Tuesday, October 13, 2015


कि, $िक

कि ($फा.अव्यय.)-एक योजक-शब्द जो कहना, देखना आदि क्रियाओं के बाद उनके विषय-वर्णन से पहले आता है; तत्क्षण, इतने में; या, अथवा; क्योंकि, इसलिए कि, जैसा कि।
किंगश (तु.पु.)-'किंगाशÓ का लघु., दे.-'किंगाशÓ।
किंगाश (तु.पु.)-राय, सलाह, मशविरा, परामर्श।
$िकंतार (अ़.पु.)-एक बोरी-भर सोना या चाँदी।
$िकंदील (अ़.स्त्री.)-दीप, दीपक, चिरा$ग, दीआ, दीया; एक प्रकार की का$गज़ मढ़ी हुई बड़ी लालटेन, जिसमें का$गज़ की तस्वीरें बनी होती हैं और वह हवा में घूमती है, $कन्दील।
$िकंबील (अ़.पु.)-एक दवा, कमीला।
किचकिच (हिं.स्त्री.)-व्यर्थ का वाद-विवाद, झूठा झगड़ा।
किचकिचाना (हिं.क्रि.अक.)-क्रोध से दाँत पीसना; पूरा बल लगाने के निमित्त दाँत पर दाँत रखकर दबाना।
किचकिचाहट (हिं.पु.)-क्रोध में दाँत पीसने की अवस्था, किचकिचाने का भाव।
$िकजि़ल (तु.वि.)-रक्त, रक्तवर्ण, लाल, सुख्ऱ्ा।
$िकजि़ल अर्सलान (तु.पु.)-लाल रंग का व्याघ्र, लाल शेर; एक बादशाह की उपाधि।
$िकजि़लबाश (तु.पु.)-लाल टोपीवाला सैनिक; ईरान के शाह इस्माईल स$फवी ने अपनी तुर्की सेना को लाल टोपी पहनायी थी और उसका नाम '$िकजि़लबाशÓ रखा था; मुग़लों की एक जाति-विशेष, जिसका पेशा सिपहगरी था; ईरान और अफ्ग़ानिस्तान के शीअ़ा लोग; सैनिक, योद्घा; भाग्य, $िकस्मत, प्रारब्ध। दे.-'$कज़लबाशÓ, और '$कजि़लबाशÓ, तीनों शुद्घ हैं।
किज़्ब (अ़.पु.)-असत्य, मिथ्या, झूठ; गप, बिना सार की बात।
$िकज़्बान (अ़.पु.)-'$कज़ीबÓ का बहु., डालियाँ; लिंग।
किजि़्लक ($फा.पु.)-छोटा चा$कू।
कितना (हिं.वि.)-किस परिमाण, मात्रा या संख्या का? अधिक, बहुत, ज़्यादा।
$िकता (अ़.पु.)-दे.-'$िकत्अ़:Ó।
$िकता$फ (अ़.पु.)-अंगूर व दूसरे फलों के पकने का समय, जब वे तोड़े जा सकें।
किताब: (अ़.पु.)-कत्ब:, लेख, वह शिला या तख़्ती जो इमारतों या $कब्रों पर लगती है।
$िकताब (अ़.पु.)-कुर्ते आदि का गला, गिरीबाँ, गिरेबाँ, गिरहबान।
किताब (अ़.स्त्री.)-पुस्तक, ग्रंथ; कॉपी, अभ्यास-पुस्तिका। 'किताब का कीड़ाÓ या 'किताबी कीड़ाÓ-वह व्यक्ति, जो हर समय पुस्तकों में खोया रहे अर्थात् पुस्तक पढ़ता रहे। पद.-'किताबे $कवाइदÓ-नियमावली।
किताबख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-जहाँ पुस्तकें हों, किताबों की दुकान, पुस्तकालय।
किताबच: (अ़.$फा.पु.)-छोटी किताब, पुस्तिका।
किताबत (अ़.स्त्री.)-लिखना, लिखाई, कॉपीनवीसी का पेशा, प्रतिलिपिकरण का काम, लीथो प्रेस के लिए लिखाई का काम। पद.- 'ख़्ातो किताबतÓ-पत्र-व्यवहार।
किताबा (अ़.पु.)-दे.-'किताब:Ó, वही शुद्घ है।
किताबिस्तान (अ़.$फा.पु.)-पुस्तकालय, मक़्तबा।
किताबी (अ़.$वि.)-पुस्तक-सम्बन्धी, पुस्तक-जैसी, पुस्तक की; पुस्तक में लिखी हुई; लंबोतरा, जैसे-'किताबी चेहराÓ-लंबोतरा चेहरा।
किताबुल्लाह (अ़.स्त्री.)-वह पुस्तक अथवा ग्रंथ, जो ईश्वर की तर$फ से प्रषित या अवतरित किया गया हो, ईश्वरीय-ग्रंथ, इलहामी किताब; $कुरान शरी$फ।
किताबे आस्मानी (अ़.स्त्री.)-दे.-'किताबे इलाहीÓ।
किताबे इलाही (अ़.स्त्री.)-मुसलमानों की धर्म-पुस्तक, $कुरान शरी$फ।
किताबे रुख़्ा (अ़.$फा.स्त्री.)-नायिका अथवा प्रेमिका की पुस्तकाकार मुखाकृति, किताबी चेहरा, जिस मुख पर प्रणय-चेष्टाएँ अंकित हों।
$िकतार (अ़.स्त्री.)-पंक्ति, श्रेणी, लाइन; स$फ। इसका सही उच्चारण यही है मगर उर्दू में '$कतारÓ बोलते हैं।
$िकताल (अ़.पु.)-मार-काट, रक्तपात, ख़्ाूरेज़ी; युद्घ, लड़ाई, संग्राम, समर।
$िकत्अ़: (अ़.पु.)-दे.-'$कत्अ़:Ó। शुद्घ उच्चारण यही है परन्तु पढ़े-लिखे लोग अधिकतर वही बोलते हैं। ज़मीन का टुकड़ा, हिस्सा; पुरज़ा, परचा; एक प्रकार की कविता-रचना, जिसमें चार पंक्तियों में बात कही जाती है।
कित्फ़ (अ़.पु.)-कंधा, स्कंध। दे.-'कति$फÓ और 'कत्$फÓ, तीनों शुद्घ हैं।
कित्मान (अ़.पु.)-दुराव, छिपाव, गोपन।
$िकत्मीर (अ़.पु.)-थोड़ी चीज़; छोटा, ह्रïस्व; छुहारे में की बारीक झिल्ली।
$िकत्र (अ़.पु.)-पिघला हुआ ताँबा।
$िकदम (अ़.पु.)-पुरातत्त्व, प्राचीनता, $कदामत; नित्यता, अनश्वरता, हमेशगी, लाज़वालपन।
किदेवर ($फा.पु.)-किसान, कृषन, खेत-मजदूर। दे.- 'कदेवरÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$िकद्मत (अ़.स्त्री.)-पुराना होना, पुरानापन।
$िकद्र (अ़.पु.)-$िकद्र, हाँडी, देगची।
$िकद्व: (अ़.पु.)-नेता, नायक, सरदार, प्रधान।
$िकद्वतुल अ़ारि$फीन (अ़.पु.)-ब्रह्मïज्ञानी, महात्माओं में सर्वश्रेष्ठ।
$िकद्वतुस्सालिकीन (अ़.पु.)-साधुओं और संन्यासियों में सर्वश्रेष्ठ।
किधर (हिं.क्रि.वि.)-कहाँ? किस ओर? किस तर$फ?
किन (हिं.सर्व.)-'किसÓ का बहुवचन।
किनाय: (अ़.पु.)-छिपी हुई बात; गुप्त संकेत, छिपा हुआ इशारा; उर्दू साहित्य की परिभाषा में 'उपमेयÓ का वर्णन न करके केवल 'उपमानÓ का वर्णन करना, जैसे-कहा जाए कि 'नर्गिस ने मोती बरसाएÓ और मतलब यह हो कि प्रेयसी की आँखों से आँसू गिरे। यहाँ 'नर्गिसÓ आँख का उपमान है और 'मोतीÓ आँसू का। प्रस्तुत के स्थान पर अप्रस्तुत की योजना की जाए, जैसे-'चश्मे-गिरियाँ ने लुटाए थे गुहर, रात-भर रोए थे हम शबनम नहीं।Ó
$िकनायत (अ़.स्त्री.)-गुप्त संकेत, छिपा हुआ इशारा; गुप्त बात।
किनायतन (अ़.$वि.)-इशारे में, संकेत में, गुप्त रीति से।
किनाया (अ़.पु.)-दे.-'किनाय:Ó, वही शुद्घ है। 'किनाया कहनाÓ-सा$फ न कहना, स्पष्ट शब्दों में न कहना, इशारे में आशय या मतलब प्रकट करना।
किनार: ($फा.पु.)-अधिक लम्बाई और कम चौड़ाई वाली वस्तु के वे दोनों भाग जहाँ चौड़ाई समाप्त होती है; छोर, तट, किनारा, साहिल; कोना, गोशा; हद, सीमा, सिरा; अन्त; गोट, हाशिया, $फीता। शुद्घ शब्द 'कनार:Ó है मगर यह भी प्रचलित है। मुहा.-'किनारा करनाÓ-बचना, अलग होना। 'किनारे लगनाÓ-समाप्ति पर पहुँचना, समाप्त होना। 'कब से गिर्दाब में तुम खेल रहे हो माँझी, अब तो ये नाव किनारे से लगा दी जाएÓ -माँझी
किनार:कश ($फा.वि.)-अलग या दूर रहनेवाला, कुछ भी सम्बन्ध न रखनेवाला।
किनार ($फा.पु.)-गोद, क्रोड, आ$गोश, ब$गल; चूमना और गले लगाना। पद.-'दर किनारÓ-अलग; एक तर$फ, जैसे-'ख़्ााना-पीना तो दरकिनार बैठने तक को न कहाÓ।
किनारा ($फा.पु.)-दे.-'किनार:Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
किनारी ($फा.स्त्री.)-सुनहला और रुपहला पतला गोटा, जो स्त्रियाँ साड़ी या दुपट्टे के किनारों पर लगाती हैं।
किनारीबा$फ ($फा.पु.)-किनारी बुननेवाला।
किऩीन: (अ़.स्त्री.)-शराब रखने का पात्र, दे.-'$िकन्नीनÓ, दोनों शुद्घ हैं।
किनीस: ($फा.पु.)-ईसाइयों का गिरजा, कलीसा, दे.- 'कनीस:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
किन्न (अ़.पु.)-पहनने के कपड़े, वस्त्र, लिबास, पोशाक।
$िकन्नब (अ़.स्त्री.)-घोंटकर पी जानेवाली एक मादक पत्ती, भंग, भाँग, विजया।
$िकन्नीन (अ़.स्त्री.)-मद्य अथवा मदिरा रखने का पात्र, दे.- 'किनीनÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$िकन्य: (अ़.पु.)-दौलत, पूँजी, सरमाया।
$िकन्व (अ़.पु.)-फलों का $गच्छा, ख़्ाोश:।
किन्वान (अ़.पु.)-गुच्छे, ख़्ाोशे।
कि$फायत (अ़.स्त्री.)-कम ख़्ार्ची, थोड़े में काम चलाना, अल्प व्यय, जुज़रसी; बचत; पर्याप्त, का$फी होना।
कि$फायतशिअ़ार (अ़.वि.)-थोड़े में काम चलानेवाला, कम ख़्ार्च करनेवाला, बचत करनेवाला, मितव्ययी, जुज़रस।
कि$फायतशिअ़ारी (अ़.स्त्री.)-थोड़ा ख़्ार्च, ख़र्च में कमी, मितव्यय, ज़ज़रसी।
कि$फायती (अ़.वि.)-कम ख़्ार्च करनेवाला, संभलकर ख़्ार्च करनेवाला।
$िकफ़्ल (अ़.पु.)-हिस्सा, अंश, खण्ड, टुकड़ा; जो घोड़े पर चढ़ न सके; घोड़े की पीठ पर डाला जानेवाला नमदा।
$िकबला (अ़.पु.)-दे.-'$िकब्ल:Ó, वही शुद्घ है।
$िकबलागाह (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$िकब्ल:गाहÓ, वही शुद्घ है।
$िकबलानुमा (अ़.पु.)-दे.-'$िकब्ल:नुमाÓ, वही शुद्घ है।
$िकबलारू (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$िकब्ल:रूÓ, वही शुद्घ है।
$िकबाब (अ़.पु.)-'$कुब्ब:Ó का बहु., छोटे गुम्बद, $कुब्बे।
किबार (अ़.पु.)-'कबीरÓ का बहु., आयु में बड़े लोग; मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में बड़े लोग।
$िकबाल: (अ़.पु.)-धायकर्म, दाय:गीरी, बच्चे जनाने का काम। दूसरे अर्थों के लिए देखें-'$कबाल:Ó।
$िकब्चा$क ($िकब्चाक) (तु.पु.)-तुर्किस्तान और तूरान के बीच का एक जंगल, जहाँ के तुर्क निर्दय और उद्दण्ड होते हैं।
$िकब्ती (अ़.पु.)-मिस्र की एक प्राचीन जाति के लोग, जो $िफरअ़ौन के वंशज हैं।
किब्र (अ़.स्त्री.)-श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; बड़ाई, बड़प्पन, ज्येष्ठता; घमण्ड, $गुरूर।
किब्रसिन (अ़.वि.)-वयोवृद्घ, बूढ़ा।
किब्रसिनी (अ़.स्त्री.)-वृद्घावस्था, बुढ़ापा, जरा।
किब्रिया (अ़.पु.)-बुज़ुर्गी, बड़प्पन, बड़ाई, महत्ता; ईश्वर, परमात्मा।
किब्रियाई (अ़.स्त्री.)-प्रतिष्ठा, बड़प्पन; महत्ता, ईश्वरत्व, ख़्ाुदाई।
किब्रीत (अ़.स्त्री.)-गंधक नामक एक ज्वलनशील पदार्थ, जिससे बारूद बनती है।
किब्रीते अहमर (अ़.स्त्री.)-लाल गंधक, जो रसायन में काम आती है; अलभ्य चीज़, अप्राप्य वस्तु, नायाब चीज़, बेश$कीमती चीज़।
$िकब्ल: (अ़.पु.)-मुसलमानों के धार्मिक-स्थल मक्का में वह स्थान, जहाँ 'हजरे अस्वदÓ (काला पत्थर) स्थापित है और जिसकी ओर मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं, यह पश्चिम दिशा में स्थित है, इसीलिए मुसलमान पश्चिम की ओर मुँह करके ही नमाज़ पढ़ते हैं, काÓब:; प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तियों के लिए सम्बोधन का शब्द।
$िकब्ल:गाह (अ़.$फा.वि.)-श्रद्घेय, मान्य, पूज्य, बुज़ुर्ग।
$िकब्ल:नुमा (अ़.$फा.पु.)-दिग्दर्शक-यंत्र, दिशा बतानेवाला यंत्र, कुतुबनुमा।
$िकब्ल:परस्त (अ़.$फा.वि.)-मुसलमान।
े$कि़ब्ल:रू (अ़.$फा.वि.)-वह व्यक्ति या वस्तु, जिसका मुँह काÓबा की ओर हो यानी पश्चिम की ओर हो।
$िकब्लएअ़ालम (अ़.पु.)-जगत्पूज्य, पीर, बुज़ुर्ग; आदर के लिए बादशाहों की उपाधि या सम्बोधन; ध्रुव-तारा। दे.- '$िकब्ल:गाहÓ।
किब्लएहाजात (अ़.पु.)-सबकी हाजतों को र$फा-द$फा करनेवाला, कामना पूरी करनेवाला; इच्छापूर्ति का केन्द्र, आाशा-केन्द्र, वह स्थान जहाँ से स्वार्थ-सिद्घि हो; वह व्यक्ति जो आशाएँ पूरी करे।
$िकमत्र (अ़.पु.)-ठिगना आदमी, छोटे आकार या $कद का व्यक्ति, बौना; मोटा ऊँट; पुस्तकों की पेटी।
$िकमम (अ़.स्त्री.)-'$कुम्म:Ó का बहु., चोटियाँ, ऊंँचाइयाँ।
$िकमात (अ़.पु.)-वह कपड़ा, जिसमें नवजात शिशु लपेटा जाता है।
किमाद (अ़.पु.)-टकोर, दवाओं की पोटली को गरम करके उससे किसी अंग को बार-बार सेंकना।
$िकमार (अ़.पु.)-वह बाज़ी या खेल, जिसमें धन की हार-जीत हो, जुआ, द्यूत, कैतब, पण।
$िकमारख़्ाान: (अ़.$फा.पु.)-पणशाला, द्यूतागार, जुआघर, अक्षवार, जुआ खेलने का फड़।
$िकमारख़्ााना (अ़.$फा.पु.)-दे.-'$िकमारख़्ाान:Ó, वही शुद्घ है।
$िकमारबाज़ (अ़.$फा.वि.)-जुआरी, द्यूतकार, जुआ खेलनेवाला, कितव, कैतव, जुएबाज़।
$िकमारबाज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-जुएबाज़ी, द्यूतकर्म, कैतव, द्यूतक्रीडा, जुए का खेल।
$िकमारिया (लखनवी बोली)-धूर्त, मक्कार, चालाक।
$िकमाश (तु.स्त्री.)-$िकस्म, तरह, ढंग, प्रकार; ताश की गड्डी; गंजी$फे की एक बाज़ी का नाम; एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
$िकयम (अ़.स्त्री.)-'$कीमतÓ का बहु., $कीमतें, मूल्य।
किया ($फा.पु.)-मल्ल, पहलवान; स्वच्छ, पवित्र, पा$कीज़:; स्वामी, मालिक।
$िकयादत (अ़.स्त्री.)-रास्ता दिखाना, रहबरी, पथ-प्रदर्शन, मार्ग-दर्शन, नेतृत्व, रहनुमाई, नेतागीरी; $कुरम सा$की, अपनी पत्नी को पर-पुरुष के पास भेजकर उसकी कमाई खाना, भडुआपन, दलाली।
$िकया$फ: (अ़.पु.)-हावभाव, चेष्टा, हुल्य:, हुलिया; सूरत, शक्ल, आकृति; चेहरे के आकार-प्रकार अथवा बनावट और उसके चिह्नïों द्वारा मनुष्य के स्वभाव का ज्ञान, सूरत देखकर अच्छे-बुरे की पहचान करना, सामुद्रिक विद्या। '$कयाफ़:Ó भी प्रचलित है।
$िकया$फ:दाँ (अ़.$फा.वि.)-शक्ल-सूरत देखकर मन के भाव पहचाननेवाला, चेहरे-मोहरे को देखकर मनुष्य के स्वभाव को पहचाननेवाला, $िकयाफ़:शनास।
$िकया$फ:शनास (अ़.$फा.वि.)-शक्ल-सूरत देखकर मन के भाव पहचाननेवाला, $िकया$फ:दाँ, चेहरे-मोहरे को देखकर मनुष्य के स्वभाव को पहचाननेवाला, चेहरे के हाव-भाव और चेष्टाएँ देखकर हाल बता देनेवाला, सामुद्रिक-वेत्ता।
$िकया$फ:शनासी (अ़.$फा.स्त्री.)-सूरत देखकर मन की बात जान लेना, चेहरे के हावभाव और चिह्नïों से हाल जानना; $िकया$फ: पहचानने की विद्या।
$िकया$फा (अ़.पु.)-दे.-'$िकया$फ:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$िकयाम (अ़.पु.)-ठहरना, टिकना; ठहरने की जगह; मु$काम, ठिकाना; थोड़े दिनों का वास, अस्थायी निवास; निश्चय, य$कीन; स्थिरता, दृढ़ता; नमाज़ में खड़े होने की अवस्था; किसी संस्था आदि की नींव, स्थापना।
$िकयामगाह (अ़.$फा.स्त्री.)-ठहरने या टिकने का स्थान, पड़ाव-स्थल, ठहरने का स्थान; निवास-स्थान, रहने की जगह।
$िकयामत (अ़.स्त्री.)-सबके मरने और $फना होने का दिन, प्रलय, हश्र का दिन; वह दिन जब मुर्दे जीवित होकर खड़े होंगे और उनके कर्मों का लेखा-जोखा देखकर उन्हें स्वर्ग-नरक भेजा जाएगा; महाप्रलय; प्रलय, सृष्टि का उलट-पलट; अंधेर, अन्याय, जुल्म; आ$फत, मुसीबत; (ला.)-महासुन्दरी, बहुत ही सुन्दर नवयौवना; (वि.)-मुश्किल, कठिन, बुरा; गज़़बनाक। पद.-'$िकयामत काÓ-अत्यन्त सुन्दर, बला का ख़्ाूबसूरत।
$िकयामतअंगेज़ (अ़.$फा.वि.)-प्रलयंकर, प्रलय लानेवाला, किय़ामत उठानेवाला; बहुत उथल-पुथल करनेवाला, विप्लव -कारी।
$िकयामतआसार (अ़.$वि.)-जिसमें प्रलय के लक्षण हों, बहुत अधिक उपद्रवी; जिसमें बहुत अधिक उथल-पुथल होने की संभावना हो।
कियामतख़्ोज़ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$िकयामतअंगेज़Ó।
$िकयामतख़्ोज़ी (अ़.$फा.स्त्री.)-उथल-पुथल करना, प्रलय ढाना, $िकयामत उठाना।
$िकयामतपिज़ीर (अ़.$फा.वि.)-पड़ाव डाले हुए, बसा हुआ, ठहरा हुआ, मु$कीम।
$िकयास (अ़.पु.)-अनुमान, अटकल, अंदाज़ा; ध्यान, विचार, ख़्ायाल। '$िकयास से बाहरÓ-समझ से बाहर, बेहद।
कियासत (अ़.स्त्री.)-चतुराई, निपुणता, दक्षता, चातुरी, दानाई।
$िकयासन (अ़.$वि.)-अनुमानत:, अंदाज़े से, अटकल से।
$िकयासी (अ़.$वि.)-ख़्ायाली, अटकलपच्चू, अललटप, अटकलवाली बात; $फजऱ्ी, कल्पित।
$िकरअत (अ़.स्त्री.)-अच्छी तरह पढऩा, विशेषत: $कुरान शरी$फ पढऩा। शुद्घ उच्चारण '$िकर्अतÓ है, दे.- Ó$िकर्अतÓ।
किरकिरी (हिं.स्त्री.)-धूल या तिनके का छोटा टुकड़ा; हेठी, अपमान।
किरच (हिं.स्त्री.)-एक प्रकार की पतली तलवार जिसकी नोंक भोंक दी जाती है; छोटा नुकीला टुकड़ा।
$िकरतास (अ़.पु.)-दे.-'$िकर्तासÓ, वही शुद्घ है, का$गज़।
किरदार ($फा.पु.)-दे.-'किर्दारÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
किरन (हिं.स्त्री.)-ज्योति की वह अति सूक्ष्म रेखाएँ जो प्रवाह के रूप में सूर्य, चन्द्र, दीपक आदि प्रज्वलित पदार्थों से निकलकर प्रसारित होती दीख पड़ती हैं, प्रकाश की रेखा, किरण; कलाबत्तू की झालर जो कपड़ों में लगाई जाती है।
$िकरब (अ़.स्त्री.)-'$िकर्बÓ का बहु., पानी की मश्कें।
$िकरमिज़ (अ़.पु.)-दे.-'$िकमिज़Ó, वही उच्चारण शुद्घ है।
$िकरमिज़ी (अ़.पु.)-एक प्रकार का लाल रंग, (वि.)-लाल रंग का। दे.-'$िकर्मिज़ीÓ।
किरा ($फा.अव्य.)-किसे, किसको, (अ.पु.)-किराया, भाड़ा।
$िकराअत (अ़.स्त्री.)-दे.-'$िकर्अतÓ, दोनों शुद्घ हैं।
किराइंद: ($फा.वि.)-किराए पर लेनेवाला, भाड़े पर लेने-वाला।
$िकरान (अ़.पु.)-निकटता, नज़दीकी, समीपता; दो ग्रहों का एक राशि में होना, योग; शुभ संयोग, अच्छे योग। 'साहिबे $िकरानÓ-भाग्यवान्, अच्छे योग में जन्म लेनेवाला। पद.-'साहिबे $िकरानÓ-वह जिसका जन्म शुभ ग्रहों में हुआ हो; भाग्यवान्, सौभाग्यशाली।
$िकरान (अ़.पु.)-'$कर्नÓ का बहु., युग, ज़माने।
$िकरानुस्साÓदैन (अ.पु.)-दो शुभ-ग्रहों का एक राशि में होना, शुभ-योग।
$िकराब (तु.पु.)-तलवार या कटार आदि का नियाम, म्यान, कोष।
$िकराब (अ़.पु.)-निकटता, समीपता, नज़दीकी; नापने का जरीब; (स्त्री.)-'$िकर्ब:Ó का बहु., पानी की मश्कें।
किराम (अ़.पु.)-'करीमÓ का बहु., दयालुजन, कृपालु लोग; दानशील, $फैयाज़ लोग; प्रतिष्ठित लोग, पूज्य लोग।
$िकराम (अ़.पु.)-हलका और महीन पर्दा, चित्रित और नक़्$काशीदार पर्दा।
किराय: (अ़.पु.)-भाड़ा, भाटक, किराया।
किराय:दार (अ.$फा.वि.)-भाड़े पर कोई चीज़ लेकर प्रयोग करनेवाला, किराये के मकान आदि में रहनेवाला।


किराय:दारी (अ़.$फा.स्त्री.)-भाड़े अथवा किराये पर कोई वस्तु प्रयोग करना, किराये के मकान आदि में रहना।
किराय:नाम: ($फा.पु.)-भाड़े अथवा किराये पर कोई वस्तु लेने का इ$कऱारनामा, भाटक-पत्र।
किराया (अ़.पु.)-दे.-'किराय:Ó, वही शुद्घ है।
किरिश्म: ($फा.पु.)-चमत्कार, शाÓबद:, करिश्मा; आश्चर्य, अचम्भा; आँख या भौं का संकेत, सैन-संचालन; हाव-भाव, नाज़ो-अदा, कटाक्ष; जादू, इन्द्रजाल, माया।
किरिश्म:कार ($फा.वि.)-किरिश्म:साज़, जादूगर, मायावी, शोÓबद:बाज़, चमत्कारी, मायावी; हावभाववाला, नाज़ो-अंदाज़वाला।
किरिश्म:कारी ($फा.स्त्री.)-किरिश्म:साज़ी, मायाकर्म, जादू, चमत्कार।
किरिश्म:साज़ ($फा.वि.)-दे.-'किरिश्म:कारÓ।
किरिश्म:साज़ी ($फा.स्त्री.)-दे.-'किरिश्म:कारीÓ।
किरिश्म ($फा.पु.)-दे.-'किरिश्म:Ó।
$िकर्अत (अ़.स्त्री.)-पढऩे का भाव अथवा कर्म, पढ़ाई; $कुरान शरी$फ की शुद्घ उच्चारण के साथ पढ़ाई।
$िकर्तबूस (अ़.पु.)-बहुत बड़ी दैवीय विपदा, बला, कुदरती आपत्ति।
$िकर्तास (अ़.पु.)-का$गज़ात, का$गज़-पत्र।
$िकर्तासे अब्यज़ (अ़.पु.)-श्वेत-पत्र, स$फेद का$गज़, व्हाइट-पेपर।
$िकर्द: (अ़.पु.)-बन्दर की मादा, वानरी, बन्दरिया।
$िकर्द (अ़.पु.)-बन्दर, वानर, कपि, शाखामृग।
किर्द ($फा.पु.)-दे.-'कर्दÓ।
किर्दगार ($फा.पु.)-दे.-'कर्दगारÓ, सृष्टि का रचयिता और कर्ता, विधाता, परमात्मा। शुद्घ उच्चारण 'कर्दगारÓ ही है लेकिन अधिकतर 'किर्दगारÓ ही बोलते हैं। $फारसी और उर्दू के अनेक विद्वानों ने 'किर्दगारÓ को भी शुद्घ उच्चारण माना है।
किर्दार ($फा.पु.)-कार्य, काम; ढंग, शैली; आचरण; चरित्र। 'उजले लिबास देखने भी ही भले लगे, किर्दार उनके शह्र में काले मिले बहुतÓ- माँझी
$िकर्ब: (अ़.पु.)-पानी भरने की मश्क, भस्त्री।
किर्बास (अ़.पु.)-श्वेत वस्त्र, स$फेद कपड़ा; सूती कपड़ा।
किर्म ($फा.पु.)- कीट, कृमि, कीड़ा। यह संस्कृत के शब्द 'कृमिÓ का $फारसी में प्रचलित रूप है।
किर्मक ($फा.पु.)-कीट, कृमिक, छोटा कीड़ा। संस्कृत में 'किर्मिकÓ प्रचलित।
किर्मकुश ($फा.वि.)-कृमिनाशक, कीड़ों को मारनेवाली दवा, कीटनाशक।
किर्मकेशबताब ($फा.पु.)-खद्योत, जुगनू, ज्योतिरिंगण, कीटमणि, ज्योतिर्बीज।
किर्मख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-कीड़ों का खाया हुआ, जिसे कीड़ों ने चाटकर ख़्ाराब कर दिया हो, पुराना, बोसीदा।
किर्मख़्ाुर्दा ($फा.वि.)-दे.-'किर्मख़्ाुर्द:Ó, वही शुद्घ है।
किर्मख़्ाुर्दगी ($फा.स्त्री.)-कीड़ों द्वारा किसी वस्तु को खाना, कीड़ों का किसी चीज़ को खा जाना।
किर्मपील: ($फा.पु.)-रेशम का कीड़ा।
किर्मपीला ($फा.पु.)-दे.-'किर्मपील:Ó, वही शुद्घ है।
किर्मान ($फा.पु.)-ईरान का एक प्रसिद्घ नगर, जहाँ का ज़ीरा और $फर्श प्रसिद्घ हैं।
$िकर्मिज़ (अ़.पु.)-एक प्रकार के छोटे-छोटे लाल कीड़े, जिन्हें सुखाकर उनसे रेशम रँगते हैं।
$िकर्मिज़ी (अ़.वि.)-$िकर्मिज़ के रंग का, रक्तवर्णी, लाल, सुख्ऱ्ा।
किर्मे शबअ$फरोज़ ($फा.पु.)-दे.-'किर्मेशबताबÓ।
किर्मे शबचिराग़ ($फा.पु.)-दे.-'किर्मेशबताबÓ।
किर्मेशबताब ($फा.पु.)-रात में चमकनेवाला एक कीट-विशेष, जुगनू, खद्योत, पटबीजना, कीटमणि, ज्योतिर्बीज, ज्योतिरिंगण।
किर्मेशिकम ($फा.पु.)-पेट के कीड़े, उदर-कृमि।
किर्यास (अ़.पु.)-अटारी, अट्टालिका, बालाख़्ााना; वह शौचालय या स्नानागार, जो अटारी पर बना हो; राजभवन, राज-दरबार।
$िकर्वात (अ़.स्त्री.)-नौका, नाव, किश्ती; हवा भरी हुई मश्क जिस पर बैठकर नदी पार करते हैं।
किलक ($फा.स्त्री.)-अन्दर से पोली लकड़ीे; एक प्रकार का नरसल जिसकी $कलम बनती है, नै, दे.-'किल्कÓ, वही शुद्घ है। (हिं.स्त्री.)-किलकने की क्रिया या भाव, हर्षध्वनि करने की क्रिया; आनन्द-सूचक शब्द, किलकार।
किलकारी (हि.स्त्री.)-हर्षध्वनि, आवाज़ के साथ हँसना।
$िकला (अ़.पु.)-दे.-'$िकलाअ़Ó, वही शुद्घ है।
$िकलाअ़ (अ़.पु.)-'$कल्अ़:Ó का बहु., कोट-समूह, दुर्ग-समूह, $िकले, गढ़।
$िकलाअ़ कुशा (अ़.$फा.वि.)-$िकले जीतनेवाला, गढ़ जीतने वाला।
$िकलाअ़ बंद (अ़.$फा.वि.)-$िकले में शरण लेनेवाला।
$िकलाद: (अ़.पु.)-गले का पट्टा; कुत्ते या ऊँट के गले का पट्टा; गुलूबन्द।
$िकलादा (अ़.पु.)-दे.-'$िकलाद:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
किलाब (अ़.पु.)-'कल्बÓ का बहु., श्वान-समूह, कुत्ते।
$िकलीच (तु.पु.)-तलवार, खड्ग।
किलीद ($फा.स्त्री.)-चाबी, ताली, कुंजी, कुंचिका।
किलीदे कामरानी ($फा.स्त्री.)-सफलता या कामयाबी की कुंजी, सफलता का मूलमंत्र अथवा गुर।
किलीदे $फत्हेबाब (अ़.$फा.स्त्री.)-जिससे कामयाबी हासिल हो, स$फलता का मूलमंत्र अथवा गुर; दरवाज़ा खोलने की चाबी।
किलीदे बिहिश्त ($फा.स्त्री.)-स्वर्ग की चाबी, देवलोक की कुंजी; नेककर्म, पुण्यकर्म।
किलीसा ($फा.पु.)-ईसाइयों का गिरजा, चर्च।
किलीसाई ($फा.वि.)-ईसाई, ईसा-मत को माननेवाला।
$िकलेदार ($फा.पु.)-दुर्गपति, गढ़पति, $िकले का नायक।
किलेसा ($फा.पु.)-दे.-'किलीसाÓ, दोनों शुद्घ हैं।
किल्क ($फा.स्त्री.)-अन्दर से पोली लकड़ीे; नै, नरसल, नरकट, नरकुल; एक विशेष नरकट की बनी हुई $कलम; $कलम, लेखनी।
$िकल्यान ($फा.पु.)- हुक्का, चिलम पीने की गुडग़ुड़ी। दे.- '$कल्यानÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$िकल्लत (अ़.स्त्री.)-कम होने का भाव, अभाव, कमी, न्यूनता, नायाबी; कठिनता, दिक़्$कत।
$िकल्लते आब (अ़.$फा.स्त्री.)-जलाभाव, पानी की कमी, जल-संकट।
$िकल्लते गिज़़ा (अ़.स्त्री.)-खाद्याभाव, खाने की कमी, भोजन की दिक़्$कत।
$िकल्लते बाराँ (अ़.$फा.स्त्री.)-वर्षाभाव, बरसात की कमी, $कहतसाली, दुर्भिक्ष, अकाल।
किल्लतो कस्रत (अ़.पु.)-न्यूनाधिक्य, कमी-बेशी, न्यूनता और अधिकता।
किल्स (अ़.पु.)-चूना।
$िकवाम (अ़.पु.)-शीरा, चाशनी, पक्वस्वरस; शहद के समान गाढ़ा किया हुआ अवलेह; क्रम, तर्तीब, निज़ाम।
किवेर ($फा.पु.)-समतल भूमि; बिना पानी की भूमि; सराब, मरीचिका, मृगतृष्णा।
किशमिश ($फा.स्त्री.)-दे.-'किश्मिशÓ, वही उच्चारण शुद्घ है।
किशमिशी ($फा.वि.)-दे.-'किश्मिशीÓ, वही शुद्घ है।
किशवर ($फा.स्त्री.)-दे.-'किश्वरÓ, वही शुद्घ है।
किशावजऱ् ($फा.वि.)-किसान, कृषक। दे.-'कशावजऱ्Ó, दोनों शुद्घ हैं।
किशावजऱ्ी ($फा.स्त्री.)-किसानी, कृषिकर्म, खेती। दे.- 'कशावजऱ्ीÓ, दोनों शुद्घ हैं।
किशिक (तु.पु.)-रखवाली, पहरा, चौकसी, निगहबानी।
किशिकची (तु.पु.)-रखवाली करनेवाला, चौकसी रखने-वाला, पहरेदार, चौकीदार।
किशिकदार (तु.$फा.पु.)-दे.-'किशिकचीÓ।
किश्त: ($फा.पु.)-कस्तूरी, केसर और लोबान आदि का मिश्रण जिसे गुलाब में घिसकर टिकिया बना लेते हैं और सुलगाते हैं; शफ़्तालू और जर्दालू आदि जिनके बीज निकाल कर गूदा सुखा लेते हैं।
किश्त ($फा.स्त्री.)-कृषि, खेती; शतरंज की 'शहÓ, बादशाह का किसी मोहरे की घात में पडऩा।
किश्तकार ($फा.वि.)-किसान, कृषक, काश्तकार।
किश्तकारी ($फा.स्त्री.)-किसानी, कृषिकर्म, काश्तकारी।
किश्तज़ार ($फा.पु.)-वह स्थान, जहाँ बोये हुए खेत ही खेत हों, सब्ज़:ज़ार।
किश्ती ($फा.स्त्री.)-शुद्घ उच्चारण 'कश्तीÓ है मगर यह भी प्रचलित है। नाव, नौका; एक प्रकार की थाली; शराब पीने की एक प्रकार की प्याली; सिर में तेल डालने की प्याली; छोटी अलमारी, रैक; भीख माँगने का कटोरा या प्याला। 'कौन किश्ती में आ गया माँझी, मन ये फूला नहीं समाता हैÓ- माँझी
किश्तीवान ($फा.पु.)-कश्तीवान, माँझी, मल्लाह, नाविक, नाख़्ाुदा।
किश्ते ज़ाÓ$फरान (अ़.$फा.स्त्री.)-ऐसा स्थान, जहाँ केसर के खेत हों; वह स्थान, जहाँ मन में आनन्द और उल्लास उत्पन्न हो।
किश्न (अ़.पु.)-छाल; छिलका; भूसी।
$िकश्$फ (अ़.वि.)-दूषित, विकृत, जिसका रंग-रूप विकृत हो गया हो अथवा बिगड़ गया हो।
किश्मिश ($फा.स्त्री.)-मुनक़्क़े की जाति का सूखा हुआ छोटा अंगूर, जिसमें बीज नहीं होते, अवीजा, छोटी दाख।
किश्मिशी ($फा.वि.)-किश्मिश-जैसे रंग का, हलका हरा; किश्मिश का; जिसमें किश्मिश मिली हो।
$िकश्र (अ़.पु.)-छिलका, छाल।
$िकश्ला$क (तु.पु.)-वह गरम स्थान, जहाँ सर्दियाँ गुज़ारी जाएँ।
किश्वर ($फा.स्त्री.)-वतन, देश, मुल्क; राष्ट्र, राज, सल्तनत; महाद्वीप, बर्रेआÓज़म। दे.-'कश्वरÓ, दोनों शुद्घ हैं।
किश्वरकुशा ($फा.वि.) विश्वविजयी, दिग्विजयी, जहाँगीर।
किश्वरसिताँ ($फा.वि.)-दे.-'किश्वरकुशाÓ।
किश्वर सितानी ($फा.स्त्री.)-राष्ट्र विजय करना, देश जीतना।
किस (हिं.सर्व.)-'कौनÓ और 'क्याÓ का वह रूप जो उन्हें विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है। जब इस शब्द के अन्त में निश्चयार्थक 'हीÓ लगता है तब उसका रूप 'किसीÓ हो जाता है।
किसबत (अ़.स्त्री.)-दे.-'किस्बतÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
किसरा ($फा.पु.)-दे.-'किस्राÓ, वही शुद्घ उच्चारण है।
$िकसस (अ़.पु.)-'$िकस्स:Ó का बहु., अनेक $िकस्से, कहानियाँ, वृतान्त-समूह, $िकस्से-कहानियाँ।
$िकसास (अ़.पु.)-प्रतिहिंसा, ख़्ाून के बदले ख़्ाून, हत्या के बदले हत्या।
किसी (हिं.वि.सर्व.)-'कोईÓ का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है। 'किसी न किसीÓ-एक-न-एक, कोई-न-कोई।
$िकस्अ़: (अ़.पु.)-बड़ा प्याला।
$िकस्त (अ़.स्त्री.)-भाग, अंश, हिस्सा; खण्ड, टुकड़ा; न्याय, इंसा$फ; अदायगी का एक जुज़ या हिस्सा; कई बार करके ऋण वापस करने अथवा चुकाने का एक ढंग; किसी ऋण या देय का वह भाग, जो निश्चित समय पर दिया जाए; किसी काम के टुकड़े, जिनको करने का समय निश्चित हो।
$िकस्तबंदी (अ़.$फा.स्त्री.)-थोड़ा-थोड़ा करके कई बार में रुपया देने का तरी$का, $िकस्त निश्चित करना, अदायगी के लिए $िकस्तों का निर्धारण।
$िकस्तवार (अ़.$फा.क्रि.वि.)-$िकस्त के अनुसार, कि़स्त के ढंग से, $िकस्तों में; प्रत्येक $िकस्त पर।
$िकस्तास (अ़.स्त्री.)-बड़ी तराज़ू।
किस्बत (अ़.स्त्री.)-लिबास, पोशाक, पहनने के कपड़ेे; वह थैली, जिसमें हज्जाम उस्तरे और कैंची आदि रखता है। दे.-'किस्वतÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
$िकस्म (अ़.स्त्री.)-ढंग, वज़ा, चाल; भाँति, तरह, प्रकार; जाति, श्रेणि, वर्ग, नौअ़।
$िकस्मत (अ़.स्त्री.)-भाग्य, नसीब, प्रारब्ध, त$कदीर, अदृष्ट; भाग, तक़्सीम, विभाजन, बँटवारा; कमिश्नरी, जिसमें कई जि़ले हों; सूबा, अहाता। मुहा.-'$िकस्मत आज़मानाÓ-किसी कार्य को हाथ में लेकर देखना कि उसमें सफलता होती है कि नहीं। '$िकस्मत चमकना या जागनाÓ-भाग्य प्रबल होना, बहुत भाग्यवान् होना। '$िकस्मत फूटनाÓ-भग्य बहुत मन्द हो जाना।
कि़स्मत आज़्मा (अ़.$फा.वि.)-भाग्य-परीक्षक, भाग्य की परीक्षा करनेवाला, किसी कठिन काम का बीड़ा उठानेवाला, कोई कड़ी परीक्षा देनेवाला।
$िकस्मत आज़्माई (अ़.$फा.स्त्री.)-भाग्य-परीक्षण, कि़स्मत की परीक्षा, किसी कठिन काम का साहस, किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी।
$िकस्मतवर (अ़.$फा.वि.)-भाग्यवान्, भाग्यशाली, अच्छी $िकस्मतवाला, ख़्ाुशनसीब।
$िकस्मतवरी (अ़.$फा.स्त्री.)-भाग्यशीलता, ख़्ाुशनसीबी, ख़्ाुश$िकस्मती, सौभाग्य।
किस्रा (अ़.पु.)-ईरान के शासकों की उपाधि; नौशेरवाँ की उपाधि।
किस्वत (अ़.स्त्री.)-पहनने के कपड़े, वसन, वस्त्र, लिबास; वह थैली अथवा पेटी, जिसमें हज्जाम अपने उस्तरा-कैंची आदि रखता है, नाई की पेटी, नापित-पेटिका।
$िकस्स: (अ़.पु.)-आख्यान, कहानी, कथा; उपन्यास; वृत्तान्त, समाचार, हाल, बयान, वर्णन; घटना, वा$िकअ़: (वा$िकया); मस्अ़ल:, समस्या; झगड़ा, कलह। मुहा.- '$िकस्सा अपने सर मोल लेनाÓ-बखेड़े में पडऩा। '$िकस्सा आख़्िार होनाÓ-झगड़ा ख़्ात्म होना। '$िकस्सा उठनाÓ-झगड़ा खड़ा होना। '$िकस्सा कोताह करनाÓ -झगड़ा तय करना, झंझट निबटाना।
किस्स:कोताह (अ़.$फा.अव्य.)-किं बहुना, साराँश यह कि, मतलब यह कि, यानी कि, अर्थात्, तात्पर्य यह है कि।
$िकस्स:ख़्वाँ (अ़.$फा.वि.)-दे.-'$िकस्स:गोÓ।
$िकस्स:ख़्वानी (अ़.$फा.स्त्री.)-$िकस्सा सुनाना, कहानी कहना।
$िकस्स:गो (अ़.$फा.वि.)-कथा या कहानियाँ सुनाने अथवा कहनेवाला, दास्ताँ गो। (जब तक देश में इलेक्ट्रिक क्रान्ति नहीं हुई थी और मनोरंजन के बहुत ही सीमित साधन थे, तब $िकस्से कहनेवालों की एक बड़ी संख्या पूरे देश में फैली हुई थी और वह कल्पित कहानियाँ सुना-सुनाकर अपना जीवन-निर्वाह करती थी)।
$िकस्स:मुख़्तसर (अ़.अव्य.)-दे.-'$िकस्स:कोताहÓ।
$िकस्सा (अ़.पु.)-दे.-'$िकस्स:Ó, वही शुद्घ उच्चारण है।
$िकस्सीस (अ़.पु.)-ईसाइयों का धर्मगुरु, पादरी, राहिब।
किहीं ($फा.वि.)-बहुत छोटा, अति क्षुद्र।
किहीन: ($फा.वि.)-छोटा, क्षुद; आयु में छोटा, अल्पव्यस्क।
$िकह्$फ (अ़.पु.)-कपाल, खोपड़ी, सिर का हड्डियों का ढाँचा।
   

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