अ, अ़
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अंकिश्त: (फ़ा.पु.)-
जली हुई लकड़ी का बुझा हुआ टुकड़ा, कोयला।अंकुज (फ़ा.पु.)-
गजबाग़, अंकुश, हाथीवान का आँकुश, लोहे का वह कांटा जिसकेद्वारा हाथी चलाया जाता है। मुहा.-'अंकुश देना'=ज़बरदस्ती करना;
दबाव डालना; वश में करना। 'अंकुश मानना'=दबाव मानना।
अंकुस (फ़ा.पु.)-
अंकुश, गजबाग़, आँकुस, हाथी को वश में करने का लोहे का काँटा।अंग (सं.पु.)-
शरीर, बदन, जिस्म, देह, तन, गात्र; अंश, भाग, टुकड़ा, खण्ड;अवयव; भेद, प्रकार। मुहा.-अंग उभरना'=जवानी के लक्षण
होना। 'अंग-अंग ढीला होना'=शिथिलता आना, थक जाना।
'अंग-अंग फूले न समाना'=अत्यन्त प्रसन्न होना। 'अंग-अंग
मुस्कुराना'=प्रसन्नता से रोम-रोम खिलना; सौन्दर्य की
परिपूर्णता झलकना। 'अंग करना'=स्वीकार करना। 'अंग
छूना'=सौगन्ध खाना, शपथ खाना। 'अंग टूटना'=अंगडाई आना,
शिथिलता होना। 'अंग लगना'=आलिंगन करना, लिपटाना; देह
को पुष्ट करना, शरीर को बलवान् करना; काम में आना। 'अंग
लगाना'=लिपटाना; साथ लगा देना, जैसे-'इस कन्या को किसी
के अंग लगा दो; स्वीकार करना; पहनना।
अंगड़ाई (हि.स्त्री.)-
जम्हाई के साथ अंगों को फैलाना, देह टूटना; ख़ुमार, नशा याउन्माद के उतार की अवस्था। मुहा.-अंगड़ाई तोडऩा'=कुछ काम
न करना, आलसी बने रहना। 'अंगड़ाई लेके उसने अपना ख़ुमार
डाला, काफ़िर की इस अदा ने बस हमको मार डाला'-नामालूम
अंगबीं (फ़ा.पु.)-
'अंगबीन' का लघु., मधुमक्खियों द्वारा फूलों से संग्रह करके छत्तोंमें संचित शीरे की तरह का एक प्रसिद्घ मीठा पदार्थ, शहद, मधु।
अंगबीन (फ़ा.पु.)-
दे.-'अंगबीं'।अंगश-बंगश (हि.वि.)-
ऊल-जलूल, अस्त-व्यस्त, बे-ठिकाने।अंगल्यून (फ़ा.स्त्री.)-
ईसाइयों की धर्म-पुस्तक अर्थात् धार्मिक ग्रंथ, बाइबिल, इंजील।अंगार: (फ़ा.पु.)-
उपन्यास, कहानी; लेख, निगारिश। हर अधूरी वस्तु; रेखाचित्र,खाका, अधूरा चित्र; हिसाब-किताब का रजिस्टर।
अंगार (फ़ा.प्रत्य.)-
चाहनेवाला, सोचनेवाला, जैसे-'सह्ल अंगार'-सुगमता चाहनेवाला।अंगार (सं.पु.)-
दहकता हुआ कोयला, धुआँ-रहित अग्नि, चिनगारी। मुहा.-अंगारउगलना'=क्रोधित स्वर में दुर्वचन कहना, जली-कटी बातें मुँह से
निकालना। 'अंगार-ए-जोश-ओ-ग़ज़ब'=उत्तेजना और क्रोध का
अंगारा। 'अंगार बनाना या होना'=लाल होना; शरीर में सुर्ख़ी आना।
'अंगार बरसना'=कड़ी धूप पडऩा; आफ़त या मुसीबत आना।
'अंगार सिर पर धरना'=अत्यधिक कष्ट सहना। 'अंगारों पर पैर
रखना'=जानबूझकर नुक़्सान का काम करना; ज़मीन पर पैर
न रखना; इठलाकर चलना। 'अंगारों पर लोटना'=आग-बबूला
होना; झल्लाना; ईर्ष्या से जलना; दु:ख सहना।
अंगाश्त: (फ़ा.वि.)-
समझा हुआ, जाना हुआ, ज्ञात; पाया हुआ।अंगाश्तनी (फ़ा.वि.)-
जानने योग्य, समझने योग्य।अँगिया (हि.स्त्री.)-
चोली, कंचुकी।अंगिश्त (फ़ा.पु.)-
जली हुई लकड़ी का बुझा हुआ टुकड़ा, कोयला। इस शब्द को'अंकिश्त' भी बोला जाता है, दोनों शब्द शुद्ध हैं।
अँगीठी (हि.स्त्री.)-
आग रखने का पात्र, आतिशदान।अंगुज़: (फ़ा.स्त्री.)-
एक प्रकार के छोटे पौधे का जमाया हुआ प्रसिद्घगोंद या दूध, जो मसालों में व्यवहृत होता है, हींग।
अंगुज़ (फ़ा.पु.)-
अंकुश, अंकुस, गजबाग़, हाथीवान के पास रहनेवाला लोहे कावह कांटा, जिससे वह हाथी को चलाता और वश में रखता है।
अंगुल: (फ़ा.पु.)-
कुरते आदि का तुक्म:, जिसमें घुंडी डाली जाती है।अंगुश्त (फ़ा.स्त्री.)-
उँगली, अंगुलि। मुहा.-'अंगुश्त बदंदाँ होना'=आश्चर्य-चकितहोना, दाँतों तले उँगली दबाना। 'अंगुश्त-ब-लब होना'=होंठों
पर उँगली रखना, चुप रहने का इशारा करना। 'अंगुश्तए-
इशारत'=रास्ता दिखाने या बतानेवाली उँगली।
अंगुश्तनुमा (फ़ा.वि.)-
प्रसिद्ध, मशहूर; बदनाम, कुख्यात, जिस पर उँगलीउठें। (उर्दू में दूसरे अर्थ ही लिए जाते हैं)।
अंगुश्तनुमाई (फ़ा.स्त्री.)-
बदनामी, कुख्याति, अपयश, निन्दा, किसी परउँगली उठना; किसी की ओर उँगली उठाना।
अंगुश्तपेच (फ़ा.पु.)-
वचन, प्रतिज्ञा, अह्द; दस्तावेज़।अंगुश्त बदंदाँ (फ़ा.वि.)-
अवाक्, चकित, निस्तब्ध, विस्मित, जो अचम्भे केकारण दाँतों में उँगली दबाकर रह गया हो।
अंगुश्तर (फ़ा.स्त्री.)-
अँगूठी, मुद्रिका, रिंग।अंगुश्तरी (फ़ा.स्त्री.)-
अँगूठी, मुद्रिका।अंगुश्तान: (फ़ा.पु.)-
लोहे या पीतल का वह खोल, जिसे कपड़ा सीने के समय उँगलीमें पहन लेते हैं ताकि सूई न चुभे; हड्डी या सींग का बना वह
हलका छल्ला, जिसे तीर चलानेवाले अपने हाथ के अँगूठे में
पहनते हैं; उँगली की रक्षा के लिए उस पर पहना जानेवाला
धातु, सींग या हड्डी आदि से बना खोल, अंगुलित्राण।
अंगुश्ताना (फ़ा.पु.)-
दे.-'अंगुश्तान:', शुद्घ वही है।अंगुश्तए ज़िन्हार (फ़ा.वि.)-
वशीभूत, अधीन, पराजित, हारा हुआ, मग़लूब।अंगुश्तए नर (फ़ा.पु.)-
अँगूठा, अंगुष्ठ, तर्जनी के पास की मोटी उँगली।अंगुश्तो (फ़ा. पु.)-
चूरमा, मलीदा, घी और शक्कर डालकर चूर की हुई मोटी रोटी।अँगूठी (हि.स्त्री.)-
उँगलियों में पहनने का एक आभूषण-विशेष, मुंदरी,छल्ला, मुद्रिका।
अंगूर (फ़ा.पु.)-
एक सुप्रसिद्ध फल, दाख, द्राक्षा; घाव भरने के समय दिखाईपडऩेवाले लाल दाने; जब ज़ख़्म भरने लगता है उस समय
एक प्रकार का लाल तना हुआ दानेदार गोश्त पैदा होता है,
उसे भी अंगूर कहते हैं; एक प्रकार की आतिशबाज़ी।
मुहा.-'अंगूर फट जाना'=भरते हुए ज़ख़्म का फट जाना। 'अंगूर
बंधना'=ज़ख़्म का अच्छा होने पर आना, ज़ख़्म का भरना
शुरू होना। 'अंगूर का मड़वा या अंगूर की टट्टी'=अंगूर की
बेल के चढऩे या फैलने के लिए बाँस की फट्टियों का मण्डप।
अंगूरी (फ़ा.वि.)-
अंगूर से बनी हुई; अंगूर के रंग की (वस्तु); अंगूर से सम्बन्धरखनेवाली (वस्तु)। (ला.)-अंगूर निर्मित मदिरा।
अंगेख़्त: (फ़ा.वि.)-
उत्तेजित, उभारा हुआ; उठाया हुआ, उत्थापित।अंगेख़्तनी (फ़ा.वि.)-
उभारने योग्य; उठाने योग्य।अंगेज़: (फ़ा.पु.)-
उद्देश्य, कारण, सबब।अंगेज़ (फ़ा.प्रत्य.)-
उत्पन्न या उत्तेजित करनेवाला, उकसाने वाला, उभारनेवाला,उठानेवाला, जैसे-'दर्द-अंगेज़'=दर्द उठाने अर्थात् उत्पन्न करनेवाला,
कष्टकारक, कष्टदायक, पीड़ाजनक। पद.-'हैरतअंगेज़'=आश्चर्यचकित
करनेवाला, अचम्भे में डालनेवाला, विस्मित कर देनेवाला।
अंगेजि़ंद: (फ़ा.वि.)-
उत्तेजित करनेवाला; उभारनेवाला; उठानेवाला।अंगेज़ीद: (फ़ा.वि.)-
उत्तेजित किया हुआ; उभारा हुआ; तेज़ किया हुआ; उठाया हुआ।अंगेज़ीदनी (फ़ा.वि.)-
उभारने योग्य; तेज़ करने योग्य; उठाने योग्य।अंगोज़: (फ़ा.स्त्री.)-
दे.-'अंगुज़:', शुद्ध उच्चारण वही है मगर यह भी बोलते हैं।अंग्बीं (फ़ा.पु.)-
'अंग्बीन' का लघु.; मधुमक्खियों द्वारा छत्तों में एकत्र किया जानेवालाशीरा की तरह का एक प्रसिद्घ पदार्थ, शहद, मधु।
अंज़ (अ़.स्त्री.)-
अजा, बकरी; हरिणी, हिरनी।अंजब (अ़.वि.)-
कुलीनतम, बहुत अधिक शुद्ध रक्तवाला; लौंडी बच्चा, दासी-पुत्र।अंजत (अ़.वि.)-
विशाल नेत्रोंवाला, बड़ी आँखोंवाला।अंजबार (फ़ा.पु.)-
दे.-'अंजुबार'।अंजम (अ़.पु.)-
दे.-'अंजुम', वही उच्चारण शुद्घ है।अंजर-पंजर (सं.पु.)-
जोड़-जोड़, हड्डी-हड्डी।अंजस (अ़.वि.)-
बहुत ही गन्दा, बहुत अधिक अपवित्र, नापाक, अशुद्ध।अंज़ा (अ़.वि.)-
अधगंजा, जिसके माथे के दोनों ओर के बाल झड़ गए हों।अंजाम (फ़ा.पु.)-
फल, नतीजा, परिणाम; समाप्ति, अन्त, अख़ीर, ख़ात्मा; पूर्ति, पूराहोना, तक्मील। 'अंजाम-ए-मुहब्बत'=प्रेम का परिणाम। मुहा.-'अंजाम
को पहुँचना'=पूरा होना, ख़त्म होना। 'अंजाम देना'=पूरा करना।
'अंजाम पाना'=फल पाना, परिणाम पाना। 'अंजाम ब ख़ैर
होना'=अच्छा परिणाम निकलना। 'जिस साज़ की लय टूटे वो साज़
न दे मुझको, आग़ाज़ पे रहने दे अंजाम न दे मुझको'-- माँझी
अंजामकार (फ़ा. वि.)-
अन्ततोगत्वा, आख़िरकार, अन्त में।अंजामिन्द: (फ़ा. वि.)-
अंजाम पानेवाला, पूर्ण होनेवाला; ख़त्म होनेवाला,समाप्त होनेवाला।
अंजामीद: (फ़ा.वि.)-
अंजाम पाया हुआ, पूरित; समाप्त, ख़त्मशुद:।अंज़ार (अ़.स्त्री.)-
'नजऱ' का बहु.; दृष्टियाँ, नज़रें।अंजास (अ़.स्त्री.)-
अपवित्रताएँ, नापाकियाँ, बहुत-सी गन्दगियाँ; 'नजिस' का बहु.।अंजीद: (फ़ा. वि.)-
ज़ख़्मी, घायल, क्षत, आहत; अभिभूत।अंजीदा (फ़ा. वि.)-
दे.-'अंजीद:', वही उच्चारण शुद्घ है।अंजीर (अ़.पु.)-
दे.-'इंजीर', वही शुद्घ उच्चारण है, गूलर की प्रजाति काएक दस्तावर फल।
अंजुदान (अ़.पु.)-
हींग की लकड़ी, जो दवा के काम आती है; हींग का पेड़।अंजुबार (फ़ा.पु.)-
एक पौधा, जिसकी पत्तियाँ दवा में काम आती हैं।अंजुम (अ़.पु.)-
'नज्म' का बहु., तारे, सितारे, उडुगण।अंजुमन (फ़ा.स्त्री.)-
मजलिस, महफ़िल, गोष्ठि; सभा, संस्था, इदार:; समिति,कमेटी; संघ, एसोसिएशन। 'चुपचाप अंजुमन से कहाँ जा
रहे हैं लोग, लगता है जैसे आन के पछता रहे हैं लोग' --माँझी।
अंजुमनआरा (फ़ा.वि.)-
सभा या गोष्ठि में अपनी उपस्थिति से श्रीवृद्धिकर्ता, सभा की शोभा बढ़ाने-वाला (वाली), सभा में किसी की उपस्थित, जैसे-'वह अंजुमनआरा हैं
महफ़िल में हबीबों की'=वह दोस्तों की सभा में सुशोभित हैं।
अंजुमन आराई (फ़ा.स्त्री.)-
सभा की शोभा बढ़ाना, सभा में उपस्थिति।अ़ंतर (अ़.पु.)-
खरमगस, एक प्रकार की बड़ी मक्खी जो घाव पर बैठती है तोकीड़े पड़ जाते हैं। (सं.पु.)-भेद, फ़र्क़, विभिन्नता; फ़ासला, दूरी,
दो वस्तुओं के मध्य का स्थान; मध्यवर्ती समय, दो घटनाओं
के बीच का समय; पर्दा, आड़, ओट।
अंतिम (सं.वि.)-
अन्त का, सबसे पीछे का, आख़िरी; सबसे बढ़कर, हद दरजे का।अंद (फ़ा.वि.)-
थोड़ा, अल्प, न्यून; चंद, कतिपय।अंदक (फ़ा.वि.)-
थोड़ा, कम, कतिपय, न्यून, अल्प।अंदर (फ़ा.वि.)-
भीतर, अन्तर्गत, में। (पु.)-घर के अन्दर का कमरा; पेट।अंदरूँ (फ़ा.पु.)-
'अंदरून' का लघु., दे.-'अंदरून'।अंदरून (फ़ा.पु.)-
अंदर, भीतर, में; जठर, पेट।अंदरूनी (फ़ा.वि.)-
भीतरी, आन्तरिेक, अंदर का; मानसिक, रूही, आत्मिक।अंदर्ज़ (फ़ा. स्त्री.)-
नसीहत, भलाई की सीख, हितोपदेश, उपदेश।अंदर्वा (फ़ा.वि.)-
लटका हुआ, औंधा, अधोमुख; उद्विग्न, परेशान; चकित,हैरान, क्षुब्ध।
अ़ंदल (अ़.वि.)-
बड़े डीलडौल का ऊँट; सर्व का लम्बा पेड़।अ़ंदलीब (अ़.स्त्री.)-
काले रंग की एक प्रसिद्ध गानेवाली चिडिय़ा, बुलबुल, गोवत्सक।अंदलुस (अ़.पु.)-
यूरोप का एक देश, स्पेन।अंदाइश (अ़.स्त्री.)-
दीवार पर किया जाने वाला लेस, लेपन, कहगिल।अंदाख़्त: (फ़ा.वि.)-
छितराया हुआ; फेंका हुआ; छोड़ा हुआ, त्यक्त; डाला हुआ।अंदाख़्ता (फ़ा.वि.)-
दे.-'अंदाख़्त:', वही उच्चारण शुद्घ है।अंदाख़्तनी (फ़ा.वि.)-
फेंकने योग्य; डालने योग्य; छितराने योग्य; त्यागने योग्य।अंदाज़: (फ़ा.पु.)-
अटकल, क़ियास; अनुमान, अनुमिति, कूत, तख़्मीना; मान, नाप-जोख; शक्ति, ताक़त; साहस, जुर्रत; विचार, ख़याल; चिह्न, निशान;
नमूना, बानगी; निश्चय, इरादा। 'ग़लत रहे हैं हमेशा तुम्हारे अंदाज़े,
मैं दोस्तों का नहीं दुश्मनों का प्यारा हूँ' --माँझी
अंदाज़ (फ़ा.पु.)-
अटकल, अनुमान; तौर, तरीक़ा, शैली, पद्धति, तर्ज़; क़ियास; मटक,भाव, चेष्टा, हावभाव, नाज़ो-अंदाज़, (प्रत्य.)-फेंकनेवाला, चलानेवाला,
जैसे-'तीरंदाज़'=तीर चलानेवाला। 'अंदाज-ए-गुफ़्तगू'=बात करने का
ढंग, बातचीत की शैली, वाक्-व्यवहार।
अंदाज़न (फ़ा.वि.)-
अनुमानत:, अटकल से, अंदाज़े से, क़ियासन; लगभग, क़रीब-क़रीब।अंदाज़ा (फ़ा.पु.)-
दे.-'अंदाज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।अंदाम (फ़ा.पु.)-बदन, जिस्म, शरीर, देह।
अंदामी (फ़ा.पु.)-वह सुन्दर लिबास जो बदन पर फबता हो, वह सुन्दर वस्त्र
जो शरीर पर ठीक लगे।
अंदामे निहानी (फ़ा.स्त्री.)-योनि, भग, स्त्री की गुह्येन्द्रिय,
$फुजऱ्, स्त्री का गुप्तांग।
अंदाय: (फ़ा.पु.)-राज-मिस्त्री का एक औज़ार, दीवारों पर लेस करने की
करनी-कन्नी, गिल माल:।
अंदार (फ़ा.पु.)-$िकस्सा, आख्यायिका, कहानी।
अंदीक (फ़ा.अव्य.)-उम्मीद है, य$कीन है, विश्वास है, आशा है।
अंदीद: (फ़ा.वि.)-हैरान, चकित, स्तब्ध।
अंदीदनी (फ़ा.वि.)-हैरानकुन, आश्चर्य के योग्य, स्तब्ध करनेवाली।
अंदुजऱ् (फ़ा.स्त्री.)-दे.-'अंदर्ज़Ó , दोनों शुद्ध हैं।
अंदुहाँ (फ़ा.वि.)- गमगीन, खेदग्रस्त, दु:खित।
अंदूद: (फ़ा.वि.) पोता हुआ, लेपा हुआ; चढ़ाया हुआ, मढ़ा हुआ।
अंदेश: (फ़ा.पु.)-भय, आशंका, ख़्ातरा; शुब्हा, शंका; शक, संदेह, दुविधा;
चिंता, सोच, $िफक्र।
अंदेश:नाक (फ़ा.वि.)-तश्वीशनाक, चिन्ताजनक; भयानक, ख़तरनाक।
अंदेश (फ़ा.प्रत्य.)-चिन्ता करनेवाला, देखनेवाला, ध्यान रखनेवाला,
अभिलाषा करनेवाला, सोचनेवाला। इसका प्रयोग यौगिक शब्दों के अन्त में किया
जाता है, जैसे-'बदअंदेशÓ-बुरा सोचनेवाला; 'ख़ैरअंदेशÓ-शुभाभिलाषी।
अंदेशा (फ़ा.पु.)-दे.-'अंदेश:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अंदेशानाक (फ़ा.वि.)-दे.-'अंदेश:नाकÓ।
अंदेशिंद: (फ़ा.वि.)-विचार करनेवाला, सोचनेवाला।
अंदेशीद: (फ़ा.वि.)-विचारा हुआ, सोचा हुआ।
अंदेशीदनी (फ़ा.वि.)-विचार करने योग्य, विचारणीय, सोचने योग्य, शोचनीय।
अंदोख़्त: (फ़ा.वि.)-जमा पँूजी, जमा किया हुआ धन; कमाया हुआ, उपार्जित;
जमा किया हुआ, संचित; धन, सम्पत्ति।
अंदोख़्तनी (फ़ा.वि.)-जमा करने योग्य, कमाने योग्य।
अंदोह (फ़ा.पु.)-दु:ख, शोक, रंज, $गम, कष्ट, क्लेश।
'अंदोह-ए-इश्$कÓ-प्रेम का दु:ख। 'अंदोह-ए-निहानीÓ-भीतरी दु:ख, अन्दरूनी
कष्ट। 'अंदोह-ए-व$फाÓ-व$फा के दु:ख
अंदोहगीं (फ़ा.वि.)-दु:खी, रंज में पड़ा हुआ, शोकान्वित, दु:खित, रंजीदा।
अंदोहनाक (फ़ा.वि.)-दे.-'अंदोहगींÓ, विषादपूर्ण, रंज में डूबी हुई बात,
शोकपूर्ण, शोकान्वित।
अंधा (हि.वि.)-बिना आँख का, नेत्रहीन। मुहा.-अंधा बननाÓ-लापरवाह बनना।
'अंधा बनानाÓ-बेवकू$फ बनाना; आँख में धूल झोंकना, धोखा देना।
अंधाधुंध (हि.स्त्री.)-घोर अन्धकार; अन्याय; अंधेर; कुप्रबंध;
(वि.)-विचार-रहित, बे-धड़क; बिना सोचे-समझे; बेतहाशा, मारामार; बहुतायत
से। मुहा.-'अंधाधुंध मचानाÓ-अन्याय अथवा अनीति का मार्ग अपनाना, अंधे
मचाना। 'अंधाधुंध लुटानाÓ-अत्यधिक ख़्ार्च करना।
अंधियारा (हि.पु.)-अंधेरा, तम; धुंधलापन, धुंध; (वि.)-प्रकाश-रहित;
धुंधला; उदास, सूना; मनहूस।
अंधेर (हि.पु.)-अनीति, अन्याय, अत्याचार; अनर्थ; कुप्रबंध, कुव्यवस्था;
उपद्रव; धींगाधींगी। मुहा.-'अंधेरखाता होनाÓ-ठीक-ठीक हिसाब न होना; न्याय
न होना। 'अंधेर नगरीÓ-अन्याय का स्थान। 'अंधेर मचनाÓ-गड़बड़ होना।
अंधेरा (हि.पु.)-उजाले का अभाव, अंधकार; धुंधलापन।
अंब: (फ़ा.पु.)-प्रसिद्ध फल आम, आम्र।
अंबज (फ़ा.पु.)-दे.-'अंब:Ó।
अ़ंबर (अ़.पु.)-एक बहुमूल्य सुगंधित पदार्थ, जो मछली के मुख से द्रवित
होता है और दवा में काम आता है; एक प्रकार की इत्र।
अंबर (सं.पु.)-आकाश, आस्मान; बादल, मेघ; लिबास, वस्त्र, कपड़ा; स्त्रियों
के पहनने की धोती, जिसका किनारा एक रंग का होता है; कपास; अमृत।
मुहा.-'अंबर के तारे डिगनाÓ-असम्भव बात का होना।
अं़बरच: (अ़.फ़ा.स्त्री.)-दे.-'अंबरीन:
अंबरबारीस (अ़.स्त्री.)-चना के आकार का एक खट्टा फल, जो दवा में काम आता
है, जि़रिश्क।
अ़ंबरबेज़ (अ़.फ़ा.वि.)-अंबर-जैसी सुगन्ध फैलानेवाला; अंबर छिड़कनेवाला।
अं़बरबेज़ी (अ़.फ़ा.स्त्री.)-अ़ंबर छिड़कना, अं़बर की सुगन्ध फैलाना।
अं़बरागीं (अ़.फ़ा.वि.)-दे.-'अंबरींÓ।
अं़बरीं (अ.फा.वि.)-जिसमें अ़ंबर-जैसी सुगंध हो; जो अं़बर की सुगंध में
बसा हो; जिसमेंं अ़ंबर मिला हो।
अ़ंबरीन: (अ़.फ़ा.स्त्री.)-स्त्रियों के गले में पहना जानेवाला एक आभूषण, धुकधुकी।
अं़बरेसारा (अ़.फ़ा.पु.) विशुद्ध अ़ंबर, वह अ़ंबर जिसमें किसी प्रकार की
मिलावट न हो, एकदम बेमेल अ़ंबर। हृदय के लिए शक्तिवर्धक औषध-द्रव्य।
अंबह (अ़.वि.)-बहुत अधिक चेतावनी देनेवाला; अत्यधिक सूचना देनेवाला।
अंबाग़ (अ़.स्त्री.)-सौत, सौतन, एक पुरुष की दो स्त्रियों में से कोई एक
जो दूसरी की सौत होती है।
अंबाज़ (फ़ा.वि.)-साझेदार, हिस्सेदार, भागीदार, पार्टनर, शरीक।
अंबाज़ (अ़.पु.)-'नबज़Ó का बहु., उपाधियाँ, अल्$काब, प्रशस्तियाँ।
अंबान: (फ़ा.पु.)-चमड़े का बना हुआ मश्क या परवाल-जैसा एक पात्र, जिसमें
अनाज भरकर रखते हैं।
अंबान (फ़ा.पु.)-चमड़े से बनी हुई एक प्रकार की फ़$कीर की झोली; कमाया
हुआ चमड़ा, क्रूम; छोटी मश्क, छोटी परवाल, मश्कीज:।
अंबानेनिफ़्त (अ़.फ़ा.पु.)-चमड़े से बना एक प्रकार का कुप्पा, जिसमें
बारूद या मिट्टी का तेल भरकर शत्रु-सेना पर फेंका जाता था।
अंबानेबाद (फ़ा.पु.)-चमड़े से बनी लौहार की धौंकनी।
अंबार (फ़ा.पु.)-अटाला, ढेर, राशि, टाल, भण्डार।
अंबारख़ान: (अ़.फ़ा.पु.)-मालगोदाम, वह गोदाम जहाँ माल का स्टॉक या भण्डार रहता है।
अंबुर: (तु.पु.)-सँडसी, जिससे लुहार गर्म लोहा पकड़ते हैं।
अंबुर (तु.पु.)-दे.-'अंबुर:Ó।
अंबुह (फ़ा.पु.)-'अंबोहÓ का लघु., दे.-'अंबोहÓ।
अंबूब: (अ़.पु.)-दे.-'उंबूब:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अंबोह (फ़ा.पु.)-समुदाय, झुण्ड, समूह, जमाव, हुजूम, भीड़।
अंसफ़ (फ़ा.वि.)-अत्यधिक न्यायप्रिय, बहुत अधिक न्याय करनेवाला।
अंसब (अ़.वि.)-बहुत उचित, बहुत वाजिब, अत्युचित, बहुत मुनासिब।
अंसाब (अ़.पु.)-'नसबÓ का बहु.; नसबनामे, वंशावलियाँ, वंशवृक्ष। इसका 'साÓ
उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अंसाब (अ़.पु.)-'नसबÓ का बहु.; घोर दु:ख, घोर कष्ट; आपत्तियाँ, मुसीबतें;
मूर्तियाँ जो पूजी जाती हैं, देवताओं व देवियों की मूर्तियाँ। इसका 'साÓ
उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अंसार (अ़.पु.)-'नस्रÓ का बहु.; मदद या सहायता करने-वाले, सहायकगण; मदीने
के वह लोग, जिन्होंने हज़रत मुहम्मद साहब व उनके साथियों को अपने घरों
में ठहराया था और उनकी सहायता की थी।
अंसारी (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जिसका सम्बन्ध अऱब की अंसार जमाअ़त से हो;
अंसार का वंशज; आजकल जुलाहों और नाइयों की उपाधि।
अआजि़म (अ़.पु.)-महान् लोग, प्रतिष्ठित लोग, बड़े-बड़े लोग; 'आÓज़मÓ का
बहु.। इसका 'जि़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
अआजिम (अ़.पु.)-मूक व्यक्ति, गूँगे लोग। इसका 'जिÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर
से बना है; 'आÓजमÓ का बहु.।
अआदी (अ़.पु.)-शत्रुगण, दुश्मन लोग, बहुत से वैरी लोग। 'अदूÓ का बहु.।
अआली (अ़.पु.)-बड़े-बड़े लोग, ऊँचे और प्रतिष्ठित लोग। 'आÓलाÓ का बहु.।
अइज़्ज़: (अ़.पु.)-नातेदार, एक ही वंश से संबंधित लोग। 'अज़ीज़Ó का बहु.।
अइन्न: (अ़.पु.)-दंतालिकाएँ, घोड़ों की लगामें। 'इवानÓ का बहु.।
अइफ़्$फ: (अ़.पु.)-सदाचारी लोग, वे लोग जो पराई स्त्री की ओर आँख न
उठाएँ, इन्द्रिय-निग्रही लोग। 'अ$फी$फÓ का बहु.।
अइम्म: (अ़.पु.)-किसी कला के पारखी लोग, किसी कला-विशेष के आचार्यजन।
'इमामÓ का बहु.।
अइम्म: (अ़.पु.)-चाचाजन, चचा लोग, पिता के भाई-बंधु। 'अमÓ का बहु.।
अ़कक (अ़.पु.)-उमस, गर्मी, तौंस, ग्रीष्म।
अकड़ (हि.स्त्री.)-तनाव, मरोड़, हठ, ढिठाई।
अकड़बाज़ (हि.$फा.वि.)-अभिमानी, घमण्डी; लड़ाका।
अकड़बाज़ी (हि.$फा.स्त्री.)-अभिमान करना, घमण्ड करना; लडऩे-झगडऩे को तत्पर रहना।
अ$कताअ़ (अ़.पु.)-ज़मीन के टुकड़े। दे.-'अक़्ताअ़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$़कद (अ़.पु.)-हकलाना, बोलते या बात करते समय जीभ का लड़खड़ाना; रस्सी
में गाँठ पडऩा।
अ़कद (अ़.पु.)-चरबी चढऩा, स्थूल होना, मोटा होना।
अ$कदस (अ़.पु.)-दे.-'अक़्दसÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़$कब: (अ़.पु.)-कठिन मार्ग, कड़ा रास्ता; बहुत मुश्किल या कठिनता से
पहुँचने वाला स्थान; जटिल समस्या।
अ़क़ब (अ़.पु.)-बाद, पश्चात्; परोक्ष, पीठ पीछे; पिछला भाग, पीछा। 'अ़$कब
मेंÓ-पीछे, अन्त में।
अ़कब (अ़.पु.)-होंठ या ठुड्डी का मोटापन, लबों या ठोड़ी (चिबुक) का मोटापा।
अकबक (हि.पु.)-अनाप-शनाप, असंबद्घ प्रलाप, बकझक।
अकबर (अ़.वि.)-दे.-'अक्बरÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अकबरी (अ़.वि.)-दे.-'अक्बरीÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़कर (अ़.पु.)-गाद या तलछट; तेल की गाद, शराब की तलछट; हौज़ के पानी की
गाद। (सं.वि.)-न करने योग्य, दुष्कर; बिना हाथ का; जिसका महसूल या कर न
लगता हो।
अ$कर$करहा (अ़.पु.)-एक दवा का नाम, अकरकरा।
अ$करब (अ़.पु.)-दे.-'अक्ऱबÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$करिबा (अ़.पु.)-दे.-'अक्रि़बाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$करुबा (अ़.पु.)-दे.-'अक्रि़बाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$कल [ल्ल] (अ़.वि.)-बहुत कम, थोड़ा-सा, अत्यल्प, बहुत छोटा; ह$कीर, तुच्छ।
अ$कलीम (अ़.स्त्री.)-दे.-'अक़्$कलीमÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$कल्लियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ$कल्लीयतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$कल्लीयत (अ़.स्त्री.)-अल्पसंख्यक, किसी क्षेत्र की वह जनता, जो दूसरी
जनता की अपेक्षा अनुपात या संख्या में कम हो।
अ$कवाम (अ़.पु.)-दे.-'अक़्वामÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़$कस (अ़.पु.)-कंजूस या कृपण होना; दु:शील होना; उद्दण्ड होना।
अ़कस (अ़.पु.)-पशु का चंचल, शरारती और बुरे स्वभाव का होना, जैसे-कटखना
या सींग मारनेवाला होना।
अ$कसर (अ़.वि.)-दे.-'अक़्सरÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$कसाम (अ़.पु.)-दे.-'अक़्सामÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अकसीर (अ़.स्त्री.)-दे.-'अक्सीरÓ और 'इक्सीरÓ, वही उच्चारण शुद्घ हैं।
अ$़काइद (अ़.पु.)-धर्म-विश्वास, अक़ीदे, बहुत-से मत या विश्वास। 'अ$कीद:Ó का बहु.।
अ$़का$क (अ़.पु.)-पेट का बोझ, गर्भ; पीठ का बोझ, गट्ठर।
अ़$का$कीर (अ.स्त्री.)-'अ़क़्$कारÓ का बहु., जंगली जड़ी-बूटियाँ, वनस्पतियाँ।
अकाज़ीब (अ़.पु.)-'किज़्बÓ का बहु., झूठी और सारहीन बातें, बेबुनियाद
कहानियाँ, मनगढंत $िकस्से।।
अ$कानीम (अ़.पु.)-'उक्ऩूमÓ का बहु., ईसाई धर्मग्रंथ।
अ$कानीमे सलास: (अ़.पु.)-ईसाई धर्मग्रंथ की महत्त्वपूर्ण तीन पुस्तकें।
अकाबिर (अ़.पु.)-'अकबरÓ का बहु., प्रतिष्ठितजन, बड़े लोग।
अ़$कायद (अ़.पु.)-दे.-'अ़$काइदÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$कारिब (अ़.पु.)-'अक्ऱबÓ का बहु., सगे-सम्बन्धी लोग, नजदीकवाले,
निकटतम, रिश्तेदार, स्वजन। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ$़कारिब (अ़.पु.)-'अÓक्ऱबÓ का बहु., बहुत से बिच्छू। इसका 'अ़Ó उर्दू
के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अकारिम (अ़.पु.)-'अक्रमÓ का बहु., पूज्य व्यक्ति, श्रेष्ठजन।
अ$कालीम (अ़.पु.)-'इक़्लीमÓ का बहु., बहुत से देश, अनेक राष्ट्र, अनेक महाद्वीप।
अकासिर: (अ़.पु.)-'किस्राÓ का बहु., वह सम्राट् जिसे 'किस्राÓ उपाधि
प्राप्त हो। यह उपाधि ईरान के सम्राटों को दी जाती थी, इसे नौशेरवाँ की
उपाधि भी कहते हैं।
अ$कासी (अ़.वि.)-'अक़्साÓ का बहु., दूरवाले।
अ$िकब (अ़.पु.)-पाँव की एड़ी; बेटा, पुत्र; पोता, पुत्र का पुत्र।
अकिल: (अ़.पु.)-एक प्रकार का बहुत ही खऱाब फोड़ा, जिसे 'आकिल:Ó भी कहते हैं।
अ़$की$क: (अ़.पु.)-मुस्लिम बच्चों का नामकरण और मुंडन संस्कार, जिसमें
बकरी की $कुर्बानी होती है; जन्म के सातवें दिन बच्चे के बाल मुँडवाने की
रस्म, जो मुसलमानों में प्रचलित है।
अ़$की$क (अ़.पु.)-एक प्रकार का बहुमूल्य पत्थर, जो कई रंग का होता है।
बुरी नजऱ से बचाने के लिए माताएँ इसे अपने बच्चों के गले में पहनाती हैं;
ऐसा भी माना जाता है कि इस पत्थर को पहनने से दिल की घबराहट भी दूर होती
है तथा धड़कनें संयमित रहती हैं। 'अ$की$क-ओ-याकूतÓ-दो रत्नों के नाम।
अ़$की$का (अ़.पु.)-दे.-'अ़$की$क:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़$की$क उल बह्र (अ़.पु.)-मूँगा।
अ़$की$क जिगरी (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार की $कीमती अ़की$क अर्थात् रत्न।
अ़$की$क शजरी (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार का मूँगा।
अ़$कीद: (अ़.पु.)-मन में होनेवाली श्रद्धा, विश्वास, भरोसा, य$कीन; धर्म,
मत, मजहब; ऐति$काद, धार्मिक सिद्घान्तों को मानना।।
अकीद (अ़.वि.)-मज़बूत, दृढ़, पक्का, पुख़्त:, ठोस।
अ़$कीदत (अ.स्त्री.)-किसी धर्म की वह मूल बात, जिसे मानने पर मनुष्य उस
धर्म में सम्मिलित हो जाता है, धार्मिक विश्वास, आस्था, श्रद्धा, भरोसा,
एतबार, ऐति$काद, निष्ठा।
'ख़्िाराजे अ़$कीदतÓ-श्रद्घांजलि।
अ़$कीदतकेश (अ़.$फ़ा.वि.)-आस्था रखनेवाला, आस्थावान्, श्रद्धावान्,
श्रद्धालु, मोÓत$िकद।
अ़$कीदतमंद (अ़.$फ़ा.वि.)-श्रद्धावान्, श्रद्धालु, मोÓत$िकद।
अ़$कीदत शिअ़ार (अ़.फ़ा.वि.)-दे.-'अ$कीदतकेशÓ।
अ$़कीदत संज (अ़.फ़ा.वि.)-दे.-'अ$कीदतकेशÓ।
अ़$कीदा (अ़.पु.)-दे.-'अ़$कीद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$़कीब (अ़.वि.)-अनुगामी, अनुयायी, पैरो, अनुकर्ता, पीछे आनेवाला, पीछे चलनेवाला।
अ़$कीम: (अ़.स्त्री.)-जिस स्त्री के संतान न होती हो, बाँझ, बंध्या, निस्संतान।
अ़$कीम (अ़.पु.)-नपुंसक, क्लीव, बाँझ पुरुष, निस्संतान, ऐसा पुरुष जिसके
वीर्य में संतान उत्पन्न करने के कीटाणु न हों।
अ़$कीमा (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़$कीम:Ó, वही शुद्घ है।
अ़$कीर (अ़.पु.)-बाँझ, बंध्या; निराश, ना-उम्मेद।
अकील: (अ़.स्त्री.)-खाद्य-पदार्थ, खाने की चीज़। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ से और 'कीÓ 'छोटे का$फÓ से बनी है।
अ$़कील: (अ़.वि.)-अपनी जाति का नेता; प्रत्येक अच्छी वस्तु; श्रेष्ठतम,
बरगुज़ीद:, (स्त्री)-पर्दानशीन स्त्री; बुद्धिमती, चतुर, अ़ा$िकल:। इसका
'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से तथा '$कीÓ उर्दू के 'बड़े $का$फÓ से बनी है।
अ$़कील (अ़.वि.)- समझदार, अ़क़्लमंद, बुद्धिमान्; ऊँट के पाँव बाँधने की
रस्सी। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से तथा '$कीÓ 'बड़े $का$फÓ से बनी है।
अकील (अ़.वि.)- सहभोजी, साथ खानेवाला। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ और 'कीÓ
'छोटे का$फÓ से बनी है।
अ़$कीला (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़$कील:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़$कूबत (अ़.स्त्री.)-पाप, अज़ाब, सख़्ती; पीड़ा, यातना, तकली$फ, मुसीबत।
अ़$कूर (अ़.वि.)-कुत्ते का काटा हुआ, जिसे कुत्ते ने काट लिया हो, श्वान-दंशित।
अकूल (अ़.वि.)-पेटू, बहुत खानेवाला, बहु-भक्षी, नदीदा।
अ़$कूल अ़शरा ($फा.पु.)-दस $फरिश्ते, दस देवदूत।
अ़$क्अ़$क (अ़.पु.)-एक प्रकार का कौवा, जो बहुत तेज़ उड़ान भरता है, बहुत
तेज़ उडऩेवाला काक।
अ़क्क: (अ़.पु.)-दे.-'अ़$क्अ़$कÓ।
अक़्$कलीम (अ़.स्त्री.)-देश, प्रान्त, राष्ट्र, राज्य।
अ़क़्क़ार (अ़.पु.)-वनस्पति, जंगली जड़ी-बूटी। इसके 'क़्$काÓ उर्दू के
'बड़े $का$फÓ से बने हैं।
अक्कार (अ़.पु.)-कृषक, किसान; कुआँ खोदनेवाला, गहरा गड्ढ़ा खोदकर ज़मीन
से पानी निकालनेवाला, कूपकार। इसके 'क्काÓ उर्दू के 'छोटे का$फÓ से बने
हैं।
अक्काल: (अ़.वि.)-बहुभक्षी, बहुत ही अधिक खानेवाला, बहुत बड़ा पेटू,
अतिभोजी, अमिताहारी।
अक्काल (अ़.वि.)-पेटू, बहुभक्षी, अत्यधिक खानेवाला।
अ़क्कास (अ़.वि.)-छापाकार, फोटोग्रा$फर; चित्रकार, अ़क्स उतारनेवाला।
अ़क्कासी (अ़.स्त्री.)-$फोटोग्रा$फी, छापाकर्म; चित्रकारी, अ़क्स उतारना;
न$कल, नक़्ल, प्रतिलिपि।
अक़्च: (तु.पु.)-सोने-चाँदी का टुकड़ा।
अक्ज़ब (अ़.वि.)-बहुत बड़ा झूठा; बहुत बड़ा पापी।
अक़्ज़ा (अ़.वि.)-बहुत बड़ा हुक्म देने वाला; बहुत बड़ा काम करनेवाला।
अक्ज़िय़: (अ़.पु.)-आदेश, आज्ञाएँ, हुक्म।
अक़्ताÓ (अ़.वि.)-टोंटा, जिसके हाथ कटे हों।
अक़्ताअ़ (अ़.पु.)-'$कत्अ़Ó का बहु., ज़मीन के टुकड़े; प्रदेश, इलाक़े;
जागीरें, परगने।
अक़्ताब (अ़.पु.)-'$कुत्बÓ का बहु.; बड़े-बड़े महात्मा और धर्म-पुरुष।
अक़्तार (अ़.पु.)-'$कुत्रÓ अथवा '$कुतुरÓ का बहु.; किनारे; शिकारियों की
ठाहें। इसका 'ताÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
अक़्तार (अ़.पु.)-'$कत्र:Ó का बहु., बूँदेें; '$कुत्रÓ का बहु., किनारे,
तट, कूल। इसका 'ताÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
अ़क़्द (अ़.पु.)-सम्बन्ध स्थापित करना, जोडऩा; विवाह, पाणिग्रहण, ब्याह,
शादी; ग्रंथि, गाँठ; वचन, प्रतिज्ञा, इकऱार, अह्द, निकाह; विक्रय, बेचना।
अक़्दनाम: (अ़.फ़ा.पु.)-विवाह का लेखपत्र, निकाह का इकऱारनामा।
अक़्दनामा (अ़.फ़ा.पु.)-दे.-'अक़्दनाम:Ó, वही शुद्घ है।
अक़्दबंदी (अ़.फ़ा.स्त्री.)-विवाह का $करार करना, इक्ऱार करना, मन बना
लेना, निश्चय करना, मन में ठान लेना; वैवाहिक-सम्बन्ध स्थापित करना।
अक्दर (अ़.वि.)-बहुत गँदला, बहुत मैला।
अक़्दस (अ़.वि.)-परम पवित्र, बहुत पाक; जो बहुत-ही कल्याणकारी हो; बहुत
प्रतिष्ठित, बहुत बुज़ुर्ग।
अक़्दह (अ़.वि.)-अत्यन्त दूषित; बहुत खऱाब, निकृष्टतम; बहुत अधिक व्यंग्य
और कटाक्ष करनेवाला।
अक़्दाम (अ़.पु.)-'$कदमÓ का बहु., बहुत से पाँव, चरण-समूह।
अक़्दाह (अ़.पु.)-'$कदहÓ का बहु., बहुत से प्याले।
अ़क़्दे अनामिल (अ़.पु.)-उँगलियों पर हिसाब लगाने की एक विधि।
अ़क़्दे नमकीं (अ़.फ़ा.पु.)-'मुताअ़Ó शीयों की वह विवाह- पद्यति, जो
थोड़े समय के लिए होती है।
अ़क़्दे रवाँ (अ़.फ़ा.पु.)-दे.-'अ़क़्दे नमकींÓ।
अ़क़्दे सानी (अ़.पु.)-दोबारा शादी, पुनर्विवाह, दूसरी शादी।
अक्नान (अ़.पु.)-'किनÓ का बहु., पर्दे, ओट, आड़ें।
अक्ना$फ (अ़.पु.)-'कन्$फÓ का बहु., तट, कूल, किनारे, छोर; दिशाएँ,
सिम्तें; शरण-स्थली, त्राण-स्थान, पनाहगाहें।
अक्नूँ (फ़ा.अव्य.)-दृढ़; इस समय।
अक्$फर (अ़.वि.)-बहुत बड़ा नास्तिक, बहुत बड़ा का$िफर, बहुत बड़ा विधर्मी।
अक्$फा (अ़.पु.)-'कुफ़्वÓ का बहु., बहुत से गोत्र, बहुत से खानदान, अनेक वंश।
अक़्$फाल (अ़.पु.)-'$कु$फुलÓ का बहु., ताल, कुंजियाँ।
अ़क़्ब (अ़.वि.)-किसी के पीछे आना; पीछा करना; पीछे, पीछा, अनुगमन, अनुसरण।
अ़क़्बतेकार (अ़.वि.)-आख़्िारकार, अन्त में, बिल आख़्िार।
अक्बर (अ़.पु.)-मु$गलवंश का एक सुप्रसिद्ध बादशाह, (वि.)-महान्, अज़ीम; सबसे बड़ा।
अक्बरी (फ़ा.वि.)-अकबर बादशाह से सम्बन्ध रखनेवाला (वाली); एक प्रकार की मिठाई।
अक़्बल (अ़.वि.)-बहुत क़ाबिल, बहुत विद्वान्; भेंगा, जिसे एक की दो
चीज़ें दिखाई देती हों।
अक़्बह (अ़.वि.)-बहुत ख़्ाराब, निकृष्टतम।
अक्बाद (अ़.पु.)-'कबिदÓ का बहु., जिगर।
अक्मल (अ़.वि.)-सर्वांग-सम्पूर्ण, पूर्णतम, बहुत कामिल।
अक्माम (अ़.पु.)-आस्तीनें; बीजों के ऊपर के छिलके या $िगला$फ।
अक़्िमश: (अ़.पु.)-'कुमाशÓ का बहु., पहनने के कपड़े-लत्ते, वस्त्र-समूह।
अक्य़ाल (अ़.पु.)-प्रतिष्ठित जन, इज़्ज़तदार लोग, बड़े लोग; पूज्य
व्यक्ति, बुज़ुर्ग लोग।
अक्याल (अ़.पु.)-'कैलÓ का बहु., अनाज आदि तोलने के बॅाट, अनाज आदि नापने के पैमाने।
अ़क्ऱ (अ़.पु.)-बाँझपन, अनपत्य दोष।
अक्ऱअ़ (अ़.वि.)-गंजा, खल्वाट।
अक्ऱब (अ़.वि.)-अति निकट, बहुत पास, बहुत $करीब, समीपतम। इसका 'अÓ उर्दू
के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़क्ऱब (अ़.पु.)-बिच्छू, वृश्चिक, अलि; वृश्चिक राशि, 'बुर्जे
अ़क्ऱबÓ-वृश्चिक राशि। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अ़क्ऱबी (अ़.वि.)-बिच्छू से सम्बन्ध रखनेवाला, बिच्छू का, (पु.)-पद्मराग
अर्थात् एक विशेष प्रकार का लाल, मणि-विशेष, बदख़्शाँ के लाल सुप्रसिद्ध
हैं।
अक्रम (अ़.वि.)-दानशील, अति दानी, वदान्य, बहुत बड़ा सखी; अति
प्रतिष्ठित, बड़ा बुज़ुर्ग।
अक्ऱाद (अ़.पु.)-'$िकरद:Ó का बहु., बन्दरों की टोली, बहुत से बन्दर।
अक्ऱान (अ़.पु.)-'$कर्नÓ का बहु., युग-समूह, अनेक युग, लम्बे ज़माने; पास के लोग।
अक्राम (अ़.पु.)-'करमÓ का बहु., अनुकम्पाएँ, कृपाएँ, दयाएँ; दान, भेंटें,
बख़्िशशें।
अक्ऱास (अ़.पु.)-'$कुर्सÓ का बहु., रोटियाँ, चपातिया; टिकियाँ, चपटी
आकार की बटी, लोइयाँ या गोलियाँ, टेब्लेट।
अक्रि़बा (अ़.पु.)-'$करीबÓ का बहु., निकट सम्बन्धी, $करीबी रिश्तेदार,
स्वजनगण, अज़ीज़ो-अ$कारिब।
अक्ल (अ़.पु.)-खाना, भोजन करना; खाना, भोजन, $िगज़ा। 'अक्ल ओ शुबÓ-खाना-पीना।
अ़क़्ल (अ़.पु.)-विवेक, तमीज़ समझ; बुद्धि, धी, प्रज्ञा, मेधा, सूझ-बूझ;
चतुरता, होशियारी।
अ़क़्लआराई (अ़.स्त्री.)-बुद्धि लगाना, अ़क़्ल दौड़ाना।
अक्लखुरा (अ़.स्त्री.)-'अकलखुराÓ भी प्रचलित, जो दूसरे को देख न सके, यही
चाहे कि मैं अकेला ही रहूँ और मेरा ही भला हो, रूखा, जिसे मिल-जुलकर रहना
या साझा-शिर्कत गवारा न हो।
अ़क़्लन (अ़.वि.)-अ़क़्ल से, समझ से; समझ में, बुद्घि में।
अ़क़्लमंद (अ़.$फ़ा.वि.)-समझदार, मेधावी, बुद्धिमान्, तेज़ अ़क़्लवाला,
कुशाग्रबुद्घि।
अ़क़्लमंदी (अ़.$फ़ा.स्त्री.)-समझदारी, बुद्धिमत्ता।
अ़क़्ली (अ़.वि.)-अ़क़्ल या बुद्धि सम्बन्धी; तर्कसिद्ध, उचित, वाजिब,
युक्ति-युक्त।
अक़्लीम (अ़.स्त्री.)-देश, प्रान्त, राज्य।
अ़क़्ले कुल (अ़.पु.)- जिब्रील नामक $िफरिश्त:, (व्यंग्य)- घामड़, मूर्ख,
लाल-बुझक्कड़।
अ़क़्ले सलीम (अ़.स्त्री.)-ऐसी बुद्धि, जिसका निश्चय सदा ही ठीक और शान्त
रहता हो, सत्यनिश्चयी बुद्धि, सद्बुद्धि, संतुलित बुद्धि, शान्तचित्त।
अक़्वा (अ़.वि.)-पराक्रमी, महाबली, सबसे बलवान्, बड़ा ज़ोरावर।
अक़्वात (अ़.पु.)-'$कूतÓ का बहु., ख़्ाुराकें।
अक्वाब (अ़.पु.)-बिन टोंटी और पैंदे के लोटे, लुटियाँ, गडुवे।
(व्यंग्य)-चंचल प्रकृतिवाला, अस्थिर बुद्धि।
अक़्वाम (अ़.पु.)-'$कौमÓ का बहु., $कौमें, बिरादरियाँ; देश-समूह,
सल्तनतें; जातियाँ, जाति-समूह, $िफर्के़।
अक़्वाल (अ़.पु.)-'$कौलÓ का बहु., किसी बड़े व्यक्ति या धर्माचार्य के
कहे हुए प्रवचन।
अक़्वास (अ़.पु.)-'$कौसÓ का बहु., धनुषें, कमानें।
अक़्िवय: (अ़.पु.)-'$कवीÓ का बहु., बलिष्ठ और ता$कतवर लोग, बलवान् लोग,
ज़ोरदार लोग, बलीजन, पहलवान लोग।
अ़क्स (अ़.पु.)-छाया, परछाँई, प्रतिबिम्ब, साया; अदावत, जि़द, हठ,
प्रत्युत, उल्टा, विपरीत, बरअ़क्स; चित्र, तस्वीर, $फोटो।
'अ़क्स-ए-रुख़्ा-ए-यारÓ-मित्र अथवा महबूब के मुखड़े का प्रतिबिम्ब,
प्रेयसी के चेहरे की परछाँई। 'अ़क्स-ए-आगहीÓ-विवेक का प्रतिबिम्ब, बुद्घि
का साया।
अक्सर (अ़.वि.)-अधिकतर, प्राय:, बहुधा, बारहा, अनेक बार, उमूमन, (वि.)-अधिक, बहुत।
अक़्सर (अ़.वि.)-बहुत छोटा, अल्पतम, लघुतम।
अक्सरियत (अ़.पु.)-दे.-'अक्सरीयतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अक्सरीयत (अ़.पु.)- किसी क्षेत्र की वह जनता जो दूसरी जनता की अपेक्षा
संख्या में अधिक हो, बहुसंख्यक समाज, बहुमत, बहुसंख्यक सम्मति।
अ़क्सरेज़ (अ़.फ़ा.पु.)-एक्सरे।
अक़्सा (अ़.वि.)-बहुत दूर; दूरवर्ती; अन्त को पहुँचा हुआ; अंतिम घड़ा या
अंतिम अवस्था को पहुँचा हुआ।
अक़्सा (अ़.पु.)-कतारें, छोर; दूरियाँ।
अक़्सात (अ़.स्त्री.)-'$िकस्तÓ का बहु., हिस्से, टुकड़े।
अक़्साम (अ़.पु.)-'$िकस्मÓ का बहु., $िकस्में, अनेक प्रकार; '$कसमÓ का
बहु., शपथें, सौगंधें।
अक़्िसम: (अ़.पु.)-'$िकस्मÓ का बहु., $िकस्में, प्रकार।
अक़्िसय: (अ़.पु.)-'$िकयासÓ का बहु., अंदाज़े, अनुमान, अटकलें।
अक्सी (अ़.वि.)-छाया-सम्बन्धी, छाया-जनित, प्रतिबिम्ब सम्बन्धी,
जैसे-'अक्सी तस्वीरÓ-छायाचित्र, $फोटो।
अक्सीर (अ़.स्त्री.)-वह रस या धातु, जो किसी धातु को सोना या चाँदी बना
दे, कीमिया, रसायन; किसी रोग को शीघ्र नष्ट करनेवाली दवा, रामबाण,
(वि.)-बहुत गुणकारी, अत्यन्त लाभकारी, अमोघ, अचूक।
अक्सीरगर (अ़.पु.)-कीमिया बनानेवाला, रसायन बनाने-वाला।
अ़क्सोतर्द (अ़.पु.)-एक काव्यालंकार जिसमें आधे मिस्रे में जो शब्द लाए
जाते हैं, बा$की आधे मिस्रे में उन्हीं को उलट दिया जाता है।
अक्हल (अ़.वि.)-वह व्यक्ति जिसकी पलकें निकलने का स्थान काला हो; जिसकी
आँखें अंजनसार अर्थात् काली हों।
अख़्ा (अ़.पु.)-भाई, भ्राता, सहोदर।
अख़्ाअख़्ा ($फा.अव्य.)-साधु-साधु, वाह-वाह, ख़्ाूब-ख़्ाूब, उफ्-उफ्, हाय-हाय।
अख़्ागर ($फा.पु.)-दे.-'अख्ग़रÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अख़्ाज़ (अ़.पु.)-दे.-'अख्ज़़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ाजऱ (अ़.वि.)-दे.-'अख्ज़ऱÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'अख्ऩीÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ा$फ [फ़्$फ] (अ़.वि.)-सबसे छोटा, लघुतम, जो बहुत ही हलका हो।
अख़्ाबार (अ़.पु.)-दे.-'अख़्बारÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ाबारनवीस (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अख़्बारनवी
अख़्ाया$फी (अ़.वि.)-दे.-'अख्य़ा$फीÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ायार (अ़.पु.)-भले लोग, दे.-'अख्य़ारÓ, वही शुद्घ है।
अखरना (हि.क्रि.)-बुरा लगना, अनुचित जान पडऩा, खलना।
अख़्ाला$क (अ़.पु.)-दे.-'अख़्ला$कÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अख़्ाला$की (अ़.वि.)-दे.-'अख़्ला$कीÓ, वही शुद्घ है।
अख़्ालात (अ़.पु.)-शरीर के विकार, दे.-'अख़्लातÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अख़्ावात (अ़.स्त्री.)-'उख़्तÓ का बहु., बहनें, भगनियाँ।
अख़्ावान (अ़.पु.)-भाई-बिरादरी, भ्रातागण।
अख़्ावाल (अ़.पु.)-दे.-'अख़्वालÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अख़्ास [स्स] (अ़.वि.)-बहुत-ही विशेष, बहुत ही ख़्ाास, मुख्यतम। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर
अख़्ास [स्स] (अ़.वि.)-बहुत-ही विशेष, बहुत ही ख़्ाास, मुख्यतम। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अख़्ास [स्स] (अ़.वि.)-मक्खीचूस, अति कृपण, बहुत-ही कंजूस, बहुत-ही
ख़सीस, महाकंजूस। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अख़्ास्सुल ख़्ासीस (अ़.वि.)-सारे कंजूसों में सबसे अधिक कंजूस,
महामक्खीचूस, महाकृपण, धनपिशाच।
अख़्ास्सुल ख़्ाास (अ़.वि.)-मुख्यतम, सबसे अधिक मुख्य, जो मुख्य हैं उन
सबमें मुख्य।
अख़्िाल्ला (अ़.पु.)-'ख़्ालीलÓ का बहु., मित्रगण, दोस्त लोग, यार, सुहृदयजन।
अख़्िास्सा (अ़.पु.)-'ख़्ासीसÓ का बहु., लोभी व कंजूस लोग, कृपणगण।
अख़्ाी (अ़.अव्य.)-मेरे भाई, मेरे भ्राता, हे भाई।
अख़्ाीर (अ़.पु.)-पिछला, अंतिम, तमाम, कुल; अन्त, इख़्ितताम; तट, छोर,
किनारा; मौत का समय, मरणकाल। (वि.)-समाप्त, ख़्ात्म।
अख़्ाुंद ($फा.पु.)-गुरु, शिक्षक, उस्ताद।
अख्ग़र ($फा.पु.)-आग की चिंगारी, पतंगा, स्फुलिंग, अग्निकण, अंगारा।
अख़्च: (तु.पु.)-सोने या चाँदी का कण या टुकड़ा। दे.- 'अक़्च:Ó।
अख्ज़़ (अ़.पु.)-ले लेना, पकड़ लेना, हासिल करना, ग्रहण करना, आदान करना;
प्राप्ति, हुसूल, लब्धि; उद्घृत करना। 'अख्ज़़ बिल जब्रÓ-जबरदस्ती लेना,
बलात् ग्रहण करना।
अख़्ज़म (अ़.पु.)-नर साँप।
अख्ज़ऱ (अ़.वि.)-गहरे हरे रंग का, हरा रँगा हुआ। अऱब के लोग अऱब से भारत
तक के समुद्र को 'बह्रुल अख्ज़ऱÓ अर्थात् हरा-सागर कहते हैं।
अख़्ज़रीयत (अ़.स्त्री.)-हरापन।
अख़्त: (फ़ा.वि.)-बधिया, वह चौपाया जिसके अण्डकोश निकाल लिये गए हों।
अख़्त:ख़्ाान: (फ़ा.पु.)-घुड़साल, तबेला, घोड़ों को बाँधने का स्थान, अश्वशाला।
अख़्तब (अ़.पु.)-भाषण-पटु, बहुत बड़ा वक्ता।
अख़्तर (फ़ा.पु.)-तारा, सितारा, उडु, नक्षत्र; $िकस्मत, भाग्य, प्रारब्ध।
'अख़्तरे सहरÓ-भोर का तारा, सुबह का तारा। 'अख़्तरे $िकस्मतÓ-भाग्य का
तारा। मुहा.-'अख़्तर चमकनाÓ-सितारा चमकना अर्थात् नसीब जागना, दिन फिरना,
अच्छे दिन आना।
अख़्तरशनास (फ़ा.वि.)-भविष्य की बातें जाननेवाला, ज्योतिषी, नजूमी।
अख़्तरशुमारी (फ़ा.स्त्री.)-तारे गिनना, तारे गिन-गिनकर रात काटना,
बेचैनी में रात काटना।
अख़्तरे जौज़ा (अ़.फ़ा.पु.)-बुधग्रह।
अख़्तान (अ़.पु.)-'ख़्ातनÓ का बहु., दामाद लोग।
अख़्ितयार (अ़.पु.)-दे.-'इख़्ितयारÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अख़्दान (अ़.पु.)-'ख़्िाद्नÓ का बहु., मित्र लोग, प्रेमपात्र लोग।
अख्ऩी (अ़.स्त्री.)-शोरबा, मांस-रसा।
अख़्$फश (अ़.वि.)-जिसकी आँखें निर्बल हों, जो चुंधा हो।
अख़्बस (अ़.वि.)-जिसके स्वभाव में दुष्टता बसी हो, बहुत बड़ा पापी,
अत्यन्त दुष्टï, बहुत ही ख़्ाबीस।
अख़्बार (अ़.पु.)-'ख़्ाबरÓ का बहु., ख़्ाबरें, समाचार-पत्र, संवादपत्र,
ख़्ाबर का कागज़़।
अख़्बार नवीस (अ़.$फा.वि.)-समाचार-पत्र में काम करने-वाला पत्रकार,
समाचार-पत्र का सम्पादक।
अख़्बारी (अ़.वि.)-अख़्बार से संबंधित, अख़्बार का, समाचार-पत्र का,
समाचारपत्र से सम्बन्धित।
अख़्म: (अ़.पु.)-झुर्री, शिकन, बल, सलवटें।
अख़्म (अ़.पु.)-माथे की शिकन, ललाट के बल, त्यौरी; भौंह की शिकन, सिकुडऩ,
अब्रू का बल; बाँकपन।
अख़्मस (अ़.पु.)-तलुवे का वह भाग, जो भूमि से नहीं लगता।
अख़्िमर: (अ़.पु.)-'ख़्िामारÓ का बहु., ओढ़नियाँ, चादरें।
अख्य़ा$फ़ी (अ़.वि.)-वह भाई-बहन, जिनके बाप अलग-अलग और माँ एक हो।
अख्य़ार (अ़.पु.)-'ख़्ौरÓ का बहु., भलाइयाँ, नेकियाँ, पुण्य-समूह, यश-समूह; भले लोग।
अख़्ा्रब (अ़.वि.)-निर्जन, वीरान; उर्दू छन्दशास्त्र के अनुसार
'म$फाईलुन्Ó में से 'मÓ और 'नÓ गिराकर '$फाईल्Ó करके 'म$फ्ऊल्Ó बनाना।
अख़्ा्रम (अ़.वि.)-जिसकी नाक कटी हो; उर्दू छन्दशास्त्र में 'म$फाइलुन्Ó
में से 'मÓ गिराकर '$फाइलुन्Ó करके 'म$फ्ऊलुन्Ó बनाना।
अख़्ा्रस (अ़.वि.)-गूँगा-बहरा, जो न बोल सके और न ही सुन सके।
अख़्लकंद ($फा.पु.)-झुनझुना, बच्चों के बजाने का झुनझुना।
अख़्ला$क (अ़.पु.)-'ख़्ाुल्$कÓ का बहु., मगर उर्दू में एकवचन के अर्थ में
प्रयुक्त, शिष्टाचार, शील-संकोच, सद्वृत्ति, नीति, आचार-विचार;
कार्यपद्घति, शैली, अ़ादत; इन्सानियत, मिलनसारी, मुरव्वत।
अख़्ला$की (अ़.वि.)-शील-सम्बन्धी, शिष्टाचार-सम्बन्धी, जो अख़्ला$क से
सम्बन्धित हो; नीति-सम्बन्धी, नैतिक।
अख़्ला$के अ़ालिय: (अ़.पु.)-उच्च-कोटि का शिष्टïाचार, सत्त्वगुण, अच्छे अख़्ला$क।
अख़्ला$के ज़मीम: (अ़.पु.)-दे.-'अख़्ला$के रदीय:Ó।
अख़्ला$के रदीय: (अ़.पु.)-दुराचार, तमोगुण, अशिष्ट या भद्दा आचरण।
अख़्लात (अ़.पु.)-'ख़्िाल्तÓ का बहु., धातुएँ, वात, पित्त, कफ और रक्त;
शरीर के विकार।
अख़्ला$फ (अ़.पु.)-'ख़्ाल$फÓ का बहु., लड़की, लड़के, पोते आदि।
अख़्वाल (अ़.पु.)-'ख़्ाालÓ का बहु., माँ के भाई, सहोदर, भ्राता; मामा;
ख़ालू, बहनोई, मौसा; झण्डे, पताकाएँ, ध्वजाएँ।
अख़्शम (अ़.वि.)-जिसे सुगंध और दुर्गंध का अनुभव न हो।
अख़्सम (अ़.वि.)-लम्बी नाकवाला, नक्कू, नकचढ़ा।
अगड़बगड़ (हि.वि.)-बे-काम का, अंडबंड, बं-सिर-पैर का; व्यर्थ का काम,
अनुपयोगी कार्य।
अगन (हि.स्त्री.)-अग्नि, आग।
अगर ($फा.अव्य.)- यदि, जो।
अगरचे ($फा.अव्य.)-यद्यपि, हालाँकि, गोकि, ऐसा होने पर भी।
अगर मगर ($फा.अव्य.)-बहानेबाज़ी, टालमटोल। मुहा.-'अगर मगर करनाÓ-मीन-मेख
निकालना, व्यर्थ का तर्क करना; व्यर्थ की लड़ाई-झगड़ा करना, टालमटोल
करना।
अगऱाज़ (अ़.पु.)-'$गरज़Ó का बहु, दे.-'अग्ऱाज़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अग़लब (अ़.वि.)-दे.-'अग़्लबÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अग़ल-ब$गल (अ़.वि.)-इधर-उधर, आसपास, साथ-साथ।
अगला (अ़.वि.)-आगे का; पहला, प्रथम; प्राचीन, पुराना; आनेवाला, आगामी; एक
के बाद का, दूसरा; (पु.)-अगुआ, अग्रसर, प्रधान; चतुर मनुष्य, चालाक
व्यक्ति; पूर्वज, पुरखा।
अ$गाइद (अ.पु.)- 'अ$गीदÓ का बहु., अत्यन्त कोमल व मृदुल अंगोंवाली
स्त्रियाँ, तन्वंगी, कृशांगी, कोमलांगी।
अ$गानिम (अ़.पु.)-'$गनमÓ का बहु., भेड़-बकरियाँ।
अ$गानी (अ़.पु.)-'उग्ऩिय:Ó का बहु., वह बाजे जो फूँककर न बजाए जाएँ,
जैसे-सितार, मृदंग आदि।
अगिय़ार (अ़.पु.)-बेगाने लोग, जो मित्र न हों; र$कीब, प्रतिद्वंद्वी,
दुश्मन। दे.-'अग्य़ारÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अगुआ (हि.पु.)-अग्रणी, आगे चलनेवाला, अग्रसर; मुखिया, नेता, सरदार, नायक,
प्रधान; राहनुमा, मार्गदर्शक, पथ-प्रदर्शक; विवाह-सम्बन्ध ठीक करनेवाला।
अगुआई (हि.स्त्री.)-अग्रसरता; प्रधानता, सरदारी; मार्ग-प्रदर्शन, रहनुमाई।
अगुवानी (हि.स्त्री.)-अगवानी, अथिति के आने पर आगे बढ़कर उदार अभ्यर्थना
करना; किसी शिष्टमण्डल को नेतृत्व प्रदान करना।
अग्ज़िय़: (अ़.स्त्री.)-'$िगज़ाÓ का बहु., खाद्य पदार्थ, $िगज़ाएँ।
अग्ऩाम (अ़.पु.)-'$गनमÓ का बहु., भेड़-बकरियाँ।
अग्ऩिया (अ़.पु.)-'$गनीÓ का बहु., अमीर लोग, धनाढ्य लोग।
अग़्$फर (अ़.वि.)-बड़ा छिपानेवाला।
अग़्बर (अ़.वि.)-खाकी रंगवाला, धूसर, मटीला, मटमैला।
अ$ग्यार (अ़.पु.)-'$गैरÓ का बहु., पराये लोग, प्रतिद्वंद्वीजन, विरोधी
लोग, अस्वजन, र$कीब लोग, गैऱ लोग। 'इस ख़्ाता पर नाम तेरा लब पे आया
बार-बार, मैं निकाला जा रहा था मह$िफले अग़्ा्यार सेÓ-माँझी
अग्ऱ़ब (अ़.वि.)-अद्भुत, आश्चर्यजनक, बहुत अजीब, विलक्षण।
अग्ऱाज़ (अ़.पु.)-'$गरज़Ó का बहु., मतलब, उद्देश्य, स्वार्थ, अभिप्राय:,
इच्छाएँ, आवश्यकताएँ, ख़्वाहिशें, म$कासिद, स्वार्थ-समूह,
स्वार्थ-लिप्साएँ, ख़्ाुदगर्जिय़ाँ।
अग़्लत (अ़.वि.)-बहुत अशुद्ध, बहुत $गलत; अत्यंत झूठ, बिलकुल मिथ्या।
अग़्लब (अ़.वि.)-बहुत करके, बहुत संभव है कि, निश्चय, य$कीनी।
अग़्लबन (अ़.वि.)-अवश्य ही, य$कीनी तौर पर, कऱीब-कऱीब।
अग़्लाज़े ऐमान (अ़.पु.)-बुरी $कसमें।
अग़्लात (अ़.वि.)-'$गलतÓ का बहु., अशुद्धियाँ, $गलतियाँ; त्रुटियाँ, भूलें।
अग़्लाल (अ़.पु.)-'$िगलÓ का बहु., अपराधियों के गले में डाले जानेवाला
लोहे का घेरा, हँसली, तौ$क; बहते हुए पानी।
अग़्सान (अ़.पु.)-'$गुस्नÓ का बहु., छोटी फैली हुई टहनियाँ, डालियाँ, शाखाएँ।
अचानक (हि.क्रि.वि.)-अकस्मात्, बिना पूर्व सूचना।
अचार (अ़.पु.)-सिरके, तेल या नीबू के रस में मसाले डालकर आम या अन्य फल
इत्यादि का बना प्रसिद्ध खाद्य, खटास, खटाई।
अचूक (सं.वि.)-न चूकनेवाला, जो लक्षित कार्य अवश्य करे, जो खाली न जाए;
जिसमें भूल न हो, भ्रम-रहित।
अचेत (सं.वि.)-चेतना-रहित, संज्ञाहीन, बेसुध; विकल, विह्वïल; असावधान;
अनजान, बेख़्ाबर; नासमझ, मूर्ख।
अच्ची (तु.पु.)-बड़ा भाई, ज्येष्ठ भ्राता, अग्रज।
अच्छा (हि.वि.)-चोखा, उत्तम; भला; खरा; (पु.)-श्रेष्ठ पुरुष; बड़ा आदमी;
बड़े-बूढ़े, बाप-दादा। पद.-'अच्छे-अच्छेÓ-बड़े-बड़े। मुहा.-'अच्छा
आनाÓ-उपयुक्त अवसर पर आना। 'अच्छा कहनाÓ-प्रशंसा करना; सुन्दर भाषण करना;
चुभती हुई या समय की बात कहना।
अच्छाई (हि.स्त्री.)-अच्छापन, सुन्दरता, सुधराई, उत्तमता।
अछूत (हि.वि.)-बिना छुआ, अस्पृश्य; नया, कोरा, पवित्र; (पु.)-अन्त्यज,
निम्न कोटि का व्यक्ति।
अजंग़ ($फा.पु.)-सलवट, झुर्री, बल, खाल की झुर्री, शिकन।
अ़ज़ [ज़्ज़] (अ़.पु.)-दाँतों से काटना। इसके 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ तथा
'ज़Ó 'ज़्वादÓ अक्षर से बने हैं।
अ़ज़ [ज़्ज़] (अ़.पु.)-ज़मीन से चिपकना। इसके 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ से
तथा 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बने हैं।
अज़ ($फा.अव्य.)- से। पद.-'अज़ जानिबÓ-की तर$फ से, 'अज़ तर$फÓकी तर$फ से,
'अज़ रूएÓ-के अनुसार, 'अज़ रूए $कानूनÓ-विधि के अनुसार। इसके 'अÓ उर्दू
के 'अलि$फÓ तथा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बने हैं।
अ़ज़ [ज़्ज़] (अ़.पु.)-प्रभुत्व स्थापित करना; ज़ोर की वर्षा, मूसलाधार
बारिश। इसके 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ तथा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बने हैं।
अज़अ$फ (अ़.वि.)-बहुत कमज़ोर, अति निर्बल।
अज़अव्वल ता आख़्िार ($फा.वि..)-शुरू से अन्त तक, आद्योपांत, आदि से अन्त
तक, शुरू से अख़्ाीर तक; नितान्त, बहुत अधिक, एकदम, बिलकुल।
अज़कार (अ़.पु.)-'जि़क्रÓ का बहु., वर्णन, जि़क्र; ईश्वर की प्रार्थना,
प्रभु की उपासना।
अज़कार रफ़्त: ($फा.वि..)-नाकारा, व्यर्थ, बेकार, निकम्मा; अपाहिज, काम
से गया बीता; नामर्द, नपुंसक।
अज़किया (अ़.पु.)-प्रतिभाशाली लोग, ज़हीन लोग, 'ज़कीÓ का बहुवचन।
अज़ ख़्ाुद ($फा.अव्य.)-आप से आप, स्वयम्, स्वत:, ख़्ाुद ब ख़्ाुद।
अज़ख़्ाुद रफ़्त: ($फा.वि.)-आपे से बाहर, बेहोश, बेसुध, बेख़्ाबर,
बेख़्ाुद, संज्ञाहीन, निश्चेष्ट।
अजगर (सं.पु.)-छोटे पशुओं को निगल जानेवाला भारी साँप। (वि.)-आलसी, उद्यमहीन।
अजगरी (हि.स्त्री.)-अजगर के समान निरुद्यम वृत्ति। (वि.)-अजगर की-सी।
अजग़ै़ब ($फा.वि.)-गुप्त, रहस्यपूर्ण।
अजग़ै़बी ($फा.वि.)-छिपा हुआ।
अजज़ा (अ़.पु.)-'जुज़Ó का बहु., किसी चीज़ के टुकड़े या अंग; अंश, भाग,
हिस्सा। दे.-'अज्ज़ाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अज़ तर$फ ($फा.अव्य.)-तर$फ से, ओर से।
अज़दहा ($फा.पु.)-दे.-'अज़्दहाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अज़दहाम (अ़.पु.)-दे.-'इजि़्दहामÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अजदाद (अ़.पु.)-बाप और उसके ऊपर की पुश्तें; पुरखे, बाप-दादा, बुज़ुर्ग।
दे.-'अज्दादÓ, वही शुद्घ उच्चारण है। 'आबा ओ अजदादÓ-पूर्वज, पुरखे।
अजनबी (अ़.पु.)-परदेसी; दूसरे नगर या देश से आया हुआ व्यक्ति;
(वि.)-अपरिचित आदमी, अज्ञात या अंजान पुरुष, बेगाना, जिससे जान-पहचान न
हो, नावा$िक$फ। दे.-'अज्नबीÓ, वही शुद्घ है।
अजनास (अ़.पु.)-'जिन्सÓ का बहु., अनेक प्रकार की वस्तुएँ, घर-गृहस्थी की
चीजें़, असबाब, सामान, सामग्री। दे.-'अज्नासÓ, वह उच्चारण अधिक शुद्घ है।
अज़$फ (अ़.स्त्री.)-निर्बलता, दुर्बलता, कमज़ोरी; दुबलापन, तनुता, कृशता।
अज़ब (अ़.वि.)-अपूर्व, निराला, विलक्षण, अद्भुत, विचित्र, अनोखा; आश्चर्य, अचंभा।
अ़ज़ब (अ़.पु.)-स्त्रीविहीन पुरुष, वह व्यक्ति जो स्त्री न रखता हो।
अज़बतर (अ़.वि.)-बहुत ही अनोखा, बहुत ही विचित्र, निहायत अजीब।
अज़$फर (अ़.वि.)-उग्र गंधवाला, तेज़ बूवाला, जिसकी गंध बहुत तीव्र हो।
दे.-'अज़्$फरÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अज़ब (अ़.वि.)-अद्भुत, अनोखा, नादिर; नया; दूर, बईद; (पु.)-आश्चर्य,
ताज्जुब, (वा.)-'अज़ब क्याÓ अथवा 'अज़ब क्या हैÓ-कुछ ताज्जुब नहीं, 'अज़ब
चीज़Ó-अनोखी वस्तु; बे:अटकल, नासमझ, बेअ़क़्ल; चालाक; धूर्त।
अज़बर ($फा.वि.)-वह बात, जो कंठस्थ हो अर्थात् ज़बानी याद हो, मुखाग्र,
बरज़बाँ, केवल स्मृति या याद से। पद.- 'अज़बर कर लेनाÓ-ज़बानी याद कर
लेना, स्मृति-पटल पर अंकित कर लेना। 'अज़बराए ख़्ाुदाÓ-ख़्ाुदा के
वास्ते, भगवान् के लिए।
अज़ बस ($फा.अव्य.)-बहुत अधिक, अत्यन्त। 'अज़बस किÓ-चूँकि, क्योंकि, इस
कारण से, इसलिए।
अजम (अ़.पु.)-'अज्म:Ó का बहु. बहुत से जंगल, जंगलात, बीहड़; खाना खाने से
एक प्रकार की ऊब, खाना खाने से घबरा जाना; अऱब के पास सीरिया का एक देश।
इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अज़म (अ़.पु.)-अऱब के अलावा बा$की दुनिया, ईरान और तूरान (तुर्किस्तान,
तातार); वे लोग जो अऱब के रहनेवाले न हों; दाना; धान्य। (वि.)- मूक,
गूँगा, जो बोल न सके। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अज़़मत (अ़.स्त्री.)-बड़प्पन, बुज़ुर्गी, बड़ाई; महत्ता, आदर, प्रतिष्ठा,
सम्मान, इज्ज़़त, बरतरी। यह शब्द उर्दू में 'अ़ज़्मतÓ है, दे.-'अ़ज़्मतÓ।
अज़मी (अ़.वि.)-अज़म देश का, अज़म देश का निवासी; जो अऱबी न हो, ईरान का हो, ईरानी।
अजर (अ़.पु.)-दे.-'अज्रÓ, वही शुद्घ उच्चारण है, भलाई का बदला, सिला, फल;
मज़दूरी, पुरस्कार। (सं.वि.)-जरा-रहित, जो बूढ़ा न हो, जो सदा एकरस रहे;
ईश्वर का एक नाम; जो न पचे अथवा हज़्म न हो।
अजऱ$क (अ़.वि.)-नीले रंग का; कंजी आँखोंवाला व्यक्ति। दे.-'अज्ऱ$कÓ, वही
शुद्घ उच्चारण है।
अज़ऱा (अ़.स्त्री.)-मरियम की माँ। दे.-'अज़्ऱाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अजराम (अ़.पु.)-'जिर्मÓ का बहु., शरीर, चोला, पिण्ड। दे.-'अज्रामÓ, वही
शुद्घ उच्चारण है। पद.-'अजरामे $फलकीÓ-आकाश में घूमनेवाले पिण्ड (ग्रह,
नक्षत्र आदि)।
अज़रुए ($फा.अव्य.)-अनुसार, किसी चीज़ के आधार पर; ब$गरज़, बर-बिना,
जैसे-'अज़रूए ईमानÓ-ईमान से।
अज़ रुए इंसा$फ ($फा.अव्य.)-न्याय के अनुसार, न्यायत:, न्यायसंगत, इंसा$फ
से, वास्तव में, सच्चाई में।
अज़ रुए ईमान ($फा.अव्य.)-ईमान से, धर्म-विश्वास से; विश्वास से, य$कीन से।
अजल (अ़.स्त्री.)-मौत, मृत्यु, मरण; काल, वक़्त, समय। पद.-'अजल रसीदाÓ या
'अजल गिरिफ़्ताÓ- जिसकी मौत आई हो, शामत का मारा हुआ, आसन्न मृत्यु।
अजल [ल्ल] (अ़.वि.)-बहुत ही आदरणीय, श्रेष्ठतम, अत्यन्त प्रतिष्ठित, बहुत
ही मुअज्ज़ज़़, महान्।
अज़ल [ल्ल] (अ़.वि.)-अति नीच, पापी, अधमतर, बहुत ही कमीना। इसका 'अÓ
उर्दू के 'अलि$फÓ और 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ालÓ से बने हैं।
अ़ज़ल (अ़.पु.)-'अज़्ल:Ó का बहु., पट्ठे, स्नायु-समूह। इसका 'अ़Ó उर्दू
के 'ऐनÓ से तथा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ से बने हैं।
अज़ल [ल्ल] (अ़.पु.)-जिसकी जंघाएँ और नितम्ब पतले-दुबले हों। इसका 'अÓ
उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बने हैं।
अज़ल (अ़.वि.)-वह समय जिसकी शुरूअ़ात ज्ञात न हो, अनादि काल, वह समय जब
सृष्टि की रचना हुई। पद.-'रोज़े अज़लÓ-सृष्टि की उत्पत्ति का दिन।
अजल गिरिफ़्त: (अ़.$फ़ा.वि.)-मृत्यु-शैया पर लेटा हुआ, मरणासन्न, जो
मृत्यु के निकट हो, जो मौत के मुँह में हो; शामत का मारा।
अजल रसीद: (अ़.$फ़ा.वि.)-मृतप्राय:, जिसकी मौत आ गयी हो; शामत का मारा।
अज़ला (अ़.पु.)-'जि़ल्अ़Ó का बहु., जि़ले, मण्डल; पसलियाँ; भुजाएँ;
रेखाएँ। दे.-'अज़्लाअ़Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अज़ला$फ (अ़.पु.)-'जिल्$फÓ का बहु., पामर या नीच लोग, कमीने लोग, ओछे
आदमी। दे.-'अज़्ला$फÓ, वही शुद्घ है।
अज़लाल (अ़.पु.)-'जि़ल्लÓ का बहु., साए, परछाइयाँ। दे.-'अज़्लालÓ, वही शुद्घ है।
अज़ली (अ़.वि.)-सदा से रहनेवाला, अनादि कालवाला; अनादि काल से सम्बद्ध;
सृष्टि की रचना के समय का; सनातन, शाश्वत।
अज़ सर ता पा ($फा.वि.)-आपादमस्तक, सिर से पाँव तलक, नितान्त, नख से सिर
तक, ऊपर से नीचे तक, शुरू से अख़्ाीर तक, सर्वथा, बिलकुल।
अज़ सरे दस्त ($फा.वि.)-ज़ल्द, शीघ्र, तुरन्त; सहसा, नि:संकोच; चुस्त,
फुर्तीला, स्फूर्तियुक्त।
अज़ सरे नौ ($फा.वि.)-बिलकुल आरम्भ से, फिर से, नए सिरे से, पुन:।
अजसाद (अ़.पु.)-'जसदÓ का बहु., अनेक जिस्म, बहुत से शरीर, अनेक देह।
दे.-'अज्सादÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अजसाम (अ़.पु.)-'जिस्मÓ का बहु., अनेक जिस्म, बहुत से शरीर, अनेक देह।
दे.-'अज्सामÓ और 'अज्सादÓ, दोनों उच्चारण शुद्ध हैं।
अज़हद (अ़.$फा.वि.)-हद से अधिक, जिसकी कोई सीमा न हो, असीम, अपार, बेहद;
अत्यधिक, बहुत ज्य़ादा।
अज़हर (अ़.वि.)-दे.-'अज़्हरÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अज़ाँ ($फा.अव्य.)-उससे, इससे, इसलिए। पद.-'बाद अज़ाँÓ-इसके बाद।
अज़ाँ (अ़.स्त्री.)-'अज़ानÓ का लघु., दे.-'अज़ानÓ।
अज़ाँजुम्ल: (अ़.$फा.अव्य.)-उनमें से, उन सबमें से।
अज़ाँपेश ($फा.वि.)-पहले का, उससे पूर्व, उससे पहले, तत्पूर्व।
अज़ाँबाज़ ($फा.वि.)-उस समय से, उस वक़्त से।
अज़ाँबाद (अ़.$फा.वि.)-तत्पश्चात्, उसके बाद, उसके पश्चात्।
अज़ाँसू ($फा.वि.)-उधर से, उस ओर से।
अज़ा (अ़.स्त्री.)-यातना, कष्ट, दु:ख। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़ज़ा (अ़.पु.)- मातम, मृत्युशोक; दैवी आपदा के समय धैर्य और दृढ़ता।
इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अज़ाइज़ (अ़.पु.)-'अजूज़Ó का बहु., बूढ़ी औरतें, उम्रदराज स्त्रियाँ।
अज़ाइ$फ (अ़.पु.)-'ज़ै$फÓ का बहु., अतिथिगण, मेहमान लोग।
अज़ाइब (अ़.पु.)-'अज़ीबÓ का बहु., अज़ीब बातें, अनोखी चीज़ें, विचित्रताएँ।
अज़ाइब ख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-अज़ायब-घर, संग्राहलय, कौतुकालय, अद्भुतालय, विचित्रालय।
अज़ाइबात (अ़.पु.)-'अज़ाइबÓ का बहु.। विशेष-चँूकि 'अजाइबÓ स्वयं बहुवचन है,
इसलिए इसका बहुवचन अशुद्ध है, परन्तु उर्दू में प्रचलित है।
अ़ज़ाइम (अ़.पु.)-'अज़़ीमतÓ का बहु., इरादे, संकल्प, निश्चय; वे मंत्र और
पाठ, जो भूत-प्रेत आदि को वश में करने या रोकने के लिए पढ़े जाते हैं;
बीमार को अच्छा होने के लिए पढ़ी जानेवाली दुअ़ाएँ, रोग-निवारक
प्रार्थनाएँ।
अ़ज़ाख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-मातमख़्ााना, शोक-गृह, जहाँ कोई मर गया हो और
उसका मातम मनाया जा रहा हो; वह मकान, जिसमें ताजिय़ा रखा जाता है या
मर्सिए पढ़े जाते हैं (लखनऊ)।
अज़ाज (अ़.पु.)-धूल-मिट्टी, गर्द-गुबार।
अ़ज़ाज़ील (अ़.पु.)-शैतान का तब का नाम, जब वह $फरिश्ता था; $फरिश्ते के
रूप में शैतान का नाम; दुष्टात्मा, पापात्मा।
अ़ज़ादार (अ.$फा.वि.)-जो किसी के मरने का मातम मना रहा हो, मातमदार,
शोकग्रस्त, शोकाकुल; मुहर्रम में इमाम हुसैन का मातम मनानेवाला।
अ़ज़ादारी (अ़.$फा.स्त्री.)-मृत्यु-शोकका
ताÓजिय़ा-यात्रा, ताÓजिय़ादारी।
अज़ान (अ़.स्त्री.)-बाँग, नमाज़ की सूचना के शब्द, जो ज़ोर से पुकारे
जाते हैं; नमाज़ का बुलावा, नमाज़ की पुकार। (सं.वि.)-अपरिचित, अज्ञात;
जो न जाना हुआ हो, अबोध, अनभिज्ञ।
अजानिब (अ़.पु.)-'अज्नबीÓ का बहु., अपरिचित लोग, $गैर, बेगाने, पराए।
अ़ज़ाब (अ़.पु.)-पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता हैै; पाप-कष्ट,
यातना, पीड़ा, दु:ख, तकली$फ, रोग, कष्ट, दिक़्क़त, कठिनाई; झगड़ा,
बखेड़ा; संकट, (वि.)-दु:ख देनेवाला, कष्टदायक।
पद.-'अज़़ाब-सबाबÓ-बुराई-भलाई, पाप-पुण्य; 'अज़़ाब उठानाÓ-कष्ट सहना, दु:ख
उठाना; 'अज़़ाब जानÓ-जान का वबाल, जी का जंजाल।
अ़ज़ाबुल $कब्र (अ़.पु.)-मुसलमानों के मतानुसार $कब्र के भीतर पापों का
दण्ड, जो 'मुन्कर और नकीरÓ नामक दो फ़़रिश्तों (देवदूतों) द्वारा तय होता
है।
अ़ज़ाबुलहून (अ़.पु.)-तिरस्कृत और अपमानित करने के लिए दी जानेवाली यातना।
अज़ायब (अ़.पु.)-'अज़ीबÓ का बहु., अज़ीब बातें, अनोखी चीज़ें, विचित्रताएँ।
दे.-'अज़ाइबÓ, वही शुद्घ उच्चारण है। पद.-'अज़ायब उल मख़्ालू$कातÓ-वे
चीजें़ जिनकी उत्पत्ति या पैदाइश अद्भुत या अनोखी हो। 'अज़ायब ओ
$गरायबÓ-अनोखी और अद्भुत चीजें़, विलक्षण वस्तुएँ।
अज़ायबख़्ााना (अ़.$फा.पु.)-अज़ायब-घर, संग्राहलय, कौतुकालय, अद्भुतालय,
विचित्रालय। दे.-'अज़ाइबख़्ाान:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अज़ायम (अ़.पु.)-दे.-'अज़़ाइमÓ, वही शुद्घ है।
अज़ाही$फ (अ़.पु.)-'अज़्हा$फÓ का बहु., जो 'जि़हा$फÓ का बहु. है, उर्दू
छन्दों के गणों में परिवर्तन।
अज़ाहीर (अ़.पु.)-'अज़्हारÓ का बहु., जो 'ज़हर:Ó, 'ज़ुह्रÓ और 'ज़ुह्रï:Ó
का बहुवचन है। कलियाँ, बिन खिले $फूल, शगू$फे।
अ़जिज़ (अ़.स्त्री.)-नितम्ब, चूतड़, श्रोण। दे.-'अज़ुज़Ó दोनों शुद्ध हैं।
अजिन्न: (अ़.पु.)-'जनीनÓ का बहु., वे बच्चे जो माँ के पेट में हों, भ्रूण-समूह।
अ़जि$फ (अ़.वि.)-कमज़ोर, कृशकाय, दुबला।
अजि़म: (अ़.पु.)-अकाल की परेशानियाँ, दुर्भिक्ष का कष्ट, $कह्त की सख़्ती और कष्ट।
अजि़म्म: (अ़.पु.)-'जि़मामÓ का बहु., लगामें, दंतालिकाएँ।
अजिल्ला (अ़.पु.)-'जलीलÓ का बहु., प्रतिष्ठित-जन, बड़े लोग।
अजि़ल्ल: (अ़.पु.)-'ज़लीलÓ का बहु., अधम लोग, नीच, कमीने, निकृष्ट लोग।
अज़ीं ($फा.अव्य.)-इससे। पद.-'$कब्ल अज़ींÓ-इससे पहले।
अज़ींममर (अ़.$फा.अव्य.)-इस निमित्त, इस कारण से, इस वजह से, इस सबब से।
अज़ीज़ (अ़.वि.)-नपुंसक, नामर्द, क्लीब।
अ़ज़ीज़ (अ़.वि.)-मान्य, प्रतिष्ठित; प्रिय, प्यारा, स्वजन, रिश्तेदार;
मिस्र के प्राचीन बादशाहों की उपाधि। पद.- 'अज़़ीज़ उल $कद्रÓ-सम्माननीय;
प्रिय, प्यारा। 'अज़़ीज़ उज वुजूदÓ-दुष्प्राप्य, कमयाब।
अ़ज़ीज़ तरीन (अ़.$फा.वि.)-अत्यधिक प्रिय, बहुत ही प्यारा, प्रियतम, बहुत
अधिक पसन्द, सबसे ज्य़ादा $करीब, बहुत निकट।
अज़़ीज़दारी (अ़.स्त्री.)-रिश्तेदारी, नातेदारी, यगानगत, सौहाद्र्र।
अज़ीन (अ़.वि.)-गुँधा हुआ, सना हुआ; ख़मीर, फूला हुआ।
अज़ीब (अ़.वि.)-विलक्षण, अद्भुत; आश्चर्यजनक, विचित्र; अनोखा, निराला;
अनुपम, अद्वितीय, बेमिस्ल। 'उधार माँगकर लेकर $कमीज़ आता है, अज़ीब शख़्स
है हालात यूँ छिपाता हैÓ-माँझी।
अज़ीबतर (अ़.$फा.वि.)-बहुत ही निराला, बहुत अनोखा, अति अद्भुत; बहुत ही
अनुपम; बहुत ही विचित्र।
अज़ीबुल ख़्िाल्$कत (अ़.वि.)-अप्राकृतिक, जिसकी बनावट प्राकृतिक रूप के
विरुद्ध हो; जिसकी आकृति और बनावट विचित्र हो, विकट-मूर्ति।
अज़ीबोगऱीब (अ़.वि.)-बहुत ही अनोखा, अत्यंत विचित्र, जिसमें बहुत-सी बातें
ऐसी हों जो दूसरों में न हों।
अ़ज़ीम (अ़.वि.)-विशालकाय, महान्, बहुत बड़ा; वृद्ध, पूज्य; विशाल, विस्तृत।
अ़ज़ीमत (अ़.स्त्री.)-निश्चय, संकल्प, इरादा; अभिचार, तंत्र -मंत्र,
जादू-टोना, भूतों को बुलाने और उन्हें बन्द करने के लिए मंत्र आदि का
उच्चारण।
अ़ज़ीमतख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-मंत्र पढ़कर भूत-प्रेतों अथवा मृतात्माओं को
बुलानेवाला, वह व्यक्ति जो अभिचार और जादू से भूत-पे्रतों को बुलाए।
अ़ज़ीमुलजुस्स: (अ़.$वि.)-बड़े डील-डौल का, महाकाय, भीमकाय।
अ़ज़ीमुश्शान (अ़.$वि.)-बहुत शानवाला, महामान्य, बड़ी उपाधिवाला, बड़े
मर्तबेवाला, बड़ी हैसियत वाला, महान्।
अज़ीयत (अ़.$स्त्री.)-किसी को पहुँचाई जानेवाली पीड़ा, कष्ट, यातना,
दु:ख, तकली$फ, अत्याचार।
अज़ीयत देह (अ़.$फा.वि.)-दु:खदायी, क ष्टïदायी, तकली$फ देनेवाला।
अज़ीयत रसाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अज़ीयत देहÓ।
अजीर (अ़.$वि.)-मेहनतकश, मज़दूर, श्रमिक।
अज़ीर (अ़.$वि.)-नपुंसक, नामर्द, क्लीब।
अज़ील (अ़.$वि.)-चुस्त, फुर्तीला, जल्दबाज़, आतुर।
अज़ुज़ (अ़.$पु.)-श्रोण, नितंब, कटिप्रदेश, कमर।
अ़ज़ुद (अ़.$पु.)-भुजा, बाहु, बाज़ू।
अज़ू$क: (अ़.पु.)-रोटी-कपड़ा, जीविका।
अज़ूक़ा (अ़.पु.)-दे.-'अज़ूक़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अज़ूज़: (अ़.$स्त्री.)-दे.-'अजूज़Ó।
अज़ूज़ (अ़.$स्त्री.)-वृद्धा, बुढिय़ा, बूढ़ी अ़ौरत; वह वृद्धा नारी,
जिसमें कामवासना का आधिक्य हो, कामातुर प्रौढ़ा।
अज़ूब: (अ़.$वि.)-विलक्षण पदार्थ, अनोखी चीज़; करामात; विलक्षण, अद्भुत।
दे.- 'उजूब:Ó, शुद्ध वही है लेकिन उर्दूवाले दोनों प्रकार से बोलते हैं।
अ़ज़ूबत (अ़.स्त्री.)-मिठास, रसीलापन, मधुरता; पानी का स्वादिष्ठ होना;
स्वाद, लज़्ज़त।
अज़ूबा (अ़.$वि.)-दे.-'अज़ूब:Ó।
अज़ूल (अ़.$वि.)-स्तब्ध, चकित, हैरान; बहुत शीघ्रता करनेवाला; वह ऊँटनी
जिसका बच्चा खो गया हो।
अज़ेरा ($फा.अव्य.)-'ज़ेराÓ का बृहत्रूप, यूँ, इसलिए, इस कारण; किसलिए,
क्यों, किस कारण।
अज़़ो (अ़.पु.)-शरीर का अंग, हिस्सा, अव्यव; अंश, भाग, हिस्सा।
अज़्अफ़़ (अ़.पु.)-बूढ़ा, वृद्घ, बहुत ज़ई$फ, अति निर्बल, बहुत कमज़ोर।
अज़्अ़ा$फ (अ़.पु.)-'ज़े$फÓ का बहु., दोगुने, दूने, डबल।
अज़्का (अ़.वि.)-बहुत ही प्रतिभाशाली, बहुत बुद्धिमान्, कुशाग्रबुद्घि,
मेधावी। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ालÓ से बना है।
अज़्का (अ़.वि.)-अति निर्मल, विशुद्घ, बहुत ही पवित्र, बहुत ही पाक-सा$फ।
इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है।
अज़्कार (अ़.पु.)-'जि़क्रÓ का बहु., चर्चाएँ, जप-तप, वज़ी$फे आदि।
अज़्िकया (अ़.पु.)-'ज़कीÓ का बहु., प्रतिभाशाली लोग, कुशाग्र बुद्धिवाले
लोग। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ालÓ से बना है।
अज़्िकया (अ़.पु.)-'ज़कीÓ का बहु., बहुत पवित्र लोग, पुण्यात्मा-जन,
बुज़ुर्ग लोग। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है।
अज़्ख़्ार (अ़.वि.)-बहुत ही तीव्र गंधवाला, प्रखर गंध, तेज़बू।
अज़्ग़ास (अ़.पु.)-घास के गट्ठर या मुट्ठे जिसमें सूखी गीली घास मिली हो;
अस्त-व्यस्त वस्तु।
अज़्ग़ासे अह्लाम (अ़.पु.)-ऐसे स्वप्न जिनका स्वप्न-फल ठीक से न बताया जा
सके, परीशान-ख़्वाब।
अ़ज़्ज़: (अ़.पु.)-महाशक्तिमान्, प्रभुत्व।
अ़ज़्ज़: व जल्ल: (अ़.वि.)-जो सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान् और महान् हो
(यह शब्द ईश्वर के नाम के साथ बोला जाता है)।
अ़ज़्ज़ (अ़.पु.)-नम्रता; लाचारी। 'अ़ज़्ज़-ए-अहले-सितमÓ-अत्याचा
अज्ज़म (अ़.वि.)- जिसके हाथ कटे हों।
अज्ज़ाए तर्कीबी (अ़.पु.)-वे मूल धातुएँ, जिनसे मिलकर कोई पदार्थ बना हो,
संयोजक पदार्थ, उपादान तत्त्व।
अज्ज़ा (अ़.पु.)-'जुज़Ó का बहु., किसी पदार्थ की मूल धातुएँ अथवा
वस्तुएँ, किसी नुस्ख़्ो की दवाएँ; टुकड़े, खण्ड।
'अज़्ज़ा-ए-परीशाँÓ-बिखरे हुए तत्त्व। 'अज़्ज़ा-ए-ईमाँÓ-धर्म का अंग
(तत्त्व)।
अज़्द: ($फा.पु.)-असमतल स्थान; रेती का खुरदरापन; असमानता, नाहमवारी।
अ़ज़्द (अ़.पु.)-सहायता, मदद, किसी के कार्य सम्पादन में शारीरिक अथवा
अन्य किसी प्रकार का योग या सहयोग देना; एक राजा को दूसरे राजा की
सहायता।
अज्दअ़ (अ़.वि.)-नकटा, बूचा; जिसकी नाक कटी हो अथवा जिसके कान कटे हों।
अज़्दर ($फा.पु.)-बहुत बड़ा साँप, अजगर।
अज़्दरदहाँ (अ़.वि.)-जिसका मुँह अजगर-जैसा हो, जिसके मुँह में जाकर कोई
जि़न्दा न बचे, जो आग बरसाता हो।
अज़्दरहा ($फा.पु.)-दे.-'अज़्दरÓ।
अज्दल (अ़.पु.)-एक शिकारी चिडिय़ा, चर्ग, बाज़।
अज़्दहा ($फा.पु.)-दे.-'अज़्दरÓ।
अज्दाद (अ़.पु.)-'जदÓ का बहु., पुरखे, पूर्वज, पुराने लोग, बाप-दादे।
'अज्दाद की मीरासÓ-पुरखों की बपौती।
अज़्दाद (अ़.पु.)-'जि़दÓ का बहु., परस्पर विरोधी चीजें़।
अ़ज्न (अ़.पु.)-गूँधना; ख़्ामीर करना।
अज्नब (अ़.पु.)-दे.-'अज्नबीÓ।
अज्नबी (अ़.पु.)-अंजान, अपरिचित; $गैर, अस्वजन।
अज्नाद (अ़.पु.)-'जुंदÓ का बहु., $फौजें, सेनाएँ।
अज्ऩाब (अ़.पु.)-'जऩबÓ का बहु., अनेक पँूछ, दुमें।
अज्नास (अ़.पु.)-'जिंसÓ का बहु., जिंसें, $गल्ले, अनाज; घर-गृहस्थी का
सामान, असबाब, चीजें़, कि़स्म, प्रकार।
अज्निह: (अ़.पु.)-'जनाहÓ का बहु., पंख, पक्ष, पर, डैना।
अ़ज़्$फ (अ़.पु.)-मुसीबत या विपत्ति में धैर्य रखना; स्वयं भूखा रहकर
अपना खाना दूसरे भूखे को खिलाना।
अज़्फऱ (अ़.वि.)-बहुत तेज़ बूवाला, बहुत तीव्र सुगन्ध वाला। इसका 'ज़्Ó
उर्दू के 'ज़ालÓ से बना है।
अजफ़ऱ (अ़.वि.)-बड़े नाख़्ाूनोवाला, बड़े-बड़े नखोंवाला। इसका 'ज़्Ó उर्दू
के 'ज़्वादÓ से बना है।
अज्$फान (अ़.पु.)- 'ज$फ्नÓ का बहु., पलकें; पपोटे।
अ़ज़्ब (अ़.पु.)-स्वादिष्ठ, मज़ेदार; मधुर, मीठा। इसका 'ज़्Ó उर्दू के
'ज़ेÓ से बना है।
अ़ज़्ब (अ़.पु.)-तलवार, खड्ग, खंग; काटना, अलग करना, विच्छेदन। इसका
'ज़्Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ से बना है।
अज़्बर ($फा.वि.)-दे.-'अज़बरÓ। वह चीज़ जो ज़बानी याद हो, कंठस्थ।
अज़्बराए ख़्ाुदा ($फा.अव्य.)-भगवान् के वास्ते, ख़्ाुदा के लिए।
अज़्बस ($फा.अव्य.)-बहुत अधिक, बहुत ज्य़ादा।
अज्बाल (अ़.पु.)-'जबलÓ का बहु., बहुत से पहाड़, अनेक पर्वतें, पर्वत-शृंखलाएँ।
अ़ज़्बीयत (अ़.स्त्री.)-वाक्-शक्ति, बोलने की शक्ति, भाषण-पटुता, ज़बान की तेज़ी।
अ़ज़्बुल बयान (अ़.वि.)-दे.-'अज़्बुल लिसानÓ।
अ़ज़्बुल लिसान (अ़.वि.)-मधुर-भाषी, मीठा बोलनेवाला, जिसकी बातों में रस टपकता हो।
अज्म: (अ़.पु.)-बीहड़, जंगल।
अज़्म (अ़.क्रि.)-दाँत से काटना, दंतक्षत करना। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ तथा 'ज़Ó 'ज़ालÓ अक्षर से बना है।
अ़ज़्म (अ़.पु.)- निश्चय, संकल्प, इरादा; इच्छा, ख़्वाहिश। इसका 'अ़Ó
उर्दू के 'ऐनÓ तथा 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है। पद.-'अज़्म बिल
जज़्मÓ-पक्का इरादा, दृढ़ संकल्प या निश्चय।
अ़ज़्म (अ़.पु.)-अस्थि, हड्डी; बुज़ुर्गी, श्रेष्ठता, पुनीतता। इसका
'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ से बना है।
अ़ज्म (अ़.पु.)-ईरान-तूरान आदि देश, अज़म; अक्षरों पर बिन्दियाँ या
नुक़्ते लगाना। इसका 'ज्Ó उर्दू के 'जीमÓ से बना है।
अज्मईन (अ़.वि.)-तमाम, सारे, सब, संपूर्ण।
अ़ज़्मत (अ.़स्त्री.)-महात्म्य, बड़प्पन, बुज़ुर्गी; महत्त्व, महत्ता,
अहमीयत; सम्मान, आदर, इज्ज़़त।
अ़ज़्म बिल जज़्म (अ़.पु.)-पक्का इरादा, दृढ़ संकल्प, दृढ़ निश्चय।
अज्मल (अ़.वि.)-अत्यन्त सुन्दर, बहुत अधिक रूपवान्, सुन्दरतम।
अ़ज्मा (अ़.पु.)-मूक, गूँगा, जो बोल न सके, वाणी-विहीन।
अज़्मात (अ़.पु.)-'अज़्मÓ का $फारसी बहु. इरादे, निश्चय।
अज़्मान (अ़.पु.)-'ज़मनÓ का बहु. इरादे, निश्चय।
अज़्िमन: (अ़.पु.)-'ज़मान:Ó का बहु., ज़माने, काल-समूह।
अज्य़$क (अ़.पु.)-बहुत ही तंग, बहुत ज़्यादा संकुचित।
अज्यद (अ़.पु.)-बहुत अच्छा, अति उत्तम, बहुत ही उम्दा।
अज़्याÓ (अ़.वि.)-बहुत अधिक नष्ट करनेवाला, बहुत 'ज़ायेÓ करनेवाला।
हिन्दी में 'ज़ायाÓ (नष्ट, बरबाद) बहुत प्रचलित है।
अज्य़ा$फ (अ़.पु.)- 'ज़ैै$फÓ का बहु., अतिथि-जन, मेहमान लोग, आगंतुक-जन।
इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ से बना है।
अज्य़ा$फ (अ़.पु.)-अश$िर्फयों का खोटापन। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेेÓ से बना है।
अज़्याल (अ़.पु.)-'ज़ैलÓ का बहु., दामन, अनेक दामन, बहुत से दामन।
अज्र (अ़.पु.)-उपकार का बदला, भलाई का बदला, सिला, फल, सबाब, पुण्य,
सत्कर्म-फल, प्रत्युपकार; मज़दूरी, पारिश्रमिक, पुरस्कार; फल, बदला,
सिला; व्यय, ख़्ार्च।
अज्ऱक़ (अ़.वि.)-नीले रंग का, नीला।
अज्रद (अ़.पु.)-सफाचट जंगल; बे-बाल का आदमी; गंजा सिर।
अज्रब (अ़.वि.)-जिसे खुजली हो, जिसे खाज का रोग हो।
अज़्ऱा (अ़.स्त्री.)-कुमारी, $गैर-शादीशुदा, अविवाहिता; सुन्दर
कपोलोंवाली, ख़्ाूबसूरत गालोंवाली; प्रकट, व्यक्त; ज्योतिष-शास्त्र में
कन्या-राशि; अऱब की एक प्रसिद्ध सुन्दरी, जो 'वामि$कÓ की प्रेमिका थी।
अज्ऱाब (अ़.पु.)-'ज़र्बÓ का बहु., $िकस्में, प्रकार; समान, सदृश।
अज्राम (अ़.पु.)-'जिर्मÓ का बहु., पिण्ड-समूह। विशेष- यह शब्द आकाशीय
पदार्थों अथवा बहुमूल्य रत्नों के लिए प्रयुक्त होता है। पद.-'अज्रामे
$फलकीÓ-आकाश में घूमने-वाले पिण्ड (ग्रह, नक्षत्र आदि)।
अज्रामे आस्मानी (अ़.पु.)-सूरज, चाँद, सितारे आदि आकाश में घूमनेवाले नक्षत्र।
अज्रामे $फलकी (अ़.पु.)-दे.-'अज्रामे आस्मानीÓ।
अज़ामे बह्र (अ़.पु.)-समुद्र में मिलनेवाले रत्न, मूँगा, मोती आदि।
अज्ऱार (अ़.पु.)-'ज़ररÓ का बहु., अलाभ, हानियाँ, नुक़्सानात।
अज्ऱास (अ़.स्त्री.)-'जि़र्सÓ का बहु., दाढें़, डाढ़ें।
अज्रि$गैर मम्नून (अ़़.पु.)-उपकार का फल, पुण्य, सत्कर्म-फल।
अज्रे जाइज़ (अ़.पु.)-मुनासिब मज़दूरी, उचित पारिश्रमिक, उचित मेहनताना।
अ़़ज़्ल: (अ़.पु.)-स्नायु, नस, पु_ïा।
अ़ज़्ल (अ़.पु.)-पुनर्विवाह में बाधा डालना, विधवा को दूसरा विवाह करने
से रोकना। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ से बना है।
अ़ज़्ल (अ़.पु.)-पद या काम से हटाना; पदच्यूति, पदच्यूत करना, मुअ़त्तल
करना, मुअ़त्तली, निठल्लापन, बेकारी। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना
है।
अज्ल (अ़.पु.)-उभरना, जोश या आवेश में आना, उत्तेजित होना। इसका 'ज्Ó
उर्दू के 'जीमÓ से बना है।
अज़्ल$क (अ़.वि.)-जो बहुत तेज़ बोलता हो, तेज़-ज़बान, ज़ोर से बोलनेवाला।
अज़्मम (अ़.वि.)-बहुत अत्याचारी, अति क्रूर, निहायत ज़ालिम।
अज्लह (अ़.वि.)-असमतल होंठोंवाला, जिसके ओष्ठ खुले रहते हों, जिसके होंठ
बराबर न मिलते हों, मुँहफटा।
अज्ला (अ़.वि.)-बहुत ही चमकदार, बहुत ही सा$फ।
अज़्लाअ़ (अ़.पु.)-'जि़ल्अ़Ó का बहु., जि़ले, मण्डल; पसलियाँ; भुजाएँ; रेखाएँ।
अज्लाद (अ़.स्त्री.)-'जिल्दÓ का बहु., खालें, चमड़े।
अज्ला$फ (अ़.पु.)-'जिल्$फÓ का बहु., पामर या नीच लोग, कमीने लोग, ओछे आदमी।
अज़्लाम (अ़.पु.)-'ज़ुल्मतÓ का बहु., अँधेरे, अंधकार-समूह, तिमिर-श्रेणियाँ।
अज़्लाल (अ़.पु.)-'जि़ल्लÓ का बहु., साए, परछाइयाँ।
अ़ज़्लोनस्ब (अ़.पु.)-प्रतिनियुक्ति, किसी एक व्यक्ति को अपनेे पद से
हटाना तथा दूसरे को उसके स्थान पर नियुक्त करना।
अज़्व (अ़.पु.)-विपत्ति में धैर्य रखना; किसी एक वस्तु को दूसरी से सम्बन्धित करना।
अज्व$फ (अ़.वि.)-जो बीच से खाली हो, खोखला, सुषिर; अऱबी भाषा का वह शब्द,
जिसके बीच का अक्षर 'अलि$फÓ, 'वावÓ या 'येÓ हो।
अज़्वाज (अ़.स्त्री.)- 'ज़ौजÓ का बहु., पत्नियाँ, स्त्रियाँ, भार्याएँ।
अज़्वाजे मुतह्हरात (अ़.स्त्री.)-सदाचारी औरतें, पवित्र पत्नियाँ, पवित्र
स्त्रियाँ, पाक बीवियाँ; हज्ऱत मुहम्मद साहब की पत्नियाँ।
अज्वाद (अ़.वि.)-'जवादÓ का बहु., अनेक धर्मात्मा, बहुत से दानशील।
अज्वाफ़ (अ़.पु.)-'जौ$फÓ का बहु., बहुत से पेट, अनेक उदर।
अज्वार (अ़.पु.)-'जारÓ का बहु., पड़ोसी लोग, प्रतिवासी लोग, प्रतिवेशी लोग।
अज्विब: (अ़.पु.)-'जवाबÓ का बहु., अनेक उत्तर, बहुत से जवाब।
अज्साद (अ़.पु.)-'जसदÓ का बहु., अनेक जिस्म, बहुत से शरीर, अनेक देह।
अज्साम (अ़.पु.)-'जिस्मÓ का बहु., दे.-'अज्सादÓ, दोनों शुद्ध हैं।
अज्सुर (अ़.पु.)-'जस्रÓ का बहु., अनेक पुल, अनेक सेतु, सेतु-समूह।
अज्हर: ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी; चिचड़ा घास।
अज्हर (अ़.वि.)-दिनांध, जिसे दिन में दिखाई न देता हो। इसका 'जÓ उर्दू के
'जीमÓ से बना है।
अज़्हर (अ़.वि.)-यश और कीर्ति के कारण उत्पन्न चेहरे की उज्ज्वलता; बहुत
अधिक प्रकाशमान्; मिस्र का प्राचीन विश्वविद्यालय-'जामिअए अज़्हरÓ। इसका
'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है।
अज़्हर (अ़.वि.)-बहुत उज्ज्वल, बहुत सा$फ, बहुत अधिक स्पष्ट। इसका 'ज़्Ó
उर्दू के 'ज़्वादÓ से बना है।
अज़्हर मिनश्शम्स (अ़.वि.)-सूर्य से भी अधिक स्पष्ट और उज्ज्वल;
सर्वविदित, सब पर ज़ाहिर, सबके सामने स्पष्ट।
अज़्हरान (अ़.पु.)-'अज़्हरÓ का बहु., प्रकाशमान् चीज़ें, जैसे-चाँद, सूरज आदि।
अज्हल (अ़.वि.)-महामूर्ख, मूर्खतम, एकदम बेवकू$फ, बहुत अधिक जाहिल।
अज़्हा (अ़.स्त्री.)-भेंट, बलि, $कुर्बानी।
अज़्हान (अ़.पु.)-'ज़ेह्नÓ का बहु., बुद्धियाँ, प्रतिभाएँ; अनेक
मस्तिष्क, कई ज़ेह्न।
अज़्हार (अ़.पु.)-गुंचे, कलियाँ; बिन खिले फूल, शगूफ़े।
अटक (हि.पु.)-रोक, रुकावट, उलझन, बाधा, अड़चन; संकोच।
अटकन (हि.पु.)-दे.-'अटकÓ।
अटकना (हि.क्रि.)-रुकना, अडऩा; उलझना, फँसना, लगा रहना; प्रेम में फँसना;
विवाद करना, उलझना, झगडऩा।
अटकल (हि.स्त्री.)-अनुमान, कल्पना; अन्दाज़, तख़्ामीना।
अटकाव (हि.पु.)-रोक, अड़चन, रुकावट, बाधा, विघ्न, प्रतिबन्ध।
अटारी (हि.स्त्री.)-ऊपर के खण्ड पर बनी हुई कोठरी, छत।
अठखेली (हि.स्त्री.)-चपलता, चंचलता, चुलबुलापन; क्रीड़ा, कौतुक,
विनोद-क्रीड़ा; मादक या मतवाली चाल।
अड़ंगा (हि.पु.)-रुकावट, अवरोध, अड़चन; हस्तक्षेप।
अड़ाना (हि.क्रि.)-अटकाना, रोकना, उलझाना; टेकना, डाट लगाना; ठूँसना,
भरना; गिराना, रुकावट डालकर गति रोकना।
अडिय़ल (हि.क्रि.)-अकड़कर चलनेवाला; चलते-चलते रुकनेवाला; सुस्त, काम में
देर करनेवाला; हठी, जि़द्दी।
अड्डा (हि.पु.)-ठहरने की जगह; मिलने या इकट्ठा होने का स्थान; धूर्तों का
मिलकर बैठने का स्थान; वह स्थान जहाँ अनेक लोग मिलकर जुआ खेलते हों; वह
स्थान जहाँ पर सवारी उठाकर ले जानेवाले वाहन हों; दुराचारिणी या वेश्याओं
के रहने का स्थान; केन्द्रस्थान; पिंजरे के अन्दर लगा वह डण्डा जिसपर
पिंजरे में बन्द पक्षी बैठता है; छीपी के कपड़ा छापने का गद्दा; जुलाहे
का करघा।
अत [त्त] (अ़.पु.)-दलील से भारी पडऩा, तर्कपुष्टि।
अतका (तु.पु.)-धाय का पति।
अतग: (तु.पु.)-दाय: का पति, दूध पिलानेवाली दाई या धाय का पति।
अतगा (तु.पु.)-दे.-'अतग:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़तन (अ़.पु.)-ऊँटों के पानी पीने का स्थान। (सं.वि.)-बिना देह का,
शरीर-रहित; मोटा, स्थूल; (पु.)-कामदेव।
अत$फाल (अ़.पु.)-'तिफ़्लÓ का बहु., दे.-'अत्$फालÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
'अय़ाल ओ अत्$फालÓ-बाल-बच्चे।
अ़तब: (अ़.पु.)-पवित्र स्थान; समाधि, दरगाह; चौखट, देहलीज़; देहलीज़ की
लकड़ी या पत्थर; रमल (वह विद्या जिसके द्वारा पासे फेंककर शुभाशुभ फल
जाना या बतलाया जाता है); कष्ट, सख्ती।
अ़तब (अ़.पु.)-तर्जनी या मध्यमा अथवा मध्यमा और अनामिका उँगलियों के बीच
का अन्तर। इसका 'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
अ़तब (अ़.पु.)-मरण, हलाकत, वध। इसका 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ से बना है।
अतम [म्म] (अ़.वि.)-साबुत, सम्पूर्ण, सर्वांगपूर्ण, बिना कटा, बिलकुल
पूरा, मुकम्मल।
अतरा$फ (अ़.पु.)-'तर$फÓ का बहु., दिशाएँ, ओर। दे.-'अत्रा$फÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ़तल (अ़.स्त्री.)-बिना शंृगारवाली औरत, ऐसी स्त्री जिसने सिंगार न किया
हो; बिना बिन्दीवाला अक्षर। (सं.वि.)-जिसका तल न हो; बहुत गहरा; सात
पातालों में से दूसरा पाताल।
अतलस (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार का चमकदार बहुत मुलायम रेशमी कपड़ा।
दे.-'अत्लसÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अतवार (अ़.पु.)-रंग-ढंग, आचार-विचार; रविश, ढंग, तौर-तरी$का।
दे.-'अत्वारÓ, वही शुद्घ है।
अ़तश (अ़.स्त्री.)-पिपासा, प्यास, तश्नगी, तृषा, तृष्णा।
अतहर (अ़.वि.)-परम पवित्र, बहुत ही पाक-सा$फ। दे.-'अत्हरÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अता (तु.पु.)-बाप, पिता, पितृ, जनक। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा
'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
अ़ता (अ़.स्त्री.)-दान, प्रदान, बख़्िशश; दत्त, दिया हुआ; पुरस्कार।
'अ़ता करनाÓ-देना, प्रदान करना। 'अ़ता-ए-शैख़्ा-ए-हरमÓ-मस्जिद के शैख़्ा
की देन। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ तथा 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना
है।
अ़ताई (अ़.वि.)-वह, जो अपने ईश्वरदत्त गुणों के कारण आप-से-आप अर्थात्
स्वयं ही कोई कला, विद्या अथवा काम सीख ले; किसी शिक्षक की सहायता बिना
स्वयं ही कोई काम करनेवाला; जिसने कोई कला या गुण नियम-पूर्वक गुरु से न
सीखा हो वरन् यूँ ही सुन-सुनाकर या देख-भालकर अथवा किसी अनाड़ी के पास
रहकर थोड़ा-बहुत उलटा-सीधा ज्ञान प्राप्त कर लिया हो।
अ़ता$क (अ़.पु.)-दास या $गुलाम का अपने स्वामी के बंधनों से मुक्त होना।
अतान (अ़.स्त्री.)-गधा की मादा, गधी, गर्दभी।
अ़तानाम: (अ़.पु.)-दान-पत्र।
अ़तानामा (अ़.पु.)-दे.-'अ़तानाम:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ताब (अ़.पु.)-दे.-'इताबÓ वही शुद्ध है, क्रोध, $गुस्सा।
'अ़ताब-ए-रहरवाँÓ-यात्रियों का $गुस्सा, मुसा$िफरों का प्रकोप।
अताबुक (तु.पु.)-गुरु, उस्ताद; स्वामी, मालिक, सरदार।
अ़ताया (अ़.पु.)-'अ़तीय:Ó का बहु., भेंटें, दान-समूह, बख्शिशें।
अतालिय: (अ़.पु.)-इटली, यूरोप का एक प्रसिद्ध देश।
अताली$क (तु.पु.)-अध्यापक, शिक्षक, गुरु, उस्ताद; शिक्षा के साथ-साथ
शिष्टता, सभ्यता और व्यवहार-निष्ठा आदि सिखानेवाला तथा चाल-चलन की
देख-रेख करनेवाला गुरु।
अताली$की (तु.स्त्री.)-गुरु अथवा शिक्षक का कार्य या पद, आदर सिखाना तथा
शिक्षा देना।
अतिब्बा (अ़.पु.)-'तबीबÓ का बहुवचन, उपचारक-गण, चिकित्सक-गण, वैद्य लोग, हकीम लोग।
अ़तिय: (अ़.पु.)-पुरस्कार में दी हुई वस्तु, भेंट दी हुई चीज़।
अ़तिया (अ़.पु.)-दे.-'अ़तिय:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़ती$क (अ़.वि.)-पुराना, प्राचीन, पुरातन, $कदीम; स्वतंत्र, आज़ाद,
बंधनमुक्त; श्रेष्ठ, गिरामी; चुना हुआ।
अतीत (अ़.पु.)-पेट बोलना।
अ़तीद (अ़.वि.)-उपस्थित, मौजूद, हाजिऱ, विद्यमान; उद्यत, तत्पर, आमादा।
अ़ती$फ (अ़.स्त्री.)-वह स्त्री, जिसमें नम्रता, पातिव्रत्य और आज्ञाकारिता हो।
अतीम (अ़.वि.)-पापी, अपराधी, मुज्रिम, दोषी, गुनाहगार।
अ़तीय: (अ़.पु.)-भेंट, उपहार, तोह$फा, पुरस्कार, इन्अ़ाम; अ़ता, प्रदान
अनुदान, बख़्िशश।
अ़तीयात (अ़.पु.)-'अतीय:Ó का बहु., भेंटें, बख़्िशशें; तोह$फे;
इन्अ़ामात, पुरस्कार।
अ़तील (अ़.वि.)-जिसे प्यास लगी हो, प्यासा, तृषित।
अतून (अ़.स्त्री.)-चूल्हा, अँगीठी, तन्दूर, भट्ठी।
अ़तू$फ: (अ़.स्त्री.)-सुशील और विनम्र स्त्री।
अ़तू$फ (अ़.पु.)-कृपालु, दयालु, मेहरबान; वत्सला, वह ऊँटनी, जो अपने
बच्चे से बहुत स्नेह करे; चिड़ीमार का जाल।
अ़तू$फत (अ़.स्त्री.)-कृपा, अनुग्रह, अनुकम्पा, मेहरबानी, दया, श$फ$कत।
अत्इम: (अ़.पु.)-'तअ़ामÓ का बहु., खाने, भोजन।
अत्$िकया (अ.पु.)-'त$कीÓ का बहु., ऋषि और मुनि लोग; सदाचारी और धर्म-निष्ठ लोग।
अत्गह (तु.पु.)-राजमहल या शाही महल में बच्चों को दूध पिलानेवाली दाई या
धाय का पति।
अ़त्तार (अ़.वि.)-औषध विक्रेता, दवा-$फरोश; इत्र बनाने और बेचनेवाला,
इत्र-$फरोश, सुगन्धकार। इसका 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
अ़त्तार (अ़.वि.)-वह स्थान जहाँ दिल, जी या मन न लगे; बहादुर, साहसी,
दिलेर, हिम्मतवाला; बलिष्ठ घोड़ा। इसका 'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना
है।
अ़त्तारी (अ़.स्त्री.)-इत्र बनाने और बेचने का काम या पेशा, दवा बेचने का
काम या पेशा।
अ़त्ति$क: (अ़.पु.)-धर्म-विरुद्घ आचरण से बचना, डरना, परहेजग़ार होना।
अत्तिम (अ़.वि.)-बहुत पूर्ण, पहुँचा हुआ, बड़ा कामिल, अत्यन्त निपुण।
अ़त्$फ (अ़.पु.)-अनुकम्पा, मेहरबानी, कृपा, दया; इच्छा, ख़्वाहिश;
फिराना, घुमाना; लपेटना; मिलाना, जोडऩा, संबद्ध करना; दो शब्दों के बीच
में 'वावÓ या कोई दूसरा अक्षर या शब्द लाकर आपस में मिलाना; संयोजक
अव्यय, जैसे-'औरÓ।
अत्$फाल (अ़.पु.)-'तिफ़्लÓ का बहु., बच्चे, बालकगण ।
अ़त्ब (अ़.पु.)-$गुस्सा करना, क्रोध करना; निन्दा करना, बुराई करना, आलोचना करना।
अत्बख़्ा (अ़.वि.)-बहुत पकानेवाला; अति मन्दबुद्धि।
अत्बाअ़ (अ़.पु.)-'तबाÓ का बहु., अनुकारी-वर्ग, पैरवी करनेवाला। इसका 'तÓ
उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
अत्बाअ़ (अ़.स्त्री.)-'तबअ़Ó का बहु., स्वभावें, प्रकृतियाँ, टेब, आदतें।
इसका 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
अत्बाल ($फा.पु.)-'तब्लÓ का बहु., भेरियाँ, नक्कारे।
अत्बिक़: (अ़.पु.)-'तब$कÓ का बहु., अनेक थाल।
अत्मक (तु.स्त्री.)-चपाती, नान, रोटी।
अत्यब (अ़.वि.)-सुसुगन्धित, बहुत अच्छी ख़्ाुशबूवाला, बहुत अच्छी सुगन्धवाला।
अत्याब (अ़.स्त्री)-'तीबÓ का बहु., ख़्ाुशियाँ।
अत्यार (अ़.पु.)-'ताइरÓ का बहु., पखेरू, बहुत से पक्षी।
अत्राक (तु.पु.)-'तुर्कÓ का बहु., तुर्क लोग।
अत्रा$फ (अ़.पु.)-'तर$फÓ का बहु., दिशाएँ, ओर।
अत्राब (अ़.पु.)-'तिर्बÓ का बहु., हम-उम्र लोग, समव्यस्क पुरुष या स्त्रियाँ।
अत्रास ($फा.पु.)-'तर्सÓ का बहु., बहुत भय, बहुत डर। (सं.पु.)-भय का
अभाव, निडर होना, बेख़्ाौ$फ।
अत्रिक़ा (अ़.पु.)-'तरी$क:Ó का बहु., युक्तियाँ, विधियाँ, रास्ते।
अत्रिय: (अ़.स्त्री.)-सिवैयाँ।
अत्रु$क (अ़.पु.)-दे.-'अत्रि$काÓ।
अत्लस (अ़.पु.)-स्वच्छ आसमान, सा$फ आकाश। (स्त्री.)-एक बहुमूल्य रेशमी वस्त्र।
अत्लाल (अ़.पु.)-वह भवन, जो खंडहर बन चुके हैं, खंडरात; पुराने और ध्वस्त
मकान आदि के चिह्नï।
अत्वल (अ़.वि.)-बहुत लम्बा।
अत्वा$क (अ़.पु.)-'तौ$कÓ का बहुवचन, स्त्रियों के आभूषण, हँसलियाँ; नारियल का पानी।
अत्वार (अ़.पु.)-'तौरÓ का बहु., शैली, पद्घति, तौर-तरी$के, रंग-ढंग;
व्यवहार, आचरण, आÓमाल।
अ़त्शान (अ़.वि.)-प्यासा, तृषित।
अ़त्स: (अ़.स्त्री.)-झींक, झींख, खीज।
अत्हर (अ़.वि.)-अत्यन्त पवित्र, बहुत पाक, निर्मल।
अ़द [द्द] (अ़.पु.)-गणना करना, गिनना, शुमार करना।
अदक़ [क़्क़] (अ़.वि.)-बहुत मुश्किल, बहुत ही गूढ़, बहुत क्लिष्ट, बहुत
कठिन, बहुत ही सूक्ष्म, रहस्यमय, निहायत गहरा।
अद$कच: (तु.पु.)-पलंग पर बिछाने की कामदार चादर।
अदख़्ााल (अ़.पु.)-दे.-'इद्ख़्ाालÓ, वही शुद्घ है।
अ़दद (अ़.पु.)-गिनती, संख्या, शुमार, अंक; तादाद, मात्रा।
अ़दद सहीह (अ़.पु.)-पूर्ण संख्या, भिन्न-रहित संख्या।
अ़ददी (अ़.वि.)-अ़दद से सम्बन्ध रखनेवाला, संख्या से सम्बन्धित, संख्या का।
अ़दन (अ़.पु.)-यमन का एक द्वीप, जहाँ का मोती प्रसिद्ध है।
(सं.पु.)-खाना, भक्षण; यहूदी, ईसाई तथा मुसलमानों के मतानुसार स्वर्ग का
वह नन्दनवन जहाँ ईश्वर ने हज्ऱत आदम (आदिपुरुष) को बनाया था।
अदना (अ़.वि.)-दे.-'अद्नाÓ, वही शुद्ध है। 'अदना ओ अ़ालाÓ-नीच-ऊँच सब,
छोटे से बड़े तक।
अदब (अ़.पु.)-शिष्टता, सभ्यता, तमीज़; प्रत्येक चीज़ का अंदाज़ा और हद को
दृष्टि में रखना; साहित्य, कला; भाषा-शास्त्र का एक अंग, व्याकरण;
बुद्धि, विवेक; बड़ों का आदर-सत्कार, बड़ों का लिहाज़। 'ख़्ाामोश अय दिल
भरी मह$िफल में चिल्लाना नहीं अच्छा, अदब पहला $करीना है मुहब्बत के
$करीनों मेंÓ -इ$कबाल
अदब आदाब (अ़.$फा.पु.)-सभ्यता, तमीज़; प्रतिष्ठा और पद का मर्यादा-पालन।
अदब आमोज़ (अ़.$फा.वि.)-आदर सिखानेवाला, शिष्टाचार सिखानेवाला; अदब
सीखनेवाला, साहित्यिक-ज्ञान अर्जित करनेवाला, अदब सीखनेवाला।
अदब आमोज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-शिष्टाचार सिखाना, अदब सिखाना;
साहित्यिक-ज्ञान देना; शिष्टाचार सीखना, अदब सीखना; साहित्यिक-ज्ञान
अर्जित करना।
अदबख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-शौचालय, शौचघर, टॉयलेट।
अदब नवाज़ (अ़.$फा.पु.)-जो साहित्य का मानदाता, $कद्रदान और साहित्यकारों
का गुण-ग्राही हो।
अदबान: (अ़.$फा.वि.)-साहित्यिक अंदाज़ का, साहित्य से सम्बन्धित,
सम्मानित तरी$के से, सम्मान के साथ।
अदबी (अ़.$वि.)-साहित्यिक, साहित्य से सम्बन्धित, अदब से मुतल्लि$क।
अदबीयत (अ़.$स्त्री.)-साहित्य पर बातचीत, साहित्यिकता, साहित्यिक प्रवाद।
अदबीयात (अ़.$स्त्री.)-साहित्य-सम्बन्धी पुस्तकें आदि।
अदबुल् अ़ालिय: (अ.पु.)-अति उत्तम साहित्य, श्रेष्ठ साहित्य।
अ़दम (अ़.$फा.वि.)-परलोक, यमलोक, मरने के उपरान्त मनुष्य जहाँ जाता है; न
होना, अभाव, अनस्तित्व; हीन, बिना, रहित, खालर, ब$गैर, शून्य; अभाव, कमी।
'अ़दम की राह लेनाÓ-मर जाना। अ़दम इ$करारÓ-$करार या अनुबंध का अभाव। अ़दम
तामीलÓ-न्ष्पिादन का अभाव, अनिष्पादन। अ़दम पैरवीÓ-पैरवी का अभाव। अ़दम
मौजूदगीÓ-मौजूदगी का अभाव, अनुपस्थिति। अ़दम हाजिरी $फरीक़ैनÓ-पक्षकारों
की अनुपस्थिति में।
अ़दम आबाद (अ़.$फा.पु.)-यमलोक, परलोक, अदम की बस्ती, वह बस्ती जहाँ मरने
के उपरान्त मनुष्य जाता है।
अ़दमख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अ़दम आबादÓ।
अ़दमगाह (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अ़दम आबादÓ।
अ़दम ताÓमील (अ़.$फा.पु.)-निष्पादन का अभाव, अनिष्पादन।
अ़दम पैरवी (अ़.$फा.पु.)-मु$कदमे की पैरवी न करना, पैरवी का अभाव।
अ़दम $फुर्सत (अ़.$फा.पु.)-समय या अवकाश का अभाव।
अ़दम मौजूदगी (अ़.$फा.पु.)-मौजूदगी का अभाव, $गैर-हाजिऱी, अनुपस्थिति।
अ़दम सबूत (अ़.$फा.पु.)-सबूत का अभाव, सबूत न होना, प्रमाण न होना।
अ़दम हाजि़री $फरीकैऩ (अ़.$फा.पु.)-पक्षकारों की $गैर-हाजिऱी या अनुपस्थिति में।
अदरक ($फा.पु.)-एक पौधा, जिसकी तीक्ष्ण और चरपरी जड़ या गाँठ औषध तथा
मसाले के काम में इस्तेमाल की जाती है, हरी सौंठ।
अदरन: (तु.पु.)-बल्कान प्रदेश के एक शहर का नाम, एडिरयानोपिल।
अ़दल (अ़.$पु.)-न्याय, इंसा$फ; ईश्वर का एक नाम। दे.-'अ़द्लÓ, शुद्घ
उच्चारण वही है।
अ़दल गुस्तर (अ़.$$फा.वि.)-न्याय करनेवाला, इंसा$फ करनेवाला। दे.-'अ़द्ल
गुस्तरÓ, वही शुद्घ है।
अ़दल पर्वर (अ़.$$फा.वि.)-दे.-'अ़दल गुस्तरÓ।
अदल-बदल (हिं.पु.)-उलट-फेर, हेर-फेर, फेर-बदल, परिवर्तन।
अदला-बदली (हिं.स्त्री.)-लेनदेन; उलट-फेर, हेर-फेर, फेर-बदल, परिवर्तन।
अदल [ल्ल] (अ़.$वि.)-न्याय, इंसा$फ; तर्क से पूर्ण, तर्कयुक्त,
संगतियुक्त; न्यायशील; ईश्वर का एक नाम।
अदवात (अ़.पु.)-'अदातÓ का बहु., यंत्र, औज़ार, अनेक उपकरण, आले, आलात।
अदविय: (अ़.स्त्री.)-'दवाÓ का बहु., दवाएँ, औषधियाँ। दे.-'अद्विय:Ó,
शुद्घ उच्चारण वही है।
अदविया (अ़.स्त्री.)-दे.-'अदविय:Ó।
अदा ($फा.स्त्री.)-नखऱा, नाज़-नख़्ारा, हावभाव; ढंग, तजऱ्, पद्यति,
प्रणाली। 'अदा-ए-ब$र्कÓ-बिजली की अदा। 'अदा-ए-नौÓ-नई अदा। 'इक अदा ने मार
डाला यूँ मुझे, आज तक उभरा नहीं हूँ दोस्तो Ó- माँझी
अदा (अ़.पु.)-देय, देना, चुकाना, बेबा$क करना; परिशुद्घ, बेबा$क।
'$कजऱ्ा तिरा तमाम अदा कर दिया है जब, अब दे भी दे रसीद कि मैं भी कहीं
चलूँÓ। 'अदा करनाÓ-चुकाना; देना, पूरा करना; अ़मल में लाना; लिखना; कहना;
भाव बताना; नियमपूर्वक गाना; पढऩा; कला आदि का प्रदर्शन करना। 'अदाए
ख़्िादमतÓ-ख़्िादमत करना, सेवा करना। 'अदाए शहादतÓ-शहादत देना।
अदाइगी (अ़.$फा.स्त्री.)-अदा होना या करना, भुगतान; $कर्ज़ चुकाने का
कार्य, जैसे- '$कर्ज़ की अदायगीÓ- ऋण का भुगतान; बेबा$की, परिशुद्धि,
पूरा करना, चुकाना। हिन्दी में यह 'अदायगीÓ के रूप में प्रचलित है।
अदाए $कजऱ् (अ़.$पु.)-ऋण-मुक्ति, ऋण का भुगतान करना, $कजऱ् की बेबा$की।
अदाए ख़्ाास (अ़.$फा.स्त्री.)-पद्यति-विशेष, ख़्ाास अंदाज़, विशेष शैली।
अदाए मालगुज़ारी (अ़.$फा.पु.)-भूमि-कर अदा करना, लगान का भुगतान करना।
अदाए लगान (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अदाए मालगुज़ारीÓ।
अदाए शहादत ($फा.पु.)-गवाही देना, साक्षी देना।
अदाकार ($फा.वि.)-अभिनेता, नट (पुरुष), अभिनेत्री, तारिका (स्त्री)।
अदाकारान: ($फा.स्त्री.)-अदाकारी से सम्बन्धित, अदाकारी-जैसा,
अभिनय-जैसा, अभिनय से सम्बन्धित।
अदाकारी (फा.स्त्री.)-कला-प्रदर्शन, अभिनय।
अदात (अ़.पु.)-उपकरण, यंत्र, औज़ार। (सं.वि.)-जो कटा हुआ न हो, जो
विछिन्न न हो; अशुद्घ, अपवित्र।
अदानी (अ़.पु.)-'अद्नाÓ का बहु., अति निकटवाले, बहुत पासवाल; बहुत नीच, बहुत कमीने।
अदाबन्द (अ़.$पु.)-वह कवि, जो प्रेमिका के हाव-भाव का सजीव चित्रण करे।
अदाबन्दी (अ़.स्त्री.)-कविता में प्रेमिका के हाव-भाव का चित्रण इस
प्रकार करना कि एक तस्वीर-सी उभरती नज़र आए।
अदायगी (अ़.स्त्री)- शुद्ध शब्द 'अदाइगीÓ है लेकिन हिन्दी में 'अदायगीÓ
ही प्रचलित है। अदा होना या करना, भुगतान, जैसे-$कजऱ् की अदायगी यानी ऋण
का भुगतान।
अ़दालत (अ़.स्त्री.)-न्याय, इंसा$फ; न्यायालय, अ़दालत, कचहरी।
अ़दालत पज़ोह (अ़.$फा.वि.)-न्यायनिष्ठ, मुंसि$फमिज़ाज।
अ़दालती (अ़.वि.)-न्यायालय का, अ़दालत का, न्यायालय -सम्बन्धी।
अ़दालते अ़ालिय: (अ़.स्त्री.)-उच्च नयायालय, हाईकोर्ट।
अ़दालते इब्तिदाई (अ़.स्त्री.)-आरम्भिक न्यायालय।
अ़दालते ख़्$ाफ़ी$फा (अ़.स्त्री.)-लघुवाद न्यायालय, अल्पवाद न्यायालय,
स्माल कॉज़ कोर्ट।
अ़दालते दीवानी (अ़.स्त्री.)-दीवानी अ़दालत, वह अ़दालत जिसमें संपत्ति या
अर्थ-सम्बन्धी मु$कदमों का विचार होता है। लेन-देन और रुपए-पैसों के
मामलों की सुनवाई करनेवाली अ़दालत।
अ़दालते $फौजदारी (अ़.स्त्री.)-लड़ाई-झगड़ों के मामलों पर विचार करनेवाली
अदालत, वह न्यायालय जहाँ ऐसे मु$कदमों का $फैसला किया जाता है जिसमें
अपराध करनेवाले व्यक्तियों को दण्ड मिलता है।
अ़दालते मातहत (अ़.$स्त्री.)-अधीनस्थ न्यायालय।
अ़दालते माल (अ़.स्त्री.)-लगान और खेती के मामलों की सुनवाई करनेवाली
अ़दालत, मालगुज़ारी आदि के वाद-विवाद निबटानेवाली अ़दालत, राजस्व
न्यायालय।
अ़दालते मुजाज़ (अ़.स्त्री.)-विशेष अ़दालत, प्राधिकारी अ़दालत, अधिकृत
अ़दालत। ऐसी अ़दालत, जिसे किसी मुअ़ामले (मामले) के सुनने और उस पर
निर्णय करने का अधिकार हो।
अ़दालते मुरा$फअ़: (अ़.स्त्री.)-ऐसी अ़दालत, जहाँ किसी निर्णय पर
पुनर्विचार किया जाए, ऐसा न्यायालय जहाँ किसी निर्णय के विरुद्ध अपील की
जा सके।
अ़दावत (अ़.स्त्री.)-दुश्मनी, वैर, शत्रुता।
अदावतन (अ़.$वि.)-शत्रुता से, वैर-भाव से।
अ़दावत पेश: (अ़.$फा.वि.)-जो हर किसी से वैर-भाव रखता हो, जिसका काम सबसे
दुश्मनी पालना हो, वैर-वृत्त।
अ़दावती (अ़.$वि.)-वैरी, दुश्मन।
अ़दावते $कल्बी (अ़.स्त्री.)-दिली-दुश्मनी, हार्दिक वैर, बहुत अधिक शत्रुता।
अ़दावते $िफत्री (अ़.स्त्री.)-स्वाभाविक वैर, पैदाइशी दुश्मनी, प्राकृतिक
वैर, जैसे-साँप और नेवले में।
अ़दावते बिल$कस्द (अ़.स्त्री.)-जानबूझकर लिया हुआ वैर।
अदाशनास ($फा.वि.)-इशारे से मतलब पहचाननेवाला, यह समझनेवाला कि इस समय
उसका स्वामी क्या चाहता है और क्या करना चाहिए, भालदर्शी, ताडऩेवाला।
अदाशुद: सरमाय: ($फा.पु.)-किसी लिमिटेड कम्पनी की घोषित पूँजी का वह
हिस्सा, जो जमा हो चुका हो।
अदिल्ल: (अ़.स्त्री.)-'दलीलÓ का बहु., दलीलें, बहसें।
अ़दीद (अ़.स्त्री.)-बहुत, अधिक; शुमार, गणना; नजीर, सदृश्ता।
(वि.)-मानिन्द, समान; बहुत से, अनेक; गिने हुए।
अदीब: (अ़.स्त्री.)-साहित्यिक महिला, भाषाविद् औरत।
अदीब (अ़.वि.)-साहित्यकार, कलाकार, साहित्यिक, विद्या-व्यसनी, अदब सिखानेवाला।
अ़दीम (अ़.वि.)-नष्टप्राय:, अप्राप्य, दुर्लभ, नायाब; जो रहा न हो, जो
बचा न हो। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अदीम (अ़.पु.)-कच्चा और बदबूदार चमड़ा; ज़मीन की सतह, धरातल; भोजन, खाना।
इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़दीमज्ज़़ुहा (अ़.पु.)-सूर्योदय के पश्चात् का समय, प्रभात-वेला, प्रत्यूष-आतप।
अ़दीमुन्नज़ीर (अ़.वि.)-अनुपम, अद्वितीय, बेमिसाल, जिस जैसा दूसरा न हो, अनुपमेय।
अ़दीमुलअजऱ् (अ़.पु.)-पृथ्वी की सतह, धरातल।
अ़दीमुल$फुर्सत (अ़.पु.)-जिसके पास खाली समय न हो, जिसे अवकाश न हो, अवकाश-विहीन।
अ़दीमुल मिसाल (अ़.वि.)-दे.-'अदीमुन्नज़ीरÓ। बेजोड़, अनुपम, बेमिसाल।
अ़दीमुलवुजूद (अ़.वि.)-दुर्लभ, नायाब, अप्राप्य।
अ़दील (अ़.वि.)-बराबर, नज़ीर, समान, तुल्य, हमसर, जो एक कजावे (ऊँट की
पीठ पर रखी जानेवाली काठी) पर दोनों ओर बैठें।
अ़दू (अ़.पु.)-दुश्मन, वैरी, शत्रु, विरोधी।
अ़दूल (अ़.पु.)-सच्चा पुरुष, सत्यनिष्ठ व्यक्ति; सच्चा गवाह।
अ़दूले हुक्म (अ़.पु.)-आदेश या आज्ञा को न माननेवाला, अवज्ञाकारी, ना$फर्मान।
अद्इय: (अ़.स्त्री.)-'दुअ़ाÓ का बहु., दुअ़ाएँ, प्रार्थनाएँ।
अद्ख़्िान: (अ़.पु.)-'दुख़्ाानÓ का बहु., धुएँ।
अ़द्न (अ़.पु.)-निवास, $कयास; किसी जगह हमेशा रहना; स्वर्ग के बा$ग।
अद्ना (अ़.वि.)-लघुतर, बहुत छोटा, जऱा-सा (काम); तुच्छ, अधम, कमीना; पास,
समीप, निकट।
अ़द्नान (अ़.पु.)-हज्ऱत मुहम्मद साहब के एक पूर्वज, जो बड़े अच्छे वक्ता थे।
अद्नास (अ़.पु.)-'दनसÓ का बहु., मैल-कुचैल।
अद्मान (अ़.पु.)-'अदमÓ का बहु., गेंहुए रंग के लोग।
अद्यान (अ़.पु.)-'दीनÓ का बहु., बहुत-सी धार्मिक आस्थाएँ, अनेक धर्म और मज़हब।
अद्यार (अ़.पु.)-'दैरÓ का बहु., बहुत से धर्म और मज़हब।
अद्रक (अ़.पु.)-एक प्रकार की ख़्ाुशबूदार जड़, जो सूख-कर सौंठ कहलाती है,
यह मसालों और दवाओं में काम आती है, हरी सौंठ।
अद्रकी (उ.स्त्री.)-ताज़े गुड़ में अद्रक मिली हुई दवा।
अद्रद (अ़.वि.)-पोपला, जिसके दाँत गिर गए हों।
अद्र$फन ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार का चर्म-रोग दाद, दद्रू।
अ़द्ल (अ़.पु.)-न्याय, इंसा$फ ; न्याय करनेवाला, इंसा$फ देनेवाला,
न्यायाधीश; वह सच्चा व्यक्ति, जो गवाही के लिए ठीक हो; सदृश, समान,
मिस्ल; एक वस्तु को दूसरी वस्तु के बराबर करना।
अ़द्लगुस्तर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़द्लपर्वरÓ।
अ़द्लपर्वर (अ़.$फा.वि.)-न्यायप्रिय, हर बात में न्याय का पूरा ध्यान
रखनेवाला, न्यायनिष्ठ।
अद्ला (उ.पु.)-बड़े-बड़े हलाल जानवरों की टाँगों का बे-रेशा गोश्त।
अ़द्लैन (अ़.पु)-वह सच्चे व्यक्ति, जो गवाही के लिए उचित हों।
अद्वन (अ़.वि.)-कमीन:तर, बहुत ही नीच, अधमतर; $करीबतर, बहुत ही निकट, समीपतर।
अद्वा (अ़.पु.)-'दाÓ का बहु., अनेक रोग, बीमारियाँ।
अद्वात (अ़.पु)-'अदातÓ का बहु., यंत्र, उपकरण-समूह, औज़ार।
अद्वार (अ़.पु.)-'दौरÓ का बहु., फेरे, बारियाँ, पारियाँ।
अद्विय: (अ़.पु.)-'दवाÓ का बहु., दवाएँ, औषधियाँ।
अद्हम (अ़.पु.)-बेड़ी; काले रंग का, काला; काला घोड़ा; काला साँप।
अद्हिय: (अ़.स्त्री.)-'दाहिय:Ó, का बहु., जीवन की कठिनाइयाँ, मुश्किलें,
परेशानियाँ।
अधबर (हिं.पु.)-आधा मार्ग, आधा रास्ता; बीच में।
अधर (हिं.पु.)-जिसका कोई आधार न हो, बिना आधार का; आकाश, अन्तरिक्ष।
मुहा.-'अधर में झूलनाÓ-अधूरा रहना, पूरा न होना; दुविधा में पडऩा। 'अधर
में लटकनाÓ-अधर झूलना; कोई काम बीच में ही रुक जाना; (सं.पु.)-ओंठ, होंठ,
नीचे के ओष्ठ। मुहा.-'अधर चबानाÓ-क्रोधावेश में दाँतों से होंठ चबाना।
(वि.)-जो पकड़ा न जा सके, चपल, चंचल; नीच, बुरा; विवाद या मु$कदमे में
हारा हुआ।
अधिकार (सं.पु.)-प्रभुत्व, अधिपत्य; स्वत्व, ह$क, $कब्ज़ा, इख़्ितयार;
शक्ति, क्षमता, सामथ्र्य; योग्यता, ज्ञान, परिचय।
अधिकारी (सं.पु.)-प्रभु, स्वामी, मालिक; वह जिसे कोई स्वत्व या ह$क मिला
हुआ हो; वह जिसमें कोई विशेष योग्यता या क्षमता हो; उपयुक्त पात्र;
अ$फसर, किसी कार्य या पद पर रहकर काम करनेवाला कर्मचारी।
अधूरा (हिं.वि.)-अपूर्ण, जो पूरा न हो, असमाप्त, आधा, खण्डित, अधकचरा।
मुहा.-'अधूरा कर देनाÓ-कमज़ोर कर देना। 'अधूरा जानाÓ-असमय गर्भपात हो
जाना।
अऩ (अ़.अव्य.)-से, अज़। (सं.अव्य.)-'अन्Ó, संस्कृत व्याकरणानुसार
निषेधार्थक अव्यय, न, नहीं (नकारात्मक अर्थ में प्रयुक्त),
जैसे-'अनजानÓ-जिससे जान-पहचान न हो, अपरिचित।
अनजान (हिं.वि.)-बिना जाना-पहचाना हुआ, अपरिचित, अज्ञात; भोला-भाला,
नासमझ, नादान, सीधा, अज्ञ, अज्ञानी। 'अनजान मैं बना रहा कुछ बात सोचकर,
जो मुझसे छिप रहा था वो मेरी नजऱ में थाÓ-माँझी
अन$कबूत (अ़.स्त्री.)-मकड़ी, लूता।
अऩ$करीब (अ़.अव्य.)-शीघ्र, जल्द; आस-पास, लगभग।
अनजल (अ़.वि.)-अत्यन्त लोभी, मक्खीचूस, बहुत कंजूस।
अऩत (अ़.पु.)-दोष; पाप, गुनाह; हत्या। (सं.वि.)-सीधा, जो झुका हुआ न हो,
(क्रि.वि.)-दूसरे किसी स्थान पर, और कहीं, अन्यत्र।
अन$फ (अ़.स्त्री.)-नाक, नासा, बीनी।
अन$फार (अ़.पु.)-'न$फरÓ का बहु., लोग, व्यक्ति-समूह; नौकर, दास; मज़दूर,
श्रमिक; सिपाही; कमीने लोग।
अनब (अ़.पु.)-बैंगन, भाँटा।
अनबन (हिं..स्त्री.)-बिगाड़, विरोध, झगड़ा, झंझट, द्रोह, (वि.)-भिन्न, पृथक्, अलग।
अनबार ($फा.पु.)-ढेर, राशि, समूह।
अनबोह ($फा.पु.)-भीड़, हजूम।
अनमोल (हिं.वि.)-अमूल्य, जिसका मूल्य आँका न जा सके, बहुमूल्य, बेश$कीमती।
अनलब$र्क (अ़.वा.)-मैं बिजली हूँ।
अलनबह्र (अ़.वा.)-मैं समुद्र हूँ, मैं सागर हूँ।
अनललाह (अ़.वा.)-मैं भगवान् हूँ, मैं ईश्वर हूँ।
अनलह$क (अ़.वा.)-मैं सत्य हूँ, मैं सदा$कत हूँ, मैं ब्रह्मï हूँ, मैं भगवान् हूँ।
अनवर (अ़.वि.)-दे.-'अन्वरÓ, वही शुद्ध उच्चारण है, बहुत चमकीला, चमकदार;
शोभायमान्। (सं.वि.)-श्रेष्ठ, उत्तम; सभ्य, शिष्ट।
अनवाअ़ (अ़.पु.)-प्रकार, $िकस्में, भेद, दे.-'अन्वाअ़Ó, वही शुद्घ
उच्चारण है, 'नौअ़Ó का बहु.।
अनवार (अ़.पु.)-'नूरÓ का बहु., प्रकाशपुंज, जगमगाहट, रोशनियाँ।
दे.-'अन्वारÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अनहोनी (हिं.वि.)-न होनेवाली; असंभव, अलौकिक; (स्त्री.)-असंभव बात, न
होनेवाली बात, अलौकिक घटना।
अना (अ़.अव्य.)-मैं। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अना (तु.स्त्री.)-माता, जननी, माँ। इसका 'अÓ उर्दू के अलि$फ से बना है।
अऩा (अ़.स्त्री.)-दु:ख, कष्ट, तकली$फ; कोशिश, प्रयास, मशक़्क़त,
दौड़-धूप। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अऩा$क (अ़.पु.)-अजा-शिशु, बकरी की बच्ची।
अऩा$कीद (अ़.पु.)-'उन्$कूदÓ का बहु., अंगूर के गुच्छे।
अनाज (हिं.पु.)-अन्न, धान्य, दाना, नाज, गल्ला।
अनाजील (अ़.पु.)-'इंजीलÓ का बहु., अनेक बाइबिलें, बहुत-सी इंजीलें।
अनाजीले अर्बअ़: (अ़.पु.)-मत्ती, मरकुस, लूका और यहूना की चार इंजीलें।
अनाड़ी (हिं.वि.)-गँवार, नादान, नासमझ, असभ्य; अदक्ष, अकुशल, अनिपुण।
अनात (अ़.पु.)-विलंब, देर।
अनातूलिय: (अ़.पु.)-तुर्किस्तान का एक नगर।
अऩादिल (अ़.उभ.)-'अंदलीबÓ का बहु., अनेक बुलबुलें।
अनानीयत (अ़.स्त्री.)-यह भावना कि जो कुछ हूँ बस मैं ही हूँ, अहंवाद,
ख़्ाुदपरस्ती, ख़्ाुदी।
अनाबीब (अ़.पु.)-'अंबूबÓ का बहु., पानी के नलके, (स्त्री.)-नरकुल की
पोरें, नालियाँ।
अनाम (अ़.पु.)-प्राणी, सृष्टि; जनता, सर्वसाधारण, अवाम; (सं.वि.)-बिना
नाम का; अप्रसिद्घ, अविख्यात।
अनायत (अ़.स्त्री.)-दे.-'इनायतÓ, वही शुद्ध है। कृपा, दया, मेहरबानी।
अनायास (हिं.क्रि.वि.)-बिना प्रयास या परिश्रम, बिना उद्योग,
बैठे-बिठाये; सहसा, एकाएक, अकस्मात्, अचानक।
अनामिल (अ़.स्त्री.)-'अन्मिल:Ó का बहु., उँगलियों के सिरे, पोर।
अनार ($फा.पु.)-एक प्रसिद्ध फल, दाडि़म; एक प्रकार की आतिशबाज़ी या फूलझड़ी।
अनारदान: ($फा.पु.)-अनार का सुखाया हुआ दाना, अनार के सूखे हुए बीज, जो
दवा में काम आते हैं, अनारदाना, रामदाना।
अनारदाना ($फा.पु.)-दे.-'अनारदान:Ó, वही शुद्घ है।
अनारा ($फा.पु.)-लाल आँखोंवाला कबूतर।
अनास (अ़.पु.)-दोस्त, मित्र; प्रेम करने या सहानुभूति दिखलानेवाला।
अऩासर (अ़.पु.)-दे.-'अऩासिरÓ, वही शुद्ध है।
अऩासिर (अ़.पु.)-'उंसुरÓ का बहु., मूलतत्त्व, पंचभूत; आग, पानी, हवा,
मिट्टी और आकाश।
अनी$क (अ़.वि.)-आश्चर्यजनक, अद्भुत, अजीबो$गरीब; सुन्दर, मनोरम, मनभावन,
हसीन। (हिं.पु.)-सेना, $फौज; समूह, झुण्ड; युद्घ, लड़ाई, समर, संग्राम;
(हिं.वि.)-ख़्ाराब, बुरा, अनुत्तम।
अऩीद (अ़.वि.)-झगड़ालू, लड़ाकू; उद्दंड, शरारती, सरकश।
अनीन (अ़.पु.)-कराहना, आह भरना; चीखना, चिल्लाना।
अऩी$फ (अ़.वि.)-झगड़ालू, लड़ाकू; तीव्र, तेज़; खुरदरा, दुरुस्त।
अनीम (अ़.पु.)-प्राणी, उपजीवी, दे.-'अनामÓ।
अनीरान ($फा..पु.)-निकाह का $फरिश्ता; शम्सी महीने की तीसवीं तारीख़्ा।
अनीस (अ़.पु.)-नर्म लोहा। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
(हिं.पु.)-अनीश, अनाथ, जिसके ऊपर कोई न हो, जो बिना स्वामी का हो,
ईश्वर-रहित; अधिकार-रहित; स्वतंत्र।
अनीस (अ़.वि.)-पे्रमी, प्रेम रखनेवाला; मित्र, दोस्त, सखा। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अनीसून (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की सौंफ, जो दवा में काम आती है।
अनीसूदन (अ़.स्त्री.)-मृतक के लिए रोना।
अनुचित (सं.वि.)-जो उचित न हो, $गलत; जो नियम या विधान के विपरीत हो;
अयोग्य, अपात्र, अयुक्त; ख़्ाराब, बुरा।
अनेक (सं.वि.)-एक से अधिक, बहुत, ज़्यादा, अनगिनत।
अनोखा (हिं.वि.)-अपूर्व, विलक्षण, अनूठा, निराला; नया, नवीन; सुन्दर, मनोहर।
अनौश: ($फा.वि.)-खुशहाल, आनंदित; (पु.)-शहज़ादा, नौजवान; (लाक्ष.)-वह
जिसकी हाल ही में शादी हुई हो।
अ़न्कबूत (अ़.स्त्री.)-मकड़ी, लूता। 'मैं ख़्ाुशनसीब था जो खंडर से निकल
गया, ख़्ाूँख़ार अन्कबूत के जाले मिले बहुतÓ-माँझी
अ़न्कबूतिय: (अ़.स्त्री.)-आँख का चौथा पर्दा या पटल।
अ़न्$करीब (अ़.वि.)-आसपास, लगभग; $करीब-$करीब, प्राय:; बहुत थोड़े समय
में, निकट भविष्य में।
अन्$कलीस (अ़.स्त्री.)-बाम मछली, मारमाही, सर्प-मीन।
अन्$कस (अ़.वि.)-अत्यन्त निकृष्ट, बहुत ही ख़्ाराब।
अ़न्$का (अ़.पु.)-लम्बी गर्दनवाली स्त्री; वह वस्तु जो अप्राप्य हो,
दुर्लभ; एक ऐसे कल्पित पछी का नाम जिसका उल्लेख सि$र्फ साहित्य में मिलता
है।
अ़न्$काब (अ़.पु.)-'नक़्बÓ का बहु., छिद्र-समूह, बहुत से सूराख़।
अन्$कास (अ़़.पु.)-'निक़्सÓ का बहु., लिखने की स्याहियाँ। इसका 'सÓ उर्दू
के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अन्$कास (अ़.पु.)-'नुक़्सÓ का बहु., दोष, ऐब; कमियाँ; त्रुटियाँ;
अशुद्धियाँ। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अन्दर ($फा.अव्य.)-भीतर में।
अन्दरून ($फा.पु.)-दे.-'अंदरूनÓ।
अन्दरूनी ($फा.वि.)-दे.-'अंदरूनीÓ।
अ़न्दलीब (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ंदलीबÓ।
अन्दाख़्ता ($फा.वि.)-दे.-'अंदाख़्त:Ó, वही शुद्घ है।
अन्दाज़ ($फा.पु.)-ढंग, तौर, तर्ज़; अनुमान, अटकल, कूत, $कयास,
तख़्ामीना; हद, मि$कदार, परिणाम; नाप, पैमाना। दे.-'अंदाज़Ó।
अन्दाजऩ ($फा.वि.)-अंदाज़ या अनुमान से, अटकल से। दे.-'अंदाजऩÓ।
अन्दाज़ा ($फा.पु.)-दे.-'अंदाज़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अन्दाम (अ़.पु.)-शरीर, बदन, जिस्म। दे.-'अंदामÓ।
अन्देश ($फा.वि.)-(यौगिक शब्दों के अन्त में प्रयुक्त) देखनेवाला, ध्यान
रखनेवाला। दे.-'अंदेशÓ।
अन्देशा ($फा.पु.)-चिन्ता, खटका, $िफक्र, भय; आशंका, सन्देह, शक।
दे.-'अंदेश:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अन्देशानाक ($फा.वि.)-दे.-'अंदेश:नाकÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अन्दोख़्ता ($फा.पु.)-जमा-पूँजी, संचय किया हुआ धन। दे.-'अंदोख़्त:Ó, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अन्दोख़्तनी ($फा.वि.)-कमाने योग्य, संचय करने योग्य। दे.-'अंदोख़्तनीÓ।
अन्दोह ($फा.पु.)-दु:ख, शोक, रंज, $गम। दे.-'अंदोहÓ।
अन्दोहगीं ($फा.वि.)-दे.-'अंदोहगींÓ।
अन्दोहनाक ($फा.वि.)-शोकपूर्ण, विषादपूर्ण, रेज में डूबी हुई बात। दे.-अंदोहनाकÓ।
अन्ना (तु.स्त्री.)-माता, माँ; दाया, धाय। (सं.स्त्री.)-एक प्रकार की
छोटी अँगीठी जिसमें साना या चाँदी रखकर भाथी से तपाते या गलाते हैं।
अ़न्नाब (अ़.वि.)-अंगूर बेचनेवाला।
अ़न्$फ (अ़.पु.)-रुखाई, बेरुख़्ाी; खुरदरापन, रूखापन। दे.- 'इन्$फÓ और
'उन्$फÓ, तीनों शुद्ध हैं।
अन्$फत (अ़.पु.)-घृणा और अवहेलना करना।
अन्$फस (अ़.वि.)-अत्यधिक सुन्दर, बहुत ही उत्तम, बहुत ही न$फीस।
अन्$फा$ग ($फा.वि.)-शोख़; गँवार; आज्ञा न माननेवाला, ना$फर्मान, उद्दण्ड।
अन्$फार (अ़.पु.)-'न$फरÓ का बहु., बहुत से लोग।
अन्$फास (अ़.पु.)-'न$फसÓ का बहु., साँसें।
अन्$िफख़्ा: (अ़.पु.)-'नफ़्ख़्ाÓ का बहु., बहुत-सी फूँक, फूँकें।
अन्$िफह: (अ़.पु.)-वह जमा हुआ दूघ, जो नवजात पशु-शिशु को मारकर उसके मेदे
में से निकालते है; पनीर, माय:, मावा।
अन्$फुस (अ़.पु.)-'नफ़्सÓ का बहु., आत्माएँ, रूहें; लोग, व्यक्ति-समूह, जातें।
अन्मल: (अ़.स्त्री.)-दे.-'अन्मिल:Ó।
अन्मार (अ़.पु.)-'नम्र:Ó का बहु., अनेक चीते।
अन्मिल: (अ़.स्त्री.)-उँगली का सिरा। यह शब्द नौ प्रकार से आता है,
परन्तु बोला यही जाता है। 'अलि$फÓ और 'मीमÓ पर ज़बर, ज़ेर, पेश तीनों आते
हैं अर्थात् 'ऊÓ, 'उÓ ओर 'इÓ तीनों मात्राएँ आती हैं।
अन्मुल: (अ़.स्त्री.)-दे.-'अन्मिल:Ó।
अन्याब (अ़.पु.)-'नाबÓ का बहु., दन्त-समूह, अनेक दन्त, बहुत से दाँत।
अन्याय (सं.पु.)-न्याय-विरुद्घ आचरण, अनीति, अत्याचार, जुुल्म, अंधेर।
अन्वर (अ़.वि.)-उज्ज्वलतम, बहुत अधिक चमकीला, चमकदार, शोभायमान।
अन्वाअ़ (अ़.पु.)-'नौअ़Ó का बहु., भेद, प्रकार, $िकस्में।
अ़न्वान (अ़.पु.)-दे.-'उन्वानÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अन्वान (अ़.पु.)-'नूनÓ का बहु., मीन-समूह, मछलियाँ।
अन्वार (अ़.पु.)-'नूरÓ का बहु., प्रकाशपुंज, जगमगाहट, रोशनियाँ। 'इक नज़र
देखकर गश आने लगा है मुझको, रुख़्ो-अन्वार पर चिलमन को गिराए रखिएÓ-
माँझी
अन्सब (अ़.वि.)-बहुत ठीक, बहुत उचित, बहुत वाजिब।
अ़न्सर (अ़.पु.)-मूलतत्त्व, असल, बुनियाद, नींव। शुद्ध शब्द 'उन्सरÓ है
मगर यह भी प्रचलित है।
अ़न्सरी (अ़.वि.)-अन्सर से सम्बन्धित।
अन्सार (अ़.पु.)-मददगार, सहायक, साथी। दे.-'अंसारÓ।
अन्सारी (अ़.वि.)-अन्सार से सम्बन्धित। दे.-'अंसारीÓ।
अन्हार (अ़.पु.)-'नह्रÓ का बहु., नहरें, नदियाँ, चश्मे, झरने।
अपना (हिं.सर्व.)-निज का, निजी। (संज्ञा.पु.)-स्वजन, आत्मीय। मुहा.-'अपना
उल्लू सीधा करनाÓ-मतलब निकालना। 'अपना करनाÓ-अपना बनाना या अपने अनुकूल
करना। 'अपना काम करनाÓ-प्रयोजन निकालना। 'अपना किया पानाÓ-कर्म का फल
पाना। 'अपना गानाÓ-डींग मारना, शेखी बघारना। 'अपना टका सीधा
करनाÓ-येनकेनप्रकारेण रुपया कमाना। 'अपनी-अपनी पडऩाÓ-अपनी-अपनी चिन्ता
में व्यग्र होना। 'अपना-सा मुँह लेकर रह जानाÓ-कोई काम न बन पडऩे पर
लज्जित होना। 'अपनी खिचड़ी अलग पकानाÓ-अपनी बात सबसे अलग रखना।
अपनाना (हिं.क्रि.)-अपना बनाना, अपने अनुसार करना; ग्रहण करना; अपनी शरण
में लेना, अपने पक्ष में लाना, अपने अधिकार में करना।
अपनापन (हिं.पु.)-आत्मीयता; आत्माभिमान।
अपमान (सं.पु.)-अनादर, तिरस्कार, बेइज़्ज़ती; अवहेलना, अवज्ञा।
अपील (इंग.स्त्री.)-विचारार्थ प्रार्थना, पुनर्विचारार्थ प्रार्थना, छोटी
अ़दालत के निर्णय के विरुद्घ बड़ी अ़दालत में फिर विचारार्थ अभियोग
उपस्थित करना।
अ़$फ [फ़्$फ] (अ़.पु.)-सतीत्व, पातिव्रत्य, इस्मत, अस्मत।
अ$फअ़ाल (अ़.पु.)-विभिन्न या तरह-तरह के काम, ऐमाल, कर्म।
दे.-'अफ़्अ़ालÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फई (अ़.पु.)-दे.-'अ$फ्ईÓ। काला नाग, विषधर सर्प।
अ$फकार (अ़.पु.)-'$िफक्रÓ का बहु., चिन्ताएँ, तरद्दुद। दे.-'अफ़्कारÓ,
वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फगन ($फा.वि.)-गिरानेवाला, दे.-'अफ्ग़नÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फगाँ ($फा.पु.)-दे.-'अफ्ग़ाँÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फगाऩ ($फा.पु.)-अ$फ$गानिस्तान का निवासी, दे.-'अफ्ग़ानÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फगार (अ़.वि.)-ज़ख़्मी, घायल, क्षत, दे.-'अफ्ग़ारÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फज़ल (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, सबसे बढ़कर, सर्वोपरि; दे.-'अफ्ज़़लÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अ$फज़ा ($फा.प्रत्य.)-बढ़ानेवाला, वृद्घि करनेवाला (यौगिक शब्दों के अन्त
में प्रयुक्त), दे.-'अफ्ज़ाÓ, वही शुद्घ है।
अ$फज़ाइश ($फा.स्त्री.)-वृद्घि, तरक़्क़ी, बढ़ोतरी, अधिकता।
दे.-'अफ्ज़़ाइशÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ$फज़ँू ($फा.वि.)-बढ़कर, बढ़ा हुआ, अत्यधिक, दे.-'अफ़्ज़ँूÓ, वही शुद्घ
उच्चारण है। 'रोज़ अ$फज़ूÓ-नित्य बढऩे वाला।
अ$फज़ूनी ($फा.स्त्री.)-बढऩे की क्रिया या भाव, प्रचुरता, अधिकता,
वृद्घि, दे.-'अफ़्ज़ूनीÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ़$फन (अ़.पु.)-गंदा होना, मैला-कुचैला होना, मलिन होना।
अ$फयून (अ़.स्त्री.)-अ$फीम नामक प्रसिद्ध मादक दवा। दे.-'अफ्य़ूनÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अ$फर (अ़.वि.)-बड़ा, बुज़ुर्ग, श्रेष्ठ, प्रतिष्ठित।
अ$फ़रना (अ़.पु.)-फाड़ खानेवाला शेर, व्याघ्र।
अ$फराज़ ($फा.प्रत्य.)-शोभा आदि बढ़ानेवाला; ऊँचा करने वाला, उठानेवाला।
दे.-'अफ्ऱाज़Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फराज़ी ($फा.स्त्री.)-बढ़ाने की क्रिया या भाव। शुद्घ उच्चारण 'अफ्ऱाज़ीÓ है।
अ$फरा-त$फरी (उ.स्त्री.)-हलचल, घबराहट, खलबली।
अ$फराद (अ़.पु.)-'$फर्दÓ का बहु., अनेक लोग; सूची, पत्र, पत्रक;
दे.-'अफ्ऱादÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फरोख़्ता ($फा.वि.)-रौशन, जलता हुआ, प्रज्वलित; उग्र रूप में आया हुआ,
भड़का हुआ; क्रुद्ध, $गुस्से में; दे.-अफ्ऱोख़्त:Ó, वही शुद्घ उच्चारण
है।
अ$फलाक (अ़.पु.)-'$फलकÓ का बहु., आस्मान, अनेक आकाश, दे.-'अफ़्लाकÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अ$फलातून (अ़.पु.)-दे.-'अफ़्लातूनÓ, वही शुद्घ है।
अ$फवाज (अ़.स्त्री.)-'$फौजÓ का बहु., सेना, लश्कर, दे.-'अफ़्वाजÓ, वही
शुद्घ उच्चारण है।
अ$फवाह (अ़.स्त्री.)-उड़ती हुई ख़्ाबर, गप, बाज़ारू ख़्ाबर।
दे.-'अफ़्वाहÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$फशाँ ($फा.स्त्री.)-गोटे की कतरनों का वह रुपहला और सुनहला चूर्ण, जिसे
सुन्दरता के लिए स्त्रियाँ अपने बालों और गालों पर लगाती हैं; जलकण, पानी
की बूँदें; दे.-'अफ़्शाँÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$फशानी ($फा.स्त्री.)-छिड़कना, छिड़कने की क्रिया या भाव;
दे.-'अफ़्सानीÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$फसर ($फा.पु.)-ताज, मुकुट; हाकिम, शासक; सरदार, नेता। दे.-'अफ़्सरÓ,
शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसान ($फा.स्त्री.)-सान, धार रखने का यंत्र। दे.-'अफ़्सानÓ, शुद्घ
उच्चारण वही है।
अ$फसाना ($फा.पु.)-मनगढ़ंत कहानी या हाल; दास्तान, कहानी, $िकस्सा,
आख्यायिका; लम्बा वृतांत; नाविल, उपन्यास। दे.-'अफ़्सान:Ó, शुद्घ उच्चारण
वही है।
अ$फसानाख्वाँ ($फा.वि.)-दे.-'अफ़्सान:ख़्वाँ
अ$फसानागो ($फा.वि.)-दे.-'अ$फसान:गोÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसुरदा ($फा.वि.)-ठण्ड या सर्दी से ठिठुरा हुआ; मुरझाया हुआ, कुम्हलाया
हुआ; खिन्न, उदास; बुझा हुआ, ठण्डा। दे.-'अफ़्सुर्द:Ó, शुद्घ उच्चारण वही
है।
अ$फसुर्दगी ($फा.स्त्री.)-उदासीनता, खिन्नता, मलिनता, दे.-'अफ़्सुर्दगीÓ,
शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसुर्दा ($फा.वि.)-ठण्ड या सर्दी से ठिठुरा हुआ; मुरझाया हुआ,
कुम्हलाया हुआ; खिन्न, उदास; बुझा हुआ, ठण्डा। दे.-'अफ़्सुर्द:Ó, शुद्घ
उच्चारण वही है।
अ$फसुर्दा ख़्ाातिर ($फा.वि.)-उदास, खिन्नचित्त, बुझे दिल वाला, निराश।
दे.-'अफ़्सुर्द:ख़्ाातिरÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसुर्दा दिल ($फा.वि.)-उदास, खिन्नचित्त, बुझे दिल वाला, निराश।
दे.-'अफ़्सुर्द:दिलÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसूँ ($फा.पु.)-टोना, जादू, इन्द्रजाल, मायाकर्म, अभिचार, मंत्र;
तंत्र। दे.-'अफ़्सूँÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसूँसोज़ ($फा.वि.)-जादूगर, मायावी, अभिचारक, ऐन्द्रजालिक, तांत्रिक।
दे.-'अफ़्सूँसोज़Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ$फसोस ($फा.पु.)-शोक, रंज, दु:ख; पश्चात्ताप, पछतावा, खेद।
दे.-'अफ़्सोसÓ, वही शुद्घ उच्चारण है। 'अ$फसोस सद अ$फसोसÓ-अत्यधिक
अ$फसोस, बहुत दु:ख।
अ़$फा (अ.पु.)-मरना, हलाक होना; नापैद होना; आँख के पपोटों की कालिमा।
अ$फाई (अ़.पु.)-'अ$फ्ईÓ का बहु., काले सर्प, काले साँप।
अ$फाईल (अ़.पु.)-काव्य-शास्त्र के नियम, जिनसे छन्द बनाए जाते हैं।
अ$फा$का ($फा.पु.)-रोग आदि में कमी होना। शुद्ध शब्द 'इ$फा$क:Ó है परन्तु
यह भी प्रचलित है।
अ$फागिऩ: (अ़.पु.)-'अफ्ग़़ानÓ का बहु., अफ्ग़़ानी लोग, काबुल के निवासी, काबुली।
अ$फाजि़ल (अ.पु.)-'अफ़्ज़लÓ का बहुवचन, विद्वान लोग, पंडित लोग; बड़े
लोग, प्रतिष्ठितजन।
अ$फ़ा$फ (अ़.पु.)-संयम, पार्साई; सतीत्व, इस्मत, अस्मत, इज्ज़़त।
अ़$फारीत (अ़.पु.)-'इफ्ऱीतÓ का बहु., भूत-समूह, पिशाच-समूह; देव लोग।
अ़$िफन (अ़.वि.)-बदबूदार, दुर्गंधयुक्त, बोसीदा, सड़ा हुआ।
अ़$िफस (अ़.वि.)-कसीली वस्तु, बकठी चीज़; बकठा, कसीला।
अ़$फी$फ: (अ़.स्त्री.)-सुशील स्त्री, सती, साध्वी, पतिव्रता।
अ$फ़ी$फ (अ़.वि.)-दुष्कर्मों से बचनेवाला, सदाचारी, दूसरी स्त्री पर आँख न
उठानेवाला, परस्त्री-विमुख, पत्नीव्रत, नेक-चलन, सच्चरित्र।
अ़$फी$फा (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़$फी$फ:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ$फीम (यू.स्त्री.)-पोस्त के डोढ़े से निकली हुई गोंद जो दवा में काम आती
है। कुछ लोग इसे मादक-पदार्थ के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं।
अ$फील (अ़.पु.)-जवान ऊँट।
अ$फू (अ़.पु.)-क्षमा करना, मा$फ करना; क्षमा, मा$फी, दरगुजऱ, बख़्िशश। दे.-'अफ़्वÓ।
अ$फूनत (अ़.पु.)-सड़ायँध, बदबू, दुर्गंध। शुद्ध शब्द 'उफ्ऩतÓ है मगर
उर्दू में इसका भी प्रचलन है।
अफ़़्अ़$फ (अ़.अव्य.)-कुत्ते के भूँकने का शब्द।
अफ़्अ़ाल (अ़.पु.)-'$फेलÓ का बहु., कृतियाँ, करतूतें, कार्य-समूह।
अफ़्इद: (अ़.पु.)-'$फुआदÓ का बहु., बहुत से दिल, हृदय-समूह।
अफ़्ई (अ़.पु.)-विषधर, काला साँप, नाग।
अफ़्कर (अ़.वि.)-बहुत $गरीब, बहुत ही कंगाल, निपट $फ$कीर, एकदम भिखारी।
अफ़्कार (अ़.पु.)-'$िफक्रÓ का बहु., सोच-समूह, चिन्ताएँ, $िफक्रें;
रचनाएँ, कृतियाँ, तसानी$फ।
अफ्ग़ंद: ($फा.वि.)-गिराया हुआ, फेंका हुआ।
अफ्ग़ंद: सुम ($फा.वि.)-चलने-फिरने में विवश; लाचार, दु:खित।
अफ्ग़ंदनी ($फा.वि.)-गिराए जाने योग्य, फेंकने योग्य, डालने योग्य।
अफ्ग़न ($फा.वि.)-गिरानेवाला, फेंकनेवाला।
अफ्ग़ाँ ($फा.पु.)-'अफ़्$गानÓ का लघुरूप, दे.-'अफ़्$गानÓ।
अफ्ग़ान: ($फा.पु.)-भ्रूण, अधूरा बच्चा, वह बच्चा जो सात महीने से पूर्व
उत्पन्न हो जाए।
अफ़्$गान ($फा.पु.)-अ$फ$गानिस्तान का निवासी, अफ़्$गानी, काबुली।
अफ़्$गानिस्तान ($फा.पु.)-काबुलियों का देश, काबुल का मुल्क।
अफ़्$गानी (अ़.वि.)-अफ़्$गान, काबुली।
अफ्ग़ार (अ़.वि.)-ज़ख़्मी, घायल, क्षत, (प्रत्य.)-चोट खाया हुआ, ज़ख़्म
खाया हुआ, जैसे-'जिगर अफ्ग़ारÓ=ज़ख़्मी दिल वाला।
अफ़्ज़ल (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, सबसे बढ़कर, सर्वोपरि; बहुत ही अच्छा,
उत्तमतर, बहुत ही बढिय़ा; बहुत अधिक, बहुत ज्य़ादा।
अफ़्ज़लीयत (अ़.स्त्री.)-बड़प्पन, बड़ाई, श्रेष्ठता।
अफ़्ज़ह (अ़.वि.)-कुख्यात, बहुत ही बदनाम, बहुत ही निन्दित।
अफ़्ज़ा ($फा.प्रत्य.)-(यौगिक शब्दों के अन्त में प्रयुक्त) बढ़ानेवाला,
प्रसन्न करनेवाला, जैसे-'हौसल:अफ्ज़़ाÓ= उत्साह या हिम्मत बढ़ानेवाला।
अफ़्ज़ाइश ($फा.स्त्री.)-अधिकता, ज़्यादती, वृद्धि, बढ़ती।
अफ़्ज़ाइशे नस्ल ($फा.स्त्री.)-वंश-वृद्धि, संतान-वृद्धि, नस्ल का बढऩा,
पीढ़ी का बढऩा।
अफ़्ज़ाइशे हुस्न (अ़.फ़ा.स्त्री.)-सुन्दरता का बढऩा, सौन्दर्य-वृद्धि।
अफ़्िज़य: (अ़.स्त्री.)-'$फज़ाÓ का बहु., अनेक खुले स्थान।
अफ़्ज़ूँ ($फा.वि.)-बढ़कर, बढ़ा हुआ, अत्यधिक, बहुत ज़्यादा, प्रचुर
मात्रा में; कुल जोड़, कुल योग।
अफ़्ज़ूनी ($फा.स्त्री.)-प्रचुरता, अधिकता, बहुतायत, ज़्यादती।
अफ़्दर (अ़.पु.)-भाई का बेटा, भ्रातृ-पुत्र, भतीजा; बहन का बेटा,
भगिनी-पुत्र, भानजा।
अफ्य़ाल (अ़.पु.)-'$फीलÓ का बहु., अनेक गज, बहुत से हाथी, गज-समूह।
अफ्य़ून (अ़.स्त्री.)-अ$फीम नामक प्रसिद्ध मादक दवा।
अफ्ऱाख़्त: ($फा.वि.)-ऊपर किया हुआ, ऊँचा किया हुआ, उठाया हुआ।
अफ्ऱाख़्तनी ($फा.वि.)-ऊँचा करने योग्य, उठाने योग्य।
अफ्ऱाज़ ($फा.प्रत्य.)-ऊँचा करनेवाला, उठानेवाला। जैसे- 'सरअफ्ऱाजÓ=सिर
ऊँचा करनेवाला।
अफ्ऱाजि़ंद: ($फा.वि.)-ऊँचा करनेवाला, उठानेवाला, ऊपर करनेवाला।
अफ्ऱाज़ी ($फा.स्त्री.)-ऊपर उठाने या बढ़ाने की क्रिया।
अफ्ऱाज़ीद: ($फा.वि.)-ऊपर किया हुआ, उठाया हुआ, बढ़ाया हुआ, बुलन्द किया हुआ।
अफ्ऱाद (अ़.पु.)-'$फर्दÓ का बहु., अनेक लोग, बहुत से आदमी, अनेक व्यक्ति।
अफ्ऱाश्त: ($फा.वि.)-ऊँचा किया हुआ, बुलन्द किया हुआ, उठाया या बढ़ाया हुआ।
अफ्ऱाश्तनी ($फा.वि.)-उठाने या बढ़ाने योग्य, ऊँचा करने योग्य।
अफ्ऱास (अ़.पु.)-'$फरसÓ का बहु., अनेक अश्व, घोड़े।
अफ्ऱासियाब ($फा.पु.)-तूरान का एक प्राचीन शासक।
अफ्ऱासे आब ($फा.पु.)-पानी के बुलबुले, वे बुलबुले जो विशेषरूप से पानी
बरसते समय उठते हैं।
अफ्ऱोख़्त: ($फा.वि.)-उग्र रूप में आया हुआ, भड़का हुआ; क्रुद्ध,
$गुस्से में; जलाया हुआ, रौशन किया हुआ; उत्तेजित किया हुआ। 'अफ्ऱोख़्त:
करनाÓ=भड़काना, $गुस्सा दिलाना।
अफ्ऱोख्ग़ी ($फा.स्त्री.)-उत्तेजना, उकसाहट; क्रोध, रोष; रौशनी।
अफ्ऱोख़्तनी ($फा.वि.)-$गुस्सा दिलाने योग्य, क्रुद्ध करने योग्य,
उत्तेजित करने योग्य; जलाने योग्य; रौशन करने योग्य।
अफ्ऱोज़ ($फा.प्रत्य.)-बढ़ानेवाला, वृद्धि करनेवाला; रौशन करनेवाला,
जलानेवाला, उज्ज्वलकारी। जैसे-'रौन$क-अफ्ऱोज़Ó=शोभा बढ़ानेवाला।
अफ़्लाक (अ़.पु.)-'$फलकÓ का बहु., सारे आस्मान, आकाश-समूह।
अफ़्ला$क (अ़.पु.)-'$फल$कÓ का बहु., भोर की रोशनी, प्रात:काल के उजाले।
अफ़्लातून (अ़.पु.)-सुप्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो का अऱबी नाम; बहुत
अधिक अभिमान करनेवाला व्यक्ति, स्वयं को बहुत बुद्घिमान् समझनेवाला।
अफ़़्व (अ़.पु.)-क्षमा, मुअ़ा$फी।
अफ़्वाज (अ़.स्त्री.)-'$फौजÓ का बहु., अनेक सेनाएँ, बहुत-सी $फौजें।
अफ़्वाह (अ़.स्त्री.)-उड़ती हुई बात, किंवदंती, जनश्रुति, लोकोक्ति।
विशेष-यह बहुवचन है परन्तु एकवचन में प्रयुक्त होता है।
अफ़्वाहन् (अ़.वि.)-उड़ते-उड़ते, अफ़्वाह के रूप में।
अफ़़्श (अ़.पु.)-मुसा$िफर का सामान, राहगीर का सामान, पथिक का सामान।
अफ़्शाँ ($फा.स्त्री.)-जलकण, पानी की बूँदें; गोटे की कतरनों का वह
रुपहला और सुनहला चूर्ण, जिसे स्त्रियाँ अपने बालों और गालों पर लगाती
हैं। (प्रत्य.)-छिड़कने- वाला, झाडऩेवाला, जैसे-'दस्त अफ़्शाँÓ-हाथ
झाडऩेवाला।
अफ़्शा (अ़.पु.)-प्रकट करना, ज़ाहिर करना, प्रकाश में लाना।
दे.-'इफ़्शाÓ, शुद्ध वही है।
अफ़्शानी ($फा.स्त्री.)-छिड़कने की क्रिया या भाव। जैसे- 'अफ़्शानी
का$गज़Ó=वह का$गज़ जिस पर सोने का वर$क छिड़का होता है।
अफ़्शार (तु.पु.)-तुर्कों में '$िकजि़लवाशÓ जाति का एक गोत्र।
अफ़्शुर: ($फा.पु.)-दे.-'अफ़्शुर्द:।
अफ़्शुर्द: ($फा.वि.)-निचोड़ा हुआ, (पु.)-निचोड़ा हुआ रस या अऱ$क आदि।
अफ़्शुर्दए अंगूर ($फा.पु.)-अंगूर का निचोड़ा हुआ अऱ$क, अंगूर की मदिरा।
अफ़़्स (अ़.पु.)-एक प्रकार की वनौषधि माज़ू, माज़ूफल।
अफ़्सर (अ़.पु.)-अधिकारी, हाकिम, पदाधिकारी, ओहदेदार; ताज, मुकुट; नेता,
शासक, सरदार, अध्यक्ष।
अफ़्सरी (अ़.स्त्री.)-सरदारी, ओहदेदारी, पदाधिकार; सत्ता, हुकूमत,
अध्यक्षता, नेतागीरी।
अफ़्सह (अ़.वि.)-बहुत अच्छाा वक्ता, सुवक्ता, ऐसा वक्ता जो बहुत विद्वता
से बातचीत करता हो और बहुत अच्छे शब्द प्रयोग करता हो।
अफ़्साँ ($फा.पु.)-सान, धार तेज़ करने का पत्थर, शाण।
अफ़्सा ($फा.पु.)-जादूगर, अभिचारक, मायावी।
अफ़्सान ($फा.पु.)-सान, धार तेज़ करने का पत्थर, शाण।
अफ़्सान: ($फा.पु.)-मनगढ़ंत कहानी या हाल; दास्तान, कहानी, $िकस्सा,
आख्यायिका; लम्बा वृतांत; नाविल, उपन्यास।
अफ़्सान:ख़्वाँ ($फा.वि.)-$िकस्से या कहानियाँ कहनेवाला।
अफ़्सान:गो ($फा.वि.)-$िकस्सा सुनानेवाला, कहानियाँ कहनेवाला।
अफ़्सान:नवीस ($फा.वि.)-उपन्यास लेखक, उपन्यासकार, कहानियाँ लिखनेवाला, कहानीकार।
अफ़्सान:निगार ($फा.वि.)-उपन्यास लेखक, उपन्यासकार, कहानियाँ लिखनेवाला, कहानीकार।
अफ़्सार ($फा.पु.)-अश्व-लगाम, घोड़े की बागड़ोर।
अफ़्सुर्द: ($फा.वि.)-ठण्ड या सर्दी से ठिठुरा हुआ; मुरझाया हुआ,
कुम्हलाया हुआ; खिन्न, उदास; बुझा हुआ, ठण्डा।
अफ़्सुर्द:ख़्ाातिर ($फा.वि.)-उदास, खिन्नचित्त, बुझे दिल वाला, निराश।
अफ़्सुर्द:दिल ($फा.वि.)-दु:खी मन, उदास, खिन्नचित्त, बुझे दिलवाला, निराश।
अफ़्सुर्द:दिली ($फा.स्त्री.)-खिन्नता, उदासी, दिल का बुझा होना, रंजीदा।
अफ़्सुर्दगी ($फा.स्त्री.)-उदासीनता, खिन्नता, मलिनता; शोभाहीनता,
बेरौन$की; ठिठुरापन।
अफ़्सुर्दनी ($फा.वि.)-मलिन होने योग्य, बेरौन$क होने योग्य; ठिठुरने योग्य।
अफ़्सँू ($फा.पु.)-टोना, जादू, इन्द्रजाल, मायाकर्म, अभिचार, मंत्र; तंत्र।
अफ़्सँूगर ($फा.वि.)-जादूगर, मायावी, अभिचारक, ऐन्द्रजालिक, तांत्रिक।
अफ़्सूँतराज़ ($फा.वि.)-दे.-'अफ़्सूँगरÓ।
अफ़्सूँसोज़ ($फा.वि.)-दे.-'अफ़्सूँगरÓ।
अफ़्सून ($फा.पु.)-दे.-'अफ़्सूँÓ। 'अफ्सून-ए-इंतिज़ारÓ-प्रतीक्षा का
जादू। 'अफ़्सून-ए-$गज़लख़्वानीÓ-गीत-
अफ़्सूने सामिरी (अ़.$फा.पु.)-'सामिरीÓ का जादू ('सामिराÓ नगर का
रहनेवाला एक जादूगर, जिसने हज्ऱत मूसा को अवतारी मानकर गाय की पूजा
प्रचलित की), बहुत बड़ा जादू।
अफ़्सोस ($फा.पु.)-पश्चात्ताप, खेद; रंज, शोक; पशेमानी।
अफ़्सोसनाक ($फा.वि.)-शोकजनक, अशुभ, मनहूस; दयनीय, कृपा योग्य।
अब (अ़.पु.)-पिता, बाप ('जदÓ के साथ मिलाकर व्यवहृत होता है)।
(हिं.क्रि.वि.)-इस समय, अभी, तत्काल; अबकी, इस बार। पद.-'अब काÓ-इस समय
का, आधुनिक। 'अब कीÓ-इस बार। 'अब जाकरÓ-इतनी देर पीछे। मुहा.-'अब तब
करनाÓ-हीला-हवाला करना। 'अब-तब होनाÓ-मृत्यु-समय निकट आना; टल जाना।
अ़ब [ब्ब] (अ़.पु.)-बार-बार पानी पीना; मुँह भर-भरकर खाना।
अबख़्िारा (अ़.पु.)-'बुख़ारÓ का बहु., अनेक प्रकार के बुख़ार।
मुहा.-'अबख़्िारा दिमा$ग को चढऩाÓ-दिमा$ग में गरमी का असर होना, बावला या
पागल हो जाना।
अबजद (अ़.स्त्री.)-दे.-'अब्जदÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबतर (अ़.वि.)-जिसकी दशा बिगड़ी हुई हो, दुर्दशाग्रस्त, परेशान,
तितर-बितर, अस्त-व्यस्त; ख़्ाराब, रद्दी; आवारा, बदचलन, बदमाश।
दे.-'अब्तरÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबतरी (अ़.स्त्री.)-आवारगी, बदचलनी, बदमाशी; कुप्रबंध, अव्यवस्था;
ख़्ाराबी, बरबादी, दुर्दशा। दे.-'अब्तरीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़बद: (अ़.पु.)-'अ़ाबिदÓ का बहु., तपस्वी लोग।
अबद (अ़.पु.)-अनन्तकाल, हमेशा, अनन्तता; वह समय जिसका अन्त न ज्ञात हो;
नित्यता, हमेशगी; $कयामत का दिन, प्रलय का दिन।
अबदन (अ़.वि.)-सदा, हमेशा, नित्य; कदापि, हरगिज़।
अबदी (अ़.वि.)-सदा बना रहनेवाला, अमर, स्थायी, दायमी, अविनाशी,
सार्वकालिक; नित्य की, हमेशा की।
अबदीयत (अ़.स्त्री.)-सदा बना रहना, नित्यता, हमेशगी; अनश्वरता, कभी नष्ट
न होनेवाली क्रिया, लाज़वालीयत।
अबदुल आबाद (अ़.पु.)-अनश्वरता, नित्यता, हमेशगी।
अबयात (अ़.स्त्री.)-'बैतÓ का बहु., अश्अ़ार, बहुत से शेÓर, दे.-'अब्यातÓ,
वही उच्चारण शुद्घ है।
अबर ($फा.पु.)-बादल, मेघ, दे.-'अब्रÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
(सं.वि.)-अब्बर, कमज़ोर, निर्बल।
अबर$क ($फा.पु.)-अभ्रक, एक प्रसिद्ध और बहुत उपयोगी पारदर्शक धातु,
दे.-'अब्र$कÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबरस (अ़.वि.)-सिघ्म, जिसे स$फेद कोढ़ का रोग हो, दे.-'अब्रसÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अबरा (अ़.पु.)-दोहरे कपड़े में ऊपर वाला कपड़ा, अस्तर का उलटा,
दे.-'अब्र:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबराज़ (अ़.पु.)-प्रकट करना, भेद खोलना, दे.-'अब्राज़Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबरार (अ़.पु.)-'बारÓ का बहु., ऋषिजन, मुनि लोग, दे.-'अब्रारÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अबरी ($फा.स्त्री.)-एक चित्रित और रंगीन का$गज़, जो जिल्दों पर चढ़ाया
जाता है; अब्र से सम्बन्धित, मेघों या बादलों से सम्बन्ध रखनेवाला।
दे.-'अब्रीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबरेशम ($फा.पु.)-दे.-'अब्रेशमÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबलक़ (अ़.वि.)-दो रंग का, चितकबरा, काला और स$फेद; काले और स$फेद रंग का
घोड़ा, दे.-'अब्ल$कÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबलह (अ़.वि.)-भोला-भाला; मूर्ख, बेवकू$फ। दे.-'अब्लहÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबलह $फरेब (अ़.वि.)-दे.-'अब्लह $िफरेबÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबलह $फरेबी (अ़.स्त्री.)-दे.-'अब्लह $िफरेबीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अबवाब (अ़.पु.)-दे.-'अब्वाबÓ, वही उच्चारण शुद्घ है। परिच्छेद, अध्याय;
लगान; शुल्क।
अबवी (अ़.वि.)-पिता-का, बाप का; पिता-संबंधी।
अ़बस (अ़.वि.)-जिसका कोई $फायदा न हो, निरर्थक, बेकार, व्यर्थ,
बे$फायदा$, $फुजूल। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
अ़बस (अ़.पु.)-रूखापन, बेरुख़ी, बदमिज़ाजी; सूखा पेशाब-पाखाना। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सीनÓ से बना है।
अबसार (अ़.पु.)-समझदारी, दानाई; ज्ञान; आँखें, दृष्टि। दे.-'अब्सारÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अबहार (अ़.पु.)-'बह्रÓ का बहु., अनेक सागर, बहुत से समुद्र।
दे.-'अब्हारÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़बा (अ़.पु.)-एक प्रकार की अऱबी पोशाक, एक प्रकार का बड़ा चोग़ा, वस्त्र, लिबास।
अबादान (अ़.वि.)-जोता-बोया हुआ; बसा हुआ, आबाद।
अबाबील (अ़.स्त्री.)-काले रंग की एक बहुत प्रसिद्ध छोटी चिडिय़ा, जो उजड़े
मकानों में रहती है, भांडकी।
अ़बि$क (अ़.वि.)-ख़्ाुशबूदार, सुगंधित।
अबियात (अ़.स्त्री.)-'बैतÓ का बहु., बहुत-से घर, अनेक मकान; उर्दू शाइरी
में शेÓर का बहुवचन, अश्अ़ार।
अ़बीद (अ़.पु.)-'अ़ब्दÓ का बहु., भगवान्-दास, ईश्वर के भक्त, $िफदाइ।
अ़बीर (अ़.पु.)-एक प्रकार की रंगीन और सुगंधित बुकनी या अभ्रक का चूर्ण,
जिसे लोग होली के अवसर पर या अन्य उत्सवों पर एक-दूसरे को लगाकर ख़्ाुशी
एवं प्यार का प्रदर्शन करते हैं, गुलाल।
अबू (अ़.पु.)-पिता, बाप, जनक।
अ़बूर (अ़.पु.)-नयी बकरी या भेड़; वह मनुष्य जिसका ख़्ात्ना न हुआ हो।
अ़बूस (अ़.वि.)-रूखे स्वभाव वाला, बदमिज़ाज और खुर्रा व्यक्ति।
अब्अ़द (अ़.वि.)-बहुत दूर, बहुत अन्तराल पर।
अब्अ़ाद (अ़़.पु.)-'बोÓदÓ का बहु., $फासिले, दूरियाँ।
अब्अ़ादे सलास: (अ़.पु.)-तीन $फासिले, लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई अथवा
ऊँचाई या गहराई।
अब्इर: (अ़.पु.)-'बईरÓ का बहु., बहुत से ऊँट, उष्ट्र समूह।
अ़ब्$कर (अ़.पु.)-शोरा, एक प्रकार का क्षार, जिससे बारूद बनती है।
अ़ब्कऱ (अ़.पु.)-भूत-प्रेत, जिन्नों आदि का एक कल्पित नगर।
अ़ब्कऱी (अ़.वि.)-बहुत ही बढिय़ा और अद्भत ऐसी वस्तु जिसे मनुष्य न बना
सके अपितु जिसे भूत-प्रेतों अथवा जिन्नों ने बनाया हो; बहुत सुन्दर,
उम्दा और न$फीस कपड़ा; प्रत्येक उत्तम और अद्भत वस्तु।
अब्का (अ़.वि.)-बहुत अधिक रोनेवाला।
अब्कार (अ़.पु.)-'बिक्रÓ का बहु., कुआरियाँ; 'बुक्र:Ó का बहु., सवेरे,
प्रात:काल के समय।
अब्ख़्ार: (अ़.पु.)-'बुख़्ाारÓ का बहु., धुएँ, भापें; पानी की भाप।
अब्ख़्ार (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जिसके मुँह से दुर्गंध आती हो, गंदादहन।
अब्ख़्ाल (अ़.वि.)-मक्खीचूस, बहुत अधिक कंजूस, धन-पिशाच, कृपणतम।
अब्जद (अ़.स्त्री.)-वर्णमाला; अऱबी वर्णमाला का एक विशिष्ट क्रम; अऱबी
में वर्णमाला के अक्षरों द्वारा अंक सूचित करने की प्रणाली; अऱबी अक्षरों
का वह क्रम जिसमें हर अक्षर का मूल्य एक से हज़ार तक क्रमश: दिया गया है।
इन अक्षरों की सहायता से लोगों के मरने और पैदा होने का साल निकाला जाता
है तथा कुछ लोग अपने बच्चों के नाम भी इसी हिसाब से रखते हैं, जिससे उनके
जन्म का वर्ष ज्ञात हो जाता है।
अब्जदख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-वर्णमाला सीखनेवाला, अलि$फ-बे पढऩेवाला, नौसिखिया।
अब्ज़ार (अ़.पु.)-'बज्ऱÓ का बहु., अनाजों के बीज। इसका 'ज़Ó उर्दू के
ज़ाल से बना है।
अब्ज़ार (अ़.पु.)-'बज्ऱÓ का बहु., तरकारियों के बीज। इसका 'ज़Ó उर्दू के
'ज़ेÓ से बना है।
अब्तर (अ़.वि.)-बदहाल, दुर्दशाग्रस्त; तितर-बितर, अस्त-व्यस्त; ख़्ाराब,
रद्दी; आवारा, बदचन, बदमाश।
अब्तरी (अ़.स्त्री.)-गड़बड़, अस्त-व्यस्तता; कुव्यवस्था, अव्यवस्था,
कुप्रबन्ध, बदइंतिजामी; ख़्ाराबी, बरबादी; राज्य परिवर्तन,
सत्ता-परिवर्तन, क्रान्ति, इन्$िकलाब।
अ़ब्द (अ़.पु.)-$गुलाम, दास, सेवक; भक्त, व$फादार, $िफदाई।
(सं.पु.)-वर्ष, साल; नागरमोथा; मेघ, बादल।
अब्दान (अ़.पु.)-'बदनÓ का बहु., अनेक शरीर, बहुत-से जिस्म।
अब्दाल (अ़.पु.)-'बदीलÓका बहु., धार्मिक व्यक्ति; एक प्रकार के मुसलमान
वली या महात्मा; मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी; साधु, $फ$कीर, औलिया
लोगों का समूह।
अ़ब्दीयत (अ़.स्त्री.)-$गुलामी, दासता, सेवाभाव, बंदगी; ईश्वर का दास होना, भक्ति।
अ़ब्दुद्दराहिम (अ़.पु.)-धन-लोलुप, रुपए का दास, जिसका धर्म-ईमान केवल रुपया हो।
अ़ब्दुल जिन्न: (अ़.पु.)-$काबूस रोग, एक ऐसा भयानक रोग जिसमें रोगी को
सोते हुए ऐसा जान पड़ता है कि किसी भूत ने उसका गला दबा दिया हो।
अ़ब्दुलबत्न (अ़.पु.)-पेटू, जिसे हर समय खाने की पड़ी रहती हो, पेट का
बन्दा, उदर-सर्वस्व।
अब्ना (अ़.पु.)-'इब्नÓ का बहु., बेटे, पुत्रगण।
अब्नाए ज़मान: (अ़.पु.)-दुनियावाले, संसारवाले अर्थात् जीवित इंसान;
अवसरवादी लोग, दुनियासाज़ लोग, मतलब परस्त लोग।
अब्नाए जिंस (अ़.पु.)-समवयस्क, हमउम्र, एक आयुवाले; एक जातिवाले लोग।
अब्नाए वतन (अ़.पु.)-राष्ट्रजन, देशवाले, वतनवाले।
अब्बाÓ ($फा.पु.)-बाबा, पिता अथवा बाप के लिए संबोधन।
अब्बाजान ($फा.पु.)-दे.-'अब्बाÓ।
अ़ब्बादान (अ़.पु.)-$फारस की खाड़ी का एक द्वीप।
अ़ब्बास (अ़.पु.)-रूखे स्वभाववाला; शेर, सिंह, व्याघ्र; हज्ऱत मुहम्मद
साहब के चाचा का नाम, अ़ब्बासी ख़्ाली$फा का सम्बन्ध इन्हीं से है।
अ़ब्बासियाँ (अ़.पु.)-हज्ऱत अ़ब्बास की संतानवाले।
अ़ब्बासी (अ़.वि.)-हज्ऱत अ़ब्बास का वंशज, हज्ऱत अ़ब्बास से सम्बन्धित;
एक फूल, गुलाबाँस; नीलाहट लिये हुए लाल रंग का।
अब्यज़ (अ़.वि.)-बहुत स$फेद, धवलतम।
अब्यस (अ़.वि.)-रूखा, बहुत खुश्क, बहुत खुश्की पैदा करनेवाला।
अब्यात (अ़.स्त्री.)-'बैतÓ का बहु., बहुत से शेÓर, अश्अ़ार, $फारसी काव्य
का एक छन्द।
अब्र: (अ़.पु.)-दोहरे कपड़े में ऊपर वाला कपड़ा, अस्तर का उलटा, रूईदार
कपड़े की ऊपरवाली तह।
अब्र ($फा.पु.)-बादल, मेघ, बलाहक; तलवार या छुरी का जौहर। इसका 'अÓ उर्दू
के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है। 'अब्र-ए-$गमÓ-दु:ख के बादल।
'अब्र-ए-जंगÓ-युद्घ के बादल। 'अब्र-ए-बहाराँÓ-बसन्त के बादल।
अ़ब्र (अ़.पु.)-स्वप्नफल बताना, स्वप्न का अच्छा या बुरा बुरा बताना,
ख़्वाब की ताÓबीर कहना। इसका 'अÓ़ उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अब्र आलूद ($फा.वि.)-मेघाच्छादित, बादलों से घिरा हुआ।
अब्रक ($फा.पु.)-अभ्रक, एक प्रसिद्ध और बहुत उपयोगी पारदर्शक धातु, एक
प्रकार का खनिज जिसमें अनेक परत होती हैं।
अब्र$क (अ़.पु.)-दे.-'अब्रकÓ।
अब्रबाराँ (अ़.पु.)-बरसता हुआ बादल, द्रोण मेघ; वर्षाकाल का बादल।
दे.-'अब्रेबाराँÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अब्रस (अ़.वि.)-सिघ्म, जिसे स$फेद कोढ़ का रोग हो, जिसके शरीर पर सफ़ेद दा$ग हों।
अब्रा ($फा.पु.)-दे.-'अब्र:Ó, वही शुद्ध है।
अब्राज़ (अ़.पु.)-प्रकट करना, भेद खोलना, रहस्य या राज़ खोलना।
अब्रार (अ़.पु.)-'बारÓ का बहु., ऋषिजन, मुनि लोग; परहेजग़ार लोग,
धर्म-भीरू; संयमी लोग।
अब्री ($फा.स्त्री.)-एक चित्रित और रंगीन का$गज़, जो जिल्दों पर चढ़ाया
जाता है; अब्र से सम्बन्धित, मेघों या बादलों से सम्बन्ध रखनेवाला।
अब्रू ($फा.स्त्री.)-आँखों के ऊपर के बाल, भौंह, भृकुटी, भवें, भ्रू।
मुहा.-'अब्रू पर मैल न आनाÓ-जऱा भी सदमे का असर न होना।
'अब्रू-ए-दोस्तÓ-महबूब की भौंहें, प्रेयसी की भृकुटियाँ। 'अब्रू
ताननाÓ-$गुस्से से भौंह ऊपर चढऩा। 'अब्रू में बल पडऩा या आनाÓ-$गुस्सा
आना, त्यौरी चढऩा।
अब्रूए पैवस्ता ($फा.स्त्री.)-वह भौंहें, जो एक-दूसरी से मिली हों।
अब्रूकमाँ ($फा.वि.)-सुन्दर भौंहोंवाली हसीना, जिसकी भौंहें धनुष-जैसी
मेहराबदार हों।
अब्रू कशीद: ($फा.वि.)-जिसकी भौंहें तनी हों, संकुचित भ्रू।
अब्रे $गम (अ़.$फा.पु.)-दु:ख के बादल।
अब्रे$गलीज़ (अ़.$फा.पु.)-घनघोर घटा, काली घटा।
अब्रेतीर: ($फा.पु.)-दे.-'अब्रे$गलीज़Ó।
अब्रेनैसाँ ($फा.पु.)-चैत के महीने का बादल, जिसके लिए प्रसिद्ध है कि
उसकी हर बूँद सीपी में जाने के बाद मोती बन जाती है।
अब्रेबहार ($फा.पु.)-वसंत ऋतु का मेघ।
अब्रेबाराँ (अ़.पु.)-बरसता हुआ बादल, द्रोण मेघ; वर्षाकाल का बादल।
अब्रे मुर्द: ($फा.पु.)-मुर्दा बादल, स्पंज।
अब्रेशम ($फा.पु.)-कच्चा रेशम; रेशम का कोया।
अब्लक: (अ़.स्त्री.)-मैना की तरह की एक चिडिय़ा।
अब्लक (अ़.वि.)-दो रंग का, चितकबरा, काला और स$फेद; काले और स$फेद रंग का
घोड़ा, चितकबरा घोड़ा।
अब्लका (अ़.स्त्री.)-दे.-'अब्लक:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अब्लह (अ़.वि.)-भोला-भाला; मूर्ख, बेवकू$फ।
अब्लह $िफरेब (अ़.वि.)-मक्कार, जालसाज़।
अब्लह $िफरेबी (अ़.स्त्री.)-छल, कपट, द$गा, मक्कारी।
अब्लहाँ (अ़.पु.)-'अब्लहÓ का $फारसी बहु., मासूम लोग, भोले-भाले लोग;
मूर्ख लोग, बेवकू$फ लोग।
अब्लही (अ़.स्त्री.)-मूर्खता, नादानी, बेवकू$फी; भोलापन।
अब्लूज ($फा.स्त्री.)-मिसरी, चीनी, खंड शर्करा; स$फेद शक्कर, शर्करा।
अब्वाब (अ़.पु.)-पुस्तक के भाग, अध्याय; द्वार, दरवाज़े; वह रुपया जो
मालगुज़ारी के साथ सड़क, मदरसे इत्यादि के चन्दे में वसूल किया जाता है।
अ़ब्स (अ़.पु.)-चिड़चिड़ापन, रूखापन; एक सज्जाकार।
अब्सार (अ़.पु.)-समझदारी, दानाई; ज्ञान; आँखें, दृष्टि।
अ़ब्हर (अ़.स्त्री.)-नर्गिस का वह फूल, जिसके अन्दर पीलापन हो; वह
व्यक्ति जिसके शरीर पर मांस ख़्ाूब हो, गुदगुदा आदमी।
अब्हा (अ़.वि.)-मनोरम, सुन्दरतम, ख़्ाुशनुमा।
अब्हार (अ़.पु.)-'बह्रÓ का बहु., अनेक सागर, बहुत से समुद्र।
अ़म [म्म] (अ़.पु.)-चाचा, पिता का भाई, पितृभ्राता। (सं.पु.)-रोग,
बीमारी; सेवक, नौकर-चाकर; कच्चा फल।
अमजद (अ़.वि.)-बड़ा और विशेष, परम पूजनीय, बहुत बुुजुर्ग।
अ़मज़ाद (अ़.वि.)-दे.-'अ़म्मज़ादÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़मज़ादा (अ़.पु.)-चाचा का लड़का। दें.-'अ़म्मज़ाद:Ó, वही शुद्ध है।
अ़मदन (अ़.वि.)-सोच-समझकर, जानबूझकर, समझते-बूझते हुए, इरादे के साथ,
दे.-'अ़म्दनÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अमन (अ़.वि.)-दे.-'अम्नÓ, वही शुद्ध है। 'अमन-अमानÓ -चैन, शान्ति, रक्षा।
अमनियत ($फा.स्त्री.)-दे.-'अम्नियतÓ।
अमर (अ़.पु.)-कर्म, काम, कार्य, दे.-'अम्रÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
(सं.पु.)-देवता; कुलिशवृक्ष, सेहुड़; पारद, पारा; अमरकोश; उनंचास पवनों
में से एक; विवाह से पूर्व वर-कन्या के राशिवर्ग के संयोग के निमित
नक्षत्रों का एक गण; (वि.)-जो मृत्यु को प्राप्त न हो।
अमराज़ (अ़.पु.)-'मर्ज़Ó का बहु., दे.-'अम्राज़Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अमरूद ($फा.पु.)-एक प्रसिद्ध फल का नाम।
अ़मल: (अ़.पु.)-किसी संस्था या कार्यालय में काम करने-वाले लोग, कर्मचारी लोग।
अ़मल (अ़.पु.)-कृत्य, कार्य, अच्छा या बुरा किया हुआ कोई भी काम; कार्य,
कर्म, काम; लोकाचार, तजऱ्े अ़मल, व्यवहार, आचरण; अ़ादत, बान, लत; कोई
जप, तप या वज़ी$फा; मिस्मरेज़म या जादू का अ़मल। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ
अक्षर से बना है।
अमल (अ़.स्त्री.)-आस, आशा, उम्मीद। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से
बना है। 'अ़मल-दख़्ालÓ-अधिकार, $कब्ज़ा, वश, $काबू। (सं.वि.)-निर्मल,
स्वच्छ; दोष-रहित, बेऐब, पाप-शून्य। (पु.)-अभ्रक, अबरक; समुद्रफेन; कपूर;
शासन, सत्ता, हुकूमत; व्यसन, टेब, अ़ादत; प्रभाव, असर; समय, वक़्त।
अ़मलख़्ाान: (अ़.पु.)-दीवानख़्ाान:, बड़े लोगों के बैठने का स्थान,
गोष्ठी-कक्ष, कचहरी का दफ़्तर।
अ़मल दरामद (अ़.पु.)-कार्यान्वित करना, कार्रवाई, तामील। मुहा.-'अमल
दरामद करनाÓ-तामील करना, अ़मल में लाना। 'अ़मल दरामद होनाÓ-अ़मल में आना,
कार्रवाई होना।
अ़मलदार (अ़.पु.)-अ़ामिल, तहसीलदार, कारकुन।
अ़मलदारी (अ.$फा.स्त्री.)-राज्याधिकार, शासन, सत्ता, हुकूमत।
अ़मलन (अ़.वि.)-कार्यान्वित रूप से, अ़मल के तौर पर।
अ़मला (अ़.पु.)-दे.-'अ़मल:Ó, वही शुद्ध है। कर्मचारी-वर्ग।
अमलाक (अ़.पु.)-किसी को किसी वस्तु का स्वामी बनाना। दे.-'इम्लाकÓ।
अ़मली (अ़.वि.)-कर्मनिष्ठ, बाअ़मल, व्यवहारिक, कर्मठ; कार्य-सम्बन्धी;
काम का; नशा करनेवाला।
अ़मलीयात (अ़.पु.)-तंत्र-मंत्र, जो भूत-प्रेत आदि के लिए प्रयुक्त होते हैं।
अमवाज (अ़.स्त्री.)-'मौजÓ का बहु., लहरें, तरंगें, दे.-'अम्वाजÓ, वही
उच्चारण शुद्घ है।
अमवात (अ़.स्त्री.)-दे.-'अम्वातÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़मश (अ़.पु.)-आँख से आँसू बहना; दृष्टि की निर्बलता, निगाह की दुर्बलता।
अमसाल (अ़.पु.)-'मसलÓ का बहु., दे.-'अम्सालÓ।
अ़मा (अ़.स्त्री.)-अंधापन, अंधता, ना-बीनाई; बुरा रास्ता, कुमार्ग,
गुमराही; हलका बादल; गहरा बादल। (सं.स्त्री.)-अमावस्या, मावस, अमावस;
(पु.)-आत्मा, रूह; घर, गृह; यह लोक या संसार।
अ़माइद (अ़.पु.)-'अ़मीदÓ का बहु., बड़े लोग, प्रतिष्ठित लोग, सम्मानित
लोग; $कौम के सरदार, नेता, मुखिया; उच्च पदाधिकारी लोग।
अ़माइम (अ़.पु.)-'इमाम:Ó का बहु., पगडिय़ाँ, सा$फे।
अ़माकिन (अ़.पु.)-'मकानÓ का बहु., बहुत-से घर, अनेक मकान, गृह-समूह।
अमाजिद (अ़.पु.)-'अम्जदÓ का बहु., आदरणीय लोग, पूज्य व्यक्ति, प्रतिष्ठित
जन, सम्मानित लोग, बुज़ुर्ग लोग।
अमान (अ़.स्त्री.)-शरण, पनाह, सुरक्षा, रक्षा, हि$फाज़त, बचाव; निभर्यता,
बेख़्ाौ$फी; शान्ति, चैन, सुकून। 'अमान पानाÓ-शरण मिलना, पनाह मिलना,
सुरक्षा पाना। (सं.वि.)-मानरहित, अप्रतिष्ठित, अनादृत; तुच्छ,
आत्माभिमान-रहित; बेअंदाज़, अपरिमित; बेहद, असीम; निरभिमान, सीधा-सादा;
अमानत (अ़.स्त्री.)-धरोहर, थाती, न्यास; किसी को कोई वस्तु सौंपना; अपनी
वस्तु किसी के पास कुछ काल के लिए रखना। मुहा.-'अमानत में ख़्ायानत
करनाÓ-किसी की धरोहर बेईमानी से अपने काम में लाना। 'अमानत में ख़्ायानत
की किसे रहती है अब पर्वा, पड़ोसी के भरोसे मैं खुला घर छोड़ दूँ कैसेÓ
-माँझी
अमानतदार (अ़.$फा.वि.)-जिसके पास कोई धरोहर रखी हो, न्यासधारी; सत्यनिष्ठ, ईमानदार।
अमानतनाम: (अ़.$फा.पु.)-वह पत्र, जिस पर लिखा हो कि अमुक वस्तु अमुक
व्यक्ति को अमानत के तौर पर दी गई है, वह प्रपत्र, जिसमें धरोहर के बारे
में लिखा-पढ़ी की गई हो।
अमानतनामा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अमानतनाम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अमानी (अ़.पु.)-'उम्नीयतÓ का बहु., आशाएँ, आकांक्षाएँ, आजऱ्ूएँ,
उम्मीदें। (स्त्री.)-वह भूमि जिसकी ज़मींदार सरकार स्वयं हो; वह ज़मीन या
कार्य, जिसका प्रबंध अपने ही हाथ में हो; लगान की वह वसूली, जिसमें $फसल
के विचार से रिअ़ायत हो; ठेके की अपेक्षा वेतन देकर नौकरों से काम कराना;
(सं.वि.)-अभिमान-रहित, अहंकार-शून्य।
अमाम (अ़.वि.)-सामने, प्रत्यक्ष।
अ़मामा (अ़.पु.)-दे.-'अ़म्माम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अमारत (अ़.स्त्री.) निशान, चिह्नïें; लक्षण, अ़लामत।
अमारात (अ़.स्त्री.)-'अमारतÓ का बहु. अनेक निशान, निशानात, चिह्नï-समूह,
बहुत से चिह्नï; बहुत से लक्षण, अ़लामतें।
अमारिद (अ़.पु.)-'अम्रदÓ का बहु., बिना दाढ़ी-मँूछवाले सुन्दर लड़के।
अ़मारी (अ़.स्त्री.)-हाथी का हौदा, जो बैठने के लिए उसकी पीठ पर रखा जाता
है, दे.-'अम्मारीÓ।
अमावस (हिं.स्त्री.)-अमावस्या, कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि।
अमासिल (अ़.पु.)-'अम्सलÓ का बहु., उदाहरण, बहुत-सी मिसालें।
अ़मी$क (अ़.वि.)-सूक्ष्म, गूढ़, द$की$क; अगाध, गहन, गहरा, गंभीर; गहरा, डुबाऊ।
अ़मीद (अ़.वि.)-नेता, रहबर, लीडर; प्रतिष्ठित, सम्मानित, मुअज़्ज़ज़।
अमीन (अ़.वि.)-अमानतदार, न्यासधारी; जो ज़मीन के बंदोबस्त में पैमाइश
करे; वह कर्मचारी, जो अ़दालत में बंटवारा, कु$र्की आदि का काम करे; वह
अ़दालती कर्मचारी, जिसके सुपुर्द ज़मीन की नाप-जोख और कुर्की आदि होती
है; सत्यनिष्ठ, ईमानदार।
अमीनी (अ़.स्त्री.)-अमीन का पद अथवा कार्य।
अ़मीम (अ़.वि.)-अ़ाम, व्यापक, सार्वजनिक, जो सबके लिए हो।
अमीर (अ़.वि.)-धनवाला, पैसेवाला, धनवान्, धनाढ्य, दौलतमन्द; शासक, सरदार,
हाकिम; उदार; नायक, नेता; अग्रेसर। 'अमीर-ए-शाइराँÓ-कवियों का सरदार।
'अमीरे कारवाँ मुझको बता ये, लुटा जब कारवाँ तब तू कहाँ थाÓ-माँझी
अमीर उल उमरा (अ़.पु.)-दे.-'अमीरुल उमराÓ।
अमीर उल बहर (अ़.पु.)-दे.-'अमीरुल बह्रÓ।
अमीरज़ाद: (अ़.$फा.वि.)-धनवान् का पुत्र, अमीर का लड़का, धनीपुत्र;
आर्यपुत्र, शरी$फज़ादा।
अमीरज़ादा (अ़.पु.)-दे.-'अमीरज़ाद:Ó।
अमीरान: (अ़.$फा.वि.)-धनवानों की तरह, अमीरों-जैसा, रईसों की तरह; नायकों
की तरह, नेताओं-जैसा।
अमीराना (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अमीरान:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है। अमीरों
का-सा, धनवानों का-सा।
अमीरी (अ़.स्त्री.)-धन-सम्पन्नता, मालदारी, धनाढ्यता, दौलतमंदी;
स्वामित्व, सरदारी; नेतागीरी; श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; उदारता।
अमीरुल अस्कर (अ़.पु.)-सेना का मुखिया, कमाण्डर, सेनापति, सिपहसालार।
अमीरुल उमरा (अ़.पु.)-शाही ज़माने की एक बहुत बड़ी पदवी, अमीरों का
सरदार, अग्रणी; अमीरों का अमीर, बहुत बड़ा अमीर, अग्रेसरों का अग्रेसर।
अमीरुल बह्र (अ़.पु.)-समुद्री $फौज का कमांडर, नौ-सेनापति।
अमीरे कारवाँ (अ़.$फा.पु.)-यात्री-दल का अध्यक्ष। 'अमीरे-कारवाँ चलना
संभलकर, सदाएँ दे रहे हैं ख़्ाार हमकोÓ-माँझी
अमीरे नह्ल (अ़.पु.)-हज्ऱत अ़ली की उपाधि।
अमीरे शाइराँ (अ़.$फा.पु.)-कवियों का सरदार।
अ़मूद (अ़.पु.)-स्तूप, स्तम्भ, खम्बा; ख़ैमा; लम्ब, वह खड़ी रेखा जो
दूसरी पड़ी रेखा पर गिरकर 90 अंश का कोण बनाए, सीधी खड़ी लकीर; लिंग,
शिश्न; अध्यक्ष, सरदार; तराज़ू की मूठ।
अ़मूदी (अ़.वि.)-स्तूप या स्तम्भ-जैसा, अ़मूद-जैसा, अ़मूद से सम्बन्धित।
अ़मूम (अ़.वि.)-साधारण, अ़ाम, सबको सुलभ। दे.-'उमूमÓ, शुद्ध वही है।
अ़मूमन (अ़.वि.)-साधारणत:, अ़ामतौर पर। दे.-'उमूमनÓ, वही शुद्ध है।
अ़मूर (अ़.पु.)-दाँतों और मसूढ़ों के बीच का मांस। 'अम्रÓ का बहु., बहुत
से कर्म, अनेक काम; अनेक आज्ञाएँ, कई आदेश।
अ़मूल (अ़.वि.)-अत्यधिक काम करनेवाला। (सं.वि.)-बिना मूल का, जिसकी जड़ न
हो, (पु.)-सांख्यशास्त्र के अनुसार प्रकृति का एक नाम।
अ़म् (अ़.पु.)-पिता का भाई, चाचा।
अ़म्अ$क (अ़.पु.)-अऱब का एक कवि।
अम्आ (अ़.पु.)- 'मिअ़ाÓ का बहु., आँत्र, आँतें।
अम्किन: (अ़.पु.)-'मकानÓ का बहु., बहुत से घर, अनेक गृह, मकान-समूह, मकानात।
अम्जद (अ़.वि.)-पूज्य; अत्यन्त पवित्र; बुज़ुर्ग लोग।
अम्जाद (अ़.पु.)-प्रतिष्ठितजन, सम्मानित लोग, बुज़ुर्ग।
अम्जि़ज: (अ़.पु.)-'मिज़ाजÓ का बहु., प्रकृति, स्वभाव, मिज़ाज।
अम्त (अ़.पु.)-ऊँची भूमि; दीवार आदि का पुश्ता।
अम्तार (अ़.पु.)-'मतरÓ का बहु., बरसातें, बरसात के पानी, वर्षा-जल।
अम्तिअ़: (अ़.पु.)-'मताअ़Ó का बहु., पूँजी-समूह, बहुत-सा सामान,
माले-अस्बाब, धन-दौलत।
अ़म्द (अ़.पु.)-विचार, इच्छा, ख़्वाहिश; संकल्प, इरादा।
अ़म्दन (अ़.वि.)-सोच-समझकर, जानबूझकर, समझते-बूझते हुए, इरादे के साथ,
निश्चयपूर्वक, क़स्दन।
अम्न (अ़.पु.)-चैन, शान्ति, सुकून; आराम, सुख-चैन।
अम्न पसन्द (अ़.$फा.वि.)-जो चाहता हो कि किसी प्रकार का झगड़ा-टंटा न हो,
जो हर समय शान्ति चाहता हो, शान्तिप्रिय, अम्न का हामी।
अम्न पसन्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-शान्तिप्रियता
अम्नियत ($फा.स्त्री.)- शान्ति, आराम।
अ़म्बर (अ़.पु.)-एक प्रसिद्ध सुगंधित वस्तु, जो ह्वïेल मछली की आँतों में
मिलती है; एक प्रकार का इत्र।
अ़म्बा (अ़.स्त्री.)-अन्धी अ़ौरत।
अम्बार ($फा.पु.)-ढेर, राशि, अटाला।
अम्बारख़्ाान: ($फा.पु.)-भण्डार, कोश, गोदाम।
अम्बारख़्ााना ($फा.पु.)-दे.-'अम्बारख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
अम्बारी ($फा.वि.)-ढेर लगानेवाला, गोदाम में जमा करनेवाला।
अम्बिया (अ़.पु.)-'नबीÓ का बहु., अवतारी-जन, पै$गम्बर लोग।
अम्बोह ($फा.पु.)-जनसमूह, भीड़, जमाव।
अ़म्म: (अ़.स्त्री.)-पिता की बहन, भुआ, फूफी; आदमियों का समूह, मनुष्यों का झुण्ड।
अ़म्म (अ़.पु.)-पिता का भाई, चाचा।
अ़म्मज़ाद (अ़.वि.)-चचेरा।
अ़म्मज़ाद: (अ़.पु.)-चाचा का लड़का।
अ़म्माँ (अ़.पु.)-'अम्मÓ का बहु. $फारसी में।
अ़म्मान (अ़.पु.)-शाम (सीरिया) का एक नगर।
अम्माम: (अ़.पु.)-पगड़ी, सा$फा। 'अम्माम: उतारनाÓ- बेइज़्ज़त करना।
अम्मामा (अ़.पु.)-दे.-'अम्माम:Ó, वही शुद्घ है।
अम्मार: (अ़.वि.)-उग्र, कठोर; पाप की ओर बढ़ाने या अग्रसर करनेवाला,
स्वेच्छाचारी; गुनाह की त$र्गीब अर्थात् प्रेरणा देनेवाला, अपराध करने के
लिए लालच देनेवाला; बहुत हुक्म करनेवाला; सरकश, ज़ालिम, अत्याचारी। इसका
'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़म्मार: (अ़.पु.)-जहाज़ का बेड़ा। इसका 'अ़ उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अम्मारा (अ़.वि.)-दे.-'अम्मार:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़म्मारी (अ़.स्त्री.)-हाथी का हौदा, बैठने के लिए जिसे हाथी की पीठ पर रखते हैं।
अम्मी (अ़.वि.)-माँ, माता।
अ़म्मू (अ़.पु.)-पिता की बहन, 'अ़म्म:Ó; पिता का भाई, चाचा।
अम्र (अ़.पु.)-कर्म, काम, कार्य; विधि; आदेश, हुक्म, आज्ञा; विषय,
मुअ़ामला; मस्अ़ला, समस्या। 'अम्र तनकीह तलबÓ-विचारणीय विषय या बात।
'अम्रे मारू$फÓ- अच्छे काम का हुक्म देना। 'अम्रो निहीÓ-विधि निषेध।
अम्रद ($फा.पु.)-बिना दाढ़ी-मूँछ का सुन्दर लड़का।
अम्रद परस्त ($फा.वि.)-सुन्दर लड़कों से प्रेम करनेवाला; बच्च:बाज़, गुद्भोगी।
अम्रद परस्ती ($फा.स्त्री.)-सुन्दर लड़कों से प्रेम करना, लौंड़ेबाज़ी
करना, गुद्भोग के व्यसन में पडऩा।
अम्राज़ (अ़.पु.)-'मर्ज़Ó का बहु., बहुत-सी बीमारियाँ, अनेक रोग, रोग-समूह।
अम्रूद ($फा.पु.)-एक प्रसिद्ध फल, प्यारा।
अ़म्ल: (अ़.स्त्री.)-उपकार, नेकी, भलाई।
अम्लज (अ़.पु.)-एक प्रसिद्ध फल, आँवला।
अम्लस (अ.वि.)-नर्म, सा$फ, मृदुल; चिकना, मुलायम; समतल, हमवार।
अम्लाक (अ़.पु.)-'मिल्कÓ का बहु., सम्पत्तियाँ, जायदादें।
अम्लाह (अ़.पु.)-'मिल्हÓ का बहु., नमक-समूह, बहुत से नमक, अनेक लवण।
अम्वाज (अ़.स्त्री.)-'मौजÓ का बहु., लहरें, तरंगें, मौजें।
अम्वात (अ़.स्त्री.)-'मौतÓ का बहु., मृत्युएँ, अनेक मौतें।
अम्वाते अहमर (अ़.स्त्री.)-बलिदान होनेवाले, शहीद होने- वाले; वध होनेवाले।
अम्वाल (अ़.पु.)-'मालÓ का बहु., पूँजी-समूह, सम्पत्तियाँ, जायदादें, धन-समूह।
अम्वाह (अ़.पु.)-'माÓ का बहु., जल-समूह।
अम्स (अ़.पु.)-बीता हुआ कल, गुज़रा हुआ कल, गत कल।
अम्सल (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, पूज्य, बुज़ुर्ग।
अम्सार (अ़.पु.)- 'मिस्रÓ का बहु., महानगर-समूह, अनेक बड़े-बड़े नगर।
अम्साल (अ़.पु.)-'मसलÓ का बहु., लोकोक्तियाँ, कहावतें, मसलें।
अम्सिल: (अ़.पु.)-'मिसालÓ का बहु., अनेक उदाहरण, मिसालें।
अय़ां (अ़.वि.)-स्पष्ट, प्रकाशमान्, ज़ाहिर, दृष्टिगोचर, सा$फ दिखाई पडऩे
वाला, प्रकट। इसका शुद्ध उच्चारण 'इयाँÓ है।
अय़ा (अ़.पु.)-असाध्य पीड़ा, ऐसी पीड़ा जिसका निवारण न हो सके, लाइलाज
कष्ट। (सं.अव्य.)-इस तरह, ऐसे, यूँ, यों, इस प्रकार से।
अया$क (तु.पु.)-दे.-'अया$गÓ।
अया$ग (तु.पु.)-प्याला, शराब पीने का प्याला, चषक, पानपात्र।
अयाज़ ($फा.पु.)-महमूद $गज़नवी के एक $गुलाम का नाम, जिसे वह बहुत चाहता
था। 'न वो $गज़नवी में तड़प रही, न वो ख़्ाम है ज़ुल्$फे अयाज़ मेंÓ-
इ$कबाल
अय़ादत (अ़.स्त्री.)-किसी रोगी के पास जाकर उसके स्वास्थ्य का हाल पूछना,
बीमार-पुरसी।
अयादी (अ़.पु.)-'यदÓ का बहु., बहुत से हाथ; बहुत-सी भलाइयाँ।
अयामा (अ़.वि.)-'ऐयिमÓ का बहु., बिना पति की स्त्रियाँ; बिना स्त्रियों के पुरुष।
अयार ($फा.पु.)-रूमियों का एक महीना, जो जेठ (जून) में पड़ता है। इसका
'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अय़ार (अ़.पु.)-सोने-चाँदी को कसौटी पर परखना; तोलना; जाँच, परख; सोना
तोलने का काँटा। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अयाल ($फा.पु.)-घोड़े तथा शेर की गर्दन के बाल। (पु.)- परिवार के लोग,
बाल-बच्चे आदि। 'अयाल ओ अत्फ़ालÓ- बाल-बच्चे।
अयालदार (अ़.$फा.पु.)-बाल-बच्चेवाला।
अयालदारी (अ़.$फा.स्त्री.)-घर-गृहस्थी।
अयास ($फा.पु.)- 'अयाज़Ó का असली अर्थात् वास्तविक
नाम।
अयूब (अ़.पु.)-'ऐबÓ का बहु., अनेक बुराइयाँ, बहुत-से दोष।
अय्याम (अ़.पु.)-'यौमÓ का बहु., बहुत से दिन, अनेक काल, अनेक समय;
स्त्रियों का रजकाल, स्त्रियों के मासिक-धर्म का समय। (यौ.श.)-'यादे
अय्यामÓ-उन दिनों की याद। 'गर्दिशे अय्यामÓ-बुरा समय। मुहा.-'अय्याम से
होनाÓ-औरत का रजस्वला होना।
अय्याम गुज़ारी (अ़.स्त्री.)-दिन काटना; टालना, देर लगाना।
अय़्यार (अ़.वि.)-बहुत अधिक चालाक, धूर्त, वंचक, छली। दे.-'ऐयारÓ।
अय़्यारी (अ़.स्त्री.)-छल, $फरेब, चालाकी, दे.-'ऐयारीÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अय़्याश (अ़.वि.)-भोग-विलास और अच्छे खाने-पीने का शौक़ीन; व्यभिचारी। दे.-'ऐयाशÓ।
अय़्याशी (अ़.वि.)-दे.-'ऐयाशीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अय़्यू$क (अ़.पु.)-एक तारा, जो बहुत तेज़ और प्रकाशमान् होता है। दे.-'ऐयू$कÓ।
अय्यूब (अ़.पु.)-एक पै$गम्बर, जो बहुत ही धैर्यवान् थे, इनका सब्र मशहूर
है। दे.-'ऐयूबÓ।
अऱ$क (अ़.पु.)-दवाओं का खींचा हुआ सार, जल; स्वेद, पसीना; मदिरा, शराब।
इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है। 'अऱ$क-ए-शर्मÓ-लज्जा का पसीना। 'अऱ$क
आलूदÓ-पसीना-पसीना, पसीने में लिप्त, पसीने में नहाया हुआ।
अर$क [क़्$क] (अ़.वि.)-बहुत अधिक पतला, बहुत ही सूक्ष्म, बारीक। इसका 'अÓ
उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अर$क (अ़.स्त्री.)-नींद न आना, अनिद्रा, जागरण, बेदारी, बेख़्वाबी।
अरक (तु.पु.)-$िकला, कोट, दुर्ग, परकोटा। (सं.पु.)-पानी के भीतर होनेवाली
एक प्रकार की घास, सेवार, शैवाल।
अऱ$कगीर (अ़.$फा.पु.)-अऱ$क खींचने का भभका; एक प्रकार की टोपी; घोड़े की
ज़ीन के नीचे रखा जानेवाला कपड़ा, चारजामा।
अऱ$कचीं (अ़.$फा.पु.)-पगड़ी के नीचे पहनी जानेवाली कुलाह या टोपी; पसीना
पौंछने का छोटा रूमाल।
अऱ$करेज़ (अ़.$फा.वि.)-नौकर, टहलुआ, दास, सेवक; लज्जित करनेवाला।
अऱ$करेज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसा परिश्रम, जिसमें पसीना आ जाए, घोर
परिश्रम, सख़्त मेहनत।
अरकान (अ़.पु.)-दे.-'अर्कानÓ। स्तम्भ, खम्म्भे; तत्त्व; चरण।
अरकाने दौलत (अ़.पु.)-दे.-'अर्काने दौलतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है। राज्य
के स्तंभ या प्रमुख व्यक्ति।
अरकाने सल्तनत (अ़.पु.)-दे.-'अर्काने सल्तनतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अरकाने हुकूमत (अ़.पु.)-दे.-'अर्काने हुकूमतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अऱ$कीय: (अ़.पु.)-पसीना पौंछने का छोटा रूमाल।
अऱ$केबहार (अ.$फा.पु.)-मद्य, मदिरा, शराब, मय।
अरगजा (अ़.पु.)-दे.-'अर्गज:Ó।
अरगऩून (अ़.पु.)-दे.-अर्गऩूनÓ।
अर$गवान (अ़.पु.)-एक पेड़, जिसमें वसन्त-ऋतु में लाल फूल लगते हैं,
दे.-'अर्ग़वानÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अर$गवानी (अ़.वि.)-दे.-'अर्ग़वानीÓ।
अरगून (अ़.पु.)-दे.-'अर्गंूÓ।
अरचंद ($फा.अव्य.)-यद्यपि, अगरचे, हरचन्द।
अऱज़ (अ़.स्त्री.)-ज़मीन। (पु.)-वह चीज़, जो दूसरी के सहारे $कायम हो,
जैसे-'रंगÓ, जो कपड़े, का$गज़ आदि के सहारे $कायम होता है; वह उपरोग, जो
किसी बड़े रोग के कारण उत्पन्न हो जाए, जैसे-बुखार में सिर का दर्द।
अऱज़मंद (अ़.$वि.)-माननीय, सम्माननीय, प्रतिष्ठा-प्राप्त।
अऱज (अ़.पु.)-लंगड़ापन, लंग।
अऱजल (अ़.पु.)-वह घोड़ा, जिसका एक पाँव स$फेद और बा$की तीन अन्य रंग के
हों, ऐसे घोड़े को मनहूस समझा जाता है; वह घोड़ा, जिसके अगले पैर का
नीचेवाला हिस्सा स$फेद हो, ऐसा घोड़ा ऐबी माना जाता है।।
अऱज़ल (अ़.वि.)-घटिया $िकस्म का; निहायत ही कमीना आदमी।
अऱज़ान ($फा.वि.)-सस्ता, कम-$कीमत का।
अऱज़ानी ($फा.स्त्री.)-सस्तापन, घटियापन।
अऱज़ाल (अ़.पु.)-'रज़ीलÓ का बहु., निम्न-श्रेणी के और ख़्ाराब आदमी,
कमीने आदमी, नीच लोग।
अऱज़ी (अ़.स्त्री.)-दे.-'अजऱ्ीÓ।
अर$फ: (अ.पु.)-अऱबी 'जि़लहिज्ज:Ó महीने का नवाँ दिन, जिस रोज़ हज होता
है; बहुत बुलन्द, अत्यन्त उच्च।
अर$फा (अ़.वि.)-दे.-'अरफ़:Ó।
अऱ$फात (अ़.पु.)-सउदी अऱब के मक्का से नौ कोस की दूरी पर वह मैदान, जहाँ
हाजी लोग हज के दिन एकत्र होते तथा दोपहर और शाम की नमाज़ पढ़ते हैं।
अऱब (अ़.पु.)-एशिया का प्रसिद्घ देश, अऱब देश, अऱब का निवासी, अऱब का आदमी।
अऱब नज़ाद (अ़.वि.)-अऱब की नस्ल का, अऱबी।
अरबा (अ़.वि.)-दे.-'अर्बाÓ।
अरबाब (अ़.पु.)-'रबÓ का बहु., दे.-'अर्बाबÓ।
अरबाबे अ़क़्ल (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे अ़क़्लÓ।
अरबाबे इल्म (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे इल्मÓ।
अरबाबे कमाल (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे कमालÓ।
अरबाबे $कलम (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे $कलमÓ।
अरबाबे निशात (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे निशातÓ।
अरबाबे $फन (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे $फनÓ।
अरबाबे व$फा (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे वफ़ाÓ।
अरबाबे शुऊर (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे शुऊरÓ।
अरबाबे सुखन (अ़.पु.)-शाइर, कवि, दे.-'अर्बाबे सुखनÓ।
अरबाबे हुज्जत (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे हुज्जतÓ।
अरबाबे हुनर (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे हुनरÓ।
अऱबिस्तान (अ़.$फा.पु.)-अऱब देश।
अऱबी (अ़.वि.)-अऱब का निवासी; अऱब देश का व्यक्ति; अऱब से सम्बन्ध
रखनेवाला। (स्त्री.)-अऱबी भाषा; एक प्रकार का बाजा-ताशा।
अऱबी ख़्वानी (अ़.स्त्री.)-अऱबी भाषा पढऩा।
अऱबी दानी (अ.स्त्री.)- अऱबी भाषा जानना।
अरम (अ़.पु.)-दे.-'इरमÓ, वही शुद्ध है लेकिन उर्दू में इसका भी प्रयोग
किया जाता है। स्वर्ग, जो शद्दाद ने इस लोक में बनाया था।
अरमग़ान ($फा.पु.)-भेंट, उपहार, तोह$फा, सौ$गात, अनोखी चीज़। शुद्ध
उच्चारण 'अर्म$गानÓ है।
अरमान (तु.पु.)- लालसा, इच्छा, चाह, आरज़ू; हौसला। शुद्ध उच्चारण 'अर्मानÓ है।
अरवाह (अ़.स्त्री.)-'रूहÓ का बहु., आत्माएँ; $फरिश्ते। औरतें इसे 'नीयतÓ
के अर्थ में भी इस्तेमाल करती हैं। दे.-'अर्वाहÓ।
अरश (अ़.स्त्री.)-कोहनी से उँगलियों तक का हाथ।
अरस ($फा.पु.)-आज़रबाईजान का एक नगर और उसकी एक नदी। (सं.पु.)-रस-विहीन,
स्वाद का अभाव, नीरस, फीका; गँवार, उजड्ड; अनाड़ी।
अरसलान (तु.पु.)-सिंह, शेर; सेवक, दास, $गुलाम। शुद्ध उच्चारण 'अर्सिलानÓ
है मगर इसका भी प्रयोग देखा गया है।
अऱसा (अ़.पु.)-समय, काल; देर, विलम्ब; क्षेत्र, मैदान। शुद्ध उच्चारण
'अ़र्स:Ó है। 'अऱसागाहे-हश्रÓ-प्रलय का मैदान, $कयामत का मैदान।
अरस्तातालीस (अ़.पु.)-दे.-'अरस्तूÓ।
अरस्तू (अ़.पु.)-यूनान के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और महान् दार्शनिक जो
384-322 ईसा पूर्व हुए। यह अफ़्लातून का शिष्य और सम्राट सिकन्दर के गुरु
थे, अरिस्टोटल।
अऱा (अ़.पु.)-वह चटयल मैदान, जहाँ न घास हो और न ही पेड़-पौधे; दरगाह, आश्रम।
अराइक (अ़.पु.)-'अरीक:Ó का बहु., सिंहासन-समूह, बहुत-से तख़्त।
अऱाइज़ (अ़.पु.)-'अ़जऱ्ीÓ का बहु., प्रार्थनाएँ, अनेक आवेदन-पत्र,
अ़जि़र््ायाँ, निवेदन-पत्र।
अऱाइज़ नवीस (अ़.$फा.वि.)-अ़जिऱ्याँ या प्रार्थना-पत्र लिखने या तैयार
करनेवाला लिपिक।
अराइब (अ़.पु.)-'इर्बÓ का बहु.। आवश्यकताएँ, ज़रूरतें।
अऱाइस (अ़.पु.)- 'अ़रूसÓ का बहु., दूल्हे; दुल्हनें।
अराक (अ़.पु.)-भूमि-खंड, ज़मीन का टुकड़ा; पीलू का पेड़।
अराकीन (अ़.पु.)-वज़ीर, सरदार, अमीर-उमरा।
अराजि़ल (अ़.पु.)-'अजऱ्लÓ का बहु., नीच लोग, कमीने लोग।
अराजिल (अ़.पु.)-'रजुलÓ का बहु., बहुत से आदमी, जन-मानस, मनुष्य लोग।
अराज़ी (अ़.पु.)-'अजऱ्Ó का बहु., जोती-बोई जानेवाली ज़मीन, कृषी-भूमि,
खेतों की ज़मीनें, भूमियाँ। (यौ.श.)-'अराज़ीए काश्तÓ-खेती करने की भूमि।
'अराजीए उफ़्तादाÓ-$गैर आबाद ज़मीन, जो जोती-बोई न जाती हो। 'अराज़ीए
ख़्ालिसाÓ-सरकारी भूमि। 'अराज़ी-ख़्िाराज़ीÓ-
लगान पर बोया-जोता जानेवाला खेत। 'अराज़ीए चाहीÓ-कुएँ के पानी से सींची
जानेवाली भूमि। 'अराज़ीएर्माबुर्दÓ-पानी में डूबी हुई भूमि, जलमग्न भूमि।
'अराज़ीए मुतनाज़ाÓ-झगड़े की ज़मीन।
अराजी$फ (अ़.पु.)-'अर्जा$फÓ का बहु., बेहूदा बातें, व्यर्थ की बातें;
असभ्य लोग, बेहूदा लोग।
अराब: ($फा.पु.)-छकड़ा, शकट, गाड़ी। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अऱाब: (अ़.पु.)-छकड़ा, शकट, गाड़ी। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अऱाबची ($फा.पु.)-छकड़ा या गाड़ी हाँकनेवाला, गाड़ीवान।
अऱाबा (अ़.पु.)-दे.-'अऱाब:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अरामिल (अ.स्त्री.)-'अर्मल:Ó का बहु., रँडुवा लोग; बिना स्त्रियों के
पुरुष; विधवा स्त्रियाँ; बिना पुरुषों की स्त्रियाँ।
अऱायज़ (अ़.पु.)-दे.-'अऱाइज़Ó, वही शुद्ध है, अ़र्जिय़ाँ, निवेदन-पत्र।
अऱाया (अ़.पु.)-खजूर के वे पेड़, जो किसी $गरीब आदमी को फल खाने के लिए
दे दिए गए हों। ख़्ौरात में दिए गए खजूर के पेड़।
अरिज (अ़.वि.)-प्रत्येक वह वस्तु जो सुगंधित हो।
अरिश (अ़.वि.)-प्रवीण, होशियार, चतुर, पटु, बुद्धिमान्, प्रतिभावान्।
अरी (अ़.पु.)-शहद, मधु। (हिं.अव्य.)-सम्बोधन-सूचक अव्यय, अरी! ओ री!
(स्त्री.)-अड़ी, मौ$का, (वि.)-अटकी हुई, अड़ी हुई।
अरीक: (अ़.पु.)-तख़्ते शाही, राजमंच, सिंहासन, तख़्त। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अऱीक: (अ़.पु.)-ऊँट का कोहान; गर्व, अभिमान; स्वभाव, प्रकृति, तबीयत।
इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अऱीज़: (अ़.पु.)-पत्र, चिट्ठी; दरख़्वास्त, अज़ऱ्ी, प्रार्थना-पत्र; वह
पत्र, जो छोटे की तर$फ से बड़े को लिखा जाए।
अऱीज़: गुज़ार (अ़.$फा.वि.)-प्रार्थना-पत्र देनेवाला, प्रार्थी, आवेदन
करनेवाला; पत्र भेजनेवाला।
अऱीज़: निगार (अ़.$फा.वि.)-पत्र-लेखक, पत्र लिखनेवाला लिपिक।
अऱीज़: नियाज़ (अ़.$फा.वि.)-अ़जऱ्ी देनेवाला, प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करनेवाला।
अऱीज़ा (अ़.पु.)-दे.-'अऱीज़:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अऱीज़ (अ़.$वि.)-चौड़ा; चौड़ा चकला; बड़े अरज़ का; एक साल का बकरा।
अऱी$फ (अ़.$वि.)-पहचान करनेवाला, पहचाननेवाला।
अरीश: (अ़.पु.)-छप्पर, झोंपड़ी; जहाज़ का डेक।
अऱीश (अ़.पु.)-छप्पर, झोंपड़ी; अंगूर की बेल चढ़ाने के लिए लगाई गई टट्टी।
अऱीस (अ़.पु.)-वर, दूल्हा।
अरुज़्ज़ (अ़.पु.)-चावल, तंडुल।
अ़रूज़ (अ़.पु.)-काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए निर्धारित छन्दशास्त्र,
पिंगल-शास्त्र।
अ़रूज़दाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अ़रूज़ीÓ।
अ़रूज़ी (अ़.$फा.वि.)-जो छन्दशास्त्र का अच्छा ज्ञाता हो, पिंगल-शास्त्र
को जाननेवाला।
अ़रू$फ (अ़.$वि.)-धैर्यवान्, साबिर; बहुत पहचाननेवाला।
अ़रूब (अ़.स्त्री.)-प्राण-प्रिया, वह स्त्री जिसे उसका पति बहुत चाहता
हो; वह औरत जो अपने पति से बहुत प्यार करती हो।
अ़रूस (अ़.अव्य.)-नौशा, दूल्हा, वर; वधू, दुल्हन।
अ़रूसक (अ़.स्त्री.)-गुडिय़ा; बीर बहूटी।
अ़रूसी (अ़.वि.)-विवाह-सम्बन्धी; शादी, विवाह, निकाह।
अ़रूसुलबिलाद (अ़.पु.)-सर्वश्रेष्ठ नगर, ऐसा नगर जो सब नगरों में दुल्हन
के समान दिखता हो, बहुत-ही सा$फ-सुथरा और सुन्दर नगर।
अ़अऱ्र (अ़.पु.)-चीड़ का वृक्ष।
अ़$र्क (अ़.पु.)-किसी चीज़ का निचोड़ा हुआ रस या पानी; भभके से खींचा हुआ
पानी, भाप से बना हुआ पानी; पसीना, स्वेद। मुहा.-'अ़$र्क-अ़$र्क
होनाÓ-पसीना-पसीना होना (श्रम, मेहनत या शर्मिन्दगी से)। 'अ़$र्क आ जाना
अथवा अ़$र्क आनाÓ-पसीना आ जाना, शर्म से पानी-पानी हो जाना।
(सं.पु.)-सूर्य; इन्द्र; विष्णु; विद्वान्, पण्डित; बड़ा, ज्येष्ठ;
काढ़ा; रविवार; अन्न; वज्र; मंत्र; वृक्ष; बारह की संख्या; आग; अरक, रस;
सप्तमी तिथि।
अ$़र्क आलूद (अ़.$फा.वि.)-पसीने से तर, पसीने में नहाया हुआ।
अ$़र्कगीर (अ़.पु.)-भभका; चारजामा।
अ$़र्करेज़ी (अ़.स्त्री.)-घोर परिश्रम, इतना अधिक परिश्रम कि पसीना टपकने लगे।
अ़$र्कशीर (अ़.पु.)-दूध का फाड़ा हुआ अ़$र्क।
अ$र्कम (अ़.पु.)-वह काला साँप, जिसकी पीठ पर स$फेद चित्तियाँ हों।
अर्कान (अ़.पु.)-'रुक्नÓ का बहु., सदस्यगण; खम्बे, सुतून।
अर्काने दौलत (अ़.पु.)-बड़े-बड़े अधिकारी, राज्य के प्रमुख पदाधिकारी।
अर्काने सल्तनत (अ़.पु.)-दे.-'अर्काने दौलतÓ।
अर्काने हुकूमत (अ़.पु.)-दे.-'अर्काने दौलतÓ।
अर्काम (अ़.पु.)-चि_िïयाँ, पत्र-समूह, ख़्ातूत।
अ़$र्केगुल (अ़.पु.)-गुलाब-जल, गुलाब की पत्तियों का सार अथवा अ$़र्क।
अ$र्केनंग (अ़.पु.)-शर्मिन्दगी का पसीना, लज्जा-जनित स्वेद।
अ$र्केनाना (अ़.पु.)-भभके से खींचा गया सिरका, जो पोदीने की लाग से खिंचता है।
अर्गज: ($फा.पु.)-एक सुगन्धित द्रव्य, जो चन्दन, केसर और कपूर से बनता
है। हिन्दी में 'अरगजाÓ प्रचलित।
अ$र्गन (अ़.पु.)-अरगन नामक बाजा।
अ$र्गनूँ (अ़.पु.)-'अर्गऩूनÓ का लघु., अरगन नामक बाजा।
अर्गऩून (अ़.पु.)-दे.-'अर्गऩूँÓ।
अ$र्गूं (अ़.पु.)-अरगन नामक बाजा।
अ$र्गवाँ (अ़.पु.)-'अ$र्गवानÓ का लघुरूप, दे.-'अ$र्गवानÓ।
अ$र्गवान (अ़.पु.)-लाल रंग का एक फूल; एक ऐसा पेड़ जिस पर लाल रंग के फूल आते हैं।
अ$र्गवानी ($फा.वि.)-लाल रंग में रंगा हुआ, लाल, सुख्ऱ्ा, (लाक्ष.)-लाल
मदिरा। 'मिले हमको दिन-भर मये अ$र्गवानी, तो भूलेंगे पीना य$कीनन ही
पानीÓ -माँझी
अर्जंग़ ($फा.पु.)-चीन का एक सुप्रसिद्ध चित्रकार; मानी के चित्रों का
अल्बम; मानी का नाम, मानी अजऱ्ंग।
अ़जऱ्: (अ़.पु.)-एक बार प्रकट करना, एक बार ज़ाहिर करना, एक बार सामने
रखना। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
'अर्ज़़-ए-सितमहए-जुदाईÓ-विरह-वे
'अर्ज़़-ए-नियाज़े-इश्$कÓ-प्रेम की सेवा।
अजऱ्: (अ़.पु.)-दीमक नामक एक कीड़ा। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अजऱ् (अ़.स्त्री.)-भूमि, वसुन्धरा, पृथ्वी, ज़मीन। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ से बना है। 'अर्ज़-ए-कलीसाÓ-ईसाइयों की भूमि अथवा देश।
अ़जऱ् (अ़.स्त्री.)-निवेदन, प्रार्थना, विनती, अनुरोध, गुज़ारिश;
(पु.)-घरेलू सामान; किसी चीज़ की चौड़ाई। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना
है और 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ से बना है।
अजऱ् ($फा.पु.)-$कीमत, दाम, मूल्य। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा
'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ से बना है।
'अर्ज़-ए-मताए-अ़क़्ल-ओ-दिल-ओ-
लगाकर।
अर्ज ($फा.पु.)-सुगंध, ख्ुाशबू; पद, ओहदा, मर्तबा; सम्मान, प्रतिष्ठा;
अनुमान, अटकल; आलोचना, निन्दा, बुराई, हत्क; मूल्य, $कीमत। इसका 'अÓ
उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ से बना है।
(सं.पु.)-उपार्जन, कमाना, लाभ, प्राप्ति; संग्रह, एकत्रित करना, संग्रह
करना।
अर्जक़ (अ़.वि.)-नीला, नीलवर्ण का। (यौ.श.)-'अर्जक चश्मÓ-नीली आँखोंवाला (वाली)।
अ़जऱ्गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-सेना की गिनती करने का स्थान।
अ़जऱ् गुज़ार (अ़.$फा.वि.)-विनती करनेवाला, प्रार्थी, प्रार्थना करनेवाला।
अ़जऱ्दाश्त (अ़.$फा.स्त्री.)-याचिका, पिटिशन; विनती, प्रार्थना,
इल्तिजा; प्रार्थना-पत्र, दरख़्वास्त।
अ़जऱ्बेगी (अ़.$फा.स्त्री.)-बादशाह के सामने प्रार्थनाएँ और प्रार्थियों
को पेश करनेवाला व्यक्ति।
अज़ऱ्मंद ($फा.वि.)-सम्पन्न और अच्छे पद पा प्रतिष्ठित, सम्मानित,
मुअ़ज़्ज़ज़, मान्य; उच्च पद पर आसीन; प्रतापी, इक़्बालमंद; सफल,
उत्तीर्ण, कामयाब।
अर्ज़़माÓरूज़ ($फा.स्त्री.)-आवेदन, निवेदन, दरख़्वास्त, प्रार्थना, विनती।
अर्ज़ल (अ़.वि.)-अधम, बहुत ही नीच, बहुत ही कमीना।
अर्जल (अ़.वि.)-लम्बी टाँगों वाला व्यक्ति; वह घोड़ा जिसका एक पाँव स$फेद
और बाकी तीन पाँव किसी और रंग के हों (ऐसा घोड़ा ऐबी माना जाता है)।
अजऱ्ां ($फा.वि.)-कम दामों का, सस्ता, मन्दा, कम $कीमत का। 'जि़न्दगी भी
अजऱ्ां है, मौत भी $फरावाँ हैÓ।
अजऱ्ां$फरोश ($फा.वि.)-जो बहुत कम लाभ पर अपने माल या सामान की बिक्री
करे, सस्ता बेचनेवाला।
अजऱ्ा$फरोशी ($फा.स्त्री.)-सस्ता माल बेचना, कम लाभ पर सौदा बेचना।
अजऱ्ानी ($फा.स्त्री.)-बाज़ार भाव गिर जाना, सस्तापन, मंदी आना।
अजऱ्ाल (अ़.पु.)-'रज़ीलÓ का बहुवचन, रज़ीले, नीच लोग, कमीने लोग।
अ़जऱ्ी (अ़.स्त्री.)-निवेदन-पत्र, आवेदन-पत्र, प्रार्थना-पत्र,
दाख़्वास्त। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अजऱ्ी (अ़.वि.)-भौमिक, भूमि-सम्बन्धी, ज़मीन का, ज़मीन से सम्बन्धित।
इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
अ़जऱ्ीदाÓवा (अ़.पु.)-नालिश के ब्यौरे का का$गज़, वादपत्र, वादी की तर$फ
से दायर किया गया पत्र; वह प्रार्थना-पत्र, जिसमें पूरा हाल लिखकर मुद्दई
अ़दालत में नालिश करता है।
अजऱ्ीन (अ़.पु.)-'अजऱ्Ó का बहुवचन, भूमियाँ, ज़मीनें।
अ़जऱ्ीनवीस (अ़.$फा.पु.)-वह, जो दूसरों की अ़जिऱ्याँ या प्रार्थना-पत्र लिखता हो।
अजऱ्ीर (अ़.पु.)-सीसा नामक एक धातु, रांगा, रांग।
अजऱ्ुकुनिंदा (अ़.पु.)-प्रार्थी, आवेदक।
अजऱ्े उम्र (अ़.स्त्री.)-दे.-'अजऱ्े हयातÓ।
अ़जऱ्े हयात (अ़.स्त्री.)-सांसारिक सुख, जीवन के आनन्द, सुख-चैन में
जीवन व्यतीत करना।
अर्ज़े़ हाल (अ़.पु.)-अज़ऱ्ी, हालत बयान करना।
अर्तंग ($फा.पु.)-चित्रकार का तख़्ता, जिसपर का$गज़ रखकर वह चित्र बनाता
है; चित्रकार 'मानीÓ के चित्रों का संचय।
अर्तजक ($फा.पु.)-बिजली, विद्युत, ब$र्क।
अर्ताल (अ़.पु.)-'रत्लÓ का बहु., शराब पीने का गिलास; किसी चीज़ का वज़न
करने के लिए आधा सेर का बाँट।
अर्द ($फा.पु.)-$गुस्सा, क्रोध, रोष।
अर्दब ($फा.पु.)-शतरंज के खेल में वह मोहरा, जो बादशाह को शह से बचाने के
लिए बीच में डाला जाए।
अर्नब (अ़.पु.)-खऱगोश, खरहा, शशक।
अ$र्फ (अ़.पु.)-सुगन्ध, ख़्ाुशबू। (कभी-कभी दुर्गन्ध के लिए भी यह शब्द
प्रयुक्त होता है)।
अ$र्फाÓ (अ़.वि.)-बहुत ऊँचा, उच्चतम।
अर्बईन (अ़.वि.)-चालीस।
अ़र्बजी (अ़.पु.)-दे.-'अऱाबजीÓ, गाड़ी हाँकनेवाला, गाड़ीवान।
अ़र्बद: (अ़.पु.)-बुरी अ़ादत, बुरा स्वभाव, कुस्वभाव, कुप्रकृति,
अ़ादतेबद; लड़ाकापन, कलहप्रियता, झगड़ालू-प्रवृति।
अ़र्बद:ख़्ाू (अ़.$फा.वि.)-कलह-प्रिय, वह जिसको क्लेश और झगड़ा पसन्द हो;
माÓशू$क, प्रेमपात्र, प्रेमी, प्रेमिका।
अ़र्बद:जू (अ़.$फा.वि.)-झगडऩे के लिए बहाने ढूँढऩेवाला; माÓशू$क, प्रेमपात्र।
अर्बाÓ (अ़.वि.)-चार, चार की संख्या; (पु.)-घनफल।
अ़र्बा (अ़.पु.)-ख़्ाालिस अऱब, शुद्ध जाति का अऱब।
अर्बाअ (अ.पु.)-अनेक घर, घर-समूह, मकानात; अनेक स्थान, स्थान-समूह, कई जगह, मकामात।
अ़र्बान: (अ़.पु.)-डफ, बड़ी खँजरी।
अ़र्बान (अ़.पु.)-अग्रिम धन, किसी सौदे का बयाना।
अर्बाब (अ़.पु.)-'रबÓ का बहु., योग्यता वाले, योग्य, पात्र, अहल; स्वामी,
मालिक; ज्ञाता या कर्ता आदि। 'अर्बाब-ए-ख़्िारदÓ-बुद्घिमान् लोग।
'अर्बाब-ए-चमनÓ-चमन में रहनेवाले, उपवनवासी।
अर्बाब-ए-मयख़्ाानाÓ-मयख़्ााने के लोग।
अर्बाबे अ़क़्ल (अ़.पु.)-अ़क़्लमंद लोग, मेधावी, बुद्धिवाले।
अर्बाबे इल्म (अ़.पु.)-विद्यावाले, विद्वज्जन, पढ़े-लिखे लोग।
अर्बाबे कमाल (अ़.पु.)-हुनरमंद लोग, गुणवान् लोग।
अर्बाबे $कलम (अ़.पु.)-लिखने-पढऩे का काम करनेवाले, लेखक;
साहित्यकारवर्ग, अदीब लोग।
अर्बाबे ख़्िारद (अ़.पु.)-बुद्घिमान् लोग।
अर्बाबे चमन (अ़.पु.)-बा$ग में रहनेवाले, उपवनवासी।
अर्बाबे निशात (अ़.पु.)-गाने-बजानेवाले, नाचने-गानेवाले।
अर्बाबे $फन (अ़.पु.)-विद्वज्जन, विद्वान् लोग, साहित्यकार लोग; कलाकार
लोग; शिल्पकार लोग।
अर्बाबे व$फा (अ़.पु.)-प्रेमीजन, अ़ाशि$क लोग; $िफदाई, भक्तगण।
अर्बाबे शुऊर (अ़.पु.)-तमीज़दार लोग, शिष्टजन; अ़क़्लमंद लोग, बुद्धिमान् लोग।
अर्बाबे सुखन (अ़.पु.)-शाइर, कवि।
अर्बाबे हुज्जत (अ़.पु.)-न्यायशास्त्र जानने वाले लोग, मंतिक जाननेवाले
लोग, न्यायिक, मंतिकी, तार्किक।
अर्बाबे हुनर (अ़.पु.)-दे.-'अर्बाबे कमालÓ अथवा 'अर्बाबे $फनÓ।
अर्म$गान ($फा.पु.)-भेंट, उपहार, तोह$फा।
अर्मद (अ़.वि.)-जिसकी आँखें आई हुई हों।
अर्मन ($फा.वि.)-एक देश, काकेशिया।
अर्मनी ($फा.वि.)-काकेशियन, काकेशिया का निवासी, अर्मन का निवासी।
अर्मान (तु.पु.)-इच्छा, ख़्वाहिश; लालसा, लालच; उत्कंठा, इश्तिया$क।
'मेरे अरमानों की दुनिया को जलाने के लिए, कोरे का$गज़ पे कोई लेके ख़बर
आता हैÓ-माँझी
अमु$गाँ ($फा.पु.)-भेंट, उपहार, तोह$फा, पुरस्कार।
अर्राव: (अ़.पु.)-एक यंत्र, जिससे $िकले अथवा दुर्ग पर बड़े-बड़े पत्थर
फेंके जाते हैं।
अर्वाह (अ़.पु.)-'रूहÓ का बहुवचन, रूहें, आत्माएँ; $फरिश्ते, देवदूत, मलाइक।
अ़र्श: (अ़.पु.)-घर की छत; जहाज़ की छत।
अ़र्श (अ़.पु.)-मुसलमानों के अनुसार आठवाँ या सबसे ऊँचा स्वर्ग, जहाँ
ईश्वर रहता है; ख़्ाुदा या भगवान् के रहने का सबसे ऊँचा स्थान, आकाश,
आसमान; तख़्त, सिंहासन। इसका 'अ़Ó उर्दू के ऐन से बना है। मुहा.-'अ़र्श
से $फर्श तकÓ-आसमान से ज़मीन तक। 'अ़र्श के तारे तोडऩाÓ-अजीब काम करना,
असंभव काम करना। 'अ़र्श पर चढ़ जानाÓ-बहुत अभिमानी होना, बहुत घमण्डी
होना। 'अ़र्श पर चढ़ानाÓ-बहुत $कद्र करना, किसी की ख़्ाुशामद करके उसे
घमण्डी बना देना। 'अ़र्श पर दिमा$ग पहुँचानाÓ-बहुत अभिमानी या घमण्डी बना
देना। (कहा.)-'अ़र्श से छूटी, खजूर में अटकीÓ-एक विपत्ति से छूटकर दूसरी
में फँसना।
अर्श (अ़.पु.)-लड़ाई, झगड़ा, $फसाद, $िफतना; युद्ध। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ से बना है। (सं.पु.)-एक रोग, बवासीर।
अ़र्श आशियाँ (अ़.वि.)-वह मनुष्य जिसका घर अ़र्श यानी आसमान पर हो, मृत,
स्वर्गीय, स्वर्गवासी।
अर्शद (अ़.वि.)-वह शिष्य, जिस पर गुरु ने सबसे अधिक परिश्रम किया हा;
सीधा रास्ता पानेवाला।
अ़र्श पाय: ($फा.वि.)-उच्च पदस्थ, अ़ाली मर्तबा, बड़ा रुतबा।
अ़र्शमुअ़ल्ला (अ़.पु.)-सबसे ऊँचा और आठवाँ स्वर्ग। अ़र्शेमुअ़ल्ला।
अ़र्श व$कार ($फा.वि.)-उच्च पदस्थ, अ़ाली मर्तबा, बड़ा रुतबा।
अ़र्श वि$कार ($फा.वि.)-दे.-'अ़र्श व$कारÓ, शुद्घ वही है।
अ़र्शी (अ.वि.)-अ़र्श या आसमान से सम्बन्ध रखनेवाला, अ़र्श या आसमान पर रहनेवाला।
अ़र्शेअक्बर ($फा.पु.)-आदमी का मन, दिल, हृदय।
अ़र्शे आÓज़म (अ़.पु.)-भगवान् के सिंहासन का स्थान।
अ़र्शे बरीं (अ़.पु.)-सबसे ऊँचा आकाश जहाँ भगवान् का निवास होता है।
अ़र्शमुअ़ल्ला (अ़.पु.)-सबसे ऊँचा स्वर्ग, अ़र्शमुअ़ल्ला।
अ़र्शे सानी (अ़.पु.)-कुर्सी, वह स्थान जहाँ तारे हैं, तारों से भरा आकाश।
अ़र्स: (अ़.पु.)-विलम्ब, देर; समय, वक़्त; अन्तर, $फासिला; क्षेत्र,
मैदान; शतरंज की बिसात। 'अ़र्से दराज़ सेÓ-बहुत समय से।
अ़र्स:गाह (अ़.$फा.स्त्री.)-मैदाने-जंग, रणक्षेत्र, समर-क्षेत्र, युद्ध
का मैदान। 'अ़र्स:गाह-ए-हश्रÓ-प्रलय का मैदान, $कयामत का मैदान।
अ़र्सए जंग (अ़.$फा.पु.)-युद्धक्षेत्र, रणभूमि, मैदाने जंग, समरांगण।
अ़र्सए ज़ीस्त (अ़.$फा.पु.)-जीवन का समय, जीवनकाल, जि़दगी का ज़माना।
अ़र्सए दराज़ (अ़.$फा.पु.)-दीर्घकाल, लम्बा समय, बहुत समय।
अ़र्सए दह्र (अ़.$फा.पु.)-संसार-रूपी मैदान।
अ़र्सए हयात (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अ़र्सए ज़ीस्तÓ।
अ़र्सए हश्र (अ़.पु.)-प्रलयक्षेत्र अथवा $कयामत का मैदान, जहाँ सब मुर्दे
एकत्र हों।
अर्सलाँ (तु.पु.)-सिंह, शेर, व्याघ्र; $गुलाम, दास, सेवक।
अर्सलान (तु.पु.)-सिंह, शेर, व्याघ्र; दास, $$गुलाम, सेवक।
अ़र्सा (अ़.पु.)-दे.-'अ़र्स:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़र्सागाह (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'अ़र्स:गा
अर्हम (अ.वि.)-बहुत अधिक दया करनेवाला, अति दयालु, महादयालु।
अल [अल्] (अ़.उप्.)-एक प्रत्यय जो, शब्दों से पहले लगकर उन पर ज़ोर देता
है, जैसे- 'अल$्गरज़Ó। (सं.पु.)-बिच्छू का डंक; विष, ज़हर।
अ़ल$क (अ़.स्त्री.)-जलौका, जौंक, रक्तपा; जमा हुआ रक्त; ऐसा प्रेम अथवा
शत्रुता जो छूटे नहीं; हर वह चीज़ जो लगने के बाद छूटे नहीं; हर वह चीज़
जो चिपक कर रह जाए। (सं.पु.)-मस्तक के इधर-उधर लटकते हुए बाल; बाल, केश,
लट; घुँघराले बाल, लच्छेदार बाल।
अल$काब (अ़.पु.)-दे.-'अल्$काबÓ, उपाधि; पदवी; प्रशंसा-पत्र, प्रशस्ति -पत्र।
अल$िकस्सा (अ़.$फा.अव्य.)-दे.-'अल्किस्स:
कि; संक्षेप में।
अलग (हिं.वि.)-पृथक्, जुदा, न्यारा, भिन्न; रक्षित, बचा हुआ। मुहा.-'अलग
करनाÓ-पृथक् करना, हटाना, छुड़ाना; चुनना, छाँटना; बेच डालना; निपटाना।
अलगऱज़ (अ़.वि.)-ख़्ाुलासा यह कि, तात्पर्य यह कि, मतलब यह कि। शुद्ध
उच्चारण 'अल्$गरज़Ó है।
अलग़ोज़: (अ़.पु.)-एक प्रकार की बाँसुरी, बाजा, अल$गोज़ा।
अलग़ोज़ा (अ़.पु.)-दे.-'अलग़ोज़:Ó।
अलताफ़ (अ़.पु.)-दे.-'अल्ता$फÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अ़लत्तवातुर (अ़.वि.)-लगातार, निरन्तर, मुसल्सल।
अलत्फ़ा ($फा.वि.)-लुच्चा, शोहदा, मुफ़्तख़्ाोर।
अलद [द्द] (अ़.वि.)-क्लेशप्रिय, बहुत ही झगड़ालू, कलहप्रिय, झगड़ा करनेवाला (वाली)।
अ़लद्दवाम (अ़.वि.)-सर्वदा, सदा, नित्य, सतत, हमेशा, सदैव।
अ़लद्दुलख़्िासाम (अ़.पु.)-दुश्मनों से बहुत रार ठाननेवाला, शत्रुओं से
बहुत झगड़ा करनेवाला।
अलत्$फा ($फा.वि.)-लुच्चा, शोहदा, मुफ़्तख़्ाोर।
अ़लन (अ.वि.)- ज़ाहिर, व्यक्त, प्रकट।
अलप अर्सलाँ (तु.पु.)-बहादुर शेर, तुर्की शासकों की उपाधि।
अ़ल$फ (अ़.स्त्री.)-सब्ज़ घास, हरी घास, हरा चारा।
अ़ल$फज़ार (अ़.$फा.पु.)-घास का मछान, पशुओं के चरने का स्थान, गोचर,
सब्ज़ाज़ार, चरागाह।
अल$फाज़ (अ़.पु.)-'ख़्ा$फ्ज़Ó का बहुवचन, अनेक शब्द, बहुत से शब्द, शब्द-समूह।
अलबत्ता (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्बत्त:Ó, निस्संदेह, बेशक; हाँ, बहुत ठीक;
लेकिन, परन्तु।
अ़लफ़ (अ़.पु.)-घास, चारा।
अ़लफज़़ार (अ़.पु.)-चरागाह, पशुओं के चरने का स्थान।
अलफ़ाज़ (अ़.पु.)-'लफ़्ज़Ó का बहुवचन, दे.-'अल्फ़ाज़Ó, शुद्घ उच्चारण वही
है, शब्द-समूह; पारिभाषिक शब्द।
अलबत्ता (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्बत्त:Ó, वही शुद्घ है।
अलम (अ़.पु.)-कष्ट, दु:ख, क्लेश, रंज, $गम। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ
अक्षर से बना है। 'अलम-नसीबÓ-जिसके भाग्य में दु:ख हो, बुरे भाग्यवाला।
अ़लम (अ़.पु.)-सेना के आगे रहनेवाला सबसे बड़ा झंडा, पताका, झंडा, ध्वजा;
पर्वत, पहाड़; प्रसिद्ध, मशहूर, ख्याति-प्राप्त। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ
से बना है।
अलमअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-दु:ख देनेवाला, दु:खप्रद, शोक-जनक, रंज बढ़ानेवाला।
अ़लमदार (अ़.$फा.वि.)-ध्वजावाहक, सेना के आगे झण्डा लेकर चलनेवाला,
पताकिक, झण्डाबरदार।
अलमनश्रह (अ़.वि.)-जगजाहिर, सबमें फैली हुई बात, वह बात जो अ़ाम हो गई
हो, सर्वविदित।
अलमनाक (अ़.$फा.वि.)-कष्टकर, कष्टप्रद, रंजदेह, खेद-जनक।
अ़लमबरदार (अ़.$फा.वि.)-ध्वजावाहक, सेना के आगे झण्डा लेकर चलनेवाला,
झण्डा उठानेवाला।
अलमस्त (अ़.$फा.वि.)-नशे में चूर, बदमस्त, बहुत ही मस्त, अल्मस्त।
अलमास ($फा.पु.)-दे.-'अल्मासÓ।
अलमीय: (अ़.पु.)-वह कहानी, जिसका अन्त शोकमय हो; कष्टसूचक बात; दु:खांत, ट्रैजिडी।
अ़लमास ($फा.पु.)-हीरा।
अ़लर्रग़्म (अ़.वि.)-विरुद्ध, प्रतिकूल, बरख़्िला$फ।
अ़लल इत्तिसाल (अ़.वि.)-निरन्तर, लगातार।
अ़लल इत्ला$क (अ़.वि.)-बिलकुल, नितांत, एकदम, $कतई।
अ़लल एÓलान (अ़.वि.)-खुल्लम-खुल्ला, सब प्रकार से प्रकट, प्रत्यक्ष,
खुलेअ़ाम, खुलेखज़ाने।
अ़लल ख़्ाुसूस (अ़.वि.)-मुख्यत:, विशेष रूप से, ख़्ाासकर।
अ़ललहाल (अ़.वि.)-तुरन्त, $फौरन, सद्य:, तत्काल, तत्क्षण, इसी समय।
अ़ललहिसाब (अ़.वि.)-बिना हिसाब किए उचिन्त में यूँ ही (धनदेना)।
अलविदा (अ़.स्त्री.)-रमज़ान मास का अंतिम शुक्रवार; विदा होते समय बोला
जानेवाला शब्द।
अ़लवी (अ़.पु.)-हजऱत अ़ली की वह संतान, जो हजऱत $फातिमा से अतिरिक्त है।
अलस्त (अ़.स्त्री.)-'अलस्तु बिरब्बिकुम $काल्बलाÓ का लघुरूप, सृष्टि की
उत्पत्ति के समय ईश्वर ने कहा था कि 'क्या मैं तुम्हारा ईश्वर नहीं हूँÓ,
तब सबने कहा था कि 'अवश्य ही तू हमारा ईश्वर है।Ó 'अलस्तÓ कहकर सृष्टिकाल
भी मान लिया जाता है।
अ़लस्सबाह (अ़.वि.)-बहुत सवेरे, मुँह अँधेरे, बहुत तड़के, प्रात:काल।
'अ़लस्सुब:Ó भी प्रचलित है।
अ़लस्सवा (अ़.वि.)-जितना एक को उतना ही सबको, बराबर-बराबर, एक-सा, सम-मात्रा।
अलहदगी (अ़.स्त्री.)-पार्थक्य, अलहदा या जुदा होने का भाव, विछोह की
प्रक्रिया, जुदाई; एकान्त।
अ़लहदा (अ़.वि.)-अलग, जुदा, पृथक्। शुद्ध उच्चारण 'अ़लाहदाÓ है, दे.-'अ़लाहदाÓ।
अलह$फीज़ो अलअमाँ (अ़.वा.)-ख़्ाुदा की पनाह।
अलहम्द उल्लिल्लाह (अ़.वा.)-ईश्वर की प्रार्थना हो।
अला (अ़.अव्य.)-होशियार, सावधान, ख़्ाबरदार। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ
अक्षर से बना है।
अ़ला (अ़.स्त्री.)-श्रेष्ठता, उच्चता, बुलन्दी; सम्मान, बुज़ुर्गी। इसका
'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अला ($फा.अव्य.)-सम्बोधन-सूचक शब्द, ऐ, ओए, हे। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ से बना है।
अ़ला (अ़.अव्य.)-ऊपर, पर। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अ़लाइ$क (अ़.पु.)-'अ़ला$क:Ó का बहुवचन, सम्बन्ध, रिश्ते, तअ़ल्लु$कात।
अ़ला$क: (अ़.पु.)-सम्बन्ध, लगाव, प्रेम-व्यवहार, दोस्ती; क्षेत्र, इला$का।
अ़ला$का (अ़.पु.)-दे.-'अ़ला$क:Ó और 'इला$क:Ó, शुद्घ वही हैं।
अलाच: (तु.पु.)-वह धारीदार कपड़ा, जो दुरंगा हो।
अ़लात (अ़.पु.)-लोहे का वह टुकड़ा, जिस पर रखकर गर्म लोहा कूटा जाता है,
निहाई, अहरन। (सं.पु.)-कोयला; अंगारा; जलती हुई लकड़ी।
अ़लानिय: (अ़.वि.)-सा$फ तौर से, स्पष्ट, खुल्लम-खुल्ला, उद्घोषित रूप से,
ज़ाहिरा, (ला.)-डंके की चोट पर।
अ़लानिया (अ़.वि.)-दे.-'अ़लानिय:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अ़लामत (अ़.स्त्री.)-लक्षण, पहचान,आसार; चिह्नï, निशान।
अ़लामते इम्तियाज़ (अ़.स्त्री.)-पदक, बैज, बिल्ला; सम्मान-सूचक-चिह्नï।
अ़लामते बुलू$ग (अ़.स्त्री.)-युवा होने के लक्षण, जवान होने के चिह्नï।
अ़लामते मर्दुमी (अ़.$फा.स्त्री.)-मर्दानगी के लक्षण, मर्द होने के
चिह्नï, पुरुष होने के लक्षण।
अ़लाय$क (अ़.पु.)-'अ़ला$क:Ó या 'इला$क:Ó का बहु., सम्बन्ध, लगाव,
प्रेम-व्यवहार, दोस्ती; क्षेत्र, इला$के।
अ़लालत (अ़.स्त्री.)-रोग, बीमारी। 'अ़लीलÓ का भाव।
अ़लाव: (अ़.अव्य.)-दे.-'इलाव:Ó वही शुद्ध रूप है, परन्तु उर्दू में
'अ़लाव:Ó भी बोलते हैं; सिवा, सिवाय, अतिरिक्त। 'अ़लाव: अज़ऱ्ीÓ या
'अ़लाव:बरींÓ-इसके अतिरिक्त, इसके सिवा।
अ़लावा (अ़.अव्य.)-दे.-'अ़लाव:Ó।
अ़लाहदा (अ़.वि.)-अलग, जुदा, पृथक्।
अ़ला हाज़ल $िकयास (अ़.अव्य.)-इस विचार के अनुसार, इस पर विचार करके, इस
पर $िकयास करके।
अलि$फ (अ़.पु.)-उर्दू वर्णमाला का पहला अक्षर, जो 'अÓ, 'इÓ और 'उÓ का काम देता है।
अलि$फ $कामताँ (अ़.पु.)-पलकें; निगाह।
अलि$फे कू$फी (अ़.पु.)-वक्र-वस्तु, टेढ़ी चीज़।
अलि$फे ताज़्यान (अ़.$फा.पु.)-शरीर पर हंटर पडऩे के निशान, देह पर कोड़ा
लगने के चिह्नï।
अ़लिय: (अ़.अव्य.)-उसके ऊपर।
अ़ली (अ़.वि.)-ईश्वर का एक नाम; हजऱत मुहम्मद के दामाद और चौथे ख़ली$फा
का नाम; उच्च, ऊँचा। (हिं.स्त्री.)-सखी, सहेली, (पु.)-अलि, भौंरा, भ्रमर।
अ़ली$क: (अ़.पु.)-घोड़े को दाना खिलाने का तोबड़ा।
अली$फ (अ़.वि.)-दोस्त, सखा, मित्र; महबूब, प्रेमपात्र पे्रमी, अ़ाशि$क;
एक जैसे स्वभाववाले।
अ़लीबंद (अ़.पु.)-एक आभूषण, जिसे स्त्रियाँ कलाई पर बाँधती हैं और हाथ की
उँगलियों में भी पहनती हैं; कुश्ती का एक पेंच; एक प्रकार का तावीज़ जो
जादू के कुप्रभाव को दूर करता है।
अलीम (अ़.वि.)-दु:खदायी, पीड़ा देनेवाला, कष्टजनक, दर्दना$क, पीड़ादायक,
दु:खद। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बना है। इस शब्द की उत्पत्ति
'अलमÓ से हुई है।
अ़लीम (अ़.वि.)-सर्वज्ञ, महाज्ञानी, सब कुछ जाननेवाला; ईश्वर का एक नाम।
इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है। इस शब्द की उत्पत्ति 'इल्मÓ से हुई
है।
अ़लील (अ़.वि.)-रुग्ण, रोगी, बीमार, अस्वस्थ; दूषित, निकृष्ट, खऱाब,
माÓयूब; कमज़ोर, दुर्बल; दर्दनाक।
अ़लेक सलेक (अ़.स्त्री.)-मामूली मुला$कात, साधारण परिचय।
अ़लैहा (अ़.अव्य.)-उस पर (स्त्री वाचक)।
अ़लैहि (अ़.अव्य.)-उस पर (पुरुष वाचक)।
अ़लैहिम (अ़.अव्य.)-उन सब पर (पुरुष वाचक)।
अल्अज़ब (अ़.अव्य.)-आश्चर्य के समय बोलते हैं, कितने आश्चर्य की बात है,
विचित्र बात है।
अल्अज़ल (अ़.वा.)-शीघ्रता करो, जल्दी करो, $फौरन करो।
अल्अ़तश (अ़.अव्य.)-प्यास लगने पर बोलते हैं, हाय पानी-हाय पानी, हाय
प्यास-हाय प्यास।
अल्अ़ब्द (अ़.पु.)-ईश्वर का सेवक (प्राय: पत्र लिखकर लोग अन्त में अपने
हस्ताक्षर से पहले ऐसा लिखते हैं ), प्रार्थना-पत्र पर हस्ताक्षर करने से
पहले यह शब्द लिखते हैं, 'प्रार्थी के दस्तख़्ात हैंÓ।
अल्अ़मान (अ़.अव्य.)-घबराहट के समय बोलते हैं-'बचाओ-बचाओÓ,
'त्राहि-त्राहिÓ, 'ईश्वर हमारी रक्षा करेÓ।
अल्आन (अ़.अव्य.)-अभी, इस समय, इसी वक़्त; अब तक; अभी तक।
अल्क़त (अ़.वि.)-काटा हुआ; रद किया हुआ; समाप्त किया हुआ; छोडऩा, निकाल
देना; जवाब देना, ख़्ात्म कर देना; ख़्ात्म, बस, इतिश्री, समाप्त।
अल्कन (अ़.वि.)-तुतलाकर बोलनेवाला, तोतला; जो स्पष्ट न बोल सके, हकलाकर
बोलता हो, हकला।
अल्$काब (अ़.पु.)-'ल$कबÓ का बहु., उपाधियाँ, प्रशस्तियाँ, ख़्िाताब;
प्रशस्ति-पत्र। 'अल्$काबो आदाबÓ-सम्बोधन की उपाधियाँ।
अल्काहिल (अ़.पु.)-सुस्त, प्रशान्त; प्रशान्त महासागर।
अल्$िकस्स: (अ़.अव्य.)-सारांश यह है कि, संक्षेप में, किंबहुना, इतना ही
पर्याप्त है, और अधिक क्या कहना।
अल्$िकस्सा (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्$िकस्स:Ó।
अल्ख़्ाालु$क (तु.पु.)-एक वस्त्र-विशेष।
अल्गऱज़ (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्$िकस्स:Ó।
अल्गय़ास (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्अ़मानÓ।
अल्च: (तु.पु.)-युद्ध में शत्रु से प्राप्त माल-असबाब और धन आदि।
अल्जज़ाइर (अ़.पु.)-अफ्ऱीका का एक देश, अल्जीरिया।
अल्ज़म (अ़.वि.)-अत्यावश्यक, अनिवार्य, बहुत ज़रूरी।
अल्जूअ़ (अ़.अव्य.)-भूख के समय कहते हैं- 'हाय भूख-हाय भूख, हाय रोटी-हाय रोटीÓ।
अल्त$फ (अ़.वि.)-कोमल और मुलायम, अत्यन्त मृदुल, बहुत मुलायम।
अल्तमश (तु.पु.)-सेनापति, $फौज का कमाण्डर।
अल्तमिश (तु.स्त्री.)-आगे चलनेवाली सेना; छह की संख्या।
अल्ता$फ (अ़.वि.)-'लुत्$फÓ का बहु., मेहरबानियाँ, दयाएँ, कृपाएँ, अनुकम्पाएँ।
अल्तून (तु.पु.)-स्वर्ण, सुवर्ण, सोना।
अल्प अर्सलाँ (तु.पु.)-दे.-'अलप अर्सलाँÓ, दोनों शुद्ध हैं।
अल्$फ (अ़.वि.)-सहस्र, हज़ार।
अल्$फाज़ (अ़.पु.)-'लफ़्ज़Ó का बहुवचन, अनेक शब्द, शब्द-समूह, पारिभाषिक-शब्द।
अल्$फा$फ (अ़.पु.)-आपस में लिपटे हुए वृक्ष।
अल्बत्त: (अ़.अव्य.)-लेकिन, परन्तु, किन्तु; अवश्य, ज़रूर; नि:संदेह, बेशक।
अल्बान (अ़.पु.)-'लबनÓ का बहुवचन, दुग्ध-समूह, दूध, अनेक प्रकार के दूध।
अल्बुजऱ् (अ़.पु.)-एक पहाड़।
अल्मई (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जो बहुत ही प्रवीण और प्रतिभावान् हो, वह
व्यक्ति जिसकी राय अथवा सलाह सदा ही ठीक होती हो।
अल्मदद (अ़.अव्य.)-कष्ट-दु:ख या भय के समय कहते हैं 'सहायता करो, बचाओ-बचाओÓ।
अल्मस्त (अ़.वि.)-मत्त, बहुत ही मस्त, नशे में चूर, बदमस्त।
अल्मस्ती ($फा.स्त्री.)-मत्तता, मस्ती, बदमस्ती।
अल्मान (अ़.पु.)-दे.-'अल्मानिय:Ó।
अल्मानिय: (अ़.पु.)-यूरोप का एक प्रसिद्ध देश, जर्मनी।
अल्मास ($फा.पु.)- एक बहुत ही मूल्यवान् रत्न, हीरा।
अल् मुख़्तसर (अ़.अव्य.)-दे.-'अल्$िकस्स:Ó।
अल्य: (अ़.स्त्री.)-कटिप्रदेश, नितम्ब, चूतड़, सुर्रान।
अल्यौम (अ़.पु.)-आज, आज का दिन।
अ़ल्लाती (अ़.वि.)-वे भाई-बहन, जिनकी माँ अलग-अलग हों मगर पिता एक हो,
सौतेले भाई-बहन।
अ़ल्ला$फ (अ़.वि.)-घसियारा, घास बेचने वाला, घसेरा।
अ़ल्लाम: (अ़.वि.)-महापण्डित, बहुत बड़ा विद्वान् और बुद्धिमान्, ऐसा
ज्ञानी जिसके इल्म की थाह न हो।
अल्हड़ (अ़.वि.)-अल्पवयस्क, कमउम्र, कमसिन; जिसे किसी काम का अनुभव न हो,
अकुशल, अनाड़ी; उजड्ड, गँवार; (पु.)-गाय का वह छोटा बछड़ा जिसके दाँत न
आये हों।
अ़ल्लाम (अ़.वि.)-बहुत बड़ा ज्ञानी, बहुत बड़ा विद्वान्, बहुविद्य।
अ़ल्लामा (अ़.वि.)-दे.-'अ़ल्लाम:Ó।
अ़ल्लामी (अ़.वि.)-दे.-'अ़ल्लाम:Ó।
अल्लाह (अ़.पु.)-प्रभु, भगवान्, ईश्वर, ख़्ाुदा, परमात्मा। 'अल्लाह
तअ़ालाÓ-सर्वश्रेष्ठ ईश्वर।
अल्लाह बेली (अ़.वा.)-ईश्वर सहायक है (प्राय: विदाई या अड़चन के समय इस
शब्द का प्रयोग करते हैं)।
अल्लाहो अक्बर (अ़.वा.)-ईश्वर महान् है (स्तुति या आश्चर्य-प्रदर्शन के
समय कहते हैं)।
अल्वंद ($फा.पु.)-'हमदानÓ में ईरान का एक पहाड़।
अल्वान (अ़.पु.)-'लौनÓ का बहु., अनेक रंग, रंग-समूह, बहुत से रंग।
अल्वाह (अ़.पु.)-'लौहÓ का बहु., पट्टिकाएँ, तख़्ितयाँ।
अल्विदा (अ़.पु.)-रमज़ान माह का अन्तिम शुक्रवार; विदा होते समय बोला
जानेवाला शब्द।
अल्विय: (अ़.पु.)-'लिवाÓ का बहु., पताकाएँ, झण्डे, ध्वजाएँ।
अल्स$ग (अ़.वि.)-जो अक्षरों का शुद्ध उच्चारण न कर सके तथा 'रÓ के स्थान
पर 'लÓ और 'शÓ के स्थान पर 'सÓ का उच्चारण करे अथवा बोले।
अल्सिन: (अ.स्त्री.)-'लिसानÓ का बहुवचन, जिह्वïाएँ, जीभें; भाषाएँ, ज़बानें।
अल्ह$क (अ़.वि.)-वस्तुत:, बेशक, य$कीनन, निस्संदेह, सचमुच, वास्तव में,
ह$की$कत में, सत्यत:।
अल्हम्द (अ़.स्त्री.)-$कुरान शरी$फ का आरम्भिक पद अर्थात् प्रथम अध्याय।
'अल्हम्दुलिल्लाहÓ-ईश्वर धन्य है, परमात्मा को धन्यवाद है।
अल्हान (अ़.पु.)-'लह्नÓ का बहुवचन, आवाज़ें।
अल्हाल (अ़.वि.)-अभी, इसी समय, तुरन्त, $फौरन, तत्क्षण।
अल्हासिल (अ़.अव्य.)-आखिऱकार, संक्षेप में यह कि, खुलासा यह कि, सारांश यह कि।
अवतार (अ़.पु.)-उर्दू में इसे 'औतारÓ लिखा जाता है; प्रादुर्भाव, अवतरण;
उतरना, नीचे आना; जन्म-ग्रहण, शरीर धारण करना; पुराणों के अनुसार देवताओं
का मानव-शरीर धारण करना; शरीर रचना, सृष्टि; मुहा.-'अवतार लेनाÓ-शरीर
धारण करना, जन्म लेना; अवतरित होना। 'लेने वाला है कोई वक़्त का अवतार
जन्म, मौज दर मौज अय गंगा तेरा जल महका हैÓ-माँझी
अवसर (सं.पु.)-उर्दू में 'औसरÓ के रूप में प्रयुक्त; समय, काल; अवकाश,
$फुर्सत; संयोग, इत्ति$फा$क। मुहा.-'अवसर चूकनाÓ-मौ$का हाथ से जाने देना;
'अवसर ताकनाÓ-मौ$का देखना; उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करना; 'अवसर मारा
जानाÓ-मौ$का निकल जाना, समय बीत जाना।
अवा (अ़.पु.)-सियार, गीदड़, श्रगाल।
अ़वाइ$क (अ़.पु.)-'अ़ाइ$क:Ó का बहु., घटनाएँें; बाधाएँ।
अ़वाइद (अ़.पु.)-'अ़ाइद:Ó का बहुवचन, बदले, सिले; लौटनेवाले, फिरनेवाले;
लाभ, मुना$फे, प्राप्तियाँ।
अवाइल (अ़.पु.)-'अव्वलÓ का बहुवचन, प्राथमिक, आरम्भिक, शुरूअ़ात,
आरम्भ-काल; वह डोरा जिसको चरख़े पर तान देते हैं अज्ञेर उसी से चरख़्ाा
चक्कर खाता है।।
अ़वा$िकब (अ़.पु.)-'अ़ा$िकब:Ó का बहु., पिछले हिस्से, अन्त के; काम के
नतीजे, फल, परिणाम।
अवाख़्िार (अ़.पु.)-पिछले हिस्से, अन्त के, अंतिम।
अ़वाति$फ (अ.पु.)-'अ़ातिब:Ó का बहुवचन, मेहरबानियाँ, कृपाएँ, अनुकंपाएँ।
अवान (अ़.पु.)-समय, काल, वक़्त। इसका 'अÓ उर्दू के 'अलि$फÓ से बना है।
(सं.पु.)-सूखे फल, मेवा; सांस लेने का कार्य।
अ़वान (अ़.स्त्री.)-सुहागिन, सधवा, वह औरत जिसका पति जीवित हो। इसका 'अ़Ó
उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
अवानी (अ़.पु.)-'आनिय:Ó का बहुवचन, बर्तन-समूह, अनेक बर्तन, भांड़े।
अ़वाम (अ़.पु.)-'अ़ामÓ का बहुवचन, सर्वसाधरण, अ़ाम लोग, जनसाधारण, जनता-जनार्दन।
अ़वाम उन्नास (अ़.पु.)-सर्वसाधारण, सब लोग, अ़ाम जनता; बाज़ारी आदमी, जाहिल।
अवामिर (अ़.पु.)-'आमिर:Ó का बहुवचन, आज्ञाएँ, आदेश, हुक्म।
अ़वामिल (अ़.पु.)-'अ़ामिल:Ó का बहुवचन, अ़मल करनेवालेे, कारकुन; अऱबी भाषा के कारक।
अ़वामुन्नास (अ़.पु.)-जनता-जनार्दन, सर्वसाधारण, जनसाधारण, अ़ामजन, अ़वाम।
अवायल (अ़.वि.)-'अव्वलÓ का बहुवचन, 'अवाइलÓ भी प्रयुक्त, शुरूअ़ात,
आरम्भ-काल; प्राथमिक, आरम्भिक, जैसे-'अवायल उम्रÓ-आरम्भिक जीवन; वह डोरा
जिसको चरख़े पर तान देते हैं और उसी से चरख़्ाा चक्कर खाता है।
अवारज: ($फा.पु.)-दैनंदिनी, दैनिकी, रोज़ की बातें या जमा-ख़्ार्च लिखने
की बही, रोज़नामचा, रोकड़-बही।
अवारजा ($फा.पु.)-दे.-'अवारज:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़वारात (अ़.पु.)-'अ़वार:Ó का बहुवचन, अनेक दोष, बहुत से ऐब, बुराइयाँ,
कमियाँ, त्रुटियाँ।
अवारिज: ($फा.पु.)-रोज की बातें या जमा-ख़्ार्च लिखने का रजिस्टर, हिसाब
की पुस्तिका, बही-खाता, एकाउंट-बुक।
अ़वारिज (अ़.पु.)-'अ़ारिज:Ó का बहुवचन, घटनाएँ, पेश आनेवाली चीज़ें;
बीमारियाँ, रोग-समूह।
अ़वारि$फ (अ़.पु.)-'अ़ारि$फÓ का बहुवचन, दान-दक्षिणाएँ, बख़्िशशें; उपकार
करनेवाले; पहचाननेवाले; ख़्ाुशबुएँ, सुगंधियाँ।
अ़वालिम (अ़.पु.)-'अ़ालमÓ का बहुवचन, बहुत से संसार, अनेक दुनियाएँ, सृष्टियाँ।
अ़वाली (अ़.पु.)-'अ़ालिय:Ó का बहु., ऊँची वस्तुएँ।
अवासत (अ़.स्त्री.)-'औसतÓ का बहु., दे.-'औसतÓ।
अ़वासि$फ (अ़.पु.)-'अ़ासि$फ:Ó का बहु., तेज़ हवाएँ, आँधियाँ।
अ़विर (अ़.वि.)-दुष्टात्मा, बुरी आत्मा।
अ़वील (अ़.पु.)-रोने के साथ आवाज़।
अ़वीस: (अ़.वि.)-दुष्कर, कठिन, मुश्किल।
अ़वीस (अ़.वि.)-दे.-'अ़वीस:Ó।
अव्वल (अ़.वि.)-प्रथम, पहला; मुख्य, प्रधान; प्रमुख, ख़्ाास, विशेष; सबसे
पहले; सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम।
अव्वलन (अ़.वि.)-पहले-पहल, सबसे पहला, सर्वप्रथम, आरम्भ का, शुरू में।
अव्वलीं (अ़.$फा.वि.)-प्रथम, पहला; सबसे पहलेवाला; प्रमुख, ख़्ाास,
विशेष; प्राचीन, पुराने। 'अव्वलीं रक़्सÓ-प्रथम नृत्य।
अव्वलीन (अ़.$फा.वि.)-दे.-'अव्वलींÓ।
अव्वलीयत (अ़.स्त्री.)-प्रथमता, पहलापन; प्रधानता।
अ़व्वा (अ़.पु.)-बहुत भौंकनेवाला कुत्ता; बूढ़ा ऊँट; तेरहवाँ नक्षत्र।
अ़व्वान (अ़.वि.)-अत्याचारी, ज़ालिम; क्षमा न करनेवाला, सख़्त पकड़ करनेवाला।
अ़व्वार: (अ़.वि.)-जिसका मन उचाट हो गया हो।
अव्विदा (अ़.पु.)-'वदीदÓ का बहु., मित्रगण, यार, दोस्त।
अ़शअ़श (अ़.अव्य.)-दे.-'अ़श्अ़श्Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
अशअ़ार (अ़.पु.)-दे.-'अश्अ़ारÓ।
अश$क [क़्क़] (अ़.वि.)-बहुत कठिन, बहुत मुश्किल। इसका 'अÓ उर्दू के
'अलि$फÓ अक्षर से बना है।
अ़श$क (अ़.पु.)-किसी को बहुत चाहना; किसी चीज़ से चिपक जाना, इश्$क। इसका
'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बना है।
अशकाल (अ़.स्त्री.)-दे.-'अश्कालÓ, वही शुद्घ है।
अशख़़्ाास (अ़.पु.)-'शख़्सÓ का बहु., दे.-'अश्ख़्ाासÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अश$गाल (अ़.पु.)-'शुग़्लÓ का बहु. दे.-'अश्ग़ालÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
अशज [ज्ज] (अ़.वि.)-जिसका सिर टूट अथवा फट गया हो, सरफटा।
अशजार (अ़.पु.)-'शजरÓ का बहु., दे.-'अश्जारÓ।
अशद [द्द] (अ़.वि.)-अत्यन्त कठिन, बहुत सख़्त; प्रचण्ड; अति तीव्र, घोर, बहुत तेज़।
अशफ़ाक़ (अ़.पु.)-'श$फ$कतÓ का बहु., दे.-'अश्फ़ाक़।
अ़शम (अ़.स्त्री.)-सूखी रोटी।
अशया (अ़.वि.)-दे.-'अश्याÓ, 'शैÓ का बहु.।
अ़शर: (अ़.पु.)-दस, दस की संख्या; महीने का दसवाँ दिन, महीने के दस दिन;
मोहर्रम की दसवीं तारीख़्ा; भूमि की आय का दसवाँ हिस्सा, जो मुसलमान
बादशाह राज-कर के रूप में लेते थे। 'अशर: अव्वलÓ-महीने के पहले दस दिन।
'अशर: सानीÓ-महीने के दूसरे दस दिन; ग्यारहवें साल से बीसवें साल तक का
वक़्त।
अशर [र्र] (अ़.वि.)-बहुत ही शैतान; बहुत ही धूर्त; अत्यधिक दुष्ट, बहुत ही पाजी।
अ़शर (अ़.वि.)-दे.-'अ़शर:Ó।
अशरफ़ (अ़.वि.)-दे.-'अश्रफ़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है, अत्यन्त शरी$फ, सज्जन।
अशरफ़ी (अ़.स्त्री.)-अश$र्फी, साने का सिक्का, स्वर्ण-मुद्रा, सोने की
मोहर। दे.-'अश्रफ़ीÓ, वही शुद्घ है।
अशरा (अ़.पु.)-दे.-'अशर:Ó, वही शुद्घ है।
अ़शरात (अ़.पु.)-दहाइयाँ, दस-दस के थोक।
अशरा$फ (अ़.पु.)-'शरी$फÓ का बहु., भले मानस, सज्जन पुरुष, नेक आदमी।
दे.-'अश्रा$फÓ, वही शुद्घ है।
अशरा$फत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अश्रा$फतÓ, भलमनसाहत।
अशरार (अ़.पु.)-'शरीरÓ का बहुवचन, दे.-'अश्रारÓ।
अशल [ल्ल] (अ़.वि.)-अपंग, अपाहिज, लुंजा, जिसके हाथ-पाँव काम न दें, विकलांग।
अशहब (अ़.वि.)-स्याह रंग, जिसमें सफ़ेदी की झलक हो, दे.-'अश्हबÓ, वही शुद्घ है।
अ़शाइर (अ़.पु.)-'अ़शीर:Ó का बहु., स्वजनगण; गोत्र या कुटुम्बवाले।
अ़शि$क: (अ़.पु.)-इश्$कपेचाँ, एक प्रसिद्घ बेल।
अशिद्दा (अ़.पु.)-'शदीदÓ का बहु., सख़्ती और अनीति करनेवाले, अत्याचार करनेवाले।
अशिया (अ़.स्त्री.)-'शैÓ का बहुवचन, दे.-'अश्याÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
अ़शी$क: (अ़.स्त्री.)-प्रेमिका, प्रेयसी, माÓशू$का।
अ़शीयत (अ़.स्त्री.)-रात, रात्रि, निशा।
अ़शीर: (अ़.पु.)-स्वजन, नातेदार; घरवाले, घर के लोग, बाल-बच्चे।
अ़शीर (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जो दूसरे किसी व्यक्ति के साथ रहन-सहन करता
हो; अज़ीज़, स्वजन; पड़ोसी, प्रतिवेशी।
अ़शू$क (अ़.वि.)-बहुत अधिक प्रेम करनेवाला।
अ़शूर (अ़.पु.)-महसूल, चुंगी का भाड़ा, शुल्क या कर।
अश्Óअ़: (अ़.स्त्री.)-'शुअ़ाअ़Ó का बहुवचन, रश्मियाँ, किरणें, शुअ़ाएँ।
अश्अऱीय: (अ़.पु.)-मुसलमानों का एक सम्प्रदाय, जिसका मत है कि मनुष्य
अच्छा-बुरा स्वयं करता है, ईश्वर का इसमें कोई हाथ नहीं होता।
अ़श्अ़श (अ़.अव्य.)-हर्ष सूचित करना, प्रसन्नता प्रकट करना; आश्चर्य, अचम्भा, हैरत।
अश्अ़ार (अ़.पु.)-'शेÓरÓ का बहुवचन, कविताओं के चरण, पद्य-समूह,
शेÓर-समूह, बहुत-से शेÓर, $गज़ल के अनेक शेÓर।
अश्क ($फा.पु.)-आँसू, अश्रु। 'अश्क-ए-मुहब्बतÓ-प्रेम-अश्रु।
'अश्क-ए-सर-ए-मिजग़ाँÓ-पलकों पर टिका या रुका हुआ आँसू।
अश्क अफ़्शाँ ($फा.वि.)-दे.-'अश्क $िफशाँÓ।
अश्क $िफशाँ ($फा.वि.)-आँसू बहानेवाला अर्थात् रोने वाला।
अश्कबार ($फा.वि.)-आँसू बरसानेवाला अर्थात् बहानेवाला, रोनेवाला। 'रोए
कभी न फूटकर ये चश्मे-अश्कबार, पगडंडियों की कोख से छाले मिले
बहुतÓ-माँझी
अश्$कर (अ़.वि.)-हर लाल वस्तु, जिसमें पीलापन और कालापन हो; वह घोड़ा
जिसकी गर्दन के बाल और पूँछ लाल हो; लाल और स$फेद।
अश्करेज़ ($फा.वि.)-दे.-'अश्क $िफशाँÓ, अश्रुवर्षक।
अश्कल ($फा.वि.)-पशुओं के पाँव बाँधने की रस्सी; वह डोरी जिससे ऊँट की
काठी कसते हैं।
अश्$का (अ़.वि.)-बहुत ही शक्की; बहुत ही निर्दय, क्रूर।
अश्काल (अ़.स्त्री.)-'शक्लÓ का बहुवचन, शक्लें, सूरतें, मुखाकृतियाँ।
अश्$िकया (अ़.पु.)-'श$कीÓ का बहुवचन, निर्दय और कठोर हृदयवाले।
अश्कील (अ़.पु.)-वह घोड़ा, जिसका सीधा हाथ और उलटा पाँव स$फेद हो।
अश्के बुलबुल (लखनवी उर्दू)-अ$फीम की जऱा-सी मात्रा।
अश्ख़्ाास (अ़.पु.)-'शख़्सÓ का बहुवचन, मनुष्यों का समूह, बहुत से लोग,
अनेक व्यक्ति, जनसमूह।
अश्ख़्ाुस (अ़.पु.)-'शख़्सÓ का बहुवचन, अनेक लोग।
अश्ग$र्फ ($फा.वि.)-प्रतिष्ठित, पूज्य, महान्, बुज़ुर्ग।
अश्ग़ल (अ़.वि.)-बहुत अधिक काम में व्यस्त, बहुत अधिक काम से घिरा हुआ,
बहुत अधिक मश्$गूल।
अश्ग़ाल (अ़.पु.)-'शुग़्लÓ या 'शग़्लÓ का बहु. काम-धंधे, मश्$गलेे।
अश्जाÓ (अ़.वि.)-बहुत बहादुर, बहुत ही वीर, बड़ा ही शूरवीर, पराक्रमी,
विक्रमी, महावीर।
अश्जार (अ़.पु.)-'शजरÓ का बहु., पेड़ों या दरख़्तों का झुण्ड, अनेक पेड़,
बहुत-से वृक्ष, वृक्ष-समूह।
अश्तात (अ़.पु.)-'शतीतÓ का बहु., अस्त-व्यस्त और तितर-बितर वस्तुएँ।
अश्ताद ($फा.पु.)-ईरानी महीने की छब्बीसवीं तारीख़्ा।
अश्द$क (अ.वि.)-जिसके मुँह का दहाना चौड़ा हो, चौड़े दहाने वाला, चौड़े मुँहवाला।
अश्नाÓ (अ़.वि.)-अत्यन्त निम्न कोटि का, बहुत ही बुरा, बहुत ही ख़्ाराब, निकृष्टतम।
अश्$फा (अ़.स्त्री.)-चमड़ा सीने की सुताली।
अश्$फाÓ (अ़.वि.)- अत्यधिक सि$फारिश करनेवाला।
अश्$फा$क (अ़.पु.)-'श$फ$कतÓ का बहु., मेहरबानियाँ, कृपाएँ, अनुकम्पाएँ,
बड़ों की इनायतें, अनुग्रह।
अश्बाक (अ़.पु.)-'शबक:Ó का बहुवचन, अनेक जाल, बहुत से फ़न्दे।
अश्बाल (अ़.पु.)-'शिब्लÓ का बहुवचन, सिंह-शावक, शेर के बच्चे।
अश्बाह (अ़.पु.)-'शिबह:Ó का बहुवचन, अनेक उदाहरण, मिसालें।
अश्बाह (अ़.पु.)-'शबहÓ और 'शब्हÓ का बहुवचन, अनेक लोग, बहुत-से व्यक्ति;
बहुत-से जिस्म, बहुत-से शरीर, बदन-समूह।
अश्या (अ़.स्त्री.)-'शैÓ का बहुवचन, वस्तुएँ, चीज़ें।
अश्याअ़ (अ़.पु.)-'शीअ़:Ó का बहुवचन, मित्र-मण्डल, मित्रों के समूह।
अ़श्र (अ़.पु.)-दस, दहाई; मुहर्रम की दसवीं तारीख़्ा; मुहर्रम के दस दिन।
अश्रफ़ (अ़.वि.)-बहुत ही सज्जन, कुलीनतम, बहुत अच्छे कुल का; बहुत ही
शरी$फ, बहुत ही प्रतिष्ठित।
अश्रा$फत (अ़.स्त्री.)-सज्जनता, शरा$फत, भलमनसाहत।
अश्रफ़ी (अ़.स्त्री.)-अश$र्फी, सोने का सिक्का, स्वर्ण-मुद्रा, सोने की मोहर।
अश्र$फुल अश्रा$फ (अ़.वि.)-कुलीनतम, कुलीन जनों में सबसे कुलीन।
अश्रफ़ुल मुख़्लू$क (अ़.वि.)-मनुष्य, आदमी; समस्त प्राणी-जगत में सबसे श्रेष्ठ।
अश्रम (अ़.वि.)-जिसकी नाक फटी हो, नकफटा।
अश्रा$फ (अ़.पु.)-'शरी$फÓ का बहुवचन, सज्जन लोग, शरी$फ लोग, नेक आदमी,
अच्छे ख़्ाानदानवाले।
अश्रार (अ़.पु.)-'शरीरÓ का बहुवचन, शरीर लोग, धूर्त लोग, बहुत बुरे आदमी,
दुष्टात्माजन।
अश्रिव: (अ़.पु.)-'शराबÓ का बहुवचन, मद्य-समूह, मदिराएँ, शराबें; पीने की चीज़ें।
अ़श्व: (अ़.पु.)-दे.-'इश्व:Ó।
अश्व$क (अ़.वि.)-अत्यन्त शौ$कीन, बहुत ही शौ$कवाला।
अश्वा$क (अ़.पु.)-'शौ$कÓ का बहुवचन, व्यसन-समूह, आदतें, टेबें; अभिलाषाएँ, चाहतें।
अश्हब (अ़.वि.)-हर वह काली चीज़, जिसमें स$फेदी अधिक हो; सब्ज़ा घोड़ा,
जिसके स$फेद बालों में कालेबाल अधिक हों।
अश्हर (अ़.वि.)-सुप्रसिद्ध, बहुत अधिक प्रसिद्ध, ख्यात, बहुत मशहूर।
अश्हल (अ़.वि.)-काली आँखोंवाला पुरुष; पीलापन लिये हुए काला रंग।
अश्हा (अ़.वि.)-अत्यन्त उत्कंठित, बहुत अधिक उत्कंठा रखनेवाला, अति
उत्सुक; बहुत अधिक रुचिकर, बहुत-ही म$र्गूब।
असगऱ (अ़.वि.)-लघुतर, बहुत अधिक छोटा। दे.-'अस्गऱÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
असद: (अ़.स्त्री.)-मादा शेर, शेरनी, व्याघ्री, सिंहिनी।
असद (अ़.पु.)-शेर, सिंह, व्याघ्र; सिंह-राशि।
असदुल्लाह (अ़.पु.)-अल्लाह का शेर; हज़रत अ़ली की उपाधि; सुप्रसिद्घ शाइर
मिर्जा $गालिब का वास्तविक नाम।
असना (अ़.अव्य.)-बीच में, दौरान में; बीच, मध्य, दरमियान। दे.-'अस्नाÓ,
वही शुद्घ है। (हिं.पु.)-शाल के समान एक वृक्ष जिसकी लकड़ी मकान बनाने के
काम आती है।
असनाद (अ़.पु.)-'सनदÓ का बहुवचन, दे.-'अस्नादÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
असफ़ (अ़.पु.)-अत्यधिक दु:ख, सख़्त रंज, बहुत अधिक खेद।
असफ़ल (अ़.वि.)-दे.-'अस्$फलÓ।
अ़सब: (अ़.पु.)-पट्ठा, स्नायु; लड़के आदि, पुत्रादि; अपने लोग, स्वजन लोग।
अ़सब (अ़.पु.)-शरीर का पट्ठा, स्नायु।
असबात (अ़.पु.)-दे.-'इस्बातÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, सिद्घ या प्रमाणित
करने की क्रिया या भाव।
अ़सबात (अ़.पु.)-'अ़सब:Ó का बहु., लड़के या नातेदार (पुरुष लोग)।
असबाब (अ़.पु.)-'सबबÓ का बहु., दे.-'अस्बाबÓ।
अ़सबीयत (अ़.स्त्री.)-पक्षपात अथवा तर$फदारी; दूसरों की अपेक्षा अपने
लोगों को लाभ पहुँचाने की भावना।
असम [म्म] (अ़.वि.)-बिलकुल बहरा, निपट बधिर, जिसको बिलकुल भी सुनाई न
पड़े। (सं.वि.)-जो सम न हो, जो बराबर न हो; ऊबड़खाबड़, ऊँचा-नीचा; विषम;
एक काव्यालंकार जिसमें उपमान का मिलना असंभव प्रदर्शित किया जाए।
असमत (अ़.स्त्री.)-दे.-'इस्मतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
असमार (अ़.पु.)-'समरÓ का बहु., दे.-'अस्मारÓ, फल, मेवे।
असर [र्र] (अ़.वि.)-प्रमुदित, बहुत-ही आनन्दित, प्रसन्नचित्त, बहुत-ही
मस्रूर। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
असर (अ़.पु.)-प्रभाव; गुण, तासीर; निशान, चिह्नï। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ
अक्षर से बना है।
असरअंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-प्रभावित करनेवाला, असर डालनेवाला।
असरअंदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री..)-प्रभावित करना, असर डालना।
असरदार (अ़.पु.)-प्रभावशाली, जो असर रखता हो।
असरपज़ीर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'असर पिज़ीरÓ, वही शुद्घ है।
असर पिज़ीर (अ़.$फा.वि.)-जो प्रभावित हुआ हो, जिस पर असर पड़ा हो,
प्रभावित, मुतअ़स्सिर।
असर पिज़ीरी (अ़.$फा.स्त्री..)-प्रभाव पडऩा, मुतअ़स्सिर होना, प्रभावित होना।
असरा$फ (अ़.पु.)-दे.-'इस्रा$फÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
असरार (अ़.पु.)-'सिरÓ का बहुवचन, दे.-'अस्रारÓ, वही शुद्घ उच्चारण है, भेद, रहस्य।
अ़सल (अ़.पु.)-शहद, मधु।
असल (अ़.स्त्री.)-नींव, आधार, बुनियाद; जड़, मूल; सत्य, सच; यथार्थ,
वा$कई; ख़्ाालिस, बेमेल, शुद्घ; मूलधन। दे.-'अस्लÓ, शुद्घ उच्चारण वही
है। 'असल मय सूदÓ-ब्याज सहित मूलधन। 'असल-ए-शुहूद-ओ-शाहिद-ओ-मशहूद एक
हैÓ-देखना भी वही, देखनेवाला भी वही और जिसे देखा जा रहा है वह भी वही।
असलह (अ़.पु.)-'सिलाहÓ का बहुवचन, दे.-'अस्लिह:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है,
हथियार, शस्त्र।
असलहख़्ााना (अ़.पु.)-दे.-'अस्लिह:ख़्ाान:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है, शस्त्रागार।
असला (अ़.वि.)-नितांत, बिलकुल, ज़रा भी, कुछ भी, दे.-'अस्लाÓ, शुद्घ
उच्चारण वही है।
असलाब (अ़.पु.)-'सुल्बÓ का बहुवचन, दे.-'अस्लाबÓ, वही शुद्घ है।
असलियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अस्लीयतÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, असल का भाव, वास्तकिता।
असली (अ़.वि.)-दे.-'अस्लीÓ, शुद्घ उच्चारण वही है, सच्चा, खरा।
असवद (अ़.वि.)-दे.-'अस्वदÓ, काला।
असवार (अ़.पु.)-सवार, अश्वारोही। दे.-'अस्वारÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
असस (अ़.स्त्री.)-नींव, बुनियाद। इसका 'अÓ उर्दू के अलि$फÓ से बना है।
अ़सस (अ़.पु.)-कोतवाल; रात में गश्त करनेवाला; पहरेदार, चौकीदार। इसका
'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से बना है।
असह [ह्ह] (अ़.वि.)-एकदम शुद्ध, विशुद्ध; बहुत-ही ठीक, बहुत-ही सही।
अ़सा (अ़.अव्य.)-सम्भव है कि ऐसा हो, $करीब है कि ऐसा हो; विश्वास,
य$कीन, निश्चय; शायद; ऊहापोह। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ से बना है।
अ़सा (अ़.पु.)-हाथ में पकडऩे की लकड़ी, लाठी, छड़ी; सोंटा, डंडा। इसका
'उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है। 'अ़साए पीरीÓ-बुढ़ापे का सहारा।
अ़साकिर (अ़.पु.)-'अ़स्करÓ का बहुवचन, सेनाएँ, $फौजें।
अ़सा$िगर (अ़.पु.)-'अ़स्$गरÓ का बहुवचन, छोटे लोग; बच्चे, बालक।
असातिज़: (अ़.पु.)-'उस्ताज़Ó का बहुवचन, गुरुजन, अध्यापकगण, शिक्षकगण,
पढ़ानेवाले, शिक्षा देनेवाले।
असातीन (अ़.पु.)-'उस्तुवान:Ó का बहुवचन, अनेक खम्बे, बहुत-से स्तम्भ, अनेक सुतून।
असातीर (अ़.पु.)-'उस्तुर:Ó का बहुवचन, गाथाएँ, कथाएँ, कहानियाँ, $िकस्से।
असादि$क (अ़.पु.)-'अस्द$कÓ का बहुवचन, सत्यनिष्ठ लोग, बहुत-ही सच्चे व्यक्ति।
असा$िफल (अ़.पु.)-'अस्$फलÓ का बहुवचन, अधम लोग, नीच लोग, कमीने लोग, आवाराजन।
असा$फी (अ़.पु.)-'उस्$फीय:Ó का बहुवचन, चूल्हे के पाये।
अ़सा$फीर (अ़.पु.)-'उस्$फूरÓ का बहुवचन, घरेलू चिडिय़ा, गौरैया, चटकगण।
अ़साबर्दार (अ़.पु.)-चोबदार, जो सवारी के साथ सुरक्षा के लिए चलते हैं।
असाबेÓ (अ़.पु.)-'इस्बाÓ का बहुवचन, उँगलियाँ।
असामी (अ़.पु.)-'अस्माÓ का बहुवचन, नामावली, नाम; किसान, काश्तकार, रैयत;
किसी दुकानदार या महाजन से लेन-देन रखनेवाला। इसका सÓ उर्दू के 'सीनÓ
अक्षर से बना है। मुहा.-'असामी बनानाÓ-अपने मतलब पर चढ़ाना।
असामी (अ़.पु.)-अपराधी लोग, मुज्रिम (मुजरिम) लोग; पापी लोग, गुनहगार
लोग। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
अ़सामीर (अ़.पु.)-'उस्मूरÓ का बहुवचन, अनेक रहट, बहुत-से डोल।
अ़सार (अ़.स्त्री.)-$गरीबी, दरिद्रता, कंगाली; $फ$कीरी, संन्यास, साधुपन।
(सं.वि.)-साररहित, तत्त्व-शून्य, नि:सार; खाली, शून्य; तुच्छ;
(सं.पु.)-रेंड का पेड़; अगरु, चन्दन।
असारून (अ़.स्त्री.)-एक इकाई।
असालत (अ़.स्त्री.)-जन्म का प्रभाव, जात व खानदान का असर; असल का भाव,
सच्चाई, वास्तविकता, असलियत; खरापन; शरा$फत, कुलीनता, सौजन्य। 'असालत में
$फर्क़ होनाÓ-दोगला होना, वर्णसंकर होना।
असालतन (अ़.क्रि.वि.)-स्वयं, अपने आप, ख़्ाुद, बराहे रास्त।
असालीब (अ़.पु.)-'उस्लूबÓ का बहुवचन, तजऱ्, ढंग, तरी$का; शैलियाँ, पद्यतियाँ।
असाविर: (अ़.पु.)-'अस्विर:Ó का बहुवचन, बाजूबन्द; एक $कौम।
असास: (अ़.पु.)-कपड़ा-लत्ता, जेवर आदि सामान; पँूजी, सरमाया; धन-संपत्ति,
दौलत; सामान, सामग्री।
असास (अ़.स्त्री.)-जड़, नींव, बुनियाद। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
असास (अ़.पु.)-सामान, सामग्री, असबाब। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
असास उल बैत (अ़.पु.)-गृहस्थी का सामान, घर का सामान।
अ़सिर (अ़.वि.)-दुश्कर, मुश्किल, कठिन, दुश्वार।
असिह्हा (अ़.पु.)-'सहीहÓ का बहुवचन, स्वस्थ लोग, तन्दुरुस्त लोग।
असी (अ़.वि.)-खिन्न, दु:खित, $गमगीन। (सं.स्त्री.)-काशी में गंगा से
मिलनेवाली एक नदी, जो अब केवल नाले के समान रह गई है।
अ़सीद: (अ़.पु.)-एक प्रकार का हलुवा।
असी$फ (अ़.वि.)-दु:खित, खेदग्रस्त, रंजीदा।
अ़सीब (अ़.वि.)-तर$फदार, पक्षपाती; स्वजन, आत्मीयजन, रिश्तेदार।
असीम (अ़.वि.)-अपराधी, दोषी; पाप करनेवाला, पापी, गुनहगार।
(सं.वि.)-सीमा-रहित, बेहद; अपरिमित, अनंत; अपार, अगाध।
अ़सीर (अ़.पु.)-गर्द, धूलि। इसका 'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ से तथा 'सÓ उर्दू के
'सेÓ अक्षर से बना है।
असीर (अ़.पु.)-आकाश, आसमान; अन्तरिक्ष, $फज़ाए बसीत; उच्च, बुलन्द;
ख़्ाालिस, विशुद्ध, निष्केवल। इसका 'अÓ अलि$फ से तथा 'सÓ उर्दू के 'सेÓ
अक्षर से बना है।
असीर (अ़.वि.)-$कैदी, कारावासी, बन्दी।
'असीर-ए-हल्$का-ए-गेसू-ए-पेचाँ
घुँघराले बालों का $कैदी। इसका 'अÓ अलि$फ से तथा 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ
अक्षर से बना है।
अ़सीर (अ़.पु.)-निचोड़ा हुआ अऱक़; अंगूर की मदिरा। इसका 'अ़Ó ऐन से तथा
'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ से बना है।
अ़सीर (अ़.वि.)-कठिन, दुष्कर, क्लिष्ट, मुश्किल। इसका 'अ़Ó उर्दू के ऐन
तथा 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
असीरी ($फा.स्त्री.)-असीर या $कैद होने की अवस्था, $कैद; बन्दी जीवन, $गुलामी।
असील (अ़.वि.)-अच्छी नस्ल और उम्दा $कौम का घोड़ा; अच्छे कुल का, उच्च
वंश का, कुलीन, शरी$फ, सुशील; खरा, उत्तम; अच्छे लोहे से बना अस्त्र।
असीलत (अ.स्त्री.)-पैतृक अधिकार, मौरूसी $कब्ज़ा।
असीस (अ़.पु.)-कोतवाल। (हिं.स्त्री.)-आाशीर्वाद, दुअ़ा, आशिष।
अ़सू$फ (अ़.वि.)-अत्याचारी, दुराचारी, ज़ालिम, अनीति करनेवाला;
कुमार्गगामी, बुरे रास्ते पर जानेवाला। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से
बना है।
अ़सू$फ (अ़.पु.)-झंझावात, झक्कड़, अँधियाव, आँधी। इसका 'सÓ उर्दू के
'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अ़सूम (अ़.वि.)-बहुभक्षी, बहुत ज्य़ादा खानेवाला, भुक्खड़।
असूल (अ़.पु.)-'अस्लÓ का बहुवचन, शुद्ध शब्द 'उसूलÓ ही है मगर यह भी प्रचलित है।
अस्अ़द (अ़.वि.)-अत्यधिक मांगलिक, बहुत ही शुभ, बहुत ही मुबारक।
अस्$क$फ (अ़.वि.)-लम्बा और झुकी हुई कमरवाला पुरुष।
अ़स्कर (अ़.पु.)-लश्कर, सेना, $फौज; अँधेरा, रात का अंधकार; एक नगर का नाम।
अ़स्करी (अ़.वि.)-फ़़ौज या सेना से सम्बन्ध रखनेवाला, $फौजी, सिपाही, सैनिक।
अ़स्करीय: (अ़.स्त्री.)-सैन्य-सेवा, $फौजी ख़्िादमत।
अस्$कल (अ़.वि.)-बहुत ही भारी, अति गुरु, गुरुतम।
अ़स्$कलान (अ़.पु.)-शाम (सीरिया) का एक नगर।
अस्$काम (अ़.पु.)-'सुक़्मÓ का बहुवचन, रोग-समूह, बीमारियाँ; ख़्ाराबियाँ,
त्रुटियाँ, बुराइयाँ।
अस्$काल (अ़.पु.)-'सिक़्लÓ का बहुवचन, बोझ-समूह, बहुत-से बोझ।
अस्ख़्िाया (अ़.पु.)-'सखीÓ का बहुवचन, दाता लोग, दानशील लोग, देनेवाले लोग, दाताजन।
अस्$गर (अ़.वि.)-लघुतर, बहुत अधिक छोटा।
अ़स्जद (अ़.पु.)-सोना-चाँदी और रत्न।
अस्जाअ़Ó (अ़.पु.)-'सज्अ़Ó का बहुवचन, तुकान्त वाक्यावलि, ऐसी बातें
जिनमें वाक्यों के अन्त में तुक हों, मु$कफ़्$फा बातें।
अस्त ($फा.क्रि.)-अस्ति, है। (सं.वि.)-तिरोहित, छिपा हुआ; दिखाई न
पडऩेवाला, अदृश्य, डूबा हुआ; नष्ट, ध्वस्त; (सं.पु.)-लोप, अदर्शन,
तिरोधान।
अस्त$ग$िफर उल्लाह (अ़.वा.)-मैं ईश्वर से क्षमा माँगता हूँ, ईश्वर मुझे क्षमा करे।
अस्तबल (अ़.$फा.पु.)-घोड़ों को रखने की जगह, घुड़साल, तबेला, अश्वशाला।
अस्तर ($फा.पु.)-दोहरे या रुईदार कपड़े के नीचे की तह या पल्ला; दोतहा
कपड़े का भीतरी हिस्सा, भितल्ला; आधार, ज़मीन; चन्दन का तेल, जिसे आधार
बनाकर इत्र बनाये जाते है; वह कपड़ा, जिसे स्त्रियाँ साड़ी के नीचे लगाकर
पहनती हैं, अँतरौंटा, अन्तरपट; खच्चर, अश्वतर।
अस्तरकारी ($फा.स्त्री.)-दीवार पर पलस्तर लगाना; कपड़े में अस्तर लगाना।
अस्ताÓ (अ़.वि.)-बहुत ऊँचा; लम्बी गरदनवाला।
अस्तार (अ़.पु.)-'सत्रÓ का बहुवचन, पर्दे।
अस्तुख़्वाँ ($फा.स्त्री.)-अस्थि, हड्डी।
अस्तुरा ($फा.पु.)-दे.-'उस्तुर:Ó।
अस्द$क (अ़.वि.)-बहुत सच्चा, सत्यनिष्ठ।
अस्दाद (अ़.पु.)-'सदÓ का बहुवचन, रोक, रुकावटें।
अस्दाफ़ (अ़.पु.)-'सद$फÓ का बहुवचन, सीपियाँ, शुक्तियाँ।
अस्दि$का (अ़.पु.)-'सदी$कÓ का बहुवचन, मित्र-समूह, दोस्त लोग, सुहृद्जन।
अस्ना (अ़.अव्य.)-बीच में, दौरान में; बीच, दरमियान, मध्य। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सेÓ से अक्षर बना है।
अस्ना (अ़.वि.)-बहुत ऊँचा; बहुत उज्ज्वल। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अस्नाद (अ़.पु.)-'सनदÓ का बहुवचन, सनदें, प्रमाण-पत्र।
अस्नान (अ़.पु.)- 'सिन्नÓ का बहुवचन, दन्तावली, दाँत। (हिं.पु.)-स्नान,
नहाना, स्वच्छ अथवा शीतल करने के लिए सारा शरीर जल से धोना।
अस्ना$फ (अ़.पु.)-'सिन्$फÓ का बहुवचन, $िकस्में, प्रकार।
अस्नाम (अ़.पु.)-'सनमÓ का बहुवचन, मूर्तियाँ।
अस्नाय (अ़.पु.)-बीच का समय, दो घटनाओं के मध्य का काल।
अस्निय: (अ़.स्त्री.)-'सनाÓ का बहुवचन, स्तुतियाँ।
अस्प ($फा.पु.)-घोड़ा, अश्व, वाजि, घोटक, हय। संस्कृत में 'अश्वÓ का
मिलता-जुलता रूप।
अस्प$गोल ($फा.पु.)-एक प्रकार की भूसी, जो दवा में काम आती है, ईसबग़ोल।
अस्पदुवानी ($फा.स्त्री.)-घोड़ों की दौड़, घुड़दौड़।
अस्$फंज (अ़.पु.)-मुरदा बादल, स्पंज।
अस्$फर (अ़.वि.)-पीला, पीत, जर्द।
अस्$फल (अ़.वि.)-बहुत नीचा, सबसे नीचा; बहुत नीच, अधम, कमीना।
अस्$फलुस्सा$िफलीन (अ़.स्त्री.)-सातवाँ नरक, नरक का सातवाँ स्तर।
अस्$फा (अ़.वि.)- अत्यन्त स्वच्छ, बहुत सा$फ, एकदम निर्मल।
अस्$फाद (अ़.पु.)-'सफ़्दÓ का बहुवचन, $कैदें; ज़ंजीरें; बख़्िशशें, भेंटें।
अस्$फार (अ़.पु.)-'सिफ्ऱÓ का बहुवचन, बड़े ग्रंथ; 'स$फीरÓ का बहुवचन,
यात्री-गण, पथिक लोग; दूत लोग; 'स$फरÓ का बहुवचन, दिनों के प्रकाश। इसका
'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अस्$फार (अ़.पु.)-'सिफ्ऱÓ का बहुवचन, बिन्दियाँ, बिन्दु, नुक़्ते। इसका
'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अस्$िफया (अ़.पु.)-'स$फीÓ का बहुवचन, बुज़ुर्ग लोग, पूज्य लोग,
सम्मानितजन; ऋषि लोग।
अ़स्ब: (अ़.पु.)-स्नायु, पट्ठा।
अस्ब$क (अ़.वि.)-सर्वप्रथम, सबसे आगे, सबसे अव्वल।
अस्बक (अ़.पु.)-बड़ा तम्बू, बड़ा ख़्ोमा।
अस्बा$क (अ़.पु.)-'सब$कÓ का बहुवचन, अनेक पाठ, पुस्तक के पाठ।
अस्बा$ग (अ़.पु.)-'सब्$गÓ का बहुवचन, अनेक रंग, बहुत से रंग।
अस्बात (अ़.पु.)-'सिब्तÓ का बहुवचन, नाती, पोते।
अस्बाब (अ़.पु.)-'सबबÓ का बहु., कारण-समूह, वजहें; उपकरण, सामान,
सामग्री, ज़रूरत की वस्तुएँ। 'अस्बाब-ए-$गम-ए-इश्$कÓ-प्रेम के दु:ख के
साधन।
अस्बाबे ख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-गृह-सामग्री, घर का सामान।
अस्बाबे जंग (अ़.$फा.पु.)-युद्घ-सामग्री, लड़ाई का सामान।
अस्बाह (अ़.पु.)-'सुब्हÓ का बहुवचन, प्रभात-समूह, प्रात:काल-समूह, सुबहें।
अ़स्मत (अ़.स्त्री.)-इज़्ज़त, आबरू; स्त्री का पातिव्रत; मान, प्रतिष्ठा;
स्तीत्व। शुद्ध शब्द 'इस्मतÓ है मगर यह भी प्रचलित है।
अस्मन (अ़.वि.)-बहुत मोटा, बहुत चर्बीला।
अस्मर (अ़.वि.)-गेहुँआ, गेहुँए रंगवाला।
अस्मराँ (अ़.पु.)-गेहूँ, गंदुम, गोधूम।
अस्मा (अ़.पु.)-'इस्मÓ का बहुवचन, नामों की सूची, नामावली।
अस्माÓ (अ़.वि.)-छोटे कानोंवाला।
अस्माअ़ (अ़.पु.)-'सम्अ़Ó का बहुवचन, अनेक कर्ण, बहुत-से कान।
अस्मा उर्रिजाल (अ़.पु.)-बड़े-बड़े लोगों का नाम और उनकी कीर्तियों का वर्णन।
अस्मान (अ़.पु.)-'समनÓ का बहुवचन, क़ीमतें, मूल्य, लागतें।
अस्मार (अ़.पु.)-'समरÓ का बहु., फल, मेवे।
अस्या$फ (अ़.पु.)-'सै$फÓ का बहुवचन, तलवारें।
अ़स्र (अ़.पु.)-ज़माना, समय, काल, वक़्त; युग; दिन का अख़्ाीर हिस्सा,
दिन का चौथा पहर, सूर्यास्त से पहले का समय; सूर्यास्त से पहले की नमाज़,
संध्या की नमाज़। जैसे-'हम-अस्रÓ-समकालीन। 'रूहे अस्रÓ-युग की आत्म। इसका
'अ़Ó उर्दू के 'ऐनÓ तथा 'सÓ 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अस्र (अ़.पु.)-तलवार के लोहे की धारियाँ; मुहम्मद साहब की हदीस का वर्णन।
इसका 'अ'उर्दू के 'अलि$फÓ से तथा 'सÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
(सं.पु.)-कोना; रक्त, रुधिर; जल, पानी; आँसू, नयनजल।
अस्राÓ (अ़.वि.)-अति शीघ्र, बहुत जल्द; बहुत तेज़।
अस्रा (अ़.पु.)-'असीरÓ का बहुवचन, कारावासी, $कैदी लोग।
अ़स्रान: (अ़.$फा.पु.)-शाम को घर पर दी जानेवाली चाय आदि की हल्की-फुल्की दावत।
अस्रार (अ़.पु.)-'सिरÓ का बहुवचन, रहस्य, भेद, रहस्य, मर्म, राज़, गुप्त बात।
अ़स्रे अ़ती$क (अ़.पु.)-पुराना ज़माना, प्राचीनकाल, पुरातन-काल।
अ़स्रे $कदीम (अ़.पु.)-दे.-'अ़स्रे अ़ती$कÓ।
अ़स्रे जदीद (अ.पु.)-नवीन काल, मौजूदा समय, आधुनिक काल, आजकल का ज़माना।
अ़स्रे नौ (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अ़स्रे जदीदÓ।
अ़स्रे हाजि़र (अ़.पु.)-दे.-'अ़स्रे जदीदÓ।
अस्ल (अ़.स्त्री.)-नींव, आधार, बुनियाद; जड़, मूल; सत्य, सच; यथार्थ,
वा$कई; ख़्ाालिस, बेमेल, शुद्घ; मूलधन। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से
बना है। 'अस्ले-शुहूदो-शाहिदो-मशहूद एक हैÓ-देखना भी वही, देखनेवाला भी
वही और जिसे देखा जा रहा है वह भी वही।
अस्ल (अ़.पु.)-झाऊ का पेड़। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अस्लख़्ा (अ़.वि.)-गंजा, खल्वाट; बहुत सुख्ऱ्ा, अत्यन्त लाल। इसका 'सÓ
उर्दू के 'सीनÓ से बना है।
अस्लख़ (अ़.वि.)-जिसे सुनाई न पड़े, बधिर, बहरा। इसका 'सÓ उर्दू के
'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अस्लन (अ़.वि.)-वास्तव में, अस्ल में, यथार्थत:, वा$कई।
अस्लम (अ़.वि.)-बा$की, बचा हुआ; पूरा, पूर्ण; अति सुरक्षित, बहुत ही
मह$फूज़; अति सहिष्णु, मुतहम्मिल। इसका 'सÓ 'उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना
है।
अस्लम (अ़.वि.)-जिसके कान कटे हों, कनकटा, बूचा। इसका 'सÓ उर्दू के
'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
अस्लह (अ़.वि.)-बहुत ही सदाचारी; परम शुद्ध, बहुत ही उचित।
अस्ला (अ़.वि.)-नितांत, बिलकुल, ज़रा भी, कुछ भी, नाम को; किसी तरह, कदापि, हरगिज़।
अस्लाÓ (अ़.वि.)-जिसके सिर पर बाल न हों, स$फाचट, गंजा, खल्वाट।
अस्ला$फ (अ़.पु.)-'सल$फÓ का बहुवचन, प्राचीनकाल के लोग, अगले वक़्त के
लोग, पुरखा, पूर्वज, पुराने लोग, बुज़ुर्ग लोग।
अस्लाब (अ़.पु.)-'सुल्बÓ का बहुवचन, अपनी संतानें; औरस, नुत्$फे, पुश्तें, पीढिय़ाँ।
अस्लियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अस्लीयतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, सच्चाई, वास्तविकता।
अस्लिह: (अ़.पु.)-'सिलाहÓ का बहुवचन, अस्त्र-शस्त्र, हथियार।
अस्लिह:ख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-हथियारघर, शस्त्रागार, अस्त्रशाला, आयुधगार।
अस्ली (अ़.वि.)-अकृत्रिम, जो बनावटी अथवा नकली न हो; सत्य, सच्चा, खरा;
निष्केवल, विशुद्ध, ख़्ाालिस; यथार्थ, मूल, मुख्य, प्रधान।
अस्लीयत (अ़.स्त्री.)-वास्तविकता, सच्चाई, सत्यता, असल का भाव, यथार्थता।
अस्लुलउसूल (अ़.पु.)-मूल-सिद्घान्त, सिद्घान्त सूत्र, सम्पूर्ण नियमों की
जड़, सबसे बड़ा नियम।
अस्लुस्सूस (अ़.पु.)-मुलेठी नामक एक पेड़ की जड़।
अ़स्व (अ़.पु.)-छड़ी से मारना, बेंत से पीटना।
अस्वद (अ़.वि.)-अति कृष्णवर्णी, बहुत काला।
अस्वदोअह्मर (अ़.पु.)-'हबशÓ अफ्ऱीका और 'रूमÓ के देश।
अस्वब (अ़.वि.)-बहुत ही ठीक, शुद्ध और सही।
अस्वा$क (अ़.पु.)-'सू$कÓ का बहुवचन, बाज़ार-समूह, अनेक बाज़ार, बहुत-से बाज़ार।
अस्वात (अ़.स्त्री.)-'सौतÓ का बहुवचन, स्वर-समूह, आवाज़ें, ध्वनियाँ।
अस्वाब (अ़.पु.)-'सौबÓ का बहुवचन, वस्त्र-समूह, कपड़े।
अस्वार (अ़.पु.)-सवार, अश्वारोही। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
अस्वार (अ़.पु.)-'सौरÓ का बहुवचन, बहुत-से बैल। इसका 'सÓ उर्दू के 'सेÓ
अक्षर से बना है।
अस्विल: (अ़.पु.)-'सवालÓ का बहुवचन, प्रश्नावली, अनेक प्रश्न, सवालात।
अ़स्सार (अ़.पु.)-तेली, तेल निकालने और बेचनेवाला, तैलकार, रौ$गनगर।
अस्हल (अ़.वि.)-अति सुगम, बहुत ही आसान।
अस्हाब (अ़.पु.)-'साहिबÓ का बहुवचन, साहिबान; हज़रत मुहम्मद साहिब के सिहाबी।
अस्हाबुर्राय (अ़.पु.)-जिनकी राय हर विषय पर ठीक होती है, शुद्ध रायवाले,
सटीक रायवाले।
अस्हाबुश्शिमाल (अ़.पु.)-नरकवाले।
अस्हाबे कह्फ़ (अ़.पु.)-सात ईश्वर-भक्त, जो द$िकयानूस बादशाह के अत्याचार
से भयभीत होकर एक गुफा में छिप गए थे।
अस्हाबे $फह्म (अ़.पु.)-समझदार लोग, बुद्धिमान् लोग।
अस्हाबे $िफक्र (अ़.पु.)-गंभीर विचारक लोग, चिन्तनशील लोग।
अस्हाबे मिन्$कल (अ़.पु.)-गहरे मित्र, लंगोटिया यार, पक्के यार, मस्तमलंग
दोस्त, बेतकल्लु$फ दोस्त।
अस्हार (अ़.पु.)-प्रभात-समूह, सवेरे, प्रात:काल।
अह$क [क़्$क] (अ़.वि.)-जो बहुत अधिक ह$कदार हो।
अह$कर (अ़.वि.)-बहुत तुच्छ, दीनातिदीन (अत्यन्त विनम्रता दिखलाने के लिए
अपने स्वयं के सम्बन्ध में प्रयुक्त)।
अहकाम (अ़.पु.)-'हुक्मÓ का बहुवचन, आज्ञाएँ, आदेश, आज्ञापत्र। शुद्ध शब्द
'अह्कामÓ है।
अहद (अ़.वि.)-एक, एक की संख्या। (पु.)-ईश्वर, ख़्ाुदा, भगवान्।
अ़हद (अ़.पु.)-काल, समय, वक़्त, ज़माना; प्रतिज्ञा, शपथ, इ$करार, $कसम,
$कौल-$करार; दे.-'अ़ह्दÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
'अ़हद-ए-कुहनÓ-प्राचीनकाल, पुराने ज़माने। 'अ़हद-ए-व$फाÓ-प्रेम निभाने का
प्रण या वचन।
अ़हदनामा (अ़.पु.)-दे.-'अ़ह्दनाम:Ó, शुद्घ वही है।
अ़हदशिकन (अ़.वि.)-दे.-'अ़ह्दशिकनÓ।
अ़हदशिकनी (अ़.स्त्री.)-दे.-'अ़ह्दशिकनीÓ।
अहदियत (अ़.स्त्री.)-इकाई, एकत्व, एक होना, एकता।
अहदी (अ़.पु.)-बहुत बड़ा आलसी, दे.-'अह्दीÓ, वही शुद्घ है।
अहफ़ाद (अ़.पु.)-पोते, नवासे। दे.-'अह्फ़ादÓ, शुद्घ वही है।
अहबाब (अ़.पु.)-'हबीबÓ का बहुवचन, दे.-'अह्बाबÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अहम [म्म] (अ़.वि.)-मुख्य, विशेष, ख़्ाास; महत्त्वपूर्ण, ज़ोरदार, वज़नी।
अहम$क (अ़.वि.)-बेवु$कू$फ, निपट अनाड़ी, बहुत-ही मूर्ख, दे.-'अह्म$कÓ,
वही शुद्घ है।
अहमकाना (अ़.वि.)-दे.-'अह्म$कान:Ó, वही शुद्घ है।
अहमद (अ़.वि.)-बहुत प्रशंसनीय, दे.-'अह्मदÓ।
अहमदी (अ़.पु.)-मुसलमानों का एक वर्ग-विशेष। दे.-'अह्मदीÓ, वही शुद्घ है।
अहमर (अ़.वि.)-दे.-'अह्मरÓ।
अहम्मीयत (अ़.स्त्री.)-महिमा, महत्ता, वज़न; विशेषता, ख़्ाुसूसियत।
अहरन ($फा.स्त्री.)-दे.-'अह्रनÓ।
अहरमन ($फा.पु.)-दे.-'अह्रमनÓ।
अहरार (अ़.पु.)-'हुरÓ का बहुवचन, दे.-'अह्रारÓ।
अहल (अ़.पु.)-दे.-'अह्लÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
अहलकार (अ़.पु.)-दे.-'अह्लकारÓ।
अहलमद (अ़.पु.)-दे.-'अह्लमदÓ।
अहलियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अह्लीयतÓ, वही शुद्घ है।
अहलिया (अ़.स्त्री.)-स्त्री, पत्नी, दे.-'अह्लिय:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
अहले औरा$क (अ़.पु.)-भगवान् में विश्वास रखनेवाला, दे.-'अह्ले औरा$कÓ।
अहले $कलम (अ़.पु.)-दे.-अह्ले $कलमÓ।
अहले कलाम (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले कलामÓ।
अहले किताब (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले किताबÓ।
अहलेख़्ााना (अ़.पु.)-दे.-'अह्लेख़्ाान:Ó।
अहले गऱज़ (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले गऱज़Ó।
अहले ज़बान (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले ज़बानÓ।
अहले जहाँ (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले जहाँÓ।
अहले ज़ा (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले ज़ाÓ।
अहले दिल (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले दिलÓ।
अह्ले दस्तारे मुह्तरम (अ़.पु.)-प्रतिष्ठा की पगड़ी पहनने योग्य।
अहले दुनिया (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले दुनियाÓ।
अहले नजऱ (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले नजऱÓ।
अहले बैत (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले बैतÓ।
अहले मुहल्ला (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले मुहल्लाÓ।
अहले राय (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले रायÓ।
अहले रोजग़ार (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले रोजग़ारÓ।
अहले सुख़्ान (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले सुख़्ानÓ।
अहले सिनअ़त (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले सिनअ़तÓ।
अहले सुन्नत (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले सुन्नतÓ।
अहले हर$फा (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले हर$फाÓ।
अहले हुनर (अ़.पु.)-दे.-'अह्ले हुनरÓ।
अहाता (अ़.वि.)-शुद्ध शब्द 'इहात:Ó है मगर यह भी प्रचलित है। घेरा हुआ
स्थान या मैदान, बाड़ा; हल्क़ा, क्षेत्र, मण्डल।
अहाली (अ़.पु.)-'अह्लÓ का बहु., परिवार के अथवा साथ रहनेवाले लोग,
बन्धु-बान्धव; अनेक व्यक्ति, बहुत-से लोग; प्रतिष्ठितजन, सम्मानित लोग,
बड़े लोग।
अहासिन (अ़.पु.)-'अह्सनÓ का बहुवचन, शरी$फ लोग, सज्जन लोग, अच्छे लोग;
ख़्ाूबियाँ, अच्छाइयाँ, विशेषताएँ।
अहिब्बा (अ़.पु.)-'हबीबÓ का बहुवचन, अनेक मित्र, मित्रगण, यार-दोस्त, मित्र-मंडली।
अहिल्ल: (अ़.पु.)-'हिलालÓ का बहुवचन, नए चाँद।
अह्कम (अ़.वि.)-बहुत बड़ा शासक, बहुत बड़ा हाकिम; बहुत अधिक दृढ़, बहुत मज़बूत।
अह्कमुल हाकिमीन (अ़.पु.)-सारे शासकों के शासक, सारे हाकिमें के हाकिम
अर्थात् ईश्वर।
अह्क़ाद (अ़.पु.)-'हिक़्दÓ का बहु., द्वेष, शत्रुता, रंजिश।
अह्काम (अ़.पु.)-'हुक्मÓ का बहुवचन, आज्ञाएँ, आदेशें।
अह्ज़म (अ़.वि.)-अत्यन्त निपुण, बहुत प्रवीण, बहुत अधिक प्रतिभावान्।
अह्ज़ान (अ़.पु.)-'हुज्ऩÓ का बहुवचन, खेद-समूह, दु:ख-समूह, बहुत-से दु:ख,
बहुत-से रंज।
अह्ज़ाब (अ़.पु.)-'हिज़्बÓ का बहुवचन, दल-समूह, बहुत-से दल, अनेक पार्टियाँ।
अह्जार (अ़.पु.)-'हजरÓ का बहुवचन, पत्थर।
अ़ह्द (अ़.पु.)-काल, समय, वक़्त, ज़माना; राज्यकाल, शासनकाल; प्रतिज्ञा,
शपथ, इ$करार, $कसम, $कौल-$करार। 'अ़ह्दो पैमाँÓ-प्रतिज्ञा, $कौल-$करार,
$कस्मा-$कस्मी।
अ़ह्दनाम: (अ़.$फा.पु.)-प्रतिज्ञा-पत्र, इ$करारनामा।
अ़ह्दनामा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'अ़ह्दनाम:Ó, वही शुद्घ है।
अ़ह्द शिकन (अ़.$फा.पु.)-वह, जो कोई $करार करके उसके अनुसार काम न करे,
अपनी प्रतिज्ञा स्वयं भंग करनेवाला, वचन तोडऩेवाला।
अ़ह्दशिकनी (अ़.$फा.स्त्री.)-कऱार के मुताबिक काम न करना, प्रतिज्ञा
तोडऩा, वचन भंग करना।
अह्दा$क (अ़.पु.)-'हदक:Ó का बहुवचन, आँखों के ढेले।
अह्दियत (अ़.स्त्री.)-इकाई, एकत्व, एक होना।
अह्दी (अ़.वि.)-घोर आलसी, बहुत ही सुस्त, परम प्रमादी, बड़ा ही काहिल।
अ़ह्दे अ़ती$क (अ़.पु.)-प्राचीनकाल, पुराना समय, बीता युग, गुज़रा हुआ ज़माना।
अ़ह्दे इन्$िकलाब (अ़.पु.)-क्रान्ति का युग।
अ़ह्दे गुजि़श्ता (अ़.पु.)-बीता हुआ युग, गुजऱा हुआ समय।
अ़ह्दे जदीद (अ़.पु.)-नया ज़माना, आधुनिककाल, जो समय अब चल रहा है, वर्तमान।
अ़ह्देज़र्रीं (अ़.$फा.पु.)-स्वर्ण-युग, बहुत ही अच्छा ज़माना अर्थात् सुखद समय।
अ़ह्दे व$फा (अ़.$फा.पु.)-प्रेम निभाने का प्रण या वचन।
अ़ह्दे संग (अ़.$फा.पु.)-वह समय, जब मनुष्य पत्थर के अस्त्र प्रयोग करता
था, प्रस्तर-युग।
अ़ह्दे हाजि़र (अ़.पु.)-वर्तमान समय, आधुनिककाल, दौरे-हाजि़र, मौजूदा ज़माना।
अ़ह्दे हुकूमत (अ़.पु.)-शासन-काल, राज्य-काल, हुकूमत का ज़माना।
अह्न$फ (अ़.वि.)-जिसके घुटने एक ओर को झुके हुए हों और चलने में टकराएँ।
अह्फ़ाद (अ़.पु.)-'हफ़्दÓ का बहुवचन, नाती-पोते; नौकर-चाकर।
अह्बाब (अ़.पु.)-'हबीबÓ का बहुवचन, मित्रगण, दोस्त लोग, दोस्त-अहबाब।
अह्बार (अ़.पु.)-'हिब्रÓ का बहुवचन, बुद्धिमान् लोग; वैज्ञानिक लोग।
अह्म$क (अ़.वि.)-बेवु$कू$फ, महामूर्ख, निपट अनाड़ी, बहुत-ही मूर्ख,
नादान, बेअ़क़्ल।
अह्मकाना (अ़.वि.)-मूर्खतापूण, नादानी भरा।
अह्मज़ (अ़.वि.)-खट्टा, अम्ल।
अह्मद (अ़.वि.)-बहुत प्रशंसनीय, (पु.)-हज्ऱत मुहम्मद का नाम।
अह्मदी (अ़.पु.)-मुसलमानों का एक वर्ग-विशेष।
अह्मियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अहम्मीयतÓ, शुद्ध शब्द वही है।
अह्मर (अ़.वि.)-रक्तवर्ण, लाल, सुख्ऱ्ा, रक्तिम।
अह्माल (अ.पु.)-'हम्लÓ का बहुवचन, बोझ, बहुत-से बोझ।
अह्यान (अ़.पु.)-'हीनÓ का बहुवचन, समय, वक़्त, काल-समूह।
अह्यानन (अ़.वि.)-कभी-कभी; सहसा, एकाएक, अक्समात्, इत्ति$फा$कन।
अह्रन ($फा.स्त्री.)-निहाई, जिस पर रखकर सुनार, लुहार आदि कोई धातु पीटते हैं।
अह्रमन ($फा.पु.)-ईरान के अग्नि-पूजकों के मतानुसार 'बदीÓ अर्थात् बुराई
का ख़्ाुदा; शैतान, राक्षस।
अह्राम (अ़.पु.)-'हरिमÓ का बहुवचन, बहुत बूढ़े लोग।
अह्रार (अ़.पु.)-'हुरÓ का बहुवचन, स्वतंत्र लोग, आज़ाद लोग; शरी$फ लोग,
उदार लोग, दाता, दानी।
अह्रु$फ (अ़.पु.)-'ह$र्फÓ का बहुवचन, अक्षर-समूह, अनेक अक्षर, हुरू$फ।
अह्ल (अ़.वि.)-योग्य, पात्र, लाय$क; सभ्य; (पु.)-व्यक्ति, आदमी।
'अह्ल-ए-ख़्िारदÓ-बुद्घिमान् लोग, बुद्घिजीवी। 'अह्ल-ए-दर्दÓ-दु:खी
व्यक्ति। 'अह्ल-ए-जौहरÓ-गुणीजन। 'अह्ल-ए-दर्दÓ-दु:खी (प्रेमी, अ़ाशि$क)।
'अह्ल-ए-दस्तार-ए-मुह्तरमÓ-प्
रतिष्ठा की पगड़ी पहनने योग्य।
'अह्ल-ए-नज़रÓ-पारखी व्यक्ति। 'अह्ल-ए-स$फाÓ-निष्कपट लोग।
'अह्ल-ए-हवसÓ-लोलुप, लालची व्यक्ति।
अह्लकार (अ़.$फा.पु.)-सरकारी दफ़्तर में काम करनेवाला व्यक्ति, कर्मचारी,
कारकुन, कारिन्दा।
अह्लमद (अ़.पु.)-अ़दालत का वह कर्मचारी, जिसके पास किसी विभाग की मिसलें
या $फाइलें हों, अ़दालत के किसी विभाग का प्रधान मुंशी।
अह्ला (अ़.वि.)-बहुत ही मीठा।
अह्लाम (अ़.पु.)-'हुलुमÓ या 'हुल्मÓ का बहुवचन, स्वप्न-समूह, सपने, ख़्वाब।
अह्लिय: (अ़.स्त्री.)-स्त्री, पत्नी, जोरू, भार्या।
अह्लियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अह्लीयतÓ दोनों शुद्ध हैं।
अह्ली (अ़.वि.)-'वह्शीÓ का उल्टा; पालतू, पालू।
अह्लीयत (अ़.स्त्री.)-निपुणता, होशियारी; योग्यता, पात्रता, क़ाबिलीयत,
इस्तेह$का$क।
अह्ले अ़दम (अ़.पु.)-वे लोग जो मर चुके हैं, स्वर्गवासी, यमलोक के वासी, मृत।
अह्ले इल्म (अ़.पु.)-गुणीजन, का$फी पढ़े-लिखे लोग, विद्वान् लोग,
विद्वत्जन, ज्ञानी लोग, पण्डितजन।
अह्ले औरा$क (अ़.पु.)-भगवान् में विश्वास रखनेवाला, आस्तिक, ईश्वरनिष्ठ।
अह्ले $कलम (अ़.पु.)-शिक्षित-समुदाय, पढ़े-लिखे आदमी।
अह्ले कलाम (अ़.$फा.पु.)-लिखने-पढऩेवाले लोग; साहित्य-सेवी।
अह्ले किताब (अ़.पु.)-वह पै$गम्बर, जिस पर ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक उतरी
हो; जो किसी धर्मग्रन्थ में प्रतिपादित धर्म का अनुयायी हो; वह, जो किसी
ऐसे धर्म का अनुयायी हो जिसका उल्लेख $कुरान शरी$फ में हो।
अह्लेख़्ाान: (अ़.पु.)-घर के लोग, बाल-बच्चे, (स्त्री.)-घर की मालिकिन,
गृहस्वामिनी।
अह्ले ख़्िारद (अ़.पु.)-बुद्घिजीवी।
अह्ले ख़्ौर (अ़.पु.)-दानशील लोग, वे लोग जो परोपकार में दिल खोलकर दान
करते हैं, परोपकारी लोग।
अह्ले $गरज़ (अ़.पु.)-जिनका कुछ मतलब हो, $गरज़वाले, स्वार्थी लोग।
अह्ले ज़बान (अ़.$फा.पु.)-भाषाविज्ञ, किसी भाषा के विद्वान्, भाषा के
ज्ञानी-पण्डित।
अह्ले ज़मीं (अ़.$फा.पु.)-भूलोक में रहनेवाले प्राणी; ज़मीन पर बसनेवाले
लोग, सांसारिक लोग।
अह्ले जहाँ (अ़.$फा.पु.)-दुनियावाले, दुनिया में रहनेवाले।
अह्ले ज़ा (अ़.पु.)-सोग मनानेवाले, मातम करनेवाले, शोक मनानेवाले।
अह्ले जि़म्म: (अ़.पु.)-वे $गैर-मुस्लिम, जो किसी मुस्लिम राज्य में रहते
हों और अपने धार्मिक कृत्य छिपाकर करते हों।
अह्ले जौहर (अ़.पु.)-गुणीजन।
अह्ले दर्द (अ़.पु.)-दु:खी (प्रेमी, अ़ाशि$क)।
अह्ले दिल (अ़.पु.)-सहृदय, संतोषी।
अह्ले दुनिया (अ़.पु.)-सांसारिक प्राणी, इंसान, दुनियादार।
अह्ले नज़र (अ़.पु.)-पारखी, किसी चीज़ की परख रखनेवाले; प्रेम की नज़र रखनेवाले।
अह्ले बैत (अ़.पु.)-घर के लोग; मुहम्मद साहब के घर के लोग।
अह्ले मुहल्ला (अ़.पु.)-मुहल्लेवाले, पास-पड़ोस में रहनेवाले।
अह्ले राय (अ़.पु.)-एक-जैसी राय रखनेवाले लोग; समझदार लोग, दानिशमंद लोग।
अह्ले रोज़गार (अ़.$फा.पु.)-रोज़गार या व्यवसाय करने-वाले, व्यवसायी लोग;
नौकरी करनेवाले लोग।
अह्ले वतन (अ़.पु.)-देशवासी, वतनवाले।
अह्ले स$फा (अ़.पु.)-निष्कपट लोग।
अह्ले सुख़्ान (अ़.पु.)-कविजन, शायर लोग।
अह्ले सिनअ़त (अ़.पु.)-कारीगर, दस्तकार।
अह्ले सुन्नत (अ़.पु.)-सुन्नी लोग, मुसलमानों के एक तबका-विशेष के लोग।
अह्ले ह$क (अ़.पु.)-ईमानदार लोग, सच्चे लोग, सत्यनिष्ठ लोग; महात्मा लोग।
अह्ले हर$फा (अ़.पु.)-पेशेवर।
अह्ले हवस (अ़.पु.)-लोलुप, लालची लोग।
अह्ले हुक्म (अ़.पु.)-राजादेश, राज्य का $फर्मान।
अह्ले हुनर (अ़.पु.)-हुनरमंद, कला-कुशल।
अहलो अमाल (अ़.पु.)-स्त्री और बच्चे, पूरा परिवार।
अह्वज (अ़.वि.)-लम्बा-तगड़ा व्यक्ति; जल्दबाज़ी करनेवाला मूर्ख।
अह्वन (अ़.वि.)-अति सरल, अति सुगम, बहुत आसान।
अह्वल (अ़.पु.)-जिसे एक वस्तु की दो वस्तुएँ दिखाई दें, भेंगा।
अह्वा (अ़.स्त्री.)-'हवाÓ का बहुवचन, चाहतें, इच्छाएँ, ख़्वाहिशें।
अह्वाल (अ़.पु.)-'हालÓ का बहुवचन, विवरण, समाचार, हाल; घटनाएँ, हालात;
समस्याएँ, मुअ़ामले या मुअ़ामलात। 'अह्वाल-ए-बद-ओ-नेकÓ-बुरा-अच्छा हाल,
बुरा-अच्छा मुआमला।
अह्वाल (अ़.पु.)-'हौलÓ का बहुवचन, भय, डर, ख़्ाौ$फ।
अह्शा (अ़.पु.)-'हश्वÓ का बहुवचन, आँतें, अँतडिय़ाँ; पेट के अन्दर की सब
चीज़ें जैसे-जिगर, तिल्ली, पाकाशय, आमाशय, आँतें।
अह्शाम (अ़.पु.)-'हशमÓ का बहुवचन, नौकर-चाकर।
अह्संत (अ़.वि.)-साधु-साधु, धन्य-धन्य, वाह-वाह।
अह्सन (अ़.वि.)-बहुत नेक, बहुत अच्छा; बहुत सुन्दर, बहुत हसीन;
अत्युत्तम, बहुत उम्दा; अत्युचित, बहुत मुनासिब।
अह्सने तक़्वीम (अ़.पु.)-मानव शरीर, जो भगवान् की कारीगरी का बेहतरीन
नमूना है, ईश्वरीय कृति का सर्वोत्तम कलापूर्ण उदाहरण।
अह्सास (अ़.पु.)-दे.-'एहसासÓ, वही शुद्घ उच्चारण है, अनुभव, संवेदन;
ध्यान, ख़्ायाल।
अह्सासात (अ़.पु.)-दे.-'एहसासातÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
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अह्म$क (अ़.वि.)-बेवु$कू$फ, महामूर्ख, निपट अनाड़ी, बहुत-ही मूर्ख,
नादान, बेअ़क़्ल।
अह्मकाना (अ़.वि.)-मूर्खतापूण, नादानी भरा।
अह्मज़ (अ़.वि.)-खट्टा, अम्ल।
अह्मद (अ़.वि.)-बहुत प्रशंसनीय, (पु.)-हज्ऱत मुहम्मद का नाम।
अह्मदी (अ़.पु.)-मुसलमानों का एक वर्ग-विशेष।
अह्मियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अहम्मीयतÓ, शुद्ध शब्द वही है।
अह्मर (अ़.वि.)-रक्तवर्ण, लाल, सुख्ऱ्ा, रक्तिम।
अह्माल (अ.पु.)-'हम्लÓ का बहुवचन, बोझ, बहुत-से बोझ।
अह्यान (अ़.पु.)-'हीनÓ का बहुवचन, समय, वक़्त, काल-समूह।
अह्यानन (अ़.वि.)-कभी-कभी; सहसा, एकाएक, अक्समात्, इत्ति$फा$कन।
अह्रन ($फा.स्त्री.)-निहाई, जिस पर रखकर सुनार, लुहार आदि कोई धातु पीटते हैं।
अह्रमन ($फा.पु.)-ईरान के अग्नि-पूजकों के मतानुसार 'बदीÓ अर्थात् बुराई
का ख़्ाुदा; शैतान, राक्षस।
अह्राम (अ़.पु.)-'हरिमÓ का बहुवचन, बहुत बूढ़े लोग।
अह्रार (अ़.पु.)-'हुरÓ का बहुवचन, स्वतंत्र लोग, आज़ाद लोग; शरी$फ लोग,
उदार लोग, दाता, दानी।
अह्रु$फ (अ़.पु.)-'ह$र्फÓ का बहुवचन, अक्षर-समूह, अनेक अक्षर, हुरू$फ।
अह्ल (अ़.वि.)-योग्य, पात्र, लाय$क; सभ्य; (पु.)-व्यक्ति, आदमी।
'अह्ल-ए-ख़्िारदÓ-बुद्घिमान् लोग, बुद्घिजीवी। 'अह्ल-ए-दर्दÓ-दु:खी
व्यक्ति। 'अह्ल-ए-जौहरÓ-गुणीजन। 'अह्ल-ए-दर्दÓ-दु:खी (प्रेमी, अ़ाशि$क)।
'अह्ल-ए-दस्तार-ए-मुह्तरमÓ-प्
'अह्ल-ए-नज़रÓ-पारखी व्यक्ति। 'अह्ल-ए-स$फाÓ-निष्कपट लोग।
'अह्ल-ए-हवसÓ-लोलुप, लालची व्यक्ति।
अह्लकार (अ़.$फा.पु.)-सरकारी दफ़्तर में काम करनेवाला व्यक्ति, कर्मचारी,
कारकुन, कारिन्दा।
अह्लमद (अ़.पु.)-अ़दालत का वह कर्मचारी, जिसके पास किसी विभाग की मिसलें
या $फाइलें हों, अ़दालत के किसी विभाग का प्रधान मुंशी।
अह्ला (अ़.वि.)-बहुत ही मीठा।
अह्लाम (अ़.पु.)-'हुलुमÓ या 'हुल्मÓ का बहुवचन, स्वप्न-समूह, सपने, ख़्वाब।
अह्लिय: (अ़.स्त्री.)-स्त्री, पत्नी, जोरू, भार्या।
अह्लियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'अह्लीयतÓ दोनों शुद्ध हैं।
अह्ली (अ़.वि.)-'वह्शीÓ का उल्टा; पालतू, पालू।
अह्लीयत (अ़.स्त्री.)-निपुणता, होशियारी; योग्यता, पात्रता, क़ाबिलीयत,
इस्तेह$का$क।
अह्ले अ़दम (अ़.पु.)-वे लोग जो मर चुके हैं, स्वर्गवासी, यमलोक के वासी, मृत।
अह्ले इल्म (अ़.पु.)-गुणीजन, का$फी पढ़े-लिखे लोग, विद्वान् लोग,
विद्वत्जन, ज्ञानी लोग, पण्डितजन।
अह्ले औरा$क (अ़.पु.)-भगवान् में विश्वास रखनेवाला, आस्तिक, ईश्वरनिष्ठ।
अह्ले $कलम (अ़.पु.)-शिक्षित-समुदाय, पढ़े-लिखे आदमी।
अह्ले कलाम (अ़.$फा.पु.)-लिखने-पढऩेवाले लोग; साहित्य-सेवी।
अह्ले किताब (अ़.पु.)-वह पै$गम्बर, जिस पर ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक उतरी
हो; जो किसी धर्मग्रन्थ में प्रतिपादित धर्म का अनुयायी हो; वह, जो किसी
ऐसे धर्म का अनुयायी हो जिसका उल्लेख $कुरान शरी$फ में हो।
अह्लेख़्ाान: (अ़.पु.)-घर के लोग, बाल-बच्चे, (स्त्री.)-घर की मालिकिन,
गृहस्वामिनी।
अह्ले ख़्िारद (अ़.पु.)-बुद्घिजीवी।
अह्ले ख़्ौर (अ़.पु.)-दानशील लोग, वे लोग जो परोपकार में दिल खोलकर दान
करते हैं, परोपकारी लोग।
अह्ले $गरज़ (अ़.पु.)-जिनका कुछ मतलब हो, $गरज़वाले, स्वार्थी लोग।
अह्ले ज़बान (अ़.$फा.पु.)-भाषाविज्ञ, किसी भाषा के विद्वान्, भाषा के
ज्ञानी-पण्डित।
अह्ले ज़मीं (अ़.$फा.पु.)-भूलोक में रहनेवाले प्राणी; ज़मीन पर बसनेवाले
लोग, सांसारिक लोग।
अह्ले जहाँ (अ़.$फा.पु.)-दुनियावाले, दुनिया में रहनेवाले।
अह्ले ज़ा (अ़.पु.)-सोग मनानेवाले, मातम करनेवाले, शोक मनानेवाले।
अह्ले जि़म्म: (अ़.पु.)-वे $गैर-मुस्लिम, जो किसी मुस्लिम राज्य में रहते
हों और अपने धार्मिक कृत्य छिपाकर करते हों।
अह्ले जौहर (अ़.पु.)-गुणीजन।
अह्ले दर्द (अ़.पु.)-दु:खी (प्रेमी, अ़ाशि$क)।
अह्ले दिल (अ़.पु.)-सहृदय, संतोषी।
अह्ले दुनिया (अ़.पु.)-सांसारिक प्राणी, इंसान, दुनियादार।
अह्ले नज़र (अ़.पु.)-पारखी, किसी चीज़ की परख रखनेवाले; प्रेम की नज़र रखनेवाले।
अह्ले बैत (अ़.पु.)-घर के लोग; मुहम्मद साहब के घर के लोग।
अह्ले मुहल्ला (अ़.पु.)-मुहल्लेवाले, पास-पड़ोस में रहनेवाले।
अह्ले राय (अ़.पु.)-एक-जैसी राय रखनेवाले लोग; समझदार लोग, दानिशमंद लोग।
अह्ले रोज़गार (अ़.$फा.पु.)-रोज़गार या व्यवसाय करने-वाले, व्यवसायी लोग;
नौकरी करनेवाले लोग।
अह्ले वतन (अ़.पु.)-देशवासी, वतनवाले।
अह्ले स$फा (अ़.पु.)-निष्कपट लोग।
अह्ले सुख़्ान (अ़.पु.)-कविजन, शायर लोग।
अह्ले सिनअ़त (अ़.पु.)-कारीगर, दस्तकार।
अह्ले सुन्नत (अ़.पु.)-सुन्नी लोग, मुसलमानों के एक तबका-विशेष के लोग।
अह्ले ह$क (अ़.पु.)-ईमानदार लोग, सच्चे लोग, सत्यनिष्ठ लोग; महात्मा लोग।
अह्ले हर$फा (अ़.पु.)-पेशेवर।
अह्ले हवस (अ़.पु.)-लोलुप, लालची लोग।
अह्ले हुक्म (अ़.पु.)-राजादेश, राज्य का $फर्मान।
अह्ले हुनर (अ़.पु.)-हुनरमंद, कला-कुशल।
अहलो अमाल (अ़.पु.)-स्त्री और बच्चे, पूरा परिवार।
अह्वज (अ़.वि.)-लम्बा-तगड़ा व्यक्ति; जल्दबाज़ी करनेवाला मूर्ख।
अह्वन (अ़.वि.)-अति सरल, अति सुगम, बहुत आसान।
अह्वल (अ़.पु.)-जिसे एक वस्तु की दो वस्तुएँ दिखाई दें, भेंगा।
अह्वा (अ़.स्त्री.)-'हवाÓ का बहुवचन, चाहतें, इच्छाएँ, ख़्वाहिशें।
अह्वाल (अ़.पु.)-'हालÓ का बहुवचन, विवरण, समाचार, हाल; घटनाएँ, हालात;
समस्याएँ, मुअ़ामले या मुअ़ामलात। 'अह्वाल-ए-बद-ओ-नेकÓ-बुरा-अच्छा हाल,
बुरा-अच्छा मुआमला।
अह्वाल (अ़.पु.)-'हौलÓ का बहुवचन, भय, डर, ख़्ाौ$फ।
अह्शा (अ़.पु.)-'हश्वÓ का बहुवचन, आँतें, अँतडिय़ाँ; पेट के अन्दर की सब
चीज़ें जैसे-जिगर, तिल्ली, पाकाशय, आमाशय, आँतें।
अह्शाम (अ़.पु.)-'हशमÓ का बहुवचन, नौकर-चाकर।
अह्संत (अ़.वि.)-साधु-साधु, धन्य-धन्य, वाह-वाह।
अह्सन (अ़.वि.)-बहुत नेक, बहुत अच्छा; बहुत सुन्दर, बहुत हसीन;
अत्युत्तम, बहुत उम्दा; अत्युचित, बहुत मुनासिब।
अह्सने तक़्वीम (अ़.पु.)-मानव शरीर, जो भगवान् की कारीगरी का बेहतरीन
नमूना है, ईश्वरीय कृति का सर्वोत्तम कलापूर्ण उदाहरण।
अह्सास (अ़.पु.)-दे.-'एहसासÓ, वही शुद्घ उच्चारण है, अनुभव, संवेदन;
ध्यान, ख़्ायाल।
अह्सासात (अ़.पु.)-दे.-'एहसासातÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
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बहुत ही उम्दा शब्दकोष है ये...इसके लिए आपको बहुत बहुत मुबारकबाद!
ReplyDeleteसादर नमस्कार सर।
ReplyDeleteइसमे आगे शब्दो का अर्थ देखना हो तो क्या करे जैसे आ, इ, क,ख,ड,प,फ
स
Deleteबहुत बढ़िया शब्दकोश।मगर पूरा कैसे देख सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया शब्दकोष।आगे कैसे देख सकते हैं।
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