क, $क
कंकड़ (हिं.पु., 'कंकड़ीÓ स्त्री.)-मिट्टी और चूने का अंश मिश्रित टुकड़ा, जिससे सड़क आदि बनाई जाती है; पत्थर या अन्य किसी वस्तु का टुकड़ा; पीने का सूखा तम्बाखू; रवा, डला।कंकर (हिं.पु.)-दे.-'कंकड़Ó।
कंगूर: ($फा.पु.)-शिखर, चोटी; $िकले की दीवार में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बने हुए ऊँचे स्थान, जहाँ से सिपाही पहरा देते हैं अथवा युद्घ के समय लड़ाई करते व बन्दू$क चलाते हैं, बुर्ज; गहनों या आभूषणों में कंगूरे के आकार का छोटा रवा। 'नए दिन का नया संदेश लेकर, कंगूरों पर परिन्दे आ गए हैंÓ-माँझी
कंगूरा ($फा.पु.)-दे.-'कंगूर:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
कंघा (हिं.स्त्री., 'कंघीÓ स्त्री.)-लकड़ी, सींग, प्लास्टिक या धातु की बनी हुई दांतेदार वह चीज़ जिससे सिर के बाल सुलझाए और बनाए जाते हैं; जुलाहे का एक औज़ार जिससे वह तागे कसता है।
कंचन (हि.सं.पु.)-सोना, स्वर्ण; धतूरा; कचनार की एक जाति; एक जाति-विशेष, जिसमें स्त्रियाँ वेश्यावृति करती हैं।
कंचनी (हि.सं.पु.)-नाचनेवाली स्त्री; वेश्यावृति करनेवाली स्त्री, (वि.)-सोने की, स्वर्णमयी।
कंज़ (अ़.पु.)-कोश, निधि, ख़्ाज़ाना।
$कंज़$फीर (अ़.पु.)-अधेड़ावस्था को पार कर चुकी स्त्री, बूढ़ी अ़ौरत, वृद्घा स्त्री।
कंज़े मख़्$फी (अ़.पु.)-भू-गर्भ में छिपा हुआ ख़्ाज़ाना, ज़मीन में दबा हुआ ख़्ाज़ाना, भू-निहित निधि, भूमिगत ख़्ाज़ाना।
$कंतर: (अ़.पु.)-सेतु, पुल; महल, प्रासाद, बड़ी इमारत।
$कंतर (अ़.वि.)-छोटा, लघु, ह्रïस्व, कोताह।
$कंतरा (अ़.पु.)-दे.-'$कतर:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$कंतूर: (अ़.पु.)-एक प्रकार का छोटा कोट, जिसके दामन छोटे होते हैं और जिसमें काज बहुत होते हैं।
कंद: ($फा.वि.)-पच्चीकर्म, खोदकर बेल-बूटों के रूप में बनाया हुआ, पत्थर आदि पर खुदा हुआ; अंकित, खुदा हुआ; लिखित, लिखा हुआ; छीला हुआ, जैसे-'पोस्ते कंद:Ó-जिसका छिलका उतारा गया हो।
कंद: ($फा.पु.)-खुदा हुआा; खाई, खंदक।
कंद:कार ($फा.वि.)-पच्चीकार, सोने, चाँदी, लकड़ी अथवा पत्थर आदि पर बेल-बूटे आदि बनाने का काम करनेवाला, कंदकार।
कंद:कारी ($फा.स्त्री.)-पच्चीकर्म, वे बेल-बूटे जो सोने-चाँदी, लकड़ी अथवा पत्थर आदि पर बनते हैं; तराशकर अथवा खोदकर बेल-बूटे बनाने का काम।
कंद:गर ($फा.वि.)-धातु या लकड़ी आदि पर खोदकर बेल-बूटे बनानेवाला, कंद:कार।
$कंद (अ़.पु.)-खाँड; स$फेद दानेदार शकर, शर्करा, चीनी, जमी हुई चीनी, मिसरी; एक प्रकार की मिठाई; सुख्ऱ्ा पक्के रंग का बारीक कपड़ा; (वि.)-बहुत मीठा, मिसरी-जैसा।
कंद (तु.पु.)-गाँव, ग्राम, देहात। (सं.पु.)-बिना रेशे की गूदेदार जड़, जैसे-सूरन, शकरकंद; बादल; तेरह अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार यगण और एक लघु होता है; छप्पय छन्द के 71 भेदों में से एक; योनि-सम्बन्धी एक रोग।
कंद ($फा.स्त्री.)-खाँड, शकर, शर्करा, चीनी।
$कंदख़्ाान: (अ.$फा.पु.)-चीनी मिल, खंडसार, खंडसाल, शकर बनाने का कारख़्ााना।
कंदन ($फा.पु.)-खोदना, खोदकर बेल-बूटे बनाना।
कंदा ($फा.वि.)-दे.-'कंद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कंदाकार ($फा.पु.)-दे.-'कंद:कारÓ।
कंदील ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार का शीशे का बर्तन, जिसमें बत्ती जलाकर रखते हैं; मिट्टी, अबरक या का$गज़ आदि की बनी हुयी लालटेन, जिसका मुँह ऊपर की ओर होता है, दीपक, चिरा$ग। दे.-'किं़दीलÓ।
कंदूरी ($फा.पु.)-दस्तरख़ान, खाना खाते समय बिछाने का कपड़ा।
कंधा (हिं.पु.)-शरीर का वह भाग जो गले और मोढ़े के बीच में है, स्कन्ध।
$कंबर (अ़.पु.)-हज्ऱत अ़ली का एक दास, जो उनका बड़ा भक्त था।
$कंस (अ़.पु.)-शिकार खेलना; जाल लगाना।
कंस (अ़.पु.)-घर आदि झाडऩा, झाड़ू देना।
कअ़ब (अ़.पु.)-किसी अंक को उसी अंक से दो बार गुणा करने से आनेवाला गुणनफल, घन; लम्बाई, चौड़ाई और गहराई या मोटाई का विस्तार; जुआ खेलने का पासा।
कअ़ब: (अ़.पु.)-दे.-'काÓब:Ó।
$कअऱ (अ़.पु.)-गहराई, कुएँ या नदी की गहराई; गम्भीरता; खाड़ी; गड्ढ़ा, बड़ा गड्ढ़ा।
$कअ़लची (तु.पु.)-शिकार का प्रमुख प्रबंधक, मीर शिकार, वह व्यक्ति जो बादशाहों के शिकार का प्रबन्ध करता है।
कई (हिं.वि.)-एक से अधिक, अनेक, कतिपय।
$कईद (अ़.वि.)-संगी-साथी, साथ बैठने-उठनेवाला, सभासद।
$कईर (अ़.पु.)-अथाह, गहरा, अगाध।
$कऊद (अ़.पु.)-बैठना, नमाज़ में बैठना।
$कऊर (अ़.पु.)-गहरा, अथाह, गम्भीर।
कख़्ा कख़्ा ($फा.अव्य.)-छी-छी, घृणावाचक शब्द; खिल-खिल हँसने का शब्द।
कच: ($फा.पु.)-छल्ला, उँगली में पहनने की बिना नग की अँगूठी, मुद्रिका।
कचकोल ($फा.पु.)-भीख माँगने का कटोरा, भिक्षा-पात्र, $फ$कीर का ठीकरा, भीख माँगने के लिए बनाई गई झोली। दे.-'कजकोलÓ और 'कश्कोलÓ। (हिं.पु.)-कपाल, खोपड़ी।
कचनार (हिं.वि.)-सुगंधित फलों का एक वृक्ष जिसकी कलियों का साग बनता है।
कच्चा (हिं.वि.)-अपक्व, बिना पका हुआ; जो आँच पर न पका हो; जिसके तैयार होने में कसर हो; कमज़ोर, अदृढ़; अप्रामाणिक, अयुक्त; अकुशल, जो अभ्यस्त न हो; अस्थायी; बिना रस का; कच्ची मिट्टी का बना हुआ। (पु.)-दूर-दूर पर पड़ा हुआ धागे का डोभ, जिस पर बखिया फेरते हैं; पाण्डुलिपि, मसौदा; जबड़ा, दाढ़। 'कच्चा करनाÓ-झूठा ठहराना; लज्जित करना; हिम्मत पस्त करना; कच्ची सिलाई करना। 'कच्चा चिट्ठा खोलनाÓ-रहस्य खोलना।
कज़: ($फा.पु.)-तालू-काक, तालू का कौआ।
कज ($फा.वि.)-टेढ़ा, वक्र, तिरछा, (पु.)-टेढ़ापन, वक्रता।
कज़ ($फा.पु.)-कच्चा रेशम, अबरेशम; वक्र, टेढ़ा, तिरछा।
कज अ़क़्ल (अ़.$फा.पु.)-ऐसा व्यक्ति, जिससे जो कुछ कहा जाए उसका उलटा समझे, वक्रमति, विपरीत बुद्घि, उलटा-दिमाग़।
कज अख़्ला$क (अ़.$फा.वि.)-जिसे किसी से लगाव न हो, बेमुरव्वत, दु:शील, खुर्रा, रूखा।
कज अदा ($फा.वि.)-शील-रहित, जिसमें शील-संकोच न हो, जो बहुत ही खुर्रा या रूखा हो, बेमुरव्वत।
कज अदाई ($फा.स्त्री.)-शील-संकोच का अभाव, खुर्रापन, रूखापन, , बेमुरव्वती, बेव$फाई।
कजआÓज़ा (अ़.$फा.वि.)-वक्रांग, जिसके शरीर के अंग टेढ़े-मेढ़े हों।
कजक ($फा.पु.)-अंकुश, हाथी को वश में रखने का यंत्र, हाथीवान का यंत्र, आँकुस।
कज़क ($फा.पु.)-दे.-'कजकÓ।
कज कुलाह ($फा.वि.)-टेढ़ी टोपी ओढऩेवाला, प्रेमपात्र, माÓशू$क; छैला, रसिया; राजा, शासक।
कज कुलाही ($फा.स्त्री.)-छैलापन; बाँकापन, माÓशू$िकयत; राजापन।
कजकोल ($फा.पु.)-भिक्षापात्र, भीख माँगने का बर्तन, भिखारी का ठीकरा, भिखारी की झोली; वह पुस्तक जिसमें दूसरों की अच्छी उक्तियों का संग्रह हो। दे.- 'कचकोलÓ और 'कश्कोलÓ।
कज ख़्ाुल्$क (अ़.$फा.वि.)-अक्खड़, बुरे या कठोर स्वभाव का, दु:शील, ख़्ाराब मिज़ाजवाला। दे.-'कज अख़्ला$कÓ।
कज़ ख़्ाुल्$की (अ़.$फा.स्त्री.)-अक्खड़पन, प्रकृति या स्वभाव की कठोरता, दु:शीलता, खुर्रापन, रूखापन।
कज़ ज़ख़्म: ($फा.वि.)-धूर्त, द$गाबाज़, धोखेबाज़।
कज तब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कज मिज़ाजÓ।
कज़दुम ($फा.पु.)-बिच्छू, वृश्चिक।
कजनजऱ ($फा.वि.)-टेढ़ी नजऱवाला, दे.-'कज निगाहÓ।
कजनजऱी ($फा.स्त्री.)-टेढ़ी या तिरछी निगाह से देखना, दे.-'कज निगाहीÓ।
कज निगाह ($फा.वि.)-जो आँखें टेढ़ी करके देखता हो, भेंगा; $गुस्सैल, क्रोधी स्वभाववाला, क्रुद्घात्मा।
कज निगाही ($फा.स्त्री.)-भेंगापन; क्रोध, $गुस्सा।
कज निहाद ($फा.वि.)-बुरे स्वभाव का, दुष्ट-प्रकृति, दे.-'कज मिज़ाजÓ।
$कज़$फ (अ़.पु.)-गाली देना; व्यभिचार का आरोप लगाना, जिऩा या बदकारी की तुह्मत लगाना; वह मैदान, जो का$फी विस्तार लिये हुए हो, लम्बा-चौड़ा मैदान, चटियल मैदान।
कज $फह्म (अ़.$फा.वि.)-विपरीत-बुद्घि, मूर्ख, वक्रबुद्घि, उलटी समझ रखनेवाला, हर बात का उलटा अर्थ लगाने-वाला।
कज $फह्मी ($फा.स्त्री.)-नासमझी, उलटी समझ, मूर्खता।
कज बह्स (अ़.$फा.वि.)-उलटी-सीधी बहस करनेवाला, मूर्खतापूर्ण वाद-विवाद करनेवाला, व्यर्थ हुज्जत करनेवाला, कुतर्की, हठवादी, (स्त्री.)-हुज्जत, व्यर्थ की बहस।
कज बह्सी (अ़.$फा.स्त्री.)-किसी की बात न मानकर सि$र्फ अपनी ही बात मनवाना, उलटा-सीधा वाद-विवाद, हुज्जत, हठवाद।
कजबाज़ ($फा.वि.)-$िफसादी, बखेडिय़ा; बदनीयत, लेन-देन में व्यवहार कुशलता न करनेवाला, हेराफेरी करनेवाला।
कजबीं ($फा.वि.)-केवल बुराइयाँ और त्रुटियाँ देखनेवाला, हर बात को टेढ़ी या बुरी दृष्टि से देखनेवाला।
कजबीनी ($फा.स्त्री.)-केवल बुराइयाँ और त्रुटियाँ देखना।
कज़़म (अ़.स्त्री.)-नीचता, अधमता, कमीनगी; अधम, नीच, कमीना; कमीने, नीच लोग।
कज मज ($फा.वि.)-तोतला, बात करते समय जिसकी जिह्वïा लड़खड़ाती हो, जो ठीक से बात न कर सके।
कज मज ज़बाँ ($फा.वि.)-जिसे बात करने की तमीज़ न हो, मूर्ख, बात करते समय जिसकी जीभ लड़खड़ाती हो।
कज मज बयाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कज मज ज़बाँÓ।
कजमदारो मरेज़ ($फा.वा.)-'टेढ़ा रखो और गिराओ मतÓ, ऐसी बात का आदेश, जो असम्भव हो और हो न सके।
कज मिज़ाज (अ़.$फा.वि.)-बुरे स्वभाव का, दुष्ट-प्रकृति, बदख़्ाू, जिसके स्वभाव में टेढ़ापन हो, जो सीधी-सादी बात में भी शंका करे, शंकाशील, शक्की।
कज रफ़्तार ($फा.वि.)-वक्रगति, जिसके स्वभाव में टेढ़ापन हो, दुष्ट मानसिकता का, टेढ़ी चाल चलनेवाला, दुष्ट या बुरा आचरण करनेवाला; ज़ालिम, अत्याचारी, दुष्ट।
कज रफ़्तारी ($फा.स्त्री.)-दुष्ट मानसिकता, वक्रगति, टेढ़ी-मेढ़ी चाल; बुरा आचरण, ज़ुल्म, अत्याचार, दुराचार।
कज रवी ($फा.स्त्री.)-दुराचार, टेढ़ी चाल, अनीति, ज़ुल्म, अत्याचार।
कजराय ($फा.वि.)-जिसकी राय या सलाह टेढ़ी और ग़लत हो, जो उचित परामर्श न दे।
कजरौ ($फा.वि.)-दे.-'कज रफ़्तारÓ, हर समय टेढ़ी चाल चलनेवाला।
$कज़ल (अ़.पु.)-लँगड़ापन, बहुत अधिक लँगड़ापन।
कज़़लबाश (तु.पु.)-मुग़लों की एक जाति-विशेष, जिसका पेशा सिपहगरी था; ईरान और अफ्ग़ानिस्तान के शीअ़ा लोग; सैनिक, योद्घा; भाग्य, $िकस्मत, प्रारब्ध। दे.-'$कजि़लबाशÓ, और '$िकजि़लबाशÓ, तीनों शुद्घ हैं।
कज हुज्जत ($फा.वि.)-बेहूदा बहस करनेवाला, व्यर्थ की तकरार करनेवाला।
कज हुज्जती ($फा.स्त्री.)-बेहूदा बहस, व्यर्थ की तकरार।
$कज़ा (अ.स्त्री.)-मृत्यु, मौत; न्याय, इंसा$फ; आदेश देना; जो पूजा-उपासना अपने ठीक समय पर न की गयी हो, ऐसी इबादत, जिसका निर्धारित समय निकल गया हो; $िकस्मत, नसीब, भाग्य, प्रारब्ध; नाग़ा, अनाध्याय। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
$कज़ा (अ़.पु.)-तिनका, घास-फूस; आँख में तिनका पड़ जाना। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
$कज़ाए इलाही (अ़.स्त्री.)-अपनी मौत मरना, स्वाभाविक मृत्यु।
$कज़ाए कार (अ.$फा.वि.)-दे.-'$कज़ाराÓ।
$कज़ाए नागहानी (अ़.$स्त्री.)-अचानक मरना, आकस्मिक मृत्यु।
$कज़ाए मुअ़ल्ल$क (अ़.स्त्री.)-वह मृत्यु, जो अचानक हो (जैसे सड़क-दुर्घटना में), आकस्मिक मौत।
$कज़ाए मुब्रम (अ़.स्त्री.)-अटल-मृत्यु, वह मृत्यु जो टल न सके, निश्चित मृत्यु।
$कज़ाए हाजत (अ़.स्त्री.)-पाख़्ााना फिरना, मल-मूत्र आदि का त्याग, शौचकर्म, टट्टी जाना; आकस्मिक आवश्यकता।
$कज़ा ओ $कद्र (अ़.स्त्री.)-ईश्वर की मजऱ्ी या रज़ा। दे.-'$कज़ा व $कद्रÓ।
$कज़ाकंद ($फा.पु.)-एक प्रकार का कोट, जिसमें कच्चा रेशम लपेटा जाता है, जिससे उस पर तलवार असर नहीं करती।
$कज़ाकार (अ.$फा.वि.)-दे.-'$कज़ाएकारÓ, दे.-'$कज़ाराÓ।
$कज़ात (अ़.स्त्री.)-$काज़ी का पद या कार्य, मुंसि$फ का पद या कार्य; विवाद, झगड़ा, टंटा, बखेड़ा।
$कज़ादम ($फा.वि.)-तेज़ (तलवार)।
$कज़ाया (अ़.पु.)-'$कज़ीय:Ó का बहु., वाक्य-समूह; हुक्म, आदेश; समाचार, ख़्ाबरें; झगड़े, बखेड़े; अर्थ, मतलब।
$कज़ारा (अ़.$फा.वि.)-किसी पूर्व सूचना के बिना, अचानक, अनायास, यकायक, अकस्मात्, सहसा, नागहाँ, इत्ति$फा$क से।
कजाव: ($फा.पु.)-ऊँट का हौदा, जिसमें दोनों ओर आदमी बैठते हैं, ऊँट की काठी।
कज़ा व कज़ा (अ़.अव्य.)-यों और यों, ऐसे और ऐसे।
$कज़ा व $कद्र (अ़.स्त्री.)-ईश्वर की मजऱ्ी या रज़ा, भाग्य, $िकस्मत; भाग्य और सामथ्र्य के देवदूत।
कजावा ($फा.पु.)-दे.-'कजाव:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कजि़ब (अ़.वि.)-झूठा, मिथ्याभाषी।
$कजिय़: (अ़.पु.)-विवादास्पद विषय, झगड़ा, बखेड़ा, $िफसाद; मामला, मु$कदमा, वाद। मुहा.-'$कजिय़ा उठानाÓ-झगड़ा खड़ा करना। '$कजिय़ा करनाÓ-झगड़ा करना। '$कजिय़ा करानाÓ-दूसरे को लड़वाना, लडऩे के लिए किसी अन्य को प्रेरित करना। '$कजिय़ा चुकानाÓ-झगड़ा निबटाना। '$कजिय़ा पाक होनाÓ-विवाद का अन्त होना। '$कजिय़ा मिटानाÓ-झगड़ा मिटाना।
$कजिय़ा (अ़.पु.)-दे.-'$कजिय़:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कजि़र (अ़.वि.)-दूषित, मलिन, गन्दा, अपवित्र, नापाक।
क़जि़ल (अ़.वि.)-जो लँगड़ाकर चलता हो, लँगड़ा, पंगु।
$कजि़लबाश (तु.पु.)-मुग़लों की एक जाति-विशेष, जिसका पेशा सिपहगरी था; ईरान और अफ्ग़ानिस्तान के शीअ़ा लोग; सैनिक, योद्घा; भाग्य, $िकस्मत, प्रारब्ध। दे.-'$कज़लबाशÓ, और '$िकजि़लबाशÓ, तीनों शुद्घ हैं।
कजी ($फा.स्त्री.)-वक्रता, टेढ़ापन, तिरछापन, ख़्ामीदगी।
कजीन (तु.पु.)-घोड़े की पाखर।
$कज़ीब (अ़.पु.)-टहनी, वृक्ष की शाखा, पेड़ की डाली; पुरुष की इन्द्रिय, शिश्न, मेह्न, लिंग; तलवार; कोड़ा, हाथ की छड़ी।
कज़ीम (अ़.वि.)-$गुस्से को ज़ब्त कर लेनेवाला, क्रोध को पी जानेवाला, धैर्यवान्, क्षमाशील। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
$कज़ीम (अ़.पु.)-घोड़े को दिए जानेवाले जौ; क्रोध के वक़्त क्रोध न करनेवाला, क्रोध को पी जानेवाला। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
कजीम (तु.पु.)-दे.-'कजीनÓ। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है।
$कज़ीय: (अ़.पु.)-आदेश, हुक्म; झगड़ा, टंटा, आपसी झगड़ा; व्यवहार, मु$कदमा।
$कज़्ग़ान (तु.स्त्री.)-कड़ाही; बड़ी देगची।
$कज़्ज़ा$क (तु.पु.)-दस्यु, डाकू, लुटेरा, राहजऩ।
$कज़्ज़ा$की (तु.स्त्री.)-डकैती, लूटमार, राहजऩी, लुटेरापन, (वि.)-लुटेरों का-सा।
कज़्ज़ा$के अज़ल (तु.पु.)-जीवन के लुटेरे अर्थात् यमदूत।
कज़्ज़ाब (तु.पु.)-महा झूठा, बहुत झूठ बोलनेवाला, बहुत बड़ा झूठा, अनर्गलभाषी, मुखर, वाचाल, गप्पी।
$कज़्फ़ (अ़.पु.)-किसी पर बलात्कार का आरोप लगाना, किसी पर व्यभिचार या दुराचार का आरोप लगाना; पत्थर मारना; गाली देना।
कज़्म ($फा.पु.)-काई, जो पानी पर अथवा उसके किनारे हो जाती है। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
कज़्म (अ़.पु.)-क्रोध आने पर शान्त बने रहना, $गुस्सा पी जाना। इसका 'ज़्Ó उर्दू के 'ज़ोयÓ अक्षर से बना है।
कजि़्लक ($फा.पु.)-छोटा चा$कू।
$कज्वीन ($फा.पु.)-इरा$क अजम का एक नगर।
कटना (हिं.क्रि.अक.)-किसी धारदार हथियार की दाब से किसी वस्तु के दो टुकड़े होना; किसी धारवाली वस्तु का धंसना या घुस जाना; किसी अंश या भाग का अलग हो जाना; युद्घ में मरना; कतरा या ब्योंता जाना; नष्ट होना, छँटना, जैसे-मैल कटना; लिखावट पर लकीर फिरना।
कटार (हिं.पु., 'कटारीÓ स्त्री.)-एक प्रकार का दुधारा हथियार जो लगभग एक बालिश्त के बराबर होता है; एक प्रकार का बनबिलाव।
कटोरा (हिं.पु., 'कटोरीÓ स्त्री.)-चौड़े पैंदे और खुले मुँह का एक पात्र जिसकी दीवारें छोटी होती हैं, प्याला, बेला।
कटोरी (हिं.स्त्री.)-छोटा कटोरा, प्याली; चोली या अंगिया का वह भाग जिसमें स्तन रहते हैं; तलवार की मूँठ के ऊपर का गोल भाग; फूल के सींके का सिरा जिसपर दल रहते हैं।
कड़क (हिं.स्त्री.)-कड़कड़ाहट का शब्द, कठोर शब्द; तड़प, डपेट; गाज, वज्र; घोड़े की सरपट चाल; कसक, रुक-रुककर होनेवाला दर्द।
कड़कना (हिं.क्रि.अक.)-कड़-कड़ शब्द होना; चटकना; कड़ा या ज़ोर से शब्द करना; चटकने का शब्द; दरकना; आवाज़ के साथ टूटना।
कड़का (हिं.पु.)-कठोर शब्द, कड़ी आवाज़।
कड़ा (हिं.पु.)-हाथ या पैर में पहनने का चूड़ा या कंगन; लोहे का कुण्डा; कबूतर की ऐ प्रजाति। (हिं.वि.)-कठिन, सख़्त, ठोस; रूखा; उग्र; दृढ़; कसा हुआ, चुस्त; जो गीला न हो, कम गीला; हृष्टपुष्ट, तगड़ा; सहने या झेलनेवाला; दुष्कर, दु:साध्य, जिसका करना सरल न हो; तीव्र प्रभाव वाला; असह्य, कर्कश।
कड़ी (हिं.स्त्री.)-जंज़ीर का छल्ला; किसी वस्तु को अटकाने के लिए लगाया गया छोटा छल्ला; कठिनाई, संकट, मुसीबत; (वि.स्त्री.प्र.)-कठिन, कठोर, सख़्त।
$कत (अ़.पु.)-$कलम की नोक; कोई चीज़ विशेषत: $कलम की नोक तिरछी बनाना या काटना।
$क़तअ़ (अ़.पु.)-खण्ड, भाग; काटना, अलग करना, काटना, विच्छेदन; तराश, ब्योंत; अंदाज़, ढंग, तौर-तरी$का। दे.-'$कत्अ़Ó, वही शुद्घ है। '$कतअ़ बुरीदÓ-काट-छाँट, बनावट, तराश-ख़्ाराश। '$कतअ़ करनाÓ-काटना, ब्योंतना; छोडऩा, बीच से बात काटना, रद्द करना।
$कतअ़ कलाम (अ़.क्रि.)-बात काटना, बीच में टोकना या बोलने लगना। दे.-'$कत्ए कलाम।
$कतअ़ ताल्लु$क (अ़.पु.)-सम्बन्ध विच्छेद करना, छोडऩा। दे.-'$कत्ए तअ़ल्लुकÓ।
$कतअ़दार (अ़.वि.)-जिसकी कतर-ब्योंत अच्छी हो, जिसकी बनावट अच्छी हो।
$कतअऩ (अ़.अव्य.)-कदापि, हरगिज। दे.-'$कत्अऩÓ, शुद्घ वही है।
क़तअ़ नजऱ (अ़.वि.)-इस पर भी, इसके अलावा, ताहम। '$कतअ़ नजऱ करनाÓ-किसी चीज़ का विचार या ख़्ायाल छोड़ देना। दे.-'$कत्ए नजऱÓ।
$क़तअ़ राह (अ़.पु.)-रास्ता तय करना। दे.-'$कत्ए राहÓ।
$क़तअ़ सुख़्ान (अ़.पु.)-बात काटना, बातचीत बन्द करना। दे.-'$कत्ए स़ख़्ानÓ।
$कतई (अ़.वि.)-बिलकुल, अन्तिम, आख़्िारी, जैसै-'$कतई $फैसलाÓ; य$कीनी, निस्संदेह। दे.- '$कत्ईÓ, वही शुद्घ है।
$कतई$गज़ (अ़.वि.)-बिलकुल। (पु.)-दजिऱ्यों का $गज़, जिससे नापकर कपड़ा काटते हैं।
कत$क (तु.पु.)-ख़्ामीर, वह खटास, जो आटे में मिलाते हैं।
कतख़्ाुदा ($फा.वि.)-वह पुरुष अथवा स्त्री, जिसकी शादी हो चुकी हो, विवाहित अथवा विवाहिता; घरवाला, घर का स्वामी; गृहस्थ।
कतख़्ाुदाई ($फा.स्त्री.)-शादी, ब्याह, विवाह, पाणिग्रहण, निकाह।
$कत$गीर (अ़.पु.)-दे.-'$कतज़नÓ।
$कतजऩ (अ़.$फा.पु.)-लकड़ी या हाथी-दाँत की बनी वह चपटी चीज़, जिस पर रख कर $कलम की नोक बनाते अथवा काटते हैं।
$कतन (अ़.पु.)-दोनों चूतड़ों के बीच की हड्डी; पक्षी की पूँछ की जड़।
कतबा (अ़.पु.)-दे.-'कत्ब:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कतम (अ़.पु.)-कामातुरता, शह्वत का ज़ोर, काम-पिपासा की उग्रता।
कतरन (हिं.स्त्री.)-काटने से बचा हुआ छोटा रद्दी टुकड़ा।
कतरना (हिं.क्रि.सक.)-कैंची या अन्य किसी औज़ार से काटना।
$कतरा (अ़.पु.)-दे.-'$कत्राÓ। कहा.-'$कतरा-$कतरा दरिया होनाÓ-थोड़ा-थोड़ा करके बहुत हो जाना।
$कतरा अफ़्शाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कत्र:$िफशाँÓ।
$कतराजऩ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कत्र:जऩÓ।
$कतल: (अ़.पु.)-टुकड़ा, खंड; फाँक; गोल काटा या तराशा हुआ टुकड़ा।
$कतला (अ़.पु.)-दे.-'$कतल:Ó।
कताँ ($फा.पु.)-'कतानÓ का लघुरूप, अलसी, अलसी का बीज, अलसी के पेड़ के रेशे से बना हुआ कपड़ा।
$कता (अ़.पु.)-एक चिडिय़ा, जो पत्थर खाती है।
$कताइ$फ (अ़.पु.)-'$कती$फÓ का बहु., मख़मल की चादरें, मख़्ामल के कपड़े।
कताइब (अ़.पु.)-'कतीब:Ó का बहु., सेनाएँ, $फौजें।
$कता कलाम (अ़.पु.)-बात काटना, किसी को बोलने से रोककर स्वयँ कुछ कहने लगना।
$कतादार (अ़.$फा.वि.)-जिसकी बनावट अच्छी हो; अच्छी शैली या ढंगवाला।
कतान ($फा.पु.)-अलसी नामक पौधा; अलसी के बीज, अलसी के पेड़ के रेशे से बना हुआ कपड़ा; एक प्रकार का बहुत ही महीन मलमल (कहते हैं कि यह चन्द्रमा की चाँदनी में रखने से टुकड़े-टुकड़े हो जाती है); एक प्रकार का बढिय़ा रेशमी कपड़ा।
$कतानज़र (अ़.क्रि.वि.)-अतिरिक्त, अलावा, सिवा।
$कताम (अ़.पु.)-धूल-मिट्टी, गर्द-$गुबार।
कताम (अ़.पु.)-छिपना, अदृश्य होना, गुप्त होना, लोप होना।
$कतार: ($फा.पु.)- कटार।
$कतार (अ़.स्त्री.)-शुद्घ शब्द '$िकतारÓ है मगर उर्दू में '$कतारÓ ही बोलते हैं, पंक्ति, पाँति, पंगत, श्रेणी, लाइन।
$कतार दर $कतार (अ़.$फा.पु.)-अनेक पंक्तियों में, पंक्तियाँ बनाकर; बहुत अधिक।
$कतारा ($फा.पु.)- दे.-'$कतार:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$कतारी$क (अ़.पु.)-युद्घ में सैनिकों का कोलाहल; कोलाहल, शोर।
कति$फ (अ़.पु.)-कन्धा, स्कन्ध, शाना।
$कतीअ़: (अ़.पु.)-भेड़-बकरी या गाय-भैंसों का झुण्ड या रेवड़।
$कतीअ़ (अ़.पु.)-दे.-'$कतीअ़:Ó।
$कतीअ़त (अ़.स्त्री.)-पृथक्ता, अ़लाहदगी; जुदाई, विच्छेद; काटना, अलग करना, पृथक् करना।
$कतीन (अ़.वि.)-अल्पाहारी, कम खानेवाला (पुरुष अथवा स्त्री)।
$कतीफ़: (अ़.पु.)-मख़्ामल का कपड़ा।
कतीब: (अ़.वि.)-$फौज, सेना।
कतीर: (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ गोंद, जो दवा में काम आता है और इसका अधिक उपयोग नपुंसक बना देता है।
कतीरा (अ़.पु.)-दे.-'कतीर:Ó, वही शुद्घ है।
$कतील (अ.वि.)-शहीद, हत, वधित, जिसे मार डाला गया हो (पुरुष अथवा स्त्री)।
$कतूर (अ़.पु.)-पतली दवा, जो कान या नाक में टपकाई जाती है। इसका 'तÓ उर्दू के 'तोयÓ अक्षर से बना है।
$कतूर (अ़.वि.)-कंजूस, कृपण, बख़्ाील। इसका 'तÓ उर्दू के 'तेÓ अक्षर से बना है।
$कत्अ़: (अ़.पु.)-टुकड़ा, खण्ड; भूखण्ड, ज़मीन का टुकड़ा; ताÓदाद, मात्रा, जैसे-चार $कत्अ़: कपड़े; काव्य में उर्दू अथवा $फार्सी नज़्म की एक $िकस्म, जिसमें $गज़ल की तरह $का$िफए की पाबन्दी होती है, और जिसमें कोई एक बात कही जाती है।
$कत्अ़ (अ़.स्त्री.)-काटना, अलग करना, पृथक् करना; विच्छेद, तोडऩा; वेषभूषा, वज़अ़; प्रकार, रंग। '$कत्अ़ कीजिए न तअ़ल्लु$क हमसे, कुछ नहीं है तो अ़दावत ही सहीÓ -$गालिब
क़त्अऩ (अ़.वि.)-नितान्त, बिलकुल; कदापि, हर्गिज़; अन्तिम, आख़्िारी; अटल, मज़बूत।
$कत्ई (अ़.वि.)-नितान्त, बिलकुल; कदापि, हर्गिज़; य$कीनी, निस्संदेह; अन्तिम, आख़्िारी; अटल, मज़बूत।
$कत्ईयत (अ़.स्त्री.)-अटलपन; अन्तिमता, आख़्िारीपन।
$कत्ए कलाम (अ़.क्रि.)-बात काटना, बीच में टोकना या बोलने लगना।
$कत्ए तअ़ल्लु$क (अ़.पु.)-सम्बन्ध-विच्छेद, परस्पर मेल-मिलाप की समाप्ति, रिश्ते ख़्ात्म करना; विवाह-विच्छेद, तला$क।
क़त्ए नजऱ (अ़.वि.)-इस पर भी, इसके अलावा, ताहम। '$कतअ़ नजऱ करनाÓ-किसी चीज़ का विचार या ख़्ायाल छोड़ देना।
$कत्ए राह (अ़.पु.)-रास्ता तय करना।
$कत्ए सुख़्ान (अ़.पु.)-बात काटना, बातचीत बन्द करना।
$कत्तात (अ़.वि.)-निन्दा करनेवाला, निन्दक, बदगो; पिशुन, चु$गुलख़्ाोर।
कत्ताम: (अ़.वि.)-बहुत अधिक कामातुर स्त्री, रति-प्रीता, विलास-प्रिया, वह स्त्री जिसमें कामवासना अधिक हो, बहुत अधिक विलासिनी स्त्री; वह स्त्री जो अपने स्तीत्व को कहीं भी लुटाती फिरे, दुश्चरित्रा, पुंश्चली, कुलटा; स्त्रियों के लिए एक गाली, 'छिनालÓ।
$कत्ताल: (अ़.स्त्री.)-अत्यधिक आकर्षक स्त्री, बहुत अधिक सम्मोहक; बहुत अधिक $कत्ल करनेवाली; नायिका, प्रेमिका, प्रेयसी, माÓशू$का।
$कत्ताल (अ़.वि.)-महावधिक, बहुत अधिक $कत्ल या हत्या करनेवाला, जल्लाद; नायक, प्रेमी, प्रेमपात्र, महबूब, माशू$क।
$कत्ताला (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कत्ताल:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कत्फ़ (अ़.पु.)-फल आदि बीनना, मेवा चुनना।
कत्$फ (अ़.पु.)-कन्धा, स्कन्ध; धीरे-धीरे चलना; दोनों हाथ पीछे बाँधना; कन्धे का ऊँचा होना।
कत्ब: (अ़.पु.)-वह पत्थर, जो किसी इमारत या $कब्र पर लगाया जाता है तथा जिसमें मकान आदि बनने का विवरण या मरनेवाले का नाम और उसके मरने की तारीख़्ा दी जाती है, शिलालेख, अभिलेख, अन्तर्लेख, समाधिलेख।
कत्म (अ़.पु.)-परदा, हिजाब, ओट; छिपाव, पोशीदगी, गुप्ति, गोपनीयता।
कत्मे अ़दम (अ़.पु.)-वह स्थान, जहाँ जीवात्मा उत्पत्ति से पहले रहती हैं।
$कत्र: (अ़.पु.)-पानी, रक्त या किसी अन्य तरल की बूँद, बिन्दु; टुकड़ा, खंड।
कत्र:जऩ (अ़.$फा.वि.)-बहुत शीघ्र चलने या दौडऩेवाला, शीघ्रगामी, तेजग़ाम।
$कत्र:दुज़्द (अ़.$फा.पु.)-बादल, अभ्र, अब्र; सूर्य, सूरज।
$कत्र:$िफशाँ (अ़.$फा.वि.)-$कतरा या बेँूद छिड़कनेवाला।
$कत्र (अ.पु.)-मेह, वर्षा, बारिश, बरसात।
$कत्रए अश्क (अ़.$फा.पु.)-अश्रुकण, आँसू की बूँद।
$कत्रए आब (अ़.$फा.पु.)-जलकण, पानी की बूँद।
$कत्ल (अ़.पु.)-ख़्ाून करना, हत्या करना, वध, हनन, जान से मार डालना, हिंसा। '$कत्ल की रातÓ-वह रात जिसके सवेरे हसन और हुसैन मारे गए थे, मुहर्रम की नवीं तारीख़्ा।
$कत्लगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-$कत्ल करने का स्थान, वधस्थल, वधगृह, वधभूमि; वह स्थान जहाँ लोग$कत्ल किये अथवा फाँसी पर चढ़ाये जाते हों।
$कत्ला (अ़.पु.)-'$कतीलÓ का बहु., $कत्ल होनेवाले।
$कत्ले अ़म्द (अ़.पु.)-सुविचारित वध, वध करने के निश्चय से किया गया वध, जान-बूझकर की गई हत्या।
$कत्लेअ़ाम (अ़.पु.)-नरसंहार, सर्व-संहार, सर्वसाधारण का वध; सार्वजनिक संहार; छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, दोषी या निर्दोष सबकी एक सिरे से हत्या।
कद: ($फा.पु.)-मकान, घर, गृह; प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होता है, जैसे-'बुतकद:Ó-मूर्तिघर।
कद ($फा.पु.)-दे.-'कद:Ó। (हिं.स्त्री.)-ईष्र्या, द्वेष, शत्रुता; हठ, जि़द; (सं.पु.)-बादल, मेघ, (अव्य.)-कब, किस समय।
$कद [द्द] (अ़.पु.)-डील, आकार, लम्बाई, क़ामत। '$कदे आदमÓ= आदमी के बराबर ऊँचा। 'पस्त: $कदÓ-छोटा $कद, नाटा, ठिगना। '$कद ओ $कामतÓ-डील-डौल।
कद [द्द] (अ़.स्त्री.)-हठ, जि़द; वैमनस्य, रंजिश; द्वेष, कीना; प्रयत्न, परिश्रम, प्रयास, कोशिश। 'कद ओ काविशÓ-छानबीन, कोशिश।
$कदआवर (अ़.$फा.वि.)-अच्छे बदन का, लम्बे-चौड़े जिस्म का, लम्बे $कदवाला, लम्बा। दे.-'क़द्दावरÓ, वही शुद्घ है।
$कद ओ मंजि़लत (अ़.स्त्री.)-प्रतिष्ठा, इज़्ज़त।
कदख़्ाुदा (फा.वि.)-घर का मालिक, गृह-स्वामी; दूल्हा, वर। दे.- 'कतख़्ाुदाÓ।
कदख़्ाुदाई ($फा.स्त्री.)-दे.-'कतख़्ाुदाईÓ।
$कद$गन (तु.पु.)-निषेधाज्ञा, निषेधादेश, मनाही का हुक्म; रोक, मनाही, प्रतिबन्ध।
$कद$गनची (तु.पु.)-रोकनेवाला, मना करनेवाला, प्रतिबन्धक, निषेधक।
कदबानू ($फा.स्त्री.)-घर की मालकिन, गृह-स्वामिनी; घर-गृहस्थी वाली स्त्री, महिला, ख़्ाातून।
$कदम (अ़.पु.)-पाँव, पद, पैर; डग, एक $कदम की दूरी; दोनों पैरों के बीच का $फासला; घोड़े की एक चाल, जिसमें थकान नहीं होती। '$कदम आनाÓ-तशरी$फ लाना। '$कदम आगे न बढऩाÓ-आगे बढऩे की हिम्मत न होना। '$कदम आगे रहनाÓ-आगे चलना। '$कदम उठाये चलनाÓ-जल्दी-जल्दी चलना। '$कदम खोटा होनाÓ-किसी का आना अशुभ होना। '$कदम गड़ जानाÓ-किसी जगह रुक जाना अथवा जम जाना। '$कदम फूँक के रखनाÓ-सावधानी बरतना। '$कदम बाहर निकालनाÓ-किसी हद या सीमा से बाहर जाना। '$कदम चूमनाÓ-अत्यन्त आदर करना।
$कदमचा (अ़.$फा.पु.)-खुड्डी का वह पाया जिस पर पाँव रखकर बैठते हैं, पाख़्ााने आदि में बना हुआ पाँव रखने का स्थान।
$कदम दर $कदम (अ़.$फा.वि.)-पैरवी करनेवाला, पीछे चलनेवाला।
$कदम ब $कदम (अ़.$फा.वि.)-$कदम से $कदम मिलाकर, बराबर-बराबर, साथ-साथ।
$कदमबाज़ (अ़.$फा.वि.)-तेज़-रफ़्तार, ख़्ाुश-रफ़्तार; तेज़ चलनेवाला, शीघ्रगामी, शीघ्रगति; '$कदम-चालÓ करनेवाला घोड़ा।
$कदमबोस (अ़.$फा.वि.)-आदर-भाव अथवा किसी स्वार्थ की सिद्घि के लिए पाँव चूमनेवाला, पद-चुम्बक; चापलूस; अति विनयशील, शिष्ट; बड़ों की सेवा में उपस्थित रहने-वाला।
$कदमबोसी (अ़.$फा.स्त्री.)-बड़ों के पैर चूमना; ब़ज़ुर्गों की ख़्िादमत में हाजिऱ होना; पाँव चूमना, पद-चुम्बन; बड़े व्यक्ति से भेंट या मुला$कात करना; चापलूसी।
$कदमरंज: (अ़.$फा.वि.)-पाँव रखनेवाला, पदार्पण करने-वाला, आनेवाला, पधारनेवाला।
$कदमरंजगी (अ़.$फा.स्त्री.)-पधारना, पदार्पण, तशरी$फ लाना, आना, आगमन।
$कदम रसूल (अ़.पु.)-रसूल अथवा मुहम्मद साहब के पद-चिह्नï।
$कदम शरी$फ (अ़.पु.)-शुभ-चरण; $कदम रसूल, मुहम्मद साहब के पद-चिह्नï; अशुभ-चरण (व्यंग्य)।
$कदर (अ़.स्त्री.)-मान, प्रतिष्ठा, बड़ाई; मान, मात्रा, मिक़्दार, परिमाण; आदेश, हुक्म; पराकाष्ठा, इन्तिहा; अनुमान, अन्दाजा; शक्ति, ता$कत; भाग्य, तक़्दीर, ईश्वरेच्छा, विधाता की मजऱ्ी।
कदर (अ़.स्त्री.)-मलिनता, मैलापन; अंधकार, अँधेरा। (सं.पु.)-लकड़ी चीरने का यंत्र, आरा; अंकुश; सफ़ेद खैर।
कदर ($फा.पु.)-केवड़े का पेड़।
क़दरअंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-लक्ष्यभेदी, ठीक निशाना लगानेवाला, शीघ्रभेदी।
$कदरअंदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-लक्ष्य भेदना, ठीक निशाना लगाना, निशाने का अचूक होना, अचूक निशानेबाज़ी।
$कदरदाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कद्रदाँÓ।
$कदरदानी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'$कद्रदानीÓ।
$कदर शनास (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कद्र शनासÓ।
$कदरे ($फा.वि.)-दे.-'$कद्रेÓ।
$कदरे $कलील (अ़.वि.)-दे.-'$कद्रे $कलीलÓ।
$कदह (अ़.पु.)-प्याला, चषक; मदिरा पीने का पात्र, शराब का जाम, पेयपात्र, पान-पात्र। प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त, जैसे-'मै+$कदहÓ-मै$कदह-मधुपात्र, मधुप्याला।
$कदहकश (अ़.$फा.वि.)-शराब पीनेवाला, सुरापान करने वाला, शराबी, मद्यप।
$कदहख़्वार (अ़.$फा.वि.)-शराब पीनेवाला, शराबी, मद्यप, $कदहकश।
$कदहनोश (अ़.$फा.वि.)-शराबख़्ाोर, मदिरा या शराब पीने-वाला, शराबी, मद्यप।
कदा ($फा.पु.)-दे.-'कद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$कदामत (अ़.स्त्री.)-पुरातत्त्व, प्राचीनता, पुरानापन (समय का); $कदीम या पुराना होने का भाव।
$कदामत परस्त (अ़.$फा.वि.)-रूढि़वादी, प्राचीनतावादी, जो पुरानी बातों को छोड़कर नयी बातों को ग्रहण न करे।
$कदामत परस्ती (अ़.$फा.स्त्री.)-रूढि़वाद, प्राचीनतावाद, पुरातन-पंथी, पुरानी बातों को छोड़कर नए विचारों को ग्रहण न करना।
$कदामत पसन्द (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कदामत परस्तÓ।
$कदामत पसन्दी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'$कदामत परस्तीÓ।
कदिर (अ़.वि.)-गन्दा, मैला, मलिन, गँदला, मटीला।
कदीद (अ़.स्त्री.)-कूटी-पीटी ज़मीन।
$कदीद (अ़.पु.)-सुखाया हुआ मांस, जिसे पकाकर खाते हैं।
$कदीम (अ़.वि.)-पुराने ज़माने का, पुराना, पुरातन, प्राचीन; हमेशा का, जो आदि से हो, अनादि, बहुत दिनों का; पैतृक, मौरूसी, बाप-दादा के समय का।
$कदीमान: (अ़.$फा.वि.)-पुराना-जैसा, पुरातन; $कदीमी; पुराने समय का-सा, प्राचीनकाल का-सा।
$कदीमी (अ़.वि.)-पुराना, पुरातन, पुराने समय का; पैतृक, मौरूसी, बाप-दादा के समय का।
कदीर: (अ़.वि.)-गन्दा, गँदला, मलिन, मटैला, मटीला; गुप्त, पोशीदा।
$कदीर (अ़.पु.)-शक्तिशाली, ता$कतवर; समर्थ, साहिबे- $कुद्रत, $कुद्रतवाला; सर्वशक्तिमान्, ईश्वर।
$कदीस (अ़.पु.)-मोती, मुक्ता।
कदू ($फा.पु.)-लौकी, तँूबी, कद्दू; लौकी, कद्दू या घिया का ख़्ाोल जिसका प्याला आदि बनाते हैं, प्याला।
$कदूअ़ (अ़.वि.)-नीच, कमीना, अधम, पामर, लो$फर।
कदूए हज्जाम (अ़.$फा.पु.)-पछने या सिंगी लगानेवालों का प्याला, जिसमें वे खींचा हुआ ख़्ाून रखते हैं, $फस्द खोलने-वाले नाई का प्याला।
कदूकश ($फा.पु.)-कद्दू के महीन टुकड़े करने का यंत्र, लौकी आदि छीलने का यंत्र, कद्दूकश।
कदूद (अ़.वि.)-विपत्ति उठानेवाला व्यक्ति, (पु.)-प्याला; ऐसा कुआँ, जिसमें से पानी बहुत कठिनता से निकले।
$कदूम (अ़.पु.)-बढ़इयों का बसूला; बार-बार आगे आने- वाला व्यक्ति।
कदूरत (अ़.स्त्री.)-गँदलापन, गन्दापन, मैलापन; मन-मुटाव, वैमनस्य, रंजिश, मलाल, मनो-मालिन्य। 'कदूरत रखनाÓ-कपट रखना।
$कदूस (अ़.वि.)-खड्गधारी, तलवार लेकर सामना करने-वाला व्यक्ति, वीर, योद्घा।
$कदूह (अ़.पु.)-ऐसा कुआँ, जिसमें से हाथ से ही पानी निकाल लें, बहुत उथला कुआँ।
$कदे आज़ाद (अ़.पु)-दे.-'$कद्दे आज़ादÓ।
$कदे आदम (अ़.वि.)-दे.-'$कद्दे आदमÓ।
कदेवर ($फा.पु.)-खेतिहर, कृषक, किसान; घर का मालिक, गृह-स्वामी, घरवाला; गाँव का मुखिया, पटेल।
$कदो $कामत (अ़.पु.)-डील-डौल।
कदो काविश ($फा.स्त्री.)-परिश्रम, मेहनत, दौड़-धूप, भाग-दौड़।
$कद्दावर (अ़.$फा.पु.)-अच्छे बदन का, लम्बे जिस्म का, लम्बा-तगड़ा, गिरांडील।
कद्दू ($फा.पु.)-दे.-'कदूÓ, वही शुद्घ है।
कद्दूकश ($फा.पु.)-दे.-'कदूकशÓ।
कद्दूदान: ($फा.पु.)-पेट के भीतर हो जानेवाले छोटे-छोटे सफ़ेद कीड़े, जो पाख़्ााने के साथ बाहर निकलते हैं, थ्रेड-वोर्म।
$कद्देे आज़ाद (अ़.$फा.पु.)-सीधा $कद।
$कद्दे आदम (अ़.वि.)-आदमी के $कद के बराबर, मनुष्य की लम्बाई के बराबर लम्बा। '$कद्दे आदम ताज़ीम को उठनाÓ-किसी को सम्मान देने के लिए सीधा खड़ा होना।
$कद्र ($कद्र) (अ़.स्त्री.)-आदर, सत्कार, आवभगत; मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; मूल्य, $कीमत; अंदाज़, मात्रा, मिक़्दार; बराबर, यकसाँ, मिस्ल; गुण की परख। कहा.-$कद्रे जौहर शाह दानद या बदानद जौहरीÓ-हीरे की $कद्र हर आदमी नहीं जानता।
$कद्र दाँ ($कद्रदाँ) (अ़.$फा.वि.)-गुण-ग्राहक, गुण की $कद्र ($कदर) पहचाननेवाला, गुणज्ञ; मुरब्बी, सरपरस्त।
$कद्र दानी ($कद्रदानी) (अ़.$फा.स्त्री.)-गुणग्राहिता, गुण की $कद्र पहचानना, गुण की परख; सरपरस्ती।
$कद्र शनास ($कद्रशनास) (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कद्रदाँÓ।
$कद्र शनासी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'$कद्रदानीÓ।
$कद्रे ($कदे्र) ($फा.वि.)-किंचिन्मात्र, किंचित्, किंचन, ज़रा-सा, थोड़ा-सा, अल्प।
$कद्रे क़लील ($कदे्र क़लील) (अ़.वि.)-थोड़ा-सा, अल्प।
$कद्ह (अ़.स्त्री.)-तिरस्कार, अपमान; तह$कीर; निन्दा, आलोचना, हज्व; चुग़ली।
$कदहे शराब (अ़.पु.)-शराब का प्याला, मधुपात्र, सुरापात्र।
कन ($फा.प्रत्य.)-खोदनेवाला, जैसे-'कानकनÓ-खनन करनेवाला, खान खोदनेवाला। यह प्राय: यौगिक शब्दों के अन्त में आता है।
कनअ़ान (अ़.पु.)-हज्ऱत नूह के पुत्र का नाम, जो का$िफर (नास्तिक) था; एक प्राचीन नगर का नाम जहाँ हज्ऱत या$कूब रहते थे।
कनफ़ (अ़.पु.)-छोर, किनारा; ओर, तर$फ; दिशा, जानिब; त्राण, रक्षा, पनाह।
कनब (अ़.पु.)-चटाई बुनने की एक घास; अधिक काम करने के कारण हाथों में पड़े हुए छाले; हँसी-हँसी में होने- वाली हाथापाई।
$कनवात (अ़.पु.)-'$कनातÓ का बहु., पटी हुई नालियाँ; पीठ के बाँसे (रीढ़) की हड्डियाँ; भाले।
$कनस (अ़.पु.)-थोड़ी-सी उलटी, कै़।
$कनाअ़त (अ़.स्त्री.)-थोड़े पर राज़ी होना, थोड़ी-सी चीज़ पर सन्तोष, भाग्य-तुष्टि, सब्र, यथालाभ संतोष।
$कनाअ़त गुज़ीं (अ़.$फा.वि.)-जो कुछ मिल जाए उसी पर प्रसन्नता से जीवन यापन करनेवाला, भाग्य-तुष्ट, यथालाभ संतुष्ट।
$कनाअ़त शिअ़ार (अ़.वि.)-दे.-'$कनाअ़तगुज़ींÓ।
कनाइस (अ़.पु.)-'कनीस:Ó का बहु., ईसाइयों के गिरजे।
$कनात (अ़.पु.)-भाला; रीढ़ की हड्डी; पटी हुई नाली।
$कनात (तु.स्त्री.)-मोटे कपड़े की दीवार या पर्दा, जो ख़्ोमे के चारों ओर लगाते हैं। 'क्या कोई जल्सा होना है पागल और दीवानों का, कुछ लोग लगाते देखे हैं आज $कनातें पत्थर परÓ-माँझी
$कनादील (अ़.स्त्री.)-'$िकंदीलÓ का बहु., $िकंदीलें, दीप-समूह, लालटेंनें।
कनान: (अ़.वि.)-पुरातन, पुराना, जीर्ण, कोह्न:।
कनान (अ़.वि.)-दे.-'कनान:Ó।
कनाया (अ़.पु.)-दे.-'किनाय:Ó, वही शुद्घ है।
कनार: ($फा.पु.)-छोर, सिरा; तट, साहिल, किनारा; अन्त, अख़्ाीर; गोशा, एकान्त।
कनार:कश ($फा.वि.)-अलग, पृथक्; एकान्तवासी, गोशानशीन; निवृत्त, बेतअ़ल्लु$क, बेलगाव।
कनार:कशी (फा.स्त्री.)-जुदाई, बिछोह, वियोग, पृथक्ता, अ़लाहदगी; एकान्तवास, गोशानशीनी; निवृत्ति, बेतअ़ल्लु$की, सबसे अलग होकर अकेला रहना।
कनार ($फा.पु.)-बग़ल; बग़ल में सोना; गोद, क्रोड़, अंक; (उ.पु.)-किनारा, छोर, तट, साहिल; हाशिया। 'कनार गरम होनाÓ-हमबिस्तरी होना, साथ सोना, सहवास करना।
कनाराकशी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कनार:कशीÓ, वही शुद्घ है।
$कनावीज़ (तु.स्त्री.)-ऐ प्रकार का चमकदार मोटा रेशमी कपड़ा।
कनिंद: ($फा.वि.)-खनन करनेवाला, खोदनेवाला।
कनिश (फा.स्त्री.)-वैमनस्य, मनमुटाव; द्वेष, कीना।
कनिश्त (तु.पु.)-मन्दिर।
कनीज़ (फा.स्त्री.)-परिचारिका; सेविका, लौंडी, बाँदी, दासी।
कनीज़क (फा.स्त्री.)-छोटी दासी।
कनी$फ (अ़.पु.)-पाख़्ााना, शौचालय, शौचगृह; तलघर, तलगृह, तहख़्ााना; स्नानागार, $गुस्लख़्ााना, बाथरूम।
कनीस: (अ़.पु.)-गिरजा, ईसाइयों का उपासना-गृह। दे.- 'किनीस:Ó।
$कनीस (अ़.पु.)-आखेट, शिकार, मृगया।
$कनूत (अ़.वि.)-हताश, निराश, नाउम्मीद।
कनूद (अ़.वि.)-एहसान-$फरामोश, कृतघ्न, अकृतज्ञ, किसी के उपकार को न माननेवाला।
कन्अ़ाँ (अ़.पु.)-'कन्अ़ानÓ का लघुरूप।
कन्अ़ान (अ़.पु.)-हज्ऱत यूसु$फ की जन्मभूमि।
कन्अ़ानी (अ़.वि.)-'कन्अ़ानÓ का निवासी; कन्अ़ान से सम्बन्धित।
$कन्द ($फा.पु.)-दे.-'$कंदÓ।
कन्दन ($फा.पु.)-दे.-'कंदनÓ।
कन्दा ($फा.पु.)-दे.-'कंद:Ó।
कन्दाकार ($फा.वि.)-दे.-'कंद:कारÓ।
कन्दाकारी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कंद:कारीÓ।
कन्दागर ($फा.वि.)-दे.-'कंद:गरÓ।
कन्दील (अ़.स्त्री.)-दे.-'कंदीलÓ।
$कन्नाद (अ़.पु.)-हलवाई, मिठाई बनानेवाला; शकर बनाने-वाला।
$कन्नादख़्ाान: (अ़$.फा.पु.)-हलवाई की दूकान; शकर बनाने का कारख़ाना।
कन्नास (अ़.पु.)-मेहतर, भंगी, ख़्ााकरोब, झाड़ू देनेवाला; जल्लाद, फाँसी देनेवाला।
कन्$फ (अ़.पु.)-निगरानी करना, देख-रेख करना; फिर जाना, पलट जाना; सहायता करना, मदद करना, सहयोग देना।
$कन्$फज़ (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कुन्$फुज़Ó, वही शुद्घ है।
कपंक (अ़.पु.)-कम्मल, कम्बल।
कपट (सं.पु.)-अभिप्राय: साधन के निमित्त हृदय की बात छिपाने की वृत्ति, छल, दम्भ, धोखा; दुराव, छिपाव।
कपटी (सं.पु.)-कपट करनेवाला, धोखेबाज़, धूत्र्त, छलिया।
कपड़ा (हिं.पु.)-रूई, ऊन या रेशम के तागों से बुना हुआ पट, वस्त्र। मुहा.-'कपड़ों से होनाÓ-रजस्वला होना, मासिक धर्म से होना; नंगापन दूर किये हुए होना, पोशाक पहने हुए होना। 'कपड़े उतार लेनाÓ- ख़्ाूब लूटना।
कपी ($फा.पु.)-कपि, वानर, बन्दर, शाखामृग। (हिं.स्त्री.)-घिरनी, रस्सी लपेटने की गड़ारी, चरखी।
कपूत (हिं.पु.)-अपने कुल तथा धर्म विरुद्घ आचरण करने वाला पुत्र, बुरा लड़का, कुपुत्र।
कपूर (हिं.पु.)-स$फेद रंग का एक सुगन्धित द्रव्य जो हवा में उडऩे लगता है तथा अग्नि में जलने लगता है।
कप्नक ($फा.पु.)-कम्मल, कम्बल।
क$फ: ($फा.पु.)-अनाज की अधकुटी बाल, जिसमें दाने हों।
क$फ ($फा.पु.)-फेन, झाग, बलग़म, श्लेष्मा; लुआब, थूक।
क$फ [फ़्$फ] (अ़.पु.)-पंजा, हाथ का पंजा; करतल, हथेली; उर्दू छन्द की परिभाषा में सात अक्षरवाले 'गणÓ का अन्तिम अक्षर गिराकर '$फाइलातुन्Ó से '$फाइलातुÓ और 'मु$फाईलुन्Ó से 'मु$फाइलुÓ आदि बनाना। $क$फे अ$फसोस मलनाÓ-पछताकर हाथ मलना।
$क$फ (अ़.स्त्री.)-घास या तरकारी, जो सूखी हुई हो।
$क$फक ($फा.स्त्री.)-दे.-'$कफ़्कÓ।
क$फगीर ($फा.स्त्री.)-कलछी, चमचा, डोई; एक प्रकार का छेददार चमचा।
क$फच: ($फा.पु.)-क$फगीर, डोई; चमचा, कलछी, कड़छी; साँप का फन, सर्पफण।
क$फचए मार ($फा.पु.)-साँप का फन, फण।
क$फचा ($फा.पु.)-दे.-'क$फच:Ó, वही शुद्घ है।
क$फतार ($फा.पु.)-दे.-'कफ़्तारÓ।
$क$फद (अ़.पु.)-पाँव की उँगलियों के बल चलना।
क$फन (अ़.पु.)-वह कपड़ा, जिसमें शव को लपेटते हैं, मुर्दे को दिया जानेवाला कपड़ा, मृतचैल, मृतावरकवस्त्र। 'क$फन फाड़ केÓ-बेताब होकर, अधीर अवस्था में। 'क$फन को कौड़ी न रहनाÓ-निहायत गऱीब होना। 'क$फन फाड़ के निकल भागनाÓ-बेताब होकर निकल भागना; मरने को तैयार होना। 'क$फन मैला न होनाÓ-मरे हुए बहुत दिन न होना। 'क$फन सर से बाँधनाÓ-मरने को तैयार होकर लड़ाई पर जाना; $सर हथेली पर रखना। 'क$फन फाड़ के बोलनाÓ-बहुत ज़ोर से चिल्लाकर बोलना।
क$फन खसोट, क$फनचोर (उ.सं.पु.)-वह चोर, जो $कब्र खोदकर मुर्दे का क$फन चुराता हो, क$फनदुज़्द।
क$फन दुज़्द (अ़.$फा.वि.)-ऐसा धूर्त चोर जो मुर्दे का क$फन भी न छोड़े, क$फनचोर; $कब्र से क$फन निकालकर उससे अपना ख़्ार्च चलानेवाला; बहुत ही बेईमान, क$फन बेचू।
क$फनी ($फा.स्त्री.)-वह कपड़ा, जो मुर्दे के गले में डालते हैं; साधुओं के पहनने का एक विशेष वस्त्र; बे-आस्तीन का कुरता, जो नए बच्चों को पहनाते हैं।
क$फर: (अ़.पु.)-'का$िफरÓ का बहु., का$िफर लोग, नास्तिक लोग, ईश्वर को न माननेवाले लोग।
$क$फर (अ़.पु.)-धन का कम होना; शरीर में मांस का कम होना।
क$फल (अ़.पु.)-नितम्ब, चूतड़, उपस्थ।
$क$फस (अ़.पु.)-पिंजरा, वितंस; कारागार, $कैदख़्ााना; जाल, फन्दा; (ला.)-शरीर का पिंजर; शरीर, जिस्म, देह।
$क$फसआश्ना (अ़.फा.वि.)-जो पिंजरे से परिचित हो, जिसे पिंजरे में रहने का अभ्यास हो; जो जेल या कारागार में रह चुका हो।
$कफ़स ए उंसरी ($क$फसे उंसरी) (अ़.पु.)-पंचभूत-रूपी पिंजरा अथवा पिंजरा-रूपी पंचभूत; मनुष्य का शरीर, प्राणी का शरीर।
क$फा (अ़.पु.)-सिर के बल गिरना, औंधे मुँह गिरना; फिराना, लौटाना, वापस कराना।
$क$फा (अ़.पु.)-गुद्दी, सिर के पीछे का भाग।
क$फा$फ (अ़.पु.)-अटकल, अनुमान, अंदाज़ा; प्रतिदिन की जीविका जो गुज़र-भर की हो, रोज़ का ख़्ार्च।
$क$फार (अ़.पु.)-बिना सब्ज़ी या सालन की रोटी; बिना हरियाली की भूमि, बंजर ज़मीन।
क$फालत (अ़.स्त्री.)-ज़मानत, प्रतिभूति; भरण-पोषण, परवरिश; जिम्मेदारी, बार या बोझ उठाना। 'क$फालत बिन नफ़्सÓ-वैयक्तिक ज़मानत। 'क$फालत बिन मालÓ-सम्पत्ति की ज़मानत।
क$फालतनाम: (अ़.$फा.पु.)-ज़मानतनामा, प्रतिभूति-पत्र।
क$फालतनामा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'क$फालतनाम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$क$फाहीर ($फा.पु.)-सुन्दर और प्रियदर्शन मुख।
$क$फीद: ($फा.वि.)-विदीर्ण, फटा हुआ, तड़का हुआ।
$क$फी$फ (अ़.पु.)-सूखी हुई घास।
$क$फीर (अ़.पु.)-छियानवे रतल का पैमाना, एक नाप; एक सौ चवालीस शर्ईगज़ ज़मीन।
क$फील (अ़.वि.)-ज़ामिन, प्रतिभू, ज़मानती; पालनेवाला, पोषक, पालनकर्ता, परवरिश करनेवाला, पालन-पोषण की जिम्मेदारी निबाहनेवाला।
क$फूर (अ़.वि.)-नाशुक्रा, कृतघ्न, अकृतज्ञ, किसी का उपकार न माननेवाला।
क$फे दस्त ($फा.पु.)-हथेली, करतल।
क$फे पा ($फा.पु.)-तलुवा, पदतल।
क$फे मार ($फा.पु.)-साँप का फन, फण।
$कफ़्क ($फा.स्त्री.)-हाथ की हथेली; पाँव का तलुवा।
$कफ़्$काज़ ($फा.पु.)-काकेशिया, यूरोपीय रूस का प्रदेश।
कफ़्त: ($फा.वि.)-विदीर्ण, फटा हुआ, तड़का हुआ।
कफ़्तार ($फा.पु.)-बिल्ली के बराबर एक काला जन्तु, जो मृत मनुष्य का मांस खाता है, बिज्जू।
$कफ़्$फा$फ (अ़.पु.)-सोना-चाँदी।
कफ़्$फार: (अ़.पु.)-प्रायश्चित, किसी पाप से शुद्घि या मुक्ति के लिए किया जानेवाला कृत्य।
कफ्फ़़ारा (अ़.पु.)-दे.-'कफ्फ़़ार:Ó, वही शुद्घ है।
$कफ़्$फाल (अ़.वि.)-ताला बनानेवाला।
कफ़्$फुल ख़्ाज़ीब (अ़.पु.)-एक तारा।
कफ़्$फे ख़्ाज़ीब (अ़.पु.)-रँगा हुआ हाथ।
कफ्ऱ (अ़.पु.)-गोपन, छुपाना; बड़ा प्याला।
कफ़्श ($फा.स्त्री.)-पदत्राण, पादुका, जूता, उपानह; नालदार जूता; नालें।
कफ़्शकार ($फा.वि.)-मोची, जूते बनानेवाला; कफ़्शकारी करनेवाला; जूते मारनेवाला।
कफ़्शकारी ($फा.स्त्री.)-जूते बनाने का काम; जूते मारने का काम, जूतेबाज़ी।
कफ़्शख़्ाान: ($फा.पु.)-$गरीबख़्ााना; नम्रता प्रदर्शित करने के लिए अपने घर के बारे में भी ऐसा बोलते हैं-'इस $गरीब का कफ़्शख़्ाान:Ó अर्थात् मेरा मकान।
कफ़्शख़्ााना ($फा.पु.)-दे.-'कफ़्शख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
कफ़्शगर ($फा.पु.)-मोची, जूते बनाने अथवा गाँठनेवाला।
कफ़्शदोज़ ($फा.वि.)-जूते गाँठनेवाला, मोची।
कफ़्शदोज़ी ($फा.स्त्री.)-जूते गाँठने का काम।
कफ़्श ए पा (कफ़्शे पा ) ($फा.स्त्री.)-जूता, पदत्राण, पादुका।
कफ़्शबरदार ($फा.वि.)-श्रद्घाभाव से जूते उठानेवाला; बहुत बड़ा श्रद्घावान्; बहुत बड़ा भक्त; बहुत निम्न स्तर का।
कफ़्शबरदारी ($फा.स्त्री.)-श्रद्घाभाव से किसी के जूते उठाना; श्रद्घा, भक्ति, आस्था।
कब (हिं.क्रि.वि.)-किस समय; नहीं, कभी नहीं। 'कब काÓ-देर से, विलम्ब से। 'कब सेÓ-देर से, विलम्ब से। 'कब-कबÓ-कभी-कभी, बहुत कम। 'कब नहींÓ-बराबर, सदा, हमेशा।
कबक ($फा.पु.)-चकोर पक्षी।
$कब$क (तु.पु.)-कद्दू, लौकी।
$कब$कअंदाज़ (तु.$फा.वि.)-लक्ष्यभेदी, बहुत अच्छा निशानेबाज़, निशाना लगानेवाला, निशानची।
$कब$कअंदाज़ी (तु.$फा.स्त्री.)-बढिय़ा निशाना लगाना, निशानेबाज़ी, लक्ष्य-भेदन।
$कब$कअफ्ग़न (तु.$फा.वि.)- दे.-'$कब$कअंदाज़Ó।
$कब$कअफ्ग़नी (तु.$फा.स्त्री.)-दे.-'$कब$कअंदाज़ीÓ।
$कबज़ (अ़.पु.)-पेट में ऐंठन और पीड़ा, पाचन-क्रिया में गड़बड़ी हो। '$कब्ज़Ó भी प्रचलित है।
कबद (अ़.स्त्री.)-सख़्ती, कठोरता, कठिनाई।
$कबब (अ़.वि.)-क्षीणकटि, कृशकटि, कृशोदर, पतली कमरवाला (वाली)।
$कबर (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कब्रÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कबरिस्तान (अ़.$फा.पु.)-दे.-'$कब्रिस्तानÓ।
$कबल (अ़.वि.)-दे.-'$कब्लÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कबस (अ़.पु.)-दहकता हुआ कोयला, अग्नि में जलता हुआ लाल कोयला, अंगारा, अग्निखण्ड।
कबस (अ़.पु.)-मुँह के बल गड्ढ़े में गिरना।
$कबा (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार का लम्बा-ढीला पहनावा, दोहरा लम्बा अँगरखा, चो$गा, गाउन।
कबाइर (अ़.पु.)-'कबीर:Ó का बहु., महापातक, बड़े-बड़े पाप।
$कबाइल (अ़.पु.)-'$कबील:Ó का बहु., कुटुम्ब, $कबीले, जरगे; जमाअतें, $िफर्के़, जातियाँ।
$कबाइली (अ़.पु.)-अफ्ग़ानिस्तान की सीमा के निवासी, सरहदी।
$कबाएह (अ़.पु.)-'$कबीह:Ó का बहु., बुराइयाँ, दोष, ख़्ाराबियाँ।
$कबाचा ($फा.पु.)-छोटी $कबा, छोटा चोग़ा।
कबाड़ (हिं.पु.)-काम में न आनेवाली चीज़, निरर्थक वस्तु।
कबाद: ($फा.पु.)-बहुत नरम धनुष; लेज़ुम जिसे पहलवान लोग कस्रत करते समय घुमाते हैं।
$कबादोज़ (अ़.$फा.वि.)-दजऱ्ी, $कबा सीनेवाला, चोग़ा सीनेवाला दजऱ्ी।
कबाब: (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ बीज, तोमर के बीज, जो दवा में काम आते हैं।
कबाब (अ़.पु.)-$कीमे की तली हुई गोश्त की टिकिया या सींक पर सेंकी हुई मांस की नलियाँ।
कबाबचीनी ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ बीज, शीतलचीनी।
कबाबा (अ़.पु.)-दे.-'कबाब:Ó, वही शुद्घ है।
कबाबी ($फा.पु.)-वह, जो कबाब बनाता या बेचता हो; मांस खानेवाला, मांसाहारी, जैसे-शराबी-कबाबी, (वि.)-कबाब-सम्बन्धी।
$कबायल (अ़.पु.)-दे.-'$कबाइलÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कबाल: (अ़.पु.)-ज़मानत करना; घर या अन्य सम्पत्ति की बिक्री के दस्तावेज़; बिक्री के का$गज़, सम्पत्ति के वे पत्र या कागज़़ात जिनसे मालिकाना ह$क साबित हो।
$कबाल:नवीस (अ़.$फा.वि.)-$कबाला या दस्तावेज़ लिखने-वाला, सम्पत्ति के विक्रिय-पत्र तैयार करनेवाला, बैनामा लिखनेवाला।
$कबाल:नवीसी (अ़.$फा.स्त्री.)-$कबाले और दस्तावेज़ लिखने का काम या पेशा।
$कबाला (अ़.पु.)-दे.-'$कबाल:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कबालानवीस (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$कबाल:नवीसÓ।
$कबालानवीसी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'$कबाल:नवीसीÓ।
$कबाह (अ़.पु.)-बुरा होना, निकृष्ट होना, ख़्ाराब होना।
$कबाहत (अ़.स्त्री.)-निकृष्टता, बुराई, ख़्ाराबी, ऐब, त्रुटि; रुकावट, बाधा, ख़्ालल, अवरोध, दिक़्क़त, अड़चन; आपत्ति, विपत्ति, अनिष्ट; कठिनाई, कठिनता, मुश्किल।
कबिद (अ़.पु.)-जिगर, कलेजा, यकृत्।
$कबीज़ (अ़.वि.)-शीघ्रगामी, बहुत तेज़ चलनेवाला।
कबीद: ($फा.वि.)-मलिन, खिन्न, अफ़्सुर्द:; पीडि़त, दु:खित, रंजीदा।
कबीद:ख़्ाातिर (अ़.$फा.वि.)-अप्रसन्न, नाख़्ाुश, अफ़्सुर्द:, मलिनचित्त, खिन्नमनस्क।
कबीदगी ($फा.स्त्री.)-अप्रसन्नता, नाराजग़ी, अफ़्सुर्दगी, मलिनता।
कबीब (अ़.वि.)-अधोमुख, औंधे मुँह पड़ा हुआ, सिर के बल गिरा हुआ।
कबीर: (अ़.वि.)-बड़ा पाप, महापातक; बड़ी स्त्री।
कबीर (अ़.वि.)-श्रेष्ठ, उत्तम, बड़ा, महान्। (हिं.पु.)-एक वैष्णव भक्त कवि जो जुलाहे थे; एक प्रकार का अश्लील गीत जो होली में गाया जाता है।
कबीरा (अ़.वि.)-दे.-'कबीर:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
क़बील: (अ़.पु.)-वंश, गोत्र, ख़्ाानदान; जोरू, पत्नी; एक दल, वर्ग अथवा जाति के आदमी।
$कबील (अ़.पु.)-दल, समुदाय, गिरोह; $िफ$र्का, जाति, वर्ग; $कबूल करनेवाला, स्वीकार करनेवाला।
$कबीला (अ़.पु.)-दे.-'$कबील:Ó, वही शुद्घ है।
कबीस: (अ़.पु.)-मलमास, लौंद का महीना; बीच या मध्य में पडऩेवाला; सिर झुकाए हुए, परीशान, परेशान; वह कुआँ या नदी, जो मिट्टी से पट गयी हो। 'साल ए कबीस:Ó-वह वर्ष, जिसमें अधिक मास हों, लौंद का साल।
कबीसा (अ़.पु.)-दे.-'कबीस:Ó।
$कबीह (अ़.वि.)-दूषित, बुरा; निकृष्ट, ख़्ाराब; बदनुमा, भद्दा, बदसूरत, अप्रियदर्शन।
$कबीहसूरत (अ़.वि.)-कुरूप, बदशक्ल, बुरी सूरतवाला।
$कबु$र्ग: (तु.पु.)-ब$गल, पहलू, पाश्र्व; पहलू की हड्डी, पाश्र्वास्थि।
कबूतर (फा.पु.)-एक प्रसिद्घ पक्षी, कपोत, पारावात।
कबूतरख़्ाान: (फा.पु.)-कबूतरों के रहने का काबुक या दड़बा; ऐसी जगह, जहाँ हर कोई आता-जाता हो।
कबूतरख़्ााना (फा.पु.)-दे.-'कबूतरख़्ाान:Ó।
कबूतरदम (फा.पु.)-लम्बा चुम्बन, ख़्ाूब खींचकर लिया गया बोसा।
कबूतरपरपा (फा.पु.)-एक प्रकार का कबूतर, जिसके पाँव में पर (पंख) होते हैं और वह अच्छी तरह उड़ नहीं सकता।
कबूतरबाज़ ($फा.वि.)-कबूतर पालनेवाला, कबूतर उड़ाने-वाला, शर्त लगाकर कबूतर उड़ानेवाला।
कबूतरबाज़ी ($फा.स्त्री.)-कबूतर उड़ाने और पालने का काम, कपोत-क्रीडा।
कबूद (फा.पु.)-आसमानी, हलका नीला रंग; हलके नीले रंग का।
कबूदी ($फा.वि.)-नीलापन, निलाहट, नीले रंग का, नीले रंगवाला।
$कबूर (अ़.स्त्री.)-पिस्तौल रखने का चमड़े का ख़्ााना, जो काठी में बना होता है; $कब्रें, समाधियाँ।
$कबूल (अ़.वि.)-पसंद, स्वीकृत, मंज़ूर; स्वीकृति, मंज़ूरी; भोर या प्रात:काल की ठण्डी हवा, समीर।
$कबूलना (अ़.क्रि.)-स्वीकार करना, मंज़ूर करना, अंगीकार करना; तसलीम करना, इ$करार करना।
$कबूलसूरत (अ़.वि.)-जिसकी शक्ल अच्छी हो, प्रियदर्शन, सुन्दर, आकर्षक, ख़्ाूबसूरत, हसीन, लावण्यानन, सुमुख, जो मुखाकृति मन को भाये।
$कबूली (अ़.स्त्री.)-चने की दाल और चावल मिलाकर बनाया हुआ पुलाव या खिचड़ी; $कबूल करना; $कबूल करने की क्रिया या भाव।
$कबूलियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कबूलीयतÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कबूलीयत (अ़.स्त्री.)-स्वीकृति, मंज़ूरी, अंगीकार; पट्टे या किराये के वह दस्तावेज़ जो मकानदार या ज़मींदार की तर$फ से पुष्टि के लिए लिखे जाएँ।
$कबूले अ़ाम (अ़.वि.)-सर्वप्रिय, हर शख़्स को पसंद।
$कबूह (अ़.वि.)-बुरा, ख़्ाराब, निकृष्ट।
कब्क (फा.पु.)-एक प्रसिद्घ पक्षी, जो चाँद का प्रेमी है, चकोर।
$कब्क़ब (अ़.पु.)-उदर, पेट, जठर।
कब्करफ़्तार ($फा.वि.)-चकोर नामक पक्षी की तरह सुन्दर चाल से चलनेवाला।
$कब्क़ाब (अ़.पु.)-लकड़ी की खँड़ाऊँ, चट्टी; झूठ बोलना; स्त्री की भग जो बहुत बड़ी हो।
कब्के दरी (फा.पु.)-पहाड़ी चकोर, जिसकी चाल बहुत सुन्दर और मोहक होती है।
$कब्ज़: (अ़.पु.)-किवाड़ या सन्दू$क में जड़े जानेवाले लोहे या पीतल की चादर के बने हुए दो चौखूँटे टुकड़े; मूठ, दस्ता; पकड़, गिरिफ़्त; वश, $काबू, अधिकार; अधिकार, इख़्ितयार, दख़्ाल। मुहा.-'$कब्ज़े पर हाथ डालनाÓ-तलवार को म्यान से खींचने के लिए मूँठ पर हाथ ले जाना। '$कब्ज़ए बिल जब्रÓ-बलपूर्वक या बलात् किया हुआ कुब्ज़ा।
$कब्ज़:दार (अ़.पु.)-एक $िकस्म का मौरूसी (पैतृक) $काश्तकार।
$कब्ज़:दारी (अ़.$फा.स्त्री.)-$कब्ज़ा होने की अवस्था, किसी का ह$क या अधिकार होने की अवस्था।
$कब्ज (अ़.पु.)-दे.-'कब्कÓ।
$कब्ज़ (अ़.पु.)-मलावरोध, पाख़्ााना सा$फ न होना, पेट में मल का रुकना, कोष्ठबद्घता, बदहजमी; आनाह, अजीर्ण; सिकुडऩ, खिंचाव; पकड़, गिरिफ़्त, दख़्ाल, बस।
$कब्ज़ उल वसूल (अ़.पु.)-प्राप्ति का सूचक-पत्र, प्राप्ति की रसीद, वसूलयाबी का सूचक-पत्र।
$कब्ज़ए $कुद्रत (अ़.पु.)-ईश्वरीय-शक्ति, दैव-शक्ति, ख़्ाुदाई कुव्वत; इख़्ितयार, अधिकार, $काबू, वश।
$कब्ज़ा (अ़.पु.)-दे.-'$कब्ज़:Ó, वही शुद्घ है।
$कब्ज़ादार (अ़.पु.)-दे.-'$कब्ज़:दारÓ, वही शुद्घ है।
$कब्ज़ादारी (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कब्ज़:दारीÓ, वही शुद्घ है।
$कब्जिय़त (अ़.स्त्री.)-मलावरोध, दस्त सा$फ न होना, मल का पेट में रुकना, मलरोध, कोष्ठबद्घता।
$कब्ज़ुल वसूल (अ़.पु.)-प्राप्ति का सूचक-पत्र, प्राप्ति की रसीद, प्राप्ति-पत्र, वसूलयाबी का सूचक-पत्र।
$कब्ज़े रूह (अ़.स्त्री.)-रूह का बदन से पलायन, शरीर से प्राणों का निकलना, जीव का देह से निकलना, प्राण-त्याग।
कब्त (अ़.पु.)-तिरस्कृत करना, अपमानित करना, बेइज़्ज़त करना।
कब्द (अ़.पु.)-जिगर, यकृत्। दे.-'कबिदÓ, वही अधिक प्रयुक्त है।
$कब्बान (अ़.पु.)-एक पल्ले की तराज़ू; बड़ी तराज़ू, तक।
$कब्र (अ़.स्त्री.)-वह गड्ढ़ा जिसमें मुर्दे गाड़े जाते हैं, वह गर्त जिसमें शव द$फनाये जाते हैं, $गोर, समाधि-भवन; वह चबूतरा, जो इस प्रकार के गड्ढ़े पर बनाया जाता है।
$कब्रपरस्त (अ़.$फा.वि.)-मुसलमान महात्माओं की $कब्र पर फूल चढ़ाने, दीप जलाने, स$फाई करने और चादर आदि चढ़ानेवाला, $कब्र-सेवक, ख़्ाादिम, समाधि-सेवादार।
$कब्रिस्तान (अ़.$फा.पु.)-जहाँ बहुत-सी $कब्रें हों, जहाँ मुर्दे गाड़े जाते हों, समाधि-क्षेत्र।
$कब्ल (अ़.वि.)-पहले का; पहले, आगे, पेश्तर, अव्वल, पूर्व। कहा.-'$कब्ल अज़ मर्ग वावेलाÓ-मुसीबत या आ$फत आने से पहले शिकायत करना।
$कब्ल अज़ वक़्त (अ़.$फा.वि.)-समय से पूर्व, नियत काल से पहले।
$कब्लअज़ीं (अ़.$फा.वि.)-इससे पहले, अब से पहले, तत्पूर्व।
$कब्ललवु$कूअ़ (अ़.वि.)-घटना से पूर्व, वा$कए से पहले।
कब्श (अ़.पु.)-सींगोंवाली नर भेड़, मेंढ़ा।
कब्स (अ़.पु.)-कुएँ को मिट्टी से पाटना; शबख़्ाून मारना, रात में आक्रमण करना या धावा बोलना, रात्रि में छापेमारी करना; गर्दन लटकाना।
कभी (हिं.क्रि.वि.)-किसी समय। पद.-'कभी काÓ-बहुत देर से। 'कभी-कभीÓ-कुछ काल के अन्तर पर; बहुत कम। 'कभी-कभारÓ-कभी-कभी। 'कभी न कभीÓ-किसी न किसी समय; आगे चलकर अवश्य किसी अवसर पर।
कभू (हिं.क्रि.वि.)-दे.-'कभीÓ।
कमंगर ($फा.पु.)-कमान या धनुष बनानेवाला; हड्डी बैठाने वाला; चितेरा, चित्रकार।
कमंगरी ($फा.स्त्री.)-कमान बनाने का पेशा या हुनर; हड्डी बैठाने का काम; चित्रकारी, मुसव्वरी।
कमंद ($फा.स्त्री.)-एक लम्बी रस्सी, जिसके एक सिरे पर गोह बाँधी जाती थी तथा उसके द्वारा ऊँची-ऊँची दीवारों पर चढ़ा जाता था (गोह जहाँ चिपक जाती है फिर कितना ही ज़ोर लगाया जाए वहाँ से नहीं छूटती); रसाई का जऱीया, पहुँच का साधन; पाश, फन्दा।
कमंद अंदाज़ ($फा.वि.)-कमंद फेंकनेवाला, कमंद के सहारे दीवार पर चढऩेवाला; फन्दा डालनेवाला।
कमंदे ज़ुल्$फ ($फा.स्त्री.)-बालों की कमंद, बालों का फन्दा, केश-पाश।
कम ($फा.वि.)-जऱा-सा, अल्प, न्यून, थोड़ा; हीन, विहीन, बिना; बद, बुरा; छोटा, अदना। 'कम ओ बेशÓ-लगभग, त$करीबन, तख़्ामीनन। 'कम से कमÓ-अधिक नहीं तो इतना अवश्य।
कम (अ़.वि.)-बहुत, अधिक; कितने, कितना।
कमअ़क़्ल (अ़.वि.)-मूर्ख, नासमझ, अल्पबुद्घि, बेव$कू$फ।
कम अज़ कम ($फा.वि.)-कम से कम, अधिक न हो तो इतना अवश्य।
कमअय़ार ($फा.वि.)-खोटा सिक्का।
कमअस्ल (अ़.$फा.वि.)-कमीना, नालाय$क, ज़लील, अधम, पामर, अकुलीन, नीच, कमज़ात।
कमआज़ार ($फा.वि.)-कम दु:ख देनेवाला, जो अधिक न सताए।
कमआमेज़ ($फा.वि.)-अलग-थलग रहनेवाला, जो लोगों से मिलने-जुलने में कतराता हो, जिसे मनुष्यों की संगत पसन्द न हो, 'रिज़व्र्ड नेचरÓ, अंतर्मुखी।
कमइख़्ितलात ($फा.वि.)-दे.-'कमआमेज़Ó।
कमइयार (अ़.$फा.वि.)-ऐसा सोना या चाँदी, जो कसौटी पर खरा न उतरे; ख़्ाराब व्यक्ति, ओछा आदमी।
कमइल्म (अ़.$फा.वि.)-अल्पज्ञानी, जिसमें ज्ञान की कमी हो, जिसे विद्या-सम्बन्धी ज्ञान कम हो, जो कम पढ़ा-लिखा हो, अल्पविद्य, अल्प-शिक्षित, अर्धशिक्षित।
कमउम्र (अ़.$फा.वि.)-छोटा, छोटी उम्र का, अल्पवयस्क, छोटी आयुवाला, कमसिन।
कमउम्री (अ़.$फा.स्त्री.)-बाल्यावस्था, अल्पवय, कमसिनी।
कमऔ$कात (अ़.$फा.वि.)-कमहैसियत, बेहैसियत, जिसकी कोई पूछ न हो, बे$कद्र, तिरस्कृत, अनादृत।
कम$कद्र (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कमऔ$कातÓ।
कमकम ($फा.वि.)-थोड़ा-थोड़ा।
कम$िकस्मत ($फा.पु.)-जिसका भाग्य अच्छा न हो।
कम$िकस्मती ($फा.स्त्री.)-कमनसीबी, दुर्भाग्य।
कम$कीमत (अ़.$फा.वि.)-अल्पमोली, अल्पमूल्य, थोड़े मूल्यवाला, सस्ता, मन्दा। कहा.-'कम $कीमत, बालानशींÓ-वह चीज़ जो मूल्य में कम हो और नुमाइश अर्थात् दिखावे में अधिक हो।
कमख़्ार्च ($फा.वि.)-कि$फायतशिअ़ार, कम ख़्ार्च करनेवाला, अल्पव्ययी, मितव्ययी; कंजूस।
कमख़्ार्ची ($फा.स्त्री.)-मितव्यय, कि$फायत शिअ़ारी बरतना, थोड़ा ख़्ार्च करना; कंजूसी करना।
कमख़्ााब ($फा.पु.)-एक प्रकार का बहुमूल्य कपड़ा, जिस पर कलाबत्तू या सोने-चाँदी के तारों का काम बना हुआ हो।
कमख़्ाोर ($फा.वि.)-मिताहारी, मितभोजी, कम खानेवाला, स्वल्पाहारी।
कमख़्ाोरी ($फा.स्त्री.)-मिताहार, कम खाना।
कमख़्वाब ($फा.वि.)-अल्पशायी, मितस्वापी, कम सोने-वाला।
कमगुफ़्तार ($फा.वि.)-कम बोलनेवाला, अल्पभाषी।
कमगो ($फा.वि.)-अल्पभाषी, मितभाषी, कम बातें करने-वाला, कम बोलनेवाला, मौन रहनेवाला, कमसुख़्ान।
$कमची (तु.स्त्री.)-पतली छड़ी जो झुक जाए, साँटी; कोड़ा, चाबुक, प्रतोद।
कमज़न ($फा.वि.)-अल्प साहसी, कम हिम्मतवाला, कम हौसलेवाला, डरपोक, भीरू।
कमज़$र्फ (अ़.$फा.वि.)-अनुदार, तंग नज़र, छोटी या ओछी सोचवाला, संकुचित सोचवाला; ओछा, तुच्छ, कमीना।
कमज़$र्फी (अ़.$फा.स्त्री.)-अनुदारता; ओछापन, तंगनजऱी।
कमज़ात ($फा.वि.)-नीच, कमीना, ओछा; नीच ज़ात का।
कमज़ोर ($फा.वि.)-बोदा, अशक्त, दुर्बल, नाता$कत, क्षीण।
कमज़ोरी ($फा.स्त्री.)-निर्बलता, अशक्ति, दुर्बलता, क्षीणता, नाता$कती।
कमतर ($फा.वि.)-कम की अपेक्षा कुछ और कम, बहुत थोड़ा, बहुत कम, न्यूनतर।
कमतरीन ($फा.वि.)-बहुत ही थोड़ा, बहुत ही कम, न के बराबर, न्यूनतम; ख़्ााकसार, नाचीज़, तुच्छ सेवक। इस शब्द का प्रयोग बोलनेवाला अपनी नम्रता प्रदर्शित करने के लिए भी करता है।
कमतवज्जुही (अ़.$फा.स्त्री.)-उपेक्षा, दु:शीलता, रूखापन।
कमतालिई (अ़.$फा.स्त्री.)-अभागापन, भाग्य की ख़्ाराबी, $िकस्मत का हेटापन।
कमनसीं ($फा.वि.)-वह फन्देदार रस्सी, जिसे फेंककर जंगली पशु फाँसे जाते हैं; वह फन्देदार रस्सी, जिसे फेंककर ऊँचे मकानों पर चढ़ा जाता है।
कमनसीब (अ़.$फा.वि.)-हतभाग्य, मन्दभाग्य, बद$िकस्मत।
कमनसीबी (अ़.$फा.स्त्री.)-भाग्यहीनता, बदकिस्मती, भाग्य की ख़्ाराबी।
कमनिगही ($फा.स्त्री.)-उपेक्षा, रूखापन; कृपणता, कंजूसी।
कमनिगाह ($फा.वि.)-लापरवाह, उपेक्षा करनेवाला, किसी चीज़ पर ध्यान न देनेवाला।
कमनिगाही ($फा.स्त्री.)-अल्पदृष्टि; तुच्छ सोच; संकुचित विचार; उपेक्षा, रूखापन; बेपरवाही, लापरवाही, बेतवज्जुही; कृपणता, कंजूसी।
कमन्द ($फा.स्त्री.)-दे.-'कमंदÓ।
कमपाय: ($फा.वि.)-निम्न पदधारी, जो पदवी और सम्मान में कम हो, कम हैसियतवाला।
कमपायगी ($फा.स्त्री.)-पदवी और मर्तबे में कम होना।
कमफ़ह्म (अ़.$फा.वि.)-अल्पबुद्घि, नासमझ, मूर्ख, कम-समझ, बेअ़क़्ल।
कमफ़ह्मी (अ़.$फा.स्त्री.)-समझ की कमी, बेअ़क़्ली, मूर्खता।
कम$फुर्सत (अ़.$फा.वि.)-अवकाशहीन, जिसे काम की अधिकता से छुट्टी न मिले, अति व्यस्त।
कम$फुर्सती (अ़.$फा.स्त्री.)-अवकाशहीनता, छुट्टी न होना, अतिव्यस्तता, कालाभाव।
कमबख़्त ($फा.वि.)-अभागा, हतभाग्य, शामत का मारा, बद$िकस्मत।
कमबख़्ती ($फा.स्त्री.)-हतभाग्यता, अभागापन, भाग्य की ख़्ाराबी, दुर्भाग्य; शामत।
कमबीं ($फा.वि.)-अल्पदृष्टि, कम देखनेवाला; अदूरदर्शी; अनुदार, तंगनज़र।
कमबीनी ($फा.स्त्री.)-क्षीण-दृष्टि, कम देखना, दृष्टि की ख़्ाराबी; अदूरदर्शिता; अनुदारता, तंगनज़री।
कममश्$क (अ़.$फा.वि.)-नौसिखिया, नवाभ्यस्त, जिसे किसी काम का अभ्यास कम हो।
कममश्$की ($फा.स्त्री.)-नौसिखियापन, नवाभ्यास।
कममाय: ($फा.वि.)-कम पूँजीवाला, थोड़ी पूँजीवाला, टुटपूँजिया; तुच्छ, नीच, कमीना।
कममायगी ($फा.स्त्री.)-धन की कमी, पूँजी की अल्पता, निर्धनता, हैसियत में कमी होना; तुच्छता, नीचता, कमीनगी।
कममाया ($फा.वि.)-दे.-'कममाय:Ó, वही शुद्घ है।
कमयाब ($फा.वि.)-नादिर, दुर्लभ; दुष्प्राप्य, जो बहुत कम मिल सके; अप्राप्य, जो बिलकुल न मिल सके।
कमयाबी ($फा.स्त्री.)-किसी वस्तु का अभाव, कम मिलना अथवा बिलकुल न मिलना।
कमर ($फा.स्त्री.)-कटि, लंक, शरीर का मध्य भाग, जिस्म का दरमियानी हिस्सा; काबुली कबूतर का हवा में कलाबाजिय़ाँ खाना; वस्त्र अथवा पोशाक का वह हिस्सा, जो कमर पर रहता है; पहलवानों की कुश्ती का एक पेंच या दॉव। मुहा.-'कमर कसनाÓ-किसी काम पर मुस्तैद होना, पक्का इरादा करना। 'कमर गड़ जानाÓ-बहुत ही लज्जित होना। 'कमर चुस्त होनाÓ-तैयार होना। 'कमर टूट जानाÓ-हिम्मत टूट जाना, आशा जाती रहना। 'कमर तोडऩाÓ-हिम्मत तोडऩा, ज़ोर तोडऩा। 'कमर बाँधनाÓ-चलने के लिए तैयार होना, मुस्तैद होना, आशा रखना, भरोसा रखना। 'कमर बिस्तर से लगनाÓ-तड़पना, बहुत बेचैन होना।
कमर कुशाई ($फा.स्त्री.)-सिपाही का अपने हथियारों को कमर से खोलना।
$कमर (अ़.पु.)-चन्द्र, चाँद, चन्द्रमा, राकेश, शशि।
$कमर तल्अ़त (अ़.वि.)-चन्द्रप्रभ, चन्द्रप्रभा, चन्द्रकान्त, चन्द्रकान्ता, चाँद-जैसी प्रभावाला (वाली)।
$कमर दर अ़क्ऱब (अ़.$फा.वि.)-चन्द्रमा का वृश्चिक राशि में होना, जो बहुत ही अशुभ माना जाता है।
$कमर पैकर (अ़.$फा.वि.)-चाँद-जैसे शरीरवाला (वाली), चन्द्रांग, चन्द्रांगना।
कमरबन्द ($फा.पु.)-कमर बाँधने का दुपट्टा, पटका; नाड़ा, पाजामे आदि को बाँधने की डोरी, इज़ारबन्द, नीवी, (वि.)-जो किसी काम के लिए कील-काँटे अर्थात् आवश्यक उपकरणों से लैस हो।
कमरबन्दी ($फा.स्त्री.)-किसी काम के लिए तैयारी, पुलिस आदि के सिपाहियों की कहीं दविश या आक्रमण के लिए वर्दी और हथियार आदि से दुरुस्त होकर कूच की तैयारी; सेना का सुसज्जित होना।
कमरबस्त: ($फा.वि.)-जो किसी काम के लिए कमर कसे हुए हो, आमादा, तैयार, उद्यत।
कमरबस्ता ($फा.वि.)-दे.-'कमरबस्त:Ó।
कमरशिकस्त: ($फा.वि.)-जिसकी कमर टूट गई हो, अर्थात् जिसका सहारा छिन गया हो, निराधार, निराश्रय, बिना मित्र और सहायक।
कमरशिकस्ता ($फा.वि.)-दे.-'कमरशिकस्त:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
कमरसी ($फा.स्त्री.)-ज्ञान या इल्म का अभाव, कम पढ़ा-लिखा होना, विद्वता का अभाव, कमइल्मी।
$कमरी (अ़.वि.)-चन्द्रमा से सम्बन्ध रखनेवाला; चन्द्रमास, हिन्दी या इस्लामी महीना, जो चाँद के हिसाब से होता है, चान्द्रमास।
कमरी ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार की कुरती; कम्बल; घोड़े के एक रोग का नाम।
कम रू ($फा.वि.)-देखने में ह$कीर, बुरी शक्लवाला, कुरूप, बदसूरत; जो किसी बड़े पद पर न जँचे, अशोभनीय, अननुकूल।
कमरे कोह ($फा.स्त्री.)-पहाड़ का मध्य; पहाड़ की गु$फा।
$कमरैन (अ़.पु.)-चाँद और सूरज, चन्द्र-सूर्य।
कम रौ ($फा.वि.)-सुस्त-रफ़्तार, धीरे चलनेवाला।
$कमल (अ़.पु.)-जँू पडऩा, कपड़ों या बालों में जुएँ हो जाना; पेट का बड़ा हो जाना। (सं.पु.)-जल में उगनेवाला एक पौधा जो अपने सुन्दर फूलों के कारण बहुत प्रसिद्घ है; इस पौधे के फूल के आकार का एक मांस-पिण्ड जो पेट में दाहिनी तर$फ होता है; जल, पानी; गर्भाशय का अग्रभाग, टणा, फूल, धरन; एक प्रकार का पित्तरोग; एक प्रकार का मृग; रोरी, कुम्कुम; आँख का कोया; मूत्राशय, मसाना; दीपक-राग का दूसरा पुत्र; छह मात्राओं का एक छन्द; छप्पय छन्द के 71 भेदों में से एक।
कम व कास्त ($फा.वि.)-किसी बात में कुछ कम और किसी बात में कुछ ज़्यादा। दे.-'कमोकास्तÓ।
कम शह्वत ($फा.वि.)-जिसमें कामेच्छा की कमी हो, जो स्त्री-प्रसंग के प्रति उदासीन हो; कमर का ढीला, सुस्त।
कमसंज ($फा.वि.)-कम तौलनेवाला, डण्डी मारनेवाला।
कमसंजी ($फा.स्त्री.)-कम तौलना, डण्डी मारना, तुलाकूट।
कम साल ($फा.वि.)-कम उम्र।
कमसिन (अ़.$फा.वि.)-अल्पवयस्क, कम आयुवाला, छोटी आयुवाला, कम उम्र का; अवयस्क, नाबालि$ग।
कमसिनी (अ़.$फा.स्त्री.)-बाल्यावस्था, कमउम्री, अल्पवय; अवयस्कता, नाबालि$गी, छोटी उम्र का होना।
कमसुख़्ान ($फा.वि.)-चुप्पा, कम बोलनेवाला, जो बातचीत कम करे, मितभाषी, अल्पवादी, बेज़बान।
कमसुख़्ानी ($फा.स्त्री.)-कम बोलना, चुप रहना, कम बातें करना।
कमहिम्मत (अ़.$फा.वि.)-अल्पसाहसी, जिसमें साहस की कमी हो, अल्पोत्साही।
कमहिम्मती (अ़.$फा.स्त्री.)-साहस और हिम्मत की कमी, साहसाभाव।
कमहैसियत (अ़.$फा.वि.)-अनादृत, अप्रतिष्ठित, बे$कद्र; अकुलीन, बदनस्ल; जिसकी आर्थिक दशा अच्छी न हो।
कमहौसल: (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कमहिम्मतÓ।
कमहौसलगी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'कमहिम्मतीÓ।
$कमह्दुवा (अ़.पु.)-गुद्दी, खोपड़ी का पिछला भाग।
कमाँ ($फा.स्त्री.)-'कमानÓ का लघु., दे.-'कमानÓ।
कमाँअंदाज़ ($फा.वि.)-धनुर्धर, तीरंदाज़।
कमाँअब्रू ($फा.वि.)-अंचिजभ्रू, जिसकी भौहें धनुष की तरह टेढ़ी और सुन्दर हों, धनुषाकार; प्रेमिका, प्रेयसी, प्रियतमा, माÓशू$क:।
कमाँकश ($फा.वि.)-धनुर्धर, तीरंदाज़।
कमाँगर ($फा.वि.)-धनुष्कार, धनुष बनानेवाला।
कमाँगीर ($फा.वि.)-धनुर्धर, तीरंदाज़, तीर चलानेवाला।
कमाँगुरोह: ($फा.स्त्री.)-गुलेल, जिसमें $गुल्ला चलाते हैं।
कमाँजोल: ($फा.पु.)-कमाँदान, गले में पहना जानेवाला चमड़े का वह तस्मा, जिसमें कमान लटकाई जाती है।
कमाँदार ($फा.वि.)-तीर चलानेवाला, धनुर्धर।
कमाँबदस्त ($फा.वि.)-हाथ में कमान लिये हुए, धनुष्पाणि।
कमाँबरदार ($फा.वि.)-तीरंदाज़, धनुर्धर, धनुष-बाण लेकर चलनेवाला।
कमा (अ़.पु.)-तोडऩा।
कमाई (हिं.स्त्री.)-कमाया हुआ धन, अर्जित द्रव्य; कमाने का काम या व्यवसाय, धंधा।
कमात (अ़.पु.)-कुकुरमुत्ता, बरसात में पैदा होनेवाली खुम्बी।
कमान: ($फा.पु.)-बढ़ई की वह कमान, जिससे वह बर्मा चलाता है।
कमान ($फा.स्त्री.)-तीर चलाने का यंत्र, धन्व, धन्वा, धनु, धनुष; मेहराब; तोप, बन्दू$क; क्रोध, ग़ुस्सा; झुका हुआ, ख़्ामीदा; लचकदार। मुहा.-'कमान चढऩाÓ-दौर-दौरा होना; त्योरी चढऩा, क्रोध में होना।
कमानकश ($फा.पु.)-कमान खींचनेवाला।
कमानगर ($फा.वि.)-धनुष्कार, धनुष बनानेवाला।
कमानगीर ($फा.वि.)-तीरंदाज़ी में महारत रखनेवाला, बहुत-ही कुशल तीर चलानेवाला।
कमानच: ($फा.पु.)-धनुक, धनुही, छोटी कमान या धनुष; एक प्रकार की सारंगी; मेहराबदार छत; बड़ी इमारत के साथ छोटा कमरा या मकान; वह $गुलेल, जिससे अ़ौरतें रुई धुनती हैं; $फौलाद की कमानी।
कमानचा ($फा.पु.)-दे.-'कमानच:Ó, वही शुद्घ है।
कमानदार ($फा.पु.)-कमान या धनुष चलानेवाला, धनुर्धर। (वि.)-धनुष्कार; मेहराबदार।
कमाना (हिं.क्रि.सक.)-व्यापार या उद्यम द्वारा धनोपार्जन करना; किसी चीज़ को सुधारकर काम के योग्य बनाना; सेवा-सम्बन्धी छोटे-छोटे काम करना, जैसे-'पाखाना कमानाÓ-मल या मैला उठाना; 'दाढ़ी कमानाÓ-हजामत बनाना; कर्म संचय करना, कर्म करना, जैसे-वाप अथवा पुण्य कमाना; (क्रि.अक.)-मेहनत-मज़दूरी करना; कसब करना या व्यभिचार द्वारा धन उपार्जित करना।
कमानी ($फा.स्त्री.)-धातु का लचीला तार या पत्तर जो दाब पडऩे पर दब जाए और फिर अपनी जगह पर आ जाए; कमान की तरह झुकी हुयी चीज़ अथवा पुजऱ्ा; झुका हुआ और लचकदार लोहे का पुजऱ्ा, जो प्राय: बग्घियों, घडिय़ों और कुर्सी की गद्दी आदि में लगाते हैं; बढ़ई की वह लकड़ी, जिसमें बरमा लगाकर घुमाते हैं; सारंगी का गज़; एक प्रकार की चमड़े की पेटी जो आँत उतरने पर कमर में बाँधी जाती है।
कमाने शैताँ ($फा.स्त्री.)-$कौसे $कुज़ह, धनुक, इन्द्रधनुष।
कमामंबग़ी (अ़.वि.)-यथेष्ट, यथोचित, जैसा चाहिए वैसा, यथावांछित।
$कमारी (अ़.स्त्री.)-'$कुम्रीÓ का बहु., $कुम्रियाँ। '$कुम्रीÓ-एक प्रकार का स$फेद पक्षी।
कमाल (अ़.पु.)-अद्भुत काम, अनोखी बात; विशेषता, गुण, ख़्ाूबी; कला, $फन, शिल्प, दस्तकारी; हुनर, कारीगरी; अधिक, बहुत; पूर्णता, परिपूर्णता, पूरापन, अत्यधिक उन्नति; विद्वता, योग्यता, $काबिलीयत; धूर्तता, चालाकी। 'कमाल का बना हुआÓ-चालबाज़, निहायत होशियार, छलिया, $फरेबी।
कमालात (अ़.पु.)-'कमालÓ का बहु., अनेक विशेषताएँ, अनेक ख़्ाूबियाँ, अनेक गुण, अनेक हुनर।
कमालियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'कमालीयतÓ।
कमालीयत (अ़.स्त्री.)-कमाल का भाव; पूर्णता, दक्षता।
कमाले $फन (अ.पु.)-कला-नैपुण्य, किसी कला की जानकारी की पराकाष्ठा, कला-वैशिष्ट्य।
कमा हक्का (अ़.क्रि.वि.)-ठीक-ठीक, यथेष्ठ; जैसा कि वास्तव में है, उचित रूप में।
कमाही (अ़.वि.)-कामिल, पूरा; यथेष्ठ, पूरी-पूरी।
कमीं (अ़.पु.)-'कमीनÓ का लघुरूप, दे.-'कमीनÓ।
कमींगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-घात-स्थल, आड़, वह गुप्त स्थान जहाँ किसी की ताक में छुपकर बैठा जाए, शिकार की ताक में छुपकर बैठने का स्थान।
कमी ($फा.स्त्री.)-दोष, ऐब, नुक़्स; त्रुटि, $गलती; कम होने का भाव; घाटा, नु$कसान, हानि; कसर, कोताही, न्यूनता, थोड़ापन।
$कमीज़ (अ़.स्त्री.)-$कमीस, एक विशेष प्रकार का कुर्ता।
कमीन: ($फा.पु.)-शिकार की घात में छिपकर बैठनेवाला; छिपकर घात या वार करनेवाला; अकुलीन, $गैर शरी$फ; नीच, अधम, ओछा, पाजी, खल, धूर्त। 'कमीन:पनÓ-ओछापन, नीचता, पाजीपन।
कमीन (अ़.पु.)-दे.-'कमीन:Ó।
कमीनगाह (अ़.स्त्री.)-दे.-'कमींगाहÓ, शिकार की ताक में किसी जगह छुपकर बैठने का स्थान, घात-स्थल।
कमीना ($फा.पु.)-दे.-'कमीन:Ó।
कमीनापन ($फा.हि.पु.)-नीचता, ओछापन, क्षुद्रता।
कमीबेशी ($फा.स्त्री.)-घटा-बढ़ी।
$कमीम (अ़.वि.)-सूखी हुई तरकारी।
$कमीस (अ़.स्त्री.)-एक विशेष प्रकार का कुर्ता, $कमीज़।
$कमु$र्ग: (तु.पु.)-शिकारगाह, शिकार खेलने का जंगल, आखेट-स्थल।
कमून (अ़.पु.)-ज़ीरा, जीरक।
कमूनी (अ़.स्त्री.)-एक यूनानी दवा, जिसमें ज़ीरा प्रधान होता है, जैसे-'माजून कमूनीÓ-जीरकावलेह। (इसमें माजून=अवलेह तथा कमूनी=ज़ीरे का)।
$कमूस (अ़.पु.)-बहुत गहरा कुआँ।
कमोकास्त ($फा.वि.)-न्यूनाधिक, किसी बात में कुछ कम और किसी बात में कुछ ज़्यादा।
कमोबेश ($फा.वि.)-न्यूनाधिक, थोड़ा-बहुत।
कमोबेशी ($फा.स्त्री.)-कम होना अथवा अधिक होना; घटती-बढ़ती।
$कमअ़ (अ़.पु.)-लम्ब डालना; तोडऩा; तिरस्कृत करना।
$कम्$काम (अ़.पु.)-श्रेष्ठ, प्रतिष्ठित, मुअ़जि़्ज़ज़; बड़ा चा$कू, छुरी; नदी, दरिया।
$कम्तरीर (अ़.पु.)-आ$फत, विपत्ति और मुसीबत का दिन।
कमबख़्त ($फा.वि.)-अभागा, बद$िकस्मत, बदनसीब।
कम्मह (अ़.वि.)-जन्मजात अन्धा होना, जन्मांध होना, पैदाइशी अन्धा होना, नाबीना।
$कम्मास (अ़.वि.)-डुबकी लगानेवाला, गोताख़्ाोर।
कम्मी (अ़.वि.)-वीर, शूरवीर, दिलावर, दिलेर।
कम्मीयत (अ़.स्त्री.)-मात्रा, मि$कदार।
कम्मून (अ़.पु.)-ज़ीरा, जीरक।
कम्यूनी (अ़.वि.)-दवा आदि जिसमें ज़ीरा मिला हो, जैसे- 'ज्वारिश कम्यूनीÓ।
$कम्रा (अ़.स्त्री.)-चाँदनी रात; चाँद की किरण; एक चिडिय़ा।
$कम्ल (अ़.स्त्री.)-जूँ, कपड़े या बालों में पडऩेवाला कीड़ा।
कय ($फा.पु.)- समाट्, बादशाह, राजा। दे.-'कैÓ।
$कय ($फा.पु.)-दे-'$कैÓ।
कयाँ ($फा.पु.)-'कयÓ या 'कैÓ का बहु., अनेक सम्राट्। ईरान में चार सम्राट् हुए हैं- कैकाऊस, कैख़्ाुस्री, कै$कुबाद, कैलोहास्प।
$कयादत (अ़.स्त्री.)-दे.-'$िकयादतÓ।
कयानी ($फा.वि.)-'कयाँÓ से सम्बन्धित, ऐसी अद्भुत और अमूल्य वस्तु जो बड़े-बड़े सम्राटों के योग्य हो।
$कया$फ: (अ़.पु.)-$कया$फा, आकृति, शक्ल, सूरत। दे.-'किया$फ:Ó।
$कया$फ:शिनास (अ़.$फा.वि.)-शक्ल अथवा सूरत देखकर मन का भाव समझनेवाला। दे.-'$िकया$फ:शनासÓ।
$कया$फ:शिनासी (अ़.$फा.स्त्री.)-किसी की मुखाकृति देखकर ही उसके मन के भाव समझ लेना। दे.-'किया$फ: शनासीÓ।
$कयाम (अ़.पु.)-ठहराव, ठिकाना; ठहरने की जगह, विश्राम का स्थल; ठौर-ठिकाना; निश्चय, स्थिरता। दे.-'$िकयामÓ।
$कयामत (अ़.स्त्री.)-दे.-'किय़ामतÓ, ईसाइयों, मुसलमानों और यहूदियों के अनुसार सृष्टि का वह अन्तिम दिन, जब सब मुर्दे उठकर खड़े होंगे और ईश्वर के सामने उनके कर्मों का लेखा-जोखा रखा जाएगा; प्रलय; हलचल, ख़्ालबली। दे.-'$िकयामतÓ।
$कयास (अ़.पु.)-दे.-'$िकयासÓ, वही शुद्घ है; अनुमान, अटकल; सोच-विचार, ध्यान। दे.-'कियासÓ।
$कयासी (अ़.वि.)-दे.-'$िकयासीÓ, शुद्घ शब्द वही है; अनुमान किया हुआ, अनुमित, अनुमानित। दे.-'कियासीÓ।
$कयूम (अ़.वि.)-$कय्यूम, स्थायी, दृढ़; $कायम रखनेवाला; ईश्वर का एक नाम या विशेषण, जो सृष्टि को $कायम रखने वाला है।
$कय्यूम (अ़.वि.)-दे.-'$कयूमÓ।
$कय्यूर (अ़.वि.)-अज्ञातकुल, वर्णशंकर, दोग़ला, हराम का, जिसके कुल का कोई अता-पता न हो।
$करतीन: (अ़.पु.)-रोककर टीका लगाने का काम; समुद्र पार करते हुए रास्ते में रुकने और टीका लगवाने का स्थान, कोरण्टाइन।
करंब (करम्ब) (अ़.पु.)-करमकल्ला नामक एक साक।
कर ($फा.वि.)-जिसे ऊँचा सुनाई देता हो, बहरा, बधिर। (पु.)-ता$कत, शक्ति, बल; वैभव। 'कर ओ $फरÓ-शान-शौकत। (सं.पु.)-हाथ; हाथी का सूंड, जिसे वह हाथ के समान प्रयोग करता है; सूर्य या चन्द्रमा की किरण; ओला; जनता के उपार्जित धन से राज्य का भाग, महसूल, टैक्स; करने वाला, उत्पन्न करने वाला, जैसे-'सुखकरÓ, 'कल्याणकरÓ; छल, युक्ति, पाखण्ड; (प्रत्य.)-का।
करख़्ा ($फा.वि.)-'करख़्तÓ का लघु., जो सुन्न हो गया हो; सख़्त, कर्कश, कठोर।
करख़्त ($फा.वि.)-शरीर का वह अंग जो सुन्न हो गया हो; सख़्त, कर्कश, कड़ा, कठोर।
करख़्तगी ($फा.स्त्री.)-शरीर के किसी अंग का सुन्न होना; कर्कशता, कठोरता, सख़्ती, कड़ापन।
करगदन ($फा.पु.)-गेंड़ा, दे.-'कर्गदनÓ।
करगस ($फा.पु.)-गिद्घ, गीद्घ, उ$काब।
करगह ($फा.पु.)-कपड़ा बुनने का यंत्र, करघा।
$करज़, $करज़ा (अ़.पु.)-दे.-'$कर्ज़Ó।
करतब (हिं.पु.)-कार्य, काम; कला, इल्म, हुनर; करामात, जादू।
करदनी ($फा.वि.)-दे.-'कर्दनीÓ।
करदा ($फा.वि.)-दे.-'कर्द:Ó।
करदाकार ($फा.वि.)-दे.-'कर्द:कारÓ।
करना (हिं.क्रि.सक.)-किसी काम को चलाना; किसी क्रिया को समाप्ति की ओर ले जाना; सम्पादित करना, निबटाना, भुगताना; पकाकर तैयार करना; पति या पत्नी के रूप में ग्रहण करना; भाड़े पर सवारी लेना; एक रूप से दूसरे रूप में लाना, बनाना; कोई वस्तु पोतना।
करन्$फुल (अ़.स्त्री.)-लौंग, लवंग, (कानों में पहनने का आभूषण विशेष, न कि मसाले की लौंग); कानों में पहना जानेवाला पुष्पाकृति का आभूषण। यह शब्द संस्कृत के 'कर्णफूलÓ से बनाया गया है और अऱब में लगभग डेढ़ हज़ार साल से प्रचलित है, जिससे भारत और अऱब के प्राचीन सम्बन्धों का पता चलता है। कान में पहना जानेवाला एक आभूषण-विशेष।
$करन्बी$क (अ़.पु.)-वारुणी-यंत्र, अ़र्क़ खींचने का छोटा भबका।
करफ़्स ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार के बीज, जो आजवाइन जैसे होते हैं और दवा में प्रयोग किए जाते हैं।
करब (अ़.वि.)-बेचैन रहना; दु:खी रहना।
करबला (अ़.पु.)-दे.-'कर्बलाÓ।
करम (अ़.पु.)-कृपा, दया, अनुग्रह, इनायत, मेहरबानी, अनुकम्पा; उपकार; उदारता; दानशीलता; हिम्मत, साहस। 'करम करना या $फर्मानाÓ-मेहरबानी करना।
करमकल्ल: (फा.पु.)-एक प्रकार की गोभी, बन्द-गोभी, पत्ता-गोभी।
करमकल्ला (फा.पु.)-दे.-'करमकल्ल:Ó।
करमगुस्तर (अ़.$फा.वि.)-कृपालु, दयालु, मेहरबान।
करमगुस्तरी (अ़.$फा.स्त्री.)-कृपा करना, दया करना, मेहरबानी करना।
करमपर्वर (अ़.$फा.वि.)-कृपा करनेवाला, उपकार करनेवाला, मेहरबान, मिऋ, दोस्त।
करमपेश: ($फा.वि.)-जवाँमर्द, उदार।
करम$फर्मा (अ़.$फा.वि.)-कृपालु, दयालु, मेहरबान; मित्र, दोस्त।
करम$फर्माई (अ़.$फा.स्त्री.)-कृपा करना, दया करना, मेहरबानी करना।
$करम्बी$क (अ़.पु.)-दे.-'$करन्बी$कÓ।
करवट (हिं.स्त्री.)-हाथ या पाश्र्व के बल लेटने की स्थिति। मुहा.-'करवट लेनाÓ-किसी कत्र्तव्य का ध्यान न रहना; लौटकर न आना। 'करवट बदलनाÓ-दूसरे पाश्र्व घूमकर लेटना; पलटा खाना; एक पक्ष से दूसरे पक्ष में जाना।
करवाना (हिं.क्रि.सक.)-किसी कार्य को करने के निमित्त दूसरे को प्रवृत्त करना, किसी को काम करने में लगाना।
करश्मा ($फा.पु.)-दे.-'करिश्म:Ó।
$करह (अ़.पु.)-दे.-'$कर्ह:Ó।
कराँ ($फा.पु.)-तट, छोर, किनारा; इंतिहा, पराकाष्ठा; हद, सीमा।
कराÓ ($फा.पु.)-वर्षा का रुका हुआ पानी; तालाब में मुँह से पानी पीना; (वि.)-पतली पिंडलियोंवाला (वाली)।
करा (अ़.पु.)-सोने का आरम्भ, स्वारम्भ, निद्रारंभ; एक पक्षी जिसे 'दुबाराÓ और 'चजऱ्Ó कहते हैं, अरु का नर।
$करा (तु.पु.)-काला रंग।
$कराÓ (अ़.पु.)-बाल झडऩा, सिर के बाल गिरना।
$कराइन (अ़.पु.)-'$करीन:Ó का बहु., $करीने, आसार, लक्षण; अवस्थाएँ, परिस्थियाँ; सभ्यताएँ, शिष्टाचार; तरीक़े, ढंग, शैली।
$करा$िकर (अ़.पु.)-'$क$र्करÓ का बहु., पेट की गुडग़ुड़ाहट।
$करा$कुरम (तु.पु.)-तुर्किस्तान की एक पर्वतमाला।
$करातीस (अ़.पु.)-'$िकर्तासÓ का बहु., का$गज़ के तख़्ते, बहुत-से का$गज़।
करान: ($फा.पु.)-तट, किनारा; छोर, अख़्ाीर; इंतिहा, पराकाष्ठा; हद, सीमा।
कराना (हिं.क्रि.सक.)-कार्य में लगाना, काम करवाना।
$कराब: (अ़.पु.)-शीशे का वह बड़ा बर्तन, जिसमें अ़कऱ् आदि रखते हैं; शराब की सुराही; बहुत बड़ी बोतल।
$कराब:कश (अ़.$फा.वि.)-शराब पीनेवाला, शराबी, मद्यप; बहुत पीनेवाला; पूरी सुराही मदिरा पी जानेवाला।
$कराब:नोश (अ़.$फा.वि.)-शराब पीनेवाला, शराबी, मद्यप; बहुत पीनेवाला; पूरी सुराही मदिरा पी जानेवाला।
$कराबत (अ़.स्त्री.)-$करीब, निकट या समीप होने का भाव, सामीप्य, निकटता, समीपता, नज़दीकी, नातेदारी, स्वजनता। '$कराबत ठहरनाÓ-निस्बम $करार पाना, सगाई होना, रिश्ता तय होना।
कऱाबतदार (अ़.$फा.वि.)-नातेदार, रिश्तेदार, स्वजन, एक वंशवाले, सगोत्र।
$कराबतदारी (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वजनता, रिश्तेदारी, सम्बन्ध।
$कराबती (अ़.$वि.)-निकट का; $जिसके साथ निकट का सम्बन्ध हो।
$कराबते$करीब: (अ़.स्त्री.)-बहुत-ही निकट की रिश्तेदारी।
$कराबा (अ़.पु.)-दे.-'$कराब:Ó।
$कराबादीन (अ़.स्त्री.)-दवाओं का कोश, वह पुस्तक या ग्रंथ जिसमें यूनानी-आयुर्वेद सम्बन्धित दवाएँ और नुस्ख़्ो लिखे रहते हैं। यूनानी योग-संग्रह, यूनानी भेषज-संग्रह, जैसे-$कराबादीन ज़काई, $कराबादीन शि$फाई इत्यादि।
$कराबीन (तु.स्त्री.)-एक प्रकार की तोड़दार छोटी बन्दू$क, जिसका मुँह चौड़ा होता था और जो अब से डेढ़-दो सौ बरस पहले तक प्रचलित थी।
करामत (अ़.स्त्री.)-ख़्ाूबी, बड़ाई बड़प्पन, महत्ता, प्रतिष्ठा, बुज़ुर्गी; कृपा, अनुकम्पा, इनायत, नवाजि़श; अद्भुत-कार्य, चमत्कार, अचंभा, अनोखापन, शोÓबद:; मोÓजिज़:, अवतारों का चमत्कार।
करामतनाम: (अ़.$फा.पु.)-अनुकंपापत्र, कृपापत्र, दयापत्र, इनायतनामा।
करामतनामा (अ़.$फा.पु.)-दे.-'करामतनाम:Ó।
करामात (अ़.स्त्री.)-'करामतÓ का बहु., करामतें, करिश्मे, चमत्कार, मोÓजिज़े; उम्दगी, ख़्ाूबी।
करामाती (अ़.वि.)-चमत्कार करनेवाला, करिश्मा दिखाने वाला, चमत्कारी, करामात दिखानेवाला; धूर्त; शोÓबदेबाज़, मायावी, जादूगर।
$करायन (अ़.पु.)-दे.-'$कराइनÓ।
$करार (अ़.पु.)-धैर्य, संतोष, तसल्ली; चैन, आराम, सुकून; वचन, प्रतिज्ञा, इ$करार; स्थिरता, ठहराव, $कयाम; सान्त्वना, ढाढ़स। '$करार आनाÓ-चैन पडऩा। '$करार करनाÓ-वचन देना, वादा करना। '$करार पानाÓ-चैन पडऩा; तय होना। $करार लेनाÓ-ठहरना, दम लेना। '$करार होनाÓ-चैन होना; दिलचस्पी होना; प्रतिज्ञा होनी, आपस में कुछ तय होना। (हिं.पु.)-नदी का ऊँचा तट, करारा।
$करारगाह (अ़.स्त्री.)-ठहरने की जगह।
$करारदाद (अ़.$फा.स्त्री.)-वादा, वचन, प्रतिज्ञा, अहद-पैमाँ, $कौल-$करार; प्रस्ताव, तज़्वीज़, उपाय; निश्चय, तै; पहले से तै दहेज।
$करार मदार (अ़ौरतों द्वारा प्रयुक्त बोली)-अहद-पैमाँ, वचन, $कौल-$करार।
करारा (हिं.पु.)-नदी का वह ऊँचा किनारा या तट जो पानी के काटने से बने; टीला, ढूह; कौआ। (हिं.वि.)-कठोर, कड़ा; दृढ़चित्त; इतना तला अथवा सेका हुआ कि तोडऩे पर कुर-कुर शब्द करे; अधिक गहरा; तेज़, तीक्ष्ण; चोखा, खरा; हट्टा-कट्टा, बलवान।
$करारी (अ़.वि.)-निश्चित किया हुआ, ठहराया हुआ, तै किया हुआ।
$करारेवा$कई (अ़.वि.)-वचनानुकूल, पूरा-पूरा, का$फी, यथेष्ठ; वास्तविक या निश्चित रूप से, वस्तुत:।
$करावल (तु.पु.)-दे.-'$करावुलÓ।
$करावुल (तु.पु.)-वह $फौजी टुकड़ी, जो सेना के आगे चलती है और शत्रु-सेना की ख़्ाबर देती है; सैनिक, सिपाही; शिकारी, आखेटक।
करासीस (अ़.पु.)-'कुरीस:Ó का बहु., पुस्तक के अध्याय, किताब के जुज़; $कुरान के सीपारे या अध्याय।
कराह (अ़.पु.)-शुद्घ पानी, विमल जल, सा$फ और निर्मल जल, स्वच्छ और विशुद्घ पानी। (हिं.स्त्री.)-वेदना या व्यथा-सूचक शब्द, पीड़ा का शब्द।
कराहना (हिं.क्रि.अक.)-पीड़ा या क्लेश देनेवाला शब्द मुँह से निकलना। 'कराहकर, खाँसकर सोने नहीं देती है मुझको ये, तुम्हारी याद की बुढिय़ा न मरती है न जीती हैÓ-माँझी
कराहत (अ़.स्त्री.)-ऊब जाना, अरुचि, नापसन्दगी; $घिन, घृणा, न$फरत, बेज़ारी; उदासीनता, बददिली; अप्रसन्नता; अनुचित काम।
कराहतन (अ़.वि.)-अरुचि से; अप्रसन्नता से; कराहत के साथ; बददिली के साथ; घिन करते हुए, घृणा करते हुए।
कराहियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'कराहीयतÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
कराहीयत (अ़.स्त्री.)-अरुचि, नापसन्दगी; बेज़ारी, $घिन, घृणा, न$फरत; अनुचित या गन्दा काम, घृणित; उदासीनता, बददिली; अप्रसन्नता, नाख़्ाुशी।
$करिया (अ़.पु.)-गाँव, दे.-'$कर्य:Ó, वही शुद्घ है।
करिश (अ़.पु.)-जुगाली करनेवाले पशुओं का पाकाशय; छोटे बच्चे; बाल-बच्चे। दे.-'कर्शÓ।
करिश्म: ($फा.पु.)-करिश्मा, अजीब बात, अनोखी बात, अद्भुत-कार्य, चमत्कार, शोबदा; मंत्र, ताÓवीज़, यंत्र, कवच; नाज़-नखऱा; आँखों और भौहों का संकेत।
करिश्मा ($फा.पु.)-दे.-'करिश्म:Ó।
$करीं (अ़.वि.)-'$करीनÓ का लघु., समीप, निकट, नज़दीक, पास, मिला हुआ; संगत; सभासद, मित्र, सखा, मुसाहिब। '$करीं इंसा$फÓ-न्यायसंगत। '$करीं मसलहतÓ-युक्तिसंगत।
करी ($फा.स्त्री.)-कम या ऊँचा सुनाई देना, बधिरता या बहरापन। (सं.पु.)-हाथी; आठ की संख्या; (हिं.स्त्री.)-कली, बिना खिला फूल; पन्द्रह मात्राओं का एक छन्द जिसे चौपाई या चौपैया कहते हैं; कड़ी, धरन, छत पाटने की शहतीर।
$करीअ़ (अ़.वि.)-तुल्य, समान, मानिन्द; प्रतिद्वंद्वी, हरी$फ; बुज़ुर्ग, पूज्य, श्रेष्ठ, प्रतिष्ठित।
$करीज़ (अ़.पु.)-छन्दोबद्घ रचना, काव्य, कविता।
$करीन: (अ़.पु.)-शिष्टता, तमीज़; शैली, ढंग, तर्ज़, तरी$का; सली$का, शऊर; क्रम, तर्तीब, $काइदा; अनुमति; $कयास, अटकल, अंदाज़ा; प्रसंग।
$करीन (अ़.वि.)-सलाहकार, सभासद, सखा, मुसाहिब; निकट, नज़दीक, समीप, पास, मिला हुआ; संगत।
$करीना (अ़.पु.)-दे.-'$करीन:Ó। (देश.पु.)-टांकी, पत्थर गढऩे की छेनी।
$करीने अ़क़्ल (अ़.वि.)-समझ भरी बात, मतिग्राह्य, जो बात बुद्घि या विवेक स्वीकार कर ले, बुद्घिगम्य, वह बात जिसे अ़क़्ल $कबूल कर ले।
$करीने इंसा$फ (अ़.वि.)-न्यायोचित, जो बात न्याय-सम्मत हो, जो बात न्याय की कसौटी पर खरी उतरे।
$करीने $िकयास (अ़.वि.)-ज्ञानगम्य, जो बात अनुमान और अटकल से ठीक हो।
$करीने मस्लहत (अ़.वि.)-जो बात समय और परिस्थिति के अनुकूल होते हुए अपने हित में हो, मुनासिब, उपयुक्त।
$करीब (अ़.वि.)-समीप, नज़दीक, पास, निकट; त$करीबन, लगभग; कम दूर; उर्दू काव्य का एक छन्द या बह्र। पद.- '$करीब -$करीबÓ-पास-पास; लगभग, त$करीबन, प्राय:। '$करीबनÓ-अन्दाज़ से।
$करीबतर (अ़.$फा.वि.)-बहुत निकट, समीपतर, अधिक पास, बहुत कम दूरी पर।
$करीबुल इख़्ितताम (अ़.वि.)-समाप्तप्राय:, जो शीघ्र ही समाप्त होनेवाला हो, ख़्ात्म होने के $करीब, समाप्ति के निकट।
$करीबुल इन्हिदाम (अ़.वि.)-नष्टप्राय:, भग्नप्राय:, गिरने और नष्ट होने के निकट, ध्वस्त होने के $करीब।
$करीबुलख़्ात्म (अ़.वि.)-समाप्ति के निकट, ख़्ात्म होने के $करीब; मृतप्राय:, मृत्यु के निकट, मरणासन्न, मौत के $करीब, मरने के $करीब।
$करीबुल$फह्म (अ़.वि.)-सुबोध, जल्द समझ में आनेवाला, जिसका समझना सरल हो, बुद्घिगम्य, विवेकगम्य।
$करीबुलमर्ग (अ़.वि.)-दे.-'$करीबुलमौतÓ।
$करीबुलमौत (अ़.वि.)-किसी दम का मेहमान, मृतप्राय:, मृत्यु के निकट, मौत के $करीब, मरणासन्न, मरने के $करीब, मृत्युशैया पर।
$करीबुलहज़्म (अ़.वि.)-पक्वप्राय:, खाया हुआ जो पदार्थ पचने के निकट हो, हज़्म होने के $करीब।
करीम (अ़.वि.)-दयालु, कृपालु, मेहरबान; क्षमा करनेवाला, करम करनेवाला, दया करनेवाला; दानशील, सखी, उदार; ईश्वर का एक विशेषण।
करीम उल नफ़्स (अ़.वि.)-दे.-'करीमुन्नफ़्सÓ।
करीम उल नफ़्सी (अ़.स्त्री.)-दे.-'करीमुन्नफ़्सीÓ।
करीमी (अ़.स्त्री.)-उदारता, अनुकम्पा, कृपा, करम, दया; बुजुर्गी; ईश्वरीय माया, दैवी माया।
करीमुन्नफ़्स (अ़.वि.)-पुण्यात्मा, सदात्मा, सदाचारी, सद्-हृदय, दयालु, नेकदिल।
करीमुन्नफ़्सी (अ़.स्त्री.)-गुणग्राहकता, $कद्रदानी; मेहरबानी, कृपा, अनुकम्पा,
$करीर (अ़.पु.)-मुदित, प्रसन्न, हर्षित, ख़्ाुश; मोदकता, प्रसन्नता, हर्ष, ख़्ाुशी।
$करीस (अ़.पु.)-तीव्र सर्दी, बहुत कड़ा जाड़ा; जीर्ण और फटी-पुरानी वस्तु। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
$करीस (अ़.पु.)-एक प्रकार का सालन, एक प्रकार की तरकारी। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
$करीह: (अ़.स्त्री.)-अ़ादत, प्रकृति, स्वभाव; प्रत्येक चीज़ का अग्रभाग; वह पानी जो कुएँ से पहले पहल निकले।
करीह (अ़.वि.)-बुरा, अप्रियदर्शन, बदनुमा; घृणास्पद, जिसे देखकर घिन आए, घिनौना, घृणित; मक्रूह; कदाकार, कुरूप, बदशक्ल। पद.-'करीह मंजऱÓ-भद्दा, कुरूप।
$करीह (अ़.वि.)-शुद्घ और बिना मिलावट की वस्तु, विशुद्घ, वह वस्तु जो ख़्ाालिस और बेमेल हो; (पु.)-ज़ख़्म, घाव।
करीह-मंजऱ (अ़.वि.)-दे.-'करीहुलमंजऱÓ।
करीहुलमंज़र (अ़.वि.)-भद्दा, घृणितरूप, जिसकी शक्ल भद्दी हो, दुर्दर्शन, जो देखने में भोंडा हो, जिसे देखकर घिन आए।
करीहुस्सूरत (अ़.वि.)-कुरूप, अप्रियदर्शन, जिसकी सूरत भोंडी और भद्दी हो, जो देखने में बुरा लगे, दुराकृति।
करीहुस्सौत (अ़.वि.)-कर्कश स्वर, कटु-स्वर, जिसकी आवाज़ बहुत ख़्ाराब हो।
करूबी (अ़.पु.)-$फरिश्ता, देवता।
कऱोली (तु.स्त्री.)-शिकार की घात में बैठना; शिकार का पीछा करना; एक प्रकार का शिकारी चा$कू या छुरा, जिसे कमर में बाँधते हैं और जिससे जानवरों का शिकार करते हैं या पशुओं को मारते हैं। '$करोलिया करनाÓ-युद्घ-कौशल का प्रदर्शन करना।
$कअऱ्: (अ़.पु.)-लौकी, कद्दू, घीया।
$कर्अ़ (अ़.पु.)-खटखट करना; दरवाज़ा खटखटाना; लौकी, कद्दू।
$क$र्क (अ़.पु.)-मु$िगयों का शब्द। (तु.पु.)-भेड़ की वह नस्ल, जिसकी पूँछ पर चर्बी का चकत्ता होता है, मेदपुच्छ, दुम्बा। (सं.पु.)-केकड़ा; बारह राशियों में से चौथी; अग्नि; काकड़ासींगी; दर्पण; घड़ा; काव्यायश्रौत सूत्र के एक टीकाकार।
$क$र्क$फ (अ.पु.)-सुरा, मद्य, मदिरा, शराब; ईसाइयों के तीन धार्मिक ग्रन्थ।
कर्ग ($फा.पु.)-'कर्गदनÓ का लघु., दे.-'कर्गदनÓ, गैंडा।
कर्गदन ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ जंगली जानवर, जो हाथी से छोटा होता है, गैंडा, वज्रचर्म, तुंगमुख।
कर्गन ($फा.पु.)-अधपका अन्न, जिसे भूनकर खाते हैं।
कर्गस ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ पक्षी, गिद्घ, गीध, गृघ्र।
कर्ज़ ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ जंगली जानवर, गैंडा।
$कजऱ् (अ़.पु.)-ऋण, $कजऱ्ा, उधार।
$कजऱ्ख़्वाह (अ़.$फा.वि.)-ऋणेच्छुक, ऋण लेने की चाहत रखनेवाला, $कजऱ् लेनेवाला, $कर्ज़ चाहनेवाला।
$कजऱ्दार (अ़.$फा.वि.)-वह जो किसी से ऋण ले, ऋणी, जिस पर $कजऱ् हो, अधमर्ण।
$कर्ज़दारी (अ़.$फा.वि.)-ऋणी होना, $कर्ज़ होना या देना।
़े$कजऱ्ा (अ़.पु.)-दे.-'$कर्ज़Ó।
$कजऱ्ी (अ़.वि.)-जो ऋणी या $कर्ज़दार हो; $कर्ज़ या ऋण के रूप में लिया हुआ।
$कजऱ्ेहसन: (अ़.पु.)-ऐसा ऋण, जिस पर न कोई ब्याज हो और न ही उसका त$काज़ा किया जा सके, ऋणी को जब सुविधा हो तब उसे अदा करे अगर अदा न कर सके तो भी उस पर कोई भार न रहे।
$कर्तबान (अ़.पु.)-वह निर्लज्ज व्यक्ति, जो अपनी स्त्री को पर-पुरुष के पास जाने दे, भगभोगी, स्त्री की कमाई खाने वाला, भँड़ुआ, दय्यूस, $कल्तबान।
$कर्ती (अ़.पु.)-एक प्रकार का कपड़ा, जो काले और हरे रंग का होता है।
कर्द: ($फा.वि.)-कृत, किया हुआ, आज़मूदा; बनाया हुआ, (यौगिक शब्दों के अन्त में प्रयुक्त)।
कर्द:कार ($फा.वि.)-कुशल, अनुभवी, तज्रिबेकार।
कर्द ($फा.पु.)-कार्य, काम; कृति, अ़मल। (सं.पु.)-कर्दम, कीचड़, कीच।
कर्दगार ($फा.वि.)-करनेवाला, सृष्टि का कर्ता, विधाता, परमात्मा, ईश्वर, सर्वशक्तिमान्। दे.-'किर्दगारÓ, नियमानुसार 'किर्दगारÓ अशुद्घ है लेकिन $फारसी और उर्दू के विद्वानों ने शुद्घ माना है।
कर्दनी ($फा.वि.)-करने के लाय$क, जो किया जा सके, करने योग्य; करणीय, जिसका करना उचित हो।
कर्दा ($फा.वि.)-दे.-'कर्द:Ó, वही शुद्घ है।
कर्दार ($फा.पु.)-आचरण, व्यवहार, चलन। दे.-'किर्दारÓ, व्याकरण के अनुसार शुद्घ रूप 'कर्दारÓ ही है लेकिन प्रचलित 'किर्दारÓ है।
$कर्न (अ़.पु.)-युग, कालान्तर; लम्बा समय, जो तीस से सौ वर्ष तक माना जाता है; सींग, विषाण; बाल, केश।
कर्नब (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ सब्ज़ी, करमकल्ला।
कर्ना (अ़.पु.)-दे.-'$कर्नाÓ।
$कर्ना (अ़.पु.)-एक प्रकार की बड़ी तुरही या भोंपू, एक प्राचीन बाजा जो फँूककर बजाया जाता है।
कर्पास ($फा.पु.)-मोटा सूती कपड़ा।
क$र्फश ($फा.स्त्री.)-छिपकली, गृहगोधिका।
कर्ब (अ़.पु.)-पीड़ा, यातना, कष्ट, दु:ख, रंज; आकुलता, व्याकुलता, बेचैनी, अकुलाहट।
कर्बला ($फा.पु.)-इरा$क का एक प्रसिद्घ स्थान, जहाँ हज्ऱत अ़ली के छोटे लड़के हज्ऱत इमाम हुसैन शहीद हुए थे और जहाँ उनकी मज़ार है; उस जगह का नाम, जहाँ मुसलमान लोग मोहर्रम में ताजि़ए दफ्ऩ करते हैं।
कर्बलाई ($फा.वि.)-कर्बला की तीर्थयात्रा या जि़यारत करनेवाला; एक प्रकार का कपड़ा।
कर्बस ($फा.स्त्री.)-छिपकली, गृहगोधिका।
कर्बासू ($फा.स्त्री.)-छिपकली, गृहगोधिका, कर्बस, क$र्फश।
कर्म (अ़.पु.)-अंगूर का बेल। (सं.पु.)-जो किया जाये, कार्य, काम; धार्मिक कृत्य; व्याकरण में वह शब्द जिसके वाच्य पर कत्र्ता की क्रिया पर प्रभाव पड़े; मृतक-संस्कार; भाग्य, प्रारब्ध।
$कर्म (अ़.पु.)-सिंह, शेर, व्याघ्र; अपनी जाति का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति।
$कर्य: (अ़.पु.)-गाँव, ग्राम, मौज़ा।
कर्र (अ़.पु.)-दुश्मन को पीछे हटाना, शत्रुओं को खदेडऩा; वैभव, शान। पद.-'कर्र-$फर्रÓ-शान-शौकत, वैभव और शोभा।
कर्रत (अ़.स्त्री.)- बार, द$फा।
कर्रात (अ़.स्त्री.)-'कर्रतÓ का बहु., अनेक बार, कई द$फा।
कर्रार (अ़.वि.)-शत्रु की सेना पर बारम्बार आक्रमण करने वाला; शत्रुओं को परास्त करनेवाला, विजयी; हज्ऱत अ़ली की एक उपाधि।
कर्रूबियान (अ़.पु.)-'कर्रूबीÓ का बहु., देवदूत, $फरिश्ते।
कर्रूबी (अ़.पु.)-देवदूत, $फरिश्ता। दे.-'करूबीÓ, वही अधिक उपयुक्त है, शुद्घ दोनों हैं।
कर्श (अ़.पु.)-दे.-'करिशÓ, जुगाली करनेवाले पशु का पाकाशय; बाल-बच्चे। (सं.पु.)-सोलह माशे का परिरमाण, अस्सी रत्ती की तौल; खिंचाव, घसीटना, खींचना, खरोचना; जोताई; हल से बनी हुई रेखा; बहेड़ा; ताव, जोश।
कर्सन: ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ अन्न, मटर।
$कर्ह: (अ़.पु.)-वह ज़ख़्म या घाव, जिसमें पीप या मवाद पड़ गयी हो।
$कर्हा (अ़.पु.)-दे.-'$कर्ह:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कलंक (सं.पु.)-चिह्नï, दा$ग, धब्बा; चाँद का काला धब्बा।
$कलं$ग: (तु.पु.)-घेरे में लेना, मुहासर: करना; बाहर जानेवाले पियादे (पैदल जानेवाला संदेशवाहक, हरकारा या सिपाही) की ख़्ाुराक।
कलंद ($फा.पु.)-ज़मीन खोदने का एक यंत्र, खुर्पी; हल में लगनेवाला फाल।
$कलंदर: ($फा.पु.)-एक $िकस्म का रेशमी कपड़ा; ख़्ोमे का $कुलाबा या आँकड़ा।
$कलंदर ($फा.पु.)-एक प्रकार के मुसलमान साधु, दरवेश या $फ$कीर, जो मस्त और आज़ाद रहते हैं; पहुँचा हुआ साधु; मस्त और आज़ाद मनुष्य; धृष्ट, गुस्ताख़्ा; रीछ और बन्दर आदि नचानेवाला व्यक्ति। पद.-'मर्दे $कलंदरÓ-स्वतंत्र व्यक्ति।
$कलंदरा ($फा.पु.)-दे.-'$कलंदर:Ó।
$कलंदरान: ($फा.वि.)-क़लन्दरों-जैसा; आज़ादों-जैसा; गुस्ताख़्ाों-जैसा।
$कलंदरी ($फा.पु.)-क़लन्दर का काम या पेशा; एक प्रकार का ख़्ोमा, रावटी; एक $िकस्म की छोलदारी; एक $िकस्म का कपड़ा; (वि.)-$कलंदर से सम्बन्ध रखनेवाला।
$कलंसुव: (अ़.पु.)-टोपी, कुलाह।
कल [ल्ल] (अ़.पु.)-बोल न सकना, गूँगा होना; बोझ, भार; भारी बोझ; वह व्यक्ति जिसके न पिता हो न लड़का।
कल (तु.वि.)-गंजा, खल्वाट। (सं.पु.)-अव्यक्त मधुर ध्वनि; वीर्य; साल का वृक्ष; (सं.वि.)-सुन्दर, मनोहर; मधुर, कोमल; (हिं.स्त्री.)-सुख, चैन, आराम; आरोग्यता, तंदुरुस्ती; संतोष, तुष्टि; (हिं.क्रि.वि.)-आने वाला दिन, दूसरे दिन का सवेरा; भविष्य में, किसी दूसरे समय; गया हुआ दिन, बीता हुआ दिन; (हिं.पु.)-ओर, बल, पाश्र्व, पहलू; युक्ति, ढंग; पेंच और पुजऱ्ों के जोड़ से बनी हुई वस्तु जिससे कोई कार्य लिया जाए, यंत्र; पेंच, पुजऱ्ा; बन्दू$क का घोड़ा; (हिं.वि.)- 'कालाÓ शब्द का लघु., जैसे-'कलमुँहाÓ।
$कलई (अ़.स्त्री.)-राँगा; राँगा का पतला लेप, जो बर्तनों इत्यादि पर लगाते हैं, मुलम्मा; वह लेप, जो रंग चढ़ाने या चमकाने के लिए किसी वस्तु पर लगाया जाता है; सफ़ेदी, मकानों पर फेरने का चूना; बाहरी चमक-दमक, बाहरी तड़क-भड़क, दिखावा। दे.-'$कल्ईÓ, वही शुद्घ है। मुहा.-'$कलई खुलनाÓ-वास्तविक रूप का प्रकट होना, किसी बात का ज़ाहिर होना, दोष प्रकट होना। '$कलई न लगनाÓ-युक्ति न चलना, चाल न चलना, तरकीब न चलना।
$कलईगर (अ़.$फा.पु.)-जो $कलई करता हो, जो राँगे का लेप चढ़ाता हो। दे.-'$कल्ईगरÓ, वही शुद्घ है।
कलक ($फा.पु.)-पछना, सिंगी; चीरा लगाने का नश्तर, शल्य; (स्त्री.)-विपत्ति, आपत्ति, बला; (वि.)-अशुभ, मनहूस।
$कल$क (अ़.पु.)-बेताबी, अकुलाहट, आतुरता, व्याकुलता, बेचैनी, घबराहट; शोक, खेद, अ$फसोस; रंज, दु:ख, कष्ट, तकली$फ।
$कल$कअंगेज़ (अ़.फा.वि.)-रंज पैदा करनेवाला, दुखदायी, शोकजनक, दु:खप्रद।
$कल$कअफ्ज़़ा (अ़.फा.वि.)-$कल$कअंगेज़, रंज पैदा करने-वाला।
$कल$कआमेज़ (अ़.फा.वि.)-शोकान्वित, शोक मिला हुआ, शोकग्रस्त।
कलकख़्ाुस्प (फा.वि.)-दरिद्र, कंगाल, निर्धन, $गरीब।
$कलगी (तु.स्त्री.)-शुतुरमु$र्ग आदि चिडिय़ों के सुन्दर पंख, जिन्हें पगड़ी या ताज पर लगाते हैं; मोती या सोने का एक गहना; सिर पर की चोटी, शिखा; इमारत का शिखर; लावनी का एक ढंग। दे.-'क़ल्$गीÓ वही शुद्घ है। शुद्घ शब्द '$कल्गीÓ है मगर यह भी प्रचलित है।
$कलचा$क (तु.पु.)-दे.-'$कल्चा$कÓ।
कलपना (हिं.क्रि.अक.)-बिलखना, विलाप करना।
कलफ़ (अ़.पु.)-चेहरे की झाईं, काले धब्बे जो मुँह पर पड़ जाते हैं; वह पतली लेई, जो कपड़ों पर उनकी तह कड़ी और बराबर करने के लिए लगाई जाती है, माँड़ी; वह काले धब्बे, जो चाँद में नजऱ आते हैं। संस्कृत भाषा में 'कल्पÓ प्रचलित।
कलफ़त (अ़.पु.)-दे.-'कुल्$फतÓ, वही शुद्घ उच्चारण है। 'कल$फत दूर होनाÓ-दु:ख और कष्ट दूर होना।
$कलम (अ़.पु.)-लेखनी, किल्क; बालों से बनाया हुआ ब्रश या कूची, जिससे रंग भरते हैं; ($फा.स्त्री.)-पेड़ की टहनी या डाली, जो हरी काटकर ज़मीन में लगाई जाती है या एक पेड़ से दूसरे पेड़ में लगाई जाती है; काटा हुआ, तराशा हुआ; वह छोटे-छोटे तराशे हुए बाल, कनपटियों पर दोनों ओर छोड़ देते हैं; एक प्रकार की आतिशबाज़ी, फुलझड़ी; शीशे या बिल्लौर का तराशा हुआ लम्बा टुकड़ा; किसी पदार्थ का पतला और लम्बा टुकड़ा; सींग; पतली लम्बी शीशी; गाय या बकरी की पिण्डली की हड्डी; (वि.)-काटा हुआ, तराशा हुआ। पद.-'तेग़े $कलमÓ-$कलम रूपी तलवार। मुहा.-'$कलम उठानाÓ-लिखना, कुछ लिखने का इरादा करना। '$कलम उठाकर लिखनाÓ-बिना सोचे-समझे जल्दी लिखना। '$कलम करनाÓ-काटना, छाँटना। '$कलम खींचनाÓ-काटना, रद करना; लिखना छोड़ देना। '$कलमज़द करनाÓ-काट देना, मिटा देना। '$कलम जारी रहनाÓ-लेखनी का संचालन बना रहना; हुकूमत बर$करार रहना। '$कलम तोड़ देनाÓ-बहुत अच्छी कविता या लेख लिखना। '$कलम फेर देनाÓ-लिखे हुए को काट देना, मिटा देना।
$कलमअंदाज़ (अ़.फा.वि.)-जो लिखने से छूट गया हो; लिखने में छोड़ जाना, न लिखना।
$कलमकश (अ़.फा.वि.)-$कलम अर्थात् लेखनी से काम करनेवाला, लिखनेवाला, मसिजीवी; काट देनेवाला, मिटा देनेवाला।
$कलमकशीद: (अ़.फा.वि.)-कटा हुआ।
$कलमकार (अ़.$फा.पु.)-रंग भरनेवाला, नक़्क़ाश, नक़्$काशी आदि करनेवाला; $कलम से काम करनेवाला, लिखनेवाला; मुंशी, मुहर्रिर; एक फूलदार चित्रित कपड़ा।
$कलमकारी (अ़.$फा.स्त्री.)-$कलम से लिखना; चित्रण या नक़्$काशी करना, बेल-बूटे बनाना।
$कलमज़द (अ़.फा.वि.)-$कलम की चपेट में आया हुआ, $कलम से काटा हुआ, $कलम फेरा हुआ, कटा हुआ, मंसूख़्ा, रद्द, निरस्त।
$कलमज़न (अ़.फा.वि.)-लिखनेवाला, लेखक, कातिब; चित्रकार, मुसव्विर; $कलमज़द करनेवाला, मंसूख़्ा करनेवाला, काटनेवाला, ख़्ात्म या समाप्त करनेवाला।
$कलमतराश (अ़.$फा.पु.)-पतले फल का चा$कू, $कलम बनाने का चा$कू।
$कलम दरकशीद: (अ़.फा.वि.)-मिटाया हुआ, मह्व किया हुआ।
$कलमदस्त (अ़.फा.वि.)-जो $कलम से काम करता हो, $कलम से लिखनेवाला; (पु.)-चित्रकार, लेखक।
$कलमदान (अ़.$फा.पु.)-एक छोटा बक्स या डिब्बा, जिसमें $कलम-दवात व लिखने का अन्य सामान रखते हैं, $कलम-दवात रखने का पात्र।
$कलमदाने वज़ारत (अ़.पु.)-मंत्री का पद; वज़ीर का अ़ोहदा।
$कलम-पाक (अ़.$फा.पु.)-दे.-'$कलम पाक कुनÓ।
$कलम पाक कुन (अ़.$फा.पु.)-वह कपड़ा, जिससे $कलम की स्याही पोंछी जाती है।
$कलमबंद (अ़.फा.वि.)-लिखित, लिपिबद्घ, जो लिखा गया हो; चित्रकार की कूची बनानेवाला; बेशुमार, बेगिनती। '$कलमबंद करनाÓ-लिखना, दर्ज करना। '$कलमबंद सुनानाÓ-ख़्ाूब गालियाँ सुनाना।
$कलम बरदाश्त: (अ़.फा.वि.)-$कलम उठाकर बिना सोचे लिखा हुआ लेख।
$कलमरौ (अ़.फा.स्त्री.)-राज्य, राष्ट्र, सल्तनत, हुकूमत।
कलमा (अ़.पु.)-वाक्य, बात; $कौल, शब्द; वह वाक्य जो इस्लाम-धर्म का मूलवाक्य है, जैसे- 'ला इला लिल्लिल्लाह मुहम्मद उर्रसूल्ल्लिाहÓ। शुद्घ शब्द 'कल्म:Ó है मगर यह भी प्रचलन में है। 'कलमे की उँगलीÓ-अँगूठे के पास वाली उँगली। 'कलमा पढ़ानाÓ-मुसलमान बनाना। 'कलमा भरनाÓ-(मुस्लिम अ़ौरतों द्वारा प्रयुक्त)-किसी का बेहद मोत$िकद यानी भरोसेमंद होना; किसी को हर वक़्त याद करते रहना।
कलमा उल ह$क (अ़.पु.)-सच्ची बात, न्याय की बात।
कलमात (अ़.पु.)-'कलमाÓ का बहु.।
$कलमी (अ़.वि.)-$कलम सम्बन्धी; $कलम से लिखा हुआ, लिखित; हस्तलिखित ग्रन्थ, विशेषत: पुराने हस्तलिखित ग्रन्थ; हाथ का लिखा हुआ, जो छपा न हो; $कलम काटकर लगाया हुआ पेड़, ऐसे पेड़ का फल; लम्बा और पतला पदार्थ, जैसे-'$कलमी शोराÓ।
$कलमे $फौलाद ($कलम ए $फौलाद) (अ़.$फा.पु.)-लौह-लेखनी, फाउण्टेन पेन, मसीगर्भ।
$कलमे रसास ($कलम ए रसास) (अ़.पु.)-पैंसिल।
$कलमेसुर्म: ($कलम ए सुर्म:) (अ़.पु.)-दे.-'$कलमे रसासÓ।
कलल (अ़.स्त्री.)-शिरमौर, कल$गी। (सं.पु.)-गर्भ में लिपटी हुई झिल्ली, जरायु।
$कलह (अ़.स्त्री.)-दाँतों का मैल ओर उनका पीलापन। (सं.पु.)-झगड़ा, विवाद; लड़ाई, युद्घ; तलवार की म्यान; पथ, रास्ता।
कलाँ ($फा.वि.)-दीर्घ, लम्बा; ज्येष्ठ, बड़ा।
$कला (अ़.पु.)-किसी से शत्रुता करना; वैर, शत्रुता, दुश्मनी।
कला (सं.स्त्री.)-किसी कार्य को भली-भाँति करने का $फन, हुनर, कौशल; अंश, भाग; चन्द्रमा का सोलहवाँ भाग; सूर्य का बारहवाँ भाग; अग्निमण्डल के दस भागों में से एक; समय का एक विभाग जो तीस काष्ठ के बराबर होता है; राशि के तीसवें अंश का साठवाँ भाग।
$कलाइद (अ़.पु.)-'$िकलाद:Ó का बहु., गले के पट्टे।
कलाई (हिं.स्त्री.)-हथेली का ऊपरी जोड़, मणिबंध; एक प्रकार की कस्रत; पूला, गट्ठा; हाथी के गले में बाँधने का कलावा; अँदुआ, अलान; उरद, उड़द।
$कलाकंद (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार की मिठाई।
$कला$कना (अ़.क्रि. अ़ौरतों की बोली)-बनाना, आवाजें़ कसना।
$कला$कमा (अ़.पु.)-उखाड़-पछाड़, तोड़-फोड़, मिस्मार करना।
कलाग़ ($फा.पु.)-जंगली कौआ।
कलात: ($फा.पु.)-छोटा गाँव, नंगला।
कलात ($फा.पु.)-गाँव, ग्राम; पहाड़ी पर बना हुआ दुर्ग अथवा $िकला।
कलानी ($फा.स्त्री.)-गुरुत्व, भारीपन; दीर्घता, लम्बाई; ज्येष्ठता, बड़ापन।
कलापेस: ($फा.पु.)-आँखों की रंगत का बदल जाना, आँखों की मुद्रा में परिवर्तन आना, जैसे- $गुस्से में या मैथुन के समय।
कलाब: ($फा.पु.)-चर्खे पर काती जानेवाली अंटी, पिंदिया।
कलाबतूँ (तु.पु.)-'कलाबतूनÓ का लघु., सोने-चाँदी के तार जो रेशम या सूत के डोरे पर लिपटे होते हैं।
कलाबतून (तु.पु.)-दे.-'कलाबतूँÓ।
कलाबा ($फा.पु.)-दे.-'कलाब:Ó, वही शुद्घ है।
कलाबाज़ ($फा.पु.)-सिर नीचे करके उलट जानेवाला, नट।
कलाबाज़ी ($फा.स्त्री.)-सिर नीचे करके पाँव ऊपर करके उलट जाना, कलैया, कलामुंडी; बच्चे का पटख़्ानियाँ खाना, लेटे-लेटे घूमना।
कलाम (अ़.पु.)-बातचीत, वार्तालाप, गुफ़्तगू; वाक्य, वाणी, शब्द, बोली; वादा, प्रतिज्ञा, वचन; शंका, हुज्जत, कहा-सुनी, उज्ऱ, आपत्ति, एÓतिराज़; मीमांसा, इल्मे कलाम; सवाल; शेÓर ओ सुख़्ान, कविता, शाइरी। 'कलाम आ जानाÓ-बहस होना, कहा-सुनी होना, झगड़ा होना। 'कलाम उलटनाÓ-बात का पहलू बदलना। 'कलाम करनाÓ-बात करना, बोलना; झगड़ा करना। 'कलाम रखनाÓ-हुज्जत रखना। 'कलाम हो जानाÓ-बहस हो जाना। 'कलाम पेश करनाÓ-कविता सुनाना।
कलामुल्लाह (अ़.पु.)-ईश्वर की वाणी, ख़्ाुदा का कलाम, $कुरानशरी$फ।
कलामे मुस्तदाम (कलाम ए मुस्तदाम) (अ़.पु.)-ईश्वर की ओर से पै$गम्बर पर आनेवाला आदेश, ईश्वर की वाणी, देव-वाणी, $कुरानशरी$फ।
कलारा (अ़.पु.)-कौवा, कव्वा, काक।
कलाल: (अ़.पु.)-दे.-'कलालतÓ।
कलाल (अ़.पु.)-थकन, माँदगी, ग्लानि। (हिं.पु.)-मदिरा बनाने या बेचनेवाला, कलवार।
कलालत (अ़.स्त्री.)-थकन, माँदगी, ग्लानि।
कलाव: ($फा.पु.)-लाल और पीला रँगा हुआ गंडेदार सूत, जो विवाह-शादी अथवा उत्सवों में पूजा-अर्चना करने के काम आता हैै; सूत का लच्छा, जो तकले पर लिपटा रहता है; चर्खे पर काती जानेवाली पिंदिया; हाथी की गर्दन। हिन्दी में 'कलावाÓ प्रचलित।
कलावा ($फा.पु.)-दे.-'कलाव:Ó।
$कलावुज़ी ($फा.स्त्री.)-आगे चलना, अग्रगमन; मार्ग-दर्शन, पथ-प्रदर्शन, रहबरी; सेना का अग्रभाग, हरावल।
$कलि$क (अ़.वि.)-दु:खग्रस्त, दु:खित, रंजीदा; व्याकुल, बेचैन, आकुल, मुज़्तरिब।
कलिब (अ़.वि.)-पागल, दीवाना, कटखना (कुत्ता)।
कलिम: (अ़.पु.)-कलमा, वाक्य, शब्द, लफ्ज़़, जुम्ला; वचन, बात; मुसलमानों का धर्म-मंत्र।
कलिम:ख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-कलिम:गो, कलिमा (कलमा) पढऩेवाला अर्थात् मुसलमान।
कलिम:गो (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कलिम:ख़्वाँÓ।
कलिम (अ़.पु.) 'कलिम:Ó का बहु., कलिमात, कलिमें, जुम्ले, बातें, वाक्य-समूह।
कलिमतुलख़्ौर (अ़.पु.)-ऐसी बात जिसमें किसी का हित हो, भलाई की बात।
कलिमतुलह$क (अ़.पु.)-ह$क या इंसा$फ की बात, सच्ची बात, बेलाग बात, सदुक्ति।
कलिमात (अ़.पु.)- 'कलिम:Ó का बहु., कलिमें, बातें, शब्द, अल्$फाज़।
$कलिया ($फा.पु.)-एक प्रकार का मांसाहारी खाना, जो गोश्त को घी में भूनकर बनाया जाता है। दे.-'$कलीय:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
$कलियान ($फा.पु.)-एक प्रकार का हुक्का।
कली (हिं.स्त्री.)-बिना खिला फूल; अक्षत योनि कन्या, ऐसी कन्या जिसका पुरुष के साथ समागम न हुआ हो; पक्षियों का निकला हुआ नवीन पर या पंख; कुर्त में लगनेवाला कटा हुआ तिकोना कपड़ा; हुक्के के नीचे का भाग; वैष्णवों का एक प्रकार का तिलक; पत्थर या सीप का फँुका हुआ टुकड़ा जिससे चूना बनता है। 'दिल की कली खिलनाÓ-चित्त प्रसन्न होना। 'कच्ची कलीÓ-अप्राप्तयौवना।
$कलीच ($फा.पु.)-तलवार, खड्ग।
$कलीद (अ़.स्त्री.)-बटी हुई रस्सी।
कलीदान (फ़ा.पु.)-एक प्रकार का लकड़ी का कुन्दा, जो अपराधियों के पाँवों में बाँधा जाता है ताकि वह भाग न सकें।
$कलीब (अ़.पु.)-पुराना कुआँ।
कलीम (अ़.पु.)-कहनेवाला, वक्ता; वार्ताकार, वार्तालाप करनेवाला, बातचीत करनेवाला, संवाद करनेवाला; हज्ऱत मूसा की एक उपाधि; ज़ख़्मी, घायल। पद.-'कलीमुल्लाहÓ-वह जो ईश्वर की बातें करता हो।
कलीमुल्लाह (अ़.पु.)-ईश्वर से बातचीत करनेवाला, हज्ऱत मूसा की उपाधि।
$कलीय: (अ़.पु.)-भुना हुआ गोश्त या मांस।
$कलील: (अ़.पु.)-दोपहर में खाना खाकर थोड़ी देर सोने का समय, $कैलूल: करने का समय।
कलील (अ़.वि.)-कुन्द, भोथरा; गूँगा; मंद, सुस्त; श्रान्त, शिथिल, माँदा, थका हुआ।
$कलील (अ़.वि.)-न्यून, थोड़ा अल्प; छोटा, लघु, ह्रïस्व।
$कलील तरीन (अ़.$फा.वि.)-अति लघु, बहुत-ही छोटा।
$कलीलुल $कीमत (अ़.वि.)-कम दामों का, सस्ता, थोड़े मूल्यवाला, सस्ता, मन्दा।
$कलीलुल बिज़ाअ़त (अ़.वि.)-जिसके पास पूँजी थोड़ी हो, कम हैसियत, जो अप्रतिष्ठित हो।
$कलीलुल मिक़्दार (अ़.वि.)-कम, थोड़ा, अल्प मात्रा में, थोड़ी मात्रा में।
$कलीलुलस्समाअ़त (अ़.वि.)-जिसे कम सुनाई देता हो, जो कम सुनता हो, बहरा, बधिर।
कलीस: (यू.$फा..पु.)-ईसाइयों और यहूदियों का प्रार्थना-घर, कलीसा, गिरजा आदि।
$कलीस (अ़.वि.)-कंजूस, कृपण, लोभी, बख़्ाील।
कलीसा (यू.$फा..पु.)-दे.-'कलीस:Ó, शुद्घ उच्चारण वही है।
कलूख़ (अ़.पु.)-दे.-'कुलूख़्ा।
$कलूस (अ़.स्त्री.)-जवान ऊँटनी।
कलेजा (हिं.पु.)-प्राणियों के शरीर का एक भीतरी अवयव जो बायीं ओर फैला हुआ होता है तथा जिससे नाडिय़ों के सहारे शरीर में रक्त संचार होता है, हृदय, दिल, यकृत; छाती, वक्षस्थल। 'कलेजा उछलनाÓ-दिल का ख़्ाुशी से ज़ोर-ज़ोर से धड़कना, आनन्द-विभोर होना। 'कलेजा ठण्डा होनाÓ -शान्ति प्राप्त होना।
़क़लौला (अ़.पु.)-एक प्रसिद्घ पक्षी, बाज़।
$कल्अ़: (अ़.पु.)-कोट, कि़ला, दुर्ग, गढ़।
$कल्अ़:गीर (अ़.$फा.वि.)-$िकला जीतनेवाला, दुर्ग विजित करनेवाला, बहुत बड़ा शूर, महारथी।
$कल्अ़:शिकन (अ़.$फा.वि.)-$िकले को नष्ट कर देनेवाला, दुर्ग को ध्वस्त कर देनेवाला, दुर्गभेदी (तोप या कोई यंत्र)।
$कल्ई (अ़.स्त्री.)-फूँका हुआ चूना; चूने की पुताई; मुलम्मा; वंग, राँग; बर्तनों पर राँगे का मुलम्मा; घर-दीवारों पर रंग-रौ$गन आदि।
$कल्ईगर (अ़.$फा.वि.)-$कल्ई करनेवाला; घर-दीवारों पर चूना करनेवाला; बर्तनों पर राँग का मुलम्मा करनेवाला।
कल्क ($फा.स्त्री.)-गोद, क्रोड, आ$गोश; कुक्षि, ब$गल।
कल्कज ($फा.वि.)-युद्घ करनेवाला, लडऩेवाला, लड़ाकू, योद्घा, समर में जानेवाला।
$कल्$कल: (अ़.पु.)-हिलाना, डुलाना; बोलना, आवाज़ करना।
$कल्$कान (तु.स्त्री.)-तलवार के वार से बचाव करनेवाली ढाल, सिपर।
कल्ग़ी, कल्ग़ी ($फा.स्त्री.)-तुर्रा, फुँदना, पक्षी के सिर का केश-समूह।
$कल्चा$क (तु.पु.)-लोहे का दस्ताना, जिसे $फौजी रखते हैं।
कल्त: ($फा.वि.)-दुमकटा, पुँछकट, जिसकी पूँछ कटी हो; जो शुद्घ उच्चारण न कर सके; सोंटा, डण्डा, गतका; न्यून, थोड़ा।
$कल्तबान ($फा.पु.)-भगभोजी, स्त्री की कमाई खानेवाला, भँड़ुआ, वह निर्लज्ज व्यक्ति जो अपनी स्त्री को पर-पुरुष के पास जाने दे।
$कल्तबानी ($फा.स्त्री.)-स्त्री की कमाई खानेवाला, भडुअई।
कल्पत्र: ($फा.वि.)-जो सच न हो, अनर्गल, झूठ, मिथ्या, बेहूदा।
$कल्पा$क (तु.स्त्री.)-सिर पर पहनने की टोपी, कुलाह।
$कल्$फ: (अ़.पु.)-वह, जिसका इस्लामी परम्परा के अनुसार लिंग के बढ़ा हुआ चमड़ा न कटा हो, ख़तना का न होना, बे-ख़्ातना होना।
कल्$फ (अ़.पु.)-किसी पर आसक्त होना, मुग्ध होना, शेफ़्त: होना।
$कल्ब (अ़.पु.)-दिल, मन, हृदय; औंधा, उलटा; सत्रहवाँ नक्षत्र; मध्य, बीच; $फौज का बीच का भाग; किसी चीज़ का बीच का हिस्सा, मध्य भाग; कूट, खूँटा; खोटा सिक्का। पद.-'$कल्बे मुज़तरÓ-दु:खी और विकल हृदय।
कल्ब (अ़.पु.)-कुत्ता, श्वान, कुक्कर।
$कल्बगाह (अ़.स्त्री.)-वह जगह, जहाँ बीच की $फौज खड़ी होती है।
कल्बतान (अ़.स्त्री.)-गुलगीर, मोमबत्ती का गुल अर्थात् जला हुआ धागा काटने की कैंची; कपड़ा आदि काटने का यंत्र; लोहार की सँड़सी, संगसी।
कल्बतैन (अ़.स्त्री.)-कल्बतान, गुलगीर, मोमबत्ती का गुल अथवा जला हुआ धागा काटने की कैंची; कपड़ा आदि काटने का यंत्र; लोहार की सँड़सी, संगसी।
$कल्बसाज़ (अ़.$फा.वि.)-कूटकृत, नकली मुद्रा बनानेवाला, खोटा सिक्का बनानेवाला।
$कल्बसाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-जाली मुद्रा बनाना, नकली रुपया बनाना, खोटा सिक्का ढालना।
$कल्बी (अ़.$वि.)-मानसिक, हार्दिक, दिली, रूही; हृदय-सम्बन्धी; दिल से सम्बन्ध रखनेवाला।
कल्बे अ़व्वा (अ़.पु.)-बहुत भौंकनेवाला कुत्ता; एक नक्षत्र।
कल्बे कलिब (अ़.पु.)-कटखना और पागल कुत्ता।
$कल्बे माहीयत (अ़.स्त्री.)-कायाकल्प, किसी पदार्थ के गुण-धर्म का बदलाव।
कल्म: (अ़.पु.)-वाक्य, बात; वह वाक्य जो इस्लाम-धर्म का मूल वाक्य है, जैसे-'ला इला लिल्लिल्लाह मुहम्मद उर्रसूलिल्लाहÓ।
कल्म (अ़.पु.)-हत करना, घायल करना, ज़ख़्मी करना।
कल्मल ($फा.पु.)-शोर-शराबा, कोलाहल, शोर-$गुल।
कल्मात (अ़.पु.)-'कल्म:Ó का बहु., बहुत-से वाक्य, वाक्य-समूह।
कल्मु$र्ग ($फा.पु.)-गिद्घ की एक प्रजाति।
$कल्य: (उ.पु.)-भुना हुआ मांस। शुद्घ शब्द 'कुलीय:Ó है मगर प्रचलित यही है। कहीं-कहीं '$कलियाÓ का प्रयोग भी देखने को मिलता है।
$कल्यान ($फा.पु.)-चिलम पीने का यंत्र, गुडग़ुडी, हुक्का। दे.-'$िकल्यानÓ, दोनों शुद्घ हैं।
कल्ल: ($फा.पु.)-गाल के अन्दर का अंश, जबड़ा; जबड़े के नीचे गले तक का स्थान, गला; स्वर, आवाज़; सिर, खोपड़ी (भेड़ों आदि की); कनपटी। इस अर्थ में 'कल्लाÓ उच्चारण अशुद्घ है।
कल्ल:दराज़ ($फा.वि.)-बहुत चिल्लानेवाला, बढ़-चढ़कर बोलनेवाला, मुखर, ज़बाँदराज़।
कल्ल:मनार (अ़.$फा.पु.)-वह विजय-स्तम्भ, जो युद्घ में मारे गए सैनिकों के सिरों से बनाया जाता था, मुंडमीनार।
कल्लए $कंद ($फा.पु.)-मिस्त्री का कूज़ा।
$कल्लमा (अ़.वि.)-अल्प, थोड़ा, किंचित्।
$कल्लाँच (तु.पु.)-दे.-'$कल्लाशÓ।
कल्ला (अ़.अव्य.)-उचित है, ठीक है, सत्य है, यथार्थ है। (हिं.पु.)-पौधे का अंकुर या गोंफा; नई टहनी; गाल के भीतर का भाग; लालटेन या लैम्प का सिरा, जिसमें बत्ती जलती है; झगड़ा, कलह, तकरार। 'कल्ला चलनाÓ-मुँह चलना या खाना। 'कल्ला दबानाÓ-बोलने से रोकना, अपने सामने किसी और को न बोलने देना।
कल्लातोड़ ($फा.हि..वि.)-कल्ले अर्थात् जबड़े तोडऩेवाला, ज़बरदस्त, बलवान्, शक्तिशाली।
कल्लादराज़ ($फा.वि.)-दे.-'कल्ल:दराज़Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कल्लाब (अ़.वि.)-कपटी, धूर्त, छली, वंचक, द$गाबाज़।
क़ल्लाबी (अ़.स्त्री.)-कपट, धूर्तता, ठगी, छल, द$गाबाज़ी।
$कल्लाश (तु.पु.)-$गरीब, निर्धन, कंगाल; नीच, कमीना, बेहया, बेशर्म।
$कल्लास (अ़.पु.)-उफान पर आया हुआ दरिया, चढ़ी हुयी नदी, आवेश में आयी हुयी नदी, बाढ़-ग्रस्त नदी; मालामाल, समृद्घ, धनवान्।
$कल्स (अ़.पु.)-जो एक बार मुँह से निकले (अनेक बार निकले तो उसे '$कैÓ कहते हैं); नाव की मोटी रस्सी।
$कवद (अ़.पु.)-प्रतिहिंसा, किसी की हत्या होने पर उसके ख़्ाून का बदला लेना, हिंसात्मक प्रतिशोध।
कवल ($फा.पु.)-कम्बल, कम्मल।
$कवाइद (अ़.पु.)-'$काइद:Ó का बहु., $काइदे, नियमावली, नियम, व्यवस्था, ज़ाबिता; परम्पराएँ, रस्मो-रिवाज़; भाषा का व्याकरण; सेना की परेड, युद्घ की क्रियाओं का अभ्यास, युद्घाभ्यास।
$कवाइदगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-सैन्य-अभ्यास क्षेत्र; परेड करने का मैदान।
$कवाइददाँ (अ़.$फा.वि.)-किसी कार्य-विशेष के नियमों से परिचित; परेड सीखा हुआ सैनिक, परेड से परिचित।
कवाइ$फ (अ़.पु.)-'कै$िफयतÓ का बहु., घटनाएँ, समस्याएँ, मसाइल; हालात, समाचार।
कवाइब (अ़.स्त्री.)-'काइबÓ का बहु., वे स्त्रियाँ जिनकी छातियाँ कड़ी हों, कठोर छातियोंवाली अ़ौरतें।
कवाइबे अंजुम (अ़.स्त्री.)-सप्तऋषि-मण्डल, बनातुन्नाÓश।
$कवाइम (अ़.पु.)-'$काइम:Ó का बहु., मनुष्य के हाथ-पाँव; चूल्हे आदि के पाये।
कवाकिब (अ़.पु.)-'कौकबÓ का बहु., सितारे, उडुगण, आकाश के तारे।
$कवानीन (अ़.पु.)-'$कानूनÓ का बहु., अनेक $कानून, हर प्रकार के $कानून, सभी नियम।
$कवा$िफल (अ़.पु.)-'$का$िफलाÓ का बहु., बटोहियों के दल, यात्रियों के $का$िफले; पतली कमर के घोड़े।
$कवा$फी (अ़.पु.)-'$का$िफयाÓ का बहु., $का$िफए, अनेक तुकान्त।
$कवाम (अ़.पु.)-सरलता, सहजता; न्याय, इंसा$फ; सत्यता, सच्चाई।
$कवामीस (अ़.पु.)-'$कामूसÓ का बहु., महानद-समूह, बड़ी-बड़ी नदियाँ।
$कवायद (अ़.पु.)-दे.-'$कवाइदÓ, वही शुद्घ है।
$कवारीर (अ़.पु.)-'$कारूर:Ó का बहु., $कारूरे की शीशियाँ; बोतलें, शीशियाँ।
$कवारेÓ(अ़.पु.)-'$कारिअ़:Ó का बहु., साँसारिक दुर्घटनाएँ, हादिसे; आपत्तियाँ, सख़्ितयाँ।
$कवी (अ़.वि.)-शक्तिशाली, बलवान्, ता$कतवर, ज़ोरावर; ईश्वर का एक नाम।
$कवीजुस्सा (अ़.वि.)-दे.-'$कवीउलजुस्स:Ó।
$कवीउलजुस्स: (अ़.वि.)-मज़बूत शरीर वाला, मज़बूत डीलडौल का, दृढ़ांग, मोटा-ताज़ा, हट्टा-कट्टा, हृष्ट-पुष्ट।
$कवातरीन (अ़.$फा.वि.)-महाबल, महाबली, बहुत अधिक शक्तिशाली, बहुत ता$कतवर।
$कवीदस्त (अ़.$फा.वि.)-ता$कतवर, ज़ोरावर, शक्तिशाली।
$कवीपंज: (अ़.$फा.वि.)-पराक्रमी, जिसकी भुजाएँ का$फी दृढ़ हों, जो अपनी भुजाओं के बल पर हर कार्य करता हो; साहसी, हिम्मतवाला।
$कवीपुश्त (अ़.$फा.वि.)-जिसे किसी महान् पुरुष का सहारा प्राप्त हो, जिसकी पीठ पर किसी बड़े व्यक्ति का हाथ हो, बलिष्ठ पक्षपाती, ता$कतवर हिमायती।
$कवीबाज़ू (अ़.$फा.वि.)-पराक्रमी, जिसकी भुजाएँ का$फी दृढ़ हों, जो अपनी भुजाओं के बल पर हर कार्य करता हो; साहसी, हिम्मतवाला।
$कवीम: (अ़.वि.)-सीधी और सरल (स्त्री या बात); दृढ़, पुष्ट, मज़बूत (स्त्री या बात-प्रतिज्ञा आदि )।
$कवीम (अ़.वि.)-दृढ़, मज़बूत, पुष्ट; सीधा, सरल।
कवुर्ग: (तु.पु.)-धौंसा, बड़ा नगाड़ा।
$कवुर्म: (तु.पु.)-रसेदार या शोरबेदार गोश्त, जिसमें तरकारी आदि न हो, कोर्म:। शुद्घ उच्चारण '$कवुर्म:Ó ही है मगर उर्दू में 'क़ोर्म:Ó बोलते हैं।
कव्व: (अ़.पु.)-मोखल, दरीचा, झरोखा, खिड़की; दीवार में बना छेद चाहे वह आर-पार हो या ता$कनुमा।
$कव्वात (अ़.पु.)-भेड़-बकरियों के झुण्ड अथवा रेवड का चरवाहा।
$कव्वाल (अ़.पु.)-$कव्वाली गानेवाला; बहुत बातें बनाने या करनेवाला।
$कव्वाली (अ़.स्त्री.)-एक प्रकार का भगवत्-प्रेम सम्बन्धी गीत जो सू$िफयों की मज्लिसों में होता है, हक़्$कानी गाने, वे इस्लामी गाने जो मज़ारों आदि पर गाए जाते हैं, सू$िफयाना और ईश्वर-सम्बन्धी गीत; $कव्वाल का पेशा।
$कव्वास (अ़.वि.)-कमान बनानेवाला, धनुषकार।
कश ($फा.पु.)-वक्ष:स्थल, छाती; कुक्षि, ब$गल; दम, खींच, जैसे-'सिगरेट का कशÓ; (प्रत्य.)-खींचनेवाला, जैसे- 'कमाँकशÓ-धनुष खींचनेवाला; सहन करनेवाला, जैसे- 'सितमकशÓ-अत्याचार या ज़ुल्म सहन करनेवाला, 'मैकशÓ-शराब खींचने या पीनेवाला, 'दिलकशÓ-मन को आकर्षित करनेवाला। (सं.पु.)-चाबुक, कोड़ा।
$कश [श्श] (अ़.पु.)-दुबलेपन के बाद मोटा होना; भलाई पाना।
$कशक ($फा.स्त्री.)-रेखा, लकीर।
$कश$का (अ़.पु.)-दे.-'$कश्$क:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
कशकोल ($फा.पु.)-दे.-'कश्कोलÓ।
कशनीज़ ($फा.पु.)-दे.-'कश्नीज़Ó।
कश$फ ($फा.पु.)-कछुआ, कूर्म।
$कश$फ (अ़.पु.)-$गरीबी और भुखमरी से मुँह की आभा का चला जाना, दरिद्रता और $फा$कों से चेहरे की रौन$क का $गाइब हो जाना; सूरज की धूप में मुँह का झुलस जाना।
कशमकश ($फा.स्त्री.)-असमंजस, पसोपेश, संकोच, सोच-विचार, दुविधा; खींचा-तानी, आपाधापी, धक्कम-धक्का; दौड़-धूप, पराक्रम; संघर्ष, लड़ाई-झगड़ा, $िफसाद; वैमनस्य, कशीदगी।
कशाँ ($फा.पु.)-खींचते हुए, जैसे-'मूकशाँÓ-बाल खींचते हुए, 'दस्तकशाँÓ-हाथ खींचते हुए।
कशाँ कशाँ ($फा.वि.)-खींचते हुए, ज़बरदस्ती, खींचते-खींचते, बलात्।
कशाकश ($फा.स्त्री.)-संकोच, पसोपेश, असमंजस; चढ़ा-ऊपरी, स्पर्धा, धक्कापेल; खींचा-खींची, छीना-झपटी, संघर्ष, झड़प; असमंजस, हैरानी; कष्ट, तकली$फ; किसी चीज़ का बार-बार एक जगह से दूसरी जगह बाहर आना-जाना।
कशावजऱ् ($फा.पु.)-किसान, कृषक, काश्तकार।
कशावजऱ्ी ($फा.स्त्री.)-खेती, किसानी, काश्तकारी, कृषि-कर्म।
कशिश ($फा.स्त्री.)-खींचने की शक्ति, खिंचाव, आकर्षण; रोचकता, मुग्धता, दिलचस्पी, जाजि़बीयत; रुज्हान (रुझान), प्रवृति, मनोवृति। 'क्या कशिश रह जाएगी तू ही बता जाने जहाँ, $फैसला जो तेरे-मेरे दरमियाँ हो जाएगाÓ- माँझी
कशिशे इश्$क (अ.$फा.स्त्री.)-प्यार का खिंचाव, प्रेम का आकर्षण, मुहब्बत का जज़्बा।
कशिशे सिक़्ल (अ़.$फा.स्त्री.)-गुरुत्वाकर्षण।
कशीद: ($फा.वि.)-रूठा हुआ, नाख़्ाुश, अप्रसन्न, नाराज़; अंचित, खिंचा हुआ; (पु.)-कपड़े पर सुई-तागे से बने हुए बेल-बूटे, बेल-बूटे का काम।
कशीद:कमर ($फा.वि.)-झुकी हुई पीठवाला, झुकी हुई कमरवाला।
कशीद:कामत (अ़.$फा.वि.)-लम्बकाय, लम्बे $कदवाला, लम्बे आकारवाला, दीर्घकाय।
कशीद:कार (अ़.$फा.पु.)-कशीदे का काम करनेवाला, चिकन आदि के कपड़ों पर बेल-बूटे आदि बनानेवाला।
कशीद:कारी ($फा.स्त्री.)-चिकन बनाना, कपड़े पर बेल-बूटे बनाना।
कशीद:ख़्ाातिर (अ़.$फा.वि.)-अप्रसन्न, नाख़्ाुश नाराज़, रुष्ट, रूठा हुआ; खिन्न, मलिन, अफ़्सुर्द:।
कशीद:रू ($फा.वि.)-मुँह बिगाड़े हुए, रुष्ट, नाराज़, रूठा हुआ; लम्बे मुँहवाला, लम्बोतरे मुँह का।
कशीदगी ($फा.स्त्री.)-खिंचाव, रुकावट, नाराजग़ी, मलाल, वैमनस्य, मनमुटाव।
कशीदा ($फा.वि.)-दे.-'कशीद:Ó, वही शुद्घ है।
कशीदा ख़्ाातिर (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कशीद:ख़्ाातिरÓ।
$कशीब (अ़.पु.)-पहनने का नया कपड़ा, नया वस्त्र।
कशीश (अ़.पु.)-पादरी, ईसाइयों का धर्मगुरु।
$कशूर (अ़.पु.)-मुँह पर मलने की एक दवा, जिससे मुँह का रंग सा$फ होता है।
$कश्क: (अ़.पु.)-टीका, तिलक, चित्रक, चन्दन आदि से माथे पर बनायी जानेवाली लकीरें। 'मीर का मजहब क्या पूछो अब उनने तो, क़श्क: खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम कियाÓ- मीर तकी मीर
कश्क ($फा.पु.)-जौ से बनी घाट, छिलके उतारे हुए जौ; जौ का पानी, जो रोगियों को दिया जाता है, यविरा; सूखा दही।
$कश्$का (अ़.पु.)-दे.-'$कश्$क:Ó, वही शुद्घ है।
कश्काब ($फा.पु.)-छिलके उतारे हुए जौ का पानी, जो रोगियों को दिया जाता है, आशे जौ, यविरा।
कश्कोल ($फा.पु.)-भीख माँगने का बर्तन, भिक्षा-पात्र, भिखारी का ठीकरा, भिखारी की झोली; दूसरों की अच्छी उक्तियों के संग्रह की पुस्तक। दे.-'कचकोलÓ।
कश्ख़्ाान ($फा.पु.)-दे.-'$कल्तबानÓ।
कश्ती ($फा.पु.)-नौका, नैया, नाव, तरणी। 'मुझसे बिछुड़े हैं भँवर में बहुत से 'माँझीÓ, मैं वो कश्ती हूँ किनारे से लगा दे कोईÓ- माँझी
कश्तीबान ($फा.वि.)-मल्लाह, माँझी, नाव चलानेवाला, नाविक, कर्णधार, नाख़्ाुदा।
कश्तीबानी ($फा.स्त्री.)-कश्ती खेना, नाव चलाना।
कश्तीराँ ($फा.वि.)-दे.-'कश्तीबानÓ।
कश्तीरानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कश्तीबानीÓ।
कश्नीज़ ($फा.पु.)-धनिया।
कश्$फ (अ़.पु.)-सामने या ऊपर से परदा हटाना, खोलना, ज़ाहिर करना, उघाडऩा; ईश्वरीय प्रेरणा; आत्मशक्ति द्वारा गुप्त बातों का ज्ञान, मुवाश$फ:; सू$फी-संतों की वह अवस्था, जिसमें उनको मुर्दे की $कब्र से हालात मालूम हो जाते हैं; ज़ाहिर होना, प्रकट होना।
कश्$फी ($फा.वि.)-खुला हुआ, स्पष्ट, प्रकट।
कश्मीर ($फा.पु.)-भारत का एक प्रसिद्घ प्रदेश।
कश्मीरा ($फा.पु.)-एक प्रकार का पशमीना जो कश्मीर से आता है।
कश्मीरी ($फा.वि.)-कश्मीर से सम्बन्धित; कश्मीर की भाषा; कश्मीर का निवासी।
$कश्र (अ़.पु.)-तुष, छिलका, भूसी।
$कश्रुलबैज़ (अ़.पु.)-अण्डे का छिलका।
कश्वर ($फा.स्त्री.)-राष्ट्र, देश, मुल्क; प्रदेश, इला$क:; महाद्वीप, बर्रे आÓज़म। दे.-'किश्वरÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$कश्वर (अ़.स्त्री.)-नष्टार्तव, वह स्त्री जिसे मासिक-धर्म न आता हो, मासिक-स्राव से वंचित महिला।
कश्वरकुशा ($फा.वि.)-सत्ताधीश, शासक, हुक्मराँ, हाकिम।
कश्वर सिताँ ($फा.वि.)-अ़ालमगीर, विश्व-विजयी, संसार को जीतनेवाला।
कश्शा$फ (अ़.वि.)-प्रकट करनेवाला, खोलनेवाला; बहुत खोलनेवाला, बहुत ज़ाहिर करनेवाला।
$कस [स्स] (अ़.पु.)-छाती, सीना, वक्षस्थल; सीने की हड्डी।
कस ($फा.पु.)-मनुष्य, व्यक्ति, शख़्स, आदमी। पद.-'बेकसÓ-जिसका कोई सहायक न हो, बेचारा। (सं.पु.)-परीक्षा, कसौटी, जाँच; तलवार की लचक जिसके द्वारा उसकी उत्तमता की जाँच होती है; बल, ज़ोर; वश, $काबू; अवरोध, रोक, रुकावट; 'कसावÓ का लघुरूप; सार, तत्त्व।
कस ओ नाकस ($फा.पु.)-दे.-'कसोनाकसÓ।
कसक (हिं.स्त्री.)-हलका या मीठा दर्द, टीस, साल; पुराना वैर; इच्छा, ख़्वाहिश, अभिलाषा; हमदर्दी, सहानुभूति। 'कसक निकालनाÓ-पुराने वैर का बदला लेना।
कसकना (हिं.क्रि.अक.)-टीसना, दर्द करना, सालना।
$कसद ($फा.पु.)-दे.-'$कस्दÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
कसना (हिं.क्रि.सक.)-बाँधने के समय दृढ़ करने के लिए रस्सी आदि खींचना; बंधन खींचकर बँधी हुई वस्तु को ख़्ाूब दबाना; जकडऩा, बाँधना; पुरज़ों का दृढ़ करके बैठाना; साज रखकर सवारी तैयार करना; ठूँस-ठूँसकर भरना; परीक्षण के लिए कसौटी पर चढ़ाना; परखना; तलना, घी में ख़्ाूब भूनना; क्लेश देना, पीड़ा पहुँचाना।
$कसब: (अ़.पु.)-गाँव से बड़ा मगर शहर से बड़ा, छोटा शहर, $कस्बा; शाखा, डाल, डाली, टहनी।
$कसब (अ़.पु.)-प्रत्येक वह चीज़, जो नर्कट की तरह अन्दर से खोखली होती है; नर्कट, नर्कुल; हड्डी; एक प्रकार का बढिय़ा मलमल।
$कसबा (अ़.पु.)-दे.-'$कसब:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कसबुज़्ज़रीर: (अ़.पु.)-एक वनौषधि, चिरायता।
$कसबुलजीब (अ़.पु.)-काँस, एक घास।
$कसबुलजैब (अ़.पु.)-पत्र अथवा ख़्ात रखने का बाँस आदि का खोल, जिसमें रखकर पत्र भेजे जाते थे।
$कसबुलहबीब (अ़.पु.)-ईख, ऊख, गन्ना, गण्डा, नैशकर।
$कसबुस्सब$क (अ़.पु.)-वह बल्लम, जो दूरी पर गाड़ दिया जाता है और कुछ घुड़सवार सैनिक अपने-अपने घोड़े दौड़ाकर उसकी ओर लपकते हैं, जो उसे पहले उखाड़ लेता है, उसे विजयी घोषित किया जाता है; सैनिकों की एक प्रकार की प्रतियोगिता, बल्लम-उखाड़ प्रतियोगिता।
$कसम (अ़.स्त्री.)-शपथ, सौगंद, सौगन्ध; किसी काम से इंकार करना। मुहा.-'$कसम खाने कोÓ-नाममात्र को। '$कसम उतारनाÓ-प्रतिज्ञा पूरी करना। '$कसम खाने को न रहनाÓ-एकदम ख़्ात्म हो जाना, बिलकुल न रहना। '$कसम टूटनाÓ-वचन भंग होना। '$कसम तोडऩाÓ-वचन विरुद्घ काम करना। '$कसम होनाÓ-बिलकुल इंकार होना।
कसमपुर्सी ($फा.स्त्री.)-बेकसी, बेबसी; ऐसा जीवन जिसमें कोई पूछनेवाला न हो, बेचारगी।
कसमसाना (हिं.क्रि.अक.)-कुलबुलाना, उकताकर हिलना-डोलना; विचलित होना, बेचैन होना; आगा-पीछा करना, हिचकना।
कसर (अ़.स्त्री.)-शुद्घ शब्द 'कस्रÓ है मगर यह भी व्यवहार में लाया जाता है। कमी, न्यूनता; टोटा, घाटा, हानि, नु$कसान; नुक्स, दोष, विकार; किसी वस्तु के सूखने या उसमें से कूड़ा-कर्कट आदि निकालने से होनेवाली कमी; द्वेष, वैर, मनमुटाव। मुहा.-'कसर निकालनाÓ-बदला लेना।
कसरत (अ़.स्त्री.)-दे.-'कस्रतÓ, वही शुद्घ है। शरीर को पुष्ट और बलवान् बनाने के लिए दण्ड-बैठक आदि परिश्रम के काम, व्यायाम, मेहनत, वजिऱ्श, मश्$क, अभ्यास।
कसरती (अ़.वि.)-कस्रत या व्यायाम करनेवाला; वजिऱ्श या व्यायाम किया हुआ; व्यायाम द्वारा बना हुआ या गठा हुआ शरीर।।
कसल (अ़.पु.)-रोगी होने की अवस्था, बीमारी, माँदगी, रुग्णता; शिथिलता, आलस्य, सुस्ती, काहिली; क्लान्ति, श्रान्ति, थकावट।
कसलमंद (अ़.$फा.वि.)-थका हुआ, क्लान्त, श्रान्त, सुस्त, शिथिल; बीमार, रोगी।
$कसस (अ़.पु.)-कहानी सुनाना, कि़स्सा कहना।
$कसाइद (अ़.पु.)-'$कसीद:Ó का बहु., $कसीदे।
$कसाई (अ़.पु.)-मांस बेचनेवाला, गोश्त-$फरोश; कस्साब, बधिक, बूचड़। (वि.)-निर्दय, बेरहम, ज़ालिम। मुहा.- '$कसाई का पिल्लाÓ-मोटा-ताज़ा आदमी। '$कसाई के खूँटे से बकरी बाँधनाÓ-बेरहम के साथ बेटी ब्याहना; किसी सीधे-सादे को भयानक स्थान में पटक देना।
कसाद (अ़.पु.)-किसी वस्तु का प्रचलन न रहना, आउट ऑ$फ फैशन होना, बेरिवाजी; ग्राहकों या ख़्ारीददारों का अभाव; सस्तापन, मन्दता।
कसादबाज़ारी (अ़.$फा.स्त्री.)-बाज़ार भाव का बहुत मन्दा हो जाना; बाज़ार में ख़्ारीद-$फरोख़्त बहुत कम हो जाना; किसी चीज़ की पूछताछ न होना, कसमपुर्सी।
कसा$फत (अ़.स्त्री.)-गाढ़ापन; अशुद्घता, गन्दगी; मलिनता, मैलापन; भद्दापन; मोटाई।
$कसाब: (अ़.पु.)-स्त्रियों के सिर पर बाँधने का रूमाल।
$कसाब (अ़.पु.)-दे.-'$कस्साबÓ, वही शुद्घ है।
$कसाबा (अ़.पु.)-दे.-'$कसाब:Ó, वही शुद्घ है।
$कसामत ($फा.स्त्री.)-शपथ दिलाने या खिलाने का काम।
$कसारत (अ़.स्त्री.)-कपड़े धोना, धोबी का काम।
कसालत (अ़.स्त्री.)-दे.-'कसलÓ।
$कसावत (अ़.स्त्री.)-कठोरता, सख़्ती; संग-दिली, बेरहमी, निर्दयता।
$कसावते$कल्बी (अ़.स्त्री.)-निर्दयता, हृदय का कठोर होना।
$कसी (अ़.वि.)-कठोर हृदय, बेरहम, निर्दय।
कसी उल $कल्ब (अ़.वि.)-कठोर हृदयवाला, पाषाण-हृदय, सख़्त-दिल, पत्थर-दिल।
कसीद: (अ़.वि.)-वह माल जिसकी बिक्री न हो, जिसका चलन उठ गया हो।
$कसीद: (अ़.पु.)-काव्यात्मक प्रशंसा, पद्यात्मक तारी$फ, कविता की एक $िकस्म जिसमें किसी महान् व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है; ऐसी प्रशंसा जिसमें यर्थाथता कम हो, भटई, प्रशस्ति-काव्य, विरुद-काव्य।
$कसीद:ख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-$कसीद: पढऩेवाला; झूठी प्रशंसा करनेवाला, ख़्ाुशामदी, चापलूस; भाट, बन्दी, चारण।
$कसीद:ख़्वानी (अ़.$फा.स्त्री.)-$कसीद: पढऩा; झूठी प्रशंसा करना, भटई करना।
$कसीद:गो (अ़.$फा.वि.)-$कसीद: लिखनेवाला, वह शाइर जो $कसीदे अधिक और अच्छे लिखता हो।
$कसीद:गोई (अ़.$फा.स्त्री.)-$कसीदे लिखना।
कसीद (अ़.वि.)-वह माल, जिसका चलन न रहा हो, अप्रचलित सौदा।
$कसीद (अ़.पु.)-टूटा हुआ, शिकस्ता; सूखा चमड़ा; काव्य का एक रूप, जिसमें शेÓरों की संख्या तीन से अधिक दस तक होती है।
$कसीदा (अ़.पु.)-दे.-'$कसीद:Ó, वही शुद्घ है।
कसी$फ (अ़.वि.)-भद्दा, बेढंगा; मोटा, स्थूल; मलिन, मैला-कुचैला; अपवित्र, गन्दा।
कसी$फुत्तब्अ़ (अ़.वि.)-जिसका मन सा$फ न हो, जिसकी आत्मा अशुद्घ हो, बदबातिन।
कसी$फुलबातिन (अ़.वि.)-दे.-'कसी$फुत्तब्अ़ Ó।
$कसीम: (अ़.पु.)-कस्तूरी की नाभि, मुश्क का ना$फा।
$कसीम (अ़.वि.)-शरी$क, साझीदार, भागीदार; विभाजक, बाँटनेवाला।
$कसीर (अ़.वि.)-वामन, बौना, नाटा, गुट्टा; छोटा, लघु, ह्रïस्व।
कसीर (अ़.वि.)-प्रचुर, अधिक, बहुत। इसकी 'सीÓ उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बनी है।
कसीर (अ़.वि.)-खण्डित, टूटा हुआ, शिकस्ता। इसकी 'सीÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बनी है।
कसीरुज़्ज़ौजात (अ़.पु.)-बहुपत्नीक, अनेकभार्य, जिसकी अनेक पत्नियाँ हों।
कसीरुत्तहम्मुल (अ़.वि.)-जिसमें धैर्य बहुत हो, बहुधैर्य, बहुक्षम।
कसीरुत्तÓदाद (अ़.वि.)-बहुसंख्यक, जो गिनती में अधिक हों, असंख्य, विपुल।
कसीरुलअख़्ला$क (अ़.वि.)-बहुशील, जो बहुत मिलनसार और सुशील हो, अत्यन्त शीलवान्।
कसीरुलअज़्लाअ़ (अ़.वि.)-बहुभुज-क्षेत्र, वह क्षेत्र जिसकी अनेक भुजाएँ या कोने हों।
कसीरुलअत्$फाल (अ़.वि.)-बहुसंतति, वह व्यक्ति जिसके अनेक बच्चे हों; वह स्त्री जिसने अनेक बच्चों को जन्म दिया हो, बहुसू, कृमिला, बहुप्रसवा।
कसीरुलअफ़्कार (अ़.वि.)-बहुचिन्तित, जो अनेक $िफक्र और चिन्ताओं से ग्रस्त हो।
कसीरुलअ़लाइ$क (अ़.वि.)-जो दुनिया के मोह-माया या मायाजाल में पूरी तरह फँसा हो; जिसके मित्र और रिश्तेदार बहुत हों; जिसके पीछे दुनिया के बहुत-से झगड़े लगे हों।
कसीरुलअश्काल (अ़.वि.)-बहुरूप, अनेकाकार; जिसके अनेक रूप हों।
कसीरुलइयाल (अ़.वि.)-कम आय, अधिक बच्चोंवाला; जिसकी संतति अधिक और आय कम हो; बहुकुटुम्बी, बहुत बाल-बच्चोंवाला।
कसीरुलइल्म (अ़.वि.)-बहुविद्, जो बहुत बड़ा विद्वान् हो।
कसीरुलऔलाद (अ़.वि.)-दे.-'कसीरुलइयालÓ।
कसीरुलऔसा$फ (अ़.वि.)-बहुगुण, जिसमें अनेक गुण और अच्छाइयाँ हों।
कसीरुलकलाम (अ़.वि.)-वाचाल, बक्की, झक्की, जो बहुत बातें करता हो।
कसीरुल$कामत (अ़.वि.)-बौना, वामन, बहुत छोटे $कद का, नाटा, बहुत छोटे डील-डौल का।
कसीरुलख़्ौर (अ़.वि.)-जो बहुत अधिक दानशील हो, जो अच्छे कामों का$फी ख़्ार्च करता हो, जो $गरीबों की का$फी सहायता करता हो।
कसीरुलमाÓना (अ़.वि.)-अनेकार्थी, वह शब्द अथवा वाक्य या शेÓर जिसके अनेक अर्थ हों, बहुअर्थी।
कसीरुलमानी (अ़.वि.)-दे.-'कसीरुलमाÓनाÓ।
कसीरुलमाल (अ़.वि.)-धनाढ्य, पृथुलधन, जिसके पास धन बहुत हो, विपुलद्रव्य, बहुधनी।
कसीरुलवु$कूअ़ (अ़.वि.)-सामान्य घटना, ऐसी घटना जो प्राय: घटित होती रहती हो।
कसीरुश्शाÓर (अ़.वि.)-लोमश, बहुलोमा, जिसके शरीर पर बाल बहुत हों।
कसीरुश्शह्वत (अ़.वि.)-अतिकामी, घोर-विषयी, जिसमें काम-वासना का आधिक्य हो, बहुकाम, अत्यन्त कामुक।
कसीरुस्समर (अ़.वि.)-ऐसा वृक्ष, जिसमें फल बहुत आते हों, बहुफल।
$कसील (अ़.पु.)-अधपका जौ, वह जौ जो अभी पूरी तरह पका न हो, अधपका जौ।
कसीस (अ़.पु.)-छुहारे की शराब; सुखाया हुआ $कीमा।
कसीह (अ़.वि.)-मजबूर, विवश, लाचार; जो एक जगह ठहरकर रह गया हो, हिल-डुल न सके।
क़सूर (अ़.पु.)-दे.-'$कुसूरÓ, वही शुद्घ है।
कसूस (अ़.पु.)-अमरबेल, एक बेल, जो वृक्षों पर फैलती है।
कसे ($फा.वा.)-कोई (व्यक्ति)।
कसे बाशद ($फा.वा.)-कोई हो, चाहे काई हो।
कसो को ($फा.पु.)-मित्र और स्वजन।
कसो नाकस ($फा.पु.)-अच्छा-बुरा हर प्रकार का आदमी, छोटा-बड़ा हर आदमी।
कसौटी (हिं.पु.)-विशेष प्रकार का एक काला पत्थर जिस पर रगड़कर सोने के खरे-खोटे की परख की जाती है; जाँच, परख, परीक्षा।
$कस्द (अ़.पु.)-इच्छा, कामना, ख़्वाहिश, विचार; संकल्प, निश्चय, इरादा। पद.-'$कस्दे ख़्ाुदकशीÓ-आत्महत्या का निश्चय।
$कस्दन (अ़.वि.)-विचारपूर्वक, निश्चयपूर्वक, जान-बूझकर।
$कस्ब: (अ़.पु.)-शहर से छोटी और गाँव से बड़ी बस्ती।
कस्ब (अ़.पु.)-पैदा करना, कमाना; हुनर, कला; उद्यम, धन्धा, रोज़गार; पेशा, व्यवसाय; कमाई, उपार्जन; रंडीकर्म, वेश्याकर्म, वेश्यावृति, व्यभिचार। पद.-'कस्बेजऱÓ-धन का उपार्जन करना, धनोपार्जन।
$कस्ब (अ़.पु.)-काटना, छेदन, कर्तन।
$कस्बा (अ़.पु.)-दे.-'$कस्ब:Ó, वही शुद्घ है।
$कस्बात (अ़.पु.)-'$कस्ब:Ó का बहु., अनेक $कस्बे।
$कस्बाती (अ़.वि.)-$कस्बे या छोटे शहर में रहनेवाला।
कस्बी (अ़.वि.)-वह विद्या अथवा ज्ञान, जो कमाने और परिश्रम करने से प्राप्त हो, 'बहबीÓ का विपरीत; (स्त्री.)-वेश्या, गणिका, रंडी।
कस्बे इल्म (अ़.पु.)-विद्योपार्जन, विद्या प्रापत करना।
कस्बे कमाल (अ़.पु.)-गुणोपार्जन, कोई गुण प्राप्त करना।
कस्बे ज़र (अ़.पु.)-धनोपार्जन, धन कमाना, रुपया कमाना।
कस्बे हुनर (अ़.$फा.पु.)-शिल्पोपार्जन, कोई शिल्प या कला सीखना।
$कस्म (अ़.पु.)-दान करना, बख़्िश्श करना; बाँटना।
$कस्मत (अ़.स्त्री.)-हिस्से बाँटना, हिस्से लगाना।
$कस्मा-$कस्मी (अ़ौरतों द्वारा प्रयुक्त शब्द)-परस्पर वादे करना, आपस में वचनबद्घ होना।
$कस्मिय: (अ़.क्रि.वि.)-$कसम खाकर, शपथपूर्वक, हल्$फ लेकर, हल्$िफया।
$कस्मिया (अ़.क्रि.वि.)-दे.-'$कस्मिय:Ó, वही शुद्घ है।
कस्र: (अ़.पु.)-उर्दू भाषा में 'ज़ेरÓ की अ़लामत अर्थात् 'इÓ की मात्रा।
कस्र (अ़.पु.)-उर्दू में 'ज़ेरÓ अर्थात् 'इÓ की मात्रा; टूटना, टूट, टूटन; वह संख्या जो एक से कम हो, भिन्न, जैसे-1/6, 1/8, 1/4।
$कस्र (अ़.पु.)-किसी से बलात् कोई काम लेना, ज़बरदस्ती किसी काम पर लगाना। इसका 'स्Ó उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
$कस्र (अ.स्त्री.)-त्रुटि, खामी; न्यूनता, कमी; (पु.)-भवन, प्रासाद, महल। इसका 'स्Ó उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
कस्रत (अ़.स्त्री.)-व्यायाम, वजिऱ्श, मेहनत, मश्$क, अभ्यास, परिश्रम। इसका 'स्Ó उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
कस्रत (अ़.स्त्री.)-प्राचुर्य, बाहुल्य, अधिकता, प्रचुरता, बहुतात, इ$फरात। इसका 'स्Ó उर्दू के 'सेÓ अक्षर से बना है।
कस्रतगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-व्यायामशाला, व्यायाम करने का स्थान, कस्रत करने की जगह।
कस्रती (अ़.वि.)-कस्रत करनेवाला; वजिऱ्श या व्यायाम किया हुआ; व्यायाम द्वारा बना हुआ या गठा हुआ शरीर।
कस्रे नफ़्सी (अ़.स्त्री.)-शालीनता, नम्रता, विनीति।
कस्रेशान (अ़.स्त्री.)-मान-मर्यादा के विरुद्घ, प्रतिष्ठा के ख़्िाला$फ; अपमान, हेठी, बेइज़्ज़ती।
कस्लान (अ़.वि.)-सुस्त, आलसी, काहिल; आलस, काहिली, सुस्ती।
$कस्व: (अ़.पु.)-मन की कठोरता, हृदय की पाषाणता, सख़्तदिली।
$कस्वर: (अ़.पु.)-शेर, सिंह, व्याघ्र।
$कस्सा (अ़.स्त्री.)-ककड़ी। (हिं.पु.)-बबूल की छाल, जिससे चमड़ा कमाया जाता है; बबूल की छाल से बननेवाली मदिरा।
$कस्साब (अ़.पु.)-मांस-विक्रता, गोश्त बेचनेवाला; $कसाई, वधिक, पशुवध करनेवाला, (ला.)-ज़ालिम, बेरहम, निर्दय।
$कस्साबख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-मांस बेचने का स्थान; पशुवध का स्थान; वधस्थल, $कसाईख़्ााना।
$कस्साबा (अ़.पु.)-दे.-'$कसाब:Ó, वही शुद्घ है।
$कस्साबी (अ़.स्त्री.)-$कस्साब का काम या पेशा।
$कस्साम (अ़.वि.)-वितरण करनेवाला, बाँटनेवाला, तक़्सीम करनेवाला; $िकस्मत लिखनेवाला, भाग्य-लेखक, भाग्य-लिपिक।
$कस्सामे अज़ल (अ़.पु.)-इंसान की उत्पत्ति के समय उसके भाग्य में उसका भाग लिखनेवाला, ईश्वर, विधाता।
$कस्सार (अ़.वि.)-कपड़े धोनेवाला, धोबी।
कह ($फा.स्त्री.)-'काहÓ का लघु., घास, तृण।
$कह$करी (अ़.पु.)-उलटे पाँव चलनेवाला, पीछे की तर$फ चलनेवाला।
कहकशाँ ($फा.स्त्री.)-आकाशगंगा, तारों का एक समूह, छाया-पथ।
$कह$कहा ($फा.पु.)- दे.-'$कह्$काहÓ, वही शुद्घ है। ठहाका, अट्टहास; खिलखिलाकर हँसना, ज़ोर की हँसी।
कहगिल ($फा.स्त्री.)-मिट्टी में घास मिलाकर दीवारों को पोतने अथवा उन पर लेस करने के लिए बनाया गया गारा या लेप, मृत्तिका-लेप।
$कहत (अ़.पु.)-दे.-'क़ह्तÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, दुर्भिक्ष, अकाल।
$कहतज़दा (अ़.पु.)-दे.-'$कह्तज़द:Ó।
$कहतसाली (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कह्तसालीÓ।
कहन: (अ़.पु.)-'काहिनÓ का बहु., शकुन विचारनेवाले, अच्छे-बुरे की सोचनेवाले, शुभ-अशुभ का विचार करने-वाले।
कहना (हिं.क्रि.सक.)-बोलना, शब्दोच्चारण द्वारा अभिप्राय: प्रकट करना; प्रकट करना, खोलन, ज़ाहिर करना; सूचना या ख़्ाबर देना; पुकारना; समझाना-बुझाना; बहकाना, बातों में भुलाना; अयुक्त बात बोलना, बुरा-भला बोलना; कविता करना। (हिं.पु.)-कथन, अनुरोध, आज्ञा।
$कहब: (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कुह्ब:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है, दुश्चरित्रा स्त्री, बदकार अ़ौरत, $फाहिशा, व्यभिचारिणी, पुंश्चली; वेश्या, रंडी।
$कहबा (अ़.स्त्री.)-दे.-'$कहब:Ó, वही शुद्घ है।
कहर ($फा.पु.)-कुम्मैत, कुमैत, बैंगनी; कुम्मैती रंग, बैंगनी रंग।
$कहर (अ़.पु.)-दैवी प्रकोप, अज़ाब, आ$फत; दे.-'$कह्रÓ, वही शुद्घ है।
कहरुबा ($फा.पु.)-तृणमणि, एक हलका पत्थर जो घास को अपनी ओर खींचता है; एक प्रकार का गोंद, जिसे कपड़े या चमड़े पर रगड़कर घास या तिनके के सामने करें तो उसे चुम्बक की तरह उठा लेता है।
कहरुबाई ($फा.वि.)-कहरुबा से सम्बन्ध रखनेवाला; ब$र्की, विद्युत-सम्बन्धी।
$कहवा (अ़.पु.)-दे.-'$कह्व:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कहाँ (हिं.क्रि.वि.)-किस जगह, किस स्थान पर? 'कहाँ काÓ-असाधारण, बड़ा भारी; कहीं का नहीं, जो है नहीं। 'कहाँ का कहाँÓ-बहुत दूर।
कहानी (हिं.स्त्री.)-कथा, $िकस्सा, आख्यायिका; मिथ्या वचन, झूठी या मनगढंत बात।
कहार (हिं.स्त्री.)-एक जाति जो पानी भरने और डोली लेकर चलने का काम करती है।
कहालत ($फा.स्त्री.)-काहिली, सुस्ती, आलस, आलस्य।
कहावत (हिं.स्त्री.)-बोलचाल में आने वाला ऐसा बँधा चमत्कारपूर्ण वाक्य जिसमें कोई अनुभव या तथ्य की बात संक्षेप में कही गई हो, लोकोक्ति, मसल; कही हुई बात, उक्ति।
कहासुना (हिं.पु.)-अनुचित वचन और व्यवहार, भूलचूक।
कहासुनी (हिं.स्त्री.)-वाद-विवाद, लड़ाई-झगड़ा, तकरार।
कहीं (हिं.क्रि.वि.)-किसी अनिश्चित स्थान में, किसी ऐसे स्थल पर जिसका ठीक ठिकाना न हो; नहीं, कभी नहीं; कदाचित्; बहुत, बढ़कर। 'अब कहीं आकरÓ-बहुत दिनों में। 'कहीं औरÓ-दूसरी जगह। 'कहीं-कहींÓ-किसी-किसी स्थान पर; बहुत कम। 'कहीं का न रहनाÓ-किसी भी योग्य न रहना।
कही ($फा.पु.)-वे सैनिक, जो सेना के आगे चलकर पड़ाव के लिए घोड़ों के घास-पानी का प्रबन्ध करते हैं।
कहील (अ़.पु.)-वह आँख जिसमें सुरमा लगा हो, अंजित आँख।
कहूल (अ़.वि.)-अधेड़ आयुवाला, खिचड़ी दाढ़ीवाला।
$कह्क़ाह ($फा.पु.)-अट्टहास, ठहाका।
$कह्त (अ़.पु.)-अकाल, दुर्भिक्ष, ख़्ाुश्कसाली; बहुत अधिक कमी, अभाव, $िकल्लत।
$कह्तज़द: (अ़.$फा.वि.)-दुभिक्षग्रस्त, अकाल-पीडि़त, जिसे अकाल के कारण खाने को बहुत कम मिला हो; भूखों मरने वाला; भूखा मरा हुआ, बहुत भूखा।
$कह्तज़दगी (अ़.$फा.स्त्री.)-भुखमरी, अकाल के कारण भूख से मरना।
$कह्तसाली (अ़.$फा.स्त्री.)-अवर्षा, पानी की कमी, सूखा; अकाल, दुर्भिक्ष।
$कह्तुरिजाल (अ़.पु.)-सज्जन और अच्छे लोगों की कमी या अभाव।
कह्फ़ (अ़.पु.)-गड्ढ़ा, गर्त, गार; कन्दरा, गुफा, खोह, सुरंग।
$कह्ब: (अ़.स्त्री.)-दे.-शुद्घ उच्चारण-'$कुह्ब:Ó।
$कह्र (अ़.पु.)-दैवी प्रकोप, अज़ाब; दैवी विपत्ति, बलाए आस्मानी; क्रोध, $गुस्सा, कोप; जोश, वलवला; मुसीबत, आ$फत, शामत; अनीति, अत्याचार, ज़बरदस्ती। कहा.-'$कह्र दरवेश बर जान दरवेशÓ-$गरीब $गुस्सा करेगा तो किसी का क्या लेगा, सिर्फ़ अपनी जान खोएगा।
कह्र (अ़.पु.)-सवेरा होना, दिन होना, सूरज निकलना; क्रोधित होना, कुपित होना, $गुस्सा होना; चिल्लाना, शोर मचाना।
$कह्रन (अ़.वि.)-चाहे-नाचाहे, चार-नाचार, ज़बरदस्ती, बलात्।
$कह्रमान (तु.पु.)-कर्मचारी, काम करनेवाला, कारकुन।
क़ह्रमान (अ़.पु.)-सत्ताधीश, शासक, हाकिम; सत्ता, शासन, हुकूमत; अत्याचार और अन्याय का शासन।
कह्ल (अ़.पु.)-अधेड़ आयुवाला मनुष्य। इसका 'ह्Ó उर्दू के 'हम्जाÓ अक्षर से बना है।
कह्ल (अ़.पु.)-$कह्त का साल, अकाल का वर्ष, दुर्भिक्ष का समय। इसका 'ह्Ó उर्दू के 'हेÓ अक्षर से बना है।
$कह्व: (अ़.पु.)-एक प्रकार का दाना जिसे भूनकर पीसते तथा उबालकर चाय की तरह पीते हैं, का$फी।
क़ह्व:ख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-का$फी-हाउस, जहाँ $कहवा पिया जाता है।
$कह्हार (अ़.वि.)-बहुत $गुस्सेवाला, महा$गुस्सैल, बहुत अधिक क्रोध करनेवाला, अति क्रोधी; ईश्वर का एक नाम।
कह्हाल (अ़.वि.)-नेत्र-चिकित्सक, आँख के रोगों की चिकित्सा करनेवाला; सुरमा बनाने और बेचनेवाला, सुरमा-$फरोश, अंजन-विक्रेता।
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