Tuesday, October 13, 2015


ख़्ाा, ख़्ाा'

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ख़्ााँ ($फा.पु.)-'ख़्ाानÓ का लघुरूप, दे.-'ख़ानÓ।
ख़्ााँ बहादुर (तु.$फा.पु.)-अंग्रेज़ी शासनकाल की एक उपाधि, जो सरकार द्वारा अपने मुसलमान भक्तों अर्थात् समर्थकों को दी जाती थी।
खाँच (हिं.पु.)-संधि, जोड़; गठन; खींचने का भाव।
खाँसना (हिं.क्रि.अक.)-गले में अटके हुए कफ या दूसरी चीज़ निकालने अथवा केवल शब्द करने के लिए वायु को झटके के साथ कंठ से बाहर निकालना।
ख़्ाा ($फा.प्रत्य.)-खानेवाला, जैसे-'शकरख़्ााÓ-शकर या चीनी खानेवाला।
ख़्ााइज़ (अ़.वि.)-सोच-विचार करनेवाला।
ख़्ााइन (अ़.वि.)-अमानत में ख़्ायानत करनेवाला, रुपए-पैसे में ख़्ाुर्द-बुर्द या हेराफेरी करनेवाला, जो व्यवहार-निष्ठ न हो, बददियानत, बेईमान।
ख़्ााइ$फ (अ़.वि.)-ख़्ाौ$फ का मारा, भयभीत, त्रस्त, डरा हुआ; डरनेवाला, भय खानेवाला।
ख़्ााइब (अ़.वि.)-विहीन, वंचित, मह्रूम; हताश, निराश, नाउम्मीद।
ख़्ााइल (अ़.वि.)-टहलुआ, टहल करनेवाला, देखभाल करनेवाला; किसी वस्तु की चौकसी करनेवाला, चौकीदार।
खाई (हिं.स्त्री.)-रक्षा के निमित्त किसी स्थान के चारों ओर खोदा हुआ गड्ढा, खंदक।
ख़्ााईद: ($फा.वि.)-खाया हुआ, भुक्त; चबाया हुआ,चर्वित।
ख़्ााईदनी ($फा.वि.)-खाने योग्य, भक्षण करने योग्य; चबाने योग्य।
ख़्ााक: ($फा.पु.)-मसौदा, रूपरेखा, किसी कार्य आदि का ढाँचा, नक़्शा; रेखाचित्र, तस्वीर या चित्र का ढाँचा; किसी कहानी आदि का प्लाट, कथावस्तु; किसी कार्य-विशेष का सूची।
ख़्ााक ($फा.स्त्री.)-गर्द, रज, धूलि, धूल; भूमि, ज़मीन; मिट्टी, मृत्तिका; (ला.)-कुछ नहीं। 'ख़्ााक उड़ानाÓ-कुछ न करना; अपनी इज़्ज़त बरबाद करना; मिट्टी पलीद करना। 'ख़्ााक छाननाÓ-इधर-उधर भटकते फिरना, आवारा फिरना; ख़्ाूब ढूँढऩा। कहा.-'ख़्ााक न धूल, बकायन का फूलÓ-कोरी शेख़्ाी मारना; निकम्मा।
ख़्ााकअंदाज़ ($फा.पु.)-कूड़ादान, कूड़ा-कर्कट डालने का पात्र; एक प्राचीन परम्परा के अनुसार किसी चीज़ के खो जाने पर शंकित लोगों से धूल फिंकवाने की क्रिया ताकि वह धूल में मिलाकर चीज़ फेंक दे और किसी को निंदित न होना पड़े।
ख़्ााकआमेज़ ($फा.वि.)-धूल मिला हुआ, मिट्टी मिला हुआ, जिस वस्तु में मिट्टी मिली हो।
ख़्ााकआलूद ($फा.वि.)-धूल में सना हुआ, मिट्टी में लिथड़ा हुआ, मिट्टी में सना हुआ, मिट्टी या धूल लगा हुआ, धूल-धूसरित।
ख़्ााकज़ाद ($फा.वि.)-मिट्टी से उत्पन्न, मनुष्य तथा अन्य प्राणी।
ख़्ााकदान ($फा.पु.)-कूड़ा डालने का स्थान, कूड़ा-घर; जगत्, संसार, दुनिया।
ख़्ााकदाने देव ($फा.पु.)-जगत्, संसार, दुनिया।
ख़्ााकनशीं ($फा.वि.)-दीन, दु:खी, लाचार; विनम्र, विनीत; भूमि पर बैठनेवाला।
ख़्ााकनशीनी ($फा.वि.)-लाचारी, दीनता, हीनता; विनम्रता, विनीति, ख़्ााकसारी।
ख़्ााकनाए ($फा.पु.)-जलडमरूमध्य, पानी का वह तंग हिस्सा जो पृथ्वी के दो भागों को अलग करता है।
ख़्ााकनिहाद ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ााकी निहादÓ।
ख़्ााक-पा ($फा.वि.)-आजिज़, दीन। दे.-'ख़्ााके-पाÓ।
ख़्ााकबसर ($फा.वि.)-धूल उड़ाता हुआ, सिर पर ख़्ााक डालता हुआ, शोक या रंज से रोता-पीटता हुआ।
ख़्ााकबाज़ ($फा.वि.)-धूल-मिट्टी उड़ानेवाला, मिट्टी, रज अथवा धूल से खेलनेवाला।
ख़्ााकबाज़ी ($फा.स्त्री.)-रज अथवा मिट्टी से खेलना; एक-दूसरे पर धूल फेंकना; क्रीड़ा, खेल-कूद।
ख़्ााकबेज़ ($फा.वि.)-ख़्ााक छाननेवाला; न्यारिया, जो मिट्टी में से सोना-चाँदी निकालता है।
ख़्ााकबेज़ी ($फा.स्त्री.)-न्यारिये का काम करना, मिट्टी से सोना-चाँदी निकालना; न्यारा कमाना; ख़्ााक छानना।
ख़्ााकरोब: ($फा.पु.)-झाड़ू से झड़ा हुआ कूड़ा-कर्कट।
ख़्ााकरोब ($फा.वि.)-झाड़ू लगानेवाला, झाडऩेवाला; मेहतर, भंगी।
ख़्ााकरोबी ($फा.स्त्री.)-झाड़ू लगाने का काम; मेहतर का काम।
ख़्ााकशी ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार के बहुत ही महीन दाने, जो दवा के काम आते हैं, ख़्ाूबकलाँ; मोटी-मोटी लकीरें और निशान जो बच्चा होने के बाद स्त्री के पेट और जाँघों पर पड़ जाते हैं ।
ख़्ााकसार ($फा.वि.)-अति दीन, तुच्छ, निरभिमानी, विनम्र, विनीत, आजिज़़, $गरीब (बोलनेवाला इस शब्द का प्रयोग अपनी विनम्रता दर्शाने के लिए अपने लिए भी करता है)।
ख़्ााकसारी ($फा.स्त्री.)-बहुत अधिक दीनता या विनम्रता, विनीति, आजिज़़ी।
ख़्ााकसी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ााकशीÓ।
ख़्ााकसीर: ($फा.स्त्री.)-ख़्ाूबकलाँ नामक औषध।
ख़्ााका ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ााक:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
ख़्ााकान (तु.पु.)-सुलतान, महाराजा, शहंशाह, सम्राट्; चीनी शासकों की पुरानी उपाधि; तुर्की शासकों की उपाधि।
ख़्ााकानी (तु.वि.)-शाही ईरान के एक प्रसिद्घ $कसीद:गो शाइर का उपनाम।
ख़्ााकिस्तर ($फा.स्त्री.)-भस्म, राख; जली हुई वस्तु का अवशेष।
ख़्ााकिस्तरी ($फा.स्त्री.)-मिट्टी-जैसा रंग, मटमैला रंग; मटमैले रंग का।
ख़्ााकी ($फा.वि.)-मटीला, मिट्टी के रंग का, भूरा; मिट्टी का बना हुआ; मिट्टी से सम्बन्धित; मनुष्य, प्राणी-वर्ग; बिना सींचा हुआ खेत।
ख़्ााकी निहाद ($फा.वि.)-जो मिट्टी से बना हो; जिसकी रचना मिट्टी से हुई हो; मनुष्य; प्राणी-वर्ग।
ख़्ााके अंगेख़्त: ($फा.स्त्री.)-पृथ्वी, भूगोल।
ख़्ााके जिगरगीर ($फा.स्त्री.)-ऐसा स्थान, जहाँ से कहीं और जाने को मन तैयार न हो, मनभाया-स्थल।
ख़्ााके पा ($फा.स्त्री.)-पद-रज, पाँव की धूल, पदार (बोलने वाला बड़े आदमी से सम्बोधन करते हुए अपने लिए इस शब्द का प्रयोग करता है), (ला.)-आजिज़, दीन।
ख़्ााके $फरामोशाँ ($फा.स्त्री.)-$कब्रिस्तान, समाधि-क्षेत्र।
ख़्ााके बसीत ($फा.स्त्री.)-भूमि, ज़मीन, धरती, भू।
ख़्ााके मुरक्कब (अ.$फा.स्त्री.)-प्राणिवर्ग, वनस्पतिवर्ग और पाषाणवर्ग का समाहार; जड़-चेतन; सृष्टि।
ख़्ााके मुर्द: ($फा.स्त्री.)-ऊसर भूमि, बंजर भूमि, ऐसी भूमि जिसमें कुछ उत्पन्न न हो।
ख़्ााके शि$फा (अ़.$फा.स्त्री.)-रोग-मुक्त करनेवाली मिट्टी; किसी महात्मा या वली के द्वार की धूल; किसी महात्मा या वली द्वारा दी गई भभूत, राख अथवा भस्म; करबला की मिट्टी जिसकी मालाएँ आदि बनती हैं।
ख़्ााके सियाह ($फा.स्त्री.)-भस्मसात्, भस्मीभूत, जलकर काली राख बना हुआ।
ख़्ााग ($फा.पु.)-मु$र्गी का अण्डा।
खाग (हिं.पु.)-गैंडे के मुँह के ऊपर का सींग, जिससे कटार का दस्ता बनाते हैं, खाँग; काँटा, कंटक; तीतर आदि पक्षियों के पैर से निकलनेवाला काँटा।
ख़्ाागीन: ($फा.पु.)-अण्डों का व्यंजन या आमलेट, ख़्ाुश्क अण्डा।
ख़्ाागीना ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाागीन:Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ााज़: ($फा.पु.)-सनी हुई मिट्टी, जो दीवारों पर लेसी या लेपी जाती है या जिससे कच्चे $फर्श की लिपाई की जाती है, गारा।
ख़्ााज (अ़.स्त्री.)-क्रॉस, ईसाइयों का सलीब।
ख़्ााज़ ($फा.स्त्री.)-शरीर की पीप या मवाद।
ख़्ााजऩ: ($फा.स्त्री.)-पत्नी की बहन, साली।
ख़्ााजऩा ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ााजऩ:Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ााजि़$क (अ़.पु.)-वह तीर जिसने लक्ष्य भेदा हो, निशाने पर लगा हुआ तीर।
ख़्ााजिऩ (अ़.वि.)-कोष का स्वामी, कोषध्यक्ष, खज़ानची, जमा करनेवाला।
ख़्ााजि़ल (अ़.वि.)-पराजित, हारा हुआ।
ख़्ााज़ेÓ (अ़.वि.)-विनम्र, सुशील, विनयशील; विनती करने वाला।
खाट (हिं.स्त्री.)-चारपाई, माची, खटिया। 'खाट से लगनाÓ-बीमारी या दुर्बलता के कारण चारपाई से उठने योग्य भी न होना।
ख़्ाात ($फा.स्त्री.)-एक प्रसिद्घ पक्षी चील, चिल्ल।
खात (सं.पु.)-खोदना; तालाब; कुआँ, गड्ढा; वह गड्ढा जिसमें कूड़ा-करकट इकट्ठा करके खाद बनाया जाता है। (वि.)-मैला, गन्दा।
ख़्ाातम (अ़.स्त्री.)-अँगूठी, मुद्रा; मोह्र लगाने की अँगूठी।
ख़्ाातमकार (अ़.$फा.वि.)-वह व्यक्ति जो हाथी-दाँत या दूसरी वस्तु के बेल-बूटे बनाकर लकड़ी आदि में जड़ता है।
ख़्ाातमकारी (अ़.$फा.स्त्री.)-हाथी-दाँत या अन्य वस्तु के बेल-बूटे बनाकर लकड़ी आदि में जडऩे का काम।
ख़्ाातमबंद (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ख़्ाातमकारÓ।
ख़्ाातमबंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाातमकारीÓ।
ख़़्ाातमा (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाातिम:Ó, वही शुद्घ है।
खाता (हिं.पु.)-किसी व्यक्ति, कार्य या विभाग आदि के लेन-देन अथवा आय-व्यय का अलग लेखा, अकाउण्ट; हिसाब-किताब की बही; मद, विभाग; अन्न आदि रखने की बड़ी खत्ती। 'खाता खोलनाÓ-हिसाब खोलना; नया सम्बन्ध स्थापित करना।
खाता-पीता (हिं.वि.)-खाने-पीने से सुखी, सम्पन्न। 'खाते-पीते लातें मारनाÓ-कृतघ्न होना।
ख़्ााति$फ (अ़.वि.)-उचक ले जानेवाला, उड़ा ले जानेवाला; आँखों की ज्योति उड़ा ले जानेवाला।
ख़्ाातिब (अ़.वि.)-दामाद; वह पुरुष जो स्त्री की चाह में हो; वह स्त्री जो पुरुष की चाह में हो।
ख़्ाातिम: (अ़.पु.)-अन्त, अख़्ाीर, समाप्ति; परिणाम, अंजाम; मृत्यु, मौत, इन्ति$काल; आख़्िारी हिस्सा।
ख़्ाातिम:बिलख़्ौर (अ़.पु.)-मोक्ष-प्राप्ति, सद्गति-लाभ, सकुशल समाप्ति।
ख़्ाातिम (अ़.वि.)-ख़्ात्म करनेवाला, समाप्त करनेवाला, अंजाम तक पहुँचानेवाला; सबसे पीछे वाला, बाद वाला, पिछौंहा।
ख़्ाातिमा (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाातिम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
ख़्ाातिमुन नबीव्वीन (अ़.पु.)-समस्त पै$गम्बरों (ईश-दूतों या अवतारों) में आनेवाले आख़्िारी पै$गम्बर; हज्ऱत मुहम्मद की एक उपाधि।
ख़्ाातिमुल अन्बिया (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाातिमुन नबीव्वीनÓ।
ख़्ाातिमुल मुर्सलीन (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाातिमुन नबीव्वीनÓ।
ख़्ाातिर (अ़.स्त्री.)-सम्मान, सत्कार, तवाज़ोÓ; लिहाज़, स्नेह, मुरव्वत; आदर, आतिथ्य, आव-भगत, सत्कार; लिए, वास्ते, निमित्त; वह विचार जो मन में उत्पन्न हो, ध्यान; इच्छा, मजऱ्ी; मन, हृदय, दिल। 'किसी की ख़्ाातिरÓ-किसी के लिए, किसी के वास्ते। 'किस ख़्ाातिरÓ-किस वास्ते।
ख़्ाातिर आज़र्द: (अ़.वि.)-रंजीदा, अप्रसन्न, नाराज; दु:खी, संतप्त।
ख़्ाातिर आज़ारी (अ़.स्त्री.)-अरुचि, नापसन्दीदगी; कष्ट पहुँचाना, दु:ख पहुँचाना, दिल दुखाना, आघात पहुँचाना।
ख़्ाातिर आशुफ़्त: (अ़.वि.)-परेशान, चिन्तित, घबराया हुआ।
ख़्ाातिरख़्वाह (अ़.$फा.वि.)-जैसा चाहिए वैसा, दिलपसन्द, यथेच्छ, मनचाहा, इच्छानुसार, मनोवांछित।
ख़्ाातिर जम्अ़ (अ़.वि.)-सांत्वना, संतोष, तुष्टि; तसल्ली, इत्मीनान, तस्कीन।
ख़्ाातिर जमा (अ़.वि.)-दे.-'ख़्ाातिर जम्अ़Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ाातिर तवाज़अ़ (अ़.स्त्री.)-आदर-सत्कार, आवभगत, दे.-'ख़्ाातिर तवाज़ोÓ, वही शुद्घ है।
ख़्ाातिर तवाज़ोÓ (अ़.स्त्री.)-आतिथ्य, आदर-सत्कार, आवभगत।
ख़्ाातिरदार (अ़.$फा.वि.)-आवभगत करनेवाला, आदर-सत्कार करनेवाला, ख़्ाातिरदारी करनेवाला।
ख़्ाातिरदारी (अ़.$फा.स्त्री.)-सम्मान, आवभगत, आदर-सत्कार, ख़्ाातिर-तवाज़ोÓ।
ख़्ाातिरन (अ़.वि.)-ख़्ाातिर या लिहाज़ से; मन रखने के लिए, दिल रखने के लिए।
ख़्ाातिरनशाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ख़्ाातिरनशींÓ, वही शुद्घ है।
ख़्ाातिरनशीं (अ़.$फा.वि.)-जो बात दिल में बैठ जाए, मन में बैठनेवाली बात, हृदय में जमनेवाली बात, हृदयंगम, दिल-नशीं, बोधगम्य।
ख़्ाातिर पज़ीर (अ़.$फा.वि.)-मनभावन, रुचिकर, दिलपसन्द; उचित, अच्छा, मुनासिब।
ख़्ाातिर पसंद (अ़.$फा.वि.)-दे.-'ख़्ाातिर पज़ीरÓ।
ख़्ाातिर बस्त: (अ़.वि.)-दे.-'ख़्ाातिर आशुफ़्त:Ó।
ख़्ाातिर मुदारात (अ़.वि.)-आवभगत, आदर-सत्कार, मेहमान-नवाज़ी।
ख़्ाातिल (अ़.वि.)-द$गाबाज़, छली, छलिया, धोखेबाज़।
ख़्ााती (अ़.वि.)-जान-बूझकर अपराध करनेवाला, जो जान-बूझकर $गलती करे।
ख़्ाातून (तु.स्त्री.)-भले घर की स्त्री, कुलीन महिला, सभ्य और शिष्ट स्त्री, भद्र महिला।
ख़्ाातूने अऱब (तु.अ़.स्त्री.)-काÓबा, मुसलमानों का तीर्थ-स्थल।
ख़्ाातूने ख़्ाान: (तु.$फा.स्त्री.)-गृहिणी, गृहस्वामिनी, धर्मपत्नी, घर में रहनेवाली स्त्री।
ख़्ाातूने जन्नत ($फा.स्त्री.)-जन्नत की शहज़ादी; पै$गम्बर की बेटी, बीबी $फातिमा।
ख़्ाातूने $फलक (तु.अ़.स्त्री.)-सूरज, सूर्य, रवि, दिनकर, दिवाकर।
ख़्ाातूने मह$िफल (तु.अ़.स्त्री.)-सबके सामने आनेवाली और सबसे मिलनेवाली स्त्री, सोसाइटी गर्ल, शम्अ़ए अंजुमन; सामान्या; कुचाली।
ख़्ाातूने यामा (तु.स्त्री.)-सूरज, सूर्य, दिनकर, दिवाकर।
ख़्ााद ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाातÓ।
खादर (हिं.स्त्री.)-तराई, कछार, नीची ज़मीन।
ख़्ाादिम: (अ़.स्त्री.)-सेविका, परिचारिका, नौकरानी, दासी।
ख़्ाादिम (अ़.वि.)-नौकर, सेवक, टहलुवा, दास; किसी मस्जिद या दरगाह का ख़्िादमतगार; मुजाविर, कारसेवक।
ख़्ाादिमा (अ़.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाादिम:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
ख़्ाादिमान: ($फा.वि.)-नौकर की तरह, सेवक-जैसा, सेवक के समान।
ख़्ाादिमी (उ.स्त्री.)-नौकरी, सेवा, ख़्िादमत।
ख़्ाादिमुलख़्ाुद्दाम (अ़.वि.)-नौकरों का नौकर, दासानुदास, बहुत ही तुच्छ।
ख़्ाादेÓ (अ़.वि.)-धोखा देनेवाला, छली, मक्कार।
ख़्ाान: ($फा.पु.)-मकान, घर, गृह, गेह, हवेली, भवन, जैसे-डाकख़्ााना, दवाख़्ााना; संदू$क आदि का ख़्ााना; रजिस्टर आदि का ख़्ााना; जन्मकुण्डली आदि का घर; शतरंज या चौसर के कोठे; छेद, छिद्र, विवर; अ़ौरत की बच्चेदानी; कबूतरों और मु$िगयों के रहने का दड़बा। 'ख़्ाान: एहसान आबादÓ-जब कोई दूसरे का एहसान नहीं लेना चाहता तब यह वाक्य बोलता है।
ख़्ाान:आबाद ($फा.वा.)-'घर आबाद रहेÓ, एक आशीर्वाद; फलो-फूलो, आबाद रहो।
ख़्ाान:आबादाँ (अ़.$फा.वि.)-निर्भय, निडर और बेधड़क आदमी; वह व्यक्ति जो बहुत अधिक परिश्रम करता हो।
ख़्ाान:आबादी ($फा.स्त्री.)-शादी, विवाह, ब्याह।
ख़्ाान:कन ($फा.वि.)-कुपूत, कुलघातक, घरबार नष्ट कर देनेवाला व्यक्ति, धन-सम्पत्ति उड़ा डालनेवाला।
ख़्ाान:कनी ($फा.स्त्री.)-कुलघात, कपूतपन, घरबार तबाह कर देना, धन-सम्पत्ति को फँूक डालना अर्थात् बर्बाद कर देना।
ख़्ाान:ख़्ाराब ($फा.वि.)-अभागा, भाग्यहीन, बदनसीब; जिसका घर-बार उजड़ गया हो, जिसका घरबार और धन-सम्पत्ति सब नष्ट हो गए हों; आवारागर्द, लफंगा।
ख़्ाान:ख़्ाराबी (अ़.$फा.स्त्री.)-घरबार और धन-दौलत का नाश; घर की बरबादी; भाग्यहीनता, अभागापन, बद$िकस्मती।
ख़्ाान:ख़्वाह ($फा.वि.)-यात्री के परिचित का घर जहाँ वह ठहरे, मुसा$िफर की जान-पहचान का घर जहाँ वह उतरे।
ख़्ाान:जंग ($फा.वि.)-जो जऱा-सी इच्छा-विरुद्घ बात पर लड़ पड़े, जंग-जू।
ख़्ाान:जंगी ($फा.स्त्री.)-गृह-युद्घ, गृह-कलह, अन्तर्कलह, आपस का झगड़ा, किसी देश के अन्दर की आपसी लड़ाई।
ख़्ाान:ज़ाद ($फा.वि.)-घर में उत्पन्न, घर का पैदा हुआ; घर की लौंडी से उत्पन्न, दासी-पुत्र (नम्रता प्रदर्शित करने के लिए इस शब्द का प्रयोग वक्ता अपने लिए भी करता है)।
ख़्ाान:तलाशी (तु.$फा.स्त्री.)-तलाशी, खोजबीन, पुलिस आदि की ओर से घर की तलाशी।
ख़्ाान:दामाद ($फा.पु.)-घर-जवाई, वह दामाद जो अपना घर छोड़कर ससुराल में रहे।
ख़्ाान:दामादी ($फा.स्त्री.)-दामाद का घर-जवाई बनना, दामाद का अपना घर छोड़कर ससुराल में रहना; दामाद से ससुराल में रहने की शर्त पर शादी करना।
ख़्ाान:दार ($फा.वि.)-गृहस्थ, घरेलू जीवन व्यतीत करने वाला; घर का स्वामी; घर का व्यक्ति; द्वारपाल, दरबान।
ख़्ाान:दारी ($फा.स्त्री.)-घर-बार का कामकाज, गहस्थी का प्रबन्ध, घरेलू जीवन, घर-गृहस्थी; घर-गृहस्थी के झंझट।
ख़्ाान:नशीं ($फा.वि.)-'ख़्ाान:नशीनÓ का लघु., सांसारिक विषय-वासनाओं से निवृत होकर एकान्त में रहनेवाला, विरागी; बेकार, जो सब काम छोड़कर घर में घुसा रहे।
ख़्ाान:नशीनी ($फा.स्त्री.)-सांसारिक विषयों से मुक्त होकर एकान्त में जीवन व्यतीत करना, एकान्तवास।
ख़्ाान:पुरी ($फा.स्त्री.)-ख़्ाानापूरी; किसी $फॅार्म या रजिस्टर के ख़्ाानों को भरना; केवल दिखाने या छूछा उतारने के लिए अनमनेपन से कोई काम करना।
ख़्ाान:बख़्ाान: ($फा.वि.)-घर-घर, प्रत्येक घर में।
ख़्ाान:बदोश ($फा.वि.)-जिसका कोई ख़्ाास ठिकाना न हो, संचारजीवी, घर का सामान साथ में रखकर इधर-उधर जीवन गुज़ारनेवाला; आवारा, परेशान।
ख़्ाान:बदोशी ($फा.स्त्री.)-इधर-उधर घूम-फिरकर जीवन बिताना।
ख़्ाान:बरंदाज़ ($फा.वि.)-गृह-घातक, कुल-घातक, घर को विनष्ट या बरबाद करनेवाला, घर-बार उजाड़ देनेवाला।
ख़्ाान:बरअंदाज़ ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:बरंदाज़Ó, दोनों शुद्घ हैं।
ख़्ाान:बरबाद ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबÓ।
ख़्ाान:बरबादी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबीÓ।
ख़्ाान:बा$ग ($फा.पु.)-गृहवाटिका, गृहोद्यान, पाईंबा$ग, वह बा$ग या उपवन जो घर से मिला अर्थात् सटा हुआ हो, वह वाटिका जो घर की चार-दीवारी के अन्दर हो।
ख़्ाान:बुस्ताँ ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाान:बाग़Ó।
ख़्ाान:रस ($फा.वि.)-घर में पकाया हुआ फल, पाल का मेवा।
ख़्ाान:वीराँ ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबÓ।
ख़्ाान:वीरानी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबीÓ।
ख़्ाान:शुमार ($फा.वि.)-घरों की गिनती करनेवाला।
ख़्ाान:शुमारी ($फा.स्त्री.)-घरों की गिनती, किसी बस्ती के घरों या मकानों की गणना।
ख़्ाान:साज़ ($फा.वि.)-घर का बना हुआ, घर की बनी हुई वस्तु, गृह-निर्मित।
खानासाज़ (सं.$फा.पु.)-खाना अर्थात् भोजन बनाने वाला।
ख़्ाान:सियाह ($फा.वि.)-भाग्यहीन, अभागा, बदनसीब; कृपण, कंजूस, लोभी।
ख़्ाान:सोज़ ($फा.वि.)-घर की सम्पत्ति फँूक डालनेवाला अर्थात् बरबाद कर देनेवाला, घर को नष्ट कर देनेवाला, गृह-घातक।
ख़्ाान:सोज़ी ($फा.स्त्री.)-घर को बरबाद कर देना, घर की सम्पत्ति नष्ट कर देना, घर-फूँकना।
ख़्ाान (तु.पु.)-अध्यक्ष, अमीर, सरदार; बहुत बड़ा और प्रतिष्ठित व्यक्ति। (हिं.स्त्री.)-वह स्थान जहाँ से धातु, पत्थर, कोयला आदि खोदकर निकाले जाते हैं, आकर, खानि, खदान।
ख़्ाान ($फा.पु.)-'ख़्ाान:Ó का लघुरूप, जो यौगिक-शब्दों में व्यवहृत है, जैसे-'ख़्ाानमाँÓ; पठान, काबुली।
ख़्ाानए कमाँ ($फा.पु.)-धनुष के दोनों छोर।
ख़्ाानए ख़्ाम्मार ($फा.पु.)-मधुशाला, मदिरालय, शराबधर, मैख़्ााना।
ख़्ाानए ख़्ाुदा ($फा.पु.)-ईश्वर का घर, उपासना-स्थल, मन्दिर, मस्जिद, गिरजा आदि।
ख़्ाानए ख़्ाुर्शीद ($फा.पु.)-सिंहराशि, बुर्जे असद।
ख़्ाानए चश्म ($फा.पु.)-वह गड्ढ़ा, जिसमें आँख का ढेला रहता है; आँख-रूपी घर, जिसमें प्रेमिका का वास होता है, नैन-बसेरा।
ख़्ाानए ज़ंजीर ($फा.पु.)-ज़ंजीर का घेरा; $कैदख़्ााना, जेल, बन्दीगृह; पागलख़्ााना।
ख़्ाानए तीर ($फा.पु.)-मिथुन राशि, बुर्जे जौज़ा।
ख़्ाानए दिल ($फा.पु.)-हृदय-रूपी घर, हृृद्देश, जिसमें पे्रमिका का निवास रहता है।
ख़्ाानए बेतकल्लु$फ (अ़.$फा.पु.)-ऐसा घर जहाँ तकल्लु$फ न करना पड़े, ऐसा घर जहाँ औपचारिता निभाने की ज़रूरत न पड़े।
ख़्ाानए माही ($फा.पु.)-मछली का घर, नदी, तालाब, समुद्र आदि जहाँ मछलियाँ रहती हैं।
ख़्ाान$कह ($फा.स्त्री.)-'ख़्ाान$काहÓ का लघु, दे.-'ख़्ाान$काहÓ।
ख़्ाान$काह ($फा.स्त्री.)-मठ, आश्रम; दरवेशों, पीर-$फ$कीरों और साधुओं-ऋषियों के रहने का स्थान, जहाँ वे दुनिया से अलग रहकर उपासना करते हैं।
ख़्ाानख़्ाानाँ (तु.पु.)-सरदारों का सरदार; अमीरों का अमीर; मु$गलों के समय में सेनापति की उपाधि; अकबर बादशाह के शिक्षक बैरमख़ान और उसके पुत्र अब्दुर्रहीम ख़ाँ की उपाधि।
ख़्ाानगाह ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान$काहÓ।
ख़्ाानगी ($फा.वि.)-घरेलू, घर-गृहस्थी से सम्बन्धित, घर का; निजी, ज़ाती, व्यक्तिगत; (स्त्री.)-वह घरेलू स्त्री जो व्यभिचारिणी हो, वह पर्दानशीन अ़ौरत जो वेश्यावृत्ति करती हो; बिना ब्याही स्त्री जो घर में स्त्री की तरह रख ली गई हो, उपपत्नी, रखैल, बैठाली स्त्री। 'ख़्ाानगी $िफसादÓ-ख़्ाानदानी झगड़ा, आपस का झगड़ा, आपसी तकरार।
ख़्ाानज़ाद: ($फा.पु.)-ख़्ाान का बेटा; राजकुमार।
ख़्ाानदान ($फा.पु.)-कुल, वंश, घराना, परिवार।
ख़्ाानदानी ($फा.वि.)-वंश-सम्बन्धी; वंश का व्यक्ति; ख़्ाानदान का; स्वजन, अज़ीज; कुलीन, शरी$फ; पुश्तैनी, पैतृक। व्यंग में अकुलीन अथवा दो$गले व्यक्ति के लिए भी इस शब्द का प्रयोग कर देते हैं।
खानपान (सं.पु.)-भोजन और जल, आबो-दाना; खाना-पीना; भोजन करने की रीति, खाने-पीने का आचार; खाने-पीने का सम्बन्ध।
ख़्ाानम (तु.स्त्री.)-ख़्ाान की स्त्री; बड़े घर की स्त्री, भद्र महिला।
ख़्ाानमाँ ($फा.पु.)-घर-गृहस्थी का सामान। दे.-'ख़्ाानोमाँÓ।
ख़्ाानवाद: ($फा.पु.)-कुल, वंश, ख़्ाानदान।
ख़्ाानवादा ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाानवाद:Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ाानसामाँ ($फा.पु.)-बावरची, रसोइया; खाना पकानेवाला; खाने की मेज़ या दस्तरख़्वान का प्रबन्ध करनेवाला।
ख़्ाान सालार ($फा.पु.)-गोदाम का अधिकारी।
ख़्ाान साहब (तु.पु.)-अंग्रेज़ों के समय में अपने मुसलमान पिट्ठुओं को दी जानेवाली एक साधारण उपाधि।
खाना (हिं.पु.)-भोजन, ख़्ाुराक; हिंसक जन्तुओं का शिकार करना; विषैले कीड़ों का काटना, डसना; तंग करना, कष्ट देना; उड़ा देना, न रहने देना; हड़प जाना, बेईमानी से लेना; रिश्वत आदि लेना।
ख़्ााना ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाान:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
ख़्ाानाख़्ाराब ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबÓ।
ख़्ाानाख़्ाराबी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबीÓ।
ख़्ाानाजंग ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:जंगÓ।
ख़्ाानाजंगी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:जंगीÓ।
ख़्ाानाज़ाद ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाान:ज़ादÓ।
ख़्ाानातलाशी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:तलाशीÓ।
ख़्ाानादारी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:दारीÓ।
ख़्ाानानशीं ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:नशींÓ।
ख़्ाानापुरी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:पुरीÓ।
ख़्ाानाबदोश ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:बदोशÓ।
ख़्ााना बर अंदाज़ ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:बरंदाज़Ó।
ख़्ाानाबरदोश ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:बरदोशÓ।
ख़्ाानाबरबादी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:बरबादीÓ।
ख़्ाानाबा$ग ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाान:बा$गÓ।
ख़्ाानाशुमारी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाान:शुमारीÓ।
ख़्ाानि$क (अ़.वि.)-गलघोंटू, गला घोंटनेवाला, गला घोंटकर मार डालनेवाला।
ख़्ाानि$फ ($फा.वि.)-घमण्डी, गर्वीला।
ख़्ाानी ($फा.वि.)-छोटा हौज़, छोटा जलकुण्ड।
ख़्ाानुमाँ ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाानोमाँÓ।
ख़्ाानुमाँ ख़्ाराब ($फा.वि.)-तबाह, बरबाद, ख़्ाानाख़्ाराब।
ख़्ाानेÓ (अ़.वि.)-बदकार, दुराचारी; मन में बुरा विचार रखनेवाला, बदगुमान।
ख़्ाानोमाँ ($फा.पु.)-गृह-सामग्री, घर-गृहस्थी का सामान।
ख़्ाान्दान ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाानदानÓ।
ख़्ाान्माँ ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाानोमाँÓ।
ख़्ाान्माँख़्ाराब ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:ख़्ाराबÓ।
ख़्ाान्माँबरबाद ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाान:बरबादÓ।
ख़्ाा$िफ$कैन (अ़.पु.)-पूरब और पश्चिम।
ख़्ाा$िफज़: (अ़.पु.)-वह स्त्री, जो स्त्रियों के ख़्ात्ने करे।
ख़्ाा$िफज़ (अ़.वि.)-हरानेवाला, पस्त करनेवाला, नीचे लेने वाला; अक्षर पर ज़ेर अर्थात् 'इÓ की मात्रा देनेवाला; ईश्वर का एक नाम, जिसका अर्थ है अत्याचारियों को अपमानित करने वाला।
ख़्ाा$िफय: (अ़.वि.)-दत्त, प्रदत्त, दिया हुआ।
ख़्ाा$फी (अ़.वि.)-गुप्त, छिपा हुआ, पोशीद:।
खाबड़ (हिं.वि.)-ऊँचा-नीचा, असम।
ख़्ााबिय: (अ़.पु.)-मर्तबान, सिर्का आदि रखने की मटकी।
ख़्ााबूर (अ़.पु.)-एक प्रकार की घास; एक झरने अथवा चश्मे का नाम; एक गाँव का नाम।
ख़्ााम: ($फा.पु.)-$कलम, लेखनी।
ख़्ााम:आराई ($फा.स्त्री.)-लिखना, सुलेख लिखना, तह्रीर करना।
ख़्ााम:दान ($फा.पु.)-$कलमदान, लेखनी रखने का पात्र।
ख़्ााम:$फर्सा ($फा.वि.)-$कलम घिसनेवाला अर्थात् लिखनेवाला, लेखक, राइटर, ख़्ााम:बर्दार।
ख़्ााम:$फर्साई ($फा.स्त्री.)-लेखन-कार्य, ख़्ााम:बर्दारी; लिखना, तह्रीर करना।
ख़्ााम ($फा.वि.)-बिना पका हुआ, कच्चा, अपरिपक्व; बुरा, ख़्ाराब, बोदा; असंस्कृत; नातजुर्बेकार, अनुभवहीन; ख़्ाालिस, निष्केवल, विशुद्घ; कच्ची शराब। 'ख़्ााम करनाÓ-बन्द करना, आटा लगाकर हाँड़ी का मुँह बन्द करना।
ख़्ााम [म्म] (अ़.पु.)-सड़ा हुआ मांस।
खाम (हिं.पु.)-लिफाफा; जोड़, टांका; खंभा; मस्तूल।
ख़्ाामअ़क़्ल ($फा.वि.)-कम विवेकवाला, अपरिपक्वमति, अविवेकी, जिसकी समझ-बूझ कच्ची हो; जिसे अनुभव न हो, अननुभवी, नातजुर्बाकार।
ख़्ाामअ़क़्ली (अ़.$फा.स्त्री.)-अनुभवहीनता, नातजुर्बाकारी; समझ-बूझ का कच्चापन, विवेक की कमी।
ख़्ाामआमदनी ($फा.स्त्री.)-कुल आय जिसमें ख़्ार्च प्रकट न किया जाए।
ख़्ाामकार ($फा.वि.)-जिसको अनुभव न हो, अननुभवी; मिथ्याकारी, मिथ्या कार्य करनेवाला, नासमझी का काम करनेवाला।
ख़्ाामकारी ($फा.स्त्री.)-अनुभवहीनता; मिथ्या काम करना, नासमझी।
ख़्ाामख़्ायाल (अ़.$फा.वि.)-पगला, मूर्ख, बेवु$कू$फ; जिसका विवेक साथ न दे; जो ठीक बात को $गलत समझे; जिसकी विचारधारा ठीक न हो, बेहूदा और व्यर्थ विचारवाला; कच्चा विचार, $गलत विचार, बेकार सोच।
ख़्ाामख़्ायाली (अ़.$फा.स्त्री.)-बेवु$कू$फी, मूर्खता; विचार ठीक न होना, $गलत गुमान, झूठा ख़्ायाल, वहम; ठीक बात को $गलत समझना।
ख़्ाामख़्ाा ($फा.क्रि.वि.)-व्यर्थ। दे.-'ख़्वाहमख़्वाहÓ।
ख़्ाामख़्ाू ($फा.वि.)-अविवेकी, मूर्ख, बेवु$कू$फ, नादान; अननुभवी, नातज्रिब:कार, अनुभवहीन।
ख़्ाामचर्म ($फा.वि.)-आदमी का शरीर, मनुष्य की देह, इंसानी जिस्म।
ख़्ाामतब्अ़ (अ़.$फा.वि.)-अविवेकी, नासमझ, मंदमति।
ख़्ाामतब्ई (अ़.$फा.स्त्री.)-मूर्खता, बेवु$कू$फी, नासमझी।
ख़्ाामतमाÓ (अ़.$फा.वि.)-लोभी, लोलुप, लालची।
ख़्ााम तहसील ($फा.स्त्री.)-ज़मींदार या ठेकेदार की मध्यस्थता के बिना सरकारी लगान की वसूली।
ख़्ाामदस्त ($फा.वि.)-अननुभवी, जिसे काम का अनुभव या अभ्यास न हो, अनभ्यस्त; $फुज़ूलख़्ार्च, अपव्ययी, दोनों हाथों से पैसा उड़ानेवाला।
ख़्ाामदस्ती ($फा.स्त्री.)-अनाड़ीपन, काम का अनुभव या अभ्यास न होना, अनुभवहीनता; $फुज़ूलख़्ार्ची, अपव्यय।
ख़्ाामपार: ($फा.स्त्री.)-एक प्रकार की गाली; वह स्त्री जिसका कौमार्य नष्ट होगया हो, क्षतयोनि; व्यभिचारिणी, छिनाल; मक्कार अ़ौरत; छोटी अवस्था में व्यभिचार करने वाली, दुश्चरित्रा, पुंश्चली; एक प्रकार की छोटी तोप।
ख़्ाामपारा ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाामपार:Ó।
ख़्ाामराय ($फा.वि.)-नादान, कमअ़क़्ल।
ख़्ाामरीश ($फा.वि.)-बुद्धू, घामड़, मूर्ख, बेवु$कू$फ; विनोदी, मस्खरा, विदूषक।
ख़्ाामशी ($फा.स्त्री.)-'ख़्ाामोशीÓ का लघु., दे.-'ख़्ाामोशीÓ।
ख़्ाामसोज़ ($फा.वि.)-वह पदार्थ, जो ऊपर से जल गया हो मगर भीतर से कच्चा हो।
ख़्ाामसोज़ी ($फा.स्त्री.)-ऊपर से जल जाना और भीतर से कच्चा रहना।
ख़्ाामा ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ााम:Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ाामादान ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ााम:दानÓ।
ख़्ाामिल (अ़.वि.)-ऐसा व्यक्ति जिसे कोई याद न करे, गुमनाम, तुच्छ, उपेक्षित।
ख़्ाामिस (अ़.वि.)-पंचम, पाँचवाँ।
ख़्ाामी ($फा.स्त्री.)-त्रुटि, दोष, कमी, ख़्ाराबी; अनाड़ीपन, अनुभवहीनता, नातजुर्बेकारी; अपरिपक्वता, कच्चापन।
ख़्ाामुशी ($फा.स्त्री.)-'ख़्ाामोशीÓ का लघु., दे.-'ख़्ाामोशीÓ।
ख़्ाामोश (अ़.वि.)-मौन, शान्त, चुप, अवाक्, निर्वाक्, नीरव।
ख़्ाामोशी ($फा.स्त्री.)-चुप्पी, सन्नाटा, नीरवता।
ख़्ााय: ($फा.पु.)-अण्डकोष, $फोता; अण्डा, अण्ड।
ख़्ााय:बरदार ($फा.वि.)-महाचाटुकार, झूठी और गिरी हुई ख़्ाुशामद करनेवाला, बहुत-ही तुच्छ ख़्ाुशामदी।
ख़्ााय:बरदारी ($फा.स्त्री.)-चापलूसी, चाटुकर्म, चाटुकारिता, झूठी और तुच्छ ख़्ाुशामद, ख़्ाुशामद में नीच से नीच सेवा करना।
ख़्ााय:रेज़ ($फा.पु.)-अण्डे का चीला, आमलेट, ख़्ाा$गीन।
ख़़्ाायन (अ़.वि.)-ख़्ायानत करनेवाला, किसी की धरोहर को अपने काम में लानेवाला, धरोहर हड़पनेवाला, बेईमान।
ख़्ााय$फ (अ़.वि.)-डरपोक, कायर, भीरू; भयभीत, डरा हुआ।
ख़़्ाायस्क ($फा.पु.)-सुनारों और लुहारों का हथौड़ा।
ख़्ााया ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ााय:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
ख़्ााया बरदार ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ााय:बरदारÓ।
ख़्ााया बरदारी ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ााय:बरदारीÓ।
ख़्ाायिंद: ($फा.वि.)-चबानेवाला।
ख़्ाायिस्क ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाायस्कÓ, दोनों शुद्घ हैं।
ख़्ाार: ($फा.पु.)-एक बहुत-ही कठोर पत्थर, ख़्ाारा; एक प्रकार का रेशमी कपड़ा, जो लहरियेदार होता है।
ख़्ाार ($फा.पु.)-शूल, काँटा, कंटक; फाँस; पक्षी के पाँव का काँटा; चुभने और कष्ट देनेवाली बात; जलन, खटक, ईष्र्या; नागवार, दूभर; दाढ़ी। 'ख़्ाार रखनाÓ-मन में द्वेष रखना।
खार (हिं.पु.)-नमक, क्षार; काट करने वाली चीज़; सज्जी; लोना; धूल, गर्द; एक प्रकार की झाड़ी जिसमें खार निकलता है।
ख़्ाारकश ($फा.वि.)-लकड़हारा, लकड़ी काटने और बेचने वाला।
ख़्ाारकशी ($फा.स्त्री.)-लकड़हारे का कर्म, लकड़ी काटना और बेचना।
ख़्ाारख़्ासक ($फा.पु.)-एक प्रकार का काँटा, गोक्षुर, गोखरू।
ख़्ाारख़्ाार ($फा.वि.)-परेशान, चिन्तित, उद्विग्न; सोच में पड़ा हुआ; (पु.)-$िफक्र, चिन्ता; लगाव, सम्बन्ध।
ख़्ाारचंग ($फा.पु.)-केकड़ा, कर्कट।
ख़्ाारचीं ($फा.पु.)-काँटों की बाड़, जो सुरक्षा की दृष्टि से खेत के चारों तर$फ लगा देते हैं।
ख़्ाारदार ($फा.वि.)-काँटेदार, कँटीला। (पु.)-एक प्रकार का सलाम।
ख़्ाारपुश्त ($फा.स्त्री.)-एक जन्तु जिसकी पीठ पर लम्बे काँटे होते हैं, साही, सेही, शल्लकी; कटहल।
ख़्ाारबंद ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाारचींÓ।
ख़्ाारबस्त ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाारचींÓ।
ख़्ाार-मु$गीलाँ ($फा.पु.)-बबूल का काँटा।
ख़्ाारशुतुर ($फा.पु.)-'ऊँटकटाराÓ नामक एक काँटेदार झाड़, जिसे ऊँट बड़े चाव से खाता है।
ख़्ाारा ($फा.पु.)-एक बहुत-ही कठोर पत्थर, ख़्ाार:; एक प्रकार का रेशमी कपड़ा जो लहरियेदार होता है।
खारा ($हिं.वि.)-नमकीन; अरुचिकर, अप्रिय।
ख़्ााराशिकन ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ााराशिगा$फÓ।
ख़्ााराशिगा$फ ($फा.वि.)-पाषाण-भेदी, पत्थर में छेद कर देनेवाला, प्रस्तर-भेदी।
ख़्ाारिंद: ($फा.वि.)-खुजानेवाला, खुजलानेवाला।
ख़्ाारि$क (अ़.वि.)-फाडऩेवाला, विदारक।
ख़्ाारि$के अ़ादात (अ़.पु.)-करिश्मा, चमत्कार, करामात, मोÓजिज़:।
ख़्ाारिज: (अ़.पु.)-बाहर निकाला या अलग किया हुआ; पृथक्, अलग; रसीद की दूसरी परत; विदेशी, पर-राष्ट्रीय।
ख़्ाारिज (अ़.वि.)-बाहर, अलग, छोड़ा हुआ, बहिष्कृत, बिरादरी से बाहर किया हुआ; रद किया हुआ; निकलनेवाला; निकला हुआ।
ख़्ाारिज अज़ अ़क़्ल (अ़.$फा.वि.)-विवेकहीन, मूर्ख, जो व्यक्ति बुद्घि से ख़्ाारिज हो, बुद्घिशून्य, बुद्घिहीन; जो बात समझ से बाहर हो, ज्ञानातीत।
ख़्ाारिज अज़ आहंग (अ़.$फा.वि.)-$गैरइरादतन, जो बात बिना इरादे के हो; जो स्वर अपने स्थान से विचलित या
हटा हुआ हो।
ख़्ाारिज अज़ $िकयास (अ़.$फा.वि.)-अनुमान या अंदाज़े से परे; अनुमान से अधिक, बहुत अधिक।
ख़्ाारिज अज़ बह्स (अ़.$फा.वि.)-जो बात सर्वमान्य हो; जो बात बह्स से परे हो, निर्विवाद बात; जो बात बह्स के योग्य न हो, असंगत बात।
ख़्ाारिज आहंग ($फा.वि.)-बेसुरा।
ख़्ाारिज आहंगी (अ़.$फा.स्त्री.)-स्वर का विचलित हो जाना, स्वर का स्थान से हट जाना।
ख़्ाारिज $िकस्मत (अ.पु.)-वह संख्या जो भाग देने से प्राप्त हो, लब्धि, भजनफल, भागफल।
ख़्ाारिजन (अ़.वि.)-ऊपर से, बाहर से, उड़ते-उड़ते, इधर-उधर से, किंवदन्ती के अनुसार, अविश्वस्त-रूप से (सुनने के लिए प्रयुक्त होता है)।
ख़्ाारिजा (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाारिज:Ó, वही शुद्घ है।
ख़्ाारिजी (अ़.वि.)-वह, जो किसी समाज या सम्प्रदाय से अलग हो जाए; सुन्नी मुसलमानों के लिए शीया मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त होनेवाला उपेक्षा और घृणा-सूचक शब्द; बाहरी, बाह्य, बाहर का, बैरूनी; मुसलमानों का एक समुदाय जो हज्ऱत अ़ली को ख़्ाली$फा नहीं मानता।
ख़्ाारिजुलअ़क़्ल (अ़.वि.)-दे.-'ख़्ाारिज अज़ अ़क़्लÓ।
ख़्ाारिजुलबलद (अ़.वि.)-देश-निष्कासित, देश से निकाला हुआ, जलावतन।
ख़्ाारि$फ (अ़.वि.)- खजूरों की देख-रेख करनेवाला।
ख़्ाारिम (अ़.वि.)-नासिका-भेदक; नाक काटनेवाला; नथुने छेदनेवाला; शरारती, उपद्रवी।
ख़्ाारिश ($फा.स्त्री.)-खाज, खुजली, विचर्चिका, कंडू, खर्जू।
ख़्ाारिशी ($फा.वि.)-खुजली का रोगी, जिसे ख़्ाारिश या खुजली हो; जिससे ख़्ाारिश या खुजली पैदा होती हो। कहा.-'ख़्ाारिशी कुतिया मख़्ामल की झूलÓ-अच्छे-अच्छे कपड़े पहननेवाला बदसूरत।
ख़्ाारिश्त ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाारिशÓ।
ख़्ाारिश्ती ($फा.वि.)-दे.-'ख़्ाारिशीÓ।
ख़्ाारिस्तान ($फा.पु.)-काँटों का जंगल, जहाँ काँटे ही काँटे हों।
ख़्ाारीद: ($फा.वि.)-खुजाया हुआ, खुजलाया हुआ।
ख़्ाारीदन ($फा.क्रि.)-खुजलाना।
ख़्ाारीदनी ($फा.वि.)-खुजलाने योग्य।
खारे (हिं.पु.)-ज़च्चा के पेट पर की झुर्रियाँ।
ख़्ाारे अ़क्ऱब (अ.$फा.पु.)-बिच्छू का डंक; अशुभ, मनहूस, अमंगल।
ख़्ाारे मु$गीलाँ ($फा.पु.)-बबूल का काँटा, बब्बूर-कंटक।
ख़्ाारोख़्ास ($फा.पु.)-कूड़ा-करकट।
ख़्ारोख़्ासक ($फा.पु.)-दे.-'ख़्ाारख़्ासकÓ।
ख़्ााल: (अ.स्त्री.)-माँ की बहन, मौसी। 'ख़्ााला जी का घर नहींÓ-आसान काम नहीं, मामूली बात नहीं।
ख़्ााल: ($फा.पु.)-फफोला, छाला।
ख़्ााल:ज़ाद (अ.$फा.वि.)-मौसी का लड़का या लड़की।
ख़्ााल (अ़.पु.)-तिल, बिन्दु, शरीर पर का काला दा$ग; माँ का भाई, मामा; श्रेष्ठता, बुजुर्गी; मेधा, बुद्घि, अ़क़्ल, विवेक; अहंकार, अभिमान, $गुरूर, घमण्ड; डिठोना; स$फेदी के साथ और रंग लिये हुए कबूतर।
खाल (हिं.स्त्री.)-मनुष्य, पशु आदि की देह का बाहरी आवरण, चमड़ा, त्वचा; किसी वस्तु का अंगीभूत आवरण।
ख़्ााल ख़्ााल (अ़.वि.)-इक्का-दुक्का, बहुत कम, कोई-कोई, यदा-कदा, कहीं-कहीं।
ख़्ाालसा (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाालिस:Ó।
खालसा (हिं.वि.)-एकाधिकृत, जो एक ही के अधिकार में हो; राज्य का, सरकारी। (पु.)-सिखों का एक सम्प्रदाय। 'खालसा करनाÓ-अधिकार में लेना; जब्त करना; नष्ट करना।
ख़्ााला (अ.स्त्री.)-दे.-'ख़्ााल:Ó।
खाला (हिं.पु.)-नाला, नदी।
ख़्ाालाज़ाद (अ.$फा.वि.)-दे.-'ख़्ााल:ज़ादÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
ख़्ाालि$क (अ़.वि.)-पैदा करनेवाला, उत्पन्न करनेवाला, उत्पत्तिकर्ता, जनक; स्रष्टा, सृष्टि की रचना करनेवाला, ईश्वर।
ख़्ाालि$के कुल (अ़.पु.)-ब्रह्मïाण्ड की प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न करनेवाला, सर्वस्रष्टा, ईश्वर, परमात्मा।
ख़्ाालिद (अ़.वि.)-नित्य, अनश्वर, जो कभी नष्ट न हो, हमेशा रहनेवाला।
ख़्ाालि$फ: (अ़.वि.)-बहुत अधिक प्रतिकूल पुरुष; जिससे किसी को यश न हो; रावटी का खम्भा।
ख़्ाालि$फ (अ़.वि.)-जो पीछे रह गया हो, पीछे छूटा हुआ; पानी खींचनेवाला; ऐसा व्यक्ति जो यशहीन हो।
ख़्ाालिय: (अ़.पु.)-गुजऱा हुआ, गत, पिछला; प्राचीन, पुरातन, $कदीम।
ख़्ाालिस: (अ़.पु.)-राजा की निजी और ज़ाती भूमि तथा जायदाद; विशुद्घ, शुद्घ, निष्केवल, निर्मल, ख़्ाालिस; सिखों का एक सम्प्रदाय (ख़्ाालसा)।
ख़्ाालिस (अ़.वि.)-विशुद्घ, शुद्घ, बेमेल, खरा, जिसमें किसी प्रकार की मिलावट न हो, निष्केवल; छल-रहित, निश्छल, मुख़्िलस; सि$र्फ, केवल, एकमात्र।
ख़्ाालिसुन्नस्ल (अ़.वि.)-कुलीन, दोष-रहित कुल का, जिसके वंश में कोई दोष, ऐब अथवा कलंक न हो।
ख़्ाालिसुलअस्ल (अ़.वि.)-दे.-'ख़्ाालिसुन्नस्लÓ।
ख़्ााली (अ़.वि.)-रीता, रिक्त, खोखला, जिसमें कुछ भरा न हो; जिसमें कोई रहता न हो, $गैरआबाद, सूना, बिना बसा हुआ; केवल, सि$र्फ, एकमात्र; बेकार, निकम्मा; बेरोजग़ार; चाँद का ग्यारहवाँ महीना (नूरजहाँ बेगम का रखा हुआ नाम)। 'ख़्ााली जानाÓ-निशाने पर न बैठना, तीर या गोली न लगना, कोई प्रयास असफल हो जाना। 'ख़्ााली फिरनाÓ-कुछ न करना। 'ख़्ााली पेटÓ-निराहार, बिना कुछ खाये। 'ख़्ााली हाथÓ-निहत्था, बे-हथियार।
ख़्ााली अज़ अ़क़्ल (अ़.$फा.वि.)-विवेक-शून्य, जो अ़क़्ल से पैदल हो, बुद्घिहीन, मूर्ख, बेवु$कू$फ।
ख़्ााली अज़ इल्लत (अ़.$फा.वि.)-दोष-रहित, जिसमें कोई ऐब या दोष न हो; बाधा-रहित, जिसमें कोई रुकावट या बाधा न आए।
ख़्ाालू (अ़.पु.)-माँ का भाई, मामा, मामूँ (परन्तु अब माँ की बहन के पति के लिए इस शब्द का प्रयोग होने लगा है, क्योंकि माँ की बहन अर्थात् मौसी के लिए 'ख़्ााल:Ó शब्द का प्रयोग होता है, अत: सुविधानुसार लोगों ने मौसा को 'ख़्ाालूÓ कहना शुरू कर दिया)।
ख़्ाालेÓ (अ़.वि.)-वह पुरुष, जिसे उसकी पत्नी ने तलाक दे दिया हो, परित्यक्त; वह स्त्री, जिसे उसके पति ने छोड़ दिया हो, परित्यक्ता; ख़्ाूब पका हुआ खजूर।
ख़्ााले अ़ारिज़ (अ़.पु.)-कपोल अथवा गाल का तिल।
ख़्ााले रुख़्ा (अ़.$फा.पु.)-मुँह या चेहरे का तिल; कपोल अथवा गाल का तिल।
ख़्ाावंद ($फा.वि.)-'ख़्ाुदावंदÓ का लघुरूप, स्वामी, मालिक; पति, शौहर (ख़्ााविंद)।
ख़्ाावंदी ($फा.स्त्री.)-स्वामी या मालिक होने का भाव या गुण, स्वामित्व, मालिकीयत; पतित्व, शौहरपन; मेहरबानी, कृपा, अनुग्रह, इनायत।
ख़्ाावर ($फा.वि.)-पूरब, पूर्व दिशा, मश्रि$क; पच्छिम, पश्चिम दिशा, मग्रि़ब।
ख़्ाावराँ ($फा.पु.)-पूरब और पश्चिम।
ख़्ााविंद ($फा.पु.)-पति, स्वामी, मालिक।
ख़्ााविंदी ($फा.स्त्री.)-स्वामी का भाव या गुण; पतित्व; कृपा, अनुग्रह।
ख़्ााविय: (अ़.वि.)-रीता, रिक्त, ख़्ााली; गिरा हुआ, पड़ा हुआ, उफ़्ताद:, दु:खित, दलित।
ख़्ााश: ($फा.पु.)-कूड़ा-करकट।
ख़्ााश ($फा.स्त्री.)-सास; पति की माँ; पत्नी की माँ।
ख़्ााशाक ($फा.पु.)-कूड़ा-करकट।
ख़्ााशेÓ (अ़.वि.)-नम्र, विनम्र, विनीत, ख़्ााकसार।
ख़्ाास: (अ़.पु.)-राजाओं और बादशाहों का भोजन।
खास (हिं.स्त्री.)-उपलो या कंडों की जालीदार बोरी।
ख़्ाास [स्स] (अ़.वि.)-विशेष, मख़्सूस; प्रधान, मुख्य; निज का, अपना, ज़ाती; केवल, सि$र्फ; ठीक, शुद्घ। 'मतलब ही कोई ख़्ाास है वर्ना मेरे लिए, इतनी भी क्यों उदास है दुनिया मेरे लिएÓ-माँझी
ख़्ाासकर (अ़.अव्य.)-विशेष-रूप से, विशेषत:।
ख़्ाास ख़्वास (अ़.पु.)-धनवानों के सेवक।
ख़्ाासगी (अ़.$फा.पु.)-राजाओं के पास उठने-बैठनेवाला; सेनापति; (स्त्री.)-राजा की रखैल दासी, वह बाँदी जिससे राजा संभोग करता हो; प्रत्येक अच्छी और सुन्दर वस्तु।
ख़्ाास तराश (अ़.पु.)-राजा या किसी धनवान् व्यक्ति का नाई, नापित, हज्जाम।
ख़्ाासदान (अ़.$फा.पु.)-गिलौरी या पान रखने का पात्र-विशेष, पानदान, पनडिब्बी।
ख़्ाासनवीस (अ़.$फा.वि.)-निजी सचिव, पर्सनल असिस्टेंट; राजा या रईसों का निजी लेखक; जो राजा-महाराजाओं को हर बात की सूचना देता हो, जासूस; पर्चानवीस।
ख़्ाासबरदार (अ़.$फा.पु.)-वह नौकर जो बन्दू$क या बल्लम लेकर मालिक के आगे-आगे चलता है।
ख़्ाास बाज़ार (अ़.पु.)-शाही बाज़ार, वह बाज़ार जो राजमहल के निकट हो, विशेष हाट।
ख़्ाास महल (अ़.पु.)-बड़ा महल, (स्त्री.)-राजा की पहली पत्नी।
ख़्ाास महाल (अ़.पु.)-वह सम्पत्ति, जिसकी व्यवस्था शासन स्वयं करे।
ख़्ाासा (उ.वि.)-उत्तम, अच्छा, ख़्ाूब, उचित; अच्छा-बुरा, मध्यम, मध्यवर्ती, सामान्य; एक प्रकार का सूती कपड़ा; राजाओं और अमीरों का भोजन; राजाओं की सवारी का घोड़ा। दे.-'ख़्ाास:Ó।
ख़्ाासान (अ़.पु.)-'ख़्ाासÓ का बहु.।
ख़्ाासि$क (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ााजि़$कÓ।
ख़्ाासि$फ (अ़.वि.)-दुर्बल, दुबला, कृश, कमज़ोर।
ख़्ाासिब (अ़.पु.)-वह शुतुरमु$र्ग, जिसकी हड्डी लाल हो गई हो।
ख़ासियत (अ़.स्त्री.)-विशेषता, गुण, सि$फत; धर्म, गुण; मिज़ाज, स्वभाव, अ़ादत, प्रकृति।
ख़्ाासिर: (अ़.स्त्री.)-कमर और पेडू।
ख़्ाासिर (अ़.वि.)-वह व्यक्ति, जो स्वयं अपना नुकसान करे; जिसे माल में घाटा आया हो।
ख़्ाासी (अ़.वि.)-अच्छी, उम्दा, भली; बुरी न भली; अमीरों की बन्दू$क।
ख़्ाासीयत (अ़.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाासियतÓ, दोनों शुद्घ हैं।
ख़्ाासोअ़ाम (अ़.पु.)-सर्व-साधरण, अ़वाम, छोटे-बड़े सब व्यक्ति।
ख़्ाास्स: (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाासियतÓ।
ख़्ाास्सा (अ़.पु.)-दे.-'ख़्ाास्स:Ó।
ख़्ाास्सीयत (अ़.स्त्री.)-दे.-'ख़्ाासियतÓ, सबसे शुद्घ उच्चारण यही है परन्तु प्रचलित 'ख़्ाासियतÓ ही है।
ख़्ााहमख़्ााह ($फा.क्रि.वि.)-दे.-'ख़्वाहमख़्वाहÓ।
ख़्ााहाँ ($फा.वि.)-दे.-'ख़्वाहाँÓ।
ख़्ााहिश ($फा.स्त्री.)-दे.-'ख़्वाहिशÓ।

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