, गुत्थम-गुत्था, हाथापाई; युद्घ, लड़ाई।
आश ($फा.पु.)-वह पतला खाद्य पदार्थ, जो पिया जा सके, पेय।
आशकार ($फा.वि.)-प्रकट, ज़ाहिर, स्पष्ट।
आशजौ ($फा.पु.)-छिले और भुने हुए जौ (यव) का जोश दिया हुआ पानी।
आशना ($फा.पु.)-दे.-'आश्नाÓ, वही शुद्घ है।
आशनाई ($फा.$स्त्री.)-दे.-'आश्नाईÓ, वही शुद्घ है।
आशपुंज़ ($फा.वि.)-रसोई का काम करनेवाला, रसोइया, बावर्ची।
आÓशा ($फा.वि.)- रतौंधी का रोगी, रात्र्यंध, शबकोर।
आशाम ($फा.पु.)-चावल की पीच या माँड; खीर; भोजन, खुराक; ($प्रत्य.)-पीनेवाला, जैसे- 'मयआशामÓ=मदिरा पीनेवाला, मद्यप, शराबी।
आशामिंद: ($फा.वि.)-पीनेवाला।
आशामीद: ($फा.वि.)-पिया हुआ, जो पिया गया हो।
आशामीदनी ($फा.वि.)-पीने योग्य, पेय।
अ़ाशिक़ (अ़.वि.)-इश्$क या प्रेम करनेवाला, प्रेमी, चाहने-वाला, अनुरागी,अनुरक्त मुहिब; बहुत पसंद करनेवाला, $कायल; लती, व्यसनी; (ला.)-ईश्वर में मग्न। 'अ़ाशि$क-ए-महजूँÓ-दु:खी प्रमी। 'अ़ाशि$क-ओ-सौदाईÓ-दीवाना, पागल प्रेमी।
अ़ाशि$क मिज़ाज (अ़.वि.)-रँगीला, रसिया, जिं़दादिल, छैला, विलासी; प्रेमप्रवण, जिसके स्वभाव में प्रेम अधिक हो और जो हर सुन्दर व्यक्ति से पे्रम करने के लिए आतुर व तत्पर रहता हो।
अ़ाशि$क मिज़ाजी (अ़.वि.)-स्वभाव का प्रेमप्रवण होना।
अ़ाशि$कान: (अ़.$फा.वि.)-प्रेमियों-जैसा; प्रेमपूर्ण, प्रेम के भावों से भरा हुआ, प्रेमपूर्ण।
अ़ाशि$काना (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़ाशि$कान:Ó, वही शुद्घ है।
अ़ाशि$की (अ़.स्त्री.)-अ़ाशि$क होने की क्रिया या भाव; प्रेम, अनुराग, स्नेह, चाहत, इश्$क, मुहब्बत, आसक्ति। कहा.-'अ़ाशि$की ख़्ाालाजी का घर नहीं हैÓ-प्रेम करना सहज और सरल नहीं है।
आशियाँ ($फा.पु.)-दे.-'आशियान:Ó।
आशियान: ($फा.पु.)-पक्षी का घोंसला, परिन्दों का घर, (ला.)-निवास, घर, मकान।
आशियाना ($फा.पु.)-दे.-'आशियान:Ó, वही शुद्घ है।
अ़ाशिर (अ़.वि.)-दसवाँ, दसवाँ भाग।
आशुफ़्त: (अ़.वि.)-आतुर, व्याकुल, परेशान; अस्त-व्यस्त, तितर-बितर; दुर्दशाग्रस्त; घबराया हुआ; विकल (प्रेमी), अ़ाशि$क, दीवाना।
आशुफ़्त: ख़्ायाल (अ़.$फा.वि.)-जिसके विचार अस्त-व्यस्त हों, व्यस्तविचारवान्, दुविधाग्रस्त, उद्विग्नचित्त, जिसका दिल परेशान और घबराया हुआ हो, ; प्रेमी, अ़ाशि$क।
आशुफ़्त:ख़्ाातिर (अ़.$फा.वि.)-द्वंद्वग्रस्त, जिसका मन एकाग्र न हो, उद्विग्नचित्त; जिसका चित्त परेशान या बेचैन हो; अ़ाशि$क, प्रेमी।
आशुफ़्त: तब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'आशुफ़्त:ख़्ाातिरÓ।
आशुफ्त: नवा ($फा.वि.)-अनर्थभाषी, व्यर्थ की बकवाद करने वाला; अ़ाशि$क, प्रेमी।
आशुफ़्त: बयाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'आशुफ़्त:नवाÓ।
आशुफ़्त: मिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-जिसका चित्त परेशान हो, उद्विग्नचित्त; जिसका मन एकाग्र न हो; पे्रमी, अ़ाशि$क।
आशुफ़्त:मू ($फा.वि.)-बाल बिखेरे हुए; शोकग्रस्त, रंजीदा, प्रेमी, अ़ाशि$क।
आशुफ़्त: रोज़गार ($फा.वि.)-दु:खी, समय जिसके विपरीत हो, दु:खी, कालचक्रग्रस्त, हत-भाग्य।
आशुफ़्त: सर ($फा.वि.)-विक्षिप्त, जिसका सिर फिर गया हो, पागल; प्रेमी, अ़ाशि$क।
आशुफ़्त: हाल ($फा.वि.)-कालचक्रग्रस्त, हत-भाग्य, मुसीबत में फँसा हुआ; पे्रमी, अ़ाशि$क।
आशुफ़्तगी ($फा.स्त्री.)-व्यग्रता, बेचैनी, उद्विग्नता, परेशानी; बौखलाहट, बदहवासी; दुर्दशा; घबराहट, विकलता।
आशुफ़्ता (अ़.वि.)-दे.-'आशुफ़्त:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ाशूर (अ़.पु.)-दे.-'अ़ाशूराÓ।
अ़ाशूरा (अ़.पु.)-मुहर्रम की दसवीं तारीख़्ा।
आशोब ($फा.पु.)-उथल-पुथल, हलचल; शोर, ग़ोग़ा, झगड़ा, $फसाद, बलवा, उपद्रव; विप्लव, क्रान्ति, इन्$िकलाब, तख़्ता-पलट; घबराहट, बेचैनी, विकलता; सूजन, शोथ।
आशोब कद: ($फा.पु.)-दे.-'आशोबगाहÓ।
आशोबगाह ($फा.स्त्री.)-हलचल और झगड़े-$फसाद का स्थान, अर्थात् संसार।
आशोबिंद: ($फा.वि.)-परेशान होनेवाला; मोहित होनेवाला; उद्विग्न, व्याकुल; मुग्ध, आसक्त।
आशोबीद: ($फा.वि.)-व्याकुल, परेशान, उद्विग्न; मुग्ध, आसक्त, $फरेफ़्त:।
आशोबे आगही ($फा.पु.)-मोह-बन्धन, माया-जाल, संसार के झगड़े।
आशोबे चश्म ($फा.पु.)-आँखें दुखने का रोग, नेत्राभिष्यन्द।
आशोबेदह्र (अ़.$फा.पु.)-सांसारिक उथल-पुथल, भाग्य-चक्र की उथल-पुथल।
आशोबे रोज़गार ($फा.पु.)-दे.-'आशोबेदह्रÓ, भाग्यचक्र की उथल-पुथल।
आशोरद: ($फा.वि.)-गूँधा हुआ, मिलाया हुआ; ख़्ामीर किया हुआ।
आश्कार ($फा.वि.)-दे.-'आश्काराÓ।
आश्कारा ($फा.वि.)-प्रत्यक्ष, खुला हुआ, व्यक्त, प्रकट, ज़ाहिर; स्पष्ट; सा$फ; खुलेअ़ाम, सबके सामने, खुल्लम-खुल्ला, सार्वजनिक रूप से।
आश्ती ($फा.स्त्री.)-मित्रता, दोस्ती; संधि, सुलह; शान्ति, सुकून।
आश्तीकोश ($फा.वि.)-मित्रता के लिए कोशिश करनेवाला; शान्ति के लिए प्रयत्नशील।
आश्ती ख़्ाू ($फा.वि.)-जो स्वभावत: मित्रता और शान्ति चाहता हो, शांतप्रकृति।
आश्ती पसन्द ($फा.वि.)-जिसे शान्ति पसन्द हो, जो अमन चाहता हो; शान्तिप्रिय, सन्धिप्रेमी, जो मित्रता और सन्धि व सुकून पसन्द करता हो।
आश्ना ($फा.पु.)-ज्ञात, परिचित, जानकार, वा$िक$फ; सुहृद्, मित्र, दोस्त, यार; जार, उपपति, यार; प्रेमी, प्रेमिका, प्रेयसी; दास, $गुलाम।
आश्नाई ($फा.पु.)-मित्रता, दोस्ती, मैत्री; परिचय, जान-पहचान; प्रेम, मुहब्बत, चाह, स्नेह; अनुचित या नाजाइज़ सम्बन्ध, स्त्री और पुरुष के बीच अनुचित रिश्ते, जारत्व। 'मुझसे है आश्नाई तो इसका सबूत दें, चलकर तो आएँ दूर तक तन्हा मेरे लिएÓ-माँझी
आश्ना $फरोशी ($फा.स्त्री.)-मित्र की उसके मुँह पर प्रशंसा करना।
आश्ना रू ($फा.वि.)-जो सूरत पहचानता हो, सूरत आश्ना, मुखचर्या-निरीक्षक।
आश्ना सूरत (अ़.$फा.वि.)-जिसकी सूरत पहचानी हुई हो; जिसे पहले देखा हो पर उससे परिचय न हो, परिचित मुख, पहचानी सूरत, जाना-पहचाना।
आश्नाह ($फा.स्त्री.)-तैरना, पैरना; तैराकी, पैराकी; (वि.)- तैरनेवाला, तैराक, पैराक।
आश्माली ($फा.स्त्री.)-चाटुकारिता, ख़्ाुशामद, चापलूसी।
आश्याँ ($फा.पु.)-घोंसला, नीड़, कुलाय। (ला.)-घर, निवास, मकान। शुद्घ यही है लेकिन 'आशियाँÓ भी प्रचलित है। 'मुझे ख़्ाुशी है कि सब लोग हाथ सेंक चले, मुझे मलाल नहीं आश्याँ के जलने काÓ-माँझी
आश्यान: ($फा.पु.)-दे.-'आश्याँÓ।
आस ($फा.स्त्री.)-चक्की, पेषणी; ताश, गंजीफा।
आस (अ़.पु.)-एक पेड़, जिसके फल और पत्ते दवा में प्रयुक्त होते हैं। (हिं.स्त्री.)-आशा, उम्मीद; कामना, लालसा; सहारा, आधार। मुहा.-'आस करनाÓ-किसी काम के लिए किसी का मुँह ताकना। 'आस टूटनाÓ-निराशा होना। 'आस होनाÓ-गर्भ रहना। (हिं.पु.)-दिशा; कमान, धनुष; गुदा।
अ़ास [स्स] (अ़.पु.)-रात में पहरा और गश्त देने या लगानेवाला, पहरेदार, चौकीदार।
आस$फ (अ़.पु.)-हजऱत सुलेमान का वह वज़ीर, जो बहुत ही बुद्घिमान् और निपुण था।
आस$फजाह (अ़.पु.)-हैदराबाद के निज़ाम की उपाधि।
आसम (अ़.वि.)-दे.-'आसिमÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, पापी, पातकी।
आसमान ($फा.पु.)-दे.-'आस्मानÓ, वही शुद्घ है।
आसरा (संं.पु.)-आधार, सहारा, अवलम्ब; भरण-पोषण की आशा, भरोसा; आश्रयदाता; जीवन या कार्य-निर्वाह का आधार; शरण; प्रतीक्षा, प्रत्याशा, इन्तिज़ार; आशा।
आसाँ ($फा.वि.)-'आसानÓ का लघु., दे.-'आसानÓ।
आसा ($फा.अव्य.)-समान, तुल्य, वत्। यह शब्द संज्ञा के अन्त में आकर अर्थ देता है, जैसे-'हुबाब आसाÓ-बुलबुले के समान या सदृश, बुलबुले की तरह। (हिं.पु.)-सोने-चाँदी का वह डंडा जिसे चोबदार राजकीय जुलूसों या बारातों आदि के आगे लेकर चलते हैं।
आसाइंद: ($फा.वि.)-सुखभोगी, आराम पानेवाला, सुख पानेवाला।
आसाइश ($फा.स्त्री.)-सुख, चैन, आनन्द, आराम; सुगमता, सुविधा, सुहूलत (सहूलियत); समृद्घि, ख़्ाुशहाली। 'आसाइश-ए-मंजि़लÓ-मंजि़ल का सुख।
आसाईद: ($फा.वि.)-जिसे सुख मिला हो, आराम पाया हुआ।
आसाईदनी ($फा.वि.)-सुख या आराम पाने योग्य।
आसान ($फा.वि.)-सरल, सुगम, सह्ल, सुकर, सहज, मुश्किल या कठिन का उलटा।
आसान पसन्द ($फा.वि.)-जो प्रत्येक काम में सुविधा चाहता हो, परिश्रम या झंझट के काम से घबरानेवाला।
आसानियत ($फा.स्त्री.)-दे.-'आसानीÓ।
आसानी ($फा.स्त्री.)-सुविधा, सुगमता, सरलता, सुकरता, सुहूलत (सहूलियत)।
आसानी पसन्द ($फा.वि.)-दे.-'आसान पसन्दÓ।
आÓसाब (अ़.पु.)-'असबÓ का बहु., पुट्ठे, स्नायु-समूह।
आसामी (अ़.स्त्री.)-दे.-'असामीÓ, शुद्घ वही है; व्यक्ति, प्राणी; जिससे किसी प्रकार का लेन-देन हो; वह जिसने लगान पर जोतने के लिए ज़मींदार से खेत लिया हो, काश्तकार; मुद्दालेह, देनदार; अपराधी, मुलजि़म; वह जिससे किसी प्रकार का मतलब गाँठना हो।
आसायश ($फा.स्त्री.)-दे.-'आसाइशÓ, वही शुद्घ है।
आसार (अ़.पु.)-'असरÓ का बहु., लक्षण, अ़लामतें; चिह्नï, निशान; दीवार की चौड़ाई; इमारत की नींव या बुनियाद; पुरानी इमारतों के खण्डहर। 'आसार-ए-हर्ब-ओ-जंगÓ-युद्घ के लक्षण।
आसारुस्सनादीद (अ़.पु.)-पुरखों की निशानियाँ, पूर्वजों की धरोहरें।
आसारे $कदीम: (अ़.पु.)-पुराने स्मारकों के अवशेष, पुरानी $काबिले यादगार इमारतों के भग्नावशेष।
आसारे $िकयामत (अ़.पु.)-महाप्रलय के लक्षण; कोई बहुत ही भयानक घटना होने के लक्षण।
आसारे हर्बोजंग (अ़.पु.)-युद्घ के लक्षण।
आसाल (अ़.पु.)-'असीलÓ का बहु., सन्ध्याएँ, शामें।
आसास (अ़.पु.)-'असस्Ó का बहु., नीवें, बुनियादें।
अ़ासि$फ (अ़.पु.)-आँधी, झक्कड़; लक्ष्य से हटनेवाला बाण; जिस दिन तेज़ आँधी चले; तेज़ उडऩेवाला शुतुरमु$र्ग।
अ़ासिम (अ़.वि.)-ऐब या दोष से अलग रहनेवाला, बाज़ रहनेवाला; सद्गुणी, पत्नीव्रत, पाकदामन। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से तथा 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ से बना है।
आसिम (अ़.वि.)-पापी, पातकी, अपराधी, दोषी, गुनहगार। इसका 'आÓ उर्दू के अलि$फ तथा 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
अ़ासिम (अ़.वि.)-देर लगानेवाला, विलम्ब करनेवाला, दीर्घसूत्री। इसका 'अ़ाÓ उर्दू के 'ऐनÓ से तथा 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
आसिय: (अ़.स्त्री.)-$िफरअ़ौन की पत्नी का नाम।
आसिया ($फा.स्त्री.)-चक्की, पेषणी।
आसियाए आब ($फा.स्त्री.)-पनचक्की, पानी से चलनेवाली चक्की, जलपेषणी।
आसियाए बाद ($फा.स्त्री.)-पवन-चक्की, वायु के वेग से चलनेवाली चक्की, पवन-पेषणी।
आसिया ज़न: ($फा.पु.)-चक्की टाँकनेकी छेनी।
आसियाब ($फा.स्त्री.)- जल-पेषणी, पानी की चक्की, पानी के वेग से चलनेवाली चक्की या पेषणी।
अ़ासिल (अ़.वि.)-शहद जमा करनेवाला, शहद निकालने-वाला। (पु.)-ज़ोर से फेंका हुआ भाला।
आसी (अ़.वि.)-पीडि़त, दु:खित, $गमगीन, शोकग्रस्त; वह वैद्य या हकीम, जो रास्ते में दुकान लगाता है; उर्दू के एक सुप्रसिद्घ दार्शनिक शायर।
अ़ासी (अ़.वि.)-वृद्घतम, बहुत ही बूढ़ा। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ से बना है।
अ़ासी (अ़.वि.)-पापी, पातकी, अपराधी, गुनहगार, दोषी, पापाचारी। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
आसीम: ($फा.वि.)-चकित, स्तब्ध, शशदर; उद्विग्न, आतुर, व्याकुल, बेचैन, परेशान।
आसीमा ($फा.वि.)-दे.-'आसीम:Ó, वही शुद्घ है।
आसूद: ($फा.वि.)-सुखी और सम्पन्न, समृद्घ, ख़्ाुशहाल, धनवान्; सन्तुष्ट, मुत्मइन; अघाया हुआ, धापा हुआ, पेट भरा हुआ; बे$िफक्र, निश्चिन्त।
आसूद:ख़्ाातिर (अ.$फा.वि.)-परितृप्त, जिसका मन भर गया हो।
आसूद:दिल ($फा.वि.)-जिसका मन अघाया हुआ हो, जिसे पूर्ण सन्तोष प्राप्त हो।
आसूद:हाल (अ़.$फा.वि.)-धन-धान्य से परिपूर्ण।
आसूदगाने ख़्ााक ($फा.पु.)-मुर्दा।
आसूदगी ($फा.स्त्री.)-सुख औा शान्ति; सन्तोष, तृप्ति, तुष्टि, इत्मीनान; समृद्घि, धन-सम्पन्नता, ख़्ाुशहाली; अघाया होना, पेट भरा होना।
आसूदनी ($फा.वि.)-तृप्त होने के योग्य, अघाने के $काबिल।
आसूदा ($फा.वि.)-दे.-'आसूद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
आसूदा दिल ($फा.वि.)-दे.-'आसूद:दिलÓ, वही शुद्घ है।
आसूदाहाल ($फा.वि.)-दे.-'आसूद:हालÓ, वही शुद्घ है।
आसेब ($फा.पु.)-प्रेत-बाधा, भूत-प्रेत, जिन, परी; कोई बड़ा अनिष्ट, ख़्ातरा; विपत्ति, संकट, आ$फत, बला। 'सूनी रातों में ये बजते हुए घँुघरू रोको, शह्रे-आसेब में चलता हुआ जादू रोको।Ó-माँझी
आसेबज़द: ($फा.वि.)-प्रेतबाधा-ग्रस्त, भूताविष्ट, जिस पर जिन या भूत का ख़्ालल अथवा साया हो; वह मकान, जिसमें भूत रहते हों।
आसेबज़दा ($फा.वि.)-दे.-'आसेबज़द:Ó, वही शुद्घ है।
आसेब बाद ($फा.पु.)-बगूला, वात-चक्र, चक्रवात, बवंडर, वातावत्र्त।
आसेबी ($फा.वि.)-दे.-'आसेबज़द:Ó।
आस्तर ($फा.पु.)-दोहरे कपड़े में नीचे वाला कपड़ा, अस्तर।
आस्ताँ ($फा.पु.)-प्रवेशद्वार, चौखट, देहलीज़; ड्योढ़ी; किसी ऋषि का आश्रम या वली की ख़्ाान$काह, $फ$कीरों के रहने का स्थान।
आस्ताँबोस ($फा.वि.)-चौखट चूमनेवाला, ख़्ाादिम, दास, जो सदा उपस्थित रहे।
आस्ताँबोसी ($फा.स्त्री.)-ख़्िादमत, सेवा, दासता।
आस्तान: ($फा.पु.)-दे.-'आस्ताँÓ।
आस्ताना ($फा.पु.)-दे.-'आस्तान:Ó, वही शुद्घ है।
आस्ताने यार ($फा.पु.)-प्रेमिका के मकान की चौखट, प्रेयसी का निवासस्थान।
आस्तीं ($फा.स्त्री.)-'आस्तीनÓ का लघु., दे.-'आस्तीनÓ।
आस्तीन ($फा.स्त्री.)-कुर्ते, अँगरखे या कोट का वह भाग, जो बाँहों को छिपाता है। कहा.-'आस्तीन का साँपÓ-वह मनुष्य, जो मित्रता की आड़ में वैर करे; छुपा हुआ वह दुश्मन, जो साथ रहकर दुश्मनी करे। 'आस्तीन उलटनाÓ-किसी कार्य को करने के लिए उद्यत होना। 'आस्तीन चढ़ानाÓ-क्रोध में लडऩे को तैयार होना। 'आस्तीन झाडऩाÓ-त्यागना, छोडऩा, दे देना, सब-कुछ छोड़कर अलग होना। 'आस्तीन पकडऩाÓ-किसी कार्य को करने से रोकना। 'आस्तीन में साँप पालनाÓ-वैरी को साथ रखना।
आस्माँ ($फा.पु.)-'आस्मानÓ का लघु., दे.-'आस्मानÓ।
आस्माँ $कद्र (अ़.$फा.वि.)-आकाश-जैसी ऊँचाई रखनेवाला अर्थात् बहुत अधिक प्रतिष्ठित, बहुत ऊँची पदवी वाला, सर्वोच्च प्रतिष्ठित, उच्चासनासीन।
आस्माँजाह ($फा.वि.)-दे.-'आस्माँ$कद्रÓ।
आस्माँ रस ($फा.वि.)-गगनस्पर्शी, आकाश तक पहुँचनेवाला, गगनचुम्बी।
आस्माँ रि$फअ़त (अ़.$फा.वि.)-दे.-'आस्माँ $कद्रÓ।
आस्माँ शिगा$फ ($फा.वि.)-गगनभेदी, आस्मान को फाड़ देनेवाला।
आस्माँ सैर (अ़.$फा.वि.)-आकाश पर उडऩेवाला, आकाश-गामी, गगनभ्रमी, गगनचारी।
आस्मान: ($फा.पु.)-छत।
आस्मान ($फा.पु.)-आकाश, गगन, अम्बर, व्योम, नभ, $फलक, चख्ऱ्ा; स्वर्ग, देवलोक। 'कि जिसके हुस्न का चर्चा हर इक ज़बान पे है, ज़मी पे है कि वो शख़्स आस्मान पे हैÓ -माँझी। कहा.-'आस्मान ज़मीन का $फर्क़Ó-बहुत बड़ा अन्तर। 'आस्मान का रखना न ज़मीन काÓ-कहीं का न रखना, नष्ट कर देना। 'आस्मान पर उडऩाÓ-घमण्ड करना, शेख़्ाी मारना। 'आस्मान पर चढऩाÓ-बहुत ऊँचा हो जाना, घमण्ड करना। 'आस्मान-ज़मीन के कुलाबे मिलानाÓ-बेहद कोशिश करना; बेहद झूठ बोलना, बढ़ा-चढ़ाकर बात कहना; जोड़-तोड़ मिलाना, चालाकी करना; हलचल डालना, झगड़ा खड़ा करना। 'आस्मान फट पडऩाÓ-बरबाद हो जाना, अचानक विपत्ति आ जाना। 'आस्मान सर पर उठानाÓ-बहुत ऊधम मचाना, चीख़्ाना, चिल्लाना। 'आस्मान से बातें करनाÓ-बहुत ऊँचा होना। 'आस्मान के तारे तोडऩाÓ-कोई कठिन या असंभव कार्य करना। 'दिमाग़ आस्मान पर होनाÓ-बहुत अभिमान होना।
आस्मानी ($फा.वि.)-आकाश का, आस्मान का, आकाशीय; आस्मान के रंग का।
आस्मानी किताब ($फा.स्त्री.)-आस्मान से आई हुई पुस्तक, जैसे-'बाइबिलÓ, '$कुरानÓ।
आहंग ($फा.पु.)-समय, काल, वक़्त; संकल्प, निश्चय, $कस्द, इरादा, विचार; गान, राग, नग़्मा; (स्त्री.)-किसी कष्ट से कराहने का शब्द, आवाज़। 'आहंग-ए-हुदीख़्वानीÓ-$कुरान पढऩे का आलाप।
आहंज (अ़.पु.)-दे.-'आहंगÓ।
आह ($फा.स्त्री.)-गहरी साँस, कष्टसूचक नि:श्वास, दीर्घ नि:श्वास, हृदय से निकलनेवाला आर्तनाद, उच्छ्वास; हाय, अफ़्सोस। 'आह ओ ज़ारीÓ-दे.-'आहोज़ारीÓ। 'आहे गऱीबाँÓ-गऱीबों की आह। मुहा.-'किसी की आह पडऩाÓ-किसी की कष्टसूचक नि:श्वास का दुखद प्रभाव पडऩा।
आहक ($फा.पु.)-चूना, जला हुआ पत्थर।
आहट ($हिं.स्त्री.)-चलने में पैर या दूसरे अंग से उत्पन्न शब्द, पाँव की चाप, खड़का; वह शब्द जिससे किसी स्थान में किसी के रहने का अनुमान हो; सुरा$ग, टोह, पता।
आहन ($फा.पु.)-लोह, लौह।
आहनगर ($फा.पु.)-लुहार, लौहकार, अयस्कार, लोहे का काम करनेवाला।
आहनदिल ($फा.वि.)-वज्रहृदय, ज़ालिम, क्रूर।
आहनरुबा ($फा.पु.)-चुम्बक पत्थर, मक्ऩातीस।
आहनीं ($फा.वि.)-लोहे का बना हुआ; लोहे-जैसा; लोहमय; लोहे का।
आहनीं अज़्म (अ़.$फा.वि.)-लोहे की तरह अटूट निश्चय-वाला, वह व्यक्ति जो अपने संकल्प पर अटल रहे।
आहनीं जिगर ($फा.वि.)-लोहे-जैसे कठोर हृदयवाला, निर्दय, दयाशून्य, संगदिल, पाषाण-हृदय, वीर।
आहनी ($फा.वि.)-लोहे का; लोहे से बना हुआ।
आहर्मन ($फा.पु.)-दे.-'अहरमनÓ, पारसियों का बदी का ख़्ाुदा।
आहा ($फा.अव्य.)-वाह-वाह, साधु-साधु, प्रशंसात्मक शब्द। (हि.अव्य.)-हिन्दी में भी यह शब्द लगभग इसी रूप में प्रललित, आश्चर्य तथा हर्षबोधक अव्यय।
आहाद (अ़.पु.)-'अहदÓ का बहु., दवाइयाँ।
आहार ($फा.पु.)-लेई, जिससे का$गज़ आदि चिपकाते हैं; (सं.पु.)-खाना, भोजन, खाने की वस्तु।
अ़ाहिर: (अ़.स्त्री.)-व्यभिचारिणी, कुलटा, ज़ानिय:।
अ़ाहिर (अ़.वि.)-व्यभिचारी, विषयी, ज़ानी।
अ़ाहिरा (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ाहिर:Ó, वही शुद्घ है।
आहिल (अ़.पु.)-जहाँ किसी के बाल-बच्चे हों। इसका 'आÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़ाहिल (अ़.स्त्री.)-पतिविहीना, बे-शौहर वाली स्त्री, पति रहित पत्नी; सम्राट्, शहंशाह, महाराज, बादशाह; जिसका कोई स्वामी न हो, ख़्ाुदमुख़्तार, स्वाबलम्बी। इसका 'आ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
आहिस्त: ($फा.वि.)-धीमा, मन्द, कोमल; ठहर-ठहरकर, धीरे-धीरे, शनै:-शनै:; नरमी से, कोमलता से, सहूलियत से; क्रम-क्रम से, नम्बरवार।
आहिस्त:कार ($फा.वि.)-बहुत धीरे-धीरे काम करनेवाला, दीर्घसूत्री।
आहिस्त:ख़्िाराम ($फा.वि.)-धीरे-धीरे चलनेवाला, मन्द-गामी, मृदुलगति, शनै:गामी।
आहिस्त:ख़्िारामी ($फा.स्त्री.)-धीमी चाल, मन्द गति।
आहिस्त:रवी ($फा.स्त्री.)-शनै:-शनै: चलना, धीरे-धीरे चलना।
आहिस्त:रौ ($फा.वि.)-मंदगति, मंदगामी, धीरे-धीरे चलने-वाला।
आहिस्तगी ($फा.स्त्री.)-मन्दता, धीमापन; मृदुलता, नम्रता, मुलायमपन, कोमलता; गम्भीरता, धीरज, धैर्य, मलानत, तहम्मुल।
आहिस्ता ($फा.वि.)-दे.-'आहिस्त:Ó, वही शुद्घ है।
आहू ($फा.पु.)-मृग, हरिण, हिरन; छिद्र, दोष, ऐब।
आहूए चख्ऱ्ा ($फा.पु.)-सूर्य, आफ़्ताब।
आहूए $फलक ($फा.पु.)-सूर्य, आफ़्ताब।
आहूए रम ख़्ाुर्द: ($फा.पु.)-भागा हुआ हिरन।
आहूगीर ($फा.वि.)-हिरन पकडऩेवाला, व्याध, सैयाद; दोष या त्रुटि पकडऩेवाला, छिद्रान्वेषी, ऐबचीं।
आहूचश्म ($फा.वि.)-मृगनयनी, हिरन-जैसी आँखोंवाली सुन्दरी, मृगाक्षी; मृग-जैसी आँखोंवाला पुरुष, मृगनयन।
आहू निगाह ($फा.वि.)-दे.-'आहूचश्मÓ।
आहूपरस्ती ($फा.स्त्री.)-हिरन पकडऩे या मारने का शौ$क, मृगया-प्रेम।
आहू बच: ($फा.पु.)-हिरन का बच्चा, मृग-शावक।
आहू बर: ($फा.पु.)-दे.-'आहू बच:Ó।
आहू शिकार ($फा.वि.)-हिरन का शिकार करनेवाला, व्याध, बहेलिया; बड़ी-बड़ी आँखोंवाली सुन्दरी, जो हिरनों को मुग्ध कर ले।
आहेख़्त ($फा.वि.)-लटकाया हुआ; खींचा हुआ।
आहेख़्तनी ($फा.वि.)-लटकाने के योग्य; खींचने के योग्य, आकर्षणीय।
आहेज़ीद: ($फा.वि.)-लटकाया हुआ; खींचा हुआ, आकर्षित किया हुआ।
आहे नीमकश ($फा.स्त्री.)-वह आह, जो बदनामी के भय से खुलकर न खींची या भरी जाए, अधोच्छ्वास।
आहे नीम शबी ($फा.स्त्री.)-वह आह, जो आधी रात को जब सब सोते हैं, तब खींची या भरी जाए, विरह की रात में खींची या भरी जानेवाली आह।
आहोज़ारी ($फा.स्त्री.)-रोना-धोना, रोना-पीटना, विलाप।
आहो$फुगाँ (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'आहोज़ारीÓ।
आहोबुका (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'आहोज़ारीÓ।
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