च
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चंग ($फा.पु.)-डफ के आकार का एक बाजा; मुट्ठी, पंजा; प्रत्येक टेढ़ी वस्तु; हाथी का अंकुश; एक प्रकार का कनकव्वा जिसे रात में $गुबारे की तरह एक गेंद रोशन करके उड़ाते हैं, एक प्रकार की पतंग। 'चंग चढऩाÓ-ख़्ाूब जोर होना। 'चंग पर चढ़ानाÓ-इधर-उधर की बातें करके अपने अनुकूल करना; मिज़ाज बढ़ा देना।चंग (हिं.पु.)-पतंग, गुड्डी।
चंगनवाज़ ($फा.वि.)-चंग बजानेवाला।
चंगनवाज़ी ($फा.स्त्री.)-चंग बजाने का काम या पेशा।
चंगलूक ($फा.वि.)-लूला, लुंझा, जिसके हाथ-पाँव टेढ़े हों।
चंगा (हिं.वि.)-स्वस्थ; अच्छा, सुन्दर; निर्मल, शुद्घ; बच्चों का एक खेल 'चंगा-पोÓ।
चंगाल ($फा.पु.)-दे.-'चंगुलÓ, शिकारी जानवरों और परिन्दों का पंजा।
चंगी ($फा.वि.)-चंग बजानेवाला, चंगनवाज़।
चंगी ($हिं.वि.स्त्री.प्र.)-स्वस्थ; अच्छी, सुन्दर; निर्मल, शुद्घ।
चंगुल ($फा.पु.)-मनुष्य, पशु या पक्षियों का टेढ़ा पंजा; बाज़ आदि पक्षी का पंजा; शेर आदि का पंजा; हाथ के पंजों की वह स्थिति जो उँगलियों से किसी वस्तु को उठाने या लेने के समय होती है, बकोटा। 'चंगूल में आना या फँसनाÓ-गिरफ़्त में आना, $काबू में आना।
चंगूक ($फा.वि.)-दे.-'चंगलूकÓ।
चंगेज़ (तु.पु.)-दे.-'चिंगेज़Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चंगेर (हिं.स्त्री.)-फूल रखने का पात्र, फूलों की टोकरी, डलिया, डगरी; छोटे बच्चे का झूला या पालना।
चंचल (हिं.सं.वि.)-चलायमान, अस्थिर; अधीर, एकाग्र न रहनेवाला, अव्यवस्थित; उद्विग्न, घबराया हुआ; चुलबुला, नटखट।
चंचलता (हिं.सं.स्त्री.)-अस्थिरता; चपलता; नटखटपन, शरारत।
चंट (हिं.वि.)-चालाक; धूत्र्त; छटा हुआ।
चंद: ($फा.पु.)-वह धन जो बहुत-से लोगों से लेकर किसी कार्य-विशेष में लगाया जाता है, सहयोग-राशि, दान; किसी सामयिक पत्र या पुस्तक आदि का वार्षिक मूल्य।
चंद ($फा.वि.)-कुछ, थोड़े, कतिपय।
चंद (सं.पु.)-चन्द्र, चाँद; हिन्दी का एक कवि।
चंदगाह ($फा.स्त्री.)-प्राय:, बहुधा, अक्सर।
चंद दर चंद ($फा.वि.)-बहुत अधिक।
चंदन ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ सुगंधित लकड़ी, संदल।
चंदमर्द: ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो अकेला ही कई आदमियों का काम करे।
चंदरोज़: ($फा.वि.)-ना-पाएदार, अस्थायी, थोड़े दिनों का; जो अधिक काम न दे, थोड़े दिन चलनेवाला, बोदा; जो नाशवान् हो, नश्वर, $फानी, नष्ट होनेवाला।
चंदरोज़ा ($फा.वि.)-दे.-'चंदरोज़:Ó, वही शुद्घ है।
चंदसाल: ($फा.वि.)-जो थोड़ी आयु का हो; जो थोड़े वर्षों के लिए हो; जो कुछ ही वर्षों में समाप्त हो; अल्पजीवी, अल्पायु।
चंदाँ ($फा.अव्य.)-जऱा भी, कुछ भी; इतना, इस $कदर, इस मात्रा में; कितना, किस $कदर, किस मात्रा में; इतनी देर में। 'चंदाँ किÓ-जिस $कदर, जितना; कई बार, कई मर्तबा।
चंदा ($फा.पु.)-दे.-'चंद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चंदा (हिं.पु.)-चाँद, चन्द्रमा; पीतल आदि की चादर का गोल टुकड़ा; किसी कार्य के लिए लिया हुआ कई व्यक्तियों से थोड़ा-थोड़ा धन; किसी सामयिक पत्र या पुस्तक आदि का वार्षिक या मासिक मूल्य। 'चंदा मामाÓ-बालकों को बहलाने का एक वाक्य।
चंदाल ($फा.पु.)-अधम, नीच, कमीना, चाण्डाल; रखवाला, चौकीदार।
चंदावल ($फा.पु.)-$फौज के पीछे चलनेवाली टुकड़ी; वे सैनिक जो सेना के पीछे रक्षा के लिए चलते हैं; हरावल का विपरीत।
चंदीं ($फा.अव्य.)-कितना, किस $कदर; इतना, इस $कदर।
चंदे ($फा.वि.)-कुछ दिन, थोड़े दिन, कुछ मुद्दत; थोड़ी देर; थोड़ा-सा। 'चंदे आ$फताब, चंदे माहताब (अ़ौरतों की बोली में सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कहा जाता है)-चमक-दमक में चन्द्रमा और सूरज से बढ़कर है।
चंद्र: ($फा.पु.)-छीछड़ा, गोश्त का छोटा टुकड़ा।
चंबर ($फा.वि.)-घेरा, परिधि, मुहीत; क्षेत्र, हल्क़ा; बड़ी डफ़ली, डफ़; तौ$क, गले का एक आभूषण; कमंद, ऊपर चढऩे की रस्सी; $कैद, कारावास; चिलम के ऊपर का छेददार ढकना, चिलमपोश। 'चंबर-ए-चख्ऱ्ाÓ-आकाश का घेरा, नभमण्डल।
चंबरीं ($फा.वि.)-गोल, मंडलाकार।
चंबीदन ($फा.क्रि.)-उछलना, कूदना, भागना।
चक: ($फा.वि.)-छोटा, अल्प, लघु।
चक ($फा.पु.)-ज़मीन का टुकड़ा; $झगड़ा, ज़मीन का झगड़ा; $दस्तावेज़, लेख्य; बैनामा, विक्रय-लेख; सीमा, हद; क्षेत्र, रक्बा; उपवन, उद्यान, बा$ग; आदेशपत्र, हुक्मनामा; वृत्ति, वज़ीफ़ा; खलियान समेटने की पाँच शाखोंवाली लकड़ी, पंजा।
चक ($हिं.पु.)-चकवा पक्षी; चक्र नामक अस्त्र; पहिया; ज़मीन का बड़ा टुकड़ा, पट्टी; छोटा गाँव, खेड़ा; अधिकार, दख़्ल। (सं.पु.)-साधु; खल; (सं.वि.)-भ्रांत, भौचक्का; ($हिं.वि.)-भरपूर, अधिक, ज़्यादा।
चकचकाना (देश.क्रि.अक.)-किसी द्रव्य पदार्थ का रसकर बाहर निकलना; भीग जाना। ($हिं.क्रि.सक.)-चौंधियाना, चकाचौंध लगना।
चकतराशी ($फा.स्त्री.)-ज़मीन के अलग-अलग टुकड़े करना।
चकनाचूर ($हिं.वि.)-जो बिलकुल टुकड़े-टुकड़े हो गया हो; बहुत थका हुआ।
चकपकाना ($हिं.क्रि.अक.)-विस्मित होकर चारों ओर देखना; भौंचक्का होना, चौंकना।
चकबंदी ($फा.स्त्री.)-ज़मीन की हदबंदी, भूमि को कई भागों या चकों में बाँटना।
चकबस्त ($फा.पु.)-ज़मीन की हदबंदी; कश्मीरी ब्राह्मïणों का एक भेद।
च$कम$क, च$कमा$क (तु.पु$.)-दे.-'चक़्मा$कÓ।
चकमाँ ($हिं.पु.)-धोखा, $फरेब; नु$कसान, हानि, टोटा; एक प्रकार का खेल। 'चकमाँ खानाÓ-धोखे में आ जाना, $फरेब में आ जाना। 'चकमा देनाÓ-धोखा देना, नु$कसान पहुँचाना।
च$कमा$की (तु.वि.)-च$कम$क लगा हुआ; च$कम$क का; (स्त्री.)-बन्दू$क।
चकराना (हिं.क्रि.अक.)-चक्कर खाना या घूमना; चकित या विस्मित होना, भ्रांत होना; आश्चर्य से इधर-उधर ताकना। (क्रि.सक.)-चकित करना, आश्चर्य में डालना।
चकला (तु.पु.)-दे.-'चक्ल:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
चकला (हिं.पु.)-काठ या पत्थर का वह गोल पाटा जिस पर आटा रखकर रोटी बेलते हैं; चक्की; इलाका, जि़ला; रंडियों का बाज़ार। (वि.)-चौड़ा।
चकवा (हिं.पु.)-हंस की जाति का एक पक्षी जिसके विषय में प्रसिद्घ है कि वह रात को अपने जोड़े से अलग हो जाता है, चक्रवाक, सुख्ऱ्ााब।
चकश ($फा.पु.)-श्येन पक्षी का घोंसला, बाज़ पक्षी के रहने का स्थान।
चकस ($फा.पु.)-दे.-'चकशÓ।
चकसीदन ($फा.क्रि.)-लज्जित होना, शर्मिन्दा होना।
च$काच$क ($फा.स्त्री.)-दे.-'चख़्ााचख़्ाÓ।
चकाद ($फा.स्त्री.)-मस्तक, माथा, ललाट।
चकावक ($फा.पु.)-एक मधुर-स्वर पक्षी; टटीरी, टिट्टिïभि, चंडूल।
चकास: ($फा.स्त्री.)-साही, शल्लकी।
चकिश ($फा.स्त्री.)-दे.-'चिकिशÓ, टपकन, टपक।
चकीद: ($फा.वि.)-टपका हुआ, गिरा हुआ।
चकीदन ($फा.क्रि.)-टपकना, गिरना।
चकीदनी ($फा.वि.)-टपकने योग्य, गिरने योग्य।
चकुश (तु.पु.)-लौहार अथवा लुहार का हथौड़ा।
चकोचान: ($फा.पु.)-विद्वता, योग्यता, पांडित्य, $काबिलीयत; इस्तेÓदाद, पात्रता।
चक्क: ($फा.वि.)-छोटा, अल्प।
चक्कर (हिं.पु.)-पहिये के समान घूमनेवाली कोई गोल वस्तु; घुमाव का रास्ता; फेरा, परिक्रमण; पहिये के समान अक्ष पर घूमना। 'चक्कर काटनाÓ-मंडराना, मंडलाकार परिधि में घूमना। 'चक्कर खानाÓ-पहिये के समान घूमना; भटकना; हैरान होना। 'चक्कर पडऩाÓ-हिसाब ठीक न बैठना; जाने में फेर पडऩा; विपत्ति आना।
चक्म: (तु.पु.)-मोज़ा, जुर्राब; बूट, जूता।
चक़्मक़ (तु.पु.)-दे.-'चक़्मा$कÓ।
चक़्मा$क (तु.पु.)-आग देनेवाला एक पत्थर, अग्नि-प्रस्तर, च$कम$क पत्थर; व्यंग, कटाक्ष, तंज़।
चक्र (सं.पु.)-पहिया; कुम्हार का चाक; तेल पेरने का कोल्हू; पहिये के समान कोई गोलाकार वस्तु; पानी का भँवर; वातचक्र, बवण्डर; समूह, मंडली, समुदाय; लोहे का एक अस्त्र; सेना, दल; चकवा पक्षी; एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक फैला हुआ भू-भाग; तगर का फूल; योग के अनुसार शरीर के भीतर का एक पद्म; मण्डलाकार घेरा, वृत्त; रेखाओं से घिरे हुए गोल यस चौखूँटे खाने; हथेली या पैर के तलवे में की घूमी हुई रेखा जिसके द्वारा सामुद्रिक शुभाशुभ का फल निकालते हैं; चक्कर, फेरा, भ्रमण; संख्या के विचारानुसार बन्दू$क से गोली चलाने की क्रिया, राउण्ड, जैसे-पुलिस ने पाँच चक्र गोलियाँ चलाईं।
चक्र: ($फा.पु.)-बूँद-बूँद टपकना।
चक्ल: (तु.पु.)-रंडियों का कोठा, वेश्यालय, नगर-वधुओं का मुहल्ला।
चक्श (तु.पु.)-लोहारों का हथौड़ा, दे.-'चकुशÓ, दोनों शुद्घ हैं।
चक्श ($फा.पु.)-बुलबुल अथवा बाज़ आदि के बिठानेकी लकड़ी, अड्डा।
चक्स: ($फा.पु.)-पुडिय़ा, जिसमें सामान बँधा होता है।
चख़्ा ($फा.स्त्री.)-तकरार, $िफसाद, क्लेश, कलह, झगड़ा, लड़ाई; कहा-सुनी, तू-तू, मैं-मैं; शोर, कोलाहल; ख़्ाराब, बुरा, दुष्ट। 'चख़्ा-चख़्ाÓ-कहा-सुनी, लफ्ज़़ी तकरार, झिक-झिक, लड़ाई-झगड़ा।
चख़्ाश ($फा.स्त्री.)-गले की बतौड़ी, रसौली।
चख़्ााचख़्ा ($फा.वि.)-लबालब, परिपूर्ण, परितृप्त; तेल आदि में डूबा हुआ, तर।
चख़्िांद: ($फा.वि.)-लड़ाकू, लडऩेवाला, कलह करनेवाला।
चख़्ाीं ($फा.वि.)-क्लेशित, दु:खित, रंजीदा।
चख़्ाीद: ($फा.वि.)-लड़ा हुआ, जो लड़ा हो।
चख़्ाीदनी ($फा.वि.)-लडऩे योग्य।
चग़ ($फा.स्त्री)-दही बिलोने या मथने की रई, मठा फेरने की रई।
चग़मूनिस्तन ($फा.क्रि.)-खड़ा होना।
चगऱ ($फा.पु.)-मेंढक; बन्द फोड़ा।
चग़रिश्त: ($फा.पु.)-सूत की पिंडिया, अंटी।
चग़ाज़ ($फा.स्त्री)-कुलटा, वेश्या, व्यभिचारिणी, $फाहिशा; मुँहफट और वाचाल स्त्री।
चग़ान: ($फा.पु.)-धुनिए की मूठ-जैसी एक लकड़ी में झाँझ डालकर बजाने का एक बाजा।
चग़ान:जऩ ($फा.वि)-च$गान: बजानेवाला।
चगाम: ($फा.पु.)-प्रशंसात्मक रचना।
चग़ाल: ($फा.पु.)-कच्चा फल, कच्चा मेवा।
चगिल ($फा.पु.)-दे.-'चिगिलÓ।
चं$गुद ($फा.पु.)-बालों का जूड़ा।
च$गूक ($फा.पु.)-चटक, गौरैया पक्षी; सुख्ऱ्ााब पक्षी।
चग्ज़़ ($फा.पु.)-मंडूक, मेंढक, दर्दुर; वह फोड़ा जिसका मुँह बन्द हो और अन्दर पीप या मवाद हो।
चग्ऱीदन ($फा.क्रि.)-डरना, भयभीत होना।
चच ($फा.पु.)-छाज, सूप।
चचोडऩा (हिं.क्रि.सक.)-दाँत से नोचकर या खींचकर खाना।
चज़ ($फा.पु.)-बन्दर, वानर, कपि, शाखा-मृग।
चट (हिं.क्रि.वि.)-तुरन्त, $फौरन, झट। 'झट सेÓ-शीघ्र, जल्दी से। (हिं.पु.)-दा$ग, धब्बा; घाव का चकत्ता; कलंक, दोष, ऐब; किसी वस्तु के टूटने का शब्द; उँगली फूटने का शब्द।
चटक (सं.पु.)-गौरैया पक्षी, चिड़ा; पीपलामूल। (हिं.स्त्री.)-चमक-दमक, चटकीलापन; शीघ्रता; (हि.वि.)-चटकीला, चमकीला; आलस्यहीन, $फुर्तीला, तेज़; चटपटा, चरपरा।
चटक-मटक (हिं.स्त्री.)-बनाव-सिंगार, नाज़-नख़्ारा।
चटकाना (हिं.क्रि.सक.)-तोडऩा; उँगलियाँ फोडऩा; ऐसा करना जिससे 'चटचटÓ शब्द उत्पन्न हो; अलग या दूर करना; चिढ़ाना।
चटकीला (हि.वि.)-जिसका रंग तेज़ हो, शोख़्ा, भड़कीला; चमकदार, आभायुक्त; चटपटा, मज़ेदार, चरपरा।
चटपट (हिं.क्रि.वि.)-तुरन्त, तत्क्षण, तत्काल, $फौरन, शीघ्र।
चटाई (हिं.स्त्री)-तृण, सीक, ताड़ के पत्तों आदि का बना बिछावन; चाटने की क्रिया।
चटाना (हिं.क्रि.सक.)-चटाने का काम कराना; थोड़ा-थोड़ा करके किसी के मुख में डालना; घूस या रिश्वत देना; छुरी, तलवार आदि पर सान चढ़वाना।
चटापटी (हिं.स्त्री.)-मारा-मार, धड़ा-धड़ी (बहुतायत प्रकट करने के लिए); मौत पर मौत; ताश का एक खेल। 'चटापटी की गोटÓ-भिन्न रंग की गोट। 'चटापटी पडऩाÓ-बहुत-सी मौतें होना।
चटोरा (हिं.वि.)-जिसे स्वादिष्ठ चीजें़ खाने का व्यसन हो, स्वाद-लोलुप; लोभी, लोलुप।
चढऩा (हिं.क्रि.अक.)-नीचे से ऊपर जाना, ऊँचाई की ओर अग्रसर होना; ऊपर उठना, उडऩा; ऊपर की ओर सिमटना; एक चीज़ पर दूसरी चीज़ का चिपटना या सटना; बढऩा; आक्रमण या धावा करना; चढ़ाई करना; भाव बढऩा या मँहगा होना; स्वर का ऊँचा होना; बहाव के विरुद्घ चलना; ढोल, सितार आदि की डोरी या तार का कसा जाना, तनना; देवता आदि को भेंट दिया जाना; सवारी पर बैठना; वर्ष, मास आदि का प्रारम्भ होना; $कर्ज़ होना; बुरा असर होना; दर्ज होना, अंकित होना; पकाने के लिए चूल्हे आदि पर रखा जाना; लेप होना; किसी मामले को लेकर अ़दालत तक जाना।
चढ़ाना (हिं.क्रि.सक.)-नीचे से ऊपर की ओर ले जाना; चढऩे में प्रवृत्त करना; ऊपर की ओर समेटना; मँहगा करना, भाव बढ़ाना; स्वर तीव्र करना; देवी-देवता को अर्पण करना; सवार कराना; पी जाना; ऋणी ठहरना; पुस्तक या का$गज़ पर अंकित करना।
चतर ($फा.पु.)-दे.-'चत्रÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
चतुर (सं.वि.)-बुद्घिमान््र अ़क़्लमंद; व्यवहारकुशल; निपुण, दक्ष; टेढ़ी चाल चलनेवाला, वक्रगामी; धूत्र्त, चालाक।
चतूक ($फा.पु.)-दे.-'च$गूकÓ।
चत्र ($फा.पु.)-छाता, छतरी; वह छाता जो राजाओं के सिर पर लगाया जाता था, छत्र। (यह संस्कृत के 'छत्रÓ शब्द से मिलता-जुलता रूप है)।
चत्रजऩ ($फा.वि.)-शीर्षासन करनेवाला, ज़मीन पर हाथ टेककर और पाँव ऊपर करके खड़ा होनेवाला।
चत्रपोश ($फा.वि.)-जो छाते के नीचे बैठा हो, जिस पर छतरी लगी हो।
चत्रवश ($फा.वि.)-छतरी-जैसा, छतरी की तरह गोल और सायादार; छाते की तरह छायादार।
चत्रसाँ ($फा.वि.)-दे.-'चत्रवशÓ।
चत्रे अ़बरीं (अ़.$फा.पु.)-रात, रात्रि, निशा।
चत्रे आबगूँ ($फा.पु.)-नभ, गगन, आकाश, आस्मान।
चत्रे कुह्ली (अ़.$फा.पु.)-नभ, गगन, आकाश, आस्मान; काली घटा।
चत्रे जऱनिगार ($फा.पु.)-सुनहरी छतरी, सोने के काम से सुसज्जित छाता; तारों अथवा सितारों से भरा आकाश।
चत्रे नूर (अ़.$फा.पु.)-सूर्य, रवि, दिनकर, दिवाकर, सूरज।
चत्रे शाही ($फा.पु.)-राजा-महाराजाओं अथवा बादशाहों के सिर पर लगाया जानेवाला राजसी छाता, जो का$फी बड़ा होता था।
चत्रे सीमाबी ($फा.पु.)-दे.-'चत्रे सीमींÓ।
चत्रे सीमीं ($फा.पु.)-पूरा चाँद, पूर्णचंद्र।
चनाब ($फा.पु.)-रावटी की लकड़ी का छेद।
चनार ($फा.पु.)-एक प्रसिद्घ वृक्ष, जिसकी पत्तियाँ लाल रंग की आदमी के पंजे की आकृति की होती हैं। माÓशू$क या प्रेयसी की हथेली की उपमा इसके पत्ते से दी जाती है, कहते हैं कि रात में इसमें से चिनगारियाँ झड़ती हैं।
चन्द ($फा.वि.)-दे.-'चंदÓ।
चन्दरोज़ा ($फा.वि.)-दे.-'चंदरोज़:Ó।
चन्दाँ ($फा.अव्य.)-दे.-'चंदाँÓ।
चन्दा ($फा.पु.)-दे.-'चंद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चन्दावल ($फा.पु.)-दे.-'चंदावलÓ।
चन्दे ($फा.वि.)-दे.-'चंदेÓ।
चप ($फा.वि.)-वाम, बायाँ; बायीं ओर, उलटी तर$फ; दो रंग का; अशुभ। 'चप-ओ-रास्तÓ-इधर-उधर; दाएँ-बाएँ।
चपअंदाज़ ($फा.वि.)-वह तीरअंदाज़, जिसका तीर निशाने पर पड़कर अर्थात् लक्ष्य को भेदकर लौट आए; छली, ठगिया, धोखेबाज़।
चपकन ($फा.स्त्री.)-अचकन के प्रकार का एक वस्त्र, अँगरखा।
चपकलिश (तु.स्त्री.)-दे.-'चप$कुलशÓ, वही शुद्घ है।
चप$कुलश (तु.स्त्री.)-आपाधापी, खींचातानी; भीड़-भाड़, जगह की तंगी, स्थान की कमी; लड़ाई, झगड़ा, बखेड़ा, तकरार, शोर-गुल, कोलाहल; कठिनता; गड़बड़, असमंजस।
चप$कुलिश (तु.स्त्री.)-दे.-'चप$कुलशÓ।
चपड़ कनातिया (हिं.वि.)-ख़्ाुशामदी, चापलूस; कमीना।
चपचल: ($फा.पु.)-झूला, झूलने का एक प्रसिद्घ यंत्र; फिसलन, रपटन।
चपत ($फा.स्त्री.)-दे.-'चपातÓ।
चपदाद: ($फा.वि.)-त्यागा हुआ, छोड़ा हुआ, त्यक्त।
चपदिहंद: ($फा.वि.)-त्यागनेवाला, छोडऩेवाला, त्यागी।
चपरास ($फा.स्त्री.)-कमर में बाँधने की वह पेटी जिस पर दफ़्तर या मालिक का नाम खुदा होता है और जिसे चौकीदार, सुरक्षाकर्मी या सरकारी पियादे लगाते हैं; बिल्ला, बैज।
चपरासी ($फा.पु.)-कमर में चपरास अथवा पेटी बाँधनेवाला; माल-विभाग के सम्मन आदि ताÓमील करनेवाला व्यक्ति; प्यादा, अर्दली।
चपात ($फा.स्त्री.)-चपत, थप्पड़, तमाचा।
चपाती ($फा.स्त्री.)-वह पतली रोटी जो हाथ पर बढ़ाकर बड़ी की गई हो, फुलका।
चपार ($फा.पु.)-'चापारÓ का लघु., डाक; डाकिया।
चपोरास्त ($फा.पु.)-दायें-बायें, इधर-उधर, दोनों ओर।
चप्प: ($फा.पु.)-जो उलटे हाथ से सारा काम करता हो, ख़ब्बा, खैरा।
चप्पा (हिं.पु.)-चार अंगुल जगह, चार बालिश्त चौड़ी जगह, जऱा-सी जगह। 'चप्पा-चप्पाÓ-जऱा-जऱा।
चप्लूस ($फा.वि.)-दे.-'चापलूसÓ।
च$फाल: ($फा.पु.)-सेना, $फौज; पक्षियों का झुण्ड।
च$फीद: ($फा.वि.)-लगा हुआ, चिपका हुआ।
च$फीदनी ($फा.वि.)-चिपकने योग्य।
चफ़्त: ($फा.वि.)-धन्वाकार, ख़्ामीद:; वक्र, टेढ़ा; बकरी का सिर, सिरी; मिथ्यारोप, तोहमत, दोषारोपण।
चफ़्त ($फा.स्त्री.)-अंगूर आदि की टट्टी, बाँस की खपच्चियों से बनी हुई चौकोर टट्टी।
चफ़्तक ($फा.पु.)-एक पक्षी का नाम।
चफ़्ती ($फा.स्त्री.)-वह सीधी लकड़ी जिससे लकीरें खींची जाती हैं।
चफ़्सीद: ($फा.वि.)-लगा हुआ, चिपका हुआ।
चबक (देश.पु.)-रह-रहकर उठनेवाला दर्द, चिलक, टीस।
चबा$ग ($फा.स्त्री.)-एक मछली।
चबूतर: ($फा.पु.)-दे.-'चौतराÓ।
चबूतरा (हिं.पु.)-बैठने के लिए चौरस और ऊँचा स्थान, चौतरा; कोतवाली, बड़ा थाना।
चब$गुत ($फा.पु.)-रुई भरा हुआ पुराना कपड़ा; पुरानी गुदड़ी।
चम ($फा.पु.)-इठलाती हुई चाल; पेच।
चमक (हिं.स्त्री.)-प्रकाश, ज्योति, रौशनी; झलक, भड़क; आभा, दमक; कमर या पीठ में अचानक उठा हुआ दर्द, चिलक।
चमकना (हिं.क्रि.अक.)-प्रकाश या ज्योति से युक्त होना, जगमगाना; उन्नति करना, कीर्ति-लाभ करना; समृद्घ होना, तरक़्$की पर होना; चौंकना, भड़कना; उँगलियाँ आदि हिलाकर स्त्रियों की तरह मटकना; झटका लगने से सहसा दर्द होना; लड़ाई ठनना।
चमकाना (हिं.क्रि.सक.)-चमकीला करना, झलकाना; उज्ज्वल या निर्मल करना; भड़काना, चौंकाना; घोड़े को तेज़ी से बढ़ाना; उँगलियों आदि को हिलाकर चिढ़ाना या नक़ल उतारना, मटकाना।
चमख़्ाम ($फा.पु.)-चमक-दमक।
चमगर्दिश ($फा.स्त्री.)-इठलाकर चलना; ख़्िारामेनाज़।
चमचा (तु.पु.)-दे.-'चम्च:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चमन ($फा.पु.)-हरी क्यारी, उपवन, उद्यान, आराम, छोटी फुलवारी, छोटा-सा ब$गीचा, वाटिका, बा$ग; रौन$क की जगह, निहायत आबाद शहर।
चमनआरा ($फा.वि.)-उपवन अथवा उद्याान को सजाने-सँवारनेवाला, माली, उद्यानपाल।
चमनआराई ($फा.स्त्री.)-उपवन को सजाने-सँवारने का काम।
चमनज़ार ($फा.पु.)-दे.-'चमनिस्तानÓ।
चमनपैरा ($फा.वि.)-दे.-'चमनआराÓ।
चमनपैराई ($फा.स्त्री.)-दे.-'चमनआराईÓ।
चमनबंद ($फा.वि.)-बा$ग लगानेवाला; उपवन को सजाने-सँवारनेवाला।
चमनबंदी ($फा.स्त्री.)-उपवन की सजावट; बा$ग या उद्यान के लिए पेड़ लगाना।
चमनिस्ताँ ($फा.पु.)-'चमनिस्तानÓ का लघु., दे.-'चमनिस्तानÓ।
चमनिस्तान ($फा.पु.)-उद्यान, उपवन, चमन, बा$ग।
चमाँ ($फा.वि.)-नाज़ से अथवा इठलाकर चलनेवाला; चलने में इठलाता हुआ।
चमान: ($फा.वि.)-इठलाता हुआ, नाज़ से अथवा इठलाकर चलता हुआ, (पु.)-तोंबी का पियाला जिसमें खाते-पीते हैं।
चमान ($फा.पु.)-पेशाब-पाख़्ााने के कीड़े।
चमानी ($फा.वि.)-नाज़ से चलनेवाला, इठलाकर चलने-वाला; सा$की।
चमानीदन ($फा.क्रि.)-लचकना; लचकाना।
चमाली ($फा.पु.)-सा$की, शराब परोसने या पिलानेवाला।
चमिंद: ($फा.वि.)-हाव-भाव दिखलाते हुए घूमनेवाला, नाज़ से अथवा इठलाते हुए टहलनेवाला।
चमिश ($फा.स्त्री.)-नाज़, मटक, लचक, इठलाहट।
चमींगोइयाँ ($फा.स्त्री.)-दे.-'चि:मीगोइयाँÓ।
चमी ($फा.वि.)-जो भौतिक न हो, मानसिक, मानवी।
चमीद: ($फा.वि.)-जो नाज़ अथवा इठलाकर टहलता या चलता हो।
चमीद ($फा.स्त्री.)-इठलाहट, मटक, लचक।
चमीदन ($फा.क्रि.)-लचकना, नाज़ से चलना, टहलना।
चमीदनी ($फा.वि.)-इठलाने योग्य, नाज़ से चलने योग्य, लचकने योग्य।
चमीन ($फा.पु.)-मल-मूत्र, पेशाब-पाख़्ााना।
चमोख़्ाम ($फा.पु.)-इठलाहट, नाज़ोअंदाज़, हाव-भाव।
चम्बर ($फा.पु.)-दे.-'चंबरÓ।
चम्च: (तु.पु.)-चम्मच, डोई, एक प्रकार की छोटी कलछी, हाँडी चलाने का पात्र-विशेष, खाने का पात्र-विशेष।
चम्बर ($फा.पु.)-दे.-'चंबरÓ, चिलम के ऊपर का ढकना, चिलमपोश।
चरंद: ($फा.पु.)-दे.-'चरिंद:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
चर ($फा.प्रत्य.)-चरनेवाला, जैसे-'काहचरÓ-घास चरने-वाला।
चर (सं.पु.)-किसी राजा अथवा राज्य की ओर से नियुक्त वह व्यक्ति जिसका कार्य प्रकाश अथवा गुप्तरूप से अपने राज्य की आन्तरिक दशा का पता लगाना हो, गुप्तचर, भेदिया, जासूस; किसी विशेष कार्य के निमित्त भेजा हुआ आदमी; नदी के किनारे की भूमि; नदियों के बीच का टापू, रेता; खंजन पक्षी; कौड़ी; मंगल, भौम; पासे द्वारा खेला जानेवाला जुआ।
चरकटा (हि.पु.)-हाथी का चारा लानेवाला; $फीलवानों का सहायक; नीच, अधम, कमीना।
चरख़्ा ($फा.पु.)-दे.-'चख्ऱ्ाÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
चरखा (हिं.पु.)-गोल घूमनेवाला चक्कर, चरख; लकड़ी का बना हुआ एक यंत्र जिसकी सहायता से कपास, ऊन आदि कातकर सूत बनाते हैं; कुएँ से पानी निकालने का एक यंत्र, रहट; गाड़ी का वह ढाँचा जिसमें जोतकर नया घोड़ा निकाला जाता है, खड़खडिय़ा; झगड़े-बखेड़े या झंझट का काम; वह स्त्री या पुरुष जिसके बुढ़ापे के कारण सारे अंग शिथिल हो गये हों; कुश्ती का एक पेंच।
चरखी (हि.स्त्री.)-पहिये के समान घूमनेवाली कोई वस्तु; छोटा चरखा; कपास ओटने का यंत्र, चरखी, ओटनी, बेलनी; कुएँ से पानी खींचने की गड़ारी, घिरनी; एक प्रकार की घूमनेवाली आतिशबाज़ी; पतंग की डोर लपेटने का यंत्र।
चरन्दा ($फा.पु.)-दे.-'चरिंद:Ó।
चरपूज़ ($फा.वि.)-बहुत निम्न कोटि का, कमीना, तुच्छ, नीच, हल्का; बेहूदा, लचर; मूर्ख, मूढ़।
चरब ($फा.वि.)-दे.-'चर्बÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
चरबा ($फा.पु.)-दे.-'चर्ब:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है, प्रतिमूर्ति, न$कल, ख़्ााका।
चरबी ($फा.स्त्री.)-दे.-'चर्बीÓ, वही उच्चारण शुद्घ है, एक पीला-स$फेद गाढ़ा पदार्थ जो प्राणियों के शरीर में और बहुत-से पौधों और वृक्षों में भी पाया जाता है, मेदा, वसा।
चरस ($फा.पु.)-चरागाह, गोचर; भीख का माल; शिकंजा, अडग़ड़ा।
चरा ($फा.पु.)-चरागाह, पशुओं के चरने का स्थान; चरना; (अव्य.)-क्यों, किसलिए, किस कारण, किस सबब सेे।
चराग़ ($फा.पु.)-दीप, दीपक, दीआ; चरना। 'जहाँ मकान किसी लौ से जल गए होंगे, वहाँ चरा$ग के मानी बदल गए होंगेÓ-माँझी
चराग़दान ($फा.पु.)-चरा$ग या दीप रखने का पात्र, दीवट, दीपस्तम्भ आदि।
चराग़चश्म ($फा.पु.)-पुत्र, बेटा, लड़का, औलाद।
चराग़पा ($फा.पु.)-दीवट, चरा$गदान, दीपस्तम्भ; ($वि.)-जो $गुस्से में आपे से बाहर हो गया हो, जो क्रोधवश चिल्ला रहा हो; क्रोध में आपे से बाहर होने की क्रिया, क्रोधावेग।
चरागर ($फा.वि.)-चरनेवाला।
चराग़वार: ($फा.पु.)-दीवट, चरा$गदान, दीपस्तंभ; $कंदील।
चराग़ाँ ($फा.पु.)-दीपमालाएँ, जलते हुए दीपकों की पंक्तियाँ; पंक्तियों में बहुत-से दीपक जलाने का कर्म; अपराधी को शारीरिक यातना देने की एक प्राचीन अमानुषिक शैली, जिसमें उसके सिर पर बहुत-से घाव बनाकर प्रत्येक घाव में एक जलती हुई बत्ती रखते थे।
चरागाह ($फा.स्त्री.)-पशुओं के चरने का स्थान, वह मैदान या भूमि जहाँ पशु घास आदि चरकर अपनी भूख मिटाते हैं, गोचर, चरी, चरनी, घास की जगह।
चराग़ी ($फा.स्त्री.)-किसी बुज़ुर्ग के मज़ार पर $फोहा दिलानेवाले (प्रार्थना तथा रोशनी करानेवाले) से रौशनी के लिए लिया जानेवाला धन।
चराग़े आस्माँ ($फा.पु.)-दिवाकर, सूरज, सूर्य, दिनकर।
चराग़े आस्मानी ($फा.पु.)-तडि़त, बिजली, विद्युत्, चपला।
चराग़े कुश्त: ($फा.पु.)-बुझा हुआ दीपक।
चराग़े चख्ऱ्ो चहारुम ($फा.पु.)-हज्ऱत ईसा की उपाधि।
चराग़े तहेदामन ($फा.पु.)-हवा के वेग से बचाने के लिए दामन के नीचे किया हुआ दीपक, आँचल की ओट में किया हुआ दीप।
चराग़े मज़ार ($फा.पु.)-$कब्र अथवा समाधि पर जलनेवाला दीपक; अ़ाशि$क की $कब्र पर जलनेवाला दीआ (यह शब्द विशेषत: इन्हीं अर्थों में बोला जाता है)।
चराग़े सहर ($फा.पु.)-प्रभात का तारा, जो छिपने के निकट हो अर्थात् ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु निकट हो।
चराग़े सहरी ($फा.पु.)-वह दीपक जो सुबह होते समय बुझने के निकट हो अर्थात् मृत्यु के $करीब व्यक्ति; नापाएदार; थोड़े दिन का मेहमान।
चराजऩ ($फा.वि.)-चरनेवाला, घास खानेवाला, पशु, जानवर।
चराना (हिं.क्रि.)-जानवरों को जंगल में ले जाकर घास खिलाना; धोखा देना, उल्लू बनाना।
चरिंद ($फा.वि.)-दे.-'चरिंद:Ó।
चरिंद: ($फा.वि.)-चरनेवाला, घास खानेवाला, पशु, चौपाया, जानवर, मवेशी।
चरिंदा ($फा.वि.)-दे.-'चरिंद:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
चरीक ($फा.स्त्री.)-सेना की सहायक टुकड़ी।
चरीद: ($फा.वि.)-चरा हुआ, जिसे चरा गया हो।
चरीदन ($फा.क्रि.)-चरना, घास खाना।
चरीदनी ($फा.वि.)-चरने योग्य।
चर्कस (तु.पु.)-एक तुर्की जाति।
चर्का (हिं.सं.पु.)-तलवार इत्यादि का हल्का घाव; गर्म लोहे से दा$गना; टोटा, नु$कसान। 'चर्का खानाÓ-नु$कसान सहना। 'चर्का देनाÓ-नु$कसान पहुँचाना।
चख्ऱ्ा: ($फा.पु.)-सूत या ऊन कातने का यंत्र, चर्खा।
चख्ऱ्ा ($फा.पु.)-नभ, गगन, आकाश, आस्मान; घूमनेवाला गोल चक्कर, चक्र; कुम्हार का चाक; गाड़ी आदि का पहिया; कड़ा धनुष; रहट, कुएँ से पानी निकालने का गर्रा; दामन का घेर; चारों ओर घूमना-फिरना; कुर्ते-$कमीज़ आदि का गला; सूत कातने का चरखा; वह गाड़ी जिस पर तोप चढ़ी रहती है; गोफन, ढेलबाँस; एक शिकारी चिडिय़ा।
चख्ऱ्ाअंदाज़ ($फा.वि.)-कुशल धनुर्धर, अच्छा तीर चलाने-वाला, चक्रधर।
चख्ऱ्ा$कबा (अ़.$फा.पु.)-एक प्रकार का एटलस, मानचित्र।
चख्ऱ्ागी ($फा.स्त्री.)-पहलवान का अखाड़े में जीतने के समय खुशी से नाचना-कूदना-दौडऩा।
चख्ऱ्ाजऩ ($फा.वि.)-नाचनेवाला (वाली), नर्तक, नर्तकी; पर्यटन करनेवाला, पर्यटक, सैयाह, यायावर; घूमनेवाला, फिरनेवाला।
चख्ऱ्ाजऩी ($फा.स्त्री.)-घूमना-फिरना, नाचना-कूदना; पर्यटन करना, सैयाही, यायावरी।
चख्ऱ्ाजी ($फा.स्त्री.)-सेना का आगे चलनेवाला दस्ता, हरावल।
चख्ऱ्ारीसक ($फा.पु.)-झींगुर।
चख्ऱ्ाा ($फा.पु.)-दे.-'चख्ऱ्ा:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चख्ऱ्ााब ($फा.पु.)-पानी का चक्र, जलावर्त, भँवर, गिर्दाब।
चख्ऱ्ाी ($फा.स्त्री.)-पतंग की डोर लपेटने का हुचका; कपास ओटने का यंत्र; एक प्रकार की आतशबाज़ी; फिरकी।
चख्ऱ्ाुश्त ($फा.पु.)-कोल्हू।
चख्ऱ्ाूक ($फा.पु.)-लट्टू।
चख्ऱ्ो कबूद ($फा.पु.)-नीलगगन, नीला आकाश।
चख्ऱ्ो कमाँ ($फा.पु.)-धनुष का घेरा।
चख्ऱ्ो जऱीं ($फा.पु.)-चौथा आस्मान, मुसलमानों की मान्यता के अनुसार जहाँ हज्ऱत ईसा का निवास-स्थान है।
चख्ऱ्ो दव्वार ($फा.पु.)-घूमनेवाला आस्मान।
चख्ऱ्ो दोलाबी ($फा.पु.)-नभ, गगन, आकाश, आस्मान।
चख्ऱ्ो पीर ($फा.पु.)-नभ, गगन, आकाश, आस्मान।
चख्ऱ्ो $फलक (अ़.$फा.पु.)-सबसे ऊँचा आकाश, जिस पर ईश्वर का सिंहासन माना जाता है, अ़र्श। (स्वर्ग भी इसी आस्मान पर माना जाता है)।
चख्ऱ्ो बरीं ($फा.पु.)-ऊँचा आकाश, सबसे ऊँचा आस्मान।
चख्ऱ्ो बेपीर ($फा.पु.)-निष्ठुर आस्मान, कष्ट के समय आकाश की ओर निहारते हुए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।
चर्ग़ ($फा.पु.)-एक शिकारी पक्षी श्येन, शिक्रा बाज़; एक जानवर लकड़बग्घा।
चर्ग़द ($फा.पु.)-झींगुर।
चगऱ्ीन: ($फा.वि.)-अधम, नीच, कमीना।
चजऱ्: ($फा.पु.)-मनुष्य अथवा पशु की खाल।
चजऱ् ($फा.पु.)-एक पक्षी।
चर्त: ($फा.पु.)-दे.-'चर्द:Ó।
चर्द: ($फा.पु.)-रंग, वर्ण।(विशेष-यह शब्द केवल 'सियाहÓ के साथ बोला जाता है और 'काले रंगवालाÓ का अर्थ देता है)।
चर्पूज़ ($फा.वि.)-नीच, अधम, कमीना।
चर्ब: ($फा.पु.)-वह महीन और चिकना का$गज़ जो दूसरे का$गज़ पर रखकर उसके बेल-बूटे उतारने के काम आता है, अ़क्सी का$गज़, बटर-पेपर; इस प्रकार अ़क्स उतारा हुआ का$गज़; प्रतिमूर्ति, न$कल, ख़्ााका, रेखाचित्र; नक़्ल, प्रतिलिपि।
चर्ब ($फा.वि.)-चिकना, स्निग्ध; घी में चुपड़ा या मला हुआ, चिकनाया हुआ; घी में तलना या सेंकना; मोटा, स्थूल; चपल। 'चर्ब कर लेनाÓ-घी में भून लेना।
चर्बआख़्ाोर ($फा.वि.)-मुफ़्तख़्ाोर, मुफ़्त का माल खानेवाला, वह व्यक्ति जो बिना परिश्रम के तर माल खाता हो, हरामख़्ाोर, परजीवी।
चर्बक ($फा.पु.)-घी में तला हुआ फुलका, पूरी, पराँठा; मलाई, क्षीरस्तर; वह महीन और पारदर्शी का$गज़ जिस पर दूसरे चित्र का अ़क्स उतारा जाता है, अ़क्सी का$गज़, बटर-पेपर।
चर्ब$कामत (अ़.$फा.वि.)-सुडौल, अच्छे डील-डौल का; थुलथुल, मोटा-ताज़ा।
चर्ब $िगज़ा ($फा.वि.)-वह भोजन जिसमें घी या चर्बी अधिक मात्रा में हो।
चर्बज़बाँ ($फा.वि.)-चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाला, ख़्ाुशामद से मीठी-मीठी बातें बनानेवाला, चापलूस, चाटुकार, ख़्ाुशामदी; मुखर, वाचाल, बातूनी, बतोड़ा।
चर्बज़बान ($फा.वि.)-दे.-'चर्बज़बाँÓ।
चर्बज़बानी ($फा.स्त्री.)-मीठी-मीठी बातें करना, चापलूसी या ख़्ाुशामद करना, चिकनी-चुपड़ी बातें करना; बातूनी होना, बतोड़ा होना।
चर्बदस्त ($फा.वि.)-किसी कार्य में होशियार, कुशल, सिद्घहस्त; शिल्पकार, दस्तकार।
चर्बदस्ती ($फा.स्त्री.)-काम में होशियारी या कुशलता; दस्तकारी, शिल्पकारी।
चर्बपहलू ($फा.वि.)-चर्बीला, मोटा-ताज़ा; वह व्यक्ति जिसके पास उठना-बैठना लाभदायक हो।
चर्बाक ($फा.वि.)-चालाक, अय्यार, $फरेबी। 'चर्बाक दीद:Ó-निडर अ़ौरत।
चर्बिंद: ($फा.वि.)-विजेता, विजयी, जीतनेवाला।
चर्बिंदगी ($फा.स्त्री.)-जय, विजय, जीत।
चर्बी ($फा.स्त्री.)-चिकनाई, वह चिकना और हलका पीला तथा स$फेद तरल-पदार्थ जो प्राणियों के शरीर में गोश्त पर जम जाता है, बहुत-से पौधों और वृक्षों में भी यह पाया जाता है; मेदा, वसा; मोटाई। 'चर्बी चढऩाÓ-मोटा होना। 'चर्बी छानाÓ-बहुत मोटा होना, मदांध होना। 'चर्बी की बातेंÓ-चिकनी-चुपड़ी बातें।
चर्बीद: ($फा.वि.)-प्राप्तविजय, जो जीत गया हो, जिसने विजय प्राप्त की हो, विजयी।
चर्बीदनी ($फा.वि.)-जीतने योग्य, जेय।
चर्बू ($फा.स्त्री.)-चर्बी, मेदा।
चर्बोख़्ाुश्क ($फा.पु.)-अच्छा-बुरा, बुरा-भला; उदार और कंजूस।
चर्म: ($फा.पु.)-गोन, ख़्ाुर्जी।
चर्म ($फा.पु.)-चमड़ा, खाल। ('संस्कृतÓ का '$फार्सीÓ में प्रचलित तत्समरूप)।
चर्मदाँ ($फा.पु.)-चमड़े का थैला।
चर्मदोज़ ($फा.वि.)-चमड़ा सीनेवाला, मोची, चर्मकार।
चर्मदोज़ी ($फा.स्त्री.)-चमड़ा सीने का काम, चर्म-कर्म, मोचीपन।
चर्मीं ($फा.वि.)-चमड़े का बना हुआ, चर्म-निर्मित।
चर्मीन: ($फा.पु.)-चमड़े की बनी हुई वस्तु।
चर्मीन:दोज़ ($फा.पु.)-मोची, चमड़ा सीनेवाला, जूते बनाने वाला।
चर्मीन:$फरोश ($फा.पु.)-चमड़े का व्यापारी।
चर्मे आहू ($फा.पु.)-हिरन का चमड़ा, मृगछाल, मृगचर्म।
चर्विद: ($फा.वि.)-दौडऩेवाला, धावक; उपाय ढूँढऩेवाला, जुगाडू।
चर्वीद: ($फा.वि.)-दौड़ा हुआ; उपाय ढूँढ़ा हुआ।
चलंजू ($फा.वि.)-वह व्यक्ति जो कपड़ा जल्द मैला करता हो।
चलन (हिं.पु.)-चलने का भाव, गति, चाल; रस्म, रिवाज, परिपाटी, प्रथा; प्रचलन, बराबर होता रहनेवाला व्यवहार या आचरण।
चलना (हिं.क्रि.अक.)-पैर उठाते या $कदम बढ़ाते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना, गमन करना; हिलना-डोलना; निभना; प्रवाहित होना; किसी कार्य में अग्रसर होना; वृद्घि पर होना; आरम्भ होना, छिडऩा; जारी रहना; बराबर काम देना, टिकना; लेन-देन में काम आना; प्रचलित होना, जारी होना; उपयोग में आना; तीर, गोली, लाठी आदि का प्रयोग या प्रहार करना; बाँचा या पढ़ा जाना; उपाय या युक्ति लगना; आचरण या व्यवहार होना।
चलाना (हिं.क्रि.सक.)-चलने में प्रवृत्त करना; गति देना; हिलाना-डोलाना; व्यवहार या आचरण करना; प्रवाहित करना; उन्नति करना; कार्य आदि की ऐसी व्यवस्था करना कि वह भली-भाँति बढ़ता रहे; अस्त्र-शस्त्र आदि व्यवहार में लाना।
चलपची ($फा.स्त्री.)-हाथ धोने का एक विशेष पात्र।
चलाली ($फा.पु.)-छींका।
चलिंद: ($फा.वि.)-चलनेवाला, गमन करनेवाला।
चलीद: ($फा.वि.)-चला हुआ।
चलीदन ($फा.क्रि.)-चलना, जाना, गमन करना।
चलीदनी ($फा.वि.)-चलने योग्य।
चलीपा ($फा.वि.)-सलीब, क्रास।
चलीपाई ($फा.वि.)-सलीब के आकार का।
चल्पक ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ पकवान, पूरी, घी में तली हुई रोटी, पराँठा।
चल्पास: ($फा.स्त्री.)-गृहगोधा, छिपकली, दे.-'चिल्पास:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
चल्ब ($फा.स्त्री.)-झाँझ।
चश: ($फा.पु.)-चटनी, चाटने की खट-मिट्ठी चीज़; अवलेह, लऊ$क।
चश ($फा.प्रत्य.)-स्वाद लेनेवाला, चखनेवाला, जैसे-'लज़्ज़तचशÓ-मज़ा चखनेवाला।
चशक ($फा.स्त्री.)-चखने की क्रिया, चखावट।
चशानीदन ($फा.क्रि.)-चखना।
चशिंद: ($फा.वि.)-चखनेवाला।
चशीद: ($फा.वि.)-चखा हुआ।
चशीदनी ($फा.वि.)-चखने योग्य।
चशीदा ($फा.वि.)-दे.-'चशीद:Ó, वही शुद्घ है।
चश्पर ($फा.पु.)-पद-चिह्नï, पाँव का निशान।
चश्म: ($फा.पु.)-स्रोत, सोता, झरना, प्रपात; छोटी नदी, सरिता; प्राकृतिक स्रोत, कुण्ड; सुई का नाका; उपनेत्र, ऐनक।
चश्म:गाह ($फा.स्त्री.)-चश्मे का स्थान, स्रोत-स्थल।
चश्म:ज़ार ($फा.पु.)-जहाँ चश्में ही चश्में हों, जहाँ स्रोत ही स्रोत हों, जहाँ प्रपात ही प्रपात हों।
चश्म:सार ($फा.पु.)-दे.-'चश्म:ज़ारÓ, चश्मों से भरा हुआ स्थान, प्रपातों के आधिक्य वाली जगह।
चश्म ($फा.पु.)-आँख, नयन, नेत्र, चक्षु; आशा, उम्मीद, विश्वास। 'चश्म बददूरÓ- नजऱबंद दूर हो, बुरी नजऱ न लगे, ईश्वर बुरी नजऱ से बचाये।
चश्मए आफ़्ताब ($फा.पु.)-दिनकर, दिवाकर, सूर्य, सूरज।
चश्मए ख़्िाज्ऱ (अ़.$फा.पु.)-आबेहयात का चश्मा, अमृतकुण्ड, अमृतजल।
चश्मए गर्म ($फा.पु.)-वह स्रोत या सोता जहाँ से गर्म पानी निकलता है।
चश्मए सलसबील ($फा.पु.)-स्वर्ग की एक नह्र का नाम।
चश्मए सीमाब ($फा.पु.)-रवि, दिनकर, सूरज, सूर्य।
चश्मए होर ($फा.पु.)-दिनकर, दिवाकर, सूरज, सूर्य।
चश्मए हैवाँ (अ़.$फा.पु.)-दे.-'चश्मए ख़्िाज्ऱÓ।
चश्मक ($फा.स्त्री.)-गुप्त बात के लिए आँख का संकेत; उपनेत्र, ऐनक, चश्मा; लड़ाई-झगड़ा, कहा-सुनी; चाकसू नामक औषधि।
चश्मकजऩ ($फा.वि.)-आँख से संकेत करनेवाला।
चश्मकजऩी ($फा.स्त्री.)-आँख से संकेत करना।
चश्मख़्ाान: ($फा.पु.)-वह गड्ढ़ा जिसमें आँख का ढेला रहता है, चक्षु-गोलक, नेत्र-गोलक।
चश्मगश्त: ($फा.वि.)-विषम-दृष्टि, भेंगा।
चश्मज़ख़्म ($फा.पु.)-बुरी दृष्टि का प्रभाव; नजऱ लगना या लगाना।
चश्मज़द ($फा.पु.)-पलक झपकना; आँख का संकेत करना; नजऱ लगाना; पल, लम्हा।
चश्मज़दन ($फा.पु.)-पलक झपकना, निमेष, दृष्टिक्षेप।
चश्मज़ाग़ ($फा.वि.)-बेशर्म, निर्लज्ज, बेहया।
चश्मदरीद: ($फा.वि.)-बेशर्म, निर्लज्ज, बेहया, धृष्ट, उद्दण्ड।
चश्मदाश्त ($फा.स्त्री.)-आशा, भरोसा, उम्मीद।
चश्मदीद ($फा.वि.)-आँखों-देखा, आँख से देखा हुआ, जो आँखों के सामने घटित हुआ हो; प्रत्यक्षदर्शी।
चश्मदीद गवाह ($फा.पु.)-प्रत्यक्षदर्शी गवाह, मौ$के का गवाह, घटना का साक्षी।
चश्मनुमाई ($फा.स्त्री.)-आँखें तरेरना, आँखें तरेरकर धमकी देना, दृष्टि-संकेत से झिड़की देना, फटकारना, धमकाना, डराना, आँखें दिखाना।
चश्मपोशी ($फा.स्त्री.)-किसी का दोष देखते हुए भी निगाह बचा जाना, उपेक्षा करना, दरगुजऱ करना, ध्यान न देना।
चश्मबंद ($फा.वि.)-वह मंत्र या जादू जिससे नींद उड़ जाती है, दृष्टिवशीभूत।
चश्मबंदी ($फा.स्त्री.)-मंत्र या जादू के प्रभाव से नींद का उड़ जाना, वशीकरण मंत्र।
चश्मबरजा ($फा.वि.)-टकटकी बाँधे हुए, एकटक देखता हुआ, निर्निमेष, अपलक।
चश्मबराह ($फा.वि.)-रस्ते पर आँखें लगाए हुए, राह तकने वाला, बेचैनी से प्रतीक्षा करनेवाला,प्रतीक्षातुर।
चश्मरसीद: ($फा.वि.)-जिसे नजऱ लग गई हो।
चश्मरौशनी ($फा.स्त्री.)-बधाई, मुबारकबाद।
चश्म शुदन ($फा.पु.)-प्रकट होना।
चश्महादीद: ($फा.वि.)-बहुत-सी आँखें देखे हुए अर्थात् बहुत अनुभवी, दृष्टि-पारखी।
चश्मा ($फा.पु.)-दे.-'चश्म:Ó, वही शुद्घ है।
चश्मारू ($फा.पु.)-पशु-पक्षियों से $फसल को बचाने के लिए खेतों में बनाया जानेवाला फूँस-कपड़े का कृत्रिम आदमी, बिजूका; धोखा।
चश्मे ख़्ाुरूस ($फा.स्त्री.)-घुँघची, घुमचिल।
चश्मे ख़्ाूँआलूद ($फा.स्त्री.)-ऐसी आँखें जो क्रोध के वेग से लाल हो रही हों, मानो उनमें ख़्ाून उतर आया हो, रक्तिम आँख।
चश्मे ज़ाहिर (अ़.$फा.स्त्री.)-साधारण आँख जिससे हम सांसारिक दृश्य देखते हैं, चर्मचक्षु।
चश्मे तर ($फा.स्त्री.)-सजल-नेत्र, रोनेवाली आँख, आँसू-भरी आँख।
चश्मे नम ($फा.स्त्री.)-गीली आँख, जो आँसुओं से तर हो, अश्रुपूरित नेत्र।
चश्मे नीमख़्वाब ($फा.स्त्री.)-दे.-'चश्मे नीमबाज़Ó।
चश्मे नीमबाज़ ($फा.स्त्री.)-अधखुली आँख; ऊँघते हुए व्यक्ति की आँख, उनींदी आँख; नशे में मस्त की आँख, मदमस्त आँख।
चश्मे नीमवा ($फा.स्त्री.)-दे.-'चश्मे नीमबाज़Ó।
चश्मे पुरआब ($फा.स्त्री.)-सजल-नेत्र, जिस आँख में आँसू भरे हुए हों, डबडबाई हुई आँख, रोनेवाली आँख।
चश्मे पुरनम ($फा.स्त्री.)-दे.-'चश्मे पुरआबÓ।
चश्मे $िफरंगी ($फा.स्त्री.)-उपनेत्र, चश्मा, ऐनक।
चश्मे बद ($फा.स्त्री.)-कुदृष्टि, बुरी नजऱ, लगनेवाली नजऱ।
चश्मे बददूर ($फा.वा.)-एक आशीर्वाद-'तुम्हें बुरी नजऱ न लगेÓ।
चश्मे बातिन (अ़.$फा.स्त्री.)-'चश्मे ज़ाहिरÓ का विपरीत, मन की आँख, अंतर्दृष्टि, ज्ञानचक्षु, दिव्य-दृष्टि।
चश्मे बीना ($फा.स्त्री.)-देखनेवाली आँख, जिस आँख में ज्याति हो, स्वस्थ नेत्र।
चश्मे बीमार ($फा.स्त्री.)-अधखुली आँख (विशेषत: पे्रमिका की आँख के लिए बोलते हैं)।
चश्मे बुलबुल ($फा.पु.)-एक प्रकार का कपड़ा।
चश्मे बेआब ($फा.स्त्री.)-जिन आँखों में पानी न हो अर्थात् निर्लज्ज, बेहया।
चश्मे बेदार ($फा.स्त्री.)-जागती हुई आँख, खुली हुई आँख अर्थात् सजग, सचेष्ट।
चश्मे शब ($फा.स्त्री.)-चाँद, चन्द्रमा।
चश्मे शोर ($फा.स्त्री.)-दे.-'चश्मे बदÓ।
चश्मे सियाह ($फा.स्त्री.)-इस शब्द का प्रयोग जब पे्रमिका के लिए हो तो 'सुन्दर आँखÓ और जब अपने लिए हो तो 'अंधी आँखÓ।
चश्मे हिस्सी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'चश्मे ज़ाहिरÓ।
चश्मोचरा$ग ($फा.पु.)-अपने लिए आँख और घर के लिए दीपक अर्थात् पुत्र, बेटा, कुलदीपक।
चसक (हिं.स्त्री.)-मीठा-मीठा दर्द, कुछ-कुछ दर्द।
चसकना (हिं.क्रि.अक.)-टीसना, हलकी पीड़ा होना।
चसका (हिं.सं.पु.)-चाट, मज़ा, चटोरपन; अ़ादत, लत; शौ$क, चाव।
चस्त: ($फा.पु.)-गधे, घोड़े अथवा ऊँट की खाल की बनी हुई एक वस्तु-विशेष; पशु की रान का मांस।
चस्त:ख़्वार ($फा.वि.)-मुफ़्तख़्ाोर, जो मुफ़्त का माल खाए।
चस्पाँ ($फा.वि.)-चिपका हुआ; चरितार्थ, मुताबि$क, ठीक, मौज़ू, अनुकूल।
चस्पानीद: ($फा.वि.)-चिपकाया हुआ।
चस्पिंद: ($फा.वि.)-चिपकानेवाला।
चस्पीद: ($फा.वि.)-चिपका हुआ।
चस्पीदगी ($फा.स्त्री.)-चिपक, चिपकन; चिपकाने की क्रिया, भाव या मज़दूरी।
चस्पीदनी ($फा.वि.)-चिपकने योग्य।
चस्पीदा ($फा.वि.)-दे.-'चस्पीद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
चह ($फा.पु.)-'चाहÓ का लघु, दे.-'चाहÓ।
चह (हिं.पु.)-नदी के कच्चे घाट पर बल्ले गाड़कर उस पर बनाया हुआ मचान जिस पर से लोग नाव पर चढ़ते हैं; इस प्रकार का बना हुआ पुल। (स्त्री.)-गत्र्त, गड्ढा।
चहक (हिं.स्त्री.)-पक्षियों का कलरव, चहचहा।
चहकना (हिं.क्रि.अक.)-पक्षियों का मधुर स्वर करना; उमंग में आकर अथवा प्रसन्न होकर अधिक बोलना।
चहचह: ($फा.पु.)-चिडिय़ों की चहकार, चहचहाहट।
चहचहाना (हिं.क्रि.अक.)-चहकना, चहकारना।
चहबच्चा ($फा.पु.)-पानी भरकर रखने का छोटा गड्ढा या हौज; धन गाडऩे या छिपाकर रखने का छोटा तहखाना।
चहल (हिं.स्त्री.)-आनन्दोत्सव, आनन्द की धूम; कीचड़; कीचड़ मिली कड़ी चिकनी मिट्टी।
चहल$कदमी ($फा.स्त्री.)-टहलना, धीरे-धीरे टहलना या घूमना, हवा खाना।
चहल-पहल (हिं.सं.स्त्री.)-आनन्दोत्सव, आनन्द की धूम; रौन$क, शोभा; ख़्ाुशी, हँसी-ठट्ठा; आबादी, जमघट।
चहलुम ($फा.पु.)-दे.-'चेहलुमÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
चहार ($फा.वि.)-चार, चार की संख्या, तीन और एक का योग।
चहारगान: ($फा.वि.)-चार से सम्बन्ध रखनेवाला; चार सूत्रवाला; चार प्र्रकारवाला।
चहारगाह ($फा.पु.)-गाने का एक प्रकार।
चहारचंद ($फा.वि.)-चार गुणा, चौगुना।
चहारजानिब (अ़.$फा.वि.)-चहुँ ओर, चारों तर$फ, हर दिशा।
चहारतार: ($फा.पु.)-एक साज़ जिसमें चार तार लगे होते हैं।
चहारदह ($फा.वि.)-चतुर्दश, चौदह, दस और चार का योग।
चहारदहुम ($फा.वि.)-चतुर्दश, चौदहवाँ; चौदहवीं, चतुर्दशी।
चहारदाँग ($फा.वि.)-चहुँ ओर, चारों तर$फ, हर तर$फ, सब तर$फ; संसार-भर।
चहार पहलू ($फा.वि.)-चौखूटा, चार कोनेवाला, चतुष्कोण, चौकोर।
चहारमीनार ($फा.पु.)-चार मीनारवाला।
चहारमीर (अ़.$फा.पु.)-चारों ख़्ाली$फा, अबूबक्र, उमर, उस्मान, अ़ली।
चहार मेख़्ो हयात (अ़.$फा.स्त्री)-जीवन के चार तत्त्व-आग, पानी, हवा, पृथ्वी।
चहारशंब: ($फा.पु.)-बुधवार, बुध का दिन।
चहारशम्बा ($फा.पु.)-दे.-'चहारशंब:Ó, वही शुद्घ है।
चहारुम ($फा.वि.)-चतुर्थ, चौथा; चौथाई।
चहारुमीं ($फा.वि.)-चौथा; चौथे का; चौथावाला; चौथा हिस्सा या भाग।
चहीदन ($फा.क्रि.)-टपकना, रिसना।
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