का, $का
काँच (सं.पु.)-एक मिश्रित धातु जो बालू और रेह या खारी मिट्टी को आग में गलाने से बनती है और पारदर्शक होती है, इससे गिलास, बोतल, चूडिय़ाँ और नाना प्रकार की चीज़ें बनती हैं, शीशा। (हिं.स्त्री.)-धोती का वह छोर जिसे दोनों जाँघों के बीच से पीछे ले जाकर कमर में खोंसते हैं, लांग; गुदा का भीतरी भाग, गुदाचक्र, गुदावत्र्त। 'काँच निकलनाÓ-बेदम होना, बहुत चोट या कष्ट पहुँचना। 'काँच निकालनाÓ-अत्यधिक परिश्रम लेना; बहुत चोट या कष्ट पहुँचाना।काँटा (हिं.पु.)-वृक्ष की टहनियों के नुकीले अंकुर जो सुई के समान होते हैं, कंटक।
काँपना (हिं.क्रि.सक.)-हिलना, थरथराना; डर से काँपना, थर्राना; डरना, भयभीत होना।
$का (अ़.स्त्री.)-कौवे की आवाज़।
$काअ़Ó (अ़.पु.)-वह विस्तृत भूमि जो समतल हो, हमवार और लम्बी-चौड़ी ज़मीन।
$काआन (तु.वि.)-न्यायप्रिय राजा, इंसा$फपसंद बादशाह; बहुत बड़ा धर्मात्मा; चीन के बादशाह की उपाधि; तुर्की की एक बड़ी उपाधि।
$काइद: (अ़.पु.)-विधि, पद्घति, तरी$का; नियम, उसूल; सिद्घान्त, नज़रीय:; बच्चों के लिए वर्णमाला अर्थात् भाषा-ज्ञान की पुस्तक।
$काइद:दाँ (अ़.$फा.वि.)-विधिवेत्ता, जिसे विधि और नियम आदि ज्ञात हों, $काइदा जाननेवाला, नियम-विशेषज्ञ, बड़ा बड़ा विद्वान्।
$काइद (अ़.वि.)-अन्धे की लाठी पकड़कर उसके आगे-आगे चलनेवाला; नेता, लीडर; सेना का मुखिया, सेनाध्यक्ष। इसकी 'इÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बनी है।
$काइद (अ़.वि.)-बैठा हुआ; (पु.)-वह खजूर, जिस तक हाथ पहुँच जाए; (स्त्री.)-वह स्त्री, जो रजोधर्म और जनन से निवृत हो। इसकी 'इÓ उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बनी है।
काइद (अ़.वि.)-धूर्त, मक्कार, छली, वंचक।
$काइदा (अ़.पु.)-दे.-'$काइद:Ó, वही शुद्घ है।
$काइदए कुल्लीय: (अ़.पु.)-व्यापक नियम, वह नियम जो एक-जैसी चीज़ों में सभी पर लागू हो, वह $कानून जो एक-जैसी परिस्थिति में सब पर लागू हो।
काइन (अ़.वि.)-पैदा होनेवाला, उत्पन्न होनेवाला; उपस्थित होनेवाला।
क़ाइन (तु.पु.)-जेठ या देवर, पति का भाई; साला, पत्नी का भाई, साला।
काइनात (अ़.स्त्री.)-ब्रह्मïाण्ड, ख़्ालाए आस्मानी; शक्ति, सामथ्र्य, हैसियत, बिसात; संसार, दुनिया, विश्व, जगत्। पद.-'पयामे काइनातÓ-सृष्टि का संदेश।
$काइ$फ (अ़.पु.)-मूसलाधार वर्षा, अतिवृष्टि, बहुत-ही कड़ी वर्षा, सख़्त बारिश। इसकी 'इÓ उर्दू के 'ऐनÓ अक्षर से बनी है।
$काइ$फ (अ़.वि.)-मुखाध्ययन करनेवाला, चेहरा देखकर हाल बता देनेवाला, फेस-रीडर, $िकया$फ:शनास, सामुद्रिक-ज्ञान का विद्वान्। इसकी 'इÓ उर्दू के 'अलि$फÓ अक्षर से बनी है।
$काइम: (अ़.वि.)-नव्वे अंश का कोण; वह खड़ी रेखा, जो पड़ी हुई रेखा पर गिरकर नव्वे अंश का कोण बनाए; पाया, खंभा, स्तंभ।
$काइम (अ़.वि.)-ठहरा हुआ, स्थिर, बर$करार; दृढ़, मज़बूत; स्थिर, पायदार ($कायम); निश्चित, मु$कर्रर; उल्लम्ति, खड़ा होनेवाला, खड़ा हुआ, उत्थित, स्थापित; शतरंज की बाज़ी की वह अवस्था जब दोनों खिलाडिय़ों के दो-दो मोहरे रह जाते हैं।
$काइम अंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-अत्यधिक शक्तिशाली; शतरंज का माहिर खिलाड़ी।
$काइम बिज़्ज़ात (अ़.वि.)-स्वतंत्र अस्तित्ववाला, जिसका अस्तित्व बिना किसी दूसरे के सहारे के हो, स्वावलम्बी।
$काइम बिल$गैर (अ़.वि.)-जिसका अस्तित्व दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर हो, जैसे-रंग का अस्तित्व दीवार के सहारे, परालम्बी, पराश्रित, परजीवी।
$काइम म$काम (अ़.वि.)-$कायम मुक़ाम, जो किसी दूसरे के पद या स्थान पर नियुक्त हो, स्थानापन्न।
$काइम मिज़ाज (अ़.वि.)-मुस्त$िकल आदमी, स्थिरबुद्घि, दृढ़निश्चय, जो किसी निश्चय पर अटल रहे।
$काइम मिज़ाजी (अ़.स्त्री.)-मिज़ाज का ठहरा हुआ होना कि रंज-ख़्ाुशी, अमीरी-गऱीबी में एक-जैसा ही रहे, स्थिर-प्रज्ञ होना।
$काइम मुकाम (अ़.वि.)-दूसरे की जगह काम करनेवाला, एवज़ी।
$काइम मुकामी (अ़.स्त्री.)-किसी की जगह काम करना, किसी के एवज़ काम करना।
$काइमा (अ़.वि.)-दे.-'$काइम:Ó, वही शुद्घ है।
काइयाँ (हि.वि.)-चालाक, धूर्त, मक्कार, दग़बाज़।
काइयाँपन (अ़.पु.)-धूर्तता, मक्कारी, चालाकी।
$काइल: (अ़.स्त्री.)-बात करनेवाली, कहनेवाली; $कैलूल: करने अर्थात् दोपहर को खाना खाकर थोड़ी देर आराम करनेवाली।
$काइल (अ़.वि.)-मान जानेवाला, लाजवाब होनेवाला, $कायल; निरुत्तर होनेवाला; कहनेवाला, बोलनेवाला; दोपहर में खाना खाकर थोड़ी देर लेटने या आराम करनेवाला।
काई (हिं.स्त्री.)-ठहरे हुए पानी में हो जानेवाली एक प्रकार की महीन घास या सूक्ष्म वनस्पति; वह हरा मुरचा जो तांबे या पीतल के बर्तनों पर लगता है।
काऊस ($फा.पु.)-कैकाऊस, ईरान का एक सुप्रसिद्घ सम्राट्, रुस्तम इसी का नौकर था।
$का$क (तु.पु.)-सुखाया हुआ मांस; सूखा-साखा मनुष्य; दुबला-पतला, नातुवाँ, कमज़ोर।
का$क (अ़.वि.)-अत्यन्त लम्बा व्यक्ति, लम्बकाय।
काक ($फा.स्त्री.)-आटे की मोटी और छोटी रोटी, फुलकी, फुलकिया, टिकिया, बाटी। (सं.पु.)-एक प्रसिद्घ काला पक्षी कौआ, कव्वा; एक नर्म लकड़ी जिससे बोतल की डाट बनती है।
काÓक (अ़.स्त्री.)-दे.-'काकÓ।
का$करेज़ी ($फा.वि.)-गहरा नीला या काला (रंग), स्याही माइल ऊदा रंग।
काका (तु.पु.)-बड़ा भाई, अग्रज; घर का बड़ा-बूढ़ा नौकर। (सं.स्त्री.)-मोर की बोली; कौआ, कव्वा; घुंघची; मकोय; कठगूलर, कठूमर। (हिं.पु.)-पिता का छोटा भाई, चाचा।
$का$कुम ($फा.पु.)-नेवले की प्रजाति का एक रोएँदार जंगली जन्तु, जिसकी खाल बहुत मुलायम होती है और उसका पोस्तीन (शीत-निरोधक परिधान) बनता है; उस जानवर की खाल।
$का$कुमे उंगुश्तनुमा ($फा.पु.)-एक प्रकार का $का$कुम (जंगली जन्तु) जिसके रोएँ अंगुल-अंगुल-भर उठे होते हैं।
$का$कुल: (अ़.स्त्री.)-बड़ी इलायची।
काकुल ($फा.स्त्री.)-कनपटी पर लटकते हुए लम्बे बाल, कुल्ले; बालों की लट, केशपाश; अलक, ज़ुल्$फ।
$का$कुलतैन (अ़.स्त्री.)-छोटी और बड़ी दोनों इलायचियाँ।
काकुले परीशाँ ($फा.स्त्री.)-बिखरी हुई ज़ुल्$फें, बिखरे हुए बाल।
काकुले पेचाँ ($फा.स्त्री.)-बल खाए हुए बाल, घुँघराले बाल।
काकुल शम्अ़ (अ़.$फा.स्त्री.)-दीपक या चिरा$ग का धुआँ।
काख़्ा ($फा.पु.)-ऊँची इमारत, महल, प्रासाद, भवन; वर्षा, बारिश, बरसात। पद.-'काख़्ो उमराÓ-अमीरों के महल।
काग़ ($फा.पु.)-रोना-धोना, शोर-$गुल; आग, अग्नि; पशुओं की जुगाली।
कागज़़ (अ़.पु.)-सन, रुई, पटुए आदि को सड़ाकर बनाया हुआ महीन पत्र, जिसपर अक्षर लिखे या छापे जाते हैं; लिखने का कागज़़, पत्र; दस्तावेज़ आदि। मुहा.-'कागज़़ काले करनाÓ-व्यर्थ का कुछ लिखना। 'का$गज़ की नावÓ-क्षणभंगुर वस्तु, न टिकनेवाली कोई चीज़। 'का$गज़ी घोड़े दौड़ानाÓ-लिखा-पढ़ी करना।
कागज़़ पत्तर (अ़.हिं.पु.)-दस्तावेज़, लिखे हुए प्रपत्र।
कागज़ग़र (अ़.$फा.वि.)-का$गज़ बनानेवाला।
कागज़ग़ीर (अ़.$फा.पु.)-वह दरीचा, खिड़की या झरोखा जिस पर कागज़़ या अभ्रक मढ़ा गया हो।
कागज़़ात (अ़.पु.)-'का$गज़Ó का बहु., वे का$गज़, जो किसी विषय-विशेष से सम्बन्धित हों, दस्तावेज़।
कागज़़ी (अ़.वि.)-कागज़़ का बना हुआ; का$गज़ का; का$गज़ से सम्बन्धित; का$गज़ बनानेवाला; बहुत हलके छिलके का, जैसे-'का$गज़ी बादामÓ; कागज़़ पर लिखा हुआ, जैसे-कागज़़ी दस्तावेज़ अथवा कागज़़ी सुबूत।
कागज़़ेज़र (अ़.$फा.पु.)-प्रामेसरी नोट, पत्र-मुद्रा, हुण्डी।
कागज़़ेबाद (अ़.$फा.पु.)-पतंग, जो हवा में उड़ाई जाती है।
कागज़़े हल्वा (अ़.$फा.पु.)-मिठाई पर लपेटा जानेवाला का$गज़; व्यर्थ वस्तु, जैसे-मिठाई खा लेने के बाद उसका का$गज़ बेकार हो जाता है।
काग़द ($फा.पु.)-दे.-'का$गज़Ó।
काचक ($फा.पु.)-खोपड़ी की हड्डी।
काचार ($फा.पु.)- गृह-सामग्री, घर का सामान।
काचाल ($फा.पु.)-दे.-'काचारÓ।
काज़: ($फा.पु.)-वह गड्ढ़ा, जिसमें शिकार के उद्देश्य से शिकारी छिपकर बैठ जाता है और उस पर पत्ते एवं घास-फूँस डाल लेता है।
$काज़ (तु.पु.)-हंस या बत्तख की प्रजाति का एक पक्षी, जो दूसरे ठण्डे देशों से सर्दियों में भारत आ जाता है तथा मौसम बदलने के बाद वापस लौट जाता है, कूँज, सोना।
काज़ ($फा.पु.)-घास-फँूस का छप्पर या झोंपड़ा, फँूस का घर। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
काज ($फा.अव्य.)-काश, ईश्वर करे; भेंगा, जिसे एक की जगह दो चीज़ें दिखाई पड़ती हों। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है। (हिं.पु.)-कृत्य, काम, कार्य; व्यवसाय, धन्धा, पेशा, रोजग़ार; उद्देश्य, प्रयोजन, मतलब; बटन का घर, कुर्ते आदि का वह छेद जिसमें बटन फँसाया जाता है।
काज़ ($फा.पु.)-चीड़ या सनोवर की एक प्रजाति; भेंगा, अह्वल। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'बड़े ज़ेÓ से बना है।
काजल (हिं.पु.)-किसी ठीकरे पर दीपक का धुआँ जमाकर बनाई जानेवाली कालिख, कज्जल; सुन्दरता के लिए स्त्रियाँ इसे आँखों पर भी लगाती हैं।
काज़ा ($फा.पु.)-दे.-'काज़:Ó।
$काजि़ए चख्ऱ्ा (अ़.$फा.पु.)-बुधग्रह, मुश्तरी।
$काजि़ए शह्र (अ़.$फा.पु.)-वह $काज़ी, जो शह्र में निकाह पढ़ाता है अर्थात् शादियाँ कराता है।
काजि़ब: (अ़.स्त्री.)-मिथ्या-वादिनी, झूठ बोलनेवाली।
काजि़ब (अ़.वि.)-झूठ बोलनेवाला, झूठा, मिथ्यावादी।
$काजि़ब (अ़.वि.)-मुना$फाख़्ाोर व्यापारी, ऐसा व्यापारी जो माल पर अधिक से अधिक लाभ लेना चाहता है, लालची व्यापारी।
काजि़म (अ़.वि.)-धैर्यवान्, क्रोध की बात पर भी क्रोध न करनेवाला, $गुस्सा पी जानेवाला, क्रोध दमन करनेवाला; इमाम मूसारिज़ा की एक उपाधि।
$काजि़युल हाजात (अ़.पु.)-अभिलाषाओं की पूर्ति करने-वाला, कामनाएँ पूरी करनेवाला, ईश्वर।
$काज़ी (अ़.वि.)-इस्लामी रीति-नीति के अनुसार न्याय की व्यवस्था करनेवाला अधिकारी, न्यायकर्ता, मुंसि$फ; निकाह पढ़ानेवाला; अदा करनेवाला, देनेवाला। कहा.-'$काज़ी जी क्यों दुबले, शहर के अंदेशे सेÓ-नाह$क और बेमौक़े $िफक्र करना। '$काज़ी के घर के चूहे भी सियानेÓ-सियाने लोगों के छोटे भी सियाने होते हैं।
$काज़ी दल्लाल (अ़.सं.पु.)-झगड़ा करानेवाला, $िफसाद करानेवाला।
काजीर: ($फा.पु.)-कुसुम का फूल।
काज़ीर: ($फा.पु.)-कुसुम का फूल।
$काज़ूर: (अ़.स्त्री.)-अशुद्घि, अपवित्रता, नापाकी; गन्दगी, मलिनता।
$काज़ूरात (अ़.स्त्री.)-अशुद्घियाँ, नापाकियाँ, गन्दगियाँ।
काट (हिं.स्त्री.)-काटने की क्रिया या भाव; काटने का ढंग, कटाव; चालबाज़ी, विश्वासघात; तेल-घी आदि का तलछट।
काटना (हिं.क्रि.सक.)-तीखे या पैने शस्त्र से किसी वस्तु के दो टुकड़े करना; चूरा करना, पीसना; घाव करना; किसी वस्तु का कोई भाग या अंश अलग करना; कतरना, ब्योंतना; वध करना; नष्ट करना, मिटाना; समय बिताना; रास्ता या मार्ग तै करना; अनुचित प्राप्ति करना; $कलम की लिखावट पर लकीर फेरना; गणित में एक संख्या से दूसरी संख्या को ऐसा भाग देना जिसमें शेष कुछ न बचे; कारावास में समय बिताना; विषैले जन्तु का डंक मारना, डसना; घस्से आदि से डोर तोडऩा; किसी शृंखला से कोई भाग अलग करना; किसी जीव का आगे से रास्ता पार करना, जैसे-'बिल्ली का रास्ता काटनाÓ; किसी की बात को बीच में रोक देना।
कात ($फा.पु.)-ख़्ाुरासान का एक नगर; एक प्रकार का चावल; कत्था। (हिं.पु.)-भेड़ों के बाल कतरने की कैंची; मुगऱ्े के पैर का काँटा।
कातअ़ (अ़.वि.)-दे.-'कातिअ़Ó।
$कातईन (अ़.पु.)-'$कातेÓ का बहु., यात्री, यात्रा करनेवाले, पथिक, मुसा$िफर लोग।
कातना (हिं.क्रि.सक.)-रुई को बटकर तागा बनाना, चरखा चलाना।
कातिअ़ (अ़.वि.)-कर्तक, काटनेवाला।
$कातिउत्तरी$क (अ़.पु.)-मार्ग में लूट लेनेवाला, लुटेरा, राहजन, $कज़्ज़ा$क।
$कातिएतरी$क (अ़.पु.)-दे.-'$कातिउत्तरी$कÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$कातिएबाह (अ़.$फा.पु.)-वीर्य-नाशक पदार्थ, ऐसा खाद्य पदार्थ, जो काम-शक्ति के लिए हानिकारक हो।
$कातिन (अ़.वि.)-रुका हुआ, ठहरा हुआ; जो किसी स्थान पर ठहरा हुआ हो, जो यात्रा अथवा स$फर में न हो, 'मुसा$िफरÓ का विपरीत।
$कातिनीन (अ़.पु.)-रुके हुए लोग, ठहरे हुए लोग।
कातिब (अ़.वि.)-लेखक, लिखनेवाला, लिपिबद्घ करने-वाला, लिपिक; लीथो प्रेस पर छापने के लिए एक विशेष का$गज़ पर विशेष स्याही से लिखने का काम करनेवाला।
$कातिबतन (अ़.वि.)-सब, तमाम, सारा; नितान्त, बिलकुल, सर्वथा।
कातिबे अज़ल (अ़.पु.)-भाग्य लिखनेवाला, मनुष्य की उत्पत्ति के समय उसका भाग्य लिखनेवाला, ईश्वर।
कातिबे आÓमाल (अ़.पु.)-कर्म लिखनेवाला, इंसान के अच्छे-बुरे कर्म लिखनेवाला, धर्मराज।
कातिबे ऐÓमाल (अ़.पु.)-दे.-'कातिबे आÓमालÓ।
कातिबे $िकस्मत (अ़.पु.)-कातिबे अज़ल, भाग्य-लेखक, ईश्वर।
कातिबे $कुद्रत (अ़.पु.)-दे.-'कातिबे अज़लÓ।
कातिबे तक़्दीर (अ़.पु.)-दे.-'कातिबे $िकस्मतÓ।
$कातिम (अ़.वि.)-काला, कृष्ण, सियाह।
$कातिर (तु.पु.)-गधे की प्रजाति का एक जानवर, खच्चर, अश्वतर।
$कातिल (अ़.वि.)-$कत्ल या हत्या करनेवाला, हत्यारा; वध करनेवाला, मार डालनेवाला, वधक, वधिक, हिंसक; पे्रमिका अथवा माÓशू$क के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक विशेषण।
$कातेÓ (अ़.वि.)-विच्छेदक, विच्छेद करनेवाला, काटनेवाला; स$फर करनेवाला, पथिक, मुसाफिर।
$कादिम (अ़.वि.)-स$फर से वापस आया हुआ, यात्रा करके लौटा हुआ।
$कादिमुलइंसान (अ़.पु.)-आदमी की खोपड़ी, इंसान का सिर।
$कादिर (अ़.वि.)-शक्तिशाली, ता$कतवर; समर्थ, ज़ोरावर, बलवान्, $काबूदार, $काबू रखनेवाला; ईश्वर का एक नाम।
$कादिर अंदाज़ (अ़.$फा.वि.)-ठीक निशाना लगानेवाला, लक्ष्य-भेदी, शब्द-भेदी, जँचा-तुला निशाना लगानेवाला, निशानची।
$कादिर अंदाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-शब्द-भेद, लक्ष्य-भेद, जँचा -तुला निशाना लगाना।
$कादिर अ़ललइत्ला$क (अ़.पु.)-सर्वशक्तिमान्, प्रत्येक कार्य को करने की शक्ति और सामथ्र्य रखनेवाला अर्थात् ईश्वर।
$कादिरदस्त (अ़.$फा.वि.)-कुशल, निपुण, दक्ष, जिसका हाथ किसी काम में मँजा हुआ हो, कार्यकुशल।
$कादिरी (अ़.स्त्री.)-बेग़मों का एक $िकस्म का सीनाबंद या चोली; सू$िफयों का एक सम्प्रदाय।
$कादिरुलकलाम (अ़.वि.)-वागीश, वाक्-पटु, बातचीत करने या भाषण देने में निपुण।
$कादिरे मुत्ल$क (अ़.पु.)-दे.-'$कादिर अ़ललइत्ला$कÓ।
$कादिस (अ़.पु.)-बड़ी नाव, स्टीमर।
कान ($फा.स्त्री.)-जहाँ से खनिज और धातुएँ निकलती हैं, खान, खनि, खानि, मख़्ज़न। (हिं.पु.)-सुनने की इन्द्रिय; श्रवण, श्रुति, श्रोत्र।
क़ान (तु.पु.)-रक्त, लहू, ख़्ाून।
$कानअ़ (अ़.वि.)-$कयानत या संतोष करनेवाला, संतोषी, धीरज वाला।
कानकन ($फा.वि.)-खान में काम करनेवाला श्रमिक, खनक, मज़दूर, खान खोदनेवाला।
कानकनी ($फा.स्त्री.)-खनि-कर्म, खान में काम करना, खान में खुदाई का काम।
$कानिअ़ (अ़.वि.)-दे.-'$कानअ़Ó।
$कानित (अ़.वि.)-आज्ञाकारी, $फर्माबरदार; नमाज़ में दुअ़ा माँगनेवाला।
$कानितीन (अ़.पु.)-'$कानितÓ का बहु., आज्ञाकारी लोग; नमाज़ में दुअ़ा माँगनेवाले।
$कानिस (अ़.वि.)-शिकारी, शिकार करनेवाला, आखेटक।
कानी ($फा.वि.)-खान से सम्बन्ध रखनेवाला (वस्तु या मनुष्य); खान से निकला हुआ पदार्थ, खनिज।
$कानी (तु.वि.)-अत्यधिक लाल, बहुत अधिक लाल, लाल -सुख्ऱ्ा।
$कानून (अ़.पु.)-राज्यों में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने का नियम, राज-नियम, विधि, विधान, आईन; नियम, उसूल; रिवाज, परम्परा, रीति, विधि, तरी$का। '$कानून छाँटनाÓ-बे ज़रूरत वाद-विवाद और हुज्जत करना।
कानून ($फा.स्त्री.)-अँगीठी, चूल्हा, भट्ठी, भ्राष्ट्र।
$कानूनगो (अ़.$फा.पु.)-माल विभाग का एक अधिकारी, जो पटवारियों के काम की देख-रेख करता है।
$कानूनदाँ (अ़.$फा.वि.)-$कानून का ज्ञाता, विधानज्ञ, $कानून जाननेवाला; अधिवक्ता, अभिभाषक, वकील।
$कानूनदानी (अ़.$फा.स्त्री.)-$विधि-ज्ञान, क़ानून जानना, $कानून की जानकारी।
$कानूनन (अ़.वि.)-विधानत:, विधान के अनुसार, $कानून के मुताबि$क।
$कानूनशिकनी (अ़.$फा.स्त्री.)-विधान की अवहेलना, $कानून को न मानना, नियम-भंग; सविनय अवज्ञा, सिविल ना$फर्मानी।
$कानूनसाज़ (अ़.$फा.वि.)-विधायक, $कानून बनानेवाला; $कानून बनानेवाली विधानसभा अथवा संसद, विधायिका।
क़ानूनी (अ़.वि.)-$कानून सम्बन्धी, $कानून का।
कानूने अव्वल (अ़.$फा.पु.)-एक तुर्की महीना, जो हिन्दी माह 'पूसÓ और अंग्रेज़ी माह दिसम्बर-जनवरी के लगभग पड़ता है।
कानूने आख़्िार (अ़.$फा.पु.)-एक तुर्की महीना, जो हिन्दी माह 'माघÓ और अंग्रेज़ी माह जनवरी-फरवरी के लगभग पड़ता है।
$कानूने जंग (अ़.$फा.पु.)-युद्घ-विधान, लड़ाई का $कानून।
$कानूने ताÓज़ीरात (अ़.पु.)-दण्ड-विधान, सज़ा का $कानून।
$कानूने $िफत्रत (अ़.पु.)-प्राकृतिक नियम, सृष्टि का $कानून।
$कानूने मुख़्तसुल अस्र (अ़.पु.)-वह $कानून, जो किसी विशेष काल-खण्ड अथवा समय से सम्बन्धित हो।
$कानूने मुख़्तसुल मुकाम (अ़.पु.)-वह $कानून, जो किसी ख़्ाास जगह के लिए हो।
$कानूने विरासत (अ़.पु.)-उत्तराधिकार-नियम, किसके बाद कौन उत्तराधिकारी होता है इसका $कानून।
$कानूने शहादत (अ़.पु.)-गवाही लिये जाने का $कानून, साक्षी-विधान, 'एविडेन्स एक्टÓ।
$कानूने हिसस (अ़.पु.)-दाय और रिक्थ में किसको कितना भाग मिलना चाहिए, इसका $कानून।
$कानेÓ (अ़.वि.)-आत्मसंतोषी, जो कुछ मिल जाए उसी पर संतुष्ट रहनेवाला, कालतुष्ट, निस्पृह, स्थितप्रज्ञ।
काने ज़र ($फा.स्त्री.)-स्वर्णाकर, सोने की खान।
काने नमक ($फा.स्त्री.)-लवणाकर, नमक की खान; बहुत ही सुन्दर और सलौना व्यक्ति।
काने मलाहत (अ़.$फा.स्त्री.)-अत्यन्त लावण्यमयी सुन्दरी, बहुत सुन्दर नवयौवना, बहुत ही मलीह हसीना।
$कापी (तु.पु.)-द्वार, दरवाज़ा।
$कापू (तु.पु.)-द्वार, दरवाज़ा।
$कापूची (तु.वि.)-दरबान, द्वारपाल, ड्योढ़ीदार।
$का$फ ($फा.पु.)-एक उर्दू अक्षर; एक कल्पित पर्वत, जो संसार के चारों ओर माना जाता है। कहते हैं कि ख़्ाूबसूरत परियाँ इसी पर्वत पर रहती हैं; कोहे $का$फ; काकेशिया, जहाँ का सौन्दर्य प्रसिद्घ है; कृष्ण (काला) सागर के पास का एक बहुत बड़ा पर्वत। '$का$फ की परियाँÓ-बहुत हसीन अ़ौरतें। '$का$फ ता $का$फÓ-सकल जहान, सारा संसार, अखिल विश्व।
का$फ ($फा.पु.)-एक उर्दू अक्षर; 'शिगाा$फÓ का लघु., दे.- 'शिगा$फÓ।
$का$फ ता $का$फ ($फा.वि.)-सारी सृष्टि, सारा संसार, सम्पूर्ण जगत्, सारी दुनिया।
का$फर (अ़.पु.)-दे.-'का$िफरÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
$का$िफय: (अ़.पु.)-अनुप्रास, अन्त्यानुप्रास, तुक।
$का$िफय:पैमाँ (अ़.पु.)-$का$िफया अर्थात् तुक ढूँढ़कर शेÓर कहनेवाला।
$का$िफय:पैमाई (अ़.स्त्री.)-शेÓरों की संख्या बढ़ाने के लिए $का$िफया बाँधना।
$का$िफय:बंद (अ़.$फा.वि.)-वह शेÓर, जिसमें $का$िफए की पाबन्दी की गयी हो।
$का$िफय:बंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-तुकबंदी; कविता, शाइरी; ऐसी फुसफुसी कविता अथवा शाइरी जिसमें केवल तुकबंदी की गयी हो तथा भाव-विषय कुछ न हों।
$का$िफय:संज (अ़.$फा.वि.)-कवि, शाइर।
$का$िफया (अ़.पु.)-दे.-'$का$िफय:Ó, वही शुद्घ है।
का$िफर (अ़.पु.)-मुसलमानों के अनुसार उनसे भिन्न धर्म को माननेवाला, इस्लाम को न माननेवाला; नास्तिक; सत्य को छिपानेवाला; ईश्वर की दी हुई नेÓमतों पर कृतज्ञता प्रकट न करनेवाला; नदी, सरिता, दरिया; कृषक, किसान; 'का$िफरिस्तानÓ देश का निवासी, यह देश अफ्ऱीका में है; प्रेमपात्र, माÓशू$क; निर्दय व्यक्ति, दुष्ट व्यक्ति। 'एक मोमिन बना दिया का$िफर, क्या करूँ इस हयात का आखिऱÓ -माँझी
का$िफर माजरा (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जो नास्तिक अवस्था में हो; वह व्यक्ति जिसकी दशा का$िफरों-जैसी हो।
का$िफरान: (अ़.वि.)-का$िफरों का-सा, नास्तिकों जैसा।
का$िफराना (अ़.वि.)-दे.-'का$िफरानाÓ, वही शुद्घ है।
का$िफरी (अ़.वि.)-नास्तिकता, का$िफरपन; माÓशूकियत, प्रेमपात्रता।
का$िफरे नेÓमत (अ़.पु.)-कृतघ्न, अकृतज्ञ, नाशुक्रा, उपकार को न माननेवाला।
$का$िफल: (अ़.पु.)-कहीं जानेवाला यात्रीदल, यात्रियों का समूह, मुसा$िफरों की जमाअ़त, कारवाँ; सौदागरों का दल।
$का$िफल: सालार (अ़.$फा.पु.)-सालारे कारवाँ, यात्रीदल का मुखिया, सार्थपति।
का$िफल (अ़.वि.)-साक्षी, ज़ामिन, प्रतिभू।
$का$िफला (अ़.पु.)-दे.-'$का$िफल:Ó, वही शुद्घ है।
का$फी (अ़.वि.)-काम निकल जाने के $काबिल, ज़रूरत के अनुसार, जितना आवश्यक हो उतना, पर्याप्त; बहुत जि़यादा, अत्यधिक, बहुत अधिक।
का$फूर ($फा.पु.)-कपूर, कर्पूर; स्वर्ग का एक चश्मा या झरना; (वि.)-दूर, $गायब।
का$फूरख़्वार ($फा.वि.)-कर्पूरभक्षी, कपूर खानेवाला; नामर्द, नपुंसक, क्लीब।
का$फूरी ($फा.वि.)-का$फूर या कपूर का; का$फूर की बनी हुई वस्तु; का$फूर के रंग का; का$फूर पड़ी हुई वस्तु।
का$फूरी शम्अ़ (अ़.स्त्री.)-कपूर-बत्ती, जो जलाई जाती है।
का$फेराँ ($फा.स्त्री.)-योनि, भग, $फुर्ज।
काफ़्त: ($फा.वि.)-विदीर्ण, फटा हुआ, शिगाफ़्त:।
काफ़्$फ: (अ़.वि.)-समस्त, कुल, तमाम, सब, सम्पूर्ण।
काफ़्$फत्तुन्नास (अ़.पु.)-जनता, अ़वाम, सर्व-साधारण, जन-साधारण।
काफ़्$फत्तुल अनाम (अ़.पु.)-दे.-'काफ़्$फत्तुन्नासÓ।
काÓब: (अ़.पु.)-अऱब के शहर मक्का की एक इमारत, जिसे मुसलमान ईश्वर का घर समझते हैं और वहाँ हज (तीर्थयात्रा) करने जाते हैं; चौकोर वस्तु; पाँसा।
$काब ($फा.पु.)-ऐनक या चश्मा रखने का घर अथवा खोल; आईना रखने का केस अथवा खोल; पाँसा।
$काब (तु.पु.)-थाल, बड़ी रिकाबी; खाने का पात्र या ख़्वान।
$काब (अ़.पु.)-धनुष की मूठ और बाण रखने के स्थान का अन्तर; थोड़ी वस्तु।
$काÓब (अ़.पु.)-इतना बड़ा प्याला, जो एक आदमी के लिए पर्याप्त हो; लकड़ी का बना हुआ प्याला।
काÓब (अ़.पु.)-टखना, पिंडली और पाँव के पंजे के बीच की हड्डी।
काबक ($फा.पु.)-वह दरबा या खाना, जिसमें पक्षी और विशेषत: कबूतर रखे जाते हैं। शुद्घ शब्द 'काबुकÓ है मगर उर्दू में यह भी प्रचलित है।
$काब ख़्ाान: ($फा.पु.)-द्यूतागार, जुआघर, $िकमारख़्ााना, द्यूतालय, वह स्थान जहाँ जुआ खेला जाए।
काÓबतैन (अ़.पु.)-पाँसों की जोड़ी, जिससे चौसर खेलते हैं; मक्का या जेरुसलम के दोनों पवित्र उपासना-घर अथवा काÓबे।
काबा (अ़.पु.)-दे.-'काÓब:Ó, वही शुद्घ है।
काबाक ($फा.वि.)-ख़्ााली, खुक्कल; भद्दा, बेडौल।
$काबिज़ (अ़.वि.)-$कब्ज़ा करनेवाला, दख़्ाील; जिसका अधिकार हो, जिसका $कब्ज़ा हो; $कब्ज़ करनेवाला पदार्थ, कोष्ठ-ग्राहक।
$काबिज़े अर्वाह (अ़.पु.)-रूहों को जिस्म से जुदा करने वाला, प्राण निकाल लेनेवाला, मौत का $फरिश्ता, यमराज, धर्मराज, मलकुल मौत।
काबिर (अ़.वि.)-पूज्य, प्रतिष्ठित, मान्य, बुज़ुर्ग।
$काबिल: (अ.स्त्री.)-गुणवन्ती स्त्री, विद्यावती स्त्री, $काबिल अ़ौरत; बच्चे जनानेवाली स्त्री, धाय, धात्री।
$काबिल (अ़.वि.)-योग्य, अह्लियत अर्थात् योग्यता और पात्रता रखनेवाला; ज्ञानी, विद्वान्, इल्मदाँ; होशियार, दक्ष, निपुण; पात्र, मुस्तह$क; कुशल, माहिर; उचित, मुनासिब।
$काबिला (अ.स्त्री.)-दे.-'$काबिल:Ó, वही शुद्घ है।
$काबिलान: (अ़.$फा.वि.)-योग्य और $काबिल व्यक्तियों-जैसा; अ़ालिमाना, विद्वतापूर्ण; दक्षतापूर्ण।
$काबिलियत (अ़.स्त्री.)-दे.-'$काबिलीयतÓ, वही शुद्घ है।
क़ाबिलीयत (अ़.स्त्री.)-योग्यता, क्षमता, अह्लियत; विद्वत्ता, पाण्डित्य, कौविद्य, इल्मीयत; दक्षता, निपुणता, होशियारी; कुशलता; महारत; पात्रता, इस्तेह$का$क।
$काबिले अदब (अ़.वि.)-जिसका आदर अथवा सम्मान आवश्यक हो, प्रतिष्ठित, मान्य, पूज्य।
$काबिले अदा (अ़.वि.)-देय, जिसका अदा करना ज़रूरी हो, जिसका दिया जाना आवश्यक हो।
$काबिले आज़्माइश (अ़.$फा.वि.)-जिसका परीक्षण ज़रूरी हो, जिसकी परीक्षा आवश्यक हो, परीक्ष्य।
$काबिले इंति$काल (अ़.वि.)-वह सम्पत्ति या जायदाद जो हस्तान्तरित हो सके, जो बेची या दी जा सके, अंतरणीय सम्पत्ति।
$काबिले इंतिख़्ााब (अ़.वि.)-चयन योग्य, उद्घरणाीय, वे विषय या मज़मून आदि जो किसी पुस्तक अथवा लेख में सम्मिलित करने के लिए चुने जा सकें; वह व्यक्ति, जो किसी निर्वाचन-क्षेत्र से चुने जाने के योग्य हो, निर्वाचनीय।
$काबिले इख्ऱाज (इख़्ा्राज) (अ़.वि.)-निष्कासन करने योग्य, निकाल देने योग्य, बाहर कर देने योग्य; नाम ख़्ाारिज कर देने योग्य; बख्ऱ्ाास्त कर देने योग्य।
$काबिले इन्अ़ाम (अ़.वि.)-पुरस्करणीय, पुरस्कार दिए जाने योग्य व्यक्ति; पुरस्कार के योग्य काम।
$काबिले इन्$िकसाम (अ़.वि.)-विभाज्य, बँटवारे के योग्य; त$कसीम के लायक़, वितरणीय।
$काबिले इन्$िफकाक (अ़.वि.)-जो चीज़ रेहन से छूट सकती हो, जो वस्तु बन्धक-मुक्त हो सकती हो।
$काबिले इन्$िफसाख़्ा (अ़.वि.)-जो वचन अथवा प्रतिज्ञा भंग की जा सके; जो निर्णय रद्द किया जा सके, मंसूख़्ा किया जा सके।
$काबिले इम्तिहान (अ़.वि.)-परीक्ष्य, जो परीक्षा के योग्य हो, जिसकी परीक्षा की जा सके, जिसकी परीक्षा आवश्यक हो।
$काबिले इम्दाद (अ़.वि.)-जो सहायता का पात्र हो, सहायता देने योग्य, असहाय, लाचार, दु:खी, बेबस।
$काबिले इल्ति$फात (अ़.वि.)-जिसकी ओर ध्यान देना आवश्यक हो।
$काबिले इल्तिवा (अ़.वि.)-जिस समस्या का स्थगित या मुल्तवी हो जाना ज़रूरी हो; जो स्थगित किया जा सके।
$काबिले इश्तिबाह (अ़.वि.)-शंकास्पद, संदेहजनक, जिस पर संदेह किया जा सके; श्ंाकनीय।
$काबिले इस्तेÓमाल (अ़.वि.)-प्रयोज्य, जो प्रयोग किया जा सके, जिसका प्रयोग या उपभोग आवश्यक हो।
$काबिले उबूर (अ़.वि.)-लंघनीय, जिसके आर-पार जाया जा सके, जो पार किया जा सके, जिसको लाँघा जा सके।
$काबिले एÓतिबार (अ़.वि.)-विश्वसनीय, जिसका विश्वास किया जा सके, जो विश्वास के योग्य हो, मोतबर, विश्वस्त।
$काबिले एÓतिमाद (अ़.वि.)-विश्वासपात्र, जिस पर भरोसा किया जा सके, विश्वस्त, मोतबर, $काबिले एÓतिबार।
$काबिले एÓतिराज़ (अ़.वि.)-बेजा, नामुनासिब, आपत्ति-जनक, जिस पर उँगली उठाई जा सके, जिस पर आपत्ति की जा सके, जो बात एÓतिराज़ के लाय$क हो, $गलत बात।
$काबिले एहतिराम (अ़.वि.)-मान्य, पूज्य, जिसकी प्रतिष्ठा आवश्यक हो, जिसका सम्मान करना ज़रूरी हो।
$काबिले एहसास (अ़.वि.)-दिल को जँचने योग्य, जो बात मन में कोई खटक पैदा करे, अनुभव-योग्य, जिसका अनुभव हो सके, जिसका एहसास होना आवश्यक हो।
क़ाबिले $कबूल (अ़.वि.)-स्वीकरणीय, जो बात मानने के योग्य हो, जो बात मन को लग सके, जिस बात को चित्त $कबूल करे, ग्रहणीय, ग्राह्य; जिस वस्तु को लेने में कोई आपत्ति न हो।
$काबिले गुज़ारिश (अ़.$फा.वि.)-प्रार्थनीय, प्रार्थना के योग्य, जिसके लिए प्रार्थना या आवेदन किया जाना आवश्यक हो, आवेदनीय, जो बात कहने योग्य हो, कथनीय, जिसका कहा जाना आवश्यक हो।
$काबिले $गौर (अ़.वि.)-विचार्य, चिंत्य, जिस बात पर ग़ौर या विचार करना आवश्यक हो; जो बात अथवा समस्या साधारण तौर पर तै कर देना उचित न हो, ध्यान देने योग्य।
$काबिले जि़क्र (अ़.वि.)-कथनीय, वर्णनीय, उल्लेखनीय, जिसकी चर्चा या उल्लेख आवश्यक हो, जिसका उल्लेख करना ज़रूरी हो।
$काबिले जि़राअ़त (अ़.वि.)-खेती योग्य ज़मीन, कृष्य, ऐसी भूमि जिसे जोता-बोया जा सके।
$काबिले तंबीह (अ़.वि.)-ऐसा व्यक्ति, जिसे किसी भूल पर डाँटना या चेतावनी देना आवश्यक हो, प्रताडऩीय।
$काबिले तक़्सीम (अ़.वि.)-विभाज्य, जिसे बाँटा जा सके; जिसका बँटवारा आवश्यक हो।
$काबिले तज्वीज़ (अ़.वि.)-सुझाव के योग्य, निर्णय के योग्य, जिसका निर्णय किया जा सके, निर्णेय; जो सोचा जा सके, जिस पर सुझाव देना आवश्यक हो।
$काबिले तज़हीक (अ़.वि.)-हास्य, ऐसा विषय जिस पर लोग हँस सकें, उपहास के योग्य, उपहासास्पद।
$काबिले तब्दील (अ़.वि.)-परिवर्तनीय, जिसमें परिवर्तन आवश्यक हो; जो बदला जा सके, बदलाव-योग्य।
$काबिले तरद्दुद (अ़.वि.)-चिन्तनीय, जो चिन्ता के योग्य हो; जिस बात या विषय पर चिन्ता उत्पन्न हो; कृष्य, कृषि के योग्य, जो भूमि जोतने-बोने के योग्य हो।
$काबिले तर्क (अ़.वि.)-त्याज्य, त्यागने योग्य, छोड़ देने के $काबिल; जिसका त्याग आवश्यक हो।
$काबिले तर्जीह (अ़.वि.)-ऐसा विषय या व्यक्ति जिसे दूसरे विषय या व्यक्ति पर प्रधानता दी जा सके।
$काबिले तर्दीद (अ़.वि.)-खण्डनीय, जिसका रद्द या खण्डन करना आवश्यक हो, $काबिले मंसूख़्ा, जिसका खण्डन किया जा सके।
$काबिले तवज्जुह (अ़.वि.)-ध्यातव्य, ध्यान देने योग्य, जिस पर ध्यान देना आवश्यक हो, जिस पर ध्यान दिया जा सके।
$काबिले तस्लीम (अ़.वि.)-मान्य, ग्राह्य, स्वीकार्य, जिसका मानना आवश्यक हो, जिसे माना या स्वीकारा जा सके।
$काबिले तह्रीर (अ़.वि.)-उल्लेखनीय, जिसका लिखा जाना आवश्यक हो; जो लिखा जा सके, लेख्य।
$काबिले तह्सीन (अ़.वि.)-श्लाघ्य, प्रशंसनीय, जो प्रशंसा के योग्य हो, सराहनीय, जिसे शाबाशी दी जाए।
$काबिले ताईद (अ़.वि.)-अनुमोदनीय, समर्थनीय, जिसका समर्थन किया जा सके; जिसका समर्थन करना आवश्यक हो।
$काबिले ताÓरी$फ (अ़.वि.)-श्लाघ्य, प्रशंसनीय, जो प्रशंसा के योग्य हो, सराहनीय, जिसे शाबाशी दी जाए, $काबिले तह्सीन।
$काबिले दस्तंदाज़ी (अ़.$फा.वि.)-हस्तक्षेप्य, जिसमें हस्तक्षेप ज़रूरी हो; जिसमें हस्तक्षेप किया जा सके।
$काबिले दस्तमाल (अ़.$फा.वि.)-हाथों से मले जाने के लाय$क, जिसे हाथों से मलना ज़रूरी हो।
$काबिले दस्तरस (अ़.$फा.वि.)-हस्तप्राप्य, हस्तलभ्य, जो प्राप्त हो सके, जहाँ पहुँच हो सके।
$काबिले दार (अ़.$फा.वि.)-प्राणदण्ड के योग्य, जो फाँसी की सज़ा के योग्य हो, जिसे सूली पर चढ़ाना आवश्यक हो।
$काबिले नफ्ऱत (अ़.वि.)-वीभत्स, जो घृणा के योग्य हो, घृण्य, गर्हित, उपेक्ष्य।
$काबिले निकाह (अ़.वि.)-वह पुरुष या स्त्री, जो विवाह के योग्य हो, जिसका विवाह कर दिया जाना उचित हो।
$काबिले पर्वरिश (अ़.$फा.वि.)-पोषणीय, जिसका पालन-पोषण आवश्यक हो; जिस पर दया आवश्यक हो।
$काबिले $फत्ह (अ़.वि.)-जेय, जेतव्य, जो जीता जा सके, जिसे जीतना ज़रूरी हो।
$काबिले $फना (अ़.वि.)-नश्वर, नाशवान्, जो भंगुर हो, जिसका नाश अनिवार्य हो, जो मिट जाए।
$काबिले $फह्म (अ़.वि.)-बोधगम्य, सुबोध, जो समझा जा सके, जिसे समझना आवश्यक हो।
$काबिले बरदाश्त (अ़.$फा.वि.)-सहनीय, जिसे सहन किया जा सके, जो सहा जा सके; जो उठाया जा सके, सह्य, सहनशील।
$काबिले बाज़पुर्स (अ़.$फा.वि.)-जिससे जवाब तलब किया जा सके; जिससे जवाब-तलब करना ज़रूरी हो; जिसे उसकी त्रुटि पर दण्ड दिया जा सके, जिसे ग़लती पर दण्डित करना ज़रूरी हो।
$काबिले मंज़ूरी (अ़.वि.)-ऐसा विषय, जिसके लिए मंज़ूरी या स्वीकृति दी जा सके; ऐसी बात जिसके लिए स्वीकृति लेना आवश्यक हो।
$काबिले मंसूख़्ाी (अ़.वि.)-ऐसा निर्णय जो रद्द हो सके, ऐसी बात जो रद्द की जा सके, वह बात जिसको रद्द करना ज़रूरी हो।
$काबिले मुआख़्ाज़: (अ़.वि.)-दे.-'$काबिले बाज़पुर्सÓ।
$काबिले मुअ़ावज़: (अ़.वि.)-जिस काम का मेहनताना दिया जाना आवश्यक हो; जिस वस्तु के ले लेने पर उसका मूल्य दिया जाना आवश्यक हो।
$काबिले रह्म (अ़.वि.)-दयनीय, जिस पर दया की जा सके, जो दया का पात्र हो; लाचार, बेबस, दु:खित, क्लेशित।
$काबिले राज़ (अ़.$फा.वि.)-गोपनीय, प्रकट न करने के योग्य, राज़ में रखने के $काबिल, जिसे गुप्त रखना आवश्यक हो।
$काबिले वुसूल (अ़.वि.)-प्राप्य, जो प्राप्त हो सके, जिसे प्राप्त किया जा सके, जिसे प्राप्त करना आवश्यक हो, जो वुसूल किया जा सके।
$काबिले सज़ा (अ़.वि.)-दण्डणीय, जो दण्ड पाने का अधिकारी हो, जो सज़ा का पात्र हो, जिसे दण्ड दिया जा सके।
$काबिले समाअ़त (अ़.वि.)-श्रवणीय, जो सुना जा सके, जिसकी सुनवाई हो सके, सुनने योग्य।
$काबिले सरज़निश (अ़.$फा.वि.)-ऐसा व्यक्ति, जिसे किसी भूल पर डाँटना या चेतावनी देना आवश्यक हो, $काबिले तंबीह।
$काबिले सिताइश (अ़.$फा.वि.)-श्लाघ्य, प्रशंसनीय, जो प्रशंसा के योग्य हो, सराहनीय, जिसे शाबाशी दी जाए, $काबिले तह्सीन।
$काबिले सु$फारिश (अ़.$फा.वि.)-अनुशंस्य, अभिस्ताव्य, जिसकी सि$फारिश की जा सके, जिसकी सि$फारिश करना आवश्यक हो।
$काबिले हज्व (अ़.वि.)-निन्दनीय, गह्र्य, जिसकी निन्दा की जा सके, जिसकी बुराई करना आवश्यक हो।
काबीन: (अ़.वि.)-मंत्रिमण्डल, कैबिनेट, वज़ीरों या मंत्रियों की सभा, मंत्रीपरिषद्।
काबीन ($फा.पु.)-वह धन, जो मुसलमानों में विवाह के समय अर्थात् निकाह के अवसर पर पति अपनी अपनी को देना मंज़ूर करता हैे; निकाह में बँधनेवाली मेह्रï।
काबीननाम: ($फा.पु.)-मेह्रïनाम:, निकाह में मेह्रï की लिखा -पढ़ी का का$गज़।
काबीश: ($फा.पु.)-कुसुम का फूल।
काबुक ($फा.पु.)-कपोत-पालिका, कबूतरों का दरबा।
काबुल ($फा.पु.)-अ$फग़ानिस्तान की राजधानी। कहा.-'काबुल में क्या गधे नहीं होतेÓ-जहाँ अच्छे होते हैं, वहाँ बुरे भी होते हैं।
काबुली ($फा.वि.)-काबुल का निवासी, अ$फ$गान, ख़्ाान; काबुल से सम्बन्धित।
$काबू (तु.पु.)-वश, ज़ोर; अधिकार, $कब्ज़ा; इख़्ितयार; अवसर, $फुर्सत। '$काबू चलानाÓ-हुक्म चलाना। '$काबू पर चढऩाÓ-किसी के वश में हो जाना। '$काबू पानाÓ-मौ$का पाना, अधिकार पाना। '$काबू में आनाÓ-वश में आना। '$काबू से निकल जानाÓ-इख्तियार से बाहर हो जाना। '$काबू से बाहर होनाÓ-आपे से बाहर होना।
$काबूची (तु.वि.)-तुच्छ व्यक्ति; कमीना, नीच, बदज़ात; स्वार्थ-साधक, ख़्ाुद$गरज़; द्वारपाल, $कापूची।
काबूस (अ़.पु.)-गलघोंटू रोग; एक भयानक रोग, जिसमें सोते हुए ऐसा जान पड़ता है कि किसी भूत ने उसका गला दबा दिया है; भीषण स्वप्न, डरावना ख़्वाब।
$काबूस (अ़.पु.)-काऊस, कैकाऊस, ईरान का एक सुप्रसिद्घ सम्राट्, रुस्तम इसी का नौकर था।
काम: ($फा..पु.)-कामना, इच्छा, उद्देश्य, मक़्सद; खट्टा सालन। यह शब्द संस्कृत का है और उसी रूप में $फारसी में प्रचलित है।
काम ($फा..पु.)-अभिप्राय:, उद्देश्य, इच्छा, मुराद, मनोरथ, ख़्वाहिश; धंधा, उद्यम, मज़दूरी, पेशा; सरोकार, आवश्यकता, ज़रूरत; तालू, मूद्र्घा। संस्कृत रूप $फारसी में प्रचलित।
कामगर ($फा.वि.)-दे.-'कामगारÓ।
कामगार ($फा.वि.)-सफल मनोरथ, प्राप्तकाम, कामयाब; जिसकी इच्छा पूरी हो गयी हो, पूर्णकाम; भाग्यवान्; मज़दूर, कारकुन, सेवक।
$कामत (अ़.पु.)-देह, शरीर, जिस्म, बदन; डील-डौल, लम्बा शरीर; $कद, आकार। पद.-'$कद ओ $कामतÓ-आकार-प्रकार (व्यक्ति के सम्बन्ध में)।
$कामते ज़ेबा (अ़.$फा.पु.)-सुन्दर और सुडौल शरीर।
कामदार (हि.$फा.पु.)-कर्मचारी, कारकुन; व्यवस्थापक, प्रबन्धक; (वि.)-जिस पर किसी तरह का, विशेषत: कारचोबी (सलमा-सितारे) का काम किया गया हो।
काम ना काम ($फा.वि.)-विवशतापूर्वक, चाहे-अनचाहे, चार नाचार, लाचार होकर, विवश होकर, मजबूरीवश।
कामयाब ($फा.वि.)-जिसका अभिप्राय: सिद्घ हो गया हो, कृतकार्य, कृतार्थ; परीक्षा में उत्तीर्ण, पास; सफल, प्राप्त-मनोरथ, सफलकाम, बामुराद।
कामयाबी ($फा.स्त्री.)-उद्देश्य की सिद्घि, किसी काम में सफलता, परीक्षा में सफलता, जीत।
कामरवा ($फा.वि.)-अटके पर काम निकालनेवाला, कर्म-कुशल, कार्य-साधक, हाजतरवाई करनेवाला।
काम रवाई ($फा.स्त्री.)-अटके पर काम निकालना, कार्य-कुशलता, कार्य-साधकता, हाजतरवाई करना।
कामराँ ($फा.वि.)-'कामरानÓ का लघु, दे.-'कामरानÓ।
कामरान ($फा.वि.)-दे.-'कामयाबÓ।
कामरानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कामयाबीÓ।
कामिन (अ़.वि.)-लुप्त होनेवाला, छिपनेवाला, लोप होने-वाला।
कामिल (अ़.वि.)-सम्पूर्ण, समूचा, पूरा, सारा का सारा; बिलकुल, मुकम्मल, सर्वांगपूर्ण; निपुण, दक्ष, होशियार, कुशल; योग्य, माहिर, उस्ताद; चमत्कारी साधु या $फ$कीर; काव्य की एक बह्र, एक उर्दू छन्द 'बह्रे कामिलÓ।
कामिलन (अ़.वि.)-पूरी तरह, अच्छी तरह, पूरे तौर पर, पूर्णतया; पूरा-पूरा।
कामिलुल इयार (अ़.वि.)-वह सोना और चाँदी जो कसौटी पर खरा उतरे।
कामिले $फन (अ़.वि.)-कलानिष्णात, किसी $फन या कला में निपुण, दक्ष, कलाकुशल।
$कामूस (अ़.पु.)-गहरी नदी; समुद्र; लु$गत, शब्दकोश।
$कामेÓ (अ़.वि.)-विध्वंशकारी, विध्वंशक, तोड़-फोड़ देनेवाला; निरादृत करनेवाला, अनादर करनेवाला, ख़्वार करनेवाला।
$कायज़: (अ़.पु.)-घोड़े की लगाम की वह डोरी, जिसे दुम तक ले जाकर बाँधते हैं, दुमचा।
कायदा (अ़.पु.)-दे.-'$काइद:Ó।
$कायदादाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$काइद:दाँÓ।
कायनात (अ़.स्त्री.)-दे.-'काइनातÓ।
$कायम (अ़.वि.)-दे.-'$काइमÓ, स्थिर, ठहरा हुआ; स्थापित, निर्धारित; निश्चित, मु$कर्रर।
$कायम मिज़ाज (अ़.वि.)-दे.-'$काइम मिज़ाजÓ, शान्त स्वभाववाला, स्थिर चित्तवाला, जिसका मिज़ाज स्थिर हो।
$कायम मिज़ाजी (अ़.स्त्री.)-दे.-'$काइम मिज़ाजीÓ।
$कायम मुकाम (अ़.वि.)-दे.-'$काइम मुकामÓ।
$कायम मुकामी (अ़.स्त्री.)-दे.-'$काइम मुकामीÓ।
$कायमा (अ़.वि.)-दे.-'$काइम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$कायल (अ़.वि.)-दे.-'$काइलÓ, मान जानेवाला, लाजवाब होनेवाला, निरुत्तर होनेवाला, जो तर्क-वितर्क से सिद्घ बात को मान ले, $कुबूल करनेवाला; किसी बात या सिद्घान्त को माननेवाला। मुहा.-'$कायल करनाÓ-बिलकुल लाजवाब करना, एकदम निरुत्तर करना। '$कायल होनाÓ-मान जाना, बंद होना, निरुत्तर होना; अपनी ग़लती मानना; उस्ताद मानना, मौत$िकद होना, श्रद्घालु होना।
$काÓर (अ़.पु.)-गहराई, गम्भीरता।
$कार (तु.पु.)-ब$र्फ, तुहिन।
कार ($फा.पु.)-काम, कार्य; उद्यम, पेशा; विषय, मुअ़ामला (मामला); $फन, कला। कहा.-'कार बकसरत हैÓ-अभ्यास से कमाल हासिल हो जाता है।
$कार [र्र] (अ़.वि.)-एक स्थान पर $करार पकडऩेवाला, स्थिर रहनेवाला, ठहरनेवाला।
$कार (अ़.स्त्री.)- राल, $कीर, तारकोल।
कारआगाह ($फा.वि.)-दे.-'कारआज़्मूद:Ó।
कारआज़्मूद: ($फा.वि.)-जो आदमी काम की स्थिति से परिचित हो, कार्यक्षम, काम में दक्ष, कार्य-कुशल; अनुभवी, तज्रिब:कार (तजुर्बाकार)।
कारआज़मूदा ($फा.वि.)-दे.-'कारआज़्मूद:Ó, वही शुद्घ है।
कारआज़्मूदगी ($फा.स्त्री.)-कार्य-क्षमता, काम में महारत, काम में कुशलता; अनुभव, तज्रिब:कारी (तजुर्बाकारी)।
कारआमद ($फा.वि.)-उपयुक्त, उपयोगी, मु$फीद-मतलब, ज़रूरी।
कारकरदा ($फा.वि.)-दे.-कारकर्द:Ó, वही शुद्घ है।
कारकर्द: ($फा.वि.)-दे.-'कारआज़्मूद:Ó।
कारकर्दगी ($फा.स्त्री.)-काम में महारत, दक्षता, कार्य-क्षमता; अनुभव, तज्रिब:कारी (तजुर्बाकारी), कारआज़्मूदगी।
कारकिश्त ($फा.स्त्री.)-कृषि, खेती-बाड़ी।
कारकुन ($फा.वि.)-कारिन्दा, काम करनेवाला, कार्यकर्ता; गुमाश्ता, एजेंट, अभिकर्ता; ओहदेदार, पदाधिकारी, मैनेजर, कर्मचारी।
कारख़्ाान: ($फा.पु.)-वह स्थान जहाँ व्यापार के लिए कोई वस्तु बनाई जाती हो; शिल्पशाला, उद्योगशाला, वह स्थान जहाँ चीजें बनती हैं; एक ऊँची चौकी, जिस पर बैठकर गोटा -किनारी बनाते हैं।
कारख़्ाान:दार ($फा.पु.)-उद्योगशाला का स्वामी, कारख़्ााने का मालिक।
कारख़्ााना ($फा.पु.)-दे.-'कारख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
कारख़्ाास ($फा.पु.)-विशेष कार्य, ख़्ाास काम।
कारख़्ौर ($फा.पु.)-नेक काम, भलाई का काम, पुण्य का काम, शुभ-कार्य।
कारगर ($फा.वि.)-अपना काम या प्रभाव दिखलानेवाला, प्रभावकारी, असरकारी, मु$फीद, लाभ-प्रद; गुणकारी, $फायदेमंद, जैसे-'दवा कारगर सिद्घ हुईÓ।
कारगाह ($फा.स्त्री.)-कोई काम करने का स्थान, कार्य-स्थल, कार्यालय, कर्मशाला; कारख़्ााना; जुलाहों का करघा, कपड़ा बुनने का स्थान। 'कारगाहे शीशागरीÓ-शीशे का कारख़्ााना।
कारगुज़ार ($फा.वि.)-अपने कर्तव्य का भली-भाँति पालन करनेवाला; काम में होशियार, चालाक, मुस्तैद, कार्यकुशल, काम में दक्ष, कार्यपटु, स$फाई से बढिय़ा काम करनेवाला; जिसने बड़े-बड़े और पेचीदा काम किए हों, कार्यक्षम।
कारगुज़ारी ($फा.स्त्री.)-आज्ञा या निर्देश को ध्यान में रखते हुए ठीक तरह से काम करना; बहुत काम करना, मुस्तैदी से काम करना; कार्य-कौशल, अपना काम सरलता और सुगमता से करना; कारनामा; किसी महत्त्वपूर्ण कार्य का निष्पादन; कार्य-पटुता, कर्मण्यता, होशियारी, कुशलता, दक्षता, कत्र्तव्य का पालन।
कारचोब ($फा.पु.)-जऱदोज़ी या $कसीदे का काम करने- वाला; लकड़ी का चौखटा जिसमें कपड़ा कसकर $कसीदे (सलमा-सितारे) का काम हो, अड्डा।
कारचोबी ($फा.स्त्री.)-$कसीदाकारी, ज़रदोज़ी।
कारज़ार ($फा.पु.)-लड़ाई, जंग, युद्घ, संग्राम।
कारज़ारी ($फा.वि.)-जंगी आदमी, लश्करी, सैनिक, योद्घा।
कारतलब (अ.$फा.वि.)-वीर, बहादुर, शूरवीर, शुजाअ़, योद्घा, रण-बाँकुरा।
कारद ($फा.पु.)-दे.-'कार्दÓ, वही शुद्घ उच्चारण है, छुरी, चा$कू।
कारदाँ ($फा.वि.)-दक्ष, कुशल; किसी कार्य को अच्छी प्रकार से जानने और करनेवाला; अनुभवी, तजुर्बाकार।
कारदानी ($फा.स्त्री.)-काम की कुशलता और अच्छी जानकारी, अनुभव, तजुर्बाकारी, कार्य-कौशल।
कारदार ($फा.वि.)-दक्ष, कुशल, किसी भी कार्य को अच्छी प्रकार से जानने और करनेवाला; अनुभवी, तजुर्बाकार; वज़ीर, कार$गज़ार, पदाधिकारी, अ़ामिल।
कारदीद: ($फा.वि.)-परिपक्व, निपुण, कुशल, अनुभवी, जिसके हाथ से अनेक काम निकले हों।
कारदीदगी ($फा.स्त्री.)-परिपक्वता, निपुणता, अनुभव, पुख़्ताकारी।
$कारन ($फा.पु.)-रुस्तम के समय का एक पहलवान।
कारनाम: ($फा.पु.)-कोई विशेष कार्य, कोई ऐसा काम, जो यादगार रहे, बहुत बड़ा काम; चित्रकारों के चित्रों का अल्बम जिसमें वह अपनी कला-प्रदशनी के लिए बढिय़ा से बढिय़ा चित्र रखते हैं; इतिहास की पुस्तक; दस्तूरे अ़मल।
कारनामा ($फा.पु.)-दे.-'कारनाम:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
कारपर्दाज़ ($फा.वि.)-काम करनेवाला, अभिकर्ता, एजेंट, कारकुन; मुंतजि़म, व्यवस्थापक, प्रबंधकर्ता।
कारपर्दाज़ी ($फा.स्त्री.)-कारिंदागरी, व्यवस्थापक का काम या पद; किसी कार्य की अच्छी व्यवस्था करके दिखलाना।
कार$फर्मा ($फा.वि.)-कार्य करनेवाला, किसी काम को अंजाम देनेवाला; प्रभावकारी, असरदायक; हाकिम; उस्ताद, आचार्य; हुक्म करनेवाला, शासक, राजा, बादशाह।
कार$फमाई ($फा.स्त्री.)-आदेशानुसार काम करना, व्यवस्था के अनुरूप कार्य का निष्पादन करना; असर डालना, प्रभावित करना; आदेश करना, आज्ञा देना।
कारबंद ($फा.वि.)-आज्ञा पालन करनेवाला, हुक्म की तामील करनेवाला; किसी काम के लिए विवश, मजबूर; कार्य के लिए बाध्य, पाबन्द; काम करनेवाला, आज्ञाकारी।
कारबरारी ($फा.स्त्री.)-काम का पूरा होना; इच्छा की पूर्ति, कामना पूरी होना, मंशा पूरी होना; $गरज़ निकलना, स्वार्थसिद्घि होना; मतलब निकालना, स्वार्थ पूरा करना।
कारबार ($फा.पु.)-काम, शग़्ल, काम-काज; उद्यम, व्यापार; पेशा, व्यवसाय, कारोबार; लेन-देन का व्यापार।
कारबारी ($फा.वि.)-काम-धंधा करनेवाला, जो जीविका चलाने के लिए कुछ काम करता हो, कारोबारी।
कारमंद ($फा.वि.)-सेवक, नौकर, दास, ख़्िादमतगार।
काररवाई ($फा.स्त्री.)-कार्यवाही; कार्य, काम; काम का जारी करना, तदबीर, प्रबंध, बन्दोबस्त।
कारवाँ ($फा.पु.)-'कारवानÓ का लघु., यात्रियों का दल या समूह, $का$िफला।
कारवाँ-सराय ($फा.स्त्री.)-सराय, यात्रियों के ठहरने की जगह।
कारशनास ($फा.वि.)-दे.-'कारआज़्मूद:Ó, काम करने में दक्ष, कार्य-कुशल, कार्यक्षम; अनुभवी, तज्रिब:कार (तजुर्बाकार)।
कारशनासी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कारआज़्मूदगीÓ, अनुभव, तज्रिब:कारी (तजुर्बाकारी); कार्य-क्षमता, काम में महारत, कार्य-कुशलता।
कारसाज़ ($फा.वि.)-बिगड़ी सँवारनेवाला, कामों को बनाने या सँवारनेवाला यानी ईश्वर, जैसे-'ऊपरवाला अर्थात् ईश्वर बड़ा कारसाज़ हैÓ।
कारसाज़ी ($फा.स्त्री.)-बिगड़ी सँवारना, कामों को बनाना या सँवारना; ईश्वर की माया; भीतरी या छिपी हुई काररवाई, चालाकी, ऐयारी, दग़ाबाज़ी।
कारस्तानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'कारिस्तानीÓ।
कारिंद: ($फा.वि.)-दूसरे की ओर से काम करनेवाला कर्मचारी, कारकुन, गुमाश्ता; ज़मींदार का एजेंट या दलाल।
कारिंदा ($फा.वि.)-दे.-'कारिंद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$कारिअ़: (अ़.पु.)-दुर्घटना, हादिसा।
$कारिज़ (अ़.वि.)-ऋणदाता, उधार या $कजऱ् देनेवाला, उत्तमर्ण।
$कारिब (अ़.स्त्री.)-वह छोटी नाव, जो बड़ी नाव के साथ चलती है।
कारिस्तानी ($फा.स्त्री.)-कृत्य, काररवाई; चालाकी, ऐयारी, चालबाज़ी; साजि़श, होशियारी, शरारत।
$कारी (अ़.वि.)-पाठक, पढऩेवाला; $कुरान शरी$फ को शुद्घ उच्चारण से पढऩेवाला।
कारी ($फा.वि.)-जो अपना कार्य ठीक ढंग से कर दिखाए, प्रभावशाली, असर दिखानेवाला; घातक, जैसे-'कारी तीरÓ, 'कारी ज़ख़्मÓ; भरपूर, पूरा-पूरा।
कारीगर ($फा.वि.)-दस्तकार, शिल्पी, शिल्पकार; दक्ष, कुशल, होशियार; गुणवान्, हुनरमंद; धूर्त, छली, वंचक।
कारीगरी ($फा.स्त्री.)-काम को अच्छे ढंग से बनाने की कला, निर्माण-कला, दस्तकारी, शिल्पकारी, शिल्पकर्म; निपुणता, दक्षता, होशियारी; गुण-ज्ञान, हुनरमंदी; छल, कपट, धूर्तता, वंचकता, (व्यंग में)-नादानी, मूर्खता।
$कारूँ (अ़.पु.)-'$कारूनÓ का लघु, दे.-'$कारूनÓ।
$कारून (अ़.पु.)-प्राचीनकाल का एक बहुत बड़ा धनवान्, वह इतना धनवान् था कि चालीस खच्चरों पर तो उसके ख़्ाज़ाने की चाबियाँ (तालियाँ, कुंजियाँ) लगती थीं। वह अत्यन्त कृपण था। हज्ऱत मूसा ने इससे कुछ अंश ख़्ौरात करने के लिए कहा तो यह नहीं माना और अन्त में उनके श्राप से अपने धन-सहित पृथवी में धँस गया; वह व्यक्ति, जो मालदार होने के साथ-साथ बहुत ही कंजूस हो। '$कारूँ का ख़्ाज़ानाÓ-बहुत बड़ा ख़्ाज़ाना, अकूत सम्पत्ति, अपार धन।
$कारूनी (अ़.वि.)-$कारून का काम; $कारून से सम्बन्धित; कृपणता, कंजूसी।
$कारूर: (अ़.पु.)-बोतल, शीशी; बीमार का पेशाब; वह शीशी जिसमें पेशाब रखनकर चिकित्सक को दिखाते हैं; बारूद की कुप्पी, जिसमें आग लगाकर दुश्मन पर फेंकते हैं; बरछी या तीर का फल। मुहा.-'$कारूरा मिलनाÓ-बहुत अधिक मेल-जोल होना।
$कारूरा (अ़.पु.)-दे.-'$कारूर:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$कारेÓ (अ़.वि.)-शकुन-विचारक, शुभ-अशुभ का विचार करनेवाला।
कारे आब ($फा.पु.)-सुरापान, मद्यपान, शराबनोशी, मदिरा पीना।
कारे ख़्ौर (अ.$फा.पु.)-परोपकार का कार्य, पुण्य का काम, दूसरों की भलाई का काम।
कारेज़ ($फा.पु.)-पटी हुई नाली, जो खेतों में पानी देने के लिए बनायी जाती है।
कारे दस्त बस्त: ($फा.पु.)-ऐसा कठिन कार्य, जिसको हर कोई न कर सके, केवल वही व्यक्ति कर सके जो उसे करता रहा हो।
कारे दारद ($फा.वा.)-मुश्किल है, आसान नहीं है।
कारे नुमायाँ ($फा.पु.)-बहुत बड़ा काम, कारनामा, ऐसा कार्य जो सब कार्यों से ऊपर हो।
कारे सवाब (अ़.$फा.पु.)-परोपकार का काम, पुण्य का काम, दूसरों की भलाई का काम; ऐसा कार्य जिसको करने से पुण्य की प्राप्ति हो, पुण्यकर्म।
कारेह (अ़.वि.)-घिन करनेवाला, घृणा करनेवाला।
कारोबार ($फा.पु.)-कामकाज, काम-धंधा; व्यापार, व्यवसाय, तिजारत; जीविका का साधन।
कार्द ($फा.पु.)-चा$कू, छुरी।
$कार्रवाई ($फा.स्त्री.)-काम, कृत्य, करतूत; कार्य-तत्परता, कर्मण्यता; गुप्त प्रयत्न, चाल; दे.-'काररवाईÓ।
कार्वां ($फा.पु.)-यात्री-दल, $का$िफला, सार्थ।
कार्वांसरा ($फा.स्त्री.)-यात्रियों के ठहरने की धर्मशाला, मुसा$िफरों के ठहरने की सराय, पथिकाश्रय, पथिकाश्रम।
कार्वांसालार ($फा.पु.)-यात्री-दल का अगुआ या मुखिया, $का$िफले का सरदार, सार्थवाह, सार्थपति।
काल: ($फा.पु.)-दे.-'कालाÓ, दोनों शुद्घ हैं; कच्चा ख़्ारबूज़ा; मदिरा पीने का पात्र; खेती के लिए कमायी हुई भूमि।
$काल (अ़.पु.)-गुफ़्तगू, बहस, वाद-विवाद; बात, $कौल, उक्ति, कथन, वचन, प्रतिज्ञा; डींग, शेखी।
काल (सं.पु.)-वह सम्बन्ध-सत्ता जिसके द्वारा भूत, भविष्य एवं वर्तमान आदि की प्रतीति होती है, समय, वक़्त; अन्त, मृत्यु अन्तिम समय; यमराज, यमदूत; नियत समय, नियत ऋतु; अवसर, मौ$का; अकाल, दुर्भिक्ष; काला साँप; लोहा; शनि। (वि.)-काला, काले रंग का। (हिं.क्रि.वि.)-कल। 'काल के गात में जानाÓ-मर जाना, समाप्त होना। 'कालक्षेप करनाÓ-देर करना।
कालबुद ($फा.पु.)-तन, बदन, शरीर; वह ढाँचा जिस पर रखकर मोची जूता सीते हैं, कलबूत, $कालिब, साँचा। दे.-'काल्बुदÓ, वही शुद्घ है।
कालबूत ($फा.पु.)-दे.-'कालबुदÓ।
$काल म$काल (अ़.स्त्री.)-कहा-सुनी, तक्रार, वाद-विवाद, हुज्जत, लम्बी-चौड़ी बातचीत; बड़ी भारी चालाकी।
काला ($फा.पु.)-घर-गृहस्थी का सामान, घर का सामान। (हिं.वि.)-काजल या कोयले के रंग का, कृष्णवर्ण, स्याह; कलुषित, बुरा; भारी, प्रचण्ड, बड़ा। 'काला नागÓ-घातक, अत्यन्त कुटिल। 'काला पहाड़Ó-डरावनी और न बीतने योग्य स्थिति।
$कालिब (अ़.पु.)-ढाँचा, साँचा, लकड़ी आदि का वह ढाँचा जिस पर रखकर टोपी या पगड़ी आदि तैयार की जाती है, कलबूत; तन, बदन, शरीर, देह। मुहा.-'$कालिब बदलनाÓ-दूसरा शरीर धारण करना।
$काली (तु.पु.)-$कालीन का सामान।
$कालीच: (तु.पु.)-छोटा $कालीन।
$कालीद: ($फा.वि.)-तितर-बितर, अस्त-व्यस्त।
क़ालीन (तु.पु.)-मोटे तागों का बुना हुआ बहुत मोटा और भारी बिछावन, जिसमें बेल-बूटे बने रहते हैं, बिछाने का एक ऊनी और रोएँदार बहुमूल्य वस्त्र, $गलीचा।
कालुम ($फा.स्त्री.)-वह स्त्री, जो कुमारी (क्वांरी) न हो मगर पति से संसर्ग न कर पाती हो, जिसका पति या तो मर गया हो या दु:खी हो, दिल से परित्यक्ता।
कालेव ($फा.वि.)-परेशान, पागल, विक्षिप्त, रति, निस्तब्ध, साबूत, शशदर, उद्विग्न।
कालेवगी ($फा.स्त्री.)-उद्विग्नता, हैरानी, परेशानी, विक्षेप, निस्तब्धता, दीवानगी, पागलपन।
कालेह (अ़.वि.)-कटु स्वभाव का, तुरुश-रू, उजड्ड।
$कालो$कील (अ़.स्त्री.)-तर्क-वितर्क, वाद-विवाद, हुज्जत, कहा-सुनी।
काल्बुद ($फा.पु.)-अस्थि-पंजर, ढाँचा; तन, बदन, शरीर, देह; वह ढाँचा जिस पर रखकर मोची जूता सीते हैं, कलबूत।
काव: ($फा.पु.)-ईरान के एक लौहकार (लुहार) का नाम, जिसने 'ज़हहाकÓ के अत्याचारों से तंग आकर उसके विरुद्घ लड़ाई लड़ी और उसे परास्त करके '$िफरीदँूÓ को उसके स्थान पर आसीन किया।
कावकाव ($फा.स्त्री.)-कोशिश, प्रयास, परिश्रम, मेहनत।
कावर्स: ($फा.पु.)-हर वह वस्तु, जो बाजरे के आकार की हो।
कावर्स ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ अन्न, बाजरा।
कावली ($फा.स्त्री.)-ताइ$फ: (तवाय$फ), वेश्या, गणिका, नगरवधु, रण्डी। (देश.स्त्री.)-एक प्रकार की मछली।
कावाक ($फा.वि.)-पोला, खोखला, सुषिर; बेमग्ज़, निस्तार; (ला.)-निर्बुद्घि, मूर्ख।
काविंद: ($फा.वि.)-खोदनेवाला, खनक।
काविश ($फा.स्त्री.)-टोह, खोज, तलाश, जिज्ञासा; खोद, कुरेद; चिन्ता, $िफक्र; दुश्मनी, वैर, शत्रुता; कोशिश, प्रयत्न।
कावी (अ़.वि.)-दा$गनेवाला, लोहा आदि गरम करके अंग पर दा$ग देनेवाला।
कावीद: ($फा.वि.)-खोदा हुआ।
कावीदनी ($फा.वि.)-खोदने योग्य, जिसे खोदा जा सके।
$काश (तु.स्त्री.)-फल आदि का कटा हुआ लम्बा टुकड़ा, लम्बी फाँक, फाँक, खण्ड, अद्र्घ-चन्द्राकार टुकड़ा।
काश ($फा.अव्य.)-प्रार्थना, खेद-सूचक और आकांक्षा-सूचक शब्द, ईश्वर करे, ख़्ाुदा करे। (पु.)-काँच, काच, शीशा। (सं.पु.)-कांस, एक प्रकार की घास जिससे रस्सियाँ और टोकरियाँ बनाई जाती हैं; खांसी; एक प्रकार का चूहा; एक प्राचीन मुनि का नाम।
काश के ($फा.अव्य.)-दे.-'काशÓ।
काशान: ($फा.पु.)-छोटा-सा घर, जिसे शीशे के उपकरणों से सजाया जाए, काँचघर, शीशाघर; झोंपड़ा, कुटी, घर, मकान (नम्रतापूर्वक); घोंसला।
काशान ($फा.पु.)-ईरान का एक नगर।
काशाना ($फा.पु.)-दे.-'काशान:Ó, वही शुद्घ है।
काशि$फ (अ़.वि.)-ज़ाहिर करनेवाला, खोलनेवाला, प्रकट या स्पष्ट करनेवाला; पर्दा उठानेवाला, उद्घाटक; नंगा करने वाला।
$काशेज़ीन ($फा.स्त्री.)-ज़ीन के आगे-पीछे के तकिये, $काश की तरह अर्थात् अद्र्घ-चन्द्राकार होते हैं।
काशि$फे अस्रार (अ़.पु.)-रहस्योद्घाटक, भेद प्रकट करने वाला।
$काशिर (अ़.वि.)-छिलका उतारनेवाला।
काशी ($फा.वि.)-ईरान के एक नगर 'काशानÓ का निवासी। (सं.पु.)-भारत का एक प्राचीन धार्मिक शहर।
$काशु$क (तु.पु.)-छोटा चमचा, चमची, चमस:।
$काशूर (अ़.वि.)-अशुभ, मनहूस; जिसके देखने से अनिष्ट होने की आशंका उत्पन्न हो; भयंकर अकाल, बड़ा दुर्भिक्ष, सख़्त $कहत, घोर अकाल।
$काशेज़ीं (तु.$फा.स्त्री.)-ज़ीन के सामने का उठा हुआ भाग।
काशेह (अ़.पु.) ऐसा शत्रु, जो अपनी शत्रुता प्रकट न करे अपितु मन ही मन में रखे, गुप्त शत्रु, दोस्त के रूप में छिपा दुश्मन।
काश्त: ($फा.वि.)-कृषित, जोता-बोया हुआ (खेत)।
काश्त ($फा.स्त्री.)-कृषि, काश्तकारी; खेती, खेत की भूमि; ज़मींदार को कुछ वार्षिक लगान देकर उसकी जि़म्मेदारी पर खेती करने का स्वत्त्व। पद.-'ख़्ाुदकाश्तÓ-निजी जोत।
काश्तकार ($फा.वि.)-किसान, जोता, आसामी, खेतिहर, कृषक; वह, जिसने ज़मींदार को लगान देकर उसकी ज़मीन पर खेती करने का स्वत्त्व प्राप्त किया हो।
काश्तकारी ($फा.स्त्री.)-काश्तकार का ह$क या कार्य; खेती -बाड़ी, किसानी, कृषिकर्म; बोना, जोतना।
काश्तनी ($फा.वि.)-कृषि के योग्य, जोतने-बोने के योग्य।
कास: (अ़.पु.)-कटोरा, प्याला, चसक। 'कासए सरÓ-खोपड़ी। 'कासए गदाईÓ-भीख माँगने का पात्र, भिक्षा-पात्र।
कास:गर (अ़.$फा.वि.)-कंसकार, प्याले बनानेवाला; मिट्टी के बर्तन बनानेवाला, कुम्भकार, कुम्हार।
कास:गरी (अ़.$फा.स्त्री.)-प्याले बनाने का काम, मिट्टी के बर्तन बनाने का काम।
कास:बाज़ (अ़.$फा.वि.)-बाज़ीगर, जो कासे अर्थात् कटोरे से खेल करता है; धूर्त, मक्कार, छली, कपटी, वंचक।
कास:बाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-धूर्तता, मक्कारी, छलकर्म, धोखेबाज़ी।
कास:लेस (अ़.$फा.वि.)-ख़्ाुशामदी, चापलूस, चाटुकार।
कास:लेसी (अ़.$फा.स्त्री.)-चाटुकर्म, ख़्ाुशामद, चापलूसी।
कास: सर निगूँ (अ़.$फा.वि.)-मोहताज, दरिद्र, कंगाल।
$कास [स्स] (अ़.वि.)-किस्से सुनानेवाला, कहानी कहनेवाला; किसी के पीछे आनेवाला; सूचित करनेवाला, ख़्ाबर देनेवाला; धर्म की शिक्षा देनेवाला, धर्मोपदेशक।
कास ($फा.पु.)-बड़ा नगाड़ा, धौंसा, दुंदुभि; शूकर, सुअर।
कास (अ़.पु.)-शराब पीने का प्याला, पानपात्र, मधुपात्र।
कास (सं.पु.)-खांसी; सहिंजन का वृक्ष।
कासए गदाई (अ़.$फा.पु.)-भिक्षापात्र, भीख माँगने का ठीकरा।
कासए चश्म (अ़.$फा.पु.)-चक्षु-गोलक, वे गड्ढ़े जिनमें आँखों के ढेले रहते हैं।
कासए सर (अ़.$फा.पु.)-कपाल, खोपड़ी।
कासनी ($फा.स्त्री.)-एक पौधा, जिसके बीज, जड़ और डंठल दवा में काम आते हैं; कासनी का बीज; एक प्रकार का नीला रंग, जो कासनी के फूल के समान होता है।
कासमू ($फा..पु.)-सुअर के बाल, शूकर-केश।
कासा (अ़.पु.)-दे.-'कास:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
कासाबाज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'कास:बाज़Ó, वही शुद्घ है।
कासाबाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'कास:बाजी़Ó, वही शुद्घ है।
कासात (अ़.पु.)-'कास:Ó का बहु., प्याले।
$कासित (अ़.वि.)-अन्यायी, नामुंसि$फ; निर्मम, अत्याचारी, क्रूर, ज़ालिम; $फर्याद सुननेवाला, न्यायकर्ता।
$कासिद (अ़.वि.)-$कस्द या इरादा करनेवाला; पत्रवाहक, चिट्ठी ले जानेवाला, पत्र पहुँचानेवाला, चिट्ठीरसा; दूत, एलची।
कासिद (अ़.वि.)-जिसका चलन न हो, अप्रचलित; खोटा, कूट, जाली, नकली, बे$कद्र।
कासिफ़ (अ़.वि.)-दुर्दशाग्रस्त, बदहाल; छिपानेवाला, प्रकट न करनेवाला; कडुवे स्वभाववाला, बदमिज़ाज, कटुभाषी।
कासिब (अ़.वि.)-कमानेवाला, उपार्जक, उद्यमी, परिश्रम से जीविका चलानेवाला।
$कासिम (अ़.वि.)-तक़्सीम करनेवाला, भाग या हिस्से करनेवाला, बँटवारा करनेवाला, विभाजक; बाँटनेवाला, वितरक।
$कासिर (अ़.वि.)-जिसमें कोई कमी या त्रुटि हो; कमी करनेवाला, कसर रखनेवाला; असमर्थ, नाकाम। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
$कासिर (अ़.वि.)-कोताही या कमी करनेवाला, मजबूर; बलात् ढंग से अपना काम करानेवाला, ज़बर्दस्ती किसी से कोई काम लेनेवाला। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है। '$कासिर होनाÓ-मजबूर होना, असमर्थ होना, किसी काम में कोताही करना।
कासिर (अ़.वि.)-भंजक, तोडऩेवाला, खंडित करनेवाला।
$कासिरातुत्त$र्फ (अ़.स्त्री.)-वह पतिव्रता नारी, जो पर-पुरुष की ओर आँख उठाकर देखना भी पाप समझती हो।
$कासिरे हिम्मत (अ़.वि.)-कम हिम्मत, बे-हौसला।
$कासी (अ़.वि.)-पत्थर-दिल, संगदिल, कठोर हृदयवाला, सख़्त-हृदय। इसका 'सÓ उर्दू के 'सीनÓ अक्षर से बना है।
$कासी (अ़.वि.)-बात की तह तक पहुँच जानेवाला; दूर स्थान का रहनेवाला; दूर। इसका 'सÓ उर्दू के 'सुअ़ादÓ अक्षर से बना है।
कास्त: ($फा.वि.)-घटा हुआ।
कास्त ($फा.वि.)-कम होना, घट जाना।
कास्तनी ($फा.वि.)-घटने योग्य, घटाने योग्य; कम करने योग्य।
कास्नी ($फा.स्त्री.)-एक पौधा, जिसकी जड़ और बीज दवा में काम आते हैं तथा इसके हरे पत्तों का अऱ$क दवा में पिया जाता है।
काह ($फा.स्त्री.)-तिनका, सूखी हुई घास, तृण।
$काह (अ़.पु.)-आज्ञाकारिता, $फर्मांबरदारी।
काहकशाँ ($फा.स्त्री.)-कहकशाँ, आकाशगंगा।
$काह $काह ($फा.पु.)-खिलखिलाकर हँसना, ज़ोर की हँसी, $कह$कहा, अट्टहास।
काहरुबा ($फा.पु.)-दे.-'कहरुबाÓ।
काहिन: (अ़.वि.स्त्री.)-अच्छा-बुरा जाननेवाली स्त्री, शकुन विचारनेवाली अ़ौरत।
काहिन (अ़.वि.)-शकुन विचारनेवाला पुरुष।
$काहि$फ (अ़.पु.)-अत्यधिक बारिश, बहुत अधिक वर्षा।
$काहिर: (अ़.वि.)-शक्तिशाली, बलवान्, ज़ोरावर, (पु.)- मिस्र की राजधानी।
$काहिर (अ़.वि.)-बहुत अधिक $गुस्सा करनेवाला, उग्र स्वभाव का, प्रकोप करनेवाला; कहर ढानेवाला, बहुत बड़ा अत्याचारी; (पु.)-विजेता।
$काहिरा (अ़.वि.)-दे.-'$काहिर:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
काहिल (अ़.वि.)-सुस्त, मन्द, आलसी, आराम-तलब।
काहिलवुजूद (अ़.वि.)-बहुत बड़ा आलसी, जो काम-धंधा न करे, पड़ा ही रहे, दे.-'काहिलुलवुजूदÓ, दोनों शुद्घ हैं।
काहिली (अ़.स्त्री.)-सुस्ती, आलस्य, आराम-तलबी।
काहिलुलवुजूद (अ़.वि.)-जो काम-धंधा न करे, बस पड़ा ही रहे, बहुत बड़ा आलसी।
काहिश ($फा.वि.)-कमी, त्रुटि, अवनति, पतन; क्षीणता, ह्रïस्व, घटाव।
काहिशे जान ($फा.वि.)-वह सदमा जो जान को घटाए, तकली$फ दे।
काही ($फा.वि.)-घास का, घास से बना हुआ, घास-जैसे हरे रंग का, हरा।
काहीद: ($फा.वि.)-घटा हुआ, ह्रïस्व, लघुरूप में होना; दुबला; अ़ाशि$क ।
काहीद:तन ($फा.वि.)-क्षीणांग, दुबला-पतला, सूखे हुए शरीरवाला।
काहीद:रू ($फा.वि.)-उतरे हुए मुँहवाला, कुम्हलाए हुए चेहरेवाला, म्लानमुख।
काहीदगी ($फा.स्त्री.)-घटाव, कमी; दुबला होना, सूखा होना।
काहीदनी ($फा.वि.)-घटने योग्य।
काहीदा ($फा.वि.)-दे.-'काहीद:Ó, वही शुद्घ है।
काहू ($फा.पु.)-गोभी की तरह का एक पौधा, जो दवा में काम आता है। काहू-कद्दू-बादाम इन तीनों के बीजों के तेल में गुलाब का तेल मिलाकर मस्तिष्क-निर्बलता में प्रयोग करते हैं। (हिं.सर्व.)-किसी।
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