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$फंजनोश ($फा.पु.)-लोहे का मैल, मंडूर, ख़्ाुब्सुल हदीद।$फंद (अ.पु.)-मक्र, $फरेब, छल, कपट।
$फअ्अ़ाल (अ.वि.)-अत्यधिक काम करनेवाला।
$फ$क (अ.वि.)-चेहरे की रंगत का विकार, चेहरे का रंग उडऩा।
$फक [क्क] (अ.पु.)-दो मिली हुई चीज़ों को अलग-अलग करना; छुटकारा; मोचन, छूटना; कल्ला, जबड़ा।
$फ$कत (अ.वि.)-केवल, सि$र्फ; बस, ख़्ात्म, समाप्त; इतिश्री।
$फ$कद (अ.पु.)-गुम करना, खो देना।
$फकाक ($फा.पु.)-$छुटकारा मिलना; कैद से छूटना; रेहन रखी हुई वस्तु का छूटना।
फ़$कार (अ.पु.)-'$िफक्ऱ:Ó का बहु., पीठ के गुरिए।
फ़$काह (अ.स्त्री.)-समझदारी, दानाई, मेधा, बुद्घिमत्ता।
$फ$काहत (अ.स्त्री.)-मनीषा, मेधा, अक़्लमंदी, बुद्घिमत्ता।
$फ$कीअ़ (अ.स्त्री.)-यविरा, जौ की शराब।
$फ$कीद (अ.वि.)-नायाब, दुर्लभ, अप्राप्य।
$फ$कीदुन्नज़ीर (अ.वि.)-अद्वितीय, अनुपम, लाजवाब, जिसके समान दूसरा न हो, नायाब।
$फ$कीदुलमिसाल (अ.वि.)-दे.-'$फ$कीदुन्नज़ीरÓ।
$फ$कीदुलमिस्ल (अ.वि.)-दे.-'$फ$कीदुन्नज़ीरÓ।
$फ$कीर (अ.वि.)-दरवेश, संन्यासी, साधु; भिक्षुक, भिखमंगा, भिखारी; आसक्त, अ़ाशि$क। (विशेष-नम्रता प्रर्दशित करने के लिए वक्ता अपने लिए भी इस शब्द का उच्चारण करता है)।
$फ$कीरदोस्त (अ.$फा.वि.)-संन्यासियों और $फ$कीरों को श्रद्घा की दृष्टि से देखनेवाला, साधु-सन्तों में भाव रखनेवाला।
$फ$कीरमनिश (अ.$फा.वि.)-साधु-सन्तों-जैसे सीधे-सादे आचार-व्यवहारवाला, दरवेशों-$फ$कीरों-जैसे सरल और सीधे आचरणवाला।
$फ$कीरान: (अ.$फा.वि.)-दरवेशों-$फ$कीरों और साधु-सन्तों-जैसा।
$फ$कीरी (अ.स्त्री.)-दरवेशी, साधुता; मँगताई, भिखमंगापन।
$फ$कीह (अ.वि.)-धर्मशास्त्र का विद्वान्, मुस्लिम धर्मशास्त्र को पूर्णरूपेण जाननेवाला।
$फ$कीहाँ (अ.$फा.पु.)-'$फ$कीहÓ का बहु., $फ$कीह लोग, धर्मशास्त्र के विद्वान् लोग।
$फकै$फ (अ.अव्य.)-क्योंकर।
$फक््अ़ (अ.पु.)-आँख फोडऩा, आँख को हानि पहुँचाना।
$फक्कुर्रह्न (अ.पु.)-रेहन से किसी चीज़ का छूटना, बंधक-मोचन, छुटकारा मिलना।
$फक्के अस्$फल (अ.पु.)-नीवे का जबड़ा।
$फक्के आÓला (अ.पु.)-ऊपर का जबड़ा।
$फक्के रह्न (अ.पु.)-रेहन से छुटकारा मिलना, बंधक-मोचन।
$फक़्म (अ.पु.)-मुँह; दहाना; ठोड़ी।
$फक्ऱ (अ.पु.)-साधुता, दरवेशी; दरिद्रता, कंगाली।
$फख़्ाामत (अ.स्त्री.)-मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, इज़्ज़त; श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; आदर, $कद्र; मोटापन।
$फख़्िाज़ (अ.स्त्री.)-जाँघ, रान।
$फख़्ाीख़्ा (अ.पु.)-खर्राटे लेना।
$फख़्ाीम (अ.वि.)-प्रतिष्ठावान्, इज़्ज़तदार, ज़ी इज़्ज़त।
$फख़्ाीर (अ.पु.)-अंकुश, एड़ लगानेवाला काँटा।
$फख़्ाूर (अ.पु.)-गर्व करनेवाला, घमण्डी।
$फख़्ख़्ा (अ.पु.)-शिकारी; जाल।
$फख़्ख़्ाार (अ.पु.)-कस्गर; कुम्हार; पकी हुई गिट्टी।
$फख्ज़़ (अ.स्त्री.)-जाँघ, रान। दे.-'$फख़्िाज़Ó, दोनों शुद्घ हैं।
$फख़्त (अ.पु.)-चाँद की रौशनी, चाँदनी; छत में गोल छेद।
$फख़्$फर ($फा.पु.)-$गल्ला, अन्न; जौ या गेहूँ की भूसी।
$फख़्मीद: ($फा.स्त्री.)-ओटी हुई कपास।
$फख़्मीदन ($फा.पु.)-कपास ओटना।
$फख्ऱ (अ.पु.)-गर्व, गौरव, नाज़; अभिमान, अहंकार, घमण्ड; शेखी, डींग।
$फख्ऱआमेज़ (अ.$फा.वि.)-गर्वपूण, गौरवपूर्ण।
$फख्रऩ (अ.अव्य.)-गर्व-सहित, घमण्ड-पूर्वक।
$फख्रिय़: (अ.अव्य.)-गर्व के रूप में, घमण्ड से।
$फख्ऱी (अ.वि.)-एक $िकस्म का अंगूर; शाह $फख़्ा्रुद्दीन के सिलसिले का मुरीद।
$फख्ऱे $कौम (अ.पु.)-वह व्यक्ति जिस पर देश को नाज़ हो।
$फख्ऱे ख़्ाानदान (अ.$फा.पु.)-कुलभूषण, ऐसा व्यक्ति जिससे कुल अथवा वंश की मर्यादा बढ़े।
$फख्ऱे मिल्लत (अ.पु.)-दे.-'$फख्ऱे $कौमÓ।
$फख्ऱे मुल्क (अ.पु.)-ऐसा व्यक्ति जिस पर देश को गर्व हो।
$फख्ऱे वतन (अ.पु.)-दे.-'$फख्ऱे मुल्कÓ।
$फ$ग ($फा.पु.)-प्रतिमा, मूर्ति, बुत।
$फग़्$फूर (अ.पु.)-वीन के प्राचीन शासकों की उपाधि।
$फज [ज्ज] (अ.पु.)-दो पहाड़ों के बीच का चौड़ा रास्ता।
$फजअ़त (अ.पु.)-दर्दमंदी, मुसीबत।
$फजर: (अ.पु.)-'$फाजिरÓ का बहु., ऐसे लोग जो अपने पथ से भ्रष्ट हो गए हो, कदाचारी लोग, व्यभिचारी लोग, पर-स्त्रीगामी लोग, बदचलन लोग।
$फज़ाÓ (अ.पु.)-भय, त्रास, डर।
$फज़ा (अ.स्त्री.)-वातावरण, माहौल; खुला मैदान; खुली हुई हरियाली जगह; शोभा, रौन$क, बहार।
$फज़ाअ़त (अ.स्त्री.)-आपत्ति, विपदा, मुसीबत; पीड़ा, वेदना, दर्द। दे.-'$फज़ीअ़तÓ, शुद्घ उच्चारण वही है।
$फज़ाइल (अ.पु.)-'$फज़ीलतÓ का बहु., अच्छाइयाँ, ख़्ाूबियाँ।
$फज़ाई (अ.वि.)-वातावरण अथवा $फज़ा से सम्बन्धित।
$फज़ाए चख्ऱ्ा (अ.$फा.स्त्री.)-अंतरिक्ष, शून्य, वह ख़ाली स्थान जो पृथ्वी और आकाश के बीच में है।
$फज़ाए ज़ह्र आलूद (अ.$फा.स्त्री.)-ज़हरीला माहौल, दूषित अथवा प्रदूषित वातावरण।
$फज़ाज़ (अ.स्त्री.)-कठोरता, दुसाध्यता।
$फज़ालिक (अ.स्त्री.)-गणित का कुल योग, जोड़, जमा, कुल।
$फज़ाहत (अ.स्त्री.)-दे.-'$फज़ीहतÓ।
$फज़ीअ़ (अ.स्त्री.)-बहुत बुरी बात।
$फजीअ़त (अ.स्त्री.)-वेदना, पीड़ा, दर्द; आपत्ति, विपदा, मुसीबत।
$फज़ीज़ (अ.स्त्री.)-शुक्राणु, वीर्य।
$फज़ीलत (अ.स्त्री.)-सम्मान, प्रतिष्ठता, श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; तर्जीह, प्रधानता, प्रमुखता।
$फज़ीलतमअ़ाब (अ.वि.)-प्रतिष्ठावान्।
$फज़ीह (अ.वि.)-निन्दित, रुस्वा; अपमानित, अनादृत, ज़लील।
$फज़ीहत (अ.स्त्री.)-निन्दा, अपयश, रुस्वाई; अपमान, जि़ल्लत।
$फजूर (अ.वि.)-लम्पट, व्यभिचारी, हरामकार; दुराचारी, कदाचारी, बदआÓमाल; पर-स्त्रीगामी।
$फज़्ज़ (अ.वि.)-बदमिज़ाज, कुस्वभाव; बदज़बान।
$फज्जार (अ.वि.)-अत्यन्त लम्पट, बहुत अधिक दुराचारी।
$फज्र (अ.स्त्री.)-भोर, सवेरा, प्रात:काल; सवेरे की नमाज़।
$फज्री (अ.वि.)-एक प्रकार का $कलमी आम।
$फज़्ल (अ.पु.)-अनुकम्पा, कृपा, दया, मेह्रबानी; प्रतिष्ठा, श्रेष्ठता, बुज़ुर्गी; विद्वता, $फज़ीलत।
$फज़्ले इलाही (अ.पु.)-दैवी अनुकम्पा, ईश्वर की कृपा।
$फज़्ले ख़्ाुदा (अ.$फा.पु.)-दैवी अनुकम्पा, ईश्वर की कृपा।
$फज़्ले मौला (अ.पु.)-दे.-'$फज़्ले ख़्ाुदाÓ, $फ$कीरों की दुअ़ा, जिसका अर्थ है-'तुम पर ईश्वर का साया होÓ।
$फज़्ले रब्बी (अ.पु.)-दे.-'$फज़्ले ख़्ाुदाÓ।
$फज़्ले ह$क (अ.पु.)-दे.-'$फज़्ले ख़्ाुदाÓ।
$फज़्ह (अ.स्त्री.)-$फज़ीहत, निन्दा, रुस्वाई।
$फता (अ.पु.)-युवा, युवक, तरुण, जवान मर्द।
$फतात (अ.स्त्री.)-युवती, तरुणी, नवला, जवान स्त्री।
$फतानत (अ.स्त्री.)-मेधा, अक़्लमंदी, समझदारी, बुद्घिमत्ता।
$फतारीदन (अ.पु.)-फाडऩा; अलग करना, पृथक् करना।
$फतिन (अ.वि.)-प्रतिभाशाली, ज़हीन; बुद्घिमान्, मेधावी, अक़्लमंद; चतुर, होशियार, समझदार।
$फतीन (अ.वि.)-प्रतिभाशाली, प्रतिभावान्, तब्बाअ़, ज़हीन; बुद्घिमान्, मेधावी, अक़्लमंद; वतुर, होशियार, समझदार।
$फतीम (अ.पु.)-दूध छूटा हुआ बच्चा।
$फतीय: (अ.स्त्री.)-युवती, युवा स्त्री, तरुणी, जवान औरत।
$फतीर (अ.वि.)-ख़्ामीर का विपरीत, पतला गुँधा हुआ आटा जिसकी रोटी अथवा चपाती पकती है।
$फतीरी (अ.स्त्री.)-ताज़ा गुँधे हुए आटे की रोटी अथवा चपाती।
$फतील: (अ.पु.)-दीपक अथवा चिरा$ग की बत्ती; भूत-प्रेत और जिन्न आदि उतारनेवालों की बत्ती, जिसे वे चिरा$ग में जलाकर प्रेत-बाधाग्रस्त को दिखाते हैं।
$फतीलसोज़ (अ.$फा.पु.)-चौमुखा दीवट।
$फतूदन (अ.पु.)-विलम्ब करना, ढील देना, देर करना।
$फत्$क (अ.पु.)-अंत्रवृद्घि, आँत उतरने का रोग।
$फत्ताँ (अ.वि.)-उपद्रव करनेवाला, $िफत्न: पैदा करनेवाला।
$फत्ताह (अ.वि.)-खोलनेवाला; ईश्वर, परमात्मा।
$फत्न (अ.पु.)-लुभाना, आकर्षित करना।
$फत्ल (अ.पु.)-बँटना, मरोडऩा।
$फत्वा (अ.पु.)-किसी धार्मिक विषय में मुफ़्ती अथवा धर्म-शास्त्रवेत्ता का लिखित आदेश, धर्मादेश, व्यवस्था।
$फत्श (अ.पु.)-ढूँढऩा, तलाश करना, खोजना।
$फत्ह: (अ.पु.)-उर्दू में 'अÓ की मात्रा, ज़बर।
$फत्ह (अ.स्त्री.)-जीत, जय, विजय; सफलता, कामयाबी।
$फत्हनाम: (अ.$फा.पु.)-किसी विजय अथवा सफलता के सुअवसर पर लिखा जानेवाला लेख (विशेष-यह गद्य अथवा पद्य किसी में भी हो सकता है), विजय-गीत, विजय-लेख।
$फत्हमंद (अ.$फा.वि.)-विजेता, विजय-प्राप्त।
$फत्हमनार (अ.पु.)-विजय-स्तम्भ, वह स्तूप या स्तम्भ जो किसी जीत की निशानी के रूप में बनाया जाए।
$फत्हयाब (अ.$फा.वि.)-विजेता, जो जीता हो, जिसने विजय प्राप्त की हो।
$फत्हयाबी (अ.$फा.स्त्री.)-जीतना, विजय हासिल करना।
$फत्हे मुबीन (अ.स्त्री.)-खुली हुई और स्पष्ट जीत।
$फत्होज़$फर (अ.स्त्री.)-जीत, विजय।
$फत्होशिकस्त (अ.$फा.स्त्री.)-विजय और पराजय, जीत और हार।
$फदक (अ.पु.)-एक गाँव जिसमें हज्ऱत मुहम्मद साहब का खजूरों का बा$ग था।
$फदामत (अ.स्त्री.)-अन्याय, अनीति, ज़ुल्म; उद्दण्डता, अक्खड़पन।
$फन (अ.पु.)-कला, आर्ट; हस्तशिल्प, दस्तकारी; छल, $फरेब; बाज़ीगरी, इन्द्रजाल; गुण, हुनर; विद्या की कोई शाखा, जैसे-'तिब का $फनÓ अर्थात् चिकित्साशास्त्र।
$फनकार (अ.$फा.पु.)-कलाकार, कलावान्, किसी कला-विशेष का जानकार।
$फनकारान: (अ.$फा.अव्य.)-कलापूर्ण।
$फनकारी (अ.$फा.स्त्री.)-कलाकारी।
$फनदाँ (अ.$फा.वि.)-कला-मर्मज्ञ, कलाविद्, कला-निपुण, कला को जाननेवाला।
$फनदानी (अ.$फा.स्त्री.)-कला-मर्मज्ञता, कला जानना, कला का मर्म जानना।
$फना (अ.स्त्री.)-नष्ट, बरबाद; मरण, मौत, मृत्यु; लुप्त, $गाइब।
$फनाअंजाम (अ.$फा.वि.)-जिसका परिणाम मृत्यु हो।
$फनाआमाद: (अ.$फा.वि.)-नाशोन्मुख, जो विनाश की ओर अग्रसर हो, जो नष्ट होने के लिए तैयार हो।
$फनाईयत (अ.स्त्री.)-विलीन हो जाना, आत्मसात् हो जाना, $फना हो जाना।
$फनापिज़ीर (अ.$फा.वि.)-जिसे अन्त में मरना हो, जिसे अन्त में नष्ट होना हो, मरणधर्मा।
$फना$िफल्लाह (अ.वि.)-ब्रह्मïलीन, वह जो ईश्वर में लीन हो गया हो।
$फना$िफशशैख़्ा (अ.वि.)-जो अपने पीर में लीन हो।
$फने $फरेब (अ.पु.)-मक्कारी, दुष्टता, चतुराई।
$फन्नी (अ.वि.)-किसी $फन अथवा कला से सम्बन्धित।
$फन्ने किताबत (अ.पु.)-लिपि-कला, कॉपी-नवीसी की कला।
$फन्ने जर्राही (अ.पु.)-चीरफाड़ अर्थात् शल्य-चिकित्सा की कला।
$फन्ने ताÓमीर (अ.पु.)-वास्तु-कला, वास्तु-विद्या।
$फन्ने तीरंदाज़ी (अ.$फा.पु.)-धनुर्विधा, धनुर्वेद।
$फन्ने मुसव्विरी (अ.पु.)-वित्रकला, चित्र-विद्या।
$फन्ने मूसी$की (अ.पु.)-संगीत-कला, गानकला, संगीत-विद्या, गान-विद्या।
$फन्ने लती$फ (अ.पु.)-ललित-कला, सत्कला।
$फबिहा (अ.अव्य.)-उचित, ठीक, ख़्ाूब, बढिय़ा।
$फम (अ.पु.)-मुख, मुँह, दहाना।
$फमे मेÓद: (अ.पु.)-आमाशय का मुँह या द्वार।
$फमे रहिम (अ.पु.)-गर्भाशय का मुँह।
$फय्याज़ (अ.पु.)-दे.-'$फैयाज़Ó।
$फरंग ($फा.पु.)-दे.-'$फरंगिस्तानÓ।
$फरंगिस्तान ($फा.पु.)-$फरंगियों अर्थात् अंग्रेज़ों का देश, इंगलैंड।
$फरंगी ($फा.पु.)-$फरंगिस्तान अर्थात् इंगलँंड का निवासी, अंग्रेज़।
$फर ($फा.स्त्री.)-वैभव, शानो-शौकत, रौबदाब, तड़क-भड़क; ज्योति, प्रकाश, चमक; अक्स, प्रतिबिम्ब।
$फरज: (अ.पु.)-दशा का उन्नतिशील होना, दरिद्रता और तंगी से छुटकारा पाना।
$फरज (अ.स्त्री.)-आसानी, सुगमता; आराम, सुख, चैन।
$फर$फर: ($फा.स्त्री.)-फिरकी।
$फर$फर ($फा.अव्य.)-जल्दी-जल्दी।
$फरस (अ.पु.)-घोड़ा, अश्व।
$फरह (अ.पु.)-हर्ष, आनन्द, ख़्ाुशी, $फर्हत।
$फरहबख़्श (अ.$फा.वि.)-आनन्द देनेवाला, ख़्ाुशी देनेवाला, आनन्ददायक, प्रसन्नता देनेवाला।
$फरहमंद (अ.$फा.वि.)-आनन्दित, हर्षित, ख़्ाुश, प्रसन्न।
$फरा (अ.$फा.अव्य.)-आगे, पहले; निकट, $करीब।
$फराइज़ (अ.पु.)-'$फरीज़:Ó का बहु., कर्तव्य।
$फराइज़े $कौमी (अ.पु.)-वह कर्तव्य जो राष्ट्र की ओर से आवश्यक हों।
$फराइज़े पंचगान: (अ.पु.)-पाँचों वक़्त की नमाज़।
$फराइज़े मेंसबी (अ.पु.)-वह कर्तव्य जो नौकरी के लिए ज़रूरी हों; वह कर्तव्य जो मानवता के नाते लाजि़मी हों।
$फराइज़े मिल्ली (अ.पु.)-दे.-'$फराइज़े $कौमीÓ।
$फराइज़े मुल्की (अ.पु.)-वह कर्तव्य जो एक देशवासी के लिए अनिवार्य हैं।
$फराइद (अ.पु.)-'$फरीद:Ó का बहु., अकेले लोग; अद्वितीय वस्तुएँ।
$फराइन: (अ.पु.)-'$िफअऱ्ौनÓ का बहु., मिस्र के प्राचीन शासक जिनके शव अह्राम में मिलते हैं।
$फराख़ ($फा.वि.)-विस्तृत, वसीअ़, चौड़ा-चकला।
$फराख़्ाअब्रू ($फा.वि.)-ख़्ाुशमिज़ाज, हँसमुख, जि़न्द:दिल।
$फराख़्ाआस्तीं ($फा.वि.)-दानी, सखी, मुक्तहस्त, जिसका हाथ बहुत खुला हो।
$फराख़्ाचश्म ($फा.वि.)-दिल खोलकर खाने-पीनेवाला, ख़्ाूब ख़र्च करनेवाला।
$फराख़्ाचश्मी ($फा.स्त्री.)-ख़्ाूब ख़्ार्च करना।
$फराख़्ादस्त ($फा.वि.)-ख़्ाूब लेने-देनेवाला, धन-सम्पन्न, दौलतमंद।
$फराख़्ादिल ($फा.वि.)-दे.-'$फराख़्ाचश्मÓ।
$फराख़पेशानी ($फा.वि.)-चौड़े माथेवाला, भाग्यवान्; हँसमुख, शीलवान्।
$फराख़्ारवी ($फा.स्त्री.)-दानशीलता; $िफज़ूलख़्ार्ची।
$फराख़्ासीन: ($फा.वि.)-चौड़े सीनेवाला, बहादुर।
$फराख़्ा हौसल: (अ.$फा.वि.)-बड़े हौसलेवाला, उच्चोत्साही।
$फराख़्ाहौसलगी (अ.$फा.स्त्री.)-उत्साह अधिक होना, हिम्मत बड़ी होना।
$फराख़्ाी ($फा.स्त्री.)-विस्तार, फैलाव, कुशादगी।
$फराख़्ाुर ($फा.पु.)-योग्य, पात्र, लाइ$क।
$फराख़्ाुरी ($फा.स्त्री.)-योग्यता, पात्रता।
$फराख़्त ($फा.पु.)-बुलन्द किया हुआ।
$फरा$ग (अ.पु.)-दे.-'$फरा$गतÓ।
$फरा$गत (अ.स्त्री.)-छुटकारा, मुक्ति, निजात; अवकाश, छुट्टी, $फुर्सत; संतोष, इत्मीनान; सुख, आराम; समृद्घि, दौलतमंदी।
$फरा$गबाल (अ.$फा.वि.)-सुख-संतोष के साथ अपना जीवन जीनेवाला व्यक्ति।
$फरा$गबाली (अ.$फा.वि.)-सुख और बे$िफक्री से जीवन गुज़ारना।
$फरा$गे कुल्ली (अ.पु.)-पूर्ण संतोष, पूरा इत्मीनान।
$फरा$गे ख़्ाातिर (अ.पु.)-चित्त की एकाग्रता, मन का संतोष।
$फरा$गे दिल (अ.$फा.पु.)-दे.-'$फरा$गे ख़्ाातिरÓ।
$फरा$गे बातिन (अ.पु.)-दे.-'$फरा$गे ख़्ाातिरÓ।
$फराज़ ($फा.पु.)-ऊँचाई, बुलन्दी।
$फराजि़ंद: ($फा.वि.)-उन्नायक, ऊँचा करनेवाला, ऊपर उठानेवाला।
$फराज़ोनिशेब ($फा.पु.)-ऊँच-नीच, उतार-चढ़ाव।
$फरादीस (अ.पु.)-'$िफर्दौसÓ का बहु., स्वर्ग-समूह, अनेक स्वर्ग।
$फरामीन ($फा.पु.)-'$फर्मानÓ का बहु., राजादेश।
$फरामुश ($फा.वि.)-'$फरामोशÓ का लघु., दे.-'$फरामोशÓ, भूला हुआ, विस्मृत।
$फरामुशी ($फा.स्त्री.)-'$फरामोशीÓ का लघु:, दे.-'$फरामोशीÓ, भूल।
$फरामोश ($फा.वि.)-विस्मृत, भूला हुआ, (प्रत्य.)-कोई बात अथवा कार्य भूल जानेवाला, जैसे-'वाद:$फरामोशÓ-वचन देकर भूल जानेवाला।
$फरामोशकार ($फा.वि.)-बहुत भूलनेवाला, भुलक्कड़।
$फरामोशकारी ($फा.स्त्री.)-बहुत भूलना।
$फरामोशी ($फा.स्त्री.)-भूल, विस्मृति, भूलने का भाव।
$फरामोशीदन ($फा.पु.)-भूलना, चूकना।
$फरार ($फा.पु.)-भागना, पलायन करना; छिप जाना, रूपोशी। दे.-'$िफरारÓ, शुद्घ उच्चारण वही है मगर उर्दू में '$फरारÓ ही प्रचलित है।
$फराश (अ.पु.)-पतंगा, शलभ, फतिंगा, पर्वाना।
$फराशी सलाम (अ.पु.)-वह सलाम जो बहुत झुककर किया जाए।
$फरासिख़्ा (अ.पु.)-'$फर्सख़्ाÓ का बहु., दे.-'$फर्सख़्ाÓ।
$फराहत (अ.स्त्री.)-बुद्घि की तीव्रता; चतुरता, होशियारी; घोड़े की अच्छी चाल।
$फराहम ($फा.वि.)-एकत्र, इकट्ठा, एक जगह।
$फराहमी ($फा.स्त्री.)-एकत्र होना, इकट्ठा होना।
$फरिफ़्तन ($फा.पु.)-प्रेमी होना, मुग्ध होना, मोहित होना।
$फरिस्ताद: ($फा.पु.)-भेजा हुआ।
$फरिह (अ.पु.)-अति प्रसन्न, बहुत ख़्ाुश, हर्षित।
$फरी$क (अ.पु.)-वादी और प्रतिवादी; पक्ष, पार्टी; दल, गुरोह।
$फरी$के अव्वल (अ.पु.)-वह व्यक्ति जिसने दावा किया हो, वादी।
$फरी$के मुख़्ाालि$फ (अ.पु.)-प्रतिवादी, विरोधी पक्ष या दल।
$फरी$के मुतख़्ाासिम (अ.पु.)-शत्रु या लडऩेवाला पक्ष।
$फरी$के सानी (अ.पु.)-दूसरे पक्ष अर्थात् विरोधी पक्ष का व्यक्ति।
$फरी$कैन (अ.पु.)-उभय पक्ष, दोनों पार्टियाँ।
$फरीज़: (अ.पु.)-कत्र्तव्य, $फर्ज़; नमाज़।
$फरीज़ ($फा.पु.)-दूब, घास।
$फरीज़ए मज़्हबी (अ.पु.)-धार्मिक कत्र्तव्य, जैसे-नमाज़, रोज़ा, हज आदि।
$फरीद: (अ.वि.)-गर्दन टूटा हुआ शिकार।
$फरीद (अ.वि.)-एकाकी, अकेला; बेमिसाल, अनुपम, अनोखा, अद्वितीय।
$फरीदुलअ़स्र (अ.वि.)-अद्वितीय, अनुपम, बेमिसाल, जो अपने समय में अकेला हो।
$फरीश ($फा.पु.)-लूट-खसोट।
$फरीशा (अ.स्त्री.)-विनाशकारी।
$फरीस: (अ.पु.)-वह शिकार जिसे मारे कोई और तथा मिले किसी और को।
$फरीस (अ.वि.)-बुद्घिमान्, अक़्लमंद, चतुर।
$फरेफ़्त: ($फा.वि.)-मुग्ध, आसक्त, अ़ाशि$क; छलित, धोखा खाया हुआ। शुद्घ उच्चारण '$िफरेफ़्त:Ó है मगर उर्दू में '$फरेफ़्त:Ó ही प्रचलित है। 'शम्अ़ के रुख़्ा पे ख़्ाून की लाली दिखाई दी, पर्वाना जब $फरेफ़्ताए रौशनी हुआÓ-माँझी
$फरेब ($फा.पु.)-कपट, छल, धोखा; मिष, बहाना। (प्रत्य.)-छलनेवाला, जैसे-'दिल $फरेबÓ-मन को छलनेवाला। इसका शुद्घ उच्चारण '$िफरेबÓ है मगर उर्दू में $फरेब ही प्रचलित है।
$फरेबकार ($फा.वि.)-छली, कपटी, धोखेबाज़।
$फरेबख़्ाुर्द: ($फा.वि.)-ठगा हुआ, छलित, छला हुआ, वंचित, $फरेब खाया हुआ, धोखे में आया हुआ।
$फरेबख़्ाुर्दगी ($फा.स्त्री.)-धोखे में आ जाना, छला जाना, $फरेब खाना।
$फरेबदाद: ($फा.वि.)-जिसे छला गया हो, जिसे धोखा दिया गया हो।
$फरेबदिहिंद: ($फा.वि.)-धोखा देनेवाला, छल करनेवाला।
$फरेबदिही ($फा.स्त्री.)-छल करना, धोखा देना।
$फरेबसाज़ ($फा.वि.)-मक्कार, धोखेबाज़, द$गाबाज़।
$फरेबसाज़ी ($फा.स्त्री.)-द$गा, धोखा, मक्कारी।
$फरेबी ($फा.वि.)-धोखेबाज़, छली।
$फरेबे अक़्ल (अ.$फा.पु.)-अक़्ल का धोखा, बुद्घिभ्रम, बुद्घि का धोखे में पड़ जाना।
$फरेबे नजऱ (अ.$फा.पु.)-निगाह का धोखा, दृष्टिभ्रम, दृष्टि का धोखे में पड़ जाना।
$फरेवक ($फा.पु.)-ख़्ारबूजा, तरबूज़।
$फरोख़्त: ($फा.वि.)-बेचा हुआ। $फार्सी भाषा में '$िफरोख़्त:Ó है मगर उर्दू में यही प्रचलित है।
$फरोख़्त ($फा.स्त्री.)-बिक्री।
$फरोख़्तगी ($फा.स्त्री.)-बेचने का काम, बिक्री।
$फरो$ग ($फा.पु.)-ज्योति, प्रकाश, रोशनी; उन्नति, तरक़्$की; शोभा, छटा, रौन$क। शुद्घ उच्चारण '$फुरो$गÓ है मगर उर्दू में यही प्रचलित है।
$फरो$गबख़्श ($फा.वि.)-रोशनी देनेवाला, प्रकाश देनेवाला।
$फरोगुज़ाश्त ($फा.स्त्री.)-दे.-'$िफरोगुज़ाश्तÓ, वही शुद्घ है।
$फरोज़ ($फा.वि.)-प्रकाशित करनेवाला (प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होता है)।
$फरोज़ाँ ($फा.वि.)-दे.-'$फुरोज़ाँÓ, वही शुद्घ है।
$फरोज़ीद: ($फा.वि.)-प्रकाशित, रोशन।
$फरोदगाह ($फा.स्त्री.)-वह स्थान जहाँ कोई यात्री थोड़े दिन ठहरे। शुद्घ उच्चारण '$िफरोदÓ है मगर उर्दू में '$फरोदÓ भी प्रचलित है।
$फरोश ($फा.प्रत्य.)-बेचनेवाला, जैसे-'जिस्म$फरोशÓ-जिस्म बेचनेवाली, वेश्या, रण्डी।
$फरोशिंद: ($फा.वि.)-बेचनेवाला।
$फरोशीद: ($फा.वि.)-बेचा हुआ, बेची हुई वस्तु।
$फरोशीदनी ($फा.अव्य.)-जो वस्तु बेची जा सके, बेचने के योग्य।
$फअऱ् (अ.स्त्री.)-टहनी, डाली, शाखा; किसी मूल का कोई अंश।
$फर्ई (अ.वि.)-जो मूल में से निकला हो।
$फ$र्क (अ.पु.)-अन्तर, भेद; दो संख्याओं का शेष; दूरी, $फासिला; पृथक्ता, जुदाई; ह्रïास, कमी; मतभेद, इख़्ितला$फ; शिर, सिर, सर।
$फ$र्कअ़: (अ.क्रि.)-उँगली चटकाना।
$फर्क़दैन (अ.पु.)-दो तारे जो उत्तरी ध्रुव में हैं और शाम से सवेरे तक बराबर दिखाई पड़ते हैं, कभी छिपते नहीं।
$फर्कन (अ.स्त्री.)-नदी, नाला।
$फख्ऱ्ा (अ.पु.)-चूज:, पक्षी का बच्चा।
$फख्ऱ्ाज (अ.वि.)-ख़्ाराब, अनुचित; अश्लील।
$फख्ऱ्ाद: ($फा.वि.)-दे.-'$फख्ऱ्ाुद:Ó, दोनों शुद्घ हैं।
$फख्ऱ्ाुद: ($फा.वि.)-कल्याणकारी, शुभान्वित, मुबारक।
$फख्ऱ्ाुद:ख़्ाू ($फा.वि.)-सत्प्रकृति, बहुत ही अच्छे आचरण और स्वभाववाला (वाली)।
$फख्ऱ्ाुद:तालेÓ (अ.$फा.वि.)-सौभाग्यवान्, भाग्यशाली, $िकस्मत का धनी।
$फख़्ाुर्द:पै ($फा.वि.)-जिसका कहीं आना-जाना शुभ हो, मुबारक $कदम, शुभ-चरण।
$फख़्ाुर्द:$फाल ($फा.वि.)-$िकस्मतवाला, भाग्य का धनी, भाग्यवान्, भाग्यशाली, ख़्ाुशनसीब।
$फख़्ाुर्द:बख़्त ($फा.वि.)-दे.-'$फख़्ाुर्द:तालेÓ।
$फख़्ाुर्द:राय ($फा.वि.)-जिसकी सलाह, राय अथवा परामर्श नेक हो।
$फख़्ाुर्द:सि$फात (अ.$फा.वि.)-सद्गुण-सम्पन्न, अच्छे गुणों-वाला।
$फ$र्गुल, $फर्गुल ($फा.उभ.)-रुईदार लबादा, रुईदार चु$गा; वह रुईदार छोटा कोट जो बच्चों को पहनाते हैं और जिसमें टोपी भी लगी रहती है।
$फर्ज: (अ.पु.)-खोलना; खुलना।
$फर्ज (अ.स्त्री.)-शिगा$फ, फटन; विवर, छेद; भग, योनि; दो चीज़ों के बीच की दरार।
$फजऱ् (अ.पु.)-आवश्यक जि़म्मेदारी; कर्तव्य, ड्यूटी; अनिवार्य, ज़रूरी; ईश्वर की ओर से लगाया हुआ धार्मिक कृत्यों का आदेश; वह नमाज़ जिसका $कुरान में आदेश है।
$फजऱ्ज: (अ.पु.)-दवा में भिगोकर योनि अथवा गुदाद्वार में रखने का कपड़ा।
$फजऱ्ंद ($फा.पु.)-पुत्र, बेटा, लड़का, आत्मज, तनय।
$फजऱ्ंदी ($फा.वि.)-पुत्रत्व, बेटापन, पिता-पुत्र का रिश्ता।
$फजऱ्ंदे अर्जमंद ($फा.पु.)-सपूत, होनहार बेटा, भव्य-पुत्र।
$फजऱ्ंदे नरीन: ($फा.पु.)-पुत्र, बेटा, तनय, लड़का।
$फजऱ्न (अ.अव्य.)-दायित्व-बोध से, कत्र्तव्य-निर्धारण से, $फर्ज़ की रू से।
$फर्ज़शनास (अ.$फा.वि.)-कत्र्तव्य-पालक, जो अपने कत्र्तव्य को कत्र्तव्य समझकर पूरा करे।
$फजऱ्शनासी (अ.$फा.स्त्री.)-अपने कार्य को कत्र्तव्य समझकर पूरा करना, कत्र्तव्य निभाना।
$फजऱ्मंद ($फा.पु.)-वीर, महाप्रतापी; कत्र्तव्य के प्रति सचेष्ट।
$फजऱ्ां ($फा.पु.)-बुद्घि और विवेक, ज्ञान और बुद्घि।
$फर्जाद ($फा.वि.)-अक़्लमंद, मेधावी, बुद्घिमान्।
$फजऱ्ान: ($फा.वि.)-कुशल, दक्ष; चतुर, निपुण, होशियार; बुद्घिमान्, अक़्लमंद।
$फजऱ्ान:ख़्ाू ($फा.वि.)-निपुण, चतुर, बुद्घिमान्।
$फजऱ्ानगी ($फा.स्त्री.)-निपुणता, दक्षता, $काबिलीयत; चतुरता, होशियारी; बुद्घिमत्ता, अक़्लमंदी।
$फर्जाम ($फा.पु.)-परिणाम, नतीजा, अंजाम; अन्त, अख़्ाीर; (प्रत्य.)-अन्त या परिणामवाला, जैसे-'नेक$फर्जामÓ-जिसका अन्त या परिणाम सुखद हो।
$फर्जार ($फा.पु.)-परकार, गोलाकार अथवा वृत्त बनानेवाला यंत्र।
$फजऱ्ी ($फा.पु.)-शतरंज का एक मोहरा, वज़ीर। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़ेÓ अक्षर से बना है।
$फजऱ्ी (अ.वि.)-जिसकी केवल कल्पना हो, मूल में न हो, काल्पनिक। इसका 'ज़Ó उर्दू के 'ज़्वादÓ अक्षर से बना है।
$फर्जी ($फा.स्त्री.)-बिना बटन का लम्बा चो$गा, जो कपड़ों के ऊपर पहना जाता है, गाउन। इसका 'जÓ उर्दू के 'जीमÓ अक्षर से बना है।
$फजऱ्ीयत ($फा.स्त्री.)-आवश्यक होना, अनिवार्य होना।
$फजऱ्े ऐन (अ.पु.)-मूल कत्र्तव्य, मूल दायित्व।
$फजऱ्े कि$फाय: (अ.पु.)-वह दायित्व जो एक आदमी के पूरा करने से सबकी ओर से पूरा हो जाए, जैसे- किसी सभा में किसी के अभिवादन का जवाब एक आदमी दे दे तो सबकी ओर से हो जाता है।
$फजऱ्े मंसबी (अ.पु.)-वह कत्र्तव्य अथवा दायित्व जो किसी के लिए निर्धारित हो, जैसे-चिकित्सक के लिए स्वास्थ्य-सेवाएँ प्रदान करने का।
$फजऱ्े मुहाल (अ.पु.)-ऐसा दायित्व दे लेना जिसे निभाया न जा सके, ऐसी बात मान लेना या स्वीकार कर लेना जो हो न सके।
$फर्त (अ.पु.)-बाहुल्य, अधिकता, इफ्ऱात।
$फर्तूत ($फा.वि.)-अत्यधिक बूढ़ा।
$फर्ते ऐश (अ.पु.)-भोग-विलास और धन-दौलत का बाहुल्य।
$फर्ते $गज़ब (अ.पु.)-कोप का प्रकोप, क्रोध का आवेग, भावावेश।
$फर्ते $गम (अ.पु.)-शोक और दु:ख का आधिक्य।
$फर्ते मसर्रत (अ.पु.)-हर्षातिरेक, ख़्ाुशी, हर्ष और आनन्द की अधिकता या प्रचुरता।
$फर्ते महब्बत (अ.पु.)-प्रेमावेश, प्रेम की झोंक, प्यार का आवेग।
$फर्ते शादी (अ.$फा.पु.)-दे.-'$फर्ते मसर्रतÓ।
$फर्ते शौ$क (अ.पु.)-अभिलाषा का जोश।
$फर्द (अ.पु.)-एक शख़्स, एक व्यक्ति; बेमिस्ल, अद्वितीय; एकाकी, अकेला; दुलाई, रजाई, चादर।
$फर्द ($फा.स्त्री.)-हिसाब का रजिस्टर; हुक्मनाम:; निमंत्रण का सूचीपत्र।
$फर्दन $फर्दन (अ.अव्य.)-एक-एक करके, प्रत्येक व्यक्ति को, अलग-अलग।
$फर्दा ($फा.पु.)-आनेवाला कल।
$फर्दाए $िकयामत (अ.$फा.पु.)-प्रलय का दिन, जब सबके कर्मों के हिसाब-किताब होंगे।
$फर्दाए महशर (अ.$फा.पु.)-दे.-'$फर्दाए $िकयामतÓ।
$फर्दाए हश्र (अ.$फा.पु.)-दे.-'$फर्दाए $िकयामतÓ।
$फर्दे आÓमाल (अ.$फा.स्त्री.)-कर्मपत्र, आÓमालनाम:।
$फर्दे $करारदादे जुर्म (अ.$फा.स्त्री.)-अभियोगपत्र, चार्जशीट।
$फर्दे जुर्म (अ.$फा.स्त्री.)-अभियोगपत्र, चार्जशीट, $फर्दे $करारदादे जुर्म।
$फर्दे बशर (अ.पु.)-एक व्यक्ति, एक आदमी।
$फर्दे बातिल (अ.$फा.स्त्री.)-हिसाब का $गलत का$गज़; वह का$गज़ जो कटा-फटा हो और माना न जा सके; निकम्मी चीज़।
$फर्दे वाहिद (अ.पु.)-एक आदमी, एक व्यक्ति, $फर्दे बशर।
$फर्दे हिसाब (अ.$फा.स्त्री.)-हिसाब का का$गज़, बीजक, चिट्ठा; वह का$गज़ जिस पर कोई लेन-देन या हिसाब उतारा गया हो।
$फर्ना$क (अ.पु.)-स्नानगृह।
$फर्नास (अ.वि.)-सोया हुआ, $गा$िफल, असावधान।
$फ$र्फख़्ा (अ.पु.)-खु$र्फ: का साग।
$फ$िर्फयून (अ.स्त्री.)-थूहड़ का सुखाया हुआ दूध जो दवा में काम आता है।
$फर्बिही ($फा.स्त्री.)-मोटापा, मोटापन, स्थूलता।
$फर्बूदियत ($फा.स्त्री.)-बेहूदगी, बदतमीज़ी।
$फर्बेह ($फा.वि.)-स्थूल, मोटा-ताज़ा, लहीम-शहीम।
$फर्बेहअंदाम ($फा.वि.)-स्थूलकाय, मोटे-ताज़े शरीरवाला।
$फर्मां ($फा.पु.)-'$फर्मानÓ का लघु., आज्ञा, राजादेश, शाही हुक्म।
$फर्मांगुज़ार ($फा.वि.)-राजा, बादशाह, शासक, हाकिम।
$फर्मांगुज़ारी ($फा.स्त्री.)-शासन, हुकूमत, राज्य।
$फर्मांदेही ($फा.स्त्री.)-शासन, हुकूमत, राज्य।
$फर्मांपिज़ीर ($फा.वि.)-दे.-'$फर्मांबरदारÓ।
$फर्मां$फर्मा ($फा.वि.)-शासक, आदेश देनेवाला, हुक्म चलाने-वाला, राज करनेवाला।
$फर्मांबरदार ($फा.वि.)-आज्ञाकारी, आज्ञापालक, ताबेÓदार।
$फर्मांबरदारी ($फा.स्त्री.)-आज्ञापालन, हुक्म मानना।
$फर्मांरवा ($फा.वि.)-शासक, राजा, बादशाह।
$फर्मांरवाई ($फा.स्त्री.)-शासन, राज, हुकूमत।
$फर्मा ($फा.प्रत्य.)-$फरमानेवाला, जैसे-'हुक्म$फर्माÓ-हुक्म देनेवाला, आदेशदाता, आज्ञादाता।
$फर्माइश ($फा.स्त्री.)-माँगना, तलब करना; किसी काम या चीज़ के लिए कहना; कारख़्ााने या दुकान के माल का आर्डर।
$फर्माइशी ($फा.वि.)-जिसकी $फर्माइश की गई हो; जो $फर्माइश द्वारा किया गया हो; याचित।
$फर्मान ($फा.पु.)-राजादेश, शाही हुक्म; आज्ञा, आदेश, हुक्म।
$फर्मूद: ($फा.वि.)-उक्त, कहा हुआ, $फर्माया हुआ।
$फर्मूदन ($फा.पु.)-कहना, $फर्माना; आना-जाना।
$फर्मूदनी ($फा.वि.)-कहने योग्य।
$फर्याद ($फा.स्त्री.)-सहायता के लिए पुकार, गुहार, दुहाई; आर्तनाद, दु:ख की आवाज़; नालिश, न्याय-याचना, इस्ति$गास:; शिकायत, परिवाद, अनुयोग।
$फर्यादख़्वाह ($फा.वि.)-न्याय-याचक, नालिशी।
$फर्यादख़्वाही ($फा.स्त्री.)-न्याय-याचना, ज़ुल्म की दादरसी चाहना।
$फर्यादरस ($फा.वि.)-न्यायकर्ता, $फर्याद सुननेवाला।
$फर्यादरसी ($फा.स्त्री.)-न्याय करना, $फर्याद सुनना।
$फर्यादशनवा ($फा.वि.)-$फर्याद सुननेवाला, न्याय-याचना सुननेवाला।
फर्य़ादी ($फा.पु.)-दुहाई देनेवाला, न्याय के लिए गुहार लगानेवाला।
फर्र: ($फा.पु.)-शान, प्रतिष्ठा, वैभव।
$फर्र ($फा.वि.)-पलायन करनेवाला, भागनेवाला।
$फर्रार (अ.वि.)-पलायन, भागना। शुद्घ उच्चारण 'फिर्ऱारÓ है मगर उर्दू में '$फरारÓ ही है।
$फर्राश (अ.वि.)-जिसके जि़म्मे दरबार या मज्लिस आदि में $फर्श आदि बिछाने और रोशनी आदि करने का प्रबन्ध हो।
$फर्राशख़्ाान: (अ.$फा.पु.)-वह भवन जिसमें $फर्श वगैरह रखे जाते हों।
$फर्राशी (अ.वि.)-$फर्राश का काम।
$फर्रुख़्ा ($फा.वि.)-शुभ, कल्याणकारी; सुन्दर, अच्छा।
$फर्रुख़्ा$कदम (अ.$फा.वि.)-जिसका पदार्पण मंगलमयी हो, जिसका आना शुभान्वित हो,शुभ-चरण, मुबारक पै।
$फर्रुख़्ातबार ($फा.वि.)-आर्यभद्र, उच्चकुलीन, श्रेष्ठ ख़्ाानदान का।
$फर्रुख़्ानिहाद ($फा.वि.)-सदाचारी, सत्यप्रकृतिवाला।
$फर्रुख़्ा$फाल ($फा.पु.)-अच्छा शकुन, शुभ समय।
$फर्रुख़्ा सियर ($फा.पु.)-एक मु$गल सम्राट् की उपाधि।
$फर्रुख़्ाी ($फा.स्त्री.)-शुभ, मंगलकारी; सुन्दर।
$फर्वरदीन ($फा.पु.)-पहला ईरानी महीना।
$फर्श (अ.पु.)-बिछौना, बिछाने की चीज़; बड़ी जगह में बिछाई जानेवाली बड़ी दरी; समतल भूमि, हमवार ज़मीन; गच या सीमेंट से पक्की की गई चौरस ज़मीन; पृथ्वीतल, ज़मीन की सतह।
$फर्शी (अ.वि.)-$फर्श अथवा ज़मीन पर रखी जानेवाली चीज़, जैसे-'$फर्शी हुक्काÓ; $फर्श या ज़मीन से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु।
$फर्शी सलाम (अ.पु.)-वह सलाम जो बहुत झुककर किया जाए, दे.-'$फराशी सलामÓ।
$फर्शेआब (अ.$फा.पु.)-पानी का तल, समुद्र या नदी का तल।
$फर्शेख़्ााक (अ.$फा.पु.)-भूतल, पृथ्वी का तल, सत्हे ज़मीन।
$फर्शेगुल (अ.$फा.पु.)-सुमन-चादर, फूलों का $फर्श।
$फर्शेज़मीं (अ.$फा.पु.)-दे.-'$फर्शेख़्ााकÓ।
$फर्शेराह (अ.$फा.पु.)-ज़मीन में बिछा हुआ, रास्ते में बिछी हुई, (ला.)-विनम्र, विनीत। 'पाँव रखता हूँ जब मुहब्बत में, बेकसी $फर्शेराह होती हैÓ -जिगर मुरादाबादी
$फर्संग ($फा.पु.)-दे.-'$फर्सख़्ाÓ।
$फर्स (अ.पु.)-चीरना; काटना, फाडऩा।
$फर्सख़्ा (अ.पु.)-चार हज़ार गज़ की दूरी, अंग्रेज़ी मील के हिसाब से लगभग सवा दो मील।
$फर्सा ($फा.प्रत्य.)-कम करने अथवा घटानेवाला, जैसे-'रूह$फर्साÓ-रूह को कम करनेवाला; रगडऩे या घिसनेवाला, जैसे-'जबीं$फर्साÓ-माथा रगडऩेवाला, सर रगडऩेवाला।
$फर्साद ($फा.वि.)-हकीम, वैद्य; बुद्घिमान्, चतुर।
$फर्सूद: ($फा.वि.)-जीर्ण-शीर्ण; पुराना; फटा हुआ।
$फर्सूद:हाल ($फा.वि.)-फटेहाल, जिसकी दशा बहुत ख़्ाराब हो, पतले हालोंवाला, क्षीण दशावाला।
$फर्सूदगी ($फा.स्त्री.)-फटा-पुराना होना, घिसा-पिटा होना।
$फर्सूदनी ($फा.वि.)-घिसने योग्य।
$फर्हंग ($फा.स्त्री.)-बुद्घि, विवेक; शुऊर, अक़्ल; शब्दकोश, लु$गात।
$फर्हतअंजाम (अ.पु.)-शुभ परिणामवाला, जिसका अंत उत्तम हो।
$फर्हतअफ्ज़़ा (अ.वि.)-प्रफुल्ल, प्रसन्नता से भरा हुआ।
$फर्हतआसार (अ.$फा.पु.)-आनन्दित।
$फर्हतबख़्श (अ.$फा.पु.)-आनन्द प्रदान करनेवाला।
$फर्हस्त (अ.$फा.पु.)-मंत्र, जादू-टोना।
$फर्हाद ($फा.पु.)-शीरीं का प्रेमी, जिसने शीरीं की आज्ञा से पहाड़ काटा था और एक कुटनी के धोखा देने से उसने अपना सिर फोड़ लिया तथा मर गया।
$फलक (अ.पु.)-व्योम, आस्मान, आकाश, गगन, अम्बर।
$फल$क (अ.स्त्री.)-उषा, सवेरे का उजाला।
$फलक असास (अ.वि.)-अत्यंत मज़बूत और बुलंद।
$फलक$कद्र (अ.वि.)-अत्यधिक बड़े रुतबे और पदवीवाला।
$फलकज़द: (अ.$फा.वि.)-मुसीबत का मारा हुआ, आपत्ति या विपत्ति में फँसा हुआ, विपदाग्रस्त।
$फलकजनाब (अ.वि.)-जिसके मकान की चौखट आस्मान हो अर्थात् बहुत-ही प्रतिष्ठित और रुतबेवाला।
$फलकताज़ (अ.$फा.वि.)-नभ अर्थात् आकाश पर धावा बोलनेवाला यानी अत्यंत साहसी।
$फलकनवर्द (अ.$फा.वि.)-नभ में घूमनेवाला, आकाश की सैर करनेवाला, गगनचारी।
$फलकपरवाज़ (अ.$फा.वि.)-नभ में उडऩेवाला, आकाश में परवाज़ करनेवाला , नभश्चर।
$फलकपाय: (अ.$फा.वि.)-आकाश-जैसी महान् प्रतिष्ठावाला।
$फलकपैमा (अ.$फा.वि.)-पर्वतारोही, वह व्यक्ति या मण्डली जो किसी पहाड़ की चोटी तक पहुँचने के लिए प्रयासरत हो।
$फलक$फर्सा (अ.$फा.वि.)-दे.-'$फलकपरवाज़Ó।
$फलकबारगाह (अ.$फा.वि.)-दे.-'$फलकजनाबÓ।
$फलकबोस (अ.$फा.वि.)-नभ:स्पर्शी, गगनचुम्बी, व्योमचुम्बी, आकाश को छूनेवाला, आस्मान को चूमनेवाला, (ला.)-ऊँची उड़ान भरनेवाला।
$फलकमअ़ाब (अ.वि.)-अत्यधिक प्रतिष्ठित, बहुत बड़ी प्रतिष्ठावाला।
$फलकम$काम (अ.वि.)-दे.-'$फलकमअ़ाबÓ।
$फलकमर्तब: (अ.वि.)-आकाश-जैसी प्रतिष्ठावाला अर्थात् अत्यंत प्रतिष्ठित, बहुत बड़े मर्तबेवाला।
$फलकरसा (अ.$फा.वि.)-दे.-'$फलकबोसÓ।
$फलकरिकाब (अ.$फा.वि.)-दे.-'$फलकमर्तब:Ó।
$फलकरिफ़्अ़त (अ.वि.)-दे.-'$फलकपाय:Ó।
$फलकरुत्ब: (अ.वि.)-दे.-'$फलक$कद्रÓ।
$फलकशिकन (अ.$फा.वि.)-दे.-'$फलकशिगा$फÓ।
$फलकशिकोह (अ.वि.)-दे.-'$फलक$कद्रÓ।
$फलकशिगा$फ (अ.$फा.वि.)-व्योम-छिद्रक, गगनभेदी, आकाश को छेद डालनेवाला।
$फलकसरीर (अ.वि.)-दे.-$फलकपाय:Ó; जिसका सिंहासन स्वयं आकाश हो; ईश्वर का एक नाम।
$फलकसैर (अ.वि.)-दे.-'$फलकपरवाज़Ó।
$फलकी (अ.वि.)-आकाशीय, आस्मानी, आकाश से सम्बन्धित।
$फलकीयात (अ.स्त्री.)-अंतरिक्ष-विज्ञान, आस्मानों का इल्म, इल्मुल अफ़्लाक।
$फलकुलअफ़्लाक (अ.पु.)-सब आस्मानों से ऊँचा अर्थात् सब आस्मानों के ऊपरवाला आस्मान, नवाँ आकाश।
$फलके अत्लस (अ.पु.)-सबसे ऊपर का आकाश जो, जो अत्लस की भाँति बिलकुल सादा और स्वच्छ है।
$फलके आÓज़म (अ.पु.)-दे.-'$फलकुलअफ़्लाकÓ।
$फला (अ.पु.)-वीरान:, सुनसान स्थान।
$फलाकत (अ.स्त्री.)-निर्धनता, दरिद्रता, कंगाली, $गरीबी, मुफ़्िलसी।
$फलाकतज़द: (अ.$फा.वि.)-दुर्दशाग्रस्त, निर्धनता और $गरीबी का मारा हुआ।
$फलाख़्ान ($फा.पु.)-गोफन, जिसमें रखकर ढेला फेंकते हैं।
$फलातून (अ.पु.)-'अफ़्लातूनÓ का लघु., दे.-'अफ़्लातूनÓ।
$फलासंग ($फा.पु.)-$फलाख़्ान, गोफन; वन, जंगल, कानन, बियाबान, सुनसान।
$फलासि$फ: (अ.पु.)-'फल्स$फीÓ का बहु., दार्शनिक लोग; वैज्ञानिकजन; नैयायिकरण।
$फलाह (अ.स्त्री.)-कल्याण, भलाई; उपकार, नेकी; निजात, मोक्ष।
$फलाहत (अ.स्त्री.)-कृषि, खेती, काश्तकारी।
$फलाहतपेश: (अ.$फा.वि.)-कृषक, किसान, काश्तकार, खेतिहर।
$फलाहे दारैन (अ.स्त्री.)-संसार (इहलोक) और परलोक दोनों लोकों की भलाई।
$फलिहज़ा (अ.अव्य.)-बस इस कारण।
$फलीत: (तु.पु.)-शुद्घ उच्चारण और मूल शब्द '$फतील:Ó है मगर उर्दू में अनपढ़ लोग '$फलीत:Ó भी बोलते हैं।
$फल्स (अ.पु.)-तीन पाई का ताँबे का एक सिक्का, पैसा; मछली का सिन्ना, शल्क, शकल।
$फल्स$फ: (अ.पु.)-दर्शनशास्त्र; विज्ञानशास्त्र; न्यायशास्त्र; तर्क, दलील, मंति$क; विज्ञान, चिकित्सा।
$फल्स$फ:दाँ (अ.$फा.पु.)-दर्शनशास्त्र को जाननेवाला।
$फल्स$फ:दानी (अ.$फा.स्त्री.)-$फल्स$फ: जानना।
$फल्स$िफयान: (अ.अव्य.)-$फल्स$िफयों-जैसा।
$फल्स$फी (अ.वि.)-$फल्स$फ: जाननेवाला।
$फल्से माही (अ.$फा.पु.)-मछली के सिन्ने, शल्क, शकल।
$फल्से हूत (अ.पु.)-दे.-'$फल्से माहीÓ।
$फल्सैन (अ.पु.)-टका, दो पैसे का सिक्का, अधन्ना।
$फवाइद (अ.पु.)-'$फाइद:Ó का बहु., लाभ-समूह, अनेक लाभ, बहुत-से $फायदे।
$फवाकेह (अ.पु.)-'$फाकिह:Ó का बहु., मेवा-समूह, अनेक मेवे।
$फवाहिश (अ.पु.)-'$फाहिशÓ का बहु., कदाचार, दुराचार, बुरे काम।
$फव्वार: (अ.पु.)-पानी उछालने का एक यंत्र, धारायंत्र, फुहारा, जलयंत्र।
$फश (अ.स्त्री.)-पगड़ी का वह सिरा जो पीछे की ओर रहता है।
$फशा$फश (अ.स्त्री.)-बाणों की वर्षा से होनेवाली ध्वनि।
$फशार ($फा.पु.)-भींचना, दबाना; निचोडऩा; मुर्दे को $कब्र की ज़मीन का भींचना (इस्लाम-धर्म की मान्यता के अनुसार पापी मनुष्यों को $कब्रें बड़ी ज़ोर से भींचती हैं)।
$फशारे $कब्र (अ.$फा.पु.)-$कब्र की जकडऩ; पापी मनुष्यों को $कब्रों द्वारा भींचना।
$फशुर्द: ($फा.वि.)-निचोड़ा हुआ।
$फशुर्दनी ($फा.अव्य.)-निचोडऩे लाय$क।
$फश्र (अ.पु.)-बकवास, ऊट-पटाँग, बेहूदा बात।
$फस$क: (अ.पु.)-'$फासि$कÓ का बहु., कदाचारी या दुराचारी लोग।
$फसद: (अ.पु.)-'$फासिदÓ का बहु., $फसाद करनेवाले, दंगा करनेवाले, बलवाई, शरारती।
$फसाँ ($फा.पु.)-वह पत्थर जिस पर सान रखी जाती है, दे.-'$िफसाँÓ, दोनों शुद्घ हैं।
$फसाद (अ.पु.)-उपद्रव, दंगा, बल्वा; साम्प्रदायिक झगड़ा, फि$र्क:वारान: मारकाट; विकार, ख़्ाराबी; विघ्न, बाधा, ख़्ालल।
$फसादअंगेज़ (अ.$फा.वि.)-दंगा फैलानेवाला, उपद्रव मचाने-वाला।
$फसादअंगेज़ी (अ.$फा.स्त्री.)-दंगा फैलाना, उपद्रव करना।
$फसादज़द: (अ.$फा.वि.)-वह क्ष्ेत्र अथवा स्थान जहाँ कोई दंगा या बल्वा हो गया हो; दंगा या बल्वे में हानि उठानेवाला।
$फसादज़दगी (अ.$फा.स्त्री.)-दंगा या बल्वे में प्रभावित होना, हानि उठाना अथवा मारा जाना।
$फसादी (अ.वि.)-उपद्रव करनेवाला, $फसाद करनेवाला।
$फसादे ख़्ाून (अ.$फा.पु.)-रक्त-दोष, ख़्ाून की ख़्ाराबी।
$फसादे मेÓद: (अ.पु.)-पेट का विकार, हाजि़मे की ख़्ाराबी, मंदाग्नि।
$फसादे हज़्म (अ.पु.)-हाजि़मे अथवा पाचन-शक्ति की ख़्ाराबी, अजीर्ण, अपच।
$फसान: ($फा.पु.)-कहानी, कथा; उपन्यास, नाविल; वृत्तान्त, हाल।
$फसान:ख़्वाँ ($फा.वि.)-कहानी कहनेवाला।
$फसान:गो ($फा.वि.)-दे.-'$फसान:ख़्वाँÓ।
$फसान:नवीस ($फा.वि.)-उपन्यासकार, कहानियाँ लिखने-ेवाला।
$फसान:निगार ($फा.वि.)-दे.-'$फसान:नवीसÓ।
$फसान ($फा.पु.)-धार तेज़ करने का पत्थर।
$फसानए इश्$क (अ.$फा.पु.)-प्रेम की कहानी, प्यार में अपने ऊपर बीता हुआ वृत्तान्त।
$फसानए $गम (अ.$फा.पु.)-प्रेम-पीड़ा की व्यथा, प्यार में मिले $गम की कहानी।
$फसानए दिल ($फा.पु.)-प्रेम में मन की व्यथा का वृत्तान्त।
$फसानीद: ($फा.पु.)-कहानी; कहा हुआ; मंत्र पढ़ा हुआ।
$फसाहत (अ.स्त्री.)-वह लेखन-शैली जिसमें दैनिक प्रयोग के सरल और हलके-फुलके शब्दों का प्रयोग हो तथा अलंकार आदि या तो बिलकुल न हों और हों भी तो बहुत कम और सुन्दर हों।
$फसील (अ.स्त्री.)-परकोटा, वह दीवार जो नगर अथवा $िकले के चारों ओर बनाई जाए। 'मैंने चढ़-चढ़ के $फसीलों पे सदाएँ दी हैं, कोई सुनता ही नहीं शह्र हो बहरा जैसेÓ-माँझी
$फसीह (अ.वि.)-ऐसा व्यक्ति जो $फसाहत के साथ बातचीत करे; ऐसा कलाम जिसमें $फसाहत हो।
$फसीहुलबयान (अ.वि.)-मँजी हुई सरल और सुन्दर भाषा बोलनेवाला।
$फसुर्द: ($फा.वि.)-'अफ़्सुर्द:Ó का लघुरूप, मलिन, खिन्न, उदास; मुरझाया हुआ; ठिठुरा हुआ।
$फसुर्द:ख़्ाातिर (अ.$फा.वि.)-खिन्नमनस्क, मलिनचित्त, जो उदास मन का स्वामी हो।
$फसुर्द:दिल ($फा.वि.)-दे.-'$फसुर्द:ख़्ाातिरÓ।
$फसुर्द:रुख़्ा ($फा.वि.)-मलिनमुख, जिसका चेहरा कुम्हलाया हुआ हो।
$फसुर्दगी ($फा.स्त्री.)-मलिनता, खिन्नता, उदासी; ठिठुरन; कुम्हलाहट।
$फस्ख़्ा (अ.वि.)-निश्चय बदल देना; व्रत तोड़ देना।
$फस्ख़्ो अज़़ीमत (अ.पु.)-निश्चय-भंग करना; इरादा बदल देना; सोच में परिवर्तन।
$फस्ख़्ो निकाह (अ.पु.)-विवाह टूटना या विच्छेद होना।
$फस्ख़्ो बैअ़ (अ.पु.)-मोल ली हुई चीज़ का वापस हो जाना।
$फस्द (अ.स्त्री.)-रक्त-मोक्षण, रक्त-मोचन, रगों अथवा नसों से रक्त निकालना।
$फस्दजऩ (अ.$फा.वि.)-रक्त-मोक्षक, $फस्द द्वारा रगों अथवा नसों से रक्त निकालनेवाला।
$फस्ल (अ.स्त्री.)-पैदावार; किसी चीज़ के पैदा होने का समय; ऋतु, समय, मौसिम; पुस्तक का परिच्छेद; अन्तर, दूरी।
$फस्ल ब$फस्ल (अ.$फा.अव्य.)-हर $फस्ल में।
$फस्लान: (अ.$फा.पु.)-$फस्ल पर दिया जानेवाला नज्ऱान: या ह$क।
$फस्ली (अ.वि.)-$फस्ल से सम्बन्धित; $फस्ल का; किसानों का साल।
$फस्ले अंब: (अ.$फा.स्त्री.)-आमों की $फस्ल।
$फस्ले इस्ताद: (अ.$फा.स्त्री.)-खड़ी फस्ल जो अभी काटी न गई हो।
$फस्ले ख़्ारी$फ (अ.स्त्री.)-कतकिहाई, वह $फस्ल जिसमें मक्का, जवार, बाजरा और धान आदि उत्पन्न होता है।
$फस्ले ख़्िाज़ाँ (अ.$फा.स्त्री.)-पतझड़ की ऋतु।
$फस्ले गर्मा (अ.$फा.स्त्री.)-ग्रीष्म-ऋतु, गर्मी का मौसम।
$फस्ले गुल (अ.$फा.स्त्री.)-वसन्तऋतु, बहार का मौसम।
$फस्ले बहार (अ.$फा.स्त्री.)-दे.-'$फस्ले गुलÓ।
$फस्ले बाराँ (अ.$फा.स्त्री.)-वर्षाऋतु, बरसात का मौसम।
फ़स्ले रबीअ़ (अ.स्त्री.)-वह $फस्ल जिसमें गेहूँ, जौ, चना आदि उत्पन्न होता है, रब्बी।
$फस्ले शिता (अ.$फा.स्त्री.)-सर्दऋतु, सर्दी अथवा जाड़े का मौसम।
$फस्ले सर्मा (अ.$फा.स्त्री.)-शिशिर, शीतकाल, हिमऋतु, जाड़े का मौसम।
$फस्साद (अ.पु.)-रक्त-मोक्षक, रगों से रक्त निकालनेवाला।
$फहीम (अ.वि.)-बुद्घिमान्, अक़्लमंद; समझदार, विवेकी।
$फहुवलमुराद (अ.वा.)-तो ठीक है, तो $गनीमत है, Óअगर ऐसा हुआÓ के बाद यह वाक्य आता है और इस वाक्य के बाद 'वरन:Ó के साथ कोई वाक्य आता है, जैसे-अगर उसने रुपया दे दिया $फहुवलमुराद, वरना मुझे अदालती कार्रवाई करनी पड़ेगी।
$फह्म (अ.पु.)-कोयला।
$फह्म (अ.स्त्री.)-विवेक, तमीज़; बुद्घि, समझ।
$फह्माइश ($फा.स्त्री.)-चेतावनी, हिदायत; तंबीह, आगाही।
$फह्मिंद: ($फा.पु.)-समझनेवाला।
$फह्मीद: ($फा.वि.)-समझा हुआ।
$फह्मीद ($फा.स्त्री.)-बुद्घि, विवेक, समझ।
$फह्मीदन ($फा.स्त्री.)-समझाना।
$फह्मीदनी ($फा.अव्य.)-समझने के योग्य।
$फह्मे ना$िकस (अ.स्त्री.)-अपरिपक्व अथवा कच्ची समझ, नासमझी।
$फह्मे सहीह (अ.स्त्री.)-ठीक समझ।
$फह्ल (अ.पु.)-नर, पुल्लिंग।
$फह्हाश (अ.$फा.वि.)-अश्लील बातें करनेवाला।
$फह्हाशी (अ.$फा.स्त्री.)-अश्लीलता।
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